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#lockdown: किसान रथ ऐप

एक ओर किसान गेहूं फसल कटाई में पूरी तरह जुट गया है, वहीं सरकार के कृषि मंत्रालय ने किसानों के लिए ‘किसान रथ’ ऐप शुरू कर उन की भलाई में मददगार बन उभरने के प्रयास में है.

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने ‘कृषि रथ’ मोबाइल ऐप शुरू किया, ताकि किसान कोविड-19 के कारण जारी लॉकडाउन के दौरान अपना माल घर या मंडियों तक आसानी से पहुंचा सकें.

इस के लिए अनाज का ब्यौरा इस ऐप पर डालना होगा. साथ ही, किसानों को माल की मात्रा का ब्यौरा भी देना होगा. इस के बाद परिवहन सुविधाएं मुहैया कराने वाली नेटवर्क कंपनी किसानों को उस माल को पहुंचाने के लिए ट्रक और किराए का ब्यौरा देगी.

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इस बात की तसदीक हो जाने के बाद ही किसानों को ऐप पर ट्रांसपोर्टरों का ब्यौरा मिलेगा. उस ब्यौरा में ट्रांसपोर्टरों का फोन नंबर भी होगा. किसान उन ट्रांसपोर्टरों से बात कर उपज को मंडी तक पहुंचाने के लिए सौदेबाजी कर सकेंगे और अंतिम रूप दे सकेंगे.

कृषि मंत्रालय ने यह भी जानकारी दी कि किसान द्वारा दर्ज ढुलाई के माल की मात्रा व्यापारियों और ट्रांसपोर्टरों दोनों को दिखाई देगा. कारोबारियों को अपने क्षेत्रों में बिक्री के लिए उपलब्ध कृषि उपज का पता चल जाएगा और वे विभिन्न किसानों के द्वारा भेजे जा सकने वाले कृषि वस्तुओं को जुटा कर उसे खेत से उठाने के लिए ट्रक की व्यवस्था कर सकते हैं.

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कृषि मंत्रालय ने यह भी बताया कि 5 ऑनलाइन ट्रक बुकिंग कंपनियों ने साढ़े लाख से ज्यादा ट्रकों को इस ऐप पर सूचीबद्ध किया है . नई प्रणाली से किसानों, ट्रांसपोर्टरों और एग्रीगेटर्स और सरकार सब के लिए लाभ होने की उम्मीद है.

भले ही किसान रथ ऐप किसानों के हित के लिए बनाया है, पर कितने काम का साबित होगा, यह तो इस्तेमाल के बाद ही पता चलेगा.

#coronavirus: संक्रमण का औसत वृद्धि दर में 40 प्रतिशत की गिरावट दर्ज

स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने शुक्रवार को मीडिया ब्रीफिंग में बताया कि पिछले महीने लॉकडाउन लागू होने के बाद से देश में कोविड-19 के मामलों के दोगुना होने की रफ्तार धीमी हुई है. लॉकडाउन से पहले भारत में 3 दिन में मामले दोगुने हो रहे थे. पिछले सात दिन में 6.2 दिन में मामले दोगुने हो रहे हैं.

* कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में  संक्रमण का फैलाव कम हुआ है :- 

19  राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों संक्रमण का औसत मामले दोगुने से कम है. इन राज्यों में केरल, उत्तराखंड, हरियाणा, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़, पुडुचेरी, बिहार, ओडिशा, तेलंगाना, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, जम्मू और कश्मीर , पंजाब, असम और त्रिपुरा शामिल है. इन स्थानों पर संक्रमण का मामले बढ़ने की गति काफी हद तक कम हो गई है. 1 अप्रैल, 2020 के बाद से औसत वृद्धि दर 1.2 है, वही यह  दो सप्ताह  पहले 15 मार्च से 31 मार्च तक औसत वृद्धि दर 2.1 थी . इस प्रकार दो सप्ताह  में  औसत वृद्धि दर में 40 प्रतिशत (2.1-1.2) 2.1 की गिरावट दर्ज हुआ है.

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* सरकार ने  बढ़ा रही है अपनी क्षमता :-

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय बताया कि 5 लाख रैपिड एंटीबॉडी किट्स सभी राज्यों और जिलों में वितरित कर दी गई हैं, जो क्षेत्रों में सामने आने वाले मामलों की संख्या के आधार पर किया गया है। वर्तमान में प्रति महीने 6,000 वेंटिलेटर के विनिर्माण की क्षमता है. मंत्रालय ने बताया कि चित्रा तिरुमलाई चिकित्सा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान के स्वदेशी डिजाइनों के द्वारा व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण, ऑक्सीजन कन्सेंट्रेटर्स, वेंटिलेटर्स, सीएसआईआर इंजीनियरिंग लैब्स जैसे सहयोगी उपकरणों का उत्पादन बढ़ाया जा रहा है. आरटी-पीसीआर किट्स का स्वदेशी विनिर्माण शुरू कर दिया गया है और मई 2020 से प्रति महीने इसकी 10 लाख किट्स का उत्पादन शुरू हो जाएगा. मई 2020 से प्रति महीने 10 लाख किट की क्षमता के साथ रैपिट एंडीबॉडी डिटेक्शन किट्स का विनिर्माण भी शुरू हो जाएगा.  स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा युद्ध स्तर पर निदान, उपचार और वैक्सीन के क्षेत्रों में जरूरी उपायों की निगरानी का कार्य किया जा रहा है .

* समर्पित कोविड-19 अस्पतालों की संखय 1,9OO पार पहुंची :- 

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने कोरोना के मामलों के आकलन के आधार पर विभिन्न कोविड इकाइयों के बुनियादी ढांचे के बेहतर नियोजन के उद्देश्य से अनुमान के साधनों को राज्यों/जिला प्रशासकों के साथ साझा करना शुरू कर दिया है. इस समय  केन्द्र और राज्य स्तर पर कुल मिलाकर 1,919 समर्पित कोविड-19 अस्पतालों की पहचान कर ली गई है, इसमें 672 समर्पित कोविड अस्पताल (डीसीएच)  है. जहाँ 1,07,830 आइसोलेशन बिस्तर और 14,742 आईसीयू बिस्तर की  व्यवस्था है. वही कुल 65,916 आइसोलेशन बिस्तर और 7,064 आईसीयू बिस्तर के  साथ  1,247 समर्पित कोविड स्वास्थ्य केन्द्र (डीसीएचसी) है.  इस प्रकार कुल 1,919 अस्पतालों एवं स्वास्थ्य केन्द्र में 1,73,746 आइसोलेशन बिस्तर और कुल 21,806 आईसीयू बिस्तर उपलब्ध हैं.

* वैक्सीनों के विकास कार्य तेजी :- 

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय बताया की सरकार प्रभावी वैक्सीनों के विकास और जल्द से जल्द उनकी उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक साझीदारों के साथ  मिलकर काम कर रही है. भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन के सॉलिडैरिटी परीक्षण में एक भागीदार है, जिसके माध्यम से इन उपचारों की प्रभावशीलता तय की जा रही है. देश के वैज्ञानिक कार्यबल वर्तमान में स्वीकृत दवाओं और कोविड-19 के लिए उनके पुनः उद्देश्य तय किए जाने के बारे में आकलन कर रहे हैं. सीएसआईआर ने उमीफेनोविर, फैविपिरैविर जैसे वायरण रोधी कणों के विविध उपयोग के स्वदेशी संकलन में खासी प्रगति की है. आयुष मंत्रालय के साथ ही पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली से जुड़े फाइटोफार्मास्युटिकल्स और लीड के लिए भी संभावनाएं तलाशी जा रही हैं.

