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 लेखक- डा. भारत खुशालानी

चिराक्षनी ने अपने बजते हुए मोबाइल की स्क्रीन पर देखा, फिर फोन उठाते ही पूछा, “जस बेटा, कैसे हो तुम ?”

जस ने दूसरी ओर से उत्तर दिया, “मैं ठीक हूं. आप लोग कैसे हो ?”

“हम दोनों ठीक हैं. आज पापा को फरीदाबाद जाना था, शाम तक लौट कर आ जाएंगे,” चिराक्षनी ने बोला.

“आसपास तो कोई केस नहीं हुआ है ना ?” जस ने चिंतित भाव से पूछा.

“फिलहाल नहीं. वहां कैसा माहौल है ?”

“यहां सब को कैद कर के ही रख दिया है समझो. कहीं आनेजाने की अनुमति नहीं है.”

“बेटा, अगर आईआईटी नहीं होता, तो मैं कब का तुम्हें वहां से भाग कर आ जाने के लिए बोलती.”

“मम्मी, आईआईटी के छात्र कोई दंगावंगा नहीं करते हैं. सभी कक्षाएं  बंद हैं, तो सब होस्टल में ही बैठ कर पढ़ाई कर रहे हैं.”

“बहुत बढ़िया बेटा. बस अब कुछ दिनों की बात है.”

 

“मम्मी, ऐसा लगता है जैसे हम लोगों को घेराबंदी के तहत रखा गया है.”

“बेटा तुम कल फिर से काल करना. हो सके तो शाम को पापा के आने पर भी काल करना. तुम ने पापा को काल किया था?”

“पापा का फोन नहीं मिल रहा है. लेकिन आप चिंता मत करो.”

“यहां पर स्कूल और कालेज बंद कर दिए हैं. काश तुम लोगों को भी घर भेज दिया होता तो आज तुम यहां घर पर ही होते.”

“ठीक है मम्मी, अब मैं कल काल करूंगा.”

“ठीक है बेटा, अपना ध्यान रखना.”

 

चिराक्षनी ने मोबाइल रख दिया. उस को पता था कि कम से कम जस की तरफ से उस को चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं थी. उस ने अपनी नौकरानी को आवाज लगाई, “अरे जानकीबाई, 2 कप चाय रख दो.”

जानकी ने पूछा, “आंटी, जस ठीक है ?”

चिराक्षनी, “हां, होस्टल में ही है. क्लास वगैरह बंद हैं.”

जानकी ने चाय रखते हुए पूछा, “वहां पर कोई चिंता की बात तो नहीं लग रही है न ?”

“पूरे कालेज को बंद कर दिया है. किसी को न अंदर आने दे रहे हैं, न बाहर जाने दे रहे हैं. व्यापारी लोग कालेज के दरवाजे पर आ कर सामान दे कर जाते हैं. मेस तक में भी खाना बनाने के लिए सब्जियां ऐसे ही पहुंच रही हैं. कालेज के लोग दरवाजे से छात्रों तक सामान ले जा रहे हैं,” चिराक्षनी ने चिंतित भाव से कहा.

“अच्छा है, कम से कम इतना तो कर रहे हैं. अभी तक कालेज में किसी को रोग नहीं लगा है न ?” जानकी कुछ चिंतित हो कर पूछा.

“नहींनही. कुदरत का शुक्र है. जस बता रहा था कि कुछ लोगों को पेट में थोड़ी तकलीफ हुई थी, लेकिन वह शायद अभी कालेज के लोगों ने जो खाने पर प्रतिबंध लगाया है, उस के कारण है.”

“अच्छी बात है. नहीं तो यहां इतनी दूर बैठ कर चिंता में ही आदमी मर जाए,” जानकी ने चाय छानते हुए कहा.

जानकी ने 1 कप चाय चिराक्षनी को दी, फिर पूछ बैठी, “साहब शाम को कितने बजे आएंगे?”

“बोला तो था कि 4 बजे तक वापस आ जाएंगे,” चिराक्षनी ने धीरे से कहा.

इतने में चिराक्षनी का मोबाइल फिर बजा. फोन पति प्रेषक का था.

चिराक्षनी ने पति का फोन देखा तो रिसीव करते ही पूछ बैठी,“कहां तक पहुंचे आप ?”

 

“चिराक्षनी एक काम करो, अपनी गाड़ी ले कर मुझे लेने के लिए स्टैशन तक पहुंचो. मैं साढ़े 3 बजे की गाड़ी से पहुंच जाऊंगा,” पति प्रेषक ने कहा.

“क्यों, आप की कार को क्या हुआ ?”

“मैं बाद में आ कर बताता हूं”, कह कर प्रेषक ने फोन रख दिया.

चिराक्षनी को थोड़ी चिंता हुई. सवेरे प्रेषक यहां से अपनी कार ले कर गया था. अभी वह इसी खयाल में डूबी थी कि जानकी ने अचानक कहा, “मुझे भी 2-4 दिन अपने गांव जाना है. वहां सब देखना है कि कैसे क्या चल रहा है.”

