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coronavirus: नया रूप लेकर 102 साल पुराना दर्द

लेखक- नीरज त्यागी

आज पूरी दुनिया कोरोना वायरस से लड़ रही है.ये वायरस लगभग सभी देशों में फ़ैल चूका है.पूरे दुनिया में कोरोना से संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है.कोरोना वायरस कि इस महामारी ने लोगों को 1918 के स्पेनिश फ्लू की याद दिला दी है.उस दौर में जिस तेजी से ये संक्रमण फैला था और जितनी मौतें हुई थी उससे पूरे दुनिया को हिला दिया था.102 साल पहले पूरी दुनिया में स्पेनिश फ्लू के कहर से एक तिहाई आबादी इसकी चपेट में आ गयी थी.कम से कम पाँच से दस करोड़ लोगों की मौत इसकी वजह से हुई थी.रिपोर्टस के मुताबिक इस फ्लू के कारण भारत में कम से कम 1 करोड़ 55 लाख लोगों ने जान गवाईं थी.

स्पेनिश फ्लू की वजह से करीब पौने दो करोड़ भारतीयों की मौत हुई है जो विश्व युद्ध में मारे गए लोगों की तुलना में ज्यादा है. उस वक्त भारत ने अपनी आबादी का छह फीसदी हिस्सा इस बीमारी में खो दिया था.मरने वालों में ज्यादातर महिलाएँ थीं.ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि महिलाएँ बड़े पैमाने पर कुपोषण का शिकार थी.वो अपेक्षाकृत अधिक अस्वास्थ्यकर माहौल में रहने को मजबूर थी.इसके अलावा नर्सिंग के काम में भी वो सक्रिय थी.

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ऐसा माना जाता है कि इस महामारी से दुनिया की एक तिहाई आबादी प्रभावित हुई थी और करीब पाँच से दस करोड़ लोगों की मौत हो गई थी.गांधी जी और उनके सहयोगी किस्मत के धनी थे कि वो सब बच गए. हिंदी के मशूहर लेखक और कवि सुर्यकांत त्रिपाठी निराला की बीवी और घर के कई दूसरे सदस्य इस बीमारी की भेंट चढ़ गए थे.

उन्होंने बाद में इस सब घटना चक्र पर लिखा भी था *कि मेरा परिवार पलक झपकते ही मेरी आँखों से ओझल हो गया था”* वो उस समय के हालात के बारे में वर्णन करते हुए कहते हैं कि *गंगा नदी शवों से पट गई थी. चारों तरफ इतने सारे शव थे कि उन्हें जलाने के लिए लकड़ी कम पड़ रही थी* . ये हालात तब और खराब हो गए थे जब खराब मानसून की वजह से सुखा पड़ गया और आकाल जैसी स्थिति बन गई.इसकी वजह से बहुत से लोगो की प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई थी..शहरों में भीड़ बढ़ने लगी।इससे बीमार पड़ने वालों की संख्या और बढ़ गई.

बॉम्बे शहर इस बीमारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ था.उस वक्त मौजूद चिकित्सकीय व्यवस्थाएं आज की तुलना में और भी कम थीं।हालांकि इलाज तो आज भी कोरोना का नहीं है लेकिन वैज्ञानिक कम से कम कोरोना वायरस की जीन मैपिंग करने में कामयाब जरूर हो पाए हैं. इस आधार पर वैज्ञानिकों ने टीका बनाने का वादा भी किया है.1918 में जब फ्लू फैला था.तब एंटीबायोटिक का चलन इतने बड़े पैमाने पर नहीं शुरू हुआ था. इतने सारे मेडिकल उपकरण भी मौजूद नहीं थे जो गंभीर रूप से बीमार लोगों का इलाज कर सके. पश्चिमी दवाओं का इस्तेमाल भी भारत की एक बड़ी आबादी नही किया करती थी और ज्यादातर लोग देसी इलाज पर ही यकीन करते थे.

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इन दोनों ही महामारियों के फैलने के बीच भले ही एक सदी का फासला हो लेकिन इन दोनों के बीच कई समानताएं दिखती हैं. संभव है कि हम बहुत सारी जरूरी चीजें उस फ्लू के अनुभव से सीख सकते हैं.उस समय भी आज की तरह ही बार-बार हाथ धोने के लिए लोगों को समझाया गया था और एक दूसरे से उचित दूरी  बनाकर ही रहने के लिए कहा गया था.सोशल डिस्टेंसिंग को उस समय भी बहुत अहम माना गया था और आज ही की तरह लगभग लॉक डाउन की स्थिति उस समय भी थी इतने सालों बाद भी वही स्थिति वापस हो गई है.

स्पेनिश फ्लू की चपेट में आए मरीजों को बुखार, हड्डियों में दर्द, आंखों में दर्द जैसी शिकायत थीं. इसकी वजह से महज कुछ दिन में मुंबई में कई लोगों की जान चली गई. एक अनुमान के मुताबिक जुलाई 1918 तक 1600 लोगों की मौत स्पैनिश फ्लू से हो चुकी थी. केवल मुंबई इससे प्रभावित नहीं हुआ था.रेलवे लाइन शुरू होने की वजह से देश के दूसरे हिस्सों में भी ये बीमारी तेजी से फैल गई.ग्रामीण इलाकों से ज्यादा शहरों में इसका प्रभाव दिखाई दिया.

बॉम्बे में तेजी से फैलने के बाद इस वायरस ने उत्तर और पूर्व में सबसे ज्यादा तांडव मचाया.ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में इस बीमारी से मरने वालों में पांचवां हिस्सा भारत का था.बाद में असम में इस गंभीर फ्लू को लेकर एक इंजेक्शन तैयार किया गया, जिससे कथित तौर पर हजारों मरीजों का टीकाकरण किया गया. जिसकी वजह से इस बीमारी को रोकने में कुछ कामयाबी मिली.

हालांकि बाद में कुछ बाते सामने आईसन 2012 की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत के जिन हिस्सो में अंग्रेजो की ज्यादा बसावत थी.उन हिस्सों में इस बीमारी ने ज्यादा कहर मचाया था.इन हिस्सो में भारतीय इस महामारी में सबसे अधिक मारे गए थे.अब एक बार फिर से कोरोना के बढ़ते कहर की वजह से लोग बेहद आशंकित हैं.फिलहाल सरकार और दूसरी संस्थाएं लगातार लोगों को इस गंभीर वायरस से बचाव को लेकर कोशिश में जुटी हुई हैं.

आखिरकार गैर सरकारी संगठनों और स्वयं सेवी समूहों ने आगे बढ़कर मोर्चा संभाला था. उन्होंने छोटे-छोटे समूहों में कैंप बना कर लोगों की सहायता करनी शुरू की. पैसे इकट्ठा किए, कपड़े और दवाइयां बांटी है।नागरिक समूहों ने मिलकर कमिटियां बनाईं.एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, “भारत के इतिहास में पहली बार शायद ऐसा हुआ था जब पढ़े-लिखे लोग और समृद्ध तबके के लोग गरीबों की मदद करने के लिए इतनी बड़ी संख्या में सामने आए थे.

आज की तारीख में जब फिर एक बार ऐसी ही एक मुसीबत सामने मुंह खोले खड़ी है. तब सरकार चुस्ती के साथ इसकी रोकथाम में लगी हुई है लेकिन एक सदी पहले जब ऐसी ही मुसीबत सामने आई थी तब भी नागरिक समाज ने बड़ी भूमिका निभाई थी.जैसे-जैसे कोरोना वायरस के मामले बढ़ते जा रहे हैं, इस पहलू को भी हमें ध्यान में रखना होगा और सभी लोगो को मिलकर इस बीमारी की लड़ाई में आगे बढ़ना होगा.

कान

कान न हुए कचरापेटी हो गई. जो आया उडे़ल कर चला गया जमाने भर की गंदगी और हम ने खुली छूट दे रखी है कानों को. आजकल हमारा देखना भी कानों से ही होता है. लोग कान में आ कर धीरे से फुसफुसा जाते हैं और हमें लगता है कि यह हमारा खास, घनिष्ठ और विश्वसनीय है जो इतनी महत्त्वपूर्ण बातें हमें बता कर चला गया. कान से सुन कर हमें इतना विश्वास हो जाता है कि अब हमारा मानना हो गया है कि आंखें धोखा खा सकती हैं लेकिन कान नहीं. कानों से हमें खबरें मिलती हैं कि फलां की लड़की फलां के लड़के के साथ भाग गई. फलां की पत्नी का फलां के साथ चक्कर है. हम ऐसी चटपटी मसालेदार बातें सुन कर आत्मसुख का अनुभव करते हैं. अफवाहें कानों से ही बढ़ती हैं, फैलती हैं, दावानल का रूप लेती हैं. किसी ने कहा, ‘दंगा हो गया.’ कानों ने विश्वास किया. यही हम ने दूसरे के कान में कहा. उस ने तीसरे के कान में. एक कान से दूसरे, फिर तीसरे तक होती हुई बातें कानोंकान चारों तरफ फैल जाती हैं. हमारे कान उस सार्वजनिक शौचालय की तरह हो गए हैं जिस में आ कर कोई भी निवृत्त हो कर, हलका हो कर, गंदगी उड़ेल कर चला जाता है.

हम एक के कान में कहते हैं, देख, तुझे अपना समझ कर बता रहे हैं. किसी और तक बात नहीं पहुंचनी चाहिए. वह कसम उठा कर कहता है कि भरोसा रखो, नहीं पहुंचेगी. लेकिन तुरंत वह अपने किसी परिचित के कान में फुसफुस करता है और उसे भी यही हिदायत देता है. वह भी पहले वाले की तरह सौगंध खा कर कहता है, नहीं पहुंचेगी और तुरंत किसी नए कान की तलाश में लग जाता है. कानों का काम है सुनना लेकिन हम कानों को क्याक्या सुनाते रहते हैं, जो नहीं सुनाना चाहिए. जहां कान बंद कर लेने चाहिए वहां भी हम कान खड़े कर लेते हैं. कानों को हम ने ऐसे शौक दे रखे हैं कि जब तक वे भड़काऊ बयान, शोर भरा संगीत, गुप्त बातें, रहस्य की बातें और अश्लील वार्त्ता सुन न लें, तृप्त ही नहीं होते. कुछ कान बेचारे ऐसे हैं जो धमाकों की आवाजें, चीखपुकार सुन कर बहरे हो गए हैं. उन के लिए हम बहरे शब्द का प्रयोग करते हैं यानी यदि आप के कान हमारी बात, हमारी बकवास, हमारे प्रवचन, हमारे बोलवचन न सुनें तो कहते हैं कि तुम बहरे हो. जैसे आंख के अंधे वैसे कान के बहरे. कुछ कान बड़े संवेदनशील होते हैं. वे दूसरों की व्यथाकथा सुन कर द्रवित हो जाते हैं. कुछ कान जासूस की तरह होते हैं. कहीं खुसुरफुसुर सुनी और फौरन खड़े हो जाते हैं.

