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ईको फ्रेंडली अंदाज में सजाये घर

अगर आप ईको फ्रेंडली चीजों के शौकीन है तो बीन फर्नीचर से बेहतरीन आपके लिए कुछ हो ही नहीं सकता है. घर को ईको फ्रेंडली अंदाज देने के साथ ये आपके जेब पर भी भारी नहीं पड़ेंगे. फिलहाल बाजार में इसकी ढेरों वेराइटी मौजूद है जिसमें से आप अपनी मनपसंद चीज चुन सकते हैं.

बीन चेयर :  यदि आप घर के लिए चेयर खरीदने जा रही है तो बीन चेयर खरीदे. इसका स्टफ इतना कोमल होता है कि इस पर बैठने पर आप काफी रिलेक्स फिल करेंगी. साथ ही ये स्टाइलिश लुक देगी. घर के कोने में लगी ये चेयर काफी मौर्डन लुक देगी.

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 बीन बैग्स बीन काउच : यदि आप अपने बच्चे के लिए कुछ अलग लेना चाहती हैं तो बिन बैग्स ले सकते है. वैसे ये बच्चों के साथ हर उम्र के लोगों को पसंद आएगा. अलग-अलग थीम्स जैसे एनीमल्स, जंगल, फूल आदि में आने के कारण बच्चों के कमरे के लिए एकदम परफैक्ट हैं. बीन काउच को आप अपने शयनकक्ष में रख सकते है. यदि आपकी दीवार का रंग लाल है तो लाल काउच रखें. ये काफी हौट लगेगा.

काउच के साथ : इसी मटेरियल का स्टूल आता है, जिस पर पैर रखकर आराम से आप टीवी देख सकते हैं या फिर लैपटौप पर काम कर सकते हैं.

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बीन सोफा बैड : बीन का सोफा घर को एक मौर्डन लुक देगा साथ ही आपके घर आने वाले इसके बारें में भी आपसे जरूर पूछेंगे और आपकी तारीफ किए बिना नहीं रह पाएंगे. ये हर तरह के मटेरियस जैसे लेदर, सिल्क, कौटन आदि में आते है. आप अपनी पसंद और बजट के हिसाब से इसे खरीद सकते हैं. यदि आपके घर में ज्यादा जगह नहीं है तो बीन के बने सोफा कम बैड भी ले सकते हैं. ये कई तरह के स्टाइल व रंग में मिल जाएंगे.

आउट डोर बीन फर्नीचर : यदि आप गार्डन या बालकनी में फर्नीचर रखना चाहते हैं तो बीन फर्नीचर रखें. ये इतने हल्के होते है कि आप इनको कहीं भी ले सकते है. साथ ही इसका मटेरियल ऐसा होता है, जो धूप और बारिश में खराब नहीं होता है. ये वाशएबल भी होते है.

लैटर बौक्स : भाग 1

सीढि़यों के नीचे लैटरबौक्स से अपनी डाक निकाल जैसे ही मैं मुड़ा, अचानक हड़बड़ा कर पीछे हट गया. मेरे बिलकुल पीछे एक नवयौवना अपने चकाचौंध करने वाले सौंदर्य के साथ खड़ी थी, जैसे चंद्रमा अपनी संपूर्ण कलाओं के साथ धरती पर अठखेलियां करने के लिए निकला हो.

अचानक पीछे मुड़ने से मैं उस सौंदर्य की प्रतिमा से टकरातेटकराते बचा था, क्योंकि वह बिलकुल मेरे पीछे खड़ी थी. शायद वह भी अपनी डाक निकालने आई थी. मुझे आश्चर्य हो रहा था कि मैं ने आज पहली बार उसे देखा था. पता नहीं किस फ्लैट में रहती थी.

हड़बड़ा कर पीछे हटते ही मेरे मुंह से निकला, ‘‘सौरी, आप…’’

उस के चेहरे पर कोई शर्मिंदगी या आश्चर्य के भाव नहीं थे. बड़ी सहजता से मुसकराते हुए बोली, ‘‘इट्स ओके.’’

इस के बाद मैं सिमट कर उस की बगल से निकला, तो ऐसा लगा जैसे सुगंध की एक मधुर बयार मेरे शरीर से टकरा कर गुजर गई हो. बड़ी ही मदहोश कर देने वाली खुशबू थी. उस के शरीर की खुशबू को अपने नथुनों में भरता हुआ मैं सीढ़ी पर पहला कदम रखने वाला ही था कि उस की खनकती आवाज मेरे कानों में पड़ी, ‘‘सुनिए.’’

मैं पीछे मुड़ा. वह बोली, ‘‘आप 201 नंबर फ्लैट में रहते हैं?’’

‘‘हां,’’ मैं ने उस के चेहरे की सुंदरता में खोते हुए कहा, मेरे फ्लैट का नंबर जानना उस के लिए मुश्किल नहीं था. मैं ने अभीअभी इसी नंबर के डब्बे से डाक निकाली थी और वह मेरे पीछे खड़ी देख रही थी.

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‘‘मैं 202 नंबर फ्लैट में रहती हूं.’’ वह अभी भी मुसकरा रही थी, जैसे उस के चेहरे पर सदाबहार मुसकान खिली रहती हो.

‘‘अच्छा,’’ मैं ने हैरत से कहा, ‘‘कभी आप को देखा नहीं, जबकि हमारे फ्लैट तो आमनेसामने हैं?’’

‘‘मैं ने भी आप को नहीं देखा. मैं पुणे में रहती हूं, यहां दीदी के पास आई हूं.’’

‘‘तभी तो,’’ मेरे आश्चर्य का समाधान हो गया था, ‘‘ओके, मेरे यहां भी कभी आइएगा.’’ मैं ने उसे निमंत्रण दिया, फिर सीढि़यां चढ़ने लगा. वह भी मेरे पीछेपीछे आने लगी. मैं ने चलते हुए पूछा, ‘‘आप ने अपना लैटरबौक्स नहीं देखा?’’

‘‘मैं इस के लिए वहां नहीं रुकी थी. मैं तो यह देख रही थी कि मोबाइल,  कंप्यूटर और इंटरनैट के जमाने में आजकल पत्र कौन लिखता है? परंतु आप के पास तो बहुत सारे पत्र आते हैं?’’

‘‘हां, मैं कवि और लेखक हूं. मेरे पास पाठकोंसंपादकों के पत्रों के अलावा पत्रपत्रिकाएं आती रहती हैं.’’

‘‘अच्छा, तब तो आप दिलचस्प व्यक्ति होंगे,’’ उस की आवाज में किलकारी सी आ गई थी. मैं ने कुछ नहीं कहा. तब तक हम दूसरे फ्लोर पर पहुंच गए थे. अपने फ्लैट की घंटी बजाते हुए उस ने मुझ से कहा, ‘‘मैं थोड़ी देर में आप के पास आऊंगी, आप को एतराज तो नहीं?’’

मेरे अंदर खुशी की एक लहर दौड़ गई. इतनी सुंदर लड़की मुझ से मिलने के लिए मेरे घर आएगी, मुझे क्या एतराज हो सकता था. मैं ने हलकी मुसकान के साथ कहा, ‘‘ओह, श्योर, व्हाई नौट.’’

घर में घुसते ही मैं ने डाक देखनी शुरू कर दी. इस काम को मैं बाद के लिए नहीं छोड़ता था. तभी मेरी पत्नी नेहा ने पानी का गिलास ला कर मेज पर रख दिया. फिर मेरे सामने बैठ कर बोली, ‘‘चाय अभी बनाऊं, या बाद में?’’

‘‘रहने दो, अभी कोई मिलने के लिए आने वाला है.’’

नेहा ने कोई प्रश्न नहीं किया. वह जानती थी, मुझ से मिलने के लिए लेखक और पत्रकार आते ही रहते थे. परंतु कुछ देर बाद जब उस सुंदर लड़की ने मोहक मुसकान के साथ घर में प्रवेश किया तो नेहा अचंभित रह गई. आज के जमाने में युवावर्ग हिंदी साहित्य को न तो पढ़ता है, न पसंद करता है. युवतियां तो बिलकुल भी नहीं. फिर वह लड़की मेरे पास क्या करने आई थी, संभवतया नेहा यही सोच रही थी, परंतु उस ने खुले दिल से उस का स्वागत किया.

परिचय का आदानप्रदान हुआ. पता चला उस का नाम छवि था. सचमुच वह सौंदर्य की प्रतिमा थी. उस के चांद से दमकते चेहरे पर सौंदर्य जैसे हंसता सा लगता था. आंखें बड़ीबड़ी और चंचल थीं. होंठ कुदरती तौर पर लाल थे और उस के माथे पर बालों की एक छोटी सी लट जैसे उस की सुंदरता को काली निगाहों से बचाने के लिए स्वत: वहां लहरा रही थी.

नेहा के मन में स्त्रीजन्य ईर्ष्याभाव जाग्रत हुआ था. यह उस के चेहरे के भावों से स्पष्ट था. छवि भले ही इसे न भांप पाई हो, परंतु मैं नेहा का पति था. उस के स्वाभाविक गुणों का मुझे पता था. ईर्ष्याभाव होते हुए भी नेहा उस से हंसहंस कर बातें कर रही थी. फिर चाय बनाने के लिए चली गई.

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तभी छवि ने कहा, ‘‘आप की पत्नी बहुत सुंदर और हंसमुख हैं.’’

‘‘आप से ज्यादा नही,ं’’ मैं ने खुले मन से उस की प्रशंसा की.

छवि के मुख पर एक शर्मीली मुसकान दौड़ गई. उस ने निगाहों को थोड़ा झुकाते हुए कहा, ‘‘आप मजाक कर रहे हैं.’’

‘‘नहीं, आप अपने मन से पूछ कर देख लीजिए. मेरी बात में एक अंश भी झूठ नहीं है,’’ मैं ने जोर देते हुए कहा.

‘‘ओके, मैं मान लेती हूं,’’ उस ने निगाहें उठा कर कहा, ‘‘आप का कोई बेबी नहीं है?’’

‘‘नहीं, अभी तक नहीं,’’ मैं ने धीमे स्वर में कहा.

‘‘क्या शादी को ज्यादा दिन नहीं हुए?’’ वह बहुत व्यक्तिगत हो रही थी.

मैं ने एक बार किचन की तरफ देखा. नेहा चाय बनाने में व्यस्त थी. मैं ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, शादी को तो लगभग 5 साल हो गए हैं. परंतु हम अभी बच्चा नहीं चाहते.’’ यह कहतेकहते मेरी आवाज थोड़ी भारी हो गई.

छवि ने शायद मेरी आवाज का भारीपन महसूस किया. उस की आंखों में आश्चर्य के भाव प्रकट हो गए, फिर अचानक ही हंस पड़ी, ‘‘अच्छा, आप क्या लिखते हैं?’’ उस ने बहुत चालाकी से एक असहज करने वाले विषय को टाल दिया था.

साहित्य पर चर्चा चल रही थी. तभी नेहा चाय, बिस्कुट और नमकीन ले कर आ गई. चाय पीते हुए कई विषयों पर चर्चा चली. छवि  एक बुद्धिमान और जिज्ञासु लड़की थी. उस का सामान्यज्ञान भी काफी अच्छा था. जब खुल कर बातें हुईं तो नेहा के मन से छवि के प्रति पूर्वाग्रह समाप्त हो गया.

