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कन्नौज बहन की साजिश : भाग 1

भाईबहन के रिश्ते को सब से पवित्र माना जाता है, लेकिन समाज में ऐसी बहनों की भी कमी नहीं है, जो अपने तथाकथित प्यार के लिए भाई को भी कुरबान करने को तैयार हो जाती हैं. पिंकी ऐसी ही बहन थी, जिस ने…

कन्नौज जिले के सरसौनपुरवा गांव के कुछ लोग जब अपने खेतों की तरफ जा रहे थे तो उन्होंने खैरनगर पुल के पास निचली गंगनहर के पानी में एक मोटरसाइकिल पड़ी देखी. वहीं पास ही पटरी किनारे खून भी फैला था. किसी अनहोनी की आशंका से उन लोगों ने 100 नंबर पर पुलिस को फोन कर के यह जानकारी दे दी.

सूचना पा कर डायल 100 पुलिस वहां आ गई. चूंकि घटनास्थल थाना ठठिया के अंतर्गत था, इसलिए पुलिसकर्मियों ने ठठिया पुलिस को सूचना दी. कुछ देर बाद थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा पुलिस टीम के साथ वहां आ गए. यह 15 सितंबर, 2019 की बात है.

थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. वहां पड़ा खून ताजा था. इस से उन्हें लगा कि वारदात को अंजाम दिए ज्यादा समय नहीं बीता है. परेशानी की बात यह थी कि घटनास्थल पर लाश नहीं थी. ऐसे में यह कह पाना मुश्किल था कि हत्या किसी पुरुष की हुई है या किसी औरत की.

बहरहाल, वर्मा ने हत्या की आशंका जताते हुए यह खबर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी. फिर उन्होंने टीम के पुलिसकर्मियों की मदद से मोटरसाइकिल नहर के पानी से बाहर निकलवाई. वह काले रंग की थी, जो कीचड़ से सनी थी.

वर्मा को आशंका थी कि हत्या कर लाश नहर में फेंकी गई होगी. शव की बरामदगी के लिए उन्होंने पुलिस के जवानों तथा गांव के 2-3 युवकों को पानी में उतारा. लेकिन काफी प्रयास के बाद भी शव नहीं मिल सका. इस के अलावा उन्होंने नहर की पटरी किनारे की झाडि़यों में भी तलाश कराई, लेकिन शव नहीं मिला.

थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा अभी शव बरामद करने का प्रयास कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह, एएसपी विनोद कुमार तथा सीओ (तिर्वा) सुबोध कुमार जायसवाल वहां आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, साथ ही थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा से घटना के संबंध में जानकारी भी ली.

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पुलिस अधिकारियों का अनुमान था कि जब मोटरसाइकिल नहर से बरामद हुई है तो शव भी नहर के गहरे पानी में ही होगा. इसलिए शव की बरामदगी के लिए एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने एसडीआरएफ की टीम को मौके पर बुलवा लिया. यह टीम निचली गंगनहर में उतरी और 2 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद शव को बाहर निकाल लिया.

यह शव किसी युवक का था, जिस की उम्र 28 वर्ष के आसपास थी. शरीर से वह हृष्टपुष्ट था. वह काले रंग की पैंट तथा सफेद नीलीधारी वाली शर्ट पहने था.

पुलिस अधिकारियों ने शव का निरीक्षण किया तो पता चला कि उस की हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. उस के शरीर को किसी नुकीली चीज से गोदा गया था. चेहरे से ले कर जांघ तक गोदने के एक दरजन से अधिक निशान थे.

जामातलाशी में युवक की पैंट की जेब से एक पर्स तथा ड्राइविंग लाइसेंस बरामद हुआ. लाइसेंस हालांकि पानी में गीला हो गया था लेकिन प्लास्टिक कवर चढ़ा होने की वजह से अक्षर पढ़ने में स्पष्ट नजर आ रहे थे. लाइसेंस में युवक का नाम बलराम यादव, पिता का नाम लायक सिंह यादव निवासी गांव गसीमपुर, थाना इंदरगढ़, जिला कन्नौज दर्ज था. पानी में भीग जाने के कारण फोटो ठीक से नहीं दिख रही थी.

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पुलिस अधिकारियों ने गसीमपुर निवासी लायक सिंह व उस के परिजनों को घटनास्थल पर बुला लिया. लायक सिंह ने जब शव को देखा तो वह फूटफूट कर रो पड़ा. उस ने बताया, ‘‘साहब, यह लाश मेरे एकलौते बेटे बलराम की है, मोटरसाइकिल भी उसी की है. मैं ने किसी का क्या बिगाड़ा था, जो उन्होंने मेरे बुढ़ापे का सहारा छीन लिया.’’

मां रामदेवी तो शव देख कर मूर्छित हो गई. आननफानन में उसे उमर्दा के सरकारी अस्पताल भेजा गया. सीओ सुबोध कुमार जायसवाल ने मृतक के पिता लायक सिंह से पूछताछ की तो उस ने बताया कि बलराम सुबह 5 बजे अपनी बहन पिंकी को दवा दिलाने के लिए घर से निकला था.

अगले भाग में पढ़ें- पहली ही नजर में पिंकी प्रदीप की आंखों में रच-बस गई

प्लेसमेंट एजेंसी के नाम पर ठगी

कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित जरा इन विज्ञापनों पर नजर डालिए-

  • नौकरी की 100 प्रतिशत गारंटी. नीचे दिए गए नंबर पर संपर्क करें और नौकरी से जुड़ी सभी जानकारी पाइए.
  • सस्ते पैकेज के साथ यह कोर्स कीजिए और बड़ी कंपनियों में प्लेसमेंट पाइए.
  • घरेलू नौकर आपके काम और इच्छा के अनुसार. नीचे दिए गए नंबर पर संपर्क करें. यह कुछ ऐसी लाइने हैं जिसे समाचार पत्रों में हम अक्सर देखते हैं. यह प्रचार प्लेसमेंट एजेंसियों की होती हैं.

पढ़ाई पूरी करने के बाद जहां स्टूडेंट्स के मन में पहला सवाल प्लेसमेंट और जौब को लेकर आता है. ऐसे में वो मदद लेते हैं प्लेसमेंट एजेंसी की जो प्लेसमेंट दिलवाने का दावा करते हैं. लेकिन कुछ ऐसी एजेंसी भी हैं जो सिर्फ और सिर्फ धोकाधड़ी का काम करती हैं. जो स्टूडेंट्स से प्लेसमेंट का दावा करती है और बदले में अच्छा खासा रकम वसूलती हैं और मौका पाते ही ये नौ दो ग्यारह भी हो जाती हैं. प्लेसमेंट एजेंसी की धोकाधड़ी आए दिन सुनने को मिलती है. लेकिन फिर भी लोग इसके काले जाल में फंसते चले जाते हैं.

ऐसे बहुत से केस है जो फर्जी प्लेसमेंट एजेंसी से जुड़े हैं.

दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा हिमानी ने बताया कि उनके साथ भी ऐसा फरेब हो चुका है. हिमानी को पढ़ाई के अलावा थिएटर में भी रुचि थी. हिमानी कौलेज के प्रथम वर्ष में थी जब बाहर से किसी एक्टिंग इंस्टीट्यूट के 2 लोग उनके कौलेज में आए थे. उन्होनें बताया कि उनका इंस्टीट्यूट 6 महीने का एक्टिंग कोर्स करवाता हैं. जिस में से एक महिना वो लोग मुंबई भेजते हैं फिल्म इंडस्ट्री के लोगों के साथ काम सीखने. उसके बाद यह लोग इंडस्ट्री में काम भी दिलवाते हैं. यह सुनकर हिमानी और उसके क्लास के अधिकतर बच्चों कि रुचि बढ़ गई. इस एक्टिंग क्लास में दाखिला लेने के लिए स्टूडेंट्स को 1100 का रजिस्ट्रेशन फी देना था. बहुत से स्टूडेंट्स ने रजिस्ट्रेशन फी दिया जिसके साथ उन्हें एक स्लिप दी गई जिसमें फोन नंबर और पता दिया गया था. और उन्हें 2 दिन बाद इंस्टीट्यूट आने को कहां गया. हिमानी बताती है.,“जब मैं और मेरे दोस्त उस पते पर पहुंचे तो वहां कोई इंस्टीट्यूट नहीं था. जब हमने उन लोगों को कॉल किया तो उनका नंबर भी नहीं लगा. हम लोगों ने करीब 1 महीने तक ट्राई किया लेकिन नंबर गलत बताया जा रहा था.

