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Lockdown के दौरान इस एक्ट्रेस ने सुनाई खुशखबरी, जल्द बनने वाली हैं मां

टीवी एक्ट्रेस एकता कौल और सुमित व्यास हाल ही में अपने प्रेग्नेंसी का ऐलान किया है. दोनों के घर जल्द ही नन्हा मेहमान आने वाला है. इस बात की जानकारी एकता ने अपने इंस्टाग्राम पर पोस्ट करके दिया है. इस खबर के बाद इनके फैंस बधाई देना शुरू कर दिए हैं.

टीवी स्टार के कई कलाकार ने भी उन्हें भी बधाई दी है. ईश्वर मार्चेट ने अपने खास दोस्त को सोशल मीडिया पर बधाई दी है. रश्मि देसाई के साथ-साथ कई अन्य कलाकार ने एकता को बधाई दी है.


इस क्यूट कपल को लगातार बधाईयां आ रही है. सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए एकता  ने लिखा है कि हम बेहद गर्व के साथ इस बात का एलान कर रहे है. हमें इस बात की खुशी है. कि हमारे  जीवन में जूनियर कॉल  जल्द ही आने वाले हैं.

एकता कौल को सबसे ज्यादा लोकप्रियता सीरियल मेरे आंगने से  मिली है. इसके अलावा अदाकारा ने सीरियल बड़े अच्छे लगते हैं ये आशिकी और नच बलिए में भी लोगों ने  इन्हें खूब पसंद किया था.

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जबकी उनके पति सुमित व्यास भी टीवी जगत के जाना-माना चेहरा हैं. फिल्म ‘वीर दी वेडिंग’ में करीना कपूर के ऑनस्क्रिन पति बन चुके हैं. इसके अलावा भी सुमित व्यास कई फिल्मों में नजर आ चुके हैं. जिसमें लोगों ने इऩकी  एक्टिंग की तारीफ की है.

दोनों स्टार कपल साल 2018 में एक-दूसरे के साथ शादी के बंधन में बंधे थें. इससे पहले से दोनों एक-दूसरे को डेट कर रहे थे.

एकता इन दिनों किसी नए प्रोजेक्ट्स पर काम नहीं कर रही हैं. फिलहाल अपने फैमली के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड कर रही हैं. साथ ही अपने खान-पान का भी खूब ख्याल रख रही हैं.

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वेबसीरीज – पंचायत
कास्ट – रघुवीर यादव, नीना गुप्ता, जीतेन्द्र कुमार
डायरेक्टर – दीपक मिश्रा
राईटर – चंदन कुमार
रेटिंग – 3.5

ख़ास क्या है
वेबसीरीज ‘पंचायत’ 3 अप्रैल को अमेजोन प्राइम पर रिलीज की गई है. इस 8 एपिसोड की वेबसीरीज की कहानी गांव की पृष्ठभूमि को ले कर बुनी गई है तो काफी समय बाद आर. के. नारायण की ‘मालगुडी डेज’ की याद ताज़ा हो जाती है. हालांकि तब के चित्रण और अब में अंतर है किंतु यह सिरीज उन लोगों के लिए बहुत खास होगी जो अपने गांव से जुड़ाव महसूस करते हैं. ख़ासकर ऐसे समय में जब लाकडाउन लगा है और कमरे की चार दीवारें देख कर उकता चुके हों. इस वेबसीरीज में सब कुछ है हंसीमजाक, फुहाड़पन, एमोशन, फ्रस्ट्रेशन, गांव की राजनीति, लोगों का भोलापन और सामूहिकता. यह सीरीज अंत तक खींचे रखने में कामयाब होती भी दिखती है. “मेहनत करने वालों की हार नहीं होती” के सामाजिक संदेश के साथ सीरीज को बेहतर दिखाया गया है. जितेन्द्र कुमार उर्फ़ जीतू भैया अभिनीत यह सीरीज अमेजोन प्राइम पर देखने को मिल जाएगी. इस से पहले जितेन्द्र कुमार ‘कोटा फैक्ट्री’ वेबसीरीज और ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ में देखे जा चुके हैं.

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कहानी क्या है
शहर का लड़का अभिषेक त्रिपाठी( जीतेन्द्र कुमार) जिस की नौकरी लगती है ग्राम पंचायत में सचिव के तौर पर. तनख्वाह 20,000 रूपए. लेकिन अभिषेक महत्वकांशी है. कम तनख्वाह के साथ साथ उसे यह अपने स्टेटस से जुड़ा काम नहीं लगता. उस का दोस्त समझाता है कि जब तक कोई अच्छा काम हाथ में नहीं तब तक “कुछ न से तो कुछ सही” ही बढ़िया है. इसलिए अभिषेक निकल पड़ता है उत्तरप्रदेश के जिला बलिया में गांव फुलेरा की तरफ जहां उस की पोस्टिंग है.

अभिषेक गांव पहुंच तो जाता है लेकिन वहां के माहौल को देख कर उस का मन नहीं लगता. हालांकि गांव के लोग उसे बारबार टोकते है की “पानी की टंकी में चढ़ेंगे तो आप को भी गांव से प्यार हो जाएगा.” लेकिन उसे बिलकुल खीज है यहाँ के माहौल से. उस का दोस्त उसे समझाता है कि वहां रह कर कैट(सीएटी) एग्जाम क्लियर कर एमबीए कर के अच्छी नौकरी मिल पाएगी. फिर क्या, वह गांव रुक कर नौकरी के साथ साथ पढाई करने का मन बना ही लेता है.

ठहरिये भाई, वेबसीरीज के भीतर बहुत कुछ है. इस जद्दोजहद में कहानी कई हिचकौले खिलाती है. तंगहाल गांव में बिजली की दिक्कत, अंधविश्वास, गांव की राजनीति का तड़का, लम्पटई सब है. कुछ कुछ जगह तो काफी बेहतरीन तरीके से डायरेक्टर ने सीन को दर्शाया है. इन सब के कारण अभिषेक को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. जिसे वह अपनी होशियारी और चतुराई से कई बार पार भी पा लेता है और कई बार फंस भी जाता है. ख़ैर इस की पूरी कहानी को जानने के लिए आप को वेबसीरीज देखनी पड़ेगी. वरना मजा किरकिरा हो जाएगा. यह सीरीज आप को 8 एपिसोड में अमेजोन प्राइम में मिल जाएगी.

स्टारकास्ट कैसी है
यह सीरीज गांव के पृष्ठभूमि पर है तो जाहिर है कई किरदार देखने को मिल जाएंगे. लेकिन मुख्य रूप से यह कुछ किरदारों के इर्दगिर्द है. अभिषेक कुमार (जीतेन्द्र कुमार) इस के मुख्य नायक है. जिन की युवाओं के बीच जगह बनने लगी है. यह सीरीज भी उन की जगह को और मजबूती देगी. इस के अलावा प्रधान ब्रिज भूषण दुबे (रघुवीर यादव), मंजू देवी (नीना गुप्ता), प्रहलाद पांडे (फैसल मालिक) और विकास (चन्दन रॉय) मुख्य भूमिका में हैं.

सब ने अपना काम बखूबी निभाया है. रघुवीर यादव और जितेन्द्र के अलावा सभी कलाकार दर्शकों को नए लग सकते हैं लेकिन सभी ने अपने किरदारों को बेहतरीन तरीके से निभा कर जीवंत किया है. ख़ासकर विकास के किरदार चन्दन रॉय को स्क्रीन पर देख के मन खुश हो जाता है. इस के अलावा नीना गुप्ता है जिन का काम उम्दा है, हालांकि उन का रोल कम है. रघुवीर यादव तो पहले से ही मंझे कलाकारों की फेहरिश्त में आते हैं.