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* आगे के रोडमैप को तैयार किया गया :-

शुक्रवार को केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन की अध्यक्षता में मंत्री कोविड-19 पर बने मंत्री समूह की समूह का बैठक हुआ. इस बैठक में लॉकडाउन को बढ़ाए जाने के असर और आगे के रोडमैप को तैयार करने पर विस्तार से चर्चा हुई. साथ ही कोविड-19 से निपटने में निदान, वैक्सीन, दवाओं, अस्पताल संबंधी उपकरणों और सामान्य स्वास्थ्य की दिशा में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थानों द्वारा किए जा रहे प्रयासों की भी समीक्षा किया गया .

*  सामूहिक प्रयासों के जरिए अनेक कदम उठा रही है :-

भारत सरकार कोविड-19 से बचाव, रोकथाम और प्रबंधन के लिए सभी राज्यों/संघ शासित प्रदेशों के साथ मिलकर सामूहिक प्रयासों के जरिए अनेक कदम उठा रही है. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर), भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और परमाणु ऊर्जा विभाग (डीईए)   मिलकर निम्न बिंदुओं पर काम कर रहे हैं . इस साझा प्रयास से ऐसी त्वरित और सटीक जांच (डायग्नोस्टिक) विकसित करने की कोशिश जारी है, जिससे 30 मिनट के भीतर ही नतीजे हासिल हो सकें. साथ ही और 30 नए प्रयोगशालाओं के माध्यम से परीक्षण क्षमता को बढ़ाने की तैयारी है. इससे ज्यादा से ज्यादा लोगों के परीक्षण के किया जा सकेगा. जिससे तय समय पर यह पत्ता  किया जा सकता है कि वायरल अनुक्रमण में बढ़ोतरी, जिससे महामारी की स्थिति में और संभावित प्रमुख बदलावों की पहचान में सहायता मिल सकती है. वायरस के प्रसार को निष्क्रिय करने वाली वैक्सीन, प्रमुख एंटीजन्स के एंटीबॉडीज, मोनोक्लोनल और आरएनए आधारित वैक्सीनों के विकास में भी प्रगति दर्ज की गई है। कुछ स्थानों पर कंवलसेंट प्लाज्मा थेरेपी भी शुरू कर दी गई है.

#lockdown: अखिल भारतीय कृषि परिवहन कॉल सेंटर शुरू हुआ

लॉकडाउन में किसान भाई लोगो का ख्याल रखते हुआ . बुधवार को कृषि मंत्री श्री नरेन्‍द्र सिंह तोमर ने  लॉकडाउन के दौरान खराब होने वाले उत्‍पादों के अंतर-राज्‍यीय परिवहन के लिए अखिल भारतीय कृषि परिवहन कॉल सेंटर नम्‍बर 18001804200 और 14488 लॉन्‍च किया .

कृषि भवन में आयोजित एक समारोह में अखिल भारतीय कृषि परिवहन कॉल सेंटर के नम्‍बर 18001804200 और 14488 को शुरू करते हुआ . उन्होंने बताया कि इन नम्‍बरों पर दिन या रात को किसी भी समय मोबाइल या लैंडलाइन फोन से कॉल किया जा सकता है. यह नंबर 24×7 सेवा प्रदान करेगी .

कोविड-19 के खतरे के कारण जारी लॉकडाउन की मौजूदा परिस्थिति के दौरान खराब होने वाले उत्‍पादों को एक राज्‍य से दूसरे राज्‍य में भेजने के लिए परिवहन में आने वाली परेशानी को इस नंबर के माध्यम से दूर किया जा सकेगा .

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अखिल भारतीय कृषि परिवहन कॉल सेंटर खराब होने वाले सब्जियों और फलों, बीज, कीटनाशक और उवर्रक आदि जैसे कृषि उत्‍पादों को एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान पर भेजने के लिए राज्‍यों के बीच अंतर-राज्‍यीय सहयोग के लिए कृषि, सहयोग एवं किसान कल्‍याण विभाग (डीएसीएंडएफडब्‍ल्‍यू) भारत सरकार की एक पहल है.

कृषि, बागवानी या बीज और उर्वरकों के अलावा अन्‍य खराब होने वाली वस्‍तुओं को एक से दूसरे राज्‍य में भेजने में कठिनाइयों का सामना कर रहे ट्रक चालक और सहायक, व्‍यापारी, खुदरा व्‍यापारी, ट्रांसपोर्टर्स, किसान, विनिर्माता या अन्‍य हितधारक इस कॉल सेंटर पर सम्‍पर्क करके मदद मांग सकते हैं.  कॉल सेंटर एक्‍जीक्‍यूटिव्‍स राज्‍य सरकार के अधिकारियों को मसलों को सुलझाने में सहायता करने के साथ-साथ वाहनों और खेप के विवरण उपलब्‍ध कराएंगे.

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इफ्को किसान संचार लिमिटेड (आईकेएसएल) की ओर से फरीदाबाद, हरियाणा में उसके कार्यालयों से परिचालित किया जायेगा . इस कॉल सेंटर  द्वारा शुरूआत में 10 ग्राहक सलाहकार द्वारा चौबीसों घंटे सेवा प्रदान किया जायेगा . यह ग्राहक सलाहकार  8-8 घंटे की तीन पालियों में सेवाएं प्रदान करेंगे .  आने वाले समय में कॉल सेंटर सेवा को विस्‍तारित किया जा सकता है. कॉल सेंटर के ग्राहक सलाहकार  हर प्रकार की समस्‍या के निपटान के रिकॉर्ड को बरकरार रखेंगे और उसे सत्‍यापित भी करेंगे. यह  24×7 कॉल सेंटर डीएसीएंड एफ डब्‍ल्‍यू द्वारा लॉकडाउन की अवधि के दौरान जमीनी स्‍तर पर किसानों और खेतीबाड़ी की गतिविधियों को सुगम बनाने के लिए किए गए विविध उपायों में से एक है.

औकात से ज्यादा: भाग 3

पापा तो निशा के जाने से पहले ही काम पर निकल जाते थे, इसलिए नए खरीदे कपड़े पहन कर औफिस जाती निशा का सामना उन से नहीं हुआ. मगर मम्मी तो उसे देख भड़क गईं, ‘‘तू ये कपड़े पहन कर औफिस जाएगी? कुछ शर्मोहया भी है कि नहीं?’’‘‘क्यों? इन कपड़ों में कौन सी बुराई है?’’ निशा ने तपाक से पूछा. ‘‘सारे जिस्म की नुमाइश हो रही है और तुम को इस में कोई बुराई नजर नहीं आ रही. उतारो इन्हें और ढंग के दूसरे कपड़े पहनो,’’ निशा की नौकरी को ले कर पहले से ही नाखुश मम्मी ने कहा. ‘‘मेरे पास इतना वक्त नहीं मम्मी कि दोबारा कपड़े बदलूं. इस समय मैं काम पर जा रही हूं. शाम को इस बारे में बात करेंगे,’’ मम्मी के विरोध की अनदेखी करते निशा घर से बाहर निकल आई. उस दिन घर से औफिस को जाते निशा को लगा कि उस को पहले से ज्यादा नजरें घूर रही हैं. ऐसा जरूर कपड़ों में से दिखाई पड़ने वाले उस के गोरे मांसल जिस्म की वजह से था. शर्म आने के बजाय निशा को इस में गर्व महसूस हुआ. उधर, अपने बदले रंगरूप की वजह से निशा को औफिस में भी खुद के प्रति सबकुछ बदलाबदला सा लगा. बिजलियां गिराती निशा के बदले रंगरूप को देख काम करने वाली दूसरी लड़कियों की आंखों में हैरानी के साथसाथ ईर्ष्या का भाव भी था. यह ईर्ष्या का भाव निशा को अच्छा लगा. यह ईर्ष्याभाव इस बात का प्रमाण था कि वह उन के लिए चुनौती बनने वाली थी.

