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विश्वासघात : भाग 3

किटी के मिले 20 हजार रुपए उस ने अलग से रख रखे थे. घर में कुछ काम करवाया था, कुछ होना बाकी था, उस के लिए विशाल ने 40 हजार रुपए बैंक से निकलवाए थे पर निश्चित तिथि पर लेने ठेकेदार नहीं आया सो वह पैसे भी अंदर की अलमारी में रख छोडे़ थे…सब एक झटके में चला गया.

जहां कुछ देर पहले तक वह शशांक और शेफाली को ले कर परेशान थीं वहीं अब इस नई मुसीबत के कारण समझ नहीं पा रही थीं कि क्या करें, पर फिर यह सोच कर कि शायद बच्चे के कारण शशांक और शेफाली अधूरी पिक्चर छोड़ कर घर न आ गए हों, उन्हें आवाज लगाई. कोई आवाज न पा कर  वह उस ओर गईं, वहां उन का कोई सामान न पा कर अचकचा गईं…खाली घर पड़ा था…उन का दिया पलंग, एक टेबल और 2 कुरसियां पड़ी थीं.

अब पूरी तसवीर एकदम साफ नजर आ रही थी. कितना शातिर ठग था वह…किसी को शक न हो इसलिए इतनी सफाई से पूरी योजना बनाई…उसे पिक्चर दिखाने ले जाना भी उसी योजना का हिस्सा था, उसे पता था कि विशाल घर पर नहीं हैं, इतनी गरमी में कूलर की आवाज में आसपड़ोस में किसी को कुछ सुनाई नहीं देगा और वह आराम से अपना काम कर लेंगे तथा भागने के लिए भी समय मिल जाएगा.

पिक्चर देखने का आग्रह करना, बीच में उठ कर चले आना…सबकुछ नमिता के सामने चलचित्र की भांति घूम रहा था…कहीं कोई चूक नहीं, शर्मिंदगी या डर नहीं…आश्चर्य तो इस बात का था कि इतने दिन साथ रहने के बावजूद उसे कभी उन पर शक नहीं हुआ.

उन्होंने खुद को संयत कर विशाल को फोन किया और फोन पर बतातेबताते वह रोने लगी थीं. उन्हें रोता देख कर विशाल ने सांत्वना देते हुए पड़ोसी वर्मा के घर जा कर सहायता मांगने को कहा.

वह बदहवास सी बगल में रहने वाली राधा वर्मा के पास गईं. राधा को सारी स्थिति से अवगत कराया तो वह बोलीं, ‘‘कुछ आवाजें तो आ रही थीं पर मुझे लगा शायद आप के घर में कुछ काम हो रहा है, इसलिए ध्यान नहीं दिया.’’

‘‘अब जो हो गया सो हो गया,’’ वर्मा साहब बोले, ‘‘परेशान होने या चिंता करने से कोई फायदा नहीं है. वैसे तो चोरी गया सामान मिलता नहीं है पर कोशिश करने में कोई हर्ज नहीं है. चलिए, एफ.आई.आर. दर्ज करा देते हैं.’’

पुलिस इंस्पेक्टर उन के बयान को सुन कर बोला, ‘‘उस युगल की तलाश तो हमें काफी दिनों से है, कुछ दिन पहले हम ने अखबार में भी निकलवाया था तथा लोगों से सावधान रहने के लिए कहा था पर शायद आप ने इस खबर की ओर ध्यान नहीं दिया…यह युगल कई जगह ऐसी वारदातें कर चुका है…पर किसी का भी बताया हुलिया किसी से मैच नहीं करता. शायद वह विभिन्न जगहों पर, विभिन्न नाम का व्यक्ति बन कर रहता है. क्या आप उस का हुलिया बता सकेंगी…कब से वह आप के साथ रह रहा था?’’

जोजो उन्हें पता था उन्होंने सारी जानकारी दे दी…जिस आफिस में वह काम करता था वहां पता लगाया तो पता चला कि इस नाम का कोई आदमी उन के यहां काम ही नहीं करता…उन की बताई जानकारी के आधार पर बस अड्डे और रेलवे स्टेशन पर भी उन्होंने अपने आदमी भेज दिए. पुलिस ने घर आ कर जांच की पर कहीं कोई सुराग नहीं था…यहां तक कि कहीं उन की उंगलियों के निशान भी नहीं पाए गए.

‘‘लगता है शातिर चोर था,’’ इंस्पेक्टर बोला, ‘‘हम लोग कई बार आप जैसे नागरिकों से निवेदन करते हैं कि नौकर और किराएदार रखते समय पूरी सावधानी बरतें, उस के बारे में पूरी जानकारी रखें, मसलन, वह कहां काम करता है, उस का स्थायी पता, फोटोग्राफ आदि…पर आप लोग तो समझते ही नहीं हैं,’’ इंस्पेक्टर थोड़ा रुका फिर बोला, ‘‘वह आप का किराएदार था, इस का कोई प्रमाण है आप के पास?’’

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‘‘किराएदार…इस का तो हमारे पास कोई प्रमाण नहीं है. आयकर की पेचीदगी से बचने के लिए कोई सेटलमेंट ही नहीं किया था…सच, थोड़ी सी परेशानी से बचने के लिए हम ने स्वयं को अपराधियों के हवाले कर दिया…हां, शुरू में कुछ एडवांस देने के लिए अवश्य कहा था पर जब उन्होंने असमर्थता जताई तो उन की मजबूरी को देख कर मन पिघल गया था. दरअसल, हमें पैसों से अधिक जरूरत सिर्फ अपना सूनापन बांटने या घर की रखवाली के लिए अच्छे व्यक्ति की थी और उन की बातों में कसक टपक रही थी, बच्चों वाला युगल था, सो संदेह की कोई बात ही नजर नहीं आई थी.’’

‘‘यही तो गलती करते हैं आप लोग…कुछ एग्रीमेंट करवाएंगे…तो उस में सबकुछ दर्ज हो जाएगा. अब किसी के चेहरे पर तो लिखा नहीं रहता कि वह शरीफ है या बदमाश…वह तो गनीमत है कि आप सहीसलामत हैं वरना ऐसे लोग अपने मकसद में कामयाब होने के लिए किसी का खून भी करना पडे़ तो पीछे नहीं रहते,’’ उन्हें चुप देख कर इंस्पेक्टर बोला.

दूसरे दिन विशाल भी आ गए…सुमिता को रोते देख कर विशाल बोले, ‘‘जब मैं कहता था कि किसी पर ज्यादा भरोसा नहीं करना चाहिए तब तुम मानती नहीं थीं, उन्हीं के सामने अलमारी खोल कर रुपए निकालना, रखना सब तुम ही तो करती थीं.’’

‘‘मुझे ही क्यों दोष दे रहे हो, आप भी तो बैंक से पैसा निकलवाने के लिए चेक उसी को देते थे,’’ झुंझला कर नमिता ने उत्तर दिया था.

उस घटना को कई दिन बीत गए थे पर उन शातिर चोरों का कोई सुराग नहीं मिला…नमिता कभी सोचतीं तो उन्हें एकाएक विश्वास ही नहीं होता कि वह इतने दिनों तक झूठे और मक्कार लोगों के साथ रह रही थीं…वे ठग थे तभी तो पिछले 2 महीने का किराया यह कह कर नहीं दिया था कि आफिस में कुछ समस्या चल रही है अत: वेतन नहीं मिल रहा है. नमिता ने भी यह सोच कर कुछ नहीं कहा कि लोग अच्छे हैं, पैसा कहां जाएगा. वास्तव में उन का स्वभाव देख कर कभी लगा ही नहीं कि इन का इरादा नेक नहीं है.

इतने सौम्य चेहरों का इतना घिनौना रूप भी हो सकता है, उन्होंने कभी सोचा भी न था. मुंह में राम बगल में छुरी वाला मुहावरा शायद ऐसे लोगों की फितरत देख कर ही किसी ने कहा होगा. आश्चर्य तो इस बात का था कि इतने दिन साथ रहने के बावजूद उन्हें कभी उन पर शक नहीं हुआ.

उन्होंने अखबारों और टेलीविजन में वृद्धों के लुटने और मारे जाने की घटनाएं पढ़ी और सुनी थीं पर उन के साथ भी कभी कुछ ऐसा ही घटित होगा, सोचा भी न था. अपनी आकांक्षा की पूर्ति के लिए किसी हद तक गिर चुके ऐसे लोगों के लिए यह मात्र खेल हो पर किसी की भावनाओं

को कुचलते, तोड़तेमरोड़ते, उन की संवेदनशीलता और सदाशयता का फायदा उठा कर, उन जैसों के वजूद को मिटाते लोगों को जरा भी लज्जा नहीं आती… आखिर हम वृद्ध जाएं तो कहां जाएं? क्या किसी के साथ संबंध बनाना या उस की सहायता करना अनुचित है?

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किसी की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते ऐसे लोग यह क्यों नहीं सोचते कि एक दिन बुढ़ापा उन को भी आएगा…वैसे भी उन का यह खेल आखिर चलेगा कब तक? क्या झूठ और मक्कारी से एकत्र की गई दौलत के बल पर वह सुकून से जी पाएंगे…क्या संस्कार दे पाएंगे अपने बच्चों को?

मन में चलता बवंडर नमिता को चैन से रहने नहीं दे रहा था. बारबार एक ही प्रश्न उन के दिल व दिमाग को मथ रहा था…इनसान आखिर भरोसा करे भी तो किस पर..

