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अजीब दास्तान: भाग 1

कुछ महीनों से लीना महसूस कर रही थी कि उस का पति वासन कुछ बदल सा गया है. पहले, हफ्ते में 2 दिन टूर करता था पर अब हफ्ते में 5 दिन बाहर रहता था. पूछने पर बोलता कि तुम और बच्चे इतना आरामदायक जीवन जी रहे हो, उस के लिए मुझे अधिक काम करना पड़ रहा है. लीना उसे सच मान लेती क्योंकि उसे वासन पर पूरा विश्वास था. टूर से जब वासन वापस आता तो बच्चों के लिए ढेरों उपहार और उस के लिए 2-4 सुंदरसुंदर साडि़यां लाता. उपहार देते समय वासन अपना मनपसंद वाक्य बोलना न भूलता, ‘आई लव माई फैमिली’. ऐसे में वासन पर शक करने की कोई गुुंजाइश ही नहीं थी.

पर आज जब मंगला ने कालेज से वापस घर आ कर पूछा, ‘‘आजकल डैडी का कोई और घर भी है क्या? मेरी एक सहेली ने मुझे आज बताया कि मेरे डैडी कोडमबक्कम में रहते हैं. मैं उस सहेली से लड़ बैठी पर वह अपनी बात की इतनी पक्की थी कि मैं चुप हो गई. अब मैं आप से पूछ रही हूं कि क्या यह सच है?’’ मंगला की इन बातों ने लीना को झकझोर दिया. लीना तो जैसे नींद से जागी हो. लीना के मन में वासन को ले कर कहीं न कहीं ऐसी बात थी पर वह वासन की प्यारभरी बातों में भूल जाती थी. लेकिन आज यह शक सच में बदलता नजर आ रहा था. वह बोली, ‘‘डैडी घर आएंगे तभी सच का पता चलेगा.’’

‘‘मां, इस से पहले ही हम सचाई का पता लगा सकते हैं. उस सहेली का पता मुझे मालूम है. हम वहां चलते हैं,’’ और दोनों मांबेटी कोडमबक्कम जाने के लिए निकल पड़ीं.

वहां जा कर उस बिल्ंिडग में रहने वाले लोगों के नाम वहां लगे बोर्ड पर पढ़े. वासन का नाम वहां नहीं था. वे लौट आईं. 5 दिन बाद जब वासन वापस आया तो परिवार वालों के लिए ढेरों तोहफे लाया. लीना घर में अकेली थी. बच्चे कालेज गए हुए थे. लीना ने आते ही उसे सामने बिठाया और बोली, ‘‘हम लोगों को कब तक गिफ्ट दे कर बहलाओगे? अब मैं सचाई जानना चाहती हूं.’’

‘‘कौन सी सचाई?’’

‘‘अब भी भोले बन रहे हो तुम. क्या जानते नहीं हो कि मैं क्या पूछ रही हूं?’’

‘‘हां, मैं सेल्वी के साथ रहता हूं. हम ने अलग फ्लैट लिया हुआ है. पर यह भी सच है कि मेरा परिवार तो यही है. आई लव माई फैमिली.’’

इतना सुनते ही लीना स्तब्ध रह गई. वह सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि वासन सेल्वी के साथ रह रहा है सेल्वी उन के सब से करीबी दोस्त राजन की पत्नी थी. वह भी सेल्वी को बहुत अच्छी तरह से जानती थी. लीना जानती थी कि राजन और सेल्वी के बीच बहुत झगड़े होते थे. दोनों की शादी घर वालों ने जबरदस्ती करवाई थी. सेल्वी अपने ही मामा के साथ शादी नहीं करना चाहती थी पर उस की नानी, जो बहुत पैसे वाली थी, अपनी बेटी की बेटी को ही बहू बनाना चाहती थी. उन की जाति में मामा ही पहला उम्मीदवार होता है. बड़ों की जोरजबरदस्ती से विवाह तो हो गया था पर विवाह के बाद सेल्वी का जीवन नारकीय हो गया था. सेल्वी राजन को पति के रूप में कभी स्वीकार नहीं कर पाई. ऐसे में वासन और लीना ही दोनों के झगड़े निबटाते थे. इस दौरान वे दोनों कब करीब आ गए, पता ही नहीं चला.

सेल्वी के पति राजन को खबर थी पर वह अपने गम में शराबी बन चुका था. दिनरात शराब पी कर धुत पड़ा रहता था. ऐसे में वासन और सेल्वी ने एक नया आशियाना बना लिया था. दोनों ने एकसाथ रहना शुरू कर दिया था. पिछले 7 महीने से दोनों एकसाथ एक ही फ्लैट में रह रहे थे और वासन अधिक समय सेल्वी के साथ ही गुजारता था. घर में टूर का बहाना बनाना बहुत आसान था. पर आज जब रहस्य खुल ही गया था तो वासन बोला, ‘‘हां, मैं सेल्वी के साथ रहता हूं. उसे मेरी जरूरत है. वह बहुत दुखी है पर मैं ने तुम्हें और बच्चों को तो किसी भी बात की कमी नहीं होने दी है.’’

‘‘पर अब यह सब नहीं चलेगा. तुम्हें आज ही फैसला लेना होगा कि तुम सेल्वी के साथ रहना चाहते हो या हमारे साथ,’’ लीना क्रोध में बोली.

‘‘एक बार फिर सोच लो.’’

‘‘सोच लिया, मुझे अपने बच्चों का भविष्य देखना है. तुम्हारी इस जीवनशैली का जवान होते बच्चों पर क्या असर पड़ेगा? मैं यह सहन नहीं कर सकती.’’

‘‘तो ठीक है, मैं चला जाता हूं,’’ और वासन अपनी अटैची उठा कर घर से बाहर निकल गया.

लीना जोर से चिल्लाई, ‘‘अब कभी वापस मत लौटना, तुम्हारे लिए यहां जगह नहीं है.’

वासन के जाने के बाद लीना चुप बैठ गई. उस ने स्वयं को कभी भी इतना असहाय नहीं पाया था. वासन को शराब की लत तो बहुत पहले से थी. उस लत को वह किसी प्रकार सहन करती थी. वासन का आधी रात के बाद नशे की हालत में घर लौटना उस ने अपनी आदत में शामिल कर लिया था. पर बच्चों के लिए वह सांताक्लौज जैसा था जो उन्हें उपहारों से लादता रहता था. बच्चों को इस के अलावा वासन से कुछ भी प्राप्त नहीं होता था. उस के पास समय नहीं था बच्चों से बात करने का या उन की कोई समस्या सुलझाने का. वह तो यह भी नहीं जानता था कि बच्चे कौन से कालेज में जाते हैं और क्या पढ़ते हैं. पैसा दे कर ही उस की जिम्मेदारी पूरी हो जाती थी.

ऐसी परिस्थितियों को झेलतेझेलते लीना भी कठोर बन गई थी. वह अब बातबात में रोने वाली लीना नहीं थी. उस ने वासन की इस प्रतिक्रिया को भी सहज रूप से स्वीकार कर लिया था. उस ने मन में निश्चय किया था कि वह वासन को फिर कभी इस घर में वापस नहीं आने देगी. जिस आदमी ने इतनी आसानी से रिश्ता तोड़ लिया हो, ऐसे आदमी के लिए वह न रोएगी और न झुकेगी. मंगला और शुभम ने जब डैडी के लिए पूछा तो लीना ने बिना कुछ भी छिपाए सबकुछ बता दिया. वह बोली, ‘‘अब तुम्हारे डैडी यहां कभी नहीं आएंगे. अब वे अलग घर में सेल्वी आंटी के साथ रहते हैं, अब तुम लोग भी उन का नाम इस घर में मेरे सामने कभी नहीं लोगे. उन के बिना हम अच्छी तरह से जीएंगे. तुम लोग अपनी पढ़ाई करो और मेरा सपना पूरा करो. मंगला को डाक्टर बनना है और शुभम को इंजीनियर बनना है.’’

#coronavirus: कोरोना के कहर में गाँवों का भी दिखने लगा है क्रूर चेहरा

  • ज़िला पुरुलिया के एक गांव में जो श्रमिक चेन्नै से लौटे थे उन्हें अपने आपको पेड़ों की शाखों पर क्वारंटाइन करना पड़ रहा है.शाखों पर ही उन्हें अपने कपड़े आदि बांधने पड़ रहे हैं.
  • सुजीत राव जब पंजाब से ज़िला औरंगाबाद स्थित अपने गांव धनौटी लौटा तो गांव के तीनों प्रवेश मार्गों पर बैरिकेड लगे थे, गांव के ही लड़के डंडे लिए चौकीदारी कर रहे थे – बाहर से लौटने वाले का गांव में प्रवेश वर्जित था.राव ने कुछ दिन पीएचसी पर गुज़ारे, डाक्टरों से ‘क्लीन चिट’ मिलने पर ही वह अपने गांव में प्रवेश कर सका.
  • नोएडा से गांव रामपट्टी (ज़िला मधुबनी) लौटने वाले सज्जन ठाकुर, जो अब शेल्टर बने सरकारी स्कूल में शरण लिए हुए है, का कहना है,“मैं बेसहारा व भूखा जब अपने गांव लौटा तो मुझे मेरे ही घर में घुसने नहीं दिया गया, अब मैं जाऊं तो जाऊं कहां?”