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कौलेज में अक्सर ऐसे ग्रुप, इंस्टीट्यूट और प्लेसमेंट एजेंसी आती हैं. जिस में से कई फर्जी निकलते हैं. इनका टार्गेट होता है स्टूडेंट्स को अपनी तरफ आकर्षित करना. कई बार यह लोग स्टूडेंट्स की डिटेल्स ले लेते हैं. उसके बाद यह लोग मेल और फोन के द्वारा इन्हें फंसाते हैं.

प्लेसमेंट एजेंसी द्वारा आप नौकरी पा सकते हैं, अलग-अलग कोर्स कर सकते हैं और अगर आपको किसी नौकरनी की जरूरत है तो वो भी आपको प्लेसमेंट एजेंसी द्वारा मिल सकती हैं.

लेकिन आज के समय में फर्जी एजेंसी इतनी ज्यादा है की लोग भरोसा नहीं कर पाते. हाल में ही दिल्ली पुलिस ने ऐसी फर्जी एजेंसी का पर्दाफाश किया है.इसमें काम करने वाले आरोपी नौकरी दिलाने के नाम पर लोगों से मोटी रकम वसूलते थे. आरोपियों ने दिल्ली के कई लोगों के साथ ठगी की है.

जिन में से रमेश भी है. रमेश ने इन लोगो के खिलाफ किर्ति नगर थाने में शिकायत दर्ज कारवाई. उसने अपनी बूढ़ी मां और बच्चे के लिए एक मेड की तलाश इंटरनेट के द्वारा की थी. उसे कई प्लेसमेंट एजेंसीयों से कौल आएं.उनमें से एक कॉल सुपर मेड एजेंसी नोएडा से आई.

रमेश ने उनसे पैसो की बात की थोड़े मोलभाव के बाद 20,000 रुपये कमीशन और 5,000 रुपये सैलरी की डील हो गई. 2 दिन बाद महिला नौकरनी की वेश में और पुरुष एजेंट्स के तौर पर यह लोग रमेश के घर पहुंचे. एजेंट्स ने 20,000 रुपये लिए और वहाँ से चलते बने. दो दिन बाद काम करने के बाद नौकरानी भी बगैर बताए हुए फरार गो गई. जब रमेश ने प्लेसमेंट एजेंट से संपर्क करने की कोशिश की तो कोई जवाब नहीं मिला.

अंत में पुलिस ने उनके साथ चालाकी की खुद कस्टमर बन कर पुलिस उन तक पहुंच गई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.

सेलिब्रिटी भी करते हैं संपर्क

लेकिन जरूरी नहीं सभी एजेंसी फर्जी हो. बात अगर हम करीना कपूर खान की करें तो करीना ने अपने बेटे तैमूर आली खान के देखभाल के लिए एक नैनी को रखा हैं. तैमूर की नैनी जिसका नाम सावित्री हैं जिनका रिफरेंस करीना को जुहू में स्थित एक एजेंसी के द्वारा दिया गया था. तैमूर की नैनी सावित्री को रखने से पहले उनका पूरा बैकग्राउंड, मेडिकल टेस्ट, आईडी सब चेक

किया गया था. करीना कपूर खान हो या आम आदमी धौका किसी के साथ भी हो सकता हैं ऐसे में सावधान रहना बहुत जरूरी हैं.

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प्लेसमेंट एजेंसी से जुड़े कानून

  • यदि आप प्लेसमेंट एजेंसी द्वारा किसी को काम पर रखते हैं तो ध्यान रहें हैं उसकी उम्र 18 वर्ष से ज्यादा होनी चाहिए. कानून के अनुसार आप 18 वर्ष से कम उम्र के लड़के- लड़की को काम पर नहीं रख सकते. यह चाइल्ड लेबर के अपराध में गिना जाएगा.
  • जिसे भी नौकरी पर रखा जा रहा है उसे न्यूनतम मजदूरी देना बहुत जरूरी है. ऐसा न होने पर बंधुआ मजदूरी का केस चल सकता हैं.
  • कानून के अनुसार प्लेसमेंट एजेंसी बिना लाइसेंस के प्राइवेट घरेलू नौकर उपलब्ध नहीं करा सकती.

नियमो का उल्लंघन करने पर प्लेसमेंट एजेंसी से खिलाफ कारवाई होती ही है. यहां तक की नौकर रखने वाले और नौकर के खिलाफ भी कारवाई की जा सकती है.

एडवोकेट सुमित शर्मा का कहना हैं., “ऐसे में इन लोगों के खिलाफ जुवेनाइल जस्टिस एक्ट धारा 23 व 26 के तहत केस दर्ज किया जाता हैं. साथ ही चाइल्ड लेबर रेग्युलेशन एक्ट धारा-3 और बंधुआ मजदूरी निरोधक कानून की धारा-16 के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है.

सावधानी बरतना हैं जरूरी

अगर आप प्लेसमेंट एजेंसी से सर्विस लेते हैं तो इन बातों का रखे ध्यान…

  • अगर आप प्लेसमेंट एजेंसी से सर्विस ले रहे हैं तो सबसे पहले उनके रजिस्ट्रेशन नंबर की मांग करें. अगर सच में एजेंसी सही होगी तो आप से फैक्ट नहीं छुपाएगी.
  • रजिस्ट्रेशन नंबर को लेबर डिपार्टमेन्ट वेबसाइट पर जांच लें की प्लेसमेंट एजेंसी रजिस्टर्ड हैं या नहीं.
  • फोन पर ही बात कर के भरोसा न करें.
  • एक बार खुद प्लेसमेंट एजेंसी का ऑफिस देख कर आए.
  • पुलिस वेरिफिकेशन के बिना नौकर न रखें.
  • यदि आप किसी नौकर को रख रहे हैं तो उसकी उम्र पता जरूर करें.
  • नौकर के घर वालों से बात करें.
  • यदि आपको नौकरी गारंटी दी जा रहीं हैं और उसके बावजूद आपको नौकरी नहीं मिली तो आप कंज्यूमर कोर्ट से मदद ले सकते हैं.
  • याद रहे इनके द्वारा दी गई रसीद, पता और फोन नंबर संभाल कर रखें. इन के बिना आप एजेंसियों के खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं कर सकते.

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देवी की कृपा : भाग 3

लेखिका : नीलिमा टिक्कू

अवतारी मां ने कहा, ‘‘चिंता मत करो. वह जल्दी ही ठीक हो जाएगी.’’

सावित्री के पूछने पर कि आप की तीर्थयात्रा कैसी रही, अवतारी मां कुछ जवाब देतीं इस से पहले ही फोन की घंटी घनघना उठी. सावित्री ने ड्राइंगरूम का फोन न उठा कर अपने बेडरूम में जा कर फोन उठाया. उन के बेटे का फोन था. वह कह रही थीं कि बेटा, तू चिंता मत कर, रमिया नहीं आई तो क्या हुआ, मैं कोई छोटी बच्ची तो हूं नहीं जो अकेली डर जाऊंगी.

फिर अपने स्वर को धीमा करते हुए वह बोलीं, ‘‘आनंदजी आए थे और 90 हजार रुपए दे गए हैं. मैं ने उन्हें तेरी अलमारी में रख दिया है.’’

बेटे से बात करते समय सावित्री को लगा कि ड्राइंगरूम का फोन किसी ने उठा रखा है. उन्होंने खिड़की के परदे से झांक कर देखा तो उन का शक सही निकला. फोन आशा ने उठा रखा था और इशारे से वह अवतारी को कुछ कह रही थी. सावित्री देवी तब और स्तब्ध रह गईं. जब उन्होंने अवतारी के पास मोबाइल फोन देखा, जिस से वह किसी को कुछ कह रही थी.

एसी से ठंडे हुए कमरे में भी सावित्री को पसीने आ गए. उन्होंने जल्दीजल्दी बेटे को दोबारा फोन मिलाया. उधर से हैलो की आवाज सुनते ही वह कुछ बोलतीं, इस से पहले ही अपनी कनपटी पर लगी पिस्तौल का एहसास उन की रूह कंपा गया. आशा ने लपक कर फोन काट दिया था.