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साधुसंत तो कानों के विषय में कहते हैं कि यदि आप ने हमारे श्रीमुख से हरिकथा नहीं सुनी तो आप के कान कान नहीं, सांप के बिल हैं. कुछ कान लापरवाह किस्म के होते हैं. वे एक से सुन कर दूसरे से निकाल देते हैं. आज के जमाने में आप का अंधा या लंगड़ा होना चल जाएगा लेकिन कानों का ठीकठाक होना बहुत जरूरी है. आजकल सुनने के साथसाथ देखना भी कानों से हो रहा है. आंख में दोष हो सकता है लेकिन कान पर हमें पूरा विश्वास है क्योंकि हमारे कानों ने सुना है. किस से सुना है, क्या सुना है? ये महत्त्वपूर्ण नहीं है. हमारे कानों ने सुना है, यह ही काफी है. हम उन कानों तक भी अपनी बात पहुंचाने का प्रयास करते हैं जो कान ऊंचा सुनते हैं. भले ही उन्हें सुनाने के चक्कर में चार लोग और सुन लें. लेकिन हमारा धर्म हो गया है कि जो सुनें वह दूसरे को सुना दें. तथाकथित ईश्वर के विषय में कहा गया है कि बिना कान के सुनते हैं. सुनने के लिए कान का होना आवश्यक है और कान ठीकठाक सुनें, इस के लिए बीचबीच में तेल आदि डालते रहना चाहिए.

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कुछ लोगों के ऐसे भी कान होते हैं जो सुनना पसंद नहीं करते. ऐसे लोग कहते हैं, कान पक गए हैं सुनतेसुनते. ऐसे कान किस काम के जिन्हें सुनने में तकलीफ हो. कान तो वे जो सदा सुनने को व्याकुल हों. हमारे पास 1 नहीं 2 कान हैं. इस का अर्थ यही हुआ कि प्रकृति ने कान का महत्त्व समझ कर हमें 1 नहीं 2 कान दिए हैं. ऐसे में कान की विश्वसनीयता और उपयोगिता दोनों बढ़ जाती हैं. कान का अपना एक निजी गुण यह है कि ये बुराई सुनने में खुशी से खड़कने लगते हैं. जहां किसी की निंदा सुनी, समझो कान का होना सार्थक हो गया. हमारे कान ऊलजलूल, बकवास, निंदा, शोरशराबा, अफवाहें, समाचार, खबरें सब सुनने में दक्ष हैं लेकिन कुछ बातें कानों को बिलकुल रास नहीं आतीं, जैसे मांबाप की सलाहसमझाइश और गुणी लोगों का सत्संग-प्रवचन. हमारे कान नाराज हो कर एक से सुन कर दूसरे से निकाल देते हैं. वैसे तो सुनते ही नहीं. 2 कानों का फायदा यही है कि बात अच्छी न लगे तो एक से सुनो, दूसरे से निकाल दो. आदमी कानोंसुनी पर इतना भरोसा करने लगा है कि वह प्रत्यक्ष देखना जरूरी नहीं समझता. कौन जा कर देख कर समय बरबाद करे. कानों तक बात पहुंच गई, समझो देख लिया. स्त्रियां तो कानोंसुनी आंखों देखी एक बराबर मानती हैं. सुनसुन कर ही वे इतना बड़ा झमेला खड़ा कर देती हैं कि परिवार बिखरने लगते हैं. घर में द्वेष फैलने लगता है. तो फिर कचराघर हैं न कान. आप के क्या हैं?

#coronavirus: बंटाईदार और ठेकेदार भी खरीद केंद्रों पर बेच सकेंगे गेहूं

झांसी: बंटाई और ठेके पर खेती करने वाले किसान भी खरीद केंद्रों पर अपना गेहूं बेच सकेंगे. बंटाईदार को किसान का सहमतिपत्र और ठेकेदार को लेखपाल की संस्तुति के बाद ही खरीद केंद्र पर गेहूं बेचने का हक मिलेगा. इस बार गेहूं खरीद की राशि किसान, बंटाईदारों और ठेकेदारों के खाते में आरटीजीएस से नहीं, बल्कि पीएफएमएस से पहुंचेगी.

जिले में गेहूं खरीद के लिए प्रशासन ने तैयारियां शुरू कर दी हैं. 15 अप्रैल के बाद 57 खरीद केंद्रों को अनुमोदित किया जा चुका है. लेकिन सरकार ने बंटाई और ठेके पर गेहूं की बोआई करने वालों को भी गेहूं खरीद करने का अधिकार दिया है. इस के लिए बंटाईदार और ठेकेदार को किसान और लेखपाल से संस्तुति करानी होगी. वहीं इस के साथ ही बंटाईदार और ठेकेदार को वैबसाइट पर पंजीकरण भी कराना होगा.

नियमों के मुताबिक, ठेके पर जमीन लेने वाले को रजिस्ट्रार के यहां भी अनुबंध कराना होगा. नियम यह भी है कि यदि कोई किसान 100 क्विंटल से अधिक गेहूं बेचता है, तो उसे एसडीएम से अनुमति लेनी होगी.

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जिला खाद्य विपणन अधिकारी अनूप कुमार ने बताया कि गेहूं खरीद के कुछ नियमों में बदलाव किया गया है. 15 अप्रैल के बाद गेहूं खरीद की जाएगी. इस बार गेहूं का समर्थन मूल्य 1,940 रुपए है.

सोशल मीडिया से किसानों को दी जाएगी जानकारी

बक्सर: जिले के किसानों को सभी कृषि योजनाओं की जानकारी सोशल मीडिया और रजिस्र्टर्ड मोबाइल फोनों के जरीए दी जाएगी.

इस बारे में कृषि विभाग ने तमाम निर्देश जारी किए हैं. इन निर्देशों में कहा गया है कि किसानों के बीच कृषि विभाग द्वारा किए जा रहे कामों की जानकारी समयसमय पहुंचाना बेहद जरूरी है, इसलिए कृषि विभाग के साथसाथ पशु व मत्स्य संसाधन विभाग द्वारा किए जा रहे कामों की जानकारी व्हाट्सएप व सोशल मीडिया के जरीए वरीय पदाधिकारी सब से पहले अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को देंगे. इस के बाद कृषि समन्वयक, प्रखंड उद्यान पदाधिकारी, किसान सलाहकार, एटीएम व बीटीएम अपने स्तर से क्षेत्र के किसानों के बीच संदेश पहुंचाएंगे.

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इस के लिए कृषि विभाग के लोग अपने क्षेत्राधीन व्हाट्सएप के जरीए किसानों का समूह गठित करेंगे. इस के लिए पहले से गठित समूहों को भी प्रभावी ढंग से सक्रिय करने को कहा गया है.

दर्जनों गांवों में जंगली सूअरों ने खेती बरबाद की

अल्मोड़ा: ताकुला ब्लौक के दर्जनों गांवों में जहां जंगली सूअरों ने किसानों की आलू, गडेरी, पिनालू और हलदी की खेती को बरबाद कर दिया है, वहीं, बंदरों ने गेहूं, जौ, मसूर, मटर और दूसरी सब्जियों को खराब कर दिया है. काश्तकारों ने जिला प्रशासन से सूअरों और बंदरों के आतंक से नजात दिलाने की मांग की है.

तालुका ब्लौक के तहत एक गांव ने कहा कि सूअरों ने रात में उन के गांव में अनेक किसानों के खेत में लगाए प्याज और आलू बीज खोद कर बरबाद कर दिया है. सूअर के आतंक से किसान खासा परेशान हैं.
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वहीं दूसरे किसान ने कहा कि तारबंदी के काम में हुई हीलाहवाली के चलते सरकारी पैसों का गलत इस्तेमाल होने के साथ ही किसानों को भी अच्छीखासी चपत लगी है.

प्रभावित किसानों ने प्रशासन और कृषि विभाग से जानवरों की रोकथाम के उपाय करने और फसलों के मुआवजे की मांग की है.

मौसम साफ रहे तो करें चना और तिलहन का भंडारण

भागलपुरः जिले के किसानों के लिए ग्रामीण कृषि मौसम सेवा की ओर से एडवाइजरी जारी हुई है. इसे कृषि विभाग ने बीएयू सहित दूसरे किसानों के लिए विभिन्न माध्यमों के द्वारा पहुंचाने का निर्देश दिया है. बीएयू ने इस कड़ी में अगले कुछ दिनों के मौसम और खेती संबंधी जानकारी किसानों को दी है.

बीएयू के निदेशक प्रसार शिक्षा डाक्टर आरके सोहाने ने कहा कि एडवाजरी की खूबी यह है कि इस में किसानों को मौसम की सटीक जानकारी के अलावा और क्याक्या करना चाहिए, इस के बारे में विस्तार से बताया जाता है.

कृषि विभाग के गाइडलाइन का पालन करते हुए बीएयू ने किसानों को जो संदेशा भेजा है, उस में मसूर, गेहूं और चने की कटाई समय पर पूरा करने का निर्देश दिया है. साथ ही, महफूज जगहों पर भंडारण का निर्देश दिया है. वहीं सब्जी की फसलें जैसे टमाटर, बैगन, मिर्च की जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें. आम और लीची में दवा का घोल बना कर छिड़काव करें.और हरी पत्तेदार सब्जियों जैसे पालक, बथुआ वगैरह की बोआई गर्मा फसल के रूप में करें.