 

चिराक्षनी की मुसीबतें जैसे चौगुनी हो गईं. जानकीबाई का एक दिन भी छुट्टी लेना उसे बहुत अखरता था. और इन दिनों में उस का अपने गांव चले जाना उस के लिए और भी बड़ी मुसीबत बन जाएगी.

उस ने जानकी से पूछा, “सब खैरियत तो है न गांव में ? मां की कोई खबर है क्या ?”

“2 दिन से मैं फोन करने की कोशिश कर रही हूं, कोई जवाब ही नहीं आ रहा है. आज सवेरे से अचानक ही फोन बंद आ रहा है. जबजब भी फोन करती हूं,” जानकी चिंतित हो कर बोली.

 

चिराक्षनी को और भी ऐसी कई जगहों की खबर थी जहां ऐसा हो रहा था. वह समझ गई कि अब जानकी का अपनी मां से फोन पर कोई संपर्क नहीं हो पाएगा और जानकी को तब तक बेचैनी सताती रहेगी जब तक वह गांव जा कर अपनी मां से मिल नहीं लेती. उस ने जानकी को समझाया, “पूरा दक्षिण वाला भाग भंग हो गया है. वहां कोई रिसैप्शन और कनैक्टिविटी नहीं है. इस का यह मतलब नहीं है कि कुछ बुरा घटित हुआ हो.”

“लेकिन 2 दिन पहले तक फोन में रिंग तो जा रही थी. अब तो कोई रिंग भी नहीं जा रही,”

“औपरेटर लोग और फोन वाले भी अब कम ही लोग हैं जो काम पर हैं. इसीलिए भी बहुत सारे टौवर स्विचऔफ कर दिए हैं. इसीलिए फोन जाता ही नहीं है.”

“लेकिन जब 2 दिन पहले रिंग बज रही थी, तो उस ने पलट कर काल भी नहीं किया. नहीं तो हमेशा करती है.”

“ठीक है. जा कर देख कर आ जाओ. तुम्हें भी संतुष्टि हो जाएगी. मगर एक ही दिन में आ जाना. क्या भरोसा, कल को वहां का भी रास्ता बंद कर दिया, तो तुम वहीं पर फंस कर रह जाओगी,” जानकी को समझाते हुए सुलक्षना ने कहा.

“वहां मां के पास रहूंगी इस समय तो उस को भी अच्छा लगेगा,” सुलक्षना ने जवाब में कहा.

“लेकिन वहां पर यहां जैसी सुविधाएं  नहीं हैं और यहां बराबर से सरकार के लोग खानेपीने और दवा का इंतज़ाम कर के देते रहेंगे. गांव में कुछ नहीं होने वाला,” जानकी को यह सब बताना जरूरी था, नहीं तो घर का पूरा काम उस के ही जिम्मे पर आ जाएगा.

जानकी अपने काम में लग गई. उस ने शाम को ही यहां से जाने के बाद अपने गांव जाने का सोच लिया.

 

5 मिनट गाड़ी निकालने के, 5 मिनट स्टैशन पहुंचने के और 5 मिनट गाड़ी पार्क कर के अंदर जाने को मिला कर, चिराक्षनी सवा 3 बजे अपने घर से निकली ताकि साढ़े 3 बजे वाली गाडी के लिए समय से पहुंच सके. पार्किंग में उसे डाक्टर साकेत मिले जो अपनी गाड़ी पार्क कर के अपने फ्लैट में जा रहे थे.

चिराक्षनी ने उन से कहा, “डाक्टर, लगता है आप रात को सोए नहीं?”

“वाकई नहीं सोया मैडम.पूरी रात अस्पताल में था. अब समय मिला है घर आ कर थोड़ा आराम करने का. आप कहां जा रही हैं ऐसे समय में ?”

“प्रेषक को लेने जा रही हूं स्टैशन,” चिराक्षनी ने कहा.

 

“ठीक है, तुम उस को ले कर आ जाओ. मैं 5-6 घंटे की नींद कर के रात को 9 बजे तक आप लोगों के घर आ जाता हूं.”

“बिलकुल आ जाइए. संजिनी को भी लेते आना. सब का मन बन जाएगा.”

“आप दोनों को भी फ्लू का टीका लगा देता हूं आ कर. पिछले 2-3 दिनों में बहुतों को दिया है,” डा. साकेत ने कहा.

 

चिराक्षनी को यह सुन कर खुशी हुई, “यह तो मेरे और प्रेषक दोनों के लिए बहुत बढ़िया होगा.”

साकेत ने कहा,“शायद संजिनी को न ला सकूं. उस की तबियत खरब है.” संजिनी उसकी बीवी थी.

चिराक्षनी को सुन कर दुख हुआ, “अरे नहीं…”

“कम से कम इस पूरी बिल्डिंग में और हो सके तो पूरी कालोनी में मुझे टीके लगाने हैं. इस से पहले कि बात बहुत गंभीर हो जाए.”