दुर्गा मां का अवतार लगने वाली अवतारी अब सावित्री को साक्षात यमराज की दूत दिखाई दे रही थी.

‘‘बुढि़या, ज्यादा होशियारी दिखाई तो पिस्तौल की सारी गोलियां तेरे सिर में उतार दूंगी. चल, अपने बेटे को वापस फोन लगा कर बोल कि तू किसी और को फोन कर रही थी, गलती से उस का नंबर लग गया वरना उस का फोन आ जाएगा.’’

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सावित्री कुछ कहतीं इस से पहले ही बेटे का फोन आ गया.

‘‘क्या बात है, अम्मां? फोन कैसे किया था?’’

‘‘काट क्यों दिया…’’ सावित्री देवी मिमियाईं, ‘‘मैं तुम्हारी नीरजा बूआ से बात करना चाह रही थी लेकिन गलती से तेरा नंबर मिल गया.’’

‘‘मुझे तो चिंता हो गई थी. सब ठीक तो है न?’’

‘‘हांहां, सब ठीक है,’’ कहते हुए उन्होंने फोन रख दिया.

अवतारी गुर्राई, ‘‘बुढि़या, झटपट सभी अलमारियों की चाबी पकड़ा दे. जेवर व कैश कहांकहां रखा है बता दे. मैं ने कई खून किए हैं. तुझे भी तेरी दुर्गा मां के पास पहुंचाते हुए मुझे देर नहीं लगेगी.’’

उसी समय उन के 2 साथी युवक भी आ धमके. सावित्री को उन लड़कों की शक्ल कुछ जानीपहचानी लगी.

तभी एक युवक गुर्राकर बोला, ‘‘ए… घूरघूर कर क्या देख रही है बुढि़या? तेरे चक्कर में मैं ने भी तेरी देवी मां के मंदिर में खूब चक्कर लगाए. तू जो अपनी नौकरानी के साथ घंटों मंदिर में बैठ कर बतियाती रहती थी तब तेरे बारे में जानकारी हासिल करने के लिए हम दोनों भी वहीं तेरे आसपास मंडराते रहते थे. तेरी बड़ी गाड़ी देख कर ही हम समझ गए थे कि तू हमारे काम की मोटी आसामी है और हमारे इस विश्वास को तू ने मंदिर के बाहर हट्टेकट्टे भिखारियों को भीख में हर रोज सैकड़ों रुपए दान दे कर और भी पुख्ता कर दिया.’’

सावित्री के बताने पर आननफानन में उन्होंने घर में रखे सारे जेवरात व नकदी समेट लिए. तभी अवतारी जोर से खिलखिलाई, ‘‘बुढि़या, मैं आज तक किसी मंदिर में नहीं गई फिर भी तेरी देवी मां ने तेरी जगह मुझ पर कृपा कर दी. तेरी नौकरानी रमिया के बारे में पता चला कि वह तेरे यहां 20 साल से काम कर रही है. बड़ी नमकहलाल औरत है. उस को भरोसे में ले कर तो तुझे लूट नहीं सकते थे. इसीलिए तुम्हारी धार्मिक अंधता को भुनाने की सोची.

‘‘सच कहती हूं तुम्हारे जैसी धर्म में डूबी भारतीय नारियों की वजह से ही हम जैसे लोगों का धंधा जिंदा है. रमिया के बेटेबहू को भी पिस्तौल की नोक पर मेरे ही साथियों ने कई बार धमकाया था और रमिया समझी कि मां की कृपा से उस के बेटेबहू सुधर गए. कल रात को रास्ते में मैं ने रमिया को जमालघोटा डला प्रसाद दिया था ताकि वह आज काम पर न आ सके.’’

‘‘फालतू समय खराब मत करो,’’ एक युवक चिल्लाया, ‘‘अब इस बुढि़या का काम तमाम कर दो.’’

घबराहट से सावित्री के सीने में जोर का दर्द उठा और वह अपनी छाती पकड़ कर जमीन पर लुढ़क गईं.

पसीने से तरबतर सावित्री को देख अवतारी चहकी, ‘‘इसे मारने की जरूरत नहीं पड़ेगी. लगता है इसे दिल का दौरा पड़ा है. तुरंत भाग चलो.’’

उधर फैक्टरी में अपनी आवश्यक मीटिंग खत्म होने के बाद मनोज ने दोबारा घर फोन किया.

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फोन की घंटी लगातार बज रही थी. जवाब न मिलने पर चिंतित मनोज ने पड़ोसी शर्माजी के घर फोन कर के अम्मां के बारे में पता करने को कहा.

पड़ोसिन अपनी बेटी के साथ जब उन के घर पहुंची तो घर के दरवाजे खुले थे और अम्मांजी जमीन पर बेसुध गिरी पड़ी थीं. यह देख कर वह घबरा गई. डरतेडरते वह अम्मांजी के पास पहुंची और देखा तो उन की सांस धीमेधीमे चल रही थी. उन्होंने तुरंत मनोज को फोन किया.

सावित्री को जबरदस्त हृदयाघात हुआ था. उन्हें आई.सी.यू. में भरती कराया गया. गैराज में खड़ी दूसरी गाड़ी गायब थी. 2 दिन बाद उन को होश आया. बेटे को देखते ही उन की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बहने लगी. बेटे ने उन के सिर पर तसल्ली भरा हाथ रखा. सावित्री को पेसमेकर लगाया गया था. धीरेधीरे उन की हालत में सुधार हो रहा था.

रमिया व उन के बयान से पता चला कि लुटेरों के गिरोह ने योजना बना कर कई दिन तक सारी बातें मालूम कर के ही उन की धार्मिकता को भुनाते हुए अपनी लूट की योजना को अंजाम दिया और लाखों रुपए के जेवरात व नकदी लूट ले गए.

उन की कार शहर के एक चौराहे पर लावारिस खड़ी मिली थी लेकिन लुटेरों का कहीं पता न चला.

दहशत व ग्लानि से भरी सावित्री को आज अपने पति की रहरह कर याद आ रही थी जो हरदम उन्हें तथाकथित साधुओं और उन के चमत्कारों से सावधान रहने को कहते थे. वह सोच रही थीं, ‘सच ही तो कहते थे मनोज के पिताजी कि अंधभक्ति का यह चक्कर किसी दिन उन की जान को सांसत में डाल देगा. अगर पड़ोसिन समय पर आ कर उन की जान न बचाती तो…और अगर वे लुटेरे उन्हें गोली मार देते तो?’

दहशत से उन के सारे शरीर में झुरझुरी आ गई. आगे से वह न तो किसी मंदिर में जाएंगी और न ही किसी देवी मां का पूजापाठ करेंगी.

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देवी की कृपा : भाग 1

लेखिका : नीलिमा टिक्कू

‘‘रमियाजी, रुकिए,’’ कानों में मिश्री घोलता मधुर स्वर सुन कर कुछ देर के लिए रमिया ठिठक गई फिर अपने सिर को झटक कर तेज कदमों से चलते हुए सोचने लगी कि उस जैसी मामूली औरत को भला कोई इतनी इज्जत से कैसे बुला सकता है, जिस को पेट का जाया बेटा तक हर वक्त दुत्कारता रहता है और बहू भड़काती है तो बेटा उस पर हाथ भी उठा देता है. बाप की तरह बेटा भी शराबी निकला. इस शराब ने रमिया की जिंदगी की सुखशांति छीन ली थी. यह तो लाल बंगले वाली अम्मांजी की कृपा है जो तनख्वाह के अलावा भी अकसर उस की मदद करती रहती हैं. साथ ही दुखी रमिया को ढाढ़स भी बंधाती रहती हैं कि देवी मां ने चाहा तो कोई ऐसा चमत्कार होगा कि तेरे बेटाबहू सुधर जाएंगे और घर में भी सुखशांति छा जाएगी.

तभी किसी ने उस के कंधे पर हाथ स्वयं रखा, ‘‘रमिया, मैं आप से ही कह रही हूं.’’

हैरानपरेशान रमिया ने पीछे मुड़ कर देखा तो एक युवती उसे देख कर मुसकरा रही थी.

हकबकाई रमिया बोल उठी, ‘‘आप कौन हैं? मैं तो आप को नहीं जानती… फिर आप मेरा नाम कैसे जानती हैं?’’