जिस्म की भूख मिटाने के लिए किया इश्क

मीना अपने 3 भाईबहनों में सब से बड़ी ही नहीं, खूबसूरत भी थी. उस का परिवार औरैया जिले के कस्बा दिबियापुर में रहता था. उस के पिता अमर सिंह रेलवे में पथ निरीक्षक थे. उस ने इंटर पास कर लिया तो मांबाप उस के विवाह के बारे में सोचने लगे. उन्होंने उस के लिए घरवर की तलाश शुरू की तो उन्हें कंचौसी कस्बा के रहने वाले राम सिंह का बेटा अनिल पसंद आ गया. जून, 2008 में मीना की शादी अनिल से हो गई. मीना सुंदर तो थी ही, दुल्हन बनने पर उस की सुंदरता में और ज्यादा निखार आ गया था. ससुराल में जिस ने भी उसे देखा, उस की खूबसूरती की खूब तारीफ की. अपनी प्रशंसा पर मीना भी खुश थी. मीना जैसी सुंदर पत्नी पा कर अनिल भी खुश था.

दोनों के दांपत्य की गाड़ी खुशहाली के साथ चल पड़ी थी. लेकिन कुछ समय बाद आर्थिक परेशानियों ने उन की खुशी को ग्रहण लगा दिया. शादी के पहले अनिल छोटेमोटे काम कर के गुजारा कर लेता था. लेकिन शादी के बाद मीना के आने से जहां अन्य खर्चे बढ़ ही गए थे, वहीं मीना की महत्त्वाकांक्षी ख्वाहिशों ने उस के इस खर्च को और बढ़ा दिया था. आर्थिक परेशानियों को दूर करने के लिए वह कस्बे की एक आढ़त पर काम करने लगा था.

आढ़त पर काम करने की वजह से अनिल को कईकई दिनों घर से बाहर रहना पड़ता था, जबकि मीना को यह कतई पसंद नहीं था. पति की गैरमौजूदगी में वह आसपड़ोस के लड़कों से बातें ही नहीं करने लगी थी, बल्कि हंसीमजाक भी करने लगी थी. शुरूशुरू में तो किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. लेकिन जब उस की हरकतें हद पार करने लगीं तो अनिल के मातापिता से यह देखा नहीं गया और वे यह कह कर गांव चले गए कि अब वे गांव में रह कर खेती कराएंगे.

सासससुर के जाने के बाद मीना को पूरी आजादी मिल गई थी. अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए उस ने इधरउधर नजरें दौड़ाईं तो उसे राजेंद्र जंच गया. फिर तो वह उसे मन का मीत बनाने की कोशिश में लग गई. राजेंद्र मूलरूप से औरैया का रहने वाला था. उस के पिता गांव में खेती कराते थे. वह 3 भाईबहनों में सब से छोटा था. बीकौम करने के बाद वह कंचौसी कस्बे में रामबाबू की अनाज की आढ़त पर मुनीम की नौकरी करने लगा था.

राजेंद्र और अनिल एक ही आढ़त पर काम करते थे, इसलिए दोनों में गहरी दोस्ती थी. अनिल ने ही राजेंद्र को अपने घर के सामने किराए पर कमरा दिलाया था. दोस्त होने की वजह से राजेंद्र अनिल के घर आताजाता रहता था. जब कभी आढ़त बंद रहती, राजेंद्र अनिल के घर आ जाता और फिर वहीं पार्टी होती. पार्टी का खर्चा राजेंद्र ही उठाता था.

राजेंद्र पर दिल आया तो मीना उसे फंसाने के लिए अपने रूप का जलवा बिखेरने लगी. मीना के मन में क्या है, यह राजेंद्र की समझ में जल्दी ही आ गया. क्योंकि उस की निगाहों में जो प्यास झलक रही थी, उसे उस ने ताड़ लिया था. इस के बाद तो मीना उसे हूर की परी नजर आने लगी थी. वह उस के मोहपाश में बंधता चला गया था.

एक दिन जब राजेंद्र को पता चला कि अनिल 2 दिनों के लिए बाहर गया है तो उस दिन उस का मन काम में नहीं लगा. पूरे दिन उसे मीना की ही याद आती रही. घर आने पर वह मीना की एक झलक पाने को बेचैन था. उस की यह ख्वाहिश पूरी हुई शाम को. मीना सजधज कर दरवाजे पर आई तो उस समय वह उसे आसमान से उतरी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी. उसे देख कर उस का दिल बेकाबू हो उठा.

राजेंद्र को पता ही था कि अनिल घर पर नहीं है, इसलिए वह उस के घर जा पहुंचा. राजेंद्र को देख कर मीना ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आज तुम आढ़त से बड़ी जल्दी आ गए, वहां कोई काम नहीं था क्या?’’

‘‘काम तो था भाभी, लेकिन मन नहीं लगा.’’

‘‘क्यों?’’ मीना ने पूछा.

‘‘सच बता दूं भाभी.’’

‘‘हां, बताओ.’’

‘‘भाभी, तुम्हारी सुंदरता ने मुझे विचलित कर दिया है, तुम सचमुच बहुत सुंदर हो.’’

‘‘ऐसी सुंदरता किस काम की, जिस की कोई कद्र न हो.’’ मीना ने लंबी सांस ले कर कहा.

‘‘क्या अनिल भाई, तुम्हारी कद्र नहीं करते?’’

‘‘जानबूझ कर अनजान मत बनो. तुम जानते हो कि तुम्हारे भाई साहब महीने में 10 दिन तो बाहर ही रहते हैं. ऐसे में मेरी रातें करवटों में बीतती हैं.’’

‘‘भाभी जो दुख तुम्हारा है, वही मेरा भी है. मैं भी तुम्हारी यादों में रातरात भर करवट बदलता रहता हूं. अगर तुम मेरा साथ दो तो हमारी समस्या खत्म हो सकती है.’’ कह कर राजेंद्र ने मीना को अपनी बांहों में भर लिया.

मीना चाहती तो यही थी, लेकिन उस ने मुखमुद्रा बदल कर बनावटी गुस्से में कहा, ‘‘यह क्या कर रहे हो, छोड़ो मुझे.’’

‘‘प्लीज भाभी शोर मत मचाओ, तुम ने मेरा सुखचैन सब छीन लिया है.’’ राजेंद्र ने कहा.

‘‘नहीं राजेंद्र, छोड़ो मुझे. मैं बदनाम हो जाऊंगी, कहीं की नहीं रहूंगी मैं.’’

‘‘नहीं भाभी, अब यह मुमकिन नहीं है. कोई पागल ही होगा, जो रूपयौवन के इस प्याले के इतने करीब पहुंच कर पीछे हटेगा.’’ कह कर राजेंद्र ने बांहों का कसाव बढ़ा दिया.

दिखावे के लिए मीना न…न…न… करती रही, जबकि वह खुद राजेंद्र के शरीर से लिपटी जा रही थी. राजेंद्र कोई नासमझ बच्चा नहीं था, जो मीना की हरकतों को न समझ पाता. इस के बाद वह क्षण भी आ गया, जब दोनों ने मर्यादा भंग कर दी.

एक बार मर्यादा भंग हुई तो राजेंद्र को हरी झंडी मिल गई. उसे जब भी मौका मिलता, वह मीना के घर पहुंच जाता और इच्छा पूरी कर के वापस आ जाता. मीना अब खुश रहने लगी थी, क्योंकि उस की शारीरिक भूख मिटने लगी थी, साथ ही आर्थिक समस्या का भी हल हो गया था. मीना जब भी राजेंद्र से रुपए मांगती थी, वह चुपचाप निकाल कर दे देता था.

काम कोई भी हो, ज्यादा दिनों तक छिपा नहीं रहता. ठीक वैसा ही मीना और राजेंद्र के संबंधों में भी हुआ. उन के नाजायज संबंधों को ले कर अड़ोसपड़ोस में बातें होने लगीं. ये बातें अनिल के कानों तक पहुंची तो वह सन्न रह गया. उसे बात में सच्चाई नजर आई. क्योंकि उस ने मीना और राजेंद्र को खुल कर हंसीमजाक करते हुए कई बार देखा था. तब उस ने इसे सामान्य रूप से लिया था. अब पडोसियों की बातें सुन कर उसे दाल में काला नजर आने लगा था.

अनिल ने इस बारे में मीना से पूछा तो उस ने कहा, ‘‘पड़ोसी हम से जलते हैं. राजेंद्र का आनाजाना और मदद करना उन्हें अच्छा नहीं लगता, इसलिए वे इस तरह की ऊलजुलूल बातें कर के तुम्हारे कान भर रहे हैं. अगर तुम्हें मुझ पर शक है तो राजेंद्र का घर आनाजाना बंद करा दो. लेकिन उस के बाद तुम दोनों की दोस्ती में दरार पड़ जाएगी. वह हमारी आर्थिक मदद करना बंद कर देगा.’’

अनिल ने राजेंद्र और मीना को रंगेहाथों तो पकड़ा नहीं था, इसलिए उस ने मीना की बात पर यकीन कर लिया. लेकिन मन का शक फिर भी नहीं गया. इसलिए वह राजेंद्र और मीना पर नजर रखने लगा. एक दिन राजेंद्र आढ़त पर नहीं आया तो अनिल को शक हुआ. दोपहर को वह घर पहुंचा तो उस के मकान का दरवाजा बंद था और अंदर से मीना और राजेंद्र के हंसने की आवाजें आ रही थीं. अनिल ने खिड़की के छेद से अंदर झांक कर देखा तो मीना और राजेंद्र एकदूसरे में समाए हुए थे.

अनिल सीधे शराब के ठेके पर पहुंचा और जम कर शराब पी. इस के बाद घर लौटा और दरवाजा पीटने लगा. कुछ देर बाद मीना ने दरवाजा खोला तो राजेंद्र कमरे में बैठा था. उस ने राजेंद्र को 2 तमाचे मार कर बेइज्जत कर के घर से भगा दिया. इस के बाद मीना की जम कर पिटाई की. मीना ने अपनी गलती मानते हुए अनिल के पैर पकड़ कर माफी मांग ली और आइंदा इस तरह की गलती न करने की कसम खाई.

