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#coronavirus: जब मेरी जिन्दगी में हुआ  लॉकडाउन

लेखिका-सुधा रानी तैलंग

लॉकडाउन के दौर में जंहा हम घरों में बन्द है. ऐसे में हर समय मन में डर सा समाया रहता है कि अब आगे क्या होगा .ऐसा अनुभव हमारे जीवन में पहली बार आया है.  इससे पहले भारत पाक युद्ध के समय भी कुछ ऐसे ही माहौल का अनुभव किया था. चारों ओर सन्नाटा होता था. पर उस समय सब के घरों में रेडियो नहीं होते थे ऐसे में सड़कों में लाउडस्पीकर में समाचार आते भारी भीड़ लगती थी व आपस में प्रेम भाई चारे का जज्बा था. लॉकडाउन भी आपात, एक युद्ध  का समय हैं इस जंग को हमें हर हाल में जीतना हैंचाहे हमें कुछ दिनों तक घरों में बन्द रहना पड़े. देख जाये तो लोकडाउन ने हमें बिल्कुल अकेला कर दिया है पर अपनों के साथ . हमारे दिलों में दूसरों की फिक्र व मदद करने की भावना जागी है .

देष में आपसी एकता की भावना देखने मिल रही है..बाजार माल सिनेमा ,पार्टीज व होटल से दूर पर परिवार के पास. लॉकडाउन ने हमारे बीच में एक लक्ष्मण रेखा खींच दी है पर हमारे दिलों को जोड़ दिया है .परिवार को एक दूजे के करीब लाकर खड़ा कर दिया है .सबको एक दूजे की चिन्ता है .पहली बार ही ऐसा हुआ  है जब हमें अपने हाथों से घर का काम करना पड़ रहा है. इससे एक बात तो ये अनुभव हो रही है कि हम मेम साहब से गृह स्वामिनी की फीलिंग कर रहे हैं. आपस में पूरे परिवार के सदस्यों ने काम की जिम्मदारी बाटं ली है .घरों में काम की जिम्मेदारी जरूर बढी है पर खुद के लिये सोचने का हमें समय भी मिला है.

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वैसे देखा जाये तो ये लॉकडाउन का ये समय बेहद उपयोगी व कारगर साबित हो रहा है. पूरे परिवार को साथ बैठने का मौका मिला है. खाली समय में एक ओर तो हमें अपने हाथ की बनी नई रेसिपीज बनाने खाने मिल रही है . घरों का झाड़ू पौछा करने से हमारी  एक्सरसाइज भी हो रही है. अपनी पुरानी हाबीज पेन्टिंग , संगीत सिलाई कढाई ,कुकिंग ,जो भाग दौड़ की जिन्दगी में हम भूल से गये थे उसे पूरी करने का मौका हमें मिला है. पुराने इन्डोर गेम्स चंगा पौआ , सांप सीढी , अन्ताक्षरी व कहानियों का दौर लौटा है. लगभग तीस सालों बाद रामायण ने दूरदर्षन के दिन लौटा दिया है .लोग अतीत को याद करने लगे है .लाकडाउन का समय साहित्य से जुड़े लोगों के लिये तो समय बेहद सार्थक उपयोगी कहा जा सकता है. अभी खाली समय में लिखने का मौका मिला है ऐसे अवसर कम ही आते हैं. सामने नई कहानियों के विचार आ रहे हैं. परिवार की नौंक झौंक व घरेलू हिंसा के ऐसे मौके में घटनायें  घटित हो रही है, अकेले बुर्जुगों को बिना नौकरों के किन परेषानियों का सामना कर पड़ रहा हैं उन पर लिख रही हूं.साथ मैं बुन्देल खण्ड की लोककथाओं की किताब को फाइनल रूप दे रही हूं.रेडियो के लिये झलकी भी तैयार कर रही हूं.मुझे मेरे पंसदीदा लेखक प्रेमचन्द का निर्मला और कालिदास का अभिज्ञानषाकुन्तलम् को भी पढने का अवसर मिला है.

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मेरे विचारों लॉकडाउन का समय अभी बढाना ही बेहतर होगा क्योकि हमारा स्वास्थ्य व सुरक्षा पहले है. सोषल डिस्टेन्स बनाते हुये घरों में रहकर हम ज्यादा सेफ रह सकते हैं.घर पर ही कोई छोटा मोटा काम भी कर सकते हैं जो आगे जाकर अर्निंग भी करा सके .बाहरी भौतिक जगत की चमक दमक से दूर कुछ दिन प्रकृति की गोद में कम संसाधनों व कम खर्च में जीवन यापन करके हम बेहतर स्वस्थ रह सकते है.लॉकडाउन से एक फायदा तो ये हुआ है कि हम सालों बाद अपनी छत से तारों को निहार सकते हैं. स्वच्छ व खुली हवा में सांस ले रहे है ऐसे में हमें लॉकडाउन को बन्धन न समझते हुये .खुषी, आनंद व सन्तोष को अपने जीवन में समावेष करते हुये खूब एन्जाय करना है

#lockdown: तड़पा रही है कटिंग चाय और वड़ा पाव की लत

लेखक-शामी एम् इरफान

मुम्बई की धड़कन को उर्जा प्राप्त होती है कटिंग चाय और वड़ा – पाव से। चाय पर ज्यादा चर्चा करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आप सभी चाय के गुण – अवगुण से भली – भांति परिचित हैं. चाय- काॅफी ऐसा गर्म पेय पदार्थ है, जिस पर गरीब और अमीर दोनों अपने – अपने स्तर से चर्चा करते रहते हैं. इससे लाभ और हानि को लेकर न सिर्फ़ पत्र – पत्रिकाओं में कुछ न कुछ छपता रहता है, बल्कि सोशल मीडिया पर भी चाय – काॅफी को लेकर बहुत कुछ देखने – सुनने व पढ़ने को मिलता है.

सर्वत्र चाय और काॅफी का सम्मान है. चाय थोड़ी – सी गरीब जरूर है और काॅफी तो शुरू से ही अमीर है लेकिन काॅफी से ज्यादा चाय ही मशहूर है. बिलकुल उसी तरह जैसे दुनिया में अमीरों से अधिक गरीब लोग हैं. यह गरीब ही हैं, जो सबसे ज्यादा चाय का सेवन करते हैं.

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चाय की चुस्की के लिए मेरे एक मित्र कहीं भी जा सकते हैं. उनका कहना है कि ‘चा, चु के लिए मुझे बुलाओ और मैं न आऊँ, ऐसा हो नहीं सकता.’ और कसम से वह चाय की चुस्की के लिए कभी भी कहीं भी बुलाने पर आ जाते हैं और उनकी इस कमजोरी का फायदा उनके अपने लोग बड़ी आसानी से उठाते हैं. या यूँ कहें कि, लोग उनको चाय पिलाकर अपना काम करा लेते हैं और काम निकलने के बाद पहचानते भी नहीं. ऐसे में काम का वाजिब मेहनताना कौन देता है. बस, वह चाय की चुस्की लेकर ही खुश रहते हैं.

देश और दुनिया में ऐसे लोगों की संख्या करोड़ों में है, जो चाय-काॅफी और वड़ा – पाव के आदी हो चुके हैं और इनकी सही – सही जनसंख्या बता पाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है. चाय के चहेतों की तरह वड़ा – पाव के शौक़ीनो की कमी नहीं है. वड़ा – पाव महाराष्ट्र का फेमस खाद्य पदार्थ है. इसको यूँ भी कह सकते हैं कि, वड़ा सब्जी यानी भाजी है और पाव रोटी यानी चपाती. आप मानो या न मानो, मगर यह सच है कि, भाजी – रोटी की जगह समतुल्य है वड़ा  – पाव और यकीनन इसे खाने से सम्पूर्ण भोजन की फीलिंग्स आती है. वड़ा- पाव खाने से तन-मन को संतुष्टि मिलती है और परम आनंद की अनुभूति होती है.

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वड़ा – पाव देश के कई जगहों में मिलता है. लेकिन जो स्वाद मुम्बई के वड़ा  – पाव में है, वह टेस्ट कहीं और नहीं. मुम्बई में कोलाबा, नारीमन पाॅइन्ट, वी टी, चर्चगेट से कल्याण, विरार तक वड़ा – पाव खाने का अपना अलग ही स्वाद है. सेंट्रल रेलवे पर चलने पर वड़ा का स्वाद ज्यादा मजेदार नहीं होता, पता नहीं क्यों? वहीं जब वेस्टर्न रेलवे पर मुम्बई के नगर – उपनगर में वड़ा – पाव खाते हैं तो, जायका इतना मजेदार होता है कि, मन करता है और खाओ. बस, खाते जाओ. यहाँ पर यह बता देना अपना फर्ज समझता हूँ कि, रेलवे से मुम्बई देश के कई शहरों से जुड़ा है और हर शहर में वड़ा – पाव रेल का सफर करके पहुंच गया है. महाराष्ट्र से सटा प्रदेश गुजरात हो या दूर-दराज बसे शहर जम्मू, कोलकाता या कन्याकुमारी सब जगह जिस तरह चाय मिलती है, बिलकुल उसी तरह वड़ा – पाव भी खाने को मिल जाता है. मगर वह स्वाद, वह टेस्ट उनमें कहाँ जो मुम्बई के टेस्टी-टेस्टी वड़ा – पाव का होता है.

और सब लोग वड़ा – पाव बड़ी चाव से क्यों न खायें? इसके खाने से पेट की भूख शांत हो जाती है. बड़े-बुजुर्ग फरमाते थे कि, भूखे पेट भजन नहीं होता और मेरा मानना है कि, भूखे पेट कामकाज नहीं होता. कामकाज भी तो लोग पेट की भूख मिटाने के लिए ही करते हैं. यह पेट की भूख अपनी खुद की होती है और अपने परिवार की होती है. अगर पेट की भूख ना हो तो, लोग बाग कामकाज ही ना करें. ‘कोरोना’ संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए देश में इक्कीस दिनों का लाॅक डाउन किया गया है. ऐसे समय में सबको अपने घरों में रहने का सख्त आदेश है. माॅल, सिनेमाहाल, कल-कारखाने, ऑफिस – दुकानें सब बंद है. सभी अपने घरों में या जहाँ पर वे रहते हैं बंदी की तरह हैं. यहाँ पर वड़ा – पाव खाने के लिए कहाँ से कैसे मिलेगा, मार्केट में जब दुकानें  बंद हो, कमाई रुक गई हो और घरों में राॅशन-पानी की किल्लत चल रही हो?

