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19 दिन 19 कहानियां: सब से हसीन वह – भाग 1

लेखक : केशव राम वाड़दे

सुहागसेज पर बैठी थी अनुजा, लेकिन अनछुई ही रह गई थी. परीक्षित का उसे अनछुआ छोड़ कर चले जाना और फिर लौट आना अनापेक्षित सा था उस के लिए. कुछ भी समझ नहीं आ रहा था उस को.

इन दिनों अनुजा की स्थिति ‘कहां फंस गई मैं’ वाली थी. कहीं ऐसा भी होता है भला? वह अपनेआप में कसमसा रही थी.

ऊपर से बर्फ का ढेला बनी बैठी थी और भीतर उस के ज्वालामुखी दहक रहा था. ‘क्या मेरे मातापिता तब अंधेबहरे थे? क्या वे इतने निष्ठुर हैं? अगर नहीं, तो बिना परखे ऐसे लड़के से क्यों बांध दिया मु झे जो किसी अन्य की खातिर मु झे छोड़ भागा है, जाने कहां? अभी तो अपनी सुहागरात तक भी नहीं हुई है. जाने कहां भटक रहा होगा. फिर, पता नहीं वह लौटेगा भी या नहीं.’

उस की विचारशृंखला में इसी तरह के सैकड़ों सवाल उमड़तेघुमड़ते रहे थे. और वह इन सवालों को  झेल भी रही थी.  झेल क्या रही थी, तड़प रही थी वह तो.

लेकिन जब उसे उस के घर से भाग जाने के कारण की जानकारी हुई, झटका लगा था उसे. उस की बाट जोहने में 15 दिन कब निकल गए. क्या बीती होगी उस पर, कोई तो पूछे उस से आ कर.

सोचतेविचारते अकसर उस की आंखें सजल हो उठतीं. नित्य 2 बूंद अश्रु उस के दामन में ढुलक भी आते और वह उन अश्रुबूंदों को देखती हुई फिर से विचारों की दुनिया में चली जाती और अपने अकेलेपन पर रोती.

अवसाद, चिड़चिड़ाहट, बेचैनी से उस का हृदय तारतार हुआ जा रहा था. लगने लगा था जैसे वह अबतब में ही पागल हो जाएगी. उस के अंदर तो जैसे सांप रेंगने लगा था. लगा जैसे वह खुद को नोच ही डालेगी या फिर वह कहीं अपनी जान ही गंवा बैठेगी. वह सोचती, ‘जानती होती कि यह ऐसा कर जाएगा तो ब्याह ही न करती इस से. तब दुनिया की कोई भी ताकत मु झे मेरे निर्णय से डिगा नहीं सकती थी. पर, अब मु झे क्या करना चाहिए? क्या इस के लौट आने का इंतजार करना चाहिए? या फिर पीहर लौट जाना ही ठीक रहेगा? क्या ऐसी परिस्थिति में यह घर छोड़ना ठीक रहेगा?’

वक्त पर कोई न कोई उसे खाने की थाली पहुंचा जाता. बीचबीच में आ कर कोई न कोई हालचाल भी पूछ जाता. पूरा घर तनावग्रस्त था. मरघट सा सन्नाटा था उस चौबारे में. सन्नाटा भी ऐसा, जो भीतर तक चीर जाए. परिवार का हर सदस्य एकदूसरे से नजरें चुराता दिखता. ऐसे में वह खुद को कैसे संभाले हुए थी, वह ही जानती थी.

दुलहन के ससुराल आने के बाद अभी तो कई रस्में थीं जिन्हें उसे निभाना था. वे सारी रस्में अपने पूर्ण होने के इंतजार में मुंहबाए खड़ी भी दिखीं उसे. नईनवेली दुलहन से मिलनजुलने वालों का आएदिन तांता लग जाता है, वह भी वह जानती थी. ऐसा वह कई घरों में देख चुकी थी. पर यहां तो एकबारगी में सबकुछ ध्वस्त हो चला था. उस के सारे संजोए सपने एकाएक ही धराशायी हो चले थे. कभीकभार उस के भीतर आक्रोश की ज्वाला धधक उठती. तब वह बुदबुदाती, ‘भाड़ में जाएं सारी रस्मेंरिवाज. नहीं रहना मु झे अब यहां. आज ही अपना फैसला सुना देती हूं इन को, और अपने पीहर को चली जाती हूं. सिर्फ यही नहीं, वहां पहुंच कर अपने मांबाबूजी को भी तो खरीखोटी सुनानी है.’ ऐसे विचार उस के मन में उठते रहे थे, और वह इस बाबत खिन्न हो उठती थी.

इन दिनों उस के पास तो समय ही समय था. नित्य मंथन में व्यस्त रहती थी और फिर क्यों न हो मंथन, उस के साथ ऐसी अनूठी घटना जो घटी थी, अनसुल झी पहेली सरीखी. वह सोचती, ‘किसे सुनाऊं मैं अपनी व्यथा? कौन है जो मेरी समस्या का निराकरण कर सकता है? शायद कोईर् भी नहीं. और शायद मैं खुद भी नहीं.’

फिर मन में खयाल आता, ‘अगर परीक्षित लौट भी आया तो क्या मैं उसे अपनाऊंगी? क्या परीक्षित अपने भूल की क्षमा मांगेगा मुझ से? फिर कहीं मेरी हैसियत ही धूमिल तो नहीं हो जाएगी?’ इस तरह के अनेक सवालों से जू झ रही थी और खुद से लड़ भी रही थी अनुजा. बुदबुदाती, ‘यह कैसी शामत आन पड़ी है मु झ पर? ऐसा कैसे हो गया?’

तभी घर के अहाते से आ रही खुसुरफुसुर की आवाजों से वह सजग हो उठी और खिड़की के मुहाने तक पहुंची. देखा, परीक्षित सिर  झुकाए लड़खड़ाते कदमों से, थकामांदा सा आंगन में प्रवेश कर रहा था.

उसे लौट आया देखा सब के मुर झाए चेहरों की रंगत एकाएक बदलने लगी थी. अब उन चेहरों को देख कोई कह ही नहीं सकता था कि यहां कुछ घटित भी हुआ था. वहीं, अनुजा के मन को भी सुकून पहुंचा था. उस ने देखा, सभी अपनीअपनी जगहों पर जड़वत हो चले थे और यह भी कि ज्योंज्यों उस के कदम कमरे की ओर बढ़ने लगे. सब के सब उस के पीछे हो लिए थे. पूरी जमात थी उस के पीछे.

इस बीच परीक्षित ने अपने घर व घर के लोगों पर सरसरी निगाह डाली. कुछ ही पलों में सारा घर जाग उठा था और सभी बाहर आ कर उसे देखने लगे थे जो शर्म से छिपे पड़े थे अब तक. पूरा महल्ला भी जाग उठा था.

जेठानी की बेटी निशा पहले तो अपने चाचा तक पहुंचने के लिए कदम बढ़ाती दिखी, फिर अचानक से अपनी नई चाची को इत्तला देने के खयाल से उन के कमरे तक दौड़तीभागतीहांफती पहुंची. चाची को पहले से ही खिड़की के करीब खड़ी देख वह उन से चिपट कर खड़ी हो गई. बोली कुछ भी नहीं. वहीं, छोटा संजू दौड़ कर अपने चाचा की उंगली पकड़ उन के साथसाथ चलने लगा था.

परीक्षित थके कदमों से चलता हुआ, सीढि़यां लांघता हुआ दूसरी मंजिल के अपने कमरे में पहुंचा. एक नजर समीप खड़ी अनुजा पर डाली, पलभर को ठिठका, फिर पास पड़े सोफे पर निढाल हो बैठ गया और आंखें मूंदें पड़ा रहा.

मिनटों में ही परिवार के सारे सदस्यों का उस चौखट पर जमघट लग गया. फिर तो सब ने ही बारीबारी से इशारोंइशारों में ही पूछा था अनुजा से, ‘कुछ बका क्या?’

उस ने एक नजर परीक्षित पर डाली. वह तो सो रहा था. वह अपना सिर हिला उन सभी को बताती रही, अभी तक तो नहीं.’

एक समय ऐसा भी आया जब उस प्रागंण में मेले सा समां बंध गया था. फिर तो एकएक कर महल्ले के लोग भी आते रहे, जाते रहे थे और वह सो रहा था जम कर. शायद बेहोशी वाली नींद थी उस की.

अनुजा थक चुकी थी उन आनेजाने वालों के कारण. चौखट पर बैठी उस की सास सहारा ले कर उठती हुई बोली, ‘‘उठे तो कुछ खिलापिला देना, बहू.’’ और वे अपनी पोती की उंगली पकड़ निकल ली थीं. माहौल की गर्माहट अब आहिस्ताआहिस्ता शांत हो चुकी थी. रात भी हो चुकी थी. सब के लौट जाने पर अनुजा निरंतर उसे देखती रही थी. वह असमंजस में थी. असमंजस किस कारण से था, उसे कहां पता था.

परिवार के, महल्ले के लोगों ने भी सहानुभूति जताते कहा था, ‘बेचारे ने क्या हालत बना रखी है अपनी. जाने कहांकहां, मारामारा फिरता रहा होगा? उफ.’

आधी रात में वह जगा था. उसी समय ही वह नहाधो, फिर से जो सोया पड़ा, दूसरी सुबह जगा था. तब अनुजा सो ही कहां पाई थी. वह तो तब अपनी उल झनोंपरेशानियों को सहेजनेसमेटने में लगी हुई थी.

वह उस रात निरंतर उसे निहारती रही थी. एक तरफ जहां उस के प्रति सहानुभूति थी, वहीं दूसरी तरफ गहरा रोष भी था मन के किसी कोने में.