ये तमाम तथ्य बताते हैं देशव्यापी लॉकडाउन के कारण जो सैंकड़ो हजारों श्रमिक भूख व पैदल सफर करने से पड़े पैरों के छालों को बर्दाश्त करते हुए उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड, बिहार व बंगाल स्थित अपने गांव या कस्बों में लौटे हैं,उनकी परेशानियों पर अभी विराम नहीं लगा है.कहीं कहीं तो उन्हें सामाजिक बहिष्कार की स्थिति तक का सामना करना पड़ रहा है.ऐसे कई लोगों को उनके गांव में ही प्रवेश नहीं दिया जा रहा है.कुछ को अपने घर से दूर शेल्टर या क्वारंटाइन केन्द्रों में रहना पड़ रहा है,बशर्ते कि उनके ज़िले में ऐसा कोई केंद्र हो, वर्ना उनके लिए अस्थाई व्यवस्था करनी पड़ रही.

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जो लोग छुपते छुपाते अपने घर पहुंच गये हैं और सामाजिक बहिष्कार जैसी स्थिति से नहीं गुजरना पड़ा है,उनके लिए अन्य प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं.अनेक मामलों में हिंसा के रूप में भी ये समस्या सामने आयी है. इस सिलसिले में यहां दो उदाहरण देना ही पर्याप्त होगा. उत्तर प्रदेश में शैलेन्द्र यादव नोएडा से ज़िला मैनपुरी स्थित अपने गांव अलीपुर लौटा.उसके आगे पीछे ही उसके दो भाई बिजेंद्र यादव व उपेन्द्र यादव और भतीजा गौरव यादव भी गांव लौटे. सभी नोएडा व गुड़गांव में कैब चालक हैं.शैलेन्द्र ने अपने साले विनय यादव को धमकी दी कि वह उनके आने की खबर ज़िला मुख्यालय को न दे ताकि वह टेस्ट व क्वारंटाइन से बच जायें.लेकिन विनय के समक्ष दो बातें थीं – एक यह कि वह ‘रोज़गार सेवक’ है जिसका काम गांव लौटने वाले व्यक्तियों की सूचना प्रशासन को देना है; दूसरा यह कि वह गांव को सुरक्षित रखना चाहता था,यह सुनिश्चित करके कि नोएडा से लौटने वाला कोई कोरोना वायरस से संक्रमित न हो.

ध्यान रहे कि नोएडा से लौटने वाले फैक्ट्री श्रमिक बरेली आदि जगहों पर अपने संबंधियों को संक्रमित कर चुके हैं. इसलिए विनय ने अलीपुर लौटने वाले सभी व्यक्तियों के नाम ज़िला प्रशासन को दे दिए.इस पर शैलेन्द्र भड़क उठा. पुलिस के अनुसार उसने विनय के घर पहुंचकर उसपर गोली चला दी,जो कि पास खड़ी विनय की साली संध्या को लग गयी. 36-वर्षीय संध्या की मौके पर ही मौत हो गई.लॉकडाउन के चलते बढ़ते घरेलू झगड़े भी त्रासदी की एक से एक भयानक पटकथाएं लिख रहे हैं. मसलन, शिकारपुर (ज़िला बुलंदशहर) में पुलिस के अनुसार बॉबी नामक व्यक्ति लॉकडाउन के कारण हरियाणा से घर लौट आया था. 31 मार्च को उसका अपनी पत्नी से झगड़ा हुआ, उसी शाम को उसकी पत्नी अपने दो बच्चों के साथ कमरे में बंद हो गई, बच्चों पर व खुद पर मिट्टी का तेल छिड़का और आग लगा ली.बच्चे मौके पर ही मर गये और बॉबी की पत्नी ने पीएचसी पर जाकर दम तोड़ा.

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दरअसल, घर लौट रहे लोगों को जो कठिनाइयां हो रही हैं,उनको पूरी तरह शब्दों के ज़रिये व्यक्त करना आसान नहीं है.हर जगह अलग अलग प्रकार के दर्द हैं.बंगाल में महाराष्ट्र, केरल व कर्नाटक से हज़ारों की तादाद में मज़दूर लौटे हैं.उनमें से अधिकतर का कहना है कि उन्हें नहीं मालूम कि उन्हें अपना जॉब वापस मिलेगा या नहीं.हुगली में लौटे एक श्रमिक के लिए अपनी पत्नी व तीन बच्चों का पेट भरना मुश्किल हो गया है; उसका कहना है, “मैं पुणे में राज मिस्त्री  का काम करता था.लौटने पर मुझे नये सिरे से काम शुरू करना पड़ेगा.मेरे पास न खेती की ज़मीन है और न ही आय का कोई अन्य साधन.”

अन्य श्रमिकों का कहना है कि जल्दबाजी में लौटने के कारण उन्हें अपना मेहनताना भी नहीं मिल सका था.समस्या सिर्फ आर्थिक नहीं है बल्कि सामाजिक बहिष्कार की भी है. कुछ की स्थिति तो ‘अछूतों’ जैसी हो गई है; कानूनन प्रतिबंधित अस्पर्श्यता नये अवतार में लौट आयी है. उत्तर प्रदेश से बंगाल तक लगभग हर गांव में यही स्थिति है. शेल्टर बने इन स्कूलों में स्थिति बदतर है, मवेशियों की तरह हज़ारों मजदूरों को एक जगह ठूंस दिया गया है, जहां खाने पीने, हाइजीन आदि की कोई व्यवस्था नहीं है.मुंगेर में तो यह मज़दूर इतने त्रस्त हुए कि लोहे का दरवाज़ा तोड़ कर ही ‘फरार’ हो गये.

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एक अनुमान के तहत बिहार में पिछले कुछ दिनों के दौरान 1.86 लाख मज़दूर विभिन्न राज्यों से लौटे हैं.राज्य स्वास्थ विभाग ने वापसी पर सभी के टेस्ट के आदेश दिए हैं.जो लोग अपने घरों में क्वारंटाइन के तहत हैं, उनमें से कुछ के घरों पर पुलिस ने पैम्फलेट चस्पा कर दिए हैं कि कोई उनसे मिलने के लिए न आये. उनके हाथों पर भी क्वारंटाइन में होने की मोहर लगा दी गई है. क्वारंटाइन व सोशल डिस्टेंसिंग आवश्यक है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता, लोग स्वयं भी सावधानी बरत रहे हैं, लेकिन पैम्फलेट व मोहर तो एक तरह से इन मजदूरों को ‘कलंकित’ कर रहे हैं.आशंका यह है कि नेगेटिव की पुष्टि होने पर भी उन्हें सामाजिक बहिष्कार का लम्बे समय तक सामना करना पड़ सकता है.

#lockdown: घर पर ही पूरी करें बच्चों की जिद

भारत में भले ही 14 अप्रैल तक तालाबंदी के चलते बच्चे घरों से बाहर नहीं निकल पा रहे है, लेकिन बच्चों के घर पर रह कर ही उन की मांग पूरी की जा सकती है. वह भी बिना सब्जी के क्योंकि बहुत से बच्चे सब्जी खाना पसंद नहीं करते.

कुछ व्यंजन ऐसे हैं जो आज की पीढी लगभग भूल चुकी है, उन्हें बना कर बच्चों को खिलाने से घरेलू महिलाओं का दिन अच्छे से निकल जाएगा और बच्चों को हर रोज नया डिश खाने को मिलेगा.

यदि घर में मां या दादी हों तो उन से यह व्यंजन जो आप को पता नहीं है, बनाना सीखें और आनन्द लें.

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विकल्प है…
– दही का रायता (प्रतिदिन)
– कढ़ी (हफ्ते में दो बार)
– गट्टे (हफ्ते में दो बार)
– दाल (एक टाइम हफ्ते में )
– राजमा (हफ्ते में दो बार)
– छोले (हफ्ते में दो बार)
– मंगोड़ी
– मूंग भिगो कर अंकुरित कर के
-गोरी मोठ भिगो कर अंकुरित कर के
-चना भिगो कर, छूकना
-दाना मेथी भिगो कर छोंक कर खाना
– सांगरी
-लहसुन की चटनी
-बेसन का चीला
-मूंग मोगर
– नमकीन मट्ठी
-पापड़
– बेसन के सेब
– चना दाल
– हल्वा
– खीर
-खिचड़ी
– दाल ढोकला
-खाटा व लापसी

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इन चीजों को बना कर भी खिलाया जा सकता है. बच्चे भी मजा ले कर खाएंगे. आप को बाजार से सब्जियों के खरीदने के लिए जाने की भी जरूरत नहीं होगी.तो एक बार बना कर देखिए और इन छुट्टियों को बच्चों के साथ एंजॉय कीजिए.

टूटा जाल शिकारी का : भाग 1

28अक्तूबर, 2019 को ग्रेटर नोएडा की फास्ट ट्रैक कोर्ट-2 में काफी भीड़ थी. दोनों पक्षों के वकील, पुलिस और तीनों आरोपी चंद्रमोहन शर्मा, प्रीति नागर, विदेश अदालत में मौजूद थे. उस दिन फास्ट ट्रैक कोर्ट के न्यायाधीश निरंजन कुमार एक ऐसे केस में सजा सुनाने वाले थे, जिस में शातिराना ढंग से खुद को मृत साबित करने के लिए चंद्रमोहन शर्मा ने एक पागल व्यक्ति को अपनी कार में बैठा कर जिंदा जला दिया था.

दोनों पक्षों की बहस पूरी हो चुकी थी. पिछली तारीख पर अदालत चंद्रमोहन को भादंवि की धारा 302 के तहत दोषी भी ठहरा चुकी थी. उस दिन सिर्फ फैसला सुनाया जाना था. प्राथमिक काररवाई निपटाने के बाद न्यायाधीश निरंजन कुमार ने फैसला सुनाते हुए चंद्रमोहन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

दरअसल 28 अक्तूबर, 2019 को ग्रेटर नोएडा की फास्ट ट्रैक कोर्ट-2 के न्यायाधीश निरंजन कुमार ने जो फैसला सुनाया, उस की शुरुआत 7 जून, 2014 की शाम को तब हुई थी, जब शाम करीब 7 बजे अचानक एक लड़की का अपहरण हो गया.