अनुमानतः मुम्बई की तीन चौथाई आबादी उन कामगार लोगों की है, जो किसी दूसरे देश-प्रदेश, शहर-नगर से यहाँ रोटी- रोज़ी कमाने आये हैं. इनमें से हजारों वड़ा – पाव ही खाकर अपना एक वक्त पेट भरते हैं. हालांकि, रगड़ा-पाव भी खाकर बहुत से लोग अपने पेट की भूख शांत कर लेते हैं. लेकिन रगड़ा पाव खाने वालों की तादाद कम है. बिलकुल उसी तरह जैसे झुणका भाखर खाने वाले बहुत सीमित संख्या में हैं. और इसकी एक वजह यह भी है कि, वड़ा – पाव की तरह यह सब जगह मिलते नहीं.

खाने-पीने की छोटी – बड़ी दुकानों पर, ठेला – स्टालों पर बिकता है गरमागरम ताजा-ताजा वड़ा – पाव और खाने वाले दस – बारह रूपये का एक वड़ा – पाव लेकर खा लेते हैं. कोई अपने घर में वड़ा – पाव नहीं बनाता. सस्ता है, स्वादिष्ट है और सभी को प्रिय भी है. लेकिन लाॅक डाउन में पूरे देश में तालाबंदी है. छोटे-बड़े होटल, खाने-पीने की सारी दुकानें बंद हैं. इस देशबंदी में काम की भी पूरी तरह से बंदी है. जो कोरोना संक्रमण से प्रभावित हाॅटस्पाट क्षेत्र नहीं है, उधर आने-जाने की थोड़ी सी छूट है. इसके बावजूद कहीं जायें भी तो जाकर क्या करें? कहीं भी कुछ खाने को नहीं मिलने वाला.

वड़ा – पाव खाने की तीव्र इच्छा है. आदत पड़ चुकी है और लत से मजबूर हैं. घर में खाने-पकाने को नहीं है, जोड़-जाड़कर थोड़े पैसे बचाकर रखे भी हैं तो क्या? चाहकर भी पेट की भूख शांत नहीं कर सकते. जीभ से लार टपकती है और मुंह में वड़ा – पाव को सोच-सोचकर पानी आता है. कसम से तरस रहे हैं वड़ा – पाव खाने को. मुम्बई आये थे कमाने के लिए और लाॅक डाउन में फंस गये हैं सारे. राहत-मदद तो सब दिखावा है. कानों से सुनने में अच्छा लगता है, मगर सिर्फ सुनने से पेट नहीं भरता. हो सके तो, वड़ा – पाव वाली दुकानें ही खुलवा दो साहेब, हम वड़ा पाव ही खा लेंगे और लाॅक डाउन में भी घर के अंदर ज़िंदा रह लेंगे.

#coronavirus: क्या कोरोना से लड़ाई में मददगार होगा – ‘कन्वलसेंट-प्लाज्मा थेरेपी’  

”  2009-10 के एच1एन1 इंफ्लुएंजा वायरस महामारी के प्रकोप के दौरान इंटेसिंव केयर की आवश्यकता वाले संक्रमित रोगियों का उपयोग किया गया. निष्क्रिय एंटीबाडी उपचार के बाद, सीरम उपचारित रोगियों ने नैदानिक सुधार प्रदर्शित किया. वायरल को बोझ कम हुआ और मृत्यु दर में कमी किया जा सका. यह प्रक्रिया 2018 में इबोला प्रकोप के दौरान भी उपयोगी रही. ”

पूरा विश्व कोरोना संक्रमण से जूझ रहा है, भारत में भी यह संक्रमण तेजी से फैलता जा रहा है. इस समय पुरे विश्व में इस महामारी को मात देने के लिए खोज और अनुसंधान का दौर अपने दुरत गति से कार्य कर रहा है. एक खोज हमारे देश में भी हुआ है , जिसने कोरोना संक्रमण को हारने दिशा में एक उम्मीद का किरण जगा है, देश में कोविड-19 को हारने के लिए नवीन ब्लड प्लाज्मा थेरेपी की खोज हुई है. तो आइये जानते है इसके बारे में …

शनिवार को केंद्र सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत आने वाली एक संस्थान श्री चित्र तिरुनल इंस्टीच्यूट फार मेडिकल साईंसेज एंड टेक्नोलाजी ने बताया कि संस्थान ने कोरोना  (कोविड-19 ) संक्रमित मरीजों के बेहतर उपचार प्रदान करने के लिए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने उसे एक नवीन उपचार करने के लिए मंजूरी दे दी है . इस उपचार पद्धति को तकनीकी रूप से ‘ कन्वलसेंट-प्लाज्मा थेरेपी‘  कहा जाता है . इस पद्धति द्वारा ‘किसी बीमार व्यक्ति के उपचार के लिए , ठीक हो चुके व्यक्ति द्वारा हासिल प्रतिरक्षी शक्ति का उपयोग कर के बीमार व्यक्ति को ठीक किया जाता है.

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* यह उपचार किस प्रकार दिया जाता है : – जो व्यक्ति (कोविड-19) कोरोना सक्रमण से  ठीक हो चुका है, उससे व्यक्ति से जाँच कर खून निकाला जाता है. इस से पहले यह पूरी तरह जाँच ठीक हुए व्यक्ति के कम से कम 28 दिनों तक पूर्ण स्वस्थ्य हो , साथ ही उसके सभी टेस्ट निगेटिव होनी चाहिए. डोनर से खून निकने के बाद वायरस को बेअसर करने वाले एंटीबाडीज के लिए सीरम को अलग किया जाता है और जांचा जाता है.  देखा जाता है , खून में कन्वलसेंट सीरम कितना है, जो कि किसी संक्रामक रोग से ठीक हो चुके व्यक्ति से प्राप्त ब्लड सीरम है और विशेष रूप से उस पैथोजेन के लिए एंटीबाडीज में समृद्ध होगा . सब सही पाया जाता है तो यह खून कोविड-19 के रोगी को दिया जाता है. कुछ ही दिनों में संक्रमित रोगी निष्क्रिय प्रतिरक्षण क्षमता प्राप्त कर लेता है और वह जल्द ही ठीक हो जाता है .

* कौन यह उपचार प्राप्त करेगा : – संस्थान द्वारा बताया जाता है कि ‘ वर्तमान में इसकी अनुमति केवल बुरी तरह से संक्रमित रोगियों के उपचार तक ही सीमित है .

* क्या है कन्वलसेंटप्लाज्मा थेरेपी :-  जब एक पैथोजेन की तरह का नोवेल कोरोना वायरस संक्रमित करता है ,तो हमारी प्रतिरक्षी प्रणाली एंटीबाडीज का उत्पादन करती है. एंटीबाडीज आक्रमणकारी वायरस की पहचान करते हैं और चिन्हित करते हैं. श्वेत रक्त कोशिकाएं पहचाने गए घुसपैठियों को संलगन करती हैं और शरीर संक्रमण से मुक्त हो जाता है. ब्लड ट्रांसफ्यूजन की तरह ही यह थेरेपी ठीक हो चुके व्यक्ति से एंटीबाडी को एकत्रित करती है और बीमार व्यक्ति में समावेशित कर देती है.

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* एंटीबाडीज क्या होते हैं :- एंटीबाडीज किसी माइक्रोब द्वारा किसी संक्रमण की अग्रिम पंक्ति प्रतिरक्षी अनुक्रिया होते हैं. वे नोवेल कोरोना वायरस जैसे किसी आक्रमणकारी का सामना करते समय बी लिम्फोसाइट्स नामक प्रतिरक्षी कोशिकाओं द्वारा स्रावित विशेष प्रकार के प्रोटीन होते हैं. प्रतिरक्षी प्रणाली एंटीबाडीज की रूपरेखा तैयार करते हैं जो प्रत्येक आक्रमणकारी पैथोजेन के प्रति काफी विशिष्ट होते हैं. एक विशिष्ट एंटीबाडी और इसका साझीदार वायरस एक दूसरे के लिए बने होते हैं.

* यह टीकाकरण से अलग कैसे है:-  यह  थेरेपी निष्क्रिय टीकाकरण के समान है. जब कोई टीका दिया जाता है तो प्रतिरक्षी प्रणाली एंटीबाडीज का निर्माण करती है. इस प्रकार, बाद में जब टीका प्राप्त कर चुका व्यक्ति उस पैथोजेन से संक्रमित हो जाता है तो प्रतिरक्षी प्रणाली एंटीबाडीज स्रावित करती है और संक्रमण को निष्प्रभावी बना देती है. टीकाकरण जीवन पर्यंत प्रतिरक्षण देता है. निष्क्रिय एंटीबाडी थेरेपी के मामले में, इसका प्रभाव तभी तक रहता है, जब तक इंजेक्ट किए गए एंटीबाडीज खून की धारा में रहते हैं. दी गई सुरक्षा अस्थायी होती है.

* क्या यह प्रभावी पद्धति है :- हमारे पास बैक्टिरियल संक्रमण के खिलाफ काफी एंटीबायोटिक्स हैं. तथापि, हमारे पास प्रभावी एंटीवायरल्स नहीं हैं. जब कभी कोई नया वायरल प्रकोप होता है तो इसके उपचार के लिए कोई दवा नहीं होती. इसलिए, कन्वलसेंट सीरम का उपयोग पिछले वायरल महामारियों के दौरान किया गया है.  2009-10 के एच1एन1 इंफ्लुएंजा वायरस महामारी के प्रकोप के दौरान इंटेसिंव केयर की आवश्यकता वाले संक्रमित रोगियों का उपयोग किया गया. निष्क्रिय एंटीबाडी उपचार के बाद, सीरम उपचारित रोगियों ने नैदानिक सुधार प्रदर्शित किया. वायरल को बोझ कम हुआ और मृत्यु दर में कमी किया जा सका. यह प्रक्रिया 2018 में इबोला प्रकोप के दौरान भी उपयोगी रही.