सहानुभूति इस कारण कि उस की प्रेमिका ने आत्महत्या जो कर ली थी और रोष इस बात पर कि वह उसे छोड़ भागा था और वह सजीसंवरी अपनी सुहागसेज पर बैठी उस के इंतजार में जागती रही थी. वह उसी रात से ही गायब था. फिर सुहागरात का सुख क्या होता है, कहां जान पाई थी वह.

उस रात उस के इंतजार में जब वह थी, उस का खिलाखिला चेहरा पूनम की चांद सरीखा दमक रहा था. पर ज्यों ही उसे उस के भाग खड़े होने की खबर मिली, मुखड़ा ग्रहण लगे चांद सा हो गया था. उस की सुर्ख मांग तब एकदम से बु झीबु झी सी दिखने लगी थी. सबकुछ ही बिखर चला था.

तब उस के भीतर एक चीत्कार पनपी थी, जिसे वह जबरन भीतर ही रोके रखे हुए थी. फिर विचारों में तब यह भी था, ‘अगर उस से मोहब्बत थी, तो मैं यहां कैसे? जब प्यार निभाने का दम ही नहीं, तो प्यार किया ही क्यों था उस से? फिर इस ने तो 2-2 जिंदगियों से खिलवाड़ किया है. क्या इस का अपराध क्षमायोग्य है? इस के कारण ही तो मु झे मानसिक यातनाएं  झेलनी पड़ी हैं. मेरा तो अस्तित्व ही अधर में लटक गया है इस विध्वंसकारी के कारण. जब इतनी ही मोहब्बत थी तो उसे ही अपना लेता. मेरी जिंदगी से खिलवाड़ करने का हक इसे किस ने दिया?’ तब उस की सोच में

यह भी होता, ‘मैं अनब्याही तो नहीं कहीं? फिर, कहीं यह कोई बुरा सपना

तो नहीं?’

दूसरे दिन भी घर में चुप्पी छाई रही थी. वह जागा था फिर से. घर वालों को तो जैसे उस के जागने का ही इंतजार था.  झटपट उस के लिए थाली परोसी गई. उस ने जैसेतैसे खाया और एक बार फिर से सो पड़ा और बस सोता ही रहा था. यह दूसरी रात थी जो अनुजा जागते  बिता रही थी. और परीक्षित रातभर जाने क्याक्या न बड़बड़ाता रहा था. बीचबीच में उस की सिसकियां भी उसे सुनाई पड़ रही थीं. उस रात भी वह अनछुई ही रही थी.

फिर जब वह जागा था, अनुजा के समीप आ कर बोला, तब उस की आवाज में पछतावे सा भाव था, ‘‘माफ करना मु झे, बहुत पीड़ा पहुंचाई मैं ने आप को.’’

‘आप को,’ शब्द जैसे उसे चुभ गया. बोली कुछ भी नहीं. पर इस एक शब्द ने तो जैसे एक बार में ही दूरियां बढ़ा दी थीं. उस के तो तनबदन में आग ही लग गई थी.

दो सखियां: भाग 3

‘‘कितनी उम्र होगी तुम्हारी पोती की?’’

‘‘होगी कोई 16 वर्ष की.’’

‘‘लड़का देखा है कोई?’’

‘‘नहीं, बहू कहती है कि 18 से पहले शादी करना गैरकानूनी है. अभी उम्र ही क्या है? मांबाप के यहां चैन से रह लेने दो. फिर तो जीवनभर गृहस्थी में पिसना ही है. एक तो ये कानून नएनए बन गए हैं, फिर लड़की जात. इस उम्र में तो हम 2 बच्चों की अम्मा बन गए थे. लेकिन बहूबेटे कहते हैं कि अभी उम्र नहीं हुई शादी की. पढ़ना कम, घूमना ज्यादा. एक कहो, दस कहती हैं आजकल की औलादें. तौबा.’’

‘‘यही हाल तो हमारे यहां है. जब देखो सिनेमा, टीवी, क्रिकेट. पढ़ाई का अतापता नहीं. 10वीं में फेल हो चुके हैं. उम्र 20 साल के आसपास हो गई है. हम कहें तो उन की अम्मा को बुरा लगता है. बाप, बेटे से पूछता है कितना स्कोर हुआ. यह कैसा खेल है भई.’’

‘‘अच्छा क्रिकेट. हमारे यहां भी यही चलता है. खेल न हुआ, तमाशा हो गया. इस ने इतने बनाए, उस ने आउट किया. बापबेटी में बहस चलती है. कौन, क्यों कैसे आउट हो गया. एंपायर ने गलत फैसला दे दिया. टीवी पर चिपके रहते हैं दिनभर. ये भी नहीं कि अम्मी को मनपसंद सीरियल देख लेने दें. बेटा तो बेटा, पोती रिमोट छीन लेती है हाथ से, न शर्म न लिहाज.’’

‘‘क्या करें, अब हमारे दिन नहीं रहे. बुढ़ापा आ गया. बस, अपनी मौत का रास्ता तक रहे हैं. हमारे जमाने में तो रेडियो चलता था. ये औफिस गए नहीं कि हम ने गीतमाला लगाई. मजाल है कोई डिस्टर्ब कर दे. सास टोक भी दे तो हम कहां मानने वाले थे.’’

‘‘सच कहती हो तारा, हमारे मियां तो हमें अकसर फिल्म दिखाने ले जाते थे, क्या फिल्में बनती थीं. मैं तो मरती थी दिलीप कुमार पर. क्या शानदार गाने, मन मस्त हो जाता था. आजकल तो पता नहीं क्या गा रहे हैं, सिवा होहल्ला के. हीरो बंदर की तरह उछलकूद कर रहा है. हीरोइन ने कपड़े ऐसे पहने हैं कि…नहीं ही पहने समझो. तहजीब का तो कचूमर निकाल दिया है.’’

तारा ने भी पुराने दिन याद करते हुए कहा, ‘‘क्या खूब याद दिलाई. हम तो देव आनंद पर फिदा थे. हाय जालिम, क्या चलता था. मेरे पति तो मधुबाला के इतने दीवाने थे कि घर पर उस की फोटो टांग रखी थी. इन का बस चलता तो सौतन बना करले आते.’’

‘‘तभी एक देव आनंद जैसे लड़के पर रीझ गई थीं शादी के बाद?’’

‘‘ताना मार रही हो या तारीफ कर रही हो?’’

‘‘अरे सहेली हूं तेरी, ताना क्यों मारूंगी. अपनी जवानी के दिन याद भी नहीं कर सकते. फिर जवानी में तो सब से खताएं होती हैं.’’

‘‘हां, तू भी तो गफूर भाई को दिलीप कुमार समझ दिल दे बैठी थी.’’

‘‘अरे, उस कमबख्त की याद मत दिलाओ. मुझ से आशिकी बघारता रहता और निकाह कर लिया किसी और से. समझा था दिलीप कुमार, निकला प्राण. मेरा तो घर टूटतेटूटते बचा.’’

‘‘हम औरतों का यही तो रोना है. जिसे देव आनंद समझ कर बतियाते रहे उस ने महल्लेभर में बदनामी करवा दी हमारी. यह तो अच्छा हुआ कि हमारे पति को हम पर भरोसा था. फिर जो पिटाई की थी उस की, वह दोबारा दिखा नहीं. जिसे देव आनंद समझा वह अजीत निकला. खैर, पुरानी बातें छोड़ो, यह बताओ कि जफर भाई के बारे में कुछ सुना है?’’

‘‘हां, सुना तो है. घर की नौकरानी को पेट से कर दिया. इज्जत और जान पर आई तो निकाह करना पड़ा.’’

‘‘लेकिन जफर ठहरे 50 साल के और लड़की 20 साल की.’’

‘‘अरे मर्द और घोड़े की उम्र नहीं देखी जाती. घोड़ा घास खाता है और मर्द ने सुंदर जवान लड़की देखी कि मर्दों का दिमाग घास चरने चला जाता है.’’

‘‘जफर भाई बुढ़ाएंगे तो नई दुलहन को बाहर किसी का मुंह ताकना पड़ेगा.’’

‘‘यह तो सदियों से चला आ रहा है.’’

बातचीत चल रही थी कि इसी बीच फिर आवाज आई, ‘‘दादी, ओ दादी.’’

‘‘लो आ गया बुलावा. बात अधूरी रह गई. कल मिल कर बताऊंगी. तब तक कुछ और पता चलेगा.’’

रात में अल्पविराम लग गया. महिलाओं की गपें उस पर निंदारस, कहीं पूर्णविराम लग ही नहीं सकता था. बुढ़ापे में वैसे भी नींद कहां आती है. खापी कर बेटा काम पर चला जाता. बहू घर के काम निबटा सोने चली जाती. पोती स्कूल चली जाती तो सितारा बैठने चली जाती तारा के घर. तारा का भी यही हाल था. भोजनपानी होने के बाद पोता स्कूल निकल जाता. बहू घर के कामकाज में लगी रहती. कामकाज हो जाता तो बिस्तर पर झपकी लग जाती. अब तारा क्या करे. अकेला मन और एकांत काटने को दौड़ता. वह सितारा को आवाज देती. कभी सितारा अपने घर महफिल जमा लेती. तारासितारा के अलावा यदि कोई और वृद्ध महिला बैठने आ जाती तो दोनों की बातें रुक जातीं. उन्हें सभ्यता के तकाजे के कारण बात करनी पड़ती, बिठाना पड़ता. लेकिन अंदर से उन्हें ऐसा लगता मानो कबाब में हड्डी. कब जाए? वे यही दुआ करतीं. उन्हें अपने बीच तीसरा ऐसे अखरता जैसे पत्नी को सौतन. फिर दूसरी महिलाओं के पास इतना समय भी नहीं होता कि दोपहर से रात तक बैठतीं. इस उम्र में तो आराम चाहिए. तारासितारा तो बैठेबैठे थक जातीं तो वहीं जमीन पर चादर बिछा कर लेट जातीं. फिर कोई बात याद आ जाती तो फिर शुरू हो जातीं. उन की थकान तो बात करते रहने से ही दूर होती थी. एक बार सितारा के बेटे ने पूछा भी, ‘‘अम्मी, क्या बात चलती रहती है? घर की बुराई तो नहीं करती हो?’’ सितारा समझ गई कि यह बात बहू ने कही होगी बेटे से. सितारा भी जवाब में कहती, ‘‘क्या मैं अपने बहूबेटे की बुराई करूंगी?’’