निशा के अपना रंगरूप बदलते ही निशा के लिए औफिस में भी एकाएक सबकुछ बदलने लगा. अपने केबिन की तरफ जाते हुए संजय की नजर निशा पर पड़ी और इस के बाद पहली बार उस को अकेले केबिन में आने का इंटरकौम पर हुक्म भी तत्काल ही आ गया. केबिन में आने का और्डर मिलते ही निशा के बदन में सनसनाहट सी फैल गई. उस को इसी घड़ी का तो इंतजार था. केबिन में जाने से पहले निशा ने गर्वीले भाव से एक बार दूसरी लड़कियों को देखा. वह अपनी हीनभावना से उबर आई थी. अकेले केबिन में एक लड़की होने के नाते उस के साथ क्या हो सकता था, उस की कल्पना कर के निशा मानसिक रूप से इस के लिए तैयार थी. दूसरे शब्दों में, केबिन की तरफ जाते हुए निशा की सोच बौस के सामने खुद को प्रस्तुत करने की थी. निशा को इस बात से भी कोई घबराहट नहीं थी कि अपने बौस के केबिन में से बाहर आते समय उस के होंठों की लिपस्टिक का रंग फीका पड़ सकता था. वह बिखरी हुई हालत में नजर आ सकती थी. निशा मान रही थी कि बहुत जल्दी बहुतकुछ हासिल करना हो तो उस के लिए किसी न किसी शक्ल में कोई कीमत तो अदा करनी ही पड़ेगी.

निशा जब संजय के केबिन में दाखिल हुई तो उस की आंखों में खुले रूप से संजय के सामने समर्पण का भाव था. संजय की एक शिकारी वाली नजर थी. निशा के समर्पण के भाव को देख वह अर्थपूर्ण ढंग से मुसकराया और बोला, ‘‘तुम एक समझदार लड़की हो, इसलिए जानती हो कि कामयाबी की सीढ़ी पर तेजी से कैसे चढ़ा जाता है? अपने बौस और क्लाइंट को खुश रखो, यही तरक्की का पहला पाठ है. मेरा इशारा तुम समझ रही हो?’’

‘‘यस सर,’’ निशा ने बेबाक लहजे से कहा.

‘‘गुड, तुम वाकई समझदार हो. तुम्हारी इसी समझदारी को देखते हुए मैं इसी महीने से तुम्हारी सैलरी में 2 हजार रुपए की बढ़ोतरी कर रहा हूं,’’ निशा के गदराए जिस्म पर नजरें गड़ाते संजय ने कहा.

‘‘थैंक्यू सर, इस मेहरबानी के बदले में मैं आप को कभी भी और किसी भी मामले में निराश नहीं करूंगी,’’ उसी क्षण खुद को संजय के हवाले कर देने वाले अंदाज में निशा ने कहा. इस पर उस को अपने करीब आने का इशारा करते हुए संजय ने कहा, ‘‘तुम आज के जमाने की हकीकत को समझने वाली लड़की हो, इसलिए तेजी से तरक्की करोगी.’’ इस के बाद कुछ समय संजय के साथ केबिन में बिता कर  अपने होंठों की बिखरी लिपस्टिक को रुमाल से साफ करती निशा बाहर निकली तो वह नए आत्मविश्वास से भरी हुई थी. औकात से अधिक मिलने को ले कर मम्मी जिस आशंका से इतने दिनों से आशंकित थीं उस में से तो निशा गुजर भी गई थी. औकात कम होने पर तरक्की करने का यही तो सही रास्ता था. इसलिए संजय के केबिन के अंदर जो भी हुआ था उस के लिए निशा को कोई मलाल नहीं था.

सैलरी में 2 हजार रुपए की बढ़ोतरी हुई तो बिना देरी किए निशा ने सवारी के लिए स्कूटी भी किस्तों पर ले ली. अपनी स्कूटी पर सवार हो नौकरी पर जाते निशा का एक और बड़ा अरमान पूरा हो गया था. वह जैसे हवा में उड़ रही थी. इस के साथ ही निशा ने घर में यह ऐलान भी कर दिया कि अब से वह अपने काम से देरी से वापस आया करेगी. पापा कुछ नहीं बोले, किंतु मम्मी के माथे पर कई बल पड़ गए, पूछा, ‘‘इस देरी से आने का मतलब?’’

‘‘ओवरटाइम मम्मी, ओवरटाइम.’’

मम्मी ने दुनिया देखी थी, इसलिए उन्होंने कहा, ‘‘मुझ को तुम्हारा देर से घर आना अच्छा नहीं लगेगा.’’ ‘‘तुम को तो मेरा नौकरी पर जाना भी कहां अच्छा लगा था मम्मी, मगर मैं नौकरी पर गई. अब भी वैसा ही होगा. एक बात और, तुम को मुझे मेरी औकात से ज्यादा मिलने पर ऐतराज था. मगर मुझ को 2 महीने में ही मिलने वाली तरक्की ने साबित कर दिया कि मेरी कोई औकात थी.’’ बड़े अहंकार से कहे गए निशा के शब्दों पर मम्मी बोलीं, ‘‘हां, मैं देख रही हूं और समझ भी रही हूं. सचमुच बाहर तेरी औकात बढ़ गई है. मगर मेरी नजरों में तेरी औकात पहले से कम हो गई है.’’ मम्मी के शब्दों की गहराई में जाने की निशा ने जरूरत नहीं समझी. इस के बाद घर देर से आना निशा के लिए रोज की बात हो गई. काफी रात हुए घर आना अब निशा की मजबूरी थी. अपने बौस के साथसाथ क्लाइंट को भी खुश करना पड़ता था. औफिस में निशा की अहमियत बढ़ रही थी मगर घर में स्थिति दूसरी थी. मम्मी लगातार निशा से दूर हो रही थीं, किंतु निशा की कमाई के लालच में पापा अब भी उस के करीब बने हुए थे. निशा के देरसबेर घर आने को वे अनदेखा कर जाते थे. दिन बीतते गए. एक दिन निशा को ऐसा लगा कि अपनी लालसाओं के पीछे भागते हुए वह इतनी दूर निकल आई थी जहां से वापसी मुश्किल थी. अपने फायदे के लिए संजय ने निशा का खूब इस्तेमाल किया था. इस के बदले में उस को मोटी सैलरी भी दी थी. निशा ने बहुतकुछ हासिल किया था, किंतु एक औरत के रूप में बहुतकुछ गंवा कर.

