जितेंद्र सरिसाम और राधा कहार पैसों से भले ही गरीब थे, लेकिन सैक्स के मामले में किसी रईस से कम नहीं थे. भोपाल के पौश इलाके बागमुगालिया की रिहायशी कालोनी डिवाइन सिटी के एक 2 मंजिला बंगले में रहने वाले 26 वर्षीय जितेंद्र को अकसर अमीरों जैसी फीलिंग आती थी. भले ही वह जानतासमझता था कि इस महंगे डुप्लेक्स मकान में वह कुछ दिनों का मेहमान है, इस के बाद तो फिर किसी झोपड़े में आशियाना बनाना है.
दरअसल, जितेंद्र पेशे से मजदूर था. चूंकि रहने का कोई ठिकाना नहीं था, इसलिए ठेकेदार ने उसे इस शानदार मकान में रहने की इजाजत दे दी थी, जो अभी बिका नहीं था. यह कोई नई बात नहीं है क्योंकि जहांजहां भी कालोनियां बनती हैं, वहांवहां ठेकेदार या कंस्ट्रक्शन कंपनी मजदूरों को बने अधबने मकानों में रहने को कह देती हैं. इस से मकान और सामान की देखभाल भी होती रहती है और मजदूरों के वक्तबेवक्त भागने का डर भी नहीं रहता.
मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले छिंदवाड़ा की तहसील जुन्नारदेव के गांव गुरोकला का रहने वाला जितेंद्र देखने में हैंडसम लगता था और उन लाखों कम पढ़ेलिखे नौजवानों में से एक था, जो काम और रोजगार की तलाश में शहर चले आते हैं.
इन नौजवानों के बाजुओं में दम, दिलों में जोश और आंखों में सपने रहते हैं कि खूब मेहनत कर वे ढेर सा पैसा कमा कर रईसों सी जिंदगी जिएंगे. यह अलग बात है कि अपनी ही हरकतों और व्यसनों की वजह से वे कभी रईस नहीं बन पाते.
जितेंद्र भोपाल आया तो उस के सामने भी पहली समस्या काम और ठिकाने की थी. जानपहचान के दम पर भागदौड़ की तो न केवल मजदूरी का काम मिल गया बल्कि ठेकेदार ने रहने के लिए एक अधबना मकान भी दे दिया.
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