वेबसीरीज का डायरेक्शन
इस वेबसीरीज का डायरेक्शन किया है दीपक मिश्रा ने और लिखा है चन्दन कुमार ने. दोनों का काम बहुत शानदार है. बारीक चीजों को पकड़ने में दोनों कामयाब रहे हैं. हां बीच बीच में कुछ सीन बेमतलब खींचे गए लेकिन इतना चल जाता है. अच्छी बात यह की हर एपिसोड में नई दिक्कत और उन का समाधान नए रोमांच पैदा करवाते हैं. जिसे बखूबी संजोया है लेखक और डायरेक्टर ने.

इस वेबसीरीज को 10 में से 9.2 आइएमडीबी रेटिंग मिली है जो काफी बढ़िया मानी जाती है. इसलिए जल्दी से इस टेंशन के माहौल में दिमाग को थोडा रेस्ट दीजिये और घर बैठे बैठे खो जाइए गांव के खुले माहौल में.

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coronavirus: इंसानों के बाद अब जानवरों में भी कोरोना के लक्षण

काफी समय से सोशल मीडिया और न्यूज चैनलों में इंसानों का प्रकृति के साथ खिलवाड़ को ले कर बातें चल रहीं थी. जिस में कहा जा रहा था कि कोरोना इंसानी देन है जो इंसान इसे भुगत रहें है. प्रकृति ने इंसानों को सबक सिखाने के लिए फिर से समय का चक्का घुमाया है. कई फोटो और संदेश वायरल हो रहे थे जिस में जानवर और पंछी खाली सड़कों में टहलते आज़ाद दिख रहे थे और इंसान लाकडाउन के कारण घरों में बंद. यह एक हद तक सच भी है कि इंसान ने प्रकृति के साथ काफी छेड़छाड़ की है. जिस का बड़ा उदाहरण ग्लोबल वार्मिंग से समझा जा सकता है. खैर, लोगों के द्वारा यह कयास लगाए जा रहे थे कि कोरोना वायरस सिर्फ इंसानों से इंसानों में फैलने वाला संक्रमण है जानवरों में इस के नकारात्मक प्रभाव नहीं है. यह बात कितनी सच है?

न्यूयार्क के ब्रोंक्स चिडियांघर में मलायन मादा बाघ के कोरोना पॉजिटिव होने की खबर मिली है. चिडियांघर 16 मार्च को कोरोना संक्रमण के कारण एहतियातन बंद कर दिया गया था. माना जा रहा है कि यह बाघ प्रजाति में यह पहला पॉजिटिव केस देखने को मिला है. इस मामले में चिडियांघर प्रबंधक ने बताया है संक्रमित बाघ का नाम ‘नादिया’ है जिस की उम्र 4 साल है. इस के अलावा 6 अन्य शेर और बाघ भी बीमार है. प्रबंधक ने कोरोना संक्रमण को चिडियांघर के कर्मचारियों से ही जानवरों में फैलने का कारण बताया हैं. हालांकि पहले बाघ में कोरोना संक्रमण 27 मार्च में दिखना शुरू हो गया था जब उस की तबियत बिगड़ने लगी थी जिस में सुखी खांसी और भूख न लगना शामिल था. लेकिन इस में अच्छी बात यह है कि अब यह सभी संक्रमित जानवर पहले से बेहतर स्थिति में हैं और रिकवर कर रहें है. किन्तु सवाल यह की यह संक्रमण जानवरों में वैसे ही ट्रांसफर हो रही है जैसे इंसानों के भीतर हो रही है?

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हांगकांग में कुत्तों से जुड़े कोरोना पॉजिटिव के कुछ मामले देखने को मिले है. जिस में हालिया मामला पौकफुलाम जगह से सम्बंधित जर्मन शेफर्ड से जुड़ा था. ‘एएफसीडी’ के अनुसार कुत्ते का मालिक कोरोना संक्रमण से पीड़ित था. इसे देखते हुए उसी घर से जुड़े दो कुत्तों को क्वारंटाइन में रखा गया तो उन में से एक जर्मन शेफर्ड कुत्ता कोरोना संक्रमण में पॉजिटिव पाया गया व मिक्स ब्रीड के कुत्ते में इस के संक्रमण नहीं दिखाई दिए.

इसी तरह कुत्तों में पहला मामला 17 साल के बूढ़े पोमेरियन का आया था. जिसे परीक्षण कर पता लगाया कि उसे कोरोना के हल्के लक्षण हैं. कुत्ते को क्वारंटाइन में रखा गया जहां उस के लार का परिक्षण किया गया. 4 बार के परीक्षण के बाद अंत के परीक्षण में कोरोना नेगेटिव पाया गया. किन्तु जैसे ही उसे वापस घर भेजा गया तो दो दिन बाद उस की मौत हो गई. जब उस पोमेरियन की मौत का पता लगाने के लिए उसे वापस मांगा गया तो उसे उस के मालिक ने अनुमति नहीं दी.

अमेरिकी वेटनरी मेडिकल एसोसिएशन ने जानवरों में कोरोना से जुड़े मामले में कहा कि संक्रामक रोग विशेषज्ञ तथा कई अंतराष्ट्रीय व घरेलु मानव और पशु स्वास्थय संगठन सभी इस बात पर सहमति रखते हैं कि यह संक्रमण जानवरों से बाकी जानवरों में इंसानों की तरह नहीं फ़ैल रहा है साथ ही इंसानों में फैलने का श्रोत जानवर नहीं है.

ऐसे ही एक बेल्जियम में एक पालतू बिल्ली को कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई है, रिपोर्ट्स के अनुसार उसे यह संक्रमण अपने मालिक से हुआ है. यह बिल्ली में हुआ पहला मामला है जो सामने आया है. हांलाकि इस पर विशेषज्ञों ने कहा कि यह इंसान से बिल्ली पर संक्रमित मामला है किन्तु बिल्ली इस के फैलने का कारण नहीं बन सकती.

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हालांकि चीन में भी जानवरों में कोरोना को ले कर हालिया शोध हुआ. चीन के ‘हार्बिन वेटनरी रिसर्च इंस्टिट्यूट’ ने बिल्लियों को ले कर चोंकाने वाला शोध किया है. इस शोध में कई पालतू जानवरों को शामिल किया गया. जिस में पाया कि बिल्लियां कोविड-19 के संक्रमण से सक्रिय हो सकती है. जिस में यह आपस में इस संक्रमण को फैलाने में कारगर हैं. हांलाकि इस शोध को ले कर विवाद है.

बिल्लियों के ऊपर किये गए प्रयोग में एक ही केस संक्रमण का आया वो भी हलके तौर पर. इस से यह भी कयास लगाए गए कि बिल्लियों में इस के संक्रमण की अधिक क्षमता नहीं है. हालांकि अभी तक किसी जानवर से इंसान में इस संक्रमण के फैलने की पुष्टि कोई डाक्टर या वैज्ञानिक नहीं कर रहे और न ही ऐसी कोई खबर आई हैं. फिर भी वैज्ञानिकों द्वारा यह हिदायत दी गई है कि कुत्ते बिल्लियों या अन्य पालतू जानवरों के साथ सीमित दायरा बनाया जाए. यह प्रयोग बिल्लियों के साथसाथ कुत्तों, मुर्गियों, सुअरों तथा अन्य पालतू जानवरों पर किया गया जिनमें संक्रमण के लक्षण नहीं पाए गए किन्तु बिल्लियां इन सब की तुलना में अधिक संवेदनशील दिखी.

