Download App

किसकी मां, किसका बाप?-भाग 1: वरुण का स्वागत ससुराल में कैसे हुआ?

मां बाप अकसर इस कहावत ‘आ बैल मुझे मार’ के शिकार हो जाते हैं. पहले तो मुसीबत को बड़े जोश से निमंत्रण देते हैं और फिर परेशान हो कर सिर पटकते हैं. दूरदर्शिता तो दूरदर्शन पर भी नहीं दिखाई देती जो एक आम आदमी के जीवन का अहम हिस्सा बन गई है. अब निशा और वरुण की सगाई तो दोनों के मांबापों ने जल्दबाजी में न केवल कर दी बल्कि अच्छी तरह से ढोल बजा कर की. सारे रिश्तेदारों और महल्ले वालों को मालूम है, यहां तक कि पान वाले और बनिए को भी, जिस के यहां से घर का सामान आता है, मालूम है. नौकरानी रोज अपनी मांगें बढ़ाती जाती है. एक नहीं, 3 साडि़यां, वेतन दोगुना और नेग अलग. जानते हुए भी सब लोग पूछते रहते हैं कि शादी कब हो रही है? शादी के सिवा सब विषयों पर पूर्णविराम लग गया है. मुश्किल यह है कि शादी होने में अभी  7 महीने बाकी हैं. 1-2 महीने तो यों ही गुजर जाते हैं, पर 7 महीने? परिवार वाले तो जब कभी इकट्ठा बैठते हैं, खोखली योजनाओं पर बहस कर लेते हैं. वैसे, होगा तो वही जो होना है, पर 7 महीने का विकराल अंतराल 7 साल सा लगता है. सगाई के साथ ही शादी क्यों न कर दी?

चलिए परिवार वालों को छोडि़ए. किसी ने निशा और वरुण के बारे में भी सोचा है? रोज मिलें और प्रेमवाटिका में विचरण करें तो मुश्किल और कई दिनों तक न मिलें तो विरह के मारे बुरा हाल. सब से बड़ी मुश्किल तो इन लोगों की है. जब सगाई हो जाए और मिलने न दें तो यह परिवार का सरासर अन्याय ही कहा जाएगा. दूसरी ओर मिलने की गति और अवधि दिन पर दिन बढ़ती जाए तो मांबाप का चिंतित होना स्वाभाविक है. विशेषकर लड़की के मांबाप का. बुरा जमाना है, पैर फिसलते देर नहीं लगती. कोई ऊंचनीच हो गई तो जगहंसाई तो होगी ही, मुंह दिखाने योग्य भी न रहेंगे. कहीं रिश्ता तोड़ने की नौबत आ गई तो लड़की तो बस गई काम से. दूसरा कौन पकड़ेगा हाथ?

सगाई के कुछ दिन बाद ही ससुराल से वरुण के लिए दोपहर के भोजन का निमंत्रण आ गया. सासससुर को तो दामाद की खातिरदारी करने का चाव था ही, निशा के बदन में भी वरुण का नाम सुनते ही गुदगुदी होने लगी. वह बारबार घड़ी को देखती. मरी 1 घंटे में भी 1 मिनट ही आगे खिसकती है. वरुण की हालत भी कम खराब नहीं थी. ससुराल जाने लायक कोई कपड़ा समझ में नहीं आ रहा था. अगर सगाई में मिले कपड़े पहनेगा तो सब यही समझेंगे कि बेचारे के पास अपने कोई कपड़े नहीं हैं. अगर अपने पुराने कपड़े पहनेगा तो लगेगा कि जनाब की हालत खस्ता है. अपनी जींस और चैक वाली लालनीली कमीज में लगता तो स्मार्ट है, पर इन कपड़ों में उस का फोटो खिंच चुका है और इस फोटो की एक कौपी ससुराल में बतौर इश्तिहार के पहले ही भेजी जा चुकी है. जहां तक वरुण का अनुमान है, यह फोटो ससुराल के ड्राइंगरूम में बहुत सारे चांद लगा रही है.

