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#coronavirus: कोरोना की लड़ाई के क्या कर रहे नेता मंत्री

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को छोड़ दिया जाए तो बहुत कम ऐसे मंत्री है जो कोरोना संकट के समय जनता के बीच दिख रहे हो.कुछ लोगो ने सांसद और विधायक निधि से मदद करने की घोषणा की पर अब सरकार के नए फैसले के बाद वह मुद्दा दर किनार हो गया है. कल तक जो नेता मंत्री दिन भर तमाम समारोह में दिखते थे अब नही दिखते है. राजनीतिक सूत्रों का दावा है कि कनिका की वीवीआईपी पार्टी में कोरोना के डर को देखने के बाद इन सभी मंत्रियों ने खुद को घरो में कैद कर लिया. इसके बाद अपवाद स्वरूप कुछ लोग जनता के बीच कोरोना के संकट में भी पूरी तरह से सक्रिय है.

हेल्पलाइन और रसोई से मदद कर रहे कानून मंत्री :
इसके विपरीत उत्तर प्रदेश के कानून मंत्री ब्रजेश पाठक ने कोरोना से निपटने और जनता को राहत देने के लिए बहुत ही सुनियोजित तरीके से काम कर रहे है. कानून मंत्री ब्रजेश पाठक ने अपने सरकारी आवास पर हेल्पलाइन खोली है. जिसको ज्यादातर वो खुद सुनते है. हेल्पलाइन पर आने वाली कॉल को रिकॉर्ड करके उनकी जरूरत के अनुसार से मदद की जाती है. ब्रजेश पाठक ने सड़क पर आनेजाने वॉले ऐसे लोगो के लिए रसोई का भी प्रबंध किया है जिनके पास खाने के लिए कुछ नही है. ब्रजेश पाठक कहते है कि   हेल्पलाइन पर ज्यादातर कॉल लखनऊ से ही आ रही है. जंहा जरूरत के हिसाब से मदद की जाती है. लखनऊ के बाहर से आने वाली कॉल के लिए वँहा के लोगो से सम्पर्क कर मदद के लिए कहा जाता है.

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निधि और वेतन में कटौती
केंद्र सरकार ने सभी सांसदों की सांसद निधि को 2 साल के लिए खत्म करके उसके पैसे का उपयोग ‘कोविड 19” से निपटने में खर्च करेगी. केंद्र सरकार ने यह भी योजना बनाई है कि सांसदों के वेतन से 30 प्रतिशत की कटौती की जाएगी. अब यही कानून उत्तर प्रदेश सरकार भी बनाने जा रही है. वो भी इस पैसे को कोविड 19 से निपटने में खर्च करना चाहती है.असल मे कॅरोना संकट के शुरू होते ही कई नेताओ ने अपनी सांसद और विधायक निधि से लाखों करोड़ों का बजट कोरोना से लड़ने के लिए देने की घोषणा करने लगे थे.
नेताओ के इस कदम की आलोचना जनता के बीच शुरू हो गई. जनता का मानना था कि यह पैसा सरकार विधायक और संसद को उनके क्षेत्रों में विकास काम को पूरा करने के लिए दिया जाता है. ऐसे में कोरोना से दान में केवल सरकार के एक खाते से दूसरे खाते में पैसे केवल ट्रांसफर हो होने थे. विधायक और सांसद अगर दान देना चाहते है तो अपने वेतन से दान दे.

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केंद सरकार ने अब इस मामले में कदम आगे बढ़ा कर निधि को 2 साल के लिए रोकने औऱ वेतन से 30 प्रतिशत की कटौती का नियम ही बना दिया है. उत्तर प्रदेश के बाद बाकी प्रदेशो में भी यही शुरुआत होगें. अब सरकार ने खुद योजना बना कर सांसदों और विधायको से पैसा लेना शुरू कर दिया है.

जलते अलाव: भाग 2

पूरे 30 सालों तक अनगिनत हादसों ने मेरी, नैना और जरी की जिंदगी को कई दर्दीले पड़ावों तक पहुंचा दिया.

2 बच्चों के बाद मेरी बेहद अहंकारी और खर्चीली पत्नी कमर से धनुष की तरह मुड़ कर पलंग के साथ पैबस्त हो गई. नैना के पति को लकवा मार गया और वह नौकरी करने के लिए मजबूर हो गई. जरी के पति भोपाल गैस कांड के शिकार हो गए. 2 मासूम बच्चों के साथ रोजीरोटी की जुगाड़ ने उसे भी दहलीज के बाहर कदम रखने को मजबूर कर दिया.

जरी के अम्मीअब्बू जिंदा थे. हर गरमी की छुट्टियों में बच्चों के साथ अपने शहर आती तो नैना अपने दुखदर्द में, शिकवेशिकायतें करने में जरी के अलावा किसी को शामिल नहीं करती.

मेरी पत्नी धनुषवात रोग को लंबे समय तक झेल नहीं सकी. दोनों बच्चों के पालनपोषण की जिम्मेदारी नौकरी के अतिरिक्त मुझे ही संभालनी पड़ती. पूरा दिन भागदौड़, व्यस्तता में कट तो जाता मगर रात, जैसे कयामत की तरह आग बरसाती. पनीली आंखों में जरी का चेहरा तैरने लगता. उस की नरम, नाजुक हथेली का हलकाहलका दबाव अकसर अपने माथे पर महसूस करता. रोज रात आंखें बरसतीं. तकिया भिगोतीं और तीसरे पहर कहीं आंख लगती तो जरी ख्वाब में आ जाती. मैं शादी के बाद भी एक पल के लिए उसे भूला नहीं.

6 कमरों की कोठी खाने को दौड़ती थी, इसलिए नैना को अपने पास बुला लिया. बच्चे बूआ से हिलमिल गए. गोया नैना ने मेरी गृहस्थी संभाल ली.

दूसरे दिन नाश्ते की टेबल पर मैं ने नैना के हाथों में जरी का कार्ड थमा दिया था.

‘‘दादा, कब मिली थी जरी आप से? कैसी है वह?’’ नैना ने बेचैन हो कर सवालों की झड़ी लगा दी, ‘‘दादा, अभी चलिए, प्लीज उठिए न.’’ नैना की जरी के प्रति आतुरता ने मुझे भी भावविह्वल कर दिया पर मैं ऊपर से शांत बना रहा.

‘‘पहले फोन तो कर लो,’’ मैं ने कहा.

‘‘नहीं, कोई जरूरत नहीं फोन की. क्या आप जानते नहीं कि वह 1 महीने से यहां है, फिर भी उस ने कोई खबर नहीं दी. इस का मतलब क्या है? हमेशा की तरह वह कोई न कोई जहर चुपचाप पी रही होगी.’’

नैना मुझ से भी ज्यादा जरी की खामोशी की जबान को समझती है. यह देख कर मैं उस की दोस्ती को सलाम करने लगा और जरी के घर चल दिया.

कौलबैल बजते ही जरी के छोटे बेटे ने दरवाजा खोला, नैना और मैं अंदर गए. जरी भी ड्राइंगरूम में आ गई. उदास आंखें, निस्तेज चेहरा और पतलेपतले होंठों पर जमी चुप्पी की मोटी पपड़ी. नैना ने उस के गले लगते ही शिकायत की, ‘‘यहां 1 महीने से कैसे? क्या इतनी लंबी छुट्टी मिल गई?’’

