बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती दलित समाज के मुद्दों से भटक रही हैं. चाहे नागरिकता कानून का मुद्दा हो या कोरोना वायरस की त्रासदी से जूझ रहे गरीब, मजदूर और समाज के उपेक्षित वर्ग की बात हो मायावती पूरी तरीके से खामोश है. वह सरकार के हर कदम का स्वागत करते हुए अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ले रही हैं . मायावती का कामकाज केवल राजनीतिक बयान बाजी तक ही सीमित रह गया.

केंद्र सरकार ने द्वारा जब दूसरी बार लॉकडाउन बढ़ाने की बात भी नही की थी तभी मायावती ने उसका समर्थन कर दिया था. मायावती ने कहा ”केंद्र सरकार अगर लॉक डाउन बढ़ाती है तो बीएसपी उसका समर्थन करेगी” मायावती को उस समय तक यह नही पता था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या घोषणा करने वाले है.

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मायावती ने कहा कि “जनहित को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार के निर्णय का बीएसपी समर्थन करती है”. उस समय तक मायावती को यह  भी नही पता था कि लोक डाउन में क्या नया होने वाला है ? दलित समाज की दिक्कतों को किसी हल किया जाएगा ? . मायावती ने बिना यह जाने ही केंद्र सरकार को अपना सर्मथन दे दिया.

मायावती ने अपने बयान में दिखावे के लिए अंत मे गरीबो और मजदूरों की आवाज उठाते कहा कि सरकार को गरीबों, मजदूरों, किसानों और अन्य मजदूर वर्ग के हितों को ध्यान में रखना चाहिए और तालाबंदी के दौरान उन्हें सहायता प्रदान करनी चाहिए”

राजनीतिक पलायन

नागरिकता कानून की बात हो या लोक डाउन के दौरान परेशानियों की सबसे अधिक गरीब और मजदूर वर्ग इन दोनों में ही परेशान हुआ. इसके बाद भी बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने नागरिकता कानून और लॉक डाउन दोनों के मुद्दे पर दलित मजदूर की मदद का कोई अभियान अपनी पार्टी के द्वारा नहीं चलाया.

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने लॉक डाउन के दौरान अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को आदेश दिया कि वह लोग लॉक डाउन में फंसे परेशान गरीब मजदूर वर्ग की मदद करें . उनको खाना खिलाए और उन्हें सरकारी सुविधा दिलवाने में मदद करें. समाजवादी पार्टी के लोगों ने कई शहरों में इस तरीके का काम किया . इसके विपरीत बहुजन समाज पार्टी के अध्यक्ष मायावती ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को कोई ऐसा संदेश नहीं दिया कि वह लॉक डाउन के दौरान गरीब और मजदूरो की मदद के लिए सड़कों पर उतरे.

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मायावती के लिए एक तरीके का राजनीतिक पलायन है. मायावती को पता है की दलित वर्ग का बड़ा  हिस्सा हिंदुत्व के नाम पर भारतीय जनता पार्टी के  समर्थन में खड़ा हो चुका है . यही कारण है कि उत्तर प्रदेश के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मायावती को करारी हार का सामना करना पड़ा था.

खामोशी से बीती अंबेडकर जयंती

14 अप्रैल को भीमराव अंबेडकर जयंती के अवसर पर समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अंबेडकर जयंती के अवसर पर गरीब और मजदूर वर्ग के लोगों को लॉक डाउन के दौरान खाना खिलाने जैसा काम किया. भारतीय जनता पार्टी के नेता और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ में सहित तमाम दूसरे नेताओं ने भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा पर फूल माला चढ़ाकर अंबेडकर जयंती को मनाया. समाजवादी पार्टी के विधायक अम्बरीश सिंह पुष्कर औऱ ब्लॉक प्रमुख विजय लक्ष्मी ने बाबा साहब की प्रतिमा पर फूल चढ़ा कर गरीबो, दलित और मजदूरों खाना खिलाया.

इसके विपरीत बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती और उनके कार्यकर्ताओं के द्वारा मजदूर और किसानों को किसी भी तरीके की मदद करते नहीं देखा गया. सामान्य तौर पर इस अवसर पर बहुजन समाज पार्टी बड़े आयोजन करती थी. लॉक डाउन के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के लिए बसपा ने  इस तरह के आयोजनों पर सड़क पर उतरना उचित नही समझा. यही वजह है कि अंबेडकर जयंती पर बहुजन समाज पार्टी ने कोई बड़ा कार्यक्रम नहीं किया. पर बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ता और नेता चाहते तो आज गांव गरीब और मजदूर वर्ग के लोगों को खाना खिला सकते थे . उनकी तकलीफों को पूछ सकते थे उनकी जरूरतों को पूरा कर सकते थे पर बहुजन समाज पार्टी के लोगों ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया.

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ब्राम्हणवाद का प्रभाव

बहुजन समाज पार्टी पर ब्राह्मणवाद का प्रभाव पूरी तौर से देखा जा सकता हैं. बहुजन समाज पार्टी ने जब से “सोशल इंजीनियरिंग” के नाम पर दलित और ब्राह्मण गठजोड़ किया तब से पार्टी में दलित मुद्दों की जगह कम होती गई . यही वजह है कि दलित अब मायावती और बहुजन समाज पार्टी से वह लगाव और अपनापन नहीं रख पाता जो काशीराम के समय  बहुजन समाज पार्टी के साथ था. साल 2009 में जब मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी तब उम्मीद की जा रही थी कि बहुमत की के बल पर दलित उत्थान के लिए मायावती कुछ बड़े कदम उठाएंगे . मायावती ने दलित उत्थान की जगह ब्राह्मणवादी सोच को सामने रखते हुए मूर्तियां बनवाने का काम शुरू कर दिया. मायावती ने न केवल दलित महापुरुषों की मूर्तियां लगवाई बल्कि खुद अपनी मूर्ति भी कई शहरों में लगवाई . बहुजन समाज पार्टी अपने शुरुआती दौर में मूर्ति पूजा की घोर विरोधी हुआ करती थी. पर ब्राह्मणवादी सोच के हावी होने के बाद बसपा मूर्ति पूजा में विश्वास करने लगी. इसी का नतीजा था कि बहुजन समाज पार्टी धीरे-धीरे ना केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश में राजनीतिक रूप से बनवास चली गई. आज जब गरीब दलित और मजदूर वर्ग को मायावती और बहुजन समाज पार्टी की सबसे अधिक जरूरत है तब मायावती पूरी तौर से खामोश हैं  राजनीतिक रूप से उनका काम केवल बयान जारी करना या सोशल मीडिया पर अपने संदेश देना रह गया.

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