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दिल्ली से सटे गौतमबुद्ध नगर जिले के ग्रेटर नोएडा में अल्फा- 2, सेक्टर के मकान नंबर आई-33 में रहने वाले संतराम नागर की बेटी प्रीति नागर (22) अपने घर के बाहर से रहस्यमय ढंग से गायब हो गई.

प्रीति नागर शाम के अंधेरे में घर के बाहर बिछी चारपाई उठाने आई थी और गायब हो गई. चूंकि उस वक्त इलाके में बिजली नहीं थी इसलिए किसी ने भी प्रीति को कहीं आतेजाते नहीं देखा था. प्रीति को इधरउधर तलाश करने के बाद उस के पिता संतराम ने पुलिस कंट्रोल रूम को 100 नंबर पर फोन कर के इत्तिला दे दी.

सूचना मिलने के बाद कासना थाने की पुलिस मौके पर पहुंच गई. संतराम नागर ने पुलिस को वे सारी बातें बता दीं, जो प्रीति के गायब होने से जुड़ी थीं. पुलिस ने संतराम नागर व आसपड़ोस के लोगों के बयान दर्ज किए. फिर अगली सुबह संतराम की शिकायत पर थाना कासना में धारा 364 के तहत प्रीति के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

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8 जून को प्रीति के अपहरण की जांच का केस एसआई विनय शर्मा के सुपुर्द कर दिया गया. जांच का काम संभालते ही जांच अधिकारी शर्मा अपनी टीम के साथ संतराम के घर पहुंचे और विवेचना शुरू कर दी.

तमाम बिंदुओं पर पूछताछ और जांच करने के बाद विनय शर्मा किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए. प्रीति का कहीं भी कोई सुराग नहीं मिला. अचानक 2 महीने बाद 9 अगस्त, 2014 को प्रीति के पिता संतराम के मोबाइल पर एक अनजान नंबर से काल आई. काल करने वाले ने अपना नाम बताए बिना कहा कि वह तिरुपति बालाजी से बोल रहा है और उन की बेटी प्रीति उस के पास है.

फोन करने वाले ने बताया कि प्रीति कुछ गलत लोगों के चंगुल में फंस गई थी, लेकिन किसी तरह वह बच गई और अब उस के पास है. फोनकर्ता ने संतराम से आगे कहा कि वह तिरुपति बालाजी पहुंच जाएं, वह उन से बालाजी में मिलेगा और उन की बेटी उन के सुपुर्द कर देगा. काफी अनुरोध करने पर भी उस ने अपना नामपता नहीं बताया.

संतराम ने कासना थाने जा कर इस फोन के बारे में जांच अधिकारी विनय शर्मा को बताया.

शर्मा ने तुंरत उस फोन के बारे में साइबर सेल से जानकारी हासिल की तो पता चला कि जिस नंबर से संतराम को काल आई थी, उस की लोकेशन बंगलुरु के एक पीसीओ की थी.

विनय शर्मा ने थानाप्रभारी समरपाल सिंह और एसएसपी को इस जानकारी से अवगत कराया तो उन्होंने 13 अगस्त, 2014 को विनय शर्मा को कांस्टेबल धामा के साथ बंगलुरु रवाना कर दिया. उन के साथ संतराम भी अपने साले के साथ बंगलुरु पहुंच गए.

बंगलुरु पहुंच कर विनय शर्मा सब से पहले उस पीसीओ पर पहुंचे, जहां से संतराम के मोबाइल पर फोन किया था. लेकिन उस पीसीओ के संचालक से फोन करने वाले की पहचान के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं मिल सकी. संयोग से उसी दिन संतराम के मोबाइल पर लोकल नंबर से एक और काल आई.

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फोन उसी व्यक्ति का था, जिस ने पहले फोन किया था. लेकिन इस बार फोन करने वाला काफी गुस्से में था उस ने पुलिस को साथ ले कर आने के लिए संतराम को खूब खरीखोटी सुनाई. संतराम ने उसे समझाने की कोशिश की कि उस का इरादा गलत नहीं था, लेकिन फोन करने वाला इतने गुस्से में था कि उस ने प्रीति का बुरा अंजाम करने की धमकी दे कर फोन काट दिया.

संतराम ने जब उसी नंबर पर काल बैक की तो फोन स्विच्ड औफ हो चुका था. जांच अधिकारी विनय शर्मा संतराम के साथ ही थे. वे समझ गए कि फोन करने वाला उन पर नजर रख रहा है. जिस नंबर से संतराम को फोन आया था, विनय शर्मा ने वह नंबर नोएडा में बैठी अपनी साइबर टीम को भेज दिया तो पता चला कि वह नंबर बंगलुरु के ही एक पीसीओ का है.

विनय शर्मा ने तत्काल पता नोट किया और बताए गए पते पर पहुंच गए. पीसीओ के मालिक से जब फोन करने वाले की बाबत जानकारी मांगी, तो वह उस के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं दे सका. क्योंकि पीसीओ पर तमाम लोग आते हैं और सब के बारे में जानकारी रखना पीसीओ वाले के लिए संभव नहीं होता.

निराश हो कर 1-2 दिन बाद संतराम बंगलुरु से नोएडा लौट आए. अब जांच के सारे दरवाजे बंद हो चुके थे. लेकिन उच्चाधिकारियों  के आदेश के कारण विनय शर्मा अपने कांस्टेबल धामा के साथ वहीं रुके रहे और अपनी जांचपड़ताल करते रहे.

इस बीच संतराम जब नोएडा पहुंच गए तो 15 अगस्त को उसी अज्ञात फोन करने वाले ने फिर फोन किया. उस ने संतराम से कहा कि उन की लड़की के गिड़गिड़ाने की वजह से वह उसे छोड़ देगा, लेकिन शर्त यह है कि वह इस बार अकेला आए और अगली सुबह तिरुपति बालाजी मंदिर के बाहर उस का इंतजार करे.

संतराम ने तुरंत फ्लाइट पकड़ी और तिरुपति बालाजी मंदिर पहुंच गए. इस दौरान उन्होंने फोन कर के विनय शर्मा को भी ये बात बता दी थी. फलस्वरूप 16 अगस्त की सुबह विनय शर्मा संतराम व उन के साले के साथ फोन करने वाले का इंतजार करने लगे.

लेकिन अज्ञात फोनकर्ता ने इस बार भी धोखा दे दिया . देर शाम तक इंतजार करने के बाद वे फिर निराश हो गए, क्योंकि न तो फोन करने वाला आया और न ही उस की कोई काल आई. हालांकि इस बार जांच अधिकारी ने सावधानी बरतते हुए खुद को संतराम के से दूर रखा था. निराश हो कर संतराम नोएडा लौट आए.

वह यह मान बैठे थे कि उन्हें कोई परेशान करने के लिए ऐसा कर रहा है. लेकिन विनय शर्मा इस बार भी वापस नहीं लौटे. और प्रीति के फोटो के आधार पर थानेथाने जा कर वह उस की तलाश करते रहे.

जिस वक्त पुलिस टीम प्रीति को बंगलुरु में तलाश कर रही थी, 22 अगस्त, 2014 को संतराम ने विनय शर्मा को फोन कर के बताया कि उन के पास फोन करने वाले का एक और धमकी भरा फोन आया है. इस बार उस ने प्रीति को जान से मारने की धमकी दी है.

संतराम ने बताया कि इस बार फोनकर्ता ने एक अन्य नंबर का इस्तेमाल किया था. विनय शर्मा के मांगने पर संतराम ने उन्हें वह नंबर नोट करा दिया.

एसआई विनय शर्मा ने वह नंबर साइबर टीम को भेज कर पता करा लिया कि वह नंबर बंगलुरु में हांसे कोटे इलाके के एक पीसीओ का है.

पता मिलते ही विनय शर्मा पीसीओ मालिक के पास पहुंच गए. यहां भी पीसीओ संचालक से उन्होंने फोनकर्ता की जानकारी जुटाने की कोशिश की, मगर कोई खास सफलता नहीं मिली. फिर भी इस बार उन्हें एक क्लू जरूर मिल गया.

विनय शर्मा की नजर पीसीओ के सामने स्थित एक ज्वैलरी शौप पर पड़ी. ज्वैलरी शौप के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगा था. सीसीटीवी कैमरा देखते ही विनय शर्मा का चेहरा खिल उठा. उन्होंने पीसीओ के संचालक के साथ जा कर ज्वैलरी शौप संचालक को अपना परिचय दिया और सीसीटीवी फुटेज दिखाने का अनुरोध किया.

ज्वैलरी शौप के मालिक ने विनय शर्मा को सहयोग करते हुए उक्त समय की वीडियो फुटेज दिखा दी.

संयोग की बात थी कि पीसीओ ज्वैलरी शौप के सीसीटीवी कैमरे की रेंज में था. विनय शर्मा के साथ सीसीटीवी देख रहे पीसीओ संचालक ने सफेद पैंट, काली जैकेट और काले जूते पहने एक गंजे व्यक्ति को देख कर बताया कि उस के पीसीओ पर वही शख्स आया था. काल करने के बाद वह वापस चला गया था. वापस लौटते हुए उस शख्स का चेहरा पूरी तरह कैमरे की जद में आ गया था.

उस आदमी की वेशभूषा देख कर ज्वैलरी शौप के मालिक ने बताया कि यह व्यक्ति जो ड्रेस पहने है, वह कोलार में दुपहिया वाहन बनाने वाली होंडा फैक्ट्री के कर्मचारियों की ड्रेस है. यह सुराग डूबते को तिनके का सहारा मिलने जैसा था.