‘‘मैं ने वीआरएस ले लिया है,’’ चट्टान से व्यक्तित्व की कमजोर आवाज गूंजी.

‘‘व्हाट? वीआरएस लेने की क्या जरूरत पड़ गई?’’ नैना ने जरी का हाथ अपने हाथों में ले कर उतावलेपन से पूछा.

जरी हमेशा की तरह सूनी दीवार को घूरने लगी.

‘‘बच्चों की जिम्मेदारी अभी पूरी कहां हुई है. ऐसी कौन सी मजबूरी थी जरी जो तुम जैसी दूरदर्शिता और समझदार ने ऐसा बचकाना फैसला ले लिया?’’ नैना के सब्र का बांध टूटने लगा था.

‘‘यह मेरा फैसला नहीं था? मेरी मजबूरी थी,’’ जरी की भर्राई आवाज का शूल मेरे कलेजे में धंस गया. मैं पत्थर की तरह बैठा, सन्न सा उसे अपलक देखता रहा. उस की दर्दीली आवाज का एकएक शब्द मुझ पर हथौड़े की चोट करता रहा.

1 साल पहले जरी का प्रमोशन उत्तर प्रदेश के ऐसे शहर में हो गया, जो अपनी मिट्टी को सांप्रदायिकता के खून की होली से रंगता रहा और देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान को कलंकित करता रहा. जरी उस शहर की बलिदानी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से बहुत प्रभावित थी लेकिन रैस्टहाउस में कुछ दिन बिताने के बाद जब अपने लिए मकान तलाशने निकली तो लोग उस के चुंबकीय व्यवहार से प्रभावित हो कर किराया और अन्य औपचारिकताएं तय कर लेते. लेकिन जैसे ही उन्हें उस के धर्म का पता चलता, वे कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाते. पूरे 1 महीने की कोशिश के बावजूद किराए का मकान नहीं मिला.

स्टाफ मैंबर कोरी हमदर्दी जताते हुए व्यंग्य से पूछते, ‘मिल गया मकान मैडम?’

‘जी नहीं,’ जरी का संक्षिप्त जवाब उसे खुद को बुरी तरह आहत कर देता.

‘मुसलिम इलाके में क्यों नहीं ट्राइ करतीं?’

‘ऐक्चुअली वह काफी दूर है. बच्चों का काफी वक्त आनेजाने में ही बरबाद हो जाएगा.’

‘यह क्यों नहीं कहतीं मैडम कि मुसलमान बस्ती की गंदगी और परदेदारी की पाबंदी को आप खुद ही नहीं झेल पाएंगी,’ मिसेज खुराना ठहाका लगाते हुए व्यंग्य करतीं. हिंदू बहुसंख्यक स्टाफ, अल्पसंख्यक एक अदद महिला कर्मचारी पर, कभी लंच टाइम में, कभी कैंटीन में कोई न कोई कठोर उपहास भरा जुमला उछाल कर आहत करने का अवसर हाथ से न जाने देता.

वतन के लिए शहीद होने वाले मंगल पांडे जैसे जांबाज सिपाही का साथ सिर्फ हिंदुओं ने ही नहीं, मुसलमानों ने भी दिया था. तब कहीं तिरंगा शान से लालकिले पर लहराया था. लेकिन आज कौमपरस्ती की तंगदिली ने उस शहर के गलीकूचों में नफरत की आग जला कर देश के इतिहास को रक्तरंजित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. सांप्रदायिक दंगों में कितने बेगुनाहों के घर जले, कितने बेकुसूरों को नाहक मौत के घाट उतारा गया, कितनी बेवाएं, कितने यतीमों की चीखें शहर का कलेजाहिलाती रहीं. इस का हिसाब तो खुद उस शहर की जमीन, हवाओं और आसमान के पास भी नहीं है. नफरत की आग में नाहक वे लोग भी झुलसने लगे जो रोजीरोटी की आस में मजबूरन उस शहर के बाश्ंिदे बने थे.

जरी की परेशानी देख कर जल्द ही रिटायर्ड होने वाली महिला प्राचार्या ने अपने क्वार्टर में शेयरिंग में रहने की लिखित इजाजत दे कर अपनी सहृदयता दिखाई.

जरी ने साइलैंट वर्कर के रूप में प्राचार्या के दिल में जल्द ही जगह बना ली. उन्होंने जरी को ऐडमिशन इंचार्ज बना दिया. इस बदलाव ने स्टाफ में आग में घी का काम किया. प्राचार्या के विरोधियों को उन की आलोचना करने का एक शिगूफा मिल गया.

जरी की कर्मठता और अनुशासन ने आर्ट्स 11वीं, 12वीं के बिगड़े बच्चों को आपराधिक और उद्दंड जीवनशैली त्याग कर शिक्षा के प्रति समर्पित एवं अनुशासित जीवन जीने और महत्त्वाकांक्षी विद्यार्थी बनने की प्रेरणा दी. विद्यालय में होने वाले नित नए अर्थपूर्ण बदलावों ने, अकर्मण्य शिक्षकों के मन में, जरी के प्रति ईर्ष्या और द्वेष की भावना भर दी.

विद्यालय का बदलता रूप और विद्यार्थियों के मन में उपजी शिक्षा व पुस्तकप्रेम की भावना को जगा कर भविष्य की आशाओं के नए अंकुर प्रस्फुटित करने में जरी कामयाब रही.

प्राचार्या की रिटायरमैंट पार्टी में शामिल नए प्राचार्य के कानों में जरी को प्राचार्या का दायां हाथ बताने वाले स्तुतिभरे वाक्य पड़े तो उस के प्रति उपजी सहज उत्सुकता ने स्टाफ के कुछ धूर्त एवं मक्कार शिक्षकों को अपनी कुंठा की भड़ास निकालने का मौका दे दिया. 2 दिन में ही प्राचार्य ने जरी की पर्सनल फाइल का एकएक शब्द बांच लिया. 28 साल के सेवाकाल में प्राथमिक शिक्षिका के 2 प्रमोशन, इन सर्विस कोर्स की रिसोर्स पर्सन, पिछले स्कूलों में 10 सालों से ऐडमिशन इंचार्ज, ऐक्टिव, पजेसिव, रिसोर्सफुल, प्रोगैसिव शब्द, प्राचार्य की आंखों के कैनवास पर छप कर खटकने लगे. ‘तमाम मुसलमान, एक तरफ देश की जडे़ं खोद रहे हैं अपनी असामाजिक और गैरकानूनी गतिविधियों से, दूसरी तरफ अपनी ईमानदारी और कर्मठता का ढोल पीट कर खुद को देशभक्त साबित करने का ढोंग करते हैं,’ रात को अंगूरी के नशे के झोंक में प्राचार्य के मुंह से निकले इन शब्दों ने जरी के विरोधियों को उस के खिलाफ जहर उगलने के सारे मौके अता कर दिए.

चौथे दिन ही प्राचार्य क्वार्टर छोड़ने और उस के पद से नीचे का क्वार्टर का एलौटमैंट लेटर चपरासी ने जरी को थमा दिया. जरी ने कोई प्रतिरोध नहीं किया.

शांत, कर्मठ जरी का कोई भी कमजोर पहलू प्राचार्य के हाथ नहीं लगा तो इंस्पैक्शन के बहाने अकसर उस की कक्षा में आ कर बैठने लगे. बच्चों को अलगअलग बुला कर ‘जरी के टीचिंग मैथड से सैटिस्फाइड हैं या नहीं?’ लिखित में जवाब मांगने लगे.