बेटे ने कहा, ‘‘नहीं अम्मी, बात यह है कि हम ठहरे मुसलमान और वे हिंदू. आजकल माहौल बिगड़ता रहता है. फिर तुम्हारी सहेली का बेटा तो मुसलिम का विरोध करने वाली पार्टी का खास है. सावधानी रखना थोड़ी.’’

वहीं, तारा के बेटे ने भी कहा, ‘‘अम्मा, हम हिंदू हैं और वे मुसलमान. देखना कहीं धोखे से गाय का मांस खिला कर भ्रष्ट न कर दें. उन का कोई भरोसा नहीं. पाकिस्तान समर्थक हैं वे.’’ अम्मा ने कहा, ‘‘बेटा, हमें क्या लेनादेना तुम्हारी राजनीति से. हम ठहरे उम्रदराज लोग, धर्मकर्म की बातें कर के अपने मन की कह कर दिल हलका कर लेते हैं. मेरे बचपन की सहेली है. मुझे गोमांस नहीं खिलाएगी. इतना विश्वास है. इस के बाद वे मिलीं तो बातों का जायका कुछ बदला.

तारा ने कहा, ‘‘तुम गाय खाती हो. हम लोग तो उसे पूजते हैं.’’ सितारा ने कहा, ‘‘खाने को क्या गाय ही रह गई है. बकरा, मुरगा, मछली सब तो हैं. मैं अपने धर्म को जितना मानती हूं उतना ही दूसरे धर्म का सम्मान करती हूं. मैं पहले तुम्हारी सहेली हूं, बाद में मुसलमान. क्यों? किसी ने कुछ कहा है? भरोसा नहीं है मुझ पर?’’

‘‘नहींनहीं, गंभीर मत हो. ऐसे ही पूछ लिया.’’

‘‘दिल साफ कर लो. पूछने में क्या एतराज करना.’’

‘‘तुम पाकिस्तान की तरफ हो?’’

‘‘ऐसा आरोप लगाया जाता है हम पर.’’

‘‘कभी माहौल बिगड़ा तो क्या करोगी?’’

‘‘तुम्हारे घर आ जाऊंगी, क्योंकि मुझे भरोसा है तुम पर. तुम मेरी और मेरे परिवार की रक्षा करोगी. कभी तुम पर मुसीबत आई तो मैं तुम्हारे परिवार की रक्षा करूंगी,’’ और दोनों सहेलियों की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘तुम्हारा बेटा अजय, मुसलमान विरोधी क्यों है? उसे समझाओ.’’

‘‘वह सब समझता है. कहता है, राजनीति है. बस और कुछ नहीं. लेकिन सुना है तुम्हारा बेटा हिंदू विरोधी है?’’

‘‘नहीं रे, वह तो हिंदुओं के डर के कारण मात्र मुसलिम संघों से जुड़ा है. केवल दिखाने के लिए. बाकी वह समझता सब है. हम एक ही देश के रहने वाले पड़ोसी हैं एकदूसरे के. चलो, कोई और बात करो. इन बातों से हमारा क्या लेनादेना.’’ और फिर वे वर्मा की बेटी, गफूर का नौकरानी से निकाह, बहुओं की तानाशाही, बेटों की धनलोलुपता, अपने पोतेपोतियों के स्नेह पर चर्चा करने लगीं. समाज में फैली अश्लीलता, बेहूदा गीत, संगीत पर भी उन्होंने चर्चा की. अपनी जवानी, बचपन को भी याद किया और बुढ़ापे की इस उम्र में सत्संग आदि पर भी चर्चा की. लेकिन आनंद उन्हें दूसरों की बहूबेटियों के विषय में बात करने में ही आता था. पराए मर्दों के अवैध संबंधों में जो रस मिलता वह दुनिया में और कहां था.

तारा ने कहा, ‘‘मेरा पोता 20 साल का हो चुका है. खुद को शाहरुख खान समझता है.’’

सितारा ने कहा, ‘‘मेरी पोती भी 18 साल की हो गई. अपनेआप को करीना कपूर समझती है.’’

तारा ने कहा, ‘‘एक विचार आया मन में. कहो तो कहूं. बुरा मत मानना, मैं जानती हूं संभव नहीं और ठीक भी नहीं.’’

सितारा ने कहा, ‘‘यही आया होगा कि मेरी पोती शबनम और तुम्हारे पोते अजय की जोड़ी क्या खूब रहेगी? मेरे मन में आया कई बार. लेकिन हमारे हाथ में कहां कुछ है. कितने हिंदूमुसलिम लड़केलड़कियों ने शादी की. वे बड़े लोग हैं. उन की मिसालें दी जाती हैं. हम मिडिल क्लास. हम करें तो धर्म, जात से बाहर. हमारे यहां तो औरतें बच्चा पैदा करने की मशीन भर हैं. जमाने भर के नियमकायदे. फिर पुरुष को 4 शादियों की छूट. तुम्हारे यहां अच्छा है कि एक शादी.’’

तारा ने कहा, ‘‘लेकिन हमारे यहां दहेज जैसी प्रथा भी है. हर धर्म में अच्छाई और बुराई हैं. खैर, यह बताओ कि वर्मा की बेटी का कुछ पता चला? क्या सचमुच एबौर्शन हुआ था उस का? उस के मातापिता शादी क्यों नहीं कर देते उस लड़के से?’’

सितारा ने कहा, ‘‘वर्मा ठहरे कायस्थ. ऊंची जात के. वे कहते हैं मर जाएंगे लेकिन छोटी जात से शादी नहीं करेंगे.’’

‘‘इतना खयाल था तो ध्यान रखना था. अब लड़की तो उसी जात की हो गई जिस जात वाले के साथ सो गई थी. अब अपनी जात में करेंगे तो यह तो धोखा होगा उस लड़के के साथ. अगर लड़के को पता चल गया तो शादी के बाद फिर क्या होगा. धक्के मार कर भगा देगा.’’

तारासितारा की गपें चलती रहतीं. इसी बीच उन के पोते, पोती की भी आंखें लड़ गईं. उन में प्यार हो गया. कब हो गया, कैसे हो गया, उन्हें भी पता न चला. चुपकेचुपके निहारते रहे. फिर ताकने लगे धीरेधीरे, फिर मुसकराने लगे और दीवाने दिल मचलने लगे. बात हुई छोटी सी. फिर बातें हुईं बहुत सी. प्यार परवान चढ़ा. दिल बेकरार हुए और पाने को मचल उठे एकदूसरे को. फिर दोनों ने इकरार किया. फिर तो बातों का सिलसिला चल निकला. मुलाकातें होने लगीं दुनिया से छिप कर, मरमिटने की कसमें खाईं. दुनिया से न डरने की, साथ जीनेमरने की ठान ली. और एक दिन दुनिया को पता चला तो तूफान आ गया. बुजुर्ग बातें करते हैं. अधेड़ धर्म और समाज की चिंता करते हैं. नौजवान प्यार करते हैं. पहले एक परिवार ने दूसरे को चेतावनी दी. अपनेअपने बच्चों को डांटाफटकारा. उन पर पहरे लगाए. पहरेदार जागते रहे और प्यार करने वाले भाग खड़े हुए. किसी को समाज से निष्कासन की सजा मिली. किसी पर फतवा जारी हुआ. बच्चों ने दूर कहीं शादी कर के घर बसा लिया और अपनेअपने परिवार के साथ थाने में भी सूचना भिजवा दी ताकि लड़की भगाने, अपहरण, बलात्कार जैसी रिपोर्ट दर्ज न हों. समाज पर थूक कर चले गए दोनों. दोनों परिवार कसमसा कर रह गए.

तारासितारा का मिलना बंद हो गया. दोनों को खरीखोटी सुनने को मिलीं, ‘सब तुम लोगों की वजह से. कहीं का नहीं छोड़ा. दिखा दी न अपनी जात, औकात.’ तारासितारा ने भी बचपन की दोस्ती खत्म कर ली. हिंदूमुसलिम दंगों का सवाल ही पैदा नहीं हुआ. बाकायदा कोर्ट मैरिज की थी दोनों ने. फसाद का कोई मौका ही नहीं दिया कमबख्तों ने. कट्टरपंथी मन मसोस कर रह गए. दूसरों पर हंसने वाली तारा और सितारा पर आज दूसरों के साथ उन के घर वाले भी हंस रहे थे. लानतें भेज रहे थे. 2 घनिष्ठ सखियों की दोस्ती समाप्त हो चुकी थी हमेशाहमेशा के लिए.

एक कट्टरपंथी ने सलाह दी, ‘‘भाईजान, हिंदू महल्ले में रहने का अंजाम देख लिया. आज लड़की गई है, कल…ऐसा करें, मकान बेचें और मोमिनपुरा चलें. अपनों के बीच.’’