 * क्या इलाज का यह उपाय सुरक्षित है:-  आधुनिक ब्लड बैंकिंग तकनीक जो रक्त जनित पैथोजीन की जांच करते हैं, मजबूत है. डोनर एवं प्राप्तकर्ता के खून के प्रकारों को मैच करना मुश्किल नहीं है. इसलिए, अनजाने में ज्ञात संक्रमित एजेंटों को ट्रांसफर करने या ट्रांसफ्यूजन रियेक्शन पैदा होने के जोखिम कम हैं. संस्थान की निदेशक डा आशा किशोर बताती है कि  जैसाकि हम रक्तदान के मामलों में करते हैं, हमें ब्लड ग्रुप एवं आरएच अनुकूलता का ध्यान रखना होता है। केवल वही लोग जिनका ब्लड ग्रुप मैच करता है, खून दे या ले सकते हैं। खून देने की अनुमति दिए जाने से पूर्व डोनर की सख्ती से जांच की जाएगी तथा कुछ विशेष अनिवार्य कारकों का परीक्षण किया जाएगा. उनकी हेपाटाइटिस, एचआईवी, मलेरिया आदि की जांच की जाएगी जिससे कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे रिसीवर को अलग पैथोजेन न हस्तांतरित कर दे.

* एंटीबाडीज प्राप्तकर्ता में कितने समय तक बना रहेगा :- जब एंटीबाडी सीरम दिया जाता है तो तो यह प्राप्तकर्ता में कम से कम तीन से चार दिनों तक बना रहेगा.  इस अवधि के दौरान बीमार व्यक्ति ठीक हो जाएगा. अमेरिका एवं चीन की अनुसंधान रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि ट्रांसफ्यूजन प्लाज्मा के लाभदायक प्रभाव पहले तीन से चार दिनों में प्राप्त होते हैं, बाद में नहीं.

* क्या है इस पद्धति की चुनौतियां :-  मुख्य रूप से जीवित बचे लोगों से प्लाज्मा की उल्लेखनीय मात्रा प्राप्त करने में कठिनाई के कारण यह थेरेपी उपयोग में लाये जाने के लिए सरल नहीं है. कोविड-19 जैसी बीमारियों में, जहां अधिकांश पीड़ित उम्रदराज हैं और हाइपरटेंशन, डायबिटीज और ऐसे अन्य रोगों से ग्रसित हैं, ठीक हो चुके सभी व्यक्ति स्वेच्छा से रक्त दान करने के लिए तैयार नहीं होंगे. उसे इसके लिए तैयार करना होगा .  संस्थान की निदेशक डा आशा किशोर बताती है कि हमने ड्रग कंट्रोलर जनरल आफ इंडिया को रक्तदान के नियमों में ढील की अनुमति के लिए एज कटआफ हेतु आवेदन किया है।

* इस पद्धति का इतिहास है पुराना :- इस पद्धति की खोज जर्मनी के फिजियोलाजिस्ट इमिल वान बेहरिंग ने 1890 में की थी .  जब वह डिपथिरिया से संक्रमित एक खरगोश से प्राप्त सीरम से  डिपथिरिया संक्रमण को रोकने में कामयाब हुए थे.  बेहरिंग को 1901 में दवा के लिए सर्वप्रथम नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उस समय एंटीबाडीज ज्ञात नहीं था.  कन्वलसेंट-प्लाज्मा थेरेपी कम प्रभावी था और इसके काफी साइड इफेक्ट थे. एंटीबाडीज फ्रैक्शन को अलग करने में कई वर्ष लगे.

#coronavirus: लॉकडाउन ने बदला पशुओं का व्यवहार 

कैसे बदला जानवरों का स्‍वभाव

लॉकडाउन के कारण भीड़भाड़ न होने से चिडि़याघरों में पशुपक्षी खुद को प्राकृतिक वातावरण में स्वच्छंद महसूस कर रहे हैं. यही कारण है कि चिडि़याघरों में अमूनन बाड़ों में रहने वाले जानवर अब खुले वातावरण में विचरण कर रहे हैं. उधर, कई राज्यों के बेसहारा कुत्ते खाना न मिलने पर गुस्सेल हो रहे हैं.

चिड़ियाघरकर्मी भी जानवरों के व्यवहार से हैरान

कोरोना के डर के बीच लॉकडाउन वन्य जीवों के लिए सौगात ले कर आया है. अब उत्तराखंड में नैनीताल चिडि़याघर में बाघ धूप सेंकने के लिए पेड़ पर चढ़ रहे हैं. आराम करने के लिए अब उन्हें छिपना नहीं पड़ रहा है. भालू गाओं तक पहुंच गए हैं.इनको भोजन देने वाले चिडि़याघर कर्मी भी इन जानवरों के व्यवहार में आए बदलाव से हैरान हैं. नैनीताल के ही गोविंद बल्लभ पंत प्राणी उद्यान में 233 वन्य जीव हैं. इन्हें देखने के लिए बड़ी संख्या में सैलानी यहां पहुंचते थे.

जंगल जैसा वातावरण

बायोलॉजिस्टस  का मानना है कि लॉकडाउन के कारण चिडि़याघर में सन्नाटा पसरा है. इस वजह से सभी जंगली जानवर मस्ती कर रहे हैं.यहां उन्हें जंगल जैसा वातावरण मिल रहा है. आम दिनों में जब पर्यटक आते थे तो गुलदार, बाघ, भालू छिप जाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है. जंगली जानवर व्यवहार में बेहद शर्मीले होते हैं और प्रकृति के करीब होते हैं. लिहाजा, लॉकडाउन में सभी मस्ती कर रहे हैं.

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भोजन नहीं मिल पा रहा

उधर, जानलेवा कोरोना के कारण इंसान ही नहीं, जानवरों पर भी आफत बरसी है.दरअसल, लॉकडाउन के कारण लोगों के घरों से न निकलने से कुत्तों को भोजन की भारी किल्लत हो रही है. यह स्थिति ज्यादातर राज्यों की है.इन्हें खाना मुहैया न करा पाने के कारण कोलकाता के कई डॉग शेल्टर से काफी संख्या में कुत्तों को छोड़ दिया गया है, जिस से सड़कों पर उनकी तादाद और बढ़ गई है.

बढ़ सकती है स्पर्धा

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एक पशु चिकित्सक ने बताया कि हालात अगर ऐसे ही बने रहे तो कुत्तों को भोजन नहीं मिलने पर उन में आपसी प्रतिस्पर्धा काफी बढ़ जाएगी.उन्हें जहां भी थोड़ा सा भोजन दिखेगा, वे उस पर टूट पड़ेंगे.हालांकि, भोजन के लिए उन की इंसानों पर हमला करने की आशंका कम है. आमतौर पर कुत्तों की प्रवृत्ति ऐसी होती है कि भोजन न मिलने पर वे एक जगह पड़ेपड़े दम तोड़ देते हैं.जो लोग नियमित रूप से कुत्तों को भोजन कराते हैं, कुत्ते हर रोज उन की बाट जोहते रहते हैं और उन लोगों के न आने पर उन में बेचैनी बढ़ सकती है.

लॉकडाउन: भाग 3

लेखक-मनोज शर्मा 

करीब पांच मिनट तक ऐंबुलैंस या सरकारी गाड़ियों के अलावा वहां से कोई नहीं निकला.आज सड़क साफ थी शायद वैसी ही थी जैसी उस रोज़ जब सुलेखा को यहां अंतिम मर्तवा देखा था.पर आज यहां कोई नहीं ना सुलेखा और ना वो किन्नर की टोली और न वो मोती के फूलों की गंध जो सबको लुभाती थी.

पुलिस कर्मी ने मेरे पास आकर कहा यहां कैसे?

मैंने पुनः जेब में पढ़ा काग़ज़ दिखा दिया.पुलिस ने अपने हाथ में थामे डंडे से बाईक पर सामने की ओर चोट करते हुए जल्दी ही वहां से निकलने को कहा.

सुलेखा आदि को न पाकर मैं हताश था एक अजीब निराशा जो अकेलेपन में मैंने महसूस की थी.मेरी आंखे दूर तक खाली सड़की पर उस टोली को तलाशती रही पर वहां कुछ भी नहीं था.

गहरी चुप्पी और बीच बीच में गाड़ी का हार्न और शायद कुछ नहीं.खाली सड़को पर बाईक दौड़ती रही सफेद पीली लाईट में पेड़ चमक रहे थे एक बड़ी गाड़ी तेज आवाज करती पास से निकल गयी.तेज हार्न सारे सन्नाटे को परास्त कर रहा था पर लाईट के डिप्पर से वो शांत होता चला गया.नम आंखे कुछ ज़रूरी सेवाओं से लौटते लोगों को देखती रही.अस्पताल के सामने खड़ी भीड़ के पीछे पुलिसकर्मी दूर से ही चलते जाने का निर्देश दे रहे थे.पास ही मास्क लपेटे एक मरीज को कुछ लोग थामे अंदर जाने की जुगत लगा रहे हैं.सारा शहर जैसे आततायी चक्र के भय में जी रहा हो.भय पैर पसारे हर गली हर मोड़ पर जैसे दुबका हो.

पहले एक दिन बीता फिर दो तीन चार इक्कीस और फिर जब डेढ़ महीने बाद जब लाॅकडाऊन खुला ऐसा लगा सब कुछ बदल गया हो सारी दुनिया ही बदली बदली लगी डरी डरी-सी सहमी.