वहीँ पेरिस सम्बंधित ‘वर्ल्ड ऑर्गेनाइजेशन फॉर एनिमल हेल्थ’ और अमेरिका के ‘डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन’ ने भी साझा तौर पर बयान दिया कि “ऐसे कोई सबूत नहीं है जिस से यह कहा जाए कि पालतू जानवरों खासकर कुत्ते बिल्ली में भी आपस में यह संक्रमण फ़ैल रहा है.

अभी तक जितनी भी केस स्टडी जानवरों से की गई है उस में जानवरों में कोरोना का ट्रान्सफर इंसान से ही रहा है. यानी जितने भी केस सामने देखने को मिले हैं वह सारे इंसान से जानवरों को ट्रान्सफर हुए हैं. तो फिलहाल यह समझा जा सकता है कि यह इंसानों में ही फ़ैल रहा है. हालांकि जानवरों के भीतर पाए गए मामलों को ले कर विभिन्न शोध संगठनों द्वारा यह हिदायत दी गई है कि जब तक इस वायरस के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिल जाती तब तक पालतू जानवरों से सीमित दूरी बनाए रखें, उन्हें छूने के बाद हाथ सफाई से धोएं और बाहर खुला न जाने दें.

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#coronavirus: बफर ज़ोन बनाने की तैयारी शुरू

ना ताली बजाने से कोरोना भागा, ना थाली बजाने से। दिए जलाने का तो उस पर कतई कोई असर ना हुआ उलटे कोरोना संक्रमित लोगो की संख्या में तेजी से इजाफा देखा जा रहा है. देश में  बीते 24 घंटे में कोरोना वायरस के 505 मरीज सामने आए हैं. इनको मिला कर अब देश में संक्रमित लोगो की संख्या 4200 पहुंच गई है. इस बीमारी की चपेट में आ कर अब तक भारत में 83 लोग अपनी जानें गवां चुके हैं.देश के कई राज्यों में तेजी से बढ़ रहे कोरोना संक्रमितों की संख्या को देखते हुए सरकार ने अब कई क्षेत्रों को बफर ज़ोन में तब्दील करने की तैयारी कर ली है.कोरोना की बेकाबू होती स्थिति को देखते हुए  सरकार ने यह आक्रामक योजना बनाई है.इस योजना के तहत जो सबसे प्रभावित क्षेत्र है उसको पूरी तरह से बफर जोन बनाकर सील कर दिया जाएगा.

देश में अभी 21 दिनों का लॉक डाउन चालू है। जो 14 अप्रैल को ख़तम होगा. मगर जिस तेज़ी से संक्रमण बढ़ रहा है उसको देखते हुए कई क्षेत्रों को बहुत संवेदनशील माना जा रहा है.बेकाबू होती स्थिति के मद्देनजर भारत सरकार के स्वास्थ मंत्रालय सबसे ज़्यादा प्रभावित क्षेत्रों को पूरी तरह बफर ज़ोन घोषित करके सील कर देगा. यानी यहां फुल कर्फ्यू लागू होगा. ये हालात करीब एक महीने तक रहेंगे.

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सरकार ने अभी तक ये नहीं बताया है कि वह किन इलाकों या शहरों को बफर जोन में तब्दील करके पूरी तरह बंद कर रही है. बता दें कि देश के 274 जिलों में अब तक कोविड-19 के मामले सामने आए हैं. 22 मार्च से बाद से कोरोना संक्रमित मामले में तीन गुना की वृद्धि हुई है, जिसके बाद सरकार ने यह प्लान बनाया है. सरकार की ओर से जारी 20 पन्नों के दस्तावेज़ में कहा गया है कि इस ‘रणनीति’ को केवल तभी लागू नहीं किया जाएगा जब अंतिम पुष्टि परीक्षण के बाद कम से कम चार सप्ताह तक कोविद-19 के किसी भी नए मामले की रिपोर्ट न की जाए.

स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट पर जारी दस्तावेज में बताया गया है कि सभी संदिग्ध और कोरोना संक्रमित मरीजों को अस्पताल में भर्ती कर आइसोलेशन में रखा जाएगा.मरीजों को तभी डिस्चार्ज किया जाएगा, जब उनका सैंपल निगेटिव पाया जाएगा. जिन लोगों में कोरोना के हल्के लक्षण दिखाई देंगे उन्हें कोरैंटाइन में रखा जाएगा. जिस मरीज में कोरोना के थोड़े ज्यादा लक्षण होंगे उन्हें अस्पातल में रखा जाएगा और जिनमें गंभीर लक्षण पाए जाएंगे उन्हें एडवांस हॉस्पिटल में एडमिट किया जाएगा.

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सरकार के प्लान में यह भी बताया गया है कि जिस इलाके को बफर जोन बनाया जाएगा, वहां के सभी स्कूल, कॉलेज और ऑफिस को पूरी तरह बंद रखा जाएगा. इन इलाकों में कोई सार्वजनिक और निजी परिवहन की इजाजत नहीं होगी.केवल आवश्यक सेवाओं की अनुमति ही दी जाएगी.

#coronavirus: प्रधानमंत्री अपनी दोस्ती निभाएं या देश

प्रधानमंत्री मोदी इस वक़्त बड़े धर्मसंकट का सामना कर रहे हैं. हाउडी मोदी और नमस्ते ट्रम्प के बाद भारत-अमेरिका के दो नायकों की तेज़ी से परवान चढ़ती दोस्ती में कोरोना ने सेंध लगा दी है. अमेरिका में कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ता ही जा रहा है और इसी के साथ वहां मरने वालों की तादात भी बढ़ती जा रही है.अमेरिकी डॉक्टर्स रिसर्च में लगे हैं कि जल्दी से जल्दी इसकी वैक्सीन तैयार हो सके, मगर कामयाबी हाथ लगने में अभी काफी देर है.

भारत में कोरोना के कई मरीज़ हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा से ठीक हो रहे हैं. ये दवा मलेरिया के उपचार के लिए इस्तेमाल की जाती थी, जो अब कोरोना के मरीज़ों पर अच्छा असर दिखा रही है.गौरतलब है कि भारत में मलेरिया से प्रतिवर्ष हज़ारों जाने चली जाती हैं, लिहाज़ा यहाँ  हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा का उत्पादन ज़्यादा मात्रा में किया जाता है.अब जबकि इस दवा से कोरोना के मरीज़ ठीक हो रहे हैं, तो अमेरिका के राष्ट्रपति ने अपनी दोस्ती का हवाला दे कर मोदी से इस दवा की खेप भेजने को कहा था, मगर भारत ने इस दवा के निर्यात पर पूरी तरह रोक लगा रखी है. भारत में जिस तरह कोरोना संक्रमण दिन-ब-दिन बढ़ रहा है, यहां हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा की ज़्यादा से ज़्यादा ज़रूरत पड़ने वाली है. ऐसे में मोदी के सामने एक ओर देश है और दूसरी ओर दोस्ती है। ऐसे में क्या वो अपनी दोस्ती के कारण हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा के निर्यात पर लगाया बैन उठा देंगे ?