आगे की छानबीन के लिए विनय शर्मा ने ज्वैलरी शौप के संचालक से उस फुटेज की कौपी ले कर अपनी टीम के साथ कोलार के नस्सापुर स्थित टू व्हीलर बनाने वाली होंडा कंपनी के औफिस में पहुंच गए.

जांच अधिकारी ने मैनेजर को पूरा मामला बताया. उस से पूछा गया कि क्या पिछले कुछ महीनों में उन के यहां किसी उत्तर भारतीय कर्मचारी ने नौकरी जौइन की है. इस के जवाब में मैनेजर ने उन्हें पिछले 3 महीनों में नौकरी जौइन करने वाले 3 कर्मचारियों का फोटो समेत बायोडाटा मिल गया.

तीनों बायोडाटा देखने के बाद विनय शर्मा की नजर एक शख्स पर अटक गई, क्योंकि वह उन का जानापहचाना था.

वह शख्स चंद्रमोहन शर्मा था, लेकिन बायोडाटा में उस का नाम नितिन लिखा था, जिस ने 6 मई, 2014 को फिटर कर्मचारी के रूप में उन के यहां नौकरी जौइन की थी. उस ने अपना मूल पता हरियाणा, हिसार लिखवाया था.

चंद्रमोहन को विनय अच्छी तरह जानते थे. क्योंकि वह नोएडा का एक आरटीआई एक्टिविस्ट था और वह उस से कई बार मिले भी थे. लेकिन उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि चंद्रमोहन यहां क्या कर रहा है और उस ने अपना नाम नितिन क्यों लिखवाया है. साथ ही प्रीति की तलाश करतेकरते उन्हें चंद्रमोहन की बंगलुरु में उपस्थिति समझ नहीं आ रही थी.

जब मेरी जिंदगी में हुआ Lockdown: मिला अपनों का साथ, लौट आया बचपन

लेखक: Divesh Kumar Gola

घर पर रहना हम सभी को अच्छा लगता है, खासकर तब जब आपको परिवार के साथ रहने का समय न मिलता हो. मैं और मेरे मित्रों के साथ भी कुछ ऐसा ही है. मैं और मेरी पत्नी, हम दोनों ही नौकरी करते हैं, और हमें साथ रहने का समय नहीं मिल पाता है, और इस लॉकडाउन ने सिर्फ हमें ही नहीं, हमारे जैसे बहोत से परिवारों को साथ समय बिताने का मौक़ा दिया है.

छूटी बुरी लत…

मेरे कुछ रिश्तेदारों और मित्रों को सिगरेट और शराब की लत थी, लेकिन लॉकडाउन में बाहर न निकल पाने की वजह से उनकी ये लत भी छूट गई है. मैं अपने बेटे के साथ उसकी पसंदीदा खेल खेलता हूं तो बहोत अच्छा लगता है, लगता है जैसे इस लॉकडाउन ने मेरा बचपन मुझे वापस लौटा दिया है.

मिला परिवार का साथ…

एक साथ बैठकर कर हम सभी कार्यक्रमों का आनंद उठाते हैं, और परिवार के बच्चे उनसे जुड़े हुए प्रश्न पूछते हैं, जिससे उन्हें ज्ञान प्राप्त होता है जिसे हम समय के साथ लगभग खो चुके हैं.

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लॉकडाउन के नुकसान भी…

लेकिन ऐसा नहीं है कि इस लॉकडाउन से सिर्फ फायदे ही हुए हैं, इस लॉकडाउन के परिणामस्वरूप बाहर न निकल पाने की वजह से हमें अपनी मूलभूत जरूरतों की चीजों के लिए भी जूझना पड़ रहा है. बच्चों के स्कूल सेशन चालू हो चुके हैं, लेकिन वे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं जिससे उनकी शिक्षा का नुकसान हो रहा है. इसका पूरे देश पर भी बुरे प्रभाव पड़ रहे हैं.

समाजिक और आर्थिक नुकसान…

इसने हमारे देश की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से ध्वस्त कर दिया है. लोग अपनी दुकानें नहीं खोल पा रहे हैं, अपने कामों पर नहीं जा पा रहे हैं. हमारा परिवार भले ही एक साथ बैठा हो, लेकिन वो लोग जो इस लॉकडाउन का पालन करवाने के लिए अग्रसर हैं, उन्हें चौबीसों घंटे अपने घर से दूर रहना पड़ रहा है. देश में इमर्जेंसी जैसे हालात पैदा हो गए हैं. लोगों के अंतिम समय मे उन्हें चार कंधे भी नहीं मिल पा रहे हैं. लगभग सभी लोगों को छोटी बड़ी, हर तरह की परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.

जल्दी खत्म हो लॉकडाउन…

बात अगर इस लॉकडाउन को आगे बढ़ाने की की जाए, तो हमें ये समझना होगा कि भले ही मुझे और मेरे परिवार को एक साथ समय बिताने का मौका मिला हो, लेकिन इसकी वजह से होने वाली परेशानियों को देखते हुए और पूरे देश पर पड़ रहे इसके दुष्प्रभावों को देखते हुए, मैं ईश्वर से यही प्रार्थना करूंगा कि ये लॉकडाउन जल्द से जल्द समाप्त हो और लोगों का जीवन सामन्य हो जाए.

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जब मेरी जिंदगी में हुआ ‘LOCKDOWN’- जो भी आपके मन में चल रहा है वो हमें बताइए. ताकि हम दुनिया तक आपकी बात पहुंचा सके.
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कोरोनावायरस प्रकोप: विवेक अग्निहोत्री ऑनलाइन मास्टर कक्षाएं संचालित करेंगे

फिल्मकार विवेक अग्निहोत्री ऑनलाइन मास्टरक्लास के माध्यम से दर्शकों से जुड़ रहे हैं. विशेष रूप से कोरोनवायरस वायरस महामारी के कारण लॉकडाउन के बाद घर से काम करने वालों के लिए.
सूत्रों का कहना है “सामाजिक गड़बड़ी के बीच” यह डिजिटल मार्ग के लिए है.कोई भी शॉर्ट फिल्म घर से बाहर कदम रखे बिना बनाई जा सकती है.अगर वहां कोई भी आपके आस-पास घटने वाली कोई घटना या कोई ऐसी कहानी जो आपके दिमाग में हो इसे बिना किसी परेशानी के बताएं. ” निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ऑनलाइन फिल्म बनाने के लिए मास्टरक्लास ले रहे हैं और लोगों को इस समय का उपयोग करने तथा अपने कौशल को सुधारने के लिए भी बता रहे हैं.
फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री कहते हैं, “मैंने हर बार इन मुफ्त मास्टरक्लास का संचालन करने का फैसला किया है वैकल्पिक दिन जब तक हम अलग हैं.मेरा विचार लोगों को सीखने में मदद करना है नए कौशल और रचनात्मक रूप से अपने समय का उपयोग करने के लिए. पूरे समाज को छोड़ देंगे अवसाद में जाओ.सभी के पास कहानियां हैं लेकिन वे नहीं जानते कि ये कैसे बताएं कहानियों. मेरा लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि 15 अप्रैल तक कम से कम कुछ गृहिणियां और 5-6 युवा लोग लघु फिल्में बनाना चाहते हैं एक पैसा खर्च किए बिना अपने घरों में बैठे,”
इससे पहले, फिल्म निर्माता ने दैनिक मजदूरी श्रमिकों के लिए पैसे जुटाने के लिए पेंटिंग बेचने का इरादा घोषित किया था. “उद्योग में बहुत सारे लोग हैं जिनकी आजीविका प्रभावित हुई है. मैं उनके लिए ये पेंटिंग बेचूंगा, ”उन्होंने कहा था.

#coronavirus: कोरोना की बंदी में ये सब करोना

भागदौड़ वाली जिंदगी थम सी गई है. दिल्लीमुंबई जैसे भीड़ वाले इलाके भी गांव सरीखे प्रतीत हो रहे हैं क्योंकि सभी अपने घरों में रह रहे हैं. न गलियों में मोटरसाइकिल की आवाज सुनाई दे रही है, न सड़कों पर कारों का तेज हार्न कानों को चुभो रहा है. वहीं पुलिस की मुस्तैदी भी वाकई काबिलेतारीफ है.

एक तरफ घर में ही ऑफिस बन गया है, वहीं बैठेबैठे पेट निकल जाने का खतरा. कोई बोरियत महसूस कर रहा है तो कोई इस बोरियत को दूर करने की कोशिश में लगा है. यह एक दिन का जनता कर्फ्यू नहीं, बल्कि 21 दिनों का लॉक डाउन जैसा कर्फ्यू है.

कुछ लोग तो रात में जाग कर अपना ऑफिस का काम निबटा रहे हैं, जब छोटे बच्चे सो जाते हैं. उसी रात या फिर अगले दिन बॉस को रिपोर्ट कर रहे हैं. वहीं देर रात सोना और सुबह देर से उठना भी किसी सिरदर्दी से कम नहीं.

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भले ही घर में ऑफिस का काम चल रहा है, पर इस बीच आप को अपनी सेहत का भी खयाल रखना है.

तो इस बात का बेहद ध्यान रखें कि अपनी दिनचर्या न बिगड़ने दें. समय पर चाय लें, खाना लें और रोजमर्रा की चीजों को भी जगह दें.

साथ ही, यह भी ध्यान रखें कि कभी खाली पेट न रहें, कुछ न कुछ खाने की चीजें समय समय पर लेते रहें यानी काम अधिक होने के कारण उपवास न करें, कहीं खाली पेट में गैस की समस्या पैदा न हो जाए.