अनिल उसे माफ करने को तैयार नहीं था, लेकिन मासूम बेटे की वजह से अनिल ने मीना को माफ कर दिया. इस के बाद कुछ दिनों तक अनिल, मीना से नाराज रहा, लेकिन धीरेधीरे मीना ने प्यार से उस की नाराजगी दूर कर दी. अनिल को लगा कि मीना राजेंद्र को भूल चुकी है. लेकिन यह उस का भ्रम था. मीना ने मन ही मन कुछ दिनों के लिए समझौता कर लिया था.

अनिल के प्रति यह उस का प्यार नाटक था, जबकि उस के दिलोदिमाग में राजेंद्र ही बसता था. उधर अनिल द्वारा अपमानित कर घर से निकाल दिए जाने पर राजेंद्र के मन में नफरत की आग सुलग रही थी. उन की दोस्ती में भी दरार पड़ चुकी थी. आमनासामना होने पर दोनों एकदूसरे से मुंह फेर लेते थे. मीना से जुदा होना राजेंद्र के लिए किसी सजा से कम नहीं था.

मीना के बगैर उसे चैन नहीं मिल रहा था. अनिल ने मीना का मोबाइल तोड़ दिया था, इसलिए उस की बात भी नहीं हो पाती थी. दिन बीतने के साथ मीना से न मिल पाने से उस की तड़प बढ़ती जा रही थी. आखिर एक दिन जब उसे पता चला कि अनिल बाहर गया है तो वह मीना के घर जा पहुंचा. मीना उसे देख कर उस के गले लग गई. उस दिन दोनों ने जम कर मौज की.

लेकिन राजेंद्र घर के बाहर निकलने लगा तो पड़ोसी राजे ने उसे देख लिया. अगले दिन अनिल वापस आया तो राजे ने उसे राजेंद्र के आने की बात बता दी. अनिल को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन वह चुप रहा. उसे लगा कि जब तक राजेंद्र जिंदा है, तब तक वह उस की इज्जत से खेलता रहेगा. इसलिए इज्जत बचाने के लिए उस ने अपने दोस्त की हत्या की योजना बना डाली. उस ने मीना को उस के मायके दिबियापुर भेज दिया. उस ने उसे भनक तक नहीं लगने दी थी कि उस के मन में क्या चल रहा है. मीना को मायके पहुंचा कर उस ने राजेंद्र से पुन: दोस्ती गांठ ली. राजेंद्र तो यही चाहता था, क्योंकि दोस्ती की आड़ में ही उस ने मीना को अपनी बनाया था. एक बार फिर दोनों की महफिल जमने लगी.

एक दिन शराब पीते हुए राजेंद्र ने कहा, ‘‘अनिलभाई, तुम ने मीना भाभी को मायके क्यों पहुंचा दिया? उस के बिना अच्छा नहीं लगता. मुझे आश्चर्य इस बात का है कि उस के बिना तुम्हारी रातें कैसे कटती हैं?’’

अनिल पहले तो खिलखिला कर हंसा, उस के बाद गंभीर हो कर बोला, ‘‘दोस्त मेरी रातें तो किसी तरह कट जाती हैं, पर लगता है तुम मीना के बिना बेचैन हो. खैर तुम कहते हो तो मीना को 2-4 दिनों में ले आता हूं.’’

अनिल को लगा कि राजेंद्र को उस की दोस्ती पर पूरा भरोसा हो गया है. इसलिए उस ने राजेंद्र को ठिकाने लगाने की तैयारी कर ली. उस ने राजेंद्र से कहा कि वह भी उस के साथ मीना को लाने चले. वह उसे देख कर खुश हो जाएगी. मीना की झलक पाने के लिए राजेंद्र बेचैन था, इसलिए वह उस के साथ चलने को तैयार हो गया.

5 जुलाई, 2016 की शाम अनिल और राजेंद्र कंचौसी रेलवे स्टेशन पहुंचे. वहां पता चला कि इटावा जाने वाली इंटर सिटी ट्रेन 2 घंटे से अधिक लेट है. इसलिए दोनों ने दिबियापुर (मीना के मायके) जाने का विचार त्याग दिया. इस के बाद दोनों शराब के ठेके पर पहुंचे और शराब की बोतल, पानी के पाउच और गिलास ले कर कस्बे से बाहर पक्के तालाब के पास जा पहुंचे.

वहीं दोनों ने जम कर शराब पी. अनिल ने जानबूझ कर राजेंद्र को कुछ ज्यादा शराब पिला दी, जिस से वह काफी नशे में हो गया. वह वहीं तालाब के किनारे लुढ़क गया तो अनिल ने ईंट से उस का सिर कुचल कर उस की हत्या कर दी. राजेंद्र की हत्या कर के अनिल ने उस के सारे कपडे़ उतार लिए और खून सनी ईंट के साथ उन्हें तालाब से कुछ दूर झाडि़यों में छिपा दिया. इस के बाद वह ट्रेन से अपनी ससुराल दिबियापुर चला गया.

इधर सुबह कुछ लोगों ने तालाब के किनारे लाश देखी तो इस की सूचना थाना सहावल पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी धर्मपाल सिंह यादव फोर्स ले कर घटनास्थल पहुंच गए. तालाब के किनारे नग्न पड़े शव को देख कर धर्मपाल सिंह समझ गए कि हत्या अवैध संबंधों के चलते हुई है.

लाश की शिनाख्त में पुलिस को कोई परेशानी नहीं हुई. मृतक का नाम राजेंद्र था और वह रामबाबू की आढ़त पर मुनीम था. आढ़तिया रामबाबू को बुला कर राजेंद्र के शव की पहचान कराई गई. उस के पास राजेंद्र के पिता रामकिशन का मोबाइल नंबर था. धर्मपाल सिंह ने उसी नंबर पर राजेंद्र की हत्या की सूचना दे दी.

घटनास्थल पर बेटे की लाश देख कर रामकिशन फफक कर रो पड़ा. लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. धर्मपाल सिंह ने जांच शुरू की तो पता चला कि मृतक राजेंद्र कंचौसी कस्बा के कंचननगर में किराए के कमरे में रहता था. उस की दोस्ती सामने रहने वाले अनिल से थी, जो उसी के साथ काम करता था.

राजेंद्र का आनाजाना अनिल के घर भी था. उस के और अनिल की पत्नी मीना के बीच मधुर संबंध भी थे. अनिल जांच के घेरे में आया तो धर्मपाल सिंह ने उस पर शिकंजा कसा. उस से राजेंद्र की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो पहले वह साफ मुकर गया. लेकिन जब पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया.

उस ने बताया कि राजेंद्र ने उस की पत्नी मीना से नाजायज संबंध बना लिए थे, जिस से उस की बदनामी हो रही थी. इसीलिए उस ने उसे ईंट से कुचल कर मार डाला है. अनिल ने हत्या में प्रयुक्त ईंट तथा खून सने कपड़े बरामद करा दिए, जिसे उस ने तालाब के पास झाडि़यों में छिपा रखे थे.

अनिल ने हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया था. इसलिए धर्मपाल सिंह ने मृतक ने पिता रामकिशन को वादी बना कर राजेंद्र की हत्या का मुकदमा दर्ज कर अनिल को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया.

इंजीनियर पकड़ेंगे छुट्टा जानवर

उत्तर प्रदेश को उल्टा प्रदेश ऐसे ही नहीं कहा जाता. यहां काम भी उल्टे-पुल्टे ही होते है. समाजवादी पार्टी की सरकार में पुलिस आजम खां की भैंस पकड़ने का काम करती थी तो योगी सरकार में इंजीनियर छुट्टा जानवर पकड़ने लगते हैं.

स्कूल में पढ़ाने वाली शिक्षिकाओं को दुल्हन सजाने के काम लगा दिया जाता है. पुलिस यहां दंगाइयों पर कड़ी कार्रवाई करने की जगह पर उनसे बदला लेने पर उतर आती है. बताया जाता है कि नौकरशाही पर मुख्यमंत्री का खौफ सिर चढ़ कर बोल रहा है.

मुख्यमंत्री का गुस्सा नौकरशाही के दिलों में उतर गया है. मुख्यमंत्री के खौफ में नौकरशाही उल्टे-सीधे फैसले लेने लगी है. जब इनकी आलोचना शुरू होती है तो यह फैसले वापस भी हो जाते हैं. उलटते-पलटते फैसलों से सरकार की छवि प्रभावित होती है.

उत्तर प्रदेश में छुट्टा जानवर किसानों और राहगीरों के लिये मुसीबत बने हुये हैं. किसानों की फसल चैपट हो रही है. राहगीरों को दुर्घटना का शिकार होना पड़ रहा है. सड़क के तमाम हादसों की वजह यह छुट्टा जानवर होने लगे हैं.

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इस बात का अहसास सरकार को भी है. इसके बाद भी सरकार समझना नहीं चाहती है. छुट्टा जानवरों की परेशानी अब खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से दौरों के समय मुसीबत बनने लगी है. मुख्यमंत्री की फ्रलीट के आगे छुट्टा जानवर ना आ जाये इसके लिये तुगलकी फैसले होने लगे हैं.

मिर्जापुर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दौरे पर जाना था. इसकी तैयारी की समीक्षा में छुट्टा जानवर भी एक मुददा थे. अधिकारियों को डर था कि कही छुट्टा जानवर मुख्यमंत्री की गाड़ियों के आगे ना आ जाये. ऐसे में छुट्टा जानवरों को संभालने की जिम्मेदारी पीडब्ल्यूडी को सौंप दी गई.

वैसे तो पीडब्ल्यूडी का काम सड़क बनाने का होता है. मुख्यमंत्री के दौरे की समीक्षा कर रहे जिला प्रशासन ने पीडब्ल्यूडी को ही सड़क सुरक्षा का जिम्मा भी सौंप दिया. पीडब्ल्यूडी के पास कोई ऐसी व्यवस्था नहीं थी. ऐसे में पीडब्ल्यूडी ने अपने ही इंजीनियरों को कहा कि रस्सी लेकर छुट्टा जानवरों को पकड़ने का काम करे.

