लिवर हमारे शरीर का अहम हिस्सा है. खाना पचाना, ब्लीडिंग रोकना, ऐनर्जी स्टोर कर इन्फैक्शन से लड़ना इस का अहम काम है. लिवर मानव शरीर का खास अंग है। इस अंग की खासियत यह है कि कोई भी नुकसान होने पर खुद ही भरपाई कर लेता है. अगर लिवर में लंबे समय तक सूजन या इन्फैक्शन रहे तो इस को स्थाई तौर पर नुकसान पहुंच सकता है. लिवर में इसी तरह की बीमारी का नाम है हैपेटाइटिस।

हैपेटाइटिस के प्रकार

हैपेटाइटिस एक तरह का वायरस है। ए, बी, सी, डी और ई हैपेटाइटिस वायरस अलगअलग गुणों वाले होते हैं. हैपेटाइटिस के ए.बी.सी. और ई मूल वायरस हैं और डी वायरस बहुत कम मामलों में सामने आता है। इसलिए इसे डेल्टा वायरस कहते हैं.

लक्षण और नुकसान के आधार पर हैपेटाइटिस के डी और बी, ए और ई और बी और सी वायरस को एकसाथ रखा जा सकता है.

डी और बी

डी वायरस बहुत कम मामलों में सामने आता है और यह वायरस अगर बी से मिल कर प्रतिकिया करता है तो काफी घातक होता है. अमूमन मामलों में ही इन का संयोग होता है, अगर इन का संयोग होता है तो लिवर पर तेज प्रहार का खतरा होता है। कई मामलों में यह प्रहार इतना घातक होता है कि पेट के कैंसर होने की संभावना हो जाती है.

ए और ई

ए और ई  वायरस पानी और खाने के जरीए शरीर में आता है. उलटी, बुखार और पीलिया का होना इस के प्रमुख लक्षण हैं. 2-6 सप्ताह में इस इन्फैक्शन का लक्षण सामने आता है. इस तरह के इन्फैक्शन में एक बात खास है कि यह अधिक दिनों तक जीवित नहीं रहते हैं. अधिकतर मामलों में इस तरह का इन्फैक्शन खुुदबखुद खत्म हो जाता है. 1-2 मामलों में ही यह इन्फैक्शन खतरनाक होता है.

बी और सी

बी और सी वायरस प्रदूषित सूई के सेवन से, अल्कोहल, स्टेरायड और प्रदूषित खून के जरीए यह शरीर में आता है. कई बार यह इन्फैक्शन यलो फीवर, डेंगू, टीबी, कैंसर आदि कई तरह के बुखार से और कई तरह के ऐलर्जी वाले रोगों की वजह से होता है. अमूमन इन्फैक्शन का लक्षण 4-6 सप्ताह में सामने आता है. इस इन्फैक्शन को समय रहते नहीं पहचाना गया तो इस का खतरा व्यापक स्तर पर हो जाता है. इस तरह का मामला उन्हीं केसों में सामने आता है, जिन्हें बचपन में ही हैपेटाइटिस का यह इन्फैक्शन हो चुका होता है.

भूख न लगना, वजन कम होना, रंग काला होना, खून की उलटी होना, पेट में पानी का भरा रहना, बुखार का आनाजाना, पीलिया का लगातार रहना होना, यूरिन का रंग गहरा होना इस के प्रमुख लक्षण हैं. एक बात खास है कि इस तरह के इन्फैक्शन में लक्षण जल्दी सामने नहीं आते हैं.

बचाव के उपाय

हैपेटाइटिस इन्फैक्शन का कोई लक्षण अगर मरीज में दिखें या इस से संबंधित कोई शंका हो तो तुरंत डाक्टर की सलाह लें। शुरुआती स्तर पर अगर डाक्टरी जांच को ज्यादा तवज्जो दिया जाए तो जल्द ही मरीज इस के प्रभाव से बाहर निकल कर स्वस्थ हो सकता है. हैपेटाइटिस के टीकों का पूरा चरण जरूर लें। ये टीके हैपेटाइटिस के वायरस से हमारे शरीर को बचाते हैं.

यह भी जानें :

• 50% मौत हैपेटाइटिस में शराब पीने से होती है.

• एकचौथाई हैपेटाइटिस के मामले पीलिया से सामने आते हैं.

• कई बार (ए-ई) मामलों में हैपेटाइटिस का प्रभाव सामान्य जांच प्रक्रिया को पूरा करने के बाद 4-6 हफ्ते में चली जाती है.

• हैपेटाइटिस के ए, बी, सी और ई मूल वायरस हैं और डी डेल्टा वायरस है.

• हैपेटाइटिस डी, बी वायरस का संयोग घातक होता है.

• हैपेटाइटिस का डी वायरस गिनेचुने मामलों में सामने आता है, इसलिए यह डेल्टा के नाम से जाना जाता है.

• हैपेटाइटिस का इलाज संभव है, बशर्ते रोग के बारे में डाक्टर समय के अंदर सबकुछ समझ ले.

• हैपेटाइटिस के टीकों का पूरा चरण हमें जरूर लेना चाहिए। यह हैपेटाइटिस के वायरस से प्रतिरक्षा करने के लिए हमारे शरीर को ताकत देता है.

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