छवि अपनी गरमी की छुट्टियां मुंबई में बिताने वाली थी. उस की दीदी और जीजा, दोनों ही सरकारी नौकरी में थे. दिनभर छवि घर पर रहती थी और टीवी देखती थी. कभीकभी आसपास घूमने चली जाती थी. छुट्टी के दिन अपनी दीदी और जीजा के साथ घूमने जाती थी.

मुझ से मिलने के बाद अब वह कहानी, कविता और उपन्यास पढ़ने लगी. मुझ से कई सारी किताबें ले गई थी. दिन का काफी समय वह पढ़ने में बिताती, या मेरी पत्नी के साथ बैठ कर विभिन्न विषयों पर बातें करती. मैं स्वयं एक सरकारी दफ्तर में ग्रेड ‘बी’ अफसर था, इसलिए केवल छुट्टी के दिन छवि से खुल कर बात करने का मौका मिलता था. बाकी दिनों में हम सभी शाम की चाय अवश्य साथसाथ पीते थे.

छवि के चेहरे में अनोखा सम्मोहन था. ऐसा सम्मोहन, जो बरबस किसी को भी अपनी तरफ खींच लेता है. संभवतया हर स्त्री में यह गुण होता है, कुछ में कम, कुछ में ज्यादा, परंतु कुछ लड़कियां ऐसी होती हैं जो पुरुषों को चुंबक की तरह अपनी तरफ खींचती हैं. छवि ऐसी ही लड़की थी. वह युवा थी, पता नहीं उस का कोई प्रेमी था या नहीं, परंतु उसे देख कर मेरा मन मचलने लगता था.

सामाजिक दृष्टि से यह गलत था. मैं एक शादीशुदा व्यक्ति था, परिवार के प्रति मेरी कुछ जिम्मेदारियां थीं और मैं सामाजिक बंधनों में बंधा हुआ था. परंतु मन किसी बंधन को नहीं मानता और हृदय किसी के लिए भी मचल सकता है. प्यार के  मामले में यह बच्चे के समान होता है, जो हर सुंदर लड़की और स्त्री को पाने की लालसा सदा मन में पालता रहता है.

मैं नेहा को देखता तो हृदय में अपराधबोध पैदा होता, परंतु जैसे ही छवि को देखता तो अपराधबोध गायब हो जाता और खुशी की एक ऐसी लहर तनमन में दौड़ जाती कि जी चाहता, यह लहर कभी खत्म न हो, शरीर के अंगअंग में ऐसी लहरें उठती ही रहें और मैं उन लहरों में डूब जाऊं.

छवि सामान्य ढंग से मेरे घर आती, हमारे साथ बैठ कर बातें करती, चाय पीती और चली जाती. कभी पुस्तकें मांग कर ले जाती और पढ़ कर वापस कर देती. उस ने मेरी भी कहानियां पढ़ी थीं, परंतु उन पर कोईर् प्रतिक्रिया नहीं दी थी. मैं पूछता, तो बस इतना कहती, ‘ठीक हैं, अच्छी लगीं.’ बस, और कोई विश्ेष टिप्पणी नहीं.

अगले भाग में पढ़ें- आप का इंतजार, उस ने आंखों को मटकाते हुए कहा.

7 जरूरी गुण, जो सिखाएं सब के साथ मिल कर रहना

जीवन में सफलता की निशानी है आप का आत्मविश्वास, आप की कार्यकुशलता, आप का व्यवहार. ये गुण लोगों के बीच आप की अलग ही छवि बनाते हैं.

आप निवेश इसलिए करते हैं ताकि कल आप को उस का रिटर्न मिल सके. यही खासीयत लाइफ स्किल्स यानी जिंदगी से जुड़ी कुशलता की है, जो आप को जीवन में सफल होना सिखाती है. यह सफलता कैरियर या निजी रिश्ते में भी मिल सकती है. विज्ञान का भी यही मानना है कि आप वास्तव में लोगों के साथ अच्छी तरह से बातचीत करना सीख सकते हैं.

हार्वर्ड की मनोचिकित्सक हेलेन रेस का कहना है कि कुछ लक्षण आप को अपने आसपास के लोगों के साथ मजबूत और तेज कनैक्शन बनाने में मदद कर सकते हैं. ये निम्न हैं-

आई कौन्टैक्ट : सामने वाले की आंखों में देख कर बातें करना एक आवश्यक कौशल है. यह किसी भी सौदे को जोड़ या तोड़ सकने के लिए काफी है. जब आप आमनेसामने की मीटिंग में शामिल होते हैं और आई कौन्टैक्ट बनाते हैं तो आप बिना सुने कई बातों को जान जाते हैं, जो सामने वाले व्यक्ति की पर्सनैलिटी के बारे में काफी कुछ कह जाता है, खासकर तब, जब बातचीत कम होती है.

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चेहरे की मांसपेशियां : इस से पहले कि आप वास्तव में प्रतिक्रिया दें या कुछ बोलें, आप के चेहरे की मांसपेशियां पहले ही प्रतिक्रिया दे देती हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि चेहरे की मांसपेशियां उन संकेतों को भेजती हैं, जो मस्तिष्क आगे भेजता है. इसलिए जब आप कुछ बुरा होते देखते हैं तो खिसियानी हंसी हंसते हैं और जब कुछ अच्छा देखते हैं तो अपनेआप मुसकरा देते हैं. सो, जान लें कि मांसपेशियां कभी झूठ नहीं बोलती हैं. इसलिए हमेशा कोशिश करें कि जब आप किसी व्यक्ति से मिलें तो चेहरे पर उदासीनता या क्रोध के भाव न हों बल्कि शालीनता और खुशी दिखे.

सही पोस्चर : सही पोस्चर के सिर्फ स्वास्थ्य संबंधी लाभ ही नहीं हैं, इस के दूसरे लाभ भी हैं. जब आप सही तरीके से बैठते या खड़े होते हैं तो आप के चेहरे पर आत्मविश्वास, ऊर्जा और खुशी अपनेआप आ जाती है. यह सामने वाले व्यक्ति को आकर्षित करता है. यह अपनेआप बातचीत को आसान बनाता है. साथ ही, सही पोस्चर बातचीत में सम्मान और अधिकार की भावना भी लाता है.

उन की सुनें : दूसरे व्यक्ति की बातों को पूरी तरह से सुनने के पीछे का भी कारण है. जब आप दूसरे व्यक्ति की बातों को सुनते हैं तो आप उन के साथ भावनात्मक तौर पर जुड़ जाते हैं और सही व सहानुभूति के साथ प्रतिक्रिया देते हैं. जब आप किसी के साथ बात कर रहे हों तो अपने फोन में या यहांवहां ध्यान दिए बिना उस व्यक्ति पर ध्यान दें और उस की बातें ठीक से सुन कर जवाब दें.

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भावनाओं पर ध्यान : यह जरूरी है कि आप दूसरे व्यक्ति की भावनाओं पर विशेष ध्यान दें और उसे प्रभावित करें. यदि कोई व्यक्ति खुश, उदास या घबराया हुआ दिखता है तो आप सही तरीके से प्रतिक्रिया दें. यदि सामने वाला गुस्से में है और उस की पिच हाई है तो भी उस की पूरी बात सुनने के बाद ही आप कुछ बोलें. सुगम कम्युनिकेशन तभी हो सकता है जब दोनों पक्ष की भावनाएं मेल खाएं.

दूसरों के विचारों का सम्मान : यह जरूरी नहीं है कि आप के और सामने वाले के विचार मेल खाते हों. अमूमन ऐसा होता है कि हम अपने विचार दूसरों पर थोपने की कोशिश करते हैं. हमें लगता है कि हमारी सोच सही है. जबकि, ऐसा नहीं है. संभव है कि सामने वाले के विचार आप से ज्यादा अच्छे हों. और यदि नहीं भी हैं तो यह आप का फर्ज बनता है कि आप दूसरों के विचारों का भी सम्मान करें. इस से आप दोनों के बीच समन्वय तो स्थापित होगा ही, साथ ही, हो सकता है कि व्यक्ति के विचार आप के लिए उपयोगी साबित हों.

   डा. सुजीत पाल  (लेखक स्टेहैपी फार्मेसी के एमडी हैं)    

लैटर बौक्स : भाग 4

‘‘मेरे दुखी होने से आप को क्या फर्क पड़ेगा,’’ उस ने उपेक्षा के भाव से कहा. उस की बात सुन कर मुझे दुख हुआ. क्या यह जानबूझ कर मेरे मन को दुख पहुंचा रही थी, ताकि उसे पता चल सके कि मैं उस के बारे में कितना चिंतित रहता हूं. किसी के बारे में सोचना, उस का खयाल रखना और उस को ले कर चिंतित होना प्यार के लक्षण हैं. वह शायद इन्हें ही जानना चाहती थी. उस के व्यवहार से मैं इतना तो समझ ही गया था कि वह मेरे बारे में सोचती है, परंतु किसी मजबूरी या कारणवश अपने हृदय को मेरे सामने खोलना नहीं चाहती थी. क्या इस का कारण मेरा शादीशुदा होना था?

‘‘मेरे दुख का तुम अंदाजा नहीं लगा सकती,’’ मैं ने बेचारगी के भाव से कहा.

‘‘15 दिनों के बाद जब मैं चली जाऊंगी, तब देखूंगी कि आप मुझ को ले कर कितना दुखी और चिंतित होते हैं,’’ उस ने लापरवाही से कहा.

‘‘तब तुम मेरा दुख किस प्रकार महसूस करोगी.’’

‘‘कर लूंगी, अपने हृदय से. कहते हैं न कि दिल से दिल की राह होती है. जब आप दुखी होंगे तब मेरे दिल को पता चल जाएगा.’’

कहतेकहते उस की आवाज नम सी हो गई थी. मैं ने देखा उस की आंखों में गीला सा कुछ चमक रहा था, वह अपने आंसुओं को रोकने का असफल प्रयास कर रही थी. अब मेरे मन में कोई शक नहीं था कि वह सचमुच मुझे प्यार करती थी, परंतु खुल कर हम दोनों ही इसे न तो कहना चाहते थे, न स्वीकार करना. मजबूरियां दोनों तरफ थीं और इन को तोड़ पाना लगभग असंभव था.

शाम तक हम दोनों इसी तरह एकदूसरे को बहलातेफुसलाते रहे, परंतु सीधी तरह से अपने मन की बात न कह सके.

15 दिन बहुत जल्दी बीत गए. इस बीच छवि से मेरी मुलाकात नहीं हुई. इस के लिए हम दोनों में से किसी ने प्रयास भी नहीं किया. पता नहीं हम दोनों क्यों एकदूसरे से डरने लगे थे. मैं अपने भय को समझ नहीं पा रहा था और छवि का भय मैं समझ सकता था.