प्रदेश में मौखिक स्तर पर ऐसे काम होते रहते है. मिर्जापुर में पीडब्ल्यूडी के प्रांतीय खंड-2 के द्वारा इंजीनियरों की ड्यूटी लगा दी गई. यह आदेश लिखित में जारी होते ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. इसके बाद शासन स्तर पर हंसी का पात्र बनने से बचने के लिये यह आदेश निरस्त भी हो गया. इससे छुट्टा जानवरों की परेशानी पर अधिकारियों का डर खुल कर सामने आ गया.

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इसके पहले शिक्षा विभाग ने भी अपनी शिक्षिकाओं की ड्यूटी दुल्हनों को सजाने पर लगा दिया था. वह आदेश भी सोशल मीडिया पर वायरल होते ही खत्म हो गया. ऐसे ही 19 दिसम्बर को लखनऊ में दंगों के बाद मुख्यमंत्री ने दंगा करने वालों से बदला लेने का बयान जारी किया. इसको भी बाद में एडिट करके बदला लेने वाला हिस्सा हटा दिया गया.

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पुलिस टीम ने पिंकी के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि वह एक नंबर पर सब से ज्यादा बात करती थी. इस नंबर की जानकारी जुटाई गई तो पता चला यह नंबर प्रदीप यादव निवासी आदमपुर थाना सौरिख (कन्नौज) का है. पुलिस को एक और चौंकाने वाली जानकारी मिली कि बलराम की हत्या के एक दिन पहले तथा हत्या वाले दिन भी पिंकी की बात प्रदीप से हुई थी.

रिकौर्ड के अनुसार 14 सितंबर की रात 7 बजे तथा 15 सितंबर की सुबह 4 बजे पिंकी और प्रदीप के बीच बात हुई थी. बलराम की हत्या की जो तसवीर अभी तक धुंधली थी, अब साफ होने लगी थी. पिंकी और प्रदीप अब पूर्णरूप से शक के घेरे में आ गए थे. बस उन का कबूलनामा शेष था.

23 सितंबर, 2019 को सुबह 10 बजे पुलिस टीम इंदरगढ़ थाने के गांव गसीमपुर पहुंची और लायक सिंह की बेटी सावित्री उर्फ पिंकी यादव को हिरासत में ले लिया. पिंकी को पुलिस हिरासत में देख कर गांव में कानाफूसी होने लगी. खासकर महिलाएं चटखारे ले कर तरहतरह की बातें करने लगीं. पुलिस पिंकी को थाने ले आई. थाने में आते ही पिंकी का चेहरा उतर गया.

पुलिस ने पिंकी यादव से बलराम की हत्या के संबंध में पूछताछ शुरू की तो वह भावनात्मक रूप से पुलिस को बरगलाने का प्रयास करने लगी. लेकिन जब पुलिस टीम ने महिला दरोगा अनीता सिंह को सच उगलवाने का आदेश दिया तो पिंकी टूट गई और उस ने भाई की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

पिंकी ने बताया कि भाई बलराम की हत्या का षडयंत्र उस ने अपने प्रेमी प्रदीप यादव और उस के दोस्त रामू के साथ मिल कर रचा था.

दोनों हत्यारों को पकड़ने के लिए पुलिस ने पिंकी की मार्फत जाल बिछाया. पुलिस के पास पिंकी का मोबाइल फोन था. उसी मोबाइल से पुलिस ने पिंकी की बात उस के प्रेमी प्रदीप से कराई और जरूरी बात बताने का बहाना बना कर शाम 5 बजे खैरनगर नहर पुलिया पर मिलने को कहा. प्रदीप आने को तैयार हो गया.

अपनी व्यूह रचना के तहत पुलिस टीम पिंकी को साथ ले कर शाम 4 बजे ही खैरनगर नहर पुल पर पहुंच गई. पुलिस के सदस्य सादा कपड़ों में पुल के आसपास झाडि़यों में छिप गए और वहीं से निगरानी करने लगे.

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पुलिस को निगरानी करते अभी आधा घंटा भी नहीं बीता था कि 2 युवक मोटरसाइकिल पर आए और पुल पर बैठी पिंकी को मोटरसाइकिल पर बैठने का संकेत किया.

ठीक उसी समय झाड़ी में छिपे टीम के सदस्यों ने उन दोनों को अपनी गिरफ्त में ले लिया. उन की मोटरसाइकिल भी कस्टडी में ले ली. वे दोनों युवक प्रदीप और उस का दोस्त रामू थे. मोटरसाइकिल सहित दोनों को थाना ठठिया लाया गया.

थाने पर जब उन दोनों से बलराम की हत्या के बारे में पूछा गया तो उन्होंने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. प्रदीप ने बताया कि वह बलराम की बहन पिंकी से प्यार करता था. पिंकी भी उस से प्यार करती थी. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन बलराम उन दोनों के प्यार में बाधा बन रहा था. इसी बाधा को दूर करने के लिए उस ने पिंकी और दोस्त रामू की मदद से बलराम की हत्या कर दी थी और उस की मोटरसाइकिल तथा शव को निचली गंगनहर में फेंक दिया था.

रामू ने पुलिस को बताया कि प्रदीप उस का दोस्त है. बलराम की हत्या में उस ने दोस्त का साथ दिया था. प्रदीप की निशानदेही पर पुलिस ने नहर पुल के पास झाड़ी से खून सना चाकू बरामद कर लिया. हत्या में प्रयुक्त प्रदीप की मोटरसाइकिल भी जाब्ते में ले ली गई.

पुलिस टीम ने बलराम की हत्या का परदाफाश करने तथा आलाकत्ल सहित कातिलों को पकड़ने की जानकारी एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह को दी. उन्होंने थाने पहुंच कर प्रैसवार्ता की और कातिलों को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा कर दिया.

कन्नौज जिले के इंदरगढ़ थानांतर्गत एक गांव है गसीमपुर. यादव बाहुल्य इस गांव में लायक सिंह अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी रामदेवी के अलावा एक बेटा बलराम सिंह तथा बेटी सावित्री उर्फ पिंकी थी. लायक सिंह के पास 5 बीघा उपजाऊ जमीन थी, जिस में अच्छी पैदावार होती थी. कृषि उपज से ही लायक सिंह अपने परिवार का भरणपोषण करता था.

बलराम सिंह लायक सिंह का एकलौता बेटा था. बलराम सिंह ने इंटरमीडिएट की पढ़ाई करने के बाद नौकरी के लिए दौड़धूप शुरू की. नौकरी नहीं मिली, तो वह पिता के साथ कृषिकार्य में उन का हाथ बंटाने लगा. बलराम सिंह को घूमनेफिरने का शौक था, अत: उस ने पिता से कहसुन कर मोटरसाइकिल खरीद ली थी.

बलराम सिंह से 10 साल छोटी सावित्री उर्फ पिंकी थी. भाईबहन के बीच गहरा प्रेम था. पिंकी तन से ही नहीं, मन से भी खूबसूरत थी. इसलिए हर कोई उसे पसंद करता था. 16 वर्ष की कम उम्र में ही वह जवान दिखने लगी थी. पिंकी से नजदीकियां बढ़ाने के लिए गांव के कई युवक उस के आगेपीछे घूमते रहते थे, लेकिन प्रदीप के मन में वह कुछ ज्यादा ही रचबस गई थी.

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कसरती देह का हट्टाकट्टा गबरू जवान प्रदीप यादव मूलरूप से कन्नौज जिले के गांव आदमपुर का रहने वाला था. उस के पिता अवसान सिंह यादव किसान थे. 3 भाईबहनों में वह सब से बड़ा था. उस का मन खेती के काम में नहीं लगा तो उस ने ड्राइविंग सीख ली. कुछ समय बाद वह एक सड़क ठेकेदार की जेसीबी का ड्राइवर बन गया.

जनवरी, 2019 में ठेकेदार को गसीमपुर खैरनगर लिंक रोड बनाने का ठेका मिला. तब प्रदीप यादव गसीमपुर आया. सड़क निर्माण के दौरान प्रदीप की मुलाकात बलराम सिंह यादव से हुई. चूंकि दोनों हमउम्र थे और एक ही जातिबिरादरी के थे, सो दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई. प्रदीप को खानेपीने और रात में सोने की दिक्कत थी. उस ने अपनी समस्या बलराम को बताई तो उस ने प्रदीप के ठहरने और खानेपीने का इंतजाम अपने ही घर में कर दिया.

वित्री उर्फ पिंकी पर पड़ी. पहली ही नजर में पिंकी प्रदीप की आंखों में रचबस गई. वह उसे रिझाने की कोशिश करने लगा. जब भी मौका मिलता, वह उस से प्यार भरी बातें करता और उस के रूपसौंदर्य की तारीफ करता. प्रदीप कभीकभी उस से छेड़छाड़ भी कर लेता था.

प्रदीप की छेड़छाड़ से पिंकी सिहर उठती, इस से उसे सुखद अनुभूति होती. धीरेधीरे कच्ची उम्र की पिंकी प्रदीप की तरफ आकर्षित होने लगी. अब उस के मन में हलचल मचने लगी थी.

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इस तरह एकदूसरे के साथ रहते हुए दोनों के दिलों में प्यार का समंदर हिलोरें मारने लगा. दोनों एकदूसरे के लिए छटपटाहट महसूस करने लगे. मौका मिलने पर वह प्रदीप के कमरे में भी पहुंचने लगी थी. दोनों वहां बैठ कर प्यार भरी बातें करते और साथ जीनेमरने की कसमें खाते. दोनों की मोहब्बत परवान जरूर चढ़ रही थी, लेकिन घर वालों को कानोकान खबर नहीं थी.

अगले भाग में पढ़ें- हत्या का रहस्य खुला और न ही हत्यारे पकड़ में आए.