कभीकभी यह चीज निशा को सालती भी थी. ऐसे में उस को मम्मी की कही हुई बातें भी याद आतीं. लेकिन जिस तड़कभड़क वाली जिंदगी जीने की निशा आदी हो चुकी थी उस को छोड़ना भी निशा के लिए अब मुश्किल था. वापसी के रास्ते बंद थे. औफिस की दूसरी लड़कियों के सीने में जलन और ईर्ष्या जगाती निशा काफी समय तक अपने बौस संजय की खास और चहेती बनी रही और सैलरी में बढ़ोतरी करवाती रही. फिर एक दिन अचानक ही निशा के लिए सबकुछ नाटकीय अंदाज में बदला. एक खूबसूरत सी दिखने वाली लीना नाम की लड़की नौकरी हासिल करने के लिए संजय के केबिन में दाखिल हुई और इस के बाद निशा के लिए केबिन में से बुलावा आना कम होने लगा. लीना ने सबकुछ समझने में निशा की तरह 2 महीने का लंबा समय नहीं लिया था और कुछ दिनों में ही संजय की खासमखास बन गई थी. लीना की संजय के केबिन में एंट्री के बाद उपेक्षित निशा को अपनी स्थिति किसी इस्तेमाल की हुई सैकंडहैंड चीज जैसी लगने लगी थी. लेकिन उस के पास इस के अलावा कोई चारा नहीं था कि वह अपनी सैकंडहैंड वाली सोच के साथ समझौता कर ले.

औकात से ज्यादा: भाग 2

संजय के औफिस में केवल लड़कियां ही काम करती दिखती थीं. पूरे मेकअप में एकदम अपटूडेट लड़कियां, खूबसूरत और जवान. किसी की भी उम्र 22-23 वर्ष से अधिक नहीं. औफिस में संजय ने अपने बैठने के लिए एक अलग केबिन बना रखा था. केबिन का दरवाजा काले शीशों वाला था. किसी भी लड़की को अपने केबिन में बुलाने के लिए वह इंटरकौम का इस्तेमाल करता था. काफी ठाट में रहने वाला संजय चैनस्मोकर भी था. सिगरेट लगभग हर समय उस की उंगलियों में ही दबी रहती थी. नौकरी के पहले दिन सिगरेट का कश खींच संजय ने गहरी नजरों से निशा को ऊपर से नीचे तक देखा और बोला, ‘‘दिल लगा कर काम करना, इस से तरक्की जल्दी मिलेगी.’’ ‘‘यस सर,’’ संजय की नजरों से खुद को थोड़ा असहज महसूस करती हुई निशा ने कहा. कल के मुकाबले में संजय की नजरें कुछ बदलीबदली सी लगीं निशा को. फिर उसे लगा कि यह उस का वहम भी हो सकता था. तनख्वाह के मुकाबले में औफिस में काम उतना ज्यादा नहीं था. उस पर सुविधाएं कई थीं. औफिस टाइम के बाद काम करना पड़े तो उस को ओवरटाइम मान उस के पैसे दिए जाते थे. किसी न किसी लड़की का हफ्ते में ओवरटाइम लग ही जाता था. निशा नई थी, इसलिए अभी उसे ओवरटाइम करने की नौबत नहीं आती थी.

शायद इसलिए अभी उसे ओवरटाइम के लिए नहीं कहा गया था क्योंकि अभी वह काम को पूरी तरह से समझी नहीं थी. उस के बौस संजय ने भी अभी उसे किसी काम से अपने केबिन में नहीं बुलाया था. केबिन के दरवाजे के शीशे काले होने की वजह से यह पता नहीं चलता था कि केबिन में बुला कर संजय किसी लड़की से क्या काम लेता था. कई बार तो कोई लड़की काफी देर तक संजय के केबिन में ही रहती. जब वह बाहर आती तो उस में बहुतकुछ बदलाबदला सा नजर आता. किंतु निशा समझ नहीं पाती कि वह बदलाव किस किस्म का था. एक महीना बड़े मजे से, जैसे पंख लगा कर बीत गया. एक महीने के बाद तनख्वाह की 20 हजार रुपए की रकम निशा के हाथ में थमाई गई तो कुछ पल के लिए तो उसे यकीन ही नहीं आया कि इतने सारे पैसे उसी के हैं. पहली तनख्वाह को ले कर घर की तरफ जाते निशा के पांव जैसे जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे. निशा की तनख्वाह के पैसों से घर का माहौल काफी बदल गया था. 20 हजार रुपए की रकम कोई छोटी रकम नहीं थी. एक प्राइवेट फर्म में मुनीम के रूप में 20 वर्ष की नौकरी के बाद भी उस के पापा की तनख्वाह इस रकम से कुछ कम ही थी.

निशा की पहली तनख्वाह से उस की नौकरी का विरोध करने वाले पापा के तेवर काफी नरम पड़ गए. मम्मी पहले की तरह ही नाराज और नाखुश थीं. निशा की तनख्वाह के पैसे देख उन्होंने बड़ी ठंडी प्रतिक्रिया दी. जैसी कि पहली तनख्वाह के मिलने पर निशा का एक टच स्क्रीन मोबाइल लेने की ख्वाहिश थी, उस ने वह ख्वाहिश पूरी की. इस के बाद रोजमर्रा के खर्च के लिए कुछ पैसे अपने पास रख निशा ने बाकी बचे पैसे मम्मी को देने चाहे, मगर मम्मी ने उन्हें लेने से साफ इनकार करते हुए कहा, ‘‘घर का सारा खर्च तुम्हारे पापा चलाते हैं, इसलिए ये पैसे उन्हीं को देना.’’ ‘‘लगता है तुम अभी भी खुश नहीं हो, मम्मी?’’ निशा ने कहा.

‘‘एक मां की अपनी जवान बेटी के लिए दूसरी कई चिंताएं होती हैं, वह पैसों को देख उन चिंताओं से मुक्त नहीं हो सकती. मगर मेरी इन बातों का मतलब तुम अभी नहीं समझोगी. जब समझोगी तब तक बड़ी देर हो जाएगी. उस वक्त शायद मैं भी तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकूंगी.’’ मम्मी की बातों को निशा ने सुना अवश्य किंतु गंभीरता से नहीं लिया. पहली तनख्वाह के मिलने के बाद उत्साहित निशा के सपने जैसे आसमान को छूने लगे थे. सारी ख्वाहिशें भी मुट्ठी में बंद नजर आने लगी थीं. दूसरी तनख्वाह के पैसों से घर की हालत में साफ एक बदलाव आया. मम्मीपापा जिस पुराने पलंग पर सोते थे वह काफी जर्जर और कमजोर हो चुका था. पलंग मम्मी के दहेज में आया था और तब से लगातार इस्तेमाल हो रहा था. अब पलंग में जान नहीं रही थी. पापा लंबे समय से एक सिंगल बड़े साइज का बैड खरीदने की बात कह रहे थे मगर पैसों की वजह से वे ऐसा कर नहीं सके थे. अब जब निशा की तनख्वाह के रूप में घर में ऐक्स्ट्रा आमदनी आई थी तो पापा ने नया बैड खरीदने में जरा भी देरी नहीं की थी. नए बैड के साथ ही पापा उस पर बिछाने के लिए चादरों का एक जोड़ा भी खरीद लाए थे. नए बैड और उस पर बिछी नई चादर से पापा और मम्मी के सोने वाले कमरे का जैसे नक्शा ही बदल गया था. पापा खुश थे, किंतु मम्मी के चेहरे पर आशंकाओं के बादल थे. वे चाहती हुई भी हालात के साथ समझौता नहीं कर पा रही थीं.