शर्म और जिल्लत से बचने के लिए अपनी जान से प्यारी लड़की को मृत मान कर सितारा अम्मी सहित वह घर बेच कर मोमिनपुरा चली गईं. ऐसा नहीं है कि मोमिनपुरा की लड़कियों ने हिंदू लड़कों से और बजरंगपुरा की लड़कियों ने मुसलिम लड़कों से विवाह न किया हो, लेकिन जिस पर गुजरी वही नफरत पालता है. बच्चों ने मातापिता को फोन किया. विवाह स्वीकारने का निवेदन किया लेकिन दोनों घर के मिडिल क्लास दरवाजे बंद हो चुके थे उन के लिए. बच्चों ने न आना ही बेहतर समझा. वे अपने दकियानूसी विचारों वाले परिवारों को जानते थे. तारा और सितारा दो जिस्म एक जान थीं. बचपन की सहेलियां. अलगअलग हो कर भी एकदूसरे को याद करतीं. एकदूसरे की याद में आंसू बहातीं. वह दिनदिन भर बतियाना, एकदूसरे को पान खिलाना, चायनाश्ता करवाना, गपें करने का हर संभव बहाना तलाशना. मीठी ईद की सेंवइयां, दीवाली की मिठाई. लेकिन क्या करें, धर्म के पहरे, समाज की चेतावनी के आगे दोनों बुजुर्ग सहेलियां मजबूर थीं. इश्क की कोई जात नहीं होती. प्यार का कोई धर्म नहीं होता. दिल से दिल का मिलन, प्रेमियों का हो या सखियों का, कहां टूटता है. पहरे शरीर पर होते हैं मन और विचारों पर नहीं. अपने अहं और जिद की वजह से दोनों परिवारों और समाज के लोगों ने उन्हें शेष जीवन मिलने तो नहीं दिया पर सुना है कि अंतिम समय तारा की जबान पर सितारा का नाम था और सितारा ने तारा कह कर अंतिम सांस ली थी. यह भी सुना है कि दोनों की मृत्यु एक ही दिन लगभग एक ही समय हुई थी. 2 बुजुर्ग सहेलियों में इतना प्रेम देख कर मातापिता ने धर्म की दीवार तोड़ कर, मजहब के ठेकेदारों को ठोकर मारते हुए अजय को अपना दामाद और शबनम को अपनी बहू स्वीकार कर लिया था और उन से निवेदन किया था कि वे घर वापस आ जाएं.

#coronavirus: लॉकडाउन में बंद होने से मानसिक बीमारी से कैसे बचें

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि घर में बंद होने पर ऐसी खबरों से बचें जो आप को परेशान करती हैं, इन में कोरोना से जुड़ी खबरें भी शामिल हैं.

घर पर बंद होने से कोरोना वायरस से तो बच जाएंगे, लेकिन मानसिक बीमारी से बचना मुश्किल होगा. कोरोना महामारी के चलते दुनिया लगभग थम सी गई है. देशव्यापी लॉकडाउन के चलते लोग घरों में सिमटे हुए हैं. ऐसे में बोरियत होना स्वाभाविक है.

सावधानी बरतें
लंबे समय तक घर में बंद होने का असर बोरियत से आगे बढ़ कर मानसिक परेशानियों में भी बदलने लगा है. दुनिया भर में बड़ी संख्या में लोग एंग्जायटी यानी घबराहट और अन्य मानसिक तकलीफों की शिकायत करने लगे हैं. अमेरिका, इटली, चीन समेत कई देशों में इस से जुड़ी एडवाइजरी और हेल्पलाइन नंबर भी जारी किए गए हैं. भारत जैसे देश में जहां पहले ही मानसिक बीमारियों के प्रति जागरुकता कम है, वहां थोड़ा ज्यादा ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है. लेकिन सरकारी या किसी बाहरी मदद के पहले कुछ सावधानियां व्यक्तिगत स्तर पर भी रखी जा सकती हैं.

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भ्रमित और बेचैन न हों

अकेलेपन पर हुए शोधों  में पाया कि कोरोना वायरस के चलते घरों में बंद पड़े स्वस्थ लोगों में कई बदलाव देखे गए हैं. इस के नतीजे बताते हैं कि लंबे समय तक अकेले रहने का असर दिमाग पर ठीक वैसा ही होता है जैसा किसी दुखद त्रासदी का होता है. ऐसे में अगर व्यक्ति तक लगातार परेशान करने वाली खबरें भी पहुंच रही हैं तो वह ज्यादा भ्रमित और बेचैन होगा. इससे उसके मानसिक रूप से बीमार होने की आशंका बढ़ सकती है.

तनाव बना सकता है मानसिक रोगी

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी एडवाइजरी में कहा गया है कि ऐसी खबरों को देखने, सुनने और पढ़ने से बचें जो आप को परेशान करती हों. इन में कोरोना वायरस से जुड़ी जानकारियां भी शामिल है. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि बेहतर होगा, अगर कोरोना से संबंधित जानकारी के लिए दिन में केवल दो बार किसी विश्वसनीय माध्यम का इस्तेमाल किया जाए. लगातार परेशान करने वाली खबरों का लोगों तक पहुचाना उन में तनाव का स्तर बढ़ा कर उन्हें मानसिक रोगी बना सकता है.

स्थिति से करें समझौता

मनोविश्लेषक सलाह देते हैं कि तनाव से बचने का एक तरीका स्थितियों को स्वीकार कर लेना भी है. हो सकता है कि कोरोना वायरस से पैदा हुई इस आपात स्थिति में कुछ लोग मानसिक या शारीरिक परेशानियों के साथ-साथ आर्थिक नुकसान भी उठा रहे हों. ऐसे में केवल यह याद रखे जाने की जरूरत है कि जान है तो जहान है. हो सकता है, कुछ लोगों को यह समाधान स्थितियों का अति-सरलीकरण लगे लेकिन फिलहाल कोई और विकल्प मौजूद नहीं है. अगर आर्थिक नुकसान नहीं है और केवल डर या बेचैनी है तो यह मान लेने में कोई बुराई नहीं कि आपको डर लग रहा है. मनोविज्ञान कहता है कि ऐसा करते ही दिमाग डर की बजाय डर के कारण और उस से निपटने के तरीकों पर केंद्रित हो जाता है. एक बार तनाव के कारणों को पहचान लेने के बाद इससे बाहर आने के लिए, प्रोग्रेसिव मसल्स रिलेक्सेशन और ध्यान जैसे तरीके ऑनलाइन सीखे जा सकते हैं.

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बच्चों को भी सजग करें

इस मामले में उन लोगों को खास तौर पर ध्यान देने की ज़रूरत है जिन के घरों में बच्चे हैं. माता-पिता के लगातार परेशान होने का असर बच्चों पर बहुत जल्दी और बुरा पड़ता है. जानकार सलाह देते हैं कि बच्चों के साथ भी कोरोना वायरस के बारे में बात किए जाने की ज़रूरत है ताकि उन्हें पता चल सके कि घर और बाहर का माहौल क्यों बदला हुआ है. साथ ही, उन्हें यह बताना भी ज़रूरी है कि बहुत सी बातें आपके यानी माता-पिता के नियंत्रण में भी नहीं होती हैं.

एक्सरसाइज स्वस्थ रखने के साथसाथ तनाव कम करने में भी सहायक

मनोविज्ञानियों का मानना है कि अच्छी नींद, पोषक भोजन, साफ वातावरण, व्यायाम और लोगों से मेल-जोल इंसान की मूलभूत ज़रूरतें हैं, इसलिए इस के विकल्प तलाशे जाने की ज़रूरत है. उदारहरण के लिए अपने घर वालों या दोस्तों से लगातार फोन पर संपर्क रखना या वीडियो चैट करना, दोनों तरफ के लोगों को सामान्य बने रहने में मदद करेगा. इस के अलावा भूलेबिसरे दोस्तों या कभी न मिलने वाले रिश्तेदारों को फोन कर उन के हालचाल जाने जा सकते हैं. कुछ जानकार खाना खुद बनाने से ले कर घर की सफाई करने या बाकी घरेलू काम निपटाने के विकल्प का भी इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं. चूंकि ये काम सातों दिन चलते हैं इसलिए इन के साथ खुद को रोज व्यस्त रखना आसान है. इस के अलावा, वे लोग जो हमेशा समय की कमी के चलते स्वास्थ्य पर ध्यान न देने की बात करते हैं, कम से कम इन दिनों में एक्सरसाइज आदि को अपना सकते हैं. यह स्वस्थ रखने के साथसाथ तनाव कम करने में भी सहायक होगा.

यूट्यूब और ऑनलाइन ट्यूटोरियल खासे मददगार

कोरोना वायरस से बिगड़ी स्थिति को संभलने में अभी थोड़ा वक्त और लग सकता है. इसलिए  इस वक्त का इस्तेमाल करने के लिए मनोविश्लेषक किसी म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट, कोई नई भाषा या फिर कैलिग्राफी या बीटबॉक्सिंग जैसा कोई कौशल सीखने की भी सलाह देते हैं. इस से व्यस्त रहने के साथसाथ कुछ करने की संतुष्टि भी बनी रहती है. इस में यूट्यूब और ऑनलाइन ट्यूटोरियल खासे मददगार साबित हो सकते हैं. इन सब के अलावा पेंटिंग, राइटिंग, कुकिंग या सिलाई-बुनाई जैसे तमाम शौक पूरे करने का भी यह बहुत अच्छा वक्त है.

पत्रिकाएं ज्ञान का खजाना

पत्रिकाएं और किताबें इंटरनेट पर मौजूद ज्ञान का खजाना हैं, एमेजॉन प्राइम और नेटफ्लिक्स जैसे मंचों पर मौजूद शानदार कंटेट भी वक्त बिताने का बेहतरीन जरिया हो सकते हैं. इस मामले में सलाह दी जाती है कि फिल्में देखने या किताबें पढ़ने जैसे काम अगर लगातार कई दिनों तक किए जाएं तो वे भी तनाव बढ़ाने लगते हैं. इसलिए इन्हें करना अच्छा है लेकिन थोड़ा ब्रेक ले कर. वैसे, यह बात सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर भी पूरी तरह लागू होती है लेकिन फिर भी कुछ इस तरह के मज़ेदार वीडियोज तो देखे ही जा सकते हैं.