अश्लील नाटक नहीं, नजरिया है

दर्शकों ने तो पूरा लुत्फ उठाया लेकिन संस्कृति के ठेकेदारों के पेट में मरोड़े उठीं क्योंकि पहली बार किसी नाटक में स्त्री पुरुष के प्रेम संबंधों को बेहद वास्तविक और सहज रूप से दिखाने की हिम्मत किसी ने की थी. भोपाल के रवीन्द्र भवन में खेला गया नाटक जुगनू की जूलियट उस समय विवादों और आलोचनाओं से घिर गया जब इसमें कथित रूप से कुछ अश्लील दृश्य दिखाये गए. इफ्तेखार नाट्य समारोह के अंतर्गत इस नाटक की कहानी बेहद सपाट थी जिसमें नायिका चांदनी और नायक जुगनू एक दूसरे से प्यार करते हैं जो चांदनी के भाई सल्जू को नागवार गुजरता है.

सल्जू एक साजिश रचते चांदनी की शादी एक सजातीय युवक से तय कर देता है और चांदनी को धोखे में रखते बताता है कि उसकी शादी जुगनू से ही हो रही है. नाटक का अंत हिन्दी फिल्मों जैसा ही है. राज खुलने पर चांदनी और जुगनू 1981 में प्रदर्शित हिट फिल्म के सपना और बासु की तर्ज पर अपनी जान दे देते हैं.

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नाटक के बीच में यानि प्यार के दौरान कलाकारों ने दृश्यों को जीवंत कर दिया. नायक नायिका प्यार में डूबे एक दूसरे को किस करते हैं और अंतरंगता के दौरान कुछ कुछ सहवास की सी मुद्रा में आने से खुद को नहीं रोक पाते तो सहज समझा जा सकता है कि वे कथानक के प्रति किस हद तक समर्पित थे. उन्होने कोई मंचीय मर्यादाएं पार नहीं कीं बल्कि मंच से इतना भर दिखाया कि दरअसल में प्यार के दृश्य कितने वास्तविक तरीके से प्रस्तुत किए जा सकते हैं.

नाटक के समापन के बाद किसी और ने तो एतराज नहीं जताया बल्कि मीडिया को ही लगा कि नाटक में अश्लीलता थी जो भारतीय संस्कृति के खिलाफ है लिहाजा उन्होने हल्ला मचाना शुरू कर दिया कि दिन दहाड़े अश्लीलता परोसी गई और सब देखते रहे कोई कुछ नहीं बोला. आरोप संस्कृति विभाग पर भी लगा कि वह नाटकों के मंचन के लिए भारी भरकम रकम तो देता है लेकिन नाटकों की स्क्रिप्ट और डायलोग्स पर लगाम नहीं कसता जिससे कला के नाम पर अश्लीलता फेल रही है. कुछ मीडियाकर्मियों ने चुंबन और लिपलौक दृश्यों के बाबत निर्देशक वसीम अली को घेरा तो वे घबरा कर बोले कि ये दृश्य तो नाटक में थे ही नहीं वो तो कलाकारों ने फ्लो में ऐसा कर दिया.

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देखा जाये तो नाटक में कुछ भी अश्लील या आपत्तिजनक नहीं था लेकिन लोगों की आदत सी पड़ गई है रामलीला नुमा दृश्यों को देखने की जिनमें कथित मर्यादाएं भी उन्हें धर्म और संस्कृति नजर आती हैं. ये संस्कृति रक्षक अगर कला के दायरे तय करेंगे तो तय है वह हरिश्चंद्र और सत्यवान सावित्री से आगे कहीं नहीं होगी.

नाटकों का आधुनिक होना बेहद जरूरी हो चला है क्योंकि इनके दर्शक लगातार घट रहे हैं कहने का मतलब यह नहीं कि दर्शकों को आकर्षित करने इनमें देह दर्शन और सेक्स जबरन परोसा जाये बल्कि यह है कि कहानी की मांग के मुताबिक दृश्यों पर बेवजह की हाय हाय बंद की जाये नहीं तो जो दर्शक अभी नाटकों को मिल रहे हैं वे भी खत्म हो जाएंगे और वैसे भी अश्लीलता और गैर अश्लीलता की परिभाषा या दायरे तय करने का जिम्मा दर्शक ही उठाएं तो ज्यादा अच्छा है.

3 टिप्स : ऐसे करें अपनी आंखों का मेकअप

आंखे चेहरे की खूबसूरती का एक अहम हिस्सा है, आंखों की खूबसूरती से चेहरे पर एक अलग ही निखार आ जाता है और आप अधिक सुन्दर दिखती हैं. अगर आंखों का मेकअप सही ढंग से किया गया है तो चेहरे की खूबसूरती में चार चांद लग जाती है. आंखों के मेकअप के लिए हर मौसम में बेज, गोल्डन और लाइलैक शेड्स बेस्ट होते हैं. इनके साथ टरक्वायज और फूशिया कलर आंखों को खास आकर्षण देता है. इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे आंखों के मेकअप के कुछ महत्वपूर्ण ट्रिक्स और टिप्स-

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  1. ट्रिक्स

आंखों पर नेचुरल मेकअप के लिए न्यूट्रल शैडो को प्रयोग करें. इसे आइलिड की क्रीज पर यानी आइरिस के ऊपर लगाएं. अगर कोई अन्य कलर ऐड करना चाहती हैं तो वनीला या लाइट कलर से एक स्ट्रोक दें. अच्छी तरह ब्लेंड करें.

दोबारा लिड पर लाइट कलर से स्ट्रोक दें. फिर थोडा डार्क कलर क्रीज लाइन पर लगाएं. अपर और लोअर लैश लाइन पर भी डार्क कलर से कवर दें.

ब्राउन आइलाइनर आंखों के भीतरी कोने से थोडी दूर से शुरू करते हुए बाहरी कोनों से थोडा बाहर तक लगाएं. ताकि आंखें बडी और आकर्षक नजर आएं.

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डिफाइनिंग मस्कारा लगाना न भूलें. इसका डबल कोट लगाएं. मस्कारा लगाने से पहले लैश को कर्ल जरूर कर लें.

टिप्स

फैट क्रेयान पेंसिल का इस्तेमाल करें, जो क्रीमी पाउडर टेक्सचर वाली हो. ताकि फैलाने में आसान हो. अपना आई पेंसिल शार्पन करने से पहले फ्रीज कर लें ताकि वह टूटे नहीं.

आंखों के चारों और लाइनर लगा लेने से वे छोटी नजर आती हैं न कि बडी. तो लगाते समय इस बात का ध्यान रखें.

2. स्मोकी आई लुक मेकअप

स्मोकी आईलुक देने के लिए आंखों में सबसे पहले ब्लैक कलर का काजल और आईलाइनर लगाये. फिर उसके बाद ब्लैक और ब्राउन आईशैडो को एक साथ मिलाकर आईलिड पर लगाएं. अब इसके बाद व्हाइट गोल्ड या कापर कलर से हाईलाइटिंग करें और ऊपर-नीचे की पलकों पर मस्कारा लगाएं.

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क देने के लिए आप सबसे पहले मोटा और डार्क काजल और आईलाइनर लगाएं. उसके बाद पर्ल और ग्रीन कलर के आईशैडो को आपस में मिलाकर आईलिड पर लगाएं. आईशैडो को आंखों के चारों तरफ लगाएं यानि काजल के नीचे भी हल्का सा लगाइये. अब इसके बाद ऊपर और नीचे की पलकों में ब्लैक और ग्रीन शेड का मस्कारा एक-एक करके लगाएं. इस तरह आप की आंखे पिकौक टच के साथ आपका खूबसूरती को ऐर बढ़ा देगी.

3. पिंक प्रिटी मेकअप

पिंक प्रिटी आई मेकअप करने के लिए ब्लैक आई पेंसिल आंखों पर लगाइये, फिर आईलिड पर शिमर वाला पिंक शेड लगाएं और पर्ल कलर को मिला के आईलिड के ऊपर वाले हिस्से में लगाएं. ऊपर और नीचे दोनों पलकों में गाढा मस्कारा का इस्तेमाल करें. यह प्रिंट प्रिटी मेकअप अपको बार्बी लुक देंगे. आप इसका इस्तेमाल शादी पार्टी में जाने के लिए कर सकती हैं. यह ट्रेडिशनल ड्रेस के साथ खूब जचता है.

किसानों को उनकी भाषा में मिले तकनीकी जानकारी

साल 1967 में देश में पड़े भीषण अकाल में बड़ी मात्रा में खाद्यान्न आयात करना पड़ा था. इस वजह से सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में अनुसंधान के काम पर जोर दिया गया. इस से एक तरफ सिंचित जमीन का क्षेत्रफल बढ़ने लगा, तो वहीं दूसरी तरफ कृषि क्षेत्र में विविधता लाने की कोशिश की जाने लगी.

इस काम को संगठित रूप देने के लिए साल 1929 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का गठन हुआ. केंद्र सरकार से जुड़े सभी संस्थानों को इस के तहत लाया गया. धीरेधीरे खाद्यान्न, फलसब्जी के साथ ही जानवरों के लिए भी अनुसंधान संस्थान खोले गए. लगातार अनुसंधान द्वारा खाद्यान्नों, फलों, सब्जियों की नई उपजाऊ किस्मों का विकास हुआ.

किसी काम को संगठित रूप देने से अधिक पैसा बनाने में कामयाबी मिली. परिषद की अगुआई में देश में हरित क्रांति आई. देश में खाद्यान्नों का रिकौर्ड उत्पादन शुरू हो गया, तेज गति से बढ़ती आबादी के बावजूद भी न सिर्फ खाद्यान्न, फलसब्जी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता आई, बल्कि कुछ उत्पादों के निर्यात में भी हमें कामयाबी मिली.

इस समय देश की आबादी 135 करोड़ के पार हो चुकी है. इतनी विशाल आबादी को भी भोजन के लिए खाद्यान्न उपलब्ध है. ऐसी हालत तब है, जब खेती की जमीन धीरेधीरे घटती जा रही है.