इधर, निशा के सपनों का संसार और बड़ा हो रहा था. जो उस को मिल गया था वह उस से कहीं ज्यादा हासिल करने की ख्वाहिश पाल रही थी. अपनी ख्वाहिशों के बीच में निशा को कई बार ऐसा लगता था कि उस की भावी तरक्की का रास्ता उस के बौस के केबिन से हो कर ही गुजरेगा. मगर औफिस में काम करने वाली दूसरी लड़कियों की तरह अभी बौस ने उसे एक बार भी अकेले किसी काम से अपने केबिन में नहीं बुलाया था. हालांकि औफिस में काम करते हुए उस को 2 महीने से अधिक हो चुके थे. बौस के द्वारा एक बार भी केबिन में न बुलाए जाने के कारण निशा के अंदर एक तरह की हीनभावना जन्म लेने लगी थी. वह सोचती थी दूसरी लड़कियों में ऐसा क्या था जो उस में नहीं था? जब उक्त सवाल निशा के जेहन में उठा तो उस ने औफिस में काम करने वाली दूसरी लड़कियों पर गौर करना शुरू किया. गौर करने पर निशा ने महसूस किया कि औफिस में काम करने वाली और बौस के केबिन में आनेजाने वाली लड़कियां उस से कहीं अधिक बिंदास थीं. इतना ही नहीं, वे अपने रखरखाव और ड्रैस कोड में भी निशा से एकदम जुदा नजर आती थीं. औफिस की दूसरी लड़कियों को देख कर लगता था कि वे अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा अपने मेकअप और कपड़ों पर ही खर्च कर डालती थीं और ब्यूटीपार्लरों में जाना उन के लिए रोज की बात थी.

लड़कियां जिस तरह के कपड़े पहन औफिस में आती थीं, वैसे कपड़े पहनने पर तो शायद मम्मी निशा को घर से बाहर भी नहीं निकलने देतीं. उन वस्त्रों में कटाव व उन की पारदर्शिता में से जिस्म का एक बड़ा हिस्सा साफ नजर आता था. कई बार तो निशा को ऐसा भी लगता था कि बौस के कहने पर औफिस में काम करने वाली लड़कियां औफिस से बाहर भी क्लाइंट के पास जाती थीं. क्यों और किस मकसद से, यह अभी निशा को नहीं मालूम था. मगर तरक्की करने के लिए उसे खुद ही सबकुछ समझना था और उस के लिए खुद को तैयार भी करना था. वैसे बौस के केबिन में कुछ वक्त बिता कर बाहर आने वाली लड़कियों के अधरों की बिखरी हुई लिपस्टिक को देख निशा की समझ में कुछकुछ तो आने ही लगा था. निशा को उस की औकात और काबिलीयत से अधिक मिलने पर भी मम्मी की आशंका सच भी हो सकती थी, किंतु भौतिक सुखों की बढ़ती चाहत में निशा इस का सामना करने को तैयार थी. आगे बढ़ने की चाह में निशा की सोच भी बदल रही थी. उस को लगता था कि कुछ हासिल करने के लिए थोड़ी कीमत चुकानी पड़े तो इस में क्या बुराई है. शायद यही तो कामयाबी का शौर्टकट था. बौस के केबिन से बुलावा आने के इंतजार में निशा ने खुद को औफिस में काम करने वाली दूसरी लड़कियों के रंग में अपने को ढालने के लिए पहले ब्यूटीपार्लर का रुख किया और इस के बाद वैसे ही कपड़े खरीदे जैसे दूसरी लड़कियां पहन कर औफिस में आती थीं.

औकात से ज्यादा: भाग 1

लड़कियों को काम कर के पैसा कमाते देख निशा के अंदर भी कुछ करने का जोश उभरा. सिर्फ जोश ही नहीं, निशा के अंदर ऐसा आत्मविश्वास भी था कि वह दूसरों से बेहतर कर सकती थी. निशा कुछ करने को इसलिए भी बेचैन थी क्योंकि नौकरी करने वाली लड़कियों के हाथों में दिखलाई पड़ने वाले आकर्षक व महंगे टच स्क्रीन मोबाइल फोन अकसर उस के मन को ललचाते थे और उस की ख्वाहिश थी कि वैसा ही मोबाइल फोन जल्दी उस के हाथ में भी हो. निशा के सपने केवल टच स्क्रीन मोबाइल फोन तक ही सीमित नहीं थे.  टच स्क्रीन मोबाइल से आगे उस का सपना था फैशनेबल कीमती लिबास और चमचमाती स्कूटी. निशा की कल्पनाओं की उड़ान बहुत ऊंची थी, मगर उड़ने वाले पंख बहुत छोटे. अपने छोटे पंखों से बहुत ऊंची उड़ान भरने का सपना देखना ही निशा की सब से बड़ी भूल थी. वह जिस उम्र में थी, उस में अकसर लड़कियां ऐसी भूल करती हैं. वास्तव में उन को इस बात का एहसास ही नहीं होता कि सपनों की रंगीन दुनिया के पीछे की दुनिया कितनी बदसूरत व कठोर है.

अपने सपनों की दुनिया को हासिल करने को निशा इतनी बेचैन और बेसब्र थी कि मम्मी और पापा के समझाने के बावजूद 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने आगे की पढ़ाई के लिए कालेज में दाखिला नहीं लिया. वह बोली, ‘‘नौकरी करने के साथसाथ आगे की पढ़ाई भी हो सकती है. बहुत सारी लड़कियां आजकल ऐसा ही कर रही हैं. कमाई के साथ पढ़ाई करने से पढ़ाई बोझ नहीं लगती.’’ ‘‘जब हमें तुम्हारी पढ़ाई बोझ नहीं लगती तो तुम को नौकरी करने की क्या जल्दी है?’’ मम्मी ने निशा से कहा. ‘‘बात सिर्फ नौकरी की ही नहीं मम्मी, दूसरी लड़कियों को काम करते और कमाते हुए देख कई बार मुझ को कौंप्लैक्स  महसूस होता है. मुझे ऐसा लगता है जैसे जिंदगी की दौड़ में मैं उन से बहुत पीछे रह गई हूं,’’ निशा ने कहा. ‘‘देख निशा, मैं तेरी मां हूं. तुम को समझाना और अच्छेबुरे की पहचान कराना मेरा फर्ज है. दूसरों को देख कर कुछ करने की बेसब्री अच्छी नहीं. देखने में सबकुछ जितना अच्छा नजर आता है, जरूरी नहीं असलियत में भी सबकुछ वैसा ही हो. इसलिए मेरी सलाह है कि नौकरी करने की जिद को छोड़ कर तुम आगे की पढ़ाई करो.’’