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इस के अलावा हर रोज सुबह छत पर टहलें, कसरत करें और धूप का भी मजा लें. इस मौसम में पंखे या एसी का कतई प्रयोग न करें, न ही फ्रिज का पानी लें अन्यथा बीमारी घर कर लेगी.

सुबह उठते ही 1 या 2 गिलास गरम पानी पिएं, इस से पेट का हाजमा ठीक रहेगा वहीं काम के दौरान समयसमय पर गले को गीला रखें यानी पानी पीते रहें.
नहाने के बाद और रात को सोते समय नाक में सरसों या नारियल का तेल जरूर लगाएं.

 

सुबह शाम घर में अगरबत्ती, कपूर व गूगल जलाएं, इस की महक अच्छी लगेगी. कमरे भी इस से महकने लगेंगे.

इतना ही नहीं, घर में खाना बनाते समय आधा चम्मच सोंठ हर सब्जी में पकते हुए डालें. इस से आप का हाजमा दुरुस्त रहेगा. वहीं रात को कदापि दही न खाएं.

बच्चों के साथसाथ खुद भी रात को एक कप दूध में चुटकी भर हल्दी डाल कर गुड़ के साथ पी लें. दूध में हल्दी आप के शरीर में इम्यूनिटी को बढ़ाएगा.

हो सके तो एक चम्मच सुबह या रात को सोते समय दूध या पानी के साथ च्यवनप्राश लें.

सुबह बिस्तर छोड़ने के बाद फारिग होते ही सुबह की चाय में एक लौंग या थोड़ा अदरक कूच कर डाल लें, दोपहर या शाम को फल में सिर्फ संतरा ज्यादा से ज्यादा खाएं. कोल्ड ड्रिंक के बजाय नीबू की शिकंजी पीएं. तली हुई चीजें कम खाएं. आंवला किसी भी रूप में ले सकते हैं चाहे अचार , मुरब्बा,चूर्ण इत्यादि. शहद में अदरक का रस लेने से गले में खराश जैसी समस्या न आएगी.

हाजमा बिगड़ने पर रात के समय इसबगोल या पेट को दुरुस्त रखने वाले चूर्ण ताजा पानी के साथ लें.

एक बार नुस्खों को आजमाइए तो सही… आपका पूरा दिन खुशनुमा रहेगा. स्वस्थ रहेंगे तभी घर से ऑफिस का काम कर पाएंगे. खुशनुमा माहौल बनाते हुए, अपने चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हुए ऑफिस का काम कीजिए.

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यह बंदी तो कुछ ही दिनों की है, एक न एक दिन खत्म हो जाएगी, पर घर पर रहने की यही बंदी हम और आप को बहुतकुछ सिखा रही है. सीखिए…

आप हैं तो बीवीबच्चों के लिए यही जहां हैं. उन्हें आप का साथ चाहिए… लाड़दुलार चाहिए. दीजिए, उन्हें प्यार, यही उचित समय है.

चलिए, भले ही घर से बाहर न निकलें, पर कुछ समय बच्चों को भी दें, उन के साथ कुछ भी गेम लूडो या सांप सीढ़ी वाला खेल खेलें, उन को भी अपने साथ खाने में शामिल करें और माहौल को एंजॉय करें.

अगर आप सेहतमंद रहेंगे तो न बीमारी हमला बोलेगी, न कोरोना वार

lockdown के बीच कपिल शर्मा ने दुनिया को दिखाई बेटी की PHOTO, पापा की तरह है खुशमिजाज

कॉमेडी  किंग कपिल शर्मा आज अपना जन्मदिन मना रहे हैं. जन्मदिन से एक दिन पहले कपिल शर्मा ने अपनी बेटी अनायरा की तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर कि है. जिसमें अनाया बेहद ही क्यूट लग रही हैं.

दरअसल, अनायरा कि यह तस्वीर परिवार वालों के साथ की है. जिसमें वह बेहद ट्रेडिशनल लुक में है. अनायरा की यह तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं.

 

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Jai mata di ? #ashtami #kanjakpoojan #daddysgirl #anayra #daughter ? #3monthsold #gratitude ? ?

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कपिल शर्मा इन दिनों अपने परिवार के साथ आइसोलेशन में हैं. हालांकि कपिल इन सभी के बावजूद सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहते हैं. इन दिनों खास चीजों की जानकारी कपिल अपने सोशल मीडिया के जरिए दे रहे हैं.

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वहीं बुधवार के दिन कपिल ने अपने पूरे परिवार समेत कपिल पूरे परिवार के साथ समय बिता रहे थे. इस दौरान उन्होंने यह तस्वीर ली है. अनायरा ने पिंक और पीले रंग का लहंगा चुन्नी पहन रखा है. इसके साथ  अनायरा ने लाल रंग की चूड़िया और बैंड पहन रखा था.

कपिल की बेटी बहुत प्यारी लग रही हैं. उनका यह नया लुक सभी को बहुत पसंद आ रहा है. इन दिनों कपिल शर्मा अपने  शो कि शूटिंग नहीं कर रहे हैं. परिवार के साथ अच्छा समय बीता रहे हैं.

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कॉमेडी नाइट के साथ-साथ कपिल ने कुछ फिल्मों में भी काम किया है हालांकि वह फिल्म पर्दे पर ज्यादा कमाल नहीं दिखा पाई थी.

कुछ समय पहले कपिल ने अपने शो से ब्रेक लिया था. जिसके बाद उन्होंने फिर से अपने शो को शुरू किया है. कपिल के  शो का इंतजार कपिल के फैंस को बेसब्री से होता है.

#coronavirus: गांवों में कोरोना संक्रमण की आशंका से सुप्रीम कोर्ट बेचैन

भारत में कोरोना का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है. हम तीसरे चरण में प्रवेश के द्वार पर खड़े हैं.स्वास्थ्य मंत्रालय का मानना है कि देश में संक्रमण की रफ्तार दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले काफी धीमी है, लेकिन कम्युनिटी ट्रांसमिशन, जिसे तीसरा चरण कहते हैं, कभी भी शुरू हो सकता है.इस बीच सुप्रीम कोर्ट में कोरोना संक्रमण से गरीब आबादी को बचाने और उनमे संक्रमण को रोकने की आशा से कई याचिकाएं दाखिल हुई हैं. देश में लॉक डाउन के दौरान जिस तरह से झुण्ड के झुण्ड मजदूरों का पलायन शहरों से गाँव की ओर हो रहा है उसको ले कर केंद और राज्य सरकारों के साथ सुप्रीम कोर्ट की चिंता भी बढ़ी हुई है.

वकील आलोक श्रीवास्तव की याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है शहर से गांव जा रहे 10 में से 3 लोग अपने साथ कोरोना संक्रमण को ले जा सकते हैं.कोरोना वायरस के कारण दिल्ली से पलायन कर रहे दिहाड़ी मजूदरों के लिए खाना और ठहरने के इंतजाम वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में कल सुनवाई हुई थी.सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सीजेआई एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ को बताया कि अब तक एयरपोर्ट और बंदरगाहों पर 28 लाख लोगों की स्क्रीनिंग की जा चुकी है. उन्होंने कहा कि 3.5 लाख लोगों की मॉनिटरिंग की जा रही है. पर गांव की ओर लौट रहे मजदूरों में संक्रमण की आशंका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है.

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सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा कि अलग-अलग राज्यों में पहुंचे लगभग 22.88 लाख प्रवासी मजदूरों, गरीबों और दिहाड़ी श्रमिकों को उनके गांवों से अलग जगह पर रोका गया है और सरकार की ओर से भोजन और आश्रय दिया जा रहा है. सॉलिसिटर जनरल के साथ केंद्रीय गृह सचिव भी वीडियो कॉन्फ्रेंस सुनवाई में शामिल हुए. उन्होंने कहा, केंद्रीय नियंत्रण कक्ष के अनुसार, अब तक 6.63 लाख लोगों को अलग-अलग केंद्रों में रखा गया है.गृह सचिव ने कहा कि अब कोई प्रवासी श्रमिक सड़क पर नहीं है.
लेकिन इतनी बड़ी तादात को रोके रखने और उनके खाने पीने सहित दवा उपचार के प्रबंध पर संदेह जताते हुए चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि शेल्टर होम आदि के प्रबंधन का काम वॉलंटियर को दिया जाए, पुलिस को नहीं. उन्होंने सरकार से कहा कि आप यह सुनिश्चित करें कि वॉलेंटियर लाए जाएं, बल या धमकी का उपयोग नहीं होना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी कहा कि कैंप में रखे गए लोगों की चिंता कम करने के लिए सभी धर्म सम्प्रदाय के नेताओं और धर्म गुरुओं की सहायता ली जाय. इससे उनमें पैनिक कम किया जा सकेगा.कोर्ट ने केंद्र सरकार को 24 घंटे में पोर्टल स्थापित करने का आदेश भी जारी किया है.सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम एक आदेश पारित कर रहे हैं कि कोरोना की जानकारी के लिए केंद्र सरकार 24 घंटे में पोर्टल स्थापित करेंगे. सरकार यह भी सुनिश्चित करे कि जिन लोगों का प्रवास आपने बंद किया है उन सभी को भोजन, आश्रय, पोषण और चिकित्सा सहायता के मामले में ध्यान रखा जाए.केंद्र ने कहा अभी पलायन रुक गया है.लेकिन जो गए हैं उनमें 10 में 3 संदिग्ध हो सकते हैं.