28 साल का अध्यापन अनुभव प्राचार्य की बारबार नुक्ताचीनी के कारण धीरेधीरे अपना विश्वास खोने लगा. प्राचार्य वक्त- बे-वक्त उसे कक्षा से बुला कर ऐडमिशन के सिलसिले में नित नए सवाल पूछ कर, कभी टीचिंग को ले कर बच्चों के सामने अपमानित करने का मौका ढूंढ़ने लगे. जरी पलपल आहत होती रही पर अपने आत्मविश्वास को डगमगाने नहीं दिया.

प्राचार्य और उन के मुंहलगे चमचे एक तरफ तो शिक्षा को व्यापार बनाने पर तुले हुए थे दूसरी तरफ कर्म के प्रति कटिबद्ध और समर्पित जरी भीड़ में भी एकदम तन्हा रह गई थी.

‘तुम प्राचार्य की कंप्लेन क्यों नहीं करतीं असिस्टैंट कमिश्नर से?’ सहेली, दिल्ली की उपप्राचार्या ने फोन पर सलाह दी थी.

‘मेरे रिटायरमैंट को 2 साल रह गए हैं. मेरी कंप्लेन पर इन्क्वायरी होगी. ऐसे में हो सकता है प्राचार्य कोई नया झूठा केस बना दें क्योंकि वे मालिक हैं स्कूल के, गवाह भी उन्हीं के, वकील भी उन्हीं के. नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनेगा? केस के चलते मेरे फंड के पैसे रोक दिए जाएंगे. मेरी पैंशन भी लागू नहीं होगी. नैनी, एक नौकरी ही तो है मेरा सहारा. पैसे न होंगे तो बच्चों को कैसे पढ़ा सकूंगी? उन का भविष्य अंधेरे से घिर जाएगा. इसलिए चुपचाप सहती रही…’ बोलते हुए गला

भर्रा गया जरी का.

‘लेकिन नैना, उस दिन तो हद हो गई. जब चपरासी को भेज कर शाम 6 बजे मुझे अपने चैंबर में बुलवाया प्राचार्य ने,’ जरी ने हिचकियों के बीच अपने पर किए गए जुल्म की कहानी का एक और पृष्ठ खोला.

‘गुड ईवनिंग सर.’

‘गुड ईवनिंग.’

‘सर, आप अभी तक औफिस में?’

‘यस, कुछ कौन्फिडैंशियल रिपोर्ट हैडक्वार्टर भेजनी है, इसलिए…’

‘सर, मुझे क्यों बुलाया आप ने?’

‘फर्स्ट औफ औल, लेट मी क्लीयर मिसेज जरीना हमीद. वी आर सैंट्रल गवर्नमैंट एंप्लाई. वी कुड बी कौल ऐट एनीटाइम. वी आर द सर्वेंट औफ ट्वंटीफोर औवर्स, अंडरस्टैंड?’ प्राचार्य की आवाज का खुरदरापन चुभ गया जरी को.

#lockdown: बड़े शहरों में भी पॉपुलर हुई देसी कोल्डड्रिंक शिकंजी, ऐसे बनाएं

शिकंजी गर्मी के दिनों का सबसे ज़्यादा पसन्द किया जाने वाला पेय है. यह अब छोटे बड़े शहरों में सड़कों पर बिकता देखा जा सकता है.

दिल्ली और आसपास की जगहों सहित उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और दूसरी जगहों पर भी बिकने लगी है. शिकंजी गरमी के पेय पदार्थ में सबसे तेजी से आगे बढी है य़ह साधारण लोगों के लिये रोजगार का साधन भी बन गई है. शिकंजी का कारोबार करने के लिये किसी तरह के बडी पूंजी की जरूरत नहीं पडती है.  हाथ से चलने वाले एक ठेला में सभी कुछ रखा जा सकता है.  शिकंजी बेचने के लिये भीडभाड वाली जगह का चुनाव करना ठीक रहता है. इसकी सबसे ज्यादा बिक्री दिन में उस समय होती है जब गरमी अपनी चरम पर होती है ग़रमी से बचने के लिये लोग शिकंजी पीते है. शिकंजी एक ओर पीने वाले की सेहत सुधारती है. उसके शरीर में होने वाली पानी की कमी को पूरा करती है. दूसरी ओर शिकंजी बेचने वाले को मुनाफा कमाने का मौका देकर उसकी आर्थिक हालत को सुधारती है.

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20 से 30 रूपये लागत से बिकने वाली शिकंजी की कीमत आधी से भी कम होती है ज़रूरत इस बात की होती है कि शिकंजी में कालानमक के साथ डाला जाने वाला मसाला ठीक से तैयार हो. इसका स्वाद अच्छा हो. इसको साफ सुथरे तरीके से तैयार किया जाये क़ालानमक कई बार खिसकने लगता है ज़ो स्वाद को बेस्वाद कर देता है. इस बात का खास ख्याल शिकंजी बनाते समय रखना चाहिये. बरफ उतनी ही मिलाये जो पीने वाले को पंसद हो क़ुछ लोग ज्यादा ठंडी शिकंजी पसंद नहीं करते है. ऐसे में पीने वाले का ध्यान जरूर रखना चाहिये. शिकंजी मुख्यत: नीबू के रस नमक आर चीनी को पानी में मिलाकर तैयार किया जाता है.

कैसे बनाये शिकंजी :

4 गिलास शिकंजी बनाने के लिये 2 नीबू 8 चम्मच चीनी की जरूरत होती है क़ालानमक और मसाला स्वाद के अनुसार डाले. शिकंजी में बरफ के टुकडे डालने के बजाये बरफ को मिक्सी में पानी के साथ मिलाना ठीक रहता है. सबसे पहले नीबू का रस निकाल ले. इसमें चीनी मिलाक र आपस में ठीक से मिक्स कर दे. पानी और बरफ को मिक्सी में डाल कर मिला दे. इसमें नीबू रस और चीनी वाला घोल डाल दे. अब काला नमक और मसाला डाल कर मिक्सी में मिला दे. गिलास में डालकर पीने वाले को दे दे.
शिकंजी केवल ठेले पर ही नहीं बिकती ग़रमी के दिनो में कुछ बडे होटलो में यह मिलती है. वहां इसको नीबू के पतले पतले टुकडों से सजाया जाता है ग़रमी के दिनों में हराभरा अहसास दिलाने के लिये नीबू के पतले टुकडे के साथ पुदीना की पत्ती से सजावट भी की जाती है.

#lockdown: लॉक डाउन में किसानों पर गिरी गाज

बेचारे आम किसानों की समस्या कम होने के बजाय और भी बढ़ती जा रही है. एक ओर कोरोना की महामारी ने किसानों की कमर तोड़ दी है, वहीं बुंदेलखंड के किसानों पर बैंक से लिए गए कर्ज की वसूली के फरमान मिलने की गाज गिरी है, इस से आम किसान हैरानपरेशान हैं.

पूरे देश में लॉक डाउन की स्थिति बनी हुई है. इस दौरान सभी लोगों को घरों में बंद रहने को मजबूर कर दिया गया है और बहुत से लोगों के लिए रोजीरोटी का संकट पैदा हो गया है, वहीं उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड से एक ऐसी खबर आई है जिस ने सब को चौंका दिया है.