जाने से एक दिन पहले की शाम…वह हंसती हुई हमारे यहां आई और नेहा के गले लगते हुए बोली, ‘‘दीदी, कल मैं जा रही हूं, आप को बहुत मिस करूंगी.’’ नेहा के कंधे पर सिर रखे हुए उस ने तिरछी नजर से मेरी तरफ देखा और हलके से बायीं आंख दबा दी. मैं उस का इशारा नहीं समझ सका.

गले मिलने के बाद दोनों आमनेसामने बैठ गए. नेहा ने पूछा, ‘‘बड़ी जल्दी तुम्हारी छुट्टियां बीत गईं, पता ही नहीं चला. फिर आना जल्दी.’’

मैं चुपचाप दोनों की बातें सुन रहा था. नेहा जैसे मेरे मन की बात कह रही थी. मुझे अपनी तरफ से कुछ कहने की जरूरत नहीं थी.

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‘‘हां, जल्दी आऊंगी. अब तो आप लोगों के बिना मेरा मन भी नहीं लगेगा,’’ कहतेकहते एक बार फिर छवि ने मेरी तरफ देखा. जैसे उस के कहने का तात्पर्य मुझ से था. अर्थात मेरे बिना उस का मन नहीं लगेगा. क्या यह सच था? अगर हां, तो क्या वह मुझ से जुदा हो सकती थी.

अगले दिन वह चली गई. दिनभर मैं उदास रहा, लेकिन उस को याद कर के रोने का कोई फायदा नहीं था.

शाम को हर दिन की तरह मैं अपने लैटरबौक्स से चिट्ठियां निकाल रहा था. लिफाफों के बीच में एक विश्ेष तरह का लिफाफा देख कर मैं चौंका. यह किसी डाक से नहीं आया था, क्योंकि उस पर न तो कोई टिकट लगा था और न ही उस पर भेजने वाले का नामपता ही था. बस, पाने वाले की जगह पर मेरा नाम लिखा था. लिफाफे में एक खुशबू बसी हुई थी जो मुझे उसे तुरंत खोलने पर मजबूर कर रही थी. मैं ने धड़कते दिल से उसे खोला और बिजली की गति से मेरी आंखें लिफाफे के अंदर रखे कागज पर दौड़ने लगीं.

‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं आप को क्या कह कर संबोधित करूं. मेरा आप का क्या संबंध है? मैं समझती हूं संबोधनहीन रहना ही हम दोनों के लिए श्रेष्ठ है. मेरा मानना है कि मेरे हृदय में आप का जो स्थान है उस के सामने सारे संबोधन बेमानी हो जाते हैं.

‘‘मैं ने कभी नहीं सोचा था कि मुंबई जा कर मैं इस चक्कर में पड़ जाऊंगी. परंतु मन क्या किसी के वश में होता है. आप में पता नहीं मुझे क्या अच्छा लगा, कि बस आप की हो कर रह गई. उस दिन जब मैं ने आप को लैटरबौक्स से चिट्ठियां निकालते देखा था तो अनायास मेरा दिल धड़क उठा. किसी अनजान आदमी को देख कर ऐसा क्यों होता है, यह तत्काल न समझ पाई, परंतु अब समझ गई हूं कि इस एहसास का क्या नाम होता है. मेरे हृदय के एहसास को नाम तो मिल गया, परंतु उस का अंजाम क्या होगा, यह अभी तक अनिश्चित है. इसलिए मैं खुल कर आप से कुछ न कह पाई और अपने एहसास के साथ मन ही मन घुटती रही.

‘‘मैं जानती हूं कि आप के हृदय में भी वही एहसास हैं, परंतु आप भी मुझ से खुल कर कुछ नहीं कह पाए. हम दोनों एकदूसरे से चोरी करते रहे. अच्छा होता हम दोनों में से कोई खुल कर अपनी बात कहता तो हो सकता है दोनों इतने कष्ट में इस तरह घुटते हुए अपने दिन न बिताते. हमारे मन के संकोच हमें आगे बढ़ने से रोकते रहे. मैं डरती थी कि आप का वैवाहिक जीवन न बिखर जाए और आप के मन में संभवतया यह डर बैठा हुआ था कि शादीशुदा हो कर कुंआरी लड़की से प्रेमनिवेदन कैसे करें और क्या वह आप को स्वीकार करेगी.

‘‘परंतु मैं समझ गई हूं कि प्रेम की न तो कोई सीमा होती है न कोई बंधन. प्रेम स्वच्छंद होता है. इसे न तो कोई मूल्य बांध सकता है, न नैतिकता इसे रोक सकती है क्योंकि यह नैसर्गिक होता है. मैं आज भले ही आप से दूर हूं और शारीरिक रूप से भले ही हम नहीं मिल पाएं हैं परंतु मैं जानती हूं कि हम दोनों कभी एकदूसरे से दूर नहीं हो सकते हैं. मैं फिर लौट कर आऊंगी और अगली बार जब मैं आप से मिलूंगी तब मेरे मन में कोई संकोच, कोई झिझक नहीं होगी. तब आप भी अपने बंधनों को तोड़ कर मेरे साथ प्यार की नैसर्गिक दुनिया में खो जाएंगे.

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‘‘अब और ज्यादा नहीं, मैं अपने दिल को खोल कर आप के सामने रख रही हूं. आप इसे स्वीकार करेंगे या नहीं, यह तो भविष्य ही बताएगा, परंतु मैं आप की हूं, इतना अवश्य जानती हूं.’’

पत्र को पढ़ कर मैं पूरी तरह से रोमांचित हो उठा था. मेरा रोमरोम सिहर उठा. काश, थोड़ी सी और हिम्मत की होती तो हम दोनों इस तरह विरह के आंसू बहाते हुए न जुदा होते.

मैं ने पत्र को कई बार पढ़ा और बारबार उसे सूंघ कर देखता रहा. उस में छवि के हाथों की खुशबू थी. मैं ने उसे अंदर तक महसूस किया.

पत्र को हाथों में थामें हुए मुझे कई पल बीत गए. अचानक एक धमाके की तरह नेहा ने मेरे मन में प्रवेश किया. उस की मुसकान मेरे दिल को बरछी की तरह घायल कर गई. नेहा मेरी पत्नी थी. मुझे उस से कोई शिकायत नहीं थी. वह सुंदर थी, गृहकार्यों में कुशल थी. मुझे जीजान से प्यार करती थी, फिर मैं कौन सा प्यार पाने के लिए उस से दूर भाग रहा था? क्या मैं मृगतृष्णा का शिकार नहीं हो गया था? मानसिक और शारीरिक, दोनों ही प्यार मेरे पास उपलब्ध थे, फिर छवि में मैं कौन सा प्यार ढूंढ़ रहा था?

मेरे मन में चिनगारियां सी जलने लगीं. हृदय में जैसे विस्फोट से हो रहे थे. ऐसे विस्फोट जो मेरे जीवन को जला कर तहसनहस करने के लिए आमादा थे. मैं ने तुरंत मन में एक अडिग फैसला लिया. मैं जानता था, मुझे क्या करना था? मैं अब और अधिक भटकना नहीं चाहता था.

मैं ने छवि के पत्र को फाड़ कर वहीं पर फेंक दिया. उसे सहेज कर रखने का साहस मेरे पास नहीं था. मैं छवि की खूबसूरती और यौवन में खो कर कुछ दिनों के लिए भटक गया था. अच्छा हुआ, हम दोनों ने अपने हृदय को एकदूसरे के सामने नहीं खोला. खोल देते, तो पता नहीं हम वासना की किन अंधेरी गलियों में खो जाते.

छवि सुंदर और नौजवान है, कुंआरी है, उसे बहुत से लड़के मिल जाएंगे प्यार और शादी करने के लिए. मैं उस के घर का चिराग नहीं था. मैं एक भटकता हुआ तारा था. जो पलभर के लिए उस की राह में आ गया था और वह मेरी चमक से चकाचौंध हो गई थी.

मैं एक पारिवारिक व्यक्ति था, एक लेखक था. अपनी पत्नी के साथ मैं खुश था. हमारे संतान नहीं थी, तो क्या हुआ? आज नहीं तो कल, संतान भी होगी. नहीं भी होगी, तो क्या बिगड़ जाएगा? दुनिया में बहुत सारे संतानहीन दंपती हैं, और बहुत सारे संतान वाले दंपती अपनी संतानों के हाथों दुख उठाते हैं.

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नेहा के अतिरिक्त मुझे किसी और के प्यार की दरकार नहीं.

मुझे आशा है, अगली बार जब छवि मेरे यहां आएगी, मैं उसे नेहा की छोटी बहन के रूप में ही स्वीकार करूंगा. मैं उस का प्रेमी नहीं हो सकता.

लैटर बौक्स : भाग 3

फिर एक लंबी चुप्पी…और फिर निरुद्देश्य टहलना, अर्थहीन बातें करना, लहरों के शोर में अपने मन की बात एकदूसरे को कहने का प्रयास करना, कुछ खुल कर न कहना…यह हमारे पहले दिन का प्राप्य था. इस में सुख केवल इतना था कि वह मेरे साथ थी, परंतु दुख इतना लंबा कि रात सैकड़ों मील लंबी लगती. कटती ही न थी. पत्नी की बांहों में भी मुझे कोई सुख नहीं मिलता, क्योंकि मस्तिष्क और हृदय में छवि दौड़ रही थी, जहां उस के कदमों की धमधम थी. उस के सौंदर्य की आभा से चकाचौंध हो कर मैं पत्नी के प्रेमसुख का लाभ उठाने में असमर्थ था. जब मन कहीं और होता है तो तन उपेक्षित हो जाता है.

मेरे हृदय में घनीभूत पीड़ा थी. छवि बिलकुल मेरे पास थी. फिर भी कितनी दूर. मैं अपने मन की बात भी उस से नहीं कह पा रहा था. उस ने भी तो नहीं कहा था कुछ? मेरे साथ वह केवल घूमने के लिए नहीं गई थी, कुछ तो उस के मन में था, जिसे वह कहना चाह कर भी नहीं कह पा रही थी. मैं उसे समझ नहीं पा रहा था.

अगले दिन न तो वह मेरे घर आई, न मेरे मोबाइल पर संपर्क किया. मैं बेचैन हो गया. क्या बात है, सोचसोच कर मैं परेशान हो रहा था, परंतु मैं ने भी उसे फोन करने का प्रयत्न नहीं किया.

मैं नेहा से दुखी नहीं था. वह एक सुंदर स्त्री ही नहीं, अच्छी पत्नी भी थी. सारे काम कुशलता से करती थी. कभी मुझे शिकायत का मौका नहीं देती थी. थोड़ी नोकझोंक तो हर घर में होती थी. मनमुटाव हमारे बीच भी होता था, परंतु इस हद तक नहीं कि हम एकदूसरे को तलाक देने की बात सोचते.

छवि मेरे मन में ही नहीं, हृदय में भी बस चुकी थी, परंतु क्या उस के लिए मैं नेहा को छोड़ दूंगा? संभवतया ऐसा न हो. छवि के साथ मेरा प्यार अभी तक लगभग एकतरफा था. प्यार परवान नहीं चढ़ा था. परवान चढ़ता तो भी क्या मैं छवि के लिए नेहा को छोड़ देता? यह सोच कर मुझे तकलीफ होती है. अपने प्यार की सजा क्या मैं नेहा को दे सकता था. उस का जीवन बरबाद कर सकता था. इतनी हिम्मत नहीं थी.