#coronavirus: और भी वायरस हैं कोरोना के सिवा

संकट से खतरे उभरते हैं तो कुछ अवसर भी. यह निर्भर करता है इंसानों पर कि वे उस संकट में अपने लिए कैसे अवसर ढूंढते हैं.

फासीवादी, तानाशाह, सांप्रदायिक व ऐसी ही प्रवृत्ति के महत्वाकांक्षी और स्वार्थी लोग, जिनके दिलों में फासीवादी बनने की इच्छा होती है,  गंभीर संकटों में न केवल अपने षड्यंत्रकारी कृत्यों को जारी रखते हैं बल्कि इन संकटों को अपने लिए अवसर मानते हुए कृत्यों में और तेज़ी ले आते हैं. वे समझते हैं कि दुनिया संकट में उलझी हुई है, इसलिए वे जो कुछ भी करेंगे उस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आएगी.

बुनियादी तौर पर इसका मतलब यह निकलता है कि दुनिया में बढ़ता वायरसरूपी संकट तानाशाही सोच को तेज़ी से पनपने में मदद कर रहा है. हंगरी के नेता विक्टर ओर्बन का उदाहरण ही ले लीजिए, जिन्होंने सार्वजनिक भावना का सहारा लिया और सत्ता को प्राप्त करने के लिए क्रूरतापूर्ण तरीक़े से इस वायरस को अपना हथियार बनाया और हंगरी के बचे-खुचे लोकतांत्रिक चेहरे को भी अपनी इस कार्यवाही से तबाह कर दिया. जिस सदन में वे दो-तिहाई बहुमत रखते हैं उसी के सामने खड़े होकर उन्होंने हंगरी को कोरोना वायरस से बचाने के नाम पर खुद के लिए असीमित अधिकार के प्रस्ताव को पारित कराया, जिसके अनुसार अब उनके पास ऐसे बहुत से अधिकार होंगे कि जिनका कोई उल्लेख भी नहीं है और न ही उनकी कोई निगरानी कर सकता है.

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सभी चुनावों और जनमत संग्रह को रद्द करने के साथ ही विक्टर ओर्बन को अब यह अधिकार प्राप्त हो गया है कि वे कोरोना वायरस से निपटने के उनकी सरकार के प्रयासों की आलोचना करने वालों को 5 वर्षों के लिए जेल में डाल दें.  झूठ क्या है और क्या नहीं, इसका फ़ैसला वे ख़ुद करेंगे. इसके अलावा कोरोना वायरस का संकट कब समाप्त होगा और कब उनके अधिकार समाप्त होंगे, इसका फ़ैसला भी वे ख़ुद ही लेंगे. इसलिए यह कहा जा रहा है कि जब तक विक्टर ओर्बन हैं तब तक अब हंगरी से यह संकट समाप्त नहीं होने वाला. फिलीपींस में भी कुछ इसी तरह की स्थिति देखने को मिल रही है.

यहां पर कुछ लोग यह सवाल कर सकते हैं कि तानाशाही सोच संकट से निपटने में सकारात्मक भूमिका निभाती है, जैसा कि चीन में यह देखा गया है, तो फिर इस सोच का इस्तेमाल करने में क्या बुराई है? जवाब यह है कि संकट को रोकने के लिए हमें आवश्यकता के अनुसार हर तरह के फ़ैसले लेने और क़दम उठाने चाहिए लेकिन मानवीय अधिकारों का ख़्याल करते हुए क्योंकि हम ये सभी कार्यवाहियां और फ़ैसले मानवता की रक्षा के लिए कर रहे होते हैं. लेकिन वहीं, अगर फ़ैसलों से इंसानों को और अधिक नुक़सान पहुंचने लगे तो हमें ज़रूर देखना चाहिए कि हमारे फ़ैसले सही हैं या नहीं.

दूसरी ओर दुनिया में नफ़रत की राजनीति और घृणा का व्यापार करने वाले भी संकट के समय स्वार्थी व साजिशी अवसर खोज लेते हैं. हमारे देश भारत में नोवल कोरोना वायरस का संकट आते ही इस तरह के लोग सक्रिय हो गए. घातक वायरस को सांप्रदायिक रंग देकर वे नफ़रत फैलाने लगे.

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ऐसे कामों में हमेशा की तरह आगे-आगे रहने वाले कुछ कट्टरपंथी गुटों और उनके समर्थक मीडिया का उदाहरण लिया जा सकता है. पहले से ही सांप्रदायिक तनाव को भड़काने और एक समुदाय विशेष को बुरा दिखाने की ताक में रहने वाले गोदी मीडिया और कट्टरपंथी गुटों को कोरोना वायरस के नाम पर एक अवसर हाथ लगा है. मीडिया और कट्टरपंथी गुट कोरोना वायरस के फैलाव के सभी कारणों को भुलाकर इसकी तोहमत पूरेतौर एक समुदाय विशेष पर लगाने में जुट गए. समाज में जहर घोलने और नफरत पैदा करने व फैलाने वाले कट्टरपंथी संगठनों के कार्यकर्ता झूठी ख़बरों, पहले की तस्वीरों और वीडियो को प्रकाशित करके पूरे देश में कोरोना वायरस के लिए एक समुदाय को ज़िम्मेदार बताने की साज़िशों में आगे आ गए हैं.

याद रहे कि झूठी ख़बरों यानी अफवाहों का वास्तविक प्रभाव होता है. यही कारण है कि छोटे शहरों और गांवों से इस वायरस के फैलाव का ज़िम्मेदार समुदाय विशेष को ठहरा कर, उसके मानने वालों के ख़िलाफ़ हिंसा की ख़बरें आने लगीं.

और नज़र डालें, तो अमेरिका इस वायरस का ग़लत फ़ायदा उठाने के साथ ईरान पर और अधिक प्रतिबंध लगाकर जहां ईरानी राष्ट्र को कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ जंग में हराने की नाकाम कोशिश कर रहा है वहीं ज़ायोनी शासन (इस्राईल) दुनिया में फैली इस महामारी को अपने स्वार्थ के लिए अवसर मानते हुए फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ अत्याचारपूर्ण कार्यवाही में लगातार वृद्धि कर रहा है.

कुला मिलाकर, दुनिया के अधिकतर देश जहां कोरोना वायरस से लड़ने के लिए अलग-अलग शोध और उपाय ढूंढ रहे हैं वहीं दुनिया की फासीवादी व सांप्रदायिक ताकतें इसे अपने लिए स्वार्थी अवसर मानते हुए अपनी साज़िशों को परवान चढ़ा रही हैं. सो, दुनिया के लिए मौका है कि वह फासीवादी ताकतों और सांप्रदायिक गुटों को पहचाने और एकजुट होकर इनके ख़िलाफ़ ऐसे क़दम उठाए कि धरती कोरोना वायरस के साथ-साथ इन वायरसों से भी नजात पा जाए.

19 दिन 19 टिप्स: सिंधी कोकी

सिंधी कोकी एक मशहूर सिंधी डिश है. यह पराठा या चिल्ला जैसा होता है. इसको बनाने का तरीका और इसमे पड़ने वाली सामग्री बहुत रिच होती है. सिंधी परिवार खाने को किसी फ़ूड फेस्टिवल से कम इंजॉय नहीं करते है. सिंधी फ़ूड बहुत टेस्टी होता है. देश मे सबसे टेस्टी और हेल्दी खाना सिंधी फ़ूड ही होता है.

कोकी बनाने की आवश्यक सामग्री
गेहूं का आटा – 1 कप ( 150 ग्राम)
घी – 3-4 टेबल स्पून
हरा धनियां – 2-3 टेबल स्पून (बारीक कटा हुआ)
पुदीना के पत्ते – 2 टेबल स्पून
अदरक – 1 छोटी चम्मच (कद्दूकस किया हुआ)
हरी मिर्च – 1 बारीक कटी हुई
हल्दी पाउडर – 1 पिंच
हींग – 1 पिंच
जीरा – ¼ छोटी चम्मच
अनारदाना – ¼ छोटी चम्मच
अजवायन – ¼ छोटी चम्मच से कम
काली मिर्च – ¼ छोटी चम्मच से कम (कुटी हुई)
नमक – ¼ छोटी चम्मच से थोड़ा सा ज्यादा या स्वादानुसार

कोकी बनाने की विधि :
एक बड़े बर्तन में आटा ले लीजिए इसमें हल्दी पाउडर, अजवायन, जीरा, हरी मिर्च, अदरक, काली मिर्च, नमक, अनार दाना, हींग, हरा धनिया, पुदीना और 1 टेबल स्पून घी डालकर इन सभी चीज़ों को अच्छी तरह से मिलाते हुए पानी की मदद से परांठे के लिये जिस तरह का नरम आटा गूंथा जाता है, उसी तरह का आटा गूंथकर तैयार कर लीजिए. गूंथे आटे को 10- 15 मिनिट तक के लिए ढककर के रख दीजिये ताकि आटा फूल कर सैट हो जाय.

आटे को मसल-मसल कर चिकना कर लीजिये. तवे को गरम होने के लिए गैस पर रख दीजिए. गुंथे हुये आटे से थोड़ा सा आटा निकालिये और गोल लोई बना लीजिये. लोई को सूखे आटे में लपेट कर 3- 4 इंच के व्यास में गोल बेल लीजिये, अब इस बेली हुई चपाती को गर्म तवे पर डाल दीजिए.

दो सखियां: भाग 2

‘‘वैसे कहां तक पहुंचा था तुम्हारा प्यार?’’

‘‘बस, हाथ पकड़ने से ले कर चूमने तक.’’

सितारा ने फिर वर्मा की लड़की का जिक्र छोड़ कर अपनी करतूत पर परदा डालते हुए कहा, ‘‘वर्मा की लड़की के तो मजे हैं. देखना भागेगी एक न एक दिन.’’