युवती ने अपने दोनों हाथ आसमान की तरफ उठाते हुए कहा, ‘‘सब देवी मां की कृपा है. मेरा नाम आशा है और हमारी अवतारी मां पर माता की सवारी आती है. देवी मां ने ही तुम्हारे लिए कृपा संदेश भेजा है.’’

रमिया अविश्वसनीय नजरों से आशा को देख रही थी. उस ने थोड़ी दूर खड़ी एक प्रौढ़ महिला की तरफ इशारा किया जोकि लाल रंग की साड़ी पहने थी और उस के माथे पर सिंदूर का टीका लगा हुआ था.

रमिया के पास आ कर अवतारी मां ने आशीर्वाद की मुद्रा में अपना दायां हाथ उठाया. उन की आंखों से आंसू बहने लगे. उन्होंने रमिया को खींच कर अपने गले  लगा लिया और बड़बड़ाने लगीं :

‘‘मैं जानती हूं कि तू बहुत दुखी है. तुझे न पति से सुख मिला न बेटेबहू से मिलता है. शराब ने तेरी जिंदगी को कभी सुखमय नहीं बनने दिया. लेकिन तेरी भक्ति रंग ले आई है. माता का संदेशा आया है. वह तुझ से बहुत प्रसन्न हैं. अब तेरा बेटा सोहन व तेरी बहू कमली तुझे कभी तंग नहीं करेंगे.’’

रमिया हतप्रभ रह गई. देवी मां चमत्कारी हैं यह तो उस ने सुना था पर उन की ऐसी कृपा उस अभागी पर होगी ऐसा सपने में भी उस ने नहीं सोचा था.

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अवतारी ने मिठाई का एक डब्बा उसे देते हुए कहा, ‘‘क्या सोचने लगी? तुझे तो खुश होना चाहिए कि मां की तुझ पर कृपा हो गई है. और हां, मैं केवल माता के भक्तों से ही मिलती हूं, नास्तिकों से नहीं. चल, पहले इस डब्बे में से प्रसाद निकाल कर खा ले और इस में कुछ रुपए भी रखे हैं. तू इन रुपयों से अपनी नातिन ऊषा की शादी के लिए जो सामान खरीदना चाहे खरीद लेना.’’

आश्चर्य में डूबी रमिया ने भक्तिभाव से ओतप्रोत हो डब्बे की डोरी खोली तो उस में तरहतरह की मिठाइयां थीं. एक लिफाफे में 100 रुपए के 10 नोट भी थे. रमिया ने एक टुकड़ा मिठाई का मुंह में डाला और भावावेश में अवतारी के पैर छूने चाहे लेकिन वह तो जाने कहां गायब हो चुकी थीं.

रमिया की नातिन ऊषा का ब्याह होने वाला था. लाल बंगले वाली अम्मांजी ने दया कर के उसे 200 रुपए दे दिए थे. उसी से वह नातिन के लिए साड़ीब्लाउज खरीदने बाजार आई थी. पर यहां देवी कृपा से मिले रुपयों से रमिया ने नातिन के लिए बढि़या सी साड़ी खरीदी, एक जोड़ी चांदी की पायल व बिछुए भी खरीदे. उस के पास 400 रुपए बच भी गए थे. इस भय से रमिया सीधे घर नहीं गई कि बेटेबहू पैसा व सामान ले लेंगे.

सारा सामान अम्मांजी के पास रखने का निश्चय कर रमिया रिकशा कर के लाल बंगले पहुंच गई. उस ने बंगले की घंटी बजाई तो उसे देख कर अम्मांजी हैरान रह गईं.

‘‘रमिया, तू बाजार से इतनी जल्दी आ गई?’’

‘‘हां, अम्मांजी,’’ कहती वह अंदर आ गई. रमिया के हाथ में शहर के मशहूर मिष्ठान भंडार का डब्बा देख कर अम्मांजी हैरान रह गईं.

‘‘क्या तू ने नातिन के लिए सामान लाने के बजाय मेरे दिए पैसों से मंदिर में इतना महंगा प्रसाद चढ़ा दिया?’’

रमिया चहकी, ‘‘अरे, नहीं अम्मांजी, अब आप से क्या छिपाना है. आप तो खुद ‘देवी मां’ की भक्त हैं…’’ और फिर रमिया ने सारी आपबीती अम्मांजी को ज्यों की त्यों सुना दी.

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रमिया की बात सुन कर सावित्री देवी चकित रह गईं. रमिया जैसी गरीब और मामूली औरत को भला कोई बेवकूफ क्यों बनाएगा…फिर इतना सबकुछ दे कर वह औरत तो गायब हो गई थी. निश्चय ही रमिया पर देवी की कृपा हुई है. पल भर के लिए सावित्री देवी को रमिया से ईर्ष्या सी होने लगी. वह कितने सालों से देवी के मंदिर जा रही हैं पर मां ने उन पर ऐसी कृपा कभी नहीं की.

सावित्री देवी पुरानी यादों में खो गईं. उन का बेटा मनोज  7वीं कक्षा में पढ़ता था. गणित की परीक्षा से एक दिन पहले वह रोने लगा कि मां, मैं ने गणित की पढ़ाई ठीक से नहीं की है और मैं कल फेल हो जाऊंगा.

‘बेटा, मेरे पास एक मंत्र है’ उन्होंने पुचकारते हुए कहा, ‘तू इस को 108 बार कागज पर लिख ले. तेरा पेपर जरूर अच्छा हो जाएगा.’

मनोज मंत्र लिखने लगा. थोड़ी देर बाद मनोज के पिता कामता प्रसाद फैक्टरी से आ गए. बेटे को गणित के सवाल हल करने के बजाय मंत्र लिखते देख वह गुस्से से बौखला उठे और जोर से एक थप्पड़ मनोज के गाल पर दे मारा. साथ ही पत्नी सावित्री को जबरदस्त डांट पड़ी थी.

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‘देखो, तुम अपने मंत्रतंत्र, चमत्कार के जाल में उलझे रहने के बेहूदा शौक पर लगाम लगाओ. अपने बच्चे के भविष्य के साथ मैं तुम्हें किसी तरह का खिलवाड़ नहीं करने दूंगा. दोबारा ऐसी हरकत की तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’

उस दिन के बाद सावित्री ने मनोज को अपनी चमत्कारी सलाह देनी बंद कर दी थी. मनोज पिता की देखरेख में रह कर मेहनतकश नौजवान बन गया था. वहीं सावित्री की सोच ने उसे नास्तिक मान लिया था.

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देवी की कृपा : भाग 2

लेखिका : नीलिमा टिक्कू

मनोज का विवाह अंजना से हुआ था. अंजना एक पढ़ीलिखी सुशील लड़की थी. पति व ससुर के साथ उस ने भी फैक्टरी का कामकाज संभाल लिया था. अपने विनम्र व्यवहार से उस ने सास को कभी शिकायत का कोई मौका नहीं दिया था लेकिन बहू के साथ रोज मंदिर जाने की उन की हसरत, अधूरी ही रह गई थी. अंजना पूजापाठ से पूरी तरह विरक्त एकएक पल कर्म में समर्पित रहने वाली युवती थी.

मनोज के विवाह को 5 साल हो गए थे. सावित्री एक पोती व पोते की दादी बन चुकी थीं. तभी अचानक हुए हृदयाघात में पति का देहांत हो गया. पिता के जाने के बाद मनोज और अंजना पर फैक्टरी का अतिरिक्त भार पड़ गया था. दोनों सुबह 10 बजे फैक्टरी जाते और रात 7-8 बजे तक घर आते. इसी तरह सालों निकल गए.

सावित्री की पोती अब एम.बी.ए. करने अहमदाबाद गई थी और पोता आई.आई.टी. की कोचिंग के लिए कोटा चला गया था. वह दिन भर घर में अकेली रहती थीं. ऐेसे में रमिया का साथ उन को राहत पहुंचाता था. वह रोज रमिया को ले कर ड्राइवर के साथ मंदिर जाती थीं. मंदिर से उन्हें घर छोड़ने के बाद ड्राइवर दोबारा फैक्टरी चला जाता था. रमिया सब को रात का खाना खिला कर अपने घर जाती थी.

‘‘अम्मांजी, क्या सोचने लगीं’’ रमिया का स्वर सुन कर सावित्री देवी की तंद्रा भंग हुई, ‘‘यह देखो, मैं ने कितनी सुंदर साड़ी, पायल व बिछुए खरीदे हैं लेकिन ये सबकुछ आप अपने पास ही रखना. जब विवाह में जाऊंगी तब यहीं से ले जाऊंगी.’’