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बुंदेलखंड के ललितपुर जिले में बैंक ने किसानों के घर कर्ज जमा न करने के चलते कुर्की के नोटिस भेज दिए हैं.नोटिस मिलने के बाद गांव के किसान अपनी तमाम परेशानी को भूल इस तरह की परेशानी में उलझ गए हैं.

दरअसल, ये घटना ललितपुर जिले लवारा कला गांव की है. इस गांव के कई किसानों पर यूपी ग्रामीण बैंक का कर्ज बकाया है. लिहाजा, बैंक ने इस किसानों के खिलाफ सख्त एक्शन लिया है. बैंक ने ऐसे कई किसानों के घर कुर्की के नोटिस भेजे हैं. किसानों के पास ये नोटिस मार्च के आखिरी दिनों में पहुंचे हैं.

इस नोटिस के बाद अब किसानों का कहना है कि पिछले साल फसल बर्बाद हो गई थी, वहीं इस साल फसल तो काफी अच्छी हुई है, लेकिन लॉक डाउन होने की वजह से न तो वे अपनी फसलों को समय पर काट पा रहे हैं और न ही अभी बाजार में उसे बेच पा रहे हैं. ऐसी स्थिति ने उन्हें घोर संकट में डाल दिया है.

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साथ ही, किसानों की यह भी शिकायत है कि जब सरकार ने सभी बैंकों को फिलहाल कर्ज न वसूलने के लिए कहा गया है, तो ऐसे में उन के घरों पर यूपी ग्रामीण विकास बैंक का नोटिस आना चिंता की बात है.

कोरोना के चलते लॉक डाउन होने के कारण पूरे देश में सरकार ने तमाम किस्म की छूट दी है. बैंकों से 3 महीने तक ईएमआई में राहत देने की मोहलत दी गई है. ऐसे में बुंदेलखंड के किसान कुर्की नोटिस मिलने से सदमे में हैं.

#coronavirus: युद्ध स्तर पर काम करके बचा जा सकता है कोरोना से

कोरोना का प्रकोप ने पुरे दुनिया को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि जीवन के लिए स्वास्थ्य रहना कितना जरुरी हैं. आज अपने देश में कोरोना से लड़ने के लिए स्वास्थ्य के क्षेत्र में युद्ध स्तर पर कार्य हो रहा है. लेकिन क्या आप जानते है हमारा देश इससे पहले स्वास्थ्य को लेकर कितना खर्च कर आ रहा है और कितनी तैयारियां थी . तो आइये जानते है  –

* ‘स्वस्थ भारत मिशनपर कोरोना का असर :-  मोदी सरकार अपने सबसे बड़े अभियान “स्वस्थ भारत” अभियान के माध्यम से एक सेहतमंद  भारत का निर्माण करने में ही लगी थी. तब तक देश में कोरोना का प्रकोप आ गया.  देश में कैंसर , ट्यूमर ,  मधुमेय, उच्च रक्तचाप, टीवी, हार्टअटैक, श्वास की बीमारियां,चर्म रोग,अनिद्रा और मौसमी बीमारियों एक सीमा से अधिक वृद्धि दर्ज कराकर  “स्वस्थ भारत” अभियान के रास्ते में रोड़ा बन ही रहे थे कि एक और वैश्विक महामारी ने ‘ स्वस्थ भारत मिशन’  का कमर तोड़ने को तैयार हो चुकी है.

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* अब बढ़ाना होगा स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च :- स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्चों पर ध्यान दे तो पत्ता चलेगा कि जीडीपी का एक मामूली हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया जाए, जो 2 फीसदी से भी काम है. सार्वजनिक खर्च का मात्र 1.28 फीसदी ही स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च होता हैं. मोदी सरकार ने इसे साल 2025 तक यह औसत 2.5 फीसदी तक ले जाने का लक्ष्य है. जो भविष्य की बाते है. आकस्मिक वैश्विक महामारी कोरोना संकट आने से सरकार को भी यह समझ में आ गया होगा कि स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च को अब बढ़ाना होगा. ताकि स्वास्थ्य सेवा को समाज के हर तबके तक पहुंच जाये.

* अलग अलग कारण से नित्य नए मामले रहे है :- सरकार यह कह रही है कि कोरोना से लड़ने के लिए वह पहले से तैयार थी. समय पर लॉक डाउन कर इसे काबू में लाने के लिए वह हर संभव कोशिश कर रही है. देश के कुल 640 जिले में लॉकडाउन लगा दिया गया है, करीब 130 करोड़ आबादी को उनके घरों तक सीमित करके रख दिया गया है. फिर भी नित्य नए मामले बढ़ रहे है, जिनके अलग अलग कारण है. देश में 07 अप्रैल 2020 , सुबह  9 बजे तक कोरोना का संक्रमण 4421 लोगों को अपनी चपेट में ले चुका है और वही 114 की मौत हो चुकी है , वही 325 लोग ठीक हो पर अस्पताल से घर जा चुके हैं .

* अमेरिका में सबसे अधिक संक्रमण :-  अमेरिका में देश का जीडीपी का 18 फीसदी स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया जाता है. कोरोना पर सही समय पर जागरूपता ना हो पाना और देरी से लॉक डाउन का फैसला ने इस देश को कहा लाकर खड़ा कर दिया ये से छिपा नहीं है.विश्व के सुपर पावर अमेरिका पर कोरोना के कहर के इस कदर बरस रहा है कि विश्व के सभी देश पीछे छूट गये. 07 अप्रैल 2020 , सुबह  09 बजे तक कोरोना का संक्रमण 367,758 लाख लोगों को अपनी चपेट में ले चुका है और 10981 की मौत हो चूका है .वही 19788 लोग ठीक हो पर अस्पताल से घर जा चुके हैं .

पौने तीन लाख लोग इस बीमारी से ठीक हो चुके है :- पुरे विश्व में 204 देश इस बीमारी के गिरफ्त में है. अभी तक साढ़े13 लाख से अधिक लोग इसके चपेट में आ चुके है, वही 75 हजार से अधिक लोग इसके कारन मरे जा चुके है , इन सबके बीच अच्छी खबर यह है कि पुरे विश्व में करीब  पौने तीन लाख लोग इस बीमारी से ठीक होकर घर पहुंच चुके है.

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* आइसोलेशन बेड वाले अस्पताल के बढ़ाया जा रहा है :-    देश के स्वस्थ्य क्षेत्र पर नजर डाले तो तस्वीर साफ है कि हम कितने तैयार थे और अभी कितना तैयारी करना है. अभी देश में औसतन 84,000 लोगों पर एक आइसोलेशन बेड है और 1826 लोगों पर एक अस्पताल बेड है. केंद्र सरकार और कई राज्य सरकारों ने भी नए अस्पताल बनाने के दिशा में काम कर रही है.  भारतीय रेलवे ने अभी हाल में कहा कि वह 20 हजार रेलगाड़ियों के बोगियों को औसतन आइसोलेशन बेड वाले अस्पताल बनाने के दिशा काम कर रही है. जल्दी ही यह तैयार कर लिया जायेगा .

