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मुन्नू का मन रखने के लिए जब खिलौना गाड़ी से दार्जिलिंग जाना तय हुआ तब सोचा था कि समय बिताना समस्या बन जाएगा, पर हर पल रंग बदलते मनोरम दृश्यों ने मन को बांध लिया.

ऊंचाई पर मौसम के तेवर कुछ और थे. घाटियों में धुंध की चादरें बिछी थीं. जब भी गाड़ी बादलों के गुबार के बीच से गुजरती तो मुन्नू की रोमांचभरी किलकारी छूट जाती.

ऊंची खड़ी चढ़ाई पर डब्बे खींचते इंजन का दम फूल जाता, रफ्तार बिलकुल रेंगती सी रह जाती. छुकछुक की ध्वनि भकभक में बदल जाती, तो मुन्नू बेचैन हो जाता और कहता, ‘‘मां, गाड़ी थक गई क्या?’’

कहींकहीं पर सड़क पटरी के साथसाथ सरक आती. ऐसी ही एक जगह पर जब सामने खिड़की पर बैठी सलोनी सी लड़की ने बाहर निहारा तो समानांतर सड़क पर दौड़ती कार से एक सरदारजी ने फिकरा उछाला, ‘‘ओए, साड्डे सपनों की रानी तो मिल गई जी.’’

सरदारजी के कहे गए शब्दों को सुन कर लड़की ने सिर खिड़की से अंदर कर लिया.

यद्यपि सर्दी में वहां भीड़भाड़ कम थी, लेकिन फिर भी सर्दी के दार्जिलिंग ने कुछ अलग अंदाज से ही स्वागत किया. ऐसा भी नहीं कि पूरा शहर बिलकुल ही बियावान पड़ा हो. ‘औफ सीजन’ की एकांतता का आनंद उठाने के इच्छुक एक नहीं, अनेक लोग थे.

माल रोड पर मनभावन चहलपहल थी. कहीं हाथों में हाथ, कहीं बांहों में बांहें तो कहीं दिल पर निगाहें. धुंध में डूबी घाटियों की ओर खिड़कियां खोले खड़ा चौक रोमांस की रंगीनी से सरोबार था.

‘‘लगता है, देशभर के नवविवाहित जोड़े हनीमून मनाने यहीं आ गए हैं,’’ रोहित रश्मि का हाथ दबा कर आंख से इशारा करते हुए बोला, ‘‘क्यों, हो जाए एक बार और?’’

‘‘क्या पापा?’’ मुन्ने के अचानक बोलने पर रश्मि कसमसाई और रोहित ने अपनी मस्तीभरी निगाहें रश्मि के चेहरे से हटा कर दूर पहाड़ों पर जमा दीं.

‘‘पापा, आप क्या कह रहे हैं,’’ मुन्ने ने हठ की तो रश्मि ने बात बनाई, ‘‘पापा कह रहे हैं कि वापसी में एक बार और ‘टौय ट्रेन’ में चढ़ेंगे.’’

‘‘सच पापा,’’ किलक कर मुन्नू पापा से लिपट गया. फिर कुछ समय बाद बोला, ‘‘पापा, हनीमून क्या होता है?’’

इस से पहले कि रोहित कुछ कहे, रश्मि बोल पड़ी, ‘‘बेटा, हनीमून का मतलब होता है शादी के बाद पतिपत्नी का घर से कहीं बाहर जा कर घूमना.’’

‘‘मम्मी, क्या आप ने भी कहीं बाहर जा कर हनीमून किया था?’’

‘‘हां, किया था बेटे, नैनीताल में,’’ इस बार जवाब रोहित ने सहज हो कर दिया था.

‘‘क्या आप ने पहाड़ पर चढ़ कर गाना भी गाया था टैलीविजन वाले आंटीअंकल की तरह?’’

‘‘ओह,’’ बेटे के सामान्य ज्ञान पर रश्मि ने सिर थाम लिया और बात को बदलने का प्रयत्न किया.

‘‘नहीं, सब लोग टैलीविजन वाले आंटीअंकल जैसे गाना थोड़े ही गा सकते हैं. चलो, अब हम रोपवे पर घूमेंगे.’’

एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ के बीच की गहरी घाटियों के ऊपर झूलती ट्रालियों में सैर करने की सोच से मुन्ना रोमांचित हो उठा तो रश्मि ने राहत की सांस ली.