रमिया खुशीखुशी घर के कामों में लग गई. सावित्री कुछ देर तक टेलीविजन देखती रही फिर जाने कब आंखें बंद हुईं और वह सो गईं.

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उस दिन रात को जब रमिया अपने घर पहुंची तो यह देख कर हैरान रह गई कि घर में अजीब सी शांति थी. उसे देख कर बहू ने रोज की तरह नाकभौं नहीं सिकोड़ी बल्कि मुसकान बिखेरती उस के पास आ कर बड़े अपनेपन से बोली, ‘‘अम्मां, दिनभर काम कर के आप कितना थक जाती होंगी. मैं ने आज तक कभी आप का खयाल नहीं रखा. मुझे माफ कर दो.’’

आज बेटे ने भी शराब नहीं पी थी. वह भी पास आ कर बैठ गया और बोला, ‘‘मां, तू इतना काम मत किया कर. हम दोनों कमाते हैं. क्या तुझे खाना भी नहीं खिला सकते? क्या जरूरत है तुझे सुबह से रात तक काम करने की?’’

रमिया को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो पा रहा था. सचमुच आज सुबह से चमत्कार पर चमत्कार हो रहा था. यह सोच कर उस की आंखें भर आईं कि बेटेबहू ने आज उस की सुध ली है. स्नेह व अपनेपन की भूखी रमिया बेटेबहू का माथा सहलाते हएु बोली, ‘‘तुम्हें मेरी इतनी चिंता है, देख कर अच्छा लगा. सारा दिन घर में पड़ीपड़ी क्या करूं. काम पर जाने से मेरा मन लग जाता है.’’

दूसरे दिन सुबह जब रमिया ने अपने बेटेबहू के सुधरते व्यवहार के बारे में अम्मांजी को बताया तो वह भी हैरान रह गईं.

रमिया बोली, ‘‘अम्मांजी, मुझे लगता है देवी मां खुद ही इनसान का रूप धारण कर मुझ से मिलने आई थीं.’’

सावित्री के मुख से न चाहते हुए भी निकल गया, ‘‘काश, वह मुझ से भी मिलने आतीं.’’

रमिया के जीवन में खुशियां भर गई थीं. बेटाबहू पूरी तरह से सुधर गए थे. उस का पूरा ध्यान रखने लगे थे. एक दिन वह शाम को डेयरी से दूध ले कर लौट रही थी कि अचानक ही अपने सामने आशा व अवतारी मां को देख कर वह हैरान रह गई. अवतारी मां ने दायां हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में उठा दिया.

रमिया ने भावावेश में उन के पैर पकड़ लिए और बोली, ‘‘आप उस दिन कहां गायब हो गई थीं?’’

अवतारी मां बोलीं, ‘‘अब तुझे कभी कोई कष्ट नहीं होगा. अच्छा, बता तेरी लाल बंगले वाली सावित्री कैसी हैं? माता उन से भी बहुत प्रसन्न हैं.’’

यह सुनते ही हैरान रमिया बोली, ‘‘आप उन के बारे में भी जानती हैं?’’

अवतारी ने अपनी बड़ीबड़ी आंखें फैलाते हुए कहा, ‘‘भला, देवी से उस के भक्त कभी छिप सकते हैं? मैं भी सावत्री से मिलना चाहती हूं लेकिन उन के बेटे व बहू नास्तिक हैं. इसीलिए मैं उन के घर नहीं जाना चाहती.’’

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रमिया तुरंत बोली, ‘‘आप अभी चलो. इस समय अम्मांजी अकेली ही हैं. बेटेबहू तो रात 8 बजे से पहले नहीं आते.’’

अवतारी मां ने कहा, ‘‘देख, आज रात मुझे तीर्थयात्रा पर जाना है लेकिन तू भक्त है और मैं अपने भक्तों की बात नहीं टाल सकती इसलिए तेरे साथ चल कर मैं थोड़ी देर के लिए उन से मिल लेती हूं.’’

अवतारी मां से मिल कर सावित्री की खुशी का ठिकाना न रहा. उन्होंने कुछ रुपए देने चाहे लेकिन अवतारी मां नाराज हो उठीं.

सावित्री ने अवतारी मां से खाना खा कर जाने की विनती की तो फिर किसी दिन आने का वादा कर के वह विदा हो गईं.

इस घटना को कई दिन बीत गए थे. एक दिन दोपहर के समय लाल बंगले की घंटी बज उठी. सावित्री ने झुंझलाते हुए बाहर लगे कैमरे में देखा तो बाहर आशा व अवतारी मां को खड़े पाया. उन की झुंझलाहट पलभर में खुशी में बदल गई. उन्होंने बड़ी तत्परता से दरवाजा खोला.

‘‘आप के लिए मां का प्रसाद लाई हूं. मां तुम से बहुत खुश हैं,’’ फिर इधरउधर देखते हुए अवतारी मां बोलीं, ‘‘रमिया दिखाई नहीं दे रही?’’

अम्मांजी चिंतित स्वर में बोलीं, ‘‘अभी कुछ देर पहले उस का बेटा आया था और बता गया है कि रात भर दस्त होने की वजह से उसे बहुत कमजोरी है. आज काम पर नहीं आ पाएगी.’’

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अगले भाग में पढ़ें- ‘‘क्या बात है, अम्मां? फोन कैसे किया था?’’

बेटी और बेटों में अंतर को खत्म करना होगा : सयानी गुप्ता

फिल्म ‘मार्गरीटा विद ए स्ट्रो’ में पाकिस्तानी-बंगलादेशी लड़की की भूमिका निभा कर डैब्यू करने वाली अभिनेत्री सयानी गुप्ता कोलकाता की हैं. उन्हें बचपन से ही अभिनय की इच्छा थी जिस में साथ दिया उन के मातापिता ने. सयानी फिल्म में अपने चरित्र पर अधिक फोकस्ड रहती हैं और किसी भी चरित्र के लिए सौ प्रतिशत मेहनत करती हैं. फिल्म की सफलता से अधिक वे इस के प्रोसैस को एंजौय करती हैं. वे फिल्म इंडस्ट्री में आए परिवर्तन को अच्छा दौर बताती हैं जहां हर कलाकार को आज काम करने का मौका मिल रहा है. वैब सीरीज ‘इनसाइड एज 2’ में वे अपनी भूमिका को ले कर बहुत खुश हैं.

इस के अलावा उन की जर्नी के बारे में रोचक बातचीत हुई जिस में उन्होंने आज के समाज और इंडस्ट्री की सोच के बारे में चर्चा की. आइए, जानते हैं इस बारे में क्या कहती हैं सयानी.

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इंडस्ट्री में आना आप के लिए इत्तफाक था या बचपन से सोचा था ?

मैं बचपन से अभिनेत्री बनना चाहती थी. 4 साल की उम्र से मैं ने इस क्षेत्र में आने की सोची थी. पर मेरा पूरा परिवार शिक्षा के क्षेत्र से है. मैं मिडिल क्लास बंगाली परिवार से हूं. ऐक्टिंग करना ही मेरे लिए बड़ी बात थी. मुंबई आ कर फिल्मों में काम करने की बात तो कोई सोच भी नहीं सकता था, पर मेरे पिता म्यूजीशियन और आर्ट लवर रहे. थिएटर में भी उन्होंने काम किया था. जब मैं एक साल 8 महीने की थी, तब मेरी मां ने मु झे डांस स्कूल में डाल दिया था. मु झे डांस में तब डाला गया जब मु झे कुछ अधिक सम झ में नहीं आता था. थिएटर में मैं ने पहली प्रस्तुति तब दी जब मैं केवल 3 साल की थी और मु झे अभिनय के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. फिर मैं अभिनय और फिल्म मेकिंग सीखने के लिए फिल्म इंस्टिट्यूट गई. बाद में मुझे इस से काफी हैल्प मिली और अभिनय करने में भी सुविधा हुई. यहां काम करने के बाद मैं ने बहुतकुछ सीखा है. असल में अभिनय एक ग्रेजुअल प्रोसैस है जो समय के साथसाथ आता है.

सर्टिफिकेशन न होने की वजह से वैब सीरीज में इंटिमेट सींस और हिंसा भरपूर परोसे जाते हैं. इस बारे में आप क्या सोचती हैं ?

