किटी के मिले 20 हजार रुपए उस ने अलग से रख रखे थे. घर में कुछ काम करवाया था, कुछ होना बाकी था, उस के लिए विशाल ने 40 हजार रुपए बैंक से निकलवाए थे पर निश्चित तिथि पर लेने ठेकेदार नहीं आया सो वह पैसे भी अंदर की अलमारी में रख छोडे़ थे…सब एक झटके में चला गया.
जहां कुछ देर पहले तक वह शशांक और शेफाली को ले कर परेशान थीं वहीं अब इस नई मुसीबत के कारण समझ नहीं पा रही थीं कि क्या करें, पर फिर यह सोच कर कि शायद बच्चे के कारण शशांक और शेफाली अधूरी पिक्चर छोड़ कर घर न आ गए हों, उन्हें आवाज लगाई. कोई आवाज न पा कर वह उस ओर गईं, वहां उन का कोई सामान न पा कर अचकचा गईं…खाली घर पड़ा था…उन का दिया पलंग, एक टेबल और 2 कुरसियां पड़ी थीं.
अब पूरी तसवीर एकदम साफ नजर आ रही थी. कितना शातिर ठग था वह…किसी को शक न हो इसलिए इतनी सफाई से पूरी योजना बनाई…उसे पिक्चर दिखाने ले जाना भी उसी योजना का हिस्सा था, उसे पता था कि विशाल घर पर नहीं हैं, इतनी गरमी में कूलर की आवाज में आसपड़ोस में किसी को कुछ सुनाई नहीं देगा और वह आराम से अपना काम कर लेंगे तथा भागने के लिए भी समय मिल जाएगा.
पिक्चर देखने का आग्रह करना, बीच में उठ कर चले आना…सबकुछ नमिता के सामने चलचित्र की भांति घूम रहा था…कहीं कोई चूक नहीं, शर्मिंदगी या डर नहीं…आश्चर्य तो इस बात का था कि इतने दिन साथ रहने के बावजूद उसे कभी उन पर शक नहीं हुआ.
उन्होंने खुद को संयत कर विशाल को फोन किया और फोन पर बतातेबताते वह रोने लगी थीं. उन्हें रोता देख कर विशाल ने सांत्वना देते हुए पड़ोसी वर्मा के घर जा कर सहायता मांगने को कहा.
वह बदहवास सी बगल में रहने वाली राधा वर्मा के पास गईं. राधा को सारी स्थिति से अवगत कराया तो वह बोलीं, ‘‘कुछ आवाजें तो आ रही थीं पर मुझे लगा शायद आप के घर में कुछ काम हो रहा है, इसलिए ध्यान नहीं दिया.’’
‘‘अब जो हो गया सो हो गया,’’ वर्मा साहब बोले, ‘‘परेशान होने या चिंता करने से कोई फायदा नहीं है. वैसे तो चोरी गया सामान मिलता नहीं है पर कोशिश करने में कोई हर्ज नहीं है. चलिए, एफ.आई.आर. दर्ज करा देते हैं.’’
पुलिस इंस्पेक्टर उन के बयान को सुन कर बोला, ‘‘उस युगल की तलाश तो हमें काफी दिनों से है, कुछ दिन पहले हम ने अखबार में भी निकलवाया था तथा लोगों से सावधान रहने के लिए कहा था पर शायद आप ने इस खबर की ओर ध्यान नहीं दिया…यह युगल कई जगह ऐसी वारदातें कर चुका है…पर किसी का भी बताया हुलिया किसी से मैच नहीं करता. शायद वह विभिन्न जगहों पर, विभिन्न नाम का व्यक्ति बन कर रहता है. क्या आप उस का हुलिया बता सकेंगी…कब से वह आप के साथ रह रहा था?’’
जोजो उन्हें पता था उन्होंने सारी जानकारी दे दी…जिस आफिस में वह काम करता था वहां पता लगाया तो पता चला कि इस नाम का कोई आदमी उन के यहां काम ही नहीं करता…उन की बताई जानकारी के आधार पर बस अड्डे और रेलवे स्टेशन पर भी उन्होंने अपने आदमी भेज दिए. पुलिस ने घर आ कर जांच की पर कहीं कोई सुराग नहीं था…यहां तक कि कहीं उन की उंगलियों के निशान भी नहीं पाए गए.
‘‘लगता है शातिर चोर था,’’ इंस्पेक्टर बोला, ‘‘हम लोग कई बार आप जैसे नागरिकों से निवेदन करते हैं कि नौकर और किराएदार रखते समय पूरी सावधानी बरतें, उस के बारे में पूरी जानकारी रखें, मसलन, वह कहां काम करता है, उस का स्थायी पता, फोटोग्राफ आदि…पर आप लोग तो समझते ही नहीं हैं,’’ इंस्पेक्टर थोड़ा रुका फिर बोला, ‘‘वह आप का किराएदार था, इस का कोई प्रमाण है आप के पास?’’