हठ कर के मां के गुल्लक में से रुपए निकाले और कुछ अपने जोड़े. बहन की शरारतभरी हंसी से चिढ़ा तो, पर उसे डांट कर चुप कर दिया और नई जींस, कमीज, टौप की जैकेट व गला कसने के लिए एक बहुरंगा स्कार्फ ले आया. काला चश्मा तो उस के पास था. जब आईने में देखा तो आंखों में चमक आ गई. सामने वरुण नहीं, दिलीप कुमार, देव आनंद, आमिर खान, शाहरुख और सैफ अली खान, सब मिला कर एक अनूठा व्यक्तित्व वाला जवां मर्द खड़ा था.

जब चलने लगा तो मां ने कहा, ‘‘बेटा, जल्दी आ जाना. ससुराल में ज्यादा देर बैठने से इज्जत कम हो जाती है. अपना सम्मान अपने हाथ में है.’’

पिता ने चुटकी ली, ‘‘मेरा उदाहरण ले सपूत. जानता है न मेरा सम्मान कितना करते हैं तेरे मामा लोग?’’

यह मां के लिए बड़ा दुखदायी विषय था. जब से मामियां आई हैं कोई उसे बुलाता तक नहीं है और अब तो यह बात जूते की तरह घिस गई है. शरारती बहन बोली तो कुछ नहीं, बस, सुगंधित परफ्यूम पेश कर दिया. परफ्यूम का नाम था ‘फेटल अट्रैक्शन’ यानी घातक आकर्षण. चुलबुली इतनी है कि गंभीर से गंभीर चेहरा भी खिल जाए. वरुण ने पहले तो घूर कर देखा और फिर मुसकरा कर प्यार से चपत मारने के लिए हाथ उठाया. बहन भाग कर मां के पल्लू में छिप गई. मां की ढाल के आगे सारी तलवारें कुंद हो जाती हैं. सब हंस पड़े, वरुण भी. लगता था कि सब दरवाजे से चिपके खड़े थे. वरुण ने घंटी के बटन पर उंगली रखी ही थी कि दरवाजा अलीबाबा के ‘खुल जा सिमसिम’ की तरह चर्रचूं करता हुआ खुल गया. सब के चेहरे इतने नजदीक कि नाक से नाक भिड़ जाती अगर वरुण चौंक कर पीछे न हट जाता.

‘‘नमस्कार जीजाजी,’’ एक सामूहिक स्वर जिस में 2 साले और 1 साली की आवाजें शामिल थी. एक साला उधार का था. छुट्टियों में गुलछर्रे उड़ाने के लिए चाची ने भेज दिया था.

‘‘आप लोगों ने तो मुझे डरा ही दिया,’’ वरुण ने झेंपते हुए कहा.

‘‘यह तो सिर्फ नमूना है जीजाजी,’’ शिवानी ने आंखें मिचकाते हुए कहा, ‘‘आगेआगे देखिए होता है क्या.’’

‘‘आगे क्या होगा?’’ वरुण ने पूछा.

‘‘आप दीदी से डर जाएंगे,’’ शिवानी ने उत्तर दिया.

‘‘भला क्यों?’’ वरुण ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘जब से आप से रूबरू हुई हैं, उन के 2 सींग निकल आए हैं,’’ शिवानी ने निहायत गंभीरता से कहा, ‘‘आंखें फूल कर बजरबट्टू हो गई हैं, कान हाथी के से बड़े हो कर फड़फड़ा रहे हैं और नाक कंधारी अनार की तरह फूल गई है. दांत…’’

वरुण वापस मुड़ा, मानो जा रहा हो.

‘‘अरेअरे, कहां जा रहे हैं?’’ शिवानी ने पूछा.

‘‘लगता है मैं गलती से किसी अजायबघर आ गया हूं,’’ वरुण ने गंभीरता से कहा, ‘‘क्या गोपालदासजी घर छोड़ कर चले गए हैं?’’