फिर भी मैं छवि को अपने दिलोदिमाग से बाहर नहीं करना चाहता था.

औरतें पुरुषों की मनोस्थिति बहुत जल्दी भांप लेती हैं. जब से छवि मेरे हृदय में आ कर विराजमान हुई थी, मेरा व्यवहार असामान्य सा हो गया था. पढ़ने में मन न लगता, लिखने का तो सवाल ही नहीं उठता था. घर में ज्यादातर समय  मैं लेट कर गुजारता. ऐसी स्थिति में नेहा का मेरे ऊपर संदेह करना स्वाभाविक था.

उस ने पूछ लिया, ‘‘आजकल आप कुछ खिन्न से रहते हैं? क्या बात है, क्या औफिस में कोई परेशानी है?’’

मैं उसे अपने मन की स्थिति से कैसे अवगत कराता. बेजान सी मुसकराहट के साथ कहा, ‘‘हां, आजकल औफिस में काम कुछ ज्यादा है, थक जाता हूं.’’

‘‘तो कुछ दिनों की छुट्टी ले लीजिए. कहीं बाहर घूम कर आते हैं.’’

‘‘यह तो और मुश्किल है. काम की अधिकता के कारण छुट्टी भी नहीं मिलेगी.’’

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‘‘तो फिर छुट्टी के दिन बाहर चलेंगे, खंडाला या लोनावाला.’’

‘‘हां, यह ठीक रहेगा,’’ मैं ने उस वक्त यह कह कर नेहा को संतुष्ट कर दिया.

तीसरे दिन छवि आई. उदास और थकीथकी सी लग रही थी. मेरे औफिस से आने के तुरंत बाद आ गई थी वह, जैसे वह मेरे आने का इंतजार ही कर रही थी. मैं उस का उदास चेहरा देख कर हैरान रह गया. मुझ से पहले नेहा ने पूछ लिया, ‘‘क्या हुआ छवि, तुम बीमार थी क्या?’’

वह सोफे पर बैठते हुए बोली, ‘‘हां दीदी.’’

‘‘हमें पता ही नहीं चला,’’ नेहा ने कहा, ‘‘बैठो, मैं चाय बना कर लाती हूं.’’ वह चली गई तो मैं ने शिकायती लहजे में कहा, ‘‘आप ने बताया भी नहीं.’’

उस ने कुछ इस तरह मुझे देखा, जैसे कह रही हो, ‘मैं तो तुम्हारे सामने ही बीमार पड़ी थी, फिर देखा क्यों नहीं?’ फिर कहा, ‘‘क्या बताती, आप को स्वयं पता करना चाहिए था. मैं कोई दूर रहती हूं.’’ उस की शिकायत वाजिब थी. मैं शर्मिंदा था.

वह क्यों बताती कि वह बीमार थी. अगर मेरा उस से कोई वास्ता था, तो मुझे स्वयं उस का खयाल रखना चाहिए था.

‘‘क्या हुआ था?’’ मैं ने सरगोशी में पूछा, जैसे मैं कोई गुप्त बात पूछ रहा था. और मुझे डर था कि कोई हमारी बातचीत सुन लेगा.

‘‘मुझे खुद नहीं पता,’’ उस ने दीवार की तरफ देखते हुए कहा. उस की आवाज से लग रहा था, वह अपने बारे में बताना नहीं चाहती थी. मैं ने भी जोर नहीं दिया. उस की उदासी से मैं स्वयं दुखी हो गया, परंतु उस की उदासी दूर करने का मेरे पास कोई इलाज नहीं था.

‘‘डाक्टर को दिखाया था?’’ मैं और क्या पूछता.

‘‘नहीं,’’ उस ने ऐसे कहा, जैसे उस की बीमारी का इलाज किसी डाक्टर के पास नहीं था. कैसी अजीब लड़की है. बीमार थी, फिर भी डाक्टर को नहीं दिखाया था. यह भी उसे नहीं पता कि उसे हुआ क्या था? क्या वह बीमार नहीं थी. उस को कोई ऐसा दुख था, जिसे वह जानबूझ कर दूसरों से छिपाना चाहती थी. वह अंदर ही अंदर घुट रही थी, परंतु अपने हृदय की बात किसी को बता नहीं रही थी.

फिर एक लंबी चुप्पी…तब तक नेहा चाय ले कर आ गई. बातों की दिशा अचानक मुड़ गई. नेहा ने पूछा, ‘‘हां, अब बताओ क्या हुआ था?’’

छवि पहली बार मुसकराई, ‘‘कुछ खास नहीं, बस सर्दीजुकाम था. इसलिए 2 दिन आराम किया.’’ नेहा से वह बड़े सामान्य ढंग से बातें कर रही थी, परंतु मैं जानता था, उस के अंदर बहुतकुछ छिपा हुआ था. वह हम सब को ही नहीं, स्वयं को धोखा दे रही थी.

छवि के व्यवहार में विरोधाभास था. नेहा के साथ वह सामान्य व्यवहार करती थी, जबकि मेरे साथ बात करते समय वह चिड़चिड़ा जाती थी. इस का क्या कारण था, यह तो वही बता सकती थी. परंतु कोई न कोई बात उसे परेशान अवश्य कर रही थी.

इतवार का दिन था. नेहा ने अपनी सहेलियों के साथ वाशी में जा कर शौपिंग का प्रोग्राम बनाया था. वहां अभीअभी 2-3 मौल खुले थे. मैं ने सोचा था कि नेहा के जाने के बाद मैं कुछ लेखनकार्य करूंगा.

नेहा के जाने के बाद मेरा मन लेखनकार्य की तरफ प्रवृत्त तो नहीं हुआ, परंतु छवि की ओर दौड़ कर चला गया. मन हो रहा था, वह आए तो खुल कर उस से बातें कर सकूं. मेरे ऐसा सोचते ही दरवाजे की घंटी बजी. घंटी की तरह मेरा दिल धड़का और दिल के कोने से एक आवाज आई, वही होगी. सचमुच वही थी. मेरे दरवाजा खोलते ही तेजी से अंदर घुस आई और बिना दुआसलाम के पूछा, ‘‘दीदी कहीं गई हैं?’’

उस ने एक पल घूरती नजरों से देखा फिर मुसकरा कर बोली, ‘‘नहीं, मैं आप से नाराज नहीं हूं.’’

‘‘फिर क्या बात है, मुझे नहीं बताओगी?’’

‘‘हूं. सोचती हूं बता ही दूं. आखिर घुटते रहने से क्या फायदा. शायद आप मेरी कुछ मदद कर सकें.’’ मुझे लगा वह मेरे प्रति अपने प्यारका इजहार करेगी. मैं धड़कते दिल से उसे देख रहा था. उस ने आगे कहा, ‘‘यह सही है कि मैं दुखी हूं, परंतु इतनी भी दुखी नहीं हूं कि रातभर रो कर तकिया गीला करूं. मन कभीकभी ऐसी चीज पर अटक जाता है जो उस की नहीं होती. तभी हम दुखी होते हैं.’’

मुझे लगा कि वह मेरे बारे में बात कर रही थी. मैं मन ही मन खुश हो रहा था. तभी उस ने अचानक पूछा, ‘‘क्या आप ने किसी को प्यार किया है?’’

मैं भौचक्का रह गया. उस का सवाल बहुत सीधा था, लेकिन मैं उस के प्रश्न का सीधा जवाब नहीं दे सका. लेकिन उस ने मेरे किस प्यार के बारे में पूछा था, शादी के पहले का, बाद का या अभी का. क्या उस ने भांप लिया था कि मैं उस से प्यार करने लगा था. अगर हां, तब भी मैं उस के सामने स्वीकार करने का साहस नहीं कर सकता था. मैं ने हैरानगी प्रकट करते हुए कहा, ‘‘कौन सा प्यार?’’

उस ने उपहासभरी दृष्टि से कहा, ‘‘आप सब समझते हैं कि मैं कौन से प्यार के बारे में पूछ रही हूं. चलिए, आप बताना नहीं चाहते, मत बताइए, प्यार के बारे में झूठ बोलना आम बात है. आप कुछ का कुछ बताएंगे और समझेंगे कि मैं ने मान लिया. इसलिए रहने दीजिए. ’’

‘‘तो आप ही बता दीजिए आप के मन में क्या है, यहां से दुखी हो कर जाएंगी तो मुझे भी अच्छा नहीं लगेगा,’’ मैं ने तुरंत कहा.

अगले भाग में पढ़ें- तब तुम मेरा दुख किस प्रकार महसूस करोगी.

शराबी पति : क्यों झेलना ही पड़ता है ?

‘‘अगर आप का पति शराब के नशे की लत का शिकार हो कर आप की पिटाई करना शुरू कर दे तो आप क्या करेंगी?’’ यह सवाल जब भोपाल की उन 5 पत्नियों से पूछा गया जिन के पति शराब छूते भी नहीं हैं, तो उन्होंने ये जवाब दिए.

पहली- ‘‘मैं खामोशी से पिटूंगी नहीं, उलटे खुद उन की धुनाई कर दूंगी.’’

दूसरी- ‘‘चिल्लाऊंगी, शोर मचाऊंगी और पड़ोसियों व मम्मीपापा को फोन कर बुलाऊंगी.’’

तीसरी- ‘‘खामोशी से पिटती रहूंगी यह देखने के लिए वे मुझे कितना मार सकते हैं.’’

चौथी- ‘‘तुरंत पुलिस थाने जा कर रिपोर्ट दर्ज कराऊंगी.’’

5वीं- ‘‘हमेशा के लिए उन्हें छोड़ दूंगी या फिर मैं भी उन के साथ बैठ कर पीने लगूंगी.’’ यही सवाल जब कुछ फेरबदल कर उन 5 पत्नियों से पूछा गया जिन के पति शराब के नशे में उन के साथ मारपीट करते हैं तब यह जान कर हैरत हुई कि इन में से 4 का जवाब ऊपर दिए गए तीसरी पत्नी के जवाब से मेल खाता था कि वे खामोशी से पिटती रहती हैं. और न पिटने के उपाय करती हैं.

न पिटने के लिए क्याक्या उपाय करती हैं यह पूछे जाने पर इन चारों ने बताया –

पहली- ‘‘शांति से उन्हें अंदर आने देती हूं. लड़खड़ाहट रोकने के लिए सहारा देती हूं और फिर पूछती हूं कि वे खाना कब खाएंगे?’’

दूसरी- ‘‘उन्हें सोफे पर बैठा कर जूतेमोजे उतारती हूं. बदलने के लिए कपड़े देती हूं और खाना डाइनिंग टेबल पर लगा देती हूं. जब उन की मरजी होती है तब खा लेते हैं.’’

तीसरी- ‘‘नकली मुसकराहट से उन का स्वागत करती हूं और जैसी वे चाहते हैं वैसी बातें करती हूं.’’
चौथी- ‘‘दरवाजा खोल कर अंदर आने देती हूं पर उन से बात नहीं करती. शराबी के मुंह लगने से क्या फायदा?’’