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक हफ्ते पहले प्रधानमंत्री से फ़ोन पर बात करके हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा की खेप अमेरिका भेजने की गुहार लगाई थी। उस वक़्त उनके आग्रह में काफी विनम्रता थी. मगर अब जबकि दूसरी बार ट्रम्प ने मोदी से दवा की आपूर्ति पर मदद की उम्मीद की है तो अबकी बार निवेदन के साथ छिपी हुई धमकी भी है. ट्रम्प ने कल अमेरिकी मीडिया को संबोधित करते हुए कहा है कि मैंने प्रधानमंत्री मोदी से रविवार सुबह इस मुद्दे पर बात की थी.अगर वे दवा की आपूर्ति की अनुमति देंगे तो हम उनके इस कदम की सराहना करेंगे.अगर वे सहयोग नहीं भी करते हैं तो कोई बात नहीं, लेकिन वे हमसे भी इसी तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद रखें.

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अमरीकी राष्ट्रपति की इस धमकी को प्रधानमन्त्री मोदी भी समझ रहे होंगे। ट्रम्प ने साफ़ कह दिया है कि अगर भारत दवा की खेप नहीं भेजता है तो वो अमेरिका से आगे कोई उम्मीद ना रखे। गौरतलब है कि जिस तरह कोरोना से अमेरिकी जनता की जान जा रही है अमेरिका इस वक़्त किसी भी कीमत पर ये दवा पाना चाहता है..इसके लिए दोस्ती दुश्मनी में बदलती है तो परवाह नहीं। बता दें कि कोरोना वायरस संक्रमण के तीन लाख से अधिक पुष्ट मामलों और 10,000 से अधिक मौत होने के साथ अमेरिका इससे बुरी तरह से प्रभावित देश के तौर पर उभरा है। उसे इस वायरस का अब तक कोई इलाज नहीं मिल पाया है.

अमेरिका सहित दुनिया भर के वैज्ञानिक दिन रात एक करके इस वायरस के खिलाफ कोई टीका या सटीक इलाज ढूंढने में लगे हुए हैं ताकि लोगों की जान बचाई जा सके.इस महामारी के कारण दुनिया में अब तक 64,000 से ज्यादा लोगों की जानें जा चुकी है.वहीं 11 लाख 53 हजार 142 संक्रमित हैं.

भारत में कोरोना मरीज़ों को ठीक होने के शुरुआती परिणामों को देखते हुए ट्रम्प प्रशासन कोरोना वायरस के इलाज के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वाइन का उपयोग करने पर जोर दे रहा है.यह दवाई दशकों से मलेरिया में उपचार के काम आती है.पिछले शनिवार को अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन से तुरंत मंजूरी के बाद, कुछ अन्य दवा के संयोजन के साथ मलेरिया की दवा का उपयोग करके न्यूयॉर्क में लगभग 1,500 कोरोना रोगियों का उपचार किया जा रहा है.

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ट्रम्प के अनुसार दवा के सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं.उन्होंने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि यदि यह सफल हो जाता है, तो यह स्वर्ग से मिले किसी तोहफे के समान होगा. अगले कई हफ्तों में, अमेरिका के स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कोरोना वायरस के कारण एक लाख से दो लाख मौतों का अनुमान लगाया है.

कोरोना वायरस के उपचार में एक सफल दवा होने की आस में, अमेरिका पहले ही लगभग 29 मिलियन खुराक का स्टॉक कर चुका है.इसी संदर्भ में ट्रम्प ने मोदी से अनुरोध किया है कि वह अमेरिका के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की लाखों खुराक रिलीज कर दें.उल्लेखनीय है कि  भारत बड़े पैमाने पर इस दवा का उत्पादन करता है.लेकिन जिस तरह कोरोना के मरीज़ों की संख्या भारत में बढ़ रही है उसको देखते हुए इस दवा के निर्यात की अनुमति दे पाना प्रधानमंत्री मोदी के लिए संभव नहीं होगा. ऐसे में मोदी अपनी दोस्ती बचाएंगे या देश, यह बड़ा सवाल पैदा हो गया है.

कनिका कपूर के बाद इस बॉलीवुड एक्ट्रेस को भी हुआ कोरोना, बॉलीवुड में दहशत का माहौल

‘चेन्नई एक्सप्रेस’, ‘दिलवाले‘, ‘रा. वन‘, ‘हैप्पी न्यू इयर‘ सहित कई फिल्मों के निर्माता और भव्य स्तर पर फिल्मी इवेंट करने वाले करीम मोरानी की दो बेटियों शाजिया मोरानी और जोया मोरानी के कोरोना संक्रमित होने से पूरे बौलीवुड में हड़कंप सा मचा हुआ है.

दोनों बेटियों को हुआ कोरोना…

करीम मोरानी की गिनती शाहरुख खान के नजदीकी लोगों में होती है. शाजिया मोरानी और जोया मोरानी को ‘कोरोना’ से संक्रमित होने यानी कि पौजीटिव पाए जाने के बाद मुंबई के विलेपार्ले स्थित नानावटी अस्पताल में भर्ती किया गया है. हालांकि पारिवारिक सूत्रों का कहना है कि उनकी हालत अभी ठीक है और उम्मीद है कि जल्द ही उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी.

शाजिया मोरानी से पहले कनिका कपूर को हुआ कोरोना
यूं तो शाजिया व जोया से पहले बौलीवुड गायिका कनिका कपूर को कोरोना पॉजिटिव पाया गया था. मगर तब बौलीवुड दहशत में नहीं आया था, क्योंकि कनिका कपूर मायानगरी मुंबई से दूर लखनऊ में थी.

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पूरे परिवार का होगा टेस्ट…

शाजिया और जोया के अलावा अभी पूरे परिवार का कोरोना का टेस्ट कराया जाएगा. जुहू के जिस इलाके मे करम मोरानी, शाजिया मोरानी और जोया मोरानी का नौ सदस्यीय परिवार रहता है, उसके इर्द गिर्द ही अमिताभ बच्चन, अनिल कपूर, धर्मेंद, रितिक रोशन सहित बौलीवुड की कई दिग्गज हस्तियां रहती हैं.

डॉक्टर्स निगरानी में जोया मोरानी
जोया मोरानी को नानावती अस्पताल में डाक्टर्स की निगरानी में रखा गया हैं. जबकि उनकी बहन शाजिया का इसी अस्पताल के आइसोलेशन वॉर्ड में इलाज चल रहा है. जिस बिल्डिंग में करीम मोरानी का परिवार रहता है, उस बिल्डिंग को सील कर दिया गया है. आसपास के इलाके में खौफ का माहौल बना गया है.

बता दें कि 2011 में शाहरुख खान प्रोडक्शन की फिल्म ‘‘आलवेज कभी कभी’’ में जेड खान, अली फजल, सत्यजीत दुबे और जिसाली मोटियारो के साथ अभिनय के क्षेत्र में  कदम रखने वाली अभिनेत्री जोया मोरानी ने इस फिल्म की असफलता के बाद अपने आपको महज थिएटर तक ही सीमित कर लिया था.

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उन्होंने सलीम आरिफ के निर्देशन में कई नाटको में अभिनय किया. उसके बाद वह शिवम नायर निर्मित फिल्म ‘‘भाग जानी’’ में नजर आयी थी. फिर वह जी5 की वेब सीरीज ‘अकूरी’ में नजर आयी थी.

मन की खुशी: भाग 4

मणिकांत अमित की बात से सहमत थे. मुसकराते हुए कहा, ‘‘धन्यवाद अमित, तुम ने मुझे सही रास्ता दिखाया. अब मैं परिवार के बीच भी खुशियां ढूंढ़ लूंगा.’’ ‘‘मैं ने तुम्हें कोई रास्ता नहीं दिखाया. प्रत्येक  व्यक्ति को खुशियों की मंजिल का पता होता है. बस, परिस्थितियों के भंवर में फंस कर वह अपना सही मार्ग भूल जाता है. मैं ने तो केवल तुम्हारी सोती हुई बुद्धि को जगाने का कार्य किया है.’’