लाॅकडाऊन के उपरांत जब दफ्तर का पहला दिन जैसे कि नया जीवन जीना हो.मैं अपलक अपने कम्प्यूटर की तरफ देखता रहा दिन बढ़ने लगा और लंच पर सोचा क्यों ना सिगनल की ओर हो आऊ.आॅफिस के गेट से बाहर खड़े गार्ड ने मुस्कुराते हुए मुझे देखा उसकी आंखे खिली थी उसने अपनी लंबी मूंछ पर ताव देते हुए मुझसे पूछा !सर आप ठीक है? गर्दन को हल्का हिलाते हुए मैं बाराखंभा के सिगनल की ओर आगे बढ़ता गया.आज तेज धूप है पर ट्रैफिक ज़ोरो पर है जैसे सारा शहर को ही इस सड़क से गुज़रना हो.सिगनल पर ख़ासी भीड़ है दो एक किताब विक्रेता गाड़ी के वाईपर आदि के छोटे मोटे विक्रेता लोग ही दिखे पर किन्नरों की टोली वहां नहीं दिखी.मैं मायूस होकर वापिस ऑफिस लौट आया.तीन बज गये पर मन काम में बिल्कुल नहीं लगा बस मन व्यग्र है सुलेखा को एक नज़र देखने के लिए.

प्रेम एक आत्मिक अनुभूति है जिसे केवल महसूस किया जा सकता है दिखाया या बताया नहीं जा सकता.कुछ लोग सुलेखा जैसी किन्नरों का मजाक उडाते हैं या उनका शरीर नौचते हैं पर ये आवश्यक तो नहीं कि प्रेम में व्यक्ति साध्य हो सुलेखा को तीन चार सालों से देखा पर ये मेरी ही मुर्खता रही कि आज तक उसका कोई सम्पर्क सूत्र न ले सका.शायद समाज प्रतिष्ठा के कारण और लोगों का क्या है उन्हें तो तंज साधने के बहाने चाहिए और वैसे भी सुलेखा जैसी

किन्नर लोगों को आत्मीयता से कौन देखता समझता है ?शायद दो फीसद लोग भी नहीं पर लोग ये क्यों नहीं समझते ये भी इंसान हैं काश इनकी दुनिया भी आम आदमी की सी होती.पर जो भी हुआ अब और नहीं आज ही जब मैं सुलेखा से मिलूंगा सब कुछ जान लूंगा उसका संपर्क और लाॅक डाऊन में बीते संकट भरे दिनों की ज़िन्दगी के बारे में भी.सुलेखा न भी मिली तो उस जैसी दूसरी औरतों(किन्नरों)से.

काम में बिल्कुल भी मन नहीं शैलेस ने मेरी कुर्सी की हत्थी पर हाथ रखते हुए मुझे कहा!

आज तो तुम अपनी फ्रेंड से मिलोगे?

मैं हडबड़ा सा गया आंखों पर से चश्मा हटाते मैंने शैलेश को देखा उसके होठ फैले थे और आंखे फटी थी बीच बीच में कंठ से हंसने की आवाज निकल रही थी.किसी तरह ऑफिस से निकलने का समय हुआ पीली धूप जो ऑफिस के एक कोने से होते हुए गहरी छावं में बदलती रही.मेरे पैर खुद व खुद ऑफिस से बाहर होते गये और सिगनल की ओर दौड़ पड़े.सड़क पर ट्रैफिक था पर दोपहर से कम सिगनल पर गाड़ियां रूकने लगी सहसा मैं हर तरफ देखने लगा पर सुलेखा का कोई अता पता नहीं था.पूरी सड़क मोती के फूलों की गंध से लवरेज थी वैसी ही जैसी उस रोज़ थी और सुलेखा को अंतिम मर्तवा देखा था पर किन्नरों को वहां न पाकर मैं ठिठक गया और उस अधेड़ उम्र की औरत की ओर बढ़ने लगा जो मोती के फूल बेचती थी. सुनो अम्मा!

तुमने सुलेखा को देखा है?

क्या वो आज नहीं आयी?

सुलेखा!अरे वो !

क्या हुआ?

बताओ भी ऐसे क्या देख रही हो?

मेरे इतने सवाल एकसाथ सुनकर वो हतप्रभ होकर मुझे देखने लगी.दायें ओर से एक कार तेजी से निकल गयी.मैं उत्तर की तलाश में फूल वाली को देखता रहा.मेरे प्रश्नों को पुनः सुनकर

उस अधेड़ उम्र की औरत की आंखों में आंसू तैर गये.भगवान के लिए कुछ बोलो !क्या हुआ तुम चुप क्यों हो?

फूल बेचने वाली ने जैसे ही बोलना आरंभ किया मैं थरथर कांपने लगा जैसे मेरे होठ सील दिये गये हो वो तो तीन तारीख से •!

अच्छा!

हां वो कोरोना संक्रमित थी!

अभी कहां हैं सुलेखा?मैंने कांपती आवाज़ से पूछा!

हूं शायद सरकारी अस्पताल में वो जी टी बी है ना!

नम आंखों से देखते हुए मैंने उस औरत को सड़क के एक छोर पर चलने को कहा.जेब से बीस का नोट निकालकर उसके हाथ पर रख दिया प्लीज तुम मुझे सुलेखा का फोन नं दे दो!

वो गंभीरता से मेरे चेहरे को देखती रही.

भैया आपको उससे क्या काम था?

क्या आप उसे जानते थे?ऑफिस के सहकर्मी हंसते हुए निकल गये

हां मैं सुलेखा को जानता हूं प्लीज आप मुझे उसका फोन न दे दो या एड्रैस दे दो?

वो मंडावली हैं ना गली नं 12 में भूप सिहं के मकान में वो लोग किराये पर रहते हैं पर इस समय वो जी टी बी हाॅस्पीटल में हैं.औरत के चिपके होठों पर बार बार खुश्क दिखते थे वो फिर बोली बाबूजी आप क्या करेंगे ये रोग फैलने वाला है कहीं आप भी••!जानते हो! उस मोहल्ले में छह लोगों को कोरोना था.सुलेखा मिलनसार थी वो डरती नहीं थी पर उसे भी वो भी कोरोना की चपेट में ••बोलते बोलते वो चुप हो गयी.

अच्छा आप उसका नं ले लो मेरी बात हुए तो दस बारह दिन हो गए हैं शायद इससे भी ज़्यादा!उसने ब्लाऊज में हाथ घुसेड़कर छोटा सा फोन निकाला और सुलेखा का फोन नं देते हुए कहा बाऊजी देख लेना शायद फोन सुलेखा के पास हो या न हो.फोन नं देकर वो एक पुराने ग्राहक को देखकर उस ओर दौड़ पड़ी.

कहो सर कैसे हो?

एक ठिगने से आदमी ने हंसते हुए उस औरत से एक गजरा लिया और नोट देते हुए उसे अपनी सलामती की बात कही. वो औरत जल्द ही दूसरे ग्राहक में उलझ गयी.मुझे लगा कि वो वापिस लौटेगी पर दस मिनट तक वो वापिस न लौटी.सड़क पर शौर होता रहा एक बड़ी गाड़ी सिगनल पर आकर रूकी पर जैसे ही सिगनल हरा हुआ वो तेजी से घिसटती हुई वहां से निकल गयी.

सुलेखा का नं0 डायल करने पर वो स्वीच आॅफ था.दो तीन बार मिलाने पर यही प्रतिक्रिया सुनाई दी.मेरा कलेजा धड़कने लगा सामने से एक आॅटो आया और मुझे वहां खड़ा देखकर उसने ब्रेक लगाया.

जी सर!बायीं ओर से चेहरा निकला और मुझे ताकने लगा.

जी टी बी हास्पिटल चलोगे?

ऑटो जी टी बी हास्पिटल की तरफ दौड़ पड़ा.

अस्पताल पहुंचते ही मैं रिसैप्सन पर रूका और सुलेखा के बारे में जानना चाहा.

अरे बाबू जी आप!

यहां कैसे?

मास्क लपेटे एक पतली कमजोर सी किन्नर मेरी तरफ बढ़ी और मुझे देखकर रूआंसी हो गयी.

सुलेखा कहां है?

वो रोते हुए बोली बाबूजी सुलेखा नहीं रही!

पिछली तेरह को उसने दम तोड़ दिया!

उसको कोरोना हो गया था.

हां बाबू जी कोरोना!वो पोजिटिव थी!

सुबकते हुए उस किन्नर ने कहा!

मेरे पैर तले जैसे जमीं ही जैसे निकल गयी हो मैं दो पल चुप रहा.

हैं सुलेखा को कोरोना !

जैसे यकीन न हो रहा हो.

उसे कैसे हो सकता है कोरोना!

नहीं नहीं तुम झूठ बोल रही हो!

नहीं बाबूजी सब सच है!

एकदम सच!

बिल्कुल सच!

हां यही सच है!

सुलेखा नहीं बची.

कोरोना ना उसे मार दिया!

हास्पिटल के सूचना पट को देखते हुए मेरी आंखे भीग गयी.

साहब हम चार में से अब दो बचे हैं बेला भी तीन रोज़ पहले••.कहते हुए वो किन्नर फिर रो दी.

मैं हास्पिटल के अहाते में आते जाते मरीजो व उनके प्रियजनों को देखता रहा.सुलेखा का मुस्कुराता चेहरा भी इसी भीड़ में कहीं छिपा है

काश !लाॅकडाऊन में सुलेखा बच जाती.

काले आसमां में चमकते सितारों को देखता मैं घर की ओर बढ़ गया.

 

लॉकडाउन: भाग 2

लेखक-मनोज शर्मा 

अच्छा! पुलिस का दूसरा कर्मी आश्चर्य से देखता

उसकी बात सुनता रहा.जीप स्टार्ट हुई और सिगनल की तरफ दौड़ गयी.

सब सहकर्मी जो मेरे साथ सड़क पर आगे बढ़ रहे थे चेहरों पर कौतुहलता और चिंता आने लगी.