* भुनेश्वर में शुरू हुआ दूसरा सबसे बड़ा कोविड़-19 अस्पताल :-  सरकार ने सोमवार को बताया कि ‘महानदी कोल्फील्ड्स लिमिटेड (एमसीएल) भुवनेश्वर स्थित कोविड-19 अस्पताल का सभी खर्च केंद्र सरकार वहन करेगी. यह देश का दूसरा सबसे बड़ा कोविड़-19 अस्पताल होगा. इन खर्चों में मरीजों के इलाज पर होनेवाला खर्च भी शामिल है जिसके लिए एमएलसी ने 7.31 करोड़ रु. की धनराशि अग्रिम रूप में जारी की है. यह अस्पताल ओडिशा के लोगों के लिए एक बड़ी चिकित्सा परिसंपत्ति है.  इस अस्पताल में 500 बिस्तरों तथा वेंटिलेटर की सुविधा समेत आईसीयू के 25 बिस्तरों की सुविधा उपलब्ध है. ओडिशा सरकार ने सोमवार से यह अस्पताल शुरू कर दिया गया है . इसके पहले स्वास्थ्य मंत्री एम्स, झज्जर गए थे और यहाँ के सुविधाओं को देखा था.  यह  300 बिस्तरों वाले आइसोलेशन वार्डों से युक्त है और यह कोविड-19 के समर्पित अस्पताल के रूप में कार्य करेगा.

* भारतीय रेलवे ने युद्ध स्तर पर कर रही है आपात स्थिति से लड़ने की तैयारी :-   कोविड 19 से पार पाने के प्रयासों में सहयोग देने के क्रम में भारतीय रेलवे अपनी पूरी ताकत और संसाधन लगा दिए हैं.  इतने कम समय में उसने अपने 5,000 कोच को आइसोलेशन (एकांत) कोच में तब्दील करने के शुरुआती लक्ष्य में 2,500 कोच के साथ आधा लक्ष्य हासिल कर लिया है. सोमवार को बताया कि रेलवे के विभिन्न मंडल कार्यालयों ने इतने कम समय में असंभव से लग रहे इस कार्य को लगभग पूरा कर लिया है. लगभग 2,500 कोचों में बदलाव के साथ अब 4,000 आइसोलेशन बेड आपात स्थिति के लिए तैयार हैं.  वही भारतीय रेलवे में रोजाना औसतन 375 कोचों में बदलाव किया जा रहा है. देश के 133 स्थानों पर यह काम किया जा रहा है. इन कोचों में चिकित्सा परामर्शों के तहत बताये गए सभी सुविधाएं होंगी. इन आइसोलेशन कोचों को सिर्फ आपात स्थिति के लिए तैयार किया जा रहा है.

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 * स्वास्थ्य कर्मचारी के क्षमता बढ़ने में लगी है सरकार :-  करीब 6 लाख डॉक्टर कम हैं और करीब 20 लाख नर्स, मेडिकल स्टाफ आदि की भी जरूरत है. इसे  पूरा करने में सरकार से लगी है . केंद्र सरकार ने जहाँ एक तरफ एम्स से सभी अस्पतालों को जुड़ने का काम किया है , वही रिटायर डॉक्टर को काम पर आने को कह रही है . रेलवे ने डॉक्टर भर्ती के लिए नोटिफिकेशन निकला है. सभी राज्य सरकार भी अपने क्षमता को बढ़ने में जुटे है.

* घर में रह कर मदद करे :-  कोरोना के विस्तार को रोकना है तो जरूरी है क्वारेंटीन और सामाजिक दूरी को अनिवार्य रूप से माना जाये. युद्ध स्तर पर काम करके और सावधानियां बरत कर हम कोरोना की चुनौतियों को झेल सकते हैं . अभी हमारा देश  अमेरिका, इटली,चीन , ईरान, विट्रेन और स्पेन  की तुलना में अपेक्षाकृत सुरक्षित लग रहे हैं. इस सुरक्षित माहौल को बनाये रखने के लिए जरुरत है हम घर में रहे और सरकार को कोरोना से युद्ध में मदद करे.

 

coronavirus: कोरोना संकट के दौर में भी कायम है हिन्दू-मुस्लिम मुद्दा

आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के चेयरमैन और नदवा कॉलेज के प्रमुख मौलाना राबे हसनी नदवा ने नदवा कॉलेज में छात्रों के द्वारा कोरोनो के लिए कैंडिल जलाने की घटना को सही नही माना और छात्रों से नाराजगी जाहिर की है.

कहते है संकट के समय दुश्मन भी दुश्मनी भूल कर एकजुट हो जाते है. जब बाढ़ आती है तो सांप जैसे खतरनाक जीव भी चुपचाप एक कोने में सिकुड़ कर बैठ जाते है. लेकिन “कोरोना संकट” के इस दौर में भी देश मे हिन्दू-मुस्लिम एक जुट हो कर संकट का मुकाबला नही कर रहे.

उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद और बरेली जिलों में झगड़ो के बाद यह साफ हो गया कि “कोरोना  संकट” के समय भी हिन्दू मुस्लिम आपस मे एकजुट नही हो पा रहे. इलाहाबाद में छोटी सी बात में हत्या हो गई तो बरेली में पुलिस टीम पर हमला करके पुलिस अधिकारी को घायल कर दिया गया.

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निशाने पर जमात :

दिल्ली में जमात की बैठक के बाद बड़ी संख्या में कॅरोना प्रभावितों में जमात के लोगो के मिलने के बाद यह तनाव पूरे देश मे फैल गया. जिस तरह से प्रशासन और सरकार ने जमात में शामिल लोगों को चिन्हित किया उससे कोरोना संकट कम हुआ या नही पता नही चल रहा पर हिंदू मुस्लिम समुदाय के बीच दूरियां बढ़ गई. इसमे सोशल मीडिया की भूमिका बहुत असमाजिक रही. सोशल मीडिया पर जमात के बहाने आपस मे टकराव होने लगता है. इस विचारधारा के लोग मानते है जैसे कोरोना संकट केवल जमात के कारण ही फैल रहा है.

असल मे सोशल मीडिया पर जो बातें उठ रही है उनके पीछे राजनीतिक कारण भी है. उत्तर प्रदेश में सरकार से जब लॉक डाउन खोलने पर सवाल किया गया तो प्रदेश सरकार के अफसरों ने अपने बयान में कहा कि जमात के कारण घटनाएं बद्व गई इस कारण अभी कुछ नही कहा जा सकता है. अफसरों के बयान से कोई भी यह सोच सकता है कि अगर जमात के लोगो ने गड़बड़ी नही की होती तो 14 अप्रैल से लोक डाउन खुल सकता था. हो सकता है कि जमात के कारण हालत कुछ और ज्यादा खराब हो रहे हो पर इसको मुद्दा बनाने से आपसी समन्वय खराब हो रहा है.

वोट बैंक की चिंता

जमात को लेकर सोशल मीडिया पर जो हालत बने है असल मे यह एक वोट बैंक की लड़ाई है. कॅरोना संकट के समय मे भी नेताओ में यह मुद्दा बना हुआ है. वो इस समय भी अपने धार्मिक मुद्दे से पीछे नही हटना चाहते है.

कोरोना संकट के समय नागरिकता कानून का विरोध कर रही महिलाओं को उनके धरने हटाने पर विवश किया गया. वँहा से बनी यह दूरी और भी बढ़ गई. सरकार के कहने पर कुछ मुस्लिम  धर्मगुरुओं में कैंडल जलाए तो कुछ उसके विरोध में आ खड़े हुई. ऐसे में जनता में यह भी एक मुद्दा बन गया.