किसानों को सलाह दी जाती है कि इस मौसम में मूंग की किस्म की बोआई कर देनी चाहिए. जानवरों को उन की प्रतिरक्षा बढ़ाने के लिए हर दिन हरा चारा खिलाया जाना चाहिए. खेती के काम में उचित दूरी बना कर रहें. साथ ही, सर्दी, जुकाम, सिरदर्द या बुखार हो तो निकट के स्वास्थ्यकर्मी को तुरत सूचना दें और जांच कराएं.

पीएम किसान सम्मान निधि योजना में लाखों किसानों को मिला लाभ

नई दिल्ली : किसानों को खेतीबाड़ी में कोई समस्या न हो, इसलिए केंद्र सरकार उन का पूरा सहयोग करती है. देश के अन्नदाता को उच्च स्तर पर रखा जाता है. ऐसे में उन को खेतीबाड़ी में कोई समस्या न आए, इसलिए मोदी सरकार  ने किसानों के लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना को चलाया है. इस योजना के तहत किसानों के खाते में सीधे 2-2 हजार की रुपए की राशि भेजी जाती है.

अब तक करोड़ों रुपए की सहायता
मोदी सरकार की पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत  62 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की मदद की जा चुकी है.

सभी जानते हैं कि इस वक्त देश पर कोरोना वायरस का संकट है. इस दौरान सरकार ने किसानों के खाते में 2-2 हजार रुपए भेजे हैं. इस योजना के तहत सरकार द्वारा 4.91 करोड़ रुपए भेजे जा चुके हैं.

कृषि मंत्रालय की मानें, तो देश में पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत में लगभग 9 करोड़ किसान रजिस्टर्ड हो चुके हैं. इस के लिए सरकार ने  लगभग 18 हजार करोड़ रुपए की राशि रखी है.

बता दें कि देश में लगभग 14.5 करोड़ किसान हैं, लेकिन इस योजना से कई किसान अभी भी नहीं जुड़ पाए हैं. इतने करोड़ रुपए हुए ट्रांसफर कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी द्वारा बताया गया है कि लॉकडाउन के बीच लगभग 5 करोड़ किसानों के खाते में 2-2 हजार रुपए भेजे जा चुके हैं. इस वक्त किसानों और गरीबों को समस्या न हो, इसलिए सरकार ने एक बड़ा आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है. इस के तहत डायरेक्ट बेनिफट ट्रांसफर द्वारा लगभग 9826 करोड़ की राशि भेजी जाएगी.

कोरोना की परवाह किए बगैर खेतखलिहान में जुटे हैं पूर्वांचल के किसान

वाराणसी : कोरोना महामारी को हराने के लिए देशभर में लॉक डाउन के बीच किसान खेतों में खड़ी सालभर की मेहनत व पसीने से लहलहाती फसल को बचाने निकल पड़ा है.

खास बात यह है कि कोरोना से बचने के लिए देश में सुरक्षा व सावधानी का जो उपाय सरकार की तरफ से बताया गया, उस का पालन भी होता दिख रहा है.  सोशल डिस्टेंसिंग से ले कर साबुन से हाथ धोने का काम खेतखलिहान में काम करते मजदूरों के बीच देखा जा सकता है. खेतखलिहान में उन मजदूरों को ज्यादा वरीयता मिल रही है, जो कमाने के चक्कर में गांव छोड़ कर बाहर नहीं गए हैं.

एक तरफ कोरोना के चलते मास्क व दस्ताना लगा कर लोग शहर में दिखाई दे रहे हैं, तो दूसरी तरफ खेतों में कटाई से ले कर मड़ाई करते मजदूर मुंह में गमछा या दुपट्टा बांध कर जुटे हैं.

पूर्वांचल के किसानों को ‘कोरोना संक्रमण’ की परवाह किए बगैर चिलचिलाती धूप और पछुवा हवाओं के बीच खेतखलिहान में देखा जा सकता है.

पूर्वांचल के भदोही, वाराणसी, चंदौली, गाजीपुर, बलिया, मऊ, आजमगढ़, जौनपुर, मिर्जापुर और सोनभद्र का किसान घरों के बजाय खेतों में है.

राज्य की योगी सरकार ने किसानों को लॉक डाउन से छूट दी है, क्योंकि गेहूं, सरसों, मटर, चना, मसूर, जौ, अरहर की फसल तैयार है. अगर कोरोना के भय से किसान फसलों की कटाई नहीं करता है तो उस के सामने स्थिति बुरी हो सकती है. मौसम खराब होने से फसलें जहां खराब हो सकती हैं, वहीं किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है.

मार्च में बारिश हो जाने की वजह से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. पूरे पूर्वांचल में आंधीतूफान और बारिश की वजह से गेहूं, सरसों, जौ और तिलहनी फसलों को भारी नुकसान पहुंचा था.गेहूं की फसल गिर गई थी, जिस से फसलों की पैदावार प्रभावित हुई.

एक किसान कुमार का कहना है कि बारिश होने से सरसों की उपज कम हुई है, वहीं गेहूं का उत्पादन भी प्रति बीघे घटा है.

21 दिन के लॉक डाउन के कारण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को किसानों के लिए और सुविधाओं का ऐलान करना चाहिए. पूर्वांचल का किसान अलसुबह सपरिवार खेतों पर निकल रहा है. घर में रूखीसूखी जो है, उसी से काम चला रहा है क्योंकि अभी उस की प्राथमिकता में फसलों की मड़ाई पहले है.  वह दिन और रात में भी फसलों की कटाई और मड़ाई में जुटा है. महिलाओं ने भी कोरोना को देखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से महिला मजदूरों के लिए भी खास सुविधा देने की मांग की है.

#lockdown: लॉकडाउन में सायबर क्राइम बढ़ें

कोरोना वायरस से फैली वैश्विक महामारी के चलते पूरे भारत देश में लाकडाउन के कारण घरों से बाहर न निकलने के कारण अपराध की घटनाएं कम हुई हैं, परन्तु सायबर क्राइम के मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है .

लाकडाउन पीरियड में जहां कुछ लोगों का घर ही आफिस बन गया है ,तो अधिकांश लोगों का काफी समय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बीतने लगा है .लाक डाउन में सभी मोबाइल कंपनियों के डाटा की खपत बढ़ गई है.सायबर अपराधी इसे एक अवसर के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं.मुफ्त नेटफ्लिक्स, सस्ते इंटरनेट प्लान, फ्री बैलेंस, इनाम जीतने के मैसेज कर सायबर अपराधी तकनीक से अंजान लोगों के मोबाइल में सेंध लगाकर बैंक एकाउंट से रुपए उड़ा रहे हैं. लोगों के एटीएम नंबर और ओटीपी पूछकर आन लाइन शापिंग करक लाखों रुपए बैंक एकाउंट से निकाले जा रहे हैं.

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मध्यप्रदेश के गोटेगांव के नेहरू वार्ड में रहने वाले जशवंत कहार ने स्थानीय पुलिस थाना में इसी तरह की शिकायत दर्ज करते हुए बताया है कि  उसे  मोबाइल नंबर 6203039244 से फ़ोन कर बताया गया कि मैं कैनरा बैंक से बोल रहा हूं, तुम्हारा एटीएम बंद होने वाला है.इसको जारी रखने के लिए एटीएम नंबर और  ओटीपी पूछकर एक लाख बीस हजार रुपए की रकम आन लाइन एकाउंट से निकल ली. लाक डाउन में काम धंधे से मोहताज पाई पाई जोड़ कर रखी गई जमा पूंजी के लुटने से जशवंत हताश होकर बैठ गये हैं.

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फिशिंग स्कैमिंग 25 फीसदी बढ़ी
महाराष्ट्र पुलिस के मुताबिक लाक डाउन में बेवसाइट पर सायबर क्राइम के मामले लोगों के द्वारा बहुतायत में दर्ज कराये गये हैं .
लोगों के बैंक खातों में फिशिंग ( डाटा की सेंध से धोखाधड़ी), विशिंग (वाइस काल से ठगी) और स्कैमिंग (एटीएम कार्ड क्लोनिंग) के मामले में 25 फीसदी का इजाफा हुआ है.पुलिस सूत्रों के अनुसार अक्सर सायबर अपराधी फर्जी बैंकिंग ट्रांजेक्शन का स्टेटमेंट ई मेल कर डाउनलोड करने के निर्देश देते हैं. कई बार फोन पर मेसेज के जरिए वेबलिंक भेजे जाते हैं,जो हेकर्स की बेवसाइट के होते हैं. पासवर्ड और संवेदनशील जानकारी साझा करते ही व्यक्ति इन जालसाजों के चंगुल में फंस जाता है.यैसे ज्यादातर मामले डार्क बेव के जरिए रिमोट लोकेशन से संचालित होते हैं, जिसमें अपराधी की ट्रैकिंग मुश्किल से होती है.

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इसी तरह कोविड -19 को लेकर वाट्स ऐप पर झूठे,भ्रामक और शांति, सौहार्द्र भंग करने के 65 मामले महाराष्ट्र में सामने आये है.फेसबुक के माध्यम से अफरा तफरी फैलाने के 11, टिक टाक से जुड़े 3 और अनय सोशल मीडिया चैनलों से संबंधित 19 मामले लाक डाउन पीरियड में दर्ज किये गये हैं.

आपदा राहत के नाप पर भी ठगी
कोरोना वायरस से पूरा देश  जंग लड़ रहा है. ग़रीब, खेतिहर मजदूर, दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूर , राजमिस्त्री, फैक्ट्री वर्कर्स,बूढ़े असहाय लोगो को दो वक्त की रोटी का इंतजाम मुश्किल से हो रहा है. देश के प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष में लोगों से दान करने की अपील कर रहे हैं और लोग खुले हाथों से राहत राशि भी दे रहे हैं.संकट के इस दौर में भी सायबर ठग धोखाधड़ी करने से बाज नहीं आ रहे.प्रधानमंत्री के सिटीजन असिस्टेंट एंड रिलीफ फंड इन इमरजेंसी सिचुएशन फंड में आन लाइन डोनेशन से ठगने के मामले भी देश के कई इलाकों में सामने आए हैं. सायबर ठगों ने पीएम केयर्स की यूपीआई आईडी से मिलती  जुलती फर्जी आईडी बनाकर लिंक लोगों को भेजकर दान की राशि हथिया ली. ठगो द्वारा पीएम केयर्स की फर्जी लिंक बनाकर‌ लोगों को भेज कर कोरोना से लड़ने रकम दान करने के मैसेज किये गये, जिसमें अनेक लोगों द्वारा मदद के नाम पर लाखो रुपए की राशि भी भेज दी गई. मामले की जानकारी लगते ही भारतीय स्टेट बैंक द्वारा फर्जी यूपीआई आईडी को ब्लाक किया गया है.

