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औकात से ज्यादा
लड़कियों को काम कर के पैसा कमाते देख निशा के अंदर भी कुछ करने का जोश उभरा. सिर्फ जोश ही नहीं, निशा के अंदर ऐसा आत्मविश्वास भी था कि वह दूसरों से बेहतर कर सकती थी.
भाग - 1
‘मानना न मानना तुम्हारी मरजी है मम्मी, मगर ऐसी बातों का खयाल कर के मैं इतनी अच्छी नौकरी को हाथ से जाने नहीं दे सकती. मैं बड़ी हो गई हूं, इसलिए अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेने का मुझे हक है,’’
भाग - 2
लड़कियां जिस तरह के कपड़े पहन औफिस में आती थीं, वैसे कपड़े पहनने पर तो शायद मम्मी निशा को घर से बाहर भी नहीं निकलने देतीं. उन वस्त्रों में कटाव व उन की पारदर्शिता में से जिस्म का एक बड़ा हिस्सा साफ नजर आता था.
भाग - 3
निशा के अपना रंगरूप बदलते ही निशा के लिए औफिस में भी एकाएक सबकुछ बदलने लगा. अपने केबिन की तरफ जाते हुए संजय की नजर निशा पर पड़ी और इस के बाद पहली बार उस को अकेले केबिन में आने का इंटरकौम पर हुक्म भी तत्काल ही आ गया.
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