सड़क के दोनों और लंबी बिल्डिंगों की लाइट्स अब बुझने लगी थी.युकोलिपट्स के लंबे पेड तेज समीर से झूम रहे थे.सुलेखा बैंगनी साड़ी पहने तेज कदमों से मेरी ओर आई उसके चेहरे पर उदासीनता थी वो आगे बढ़कर मुझसे पूछने लगी!भैया ये लाॅक डाऊन क्या होता है! सुना है हर तरफ लाॅकडाऊन होगा!मेरे सहकर्मी मुझे देखकर हंसने लगे औह हो पक्की दोस्ती!

वो लोग बोलते रहे पर मेरे कदम आगे की ओर बढ़ते ही जा रहे थे पर फिर भी मैं दो पल के लिए रूका सुलेखा मेरे मुख से जवाब चाहती थी भैया!

बताओ ना !सब बोल रे हैं लाॅक डाऊन !लाॅकडाऊन मतलब !

एक बड़ी सफेद गाड़ी दोनों के करीब से गुजरी पर सामने लाल सिगनल देखकर वो हल्के हल्के घिसटकर बढ़ने लगी.रोड़ के दूसरी तरफ एक बाईक का हार्न पूरी सड़क पर गूंज गया.हमारे सामने एक ऑटो रूका जिसमें पीछे बैठे व्यक्ति

ने सिगरेट सुलगाई और धूएं को हवा में उड़ेलते हुए उसने पतलून की जेब से नोट निकाला और सुलेखा को बुलाकर कहा !हूं हैलो डियर ये लो!

सुलेखा उस आदमी की ओर मुस्कुराते हुए बढ़ गयी उसने एक नोट को चूमते हुए उसे देने के लिए हाथ बढ़ाया पर जैसे ही सुलेखा ने नोट पकड़ा उस आदमी से उसकी कलाई पकड़नी चाही!अरी सुनो तो!दांत भींचते हुए होठों को फैलाते हुए भोंडी सी हंसी लिए वो सुलेखा को घूरता रहा पर सुलेखा साड़ी के पल्लू को समेटते आगे बढ़ने लगी.

मैं जब तक लाॅकडाऊन का मतलब समझाता वो सड़क के दूसरे छोर पर पहुंच गयी थी मुझे लगा था कि वो सिगनल बदलते ही लौटेगी पर वो दूसरे किन्नरों संग व्यस्त होती गयी.मैंने सुलेखा को बुलाना चाहा मेरी आंखे हर ओर उसे ही ढूंढ

रही थी पर सुलेखा गाड़ियों की भीड़ और पैसे की चाह में मुझसे मिलना भूल गयी.

शैलेश ने मुझे पुकारा! अरे यार तुम्हें चलना नहीं क्या ?

मैंने उसकी बाते सुनकर कोई जवाब नहीं दिया और बढ़ती गाड़ियों को देखता रहा.मुझे फिर पुकारा गया चलोगे! या हम चले?

सहसा मैंने शैलेश को देखा वो मेरे इंतज़ार में आगे बढ़कर खड़ा हो गया था और मेरी राह देख रहा था उसकी आंखे बड़ी थी तथा चेहरे पर रोष था हमारी जैसे ही आंखे मिली उसने फिर इशारे से मुझे आगे बढ़ने को कहा.सड़क पर तेज शोर था मोती के फूलों की गंध अभी भी हर तरफ से आ रही थी.

मैं शैलेश के साथ आगे बढ़ने लगा मेरा सड़क की ओर मुड़ता चेहरा बार बार दौड़ते वाहनों में सुलेखा को खोज रहा था.किन्नरों की टोली गाड़ियों के सामने तालियां बजाती लपक रही थी.फब्तियां और तंज कई राहगीरों के मुख पर चढ़े थे पर किन्नरों की टोली सिद्धहस्त कलाकारों की भांति अपने काज में संलग्न थी पर इस भीड़ में कहीं सुलेखा नहीं दिखाई दी.हम लोग करीब घंटे

में अपने अपने घर पहुंच गये शायद सुलेखा और दूसरे किन्नर भी.

सरकारी आदेश पारित हुआ हर जगह लाॅक डाऊन!एक बार जैसे ज़िन्दगी ही थम गयी हो.यानि घरबंदी!सारे रास्ते बंद!कोई सड़क पर नहीं पहुंच सकता यहां तक कि घर से ही नहीं निकल सकता!तो फिर सिगनल!

मन कोंधा

सुलेखा कैसी होगी!

और वो किन्नर टोली!

सारी दिल्ली के किन्नर!

सारे भारत के किन्नर!

उनके खाने पीने रहन सहन के बारे में सोचकर दिल थम गया जैसे सारी इन्द्रियां सुलेखा को ही

तांक रही हो.आज कितने ही दिन हो चुके हैं सब घर में बैठे हैं पर रोज़ पैसा इकट्ठा करने वाले लोग कैसे जी रहे होंगे और सुलेखा या वो किन्नर टोली कैसे•• क्यींकि उन लोगों को देखकर तो वैसे ही सब उन्हें उपेक्षा भरी नज़रों से देखते हैं.सड़के खाली हैं खुले आसमां की भांति हर आदमी इन दिनों अपनी ज़िन्दगी से ऊब रहा है.बालकाॅनी की तरफ जाकर देखा तो पाया सड़क खाली है कोई इक्का दुक्का लोग ही सड़क पर घंटो तक देखने के बाद दिखाई देता है.

शाम को अलमारी खोली सामने दराज में एक मुड़ा हुआ काग़ज़ मिला सोचा खोलकर देखू.काग़ज़ के कोने पर संगम नर्सिंग होम था नीचे कुछ दवाइयों के नाम लिखे थे.दवाइयों के नाम पढ़ते पढ़ते याद आया पिछले महीने जब गुरनाम को ऑफिस से ले जाकर नर्सिंग होम में एड़मिट किया था क्योंकि उसदिन उसकी तबीयत ज़्यादा ही ख़राब हो गयी थी तभी ये काग़ज़ मेरे साथ आ गया था.सामने टेबल पर रखे फोन से गुरनाम का फोन लगाया दो तीन बैल बजते ही गुरनाम की बीबी ने फोन उठाया! हैलो हां गुड़ इवनिंग हूं यहीं

हैं एक मिनट!

कहो गुरनाम अब कैसे हो?

सब ठीक है अब?

हां मैं भी ठीक हूं!

और बच्चे?

हां सब बच्चे ठीक ठाक हैं !

हां एग्ज़ाम तो हो गये थे !

नहीं साइंस है ना !

भाई बारहवी में हैं ना!

हूं हां हां!

चलो ओके! टेक केयर !

बाय!

फोन रखते ही मुंह पर मास्क लगाकर दवाई की पर्चा जेब में डालकर बाईक उठाकर रोड़ पर चल पड़ा.सोचा कोई न मिले तो बाराखंभा के सिगनल

तक हो आऊं.घर से एक ढेड़ किलोमीटर ही बढ़ा था पुलिस कर्मियों ने मुझे रोकने के हाथ बढ़ाया

तेज स्पीड़ से चलते पहिये वहीं थम गये.हेलमेट बिना उतारे पुलिसकर्मी ने बाहर निकलने का सबब पूछा.मैं सहम सा गया पर जेब से वो पर्चा निकालकर उसमें लिखी दबाई पर अंगुली रखकर बताया कि ये बहुत ज़रूरी है.वहां से निकलने से पहले ही मैंने पुलिस कर्मी को धन्यवाद दिया.

दो एक सिगनल आये पर इस काग़ज़ के सहारे मैं बाराखंभा के सिगनल तक पहुंच गया.शाम तेजी से रात की ओर बढ़ रही थी पर खाली सड़कों पर आज बहुत कम ट्रैफिक था.इस सड़क पर ऐसा सूनापन शायद मैंने पिछले दस बारह सालों में कभी नहीं देखा था.सड़क का हर कोना खाली था गहरा सूनापन बिल्कुल शून्य की तरह.

लॉकडाउन: भाग 1

लेखक-मनोज शर्मा

साड़ी के पल्लू से पेशानी पोंछते हुए सुलेखा ने सिगनल पर आती गाड़ी को देखा और उसकी तरफ दौड़ पड़ी. गाड़ी के शीशे पर हथेली से थपकी देते हुए उसने अपने दोनों हाथों से ताली पीटी और पीछे आने वाली गाड़ी के बोनेट पर अंगुलियों से हल्की सी टाप दी.गाड़ी का शीशा खुला उसमें से ड़ाइवर सीट की तरफ से एक हाथ निकला जिसमें मरा हुआ दस का नोट था जिसे देखते ही सुलेखा ने दोनों हाथों की कलाइयों को मोड़ते हुए कानों की ओर घुमाते हुए मुंह से दुआ दी!

“भैया आपकी हर इच्छा पूरी हो.” चेहरे पर हंसी के भाव लिए सुलेखा ने हाथ जोड़ दिये और अगली गाड़ी की ओर बढ़ गयी.

सुलेखा एक किन्नर है जिसे प्रायः मैंने ऑफिस से शाम को निकलते इसी सिगनल पर देखा है कभी गहरे हरे रंग की साड़ी में तो कभी लाल रंग के कढ़ाई वाले सूट में.सुलेखा के गोल चेहरे पर ऊठी नाक है पर लंबे बाल हैं गहरी काली आंखों पर खासा मेकअप होता है.अक्सर सिगनल पर शाम को सुलेखा और उस जैसी दो तीन किन्नरों की टोली गाड़ियों से पैसा आदि की मांग करती देखी जाती है.उस रोज़ पिंक सूट में सुलेखा एक आॅटों में बैठे युगल से पैसा मांग रही थी पर आटो में बैठे युवक ने उसे वहां से आगे बढने का निर्देश दिया और साथ में बैठी युवती संग बतियाने लगा. क्या यार, ये हिजडी यहां डेली फटक जाती है कोई काम नहीं है क्या इसको ?आटो के शीशे में सुलेखा बीच बीच में दूसरी किसी गाड़ी से पैसा मांगती दिखाई दे रही है. नहीं नहीं इनका यही तो काम है इसी पैसे से तो इनकी ज़िन्दगी चलती है !देखो साड़ी कितनी सुंदर है ! उत्सुक्तावश चेहरा आॅटों से बाहर झांकता हुआ बोलता है.एक दूसरी महिला किन्नर पास ही में गाड़ियों के इर्द गिर्द घूमती हुई सबको बोलती है, “ऐ सर जी!भला लो आपका.”