मां ने पीछे से हंसते हुए आवाज लगाई, ‘‘अरे, अब अंदर आने भी दोगे या बाहर से ही भगा दोगे? आओ बेटे, ये लोग तो बड़े शरारती हैं. बुरा मत मानना. टीवी देखदेख कर सब बिगड़ गए हैं.’’ सब ने सिर झुका कर सलाम किया और वरुण के लिए रास्ता बनाया. बैठते ही सास ने फ्रिज में से शीतल पेय की बोतल निकाल कर पेश कर दी. निशा कमरे के अंदर से परदे की दरार में से झांक रही थी और वरुण की रूपरेखा दिल में उतार रही थी. बड़ा बांका लग रहा था.

वैज्ञानिक तरीके से करें गेहूं की खेती

यह समय गेहूं की बोआई के लिए माकूल है. इन दिनों किसान अपने खेतों की तैयारी में जुटे हैं. पूरे राजस्थान में गेहूं की खेती की जाती है. यदि उन्नत विधि से खेती की जाए तो औसतन पैदावार 30 से 60 फीसदी तक बढ़ाई जा सकती है.

जलवायु : बोआई के समय उपयुक्त औसत तापमान 23 डिगरी से 25 डिगरी सैंटीगे्रड सही माना जाता है. अच्छे फुटाव के लिए तापमान 16-20 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान मुफीद रहता है.

मिट्टी : वैसे तो इस की खेती सभी तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन अच्छी उपज के लिए बलुई दोमट मिट्टी सब से ज्यादा अच्छी मानी जाती है. जमीन का पीएच मान 6-8.5 के बीच अच्छा माना जाता है.

उन्नत किस्में : अच्छी किस्मों के बीज बोने से सामान्य से ज्यादा उत्पादन होता है. साथ ही, ये किस्में रोग व कीटों के प्रति सहनशील होती हैं.

बोआई के आधार पर गेहूं की किस्मों को 3 भागों में बांटा गया है :

अगेती बोआई : सी-306, डब्ल्यूएच-416, डब्ल्यूएच-1025.

समय पर बोआई : राज-1482, राज-3077, राज-4120, राज-4238, राज-4037, राज-4083, राज-4079, पीबीडब्ल्यू-343, पीबीडब्ल्यू-373, एचडी-2329, एचडी-2204, डब्ल्यूएच-147 वगैरह.

पछेती बोआई : राज-3765, राज-3077, राज-3771, राज-4079, राज-4083, डब्ल्यूएच-291, डब्ल्यूएच-1021, एचडी-2270, एचडी-2285 वगैरह.

ये भी पढ़ें- फसल को पाले से ऐसे बचाएं  

खेती की तैयारी

फसल के बाद खेत में देशी हल से 3-4 बार जुताई करें और मिट्टी को भुरभुरा करने के बाद अगर खेत में दीमक और दूसरे कीटों का प्रकोप दिखाई दे तो आप अपने खेतों में मिट्टी उपचार जरूर करें. इस के लिए अंतिम जुताई के समय खेत में क्विनालफास 1.5 फीसदी चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिला देना चाहिए.

बोआई का समय : वैसे तो गेहूं की बोआई 5 नवंबर से 15 नवंबर तक की जा सकती है, लेकिन बढि़या समय नवंबर माह का पहला सप्ताह से तीसरा सप्ताह तक माना जाता है.

गेहूं की बोआई कतारों में 20-22.5 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 7-10 सैंटीमीटर रखनी चाहिए.

सिंचित इलाके में बीज की गहराई 4-5 सैंटीमीटर तक रखी जा सकती है.

बीज दर : सिंचित इलाकों में गेहूं की फसल की बोआई के लिए 100-120 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए.

बीजोपचार : बीजों का बीजोपचार बहुत ही जरूरी है. यह आप की फसल को शुरुआती अवस्था से ले कर अंत तक कई रोगों से बचाता है.

गेहूं में बीजोपचार के लिए फफूंदनाशी कार्बंडाजिम 50 डब्ल्यूपी से 2-3 ग्राम या ट्राइकोडर्मा 5-7 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपयोग करें.

इस के बाद बीज को क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी से 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.