केवल एक पत्नी ने कहा, ‘‘उन्हें जीभर कर लताड़ती हूं कि फिर पी कर आ गए. कुछ तो अपने स्टेटस और सेहत के अलावा बड़े होते बच्चों का खयाल करो कि उन पर क्या गुजरती होगी? यह जवाब सुन कर अकसर वे गुस्से में हाथ भी उठा देते हैं. इस पर रोती हूं और अपने मम्मीपापा को कोसती हूं कि क्या पूरी दुनिया में यही शराबी मिला था जिस के गले मुझे मढ़ दिया. न जाने कौन सा बदला उन्होंने मुझ से लिया है.’’

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समझें जवाबों के फर्क को

जिन पत्नियों के पति शराब नहीं पीते उन में गजब का आत्मविश्वास रहता है, इसलिए उन्होंने जवाब भी आत्मविश्वास भरे दिए. लेकिन शराबी पति से अकसर या कभीकभार ही सही पिटने वाली पत्नियों के जवाब देखें तो उन में हताशा और हालात से समझौता साफ नजर आता है. उन पत्नियों में कतई स्वाभिमान या आत्मसम्मान नहीं है. वे एक खास तरह की हीनता और अवसाद की शिकार नजर आती हैं.

यानी शराबी पति द्वारा पिटने वाली पत्नियों में आत्मविश्वास काफी कम होता है और वे जिंदगी जी नहीं, बल्कि ढो रही होती हैं.

ऐसी पत्नियों पर क्या गुजरती होगी इस का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. अहम बात यह है कि वे पिटाई का विरोध नहीं करतीं उलटे पिटाई से बचने के तरीके ढूंढ़ती हैं. जाहिर है यह कमजोरी या कायरता पतियों की शराब की प्रवृत्ति को और बढ़ावा देती है.

मगर इन्हीं पत्नियों की मानें तो इन 5 वजहों के चलते वे चुपचाप पिटते रहने में ही बेहतरी समझती हैं.
द्य पहले दो शब्द हैं- क्या फायदा… इस के आगे बात भले ही वे पूरी न करें, लेकिन उन का घुटा हुआ दर्द वाक्य को पूरा करता है कि शराब की लत छूटती ही नहीं है. पति आखिरकार पति है नशे में मारपीट करे भी तो झेलना पड़ता है. कई पत्नियों को यह मंजूर नहीं कि बात ड्राइंगरूम या बैडरूम से बाहर जाए तो कई पत्नियां बच्चों की वजह से पिटाई बरदाश्त कर लेती हैं.

बात बाहर जाए तो लोग बेवजह सवालजवाब करेंगे, हमदर्दी दिखाएंगे और शराब छुड़वाने के उपाय बताने लगेंगे. लेकिन यही पत्नियां बेहतर जानती और समझती हैं कि बात ढकीछिपी नहीं है. बाहर हरकोई इन के घर और दिल के भीतर का हाल और सच जानता है.

द्य किस्मत या भाग्य एक ऐसा शब्द है जिसे कोसने से पिटाई से छुटकारा भले ही न मिले पर मन को जरूर शांति मिलती है. बात सच भी है जो बहुत बड़ा फरेब धर्म का है कि किस्मत में ऐसा ही पति लिखा था तो कोई क्या कर लेगा. इसलिए खामोशी से पिटती रहो.

द्य शराब के नशे में पिटाई से पीडि़त धर्मपरायण भारतीय महिलाएं छुटकारे के लिए तलाक को बेहतर विकल्प नहीं मानतीं. हजार में से एकाध मामले में पत्नी अदालत जाती है कि शराब के नशे का आदी पति उसे मारतापीटता है.

द्य अदालत या थाना तो दूर की बात है पत्नियां इलाज तक कराने जाने से कतराती हैं कि डाक्टर से कैसे कहेंगी कि पति की पिटाई के चलते उन की यहां आने की नौबत आई. इन पत्नियों को खुद टूटना मंजूर है, लेकिन घर टूटने से बचाने की हर मुमकिन कोशिश करती हैं.

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फिर क्या करें

यह यक्ष प्रश्न हर उस पत्नी के सामने मुंह बाए खड़ा है जो शराबी पति से पिटती है. पति को छोड़ना या तलाक देना उन्हें गंवारा नहीं तो इस के कई व्यावहारिक तर्क भी उन के पास हैं. मसलन, क्या होगा इस से, बाहर कई लोग मुंह फाड़े खड़े मिलेंगे, उन से हमें कौन बचाएगा?

यहां बात समाज की बनावट और उस के पुरुषप्रधान होने की है, जिस में पति नाम का प्राणी घोर शराबी होते हुए भी भक्षकों से उन की रक्षा करता है और इस के लिए उस का बस होना ही काफी है.
निश्चित रूप से यह और ऐसी कई बातें शराबी पति भी जानता है, इसलिए उदारतापूर्वक पत्नी की पिटाई का अभियान जारी रखता है, क्योंकि उस का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता.

धोखे से कोई रिश्तेदार, पड़ोसी या कोई और हमदर्द बीचबचाव के लिए आता है तो उस के कम पत्नी के कानों में ये शब्द पिघले सीसे की तरह दाखिल होते हैं कि तुझे क्या… यह तेरी कौन लगती है…

कोई पत्नी नहीं चाहती कि शराब के नशे में ही सही पति उस के चरित्र पर उंगली उठाए, जबकि ऐसा 40 फीसदी मामलों में होता है कि अपनी कमजोरी और लत ढकने के लिए पति पत्नी के चरित्र को मुहरे की तरह इस्तेमाल करता है.

तो क्या पत्नियां यों ही शराबी पति के हाथों पिटती रहें? इस सवाल के जवाब ढूंढ़ने या देने को कोई तैयार नहीं, क्योंकि खुद पत्नियों ने पिटाई को प्रसाद की तरह ग्रहण करना सीख लिया है और जिन्होंने नहीं सीखा है उन के अनुभव भी कोई बहुत अच्छे नहीं हैं.

हादसे देते हैं गवाही

शराबी पति का डर या लिहाज सिर्फ तथाकथित भारतीय संस्कृति और संस्कारों के चलते नहीं हैं, बल्कि हर कहीं ऐसे हादसे उजागर होते रहते हैं, जिन में पति ने नशे में पत्नी को मरने की हद तक पीटा हो या फिर मार ही दिया हो.

आइए, शराब की लत के उस नुकसान को कुछ उजागर हादसों की शक्ल में भी देखें-

द्य अल्मोड़ा के सल्ट ब्लौक के गांव पीपना में एक पति विनोद चंद भट्ट ने बीती 5 फरवरी को अपनी पत्नी हेमा को शराब के नशे में इतना मारा कि उस की इलाज के दौरान मौत हो गई. हेमा को इलाज के लिए दिल्ली के संत परमानंद अस्पताल तक लाया गया था. विनोद और हेमा की शादी को 10 साल हो गए थे.
द्य बीती 16 फरवरी को मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के अरी थाने में रिपोर्ट दर्ज हुई कि 40 वर्षीय जोगी लाल ने शराब के नशे में पत्नी को इतना मारा कि वह पिटतेपिटते ही मर गई. इस मामले में पत्नी का गुनाह इतना भर था कि उस ने दरवाजा देर से खोला और मांगने पर पानी और गिलास पति को नहीं दिया.

चूंकि पत्नी मर गई, इसलिए मामला थाने में दर्ज हुआ वरना तो पत्नी रोज की तरह पिटती. सुबह घरेलू इलाज से अपने शरीर का दर्द दूर कर लेती ताकि फिर अच्छी तरह पिट सके.

द्य इसी साल जनवरी के आखिरी सप्ताह में सोशल मीडिया पर एक वीडियो खूब वायरल हुआ था जिस में एक नशेड़ी पति पत्नी को जानवरों की तरह पीट रहा है. बाद में पता चला कि मामला उत्तर प्रदेश के एटा जिले का है और पति पुलिसकर्मी है. जब मामला उजागर हो गया तो पत्नी ने पति के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई कि वह पिछले 12 सालों से पति से इसी तरह पिट रही है. वायरल हुआ वीडियो शायद उस के बड़े बेटे ने बना लिया हो.

16 जनवरी को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के लालगंज थाने में एक मामला दर्ज हुआ था जिस में 45 वर्षीय सुशीला की मौत पति राजेंद्र सरोज द्वारा बेरहमी से पीटे जाने से हो गई थी. 16 फरवरी को नशे में धुत्त पति ने पत्नी को लातघूसों, डंडे से भी मारा था. इस मामले में दिलचस्प और उल्लेखनीय बात यह है कि मरने वाली खुद भी नशे में थी.

द्य रांची के ओरमांझी में शराबी पति मदन साहू ने तड़के 4 बजे अपनी पत्नी की चाकू मार कर हत्या कर दी. बीती 7 फरवरी को मदन शराब के नशे में घर आया और फिर दोनों में मोबाइल को ले कर विवाद हुआ. शाम का झगड़ा तो पड़ोसियों ने बीचबचाव कर रफादफा कर दिया था, लेकिन पत्नी की मौत नहीं टाल पाए. यह मामला भी थाने में दर्ज हुआ था.

भोपाल की एक नौकरीपेशा संभ्रांत परिवार की श्वेता के पति की सड़क हादसे में मौत हो गई थी. गाड़ी चलाते वक्त वह नशे में था. अब जीतेजी भी मौत सी जिंदगी जी रही श्वेता पत्नियों को सलाह देती है कि अगर पति की यह लत न छूटे तो पिट लें, लेकिन उसे घर में ही शराब पीने दें.

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फर्क देहात और शहरों में

नशे में पत्नी की पिटाई और हत्या की घटनाएं गांवदेहातों में ज्यादा दर्ज होती हैं. वे भी वारदात हो जाने पर, लेकिन शहरी इलाके भी इस बीमारी से अछूते नहीं हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि शहरी पति पढ़ेलिखे, प्रतिष्ठा वाले और समझदार या फिर चालाक कुछ भी कह लें होते हैं. वे पत्नी को एक हद तक ही मारते हैं, क्योंकि इस के आगे का अंजाम वे जानते हैं. गांव, शहर, सभ्यअसभ्य, शिक्षितअशिक्षित के फर्क से पत्नियों की दुर्दशा पर कोई फर्क नहीं पड़ता.

पत्नियां अगर बगावत करें और पिटाई का जवाब पिटाई से दें तो क्या बात बन सकती है? इस सवाल का जवाब भी निराशाजनक तरीके से न में ही मिला है.

एक दुखद और दिलचस्प घटना भोपाल की उल्लेखनीय है जिस में नशेड़ी पति की मार से आजिज आ गई पत्नी ने पति की हत्या कर दी. तुलसी नगर चक्की चौराहा इलाके की एक पत्नी सुधा ने अपने 45 वर्षीय इलैक्ट्रिशियन पति दिनेश गावड़े की गला दबा कर हत्या कर दी थी.

वारदात के करीब 1 महीने बाद 24 जनवरी को सुधा पकड़ी गई तो उस ने बताया कि दिनेश नशे में धुत्त हो कर रोज मारपीट करता था, इसलिए उस ने तंग आ कर छुटकारा पाने की गरज से उस की हत्या कर दी.