शहरों का क्षेत्रफल आजादी के समय 7 फीसदी से बढ़ कर 35 फीसदी हो गया है. यह वृद्धि क्षेत्र में व्यापक काम के चलते हुई है.

देश में किसानों का अनुसंधान संस्थानों से सीधा जुड़ाव हुआ है. इन संस्थानों के वैज्ञानिक नियमित अंतराल पर इलाके और गांवों का दौरा करते रहते हैं और किसानों से रूबरू हो कर उन को तकनीकी जानकारी देते हैं.

इस तरह के अनुसंधान और प्रसार के काम में भाषा की अहम भूमिका होती है. तकरीबन 200 सालों के ब्रिटिश राज के होने की वजह से भाषा के रूप में अंगरेजी का बोलबाला देश के सभी क्षेत्रों में अभी तक गहराई से बना हुआ है. शिक्षा विशेष रूप से कृषि शिक्षा व अनुसंधान के क्षेत्र में आज भी अंगरेजी महत्त्वपूर्ण भाषा बनी हुई है.

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अनुसंधान के काम और लेखनी में लगभग अंगरेजी का ही प्रयोग हो रहा है, जिस का साहित्यिक महत्त्व है, पर इस की जांच खेत में और किसानों के बीच में होती है.

ऐसी स्थिति में भारतीय भाषाएं खासकर मान्याताप्राप्त भाषाओं का महत्त्व काफी बढ़ जाता है. अगर इन भाषाओं के जरीए बातचीत नहीं की जाएगी, तो किसानों को जो फायदा होना चाहिए, वह नहीं मिल सकेगा. यदि उन की भाषा में किसानों को जानकारी दी जाती है, तो वे अच्छी तरह से समझ सकेंगे और तकनीक अपनाने में भी उन को कोई हिचक नहीं होगी.

भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में मान्यताप्राप्त भाषाओं की संख्या 22 है. हिंदी देश के तकरीबन 57 फीसदी भूभाग में बोली व समझी जाने वाली भाषा है.

भारत में हिंदीभाषी राज्यों का निर्धारण भाषा के आधार पर हुआ है और उन सभी राज्यों में राज सरकार के काम स्थानीय भाषा में ही होते हैं. इन सभी मान्यताप्राप्त भाषाओं का अपनाअपना प्रभाव क्षेत्र में है और इस में साहित्य का काम भी लगातार हो रहा है. इन में से ज्यादातर भाषाओं के अपने शब्दकोश हैं और फिल्में भी बनाई जा रही हैं, खासतौर पर तमिल, बंगला, मलयालम, मराठी व तेलुगु फिल्म उद्योग अपनेअपने क्षेत्र में बहुत ही लोकप्रिय है.

इस के अलावा उडि़या, असमी, पंजाबी भोजपुरी, नागपुरी वगैरह भाषाओं में भी फिल्में लगातार बन रही हैं और पसंद भी की जा रही हैं.

ऐसी हालत में कृषि अनुसंधान को स्थानीय भाषा से जोड़ना समय की जरूरत है, ताकि हम अपनी उपलब्धियों को किसानों तक आसानी से पहुंचा सकें. हालांकि मान्यताप्राप्त भाषाओं में कुछ भाषाएं ऐसी हैं, जिन का प्रभाव क्षेत्र बहुत ही सिमटा हुआ है, लेकिन ज्यादातर भाषाएं बड़े क्षेत्रों में फैली हैं और कार्यालय के काम से ले कर दिनभर के काम तक निरंतर प्रयोग की जा रही हैं.

अगर हमें अनुसंधान की उपलब्धियों से किसानों को जोड़ना है तो यह जरूरी है कि अपनी बातों को उन की भाषा और बोली में उन तक पहुंचाया जाए, यह बहुत कठिन नहीं है.

देश में सब से पहले हिंदी का नाम आता है और कृषि से जुड़े साहित्य भी हिंदी में लगातार तैयार हो रहे हैं. भारतीय किसान संघ परिषद के ज्यादातर संस्थानों में प्रशिक्षण सामग्री और संबंधित फसल से जुड़ी अनुसंधान संबंधी उपलब्धियां हिंदी में ही मौजूद हैं. इसे और भी बढ़ावा देने की जरूरत है. हमेशा यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि प्रस्तुतीकरण और भी सुगम भाषा में हो.

परिषद के सभी संस्थानों में राजभाषा प्रकोष्ठ की मदद से भी काम किया जा रहा है. हिंदी भाषी वैज्ञानिक शोध भी सराहनीय योगदान दे रहे हैं. इस के बावजूद हिंदी में छपने वाले शोध साहित्य कम हैं.

कुछ वैज्ञानिक संगठनों, संस्थानों द्वारा हिंदी में शोध पत्रिकाएं छप रही हैं और कुछ एक और काम करने के लिए लगातार संघर्षरत हैं और आगे बढ़ रही हैं.

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इस क्षेत्र में प्रगति संतोषजनक है, पर हिंदी के प्रभाव क्षेत्र को देखने के बाद यह काफी कम प्रतीत होता है. इस के लिए कृषि वैज्ञानिकों को पहल करनी होगी. उन्हें मौलिक अनुसंधान में हिंदी व भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देना होगा, तभी किसान उस का फायदा उठा सकेंगे.

इसी तरह कई अन्य मान्यताप्राप्त भारतीय भाषाएं ऐसी हैं, जिन का प्रभाव अपने क्षेत्र में तो बड़ा है ही, साथ ही, वे अपने क्षेत्र में लोगों की जिंदगी से सांस्कृतिक व भावनात्मक रूप से बहुत गहराई से जुड़ी हैं. जिस तरह से हिंदीभाषियों के पास हिंदी में अनुसंधान संबंधी किसी सामग्री के साथ अपनी बातें पहुंचाई जा सकती हैं, वैसे दूसरी भारतीय भाषाओं में भी धान की उपलब्धियों को रूपांतरित कर उसी प्रभाव क्षेत्र तक पहुंचाया जा सकता है.

कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में भी व्यापक रूप से अंगरेजी का ही प्रयोग हो रहा है, पर प्रशासन का मकसद किसान हैं और किसानों की आबादी कई गुना ज्यादा है. वे गंवई इलाके में रहते हैं. इसलिए कृषि अनुसंधान संगठनों को इसे गंभीरता से लेने की जरूरत है. अगर मौलिक रूप से इन भाषाओं के काम करने में थोड़ी कठिनाई हो, तो अनुवाद एक बेहतर साधन है. इस के द्वारा हम उन भाषाओं में बेहतरीन साहित्य तैयार कर सकते हैं, जिन का फायदा किसानों को मिले.

कृषि वैज्ञानिकों को चाहिए कि वे हिंदी भाषा के साथ सकारात्मक सोच से काम करें, जिस से हिंदी में साहित्य को आगे बढ़ने का मौका तो मिलेगा ही और अपनी बात को किसानों तक आसानी से पहुंचाया जा सकेगा. इस से प्रदेश व देश की उत्पादकता में काफी अंतर देखने को मिलेगा.

हमारा मानना है कि हिंदी साहित्य अभी भी किसानों के अंदर बहुत अच्छी पैठ बनाए हुए है, इसलिए वैज्ञानिकों को अपनी करनी और कथनी में अंतर करना होगा. किसानों तक आसान भाषा में साहित्य को पहुंचाने के लिए अपना समर्थन करना होगा. इस के लिए जरूरत केवल सामाजिक क्रांति के साथसाथ वैज्ञानिकों को वैचारिक क्रांति में बदलाव लाने की है. यदि हम अपनी वैचारिक क्रांति में बदलाव लाएंगे, तो हिंदी साहित्य को आसानी से किसानों में लोकप्रिय बना सकेंगे.

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बिग बौस 13 : फिनाले में अक्षय के साथ नजर आएंगी ये एक्ट्रेस, फैन्स को मिलेगा बड़ा सरप्राइज

कलर्स टीवी पर प्रसारित होने वाला विवादित शो बिग बौस के फिनाले में  बौलीवुड के खिलाड़ी अक्षय कुमार नजर आने वाले हैं. जी हां  खबरों के अनुसार इनके साथ कटरीना भी नजर आएंगी. इस बार बिग बौस फिनाले में फैन्स को बड़ा सरप्राइज मिलने वाला है.

आपको बता दें, अक्षय और कटरीना अपनी आने वाली फिल्म सूर्यवंशी के टीजर लौंच करने के लिए बिग बौस फिनाले में आएंगे. ये फिल्म  27 मार्च को रिलीज होने वाली है. इस फिल्म का निर्देशन रोहित शेट्टी ने किया है.

फिल्म में कटरीना कैफ, अक्षय कुमार के साथ अजय देवगन और रणवीर सिंह भी नजर आने वाले हैं. इस मौके पर फिल्म की पूरी टीम बिग बौस फिनाले में मौजुद रहेगी. जानकारी के मुताबिक बिग बौस का फिनाले 15 फरवरी को होगा.

अगर फिनाले तक शहनाज घर में रहती हैं तो ये उनके लिए बहुत बड़ा सरप्राइज होगा, जो फिनाले पर उन्हें मिलेगा. आपको बता दें कि कंटेस्टेंट शहनाज गिल कटरीना कैफ की बड़ी फैन हैं. शहनाज खुद को पंजाब की कटरीना कैफ भी बुलाती हैं. वो कई बार सलमान खान से कई बार कटरीना से मिलवाने की बात कह चुकी हैं.

हाल ही में शेफाली जारिवाल घर से बाहर निकली है.  उन्होंने  बिग बौस के घर के बारे में बात करते हुए बताया  कि कुछ समय पहले सिद्धार्थ बीमार हो गए थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने घर में काफी योगदान दिया है. आसिम रियाज के बारे में बात करते हुए शेफाली ने कहा, घर में वो दिन भर लोगों को उकसाते रहते है. कभी- कभी उनकी हरकते बर्दाश्त के भी बाहर हो जाती है. बिग बौस के घर के अंदर वो लगातार सिद्धार्थ शुक्ला और बाकी सदस्यों को उकसाते दिखाई देते है.