#coronavirus:जी नेटवर्क कोरोना के खिलाफ लड़ाई में 5000 मजदूरों को आर्थिक राहत देंगे

मीडिया और एंटरटेनमेंट पावरहाउस,‘जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड (जी)’ने कोविड-19 के खिलाफ अपनी लड़ाई तेज करते हुए अपने समग्र प्रोडक्शन इकोसिस्टम में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप जुड़े दिहाड़ी काम करने वाले 5000 से अधिक लोगों को आर्थिक राहत देने का आज वचन दिया.लॉकडाउन के चलते दिहाड़ी काम करने वाले सभी लोगों पर इसके अभूतपूर्व प्रभाव का अंदाजा लगाते हुए,मीडिया व एंटरटेनमेंट क्षेत्र की जिम्मेवारी कंपनी होने की हैसियत से,‘जी’ने यह कदम उठाया है.इस कदम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि दिहाड़ी काम करने वाले लोगों के परिवारों को इस चुनौतीपूर्ण समय में मुश्किलों का सामना न करना पड़े.

इतना ही नही ‘‘प्राइम मिनिस्टर्स सिटीजन असिस्टेंस एंड रिलीफ इन इमर्जेंसी सिचुएशंस फंड’ (पीएम केयर्स फंड) में सहयोग देने हेतु ‘जी’देश-विदेश में फैले अपने मीडिया नेटवर्क की ताकत का उपयोग करते हुए 1.3 बिलियन से अधिक लोगों को योगदान देने हेतु प्रोत्साहन देगा.इन सभी के अलावा, जी ने अपने सभी 3500 कर्मचारियों को इंट्रानेट पोर्टल के जरिए पीएम केयर्स फंड में स्वैच्छिक रूप से योगदान देने का आव्हान किया है.कर्मचारियों द्वारा योगदान की गई राशि के बराबर की राशि कंपनी अपनी तरफ से मिलाकर पीएम केयर्स फंड में भेजेगी.

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जी नेटवर्क के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी पुनीत गोयंका कहते हैं-‘‘हम अपने प्रोडक्शन इकोसिस्टम में काम करने वाले सभी दैनिक वेतन भोगियों का आर्थिक रूप से सहयोग करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. हम दृढ़ता से एकजुट होकर इस स्थिति से खिलाफ लड़ने की असाधारण शक्ति में विश्वास करते हैं.इन चुनौतीपूर्ण समय में यह भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है कि हम एक साथ आकर और हमारे माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई राष्ट्रीय स्तर की पहल का समर्थन करें.वित्तीय सहायता के अलावा हम देशव्यापी जागरूकता में भी योगदान देंगे.बड़े पैमाने पर राष्ट्र और दुनिया भर में अपनी मजबूत पहुंच का लाभ उठाते हुए, हम अपने सम्मानित दर्शकों से इस अभियान में शामिल होने का आग्रह कर रहे हैं.यह ऐसा समय है जहां पूरे राष्ट्र को एक परिवार के रूप में एक साथ आने की जरूरत है.”

कंपनी के सभी उपभोक्ता टचप्वाइंट्स की सामूहिक ताकत, जिसमें उसके टेलीविजन चैनल, डिजिटल प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म शामिल हैं, को दुनिया भर में इस आंदोलन में शामिल होने के लिए लगाया जाएगा.एक कंपनी के रूप में जो हमेशा अपने उपभोक्ताओं के बारे में जुनूनी रही है, उन्हें सुरक्षा और एहतियाती उपायों के बारे में सूचित और संवेदनशील बनाए रखने के लिए, जी ने अपनी तरह की पहली पहल लागू की है, जिसका शीर्षक रुठतमंाज्ीमब्वतवदंव्नजइतमंा है.इस पहल के तहत, दिन भर में 30 सेकंड के ब्रेक के लिए 40़ चैनलों की सामग्री को रोका गया,जिससे दर्शकों को हाथ धोने के लिए प्रोत्साहित किया गया.इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन (आईबीएफ) द्वारा लिए गए निर्णय के अनुरूप, टेलीविजन चैनल जी अनमोल ने सभी डीटीएच प्लेटफार्मों और केबल टीवी नेटवर्क पर सभी दर्शकों के लिए दो माह की अवधि के लिए मुफ्त में उपलब्ध कराया.कंपनी के डिजिटल पक्ष पर ‘जी5’ने यह सुनिश्चित किया कि देश को इंटरनेट बैंडविड्थ में उच्च परिभाषा (एचडी) सामग्री को मानक परिभाषा (एसडी) सामग्री में बदलकर अनुकूलित किया जाए.‘जी5’ने यह भी सुनिश्चित किया कि दर्शक अपने रुठमब्ंसउठमम्दजमतजंपदमक पहल के साथ लॉकडाउन चरण के दौरान शांत और सकारात्मक रहे.

शान्तिस्वरुप त्रिपाठी जी नेटवर्क कोरोना के खिलाफ लड़ाई में 5000 मजदूरों को आर्थिक राहत देंगे

1.3 बिलियन दर्शकों से कोरोना के खिलाफ इस लड़ाई में जुड़ने और योगदान देने की अपील की

मीडिया और एंटरटेनमेंट पावरहाउस,‘जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड (जी)’ने कोविड-19 के खिलाफ अपनी लड़ाई तेज करते हुए अपने समग्र प्रोडक्शन इकोसिस्टम में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप जुड़े दिहाड़ी काम करने वाले 5000 से अधिक लोगों को आर्थिक राहत देने का आज वचन दिया.लॉकडाउन के चलते दिहाड़ी काम करने वाले सभी लोगों पर इसके अभूतपूर्व प्रभाव का अंदाजा लगाते हुए,मीडिया व एंटरटेनमेंट क्षेत्र की जिम्मेवारी कंपनी होने की हैसियत से,‘जी’ने यह कदम उठाया है.इस कदम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि दिहाड़ी काम करने वाले लोगों के परिवारों को इस चुनौतीपूर्ण समय में मुश्किलों का सामना न करना पड़े.

इतना ही नही ‘‘प्राइम मिनिस्टर्स सिटीजन असिस्टेंस एंड रिलीफ इन इमर्जेंसी सिचुएशंस फंड’ (पीएम केयर्स फंड) में सहयोग देने हेतु ‘जी’देश-विदेश में फैले अपने मीडिया नेटवर्क की ताकत का उपयोग करते हुए 1.3 बिलियन से अधिक लोगों को योगदान देने हेतु प्रोत्साहन देगा.इन सभी के अलावा, जी ने अपने सभी 3500 कर्मचारियों को इंट्रानेट पोर्टल के जरिए पीएम केयर्स फंड में स्वैच्छिक रूप से योगदान देने का आव्हान किया है.कर्मचारियों द्वारा योगदान की गई राशि के बराबर की राशि कंपनी अपनी तरफ से मिलाकर पीएम केयर्स फंड में भेजेगी.

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जी नेटवर्क के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी पुनीत गोयंका कहते हैं-‘‘हम अपने प्रोडक्शन इकोसिस्टम में काम करने वाले सभी दैनिक वेतन भोगियों का आर्थिक रूप से सहयोग करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. हम दृढ़ता से एकजुट होकर इस स्थिति से खिलाफ लड़ने की असाधारण शक्ति में विश्वास करते हैं.इन चुनौतीपूर्ण समय में यह भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है कि हम एक साथ आकर और हमारे माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई राष्ट्रीय स्तर की पहल का समर्थन करें.वित्तीय सहायता के अलावा हम देशव्यापी जागरूकता में भी योगदान देंगे.बड़े पैमाने पर राष्ट्र और दुनिया भर में अपनी मजबूत पहुंच का लाभ उठाते हुए, हम अपने सम्मानित दर्शकों से इस अभियान में शामिल होने का आग्रह कर रहे हैं.यह ऐसा समय है जहां पूरे राष्ट्र को एक परिवार के रूप में एक साथ आने की जरूरत है.”

कंपनी के सभी उपभोक्ता टचप्वाइंट्स की सामूहिक ताकत, जिसमें उसके टेलीविजन चैनल, डिजिटल प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म शामिल हैं, को दुनिया भर में इस आंदोलन में शामिल होने के लिए लगाया जाएगा.एक कंपनी के रूप में जो हमेशा अपने उपभोक्ताओं के बारे में जुनूनी रही है, उन्हें सुरक्षा और एहतियाती उपायों के बारे में सूचित और संवेदनशील बनाए रखने के लिए, जी ने अपनी तरह की पहली पहल लागू की है, जिसका शीर्षक #BreakThe Corona Outbreak  है.इस पहल के तहत, दिन भर में 30 सेकंड के ब्रेक के लिए 40़ चैनलों की सामग्री को रोका गया,जिससे दर्शकों को हाथ धोने के लिए प्रोत्साहित किया गया.इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन (आईबीएफ) द्वारा लिए गए निर्णय के अनुरूप, टेलीविजन चैनल जी अनमोल ने सभी डीटीएच प्लेटफार्मों और केबल टीवी नेटवर्क पर सभी दर्शकों के लिए दो माह की अवधि के लिए मुफ्त में उपलब्ध कराया.कंपनी के डिजिटल पक्ष पर ‘जी5’ने यह सुनिश्चित किया कि देश को इंटरनेट बैंडविड्थ में उच्च परिभाषा (एचडी) सामग्री को मानक परिभाषा (एसडी) सामग्री में बदलकर अनुकूलित किया जाए.‘जी5’ने यह भी सुनिश्चित किया कि दर्शक अपने #BeCalmBeEntertained पहल के साथ लॉकडाउन चरण के दौरान शांत और सकारात्मक रहे.