क्या कोई हल नहीं

नशे में पत्नी की हत्या की खबरें पत्नियों को भयभीत ही करती हैं, क्योंकि नशेड़ी पति किसी भी हद तक जा सकता है. ऐसे में वे पिटने में ही अपनी भलाई समझती हैं. वह पढ़ीलिखी हो या अनपढ़ गंवार यह बात कतई माने नहीं रखती, क्योंकि आखिरकार वह भारतीय पत्नी है जो एक ऐसे संस्कारित समाज के खूंटे से बंधी है जहां पति परमेश्वर होता है.

वह पिटाई का विरोध करती है तो और ज्यादा पिटती है और गुस्से में पति की हत्या कर दे जो अपवाद स्वरूप ही होता है तो भी उसे कानूनन सजा भुगतनी पड़ती है.

धन्य हैं वे पत्नियां जो आलीशान मकानों में रहती हैं, महंगी कारों में घूमती हैं, महंगे कपड़ों और जेवरों की उन के पास कमी नहीं होती है. मगर कोई कमी है तो बस पति के प्यार की. यह कहना फुजूल और मन बहलाने जैसी बात है कि नशेड़ी पति उन्हें प्यार करता है. नैतिकता, प्रतिष्ठा और हाइप्रोफाइल जिंदगी का कड़वा सच रोज शाम के बाद उन के शरीर के अलावा, मन पर भी दिखता है कि उन का पति नशे में उन्हें मारता है.

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सब से बड़ी बात है कि हिंदू धर्म जो जीवन के हर अंग को पूरी तरह नियंत्रित करता है जानबूझ कर शराबी पतियों को नियंत्रित नहीं करता. उन के सभी तीर्थस्थलों पर जम कर शराब की दुकानों का जमावड़ा है. धर्म चाहता है कि पत्नियां पिटें ताकि उन की शरण में आएं और फिर पूजापाठ के सहारे पति की शराब छुड़वाने का काम करें. पंडे तरहतरह के उपवास, दानदक्षिणा का विधान बताते हैं कि इस से पति को शराब से मुक्ति मिल जाएगी. 5 सालों की हिंदू धर्म समर्थक सरकार ने कभी शराबबंदी की बात न की, क्योंकि धर्म शराबियों को प्रोत्साहित करता है.

लैटर बौक्स : भाग 2

उस की बातों से नहीं लगता था कि वह मेरे लेखन या व्यक्तित्व से प्रभावित थी. यदि वह मेरे किसी गुण की प्रशंसा करती तो मैं समझ सकता था कि उस के हृदय में मेरे लिए कोई स्थान था, फिर मैं उस के हृदय में प्रवेश करने का कोई न कोई रास्ता तलाश कर ही लेता. मेरी सब से बड़ी कमजोरी थी कि मैं शादीशुदा था. सीधेसीधे बात करता तो वह मुझे छिछोरा या लंपट समझती. मुझे मन मार कर अपनी भावनाओं को दबा कर रखना पड़ रहा था.

मेरे मन में उस से अकेले में मिलने की लालसा बलवती होती जा रही थी, परंतु मुझे कोई रास्ता नहीं दिखाई पड़ रहा था. इस तरह 15 दिन निकल गए. जैसजैसे उस के पुणे जाने के दिन कम हो रहे थे, वैसेवैसे मेरे मन की बेचैनी बढ़ती जा रही थी.

फिर एक दिन कुछ आश्चर्यजनक हुआ. मैं औफिस जाने के लिए सीढि़यों से उतर कर नीचे आया, तो देखा, नीचे छवि खड़ी थी. मैं ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘यहां क्या कर रही हो?’’

‘‘आप का इंतजार,’’ उस ने आंखों को मटकाते हुए कहा.

‘‘क्या?’’ मुझे हलका सा आश्चर्य हुआ. एक बार दिल भी धड़क कर रह गया. क्या उस के  दिल में मेरे लिए कुछ है? बता नहीं सकता था, क्योंकि लड़कियां अपनी भावनाओं को छिपाने में बहुत कुशल होती हैं.

‘‘हां, आप को औफिस के लिए देर तो नहीं होगी?’’

‘‘नहीं, बोलिए न.’’

‘‘मैं घर में सारा दिन पड़ेपड़े बोर हो जाती हूं. टीवी और किताबों से मन नहीं बहलता. कहीं घूमने जाने का मन है, क्या आप मेरे साथ कहीं घूमने चल सकते हैं?’’

उस का प्रस्ताव सुन कर मेरा मन बल्लियों उछलने लगा, परंतु फिर हृदय पर जैसे किसी ने पत्थर रख दिया. मैं शादीशुदा था और नेहा को घर में छोड़ कर मैं उसे घुमाने कैसे ले जा सकता था. नेहा को साथ ले जाता, तो छवि को घुमाने का क्या लाभ? मैं ने असमंजसभरी निगाहों से उसे देखते हुए कहा, ‘‘आप के दीदीजीजा तो रविवार को आप को घुमाने ले जाते हैं.’’

‘‘नहीं, मैं आप के साथ जाना चाहती हूं.’’

मेरा दिल फिर से धड़का, ‘‘परंतु नेहा साथ रहेगी?’’

‘‘छुट्टी के दिन नहीं,’’ उस ने निसंकोच कहा, ‘‘आप दफ्तर से एक दिन की छुट्टी ले लीजिए. फिर हम दोनों बाहर चलेंगे.’’

‘‘अच्छा, अपना मोबाइल नंबर दो. मैं दफ्तर जा कर फोन करूंगा.’’ उस ने अपना नंबर दिया और मैं खूबसूरत मंसूबे बांधता हुआ दफ्तर आया. मन में लड्डू फूट रहे थे. अपने केबिन में पहुंचते ही मैं ने छवि को फोन मिलाया. बड़े उत्साह से उस से मीठीमीठी बातें कीं, ताकि उस के मन का पता चल सके.. इस के बावजूद मैं अपने मन की बात उस से नहीं कह पाया. छवि की बातों से भी ऐसा नहीं लगा कि उस के मन में मेरे लिए कोई ऐसीवैसी बात है.

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हम ने बाहर घूमने की बात तय कर ली. परंतु फोन रखने पर मेरा उत्साह खत्म हो चुका था. शायद मेरे साथ बाहर जाने का छवि का कोई विशेष उद्देश्य नहीं था, वह केवल घूमना ही चाहती थी.

मैरीन ड्राइव के चौड़े फुटपाथ पर धीमेधीमे कदमों से टहलते हुए एक जगह हम रुक गए और धूप में चांदी जैसी चमकती हुई समुद्र की लहरों को निहारने लगे. मेरे मन में भी समुद्र जैसी लहरें उफान मार रही थीं. मैं चाह कर भी कुछ नहीं कह पा रहा था. लहरों को ताकते हुए छवि ने पूछा, ‘‘क्या आप इस बात पर विश्वास करते हैं कि प्रथम दृष्टि में प्यार हो सकता है.’’

मैं ने आश्चर्ययुक्त भाव से उस के मुखड़े को देखा. उस के चेहरे पर ऐसा कोई भाव दृष्टिमान नहीं था जिस से उस के मनोभावों का पता चलता. मैं ने अपनी दृष्टि को आसमान की तरफ टिकाते हुए कहा, ‘‘हां, हो सकता है, परंतु…’’

अब उस ने मेरी ओर हैरत से देखा और पूछा, ‘‘परंतु क्या?’’

‘‘परंतु…यानी ऐसा प्रेम संभव तो होता है परंतु इस में स्थायित्व कितना होता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि दोनों व्यक्ति कितने समय तक एकदूसरे के साथ रहते हैं.’’

छवि शायद मेरी बात का सही मतलब समझ गई थी. इसलिए आगे कुछ नहीं पूछा.

मैं ने छवि से कहीं बैठने के लिए कहा तो उस ने मना कर दिया. फिर हम टहलते हुए तारापुर एक्वेरियम तक गए. मैं ने उसे एक्वेरियम देखने के लिए कहा तो उस ने बताया कि वह देख चुकी थी. मुंबई देखने का उस का कोई इरादा भी नहीं था. उस ने बताया कि वह केवल मेरे साथ घूमना चाहती थी.

दोपहर तक हम लोग मैरीन ड्राइव में ही घूमते रहे… निरुद्देश्य. हम दोनों ने बहुत बातें की, परंतु मैं अपने मन की गांठ न खोल सका. उस की बातों से भी ऐसा कुछ नहीं लगा कि उस के मन में मेरे प्रति कोई ऐसावैसा भाव है. मैं शादीशुदा था, इसलिए अपनी तरफ से कोई पहल नहीं करना चाहता था.

लगभग 2 बजे मैं ने उस से लंच करने के लिए कहा तो भी उस ने मना कर दिया. मुझे अजीब सा लगा, कैसी लड़की है, सुबह से मेरे साथ घूम रही है और खानेपीने का नाम तक न लिया. कब तक भूखी रहेगी. मैं उसे जबरदस्ती पास के एक रेस्तरां में ले गया और जबरदस्ती डोसा खिलाया. आधा डोसा मुझे ही खाना पड़ा.

रेस्तरां में बैठेबैठे मैं ने पहली बार महसूस किया कि वह कुछ उदास थी. क्यों थी, मैं ने नहीं पूछा. मैं चाहता था कि वह स्वयं बताए कि उस के मन में क्या घुमड़ रहा था.

रेस्तरां के बाहर आ कर मैं ने उस की तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘अब?’’

‘‘कहीं चल कर बैठते हैं?’’ उस ने लापरवाही के भाव से कहा. आसपास कोई पार्क नहीं था. बस, समुद्र का किनारा था. मैं ने कहा, ‘‘जुहू चलें?’’

‘‘हां.’’

मैं ने टैक्सी की और जुहू पहुंच गए. बीच पर भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी, परंतु उस ने कहीं एकांत में चलने के लिए कहा. मुख्य बीच से दूर कुछ नारियल वाले अपना स्टौल लगाते हैं, जहां केवल प्रेमी जोड़े जा कर बैठते हैं. मैं ने एक ऐसा ही स्टौल चुना और एकएक नारियल ले कर आमनेसामने बैठ गए. यह इस बात का संकेत था कि हम दोनों के बीच प्रेम जैसा कोई भाव नहीं था. वरना हम अगलबगल बैठते और एक ही नारियल में एक ही स्ट्रौ से नारियल पानी सुड़कते.

‘‘आप कुछ उदास लग रही हैं?’’ नारियल पानी पीते हुए मैं ने पूछ ही लिया. मैं उस की मूक उदासी से खिन्न सा होने लगा था. उसी ने घूमने का प्रोग्राम बनाया था और वही इस से खुश नहीं थी. मेरा मकसद अलग था. उस के साथ घूमना मेरे लिए खुशी की बात थी, परंतु उस की नाखुशी में, मेरी खुशी कहां?

उस ने मेरी आंखों में देखते हुए कहा, ‘‘क्या मेरा आप के साथ घूमना सही है?’’