‘‘जमाना बदल गया है मम्मी, पढ़ाई में सालों बरबाद करने से फायदा नहीं.  बीए करने में मुझे जो 3 साल बरबाद करने हैं, उस से अच्छा इन 3 सालों में कहीं जौब कर के मैं अपना कैरियर बनाऊं,’’ निशा ने कहा. मम्मी के लाख समझाने के बाद भी निशा नौकरी की तलाश में निकल पड़ी. उस के अंदर जबरदस्त जोश और आत्मविश्वास था. उस के पास ऊंची पढ़ाई के सर्टिफिकेट और डिगरियां नहीं थीं, लेकिन यह विश्वास अवश्य था कि अगर अवसर मिले तो वह बहुतकुछ कर के दिखा सकती है. वैसे देखा जाए तो लड़कियों के लिए काम की कमी ही कहां? मौल्स, मोबाइल और इंश्योरैंस कंपनियों, बड़ीबड़ी ज्वैलरी शौप्स और कौस्मैटिक स्टोर आदि पर ज्यादातर लड़कियां ही तो काम करती नजर आती थीं. ऐसी जगहों पर काम करने के लिए ऊंची क्वालिफिकेशन से अधिक अच्छी शक्लसूरत की जरूरत थी जोकि निशा के पास थी. सिर्फ अच्छी शक्लसूरत कहना कम होगा, निशा तो एक खूबसूरत लड़की थी. उस में वह जबरदस्त चुंबकीय खिंचाव था जो पुरुषों को विचलित करता है. कहने वाले इस चुंबकीय खिंचाव को सैक्स अपील भी कहते हैं.

निशा उत्साह और जोश से भरी नौकरी की तलाश में निकली अवश्य, मगर जगह- जगह भटकने के बाद मायूस हो वापस लौटी. नौकरी का मिलना इतना आसान नहीं जितना लगता था. निशा 3 दिन नौकरी की तलाश में घर से निकली, मगर उस के हाथ सिर्फ निराशा ही लगी. इस पर मम्मी ने उस को फिर से समझाने की कोशिश की, ‘‘मैं फिर कहती हूं, यह नौकरीवौकरी की जिद छोड़ और आगे की पढ़ाई कर.’’ निशा अपनी मम्मी की कहां सुनने वाली थी. उस पर नौकरी का भूत सवार था. वैसे भी, बढ़े हुए कदमों को वापस खींचना अब निशा को अपनी हार की तरह लगता था. वह किसी भी कीमत पर अपने सपनों को पूरा करना चाहती थी. फिर एक दिन नौकरी की तलाश में निकली निशा, घर आई तो उस के चेहरे पर अपनी कामयाबी की चमक थी. निशा को नौकरी मिल गई थी. नौकरी के मिलने की खुशखबरी निशा ने सब से पहले अपनी मम्मी को सुनाई थी. निशा को नौकरी मिलने की खबर से मम्मी उतनी खुश नजर नहीं आईं जितना कि निशा उन्हें देखना चाहती थी.

मम्मी शायद इसलिए एकदम से अपनी खुशी जाहिर नहीं कर सकीं क्योंकि एक मां होने के नाते जवान बेटी की नौकरी को ले कर दूसरी तरह की कई चिंताएं थीं. इन चिंताओं को अपनी रंगीन कल्पनाओं में डूबी निशा नहीं समझ सकती थी. बेटी की नौकरी की खबर से खुश होने से पहले मम्मी कई बातों को ले कर अपनी तसल्ली कर लेना चाहती थीं.

‘‘किस जगह पर नौकरी मिली है तुम को?’’ मम्मी ने पूछा.

‘‘शहर के एक बहुत बड़े शेयरब्रोकर के दफ्तर में. वहां पहले भी बहुत सारी लड़कियां काम कर रही हैं.’’

‘‘तनख्वाह कितनी होगी?’’

‘‘शुरू में 20 हजार रुपए, बाद में बढ़ जाएगी,’’ इतराते हुए निशा ने कहा. नौकरी को ले कर मम्मी के ज्यादा सवाल पूछना निशा को अच्छा नहीं लग रहा था. तनख्वाह के बारे में सुन मम्मी का माथा जैसे ठनक गया. उन को सबकुछ असामान्य लग रहा था.  बेटी की योग्यता को देखते हुए 20 हजार रुपए तनख्वाह उन की नजर में बहुत ज्यादा थी. एक मां होने के नाते उन को इस में सब कुछ गलत ही गलत दिख रहा था. वे जानती थीं कि मात्र 7-8 हजार रुपए की नौकरी पाने के लिए बहुत से पढ़ेलिखे लोग इधरउधर धक्के खाते फिर रहे थे. ऐसे में अगर उन की इतनी कम पढ़ीलिखी लड़की को इतनी आसानी से 20 हजार रुपए माहवार की नौकरी मिल रही थी तो इस में कुछ ठीक नजर नहीं आता था. निशा की मम्मी ने दुनिया देखी थी, इसलिए उन को मालूम था कि अगर कोई किसी को उस की काबिलीयत और औकात से ज्यादा दे तो इस के पीछे कुछ मतलब होता है, और औरत जात के मामले में तो खासकर. लेकिन निशा की उम्र शायद अभी इस बात को समझने की नहीं थी. उजालों के पीछे की अंधेरी दुनिया के सच से वह अनजान थी. सोचने और विचार करने वाली बात यह थी कि मात्र दरजा 10+2 तक पढ़ी हुई अनुभवहीन लड़की को शुरुआत में ही कोई इतनी मोटी तनख्वाह कैसे दे सकता था. मम्मी को हर बात में सबकुछ गलत और संदेहप्रद लग रहा था, इसलिए उन्होंने निशा को उस नौकरी के लिए साफसाफ मना किया, ‘‘नहीं, मुझ को तुम्हारी यह नौकरी पसंद नहीं, इसलिए तुम वहां नहीं जाओगी.’’

मम्मी की बात को सुन निशा जैसे हैरानी में पड़ गई और बोली, ‘‘इस में नापसंद वाली कौन सी बात है, मम्मी? इतनी अच्छी सैलरी है. किसी प्राइवेट नौकरी में इतनी बड़ी सैलरी मिलना बहुत मुश्किल है.’’ ‘‘सैलरी इतनी बड़ी है, इस कारण ही तो मुझ को यह नौकरी नापसंद है,’’ मम्मी ने दोटूक लहजे में कहा.

‘‘सैलरी इतनी बड़ी है इसलिए तुम को यह नौकरी पसंद नहीं?’’

‘‘हां, क्योंकि मैं नहीं मानती सही माने में तुम इतनी बड़ी सैलरी पाने के काबिल हो. जो कोई भी तुम को इतनी सैलरी देने जा रहा है उस की मंशा में जरूर कुछ खोट होगी,’’ मम्मी ने अपने मन की बात निशा से कह दी. मम्मी की बात को निशा ने सुना तो गुस्से से उत्तेजित हो उठी, ‘‘आप पुरानी पीढ़ी के लोगों को न जाने क्यों हर अच्छी चीज में कुछ गलत ही नजर आता है. वक्त बदल चुका है मम्मी, अब काबिलीयत का पैमाना सर्टिफिकेटों का पुलिं?दा नहीं बल्कि इंसान की पर्सनैलिटी और काम करने की उस की क्षमता है.’’

‘‘मैं इस बात को नहीं मानती.’’

‘‘मानना न मानना तुम्हारी मरजी है मम्मी, मगर ऐसी बातों का खयाल कर के मैं इतनी अच्छी नौकरी को हाथ से जाने नहीं दे सकती. मैं बड़ी हो गई हूं, इसलिए अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेने का मुझे हक है,’’ निशा के तेवर बगावती थे. उस के बगावती तेवरों को देख मम्मी एकाएक जैसे ठिठक सी गईं, ‘‘एक मां होने के नाते तुम को समझाना मेरा फर्ज था, मगर लगता है तुम मेरी बात मानने के मूड में नहीं हो. अब इस मामले में तुम्हारे पापा ही तुम से कोई बात करेंगे.’’