खाद व उर्वरक प्रबंधन

बोआई से 1 महीने पहले 7-10 टन सड़ी गोबर की खाद खेत में अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए. सिंचित इलाकों में बोआई के समय 60 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फोरस और 40 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाएं.

30-30 किग्रा नाइट्रोजन पहली व दूसरी सिंचाई के समय प्रति हेक्टेयर की दर से खड़ी फसल में डालें.

जिंक की कमी वाले खेतों में जिंक सल्फेट 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से साल में एक बार डालनी चाहिए.

खाद और उर्वरकों की मात्रा मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड की संस्तुति के अनुरूप ही इस्तेमाल करें.

सिंचाई : पहली सिंचाई बोआई के 20-25 दिन बाद करें यानी शीर्ष जड़ जमते समय करें. दूसरी सिंचाई बोआई के 40-45 दिन बाद जब फुटाव व कल्ले निकलें तब करें. तीसरी सिंचाई 60-65 दिन बाद गांठ बनते समय करें. चौथी सिंचाई 80-85 दिन बाद बाली निकलते समय करनी चाहिए. 5वीं सिंचाई 100-105 दिन बाद दूधिया अवस्था होने पर करें. छठी सिंचाई 115 दिन बाद करने पर अच्छी उपज हासिल होती है.

ये भी पढ़ें- जंगल की आग पलाश

खरपतवार नियंत्रण : गेहूं की फसल के लिए पहले 35 दिन खरपतवारों के लिहाज से काफी क्रांतिक होते हैं यानी इस समय तक खेत को खरपतवारविहीन रखना बहुत जरूरी है. इन को हैंड हो, खुरपी वगैरह से निराईगुड़ाई कर के निकाला जा सकता है.

अगर मजदूर नहीं मिल रहे हों तो फसल बोआई के 25 से 35 दिन के बीच खरपतवारों के प्रकार जैसे चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए 0.5 से 0.75 किग्रा मैटासल्फ्यूरान मिथाइल 6 ग्राम सक्रिय तत्त्व प्रति हेक्टेयर की दर से करें.

संकरी पत्ती वाले खरपतवारों जैसे जंगली जई, गेहूं का मामा वगैरह के लिए सल्फोसल्फ्यूरान 25 ग्राम सक्रिय तत्त्व प्रति हेक्टेयर और दोनों प्रकार के खरपतवार होने पर आप इन दोनों दवाओं को एकसाथ मिला कर इस्तेमाल कर सकते हैं.

उपज : अगर उन्नत सस्य क्रियाएं अपनाई जाएं तो गेहूं की औसत उपज 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है.

ज्यादा जानकारी के लिए किसी नजदीकी कृषि विभाग के कार्यालय में संपर्क करें.       

मानसून स्पेशल: क्या करें जब हो लीवर इंफेक्शन

लीवर (यकृत, कलेजा, जिगर) मानव शरीर का एक महत्त्वपूर्ण व जटिल अवयव है. जहां एक ओर यह अद्भुत संग्रहालय है वहीं दूसरी ओर यह एक रासायनिक कारखाना भी है. भोजन का चयपचय व ऊर्जा उत्पादन यहीं होता है. इस की कोशिकाओं में पुनर्जीवित होने की अद्भुत क्षमता निहित होती है. ऐसे में इस का इंफेक्शन शारीरिक क्षति है और विडंबना यह है कि यह रोग महामारी का रूप ले रहा है.

मनीष कई दिनों से परेशान था. 1 हफ्ते से उसे हलका बुखार था और भूख तो मानो मर सी गई थी. सुबह उठते ही जी मिचलाता था. इन हलकीफुलकी तकलीफों को सामान्य मान कर मनीष ने परवा नहीं की मगर आज स्थिति सहन करने लायक नहीं थी. पेटदर्द ऐसा उठा कि वह बेदम सा हो गया था. तुरंत डाक्टर से संपर्क किया गया. डाक्टर ने मनीष को हैरत से देखते हुए कहा, ‘‘आप ने इतनी देर कर के हद कर दी, आप खुद तो तड़प ही रहे हैं, साथ में रोग को फैला भी रहे हैं. आप को हिपेटाइटिस है जो पूरे शहर में फैल रहा है.’’

