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वर्षा के हाथों में थमा मायके से आया भाभी का पत्र हवा से फड़फड़ा रहा था. वह सोच रही थी न जाने कैसा होगा लव, भाभी उस की सही देखभाल भी कर पा रही होंगी या नहीं.

भाभी ने लिखा था कि लव जब छत पर बच्चों के साथ पतंग उड़ा रहा था, नीचे गिर गया. उस के पैर की हड्डी टूट गई, पर उस की हालत गंभीर नहीं है, जल्दी ठीक हो जाएगा. शरीर के अन्य हिस्सों पर भी मामूली चोटें आई थीं. हम उस का उचित इलाज करा रहे हैं.

‘‘मां, तुम रो रही हो?’’ भरत ने पुकारा तो वर्षा की तंद्रा भंग हुई. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. उस ने झटपट आंखें पोंछीं और भरत को गोद में बैठा कर मुसकराने का यत्न कर पूछने लगी, ‘‘स्कूल से कब आया, भरत?’’

‘‘कब का खड़ा हूं, पर तुम ने देखा ही नहीं. बहुत जोरों से भूख लगी है,’’ भरत ने कंधे पर टंगा किताबों का बोझा उतारते हुए कहा.

‘‘अभी खाना परोसती हूं,’’ कहती हुई वर्षा रसोईघर में गई. फौरन दालचावल गरम कर लाई और भरत को खाना परोस दिया.

‘‘मां, तुम भी खाओ न,’’ भरत ने आग्रह किया.

उस का आग्रह उचित भी था क्योंकि प्रतिदिन वर्षा उस के साथ ही भोजन करती थी, लेकिन आज वर्षा के मुंह में निवाला चल नहीं पा रहा था. बारबार आंखों में आंसू आ रहे थे. मन लव के आसपास ही दौड़ रहा था.

भरत शायद उस के मन के भाव समझ गया था सो खाना खातेखाते रुक कर बोला, ‘‘किस की चिट्ठी आई है?’’

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