मेरी जिंदगी का लक्ष्य काम करते रहना है : हिना खान

टीवी सीरियल ‘‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’’ में लगातार आठ वर्ष तक अक्षरा का किरदार निभाकर हिना खान ने जबरदस्त शोहरत बटोरी. फिर इस सीरियल को अलविदा कह कर उन्होंने अपनी नई राह बनाने की कोशिश की. इस कोशिश के तहत वह ‘बिग बौस 11’ का हिस्सा बनी. कुछ समय के लिए सीरियल ‘‘कसौटी जिंदगी के 2’’ में कोमालिका का नकारात्मक किरदार निभया. उसके बाद फरीदा जलाल के साथ फिल्म ‘‘लाइन्स’’ में अभिनय कर कान्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में रेड कारपेट पर चलकर तहलका मचाया. जिसके चलते उन्हें एक इंडो हौलीवुड फिल्म ‘‘कंट्री आफ ब्लाइंड’’ करने का अवसर मिला. इन दिनों वह विक्रम भट्ट निर्देशित फिल्म ‘‘हैक्ड’’ को लेकर अति उत्साहित हैं, जो कि आगामी सात फरवरी को सिनेमाघरों में पहुंचेगी.

प्रस्तुत है हिना खान से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश..

आपका जन्म कश्मीर में हुआ. फिर आपने दिल्ली में पढ़ाई की. अभिनेत्री बनी, मगर जब आप बीबीए की पढ़ाई कर रही थीं, उस वक्त आपकी क्या सोच थी. कहां जाना चाह रही थी ?

जी मैं बी बी ए@ बैचलर इन बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई के दूसरे वर्ष मैंने सोचा था कि इसके बाद में मास कम्यूनीकेशंस में मास्टर्स की डिग्री हासिल करूंगी. उस वक्त मुझे पत्रकार बनना था. मैं फील्ड पर जाना चाहती थी. मैं बरखा दत्त की बहुत बड़ी फैन थी. यह तय था मुझे औफिस में बैठकर काम नहीं करना है. मुझे लिखना भी नहीं है. मुझे फील्ड में जाना है. पर एक दिन एक दोस्त मुझे जबरन औडीशन के लिए गई और सीरियल ‘‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’’ में मेरा अक्षरा के किरदार को निभाने के लिए चयन हो गया. उसके बाद की यात्रा जारी है.

उसके बाद की यात्रा को लेकर क्या कहना चाहेंगी ?

मेरी नजर में अब तक की मेरी यात्रा बेहतरीन रही है. इस यात्रा ने मेरे लिए भविष्य के अच्छे द्वार खोले हैं. मैं ‘बिग बौस 11’ का हिस्सा बनी. फिर मैंने कुछ एपीसोड ‘कसौटी जिंदगी के 2’’ के लिए. मैंने एक फिल्म ‘‘लाइन्स’’ की ,जिसने मुझे ‘कान्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’तक पहुंचाया. यह फिल्म अभी तक फिल्म फेस्टिवल में ही दौड़ रही और जबरदस्त रूप से सराही जा रही है. अभी तक यह फिल्म भारतीय सिनेमाघरों में नहीं पहुंची है. इसी फिल्म ने मुझे हौलीवुड फिल्म ‘‘कंट्री आफ ब्लाइंड’’ दिलायी. फिर मुझे विक्रम भट्ट की फिल्म ‘‘हैक्ड’’ मिली, जो कि सात फरवरी को सिनेमाधरों में पहुंचेगी.

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आपने सीरियल ‘‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’’ छोड़कर टीवी से दूरी बनायी थी. पर फिर आपने सीरियल ‘‘कसौटी जिंदगी की 2’’ क्यों की ?

मेरा सपना रहा है कि सीरियल निर्माता व टीवी क्वीन कही जाने वाली एकता कपूर के साथ काम करने का. ‘यह रिश्ता क्या कहलाता है’ छोड़ने के बाद मैने ‘बिग बौस 11’ के अलावा फिल्म ‘‘लाइन्स’’ व एक म्यूजिक वीडियो किया. मगर आठ वर्ष तक टीवी पर काम करने के बावजूद मैं एकता कपूर से कभी मिल नहीं पायी थी. यहां तक कि हम किसी अवार्ड फंक्शन में भी नहीं मिले. हमारे बीच कभी कोई बात ही नहीं हुई. पर मैं उनकी फैन थी,तो जब खुद एकता कपूर ने मुझे फोन करके मिलने के लिए बुलाया, तो मैं उनसे मिलने उनके औफिस गयी. फोन पर उनकी आवाज सुनकर मैं हक्की बक्की रह गई थी. जब मैं उनसे मिली ,तो उन्होंने मुझे कहा कि वह चाहती हूं कि मैं कोमालिका किरदार निभाउं और मैं निभा सकती हूं. अब उनके सामने मेरा मुंह नहीं खुला. एकता जी का औरा ही ऐसा है. फिर भी धीरे से मैंने कहा कि नगेटिव किरदार क्यों ? पौजीटिव किरदार क्यों नहीं दे रही हैं. इस पर उन्होंने कहा कि आठ साल पौजीटिव कर लिया. क्यों दोहराना चाहती हो. लोगों को दिखाओ कि तुम एक्टर हो और किसी भी किरदार को निभा सकती हो. अपनी योग्यता दिखाओ कि तुम नगेटिव भी कर सकती हो .न्होंने मुझे बहुत आत्मविश्वास दिया और कहा कि तुम देखना,तुम इतिहास बनाओगी और वही हुआ.

ये रिश्ता क्या कहलाता है की अक्षरा को आठ वर्ष तक निभाते हुए कोई खास प्रतिक्रिया मिली थी ?

8 साल तक लोगों की नजर में मैं भगवान थी यानी कि अक्षरा भगवान थी.लोग मुझसे ऐसे मिलते थे कि वह भगवान से मिल रहे हों. अमूमन ऐसा बहुत कम होता है. लोग घर में मेरी पूजा करते थे कि अक्षरा देवी है.यह कुछ गलत नहीं करती है.जबकि ऐसा असल जिंदगी में नहीं होता है.खैर,मुझे बड़ा प्यार मिला. उस वक्त लोगों के लिए निजी जिंदगी में भी मैं अक्षरा ही थी.

एक तरफ आप बहुत ही घरेलू और शक्तिशाली महिला अक्षरा थीं, तो वहीं  2013 से 2017 तक आपको सेक्सिएस्ट एशिन ओमन’ चुनी जाती रही. यह विरोधाभास नहीं था ?

सच बताऊं तो मुझे कभी यह सोचने का मौका ही नहीं मिला कि मैं कैसे रिएक्ट करूं. मुझे याद है, जब मेरे सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ का पहला प्रोमो आया था, तब सभी ने मुझसे पूछा था कि कैसा लग रहा है? तो मैंने कहा था कि पता नहीं, समझ में ही नहीं आ रहा है. तो मेरे लिए जिंदगी बहुत स्ट्रेंज है. फिल्म ‘हैक्ड’ का प्रोमो आया, सब बहुत खुश है. मैं खुद भी बहुत खुश हूं. लेकिन कोई ऐसी फीलिंग नहीं है. मुझे कभी-कभी लगता है कि बहुत अच्छा है, क्योंकि अगर फीलिंग आएगी तो कभी-कभी सर पर भी चढ़ जाएगी. मुझे आती ही नहीं है. मेरी जिंदगी का लक्ष्य है,‘काम करो और आगे बढ़ो.’ उसके बाद उस फिल्म का जो होना है, वह होगा.

मेरा सवाल यह था कि आपका जो अक्षरा का किरदार था, वह बहुत अलग था. जैसा कि आपने कहा कि लोग देवी मान रहे थे. पर उसी दौरान आपको सेक्सिएस्ट एशियन ओमन’ चुना जा रहा था. यह विरोधाभास नहीं था ?

मैंने इसे तारीफ के रूप में लिया.यह आसान नहीं था. आइ वर्ष तक ग्रहिणी, मां, बहू, पत्नी का किरदार निभाया. तो वहीं निजी जीवन में लोगों ने मुझे ‘सेक्सिएस्ट ओमन’ माना. मैंने बड़े-बड़े कलाकारों को पछाड़ा. पर यह सब मेरे प्रशंसकों ने ही किया.सेक्सिएस्ट ओमन चुना जाना मेरे लिए बहुत बड़ा काम्पलीमेंट था. यह आसान नही था. पर मैंने अपनी बहू वाली इमेज को तोड़ा. यदि ऐसा न होता, तो शायद आज भी मैं अक्षरा के ही रूप में नजर आ रही होती. बाकी कुछ न कर पाती.

आपको लग रहा है कि टीवी प्रगति कर रहा है या उसका स्तर गिरा है ?

वैसा ही है. बिल्कुल वैसा ही है. आज भी लोगों को सास बहू ही देखना है. अभी भी नागिन चल रहा है. सारा मसला डिमांड व सप्लाई का है.

आपने पंजाबी म्यूजिक वीडियो किए. इसके पीछे आपकी क्या सोच थी ?

मैं अजित सिंह की फैन हूं. इसी वजह से यह म्यूजिक वीडियो किया. यह बहुत ही खूबसूरत गाना था. इसे बहुत ही खूबसूरत तरीके से फिल्माया भी गया. मैं यह मौका छोड़ना नहीं चाहती थी. इसका रिस्पांस भी अच्छा मिला.

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फिल्म ‘‘लाइन्स’’ का जब आपको औफर मिला था, तो आपने सिर्फ फिल्म करने के लिए स्वीकार किया था ?