‘‘मैं पापा को मना लूंगी,’’ निशा ने लापरवाही से कहा. मम्मी के विरोध को दरकिनार कर के निशा ने जैसा कहा, वैसे कर के भी दिखलाया और नौकरी पर जाने के लिए पापा को मना लिया. लेकिन मम्मी निशा से नाराज ही रहीं. मम्मी की नाराजगी की परवा नहीं कर के निशा नौकरी पर चली गई. एक नौकरी उस के कई सपनों को पूरा करने वाली थी, इसलिए वह रुकती तो कैसे रुकती. मगर उस को यह नहीं मालूम था कि कभीकभी अपने कुछ सपनों की अप्रत्याशित कीमत भी चुकानी पड़ती है. संजय शहर का एक नामी शेयरब्रोकर था. पौश इलाके में स्थित उस का एअरकंडीशंड औफिस काफी शानदार था और उस में कई लड़कियां काम करती थीं. शेयरब्रोकर संजय की उम्र तकरीबन 40 वर्ष थी. उस का सारा रहनसहन और जीवनशैली एकदम शाही थी. ऐसा क्यों नहीं होता, एक ब्रोकर के रूप में वह हर महीने लाखों की कमाई करता था. संजय के औफिस में एक नहीं, कई कंप्यूटर थे जिन के जरिए वह दुनियाभर के शेयर बाजारों के बारे में पलपल की खबर रखता था.

Lockdown में फैंस के लिए ऐसे फोटोज शेयर कर रही हैं ‘तारक मेहता’ की ‘बबिता जी’

टीवी के सबसे पसंदीदा शो में से एक है. ‘तारक मेहता’ का उल्टा चश्मा. हर घर में इस शो को देखा जाता है. इस शो में बबीता का किरदान निभाने वाली मुनमुन दत्ता एक बार फिर अपनी नई तस्वीर में सुर्खियों में आ गई है.

बबीता के किरदार को सभी लोग खूब पसंद करते हैं. फैंस को इनके नए लुक का इंतजार रहता है. हाल ही में मुनमुन ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपनी नई तस्वीर शेयर की है. जिसमें ट्रेडिशन लुक में नजर आ रही हैं.

मुनमुन यह तस्वीर शेयर करते हुए लोगों से अपील की हैं कि घर के अंदर रहे स्वस्थ रहें. फैंस इनके तस्वीर को कमेंट और शेयर कर रहे हैं. बता दें इस तस्वीर में मुनमुन बेहद खूबसूरत लग रही हैं.

रेड लिपस्टिक और कानों में इंयरिंग पहने मुनमुन बलां की खूबसूरत लग रही हैं. एक्ट्रेस का एथनिक लुक लोगों को खूब पसंद आ रहा है.

सेल्फी के दौरान मुनमुन ने ब्लैक कलर की ऑउटफिट पहना हुआ हैं. जो खूब जच रहा है. मुनमुन दत्ता आए दिन इंस्टाग्राम पर अपनी तस्वीर शेयर करती रहती हैं.

 

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मुनमुन ने अपने करियर की शुरुआत साल 2004 में सीरियल बाराती से किया था. जिसके बाद फैंस के दिलों पर राज करने लगी.

मुनमुन और भी कई फिल्मों में काम कर चुकी हैं. फिलहाल मुंबई में अपनी फैमली के साथ समय बीता रही हैं

Lockdown में राखी सावंत ने शेयर की Wedding Photos, फैंस बोले- पति कहां है?

बॉलीवुड की ड्रामा क्वीन राखी सावंत एक बार फिर चर्चा में आ गई हैं. राखी सावंत पिछले आठ महीने से अपनी शादी की खबर के लेकर सुर्खियों में थी. राखी ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपने पति का हाथ थामे दुल्हन के अवतार में वीडियो पोस्ट किया है. जिसे देखकर फैंस एक बार फिर राखी के शादी पर सवाल खड़े कर रहे हैं.

इस तस्वीर में राखी सावंत ने लाल जोड़ा पहन रखा है. बिल्कुल नई नवेली दुल्हन लग रही हैं.
राखी सावंत ने इस तस्वीर को शेयर करते हुए लिखा है मेरी शादी की फोटो. राखी ने एक के बाद एक कई तस्वीर शेयर की है लेकिन इन सभी फोटो में उनके पति कही नजर नहीं आ रहे हैं.

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इस फोटो में देख सकते है कि राखी सावंत नजर आ रही हैं साथ में उनके पति का सिर्फ हाथ ही नजर आ रहा है. इस पर राखी के फैंस लगातार उनसे पति के बारे में सवाल कर रहे हैं. एक ने तो लिखा पति की भी एक झलक दिखा दो.

राखी सावंत ने एक लंबे ड्रामा के बाद पिछले साल अगस्त में अपनी शादी का खुलासा किया था. रिपोर्ट की माने तो राखी ने एक एनआरआई लड़के से शादी की है. जिसे राखी ने बहुत पर्सनल रखा है.

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आए दिन राखी अपने नए-नए ड्रामे की वजह से सुर्खियों में बनी रहती हैं, यह तो नहीं पता है कि राखी इन दिनों कहा है लेकिन जहां भी है नियमों का पालन करते हुए घर के अंदर हैं.

लॉकडाउन टिट बिट्स: पार्ट 6

जमादार संग जन्मदिन –

लॉकडाउन के दौरान जिनके जन्मदिन पड़ रहे हैं वे अपने आप से ही हेप्पी बर्थ डे कहकर सेलिब्रेट कर रहे हैं. 12 अप्रैल को मध्यप्रदेश के राज्यपाल लाल जी टंडन ने भी अपना जन्मदिन सादगी से मनाया पर इसकी एक खास बात जो भोपाल के राजभवन की चारदीवारी में ही कैद होकर रह गई वह यह थी कि राज्यपाल महोदय ने एक जमादार को भी साथ बैठालकर खाना खिलाया. कायदे से इस खबर को जितना रेस्पोंस मिलना चाहिए था वह नहीं मिला क्योंकि मीडिया का सारा ध्यान इन दिनों कोरोना और लॉकडाउन से जुड़ी खबरों और उससे भी ज्यादा अफवाहों पर है . लॉकडाउन के चलते बड़े नेता अधिकारी बुके लेकर राजभवन नहीं पहुंचे थे इसलिए भी इस गरमागरम समाचार की भ्रूण हत्या हो गई.

दलितों के साथ भोज कर उन्हें उपकृत करने का सियासी रिवाज सादगी से सम्पन्न हो गया तो कहना मुश्किल है कि यह बड़प्पन था , मजबूरी थी या फिर मनोरंजन था. बहरहाल डाइनिंग टेबल पर सोशल डिस्टेन्सिंग का पूरा और खास ध्यान रखा गया जिससे हल्दी लगी न फिटकरी और रंग भी चोखा आया. लालजी टंडन के जन्मदिन पर उनकी तनहाई के साथी इस जमादार की तो मानो पीढ़ियाँ तर गईं. लेकिन वह पैदाइशी बेचारा यह कभी नहीं समझ पाएगा कि वह दिन कब आएगा जब देश के नेता यह सोचें कि जो स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन वे रोज खाते हैं वह दलितों को कभीकभार भी नसीब क्यों नहीं होता.

