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कोरोना काल में टूट गयी सदियों से ढोई जा रही कई परम्पराएँ

इस कोरोना काल में बहुत सारे सामाजिक मान्यताएँ रश्मों रिवाज और धर्म के प्रति दकियानूसी और पारम्परिक मान्यताएं टूटती हुवी दिख रही है. इन मान्यताओं को सदियों से लोग बिना समझे बुझे अपने कंधों पर ढो रहे थे. जब लोग पूछते हैं. ऐसा क्यों करते हैं तो सिर्फ एक जवाब होता है कि हमारे बाप दादा करते आये हैं. इसलिए हम भी कर रहे हैं.

इस लॉक डाउन के दौरान अचानक किसी भी कारणवश जब किसी ब्यक्ति की मृत्यु हो रही है तो सोशल डिस्टेंस की वजह से दस बीस लोग ले जाकर दफना या जला रहे हैं.हिन्दू रीति रिवाज के अनुसार जलाए गए शव की हड्डी राख सहित जिसे लोग सन्त डुबाना कहते हैं. उसे गंगाजी में ले जाकर डुबाते हैं. बिहार और यू पी के अधिकांशतः लोग वाराणशी काशी गंगा जी में डुबाने के लिए ले जाते हैं. वहाँ पंडा लोग हैसियत के अनुसार दान दक्षिणा लेते हैं. आपको इतना मजबूर कर दिया जाएगा कि अधिक से अधिक लोग सन्त डुबाने के लिए इन पण्डों को राशि और दान दक्षिणा देते हैं.लेकिन इस दौरान आवागमन पर विराम लगने से ये सब नहीं हो पा रहा है.

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बिहार राज्य के औरंगाबाद जिला अंतर्गत पशुपति बिगहा निवासी 80 वर्षीय ब्यास महतो ने बताया कि हमें याद नहीं है कि हमारे गाँव के किसी ब्यक्ति की मृत्यु हुवी हो और उसका सन्त डुबाने के लिए लोग नहीं ले गए हों.स्थिति कितनी भी खराब हो लोग कर्ज और जमीन गिरवी रखकर मृत्युभोज करते थे.अपनी झूठी औकात दिखाने के लिए भी लोग बढ़ चढ़कर मृत्युभोज में खाने वाला कई तरह के आइटम बनवाते हैं.कर्ज में पड़े मृतक के परिवार वालों को कई तरह के आवश्यक जरूरत पर भी रोक लगानी पड़ती है.इस कोरोना के कहर ने यह सिख भी दी है कि मृत्युभोज,रश्मों रिवाज ,शादी विवाह में हम अनावश्यक खर्च नहीं करें.

जरूरत है इसे सदा के लिए लागू करने की. मृत्युभोज पर प्रतिबंध

लोग जमीन गिरवी रखकर सूद पर कर्ज लेकर आर्थिक रूप से कमजोर ब्यक्ति भी मृत्युभोज करता था.लेकिन लॉक डाउन के चलते सोशल डिस्टेंस का पालन करने की वजह से हजारों लोगों को खिलाने की परंपरा समाप्त हो गयी है. समाज भी इसे आसानी से स्वीकार कर ले रहा है. मृत्युभोज बंद करने हेतु कई संगठनों और स्वयंसेवियों द्वारा पहल किया जा रहा था .लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही थी.

औरंगाबाद जिले के पूर्णाडिह ग्राम निवासी रामप्रसाद सिंह ने कहा कि हर हाल में मृत्युभोज बन्द होनी चाहिए और शादी विवाह में अनावश्यक खर्च से हम हर हाल में बचें.जिस तरह से इस समय लॉक डाउन और कोरोना की वजह से हो रहा है.शादी विवाह और मृत्युभोज में लोगों को नहीं बुलाया जा रहा है.प्रशासनिक पदाधिकारी एवं कोरोना बीमारी के डर से भी सोशल डिस्टेंस का पालन किया जा रहा है.इसकी वजह से लोग फिजूलखर्ची से भी बच रहे हैं.पैसे भी बच रहे हैं.और परेशानी भी नहीं हो रही है.उसी पैसे से बच्चों को पढ़ाने और परिवार के स्वास्थ्य पर पौष्टिक खाने पर खर्च कर सकते हैं.

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इस कोरोना के बहाने शुरुआत हुवी इस परम्परा को समाज के लोगों को सदा के लिए माननी चाहिए.अगर यह परम्परा सदा के लिए लागू हुआ तो कमजोर तबके के लोगों के लिए वरदान साबित होगा.

* शादी विवाह

शादी विवाह में शुभ मुहूर्त पण्डित से दिखाने का प्रचलन रहा है. इस बार भी अप्रैल मई जून माह में पण्डित ने बहुत लोगों को शुभ दिन तारीख देख कर शुभ लगन और मुहूर्त बता दिया.लोगों ने शादी का कार्ड भी छपवा लिया लेकिन लॉक डाउन ने सारा कुछ खत्म कर दिया.भूषण प्रसाद ने बताया कि मैं अपने लड़का की शादी का दिन तारीख पण्डित जी से पूछ कर रख दिया.शादी का कार्ड भी छपवा लिया लेकिन लॉक डाउन की वजह से शादी का तिथि टल गया.उन्होंने कहा कि मैंने पण्डित जी से पूछा कि यही शुभ मुहूर्त देखे थे कि उस तिथि पर शादी नहीं हो पा रही है. आपको तो सब मालूम होना चाहिए था.मैं हलुआई,बैंड बाजा ,गाड़ी सभी ठीक कर दिया.लोगों को ब्याना भी दे दिया.इसका जुर्माना तो पण्डित जी को ही चुकाना पड़ेगा.जब आपका शास्त्र यह सब ठीक ठीक नहीं बताता है तो इस तरह का काम क्यों करते हैं. लोगों को अब जागरूक होने की जरूरत है.यह सब सिर्फ भरमजाल है.कोरोना के बहाने ही सही हमलोगों को नई सिख मिला है.

* लॉक डाउन में शादियाँ

इस लॉक डाउन में भी कई जोड़े आपस में परिणय सूत्र में बंधे.नहीं हुआ कोई रश्म न तिलक,न मटकोर न मड़वा भतवान कुछ भी नहीं लड़का वाला तो कई जगह सिर्फ अपने बाईक से गया और दो चार लोगों के बीच शादी हुवी और दुल्हन को बाइक पर बैठाकर अपने घर ले आया.शायद इस कोरोना और लॉक डाउन की वजह से शादी में फिजूलखर्ची पर रोक लगा है.

अर्जक संघ से जुड़े रामानुज गौतम,उपेंद्र पथिक ने कहा कि इस कोरोना के कहर से हमलोग सिख लेकर फिजूलखर्ची और शादी विवाह में ब्याप्त अंधविस्वास ढोंग ढकोसलों से भी निजात पा सकते हैं. कमजोर तबके के लोग बचे हुवे पैसे का सदुपयोग अपने बच्चों को पढ़ाने में कर सकते हैं.इसे लगातार जारी रखने की जरूरत है.

* जब लड़की वाले ही लेकर गए बारात-

समाज में यह परम्परा कायम है कि लड़का वाले बारात लेकर लड़की वाले के यहाँ जाते हैं. लेकिन बिहार के औरंगाबाद जिला के पिरु ग्राम निवासी रामविनेश्वर साव अपनी बेटी मीना कुमारी की बारात लेकर नालन्दा हिलसा ले गए.जहां राजू साव के बेटे बैजू साव के साथ शादी सम्पन्न हुआ.इस शादी में महत्वपूर्ण भूमिका समाजसेवी एवं राजनीतिज्ञ अखलाक अहमद ने निभायी. अपनी गाड़ी से अखलाक अहमद लड़की के माता पिता के साथ बारात ले गए और सादे समारोह में शादी सम्पन्न करायी.

इस कोरोना काल और लॉक डाउन के दौरान कमजोर तबके के लोगों के बीच धार्मिक आडम्बर और रश्मों रिवाज टूटता नजर आ रहा है.

औनलाइन शिक्षा चुनौती नहीं, मौका भी है

लेखक-राजेश वर्मा

कोरोना जैसी महामारी ने देश में  ही नहीं, अपितु दुनियाभर में मानवीय जीवन की अव्यवस्थाओं को भी पटरी से उतार दिया है. कोविड-19 नामक इस महामारी ने अर्थव्यवस्थाओं को कई साल पीछे धकेल दिया है.

आज ज्यादातर देशों में लौकडाउन व कर्फ्यू जैसे हालात हैं, सिवाय जरूरी चीजों व सेवाओं के, अन्य सभी प्रकार के संस्थान बंद हैं. यहां तक कि अस्पतालों में सामान्य ओपीडी तक बंद हैं. इस बंद में एक चीज जिस को ले कर सभी चिंतित हैं, वह चीज है शिक्षा.

वैसे देखा जाए तो शिक्षा भी एक जरूरी चीज है तभी ज्यादातर राज्यों में शैक्षणिक संस्थानों के बंद होने के बावजूद भी इसे तकनीक के माध्यम से हर घर व हर बच्चे तक पहुंचाने के प्रयास किए जा रहे हैं.

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आज सभी यही सोच रहे हैं कि लौकडाउन के दौरान शिक्षा का बहुत नुकसान हो रहा है या होगा, लेकिन यह पूरी तरह से सच नहीं है.

भले ही आज सबकुछ बंद है, लेकिन इस बंद ने बहुत से सकारात्मक पहलुओं को भी खोल दिया है. हम अर्थव्यवस्था के डूबने की बात कर रहे हैं, लेकिन इसी अर्थव्यवस्था में औनलाइन शिक्षा एक ऐसी चीज है, जो न केवल अर्थव्यवस्था के लिए भी संजीवनी साबित होगी, बल्कि देश में पढ़ने वाले करोड़ों स्टूडेंट्स के लिए वरदान सिद्ध हो सकती है.

भारत में औनलाइन शिक्षा ने हाल के दिनों में तेजी से प्रगति देखी है, जिस से यह शिक्षा क्षेत्र में सब से अधिक चर्चा का विषय बन गया है. इस ने कक्षा आधारित शिक्षा में स्थान, पहुंच, परिवहन और लागत आदि जैसी कुछ प्रमुख सीमाओं को हटा दिया है.

भारत में हर साल औनलाइन शिक्षामित्र बेहतर शिक्षा और रोजगार के अवसरों के लिए दूसरे देशों में जाते हैं. यदि ऐसे ही मौके और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा छात्रों को अपने घरों में बैठे हुए ही प्राप्त हो जाए तो वे विदेशों में यात्रा करने व अध्ययन के लिए हजारों डौलर खर्च क्यों करेंगे?

औनलाइन शिक्षा ने शिक्षा को पहुंचाने के तरीके में क्रांति ला दी है. संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन यानी यूएनसीटीएडी ने कहा है कि दुनिया में सब से बड़ी अर्थव्यवस्थाएं संभवतः भारत और चीन को छोड़ कर मंदी के लिए नेतृत्व कर सकती हैं.