जी हां! एक वजह यह भी थी कि मुझे टीवी से फिल्म की तरफ जाना था. पर फिल्म ‘लाइन्स’ करने की दूसरी वजह इसके विषय का बहुत अच्छा होना रहा. फरीदा जलाल जी के साथ काम करने का मौका मिल रहा था. मैंने इस फिल्म की शूटिंग के दौरान फरीदा जी बहुत कुछ सीखा. मैं नहीं चाहती थी कि मैं ऐसा मौका गवा दूं. फिर कलाकार की भूख भीथी. मैं कलाकार के तौर पर बहुत ग्रीडी हूं. अगर मेरे पास वक्त है और मुझे 15 से 20 दिन किसी फिल्म को देना है. मुझे पता है कि इसमें पैसे कम हैं, फिर भी यदि कुछ सीखने को मिल रहा हो या कलाकार के तौर पर कुछ अच्छा काम करने का अवसर हो,तो कर लेती हूं.

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फिल्म ‘‘लाइन्स’’ को लेकर क्या कहना रहेंगी ?

जब फिल्म ‘‘लाइन्स’’ भारत में रिलीज होगी, तब हम इस पर विस्तार से बात करेंगे. पर ‘लाइन्स’ एक ऐसी लड़की की कहानी है, जो सीमा पर अपने घर वालों के साथ रहती है. पर कारगिल युद्ध के चलते लड़की परिवार से अलग हो गयी है. उसका आधा परिवार उस तरफ है. उसकी शादी हो चुकी है. अब वह कितनी मेहनत करके किस तरह अपने पति के पास वापस जाती है, उसकी कहानी है.

जब आप अपनी फिल्म ‘‘लाइन्स’’ के साथ पहली ‘‘कान्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल गयीं, तो क्या अनुभव रहे ?

‘कान्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’’में जो प्यार व अनुभव मिला, उसके बारे में सपने में भी नही सोचा था. कान्स से लेकर भारत तक मेरा जिक्र हुआ. मैंने सोचा था कि ‘कान्स’ में जाकर अच्छे अति खूबसूरत कपड़े पहन कर ‘रेड कारपेट’प वॉक करुंगी.कभी यह नही सोचा था कि वहां पर मुझे लोग इतना प्यार देंगे. मैं सच कहूं तो मैंने सुना था कि ऐश्वर्या राय सहित कई अभिनेत्रियां वाक करती हैं. पर जब मैंने खुद वहां  वाक किया, तो मुझे इसकी कीमत@ महत्व पता चला. मैंने पाया कि यह तो बहुत बड़ा प्लेटफार्म है. जब मैं वहां पहुंची, मैंने देखा कि वहां पर दुनिया भसर के बड़े-बड़े कलाकार यूं ही घूम रहे हैं. कई कलाकार मेरे आस पास से गुजर रहे थे. लेकिन कुछ लोगों का कान्स मे रेडकारपेट पर वाक करना पता ही नहीं चलता है. मैं तो अपने आप को लक्की मानती हूं कि मेरा वहां जिक्र हुआ. हिंदुस्तान में भी मेरी चर्चा हुई.

हौलीवुड फिल्म ‘‘कंट्री आफ ब्लाइंड’’ करते हुए भी फिल्म ‘‘हैक्ड’’ क्या सोचकर की ?

फिल्म ‘‘हैक्ड’’ से जुड़ने की मेरी सबसे बहुत बड़ी वजह यह रही कि मैं एक महिला हूं और यह जो कहानी है वह महिला प्रधान है. देखिए, हैक्ड कोई भी इंसान हो सकता है. आपका अकाउंट भी हैक्ड हो सकता है. मेरा भी हो सकता है. किसी का भी हो सकता है. लेकिन यह कहानी एक ऐसे लड़के की है, जो एक लड़की की जिंदगी खराब कर देता है, उसका सब कुछ ‘हैक्ड’ करके. तो मैंने सोचा कि अगर मैं थोड़ी सी भी इंस्प्रेशन महिलाओं को दे सकूं, उन्हें यह प्रेरणा दे सकूं कि ऐसी परिस्थिति में उन्हें क्या करना चाहिए. मैं यह मौका गवाना नहीं चाहती थी. मैंने हमेशा यह बात कही है कि मैं महिला सशक्तिकरण में विश्वास करती हूं. मैं अगर महिलाओं को कोई प्रेरणा दे सकती हूं, तो उसके लिए हमेशा खड़ी रहूंगी. इस फिल्म में वही सब है. इसमें एक 19 वर्ष का युवक एक प्रेम में आबेस्ड होकर उस महिला का एकाउंट हैक्ड कर उसे बर्बाद करने का प्रयास करता है, मगर यह महिला किस तरह खुद को बचाती है, उसी की कहानी है.

हैकिंग को लेकर बहुत सारी खबरें आती रहती हैं.स्क्रिप्ट सुनते समय आपको इसमें क्या नई चीज लगी, जिसकी जानकारी आपको नहीं थी ?

इस फिल्म में सब कुछ नया है. स्टाकर पर आधारित ‘डर’ सहित कई फिल्में बनी हैं, ऐसी कई फिल्में बनी हैं, जहां एक आशिक होता है और वह लड़की को रोकता है, जबकि लड़की किसी अन्य से प्यार करती है. उपरी सतह पर इस फिल्म की भी कहानी वही है, लेकिन यह कहानी आज के जमाने से रिलेट करती है. इस कहानी का मूल हिस्सा ‘साइबर क्राइम’ है, जिससे लगभग हर कोई पीड़ित है. तो ‘हैक्ड’ की कहानी में स्टाकर से ज्यादा साइबर क्राइम है.आजकल हमारा सब कुछ हैक्ड हो चुका है. इसीलिए हमारी फिल्म ‘हैक्ड’ की टैग लाइन @हैशटैग है- ‘‘नो व्हेयर टू हाइड.’ यानी कि अब कोई जगह नहीं है, जहां आप अपनी निजिता को छिपा सकें. अब तो सब कुछ फोन पर है. आपका बैंक अकाउंट, आपका मेल, आपकी पर्सनल डिटेल ,पिन नंबर वगैरह सब कुछ मेाबाइल में है. साइबर क्राइम से जुड़े हैकर इसी का इस्तेमाल करके आप को ब्लैकमेल करते हैं.

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फिल्म ‘‘हैक्ड’’ के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगी ?

मैंने समीरा खन्ना का किरदार निभाया है, जो कि एक फैशन पत्रिका की एडीटर है.फिल्म में सभी उसे ‘सैम’बुलाते हैं.मेरा निक नेम सैम है. कहानी वहां से शुरू होती है. सैम एक बहुत प्रोफेशनल, बहुत सक्सेसफुल है. लेकिन उसकी निजी जिंदगी बहुत खराब है. उसकी बिल्डिंग में एक 19 साल का लड़का है, जो सैम से प्यार करता है.बहुत ही ज्यादा प्यार करता है.जबकि सैम को उसमें कोई रूचि नही है. सैम और उसकी उम्र में इतना बड़ा अंतर है कि प्यार की बात सोच ही नही सकती. सैम को एक अन्य पुरूष से प्यार है. फिर बीच में कुछ ऐसी चीजें हो जाती हैं कि यह युवक सैम के पर में बावला हो जाता है. लेकिन सैम उसे बिल्कुल भी भाव नहीं देती, तो वह सैम की जिंदगी खराब कर देता है. फिर सैम  कैसे उससे लड़ती है. यही फिल्म है. हर औरत के लिए प्रेरणा है कि सैम ने उसको कैसे हराया.

चर्चा है कि फिल्म ‘‘हैक्ड’’में आपने इंटीमेट सीन भी किए हैं ?

जी हां! न किए हैं. जितनी कहानी व पटकथा की जरुरत थी. इस फिल्म में भी कुछ इंटीमेट सीन है. मैं आपको सच बताउं, तो हर कलाकार का अपना दायरा, अपनी सीमाएं होती हैं, मैने अपनी सीमाओं को लेकर पहले ही फिल्म के निर्देशक विक्रम भट्ट जी को बता दिया था. और उतना ही किया है. इस फिल्म में जितना जरुरी है, उतना ही है.कई फिल्मकार कुछ फिल्मों में जबरन ढेर सारे इंटीमेट सीन व अन्य बोल्ड दृश्य फिल्माते हैं, यह सोचकर कि इन दृश्यों के चलते दर्शक फिल्म देखने आएगा, पर मुझे यह जरुरी नहीं लगता.

मैं आपको सच बताउं तो रियालिस्टिक सिनेमा के दौर में गाली गलौज, मरामारी,हिंसा आदि दिखा रहे हैं,तो यह सब भी दिखाना पडे़गा. क्योंकि इंटीमेट, प्यार, किसिंग वगैरह भी हम सभी की जिंदगी का हिस्सा है. अब यह थोड़ा बहुत आपके उपर हैं.

आपका कश्मीर का जन्म है. कश्मीर जाती हैं ?

मेरा कश्मीर जाना बहुत कम हुआ.मैं अपने काम में ही व्यस्त रही.मैं जो कर रही हूं, उससे खुश हूं.

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आपके शौक क्या हैं ?

गाने गाना. यात्राएं करना .पेटिंग बनाना. मैंने सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में अक्षरा का किरदार निभाते हुए एक लोरी खुद ही गयी थी. फिलहाल अभिनय में ही व्यस्त हूं, गाने की सोच नहीं रही हूं.

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किस तरह की पेंटिग्स बनाती है ?

सच कहूं तो पिछले तीन चार वर्ष से पेटिंग्स बनाने का वक्त नही मिला. बचपन मे मैंने बहुत पेटिंग्स बनायी, कभी घर आएं, दिखाउंगी.

यात्रा करना ?

मैंने हर यात्रा में बहुत कुछ सीखा. भारत में मुझे राजस्थान जाना बहुत पसंद है और हिंदुस्तान से बाहर न्यूयार्क व लंदन बहुत पसंद है.

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