उस रात पलंग पर लेटेलेटे उन्होंने पत्नी से सवाल किया, ‘‘क्या तुम इस बात पर विश्वास करती हो कि एक व्यक्ति किसी को उम्रभर एक ही जैसा प्यार कर सकता है?’’ ‘‘यह कैसा सवाल है? हम सभी एकदूसरे को प्यार करते हैं. इस में कौन सी नई बात है?’’ वह दूसरी तरफ करवट बदल कर बोली.

मणिकांत तड़प कर रह गए. उस से बात करना व्यर्थ था. हर बात को वह उलटे तरीके से लेती है. कभी प्यार से उन की बात को समझने की कोशिश नहीं करती. उन्होंने सिर टेढ़ा कर के पत्नी की अधखुली पीठ देखी, सुंदर और चिकनी पीठ. काश, इतनी ही सुंदर और मीठी उस की बोली होती. इस के बाद मणिकांत 2 भागों में बंट गए. एक भाग में वे स्वयं के साथ होते. उन्होंने कागज, कलम और पैंसिल हाथों में पकड़ ली. अपनी भावनाओं को अक्षरों और चित्रों के माध्यम से व्यक्त करने लगे. वे लेखन और चित्रकारी में इस कदर डूब  जाते कि उन्हें घरपरिवार की उलझनें कहीं दिखाई ही नहीं देतीं. अब सब से हंस कर बोलते, पत्नी को आश्चर्य होता. जो आदमी हमेशा दुखीपरेशान रहता था, वह खुश कैसे  रहने लगा है. इस बात से पत्नी की चिंता में बढ़ोतरी हो गई.

दूसरे भाग में उन का परिवार था, जहां बाढ़ के पानी की तरह हलचल थी, तीव्र वेग था, जो सबकुछ अपने साथ बहा ले जाने के लिए बेताब था. बाढ़ के बाद की तबाही का मंजर उन की आंखों के सामने अकसर गुजर जाता, परंतु अब वे असमर्थ हैं. बच्चे इतने निरंकुश हो चुके थे कि बड़े बेटे ने सड़क दुर्घटना में अपनी नई बाइक का कबाड़ा कर दिया था. खुद जख्मी हो गया था और हजारों रुपए इलाज में खर्च हो गए थे. इंश्योरैंस का पैसा अभी तक मिला नहीं था. लेकिन जैसे ही ठीक हो कर घर आया, तुरंत दूसरी बाइक की मांग करने लगा. मणिकांत को अपनी खुशियों का पता चल गया था, अतएव उन्होंने बिना नानुकुर के पत्नी के हाथ में पैसा रख दिया. स्वाति बड़ी हैरान थी. पहले तो वे पैसा इतनी आसानी से नहीं देते थे. आजकल उन को क्या हो गया है, वह कुछ समझ न पाती.

पत्नी से एक दिन पूछा उन्होंने, ‘‘अगर तुम्हारे पास पैसा हो, परंतु मैं न रहूं, तो क्या तुम खुश रह लोगी?’’

पत्नी ने पहले तो उन्हें घूर कर देखा और फिर मुंह टेढ़ा कर के पूछा, ‘‘इस का क्या मतलब हुआ? क्या आप कहीं जा रहे हैं?’’

‘‘कहीं जा तो नहीं रहा, परंतु मान लो ऐसा हो जाए या मैं इस दुनिया में न रहूं, तो क्या तुम मेरे बिना खुश रह लोगी?’’

‘‘जब देखो तब आप टेढ़ीमेढ़ी बातें करते हो. कभी कोई सीधी बात नहीं की. दुनिया का प्रत्येक प्राणी मृत्यु को प्राप्त होता है, इस में नया क्या है? घर के लोग कुछ दिन शोक मनाते हैं, फिर जीवन अपने ढर्रे पर चलने लगता है.’’

पत्नी व्यावहारिक बात कर रही थी परंतु उस की बातों में रिश्तों की कोई मिठास नहीं थी. उस में भावुकता और संवेदनशीलता नाम की भी कोई चीज नहीं थी. वह एक जड़ वस्तु की तरह व्यवहार कर रही थी. धीरेधीरे पतिपत्नी के बीच एक संवादहीनता की स्थिति उत्पन्न होती जा रही थी. घर के लोगों से माथापच्ची करने के बजाय वे अब अधिकतर समय लेखन में व्यतीत करते. चित्रकारी में उन का हाथ सध गया था और कागजकलम छोड़ कर अब वे कैनवास पर रंग बिखेरने लगे थे. उन के रंगों में अधिकतर खुशियों के रंग होते थे. यह सत्य है कि जो व्यक्ति अंदर से दुखी होता है, वह दूसरों को खुशी बांटने में कंजूसी नहीं करता.

कुछ दिन बाद अमित ने पूछा, ‘‘अब तुम कैसा महसूस कर रहे हो?’’

‘‘बहुत अच्छा. तुम्हारी सलाह ने मुझ पर जादू सा असर किया है. मैं मन लगा कर अपनी रुचि के मुताबिक लेखन और चित्रकारी में व्यस्त रहता हूं. परिवार के लोग अपनेअपने जोड़तोड़ में लगे रहते हैं. मैं ने उन सब को उन के हाल पर छोड़ दिया है. जवान व्यक्ति अगर गलत राह पर चलता है तो वह ठोकर खाने के बाद ही सुधरता है. पत्नी के बारे में मैं अब नाउम्मीद हो चुका हूं. हां, लड़के अगर सुधर जाएं तो गनीमत है. वैसे मुझे लगता नहीं है क्योंकि पत्नी उन के हर गलत काम में खुशी से सहयोग देती है. बिना रुकावट के तो सीधा आदमी भी टेढ़ा चलने लगता है.’’

‘‘तुम एक धैर्यवान व्यक्ति हो और मुझे आशा है कि तुम अपने परिवार को सही रास्ते पर ला सकोगे. कोई भी व्यक्ति जड़ नहीं होता. अगर वह जीवन में गलती करता है तो एक न एक दिन सही रास्ते पर आ ही जाता है. अगर वह किसी के समझाने से सही राह पकड़ लेता है तो बहुत अच्छा है, वरना परिस्थितियां उसे सही मार्ग अवश्य दिखा देती हैं.’’ ‘‘मेरी पत्नी समझाने से तो सही राह पर नहीं आने वाली, परंतु मेरा विश्वास है कि परिस्थितियां उसे एक दिन अवश्य बता देंगी कि अपनी मूर्खता से किस प्रकार उस ने बेटों का जीवन बरबाद कर दिया है.’’

‘‘तुम्हारी पत्नी अपनी गलतियों से कुछ सीखती है या नहीं, अब यह बहुत गौण बात है. इस का समय अब निकल गया है. आज की तारीख में तुम्हारे लिए यह जानना जरूरी है कि मनुष्य विपरीत परिस्थितियों में भी कैसे खुश रह सकता है. यह मंत्र अगर तुम्हें आ गया, तो समझिए, जीवन अनमोल है, वरना मूर्ख लोग जीवन को जहर समझ कर पीते ही रहते हैं और हर छोटी बात का रोना रोते रहते हैं. तुम्हारे घर वाले अपनीअपनी जगह खुश हैं. बस, तुम्हें अपनी खुशियां तलाश करनी हैं और ये खुशियां तुम्हें अपने मन को स्वस्थ और प्रसन्न रखने से ही प्राप्त होंगी.’’

‘‘मैं समझता हूं, मैं ने अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में कोई कोताही नहीं बरती. इस बात की मुझे खुशी है. बस, बेटे सही मार्ग पर नहीं चल पाए, इस बात का मुझे दुख है.’’