 

लॉकडाउन टिट बिट्स– भाग 4

लॉक डाउन ने बढ़ाई नज़दीकियां–

 उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कट्टर सनातनी हैं और अब कहने भर को ही सही बसपा सुप्रीमो अंबेडकारवादी हैं. ये दोनों विचारधाराएं नदी के दो किनारों जैसी हैं लेकिन लगता है लाक डाउन के चलते यह नदी सूख रही है. हैरतअंगेज तरीके से योगी–माया के बीच नज़दीकियां बढ़ रहीं हैं. मायावती ने अपने विधायकों से आग्रह किया (गौर करें इस बार आदेश नहीं दिया) कि वे अपनी विधायक निधि से मुख्यमंत्री कोष में 1-1 करोड़ रु दें जो कि उन्होंने दे भी दिये. इस पर खुशी से फूले नहीं समाए आदित्यनाथ ने फोन कर बहिन जी को हार्दिक धन्यवाद भी दिया.

मायावती जाने क्यों (शायद भीम आर्मी के मुखिया चन्द्र शेखर रावण की बढ़ती लोकप्रियता और स्वीकार्यता के डर से) इन दिनों भाजपा से नज़दीकियाँ बढ़ाने का कोई मौका नहीं चूक रहीं. बरेली में जब गरीब भगोड़े मजदूरों पर कीटनाशक केमिकल छिड़का गया था, तब उन्होंने औपचारिक विरोध दर्ज कराया था. यह नहीं कहा था कि इन मजदूरों में अधिकांश दलित समुदाय के हैं और उनकी शुद्धि का यह तरीका मनुवादी है लिहाजा योगी तत्काल इस्तीफा दें. पूरे देश की तरह यूपी में भी दलितों पर अत्याचार आए दिन होते रहते हैं जिन पर मायावती अमूमन खामोश ही रहती हैं.

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कभी तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार के नारे पर सवार होकर सत्ता के शिखर तक पहुंची मायावती ने लगता है दलितों की नियति से समझौता कर लिया है इसलिए बाहर भी हैं. ब्राह्मणो के कुसंग ने भले ही उनकी बुद्धि हर ली हो लेकिन दलित समुदाय अर्ध जागरूक तो हो ही चुका है इसलिए पिछले साल अगस्त में हुये 12 सीटों के उपचुनाव में बसपा को कुछ नहीं मिला था. इन दो धाकड़ नेताओं के बीच खिचड़ी कुछ भी पक रही हो लेकिन यह बात भी कम दिलचस्प नहीं कि बहिन जी के गाँव बादलपुर में भाजपाई रोज जरूरतमंदों को खाना बाँट रहे हैं जिससे लगता है कि बसपा संगठनात्मक तौर पर निचले स्तर से भी दरक रही है.        

नहीं सुधरेंगे –

कोरोना संकट के दूर होने के बाद की अपनी योजना मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने उजागर कर दी है कि वे गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा पर जाएंगे. इस यानि चौथी बार में ज्योतिरादित्य सिंधिया की कृपा या सहायता कुछ भी कह लें कि वजह से मुख्यमंत्री बने  शिवराज सिंह अपनी सरकार को कोरोना संकट के चलते आकार नहीं दे पा रहे हैं. शिवराज की परेशानी कोरोना कम 24 विधानसभा सीटों पर होने बाले उपचुनाव ज्यादा हैं जिन पर चिंतन मनन करने उनके पास वक्त ही वक्त है.

इसी खाली वक्त ने उनके ज्ञान चक्षु खोले कि इस बार गोवर्धन यात्रा ठीक रहेगी क्योंकि उपचुनाव बाली अधिकतर सीटें चंबल ग्वालियर इलाकों की हैं जहां के लोगों में इस धार्मिक यात्रा का खासा क्रेज है. मध्यप्रदेश की राजनीति में कुछ भी ठीकठाक नहीं है. जोड़तोड़ कर सीएम बने इस किसान पुत्र के चेहरे पर पहले जैसे आत्मविश्वास के बजाय ग्लानि और अपराधबोध के भाव हैं मानो उन्होने चोरी छिपे पड़ोसी किसान की फसल काट ली हो.

लेकिन ऐसा भी नहीं लग रहा कि उन्होने 2018 की हार से कोई सबक लिया हो जिसके पहले उन्होने ताबड़तोड़ धार्मिक यात्राएं की थीं उनमें से भी नर्मदा यात्रा पर ही प्रदेश के खजाने की बलि चढ़ा दी थी नतीजतन नाराज लोगों ने उन्हें ही एक जगह समेट कर रख दिया था. धर्म कर्म, पूजा पाठ, तीर्थ और धार्मिक यात्राएं अगर कुर्सी दिलाने की गारंटी होतीं तो कोई वजह नहीं थी कि वे सत्ता से बाहर होते. अब फिर धर्म का नशा उनके सर चढ़ कर बोल रहा है तो अभी भी मोर्चे पर डटे कमलनाथ के लिए यह अच्छी खबर ही है जिनकी कुर्सी भी हनुमान के कुपित होने से छिन गई थी.

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पीपीई पॉलिटिक्स

सांसद और क्रिकेटर गौतम गंभीर भी राजनीति के उन आमों में से हैं जो नरेंद्र मोदी की आँधी के चलते भाजपा की झोली में आ गिरे थे. उनके सियासी केरियर की शुरुआत ही अरविंद केजरीवाल के विरोध से हुई थी और इसे ही वे राजनीति मान बैठे हैं इसलिए दुखी भी रहते हैं . ताजा वाकया पीपीई का है. संकट की इस घड़ी में गंभीर को भी मुझे भी कुछ करना चाहिए बाले मानसिक द्वंद ने घेर लिया तो उन्होने कर्ण का स्मरण करते सांसद निधि से 50 लाख रु देने की पेशकश कर डाली जिसे दिल्ली सरकार ने यथासंभव बेरहमी से ठुकराते यह कह दिया कि हमें पैसों की नहीं बल्कि पीपीई किट्स की जरूरत है हो सके तो मेहरबानी करके ये दिला दीजिये.

गंभीर का इस जबाबी हमले यानि अपमानजनक तिरस्कार पर तिलमिलाना स्वाभाविक बात थी जो यह मान बैठे थे कि उनकी पेशकश के साथ ही केजरीवाल बिछ जाएंगे. वे यह भूल गए कि जिस शख्श से उनके पीएम एचम और तमाम सांसद मंत्री पार नहीं पा पाये तो उनकी विसात क्या. लिहाजा 16 घंटे के अंदर ही उन्होने रईसों के से अंदाज में कहा मैंने एक हजार पीपीई  किट अरेंज कर लीं हैं बताइये कहाँ भिजवा दूँ.

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कोरोना की इस दिलचस्प सियासत में गौतम गंभीर हिट विकेट हो गए हैं और हमदर्दी की तलाश में यहाँ वहाँ ताक रहे हैं लेकिन कहीं से कोई सहारा नहीं मिल रहा. अच्छी बात यह है कि केजरीवाल को नीचा दिखाने उनके पास अभी भी साढ़े चार साल हैं इसलिए उन्हें अपनी कोशिशें जारी रखते मुनासिब वक्त का इंतजार करना चाहिए और यह भी स्वीकार लेना चाहिए कि सांसदी तो बैठे बिठाये मिल गई लेकिन दिल्ली के सीएम पद की कुर्सी इन छोटे मोटे टोटकों से नहीं मिलने बाली इसके लिए तो कोई बड़ा सा अनुष्ठान उन्हें करना या करवाना पड़ेगा .

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मोदी के नाम खुला खत–

जल्द ही पूर्णकालिक नेता बनने जा रहे अभिनेता कमल हासन ने ए 4 साइज के तीन पृष्ठो में  एक लंबी चौड़ी चिट्ठी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखी है जिसमें उन्होने मोदी को पानी पी पी कर कोसा है कि आपका लाक डाउन का फैसला और अमल का तरीका नोट बंदी के वक्त से भी ज्यादा हाहाकारी है जिसकी मार गरीब मजदूरों पर पड़ रही है. बक़ौल इस नवोदित नेता मोदी पर भरोसा करना उनकी भूल थी जिनहोने तेल के दिये जलबाए जबकि गरीबों के पास सब्जी पकाने भी तेल नहीं है.

इस पत्र में कोई इत्र नहीं छिडका गया है लेकिन दक्षिणपंथियों को इसमें से वामपंथ की बू गलत नहीं आ रही है. पीएमओ तरफ इस लेटर पर हालफिलहाल कोई नोटिस नहीं लिया गया है और उम्मीद है जबाब लेकर कमल हासन का कद बढ़ाया भी नहीं जाएगा.वैसे भी दक्षिण और उसमें भी तमिलनाडु में भाजपा कहीं नहीं है लेकिन अपने सहयोगी दल एआईएडीएमके सहारे वह विधानसभा में दहाई का आंकड़ा छूने का सपना देख रही है.

जबकि लोकसभा चुनाव में उसका खाता भी नहीं खुला था और एआईएडीएमके को गिरते पड़ते एक सीट मिल गई थी .उलट इसके कांग्रेस अपने 22 सीटें जीतने बाले सहयोगी दल डीएमके का पल्लू पकड़कर 8 सीटें ले गई थी.

ऐसे में कमल हासन की इस नाजुक दौर में मोदी को लिखी चिट्ठी के अपने अलग माने हैं क्योंकि एक और नामी अभिनेता रजनीकान्त भी राजनीति में कूदने का ऐलान कर चुके हैं पर भाजपा के प्रति उनका रुख पूरी तरह साफ नहीं हो रहा है. चूंकि कमल हासन की चिट्ठी में कोई अतिशयोक्ति नहीं है इसलिए तमिलनाडु के गरीबों का दिल उन पर आ भी सकता है.