हक्काबक्का रह गया था मनीष. लगभग महीनेभर के उपचार तथा परहेज से स्थिति नियंत्रित की जा सकी थी.

ये भी पढ़ें-कब्ज से कैसे पाएं छुटकारा, जानें घरेलू नुस्खे

रोगकारक वायरस (वायरल हिपेटाइटिस) : इस रोग का कारक वायरस है. इस वायरस के कई रूप हैं. हिपेटाइटिस ए वायरस रोगी के मल से रोग को फैलाता है. इंफेक्शन के 2 हफ्ते बाद तक रोगी के मल में इन्हें देखा जा सकता है. अस्वच्छता तथा भीड़भाड़ का माहौल रोग फैलाने में सहायक होते हैं. रक्त तथा समलैंगिक यौन संपर्क से भी रोग फैलता है. इंफेक्शन के दिन से लगभग 2-4 सप्ताह के भीतर रोग के लक्षण प्रकट होते हैं.

हिपेटाइटिस बी वायरस मुख्यतया रक्त द्वारा फैलता है. रोगी के काम में आई सूई द्वारा किसी स्वस्थ व्यक्ति को सूई लगाने से या संक्रमित व्यक्ति का रक्त किसी स्वस्थ व्यक्ति को देने जैसी प्रक्रिया से यह रोग फैलता है. शिशु में मां द्वारा भी यह रोग फैलता है. इंफेक्शन के दिन से 4 से 20 सप्ताह के भीतर रोग के लक्षण प्रकट होने लगते हैं.

हिपेटाइटिस सी वायरस भी रक्त द्वारा रोग फैलाता है जैसे रक्तदान, संक्रमित सूई का प्रयोग आदि. इंफेक्शन दिवस से ले कर 2 से 26 सप्ताह के भीतर रोग के लक्षण प्रकट होने लगते हैं.

हिपेटाइटिस डी वायरस को अपनी संख्या बढ़ाने के लिए बी वायरस की आवश्यकता रहती है. इंफेक्शन दिवस से 6 से 9 सप्ताह के भीतर रोग के लक्षण प्रकट होने लगते हैं.

हिपेटाइटिस ई वायरस रोगी के मल द्वारा रोग को फैलाता है. इंफेक्शन दिवस से 3 से 8 सप्ताह के भीतर रोग के लक्षण प्रकट होने लगते हैं.

ये भी पढ़ें-मानसून स्पेशल: इम्यून बॉडी है हेल्थ का राज, जानें कैसे बढ़ा सकते हैं इम्यूनिटी

रोग की पहचान

इस रोग के सामान्य लक्षण : बदन में सुस्ती, भूख बंद हो जाना, जी मिचलाना, उल्टियां, दस्त आदि. इस के साथ पीलिया की उपस्थिति लीवर दोष पर ध्यान आकृष्ट करती है. लीवर भी आकार में बढ़ जाता है जिस के फलस्वरूप पेटदर्द की शिकायत बढ़ने लगती है. कभीकभी हिपेटाइटिस बी वायरस के इंफेक्शन से रोगी को बोलने में भी असुविधा होने लगती है. लीवर के साथसाथ रोगी की तिल्ली तथा लिंफ ग्रंथियां भी आकार में बढ़ने लगती हैं.

जब रोग अनियंत्रित हो कर दीर्घ अवधि वाला क्रौनिक हिपेटाइटिस बन जाता है तो उपरोक्त सभी लक्षण एकसाथ प्रकट होते हैं. महिलाओं में मासिक रक्तस्राव बंद हो जाता है. नाक से नकसीर फूटने लगती है. बदन में जगहजगह रंगीन चकत्ते उभरने लगते हैं तथा खुजलाना आम समस्या बन जाती है. सभी जोड़ों में दर्द रहने लगता है. गुरदे, फेफड़े आदि भी इंफेक्शनयुक्त हो उठते हैं. थाइरायड ग्रंथि की कार्यप्रणाली में भी बाधा आती है.