मतलब साफ है, कोविड- 19 से जूझ रही दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं को भविष्य में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. कोई देश इस से अछूता नहीं है, लेकिन इस में भारत के लिए बहुतकुछ सकारात्मक है जो इसे महामारी के दौर में भी विश्व का नेतृत्व करने की बागडोर सौंप सकता है और यह नेतृत्व शिक्षा के क्षेत्र में भी हो सकता है.

कोरोना संकट ऐसे समय आया है, जब देश के शैक्षिक कैलेंडर का महत्वपूर्ण समय था. ज्यादातर राज्यों में बोर्डों की कुछेक परीक्षाओं को छोड़ दिया जाए तो स्कूली परीक्षाएं लगभग हो चुकी हैं. बोर्ड परीक्षाओं को छोड़ अन्य सभी कक्षाओं के बच्चों को अगली कक्षाओं में प्रमोट कर दिया गया है. आगामी शैक्षणिक सत्र को ई-शिक्षा या औनलाइन शिक्षा के माध्यम से शुरू कर दिया गया है.

आज ज्यादातर राज्यों में लौकडाउन के चलते बच्चों को घरों में ही शिक्षा को पहुंचाने का काम किया जा रहा है और इस माहौल में भारत में शिक्षा के भविष्य के बारे में भी चर्चा शुरू हो गई है.

भारत में औनलाइन शिक्षा कोरोना वायरस के संकट से पहले ही उफान देख रही थी,  कोविड-19 के दौर में इसे स्थापित होने का अवसर मिला है.

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गूगल और केपीएमजी की साल 2016 की एक रिपोर्ट बताती है कि देश में औनलाइन शिक्षा बाजार 52 फीसदी सालाना की दर से तेजी से विस्तार कर रहा है. साल 2016 में देश में औनलाइन शिक्षा बाजार की वैल्यू 25 करोड़ डौलर थी.

इस रिपोर्ट में उम्मीद जताई गई थी कि भारत में साल 2021 तक औनलाइन शिक्षा का बाजार 196 करोड़ डौलर का होगा.

रिपोर्ट के अनुसार, बीते 2 साल में शिक्षा के लिए औनलाइन सर्च में दोगुना वृद्धि हुई है, जबकि मोबाइल फोनों से सर्च में तीन गुना बढ़ोतरी दर्ज की गई है.

उल्लेखनीय है कि इस तरह की लगभग आधी सर्च देश के 6 प्रमुख महानगरों से बाहर से की गई है. मतलब साफ है, औनलाइन शिक्षा शहरों में ही नहीं, बल्कि गांवों में भी अपने पांव पसार रही है. यूट्यूब पर शिक्षा सामग्री की खपत कोविड-19 के बाद से तो लगातार बढ़ रही है.

आज वर्क फ्रॉम होम की बात की जा रही है, लेकिन शिक्षा क्षेत्र में तो एजूकेशन फ्रॉम होम तो व्यावहारिक रूप से लागू होता नजर आ रहा है.

यह सच है कि देश में औनलाइन शिक्षा के मामले में बहुत सी चुनौतियां हैं, लेकिन इन चुनौतियों में अवसर भी तो हैं. और यह अवसर वर्तमान के लिए ही नहीं, बल्कि कोरोना से संक्रमित अर्थव्यवस्था के लिए भविष्य में संजीवनी साबित होंगे.

भारत में एक नहीं कई स्तरीय शिक्षा व्यवस्था है. उच्च शिक्षा  सर्वेक्षण के अनुसार, देश में 15 लाख स्कूल और 39 हजार कालेज हैं. इन में लगभग 26 करोड़ बच्चे स्कूलों में और 2.75 करोड़ छात्र अंडरग्रेजुएट शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं.

देश में पढ़ने वाले पोस्ट ग्रेजुएट छात्रों की बात करें तो ये आंकड़ा 40 लाख है. इतनी बड़ी शिक्षा व्यवस्था के बीच देश में तेजी से औनलाइन शिक्षा की ओर कदम बढ़ रहे हैं.

आज ग्रामीण क्षेत्रों में औनलाइन शिक्षा को ले कर जरूर कुछेक कमियां हैं, जैसे, सभी बच्चों व अभिभावकों के पास एंड्रॉयड फोन, लैपटौप या इस तरह के गैजेट्स का न होना वगैरह. दूसरा, ग्रामीण क्षेत्रों में नेटवर्क की समस्या आदि अस्थायी बाधाएं हैं, लेकिन इन्हें दूर करना कोई ज्यादा मुश्किल नहीं है. औनलाइन पढ़ाई पर होने वाला खर्चा बेहद कम है.

सरकारी कालेज में जहां इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए एक छात्र को औसतन 5 से 6 लाख रुपए खर्च करने पड़ते हैं, वहीं प्राइवेट कालेजों में यही खर्च 8 से 10 लाख रुपए के बीच बैठता है.

केपीएमजी की रिसर्च और एनालिसिस की रिपोर्ट कहती है कि अंडरग्रेजुएट औनलाइन पढ़ाई के लिए होने वाला यूजर्स का औसत खर्च 15 से 20 हजार रुपए है.

भारत अमेरिका के बाद  ई-लर्निंग के लिए दूसरा सब से बड़ा बाजार बन गया है. वर्तमान में यह क्षेत्र 2 अरब अमेरिकी डौलर आंका गया है और साल 2020 तक 5.7 अरब अमेरिकी डौलर तक पहुंचने की उम्मीद है.

भारत में औनलाइन शिक्षा के उपयोगकर्ताओं के साल 2016 में 16 लाख से बढ़ कर साल 2021 तक 96 लाख तक पहुंचने की उम्मीद है. भारत में लंबे समय से गुणात्मक शिक्षा की मांग, आपूर्ति की तुलना में अधिक बनी हुई है.

देश की परंपरागत शिक्षा प्रणाली चाहे स्कूल स्तर पर हो या कालेज और विश्वविद्यालयों स्तरीय हो, इन में मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त सीटें नहीं हैं. नर्सरी स्कूलों से ले कर टौप कालेजों में दाखिला लेना एक बुरे सपने के समान है. मांबाप अपने बच्चे को 3 या 4 साल की उम्र में एक अच्छे स्कूल में लाने के लिए कई महीनों तक जद्दोजहद करते रहते हैं. औनलाइन शिक्षा प्रणाली इन सभी समस्याओं का समाधान करती नजर आती है.

भले ही आज दुनिया कोविड-19 की महामारी से जूझ रही है, लेकिन इस महामारी ने हमारा उन अवसरों की ओर भी ध्यान खींचा है, जो शिक्षा क्षेत्र के साथसाथ अर्थव्यवस्था के लिए भी अहम भूमिका निभा सकते हैं.

लौकडाउन और क्वारंटीन के दौरान क्या खाएं और क्या न खाएं?

लेखक-डा. दीपक कोहली

कोरोना महामारी के समय लोग अपने खानपान को ले कर बहुत ज्यादा सतर्क हैं. स्वास्थ्यवर्धक चीजों का अधिक सेवन कर रहे हैं. लौकडाउन और क्वारंटीन के दौरान अधिकांश लोग तो ऐसी चीजें खरीद रहे हैं, जो सेहत के लिए फायदेमंद भी हों और घर में भी लंबे समय तक महफूज रह सकें. इस से लोगों को लौकडाउन और क्वारंटीन के दौरान घर से बाहर नहीं निकलना पड़ेगा.

आप भी कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने और अपनी सेहत को दुरुस्त बनाने के लिए ऐसे आहार की जानकारी पाना चाहते होंगे. यहां हम कोरोना वायरस डाइट प्लान की पूरी जानकारी देंगे, ताकि लौकडाउन और क्वारंटीन के दौरान आप इस डाइट को अपनाएं और बीमारी से बच सकें.

इस महामारी के दौरान आप हलदी वाले दूध का सेवन रोज कर सकते हैं. जहां हलदी द्वारा शरीर को करक्यूमिन प्राप्त होता है, वहीं दूध जिसे संपूर्ण पौष्टिक आहार भी कहा गया है, हलदी वाले दूध से शरीर को प्रोटीन, वसा और अन्य मिनरल्स आदि भी प्राप्त होते हैं. शरीर की इम्युनिटी को बढ़ाने के लिए यह एक सर्वोत्तम आहार है. इसे गोल्डन मिल्क भी कहा गया है.

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फलों में ऐसे फलों को प्राथमिकता दें, जो लाल या पीले रंग वाले हैं, जैसे संतरा, मौसंमी, बेर, बेरी, कीवी और पपीता वगैरह.

ये सारे ही फल शरीर में विटामिन सी, आयरन और ओमेगा-3 फैटी एसिड बढ़ा कर शरीर को मजबूती देते हैं, ताकि वो बीमारियों से लड़ सकें.

इस के साथ ही कुछ आर्युवेदिक नुसखे भी अपनाए जा सकते हैं, जिन का अगर फायदा न हो तो भी कोई नुकसान नहीं है. जैसे सुबह खाली पेट तुलसी के धुले हुए पत्ते ले कर खाएं और उस के तुरंत बाद दूध या पानी पी लें. कुछ पीना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि तुलसी में थोड़ी मात्रा में मर्करी होती है. मर्करी खाने पर दांतों में पीलापन आ जाता है, वहीं दूध या पानी पीने पर ये डर नहीं रहता.

इस के अलावा दोपहर के खाने से पहले 2 लौंग चबा सकते हैं. इस के आधे घंटे बाद ही कुछ खाएं. लौंग भी इम्युनिटी के लिए फायदेमंद होती है.

आलूबुखारा का सेवन करें. यह स्वास्थ्य के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है. आयुर्वेद में आलूबुखारे के गुणों से जुड़ी बहुत सी बातें बताई गई हैं. इस समय सूखे आलूबुखारे का सेवन करना आप के शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद होगा. इसे आप लंबे समय तक महफूज रख सकते हैं. लंबे समय तक रखने के बाद भी इस की पौष्टिकता खत्म नहीं होती है. आलूबुखारे के सेवन से आप का पाचन तंत्र बेहतर होता है. यह फाइबर का भी अच्छा स्रोत है.

अगर आप सब्जी आदि का सेवन करना चाहते हैं तो पपड़ी या छिलके वाली सब्जी खाएं. ये स्वादिष्ठ और सेहतमंद दोनों होते हैं. स्क्वैश मोटे छिलके वाला होता है, जिसे आप कुछ महीनों तक रख सकते हैं. ठंड के मौसम में कई सब्जियां उगाई जाती हैं, जिन का आप सेवन कर सकते हैं.

आप बटरनट स्क्वैश से ले कर स्पेगेटी स्क्वैश और कद्दू भी खा सकते हैं. गोभी को आप रेफ्रिजरेटर में कम से कम एक महीने तक रख सकते हैं. इस से जुड़ी अच्छी बात यह है कि आप इसे सब्जी के अलावा सलाद के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं.

आप सफेद चावल और रिफाइंड आटे के पास्ते को डाइट के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं. यह अच्छा विकल्प हो सकता है. इसे आप डब्बे में स्टाक कर सकते हैं. हालांकि इसे अधिक मात्रा में न खाएं, क्योंकि इस से ब्लड शुगर लेवल संबंधित समस्या हो सकती है. इसलिए स्वाद बदलने के लिए थोड़ीथोड़ी मात्रा में इस का सेवन करें.