‘‘किराएदार…इस का तो हमारे पास कोई प्रमाण नहीं है. आयकर की पेचीदगी से बचने के लिए कोई सेटलमेंट ही नहीं किया था…सच, थोड़ी सी परेशानी से बचने के लिए हम ने स्वयं को अपराधियों के हवाले कर दिया…हां, शुरू में कुछ एडवांस देने के लिए अवश्य कहा था पर जब उन्होंने असमर्थता जताई तो उन की मजबूरी को देख कर मन पिघल गया था. दरअसल, हमें पैसों से अधिक जरूरत सिर्फ अपना सूनापन बांटने या घर की रखवाली के लिए अच्छे व्यक्ति की थी और उन की बातों में कसक टपक रही थी, बच्चों वाला युगल था, सो संदेह की कोई बात ही नजर नहीं आई थी.’’
‘‘यही तो गलती करते हैं आप लोग…कुछ एग्रीमेंट करवाएंगे…तो उस में सबकुछ दर्ज हो जाएगा. अब किसी के चेहरे पर तो लिखा नहीं रहता कि वह शरीफ है या बदमाश…वह तो गनीमत है कि आप सहीसलामत हैं वरना ऐसे लोग अपने मकसद में कामयाब होने के लिए किसी का खून भी करना पडे़ तो पीछे नहीं रहते,’’ उन्हें चुप देख कर इंस्पेक्टर बोला.
दूसरे दिन विशाल भी आ गए…सुमिता को रोते देख कर विशाल बोले, ‘‘जब मैं कहता था कि किसी पर ज्यादा भरोसा नहीं करना चाहिए तब तुम मानती नहीं थीं, उन्हीं के सामने अलमारी खोल कर रुपए निकालना, रखना सब तुम ही तो करती थीं.’’
‘‘मुझे ही क्यों दोष दे रहे हो, आप भी तो बैंक से पैसा निकलवाने के लिए चेक उसी को देते थे,’’ झुंझला कर नमिता ने उत्तर दिया था.
उस घटना को कई दिन बीत गए थे पर उन शातिर चोरों का कोई सुराग नहीं मिला…नमिता कभी सोचतीं तो उन्हें एकाएक विश्वास ही नहीं होता कि वह इतने दिनों तक झूठे और मक्कार लोगों के साथ रह रही थीं…वे ठग थे तभी तो पिछले 2 महीने का किराया यह कह कर नहीं दिया था कि आफिस में कुछ समस्या चल रही है अत: वेतन नहीं मिल रहा है. नमिता ने भी यह सोच कर कुछ नहीं कहा कि लोग अच्छे हैं, पैसा कहां जाएगा. वास्तव में उन का स्वभाव देख कर कभी लगा ही नहीं कि इन का इरादा नेक नहीं है.
इतने सौम्य चेहरों का इतना घिनौना रूप भी हो सकता है, उन्होंने कभी सोचा भी न था. मुंह में राम बगल में छुरी वाला मुहावरा शायद ऐसे लोगों की फितरत देख कर ही किसी ने कहा होगा. आश्चर्य तो इस बात का था कि इतने दिन साथ रहने के बावजूद उन्हें कभी उन पर शक नहीं हुआ.
उन्होंने अखबारों और टेलीविजन में वृद्धों के लुटने और मारे जाने की घटनाएं पढ़ी और सुनी थीं पर उन के साथ भी कभी कुछ ऐसा ही घटित होगा, सोचा भी न था. अपनी आकांक्षा की पूर्ति के लिए किसी हद तक गिर चुके ऐसे लोगों के लिए यह मात्र खेल हो पर किसी की भावनाओं
को कुचलते, तोड़तेमरोड़ते, उन की संवेदनशीलता और सदाशयता का फायदा उठा कर, उन जैसों के वजूद को मिटाते लोगों को जरा भी लज्जा नहीं आती… आखिर हम वृद्ध जाएं तो कहां जाएं? क्या किसी के साथ संबंध बनाना या उस की सहायता करना अनुचित है?
किसी की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते ऐसे लोग यह क्यों नहीं सोचते कि एक दिन बुढ़ापा उन को भी आएगा…वैसे भी उन का यह खेल आखिर चलेगा कब तक? क्या झूठ और मक्कारी से एकत्र की गई दौलत के बल पर वह सुकून से जी पाएंगे…क्या संस्कार दे पाएंगे अपने बच्चों को?
मन में चलता बवंडर नमिता को चैन से रहने नहीं दे रहा था. बारबार एक ही प्रश्न उन के दिल व दिमाग को मथ रहा था…इनसान आखिर भरोसा करे भी तो किस पर..