लेखिका-सुधा रानी तैलंग

लॉकडाउन के दौर में जंहा हम घरों में बन्द है. ऐसे में हर समय मन में डर सा समाया रहता है कि अब आगे क्या होगा .ऐसा अनुभव हमारे जीवन में पहली बार आया है.  इससे पहले भारत पाक युद्ध के समय भी कुछ ऐसे ही माहौल का अनुभव किया था. चारों ओर सन्नाटा होता था. पर उस समय सब के घरों में रेडियो नहीं होते थे ऐसे में सड़कों में लाउडस्पीकर में समाचार आते भारी भीड़ लगती थी व आपस में प्रेम भाई चारे का जज्बा था. लॉकडाउन भी आपात, एक युद्ध  का समय हैं इस जंग को हमें हर हाल में जीतना हैंचाहे हमें कुछ दिनों तक घरों में बन्द रहना पड़े. देख जाये तो लोकडाउन ने हमें बिल्कुल अकेला कर दिया है पर अपनों के साथ . हमारे दिलों में दूसरों की फिक्र व मदद करने की भावना जागी है .

देष में आपसी एकता की भावना देखने मिल रही है..बाजार माल सिनेमा ,पार्टीज व होटल से दूर पर परिवार के पास. लॉकडाउन ने हमारे बीच में एक लक्ष्मण रेखा खींच दी है पर हमारे दिलों को जोड़ दिया है .परिवार को एक दूजे के करीब लाकर खड़ा कर दिया है .सबको एक दूजे की चिन्ता है .पहली बार ही ऐसा हुआ  है जब हमें अपने हाथों से घर का काम करना पड़ रहा है. इससे एक बात तो ये अनुभव हो रही है कि हम मेम साहब से गृह स्वामिनी की फीलिंग कर रहे हैं. आपस में पूरे परिवार के सदस्यों ने काम की जिम्मदारी बाटं ली है .घरों में काम की जिम्मेदारी जरूर बढी है पर खुद के लिये सोचने का हमें समय भी मिला है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...