‘‘इस दुख को अपने मन में रख कर तुम सुखी नहीं रह सकते. यों तो बच्चों के बिगड़ने की जिम्मेदारी लोग अकसर बाप पर ही थोपते हैं, जबकि बच्चों को बनानेबिगाड़ने में मां का हाथ अधिक होता है, परंतु मां की तरफ लोगों का ध्यान कम जाता है. तुम ने अपना कर्तव्य ईमानदारी से पूरा कर दिया, यह बात प्रमुख है. उस का फल नहीं मिला, तो इस में अफसोस नहीं करना चाहिए. भौतिक खुशियां हर किसी को एकसमान नहीं मिलतीं. सच्चा मनुष्य वही है जो मन की खुशियों के सहारे दूसरों को खुशियां प्रदान करता रहे. मैं तुम्हारी समझदारी की दाद देता हूं कि घर के विपरीत माहौल में भी तुम ने कोई ऐसी परिस्थिति उत्पन्न नहीं होने दी, जिस से बात मारपीट तक पहुंचती या तलाक की नौबत आती. तुमने पत्नी और बच्चों को उन के हिसाब से जीने दिया और अपनी खुशियों को बलिदान करते रहे. अब तुम अपने अनुसार अंतिम जीवन व्यतीत करो. मेरा विश्वास है, हर कदम पर तुम्हें मानसिक सुख प्राप्त होता रहेगा.’’

मन की खुशी: भाग 3

मणिकांत ने जीवन के लगभग 25 वर्ष तक पूरी निष्ठा और ईमानदारी से पत्नी को प्रेम किया था. पत्नी, परिवार और बच्चों की हर जरूरत पूरी की थी परंतु अब उन्हें लगने लगा था कि उन्होंने मात्र एक जिम्मेदारी निभाई थी. बदले में जो प्यार उन्हें मिलना चाहिए था वह नहीं मिला. औफिस में अधिक देर तक बैठने से उन के मन को सुकून मिलता था. उस दिन उन के एक सहकर्मी मित्र उन के कमरे में आए और सामने बैठते हुए बोले, ‘‘क्यों यार, क्या बात है, आजकल देख रहा हूं, औफिस में देर तक बैठने लगे हो. काम अधिक है या और कोई बात है?’’ मणिकांत ने हलके से मुसकरा कर कहा, ‘‘नहीं, काम तो कोई खास नहीं, बस यों ही.’’

‘‘अच्छा, तो अब भाभीजी अच्छी नहीं लगतीं और बच्चे बड़े हो गए हैं. जिम्मेदारियां कम हो गई हैं?’’ मित्र ने स्वाभाविक तौर पर कहा.

‘‘क्या मतलब?’’ मणिकांत ने चौंक कर पूछा.

‘‘मतलब साफ है, यार. आदमी घर से तब दूर भागता है जब पत्नी बूढ़ी होने लगे और उस का आकर्षण कम हो जाए. बच्चे भी इतने बड़े हो जाते हैं कि उन की अपनी प्राथमिकताएं हो जाती हैं. तब घर में कोई हमारी तरफ ध्यान नहीं देता. ऐसी स्थिति में हम या तो औफिस में काम के बहाने बैठे रहते हैं या किसी और काम में व्यस्त हो जाते हैं.’’

मणिकांत गुमसुम से बैठे रह गए. उन्हें लगा कि सहकर्मी की बात में दम है. वह जीवन की वास्तविकताओं से भलीभांति वाकिफ है और वे अपनी समस्या को उस मित्र के साथ साझा कर मन के बोझ को किसी हद तक हलका कर सकते हैं. मन ही मन निश्चय कर उन्होंने धीरेधीरे अपनी पत्नी से ले कर बच्चों तक की समस्या खोल कर मित्र के सामने रख दी, कुछ भी नहीं छिपाया. अंत में उन्होंने कहा, ‘‘अमित, यही सब कारण हैं जिन से आजकल मेरा मन भटकने लगा है. पत्नी से विरक्ति सी हो गई है. उस का ध्यान बच्चों की तरफ अधिक रहता है, धनसंपत्ति इकट्ठा करने में उस की रुचि है, बच्चों के भविष्य बिगाड़ती जा रही है. बच्चों के बारे में कुछ तय करने में मेरा कोई सहयोग नहीं लेती. इस के अतिरिक्त एक पति की दैनिक जरूरतें क्या हैं, उन की तरफ वह बिलकुल ध्यान नहीं देती.’’

‘‘बच्चों के प्रति मां की चिंता वाजिब है, परंतु मां की बच्चों के प्रति अति चिंता बच्चों को बनाती कम, बिगाड़ती ज्यादा है,’’ अमित ने स्वाभाविक भाव से कहा.

‘‘सच कहते हो. पत्नी और बच्चों के साथ रहते हुए जिस प्रकार का जीवन मैं व्यतीत कर रहा हूं, उस से मुझे लगता है कि पारिवारिक रिश्ते केवल पैसे के इर्दगिर्द घूमते रहते हैं. उन में प्रेम नाम का तत्त्व नहीं होता है या अगर ऐसा कोई तत्त्व दिखाई देता है तो केवल स्वार्थवश. जब तक स्वार्थ की पूर्ति होती रहती है तब तक प्रेम दिखाई देता है. जैसे ही परिवार में अभाव की टोली अपने लंबे पैर पसार कर बैठ जाती है वैसे ही परिवार के बीच लड़ाईझगड़ा आरंभ हो जाता है. तब प्रेम नाम का जीव पता नहीं कहां विलीन हो जाता है.’’

‘‘परिवार में इस तरह की छोटीछोटी बातें होती रहती हैं परंतु मन में गांठ बांध कर इन को बड़ा बनाने का कोई औचित्य नहीं होता,’’ अमित ने समझाने के भाव से कहा.

‘‘मैं ने अपने मन में कोई गांठ नहीं बनाई. अब तक हर संभव कोशिश की कि पत्नी के साथ सामंजस्य बिठा सकूं, बच्चों को उचित मार्गदर्शन दे सकूं, परंतु पत्नी की हठधर्मी के आगे मेरी कोई नहीं चलती. मैं जैसे अपने ही घर में कोई पराया व्यक्ति हूं. मेरी अहमियत केवल यहीं तक है कि मैं उन के लिए पैसा कमाने की मशीन हूं. इस से मेरे मन को ठेस पहुंचती है. बच्चे तो कईकई दिन तक मुझ से बात नहीं करते. मैं उन से आत्मीयता से बात करने की कोशिश करता हूं, तब भी मुझ से दूर रहते हैं. हर जरूरत के लिए वे मां के पास जाते हैं. बड़ा तो जैसेतैसे अब अपने सहीगलत मार्ग पर चल रहा है. अपनी मरजी से शादी की, खुश रहे, परंतु छोटा तो अभी किसी कोर्स के लिए क्वालीफाई तक नहीं कर पाया है. हर बार एंट्रेंस एग्जाम में फेल हो जाता है. दिनभर घूमता रहता है, पता नहीं, क्या करने का इरादा है? उस की हरकतों से मुझे असीम कष्ट पहुंचता है.’’

‘‘कभी तुम ने भाभीजी के स्वभाव का विश्लेषण करने का प्रयत्न किया या जानने की कोशिश की कि वे क्यों ऐसी हैं?’’ अमित ने पूछा.