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मैं अचकचा गया. यह कैसा प्रश्न था? मैं उसे जबरदस्ती अपने साथ नहीं लाया था. फिर उस ने ऐसा क्यों कहा? शायद वह मेरी परेशानी भांप गई. तुरंत बोली, ‘‘मेरा मतलब है, अगर आप की पत्नी को पता चल गया कि मैं ने आप के साथ पूरा दिन बिताया है, तो उन्हें कैसा लगेगा? क्या वे इसे गलत नहीं समझेंगी?’’

मैं ने एक लंबी सांस ली. क्या सुबह से वह इसी बात को ले कर परेशान हो रही थी? मैं ने उस की तरफ झुकते हुए कहा, ‘‘पहले तो अपने मन से यह बात निकाल दो कि हम कुछ गलत कर रहे हैं. दूसरी बात, अगर हमारे बीच ऐसावैसा कुछ होता है, तो भी गलत नहीं है, क्योंकि जिस प्रेम को लोग गलत कहते हैं, वह केवल एक सामाजिक मान्यता के अनुरूप गलत होता है, परंतु प्राकृतिक रूप से नहीं. यह तो कभी भी , कहीं भी और किसी से भी हो सकता है.’’

‘‘क्या एकसाथ 2 या अधिक व्यक्तियों से प्रेम किया जा सकता है?’’ उस ने असमंजस से पूछा.

‘‘हां, क्यों नहीं? बिलकुल कर सकते हैं, परंतु उन की डिगरी में फर्क हो सकता है,’’ मैं ने बिना किसी संदर्भ के कहा. मुझे पता भी नहीं था कि छवि के पूछने का क्या तात्पर्य था, किस से संबंधित था, स्वयं से या किसी और से.

‘‘क्या शादीशुदा व्यक्ति भी?’’

मेरा दिल धड़का. मैं ने उस की आंखों में झांका. वहां कुतूहल और जिज्ञासा थी. वह उत्सुकता से मेरी तरफ देख रही थी. मैं ने जवाब दिया, ‘‘बिलकुल.’’ मैं ने चाहा कि कह दूं, ‘मैं भी तो तुम्हें प्यार करता हूं, जबकि मैं शादीशुदा हूं,’ परंतु कह न पाया. उस की आंखें झुक गईं. क्या उसे पता था कि मैं उसे प्यार करने लगा था. लड़कियां लड़कों के मनोभावों को शीघ्र समझ जाती हैं, जबकि वे बहुत जल्दी अपने हृदय को दूसरे के समक्ष नहीं खोलतीं.

अगले भाग में पढ़ें- हम एकदूसरे को तलाक देने की बात सोचते.

बढ़ती गई विषबेल

26 जून, 2018 की बात है. दिन के करीब 11 बज रहे थे. जयसिंहपुर पुलिस थाने के असिस्टेंट इंसपेक्टर
शाहाजी निकम और समीर गायकवाड़ किसी मामले को ले कर बातचीत कर रहे थे, तभी 11 वर्षीय बच्चे के साथ सूर्यकांत शिंदे वहां पहुंचा. उसे देख कर निकम और शिंदे गायकवाड़ स्तब्ध रह गए. उस की घायलावस्था और कपड़ों पर लगा खून किसी बड़ी वारदात की तरफ इशारा कर रहा था.

दोनों पुलिस अधिकारी सूर्यकांत शिंदे को अच्छी तरह से जानते पहचानते थे. इस से पहले कि वे सूर्यकांत शिंदे से कुछ पूछते उस ने पुलिस अधिकारियों को जो बताया, उसे सुन कर वे चौंक गए.

मामला काफी गंभीर और सनसनीखेज था. असिस्टेंट इंसपेक्टर शाहाजी निकम और समीर गायकवाड़ ने सूर्यकांत शिंदे को तुरंत अपनी हिरासत में ले कर उसे उपचार के लिए जिला अस्पताल भेज दिया. फिर मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोलरूम को भी दे दी. इस के बाद वह बिना कोई देर किए पुलिस टीम ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

मामला एक प्रतिष्ठित सामाजिक संस्था की महिला कार्यकर्ता की हत्या का था. इस से पहले कि घटनास्थल पर पुलिस टीम पहुंच पाती, हत्या की खबर जंगल की आग की तरह पूरे गांव और इलाके में फैल चुकी थी, जिस से घटनास्थल पर काफी भीड़ एकत्र हो गई थी.

असिस्टेंट इंसपेक्टर शाहाजी निकम ने पहले मौके पर जा कर घटनास्थल का मुआयना किया. अभी वह लोगों से पूछताछ कर ही रहे थे कि खबर पा कर कोल्हापुर के एसएसपी कृष्णांत पिंगले भी वहां पहुंच गए. उन के साथ फोरैंसिक टीम भी आई थी.

पुलिस अधिकारियों ने जब घटनास्थल का निरीक्षण किया तो वहां दिल दहला देने वाला मंजर मिला. किचन में एक महिला का शव पड़ा हुआ था. शव के चारों तरफ खून ही खून फैला था. घटनास्थल का दृश्य दिल दहला देने वाला था. मृतका के शरीर और सिर पर कई घाव थे, जो काफी गहरे और चौड़े थे. खून से सनी कुल्हाड़ी भी वहीं पड़ी थी. लग रहा था कि मृतका पर उसी कुल्हाड़ी से हमला किया गया था.

फोरैंसिक टीम का काम खत्म होने के बाद एसएसपी कृष्णांत पिंगले ने मामले की जांच असिस्टेंट इंसपेक्टर शाहाजी निकम और समीर गायकवाड़ को करने का निर्देश दिया. पुलिस ने खून सनी कुल्हाड़ी अपने कब्जे में ले ली और लाश पोस्टमार्टम के लिए स्थानीय अस्पताल भेज दी. पता चला मृतका का नाम माधुरी था. इस बीच सूचना पा कर उस के घर वाले भी आ गए थे.

यह घटना महाराष्ट्र के जिला कोल्हापुर के उदगांव में घटी थी. चूंकि आरोपी सूर्यकांत शिंदे ने घटना के बारे में पुलिस को पहले ही बता दिया था, इसलिए पुलिस ने उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. सूर्यकांत शिंदे ने अपने ऊपर हुए हमले और पत्नी की हत्या की जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी.

सूर्यकांत और माधुरी का मिलन

42 वर्षीय सूर्यकांत शिंदे के पिता महादेव शिंदे गांव के एक साधारण किसान थे. वह सीधेसादे और नेकदिल इंसान थे. गांव वालों की मदद के लिए वह अकसर तैयार रहते थे, इसी वजह से गांव वालों के बीच उन के प्रति आदर और सम्मान था.

परिवार में उन की पत्नी आनंदी बाई के अलावा एकलौता बेटा सूर्यकांत था. वह हाईस्कूल तक ही पढ़ सका था. ज्यादा पढ़ालिखा न होने की वजह से उसे ठीक सी नौकरी नहीं मिली तो वह सांगली के एक बिल्डर के यहां सुपरवाइजर का काम करने लगा.

माधुरी पाटिल और सूर्यकांत शिंदे की मुलाकात करीब 18 साल पहले सांगली की एक कंस्ट्रक्शन साइट पर हुई थी. माधुरी अपने परिवार के साथ सांगली के बैरणबाजार में रहती थी. परिवार के मुखिया लक्ष्मण पाटिल का निधन हो चुका था. मां मंगला पाटिल पर 2 बेटियों की जिम्मेदारी थी. बड़ी बेटी सविता की शादी हो चुकी थी. माधुरी की जिम्मेदारी बाकी थी.

परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. पूरा परिवार खाने के टिफिन तैयार कर अपना गुजारा किया करता था. सूर्यकांत शिंदे जब कंस्ट्रक्शन साइट पर गया तो उस के खाने का बंदोबस्त माधुरी के टिफिन बौक्स से हो गया था.

माधुरी देखने में सुंदर और चंचल स्वभाव की आधुनिक विचारों वाली युवती थी. शिंदे की तरह वह भी ज्यादा पढ़लिख नहीं पाई थी लेकिन जितनी भी पढ़ी थी, उस के लिए काफी था. वह इतनी होशियार थी कि किसी से भी बेझिझक बात करती थी. वह जिस से भी एक बार बातें कर लेती, वह उस की तरफ खिंचा चला आता था.

यही हाल सूर्यकांत शिंदे का भी हुआ. वह माधुरी की पहली झलक में ही उस का दीवाना हो गया था. वह जब भी माधुरी के घर पर खाना खाने जाता था, उस की नजर खाने पर कम माधुरी पर ज्यादा रहती थी. टिफिन की तारीफ तो वह करता ही था, साथसाथ उसे अच्छी टिप भी दिया करता था.
शुरू में तो 20 वर्षीय माधुरी को सूर्यकांत शिंदे के इरादों का आभास नहीं हुआ, लेकिन वह जल्द ही उस की आंखों की भाषा समझ गई. धीरेधीरे माधुरी भी उस की ओर आकर्षित होने लगी. उसे अपने सपने और अरमान सूर्यकांत शिंदे में ही पूरे होते दिख रहे थे.

माधुरी जल्दी ही मन ही मन सूर्यकांत शिंदे को जीवनसाथी के रूप में देखने लगी. विचार मिले तो दोनों ने शादी का फैसला कर लिया. यह बात जब दोनों के परिवार वालों को पता चली तो उन्होंने दोनों की शादी पर कोई ऐतराज नहीं किया. जल्दी ही साधारण तरीके से दोनों की शादी हो गई.

शादी के बाद सूर्यकांत शिंदे माधुरी के साथ अपने गांव में रहने लगा. इसी बीच सूर्यकांत के पिता की मृत्यु हो गई तो घर की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर आ गई. वह बखूबी अपनी जिम्मेदारी निभाने लगा. प्राइवेट नौकरी होने की वजह से सूर्यकांत सप्ताह में एक दिन ही आ पाता था. एक रात रुक कर वह अगले दिन वापस सांगली चला जाता था. घर में सिर्फ सूर्यकांत की बूढ़ी मां और भाई ही रह जाते थे.

बिखरने लगे माधुरी के अरमान

ऐसी स्थिति में माधुरी को अपने सारे सपने और अरमान बिखरते नजर आ रहे थे. ऊपर से पुराने खयालों की सूर्यकांत की बूढ़ी मां को माधुरी का आधुनिक विचारों वाला आचरण पसंद नहीं था. जिसे ले कर घर में कलह और सासबहू में अकसर लड़ाईझगड़े होने लगे.

पहले तो सूर्यकांत शिंदे ने माधुरी को समझाया. लेकिन जब उस ने साफ कह दिया कि वह सास के साथ हरगिज नहीं रहेगी तो सूर्यकांत माधुरी को ले कर शिरोल तालुका के चिपरी गांव में किराए के मकान में रहने लगा.

समय अपनी गति से चल रहा था. माधुरी एक बेटी और एक बेटे की मां बन गई. पतिपत्नी ने दोनों बच्चों को अच्छी परवरिश दी. बेटी 12वीं में पढ़ रही थी तो बेटा कक्षा 2 में था.

बच्चे बड़े हुए तो घर के खर्चे भी बढ़ गए, जबकि आमदनी सीमित थी. इस सब के चलते माधुरी को अपने खुद के खर्चों में कटौती करने की नौबत आ गई. उसे अपने सपने धूमिल होते नजर आने लगे. फलस्वरूप इसे ले कर उस की पति से नोंकझोंक शुरू हो गई, जो रोजाना के झगड़े में बदलती चली गई.

