ईश्वर, अल्लाह, खुदा एक ऐसी परिकल्पना है, जिसके होने या न होने की कोई सटीक जानकारी इन्सान को कभी उपलब्ध नहीं हुई. फिर भी इस परिकल्पना में विश्वास रखने वाले लोग अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा उससे जुड़े विभिन्न अनुष्ठानों, धार्मिक क्रियाकलापों, व्रत, त्योहार, तीर्थयात्राओं, दान-पुण्य इत्यादि में व्यतीत कर देते हैं. अधिकांश चीजें तो हम इस डर से करते हैं कि न किया तो लोग क्या कहेंगे? इन चीजों में मनुष्य का बहुत सारा धन, समय और संसाधन लगते हैं. इन्सान हमेशा से अपनी ऊर्जा, धन और जीवन उस चीज के लिए खपा रहा है, जिसके बारे में यह गारन्टी आज तक नहीं मिली कि सचमुच में वह है भी, या नहीं. हम बात कर रहे हैं ‘ईश्वर’ की.

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विज्ञान मानता है कि धरती पर इन्सान की उत्पत्ति कोई तीन लाख साल पहले हुई है, मगर इस लम्बे समय-काल में एक भी ऐसी प्रमाणिक घटना सामने नहीं आयी, जब किसी मनुष्य ने ईश्वर से मुलाकात की कोई सटीक और प्रमाणिक जानकारी दी हो. न जन्म लेकर आने वाले किसी मनुष्य ने कहा कि वह ईश्वर से मिल कर आ रहा है और न मृत्यु के बाद किसी ने लौट कर बताया कि उसने ईश्वर को या उसके सदृश्य किसी को देखा. ईश्वर है या नहीं, इस पर सदियों से संशय बना हुआ है. उसके बारे में असंख्य सवाल हैं कि वह है तो कैसा है? वह कहां है? उसने सृष्टि की रचना क्यों की? उसने मनुष्य की रचना क्यों की? उसने अन्य जीवों की रचना क्यों की? जीवन और मृत्यु का रहस्य क्या है? ईश्वर के नाम पर जो धार्मिक कर्म हम करते हैं क्या उन्हें करने का आदेश ईश्वर ने स्वयं दिया है? दिया तो कब और किसको दिया? अगर हम उस आदेश का पालन न करें तो क्या वह हमें दण्डित करता है? इस धरती पर सिर्फ मनुष्य ही ईश्वर के नाम पर अराधना, भक्ति, पूजा-पाठ, दान-पुण्य, लड़ाई-झगड़ा, जंग या कत्लेआम क्यों करता है, अन्य जीव-जन्तु ईश्वर के नाम पर यह सारे कर्म क्यों नहीं करते? क्या उनको यह छूट ईश्वर ने प्रदान की है? आदि, आदि.

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