Grapefruit: ‘चकोतरा’ की बिना बीज वाली नई किस्म ईजाद

बेहद रसीले फल वाला चकोतरा पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में खासा पसंद किया जाता है. यही वजह है कि इस की बाजार में अच्छीखासी मांग होती है. चकोतरा में रोग प्रतिरोधी कूवत होती है. ग्रेप फ्रूट नाम से मशहूर चकोतरा फल में साइटिक एसिड और शर्करा संतरे के मुकाबले कम होता है. इस का स्वाद खट्टा और मीठा होता है. यह नींबू और संतरे की प्रजाति का यह फल है.

इतना ही नहीं, चकोतरा में पोटैशियम, केल्शियम, फास्फोरस और लाइकोपीन सहित कई दूसरे पोषक तत्वों और विटामिन होते हैं. इस फल में विटामिन सी कई रोगों को दूर करता है.

बीजरहित किस्म ‘पूसा अरुण’….

पूसा, नई दिल्ली के वैज्ञानिकों ने चकोतरा फल की पहली बीजरहित किस्म ‘पूसा अरुण‘ तैयार करने में कामयाबी पाई है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह दुनिया में चकोतरा की पहली बीजरहित किस्म है.

चकोतरा के सामान्य फलों का साइज 1200 ग्राम या इस से ऊपर तक होता है. बड़े साइज का इस का आकार लोगों के लिए परेशानी का कारण बनता है. इसी वजह से वैज्ञानिकों ने इस नई किस्म का साइज घटा कर तकरीबन 350 से 500 ग्राम तक करने में कामयाबी पाई है, जो लोगों के बीच ज्यादा लोकप्रिय हो सकती है.

वैज्ञानिकों का दावा है कि चकोतरा की नई किस्म बो कर किसान हर पेड़ से तकरीबन 2000 रुपए तक की कमाई कर सकते हैं.

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नई किस्म की खूबी

चकोतरा की नई किस्म तैयार करने वाले वैज्ञानिक ने बताया कि इस की पुरानी किस्म साइज में बड़ी यानी तकरीबन 1200 से 1300 ग्राम तक होने के बाद भी अपेक्षाकृत कम रसीली होती है, लेकिन नई किस्म के कुल वजन का तकरीबन 41.13 फीसदी हिस्सा रस का ही होगा.

इस तरह नई किस्म के छोटे साइज यानी तकरीबन 350 से 500 ग्राम तक के बाद भी यह ज्यादा रस देगा. नई किस्म पूरी तरह मीठी होगी और खट्टापन न के बराबर होगा. ज्यादा बड़ा साइज होने से भी लोग इसे लेने में हिचकते थे, क्योंकि काटे फल को ज्यादा देर तक खुले में रखना ठीक नहीं होता, इसलिए इसे एक ही बार में खत्म करने की मजबूरी होती है, जो कई बार संभव नहीं होता, जबकि नई किस्म छोटी है, जिसे बच्चों को या कम भूख लगने पर एक बार में ही इस्तेमाल किया जा सकता है.

किसानों को फायदा

चकोतरा की नई किस्म की सब से बड़ी विशेषता यह है कि इसे ज्यादा समय तक पेड़ों पर ही महफूज रखा जा सकेगा. इसे पकने की स्थिति में भी पेड़ों पर 2 से 3 महीने तक छोड़ा जा सकेगा. इस से किसानों के ऊपर भंडारण की कीमत नहीं आती और फलों की कीमत बाजार में कम होने की स्थिति में कुछ समय तक के इंतजार के लिए इसे पेड़ों पर ही छोड़ा जा सकता है. इस के पकने का समय अक्तूबर से फरवरी माह तक होता है, जब बाजार में दूसरे मीठे फल नहीं होते. इस तरह भी यह फल लोगों के लिए एक अच्छा विकल्प बन सकता है.

इस नई किस्म चकोतरा की बोआई जुलाई से सितंबर माह के बीच या फरवरीमार्च माह में की जा सकती है. नई किस्म के पेड़ का आकार छोटा होता है, इसलिए इसे सघन बागबानी में 4×4 या 4×5 मीटर की दूरी पर उगाया जा सकता है, जबकि पुरानी किस्म के बड़े पेड़ 7×7 मीटर जगह लेते हैं, जो कम उपयोगी होता है.
हर पेड़ से तकरीबन 45-46 किलोग्राम तक फल हासिल किए जा सकते हैं. चकोतरा की नई किस्म को पूसा, नई दिल्ली से हासिल किया जा सकता है.

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सेहत के लिए फायदेमंद

चकोतरा फल भी लोगों में रोग प्रतिरोधी कूवत पैदा करने में मददगार होता है. इस में एंटीऔक्सीडेंट खूब प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. इस में सूक्ष्म मात्रा में (0.39 फीसदी) साइट्रिक एसिड भी पाया जाता है, जो इस के स्वाद और उपयोगिता को बढ़ाता है और लोगों को बहुत पसंद आता है.

#coronavirus: क्या है हाइड्रोक्सी क्लोरो क्वीन टैबलेट? 

कोरोना संकट से बचने के लिए यह दवा एक चर्चा का विषय बना हुआ है, बीते सप्ताह हमारे देश के स्वास्थ्य मंत्रालय और आइसीएमआर ने आम लोगों के लिए इस दवा के सेवन पर पाबंदी लगते हुए,  इसकी खुली बिक्री को प्रतिबंधित कर दिया. वही दूसरे तरफ कोरोना मरीजों के इलाज और उनकी देखभाल में लगे स्वास्थ्य कर्मियों को यह दवा दिये जाने की अनुशंसा किया . साथ ही इसके लिए एक विस्तृत गाइडलाइंस भी जारी कर दिया . बात यही नहीं रुकी सरकार ने इस दवा को एक बड़े खेप का आर्डर भी दवा कंपनियों कर से दिया. इस सबके बीच आश्चर्य की बात तब हुए जब बीते शनिवार को  दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पीएम मोदी से बातचीत कर मदद मांगी और जल्द से जल्द  ‘ हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन टेबलेट्स ‘ मुहैया कराने का अनुरोध किया. तो आइये जानते है आखिर क्यों इतना मांग में है यह टैबलेट :-

@ हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन  क्या है ? 

*  यह दवा एक मलेरिया रोधी दवा है. इसका उपयोग ऑटोइम्यून रोगों जैसे कि संधिशोथ( Arthritis) के उपचार में भी किया जाता है, लेकिन इन दिनों कोरोना से बचाव में इस्तेमाल के लिए इसका उपयोग किया जा रहा है .

@ कब से आया चर्चा में :- 

* 19 मार्च को ‘द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ’ नामक जनरल में एक आर्टिकल में इस दवा के फायदे और बीमारियों से लड़ने की क्षमता के बारे में बताया गया. इस आर्टिकल मे इस बात पर जोर दिया गया कि यह दवा कोरोनो वायरस के खिलाफ एंटी-वायरल तरीके से काम करती है.

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* 21 मार्च को  अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन-एज़िथ्रोमाइसिन के बारे में  ट्वीट कर कोरोना से बचने के लिए, इन दवाओं का इस्तेमाल करने की बात कही.

@ क्यों कारगर मन जा रहा है इस दवा हो :- 

* इस दवा के बारे में शोधकर्ताओं का मानना है कि हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन के साथ प्रोफिलैक्सिस का डोज लेने से SARS-CoV-2 संक्रमण और वायरल को बढ़ने से रोका जा सकता है.

@ सरकार ने क्यों लगाया प्रतिबंध :- 

* कोरोना को लेकर फैले खौंफ के बीच अचानक इस दवा को लेकर अफवाह उड़ी कि ये दवा कोरोना से बचा सकती है. जिसके बाद लोगों ने इस दवा को जमा करना शुरू कर दिया. परिणाम ये हुआ कि मेडिकल स्टोर से यह दवा गायब हो गई. इसकी कमी न हो इस बात का ध्यान रखते हुए सरकार ने इसके खुले विक्री और निर्यात पर 25 मार्च 2020 से ही प्रतिबन्ध लगा दिया .

@ इस्तेमाल के लिए जारी किया गाइडलाइन :-   इस दवा को लेकर भारतीय चिकित्सा शोध परिषद कहना है कि कोरोना वायरस संक्रमण के संदिग्ध या संक्रमित मरीजों की देखभाल करने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, जिनमे डॉक्टर, नर्से, सफाई कर्मचारी, हेल्पर आदि शामिल हैं, इनके इलाज के लिए हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन को इस्तेमाल की सिफारिश किया गया है. जिसके बाद, इसके साथ भारतीय दवा महानियंत्रक ने इमरजेंसी जैसे हालात होने पर प्रतिबंधित रूप से इस दवा के इस्तेमाल की मंजूरी दी है.

@ कुछ साइड साइड इफेक्ट भी है :- 

* बिना डॉक्टरों के सलाह के बिना इस दवा का उपयोग कतई नहीं करना है . इस दवा के जानकर कहना है कि इस दवा के कुछ साइड इफेक्ट भी हैं. सामान्य साइड इफ़ेक्ट की बात करें तो इसके अंतर्गत सिरदर्द, चक्कर आना, भूख मर जाना, मतली, दस्त, पेट दर्द, उल्टी और त्वचा पर लाल चकत्ते होना शामिल हैं. इसके अलावा इस दवा को अधिक या इसकी ओवरडोज लेने से दौरे भी पड़ सकते हैं या मरीज बेहोश हो सकता है. अंत बिना डॉक्टरों के सलाह लिए इसका उपयोग बिलकुल नहीं करना है .

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* आइसीएमआर का कहना है कि आम लोगों को खुद ही कोरोना से बचने के लिए इस दवा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा कि कोरोना के इलाज में लगे स्वास्थ्य कर्मियों के स्वास्थ्य पर पूरी निगरानी रखी जाती है, इसीलिए इस दवा के दुष्प्रभाव को आसानी से ठीक किया जा सकता है. वहीं कई मामलों में आम लोगों के लिए यह घातक साबित हो सकता है. आइसीएमआर के अनुसार 15 वर्ष से कम उम्र के लोग को यह दवा नहीं दी जा सकती.

@ अमेरिका ने क्यों मांग रहा है :- 

चीन के बाद भारत में इस दवा का अत्यधिक उत्पादन होता है. भारत अपने यहाँ के मलेरिया के मरीज के उपचार के लिए कई करोड़ों में इसका उत्पादन करता है. अभी अमेरिका में इस दवा का सख्त जरूर है , इसलिए अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश ने भारत से जल्द से जल्द इस दवा खेप को भेजने को कहा है .