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इस के अलावा आप फ्रोजेन फूड के रूप में चावल और फूलगोभी आदि से बनी सूखी चीजों को खरीद कर स्टाक कर सकते हैं. इसे पकाने में बहुत ही कम समय लगता है और यह सेहत के लिए भी फायदेमंद होता है. अधिकांश डाक्टर भी ऐसी ही चीजों को खाने की सलाह देते हैं.

इस दौरान ओट्स का सेवन भी आप कर सकते हैं. इस के अलावा साबुत अनाज जैसे जौ, चना, मूंग वगैरह को आप 1 या 2 साल तक भी रख सकते हैं. इन्हें जब चाहें पका कर खा सकते हैं. आप इन्हें कितने भी दिन रखें, इस की पौष्टिकता खत्म नहीं होती.

इसी तरह चना, मूंग आदि के कई व्यंजन बना कर खा सकते हैं. आप ओट्स को कुकीज, ब्रेड के साथसाथ दूध के साथ भी खा सकते हैं. इस में बहुत अधिक फाइबर होता है.

कोरोना वायरस के दौरान डाइट प्लान के रूप में आप सैलमन और टूना का सेवन कर सकते हैं. सैल्मनऔर टूना प्रोटीन से भरे होते हैं. इन्हें पैंट्री में लंबे समय तक महफूज भी रखा जा सकता है.

जब आप का मन करे, तब इन्हें निकाल कर खा लें. इतना ही नहीं, इसे दूसरे खाद्य पदार्थों के साथ भी खाया जा सकता है. इस के अलावा आप चाहें तो लीन मीट, पोल्ट्री और सी फूड वगैरह खरीद कर भी फ्रीजर में स्टोर कर सकते हैं.

नारियल भी सेहत के लिए बहुत अच्छा होता है. नारियल का दूध भी सेहत के लिए उतना ही फायदेमंद होता है. लौकडाउन और क्वारंटीन के दौरान लेने वाले डाइट के रूप में डब्बाबंद नारियल का दूध खरीद कर रखना बेहतर च्वाइस होगा.

अधिकांश घरों में हमेशा इस का सेवन किया जाता है.
आप इसे अपनी जरूरत के अनुसार कम से कम एक साल तक रख सकते हैं, वहीं नारियल के दूध का उपयोग मीठे से नमकीन व्यंजनों में किया जा सकता है. नारियल करी से दलिया और व्हीप्ड क्रीम भी बना सकते हैं.

अगर आप को चौकलेट खाने का मन कर रहा है तो सब्जियों से बनी चौकलेट खा सकते हैं. आप डबल चौकलेट मफिन बना कर खाएं. इस के सेवन से आप को एंटीऔक्सीडेंट मिलता है, जिस से रोग प्रतिरक्षा शक्ति मजबूत होती है. यह बहुत ही स्वादिष्ट होता है. इसे बनाने के लिए आप गाजर का इस्तेमाल कर सकते हैं. इस से शरीर का पोषण होता है.

लौकडाउन और क्वारंटीन के दौरान लोगों को सब से पहले घर से कम से कम बाहर निकलना चाहिए और इसलिए अपनी डाइट में उन चीजों को शामिल करना चाहिए, जो पौष्टिकता के साथसाथ लंबे समय तक सुरक्षित रहे.

इंटीरियर डिजाइनिंग पर भी पड़ेगा कोरोना का असर

प्रज्ञा सिंह- आर्किटेक्ट

कोविड-19 यानी कोरोना वायरस को ले कर पूरी दुनिया में यह सोच बनती जा रही है कि कोरोना के साथ जिंदगी कैसे बिताई जाए. ऐसे में तमाम तरीके के बदलाव, रहनसहन, खानपान, आवागमन छुट्टियों के उपयोग पर हो रहा है. किसी भी काम को शुरू करने से पहले यह सोचना पड़ता है कि कोरोना के साथ बचाव कैसे हो सकेगा.

ऐसे में सब से महत्वपूर्ण क्षेत्र घर, शौपिंग कौम्प्लैक्स व औफिस हैं, जिन का निर्माण करते समय अब यह सोचा जाएगा कि कोरोना से बचाव कैसे हो.

सवाल

घर, औफिस, शौपिंग कौम्प्लैक्स, सिनेमाहाल, औडिटोरियम जैसी बहुत सी चीजों का निर्माण करते समय कोरोना से बचाव के मद्देनजर टैक्नोलौजी का देखा जाना बहुत जरूरी हो गया है.

इस संबंध में लखनऊ की आर्किटेक्ट प्रज्ञा सिंह से एक खास बातचीत हुई. उन की पढ़ाईलिखाई लखनऊ से हुई. यहीं से उन्होंने पहले बीआर्क और फिर एमआर्क किया. प्रज्ञा के पति पायलेट हैं और उन की 2 छोटी बेटियां हैं.

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प्रज्ञा सिंह अपनी कंपनी प्रतिष्ठा इनोवेशन्स के जरीए सरकारी और निजी क्षेत्र में स्ट्रक्चर डिजाइन और इंटीरियर डिजाइनिंग का काम देखती हैं.

पेश है प्रज्ञा सिंह से हुई बातचीत के प्रमुख अंश :

? – एक इंटीरियर डिजाइनर के रूप में निर्माण कार्यों में कोरोना का क्या प्रभाव देख रही हैं?

0 – आने वाले समय में घर, औफिस, बंगले, शौपिंग कौम्प्लैक्स, सिनेमाहाल, स्कूल, रेलवे स्टेशन, बसअड्डा इस तरह से बनेंगे, जो कोरोना से बचाव में उपयोगी होंगे.

इंटीरियर डिजाइनिंग के क्षेत्र में यह एक बहुत बड़ा बदलाव पूरी दुनिया में आने वाला है, जिस में हर निर्माण यह सोच कर होगा कि कोरोना को कैसे अपने से दूर रखना. यह ठीक वैसे ही है, जैसे कुछ समय पहले जब भूकंप का प्रकोप दुनियाभर में छाया था तो सभी निर्माण भूकंपरोधी बनाए जाते थे. ऐसे ही अब इंटीरियर डिजाइनिंग में कोरोनो से बचाव के डिजाइन तैयार होंगे.

? – और क्याक्याय बदलाव दिखेंगे?

0 – सब से पहले घरों का डिजाइन इस तरह होगा कि वहां पर बाहर से आने वाले लोगों के लिए एक अलग रास्ता हो जो एक सेपरेट रूम तक जाता हो.

इस का फायदा यह होगा कि बाहर से आने वाला व्यक्ति घर के अंदर नहीं जा सकेगा. वह अलग दरवाजे से उस रूम तक जाएगा और वहीं से वापस चला जाएगा. इस से लाभ ही होगा कि उस रास्ते को सेनेटाइज करना और उस कमरे को सेनेटाइज करना आसान हो जाएगा, जिस से घर के लोग कोरोना संक्रमण से बचे रह सकेंगे.

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? – घरों के डिजाइन किस तरह से बदले दिखेंगे?

0 – घरों के अंदर इंटीरियर डिजाइनिंग और स्ट्रक्चरल डिजाइनिंग में 2 तरीके के बदलाव होंगे. एक तो यह कि डिजाइन ऐसे होंगे कि घर के रहने वाले लोग जब बाहर जाएं और जब बाहर से घर वापस आएं तो वह अपनेआप को आसानी से एक जगह सेनेटाइज कर सकें. उस के बाद ही वह घर के अंदर प्रवेश करें. इस में घर के दरवाजे के पास बाथरूम बनाया जा सकता है जिस से घर के अंदर घुसने से पहले हर व्यक्ति पूरी तौर से कपड़े बदल कर नहा कर ही घर के अंदर जाए.

आमतौर पर अभी तक बाथरूम घर के अंदर सुविधाजनक जगहों पर बनते थे। अब हो सकता बाथरूम घर के प्रवेश द्वार पर ही बनाए जाएं.

? – घरो तक आने वाले बाहरी लोगों के लिए क्या बदलाव हो सकते हैं ?

0 – कोरोनावायरस जैसे संक्रमण का सबसे बड़ा खतरा बाहरी लोगों से होगा। इसलिए बाहरी लोगों के आने और जाने के लिए एक अलग रास्ते का प्रयोग हो सकता है। जो घर के अंदर न जा कर एक सुरक्षित रूम तक रहे और वहीं से उनकी वापसी हो जाए। घर के अंदर न जाने से संक्रमण का खतरा घरवालों को कम रहेगा और बाहरी लोगों द्वारा लाए गए संक्रमण को खत्म करने के लिए उस रास्ते और कमरे को सैनिटाइज करना आसान होगा। इसी तरह घरेलू नौकरों के लिए भी यह व्यवस्था बनानी होगी कि वह पूरे घर में घूम कर कोरोना का खतरा न फैलाएं. केवल जरूरत का काम एक निश्चित जगह करें और वहां से वापस चले जाएं.

? – घरो के बाहर कॉमर्शियल जगहों पर क्या बदलाव होंगे ?

0 – घरों से बाहर कमर्शियल जगहों पर जैसे स्कूल कॉलेज सिनेमा हॉल शॉपिंग कंपलेक्स रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन पर निर्माण कार्य में इन चीजों का ख्याल रखा जाएगा कि वहां काम करने वाला रेगुलर स्टाफ सुरक्षित तरीके से अलग काम करता रहे और पब्लिक डीलिंग से जुड़े लोग अलग एरिया में रहते हुए काम करें इन जगहों पर इस तरीके के इंतजाम किए जा सकते हैं की पब्लिक डीलिंग करने वाले लोग पब्लिक से उचित दूरी बनाकर ही काम करें जिससे कि दोनों ही लोगों को कोरोनावायरस ना पहुँच सकें. जिस तरह से लॉबी बनती थी वो अब नही दिखेगी. होटलों में भी इस तरह के बदलाव देखने को मिलेंगे.

? – कोरोना लाइफ स्टाइल में और क्या बदलाव लाएगा ?

0 – घरों का निर्माण करते समय यह भी ध्यान रखना पड़ेगा कि अगर कोई व्यक्ति कोरोना से संक्रमित है और उसको 14 दिनों के लिए आइसुलेशन में रखना है  तो वह किस कमरे का उपयोग कर सकेगा जिससे घर के दूसरे लोग उसके संक्रमण से बचे रहें इसके अलावा घर में रोशनी हवा पानी जैसे प्राकृतिक जरूरतों का ध्यान रखा जाएगा जिससे कि स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़े लोगों में इम्युनिटी सिस्टम बेहतर रहे उनको जल्दी-जल्दी बीमारियां ना हो तभी कोरोना के प्रभाव से बचा जा सकता है. कोरोना का प्रभाव बाहरी वस्तुओं के घरों में आने से होता है इसलिए जैसे पहले घरों में स्टोर रूम बनते थे उसी तरह अब वह कमरे जरूर बनेंगे जहां बाहर से आया सामान रखा जा सके और उसे घर के अंदर तभी ले जाया जाए जब वह कुछ दिनों के बाद कोरोना संक्रमण से दूर हो जाए.