पर कहां? मुन्नू को तो नवविवाहित जोड़ों की अच्छी पहचान सी हो गई थी.

उस दिन होटल के ढलान को पार करने के बाद पहला मोड़ घूमते ही पहाड़ी कटाव के छोर पर एक नवविवाहित युगल को देख मुन्नू चहका और पिता के कान में फुसफुसाया, ‘‘पापा, पापा… हनीमून.’’

‘‘हिस,’’ होंठों पर उंगली रख कर रश्मि झेंपी. रोहित ने बेटे को गोद में उठा कर ऊपर हवा में उछाला.

दुनिया से बेखबर, बांहों में बाहें डाले प्रेमीयुगल एकदूसरे को आइसक्रीम खिलाने में मगन थे. उन की देखादेखी मुन्नू भी मचला, ‘‘पापा, हम भी आइसक्रीम खाएंगे.’’

‘‘अरे, इतनी सर्दी में आइसक्रीम?’’ रोहित ने बेटे को समझाया.

‘‘वे आंटीअंकल तो खा रहे हैं, पापा?’’ उस ने युगल की ओर उंगली उठा कर इशारा किया.

‘‘वह…वे तो हनीमून मना रहे हैं,’’ मौजमस्ती के मूड में रोहित फिर बहक रहा था.

‘‘हनीमून पर सर्दी नहीं लगती, पापा?’’ मुन्ने ने आश्चर्य जताया.

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं,’’ रोहित ने शरारतभरा अट्टाहास किया और बेटे को उकसाया, ‘‘अपनी मां से पूछ लो.’’

गुस्से से रश्मि तिलमिला कर रह

गई. उस समय तो किसी तरह

बात को टाला, पर अवसर मिलते ही पति को लताड़ा, ‘‘तुम भी रोहित, बच्चे के सामने कुछ भी ऊटपटांग बोल देते हो.’’

‘‘शाश्वत तथ्यों का ज्ञान जरूरी नहीं क्या,’’ रोहित ने खींच कर पत्नी को पास बैठा लिया, पर रश्मि गंभीर ही बनी रही.

रश्मि की चुप्पी को तोड़ते हुए रोहित बोला, ‘‘तुम तो व्यर्थ में ही तिल का ताड़ बनाती रहती हो.’’

‘‘मैं तिल का ताड़ नहीं बना रही. तुम सांप को रस्सी समझ रहे हो. जब देखो, बेटे को बगल में बैठा कर टैलीविजन खोले रहते हो. ये छिछोरे गाने, ये अश्लील इशारे, हिंसा, मारधाड़ के नजारे. कभी सोचा है कि इन्हें देखदेख कर क्या कुछ सीखसमझ रहा है हमारा मुन्नू. और अब यहां हर समय का यह हनीमून पुराण के रूप में तुम्हारी ठिठोलबाजी मुझे जरा भी पसंद नहीं है.’’

‘‘अरे, हम छुट्टियां मना रहे हैं, मौजमस्ती का मूड तो बनेगा ही,’’ रोहित रश्मि को बांहों में बांधते हुए बोला.

दार्जिलिंग की वादियों में छुट्टियां बिता कर वापस लौटे तो रोहित कार्यालय के कामों में पहले से भी अधिक व्यस्त हो गया. चूंकि मुन्नू की कुछ छुट्टियां अभी बाकी थीं, इसलिए रश्मि मुन्नू को रचनात्मक रुचियों से जोड़ने के लिए रोज  नईनई चीजों के बारे में बताती. चित्रमय किताबें, रंगारंग, क्रेयंस, कहानियां, कविताएं, लूडो, स्क्रेंबल, कैरम और नहीं तो अपने बचपन की बातें और घटनाएं मुन्नू को बताती.

एक दिन रश्मि बोली, ‘‘पता है मुन्नू, जब हम छोटे थे तब यह टैलीविजन नहीं था. हम तो, बस, रेडियो पर ही प्रोग्राम सुना करते थे.’’

‘‘पर मां, फिर आप छुट्टियों में क्या करती थीं?’’ हैरान मुन्नू ने पूछा.

‘‘छुट्टियों में हम घर के आंगन में तरहतरह के खेल खेलते, घर के पिछवाड़े में साइकिल चलाते और नीम पर रस्सी डाल कर झूला झूलते.’’