 

#coronavirus: विश्व स्वास्थ्य संगठन पर भड़का अमेरिका

अमेरिका में कोरोना वायरस की चपेट में आकर जान गवाने वालों की तादात बढ़ती जा रही है.वैसे तो दुनिया भर में कोरोना के संक्रमण और मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है मगर दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका भी इस बीमारी के सामने इतना बेबस और लाचार हो जाएगा. इसका अंदाजा किसी को नहीं था. चीन, जहाँ से कोरोना वायरस निकल कर दुनिया भर में फैल गया, उसने अब इस बीमारी पर काबू पा लिया है.बीते अड़तालीस घंटों में वहां से किसी की मौत की खबर नहीं आई है, मगर अमेरिका सहित पूरी दुनिया में कोरोना से मौतों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है.

बीमारी के प्रवाह पर काबू पाने में लाचार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प कभी भारत पर हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा की खेप भेजने का दबाव बना रहे हैं, धमकियां दे रहे हैं, तो कभी विश्व स्वास्थ्य संगठन (हू) को चीन से मिलीभगत और कोरोना वायरस के फैलने का जिम्मेदार बता रहे हैं. अमेरिका ने विश्व स्वास्थ संगठन पर चीन से मिले होने और वहां इस बीमारी से मरने वालों की सही संख्या दुनिया के सामने ना रखने का दोषी करार दिया हैं. कोरोना वायरस को लेकर अमेरिकी राजनेताओं ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के डायरेक्टर जनरल टेड्रोस एडहैनम घेब्रियेसुस के इस्तीफे की भी मांग की है.
अमेरिका के रिपब्लिकन सीनेटर मार्था मैकसैली का कहना है कि कोरोना को लेकर चीन ने जो रेस्पॉन्स दिया और विश्व स्वास्थ संगठन की ओर से उसे जिस तरह से मैनेज किया गया, इससे चीन के साथ उसकी मिलीभगत का पता चलता है.

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कोरोना के संक्रमण को लेकर चीन ने कभी भी सही आंकड़ा पेश नहीं किया, मगर दुनिया के स्वास्थ की रक्षा करने का ठेका उठाने वाले विश्व स्वास्थ संगठन ने भी इसकी तस्दीक किये बगैर चीन की कही बातों पर भरोसा किया और वो आंकड़े ही दुनिया को दिखाए, जो उसको चीन ने उपलब्ध कराये. विश्व स्वास्थ संगठन ने अपनी ओर से सच जानने का कोई प्रयास नहीं किया.

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आज कोरोना वायरस के प्रकोप और उससे निपटने में लॉकडाउन के कारण विश्‍व अर्थव्‍यवस्‍था दबाव में है.धरती की आधी से अधिक आबादी किसी न किसी तरह अपने घरों में है. कोविड-19 महामारी के कारण दुनियाभर में 50 हजार से अधिक लोगों की मृत्‍यु हुई है जबकि 11 लाख से अधिक लोग संक्रमित है.रिपब्लिकन सीनेटर मार्था मैकसैली कहते हैं कि विश्व स्वास्थ संगठन प्रमुख टेड्रोस को चीन के कवर-अप के लिए इस्तीफा दे देना चाहिए.उन्होंने कहा कि चीन की ओर से पारदर्शिता नहीं रखने के लिए कुछ हद तक विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख भी दोषी हैं.

उल्लेखनीय है कि विश्व स्वास्थ संगठन प्रमुख टेड्रोस 55 साल के हैं और इथियोपिया के रहने वाले हैं.ट्रेडोस को लेकर सीनेटर मैकसैली ने कहा कि उन्होंने दुनिया को ‘धोखा दिया. इतना ही नहीं, टेड्रोस ने कोरोना वायरस रेस्पॉन्स को लेकर चीन की ‘पारदर्शिता’ की तारीफ भी की थी.मैकसैली ने टेड्रोस पर आरोप लगाया है कि उन्होंने कभी किसी कम्युनिस्ट पर भरोसा नहीं किया और चीनी सरकार ने अपने यहां पैदा होने वाले वायरस को छिपाया और इसकी वजह से अमेरिका और दुनिया में अनावश्यक मौतें हुई हैं. इसलिए टेड्रोस को इस्तीफा दे देना चाहिए.

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गौरतलब है कि इस साल फरवरी माह में जब चीन में 17,238 संक्रमण के मामले आये थे और 361 लोगों की मौत हो चुकी थी, तब टेड्रोस ने कहा था कि ट्रैवल पर रोक लगाने की जरूरत नहीं है.अमेरिका का कहना है कि टेड्रोस ने बीमारी की गंभीरता को नहीं समझा और ना ही इस बात की जांच करवाई कि चीन जो आंकड़े दे रहा है वो सही हैं या नहीं.अमेरिका के मुताबिक़ चीन शुरू से बीमारों और मरने वालों की संख्या कम करके बताता आया है. एक अनुमान के मुताबिक चीन में कोरोना वायरस से हुई मौतों का असल आंकड़ा 40 हजार तक हो सकता है.आधिकारिक रूप से चीन ने करीब 3300 मौत की बात ही कही है.
वुहान, जहाँ से ये जानलेवा वायरस निकला और दुनिया भर में फ़ैल गया वहां आधिकारिक तौर से सिर्फ 2548 लोगों की जान जाने की बात चीन कहता रहा.लेकिन स्थानीय एक्टिविस्ट का कहना है कि यहां के शवदाह गृह से रोज 500 लोगों को अस्थि कलश दिए गए.

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शवदाह गृहों के बाहर लंबी लाइनें भी देखी गईं.इसके पीछे दुनिया की इकॉनमी को बर्बाद करने के लिए चीन द्वारा रची गई साजिश की बू आ रही है. चीन ने अब इस बीमारी पर काबू भी पा लिया है. चीन में एक भी राजनेता, बड़े बिज़नेसमैन या मिलिटरी अफसर की इस बीमारी से मौत नहीं हुई है. ना ही चीन के सत्ता प्रमुख को इस बीमारी से कभी चिंतित या मास्क लगाए देखा गया है.वो खुलेआम पब्लिक में बेफिक्री से घूमते नज़र आये हैं. जैसे उनको इस बीमारी से कोई ख़तरा ही ना हो.यही वजह है कि अमेरिका चीन पर भड़का हुआ है और साथ ही विश्व स्वास्थ संगठन के प्रमुख पर भी उसका गुस्सा उतर रहा है.अमेरिकी रिपब्लिकन सीनेटर टेड क्रूज ने भी कहा है कि वैश्विक स्वास्थ्य और वायरस के संक्रमण को रोकने के इतर ‘हू’ लगतार चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की ओर झुका दिख रहा है. ‘हू’ ने अपनी क्रेडिबिलिटी खो दी है.
फ्लोरिडा के राजनेता मार्को रुबियो ने भी कहा है कि महामारी को जिस तरह से हैंडल किया गया उसके लिए ‘हू’ प्रमुख की जिम्मेदारी भी तय होनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि ‘हू’ प्रमुख ने बीजिंग को दुनिया को गुमराह करने की इजाजत दी. इस वक्त वे या तो चीन से मिले हुए हैं या फिर खतरनाक रूप से असक्षम हैं.वहीं, यूएन में पूर्व अमेरिकी अम्बैसडर निकी हेली ने भी कोरोना वायरस को लेकर ‘हू’ के बयानों की आलोचना की है. उन्होंने ट्वीट करके कहा – ‘हू’ ने इसे 14 जनवरी को पोस्ट किया था कि ‘हू’ को इंसानों से इंसानों में कोरोना वायरस फैलने के स्पष्ट सबूत नहीं मिले हैं. ‘हू’ को दुनिया को बताना चाहिए कि क्यों उन्होंने चीनी शब्दों का इस्तेमाल किया?

 

कोरोना के तवे पर धर्म की रोटियां

गांव बसा नहीं लुटेरे पहले आ गए, वाली कहावत कोरोना से पैदा हुये संकट पर एकदम सटीक बैठती है जिसकी कुछ झलकियां देख लेने के बाद ही लगता है कि खामोख्वाह में दुनिया भर के वैज्ञानिक कोरोना से निबटने प्रयोगशालाओं में अपना सर फोड़ रहे हैं. कोई और बात होती या मौका कोई और होता तो इन वैज्ञानिकों को यह सलाह दी जा सकती थी कि वे लैब छोड़कर सीधे अपने निकटतम धर्म स्थल जाएं और वहां दुकान चला रहे पादरी, पंडे या मोमिन से मिलें,  हजार दो हजार रु में कोरोना को नष्ट करने मंत्र, सामग्री या उपाय ले आयें और बंद करें वैक्सीन की खोज दवाई की ईजादी जैसे फिजूल के काम.

मानव मात्र के कल्याण का ठेका तो इन दलालों के पास है लेकिन यह कोरोना बड़ा अजीब और नास्तिक किस्म का बेहूदा वायरस निकला जिसने बाजार में आते ही धर्म स्थलों तक के दरवाजे बंद करवा दिये. ज्ञात इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि सब की रक्षा और कल्याण करने बाले  भगवान के द्वार भी बंद हो गए.

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कैसे कैसे कोरोना के नाम पर अंधविश्वास फैलाये जाकर ग्राहकों को भगवान नाम के आदिम प्रोडक्ट की तरफ से निराश न होने के टोटके किए जा रहे हैं यह सब भी बताने की जरूरत न पड़े अगर लोग यह समझ लें कि वाकई कोरोना ने यह तो साबित कर दिया है कि ईश्वर कहीं नहीं है. वह तो कुछ चालाक और धूर्त लोगों द्वारा गढ़ी गई एक गप्प है. अगर वह होता तो कोरोना को भस्म और नष्ट कर देता.

दरअसल में धर्म का कारोबार उन लोगों से चलता है जिन्हें शुरू में ही यह रटा दिया जाता है कि सब कुछ भगवान का बनाया हुआ है और वह इस तरह की लीलाएं किया करता है. (जिससे धर्म के दुकानदारों की रोजी रोटी चलती रहे).

