- ज़िला पुरुलिया के एक गांव में जो श्रमिक चेन्नै से लौटे थे उन्हें अपने आपको पेड़ों की शाखों पर क्वारंटाइन करना पड़ रहा है.शाखों पर ही उन्हें अपने कपड़े आदि बांधने पड़ रहे हैं.
- सुजीत राव जब पंजाब से ज़िला औरंगाबाद स्थित अपने गांव धनौटी लौटा तो गांव के तीनों प्रवेश मार्गों पर बैरिकेड लगे थे, गांव के ही लड़के डंडे लिए चौकीदारी कर रहे थे – बाहर से लौटने वाले का गांव में प्रवेश वर्जित था.राव ने कुछ दिन पीएचसी पर गुज़ारे, डाक्टरों से ‘क्लीन चिट’ मिलने पर ही वह अपने गांव में प्रवेश कर सका.
- नोएडा से गांव रामपट्टी (ज़िला मधुबनी) लौटने वाले सज्जन ठाकुर, जो अब शेल्टर बने सरकारी स्कूल में शरण लिए हुए है, का कहना है,“मैं बेसहारा व भूखा जब अपने गांव लौटा तो मुझे मेरे ही घर में घुसने नहीं दिया गया, अब मैं जाऊं तो जाऊं कहां?”
ये तमाम तथ्य बताते हैं देशव्यापी लॉकडाउन के कारण जो सैंकड़ो हजारों श्रमिक भूख व पैदल सफर करने से पड़े पैरों के छालों को बर्दाश्त करते हुए उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड, बिहार व बंगाल स्थित अपने गांव या कस्बों में लौटे हैं,उनकी परेशानियों पर अभी विराम नहीं लगा है.कहीं कहीं तो उन्हें सामाजिक बहिष्कार की स्थिति तक का सामना करना पड़ रहा है.ऐसे कई लोगों को उनके गांव में ही प्रवेश नहीं दिया जा रहा है.कुछ को अपने घर से दूर शेल्टर या क्वारंटाइन केन्द्रों में रहना पड़ रहा है,बशर्ते कि उनके ज़िले में ऐसा कोई केंद्र हो, वर्ना उनके लिए अस्थाई व्यवस्था करनी पड़ रही.
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जो लोग छुपते छुपाते अपने घर पहुंच गये हैं और सामाजिक बहिष्कार जैसी स्थिति से नहीं गुजरना पड़ा है,उनके लिए अन्य प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं.अनेक मामलों में हिंसा के रूप में भी ये समस्या सामने आयी है. इस सिलसिले में यहां दो उदाहरण देना ही पर्याप्त होगा. उत्तर प्रदेश में शैलेन्द्र यादव नोएडा से ज़िला मैनपुरी स्थित अपने गांव अलीपुर लौटा.उसके आगे पीछे ही उसके दो भाई बिजेंद्र यादव व उपेन्द्र यादव और भतीजा गौरव यादव भी गांव लौटे. सभी नोएडा व गुड़गांव में कैब चालक हैं.शैलेन्द्र ने अपने साले विनय यादव को धमकी दी कि वह उनके आने की खबर ज़िला मुख्यालय को न दे ताकि वह टेस्ट व क्वारंटाइन से बच जायें.लेकिन विनय के समक्ष दो बातें थीं – एक यह कि वह ‘रोज़गार सेवक’ है जिसका काम गांव लौटने वाले व्यक्तियों की सूचना प्रशासन को देना है; दूसरा यह कि वह गांव को सुरक्षित रखना चाहता था,यह सुनिश्चित करके कि नोएडा से लौटने वाला कोई कोरोना वायरस से संक्रमित न हो.