“हैलो मैडम.”

“भैया कैसे हो.”

“सर जी ठीकठाक.”

मुहं पर मुस्कुराहट के साथ बीच बीच में ताली पीटती तेज दौड़ जाती हैं.

सड़क के इस छोर से उस छोर तक दोपहर से शाम और फिर देर रात बिना रूके अनवरत हर सिगनल पर इसी तरह न जाने कितने किन्नर युवा या अधेड़ अपनी ज़िन्दगी जीते हैं.हरा सिगनल जैसे ही ओरेंज होता है इन लोगों की उछल कूद आरंभ होने लगती है और कुछ ही मिनटों यानि के सिगनल जब तक लाल रहता है ये मस्ती,स्फूर्ति व मशक्कत से हर सामने आने वाले लोगों से आत्मीयता स्थापित करने की पुरजोर कोशिश करते हैं.सुलेखा भी किन्नरों की इसी टोली का एक हिस्सा है जो मुझे जब भी सिगनल से गुज़रते देखती है मुस्कुराकर बोलती है “भैया या सर जी नमस्ते” या अन्य किसी अभिवादन उक्ति लिए प्रकट हो जाती है. उसी तरह जैसे इक्के पर बैठा मीठी मीठी बातों से रास्ता मांगता आगे बढ़ता है. सुलेखा के चेहरे पर तन्मयता है, कोई क्रोध या द्वेष नहीं अर्थात कोई कुछ दे दे तो ठीक वरना किसी दूसरी गाड़ी के करीब चली जाती है. कोई ना नुकर नहीं और न कोई झगड़ा. जाने कितनी ही मर्तवा मैंने उसे अपने दफ्तर के करीब यानि के बाराखंभा रोड़ के चौराहे पर बने सिगनल पर देखा है. आज से नहीं बल्कि करीब तीन चार सालों से. मुझे उस रोज़ जब ऑफिस के काम से शिमला जाना था तो लगा कि उसकी मुस्कान मेरे बहुत काम की होगी.

दिल में ख़ुशी हो तो सफलता मिलने के अधिक चांस होते हैं. रोज़ सुलेखा को सिगनल पर देखते ही मैं मुस्कुरा दिया वो मेरे करीब से गुजरते हुई थोड़ा मुस्कुराई और बोली ” भैया गुड इवनिंग.” उस रोज़ मैंने उसकी आंखों में खुशी देखी थी अब चूंकि सड़क के दूसरी ओर ग्रीन सिगनल की वजह से ट्रैफिक दोोड़ रहा था तो उसे देखते ही दिन वाली बात याद आ गयी मैंने झट से अपने पर्स से पचास रूपये निकाले और सुलेखा के हाथों में रख दिये उसकी आंखों में चमक थी उसने नोट को माथे पर लगाकर अपने पर्स में रख लिया व एक सिक्का निकाला जिसे अपने मस्तक आंखों व होठो से छूते हुए पुनः मेरे हाथ में रख दिया यही नही थोड़े चावल भी एक डिबिया से निकाले और मुझे देते हुए कहा, ” भैया!आपके सारे काम पूरे होंगे!आपकी सारी इच्छाएं पूर्ण हों.” सड़क के दूसरी और निकलती गाड़ियों की गति काफी तीव्र थी. एक मोटर साइकिल पर सवार युवक सुलेखा को देखकर अजीब सी टोंट कसता हुआ वहां से निकला और एक गाड़ी में बैठी युवती ने अनमने भाव से उसे देखते हुए स्पीड बढ़ा दी. सुलेखा अपनी रोज़मर्रा ज़िन्दगी में पूरी तरह व्यस्त दिख रही थी गाड़ी के सिगनल को बदलता देख फिर सड़क के दूसरे किनारे की ओर दौड़ लगा दी. सड़क के एक किनारे मोती के फूलों की गंध से पूरी सड़क महक उठती थी यह आज ही नहीं बल्कि ऐसा रोज़ शाम को होता है जब एक औरत जो पचास के लगभग की होगी हाथों में मोतियों के फूलों की माला लिए फिरती है. मैंने अक्सर ग्राहकों को उस महिला से माला खरीदते देखा था गाड़ी वाले भी और ऑटों की पिछली सीट पर बैठे लोगों के द्वारा भी. सुलेखा और अन्य किन्नर इस महिला से मजाक आदि कर लेते हैं पर मैंने कभी इन्हें आपस में झगड़ते नहीं देखा.

पिछले तीन चार दिनों से एक बीमारी ने सारे देश को चौका दिया. हर तरफ बस एक ही बात कोरोना वायरस! सुना है दिल्ली बंद हो रही है

आॅफिस से निकलते हुए शाम को मुझसे किसी ने पूछा.मैंने चौंकते हुए कहा!अच्छा !

हां यार सुना तो मैंने भी है!

दुधिया रोशनी में नहायी सड़क आस पास की तेज रोशनी से और भी चमक रही थी पर आज एतिहातन सड़क पर भीड़ कम थी.भीड़ को कम देखकर मुझे लगा कि मैं आज लेट हो गया हूं कलाई पर बंधी घड़ी में समय देखा तो महसूस किया वही टाइम तो है जो रोज़ होता है.दो एक पुलिस मुंह पर मास्क लगाकर खड़े थे वो सामनै खड़ी जीप में चढ़ते हुए बात करने लगे! हां दिल्ली में लाॅक डाऊन कन्फर्म है!

मैंने 2 बार अपनी गर्लफ्रैंड को किस किया है. पर जब भी सैक्स के लिए कहता हूं तो वह मना कर देती है. आप बताएं मैं क्या करूं.

सवाल
मैं 18 साल का लड़का हूं. मेरी गर्लफ्रैंड है जिस से मेरी फ्रैंडशिप हुए डेढ़ साल हो गया है. हम दोनों ही एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं. मैं उसे 2 बार किस भी कर चुका हूं लेकिन मैं उस से जब भी सैक्स करने के लिए कहता हूं तो वह यह कह कर मना कर देती है कि शादी से पहले यह सब ठीक नहीं है. आप ही बताएं कि मैं क्या करूं?

जवाब
भले ही आप की फ्रैंडशिप को कितने भी साल हो गए हों और आप एकदूसरे से कितना भी प्यार करते हों, लेकिन शादी से पहले सैक्स की बात सोचना बिलकुल गलत है. अभी आप की उम्र बहुत छोटी है जिस में आप अपने इमोशंस पर कंट्रोल नहीं कर पा रहे हैं और वास्तविकता से अंनजान हैं.

ऐसे में आप का एक गलत फैसला आप का जीवन बरबाद कर सकता है. इसलिए आप अपनी गर्लफ्रैंड की फीलिंग्स की कद्र करें और सही वक्त का इंतजार करें.

एक बात और, सिर्फ सैक्स के लिए उस से फ्रैंडशिप मत तोडि़एगा क्योंकि आप के ऐसा करने से वह फिर कभी किसी पर विश्वास करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगी. स्वार्थरहित हो कर आप दोनों एकदूसरे से प्यार करें.

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सैक्स रहित प्रेम अच्छा है पर होता नहीं

युवावस्था उम्र की वह दहलीज है जिस में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होना लाजिमी है. यह आकर्षण कब प्यार में बदल जाता है, पता ही नहीं चलता. कालेजगोइंग युवकयुवतियों में तो प्रेम सिर चढ़ कर बोल रहा है. वैसे प्रेम करने में कोई बुराई नहीं है. अगर प्रेम में सीरियसनैस हो, लेकिन ऐसा होता नहीं है. आज की पीढ़ी ने तो प्रेम को मात्र ऐंजौय का जरिया बना रखा है. वे शारीरिक आकर्षण को ही प्रेम सम झ बैठे हैं.

प्रेम का नशा महानगरों के युवकयुवतियों पर ही नहीं चढ़ा है बल्कि छोटे शहरों यहां तक कि गांवदेहातों तक के युवा प्रेम का लुत्फ उठाते हुए देखे जा सकते हैं. महानगरों में तो पार्कों, मैट्रो, मौल्स और खंडहरों में युवा एकदूसरे से आलिंगनबद्ध होते नजर आ जाते हैं. उन्हें देख कर ऐसा लगता है जैसे ये स्थल खासतौर पर प्रेमी युगलों के लिए ही बनाए गए हों.

सच तो यह है कि सैक्स की पूर्ति के लिए ही युवक प्रेम का ढोंग रचते हैं. वे अपनी गर्लफ्रैंड को प्रेम का  झांसा दे कर उस से सैक्स संबंध बनाते हैं और जब उन का उस से जी भर जाता है तो उसे छोड़ कर नई गर्लफ्रैंड बना लेते हैं. फिर उस को कौन्फिडैंस में ले कर उस के साथ भी सैक्स संबंध बनाते हैं. अगर गर्लफ्रैंड उसे इस के लिए मना करती है तो वह अभिनय करते हुए कहते हैं, ‘‘ट्रस्ट मी यार, मैं ताउम्र तेरा साथ निभाऊंगा.’’ भोलीभाली युवतियां ऐसे फरेबी बौयफ्रैंड के जाल में फंस कर अपना सर्वस्व लुटा देती हैं और फिर समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहतीं.

पिछले काफी समय से बौयफ्रैंड व उस के दोस्तों द्वारा गैंगरेप की घटनाएं आम हो गई हैं. ऐसे युवा प्रेम का नाटक कर के अपनी गर्लफ्रैंड को किसी एकांत स्थान पर ले जाते हैं और अपने दोस्तों को भी बुला लेते हैं. फिर गर्लफ्रैंड को इन वहशियों की हवस का शिकार होना पड़ता है.