‘‘हां, लेकिन हमें क्या लेनादेना. भाड़ में जाए. एक बात जरूर है, है बहुत सुंदर. जब लड़की इतनी सुंदर है तो कोई न कोई तो पीछे पड़ेगा ही. अब बाकी दारोमदार लड़की के ऊपर है.’’

‘‘क्या खाक लड़की के ऊपर है. देखा नहीं, उस का शरीर कैसा भर गया है. ये परिवर्तन तो शादी के बाद ही आते हैं.’’

‘‘हां, लगता तो है कि प्यार की बरसात हो चुकी है. एक हम हैं कि तरसते रहे जीवनभर लेकिन जिस पर दिल आया था वह न मिला. कमीने के कारण पूरे गांव में बदनाम हो गई और शादी की बात आई तो मांबाप का आज्ञाकारी बन गया. श्रवण कुमार की औलाद कहीं का.’’

‘‘वह जमाना और था. आज जमाना और है. आज तो लड़केलड़की कोर्ट जा कर शादी कर लेते हैं. कानून भी मदद करता है. हमारे जमाने में ये सब कहां था?’’

‘‘होगा भी तो हमें क्या पता? हम ठहरे गांव के गंवार. आजकल के लड़केलड़कियां कानून की जानकारी रखते हैं और समाज को ठेंगा दिखाते हैं. काश, हम ने हिम्मत की होती, हमें ये सब पता होता तो आज तेरा जीजा कोई और होता.’’

‘‘मैं तो मांबाप के सामने स्वीकार भी न कर सकी. उस के बाद भी भाइयों को पता नहीं क्या हुआ कि बेचारे के साथ खूब मारपीट की. अस्पताल में रहा महीनों. इस बीच मेरी शादी कर दी. मैं क्या विरोध करती, औरत जात हो कर.’’

‘‘सच कहती हो. जिस खूंटे से मांबाप ने बांध दिया, बंध गए. आजकल की लड़कियों को देख लो.’’

‘‘अरी बहन, लड़कियां क्या, शादीशुदा औरतों को ही देख लो. एकसाथ दोदो. घर में पति, बाहर प्रेमी. इधर, पति घर से निकला नहीं कि प्रेमी घर के अंदर. क्या जमाना आ गया है.’’ बातचीत हो ही रही थी कि तभी बाहर से आवाज आई, ‘‘दादी ओ दादी.’’

‘‘लो, आ गया बुलावा. अब जाना ही पड़ेगा.’’

‘‘तुम क्या कह रही थीं?’’

‘‘अब, कल बताऊंगी. अभी चलती हूं.’’

अगले दिन वे फिर मिलीं.

तारा ने कहा, ‘‘सुना है पाकिस्तान के राष्ट्रपति को पुलिस ने पकड़ लिया.’’

सितारा ने कहा, ‘‘पाकिस्तान अजीब मुल्क है जहां राष्ट्रपति को पुलिस पकड़ लेती है. भारत में किसी पुलिस वाले की हिम्मत नहीं कि राष्ट्रपति पर उंगली भी उठा सके. यहां पुलिस वाले तो बस गरीबों को ही पकड़ते हैं.’’

‘‘अरे छोड़ो ये सब, यह बताओ, कल क्या कहने वाली थीं?’’ सितारा याद करने की कोशिश करती है लेकिन उसे याद नहीं आता. फिर वह बातों में रस लाने के लिए काल्पनिक बात कहती है, ‘‘हां, मैं कह रही थी कि वर्मा की बिटिया कल छत पर उलटी कर रही थी. कहीं पेट से तो नहीं है?’’

‘‘हाय-हाय, वर्माजी के मुख पर तो कालिख पुतवा दी लड़की ने. घर वालों को तो पता ही होगा.’’

‘‘क्यों न होगा. उस के मांबाप के चेहरे का रंग उड़ा हुआ है. रात में घर से चीखने की आवाजें आ रही थीं. बाप चिल्ला रहा था कि नाक कटवा कर रख दी. क्या मुंह दिखाऊंगा लोगों को. और लड़की सुबकसुबक कर रो रही थी. आज देखा कि वर्माइन अपनी बेटी को बिठा कर रिकशे पर ले जा रही थीं. दोनों मांबेटी के चेहरे उतरे हुए थे. जरूर बच्चा गिराने ले जा रही होगी.’’

‘‘क्या सच में?’’

‘‘तो क्या मैं झूठ बोलूंगी. धर्म कहता है झूठ बोलना गुनाह है, जैसे शराब पीना गुनाह है.’’

‘‘लेकिन क्या मुसलमान शराब नहीं पीते?’’

‘‘अरे, अब धर्म की कौन मानता है. जो पीते हैं वे शैतान हैं.’’

‘‘जीजा भी तो पीते थे.’’ सितारा ने दोनों कान पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘तौबातौबा, कभीकभी दोस्तों के कहने पर पी लेते थे. अब मृतक के क्या दोष निकालना. बहुत भले इंसान थे.’’

‘‘लेकिन मैं ने तो सुना है कि पी कर कभीकभी तुम्हें पीटते भी थे?’’

‘‘किस से सुना है? नाम बताओ उस का?’’ सितारा ने गुस्से में कहा तो फौरन तारा ने उसे पान लगा कर दिया. सितारा ने पान मुंह में रखते हुए कहा, ‘‘अब आदमी कभीकभी गुस्से में अपनी औरत को पीट देता है. मियांबीवी के बीच में थोड़ीबहुत तकरार जरूरी भी है. मैं भी कहां मुंह बंद रखती थी. पुलिस वालों की तरह सवाल पर सवाल दागती थी, ‘देर क्यों हो गई, कहीं किसी के साथ चक्कर तो नहीं है?’’’

‘‘था क्या कोई चक्कर?’’

‘‘होता तो शादी नहीं कर लेते. हमारे मर्दों को 4 शादियों की छूट है. लेकिन मेरा मर्द बाहर चाहे जो करता हो, घर पर कभी किसी को नहीं लाया.’’

फिर थोड़ी देर खामोशी छा जाती. इतने में चायनाश्ता हो जाता. वे फिर तरोताजा हो जातीं और सोचतीं कि कहां से शुरू करें. आखिर 2 औरतें कितनी देर खामोश रह सकती हैं.

‘‘तुम अपनी कहो, कल बहू चिल्ला क्यों रही थी?’’

‘‘अरे, पतिपत्नी में झगड़ा हो गया था किसी बात को ले कर. थोड़ी देर तो मैं सुनती रही, फिर जब नीचे आ कर दोनों को डांटा तो बोलती बंद दोनों की.’’ यह तो तारा ही जानती थी कि जब उस ने पूछा था कि क्या हो गया बहू? तो बहू ने पलट कर जवाब दिया था, ‘अपने काम से काम रखो, ज्यादा कान देने की जरूरत नहीं है. अपने लड़के को समझा लो कि शराब पी कर मुझ पर हाथ उठाया तो अब की रिपोर्ट कर दूंगी दहेज की. सब अंदर हो जाओगे.’

‘‘लेकिन मुझे तो सुनने में आया कि कोई दहेज रह गया था, उस पर…’’

तारा ने बात काटते हुए कहा, ‘‘हम क्या इतने गएगुजरे हैं कि बहू को दहेज के लिए प्रताडि़त करेंगे. किस से सुना तुम ने…सब बकवास है. अब झगड़े किस घर में नहीं होते. हमारा आदमी हमें पीटता था तो हम चुपचाप रोते हुए सह लेते थे. पति को ही सबकुछ मानते थे. लेकिन आजकल की ये पढ़ीलिखी बहुएं, थोड़ी सी बात हुई नहीं कि मांबाप को रो कर सब बताने लगती हैं. रिपोर्ट करने की धमकी देती हैं. ऐसे कानून बना दिए हैं सरकार ने कि घरगृहस्थी चौपट कर दी. सत्यानाश हो ऐसे कानूनों का.’’

‘‘हां, सच कहती हो. घरपरिवार के मामलों में सरकार को क्या लेनादेना. जबरदस्ती किसी के फटे में टांग अड़ाना.’’

तारा ने आंखों में आंसू भरते हुए कहा, ‘‘घर तो हम जैसी औरतों की वजह से चलते हैं. बाहर आदमी क्या कर रहा है, हमें क्या लेनादेना लेकिन आजकल की औरतें तो अपने आदमी की जासूसी करती हैं. वह क्या कहते हैं…मोबाइल, हां, उस से घड़ीघड़ी पूछती रहती हैं, कहां हो? क्या कर रहे हो, घर कब आओगे? अरे आदमी है, काम करेगा कि इन को सफाई देता रहेगा. हमारा आदमी बाहर किस के साथ था, हम ने कभी नहीं पूछा.’’ यह तो तारा ने नहीं बताया कि पूछने पर पिटाई हुई थी कई दफा. उस का आदमी बाहर किसी औरत को रखे हुए था. घर में कम पैसे देता था. कभीकभी घर नहीं आता था. आता तो शराब पी कर. पूछने पर कहता कि मर्द हूं. एक रखैल नहीं रख सकता क्या. तुम्हें कोई कमी हो तो कहो. दोबारा पूछताछ की तो धक्के दे कर भगा दूंगा. उस ने अपने आंसुओं को रोका. पानी पिया. पिलाया. फिर पान का दौर चला.

‘‘अरे तारा, कल बेटा पान ले कर आया था बाजार से. लाख महंगा हो, एक से एक चीजें पड़ी हों सुगंधित, खट्टीमीठी लेकिन घर के पान की बात ही और है.’’

‘‘क्या था ऐसा पान में? क्या तुम ने देखा था?’’