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सबसे बड़े भक्त की परीक्षा –

इसमें कोई शक नहीं कि कोरोना और लॉकडाउन से दान दक्षिणा का कारोबार भी प्रभावित हुआ है लेकिन इससे भी बड़ी चिंता की बात पंडे पुजारियों के लिए यह है कि फुर्सत में बैठे लोग कहीं यह सोचना शुरू न कर दें कि जब बगैर दान दक्षिणा के भी काम चल ही जाता है तो क्यों पैसा जाया किया जाये और भगवान कहीं है तो उसने कोरोना को भस्म क्यों नहीं कर दिया उल्टे खुद ही बंद हो गया . देश भर में जो ब्रांडेड मंदिर बंद हैं उनमे से एक केदारनाथ का भी है. इस मंदिर की मूर्ति की पूजा अति उच्च श्रेणी के रावल समुदाय के ब्राह्मणो के निर्देशन में ही होती है. इन दिनों यह ज़िम्मेदारी भीमा शंकर रावल निभा रहे हैं जो महाराष्ट्र के नांदेड तरफ कहीं फंसे हुये हैं.

अब यह कोई हिन्दी फिल्म तो है नहीं कि भीमा शंकर उड़कर केदारनाथ पहुँच जाएँ लिहाजा उन्होने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है कि वे ही उड़नखटोले का इंतजाम कर दें. केदारनाथ के कपाट 29 अप्रेल को खुलना है अब अगर नरेंद्र मोदी कृपा नहीं बरसाते हैं तो सालों पुराना रिवाज टूट जाएगा और मूर्ति मुकुट विहीन ही रहेगी क्योंकि भगवान का स्वर्ण मुकुट रावल अपने पास ही रखते हैं और कभी कभार इसे पहनते भी हैं. पैसों की तंगी के इस दौर में अगर सरकार फिजूल का यह खर्च करती है तो भी निशाने पर रहेगी कि लाखों दरिद्रनरायन यानि मजदूर यहाँ वहाँ भूखे प्यासे फंसे पड़े हैं और आप एक  रावल के केदारनाथ मंदिर पहुँचने के लिए हवाईजहाज पर पैसा फूँक रहे हैं.

असल परीक्षा इस रावल की नहीं बल्कि मोदी जी की है जो कभी कभार हिमालय की किसी गुफा में जाकर ध्यानमग्न होकर बैठ जाते हैं तो समूचे आर्यावर्त में हाहाकार मच जाता है. लोग शंकर से ज्यादा नरेंद्र को पूजने लगते हैं. आखिर ज्ञान, ध्यान और योग, समाधि बाला कट्टर हिन्दूवादी नीलकंठनुमा पीएम पहली बार मिला है जिसे उस वक्त तक नहीं खोना है जब तक जीडीपी शून्य से भी नीचे न आ जाए अर्थात सभी भिक्षुक न हो जाएँ. अब देखना दिलचस्प होगा कि नरेंद्र मोदी भीमा शंकर को कैसे केदारनाथ पहुंचाते हैं . फैसला होने तक रावल चाहें तो यह दोहा गुनगुना  सकते हैं कि ……. कभी कभी भगवान को भी भक्तो से काम पड़े, जाना था गंगा पार प्रभु केवट की नाव चढ़े….

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बक़ौल जस्टिस काटजू –

लॉकडाउन का दौर यूं ही सूना सूना सा गुजर जाता अगर रिटायर्ड जस्टिस मार्कण्डेय काटजू यह ट्वीट न करते कि ईश्वर कहीं है तो कोरोना को खत्म क्यों नहीं कर देता. बात बहुत मामूली है और हर किसी के खासतौर से आस्तिकों के दिमाग में सबसे पहले आई होगी जो दिन रात पूजा पाठ में उलझे अपना और दूसरों का भी वक्त व पैसा जाया किया करते हैं. हैरान परेशान इन लोगों का संदेह दूर करने ऊपर से कोई आकाशवाणी नहीं हुई तो ये नीचे बालों की सलाह पर दोगुने जोश से भजन पूजन में यह सोचते लग गए कि यह भी एक तरह की प्रभु लीला ही है लिहाजा ज्यादा सर, घबराहट पैदा करने बाले इस सवाल में न खपाया जाये.

घोषित तौर पर घनघोर नास्तिक जस्टिस काटजू तो अगले ट्वीटके मसौदे पर चिंतन मनन करने अपनी लाइब्रेरी तरफ चले गए लेकिन सोशल मीडिया पर खासा बबाल मचा गए जिसके लिए वे बदनाम भी खूब हैं. भक्तों ने नाना प्रकार के तर्क दिये कुछ अभक्तों ने उनका समर्थन भी किया. लेकिन उनके मामूली से सवाल का कोई भी सटीक जबाब नहीं दे पाया. बड़े और नामी धर्म गुरु व शंकराचार्य नुमा महामानव और मुल्ले, पादरी तक अपने अपने ईश्वर की इस खामोशी पर हैरान हैं और ऐसी किसी बहस से कतरा रहे हैं जो उनकी दुकानदारी के लिए खतरा बन जाये तो इन पर तरस आना स्वभाविक बात है. डर तो इस बात का है कि कल को ये लोग कोरोना को ही अवतार घोषित कर उसके पूजा पाठ के इंतजाम न करा दें जैसे कभी स्माल पाक्स को शीतलामाता करार देकर करबाए थे.

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आ अब लौट चलें –

बसपा प्रमुख मायावती ने मुद्दत बाद वे तेवर दिखाये जिनहोने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया है.   अंबेडकर जयंती के मौके पर अनायास या जानबूझकर उन्हें याद आया कि बाबा साहब ने तो पूरी ज़िंदगी दलितों के भले के लिए समर्पित कर दी थी और एक वे हैं जो बार बार मनुवादियों के बहकाबे में आकर अपने दलित भाई बहिनों को भूल जाती हैं. लिहाजा भूल सुधारते उन्होने अरसे बाद एक सच्ची बात यह कही कि लॉकडाउन के चलते जो लाखों मजदूर देश भर में इधर उधर फंसे हैं उनमें से 90 फीसदी दलित और अति पिछड़े हैं जिनकी अनदेखी हर एक सरकार ने की.

उनके इस बयान पर प्रतिक्रियाएँ तय है देर से आएंगी खासतौर से भाजपा इसे तूल देकर अपना नुकसान नहीं करना चाहेगी क्योंकि उसका वोट बेंक तो अपने घरों में आराम फरमाता रामायण और महाभारत का लुत्फ उठा रहा है. वह अगर कुछ कहेगी भी तो सिर्फ इतना कि इस नाजुक मुद्दे पर धर्म और जात पांत की राजनीति न की जाये. लेकिन मायावती ने कर दी है तो यह उनकी मजबूरी भी हो गई थी वजह उन्हें कोई पूछ ही नहीं रहा था उल्टे कोसने बाले कोस ही रहे थे कि बातें तो बड़ी बड़ी करती थीं अब जब दलित बड़ी दिक्कत में है तो तो मुंह में दही जमाए बैठी हैं. अब देखना दिलचस्प होगा कि मायावती इस सच पर कितने दिनों कायम रह पाती हैं और कैसे कैसे इसे भुना पाती हैं.

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