“कालोनी में कोई मामला तो सामने नहीं आया है न ?” चिराक्षनी ने पूछा.

“अस्पताल में तो 30-40 ऐसे हैं जिन के लक्षण दिख रहे हैं. ठीक है, मैं 9 बजे आ कर बाकी की खबर देता हूं.” साकेत चला गया.

चिराक्षनी जल्दी से अपनी कार में बैठ कर स्टैशन पहुंची.

 

नई दिल्ली जाने वाली गाडी खड़ी थी. उस ने आश्चर्य से अपनी घड़ी की तरफ देखा और एक रेल कर्मचारी से पूछा, “नई दिल्ली जाने वाली यह गाड़ी अभी कैसे ?”

कर्मचारी ने बताया, “यह 1 बजे वाली गाड़ी है. सभी गाड़ियां लेट चल रही हैं.”

“और फरीदाबाद से आने वाली गाड़ियां ?”

“पिछले 3 घंटों में तो वहां से कोई गाड़ी नहीं आई है.”

चिराक्षनी हतप्रभ भी हो गई और मायूस भी. घर वापस जाने की उस को इतनी चिंता नहीं थी क्योंकि घर पास में था. उस को प्रेषक के आने की चिंता थी.

 

तभी कर्मचारी ने बताया, “पता नहीं कहां फंसी हुई हैं सारी गाड़ियां. निकली भी हैं या नहीं, मालूम नहीं. कोई कुछ ढंग से बता ही नहीं रहा है. किसी को भी कुछ समझ नहीं आ रहा है.”

चिराक्षनी समझ गई कि अब रुकना व्यर्थ है.

 

कर्मचारी ने बताया, “बहुत सारे रेलवे स्टाफ भी छुट्टियों पर है. थोड़ेबहुत अस्पताल में हैं, बाकी घर पर हैं. जो घर पर हैं, वे बाहर आना ही नहीं चाहते तो गाड़ियाँ कैसे चलेंगी ?”

चिराक्षनी ने पूछा, “गाड़ियां रद्द भी कर दी हैं क्या?”

कर्मचारी बोला, “समझ ही नहीं रहा है कौन सी गाडी किस समय पर आएगी और कौन से समय वाली को रद्द कर दिया है. रास्ते में बिजली भी नहीं है इलैक्ट्रिक रेलगाड़ियों के लिए.”

 

जैसे पूरी व्यवस्था ही चरमरा गई हो और टूटने की स्थिति में हो. फोन भी बीपबीप की आवाज कर के बंद हो जा रहे थे. बहुत मुश्किल से फोन लग रहे थे. शायद टौवर में बहुत ज्यादा काल जा रहे थे. या टौवर अपनी क्षमता से कहीं अधिक भार बरदास्त नहीं कर पा रहे थे. और अब रेल यातायात. पहले हर जगह पर सार्वजनिक फोन हुआ करते थे. अब वे नहीं दिखते. अगर वे इस जमाने में होते तो आज शायद वे भी काम नहीं करते क्योंकि सब लैंडलाइन फोनों का भी यही हाल था.

चिराक्षनी ने कहा, “मेरे पति साढ़े 3 बजे वाली गाड़ी से आने वाले थे.”

कर्मचारी ने कहा, “वह तो अब पता नहीं कब आएगी और आएगी भी या नहीं. समय सारणी सब खराब हो गई है, उस का कोई मतलब नहीं रह गया है.”

चिराक्षनी वापस घर आ गई. घर आ कर उस ने टीवी पर समाचार खोला. समाचारों में बता रहे थे कि किनकिन जगहों पर भारी ट्रैफिक जाम हो गया है. सिर्फ दिल्ली इलाके में ही नहीं, पूरे देश में यही हालत थी. देश के सब इलाकों की खबरों के बीच, सिर्फ दिल्ली के आसपास के इलाकों की खबरें बहुत कम आ रहीं थीं. इस से स्पष्ट रूप से कुछ पता भी नहीं लग पा रहा था कि वास्तविक परिस्थिति क्या थी? पुलिस अधिकारियों की तरफ से एक अजीब दरखास्त यह आ रही थी कि जो लोग आज काम पर आए थे, वे अपने घर देर से जाएं, ताकि कम ट्रैफिक का उन्हें सामना करना पड़े. ऐसा करने से न केवल उन को कम ट्रैफिक का सामना करना पड़ेगा, बल्कि उन के रोड पर न होने की वजह से ट्रैफिक भी कम होगा. देश के बड़े नगरों में बिजली की कटौती कर दी गई थी. जो लोग घर पर थे, यह उन लोगों के लिए न केवल असुविधाजनक बात थी, बल्कि रोष भी पैदा कर रही थी. इन सब नगरों में जनबल में काफी कमी आ गई थी. बहुत जगहों पर आपातकाल लागू कर दिया गया था. चिराक्षनी ये सब समाचार सुन कर सकते में आ गई. समाचारों में वायरस के बहुत तेज गति से फैलने पर चिकित्सा अधिकारी चिंता जता रहे थे.

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