देश मे ऐसा धर्मिक माहौल तैयार किया जा रहा है जिसमें किसी और धर्म मे लिए जगह नही बन रही है. धर्म का प्रभाव इस तरह बद्व गया है कि राजनीतिक दल भी इस मुद्दे पर ज्यदातर लोग चुप्पी साध गए है और जो लोग धर्म के प्रभाव पर बोल भी रहे तो बहुत छिपे शब्दो मे बोल रहे है.  कोरोना को लेकर जिस तरह से धार्मिककरण किया जा रहा है उससे साफ है कि देश मे कितनी भी बड़ी विपत्ति आ जाये वोट बैंक की चिंता पहले लोगो को होगी.

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Lockdown में जान जोखिम में डालने को मजबूर लोग, सीमा पर पुलिस का पहरा तो नदी कर रहे हैं पार

लेखक- राजेश चौरसिया

MP/छतरपुर

छतरपुर कोरोना वायरस के चलते एक ओर पुलिस, प्रशासन स्वास्थ्य कर्मचारी बगैर अपने स्वास्थ्य की चिंता किए बगैर 24 घंटे अपनी सेवाएं दे रहे हैं. वहीं देश प्रदेश में पूरी तरह लॉक डाउन का पालन हो सके जिसके लिए राज्य एवं जिला सीमाओं को सील कर चैकिंग पॉइंट बनाये गए हैं. जहां 24 घंटे पुलिस मुस्तैद रहती है. तो वहीं कुछ गैर जिम्मेदार लोग शासन के आदेश का पालन न करते हुए उल्लंघन कर अपनी जान जोखिम में डालकर नदी पार कर रहे हैं.

ताजा मामला जिले के नोगाँव अनुविभाग के गर्रौली चौकी का है जहां से निकलने वाली धसान नदी के फिल्टर प्लांट के पीछे स्टॉप डैम का हैं. जहां कुछ लोग टीकमगढ़ जिले से पैदल एवं मोटरसाइकिल के जरिये नदी पार कर छतरपुर जिले की सीमा में प्रवेश कर रहे हैं.

वहीं ज़ब लोगों से इस जोखिम भरे चोर रास्ते से आवागमन के बारे में पूछा गया तो उनका कहना है कि मुख्य पुल (बॉर्डर) पर पुलिस लगी हुई है जिससे हम लोगों का आना जाना नामुमकिन है जिसके चलते है हम यहां से निकल रहे हैं.

मामले की जानकारी लगाने पर थाना प्रभारी माधवी अग्निहोत्री ने मौके पर हुंचकर लोगों को सख्त हिदायत दी साथ ही स्टॉप डैम पर एक आरक्षक को निगरानी के लिए तैनात कर दिया. ताकि कोई निकल न सके न ही आवागमन कर सके.

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क्या है पूरा मामला..

जानकारी के मुताबिक यह लोग दूध वाले, सब्जी वाले, फेरी वाले जैसे ही हैं जो रोजाना गाँव-गाँव, नगर-नगर जाकर भ्रमण कर फेरी लगाते हैं और लोगों को जारुरत का सामना मुहैया कराते हैं. पिछले 10-15 दिनों से कैरोना और लॉग डाउन की वजह से घरों से निकल नहीं पा रहे थे हर जगह पुलिस लगी हुई है घर में खाने के लाले पड़े हुए हैं शहरों में तो समाजसेवी शासन प्रशासन मजबूर गरीब लोगों को राशन, खाद्य सामग्री, भोजन उप्लब्ध करा देती है पर ग्रामीण और नगरीय स्तर पर बहुत बुरा हाल है. यहां कोई किसी के लिए कुछ नहीं करता जिससे घरों में लाल पड़े हुए हैं. खाशकर रोज-कमाने खाने वाले लोग और उनके परिवार भूखों मरने के कगार पर आ गए हैं. जिसके चलते इन्होंने जोखिम भरा यह चोर रास्ता निकाला है. उन्हें मजबूरी में उदर और परिवार बच्चों को पालने के लिए जान जोखिम में डाल यह करणना पड़ रहा है

रास्ता हुआ बंद..

वहीं अब पुलिस को जानकारी लगाने और मामला मीडिया में आने के बाद एक बार फिर इस रास्ते का लॉग डाउन हो गया है यानि कि पहुंच रास्ते/मार्ग पर मिट्टी डालकर पॉलिस का पहरा लगा दिया गया है.

क्या हैं और होंगी स्थितियां..

मामला चाहे जो भी हो पर इतना तो तय है कि इस लॉग डाउन से बड़े और मध्यम वर्गीय लोगों को खाशा असर तो नहीं पड़ा पर गरीब और रोज कमाने वाले लोग और उनके परिवार भूखों मरने के कगार पारा गये. अभी तो बस यही हाल हैं पर आने वाले समय में हालात और भी भयावह होंगे जिसपर काबू पाना मुमकिन न होगा.

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क्या होगा असर..

लॉग डाउन के बाद भले ही कोरोना महामारी चली जाये पर इसके बाद जी बेरोजगारी और भुखमरी की महामारी आनी है उससे बच पाना मुश्किल और नामुमकिन सा होगा. कहने का तात्पर्य जितनी मौतें और तबाही कोरोना से न हुई होंगी उससे ज़्यादा और कई गुनी तबाही इसके बाद होने वालीं हैं.

उठाने होंगे कदम..

गर जल्द ही शासन प्रशासन सरकार ने ठोश कदम नहीं उठाये और सही निर्णय न लिए तो कुछ भी हो सकता है जो हमने सोचा भी न होगा.

Lockdown के दौरान इस एक्ट्रेस ने सुनाई खुशखबरी, जल्द बनने वाली हैं मां

टीवी एक्ट्रेस एकता कौल और सुमित व्यास हाल ही में अपने प्रेग्नेंसी का ऐलान किया है. दोनों के घर जल्द ही नन्हा मेहमान आने वाला है. इस बात की जानकारी एकता ने अपने इंस्टाग्राम पर पोस्ट करके दिया है. इस खबर के बाद इनके फैंस बधाई देना शुरू कर दिए हैं.

टीवी स्टार के कई कलाकार ने भी उन्हें भी बधाई दी है. ईश्वर मार्चेट ने अपने खास दोस्त को सोशल मीडिया पर बधाई दी है. रश्मि देसाई के साथ-साथ कई अन्य कलाकार ने एकता को बधाई दी है.


इस क्यूट कपल को लगातार बधाईयां आ रही है. सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए एकता  ने लिखा है कि हम बेहद गर्व के साथ इस बात का एलान कर रहे है. हमें इस बात की खुशी है. कि हमारे  जीवन में जूनियर कॉल  जल्द ही आने वाले हैं.

एकता कौल को सबसे ज्यादा लोकप्रियता सीरियल मेरे आंगने से  मिली है. इसके अलावा अदाकारा ने सीरियल बड़े अच्छे लगते हैं ये आशिकी और नच बलिए में भी लोगों ने  इन्हें खूब पसंद किया था.

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जबकी उनके पति सुमित व्यास भी टीवी जगत के जाना-माना चेहरा हैं. फिल्म ‘वीर दी वेडिंग’ में करीना कपूर के ऑनस्क्रिन पति बन चुके हैं. इसके अलावा भी सुमित व्यास कई फिल्मों में नजर आ चुके हैं. जिसमें लोगों ने इऩकी  एक्टिंग की तारीफ की है.