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झंझावात: भाग 5

लेखक- रााकेश भ्रमर

अनिल के दिमाग में कई सारे चित्र एकसाथ कौंध गए. रीना के खाते में कुछेक लाख रुपए होंगे, जो ब्लैक से व्हाइट किए थे, कुछ लाख घर में पड़े थे. 10 लाख रुपए तो हो जाएंगे, परंतु कुछ दिनों पहले ही उस ने ‘कैश डाउन’ पर एक घर बुक किया था, अलौट होने पर एकसाथ पूरा पैसा भरना पड़ेगा. इसी साल अलौट हो जाएगा.

उस ने कहा, ‘‘आप ने पहली बार मुझ से कुछ कहा है, मना तो नहीं करूंगा, परंतु रकम छोटी नहीं?है. मेरी भी अपनी जरूरतें?हैं. समय सब का एकजैसा नहीं रहता. कल क्या होगा, कोई नहीं जानता. इसलिए मैं पहले ही कह देता हूं. थोड़ाथोड़ा कर के पैसा लौटाते रहिएगा. इसे बिना ब्याज का उधार समझिएगा, दान नहीं.’’ अनिल की स्पष्टता से सासससुर के चेहरे लटक गए, परंतु कहीं बात न बिगड़ जाए, ससुरजी जल्दी से बोले, ‘‘अरे बेटा, यह भी कोई कहने की बात?है.’’

और इस तरह रीना के दूसरे भाई की किराने की दुकान गली में खुल गई.

3 वर्षों बाद

रीना एक बेटे की मां बनी. उस की छठी खूब धूमधाम से मनाई गई. बेटी का चौथा जन्मदिन आया, तो उस का जश्न भी एक बड़े होटल में मनाया गया.

इस के बाद पता नहीं किस की नजर अनिल के सुखी परिवार पर पड़ गई. उस की शिकायत विजिलैंस और एंटी करप्शन विभाग में किसी ने कर दी. जांच शुरू हुई तो रीना के फर्जी कारोबार की भी जांच होने लगी.

अनिल के हाथ से सारे प्रोजैक्ट्स वापस ले लिए गए. उस की पोस्टिंग औफिस में कर दी गई. वहां कमाई का कोई अवसर नहीं था. वह सूखे रेगिस्तान में एकएक बूंद के लिए  तरसने लगा.

उन दिनों घर का माहौल बीमार और थकाथका सा था. हर कोने में मनहूसियत और बोझिलता थी. अनिल और रीना भी आपस में कम ही बात करते. उन्हें लगता कुछ बोलेंगे, तो कहीं कुछ अप्रिय न घटित हो जाए.

ऐसे दिनों की अपेक्षा किसी ने नहीं की थी.

उन के बुरे दिन थे, परंतु उन को सांत्वना और आश्वासन देने वाला कोई नहीं था. यहां तक कि रीना के मम्मीपापा और भाई भी एक अटूट दूरी बनाए हुए थे. इस का स्पष्ट कारण भी था कि कहीं अनिल उन से पैसे वापस न मांग बैठे.

इसी बीच, उस का मकान बन कर तैयार हो गया और बिल्डर की तरफ से पूर्ण भुगतान के लिए डिमांड नोटिस आ गई. अनिल वैसे ही परेशान?था. इन्क्वारी की वजह से ऊपरी आमदनी ठप थी. वेतन से कितनी बचत होती थी, रीना का हाथ पहले की तरह खुला हुआ था. हफ्ते नहीं तो महीने में एक बार अपने और बच्चों के लिए खरीदारी करती ही?थी.

जोड़तोड़ कर के भी पैसे पूरे नहीं हो रहे थे. ठेकेदारों ने भी उस से दूरी बना रखी थी. सच भी तो है, बिना मतलब के कोई किसी को क्यों घास डालेगा. अनिल अब हर ठेकेदार के लिए एक मामूली क्लर्क के समान था.

बहुत सोचबिचार कर अंत में उस ने निर्णय लिया और रीना से कहा, ‘‘अपने पापा से पैसे के लिए कहो, वरना मकान हाथ से निकल जाएगा.’’

रीना ने आश्चर्य से कहा, ‘‘मैं? आप कहते तो शायद दे भी दें. मेरे कहने पर देंगे?’’

‘‘तुम एक बार कह कर तो देखो,’’ उस ने जोर दिया.

‘‘मैं मम्मी से कह सकती हूं.’’

‘‘ठीक है, उन्हीं से कहो.’’

दूसरे दिन रीना स्वयं मम्मी के यहां गई. कुछ देर इधरउधर की बातें करने के बाद बोली, ‘‘मम्मी, आप को तो मालूम है, इन के खिलाफ जांच चल रही?है. पता नहीं, कब तक चलेगी. इसी बीच मकान का अलौटमैंट लैटर आ गया. बकाया राशि 3 महीने के अंदर जमा करनी है. वे कह रहे थे, आप अगर कुछ रुपए वापस कर दें…’’

उस की मम्मी ने रीना को ऐसे देखा जैसे उस ने कोई अनहोनी बात कह दी थी, या उस के सिर पर सींग उग आए थे. कड़े स्वर में बोली, ‘‘हमारे पास पैसे कहां?’’

‘‘आप से पैसे नहीं मांग रही हूं. जो आप ने लिए?हैं, वह वापस मांग रही हूं,’’ रीना ने ऐसे कहा जैसे मम्मी ने उस की बात नहीं समझी?थी.

‘‘मैं भी उन्हीं पैसों की बात कर रही हूं जो तुम लोगों ने दिए थे, सब दुकान में लगा दिए. क्या मेरे पास रखे?हैं. और बिटिया, क्या हम ने वापस देने के लिए मांगे थे?’’ दामादजी की कोई पसीने की कमाई?थी? घूस में लिए थे. और कमा लेंगे.’’

‘‘क्या?’’ रीना के सिर में जैसे बम फटा हो, ‘‘यह आप क्या कह रही हो, मम्मी?’’

‘‘हां, ठीक कह रही हूं. दामादजी की अभी लंबी नौकरी है. आज नहीं तो कल, फिर से ऊपरी आमदनी वाली जगह पर लग जाएंगे. हमारे पास क्या जरिया?है? कहां से लौटाएंगे? दो पैसे की इन्कम से?घर चलाएंगे या जोड़जोड़ कर तुम्हें लौटाएंगे,’’ मम्मी ने साफ मना कर दिया.

रीना लगभग रोंआसी हो गई. उस का मम्मी से लड़ने का मन कर रहा था, परंतु उद्वेग में उस का गला भर आया और वह केवल इतना ही कह सकी, ‘‘वे मुझे घर से निकाल देंगे.’’

‘‘उस की तू चिंता मत कर. अभी तेरी शादी के 7 साल नहीं हुए हैं. अनिल ने अगर ऐसी कोई हिमाकत की तो उसे दहेज कानून में फंसा दूंगी.’’

‘‘आप ऐसा करोगी?’’ रीना ने हैरानी से पूछा.

‘‘हां, इसलिए चुपचाप अपने घर जा और आज के बाद पैसे मांगने यहां मत आना.’’

रीना के हृदय में हाहाकार मचा हुआ था. मस्तिष्क में आंधियां सी चल रही थीं. शरीर जैसे झंझावात से डांवांडोल हो रहा?था. छोटे बच्चे को गोदी में लिए जब गिरतेपड़ते वह घर पहुंची, तो ऐसे हांफ रही थी जैसे किसी वीरान रेगिस्तान में उसे जंगली जानवरों ने दौड़ा लिया था और वह बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचा कर घर तक पहुंची थी.

अनिल घर पर ही?था. उस की दशा देख कर वह समझ गया, पूछा, ‘‘उन्होंने मना कर दिया?’’

रीना ने अपने पति के चेहरे को देखा. वह बहुत मासूम और निरीह लग रहा था. रीना को उस पर तरस आया. मन हुआ उस के गले लग कर खूब रो ले, परंतु वह केवल इतना ही कह सकी, ‘‘हां’’

‘‘मैं जानता था, यही होगा. पैसा ऐसा है ही कि वह रिश्तों को बनाता कम, बिगाड़ता ज्यादा?है. यही बात मैं सदा तुम से कहता था.’’

‘‘हां, आज मैं समझ गई हूं कि पैसे के आगे सगे मांबाप भी कैसे पराए हो जाते हैं.’’

‘‘पराए तो फिर भी पैसे वापस कर देते?हैं, लेकिन अपने कभी नहीं करते. पैसे के लिए वे ईमानधर्म और रिश्ते सब खराब कर लेते?हैं.’’

‘‘अब आप क्या करोगे?’’ उस ने रांआसे स्वर में पूछा.

‘‘मैं तो किसी न किसी प्रकार पैसे का प्रबंध कर लूंगा, परंतु आज एक प्रण लेता हूं, चाहे कोई कितना भी बड़ा लालच दे, मैं घूस के पैसे को हाथ नहीं लगाऊंगा. मैं नहीं चाहता, मेरे मासूम बच्चों पर उस पैसे की छाया पड़े और वे बिगड़ जाएं. रिश्ते बिगड़ गए, तो कोई बात नहीं. फिर बन जाएंगे. परंतु अगर औलाद खराब निकल गई तो जीवनभर का रोना रहेगा.’’

‘‘मैं भी यही चाहती हूं. पैसे के कितने रंग मैं ने देख लिए. यह कैसे लोगों के मन में पाप भरता है, यह?भी देख लिया. यह सुख कम, दुख ज्यादा देता?है.’’

‘‘हां, चलो उठो. आज से हम एक नया जीवन आरंभ करेंगे, उस ने रीना की गोदी से छोटे मुन्ने को ले लिया.’’

रीना ने उस के कंधे पर अपना सिर रख दिया. उस के सारे झंझावात मिट चुके थे.?       द्य

बच्चोंके मुखसे

मेरे 2 बच्चे हैं. अविना बड़ी है जो कक्षा 4 में पढ़ती है एवं अविनेश छोटा है जो कक्षा 3 में पढ़ता है. दोनों अकसर भूगोल के बारे में बातें किया करते हैं. एक दिन अविना बोली कि चीन भारतवर्ष के ऊपर है तो बेटा कहने लगा कि चीन भारतवर्ष के उत्तर में है.

बेटी ने कहा कि चीन भारतवर्ष के ऊपर है क्योंकि चिडि़या जो ऊपर उड़ती है वह चीनी भाषा बोलती है. चीं…चीं… करती है.

अविना की यह बात सुन कर वहां

पर उपस्थित सभी लोग हंसी रोक

न सके.      विजय शंकर मौर्य

एक बार मैं ने अपने 12 वर्षीय पुत्र को

समझाते हुए कहा, ‘‘बेटा, जीवन में लायक व सफल होना बहुत आवश्यक है. इसलिए अभी परिश्रम करो, खूब पढ़ो. इस की वजह से देखना तुम्हें सब चीजें व सुख प्राप्त होगा. गाड़ी मिलेगी, बंगला, नौकरचाकर, पैसा मिलेगा. अपने पिताजी को देखो. कितने सफल रहे हैं. यही नहीं, इसी कारण तो उन्हें इतनी अच्छी पत्नी भी मिली है.’’

