21 दिन के लाकडाउन के बाद भी 3 मई तक बढ़ी मियाद ने देश के फल,फूल,सब्जी उत्पादक किसानों की कमर तोड़ कर रख दी है. साल भर की हाड़ तोड़ मेहनत के बाद आने वाली फसलों को बेचने के लिए किसानों को कोई सुविधा न मिलने से करोड़ों रुपए मूल्य की फसलें चौपट हो गई हैं.आंकड़ों के मुताबिक देश भर में पचास फीसदी किसानों के पास पांच एकड़ से कम जमीन का रकवा है, जिसमें वो फल, फूल और सब्जियों की खेती करके अपने परिवार का पालन-पोषण करता है.
मध्यप्रदेश में फूलों की फसल से एक हजार करोड़ रुपए का सालाना कारोबार होता है.लाक डाउन में मंदिर मस्जिद, गुरुद्वारा समेत सभी धार्मिक स्थल बंद हैं. शादी विवाह के अलावा किसी भी प्रकार के समारोह आदि न होने से फूलों की फसल पूरी तरह से नष्ट हो गई है. फूलों की खेती करने वाले गाडरवारा के उमाशंकर कुशवाहा वैवाहिकी सीजन में फ्लावर डेकोरेशन के काम में दो लाख रुपए तक कमा लेते हैं, परन्तु इस सीजन में उन्हें धेला भर कमाई नहीं हुई है.
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देश के सभी भागों में अधिकतर बड़ी सब्जी और फल मंडियों और परिवहन सेवा के बंद होने से फल और सब्जियां खेतों में सड़ रहीं हैं.गूजर झिरिया गांव के युवा किसान तरूण गूर्जर बताते हैं कि 4 एकड़ खेत में गन्ना फसल के बीच में आलू लगाये थे.लगभग 500 क्विंटल उत्पादन के बाद अब आलू बिक नहीं रहा. मंडी बंद होने से और फुटकर सब्जी विक्रेता भी पुलिस प्रशासन के भय से आलू नहीं खरीद रहे.खुरसीपार गांव के राकेश शुक्ला ने केला का बंपर उत्पादन तो ले लिया, लेकिन लौक डाउन ने उनकी मेहनत फर पानी फेर दिया. अजंदा के किसान सुनील श्रीवास हर साल की भांति तरबूज की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं,
परन्तु इस वार लोकल हाट बाजार और फल मंडियों के बंद रहने से उन्हें सौ फीसदी नुकसान हुआ है.तरबूज खेतों में ही सड़ रहे हैं.होशंगाबाद के तवानगर के किसान राजेन्द्र मालवीय बताते हैं कि 5 एकड़ में उन्होंने कद्दू की फसल ली थी. 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के दूसरे दिन उन्होंने कद्दू की तुड़ाई शुरू करा दी थी. 25 मार्च को कद्दू फल को भोपाल और इटारसी मंडी भेजना था, परन्तु 24 मार्च को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संपूर्ण लौक डाउन की घोषणा कर दी. अब कद्दू फसल को सड़कों पर फेंकना पड़ रहा है.
इसी तरह मध्यप्रदेश के कई इलाकों में टमाटर,प्याज ,भटा, मिर्ची के साथ लौकी,गिल्की भिंडी,ककड़ी जैसी सब्जियों और पपीता, संतरे जैसे फलों की खेती का नुक़सान किसानों को उठाना पड़ा है.
देश के गांव,कस्बों में खेती के साथ किसान पशुपालन करके दूध का व्यवसाय भी करते हैं. गांव के कुछ किसान गांव के दूध को इकट्ठा करके शहर भेजते हैं, परन्तु लौक डाउन के चलते शहरों में बनने वाले दुग्ध उत्पाद दही,मठा,श्रीखंड, मावा ,घी ,पनीर का कारोबार ठप्प पड़ गया. इसकी वजह से गांव का पचास फीसदी दूध शहरों तक नहीं पहुंचने से किसानो को भारी नुक़सान उठाना पड़ा.
छोटे शहरों के कुछ किसान जो अपने खेतों में लोन लेकर पोल्ट्री फार्म खोल कर अंडे का कारोबार करते हैं, वे भी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. रोजाना निकलने वाले अंडो की सप्लाई नहीं होने से उन्हें बैंकों से लिए लोन की किस्तों की चिंता सताने लगी है.
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मध्यप्रदेश कृषि सलाहकार परिषद के शिवकुमार शर्मा ने किसानो को हुए नुकसान की भरपाई के लिए सरकार से दस हजार रुपए एकड़ मुआवजा के साथ फूल,सब्जी उत्पादक किसानों के बैंक लोन को माफ करने की मांग की है. किसानों की चिंता यही है कि कोरोना वायरस की महामारी से देश में फल, फ़ूल और सब्जियों का उत्पादन करने वाले किसान के लिए कोई राहत पैकेज अभी तक नहीं मिला है.