यह व्यक्ति की पसंद पर निर्भर करता है कि वह क्या देखे और क्या न देखे. कलाकार निर्देशक और लेखक के आधार पर अभिनय करता है. कहानी के ग्राफ और चरित्र को अगर सटीक न दिखाया जाए तो वैब सीरीज अच्छी नहीं लगती. केवल व्यवसाय के लिए सैक्स, हिंसा आदि को दिखाया जाना सही नहीं होता. जो जरूरी है वह निर्देशक दिखाता है. सैंसरबोर्ड पास नहीं करेगा, यह सोच कर उस के एसेन्स को अगर खत्म कर दिया जाए, तो ये सही नहीं. कहानी के अनुसार कुछ भी दिखाने पर दर्शक भी उसे सही मानते हैं. जब व्यक्ति कहानी में घुसता है, तो जो भी चीज प्रामाणिकता के अनुसार होती है उसे देखना वह पसंद करता है.

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सैंसरशिप के बारे में आप क्या कहना चाहती हैं ?

किसी भी आर्ट में सैंसरशिप एक समस्या है. क्रिएटिव लोगों को पूरी आजादी अपनी कहानी कहने के लिए होनी चाहिए. दर्शक ही बता सकते हैं कि क्या सही, क्या गलत है. किसी भी आर्ट फौर्म के लिए सैंसर समस्या है. अगर आप बड़ों के साथ किसी फिल्म या वैब सीरीज को देख नहीं सकते तो कोई आप को इसे देखने के लिए फोर्स नहीं करेगा. आप की पूरी आजादी आप को मिली है.

आगे क्या कर रही हैं ?

अभी छत्तीसगढ़ में मैं ने एक मर्डर मिस्ट्री पर कौमेडी फिल्म की शूटिंग पूरी की है और आगे कई फिल्में और वैब सीरीज कर रही हूं. एक बांग्ला फिल्म की बात भी चल रही है.

आप एक डांसर हैं लेकिन उस चरित्र में आप को देखने को कम मिला. क्या इस का मलाल है ?

यह सही है कि मुझे हमेशा इंटैंस भूमिकाएं मिलती हैं और मैं चाहती हूं कि वैसी फिल्में मु झे मिलें जिन में मैं डांस कर सकूं.

किसी फिल्म का सफल होना आप के लिए कितना माने रखता है ?

किसी फिल्म को साइन करते वक्त आप उस की सफलता पर ध्यान नहीं देते, क्योंकि आप को उस की कहानी और आप का चरित्र पसंद आता है. उस प्रोसैस में पूरी टीम काम करती है. हम केवल उस कहानी का एक पार्ट बनना चाहते हैं. इस वैब सीरीज में भी मेरी भूमिका क्रिकेट की पूरी जानकारी रखने वाले की थी, जो मेरे पास नहीं थी. मैं ने मेहनत कर उसे रियल बनाने की कोशिश की. इस में लेखक और निर्देशक का काफी हाथ रहा है, जिन्होंने मु झे इस भूमिका के लायक बनाया. इस के अलावा इंडियन क्रिकेट टीम में महिलाएं बहुत कम हैं, ऐसे में मु झे कुछ पता करना भी मुश्किल था.

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महिला और पुरुष में अंतर आज भी है. इसे कैसे कम किया जा सकता है? इस की शुरुआत कहां से होनी चाहिए ?

सब से पहले महिला और पुरुष को एक ह्यूमन की तरह ट्रीट करना पड़ेगा. समाज और फिल्ममेकर्स को भी ऐसी ही सोच रखनी होगी. जब काम पर कोई आता है तो महिला हो या पुरुष, उस के टैलेंट के अनुसार उस से व्यवहार करने की जरूरत है. फिल्म लेखक का यह दायित्व है कि वह हर किरदार को एक नजर से देखे. यह सही है कि आज भी यह अंतर है, इस के लिए समाज की सोच को बदलने की जरूरत है. सोच में बदलाव प्रोसैस में है, फिल्ममेकर्स, लेखक और निर्देशक कोशिश कर रहे हैं. इस के बारे में अधिक बात होने की जरूरत है. पहले आइटम सौंग करने वाले को अलग नजरिए से देखा जाता था, जो अब नहीं है और निश्चित ही यह एक सकारात्मक सोच है.

सिनेमा हमारे समाज का एक भाग है और उस का प्रभाव होता है, लेकिन घर पर बेटी और बेटों में अंतर को खत्म करना होगा. इस से सोच में बहुत बदलाव आएगा.

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आप अपनी जर्नी से कितनी संतुष्ट हैं ?

मु झे अभिनय करना बहुत पसंद है और मैं हर चरित्र को करना चाहती हूं पर समय नहीं मिल पाता. पिछले 2 सालों से मैं अपने परिवार और दोस्तों के साथ सही तरह से नहीं मिली और इस से मेरे स्वास्थ्य पर भी असर हुआ है. मैं इस बात से खुश हूं कि आज हर ऐक्ट्रैस को काम मिल रहा है, हर महिला ऐसे ही आगे बढ़े, इस में मुझे बहुत अधिक खुशी मिलती है.

प्रभावी बातचीत के लिए जरूर अपनाएं ये 5 तरीके

कभी कभी ऐसा होता है कि हम कहीं जाते हैं और किसी से मिलते हैं तो उनसे हुई बातचीत हम बहुत प्रभावित करती है और लंबे समय तक उसे याद रखते हैं. बातचीत करते समय शब्दों  के साथ साथ शरीर के हाव भाव दोनों पर ही ध्यान देना होता है.

आइए बातचीत करने के कुछ खास तरिकों के बारे में यहां जानते हैं –

1. ज्यादा निंदा /आलोचना से बचें – किसी की कमी बताना और सुधारना अच्छी बात है लेकिन एक ही बात को बार बार न कहें. अगर कोई वाकई सुधरना चाहता है और आपकी बात को ध्यान से सुन रहा है तो खुद में सुधार अवश्य लाएगा.  दो तीन कहने पर भी आपको कोई अन्तर नहीं दिखता तो उसे उसके हालत पर छोड़ देना चाहिए, चाहे घर हो या औफिस..

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2.  प्रशंसा सबके बीच में करें मगर आलोचना अकेले में – अगर किसी की तारीफ करनी है तो सबके सामने करें. इससे उस व्यक्ति में आत्मविश्वास भी बढ़ेगा. लेकिन जब उसे किसी बात पर टोकना हो तो अकेले में बुलाकर बोले. भले ही आप औफिस में बौस क्यों न हो. कई बार सामने की डांट इतनी चुभ जाती है कि लोग सालों साल नहीं भूल पाते हैं और कहीं कहीं कलीग भी मजाक बनाते हैं.  इसलिए इस बात का हमेशा ध्यान रखें.

3. बात करते समय सकारात्मक रहें – औफिस हो या घर, जब भी किसी इशू /समस्या पर डिस्कशन चल रहा है तो समस्या और उसकी वजह पर बात करते समय सकारात्मक रहे और समस्या के निदान पर जरूर चर्चा करें. आप की सकारात्मकता दूसरों को भी प्रेरणा देगी और जल्दी ही समस्या से भी मुक्ति मिल जाएगी.

4. बौडी लैंग्वेज पर ध्यान दें– बोलते समय हाव भाव और बौडी लैंग्वेज, आई कानटेक्ट का ध्यान रखे. जब आप किसी से बात कर रहे हैं तो उस समय आपके हावभाव ठीक होने चाहिए. साथ ही आई कानटेक्ट भी होना चाहिए ताकि सामने वाले को भी लगे कि आप उन्हें जानने, समझने में interested है और साथ ही आपका भी अच्छा इम्पैक्ट उस पर जाता है.

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5. बातचीत ध्यान सुने –  जब भी कोई आपसे कुछ कह रहा हैं तो उसे ध्यान से सुने, इससे न केवल आप अच्छे listener साबित होंगे बल्कि आपको कुछ न कुछ नया जानने को मिलता रहेगा और हमेशा गुड स्पीकर बनने के लिए गुड Listener होना जरूरी होता है.

पत्थलगड़ी के आड़ में नरसंहार !