बेटा फौरन बोला, ‘‘क्या पापा की

2 पत्नियां हैं?’’ मैं स्वयं हंस तो पड़ी पर इस से मुझे यह समझ आया कि वह मुझे कोई बहुत अच्छी पत्नी नहीं समझता. इस किस्से को सुन कर हम अकसर अब भी हंस पड़ते हैं.

दुर्गा पांडेय (सर्वश्रेष्ठ)

मेरा छोटा बेटा बचपन से ही तपाक से उत्तर देने का आदी है. कभीकभी उस की इस आदत की वजह से हम भी परेशानी में पड़ जाते हैं. उस को इस बारे में कई बार समझाया है पर वह अपनी आदत से मजबूर है. एक बार हमारे एक रिश्तेदार हमारे घर आए थे. ऐसे ही बातचीत के दौरान वे मेरे बेटे अवि से पूछ  बैठे कि बेटा तुम को बड़े हो कर क्या बनना है.

यह सुन कर मेरे बेटे ने तपाक से उत्तर दिया कि अंकल मुझे नहीं पता कि मैं बड़ा हो कर क्या करूंगा पर मुझे इतना पता है कि मैं किसी के घर जा कर उस के बच्चों से ऐसे प्रश्न नहीं करूंगा. इतना सुनना था कि हमारे वो रिश्तेदार झेंप गए और हम मन ही मन मुसकराते हुए अवि को नसीहत देने का नाटक करने लगे.

राखी जैन द्य

 

पराली प्रबंधन की तकनीक

भारत के कई राज्य धुंध छा जाने की समस्या से परेशान हैं. इस के लिए धान की पराली जलाने वाले किसानों को उत्तरदायी माना जा रहा है. यह समस्या सर्दियों में और भी गंभीर होती है, क्योंकि यह खरीफ की फसल धान की कटाई के बाद खेत मे बचे फसल अवशेष, जिसे पराली कहते हैं, को बड़ी मात्रा में जलाने के चलते होती है.

भारत में तकरीबन 388 मिलियन टन फसल अवशेष का उत्पादन हर साल होता है. कुल फसल अवशेष का तकरीबन 27 फीसदी गेहूं का अवशेष और 51 फीसदी धान का अवशेष और बाकी दूसरी फसलों के अवशेष होते हैं.

गेहूं और दूसरी फसलों के अवशेष या भूसा पशुओं को खिलाने के काम में लाया जाता है, लेकिन धान के फसल अवशेष या भूसे में औक्जेलिक अम्ल और सिलिका की मात्रा ज्यादा होने की वजह से इस के पुआल को पशुओं के चारे के रूप में प्रयोग नहीं किया जाता है.

धान की पराली जलाने से विभिन्न जहरीली गैसें जैसे कार्बन मोनो औक्साइड, कार्बन डाई औक्साइड, बेंजीन, नाइट्रस औक्साइड और एरोसोल निकल कर वायुमंडल की साफ हवा में मिल कर उसे प्रदूषित करती है. नतीजतन, पूरा वातावरण दूषित हो जाता है.

ये जहरीली गैसें वातावरण में फैल कर जीवों में विभिन्न घातक बीमारियों जैसे त्वचा की बीमारियां, आंखों की बीमारियां, सांस व फेफड़ों की बीमारियां, कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां फैलाती हैं, इसलिए किसान पराली जलाने से बचें. किसान इस से न केवल पर्यावरण को दूषित होने से बचा सकते हैं, अपितु पैसे भी कमा सकते हैं.

किसानों द्वारा पुआल जलाए जाने की वजह

धान के पुआल में कार्बन और नाइट्रोजन की मात्रा ज्यादा होने की वजह से अगर इसे सीधा खेत में जोत दिया जाए, तो मिट्टी की उर्वराशक्ति बढ़ाने के साथसाथ पौध विषाक्तताभी बढ़ती है. इस का सीधा असर बीज जमने और उत्पादन पर पड़ता है और इस प्रक्रिया में समय भी लगता है.

धान की पुआल में सिलिका व लिग्निन की ज्यादा मात्रा होने के चलते इसे सड़ने में अधिक समय लगता है, इसलिए किसान इसे पूरे खेत में फैला कर उस के ऊपर पर्याप्त मात्रा में यूरिया छिड़क कर पानी भर देते हैं. इस से पुआल जल्दी सड़ तो जाता  है, लेकिन इस में यूरिया की मात्रा ज्यादा होने के चलते कार्बन व नाइट्रोजन के अनुपात में कमी आ जाती है.

अगर कार्बन व नाइट्रोजन का यह अनुपात 25:1 से कम हो जाए, तो मिट्टी के सूक्ष्म जीव मौजूद नाइट्रोजन का उपयोग नहीं कर पाते, जिस की वजह से नाइट्रोजन परिवर्तित हो कर अमोनिया बन जाती है. इस तरह नाइट्रोजन का उचित उपयोग नहीं हो पाता है.

इस के अलावा पुआल को खेत में जोत देने से मिट्टी के पोषक तत्त्व जैसे नाइट्रोजन गतिहीन या स्थिर हो जाती है, जिस से यह पौधों को उपलब्ध नहीं हो पाती, इसलिए किसान धान की फसल काटने के बाद गेहूं बोने की तैयारी में लगे होते हैं, उन के पास समय की कमी होने के चलते जल्दबाजी में पुआल खेत में फैला कर उस में आग लगा देते हैं.

पुआल जलाने के हानिकारक प्रभाव

 

*      मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की कमी.

 

*      मिट्टी की संरचना में गिरावट.

 

*      मिट्टी की जैविक गतिविधियों में कमी होना.

 

*      पर्यावरण प्रदूषण का बढ़ना. इस की वजह से जीवजंतुओं की सेहत पर बुरा असर होना.

 

धान के पुआल से कंपोस्ट बनाना एक सुरक्षित विकल्प : सूक्ष्म जीवाणुओं की मदद से कार्बनिक पदार्थों का औक्सीकृत जैव में बदलाव की प्रक्रिया को कंपोस्ट बनाना कहते हैं. इस से बनने वाला उत्पाद कंपोस्ट कहलाता है.

कंपोस्ट को मिट्टी में मिलाने से पौधे और मिट्टी दोनों को फायदा होता है. यह पौधों की बढ़वार व विकास के लिए पोषक तत्त्व प्रदान करता है. साथ ही, मिट्टी की उर्वराशक्ति में बढ़ोतरी करता है.

कंपोस्ट बनाने के लिए धान की कटाई के बाद बची पुआल को छोटेछोटे टुकड़ों में काट लेते हैं. पुआल से कंपोस्ट बनाने के लिए

गड्ढा विधि व ढेर विधि को प्रयोग में लाया जाता है.

गड्ढे की लंबाई आमतौर पर 6 से

10 मीटर और चौड़ाई व गहराई 1 मीटर रखते हैं. पुआल ज्यादा मात्रा में होने पर गड्ढों की तादाद बढ़ाई जा सकती है. इस के बाद पुआल के छोटेछोटे कटे टुकड़ों को रात में पानी में डुबो कर नम करते हैं और फिर गड्ढे में भर कर अब इस के ऊपर गोबर की एक परत लगाते हैं. इस तरह कुल 3 परतें बनाई जाती हैं.

पुआल के सड़ाने की क्रिया को तेज करने के लिए इस में 50 ग्राम प्रति 100 किलोग्राम भूसा की दर से ट्राइकोडर्मा कवक मिलाया जा सकता है और कंपोस्ट का कार्बन व नाइट्रोजन के अनुपात को कम करने के लिए इस में 0.25 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति 100 किलोग्राम पुआल की दर से मिलाते हैं.

खाद को ज्यादा प्रभावशाली बनाने के लिए इस में पाइराइट 10 फीसदी की दर से और रौक फास्फेट 1 फीसदी की दर के मिश्रण का प्रयोग किया जा सकता है. इस में समयसमय पर पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए, ताकि इस में पर्याप्त मात्रा में नमी बनी रहे. इस में हवा के आनेजाने के लिए 15-20 दिन के अंतराल पर पलटाई कर देते हैं, जिस से ऊपरी व निचली सतह अच्छी तरह आपस में मिल जाती है. कंपोस्ट बनने की पूरी प्रक्रिया में 4 महीने का समय लगता है. इस के बाद इसे खेत में डाला जा सकता है.

पुआल से तैयार कंपोस्ट को जमीन में डालने के फायदे

फसल अवशेषों का इस्तेमाल कर के उस से बेहतर क्वालिटी की खाद बना कर खेतों में डाली जा सकती है. इस प्रकार फसल अवशेषों का प्रबंधन आसानी से किया जा सकता है और पर्यावरण को भी प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है.

पुआल से बनी खाद मिट्टी की भौतिक, रासायनिक व जैविक अवस्था सुधारती है और पौधों के जरूरी पोषक तत्त्वों के मिनरलाइजेशन को बढ़ाती है, जिस से कि पोषक तत्त्व मिट्टी में ज्यादा समय तक बने रहते हैं.

साथ ही, यह खाद मिट्टी में मौजूद फायदेमंद सूक्ष्म जीवों के बीच संतुलन बनाए रखने का भी महत्त्वपूर्ण काम करती है. इसलिए यह खाद फसल की बढ़वार और विकास को बढ़ा कर फसलोत्पादन को बढ़ाती है. साथ ही, पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाती है.

कैसे पहचानें कंपोस्ट खाद 

*      इस कंपोस्ट खाद का रंग काला या गहरा भूरा होता है.  और इस में 30-50 फीसदी तक नमी की मात्रा होनी चाहिए.

*      इस की गंध मिट्टी जैसी आनी चाहिए और इस में दूसरी किसी तरह की गंध जैसे-तेज खट्टी, अमोनिया या सड़ी हुई बदबू नहीं आनी चाहिए.

*      तैयार कंपोस्ट खाद का पीएच मान 5 से 8 के बीच में होना चाहिए.

*      इस में 35-45 फीसदी तक जैव पदार्थ की मात्रा होनी चाहिए.

*      इस में 30-35:1 तक कार्बन:नाइट्रोजन का अनुपात अच्छा माना गया है.

बिजली उत्पादन

धान के पुआल का इस्तेमाल बिजली उत्पादन के लिए भी किया जाता है. इस से बिजली उत्पादन संयंत्र की आपूर्ति बिजली बनाने के लिए की जा सकती है. बायोमास आधारित बिजली संयंत्रों को बढ़ावा देने के लिए सरकार विभिन्न प्रोत्साहन योजनाएं चला रही है.

पंजाब में बायोमास आधारित बिजली संयंत्रों द्वारा 62.5 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए तकरीबन 0.48 मिलियन टन धान के पुआल का इस्तेमाल किया जा रहा है. इस से विभिन्न राज्य उद्योग ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन रहे हैं.

बायोगैस उत्पादन

धान के पुआल से प्रचुर मात्रा में बायोगैस का उत्पादन किया जा सकता है. धान के पुआल को औक्सीजन की गैरमौजूदगी में सूक्ष्म जीवों के साथ विघटित करने से बायोगैस बनती है.

यह बायोगैस वाहनों में सीएनजी के स्थान पर इस्तेमाल में लाई जा सकती है. सरकार की ओर से बायोगैस उत्पादन पर विभिन्न सब्सिडी की योजना चल रही है.