मां की बातें सुन कर मुन्नू की हैरानी और बढ़ जाती, ‘‘पर मां, झूला तो पार्क में झूलते हैं और साइकिल तुम चलाने ही नहीं देतीं,’’ इतना कह कर मुन्नू को जैसे कुछ याद आ गया और कोने में पड़े अपने तिपहिया वाहन को हसरतभरी निगाह से देखने लगा.

‘‘मां, मां, कल मैं भी साइकिल चलाऊंगा. शैला के साथ रेस होगी. तुम, बस, मेरी साइकिल नीचे छोड़ कर चली जाना.’’

रश्मि ने बात को हंसी में टालने का यत्न किया. स्वर को रहस्यमय रखते हुए वह बोली, ‘‘और पता है, क्याक्या करते थे हम छुट्टियों में…’’

‘‘क्या मां? क्या?’’ मुन्नू उत्सुकता से उछला.

‘‘गुड्डेगुडि़यों का ब्याह रचाते थे. नाचगाना करते थे. पैसे जोड़ कर पार्टी भी देते थे. इस तरह खूब मजा आता.’’

पर मुन्नू को इस तरह की बातों में उलझाए रखना बड़ा मुश्किल था. चाहे जितना मरजी बहलाओ, फुसलाओ, लेकिन घूमफिर कर वह टैलीविजन पर वापस आ जाता.

‘‘मां, अब मैं टीवी देख लूं?’’

रश्मि मनमसोस कर हामी भरती. कार्टून चैनल चला देती. डिस्कवरी पर कोई कार्यक्रम लगा देती, पर थोड़ी देर बाद इधरउधर होती तो मुन्नू पलक झपकते ही चैनल बदल देता और कमरे में बंदूकों की धायंधायं के साथ मुन्नू की उन्मुक्त हंसी सुनाई देती.

‘नासमझ बच्चे के साथ आखिर कोई कितना कठोर हो सकता है,’ रश्मि सोचती, ‘टैलीविजन न चलाने दूं तो दिनभर दोस्तों के पास पड़ा रहेगा. यह तो और भी बुरा होगा.’ इसी सोच से रश्मि ढीली पड़ जाती और बेटे की बातों में आ जाती.

‘‘मां, हम लोग बुधवार को पिकनिक पर जा रहे हैं,’’ उस दिन शाम को खेल से लौटते ही मुन्नू ने घोषणा की तो रश्मि को बहुत अच्छा लगा.

‘‘पर बेटे, बुधवार को कैसे चलेंगे, उस दिन तो तुम्हारे पापा की छुट्टी नहीं है.’’

‘‘नहीं मां, आप नहीं, हम सब दोस्त मिल कर जाएंगे,’’ मुन्नू ने स्पष्ट शब्दों में मां से कहा.

‘‘रविवार को पिकनिक मनाने हम सब एकसाथ चलेंगे बेटे. तुम अकेले कहां जाओगे?’’

‘‘हम सब जानते थे, यही होगा इसलिए हम लोगों ने छत पर पिकनिक मनाने का प्रोग्राम बनाया है,’’ मुन्नू किसी वयस्क की तरह बोला.

‘‘ओह, छत पर,’’ रश्मि का विरोध उड़नछू हो गया. मन ही मन वह खुश थी.

‘‘मां…मां, हम लोग दिनभर पिकनिक मनाएंगे. सब दोस्त एकएक चीज ले कर आएंगे,’’ इतना कह कर मुन्नू मां के गले में बांहें डाल कर झूल गया.

‘‘पर तुम सब मिला कर कितने बच्चे हो?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘चिंटू, मिंटू, सोनल, मीनल, मेघा, विधा…’’ हाथ की उंगलियों पर मुन्नू पहले जल्दीजल्दी गिनता गया, फिर रुकरुक कर याद करने लगा, ‘‘सोनाक्षी, शैला, शालू वगैरह.’’

‘‘ऐसे नहीं,’’ रश्मि ने उसे टोका, ‘‘कागजपैंसिल ले कर याद कर के लिखते जाओ, फिर सब गिन कर बताओ.’’

काम उलझन से भरा था, पर मुन्नू फौरन मान गया.

‘‘सब दोस्त मिल कर बैठो, फिर जरूरी सामान की लिस्ट बना लो. इस से तुम्हें बारबार नीचे नहीं उतरना पड़ेगा,’’ रश्मि ने बेटे को समझाया.

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