पत्थलगड़ी एक संकल्प के रूप में एक मिशन के रूप में भारत के आदिवासी बहुल इलाकों में अपना पांव पसारता दिख रहा है. पत्थलगड़ी झारखंड के खूंटी जिला में उस समय प्रकाश में आया जब पत्थलगड़ी समर्थकों ने  अपने गावों के बाहर पत्थर के सिल्लापट्ट के माध्यम से बाहरी लेागों को यह संदेश देने की कोशिश की,  कि इस ग्राम में बिना इजाजत के प्रवेश वर्जित है और इस ग्राम में झारखंड सरकार या राज्य सरकार के कानून लागू नही होते बल्कि यहां की ग्रामसभा की सरकार है. पत्थलगड़ी आदिवासियों की भारत सरकार का शासन है. इसलिए हमारा कानून अलग है और हम भारत सरकार के कोई भी कानून को नही मानेंगे. यहां तक कि भारत सरकार द्वारा चलाये जा रहे विकास येाजनाओं का लाभ भी हम नहीं लेंगे. झारखंड सरकार उस समय सकते में आ गयी जब पत्थलगड़ी समर्थकों ने अपना बैंक और अपनी करेंसी की घोषणा कर दी. पत्थलगड़ी बैंक में सैकड़ो लेागों ने खाते भी खुलवा लिये. झारखंड सरकार ने तुंरत पत्थलगड़ी आंदोलन को हवा देने वाले नेताओं पर देशद्रोह का केस दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार करने लगी. तत्कालीन भाजपा सरकार नें दर्जनों पत्थलगड़ी पर दबिश बनाना शुरू कर दिया. कितने ही समर्थक अंडरग्राउंड भी हो गये. पत्थलगड़ी प्रभाव वाले जिले खुंटी , सिमडेगा , सरायकेला ,खरसंवा ,चाइबासा के पत्थलगड़ी समर्थकों को पुलिस ढूंढती फिर रही थी. पत्थलगड़ी मामले में राजनीतिक भी शुरू हो गयी. जहां विपक्ष पत्थलगड़ी समर्थकों के बचाव में उतरी वहीं तत्कालीन भाजपा सरकार नें उन्हें देशद्रोह घोसित कर चुकी थी. कुछ ही दिन में पत्थलगड़ी का आंदोलन कम हो गया.

सरकार बदलते ही पत्थलगड़ी समर्थकों को मिला बल

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दो हजार बीस जनवरी में झारखंड मुक्ति मोर्चा ,कांग्रेस और राजद के नेतृत्व में हेमंत सेारेन की सरकार बनी. हेमंत सरकार ने पहली कैबिनेट की बैठक में पत्थलगड़ी आंदोलनकारियेां पर हुए देशद्रोह के केस वापस लेने की घोषणा की. इस घोषणा से पत्थलगड़ी समथर्को को राहत मिली. पर पत्थलगड़ी के नाम पर बाइस जनवरी को हुए नरसंहार ने पत्थलगड़ी पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया. आपसी दुश्मनी के कारण चाईबासा जिले के गुदडी़ प्रखंड के बुरूगुलीकेला गांव में उप मुखिया समेत सात लेागों को गर्दन काट कर हत्या कर दी गयी. बुरूगुलीकेला गांव के उप मुखिया जेम्स बुढ़ के आलावा लोबा बुढ़ ,निर्मल बुढ़ ,जबरा बुढ़ ,कोजें टोपने ,वोवास लोमेगा ,एतवा बुढ़की हत्या पत्थलगड़ी समर्थकों ने ग्रामसभा की पंचायती के बाद कर दी.पत्थलगड़ी समर्थकों का आरोप है कि ये लोग पत्थलगड़ी के कानून का विरोध करते हुए कई घरों में तोड़ फोड़ की और कई बाइक को आग के हवाले कर दी.  इसी उपद्रव को लेकर ग्राम सभा में सभी ओरापी को भी बुलाया गया और इन सातों को दोषी पाते हुए मौत की सजा सुनाई गई. ग्रामसभा में मैात की सजा सुनते ही मृतक के परिजन भी डर से भाग खड़े हुए. हत्या के दो दिन बाद भी मृतक के परिजन वापस अपने गांव में नही आये. इस नरसंहार के बाद पुलिस कप्तान इंद्रजीत महथा  और डीसी अरवा राजकमल घटना स्थल पर पहुचें. हत्यारोपियों ने एसपी के सामने ये कबूला कि सातों की हत्या हमने की है क्योंकि वो पत्थलगड़ी का विरोध कर रहे थे तथा नक्सली संगठन पिएलएफआई के माध्यम से दो गा्रमीण लद्र बुढ़ तथा राणा शिबू बुढ़ को अगवा करवा लिया है जो पत्थलगड़ी समथर्क थे. नरसंहार के आरेापी अपनी गलती स्वीकार कर रहे थे. पर पुलिस की हिम्मत नही हुई कि वो उन्हें गिरफ्तार कर सकें. पत्थलगड़ी समर्थक व हत्यारोपी खुलकर बोल रहे थे कि वो सरकार के कानून को नही मानते हैं. और जो कोई भी सरकारी येाजनाओं का प्रचार प्रसार करेगा उसका यही हस्र हेागा.

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पत्थलगड़ी के विरोध में मारे गये मृतकों को जंगल से लाती पुलिस नरसंहार का कारण सरकारी योजना का समर्थन करना भी पत्थलगड़ी समर्थक के द्वारा की गई हत्या आपसी दुश्मनी के साथ साथ उप मुखिया का तथा सरकारी योजनाओं से जुड़े लेाग का जनता के प्रति जनजागरूकता का भी दुष्परिणाम है. जहां ग्राम सभा कर के पत्थलगड़ी समर्थकों ने ये एलान किया कि ग्रामवासी अपना अपना आधार कार्ड , राशन कार्ड तथा वोटर कार्ड सरकार को वापस करेंगे. साथ ही सरकार के किसी भी योजन का लाभ हम नही लेंगे. यहां तक कि पत्थलगड़ी के समर्थकों ने पीछले छ: महिने से राशन भी नही लीया है.

राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर चेताया जिन गांवों में पत्थलगड़ी का प्रभाव है वंहा के ग्राम प्रधान ने पत्र लिखकर राष्ट्रपति ,पीएम, सीएम को पत्र लिखकर ये कहा है कि पत्थलगड़ी में ग्रामसभा का अपना कानून चलता है. इसलिए आप हमारे इलाके से सीआरपीएफ ,जिला प्रशासन का कैंप जल्द हटाये. साथ ही ग्राम प्रधान ने पत्र के माध्यम से केंद्र और राज्य सरकार को यह भी बताया कि हम सप्ताह में निर्धारित जगह पर अपना कोर्ट लगायेंगे और पक्ष विपक्ष की बात सूनने के बाद सजा सुनायेगें. अगर कोई इस ग्रामसभा कोर्ट का विरोध करता है तेा उसे ग्राम से बाहर कर दिया जायेगा.

गुजरात से प्रेरणा लेकर पत्थलगड़ी की हुइ थी शुरूआत

पुलिस की विशेष साखा ने गुजरात के तापी के केसरी परिवार को पत्थलगड़ी ट्रेनींग सेंटर का ठिकाना बताया है. यह गुजरात महाराष्ट्र के भिल आदिवासी का इलाका है. कुंवर सिंह केसरी को इस ओदांलन का प्रेरणा स्त्रोत माना जाता है. कुवर सिह पेशे से एडवोकेट हैं. ओर झारखंड से जाकर पत्थलगड़ी समर्थक इसकी ट्रेनिंग लेते है. झारखंड के आलावा छतीसगढ़  के आदिवासी भी पत्थलगड़ी आंदोलन को हवा दे रहे है और छतिसगढ़ में भी इसका प्रयोग हो रहा है.

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इयरफोन : जरूरत या नशा

आजकल एक स्मार्टफोन हर किसी के हाथ में देखा जाता है, क्या बच्चे, क्या युवा और क्या बुजुर्ग, इस के प्रभाव से कोई नहीं बच पाया है. स्मार्टफोन एक शौक से ज्यादा जरूरत बनता जा रहा है क्योंकि बहुत से काम ऐसे हैं जो स्मार्टफोन बड़ी ही आसानी से आप के लिए कर सकता है. अगर स्मार्टफोन की बात चल रही है तो हम इयरफोन को कैसे भूल सकते हैं, क्योंकि बिना इयरफोन तो स्मार्टफोन अधूरा ही है.