मशरूम की खेती

मशरूम की खेती करने के लिए धान के पुआल को बेझिझक इस्तेमाल में लाया जा सकता है.

बटन मशरूम के उत्पादन के लिए, पुआल में से अतिरिक्त पानी की निकासी यानी पानी को निकालना, पुआल को काटने और बंडलों को तैयार करने जैसी कुछ क्रियाएं बेहद जरूरी हैं.

आंकड़ों से यह भी पता चला है कि धान के पुआल को कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल करते हुए इन कामों के लिए अनुमानित लागत 475 रुपए प्रति क्विंटल है, जबकि

यह 725 रुपए प्रति क्विंटल है, जब गेहूं के भूसे को आधार सामग्री के रूप में उपयोग किया जाता है.

इसलिए, मशरूम उत्पादन के लिए धान के पुआल का इस्तेमाल कर  मशरूम उत्पादकों को शुद्ध बचत के रूप में 250 प्रति क्विंटल की राशि बचाने में मदद मिल सकती है.

झंझावात: भाग 4

लेखक-राकेश भ्रमर

आजकल अनिल उसे बचत की हिदायत देने लगा था. लखनऊ में एक मकान और एक प्लौट खरीदने की बात चल रही थी. उस ने फौर्म भर दिया, बुकिंग अमाउंट दे दिया था. अलौट होते ही पूरा पैसा भरना पड़ेगा. मकान और प्लौट रीना के ही नाम?थे. अनिल की

2 नंबर की कमाई भी उस के बूटिक के नाम पर सफेद हो रही थी. फिर भी रुपएपैसे के लेनदेन में पति की सहमति आवश्यक थी. हजारदोहजार की बात हो, तो कोई आंख मूंद कर दे भी दे.

रात को सोते समय उस ने अनिल से बात की. सुन कर अनिल गंभीर हो गया. फिर बोला, ‘‘रीना, एक बात हमेशा ध्यान रखना, पैसा रिश्ते बनाता?है, तो बिगाड़ता भी है, जब तक हम देते हैं, हम बहुत प्रिय होते?हैं, परंतु जिस दिन अपना दिया हुआ मांग बैठते?हैं, उसी दिन उन के सब से बड़े शत्रु हो जाते?हैं, रिश्तों की सारी मधुरता विष बन जाती?है.’’

‘‘वे मेरे मांबाप हैं, उन की जरूरत पर काम नहीं आएंगे, तो किस के काम आएंगे,’’ रीना ने मान करते हुए कहा.

‘‘ठीक?है, समाज में रहते हुए हम सभी एकदूसरे के काम आते?हैं, परंतु पैसे का लेनदेन रिश्तों की निकटता और मधुरता को समाप्त कर देता है. हमारे पास पैसा है, परंतु इस का अर्थ यह नहीं कि लोग हमें गरीब की भैंस समझ कर दुहने लगे. तुम पहले भी इन सब को बहुतकुछ दे चुकी हो. मैं मना नहीं करता, दे दो. तुम्हारे भाई की नौकरी का सवाल है. परंतु जिस दिन भी तुम उन से एक पैसा मांग बैठोगी, उसी दिन बेटी होते हुए भी तुम उन की सब से बड़ी दुश्मन हो जाओगी.’’

‘‘मुझे नहीं लगता, ऐसा होगा.’’

अनिल हंस पड़ा, ‘‘गांठ बांध लो, एक दिन ऐसा ही होगा.’’

‘‘अच्छा, तब की तब देखी जाएगी, अभी तो 3 लाख रुपए दे दो.’’

दे देना, तुम्हारे पास ही तो रखे?हैं,’’ उस ने टालने जैसे भाव से कह कर करवट बदल ली.

3 लाख रुपए दे कर रीना के छोटे भाई की नौकरी लग गई. परंतु बड़ा वाला घर में बेकार बैठा था. मांबाप की चिंता का सब से बड़ा कारण वही था. उस की उम्र भी निकल गई थी. अब या तो वह कोई प्राइवेट जौब करता या अपना कोई व्यवसाय.

कुछ दिनों बाद पता चल गया कि वह?क्या करना चाहता था. एक दिन रीना की मम्मी सुबहसुबह आ गई. अब तक रीना की बच्ची लगभग एक साल की हो गई थी. कुछ दिनों बाद ही उस का पहला जन्मदिन आने वाला था.

रीना की मम्मी उस दिन मोनी को खूब प्यारदुलार कर रही थी. फिर जब अनिल औफिस चला गया, तो रीना से बोली, ‘‘बेटी, एक बहुत जरूरी काम?है, कहने में संकोच हो रहा है, परंतु कहे बिना भी काम नहीं चलने वाला. दामाद जी बने रहें उन की नौकरी बनी रहे. तेरे घर में ऐसे ही धनवर्षा होती रहे, तू सदा खुशियों में झूलती रहे. मोनी के मुंह में सदा चांदी का चम्मच रहे.’’

‘‘मम्मी,’’ रीना ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आज बड़ी बातें कर रही हो, लगता है बहुत तगड़ी डिमांड है.’’

उस की मम्मी झेंप गई. सिर झुकाते हुए बोली, ‘‘बेटी, अपनी औलाद के लिए मांबाप को न जाने किसकिस के सामने हाथ फैलाना पड़ता है.’’

रीना ने उत्सुकता से पूछा, ‘‘अब ऐसी कौन सी जरूरत आ पड़ी?’’

‘‘अब क्या बताऊं, परेश बेकार बैठा है. 30 साल का हो गया?है. शादी करनी?है, परंतु एक बेकारबेरोजगार लड़के के हाथ में कौन बाप अपनी बेटी का हाथ देगा?’’

‘‘तो क्या उस की शादी करने जा रही हो?’’ रीना ने बीच में बात काट कर पूछा.

‘‘नहीं रे, मैं तो उस के काज के बारे में कह रही थी. कुछ करेगा नहीं, तो शादी कहां से होगी? अपने घर के पास महल्ले में ही एक दुकान खाली?है. सोचते हैं कि उस के लिए किराने की दुकान खुलवा दें.’

‘‘तो खुलवा दो,’’ रीना ने खुशीमन से कहा.

‘‘खुलवा तो दें, परंतु इतना पैसा हमारे पास कहां है? तुम कुछ मदद कर दो.’’

‘‘मदद…कितनी?’’ रीना की आवाज जैसे थम गई.

‘यही कोई 10 लाख रुपए,’’ उस की मम्मी ने भी दबे स्वर में कहा.

‘10 लाख रुपए!’’ रीना के मुंह से निकला. उसे अनिल की पिछली नसीहत याद आ गई. मन में भय व्याप्त हो गया. 10 लाख रुपए बहुत बड़ी रकम होती?है. 3 लाख पर अनिल कितना नाराज हुआ था? अब 10 लाख रुपए क्या खुशीमन से देगा? मन को कड़ा कर के उस ने कहा, ‘‘मम्मी, यह बात आप स्वयं उन से कहिए.’’

‘‘बेटी, तुम एक बार कह कर तो देखो,’’ मम्मी ने मनुहार जैसी की.

‘‘नहीं मम्मी.’’ अभी कुछ दिनों पहले ही उन्होंने लखनऊ में एक मकान बुक किया है, कैश डाउन पेमैंट पर. अलौटमैंट होते ही पूरा पैसा एकमुश्त भरना पड़ेगा. इस के अलावा 2 प्लौट लिए हैं. हर महीने उन की मोटी किस्त जाती?है. मैं पहले ही उन की नजरों में बहुत बुरी बन चुकी हूं. अब और बुरी नहीं बनूंगी,’’ रीना ने साफसाफ कह दिया.

उस की मम्मी बोली, ‘‘बेटी, तू बदल गई?है. माना कि तेरे पास पैसा है, परंतु वे दिन भूल गई जब हम तेरी जरूरतें पूरी करने के लिए क्याक्या कष्ट नहीं उठाते?थे.’’ मम्मी की आवाज में नाराजगी और गुस्सा था.

‘‘मम्मी, आप तो बुरा मान गईं. परंतु आप नहीं जानतीं कि वे कितनी मेहनत से पैसा कमाते?हैं. क्या उन्हें तकलीफ नहीं होती जब हम इसे बेरहमी से लुटाने लगते?हैं.’’

‘बेटी, यह कोई लूट नहीं है. जरूरत है, इसीलए मांग रही हूं. तू खुदगर्ज हो गई है. कोई बात नहीं, मैं अब दामादजी से ही मांगूगी. तेरे सामने कभी हाथ नहीं फैलाऊंगी.’’ मां मुंह फुला कर चली गई. रीना को आज समझ में आ रहा था कि पैसों का लेनदेन रिश्तों में खटास भर देता?है. अब ऐसा ही कुछ रीना और उस के मायके के बीच होने वाला था. किसी अनहोनी की आंशका से वह डर गई. काश, उस के साथ कोई अप्रिय घटना न हो.

रीना ने अनिल को इस संबंध में कुछ नहीं बताया.

दूसरे दिन सुबह 8 बजे ही रीना के मम्मीपापा उस के घर पर आ धमके. अनिल ने हैरानी से रीना को देखा और इशारोंइशारों में पूछा, ‘‘क्या बात है?’’ रीना जानती थी, फिर भी इनकार में सिर हिला दिया, जैसे कुछ नहीं जानती थी.

चाय पीते हुए रीना के डैडी ने बहुत मधुर आवाज में अनिल से कहा, ‘‘बेटा, तुम्हारे समय से हमारा समय भी जुड़ा हुआ?है. वरना बहुत कष्ट में जी रहे होते. रीना का रिश्ता तुम्हारे साथ जुड़ गया, तो हमारा समय सुधर गया.’’

 

अनिल समझ गया, पैसे की मांग होगी, तभी जबान में मिसरी घुल रही है. डिमांड भी छोटीमोटी नहीं होगी, वरना ससुरजी नहीं आते. सासुजी रीना से ही मांग लेतीं.

‘‘बताइए पापा जी, मैं क्या कर सकता हूं.’’ पहेलियां बुझाने का समय उस के पास नहीं था. तैयार हो कर औफिस भी जाना था उसे.

‘‘बेटा, अपने छोटे साले को तो तुम ने सही जगह पर लगवा दिया. बीच वाला बेकार?है. सरकारी नौकरी के लिए अब उस की उम्र नहीं रही. सोचता हूं, कोई छोटामोटा धंधा करवा दूं,’’ गिरधारी लाल की जबान से अभी तक मिसरी टपक रही थी.

 

‘‘अच्छा है,’’ अनिल ने कहा.

 

‘‘बस, तुम्हारा ही आसरा है. मेरे पास तो कुछ है नहीं. रिटायरमैंट के बाद जो बचा था, रीना की शादी में खर्च कर दिया.’’ यह बता कर वे जैसे अनिल के ऊपर एहसान लाद रहे?थे. बिना दहेज के शादी हुई?थी. खामखां, हीन बनने की कोशिश कर रहे थे.

 

अनिल प्रभावित नहीं हुआ. सीधे पूछा, ‘‘बताइए, कितना पैसा चाहिए?’’ सुन कर रीना के साथसाथ उस के मम्मीपापा भी हैरान रहे गए. वे तो समझ रहे थे, अनिल आसानी से नहीं मानेगा, परंतु…? सभी एकदूसरे का मुंह ताकने लगे.