उपचार : विभिन्न आयाम

  1. 1. रोगी को पूर्ण विश्राम करना चाहिए. किसी भी सूरत में थकान नहीं होनी चाहिए. सिर्फ नित्यकर्म के लिए ही बिस्तर छोडे़ और किसी सूरत में नहीं.
  2. पौष्टिक आहार का विशेष महत्त्व है. लगभग 2 हजार से 3 हजार कैलौरी का प्रतिदिन समावेश आवश्यक है. फल, ग्लूकोज के सेवन का विशेष महत्त्व है. प्रोटीनयुक्त भोजन श्रेष्ठ है. हां, वसायुक्त भोजन न लें.

ये भी पढ़ें-मानसून स्पेशल: बीमारियों से बचें और ले मानसून का मजा

हिपेटाइटिस वैक्सीन

  1. हिपेटाइटिस ए के लिए स्वस्थ व्यक्ति के रक्त प्रोटीन (इम्यूनो ग्लोब्यूलीन) को प्रयुक्त किया जाता है. इस की खुराक 0.02-0.05 सी.सी./किलोग्राम शारीरिक भार है. स्कूली बच्चों में इस प्रकार का टीकाकरण कर के देखा गया मगर यह उपाय ज्यादा प्रभावी नहीं है और न ही यह बचाव पद्धति अधिक लोकप्रिय हुई है.
  2. हिपेटाइटिस बी के लिए टीके की प्रथम खुराक जिस दिन दी जाए, उस के ठीक 1 महीने बाद दूसरी तथा पहली के 6 महीने बाद तीसरी खुराक दी जाती है. यह टीका 1 सीसी की खुराक में दिया जाता है. 10 वर्ष से कम आयु के बच्चों में इस की खुराक आधा सीसी होती है.

हिपेटाइटिस : कुछ अन्य रूप

  1. कई बार रोग दीर्घकालीन बन जाता है जिसे चिकित्सकीय भाषा में क्रौनिक पर्सिस्टैंट हिपेटाइटिस कहा गया है. ऊपरी पेट में दर्द, थकान, भूख बंद हो जाना, वसीय भोजन माफिक न आना आदि रोग के प्रमुख लक्षण हैं. यह रोग पूरी तरह ठीक भी हो जाता है.
  2. कई बार लीवर कोशिकाएं खुद को ही नष्ट करने लगती हैं. इसे वैज्ञानिक परिवेश में आटो इम्यून हिपेटाइटिस कहते हैं. यह स्थिति स्त्रियों में जीवन के मध्याह्न या वृद्धावस्था में देखने को मिलती है. लीवर व तिल्ली के आकार में वृद्धि, पीलिया, बुखार, नकसीर, बोलने में कष्ट, शरीर पर रंगीन चकत्ते आदि लक्षण प्रकट होते हैं. रोग के निवारण के लिए स्टीरौयड औषधियां प्रयुक्त की जाती हैं. इस प्रकार की स्थिति अनेक बार लीवर सीरोसिस या लीवर कैंसर में भी परिवर्तित हो सकती है.
  3. क्रौनिक लोब्युलर हिपेटाइटिस रोग भी कई बार इंसान में देखने को मिलता है. यह वायरस बी व सी का संयुक्त इंफेक्शन है. उचित इलाज से रोग शतप्रतिशत ठीक हो जाता है.

इस प्रकार लगभग एक दर्जन वायरस हैं जो रोग कारक हैं. ए वायरस बच्चों पर जल्दी आक्रमण करता है. बहरहाल, बात चाहे कोई हो, यह रोग भोजन, दूषित जल, अस्वच्छ वातावरण तथा भीड़भाड़ के माहौल से फैलता है.

किसकी मां, किसका बाप?

किसकी मां, किसका बाप?-भाग 4: वरुण का स्वागत ससुराल में कैसे हुआ?

अंदर गहरी सांस खींचते हुए निशा ने कहा, ‘‘यहां नहीं, मजनुओं का जमघट लग जाएगा.’’

वरुण ने कटाक्ष किया, ‘‘मेरे सासससुर के सामने मत लगाना. तुम्हारे घर की छत जरा नीची है.’’