इयरफोन का इतिहास कोई बहुत प्राचीन नहीं है. 1910 में इयरफोन पहली बार प्रयोग में आया और अमेरिका ने सब से पहले इयरफोन को अपने संगीतप्रेमियों के बीच लौंच किया. इयरफोन द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भी काफी लोकप्रिय रहा. धीरेधीरे वौकमैन बनाने वाली कंपनी ने अपने प्रोडक्ट के एक जरूरी हिस्से के रूप में इसे बेचना शुरू किया.

2001 में इयरफोन का चलन धीरेधीरे और बढ़ गया जब मोबाइल कंपनियां स्मार्टफोन के साथ ही इयरफोन देने लगीं. आज अगर बाजार में इयरफोन लेने जाएं तो चुनाव करना आसान न होगा क्योंकि आज बाजार में बहुत से ब्रैंड उपलब्ध हैं जो बहुत अच्छी गुणवत्ता के साथसाथ कई रंगों में इयरफोन उपलब्ध कराते हैं, जो बहुत ही अच्छी आवाज प्रदान करते हैं. बाजार में अब ऐसे इयरफोन भी आ गए हैं जो कौर्डलैस अर्थात बिना तार के हैं. उन्हें प्रयोग करने के लिए स्मार्टफोन का ब्लूटूथ औन कर श्रोता बिना किसी तार की  झं झट के इयरफोन का आनंद ले सकेंगे.

भारत के बाजारों में मुख्य रूप से मिलने वाले इयरफोन की कंपनियों के नाम सोनी, बोट, स्कलकैंडी, सेन्नहेइसेर, जेबरोनिक्स, जेबीएल, एएमएक्स और कीडेर हैं.

उपयुक्त इयरफोन गुणवत्ता में एकदूसरे से बढ़ कर हैं. इयरफोन बनाने वाली कंपनियां आवाज के आउटपुट तथा कान के अंदर लगने वाली घुंडी यानी इयरबड्स की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देती हैं.

स्मार्टफोन या इयरफोन खरीदने के लिए आजकल औनलाइन बाजार एक बहुत अच्छा विकल्प बना हुआ है क्योंकि यहां पर आप मात्र एक उंगली के स्पर्श से ही अपने प्रोडक्ट के बारे में विस्तृत जानकारी ले सकते हैं.

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आजकल बाजार में ब्लूटूथ वाले इयरफोन भी उपलब्ध हो गए हैं जो बिना तार के  झं झट के ही आप को इयरफोन का पूरा आनंद देते हैं.

इन इयरफोन की कीमत 500 रुपए से ले कर 5,000 रुपए तक होती है जोकि इन की गुणवत्ता बढ़ने के साथसाथ बढ़ती जाती है.

एक साधारण इयरफोन 400 से 700 रुपए में मिल जाता है जबकि कौर्डलैस या ब्लूटूथ वाला इयरफोन 2,500 से ले कर 5,000 रुपए के बीच आता है.

आजकल इयरफोन को थोड़ा और आधुनिक बना कर और उस के रूप में परिवर्तन कर उसे हैडफोन का नाम दे दिया गया है. इस प्रकार प्रयोगकर्ता इयरफोन बड्स के बारबार नीचे गिरने की  झं झट से मुक्ति पा जाता है. वैसे इयरफोन या हैडफोन में से कौन अधिक आरामदायक है यह ग्राहक की अपनी प्रकृति पर निर्भर करता है. ग्राहकों का एक वर्ग ऐसा भी है जो इयरफोन लगाने से अधिक आराम महसूस करता है क्योंकि ऐसा कर के वह हैडफोन को अपने सिर पर रखा सा महसूस नहीं करता और मुक्त हो कर काम करता है. वहीं, दूसरी तरफ कुछ ग्राहक हेडफोन को पसंद करते हैं क्योंकि इस में लटकते हुए तार को बारबार संभालने की जरूरत नहीं पड़ती. वैसे इन दोनों ही प्रकार के यंत्र बाजार में खूब धड़ल्ले से बिक रहे हैं.

इयरफोन प्रयोग करने के फायदे

इयरफोन प्रयोग करने के अनेक फायदे हैं, मसलन आप स्मार्टफोन पर कोई मूवी देख रहे हैं तो वह आप को अत्यंत मधुर एवं साफ आवाज प्रदान कराता है.

ठीक यही बात वीडियो कौल के समय लागू होती है. यदि आप इयरफोन लगा कर कौल करते हैं तो आवाज की गुणवत्ता काफी बढ़ जाती है.

किसी भी प्रकार का संगीत सुनते समय एक अच्छे इयरफोन का किरदार काफी बड़ा हो जाता है क्योंकि इयरफोन वह बारीक से बारीक ध्वनियां भी हमारे कान में प्रेषित कर देता है जो शायद हम बिना इयरफोन के नहीं सुन पाते.

इयरफोन से होने वाले नुकसान

विज्ञान ने आज जो भी हमें दिया है उस ने हमारा जीवन बहुत आसान कर दिया है पर उस की हमें बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है.

जिस तरह हर सिक्के के 2 पहलू होते हैं ठीक उसी तरह हर अच्छाई के साथ बुराई जरूर आती है. इयरफोन भी इस का कोई अपवाद नहीं है.

एक रिसर्च के अनुसार लगातार इयरफोन का प्रयोग करने से कान के अंदर बैक्टीरिया की संख्या लगातार बढ़ने लगती है.

किसी दूसरे व्यक्ति का इयरफोन हम बिना सोचेसम झे ही ले लेते हैं पर सच तो यह है कि दूसरे व्यक्ति का इयरफोन प्रयोग करने से इन्फैक्शन की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है. इसलिए हमें सिर्फ अपना इयरफोन ही प्रयोग में लाना चाहिए.

इयरफोन बड्स को लगातार कान में लगाए रखने से कान में दर्द भी हो सकता है तथा कान सुन्न भी पड़ सकता है.

इयरफोन का सब से बड़ा नुकसान जो अभी तक देखा गया है वह यह है कि सड़कों पर इयरफोन लगा कर जाते व्यक्ति अकसर ही सड़क दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं.

अभी पिछले दिनों ही समाचारों में एक लड़के के इयरफोन लगा कर रेल क्रौसिंग पार करते हुए दुर्घटनाग्रस्त हो जाने की बात सामने आई थी.

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लोग इयरफोन लगा कर इतना मशगूल हो जाते हैं कि फिर उन्हें दीनदुनिया की खबर भी नहीं रहती. फिर न वे किसी ट्रेन का हौर्न सुन पाते हैं और न ही किसी की आवाज, और अपने जीवन से हाथ धो बैठते हैं. इसलिए इयरफोन का प्रयोग गाड़ी चलाते समय या सड़क पर चलते समय बिलकुल भी नहीं करना चाहिए.

दिमाग को नुकसान

वैज्ञानिकों के अनुसार इयरफोन प्रयोग करते समय उस से विद्युत चुम्बकीय तरंगें निकलती हैं जो हमारे दिमाग की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकती हैं. कुछ आधुनिक इयरफोन के वर्ग में ऐसे इयरफोन भी आ गए हैं जो बिलकुल कान के अंदर तक घुस जाते हैं और दिमाग को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

यदि हम 90 डैसिबल पर कोई ध्वनि प्रतिदिन 4 घंटे सुनते हैं तो हमारे कानों को नुकसान हो सकता है. इसीलिए संगीत सुनते समय हमें आवाज का विशेष ध्यान रखना चाहिए और निश्चित अंतराल पर कानों को विश्राम भी देना चाहिए. एक सब से बड़ा नुकसान जो इयरफोन ने किया है वह है कि इस ने युवाओं को और भी एकाकी कर दिया है.

मैट्रो टे्रन में सफर करता युवावर्ग अपने कानों में इयरफोन घुसेड़े रहता है और अपने में ही डूबा रहता है. ऐसा ही दृश्य आजकल मार्केट और मौल्स में भी देखने को मिलता है.

निश्चित रूप से इयरफोन द्वारा मोबाइल या कंप्यूटर पर संगीत सुनना और वीडियो देखना अपनेआप में एक बहुत अच्छा अनुभव है, पर जिस तरह से अति हर चीज की बुरी होती है उसी तरह इस की भी है. इसलिए हमें सही और गलत के बीच की रेखा जाननी होगी, तभी हम तकनीक का सही आनंद उठा पाएंगे.

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