 

अनिल ऊपर से जितना कठोर था, अंदर से उतना ही कोमल था. किसी को कष्ट में नहीं देख सकता था वह. गैर भी उस के सामने हाथ फैलाता, तो वह कुछ न कुछ दे देता. परंतु वह पैसे का महत्त्व भी जानता था और यह भी समझता था कि बहुत निकटसंबंधियों में पैसे का लेनदेन कटुता को भी जन्म देता था. परंतु यहां मामला उलट था. ससुरजी पहली बार उस से कुछ मांगने आए थे. मना नहीं कर सकता था. मना कर सकता था अगर पहले से ही अपनी मुट्ठी बंद कर के रखता.

 

उस के घर में पैसे की रेलपेल थी, इसलिए रिश्तेदार गुड़ में चींटी की तरह चिपके हुए थे. पहले दिया था, अब किस मुंह से मना करता. रीना से वह कुछ भी कह सकता था, परंतु ससुरजी को कैसे मना करता. ससुरजी भी चालाक थे, उन्हें पता था, रीना से बात नहीं बनेगी. इसीलए सीधे उस के पास आए थे.

 

‘‘बेटा, 10 लाख रुपए दे देते, तो छोटी सी दुकान खुल जाती,’’ ससुरजी की वाणी में मधुरता के साथसाथ दीनता भी टपकने लगी. सासुजी ने इस बीच जबान भी नहीं खोली थी. बेटी के साथ भी कोई संवाद नहीं किया था. शायद अभी तक नाराज थीं.

 

झंझावात: भाग 3

लेखक- राकेश भ्रमर 

उस रात उसे नींद भी नहीं आई. अनिल सो गया, तो वह चुपके से उठी. अलमारी खोल कर रुपए गिने. कई बार गिने कुल 70 हजार थे. वह चकित रह गई. इतने सारे रुपए. रात में कई बार उठ कर उस ने रुपए गिने.

उसे लग रहा?था जैसे किसी साम्राज्य की वह महारानी बन गई थी. उसे दुनिया बहुत छोटी लगने लगी थी. रुपए नियमितरूप से आ रहे थे. अलमारी का लौकर भर गया, तो सूटकेस में रखने लगी. कभीकभी सोचती, इतने रुपयों का वह?क्या करेगी? घर में इतना रुपया रखना भी खतरे से खाली नहीं था. कहीं चोरीडकैती पड़ जाए, इस शंका के साथसाथ मन में एक अनमना?भय कुंडली मार कर बैठ गया. एक दिन पति से पूछा, ‘‘इतना सारा रुपया घर में पड़ा?है, क्या होगा इस का?’’

अनिल ने लापरवाही से कह दिया, ‘‘तुम अपने गहनेकपड़ों के ऊपर खर्च करो. ज्यादा होगा, तो कहीं इन्वैस्ट करने के बारे में सोचा जाएगा.’’

दूसरे ही दिन रीना अपनी मम्मी के पास गई. ‘‘मम्मी मुझे कुछ गहने खरीदने हैं. मेरे साथ ज्वैलर्स के यहां चलोगी?’’

‘‘क्यों नहीं बेटी? उस की मम्मी फौरन तैयार हो गईं. फिर दोनों बाजार गईं रीता ने अपने लिए कई हजार रुपयों के गहने खरीदे. इस के बाद भी उस के पर्स में कई हजार रुपए बचे रह गए थे. उस की मम्मी ने धीरे से पूछा, ‘‘दामादजी, खूब कमा रहे हैं?’’

‘‘हां,’’ रीना ने संक्षिप्त जवाब दिया.

‘‘तो बेटी हमारा भी खयाल रखना. तुझे तो पता है, तेरे पापा का सारा पैसा तेरी शादी में लग गया. अब हाथ खाली है. 2 बेटे बेरोजगार हैं. घरखर्च मुश्किल से चलता?है. पैंशन से क्या होता है. तुझे घर के हालात पता ही?हैं, बताने की जरूरत नहीं?है, बाकी तू समझदार?है. पैसे को जमा कर के रखोगी, तो शैतान खाएगा. कुछ पुण्य के काम में खर्च करोगी, तो बरकत होगी.’’

रीना ध्यान से मम्मी की बात सुन रही थी. वे ठीक ही कह रही थीं. पापा की कमाई में क्या बरकत हो सकती?है? उसे अभी इतना जीवन का अनुभव नहीं?था, परंतु मम्मी कह रही?थीं तो सच ही कह रही होंगी. उस ने पूछा, ‘‘मम्मी, आप को कुछ चाहिए, तो बोलिए.’’

मम्मी छोटे बच्चे की तरह इठला गईं, ‘‘तेरा मन है तो एक अंगूठी दिलवा दे. बाद में कुछ और लूंगी.’’

‘‘ठीक है,’’ रीना ने मम्मी के लिए तुरंत एक अंगूठी खरीद दी.

फिर तो यह जैसे एक क्रम बन गया. दूसरेतीसरे महीने रीना कोई न कोई गहना गढ़वा लेती, साथ ही मां के लिए भी छोटामोटा गहना बनवाती, अपने पापा के लिए भी एक चेन और अंगूठी बनवा दी थी. भाइयों को बहन की इस उदारता का पता चला, तो वे भी रीना के आगपीछे डोलने लगे. छोटीछोटी मांगों से थोड़ाथोड़ा आगे बढ़ते गए. फिर उन की मांग मोटरसाइकिल पर जा कर रुकी. पैसा अथाह था, इसलिए रीना और अनिल ने उन की मांगें पूरी कर दीं.

कुछ दिन बीते, पैसा जमा होतेहोते लाखों पहुंच गया. रीना के पास भी इतने गहनेकपड़े हो गए कि उन के प्रति उस का मोह समाप्त हो गया?था. जीवन में विलासिता की अन्य वस्तुएं भी थीं. यों तो अनिल को औफिस की तरफ से जीप मिली हुई थी, परंतु घर में अपनी गाड़ी हो तो उस की अनुभूति ही अलग होती?है. आज बाजार में इतनी अच्छी लग्जरी गाडि़यां आ गई थीं कि चाहे तो रोज एक गाड़ी खरीद लें.

रीना का बड़ा मन था गाड़ी खरीदने का. उस ने मन की बात अनिल से कही, तो वह बोला, ‘‘गाड़ी तो कई लाख की आएगी. इन्कम कहां से दिखाएंगे?’’

‘‘इतना पैसा तो घर में ही रखा?है?’’ रीना ने मासूमियत से कहा.

‘‘मूर्ख, यह कोई वेतन का पैसा नहीं है. गाड़ी खरीदते ही इन्कमटैक्स वाले सूंघते हुए घर पहुंच जाएंगे. मैं कल औफिस में पता करता हूं कि गाड़ी खरीदने का क्या तरीका?है, ताकि बाद में कोई झंझट पैदा न हो.’’

दूसरे दिन उस ने अपने एक्स ई (अधिशासी अभियंता) से पूछा, ‘‘सर, मुझे एक गाड़ी खरीदनी है, कैसे करूं?’’

‘‘पैसा है?’’

‘‘हां?’’

‘‘उसे व्हाइट कर लिया?’’

‘‘कैसे करूं?’’

‘‘अभी तक नहीं समझ में आया? तो?क्या सारा पैसा ऐसे ही घर में रख रखा?है?’’

‘‘हां,’’ अनिल ने मूर्ख की तरह सिर हिला कर कहा. उस ने यह नहीं बताया कि उस का अधिकांश पैसा तो उस की बहनों, सालों और सासससुर ने हड़प कर लिया था.

‘‘मूर्ख, मरेगा एक दिन. आजकल एंटी करप्शन और विजिलैंस वाले बहुत सक्रिय हैं. किसी ने शिकायत कर दी तो… खैर, मैं एक सीए का फोन नंबर देता हूं. उस से बात कर के उस के औफिस चले जाओ. ध्यान रहे, फोन पर कोई बात न करना. उस के औफिस में जा कर ही बात करना.’’

अगले दिन ही वह सीए के दफ्तर में पहुंचा. अपनी समस्या बताई, तो सीए मुसकरा कर बोला, ‘‘कोई बात नहीं. काम हो जाएगा.’’ उस ने अपनी फीस बताई. अनिल ने हां की और घर चला आया.

एक हफ्ते के अंदर ही रीना के नाम से कागजों पर एक बुटीक खुल गया. यह बुटीक पिछले 3 सालों से चल रहा था. पहले 2 सालों की इन्कम मात्र इतनी थी कि उस पर कोई इन्कम टैक्स नहीं बनता?था. तीसरे साल इन्कम काफी बढ़ी हुई थी, जिस पर लगभग एक लाख रुपए इन्कम टैक्स देना था.

रीना ने फर्जी बिलों पर दस्तखत बना दिए. सीए ने बताया कि 2 महीने के अंदर रीना का पैनकार्ड भी बन जाएगा, एडवांस टैक्स के बजाय एकमुश्त टैक्स भर देंगे. रिटर्न भरने की तारीख अभी कई महीने बाद की?थी. पिछले 2 सालों के रिटर्न सीए ने कुछ जुर्माना भर कर दाखिल करवा दिए.

इस तरह अनिल के कई लाख रुपए व्हाइट हो गए. अब उस ने कार खरीद ली.

एक साल बाद रीना एक बच्ची की

मां बनी. एक तीनसितारा होटल में

जश्न मनाया गया. रीना और अनिल के जीवन में खुशियों के फूल खिल गए थे. दुख की कहीं कोई छाया नहीं थी.

बेटी की देखभाल के बहाने आजकल रोज ही रीना की मम्मी उस के घर आने लगी?थी. वह नवजात को तेल लगाती, नहलातीधुलाती और रीना को उस के पालनपोषण के तरीके बताती.

इसी बीच रीना के छोटे भाई की कहीं सरकारी नौकरी की बात चली. 3 लाख रुपयों की मांग?थी. उस की मम्मी ने रीना से चिरौरी की, ‘‘बेटी, तेरे भाई की जिंदगी का सवाल है. बड़ा तो लगता?है बेरोजगार ही रह जाएगा. उसे कोई प्राइवेट धंधा करवाना पड़ेगा. छोटा ही कहीं लग जाए तो…’’ आगे उन्होंने बात को रीना के समझने के लिए छोड़ दिया.

रीना अब नासमझ नहीं थी. रुपए का खेल वह अच्छी तरह समझ गई थी. रुपया जिस के पाले में होता?है, उस से हारने के लए सभी तत्पर रहते?हैं.

सीए अनिल के रुपए व्हाइट कर ही रहा?था. इस के अलावा भी काफी रुपया ब्लैक का घर में रखा हुआ?था. उस ने कहा, ‘‘मैं उन से पूछ कर बताऊंगी.’’

‘‘बेटी, तू कहेगी तो दामादजी न थोड़ी ही कहेंगे.’’

‘‘फिर भी उन से पूछना जरूरी है,

3 लाख रुपए की बात है.’’

झंझावात: भाग 2

लेखक- राकेश भ्रमर

अनिल के स्वर में खीझ उभर आई, ‘‘यह क्या है रीना? यह बेरुखी क्यों?’’