नतीजा यह हुआ कि दोनों के रिश्तों में दरार आ गई, जिस की वजह से सूर्यकांत शिंदे को मजबूरन कंस्ट्रक्शन साइट की नौकरी छोड़नी पड़ी. माधुरी को किनारे कर के वह गांव में अपनी बूढ़ी मां के साथ रहने लगा. माधुरी ने सास के साथ रहने से मना कर दिया था, इसलिए वह बच्चों को ले कर अपने मायके चली गई थी.

घर तो चलाना ही था, लिहाजा सूर्यकांत ने एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर ली. अब वह पत्नी के साथ नहीं रहना चाहता था, लिहाजा उस ने अदालत में पत्नी से तलाक लेने की अर्जी दाखिल कर दी, जिस का माधुरी ने विरोध किया.

उस के विरोध पर कोर्ट ने तलाक के मामले को कुछ दिनों के लिए पेंडिंग में रख कर सूर्यकांत शिंदे को आदेश दिया कि वह माधुरी को गुजारा और रहने के लिए आधा घर दे. अदालत के आदेश के बाद माधुरी दोनों बच्चों के साथ आ कर रहने लगी.

दोनों के बीच गहराती गईं दरारें

माधुरी और सूर्यकांत शिंदे के बीच आई दरारें तब और गहरी हो गईं, जब वह संतोष माने और प्रमोद पाटिल के संपर्क में आई और उन की सामाजिक संस्था भूमाता ब्रिगेड व शिवाजी छत्रपति से जुड़ गई. प्रमोद पाटिल इस संस्था का संस्थापक और संतोष माने सक्रिय कार्यकर्ता था. एक तरह से संतोष माने प्रमोद पाटिल का दायां हाथ था. इस संस्था की पूरे कोल्हापुर जिले में कई शाखाएं थीं, जिस में हजारों कार्यकर्ता थे.

यह संस्था गरीब, लाचार महिलाओं की सहायता करती थी. साथ ही तमाम तरह के कार्यक्रमों का आयोजन और प्रोत्साहन वाले काम भी करती थी. संतोष माने ने माधुरी को करीब लाने के लिए उस के दिल में समाजसेवा का बीज बो दिया था.

दरअसल, माधुरी सुंदर और स्मार्ट थी. संतोष माने ने जब उसे देखा तो वह उस का दीवाना हो गया था. 2 बच्चे होने के बाद भी उस के शरीर का कसाव वैसे का वैसा ही था. संतोष माने उस के गांव के पड़ोस में ही रहता था. वैसे उस का विवाह हो चुका था और उस के 2 बच्चे भी थे. फिर भी जब से उस ने माधुरी को देखा था, वह उसी के बारे में सोचता रहता था. बहाने से उस ने माधुरी के घर भी आनाजाना शुरू कर दिया.

गांव का पड़ोसी और एक प्रतिष्ठित सामाजिक संस्था का सदस्य होने के कारण माधुरी उस की इज्जत करती थी. माधुरी और संतोष माने के बीच की दूरियां कम हुईं तो वह माधुरी की रगों में सामाजिक कार्यक्रमों के रंग भरने लगा. पहले तो माधुरी ने इस में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, लेकिन संतोष के काफी जोर देने पर वह संस्था के सामाजिक कार्यों में शरीक होने के लिए तैयार हो गई.

संतोष माने ने माधुरी को संस्था के संस्थापक प्रमोद पाटिल से मिलवाया. प्रमोद पाटिल ने माधुरी की दिलचस्पी देख कर उसे संस्था का जिला उपाध्यक्ष नियुक्त कर दिया. संस्था के सामाजिक कार्यों का दायरा बड़ा होने के नाते अब उसे संस्था के हर छोटेबड़े कार्यक्रमों और मीटिंगों में जाना पड़ता था.
व्यस्तता की वजह से माधुरी का समय अपने बच्चों के साथ कम और बाहर अधिक बीतने लगा. यह बात सूर्यकांत शिंदे को अच्छी नहीं लगी. उस ने कई बार माधुरी को बच्चों के प्रति सचेत कर के समझाया. लेकिन उस ने पति की बातों पर ध्यान नहीं दिया. वह संतोष माने के साथ अधिक रहने लगी, जिस का नतीजा यह हुआ कि माधुरी अपनी सीमा लांघ गई.

जब यह बात धीरेधीरे गांव और गलियों में होते हुए सूर्यकांत के कानों तक पहुंची तो उस का खून खौल उठा. उस ने भले ही माधुरी को तलाक का नोटिस दिया था, लेकिन अभी तक तलाक हुआ नहीं था. वह अभी भी कानूनी और सामाजिक तौर पर उस की पत्नी थी.

पत्नी की वजह से उस की और उस के परिवार की समाज में बुराई हो, वह सहन नहीं कर सकता था. जिस की वजह से माधुरी और सूर्यकांत शिंदे के बीच अकसर लड़ाईझगड़ा, मारपीट होने लगी.

बनने लगी अपराध की भूमिका

मामला पुलिस थाने तक जाता था लेकिन पुलिस इसे एक पारिवारिक झगड़ा समझ कर कोई काररवाई नहीं करती थी. माधुरी को परेशान देख कर संतोष माने से रहा नहीं गया तो उस ने प्रमोद पाटिल से मशविरा कर के सूर्यकांत शिंदे को आड़े हाथों लिया.

उस ने शिंदे को चेतावनी दी कि अगर वह माधुरी और उस के बीच दीवार बनने की कोशिश करेगा तो प्रमोद पाटिल और वह उसे हमेशाहमेशा के लिए माधुरी के रास्ते से हटा देंगे. लेकिन हुआ इस का उलटा.
26 जून, 2018 को सूर्यकांत शिंदे जब माधुरी के घर के अंदर गया तो उस का धैर्य जवाब दे गया. उस ने किचन के दरवाजे के सुराख से अंदर देखा तो माधुरी और संतोष माने आपत्तिजनक स्थिति में थे.
यह देख कर उस के होश उड़ गए. वह अपने आप को रोक नहीं सका और उन्हें भद्दीभद्दी गालियां देते हुए दरवाजा जोरजोर से पीटने लगा. आवाज सुन कर सूर्यकांत शिंदे की बूढ़ी मां और अन्य लोग भी वहां आ गए.

इस के पहले कि लोग कुछ समझ पाते, किचन का दरवाजा खुला और हाथ में कुल्हाड़ी लिए संतोष माने किचन से बाहर निकला. आते ही उस ने सूर्यकांत शिंदे पर हमला बोल दिया. सूर्यकांत ने कुल्हाड़ी का पहला वार अपने हाथों पर झेल लिया.

दूसरा वार करने से पहले ही सूर्यकांत संभल गया और उस ने संतोष माने को जोर से धक्का दे कर जमीन पर गिरा दिया. जिस से उस के हाथों से कुल्हाड़ी छूट गई और वह सूर्यकांत शिंदे ने उठा ली.
अपने ऊपर हुए हमले के कारण सूर्यकांत शिंदे भी अपना आपा खो बैठा था. उस ने संतोष माने पर कुल्हाड़ी का वार कर दिया. इस से पहले कि कुल्हाड़ी माने को लगती माधुरी बीच में आ गई और कुल्हाड़ी का सीधा वार माधुरी के सिर पर हुआ. तभी संतोष माने यह कहते हुए वहां से भाग निकला कि प्रमोद पाटिल उसे छोड़ेगा नहीं.

संतोष माने तो वहां से निकल गया लेकिन माधुरी पति के गुस्से का शिकार बन गई. शिंदे ने उस पर कई वार किए. कुछ ही देर में माधुरी की मौत हो गई. इस के बाद सूर्यकांत शिंदे अपने बेटे शिवराज को साथ ले कर जयसिंहपुर थाने पहुंच गया और उस ने पुलिस को पूरी बात बता दी. पुलिस ने उस का इलाज कराकर उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

सूर्यकांत शिंदे से पूछताछ करने के बाद जांच अधिकारी शाहाजी निकम और समीर गायकवाड़ ने भूमाता ब्रिगेड व छत्रपति शिवाजी सामाजिक संस्था के संस्थापक प्रमोद पाटिल और संतोष को सूर्यकांत शिंदे के ऊपर जानलेवा हमला करने और धमकी देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.

प्रमोद पाटिल और संतोष माने की गिरफ्तारी पर भूमाता ब्रिगेड और शिवाजी छत्रपति सामाजिक संस्था के कार्यकर्ताओं के बीच में हड़कंप मच गया. शिरोल तालुका की अध्यक्ष तृप्ति देसाई ने कार्यकर्ताओं के साथ प्रमोद पाटिल और संतोष माने की गिरफ्तारी का विरोध किया, लेकिन कानून सब के लिए बराबर होता है, चाहे कोई समाज सेवक हो या खास आदमी.

‘बिग बौस 13’ : घर से बाहर हुईं ‘कटा लगा गर्ल’, किया सिद्धार्थ शुक्ला को सपोर्ट

कलर्स टीवी पर प्रसारित होने वाला विवादित शो ‘बिग बौस 13’ में ‘कांटा लगा’ गर्ल  शेफाली जरीवाला घर से बेघर हो गई हैं. जी हां, ‘कांटा लगा’ गर्ल ने के घर में वाइल्ड कार्ड के जारिए एंट्री की थी. जब से उन्होंने बिग बौस के घर में एंट्री ली है तब से शेफाली लगातार सुर्खियों में बनी रही. आपको बता दें कि बाकी कंटेंस्टेंट के मुकाबले शेफाली जरीवाल को बहुत कम वोट मिला था जिसके बाद शेफाली जरीवाल घर से बाहर हो गई.

बिग बौस के घर से बाहर आने के बाद शेफाली जरीवाला ने घर के सदस्यों के बारे में काफी कुछ बताया. सिद्धार्थ शुक्ला को लेकर उन्होंने बताया कि घर में सिद्धार्थ शुक्ला इस बार बहुत अच्छे कंटेंस्टेंट है. मैं  व्यक्तिगौत तौर पर सिद्धार्थ शुक्ला को पसंद करती हूं और उनका सपोर्ट भी करती हूं.

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उन्होंने ये भी बताया कि कुछ समय पहले सिद्धार्थ हो गए थे  लेकिन इसके बावजूद उन्होंने घर में काफी योगदान दिया है. आसिम रियाज के बारे में बात करते हुए शेफाली ने कहा, घर में वो दिन भर लोगों को उकसाते रहते है. कभी- कभी उनकी हरकते बर्दाश्त के भी बाहर हो जाती है. बिग बौस के घर के अंदर वो लगातार सिद्धार्थ शुक्ला और बाकी सदस्यों को उकसाते दिखाई देते है.

बिग बौस की ट्रौफी के बारे में उन्होंने कहा कि पता नहीं मुझे क्यों ऐसा लग रहा कि इस बार बिग बौस की ट्रौफी कोई लड़की ही जीतेगी. वैसे कुछ हफ्तों में ये साबित हो जाएगा कि कौन बिग बौस की ट्रौफी’ जीतेगा.

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