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सरकार ने कोर्ट को आश्वस्त किया है कि संक्रमण रोकने के लिए सभी संभव प्रयास किये जा रहे हैं.जिस घर में कोरोना पीड़ित मरीज मिल रहा है, वहां के तीन किलोमीटर आसपास के इलाकों को सील किया जा रहा है. तीन किलोमीटर में रहने वाले सभी लोगों को घर में रहने की सलाह दी जा रही है. साथ ही, यहां के सभी घरों पर सेनेटाइजर छिड़का जा रहा है. पीड़ित व्यक्ति से बात करके उन लोगों की लिस्ट बनवाई जा रही, जिन-जिनके वह संपर्क में आया। जिस किसी में कोरोना के लक्षण मिल रहे हैं, उन्हें तुरंत क्वारंटाइन करके उनके टेस्ट किए जा रहे हैं.

आठ जगहों में तेज़ी से फैला कोरोना

देश में आठ ऐसे हॉट स्पॉट हैं, जिन्होंने सरकार और सुप्रीम कोर्ट की चिंता बढ़ा रखी है. इन जगहों पर कम्युनिटी ट्रांसमिशन पाया गया है.इसलिए इन इलाकों पर खास निगरानी रखी जा रही है.

दिल्ली – 120
दिलशाद गार्डन : (11 मामले) 10 मार्च को सऊदी अरब से यहां एक महिला बेटे के साथ वापस लौटी.थोड़े दिन बाद ही उसकी तबीयत खराब हुई. उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया.उसमें कोरोना की पुष्टि हुई.बाद में महिला के बेटे, उसे एयरपोर्ट पर लेने गए रिश्तेदार और देखने वाले डॉक्टर सहित 11 लोग संक्रमित मिले. इसे देखकर माना जा रहा है कि संक्रमण बड़े स्तर पर फैला होगा.

निजामुद्दीन : (24 मामले) यहां तब्लीगी मरकज में करीब 1700 लोग धार्मिक कार्य के लिए एकत्र हुए.इनमें कई लोग विदेश से भी आए थे जो कोरोना से संक्रमित थे. इन लोगों के संपर्क में आने से अन्य लोग भी वायरस की चपेट में आ गए.अबतक 24 लोग संक्रमित हैं और 300 से ज्यादा में लक्षण पाए गए हैं. यहां से कई लोग अन्य राज्यों में भी जा चुके हैं.

राजस्थान- 93
भीलवाड़ा : (22 मामले) इस इलाके में 10-15 दिन पहले अचानक कोरोना के मरीज बढ़ गए. गौरतलब है कि जनवरी से मार्च के बीच राजस्थान घूमने आने वाले पर्यटकों के संख्या काफी बढ़ जाती है. भीलवाड़ा के कलेक्टर राजेंद्र भट्ट का कहना है कि अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि जिले में वायरस कैसे फैला। एक 73 वर्षीय मरीज को किडनी की बीमारी के चलते भीलवाड़ा के बांगर अस्तपताल में भर्ती कराया गया था. तबीयत बिगड़ने पर उन्हें महात्मा गांधी अस्पताल ले जाया गया. यहां उनमें कोरोना संक्रमण का पता चला.बाद में बुजुर्ग की मौत हो गई। बांगर अस्पताल और महात्मा गांधी अस्पताल में में बुजुर्ग के संपर्क में आने वाले नर्सिंग स्टाफ के कई लोग संक्रमित पाए गए.

गुजरात-73
अहमदाबाद (20 संक्रमित) गुजरात में अहमदाबाद राज्य का सबसे बड़ा कोरोना वायरस से पीड़ित इलाका बनता जा रहा है.यहां वायरस कैसे फैला, यह अभी तक राज बना हुआ है.लेकिन माना जा रहा है कि विदेश से आए किसी स्थानीय व्यक्ति के कारण ही यहां वायरस फैल रहा है. बड़ी संख्या में अहमदाबाद के लोग अमेरिका सहित यूरोप के कई देशों में रहते हैं। छुट्टियों में ये लोग स्वदेश आते हैं.

महाराष्ट्र- 302
मुंबई-पुणे (138 -34 मामले) राज्य में अभी तक सबसे ज्यादा मामले मुंबई और पुणे से ही आए हैं. मौतें भी इन दो जगहों पर सबसे ज्यादा हुई हैं.यहां संक्रमण फैलने का सबसे बड़ा कारण विदेश यात्रा से आए लोगों को माना जा रहा है.

केरल-215
कासरगोड (जिले में अकेले 78 मामले) केरल के इस जिले में कोरोना पीड़ितों की संख्या 200 के करीब हो चुकी है जोकि राज्य में सबसे ज्यादा है. इसे हाई अलर्ट पर रखा गया है.कासरगोड की आबादी 13 लाख है और यहां के करीब-करीब हर घर से एक सदस्य अरब देशों में काम करने के लिए गया हुआ है.इनमें से बहुत से लोग वापस आए तो उनमें कोरोना का संक्रमण था जोकि जिले में फैलता चला गया.

उत्तर प्रदेश- 101
नोएडा: (39 मामले ) यूपी में सबसे ज्यादा मामले अभी नोएडा और मेरठ से सामने आए हैं.नोएडा की बात की जाए तो यहां सबसे पहला मामला एक टूरिस्ट गाइड में सामने आया. यह दिल्ली में विदेशियों को घुमाता था.इसके बाद एक कंपनी में 19 लोग संक्रमित पाए गए। चिंता की बात यह है कि अभी तक पता नहीं चला कि इन लोगों में वायरस कैसे पहुंचा.इसी बात ने सरकार की चिंता और भी बढ़ा दी है.

मेरठ : (19 मामले) यहां कम्युनिटी ट्रांसमिशन देखा गया है जोकि बड़ी चिंता का विषय बन गया है.एक व्यक्ति मुंबई से मेरठ अपनी ससुराल आया और अपने परिवार सहित कई लोगों को संक्रमित कर दिया. इसी तरह फिलीपींस और सिंगापुर से आए यात्रियों ने भी यहां संक्रमण फैलाया.

आशा की नई किरण: भाग3

इस बात से स्वाति भड़क गई, ‘‘आप क्या समझते हैं, घर संभालने, सास की सेवा करने और लेखन कार्य करने मात्र से एक पत्नी के जीवन में खुशियां आ सकती हैं? इस के अलावा उसे और कुछ नहीं चाहिए? आप समझते क्यों नहीं कि एक स्त्री को इस के अतिरिक्त और भी कुछ चाहिए, उसे अपने पति से एक बच्चा भी चाहिए. वह मां बनना चाहती है. मां बन कर ही एक स्त्री को पूर्णता प्राप्त होती है.

‘‘इस घर में क्या हो रहा है, आप को दिखाई नहीं पड़ता? सासूमां मेरे बारे में क्याक्या बोलती रहती हैं, वह भी आप के कानों में नहीं पड़ता, क्योंकि आप ने अपनी आंखें और कान बंद कर रखे हैं. मेरी समझ में नहीं आता कि मेरे जीवन में आग लगा कर आप इतने निरपेक्ष कैसे रह सकते हैं. आप को पता है कि आप का रोग लाइलाज है परंतु अपनी नामर्दगी की सजा आप मुझे क्यों दे रहे हैं? मैं ने क्या अपराध किया है?’’ बोलतेबोलते स्वाति की आवाज भर्रा गई. वह पलंग पर बैठ कर सुबकने लगी. पीयूष ने उसे चुप कराने का कोई प्रयास नहीं किया और चुपचाप बाहर निकल गया. स्वाति ने नम आंखों से उसे बाहर जाते हुए देखा और उस का हृदय शीशे की तरह चटक गया. पीयूष के प्रति मन घृणा से भर गया. स्वाति की प्रिय सहेली नम्रता उसी के शहर में ब्याही थी. 2 साल का बच्चा था उस का. उस से यदाकदा बात होती रहती थी. उस के बेटे के जन्मदिन पर पीयूष के साथ गई थी. इधर मानसिक परेशानी और उलझनों के कारण उस ने नम्रता को काफी दिनों से फोन नहीं किया था. कुछ सोच कर उस ने नम्रता को फोन किया. हायहैलो के बाद स्वाति ने कहा, ‘‘मैं तुम से मिलना चाहती हूं.’’

‘‘तो आ जाओ न यार, कितने दिन हो गए मिले हुए. मिल कर गपशप मारेंगे और पुरानी यादें ताजा करेंगे.’’

स्वाति जब नम्रता से मिलने गई तो वह उसे देख कर हैरान रह गई, ‘‘यह क्या स्वाति, इतनी कमजोर कैसे हो गई? बीमार थी क्या?’’ ‘‘सब बताऊंगी यार,’’ स्वाति ने फीकी मुसकराहट के साथ कहा. नम्रता का पति सरकारी नौकरी में उच्च पद पर था. उस वक्त वह घर पर ही था. स्वाति से अपने बेटे के जन्मदिन पर मिल चुका था. पहले वाली स्वाति और सामने बैठी स्वाति में जमीनआसमान का अंतर था. उस के चेहरे की चमक कहीं खो गई थी, आंखें कुछ ढूंढ़ती सी लगती थीं. होंठों में जैसे जमानेभर की प्यास भरी हुई थी, परंतु उन की प्यास मिटाने वाला कोई नहीं था. उस के होंठ सूखते जा रहे थे. स्वाति से बोला, ‘‘स्वातिजी, चांद में ग्रहण लगते तो देखा था, परंतु यह पतझड़ कहां से आ गया? आप का खूबसूरत चांद सा मुखड़ा कहीं खो गया है.’’ पीड़ा में भी स्वाति की हंसी फूट पड़ी. अमित की बात सुन कर उस का दर्द जैसे गायब हो गया. उस की तरफ प्यारभरी नजर से देखा और फिर शरमा कर बोली, ‘‘आप तो मेरे ऊपर कविता करने लगे.’’