बहुत कम युवतियां ही अपने साथ हुए इस दुराचार को अपने पेरैंट्स को बताने की हिम्मत जुटा पाती हैं वरना अधिकतर तो घुटघुट कर ही जीती हैं या बदनामी के भय से आत्महत्या जैसे कृत्य को अंजाम दे बैठती हैं.

दिल्ली की रहने वाली श्वेता शुरू से ही ब्यूटी व फैशन कौंशस युवती थी. ग्रैजुएशन के बाद उस ने मौडलिंग को अपना कैरियर बना लिया. मौडलिंग के दौरान ही उस की मुलाकात सुहेल से हो गई. दोनों के बीच प्रेम के बीज कब अंकुरित हुए, पता ही नहीं चला. धीरेधीरे उन का प्रेम परवान चढ़ने लगा. दोनों मौडलिंग ट्रिप पर साथ जाते और घंटों साथसाथ बिताते. श्वेता उस के प्रेम में पूरी तरह पागल थी. उसे वह दिलोजान से चाहने लगी थी. एक अच्छे जीवनसाथी की जो तसवीर उस ने अपने दिल में संजो रखी थी, वे सभी गुण सुहेल में थे.

दोनों पढ़ेलिखे थे, इसलिए जातिबंधन की समस्या भी उन के बीच नहीं थी. सुहेल ने भी श्वेता से शादी करने का वादा कर रखा था, लेकिन एक दिन सुहेल ने अचानक श्वेता के सामने सैक्स करने की अपनी इच्छा उजागर कर दी.

श्वेता ने पहले तो नानुकर की पर सुहेल ने वादा किया कि वह उसे धोखा नहीं देगा इसलिए वह मान गई. दोनों के बीच सैक्स संबंध कायम हो गए. अब अकसर सुहेल उस से सैक्स की फरमाइश करता. यह सिलसिला काफी समय तक चलता रहा.

इस बीच जब श्वेता प्रैग्नैंट हो गई तो उस ने सुहेल से शादी करने को कहा ताकि वह बदनामी से अपने को बचा सके. सुहेल को श्वेता की यह बात नागवार गुजरी. उस ने शादी करने से इनकार कर दिया. यह सुन कर श्वेता के पैरों तले जमीन खिसक गई. आखिर उसे अपने मातापिता को सबकुछ साफसाफ बताना पड़ा. श्वेता के पेरैंट्स ने सुहेल के मातापिता से बात की. खैर उन्होंने किसी तरह सुहेल को शादी के लिए रजामंद कर लिया पर हर मातापिता ऐसे नहीं होते जो शादी से पहले ही प्रैग्नैंट हो गई युवती को अपना लें.

श्वेता तो महज एक उदाहरण है, अकसर हजारों युवतियां युवकों के प्रेमजाल में फंस कर शारीरिक शोषण का शिकार हो जाती हैं, जिन में से अनेक खुदकुशी जैसे कृत्य को अंजाम दे बैठती हैं. कहीं आप भी ऐसे प्रेमी के चक्कर में न फंस जाएं इसलिए यहां कुछ ऐसे टिप्स दिए जा रहे हैं जिन को अपना कर आप प्रेमी का चयन कर सकती हैं :

प्रेमी के चयन में जल्दबाजी न करें

अकसर युवतियां किसी भी युवक की मीठीमीठी बातों में आ कर बिना सोचेसम झे उसे दिल दे बैठती हैं और साथ मरनेजीने की कसमें खाती हैं. ऐसा करना किसी भी लिहाज से ठीक नहीं है. प्यार करने से पहले सोचिए कि प्यार एक बार होता है बारबार नहीं. न ही प्रेमी जींस की तरह होता है कि कुछ दिन पहनी और जब मन भर गया तो फिर नई खरीद ली. प्रेम एक पवित्र रिश्ता होता है, जिस की बुनियाद एकदूसरे के प्रति विश्वास और समर्पण पर टिकी होती है.

इसलिए प्रेम करते समय कतई जल्दबाजी न करें. प्रेमी को अच्छी तरह जांच परख लें फिर प्यार की पींगें बढ़ाएं. ‘लव एट फर्स्ट साइट’ के फार्मूले पर चलना भविष्य में परेशानी का सबब बन सकता है पर ऐसा होता बहुत कम है. ज्यादातर युवतियां हर उस युवक की ओर आकर्षित होती हैं, जो डैशिंग हो, स्मार्ट हो. यह जरूरी नहीं है कि हर डैशिंग पर्सनैलिटी वाला युवक सिंसीयर प्रेमी साबित हो बल्कि देखने में आया है कि ऐसे युवक ज्यादा फरेबी होते हैं. इसलिए सोचसम झ कर ही प्रेमी का चयन करें.

युवक के बारे में पहले पता कर लें

प्रेम करने से पहले युवती को चाहिए कि पहले पता कर ले कि जो युवक उसे पसंद आ रहा है, उस का बैकग्राउंड क्या है, क्या उस में एक अच्छे प्रेमी होने के सभी गुण मौजूद हैं?

अकसर युवक किसी युवती को पटाने के चक्कर में बड़ीबड़ी बातें करते हैं लेकिन असलियत में ऐसा कुछ भी नहीं होता. युवतियां ऐसे युवकों की बातों में फंस कर उन्हें दिल दे बैठती हैं.

युवकों का तो काम ही है प्रेम का नाटक करो और फिर सैक्स संबंध बनाओ. युवतियां चूंकि ऐसे युवकों के जाल में फंस चुकी होती हैं, इसलिए वे लाचार हो जाती हैं अपना सर्वस्व लुटाने के लिए. ऐसे युवक अपना उल्लू सीधा करते ही भाग खड़े होते हैं. इसलिए युवतियों को प्रेमी का चयन करते समय उस के बारे में अवश्य पता कर लेना चाहिए कि वह कितने पानी में है.

प्रेमी के साथ सुनसान जगह पर न जाएं

आज के युवकयुवतियां बिंदास किस्म के होते हैं. वे कहीं पर भी चल पड़ते हैं. वीरान जगहों पर प्रेमी के साथ जाने पर सीमाओं का अतिक्रमण होगा ही होगा. इसे कोई रोक नहीं सकता, क्योंकि अब लैलामजनूं, शीरींफरहाद जैसे समर्पित प्रेमी तो रहे नहीं. आज के प्रेमियों का सैक्स पर कंट्रोल नहीं होता. वे सैक्स को ही प्रेम सम झते हैं. युवकों में तो सैक्स के प्रति क्रेज होता ही है, युवतियां भी इस में पीछे नहीं रहतीं. वे खुद अपने प्रेमी के साथ सैक्स संबंध बनाने की इच्छुक रहती हैं. दूसरा, आजकल ऐसी भड़काऊ ड्रैसेस आ गई हैं जिन्हें जब प्रेमिका पहन कर प्रेमी के साथ एकांत स्थान पर जाती है तो सब्र का बांध टूटने लगता है और सैक्स संबंध स्थापित हो जाते हैं.

यदि युवतियों को अपने को सैक्स संबंधों से बचाना है तो कभी भी किसी सुनसान जगह पर प्रेमी के साथ न जाएं और न ही भड़काऊ ड्रैस पहनें.

प्रेमी को अपने माता पिता से मिलवाएं

चोरीछिपे प्रेम करना ठीक नहीं है. अगर आप दिल से किसी को प्रेम करती हैं तो उसे अपने पेरैंट्स से जरूर मिलवाएं. इस से यह फायदा होगा कि आप के मातापिता आप को बता पाएंगे कि आप का चुनाव सही है या गलत, क्योंकि उन्हें काफी अनुभव होता है. दूसरा फायदा यह होगा कि आप के पेरैंट्स का आप के प्रति विश्वास बढ़ जाएगा कि उन की बेटी ने सबकुछ सचसच बता दिया. हर स्तर पर वे आप के मददगार साबित होंगे. इसी तरह आप भी अपने प्रेमी से कहें कि वह आप को अपने पेरैंट्स से मिलवाए. अगर वह आप को उन से मिलवाने में टालमटोल करता है तो सम झ लें कि उस का प्रेम महज एक धोखा है और वह एक नंबर का चीट है. ऐसी स्थिति में जितनी जल्दी हो सके उस से किनारा कर लेना ही ठीक होगा.

प्रेमी के साथ नशा न करें

आजकल प्रेमीप्रेमिकाओं में नशाखोरी का चलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है. डिस्कोथिक व बार में युवतियों को भी शराब पीते देखा जा सकता है. वर्किंग गर्ल्स खासतौर से एमएनसी में काम करने वाले युवा खूब शराब पीते हैं. आजकल ‘टकीला’  नामक एक लेडीज ड्रिंक भी बाजार में आ गया है जो युवतियों का फेवरिट ड्रिंक है, इस से एकदम से नशा चढ़ता है. प्रेमी शराब की शौकीन ऐसी युवतियों का जम कर शारीरिक शोषण करते हैं. जब शराब का नशा उतरता है तब युवतियों को एहसास होता है कि वे गलती कर बैठी हैं. इसलिए कभी भी प्रेमी के साथ शराब पीने की भूल न करें.

लेटनाइट पार्टियों से दूर रहें

आजकल ज्यादातर पार्टियां लेटनाइट तक चलती हैं इसलिए प्रेमी जितना भी जोर डाले आप उसे साफसाफ कह दें कि आप लेटनाइट पार्टी में नहीं जा सकतीं. इन पार्टियों में मौजमस्ती और फन के चक्कर में प्रेमी अपनी प्रेमिका का जम कर दैहिक शोषण करते हैं. उस समय वे भूल जाते हैं कि वे तो प्रेमीप्रेमिका हैं. अत: लेटनाइट पार्टी में जाने से बचें.