‘‘बहुत बार किया. कई बार तो उस से ही पूछा, ‘तुम क्यों इतनी चिड़चिड़ी हो? जब देखो तब गुस्से में रहती हो. तुम्हें क्यों हर वक्त सब से परेशानी रहती है?’ तब वह भड़क कर बोली, ‘कौन कहता है कि मैं चिड़चिड़ी हूं और सदा गुस्से में रहती हूं. मेरे स्वभाव में क्या कमी है? आप को ही मेरा स्वभाव अच्छा नहीं लगता तो मैं क्या करूं.’ बाद में मैं ने उस के मायके में पता किया तो पता चला कि वह जन्म से ऐसी ही चिड़चिड़ी, गुस्सैल और जिद्दी थी. तोड़नाफोड़ना उस का स्वभाव था. मनमानी कर के अपनी सहीगलत बातें मांबाप से मनवा लेती थी. उसी चरित्र को आज भी वह जी रही है. अब उस में क्या परिवर्तन आएगा?’’

‘‘मैं कुछ हद तक तुम्हारी समस्या समझ सकता हूं. तुम्हारे परिवार की यह स्थिति पत्नी के स्वार्थी और कर्कश स्वभाव के कारण है. ऐसी पत्नी दूसरों को उपेक्षित कर के स्वयं ऊंचा रख कर देखती है. उस के लिए उस का स्वर और बच्चे ही अहम होते हैं. ऐसी स्त्रियों का अनुपात हमारे समाज में कम है, फिर भी उन की संख्या कम नहीं है. इस तरह की पत्नियां अपने पतियों का जीवन ही नहीं, पूरे ससुराल वालों का जीना दुश्वार किए रहती हैं. मुझे लगता है भाभीजी ऐसे ही चरित्र वाली महिला हैं. इस तरह की स्त्रियां चोट खा कर भी नहीं संभलतीं.’’

‘‘तब फिर परिवार में सामंजस्य बनाए रखने और खुशियों को जिंदा रखने का क्या उपाय है?’’ मणिकांत ने पूछा.

‘‘बहुत आसान है मेरे भाई. जब घरपरिवार में पत्नी और बच्चों से खुशियां न मिलें तो आदमी अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी खुशी तलाश कर सकता है.’’

‘‘वह कैसे?’’ उन्होंने अपनी जिज्ञासा व्यक्त की.

‘‘तुम अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए परिवार को भी खुश रख सकते हो, और स्वयं के लिए मन की खुशी भी तलाश कर सकते हो,’’ अमित ने रहस्यमयी तरीके से कहा.

‘‘मन की खुशी कैसी होती है?’’ मणिकांत की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी. अमित के सामने वे एक बच्चा बन गए थे.

अमित ने एक शिक्षक की तरह उन्हें समझाया, ‘‘खुशियां केवल भौतिक चीजों से ही नहीं मिलतीं, ये मनुष्य के मन में भी होती हैं. बस, हम उन्हें पहचान नहीं पाते.’’

‘‘मन की खुशियां कैसे तलाश की जा सकती हैं? ’’ वे जानने के लिए उतावले हो रहे थे.

‘‘ऐसी खुशियां हम अपनी रुचि और शौक के मुताबिक कार्य कर के प्राप्त कर सकते हैं. प्रत्येक मनुष्य स्वभाव से कलाकार होता है, उस के चरित्र में रचनात्मकता होती है, परंतु जीवन की आपाधापी और परिवार के चक्कर में घनचक्कर बन कर, वह अपने आंतरिक गुणों को भुला बैठता है. अगर हम अपने आंतरिक गुणों की पहचान कर लें तो हर व्यक्ति, लेखक, चित्रकार, कलाकार, अभिनेता आदि बन सकता है. तुम बताओ, तुम्हारी रुचियां कौन सी हैं?’’

मणिकांत सोचने लगे. फिर कहा, ‘‘अब तो जैसे मैं भूल ही गया हूं कि मेरी रुचियां और शौक क्या हैं, परंतु विद्यार्थी जीवन में कविताएं लिखी थीं और कुछ चित्रकारी का भी शौक था.’’ अमित ने उत्साहित हो कर कहा, ‘‘बस, यही तो हैं तुम्हारे आंतरिक गुण. तुम को बहुत अधिक उलझने की आवश्यकता नहीं है. बस, तुम फिर से लिखना शुरू कर दो और पैंसिल ले कर कागज पर आकार बनाना आरंभ करो. फिर देखना, कैसे तुम्हारी कला और लेखन में निखार आता है. तुम अपने परिवार के सभी कष्ट और दुख भूल कर स्वयं में इतना मगन हो जाओगे कि चारों तरफ तुम को खुशियां ही खुशियां बिखरी नजर आएंगी.’’

मन की खुशी: भाग 2

अपनी पत्नी से अब उन्हें एक विरक्ति सी होने लगी थी और जवान हो चुके बच्चों को वे एक बोझ समझने लगे थे. वे जीवनभर न केवल अपना प्यार पत्नी और बच्चों पर लुटाते रहे, बल्कि उन की सुखसुविधा की चिंता में रातदिन खटते रहे. परिवार के किसी व्यक्ति को कभी एक पैसे का कष्ट न हो, इस के लिए वे नौकरी के अतिरिक्त अन्य स्रोतों से भी आय के साधन ढूंढ़ते रहे परंतु उन के स्वयं के हितों की तरफ परिवार के किसी सदस्य ने कभी ध्यान नहीं दिया. पत्नी ने भी नहीं. वह तो बच्चों के पैदा होते ही उन के प्रेमस्नेह और देखभाल में ऐसी मगन हो गई कि घर में पति नाम का एक अन्य जीव भी है, वह भूल सी गई. बच्चों की परवरिश, उन की पढ़ाईलिखाई और उन को जीवन में आगे बढ़ाने की उठापटक में ही उस ने जीवन के बेहतरीन साल गुजार दिए. मणिकांत पत्नी के लिए एक उपेक्षित व्यक्ति की तरह घर में रह रहे थे. वे बस पैसा कमाने और परिवार के लिए सुखचैन जुटाने की मशीन बन कर रह गए.

दांपत्य जीवन के प्रारंभ से ही पत्नी का व्यवहार उन के प्रति रूखा था और कई बार तो उस का व्यवहार अपमानजनक स्थिति  तक पहुंच जाता था. पति की आवश्यकताओं के प्रति वह हमेशा लापरवाह, परंतु बच्चों के प्रति उस का मोह आवश्यकता से अधिक था. बच्चों को वे प्यार करते थे, परंतु उस हद तक कि वे सही तरीके से अपने मार्ग पर चलते रहें. गलती करें तो उन्हें समझा कर सही मार्ग पर लाया जाए, परंतु पत्नी बच्चों की गलत बातों पर भी उन्हीं का पक्ष लेती. इस से वे हठी, उद्दंड होते गए. उन्होंने कभी अगर बच्चों को सुधारने के उद्देश्य के कुछ नसीहत देनी चाही तो पत्नी बीच में आ जाती. कहती, ‘आप क्यों बेकार में बच्चों के पीछे अपना दिमाग खराब कर रहे हैं. मैं हूं न उन्हें संभालने के लिए. अभी छोटे हैं, धीरेधीरे समझ जाएंगे. आप अपने काम पर ध्यान दीजिए, बस.’ अपना काम, यानी पैसे कमाना और परिवार के ऊपर खर्च करना. वह भी अपनी मरजी से नहीं, पत्नी की मरजी से. इस का मतलब हुआ पति का परिवार को चलाने में केवल पैसे का योगदान होता है. उसे किस प्रकार चलाना है, बच्चों को किस प्रकार पालनापोसना है और उन्हें कैसी शिक्षा देनी है, यह केवल पत्नी का काम है. और अगर पत्नी मूर्ख हो तो…तब बच्चों का भविष्य किस के भरोसे? वे मन मसोस कर रह जाते.