‘‘अरे नहीं, ये तो तुम्हारे जीवन में बहार बन कर छाने की कोशिश कर रहे हैं. स्वाति, इन से बच कर रहना, ये बड़े दिलफेंक इंसान हैं. सुंदर लड़की देखते ही लाइन मारना चालू कर देते हैं.’’

‘‘ये तो खुद कह रहे हैं कि मैं पतझड़ की मारी हूं. मेरा चांद कहीं खो गया है. ऐसे में मेरे ऊपर क्या लाइन मारेंगे,’’ स्वाति ने दुखी हो कर कहा.

‘‘ऐसा न कहो, ये तो सूखे फूल में भी खुशबू भर देते हैं,’’ नम्रता जैसे अपने पति की पोल खोलने पर आमादा थी. स्वाति शर्म और संकोच में डूबती जा रही थी.

अमित ने पत्नी से कहा, ‘‘तुम इस बेचारी को क्यों परेशान कर रही हो. पहले इस के हालचाल तो पूछो कि इसे हुआ क्या है?’’ दोनों सहेलियां जब एकांत में बैठीं तो स्वाति ने अपने हृदय के सारे परदे उठा दिए, मन की सारी गुत्थियां खोल दीं. कुछ भी न रखा अपने पास. नम्रता की आंखों में आंसू छलक आए, उस की बातें सुन कर. कुछ सुनने के बाद बोली, ‘‘स्वाति, तुम सचमुच स्वाति नक्षत्र की तरह प्यासी हो. कौन जानता था कि एक सुंदर पढ़ीलिखी लड़की के जीवन में इस तरह की काली छाया भी पड़ सकती है. अब तुम क्या चाहती हो?’’

‘‘नम्रता, तुम मेरी सब से अच्छी सहेली हो, मैं तुम्हारी मदद चाहती हूं.’’

‘‘मैं तुम्हारे लिए हर संभव मदद करूंगी. बताओ, कैसी मदद चाहती हो?’’

‘‘मैं जानती हूं, जो मैं तुम से मांगने जा रही हूं वह सहज ही किसी पत्नी को मंजूर नहीं होगा, परंतु मैं इस के लिए किसी कोठे पर नहीं बैठ सकती, किसी परपुरुष से संबंध नहीं बना सकती.’’

‘‘तुम क्या चाहती हो?’’ नम्रता ने धड़कते दिल से पूछा. उसे कुछकुछ समझ में आने लगा था.

‘‘मैं अपनी कोख भरना चाहती हूं, मातृत्व प्राप्त करना चाहती हूं.’’

‘‘यह कैसे संभव हो सकता है? तुम्हारा पति…’’

‘‘सबकुछ हो सकता है, मुझे तुम्हारा साथ चाहिए,’’ स्वाति ने उस की बात काट कर कहा. उस के स्वर में उतावलापन था, जैसे अगर जल्दी से अपनी बात नहीं कहेगी तो कभी कह नहीं पाएगी.

‘‘क्या तुम्हारा कोई बौयफ्रैंड है, जिस के साथ…’’ नम्रता ने जानना चाहा.

‘‘अरे नहीं, बौयफ्रैंड पालना मेरे बस का नहीं. किसी परपुरुष से शारीरिक संबंध बनाना हर हाल में खतरनाक होता है. वह जीवनभर के लिए गले की हड्डी बन जाता है. संबंध तोड़ने पर ब्लैकमेल करने लगता है. मैं इतना बड़ा जोखिम उठा कर अपने परिवार को नष्ट नहीं करना चाहती हूं.’’

‘‘तो फिर मैं किस प्रकार तुम्हारी मदद कर सकती हूं?’’ नम्रता ने बेबसी से पूछा.

‘‘बस, कुछ दिन के लिए तुम्हें अपने हृदय पर पत्थर रखना होगा, कुछ दिनों के लिए तुम अपने पति को मुझे उधार दे दो. मैं उन के साथ शारीरिक संबंध बनाना चाहती हूं. जब मेरी कोख भर जाएगी तो मैं उन से अपना संबंध तोड़ लूंगी,’’ स्वाति ने साफसाफ कहा. यह सुन कर नम्रता को चक्कर सा आ गया. वह विस्फारित नेत्रों से स्वाति को देखती रही. मुंह से एक बोल भी न फूटा. स्वाति ने उस के दोनों हाथ पकड़ कर अपने धड़कते सीने पर रख लिए और विनती सी करती बोली, ‘‘तुम मेरी इतनी सी बात मान लो, मैं तुम्हारी जीवन भर एहसानमंद रहूंगी. तुम यह सोच लेना कि जैसे तुम इस बारे में कुछ नहीं जानती हो.’’

नम्रता कुछ पल सोचती सी बैठी रही, फिर अपने हाथों से स्वाति के हाथों को थामते हुए कहा, ‘‘सुन कर बड़ा अजीब सा लग रहा है, बड़ा कठोर निर्णय है यह. एक पत्नी जानबूझ कर अपने पति को दूसरी स्त्री के बिस्तर पर लिटा दे, यह संभव नहीं होता परंतु मैं तुम्हारा दुख समझ रही हूं. उस की कसक अपने दिल में महसूस कर सकती हूं. अच्छा होता अगर तुम बिना बताए मेरे पति को अपने जाल में फंसा लेतीं. पीठपीछे पति क्या करता है, यह जब तक पत्नी को पता नहीं चलता, उसे दुख नहीं होता है.’’

‘‘मैं तुम्हारे साथ विश्वासघात नहीं करना चाहती थी. मैं पूरी सुरक्षा के साथ यह सब करना चाहती हूं. अगर सबकुछ तुम्हारी जानकारी में होगा तो बाद में अमितजी से पीछा छुड़ाना मेरे लिए आसान होगा, वरना कहीं वे भी जीवनभर के लिए पीछे पड़ गए तो…’’ स्वाति ने स्पष्ट किया. नम्रता कुछ पल तक सोचती रही. उस के चेहरे पर तरहतरह के भाव आ रहे थे. स्वाति ने अधीरता से उस के हाथों को कस कर दबा दिया, ‘‘देखो नम्रता, मना मत करना, वरना मेरे जीवन का सारा आधार ढह जाएगा. मैं कहीं की न रहूंगी.’’

‘‘खैर, जब तुम ने मुझे सबकुछ बता ही दिया तो मैं तुम्हारी बात मान कर कुछ दिन के लिए अपने हृदय पर पत्थर रख लेती हूं, परंतु स्वाति, तुम स्वयं अमित को पटाओगी. मैं उन से कुछ नहीं कहूंगी. उन्हें यह बताना भी मत कि मुझे सबकुछ मालूम है. तुम उन से कहां मिलोगी, यह भी तुम तय करना. मुझे मत बताना.’’

स्वाति ने उस का माथा चूम लिया, ‘‘नम्रता, मैं जीवनभर तुम्हें सगी बहन की तरह मानूंगी.’’

स्वाति के लिए अमित को पटाना बहुत आसान सिद्ध हुआ. नम्रता ने सही कहा था कि वह बहुत दिलफेंक इंसान था. स्वाति के 2-3 फोन पर ही अमित उस से मिलने के लिए व्याकुल हो गया. स्वाति स्वयं प्यासी थी, सो उस ने भी सारे बंधन ढीले कर दिए और कटी पतंग की तरह अमित की बांहों में जा गिरी. जिस योजना के तहत स्वाति इस अनैतिक कार्य को अंजाम दे रही थी, वह समयसीमा में बंधा हुआ था. उस कार्य के पूर्ण होने का आभास होते ही उस ने अमित से दूरियां बनानी शुरू कर दीं. अंत में एक दिन उस ने अमित को अपनी मजबूरी बता कर उन से अपने संबंध तोड़ लिए. अमित समझदार पारिवारिक व्यक्ति ही नहीं एक जिम्मेदार अधिकारी भी था. उस ने स्वाति को आजाद कर दिया. गर्भधारण के बाद स्वाति के आचरण में स्वाभाविक परिवर्तन आने लगे थे. सासूमां को समझते देर न लगी कि स्वाति मां बनने वाली है. उन का मनमयूर नाच उठा. जो स्वाति अभी तक उन की आंखों में खटक रही थी, दुश्मन से बढ़ कर नजर आती थी, उस का परित्याग करने के मन ही मन मनसूबे बांध रही थीं. वही अचानक उन की आंखों का तारा बन गई. वह उन के लिए खुशियों का खजाना ले कर जो आने वाली थी. स्वाति की बलैयां लेते हुए सासूजी ने कहा, ‘‘नजर न लगे मेरी बेटी को. कितने दिन बाद तू खुशियां ले कर आई है. दिन गिनतेगिनते मेरी आंखें पथरा गईं. पर चलो, देर से ही सही, तू ने मेरी मुराद पूरी कर दी.’’

शाम को उन्होंने पीयूष से कहा, ‘‘तुझे कुछ पता भी है, बहू पेट से है. उस के लिए अच्छीअच्छी खानेपीने की चीजें ले कर आ. मेवाफल आदि.’’

पीयूष चौंका, ‘‘ऐं…’’ उसे सचमुच पता नहीं था. काफी दिनों से स्वाति और उस के बीच अबोला चल रहा था.