दोनों स्टार कपल साल 2018 में एक-दूसरे के साथ शादी के बंधन में बंधे थें. इससे पहले से दोनों एक-दूसरे को डेट कर रहे थे.

एकता इन दिनों किसी नए प्रोजेक्ट्स पर काम नहीं कर रही हैं. फिलहाल अपने फैमली के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड कर रही हैं. साथ ही अपने खान-पान का भी खूब ख्याल रख रही हैं.

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Lockdown में हो रहे हैं बोर तो देखें नई वेबसीरीज ‘पंचायत’

वेबसीरीज – पंचायत
कास्ट – रघुवीर यादव, नीना गुप्ता, जीतेन्द्र कुमार
डायरेक्टर – दीपक मिश्रा
राईटर – चंदन कुमार
रेटिंग – 3.5

ख़ास क्या है
वेबसीरीज ‘पंचायत’ 3 अप्रैल को अमेजोन प्राइम पर रिलीज की गई है. इस 8 एपिसोड की वेबसीरीज की कहानी गांव की पृष्ठभूमि को ले कर बुनी गई है तो काफी समय बाद आर. के. नारायण की ‘मालगुडी डेज’ की याद ताज़ा हो जाती है. हालांकि तब के चित्रण और अब में अंतर है किंतु यह सिरीज उन लोगों के लिए बहुत खास होगी जो अपने गांव से जुड़ाव महसूस करते हैं. ख़ासकर ऐसे समय में जब लाकडाउन लगा है और कमरे की चार दीवारें देख कर उकता चुके हों. इस वेबसीरीज में सब कुछ है हंसीमजाक, फुहाड़पन, एमोशन, फ्रस्ट्रेशन, गांव की राजनीति, लोगों का भोलापन और सामूहिकता. यह सीरीज अंत तक खींचे रखने में कामयाब होती भी दिखती है. “मेहनत करने वालों की हार नहीं होती” के सामाजिक संदेश के साथ सीरीज को बेहतर दिखाया गया है. जितेन्द्र कुमार उर्फ़ जीतू भैया अभिनीत यह सीरीज अमेजोन प्राइम पर देखने को मिल जाएगी. इस से पहले जितेन्द्र कुमार ‘कोटा फैक्ट्री’ वेबसीरीज और ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ में देखे जा चुके हैं.

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कहानी क्या है
शहर का लड़का अभिषेक त्रिपाठी( जीतेन्द्र कुमार) जिस की नौकरी लगती है ग्राम पंचायत में सचिव के तौर पर. तनख्वाह 20,000 रूपए. लेकिन अभिषेक महत्वकांशी है. कम तनख्वाह के साथ साथ उसे यह अपने स्टेटस से जुड़ा काम नहीं लगता. उस का दोस्त समझाता है कि जब तक कोई अच्छा काम हाथ में नहीं तब तक “कुछ न से तो कुछ सही” ही बढ़िया है. इसलिए अभिषेक निकल पड़ता है उत्तरप्रदेश के जिला बलिया में गांव फुलेरा की तरफ जहां उस की पोस्टिंग है.

अभिषेक गांव पहुंच तो जाता है लेकिन वहां के माहौल को देख कर उस का मन नहीं लगता. हालांकि गांव के लोग उसे बारबार टोकते है की “पानी की टंकी में चढ़ेंगे तो आप को भी गांव से प्यार हो जाएगा.” लेकिन उसे बिलकुल खीज है यहाँ के माहौल से. उस का दोस्त उसे समझाता है कि वहां रह कर कैट(सीएटी) एग्जाम क्लियर कर एमबीए कर के अच्छी नौकरी मिल पाएगी. फिर क्या, वह गांव रुक कर नौकरी के साथ साथ पढाई करने का मन बना ही लेता है.

ठहरिये भाई, वेबसीरीज के भीतर बहुत कुछ है. इस जद्दोजहद में कहानी कई हिचकौले खिलाती है. तंगहाल गांव में बिजली की दिक्कत, अंधविश्वास, गांव की राजनीति का तड़का, लम्पटई सब है. कुछ कुछ जगह तो काफी बेहतरीन तरीके से डायरेक्टर ने सीन को दर्शाया है. इन सब के कारण अभिषेक को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. जिसे वह अपनी होशियारी और चतुराई से कई बार पार भी पा लेता है और कई बार फंस भी जाता है. ख़ैर इस की पूरी कहानी को जानने के लिए आप को वेबसीरीज देखनी पड़ेगी. वरना मजा किरकिरा हो जाएगा. यह सीरीज आप को 8 एपिसोड में अमेजोन प्राइम में मिल जाएगी.

स्टारकास्ट कैसी है
यह सीरीज गांव के पृष्ठभूमि पर है तो जाहिर है कई किरदार देखने को मिल जाएंगे. लेकिन मुख्य रूप से यह कुछ किरदारों के इर्दगिर्द है. अभिषेक कुमार (जीतेन्द्र कुमार) इस के मुख्य नायक है. जिन की युवाओं के बीच जगह बनने लगी है. यह सीरीज भी उन की जगह को और मजबूती देगी. इस के अलावा प्रधान ब्रिज भूषण दुबे (रघुवीर यादव), मंजू देवी (नीना गुप्ता), प्रहलाद पांडे (फैसल मालिक) और विकास (चन्दन रॉय) मुख्य भूमिका में हैं.

सब ने अपना काम बखूबी निभाया है. रघुवीर यादव और जितेन्द्र के अलावा सभी कलाकार दर्शकों को नए लग सकते हैं लेकिन सभी ने अपने किरदारों को बेहतरीन तरीके से निभा कर जीवंत किया है. ख़ासकर विकास के किरदार चन्दन रॉय को स्क्रीन पर देख के मन खुश हो जाता है. इस के अलावा नीना गुप्ता है जिन का काम उम्दा है, हालांकि उन का रोल कम है. रघुवीर यादव तो पहले से ही मंझे कलाकारों की फेहरिश्त में आते हैं.

वेबसीरीज का डायरेक्शन
इस वेबसीरीज का डायरेक्शन किया है दीपक मिश्रा ने और लिखा है चन्दन कुमार ने. दोनों का काम बहुत शानदार है. बारीक चीजों को पकड़ने में दोनों कामयाब रहे हैं. हां बीच बीच में कुछ सीन बेमतलब खींचे गए लेकिन इतना चल जाता है. अच्छी बात यह की हर एपिसोड में नई दिक्कत और उन का समाधान नए रोमांच पैदा करवाते हैं. जिसे बखूबी संजोया है लेखक और डायरेक्टर ने.

इस वेबसीरीज को 10 में से 9.2 आइएमडीबी रेटिंग मिली है जो काफी बढ़िया मानी जाती है. इसलिए जल्दी से इस टेंशन के माहौल में दिमाग को थोडा रेस्ट दीजिये और घर बैठे बैठे खो जाइए गांव के खुले माहौल में.