ध्यान रहे कि नोएडा से लौटने वाले फैक्ट्री श्रमिक बरेली आदि जगहों पर अपने संबंधियों को संक्रमित कर चुके हैं. इसलिए विनय ने अलीपुर लौटने वाले सभी व्यक्तियों के नाम ज़िला प्रशासन को दे दिए.इस पर शैलेन्द्र भड़क उठा. पुलिस के अनुसार उसने विनय के घर पहुंचकर उसपर गोली चला दी,जो कि पास खड़ी विनय की साली संध्या को लग गयी. 36-वर्षीय संध्या की मौके पर ही मौत हो गई.लॉकडाउन के चलते बढ़ते घरेलू झगड़े भी त्रासदी की एक से एक भयानक पटकथाएं लिख रहे हैं. मसलन, शिकारपुर (ज़िला बुलंदशहर) में पुलिस के अनुसार बॉबी नामक व्यक्ति लॉकडाउन के कारण हरियाणा से घर लौट आया था. 31 मार्च को उसका अपनी पत्नी से झगड़ा हुआ, उसी शाम को उसकी पत्नी अपने दो बच्चों के साथ कमरे में बंद हो गई, बच्चों पर व खुद पर मिट्टी का तेल छिड़का और आग लगा ली.बच्चे मौके पर ही मर गये और बॉबी की पत्नी ने पीएचसी पर जाकर दम तोड़ा.
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दरअसल, घर लौट रहे लोगों को जो कठिनाइयां हो रही हैं,उनको पूरी तरह शब्दों के ज़रिये व्यक्त करना आसान नहीं है.हर जगह अलग अलग प्रकार के दर्द हैं.बंगाल में महाराष्ट्र, केरल व कर्नाटक से हज़ारों की तादाद में मज़दूर लौटे हैं.उनमें से अधिकतर का कहना है कि उन्हें नहीं मालूम कि उन्हें अपना जॉब वापस मिलेगा या नहीं.हुगली में लौटे एक श्रमिक के लिए अपनी पत्नी व तीन बच्चों का पेट भरना मुश्किल हो गया है; उसका कहना है, “मैं पुणे में राज मिस्त्री का काम करता था.लौटने पर मुझे नये सिरे से काम शुरू करना पड़ेगा.मेरे पास न खेती की ज़मीन है और न ही आय का कोई अन्य साधन.”
अन्य श्रमिकों का कहना है कि जल्दबाजी में लौटने के कारण उन्हें अपना मेहनताना भी नहीं मिल सका था.समस्या सिर्फ आर्थिक नहीं है बल्कि सामाजिक बहिष्कार की भी है. कुछ की स्थिति तो ‘अछूतों’ जैसी हो गई है; कानूनन प्रतिबंधित अस्पर्श्यता नये अवतार में लौट आयी है. उत्तर प्रदेश से बंगाल तक लगभग हर गांव में यही स्थिति है. शेल्टर बने इन स्कूलों में स्थिति बदतर है, मवेशियों की तरह हज़ारों मजदूरों को एक जगह ठूंस दिया गया है, जहां खाने पीने, हाइजीन आदि की कोई व्यवस्था नहीं है.मुंगेर में तो यह मज़दूर इतने त्रस्त हुए कि लोहे का दरवाज़ा तोड़ कर ही ‘फरार’ हो गये.
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एक अनुमान के तहत बिहार में पिछले कुछ दिनों के दौरान 1.86 लाख मज़दूर विभिन्न राज्यों से लौटे हैं.राज्य स्वास्थ विभाग ने वापसी पर सभी के टेस्ट के आदेश दिए हैं.जो लोग अपने घरों में क्वारंटाइन के तहत हैं, उनमें से कुछ के घरों पर पुलिस ने पैम्फलेट चस्पा कर दिए हैं कि कोई उनसे मिलने के लिए न आये. उनके हाथों पर भी क्वारंटाइन में होने की मोहर लगा दी गई है. क्वारंटाइन व सोशल डिस्टेंसिंग आवश्यक है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता, लोग स्वयं भी सावधानी बरत रहे हैं, लेकिन पैम्फलेट व मोहर तो एक तरह से इन मजदूरों को ‘कलंकित’ कर रहे हैं.आशंका यह है कि नेगेटिव की पुष्टि होने पर भी उन्हें सामाजिक बहिष्कार का लम्बे समय तक सामना करना पड़ सकता है.