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19 दिन 19 कहानियां: कुंआरे बदन का दर्द

शबनम अकेले ही एक टेबल पर बैठ कर खाना खा रही थी और जावेद अलग टेबल पर. 5 सालों के बाद उन के चेहरों में कोई खास फर्क नहीं आया था.

शबनम को खातेखाते कुछ याद आया और वह खाना छोड़ कर जावेद के टेबल की तरफ बढ़ी. शायद उसे 5 साल पहले की कोई बात याद आई थी.

‘‘आप ने खाने से पहले इंसुलिन

का इंजैक्शन लिया है कि नहीं?’’ शबनम ने जावेद से पूछा.

‘‘इंजैक्शन लिया है. लेकिन 5 साल तक तलाकशुदा जिंदगी गुजारने के बाद तुम्हें कैसे याद है?’’ जावेद ने पूछा.

‘‘जावेद, मैं एक औरत हूं.’’

‘‘तुम्हारे जाने के बाद, इतना मेरा किसी ने खयाल नहीं रखा,’’ जावेद

ने कहा.

‘‘अगर ऐसी बात थी तो तुम ने मुझे तलाक क्यों दिया?’’

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‘‘वह तो तुम जानती हो…

5 साल साथ रहने के बाद भी तुम मां नहीं बन पाई और बच्चा तो हर किसी को चाहिए.’’

‘‘अगर तुम बच्चा पैदा करने के लायक होते तो क्या मैं नहीं देती?’’ शबनम ने कहा और अपनी टेबल की तरफ बढ़ गई.

जब वे दोनों होटल से बाहर निकले तो फिर मेन गेट पर उन की मुलाकात

हो गई.

‘‘चलो, कुछ दूर साथ चलते हैं,’’ जावेद ने कहा.

‘‘जिंदगीभर साथ चलने का वादा था लेकिन तुम ने ही मुझे तलाक दे कर घर से निकाल दिया,’’ शबनम बोली.

‘‘जो होना था, हो गया. अब यह बताओ कि तुम यहां आई कैसे?’’

‘‘जब तुम ने तलाक दिया तो मैं अपने मांबाप के पास गई. वे इस सदमे को बरदाश्त नहीं कर सके और 6 महीने के अंदर ही दोनों चल बसे. मैं तो उन की कब्र पर भी नहीं जा सकी क्योंकि औरतों का कब्रिस्तान में जाना सख्त मना है.

‘‘उस के बाद मैं भाई के पास रही थी. भाई तो कुछ नहीं बोलता था, लेकिन भाभी के लिए मैं बोझ बन गई थी. वह रातदिन मेरे भाई के पीछे पड़ी रहती और मुझे जलील करते हुए कहती थी कि इस की दूसरी शादी कराओ, नहीं तो किसी के साथ भाग जाएगी.

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‘‘तुम नहीं जानते कि कोई मर्द तलाकशुदा औरत से शादी नहीं करता. सब को कुंआरी लड़की और कुंआरा बदन चाहिए.

‘‘भाई बहुत इधरउधर भागा, पर कहीं कोई मेरा हाथ थामने वाला नहीं मिला. आखिरकार उस ने एक बूढ़े आदमी से मेरी शादी करा दी. वह दिनभर बिस्तर पर पड़ा रहता और मैं उस की एक नर्स हूं. उसे समय से दवा देना, खाना खिलाना या बाथरूम ले जाना, यही मेरी ड्यूटी?थी.

‘‘मुझे यह भी मालूम है कि तुम ने दूसरी शादी कर ली और तुम को दोबारा एक कुंआरी लड़की मिल गई. लेकिन मेरी जिंदगी को तो तुम ने सीधे आग की लपटों में फेंक दिया. और मैं नामुराद दूसरी शादी के बाद भी जल रही हूं.

‘‘तुम ने मुझे तलाक दे दिया और मेरे कुंआरे बदन का सारा रस निचोड़ लिया. एक औरत की जिंदगी क्या होती?है, तुम्हें मालूम नहीं है,’’ शबनम ने अपना दर्द बताया. उस की आंखों में आंसू आ गए. वह रोतेरोते पत्थर की बनी एक कुरसी पर बैठ गई.

जावेद सबकुछ एक बुत की तरह सुनता रहा और फिर अपना वही सवाल दोहराया, ‘‘तुम इस शहर में कैसे आई?’’

‘‘मेरा बूढ़ा पति बहुत बीमार है. मैं ने उसे एक अस्पताल में भरती कराया है.’’

‘‘उस की उम्र क्या है?’’ जावेद

ने पूछा.

‘‘70 साल से भी ऊपर?है,’’ शबनम ने जवाब दिया.

‘‘फिर तो उम्र का बहुत फर्क है,’’ जावेद बोला.

जब शबनम वहां से उठ कर जाने लगी तो जावेद ने आगे बढ़ कर उस का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘मुझे माफ कर दो.’’

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‘‘तलाक माफी मांगने से नहीं खत्म होता है. तुम ने मुझे तलाक दे कर जैसे किसी ऊंची पहाड़ी से नीचे धकेल दिया और मैं नरक में चली गई,’’ और फिर शबनम अपना हाथ छुड़ा कर वहां से चली गई.

दूसरे दिन जावेद शाम को उसी होटल के सामने शबनम का इंतजार करता रहा. वह आई और बगैर कुछ बोले ही होटल के अंदर चली गई.

जावेद पीछेपीछे गया और उस के पास बैठ गया. दोनों ने एकदूसरे को

देखा और उन के बीच रस्मी बातचीत शुरू हो गई.

‘‘तुम्हारी मम्मी कैसी हैं?’’ शबनम ने पूछा.

‘‘ठीक हैं. अब वे भी काफी बूढ़ी हो चुकी हैं.’’

‘‘उन को मेरी याद तो नहीं आती होगी. मुझे 5 साल तक बच्चा नहीं हुआ तो उन्होंने मेरा तुम से तलाक करा दिया और तुम्हारी बहन जरीना को 7 साल से बच्चा नहीं हुआ तो कोई बात नहीं, क्योंकि जरीना उन की अपनी बेटी है, बहू नहीं.’’

‘‘चलो जो होना था हो गया. यह हम दोनों का नसीब था,’’ जावेद ने अफसोस जताते हुए कहा.

‘‘नसीब बनाया भी जाता है और बिगाड़ा भी जाता है. अगर औरतों की सोच गलत होती?है तो घर के मर्द एक लोहे की दीवार की तरह खड़े हो जाते हैं. वैसे, औरतें ही औरतों की दुश्मन होती हैं.’’

जावेद के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था. वह होटल की छत की तरफ देखने लगा. फिर उस ने बात को बदलते हुए कहा, ‘‘क्या मेरी मम्मी से बात करोगी?’’

‘‘हां, लगाओ फोन. मैं बात कर लेती हूं.’’

जावेद ने अपनी मां को फोन लगा कर कहा, ‘‘मम्मी, शबनम आप से बात करना चाहती है.’’

‘‘तोबातोबा, तुम अपनी तलाकशुदा औरत के साथ हो. यह हमारे मजहब के खिलाफ है. मैं उस से बात नहीं करूंगी,’’ उस की मां की आवाज स्पीकर पर शबनम को भी सुनाई दी.

‘‘जावेद, तुम उन का नंबर दो. मैं अपने मोबाइल फोन से बात करूंगी.’’

जावेद ने शबनम का मोबाइल फोन ले कर खुद ही नंबर लगा दिया. घंटी बजने लगी. उधर से आवाज आई, ‘कौन?’

‘‘मैं आप की बहू शबनम बोल रही हूं. आप ने अपने लड़के से मुझे तलाक दिलवाया, वह एकतरफा तलाक था. मेरे मांबाप को इस का इतना दुख हुआ कि वे मर गए. अब मैं तुम्हारे लड़के जावेद को ऐसा तलाक दूंगी कि वह भी तुम्हारी जिंदगी से चला जाएगा.’’

उधर से टैलीफोन कट गया, लेकिन जावेद के चेहरे पर सन्नाटा छा गया. उस ने कहा, ‘‘तुम मेरी मम्मी से क्या फालतू बात करने लगी थी…’’

शबनम ने जावेद की बात का कोई जवाब नहीं दिया.

अब भी वे दोनों कई दिनों तक रात का खाना खाने उस होटल में आए लेकिन अलगअलग टेबलों पर बैठ कर चले गए, क्योंकि रिश्ता तो टूट ही गया था और अब बातों में कड़वाहट भी आ गई थी.

एक दिन होटल में शबनम जल्दी आई, खाना खा कर बाहर पत्थर की बनी कुरसी पर बैठ गई और जावेद का इंतजार करने लगी. जावेद जब खाना खा कर निकला तो शबनम ने उसे आवाज दी, ‘‘आओ, कहीं दूर तक इन पहाड़ों में घूम कर आते हैं. मेरे बूढ़े पति की अस्पताल से छुट्टी हो गई है. मैं अब चली जाऊंगी. इस के बाद यहां नहीं मिलूंगी.’’

वे दोनों एकदूसरे के साथ गलबहियां करते हुए टाइगर हिल के पास चले आए जहां ऐसी ढलान थी कि अगर किसी का पैर फिसल जाए तो सीधे कई गहरे फुट नीचे नदी में जा गिरे.

शबनम ने साथ चलतेचलते जावेद से कहा, ‘‘मैं तुम्हारा अपने मोबाइल फोन से फोटो लेना चाहती हूं क्योंकि अब हम नहीं मिलेंगे. तुम इस ढलान पर खड़े हो जाओ ताकि पीछे पहाड़ों का सीन फोटो में अच्छा लगे.’’

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जावेद मुसकराया और फोटो खिंचवाने के लिए खड़ा हो गया. शबनम उस के पास आई, मानो वह सैल्फी लेगी. तभी उस ने जावेद को जोर से धक्का दिया और चिल्लाई, ‘‘तलाक… तलाक… तलाक…’’ जावेद ढलान से गिरा, फिर नीचे नदी में न जाने कहां गुम हो गया.

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