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coronavirus: इंसानों के बाद अब जानवरों में भी कोरोना के लक्षण

काफी समय से सोशल मीडिया और न्यूज चैनलों में इंसानों का प्रकृति के साथ खिलवाड़ को ले कर बातें चल रहीं थी. जिस में कहा जा रहा था कि कोरोना इंसानी देन है जो इंसान इसे भुगत रहें है. प्रकृति ने इंसानों को सबक सिखाने के लिए फिर से समय का चक्का घुमाया है. कई फोटो और संदेश वायरल हो रहे थे जिस में जानवर और पंछी खाली सड़कों में टहलते आज़ाद दिख रहे थे और इंसान लाकडाउन के कारण घरों में बंद. यह एक हद तक सच भी है कि इंसान ने प्रकृति के साथ काफी छेड़छाड़ की है. जिस का बड़ा उदाहरण ग्लोबल वार्मिंग से समझा जा सकता है. खैर, लोगों के द्वारा यह कयास लगाए जा रहे थे कि कोरोना वायरस सिर्फ इंसानों से इंसानों में फैलने वाला संक्रमण है जानवरों में इस के नकारात्मक प्रभाव नहीं है. यह बात कितनी सच है?

न्यूयार्क के ब्रोंक्स चिडियांघर में मलायन मादा बाघ के कोरोना पॉजिटिव होने की खबर मिली है. चिडियांघर 16 मार्च को कोरोना संक्रमण के कारण एहतियातन बंद कर दिया गया था. माना जा रहा है कि यह बाघ प्रजाति में यह पहला पॉजिटिव केस देखने को मिला है. इस मामले में चिडियांघर प्रबंधक ने बताया है संक्रमित बाघ का नाम ‘नादिया’ है जिस की उम्र 4 साल है. इस के अलावा 6 अन्य शेर और बाघ भी बीमार है. प्रबंधक ने कोरोना संक्रमण को चिडियांघर के कर्मचारियों से ही जानवरों में फैलने का कारण बताया हैं. हालांकि पहले बाघ में कोरोना संक्रमण 27 मार्च में दिखना शुरू हो गया था जब उस की तबियत बिगड़ने लगी थी जिस में सुखी खांसी और भूख न लगना शामिल था. लेकिन इस में अच्छी बात यह है कि अब यह सभी संक्रमित जानवर पहले से बेहतर स्थिति में हैं और रिकवर कर रहें है. किन्तु सवाल यह की यह संक्रमण जानवरों में वैसे ही ट्रांसफर हो रही है जैसे इंसानों के भीतर हो रही है?

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हांगकांग में कुत्तों से जुड़े कोरोना पॉजिटिव के कुछ मामले देखने को मिले है. जिस में हालिया मामला पौकफुलाम जगह से सम्बंधित जर्मन शेफर्ड से जुड़ा था. ‘एएफसीडी’ के अनुसार कुत्ते का मालिक कोरोना संक्रमण से पीड़ित था. इसे देखते हुए उसी घर से जुड़े दो कुत्तों को क्वारंटाइन में रखा गया तो उन में से एक जर्मन शेफर्ड कुत्ता कोरोना संक्रमण में पॉजिटिव पाया गया व मिक्स ब्रीड के कुत्ते में इस के संक्रमण नहीं दिखाई दिए.

इसी तरह कुत्तों में पहला मामला 17 साल के बूढ़े पोमेरियन का आया था. जिसे परीक्षण कर पता लगाया कि उसे कोरोना के हल्के लक्षण हैं. कुत्ते को क्वारंटाइन में रखा गया जहां उस के लार का परिक्षण किया गया. 4 बार के परीक्षण के बाद अंत के परीक्षण में कोरोना नेगेटिव पाया गया. किन्तु जैसे ही उसे वापस घर भेजा गया तो दो दिन बाद उस की मौत हो गई. जब उस पोमेरियन की मौत का पता लगाने के लिए उसे वापस मांगा गया तो उसे उस के मालिक ने अनुमति नहीं दी.

अमेरिकी वेटनरी मेडिकल एसोसिएशन ने जानवरों में कोरोना से जुड़े मामले में कहा कि संक्रामक रोग विशेषज्ञ तथा कई अंतराष्ट्रीय व घरेलु मानव और पशु स्वास्थय संगठन सभी इस बात पर सहमति रखते हैं कि यह संक्रमण जानवरों से बाकी जानवरों में इंसानों की तरह नहीं फ़ैल रहा है साथ ही इंसानों में फैलने का श्रोत जानवर नहीं है.

ऐसे ही एक बेल्जियम में एक पालतू बिल्ली को कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई है, रिपोर्ट्स के अनुसार उसे यह संक्रमण अपने मालिक से हुआ है. यह बिल्ली में हुआ पहला मामला है जो सामने आया है. हांलाकि इस पर विशेषज्ञों ने कहा कि यह इंसान से बिल्ली पर संक्रमित मामला है किन्तु बिल्ली इस के फैलने का कारण नहीं बन सकती.

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हालांकि चीन में भी जानवरों में कोरोना को ले कर हालिया शोध हुआ. चीन के ‘हार्बिन वेटनरी रिसर्च इंस्टिट्यूट’ ने बिल्लियों को ले कर चोंकाने वाला शोध किया है. इस शोध में कई पालतू जानवरों को शामिल किया गया. जिस में पाया कि बिल्लियां कोविड-19 के संक्रमण से सक्रिय हो सकती है. जिस में यह आपस में इस संक्रमण को फैलाने में कारगर हैं. हांलाकि इस शोध को ले कर विवाद है.

बिल्लियों के ऊपर किये गए प्रयोग में एक ही केस संक्रमण का आया वो भी हलके तौर पर. इस से यह भी कयास लगाए गए कि बिल्लियों में इस के संक्रमण की अधिक क्षमता नहीं है. हालांकि अभी तक किसी जानवर से इंसान में इस संक्रमण के फैलने की पुष्टि कोई डाक्टर या वैज्ञानिक नहीं कर रहे और न ही ऐसी कोई खबर आई हैं. फिर भी वैज्ञानिकों द्वारा यह हिदायत दी गई है कि कुत्ते बिल्लियों या अन्य पालतू जानवरों के साथ सीमित दायरा बनाया जाए. यह प्रयोग बिल्लियों के साथसाथ कुत्तों, मुर्गियों, सुअरों तथा अन्य पालतू जानवरों पर किया गया जिनमें संक्रमण के लक्षण नहीं पाए गए किन्तु बिल्लियां इन सब की तुलना में अधिक संवेदनशील दिखी.

वहीँ पेरिस सम्बंधित ‘वर्ल्ड ऑर्गेनाइजेशन फॉर एनिमल हेल्थ’ और अमेरिका के ‘डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन’ ने भी साझा तौर पर बयान दिया कि “ऐसे कोई सबूत नहीं है जिस से यह कहा जाए कि पालतू जानवरों खासकर कुत्ते बिल्ली में भी आपस में यह संक्रमण फ़ैल रहा है.

अभी तक जितनी भी केस स्टडी जानवरों से की गई है उस में जानवरों में कोरोना का ट्रान्सफर इंसान से ही रहा है. यानी जितने भी केस सामने देखने को मिले हैं वह सारे इंसान से जानवरों को ट्रान्सफर हुए हैं. तो फिलहाल यह समझा जा सकता है कि यह इंसानों में ही फ़ैल रहा है. हालांकि जानवरों के भीतर पाए गए मामलों को ले कर विभिन्न शोध संगठनों द्वारा यह हिदायत दी गई है कि जब तक इस वायरस के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिल जाती तब तक पालतू जानवरों से सीमित दूरी बनाए रखें, उन्हें छूने के बाद हाथ सफाई से धोएं और बाहर खुला न जाने दें.

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