पत्नी का कहना था कि बच्चे धीरेधीरे समझ जाएंगे, परंतु बच्चे कभी नहीं समझे. वे बड़े हो गए थे परंतु मां के अत्यधिक लाड़प्यार और फुजूलखर्ची से उन में बचपन से ही बुरी लतें पड़ती गईं. उन के सामने ही उन के मना करने के बावजूद पत्नी बच्चों को बिना जरूरत के ढेर सारे पैसे देती रहती थी. जब किसी नासमझ लड़के के पास फालतू के पैसे आएंगे तो वह कहां खर्च करेगा. शिक्षा प्राप्त कर रहे लड़कों की ऐसी कोई आवश्यकताएं नहीं होतीं जहां वे पैसे का इस्तेमाल सही तरीके से कर सकें. लिहाजा, उन के बच्चों के मन में बेवजह बड़प्पन का भाव घर करता गया और वे दिखावे की आदत के शिकार हो गए. घर से मिलने वाला पैसा वे लड़कियों के ऊपर होटलों व रेस्तराओं में खर्च करते और दूसरे दिन फिर हाथ फैलाए मां के पास खड़े हो जाते. बचपन से ही बच्चों के कपड़ों, स्कूल की किताबों और फीस, उन के खानपान और दैनिक खर्च की चिंता में पत्नी दिनरात घुलती रहती, परंतु कभी यह न सोचती कि पति को भी दिनभर औफिस में काम करने के बाद घर पर एक पल के लिए आराम और सुकून की आवश्यकता है. उन के जीवन में आर्थिक संकट जैसी कोई स्थिति नहीं थी. परंतु अगर कभी कुछ पल या एकाध दिन के लिए ऐसी स्थिति उत्पन्न होती थी, तो उन्होंने बहुत शिद्दत से इस बात को महसूस किया था कि पत्नी का मुंह तब टेढ़ा हो जाता था. वह उन की परेशानी की चिंता तो छोड़, इस बात का ताना मारती रहती थी कि उन के साथ शादी कर के उस का जीवन बरबाद हो गया, कभी सुख नहीं देखा, बस, परिवार को संभालने में ही उस का जीवन गारत हो गया.

तब पतिपत्नी के बीच बेवजह खटपट हो जाती थी. हालांकि वे तब भी चुप रहते थे, क्योंकि पत्नी को उन के वाजिब तर्क भी बुरे लगते थे. इसलिए बेवजह बहस कर के वे स्वयं को दुखी नहीं करते थे. परंतु उन के चुप रहने पर भी पत्नी का चीखनाचिल्लाना जारी रहता. वह उन के ऊपर लांछन लगाती, ‘हां, हां, क्यों बोलोगे, मेरी बातें आप को बुरी लगती हैं न. जवाब देने में आप की जबान कट जाती है. दिनभर औफिस की लड़कियों के साथ मटरगस्ती करते रहते हो न. इसलिए मेरा बोलना आप को अच्छा नहीं लगता.’ पत्नी की इसी तरह की जलीकटी बातों से वे कई दिनों तक व्यथित रहते. खैर, परिवार के लिए धनसंपत्ति जुटान उन के लिए कोई बड़ी मुसीबत कभी नहीं रही. वे उच्च सरकारी सेवा में थे और धन को बहुत ही व्यवस्थित ढंग से उन्होंने निवेश कर रखा था और अवधि पूरी होने पर अब उन के निवेशों से उन्हें वेतन के अलावा अतिरिक्त आय भी होने लगी थी. जैसेजैसे बच्चे बड़े होते गए, उन की जरूरतें बढ़ती गईं, उसी हिसाब से उन का वेतन और अन्य आय के स्रोत भी बढ़ते गए. संपन्नता उन के चारों ओर बिखरी हुई थी, परंतु प्यार कहीं नहीं था. वे प्रेम की बूंद के लिए तरस रहे उस प्राणी की तरह थे, जो नदी के पाट पर खड़ा था, परंतु कैसी विडंबना थी कि वह पानी को छू तक नहीं सकता था. पत्नी के कर्कश स्वभाव और बच्चों के प्रति उस की अति व्यस्तताओं ने मणिकांत को पत्नी के प्रति उदासीन कर दिया था.

उधर, छोटा बेटा भी अपने भाई से पीछे नहीं था. बड़े भाई की देखादेखी उस ने भी बाइक की मांग पेश कर दी थी. दूसरे दिन उसे भी बाइक खरीद कर देनी पड़ी. ये कोई दुखी करने वाली बातें नहीं थीं, परंतु उन्होंने पत्नी से कहा, ‘लड़कों को बोलो, थोड़ा पढ़ाई की तरफ भी ध्यान दिया करें. कितना पिछड़ते जा रहे हैं. सालदरसाल फेल होते हैं. यह उन के भविष्य के लिए अच्छी निशानी नहीं है.’ पत्नी ने रूखा सा जवाब दिया, ‘आप उन की पढ़ाई को ले कर क्यों परेशान होते रहते हैं? उन्हें पढ़ना है, पढ़ लेंगे, नहीं तो कोई कामधंधा कर लेंगे. कमी किस बात की है?’

एक अफसर के बेटे दुकानदारी करेंगे, यह उन की पत्नी की सोच थी. और पत्नी की सोच ने एक दिन यह रंग भी दिखा दिया जब लड़के ने घोषणा कर दी कि वह पढ़ाई नहीं करेगा और कोई कामधंधा करेगा. मां की ममता का फायदा उठा कर उस ने एक मोबाइल की दुकान खुलवा ली. इस के लिए उन को 5 लाख रुपए देने पड़े. परंतु बड़े बेटे की निरंकुशता यहीं नहीं रुकी. उन्हें मालूम नहीं था, परंतु स्वाति को पता रहा होगा, वह किसी लड़की से प्यार करता था. पढ़ाई छोड़ दी तो उस के साथ शादी की जल्दी पड़ गई. शायद उसे पता था कि मणिकांत आसानी से नहीं मानेंगे, तो उस ने चुपचाप लड़की से कोर्ट में शादी कर ली. अप्रत्यक्ष रूप से इस में स्वाति का हाथ रहा होगा.

जिस दिन बेटा बिना किसी बैंडबाजे के लड़की को घर ले कर आया, तो उन की पत्नी ने अकेले उन की अगवानी की और रीतिरिवाज से घर में प्रवेश करवाया. पत्नी बहुत खुश थी. छोटा बेटा भी मां का खुशीखुशी सहयोग कर रहा था. वे एक अजनबी की तरह अपने ही घर में ये सब होते देख रहे थे. किसी ने उन से न कुछ कहा न पूछा. पत्नी ने यह भी नहीं कहा कि वे बहू को आशीर्वाद दे दें. उन को दुख हुआ, परंतु किसी से व्यक्त नहीं कर सकते थे. बात यहां तक रहती तब भी वे संतोष कर लेते, परंतु दूसरे दिन पत्नी और बेटे की जिद के चलते परिचितों व रिश्तेदारों को शादी का रिसैप्शन देना पड़ा. इस में उन के लाखों रुपए खर्च हो गए. परिवार के किसी व्यक्ति की खुशी में वे भागीदार नहीं थे, परंतु उन की खुशी के लिए पैसा खर्च करना उन का कर्तव्य था. इसी मध्य, उन्हें छींक आई और वे भूत के विचारों की धुंध से वर्तमान में लौट आए.

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