इस बार जाने क्यों उस पालनहार ने कुछ ज्यादा ही टफ टास्क दे दिया है जिससे लगता है कि वह भक्तों की नहीं बल्कि दलालों का इम्तिहान ले रहा है कि अब चलाओ कैसे चलाओगे धर्म का धंधा, तो धंधेबाजों के जबाब भी हाजिर हैं. आइये कुछेक पर नजर डाल लें जिससे पता चले कि इलाज डाक्टर और नर्स बगैरह कर रहे हैं एक तरफ तो वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में कोरोना की पृकृति  का अद्ध्यन कर रहे हैं तो दूसरी तरफ धर्म के दुकानदार इनके सफल होने का इंतजार कर रहे हैं कि इनकी सफलता का श्रेय कैसे कैसे झटकना है.

शुरुआत दुनिया के सबसे छोटे लेकिन सम्पन्न जैन धर्म के सबसे बड़े गुरु विद्ध्यसागर जी  जिनका दर्जा भक्तों की नजर में भगवान से कम नहीं से करें तो उन्होने देश के सबसे बड़े अखबार के जरिये नुस्खा बताया कि घर में परमात्मा का ध्यान करने से कोरोना से बचा जा सकता है. उन्होंने इससे यानि कोरोना से बचने का रास्ता ब्रह्मचर्य और दान को बताया. अपनी बात को विस्तार देते उन्होने कहा, ब्रह्मचर्य यानि अपनी आत्मा में, स्वभाव में लीन होना.

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जब व्यक्ति बाहर जाता है तो दुनिया उसे अशांत करती है इसके उलट जब वह आत्मा की और जाता है तो उसे ब्रह्म दिखाई देता है. जो शांति देता है . आज के वक्त में सबसे अच्छा साधन है परमात्मा का ध्यान उनका स्मरण करना.

यह अब कोई भारीभरकम फ़िलासफी नहीं रह गई है बल्कि हाजमे के चूर्ण जैसी बात हो चली  है कि जब भी पेट में मरोड़े उठें तो 2 चम्मच फांक लो सुबह पेट साफ हो जाएगा. क्या इस प्रवचन या फलसफे को कोरोना का इलाज आज के इस वैज्ञानिक युग में माना जा सकता है.  इस सवाल का कड़वा जबाब है हरगिज नहीं यह तो कोरोना के सामने एक हताश धर्म गुरु का झुनझुना है जिससे एक ही आवाज निकल रही है कि पूजा पाठ करते रहो.

कोरोना न लगे तो परमात्मा की कृपा और लग जाये तो मान लेना कि तुम्हारे पाप जरूरत से ज्यादा थे यानि फोकस पूजा पाठ की आदत और दान की लत पर ही है जिस पर कोरोना का रेपर भी लपेट दिया गया है. कोरोना को नहीं मालूम कि अंदर कहाँ होता है और बाहर कहाँ होता है, अब तक का अद्ध्यन तो यही बताता है कि यह वायरस सांस के जरिये गले को गिरफ्त में लेता है. जिनकी इम्यूनिटी अच्छी होती है और जिन्हें वक्त पर इलाज मिल जाता है वे ठीक भी हो जाते हैं.

अगर किसी को विद्ध्यसागर जी की बात में कोई दम नजर आता है तो उन्हें फौरन सरकार पर दबाब बनाना चाहिए कि खत्म करो ये लाक डाउन और आइसोलेशन बगैरह सभी संक्रमितों को तुरंत भगवान के ध्यान और ब्रह्मचर्य में लगा दो .  जानें भी बच जाएंगी और पैसा भी बच जाएगा.

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बहुसंख्यक हिंदुओं के एक शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द ने बरेली में कोरोना का इलाज तो नहीं बताया लेकिन उसके होने की वजह बता दी कि वैदिक धर्म से विमुखता की वजह से कोरोना फैला. इन महाराज जी ने तो 15 मार्च को यह तक कह डाला कि समाज और विकास के लिए वर्ण व्यवस्था जरूरी है. पत्रकार पूछ रहे थे कोरोना के बारे में और वे कर रहे थे सनातन धर्म का प्रचार. अब एक पल को मान भी लिया जाये कि वैदिक धर्म से विमुखता ही कोरोना फैलने की वजह है तो इस वायरस को वाया चीन भारत आने की क्या सूझी. मकसद चूंकि यह बताना था कि आजकल पूजा पाठ , वेद पुरानों के मुताबिक नहीं हो रहे हैं इसलिए कोरोना जैसे क्षुद्र वायरस तो तबाही मचाएंगे ही इसलिए पहले पूजा पाठ का तरीका सुधारो.

एक और शंकराचार्य स्वामी वासुदेव तो मध्यप्रदेश के कटनी जिले में भविष्यवाणी कर गए कि घबराओ मत गर्मी आते ही कोरोना खतम हो जाएगा. अब इस भविष्यवाणी का आधार क्या था इसे बारीकी से समझें तो बात स्पष्ट हो जाती है कि कोरोना संकट दूर करने किए जा रहे उपाय और वैज्ञानिकों की कोशिशें हैं जिन्हें भुनाने यही धर्म गुरु कहेंगे कि देखो धर्म और भगवान में आस्था से सब कुछ संभव है, तो भक्तो चढ़ाओ इसी बात पर दक्षिणा और यकीन मानें लोग चढ़ाएंगे भी.

कोरोना का प्रकोप नवरात्रि के दिनों में भी रहा जिससे दान दक्षिणा और पूजा पाठ का कारोबार भी ठप्प सा रहा. लाक डाउन के चलते भक्त मंदिर नहीं गए लेकिन इन दुकानदारों ने आस नहीं छोड़ी और लोगों को नया पाठ यह पढ़ाया कि आप घर से ही पूजा पाठ करो फल उतना ही मिलेगा जितना पहले मिलता था . अब अगर ऐसा है तो क्यों नहीं इन मंदिरों पर ताले स्थायी रूप से जड़ दिये जाते जिससे जरूर कई फायदे होंगे. अरबों खरबो की मंदिरों बाली जमीन सार्वजनिक उपयोग में आएगी और लोगों का बेशकीमती वक्त भी बचेगा.

आगरा की वास्तुविद और ज्योतिषी डाक्टर शोनू महरोत्रा ने एक दिलचस्प लेकिन चालाकी भरी बात यह कही कि सनातन धर्म व ज्योतिष आदिकाल से ही देश–काल एवं परिस्थिति को महत्व देता आया है आप यानि भक्तगन इस नवरात्र अपने घरों में उपलब्ध सामग्री से ही पूजा पाठ करें, हवन करें फल मिलेगा क्योंकि ईश्वर भाव के प्रेमी होते हैं वस्तुओं के नहीं. यही बात दिल्ली के प्रमोद पाण्डेय और भोपाल के जीवन दुबे ने भी अपने अपने तरीकों से कही, हर छोटे बड़े शहर के छोटे बड़े पंडित ने कही कि कुछ भी करो लेकिन पूजा पाठ मत छोड़ देना.

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ऐसा सिर्फ इसलिए कि रोजी रोटी चलती रहे और जैसे ही कोरोना संकट दूर हो तो लोगों को बेवकूफ बनाते यह कहा जा सके कि इसी पूजा पाठ के चलते कोरोना भागा नहीं तो समझिए प्रलय आ ही गया था . इन लोगों का मकसद साफ है कि कोरोना के प्रकोप का श्रेय भी भगवान को दो और प्रकोप को दूर करने पूजा पाठ करते रहो. लाक डाउन के चलते भक्त मंदिर नहीं जा पाये तो उन्हें घर से ही कर्मकांड करने की सलाह दी गई. एक तरह से देखा जाये तो खुद ही धर्म स्थलों की पोल इनहोने ही खोल दी लेकिन लोग जागरूक और तर्कशील होकर सवाल न करने लगें इसलिए पूजा पाठ करने अपीलें की जाती रहीं.

इस हालत के लिए मीडिया और सरकार भी कम दोषी और जिम्मेदार नहीं . अखबारों ने खूब स्थानीय पंडे पुजारियों की अपीलें छापकर पूजा पाठ का अंधविश्वास घर घर पहुंचाया तो न्यूज़ चेनल्स ने ब्रांडेड पंडितों को बुलाकर उनके विचार दर्शकों तक पहुंचाए जिससे लोगों को भी लगा कि कोरोना नाम के इस जानलेवा वायरस से अब भगवान ही बचा सकता है .  बाकी इलाज कर रहे डाक्टर और स्वास्थकर्मी बगैरह तो निमित्त मात्र हैं . वैज्ञानिक खुद रिसर्च करते कोरोना की दवा नहीं खोज रहे हैं बल्कि सब कुछ ईश्वरीय प्रेरणा से हो रहा है .

मोदी सरकार ने लाक डाउन की हडबड़ाहट को छोड़ दें तो कोई शक नहीं मुस्तैदी से काम किया लेकिन खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ही किए पर पानी फेर लिया या यूं कहना बेहतर होगा कि जानबूझकर धार्मिक पाखंडों को हवा दी . 2 अप्रेल को प्रधानमंत्री ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये सभी मुख्यमंत्रियों से कहा कि वे सभी धर्मो के गुरुओं को कोरोना के खिलाफ लड़ी जा रही जंग में शामिल करें और इसके लिए राज्य से लेकर थाना स्तर के धर्म गुरुओं को महत्व दें . बस इतना होना था कि पंडे पुजारी मुल्लों और फादरों की पूछपरख सरकारी तौर पर शुरू हो गई और उन्होने जोश में आकर प्रचार करना शुरू कर दिया कि होगा वही जो भगवान चाहेगा इसलिए कोरोना से मुक्ति चाहते हो तो पूजा पाठ करो .

फिर  ताली थाली बजबाकर और दिये जलबाकर किसका आभार व्यक्त किया गया. दरअसल में ये ड्रामे अघोषिततौर पर धार्मिक ही थे जिससे कोरोना का कोहरा छंटने के बाद पाखंडों की उजड़ती दुकान की पुनर्स्थापना की जाकर श्रेय धर्म गुरुओं के खाते में डाला जा सके.

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