उस ने बड़ी मुश्किल से अपने मन को शांत किया. वह किसी को अपने मन की बात नहीं बता सकता था. कैसे बताता कि स्वाति के पेट में उस का बच्चा नहीं था? उसे यह दंश झेलना ही पड़ेगा. एक परिवार को बचाने और सुखी रखने के लिए यह अति आवश्यक था. वह अपनी मां की खुशियों को आग के हवाले नहीं कर सकता था. पिताजी नहीं थे. मां ही उस की सबकुछ थीं. जब तक जिंदा हैं, उन की खुशियों के लिए उसे भी खुश होने का दिखावा करना पड़ेगा. सासूजी रातदिन स्वाति की सेवा में लगी रहतीं. उस की हर चीज का खयाल करतीं, उसे कोई काम न करने देतीं. परंतु पीयूष उस से उखड़ाउखड़ा रहता, बात न करता. व्यवहार में इतना रूखापन था कि कई बार स्वाति का मन करता कि उस की पोल खोल दे, परंतु परिवार की प्रतिष्ठा और मर्यादा का खयाल कर वह चुप रह जाती. यह कैसी विडंबना थी कि जब तक स्वाति ने मर्यादा के अंदर रहते हुए अपने पति और सासू के लिए खुशियां बटोरनी चाहीं तो उसे दुखों के कतरों के सिवा कुछ न मिला. परंतु जब मर्यादा का उल्लंघन किया, सामाजिक मूल्यों को तोड़ दिया और एक अनैतिक कार्य को अंजाम दिया, तो सासूमां की झोली में खुशियों का अंबार लग गया. नियत समय आने पर स्वाति ने एक बच्ची को जन्म दिया. नर्स नवजात शिशु को तौलिए में लपेट कर लाई और दादी के हाथों में रख कर बोली, ‘‘मुबारक हो, पोती हुई है.’’

सुन कर सासूजी का हृदय धक से रह गया. चेहरे पर स्याही पुत गई. वे बच्ची की तरफ नहीं, नर्स की तरफ अविश्वास भरी नजरों से देख रही थीं, जैसे उस ने बच्चा बदल दिया हो.

नर्स बोली, ‘‘क्या दादीमां, आप मेरा मुंह क्यों ताक रही हैं?’’

‘‘दादीमां शायद सोच रही होंगी, यह लड़की कहां से पैदा हो गई. इन को पोते की चाहत रही होगी,’’ दूसरी नर्स बोली.

पहली नर्स ने कहा, ‘‘दादीमां, आप एक औरत हैं, फिर भी समाज और परिवार के लिए लड़की की महत्ता नहीं समझतीं. इतना जान लीजिए, लड़कों से ज्यादा खुशियां एक लड़की परिवार के लिए ले कर आती है. जब बेटियां घर में रह कर मांबाप की सेवा करती हैं, तब लड़के बाहर जा कर मटरगश्ती करते हैं. आप को तो खुश होना चाहिए कि आप की बहू ने एक बेटी को जन्म दिया है.’’ तीसरे दिन स्वाति बच्चे के साथ घर आ गई. स्वाति के मम्मीपापा और बहन भी साथ ही आए थे. वे बच्ची की छठी होने तक स्वाति के साथ रहना चाहते थे. सभी चाहते थे बच्ची की छठी धूमधाम से मनाई जाए. इन 3 दिनों में पीयूष की मम्मी का मन भी बच्ची की तरफ से साफ हो गया था. नर्सों की बातें उन के हृदय को छू गई थीं. उन्होंने खुशी मन से छठी मनाने की स्वीकृति दे दी परंतु पीयूष ने साफ मना कर दिया कि वह कोई जश्न नहीं मनाएगा. सभी के मुंह लटक गए. कारण पूछा तो बिना कुछ बोले बाहर चला गया. उस के बाहर जाने के बाद पीयूष की मां ने कहा, ‘‘उस के मनाने  न मनाने से क्या होता है. मेरे घर में पोती हुई है, तो जश्न मैं मनाऊंगी. समधीजी, आप सारी तैयारियां करवाएं.’’

रात को पीयूष काफी देर से घर लौट कर आया. सभी लोग उस का इंतजार कर रहे थे. खाना वह बाहर से खा कर आया था. उस ने किसी से बात नहीं की. सब ने खाने के लिए पूछा तो मना कर दिया और चुपचाप ड्राइंगरूम में जा कर बैठ गया. सभी लोगों को उस के इस प्रकार के व्यवहार पर आश्चर्य हो रहा था. परंतु ऐसा वह क्यों कर रहा था, किसी को पता नहीं था. वह किसी को कुछ बता भी नहीं रहा था.

उस के मन की बात तो केवल स्वाति ही जानती थी. सभी लोग अपनेअपने कमरे में चले गए तो स्वाति बच्ची को सुला कर ड्राइंगरूम में आई. पीयूष एक सोफे में आंखें बंद कर के लेटा था. वह सोया नहीं था. विचारों के झोंके उसे सोने नहीं दे रहे थे. स्वाति उस के पैंताने बैठ गई और बोली, ‘‘मैं जानती हूं, आप दुखी हैं और मुझ से नाराज भी हैं, परंतु आप बताइए, इस के अलावा मेरे पास चारा क्या था?’’ आज उस ने अपनी चुप्पी तोड़ दी थी. काफी दिनों बाद वह पीयूष से बोली थी.

पीयूष थोड़ा कसमसाया परंतु बोला कुछ नहीं. स्वाति ने आगे कहा, ‘‘आप बताइए, अगर मैं ऐसा न करती तो क्या जिंदगी भर लांछनों के दाग ले कर घुटघुट कर जीती? मांजी के ताने आप ने नहीं सुने? मैं बांझ नहीं कहलाना चाहती थी और अगर आप से तलाक लेती तो आप की बदनामी होती. मुझे स्पष्ट कारण बताना पड़ता. तब बताइए, क्या आप इस समाज में एक प्रतिष्ठित जीवन जी पाते? आप कौन सा मुंह दुनिया को दिखाते और क्या मांजी पोतापोती का मुंह देखे बिना ही इस संसार से विदा न हो जातीं?’’

पीयूष ने हलके से सरक कर अपना सिर सोफे के पुट्ठे पर रख लिया. आंखें चौड़ी कर के स्वाति को देखा. वह गंभीर थी, परंतु उस की आंखों में एक अनोखी चमक थी.

वह कहती गई, ‘‘आप देख रहे हैं, मेरे एक अमर्यादित कदम से कितने लोगों के हृदय में खुशियों का सागर लहरा रहा है. सभी के चेहरों पर रौनक आ गई है. मांजी की खुशियों का आप अंदाज भी नहीं लगा सकते हैं.’’

पीयूष ने अचानक तड़प कर कहा, ‘‘परंतु एक बच्चे के लिए तुम ने अपनी इज्जत क्यों दांव पर लगाई? क्या हम निसंतान रह कर जीवन नहीं गुजार सकते थे?’’

‘‘गुजार सकते थे, परंतु तब मैं जीवनभर अपने माथे पर बांझ होने का कलंक ले कर जीती. उसे मिटा नहीं सकती थी. सासूजी जब तक जीतीं, उन के ताने झेलती. दुनियाभर की शक्की निगाहों के वार झेलती. आप को नहीं पता, वे तो मुझे तलाक दिलवा कर आप की दूसरी शादी तक करने की बात भी सोच रही थीं. क्या आप उन की खुशी के लिए दूसरी लड़की की जिंदगी बरबाद करते? आप शांत मन से सोचिए, यह बात केवल हम दोनों को मालूम है. ‘‘इस बच्ची को आप एक बार अपना मान कर देखिए, फिर उस के पालनेपोसने में जो खुशी आप को प्राप्त होगी वह किसी और चीज में नहीं प्राप्त हो सकती?’’

‘‘परंतु यह बच्ची मेरी नहीं है. इस में मेरा खून कहां है?’’ उस ने तर्क दिया.

‘‘इसे दत्तक पुत्री समझ कर ही अपनी मान लीजिए. इस बच्ची के शरीर में कम से कम मेरा खून तो है.’’

‘‘परंतु मैं अपने मन को कैसे समझाऊं?’’ पीयूष ने हताश स्वर में कहा.

स्वाति ने आगे सरक कर उस के सीने पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘आप को दुखी होने की आवश्यकता नहीं है. ऐसा करने में ही हम दोनों की भलाई थी. अब समाज में हम इज्जत के साथ जी तो सकते हैं.’’

पीयूष ने तर्क दिया, ‘‘परंतु मुझे मानसिक कष्ट हुआ है.’’

‘‘सच है, परंतु आप का मानसिक कष्ट मेरे कष्ट से बढ़ कर नहीं है. अपनी कमजोरी के बारे में जानते हुए भी आप ने मेरे साथ शादी की और मुझे तानों, उलाहनों और लांछनों की आग में जलने के लिए छोड़ दिया. खैर, जो भी हुआ उसे भूल जाने में ही भलाई है. आप अपनी सापेक्ष सोच से अपने गमों को खुशियों में बदल सकते हैं.’’ पीयूष की सोच कुछकुछ बदलने लगी थी. स्वाति की नरम उंगलियां अब पीयूष के गालों को हौलेहौले सहला रही थी. काफी रात हो चुकी थी वह आंखें बंद कर के बोली, ‘‘मैं आप को विश्वास दिलाती हूं कि अब मेरे कदम कभी नहीं डगमगाएंगे. आप की उपेक्षा और मांजी के तानों से ऊब कर ही मैं ने बहुत कड़े मन से यह कदम उठाया था. अगर मैं ऐसा न करती तो आप की कमजोरी सभी को पता चल जाती या मैं जीवनभर बांझ औरत की लांछना ले कर जीने को मजबूर रहती. आप की इज्जत बची रहे और मेरे ऊपर लगे सारे लांछन मिट जाएं, इसलिए मुझे परपुरुष की बांहों का सहारा लेना पड़ा,’’ कहतेकहते स्वाति का स्वर भावुक हो गया. पीयूष ने अपने गालों पर उस की उंगलियों को थाम लिया और अगले ही क्षण स्वाति को खींच कर सीने से लगा लिया. आज की उजली भोर उस के लिए आशा की नई किरण ले कर आई थी.

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