‘‘हां, जब बेटे ने बताया कि पूरे 20 रुपए का पान है. ये बड़ा. तो इच्छा हुई कि आखिर क्या है इस में? खोला तो बेटे से पूछा, ‘ये क्या है?’ तो बेटे ने बताया कि अम्मी, यह चमनबहार है, यह खोपरा है, यह गुलकंद है, यह चटनी है. और भी न जाने क्याक्या. लेकिन अच्छा नहीं लगा, एक तो मुंह में न समाए. उस पर खट्टामीठा पान. अरे भाई, पान खा रहे हैं कोई अचार नहीं. पान तो वही जो पान सा लगे, जिस में लौंग की तेजी, इलाइची की खुशबू, कत्था, चूना, सुपारी हो. ज्यादा हुआ तो ठंडाई और सौंफ. बाकी सब पैसे कमाने के चोंचले हैं.’’ यह नहीं बताया सितारा ने कि उन्हें शक हो गया था कि जमीनमकान के लोभ में कहीं बेटा पान की आड़ में जहर तो नहीं दे रहा है. सो, उन्होंने पान खोल कर देखा था. जब आश्वस्त हो गईं और आधा पान बहू को खिला दिया, तब जा कर उन्हें तसल्ली हुई. बेटेबहू काफी समय से गांव की जमीन बेचने के लिए दबाव बना रहे थे.

दो सखियां: भाग 1

माहौल कोई भी हो, मौसम कैसा भी हो, दुनिया जाए भाड़ में, उन्हें कोई मतलब नहीं था. वे दोनों जब तक 3-4 घंटे गप नहीं लड़ातीं, उन्हें चैन नहीं पड़ता. उन्हें ऐसा लगता कि दिन व्यर्थ गया. उन्हें मिलने व एकदूसरे से बतियाने की आदत ऐसी पड़ गई थी जैसे शराबी को शराब की, तंबाकू खाने वाले को तंबाकू की. उन्हें आपस में एकदूसरे से प्रेम था, स्नेह था, विश्वास था. एकदूसरे से बात करने की लत सी हो गई थी उन्हें. कोई काम भी नहीं उन्हें. 65 साल के आसपास की इन दोनों महिलाओं को न तो घर में करने को कोई काम था न करने की जरूरत. घर में बहुएं थीं. कमाऊ बेटे थे. नातीपोते थे. इसलिए दोपहर से रात तक वे बतियाती रहतीं. कभी तारा के घर सितारा तो कभी सितारा के घर तारा. वे क्या बात करती हैं, उस पर कोई विशेष ध्यान भी नहीं देता. हां, बहुएं, नातीपोते, चायनाश्ता वगैरा उन के पास पहुंचा देते. दोनों बचपन की पक्की सहेलियां थीं. एक ही गांव में एकसाथ उन का बचपन बीता. थोड़े अंतराल में दोनों की शादी हो गई. जवानी के राज भी उन्हें एकदूसरे के मालूम थे. कुछ तो उन्होंने आपस में बांटे. फिर इत्तफाक यह हुआ कि विवाह भी उन का एक ही शहर के एक ही महल्ले में हुआ.

शादी के बाद शुरू में तो घरेलू कामों की व्यस्तता के चलते उन की बातचीत कम हो पाती लेकिन उम्र के इस मोड़ पर वे घरेलू कार्यों से भी फुरसत पा चुकी थीं. पानदान वे अपने साथ रखतीं. थोड़ीथोड़ी देर बाद वे अपने हाथ से पान बना कर खातीं और खिलातीं. सितारा मुसलिम थी, तारा हिंदू ठाकुर. लेकिन धर्म कभी उन के आड़े नहीं आया. सितारा ने नमाज पढ़ी शादी के बाद, वह भी परिवार के नियमों का पालन करने के लिए, अंदर से उस की कोई इच्छा नहीं थी. जब उन्हें बात करतेकरते दोपहर से अंधेरा हो जाता तो परिवार का कोई सदस्य जिन में नातीपोते ही ज्यादातर होते, उन्हें लेने आ जाते. उन की बात कभी पूरी नहीं हो पाती. सो, वे कल बात करने को कह कर महफिल समाप्त कर देतीं.

अभी सितारा के घर रिश्तेदार आए हुए थे तो महफिल तारा के घर में उस के कमरे में जमी हुई थी. बहू अभीअभी चाय रख कर गई थी. दोनों ने चाय की चुस्कियों से अपनी वार्त्ता प्रारंभ की. सितारा ने शुरुआत की.

‘‘सब ठीक है घर में, मेरे आने से कोई समस्या तो नहीं?’’

‘‘कोई समस्या नहीं. घर मेरा है. मेरे आदमी ने बना कर मेरे नाम किया है. आदमी की पैंशन मिलती है. किसी पर बोझ नहीं हूं. फिर मेरे बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता घर का. तुम कहो, तुम्हारे बहूबेटी को तो एतराज नहीं है हमारे मिलने पर?’’ ‘‘एतराज कैसा? मिल कर चार बातें ही तो करते हैं. अब जा कर बुढ़ापे में फुरसत मिली है. जवानी में तो शादी के बाद बहू बन कर पूरे घर की जिम्मेदारी निभाई. बच्चे पैदा किए, बेटेबेटियों की शादियां कीं. अब जिम्मेदारियों से मुक्त हुए हैं.’’

दोनों के पति गुजर चुके थे. विधवा थीं दोनों. उन के घर मात्र 20 कदम की दूरी पर थे. सितारा ने कहा, ‘‘सुना है कि वर्मा की बेटी का किसी लड़के के साथ चक्कर है.’’

‘‘क्या बताएं बहन, जमाना ही खराब आ गया है. बच्चे मांबाप की सुनते कहां हैं. परिवार का कोई डर ही नहीं रहा बच्चों को.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता चला?’’

‘‘बुढ़ापे में कान कम सुनते हैं. बेटेबहू आपस में बतिया रहे थे.’’

‘‘मैं तो यह तमाशा काफी समय से देख रही हूं. छत पर दोनों एकसाथ आते, एकदूसरे को इशारे करते. उन्हें लगता कि हम लोग बुढि़या हैं, दिखाई तो कुछ देता नहीं होगा. लेकिन खुलेआम आशिकी चले और हमारी नजर न पड़े. आंखें थोड़ी कमजोर जरूर हुई हैं लेकिन अंधी तो नहीं हूं न.’’

‘‘हां, मैं ने भी देखा, ट्यूशनकालेज के बहाने पहले लड़की निकलती है अपनी गाड़ी से, फिर लड़का. हमारे बच्चे अच्छे निकले, जहां शादी के लिए कह दिया वहीं कर ली.’’

‘‘हां बहन, ऐसे ही मेरे बच्चे हैं. मां की बात को फर्ज मान कर अपना लिया.’’ अपनेअपने परिवार की तारीफ करतीं और खो जातीं दोनों. न तो दोनों को कंप्यूटर, टीवी से मतलब था, न जमाने की प्रगति से. वे तो जो देखतीसुनतीं उसे नमकमिर्च लगा कर एकदूसरे को बतातीं. इस मामले में दोनों ने स्वयं को खुशनसीब घोषित कर दिया. तारा ने कहा, ‘‘जब घर में यह हाल है तो बाहर न जाने क्या गुल खिलाते होंगे?’’ सितारा ने कहा, ‘‘मांबाप को नजर रखनी चाहिए, लड़की 24-25 साल की तो होगी. अब इस उम्र में मांबाप शादी नहीं करेंगे तो बच्चे तो ये सब करेंगे ही. कुदरत भी कोई चीज है.’’ तारा ने कहा, ‘‘देखा नहीं, कैसे छोटेछोटे कपड़े पहन कर निकलती है. न शर्म न लिहाज. एक दिन मैं ने पूछा भी लड़की से, ‘क्यों बिटिया, दिनभर तो बाहर रहती हो, घर के कामकाज सीख लो. शादी के बाद तो यही सब करना है.’ तो पता है क्या जवाब दिया?’’

‘‘क्या?’’ सितारा ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘कहने लगी, ‘अरे दादी, मुझे रसोइया थोड़े बनना है. मैं तो आईएएस की तैयारी कर रही हूं. एक बार अफसर बन गई तो खाना नौकर बना कर देंगे.’ फिर मैं ने पूछा कि लड़की जात हो. कल को शादी होगी तो घर में कामकाज तो करने ही पड़ेंगे. वह हंस पड़ी जोर से. कहने लगी, ‘दादी, आप लोगों को तो शादी की ही पड़ी रहती है. कैरियर भी कोई चीज है.’ शादी की बात करते हुए न लजाई, न शरमाई. बेशर्मी से कह कर अपने स्कूटर पर फुर्र से निकल गई.’’

सितारा ने कहा, ‘‘वर्माजी पछताएंगे. लड़कियों को इतनी छूट देनी ठीक नहीं. जब देखो मोबाइल से चिपकी रहती है बेशर्म कहीं की.’’

‘‘अरे, मैं ने तो यह भी सुना है कि लड़का कोई गैरजात का है. लड़की कायस्थ और लड़का छोटी जात का.’’

‘‘हमें क्या बहना, जो जैसा करेगा वह वैसा भरेगा.’’

‘‘प्यार की उम्र है. प्यार भी कोई चीज है.’’

‘‘यह प्यारमोहब्बत तो जमानों से है. तुम ने भी तो…’’

सितारा ने कहा, ‘‘तुम भी गड़े मुर्दे उखाड़ने लगीं. अरे, हमारा प्यार सच्चा प्यार था. सच्चे प्यार कभी परवान नहीं चढ़ते. सो, जिस से प्यार किया, शादी न हो सकी. यही सच्चे प्यार की निशानी है.’’

‘‘वैसे कुछ भी कहो सितारा बहन, न हो सके जीजाजी थे स्मार्ट, खूबसूरत.’’