‘‘मेरा मन नहीं है,’’ रीना ने ढिठाई से कहा.

‘‘मन नहीं है? यह कौन सी बात हुई? इस बात को तुम सीधे ढंग से, प्यार से मुसकरा कर कह सकती थी. तुम्हारा व्यवहार बता रहा है कि कोई और बात है?’’

रीना ने अपना मुंह अनिल की तरफ कर के कहा, ‘‘मैं एक इंसान हूं, मेरा भी मन है. जब मेरी इच्छा होगी. तभी तो कुछ करूंगी. बिना इच्छा के कोई काम नहीं होता.’’

‘‘यह अचानक मन और इच्छा कहां से आ गए. तुम तो मुझ से ढंग से बात भी नहीं कर रही हो. मैं तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती तो नहीं कर रहा. नहीं मन है, तो नहीं करेंगे, परंतु बात तो ठीक से करो. तुम्हें कोई परेशानी हो, तो बताओ,’’ उस ने उसे अपनी तरफ खींचा.

रीना नाटक तो कर रही थी, परंतु मन में एक डर भी बैठ गया था कि कहीं अनिल नाराज न हो जाए, सारा बनाबनाया खेल बिगड़ जाएगा. उस ने कहा, ‘‘मैं आप की कौन हूं?’’

अनिल का मुंह एक बार फिर से खुल गया, ‘‘क्या कह रही हो तुम? मेरी समझ में तुम्हारी पहेलियां नहीं आ रही हैं? जरा, खुल कर बताओ, तुम्हें क्या हुआ है? और तुम क्या चाहती हो?’’

रीना ने उस के सीने पर हाथ फिराते हुए कहा, ‘‘मैं आप की पत्नी हूं न. तो फिर इस घर में मुझे पत्नी के सारे अधिकार चाहिए.’’

‘‘मतलब…? तुम्हें कौन से अधिकार चाहिए?’’ उस की हैरानगी खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी.

‘‘पत्नी के नाते, तुम पर, तुम्हारे घर पर और तुम्हारी सभी चीजों पर मुझे अधिकार चाहिए. कोई तीसरा हमारे बीच में न रहे,’’ उस ने कटुता और मधुरता के मिश्रित भाव से कहा.

अनिल समझ गया, ‘‘तुम्हारा मतलब मां से है?’’

‘‘हां.’’

‘‘मां विधवा हैं. वे इस उम्र में कहां जाएंगी?’’

‘‘नहीं, आप नहीं समझे. मैं मां को घर से निकालने के लिए नहीं कह रही, परंतु उन को बुढ़ापे में आराम करने दीजिए. घर की जिम्मेदारी मुझे संभालने दीजिए. वैसे भी, आप बहुत भोले हैं. आप को पता नहीं, जो कुछ आप कमा कर लाते हैं, वह कहां जाता है?’’

‘‘कहां जाता है?’’

‘‘आप की बहनें किसी न किसी बहाने लूट कर ले जाती हैं.’’

‘‘तो क्या हुआ? उन को जरूरत होती है, तो ले जाती हैं.’’

‘‘न जाने आप को अक्ल कब आएगी? उन की जरूरतें कभी खत्म नहीं होंगी और आप हमेशा इसी तरह लुटते रहेंगे. जरा सोचिए. क्या कल हमारे बच्चे नहीं होंगे? उन की शिक्षा पर पैसा खर्च नहीं होगा? क्या आप उन के लिए कुछ जोड़ कर नहीं रखेंगे? हमारे खर्च हमेशा इतने ही नहीं रहेंगे, बढ़ेंगे. जमाने को देखते हुए नया घर, बंगला और कार…क्या, यह सब नहीं चाहिए?’’

अनिल सोच में पड़ गया, फिर बोला, ‘‘परंतु मां के रहते घर की सारी जिम्मेदारी तुम्हें सौंपना ठीक नहीं रहेगा. उन के मन पर क्या गुजरेगी? पिताजी के मरने पर किस तरह उन्होंने मेरी शिक्षा के लिए कष्ट उठाए. कहांकहां से पैसे का प्रबंध किया, मैं ही जानता हूं. मैं उन्हें बुढ़ापे के सुख से वंचित नहीं कर सकता. रुपयापैसा उन्हीं के हाथ में रहेगा, बाकी घर की सारी जिम्मेदारियां तुम संभाल लो.’’

अनिल के निर्णय से रीना का दिल टूट गया. वह क्या सोच कर आई थी, क्या हो गया था? उस का मनचाहा नहीं हुआ, तो उस के मन में और ज्यादा कटुता भर गई. उस ने अनिल के साथ संबंध बनाए, परंतु बेमन से. उन के दांपत्य जीवन के लिए यह शुभ लक्षण नहीं था.

रीना ने फोन पर अपनी मम्मी से सलाह ली, तो उन्होंने बताया, ‘‘वहां रह कर तू कुछ नहीं कर पाएगी. किसी तरह पति को मना कर उन का ट्रांसफर इलाहाबाद करवा ले,’’ इलाहाबाद रीना का मायका था.

‘‘क्या वे मान जाएंगे?’’

‘‘तू अगर मनवाएगी तो क्यों नहीं मानेंगे?’’

‘‘ठीक है, कोशिश करती हूं?’’

इस बार रीना ने रूठने और मनाने की प्रक्रिया नहीं दोहराई. उस ने दूसरा ही शस्त्र अपनाया. उस ने अपने स्वभाव और व्यवहार को आवश्यकता से अधिक मृदु बना लिया. पति को इतना लाड़प्यार करती कि आश्चर्यचकित रह जाता कि रीना के हृदय में प्रेम का इतना लंबाचौड़ा सागर अचानक कहां से उफानें मारने लगा. वह मन ही मन सोचता और इंतजार करता कि आगे क्या होगा? वह प्यार के मजे लूट रहा था.

एक रात प्यार के सम्मोहन में डूबे

अनिल से रीना ने कहा, ‘‘क्या

आप का ट्रांसफर नहीं हो सकता?’’

‘‘ट्रांसफर? क्यों?’’

‘‘मुझे मम्मीपापा की बहुत याद आती है. मैं चाहती हूं, जब तक हमारे कोई बच्चा न हो, तब तक के लिए आप अपना तबादला इलाहाबाद करवा लो. मैं अपने मम्मीपापा और भाइयों के करीब रह लूंगी. बाद में जो होगा, देखा जाएगा.’’

‘‘तुम जबतब इलाहाबाद जाती ही रहती हो. क्या यह कम है?’’

‘‘जानू, जबतब जाने और किसी के पास रहने में फर्क है. आप क्या मेरे लिए इतना नहीं कर सकते? आखिर जीवनभर हमें साथ रहना है. एकदूसरे की इच्छा का सम्मान करना हमारा धर्म है.’’

‘‘परंतु मां कहां रहेंगी?’’

‘‘मां के लिए आप क्यों परेशान होते हैं. आप की कोई न कोई बहन हमेशा यहां रहती है. वे अकेली थोड़े रहेंगी. तब भी ननदें आतीजाती रहेंगी. आप उन के खर्च के लिए पैसे देते रहिएगा. फिर लखनऊइलाहाबाद में दूरी ही कितनी है. चाहे तो हर संडे को आप मां से आ कर मिल सकते हैं.’’

अनिल के मन को बात जंच गई. वह कुछ दिन पत्नी के साथ एकांत में बिताना चाहता था. इस घर में कोई न कोई रिश्तेदार बना ही रहता था. गांव से दूरी बहुत कम थी. सगे रिश्तेदारों के अलावा दूर के रिश्तेदार भी आते रहते थे. गांव से किसी का भी काम लखनऊ में पड़ता, रात रुकना होता, तो वह धमकता हुआ अनिल के घर आ जाता. गांव के रिश्ते ऐसे होते हैं कि किसी को मना भी नहीं किया जा सकता.

अनिल मान गया. अगले दिन ही उस ने अपने तबादले के लिए लिख कर दे दिया. वह जिस विभाग में था, वहां तबादले आसानी से नहीं होते थे. सारे लोग कमाते थे, इसलिए ट्रांसफर में भी पैसा चलता था. उस ने हैडऔफिस जा कर संबंधित क्लर्कों और इंजीनियरों की मुट्ठी गरम की, तब जा कर उस का ट्रांसफर हुआ.

जिस दिन तबादले का और्डर उसे मिला, रीना की खुशी का ठिकाना नहीं था. परंतु अनिल की मां दुखी हो गईं, बोलीं, ‘‘बेटा, बुढ़ापे में यही दिन देखना बदा था.’’

अनिल ने बात बनाते हुए कहा, ‘‘मां, नौकरी का मामला है, जाना ही पड़ेगा, परंतु आप चिंतित न हों. मैं हर इतवार को आता रहूंगा. और फिर दीदी लोग बारीबारी से आती ही रहती हैं, आप अकेली नहीं रहोगी. मैं भी उन को बोल दूंगा कि आप का खयाल रखें.’’

अनिल ने इलाहाबाद में जौइन कर लिया. दोचार दिन गैस्टहाउस में रहा, कुछ दिन ससुराल में डेरा डाला. एक महीने के ही अंदर सिविल लाइंस एरिया में उसे सरकारी मकान मिल गया. वह रीना के साथ अपने नए घर में शिफ्ट हो गया. नए घर को सजानेसंवारने में रीना की मां का बहुत योगदान था. नया फर्नीचर, नए परदे आदि सबकुछ खरीद कर लाया गया. बाहरी कामों के लिए रीना के दोनों बेरोजगार भाइयों ने बहुत भागदौड़ की. अनिल केवल पैसे खर्च कर रहा था. सारा काम उस के सालों और सास ने संभाल लिया.

घर सज गया, तो रीना को लगा, अब वह इस घर की रानी थी. यहां उस के जीवन में दखल देने वाला कोई नहीं था. वह चाहे जो कर सकती थी, जैसे चाहे रह सकती थी अपने पति के साथ, अपनी खुशियों के साथ. उस की खुशियों को पंख लग गए.

इलाहाबाद में अनिल के जीवन में कुछ दिन शांति रही. जब नया प्रोजैक्ट मिला, तो फिर से घर में पैसे की आमद शुरू हुई. पहली बार जब नोटों की मोटी गड्डी ला कर अनिल ने रीना के हाथों पर रखी, तो उस का पूरा शरीर रोमांचित हो उठा, दिमाग में सनसनी सी दौड़ गई.

उस के हाथ कांपने लगे. बोलना चाह कर भी वह कुछ बोल न पाई. अनिल ने शांत भाव से कहा, ‘‘अलमारी में रख दो.’’

रीना की समझ में नहीं आ रहा था वह उन पैसों का क्या करे. पहली बार इतने पैसे उस के हाथ में आए थे. अंत में अपने को संयत कर उस ने पैसे अलमारी के लौकर में रख दिए. उस का मन कर रहा था गिन कर देखे. सभी पांचपांच सौ और दोदो हजार रुपए के नोट थे. 58 हजार रुपए से कम क्या होंगे? ज्यादा भी हो सकते हैं? अनिल से भी न पूछ सकी. वह सामान्य था. उस के लिए यह कोई नई बात नहीं थी.

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