अफसोस करते हुए सितारा ने कहा, ‘‘जान छिड़कता था मुझ पर. धर्म आड़े न आया होता तो… फिर हम में इतनी हिम्मत भी कहां थी. संस्कार, परिवार भी कोई चीज होती है. अब्बू ने डांट लगाई और प्यार का भूत उतर गया. काश, उस से शादी हो जाती तो आज जीवन में कुछ और रंग होते. मनचाहा जीवनसाथी. लेकिन घर की इज्जत की बात आई तो हम ने कुर्बानी दे दी प्यार की.’’

लॉकडाउन में मां बनी ‘मेरी आशिकी तुमसे है’ की एक्ट्रेस, शेयर की बेटी की Photo

लॉकडाउन के बीच में ही फेमस टीवी सीरियल की एक्टर स्मृति खन्ना के घर किलकारी गुंजी है. स्मृति और गौतम के घर नन्ही परी ने जन्म लिया है. एक्टर ने बीते गुरुवार को शाम 4 बजे बेटी को जन्म दिया. इस खबर के बाद उनके परिवार में खुशी की लहर दौड़ आई है.

गौतम ने हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में बताया है कि मां और बच्चे दोनों स्वस्थ है. इसी के साथ उन्होंने इस बात का भी खुलासा किया कि लॉकडाउन होने के बावजूद भी मैं बहुत आराम से अस्पताल पहुंच गया.

गौतम ने बताया हम जुहू में रहते हैं और अस्पताल खार में है. इस दौरान हमने फैसला लिया कि हम दोनों अकेले ही अस्पताल में जाएंगे. बहुत आसानी से हम अस्पताल पहुंच गए. मैं स बात से बहुत खुश हूं कि लॉकडाउन होने के बावजूद सबकुछ ठिकठाक से हो गया.

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स्मृति खन्ना ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर अपनी बेटी की पहली तस्वीर शेयर की है. जिसमें वह अपनी बेटी को गोद में ली हुई हैं. और बड़े ही प्यार से गौतम गुप्ता के आंखो में देख रही हैं.

इस तस्वीर पर फैंस लगातार उन्हें बधाइयां दे रहे हैं. फैंस इस खबर से बेहद खुश हैं. गौतम और स्मृति के चेहरे पर साफ खुशी नजर आ रही है. बता दें तस्वीर को शेयर करते हुए स्मृति ने लिखा है हमारी राजकुमारी आ चुकी हैं.

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फिलहाल गौतम और स्मृति अपने बच्चे के साथ घर पर है. सभी इस लॉकडाउन का पालन कर रहे हैं. घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं. बच्चे का भरपूर ख्याल रख रहे हैं.

कोरोनावायरस लॉकडाउन: 350 से अधिक जिले ग्रीन जोन में शामिल, कोरोना संक्रमण के पहुंच से दूर

बुधवार तक भारत में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 11500 पार कर गई, वही 392 से अधिक लोग इस महामारी से मारे जा चुके है. क्या आपको पत्ता है भारत में वर्तमान समय कुल 736 जिले हैं, उनमें से सरकार ने कुल 170 जिले हॉटस्पॉट के रूप में चिन्हित किया हैं. वहीं नॉन हॉटस्पॉट में 207 जिले है.

साथ ही क्या आप जानते है कि देश में 350 से अधिक जिलों ऐसे है , जो कोरोना संक्रणम के पहुंच से दूर है तो आईये जानते है , सरकार कितने जिलों कितने जोन में बांटा है और इसका में कौन-कौन जिला आता है. किस आधार पर यह वर्गीकरण हुआ है…

स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने बुधवार को नियमित प्रेस ब्रीफिंग में बताया कि संक्रमण से सबसे ज्यादा प्रभावित 170 जिलों को हॉटस्पॉट घोषित किया गया है. 207 की पहचान गैर-हॉटस्पॉट के रूप में की गई है. आगे उन्होंने बताया कि कैबिनेट सचिव ने देशभर के जिला अधिकारियों, पुलिस कप्तानों, मेडिकल ऑफिसर समेत नगर निगमों के कमिश्ररों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग कर इस बारे में जानकारी दे दी गई है. उन्होंने राज्यों से कहा है कि केंद्र द्वारा चिह्नित हॉट स्पॉट के अलावा भी अगर उन्हें लगता है कि कहीं संक्रमण बढ़ रहा है अथवा नए मरीजों का मिलना अनवरत है तो वे अतिरिक्ति जिलों को हॉट स्पॉट के रूप में घोषित कर जरूरी कार्रवाई कर सकते हैं.  साथ ही उन्होंने कहा की देश के  हर हिस्से में लॉकडाउन का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया जाये और नए दिशा निर्देशों का पालन सभी राज्य करे.

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* हॉटस्पॉट जोन वाले जिले  (रेड जोन ) :-

वैसे जिले जहाँ लगातार ज्यादा संक्रमण का मामले सामने आ रहे हैं. और जांच के बाद पॉजिटिव केस की संख्या  में भी तेजी से इजाफा हो रहा है. वह जिले हॉटस्पॉट जोन या रेड जोन  वाले जिले के श्रेणी में आएंगे . ऐसे जिलों में स्वास्थ्य मंत्रालय के निगरानी में राज्यों के प्रमुख अधिकारियों के निदेश पर इलाके का पूरी तरह सर्वे करके उसका जाँच रिपोर्ट तैयार करना होगा .क्षेत्रों में घर-घर जाकर सर्वेक्षण किया जा रहा है.नमूने एकत्र कर जांच किया  जायेगा. साथ ही आवश्यक सेवाओं से जुड़ी गतिविधियों को छोड़ कर नियंत्रित क्षेत्रों में आवाजाही की अनुमति नहीं दी जाएगी.   देश के 170 जिले  रेड जोन में आते हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार बिहार का सीवान, दिल्ली के दक्षिणी, दक्षिणी पूर्वी, शाहदरा, पश्चिमी उत्तरी और मध्य दिल्ली, उत्तरप्रदेश के आगरा, नोएडा, मेरठ, लखनऊ गाजियाबाद, शामली, फिरोजाबाद, मोरादाबाद और सहारनपुर रेड जोन में कोरोना आउटब्रेक वाले जिलों में शामिल है. जबकि बिहार का मुंगेर, बेगुसराय और गया, दिल्ली का उत्तरी-पश्चिमी, उत्तराखंड के नैनीताल और उधम सिंह नगर और उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर, सीतापुर, बस्ती और बागपत रेड जोन के कलस्टर वाले जिलों में है.

* नॉन हॉटस्पॉट जोन वाले जिले ( आरेंज जोन) :-

वैसे जिले जहाँ संक्रमण का फैलाव कम स्तर पर हुआ है , लेकिन कोरोना पॉजिटिव केस की संख्या कम हैं.  वह जिले नॉन हॉटस्पॉट जोन या आरेंज जोन वाले जिले के श्रेणी में आएंगे . ऐसे जिलों को भी ठीक उसी तरह ट्रीट किया जाएगा, जैसे हॉटस्पॉट कैटेगरी वाले जिलों में काम हो रहा है. वहां भी क्लस्टर कंटेनमेंट के हिसाब से काम किया जाएगा. ताकि चेन ऑफ ट्रांसमिशन ब्रेक हो पाए. इसका मतलब यहां भी सख्ती बरती जाएगी और किसी भी तरह की कोई छूट नहीं मिलेगी.  देश के 207 जिले आरेंज जोन में आते हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार  बिहार के गोपालगंज, नवादा, भागलपुर,सारन, लखीसराय, नालंदा और पटना, दिल्ली का उत्तरी-पूर्वी और उत्तरप्रदेश के कानपुर नगर, वाराणसी, अमरोहा, हापुड़, महाराजगंज, प्रतापगढ़ और रामपुर जैसे जिले ऑरेंज जोन में शामिल हैं, जहां न तो कोरोना का कलस्टर और न ही आउटब्रेक हुआ है. यहां कुछ केस पाए गए थे.

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* ग्रीन जोन वाले जिले :-

वैसे जिले जहाँ कही भी संक्रमण नहीं है , कोरोना पॉजिटिव  के केस नहीं आए हैं. वह जिले ग्रीन जोन वाले जिले के श्रेणी में आएंगे . ऐसे जिलों का खास खयाल रखा जाएगा. कोशिश रहेगी कि ये जिले नॉन इफेक्टेड ही रहें. वहां कम्युनिटी से संपर्क करते हुए सावधानियां बरती जाएं. रेड और आरेंज जोन के अलावा सरकार ने ग्रीन जोन में भी कोरोना पर नजर रखने का फैसला किया है. साथ ही इस जोन में इनफ्लुएंजा या सांस से संबंधित बीमारी से गंभीर रूप से ग्रसित मरीजों का कोरोना टेस्ट किया जाएगा. ऐसे मरीजों की पहचान कर उन्हें कोरोना अस्पताल तक पहुंचाने की जिम्मेदारी आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं को दी गई है.  देश के 359 जिले ग्रीन जोन में आते हैं.

* जोन में कंटेनमेंट का प्लान अलगअलग :-

स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार  विभिन्न जोन में वायरस से कंटेनमेंट का प्लान अलग-अलग होता है.  रेड जोन और उसके चारो और बफर जोन तय करने का अधिकार भी स्थानीय प्रशासन के ऊपर छोड़ा गया है. वही ग्रामीण इलाके में सामान्य तौर पर कोरोना के केस आने वाली जगह के चारो ओर तीन किलोमीटर के इलाके में कंटेनमेंट प्लान लागू किया जाता है. उसके चारो ओर के सात किलोमीटर के दायरे को बफर जोन के रूप में रखा जाता है. घनी आबादी वाले शहरी इलाकों में इसे तय करने का मापदंड अलग होता है और स्थानीय अधिकारी जमीनी हकीकत के आधार पर इसे निर्धारित करते हैं.

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