निशा ने कृत्रिम क्रोध से कहा, ‘‘जरा भी शर्म नहीं आती आप को. मांबाप का सम्मान करना चाहिए.’’

वरुण के दिल पर चोट लगी. अभी से इतना तीखा बोलती है तो आगे क्या होगा? एकाएक गंभीर हो गया और चुप भी. निशा ने महसूस किया पर उस की गलती क्या थी? यह बात भी मन में आई कि इस आदमी से अब तक 3-4 बार झगड़ा सा हो

चुका है. क्या जीवनभर ऐसे ही झगड़ता रहेगा? यों तो घर में भी मांबाप के बीच कुछ न कुछ तूतूमैंमैं होती रहती है, पर अपने जीवन में ऐसी कल्पना नहीं कर पा रही थी.

कुछ देर बाद वरुण ने ही मौन तोड़ा, ‘‘तुम गुफा में गई हो?’’

‘‘गुफा?’’ निशा ने आश्चर्य से उत्तर दिया, ‘‘नहीं, अभी तक तो नहीं गई. अजंता, एलोरा जातेजाते रह गए हम लोग. भारी वर्षा के कारण पुणे से ही लौट आए. अब आप के साथ चलूंगी.’’

वरुण ने गहरी सांस ली, ‘‘तुम्हारे सामान्य ज्ञान पर बड़ा तरस आता है. यह देखो, ऊपर इतना बड़बड़ा क्या लिखा है?’’

निशा ने सिर उठा कर देखा. जिस रेस्तरां के सामने खड़ी थी उस का नाम था ‘गुफा’.

झेंपते हुए बोली, ‘‘होटलों में कहां जाते हैं हम लोग. मां को बिलकुल पसंद नहीं है.’’

‘‘मां…’’ वरुण के मुंह से कटु शब्द निकलने ही वाला था, पर तुरंत होंठ सी लिए.

निशा ने घूर कर देखा, पर वरुण दरवाजा खोल कर अंदर जा रहा था. जल्दी से पीछे हो ली. वेटर ने एक खाली मेज की तरफ इशारा किया. बैठते ही वेटर ने पानी के गिलास रखे और मैन्यू कार्ड सामने रख दिया. आदेश की प्रतीक्षा में खड़ा हो गया.

‘‘क्या लोगी?’’ वरुण ने पूछा.

‘‘जो आप चाहें,’’ निशा ने संकोच से मैन्यू कार्ड पर निगाह डालते हुए कहा, ‘‘मेरी समझ में तो कुछ नहीं आता.’’

व्यंग्य से वरुण ने कहा, ‘‘तुम्हारी शिक्षा अधूरी है. काफीकुछ सिखाना पड़ेगा. मां ने यही नहीं सिखाया.’’

कोई कड़वी बात न कह दे, इसलिए निशा ने होंठ दांतों से दबा लिया. इस पुरुष के साथ तो मस्ती का माहौल ही नहीं बनता. इतना पढ़ीलिखी है, पर उस की दृष्टि में बस गंवार ही है. वह भी तो बातबात में मांमां करती है.

मैन्यू कार्ड पर नजरें दौड़ाते हुए वरुण ने आश्चर्य से कहा, ‘‘अरे, यहां तो कढ़ी भी मिलती है.’’

‘‘कढ़ी?’’ निशा ने प्रश्न सा किया.

‘‘क्यों, नाम नहीं सुना कढ़ी का?’’ वरुण ने कहा, ‘‘मुझे बहुत अच्छी लगती है. तुम्हें बनानी आती है?’’

‘‘थोड़ाबहुत,’’ निशा के स्वर में अनिश्ंिचतता थी.

‘‘क्या मतलब?’’ वरुण ने कहा, ‘‘अरे, या तो बनाना आता है या नहीं.’’

निशा ने पूरी गंभीरता से कहा, ‘‘मां नहीं बनातीं. कहती हैं कि कढ़ी खाने से पेट में दर्द होता है. वैसे भी गरमी में तो बेसन की बनी कोई चीज नहीं खानी चाहिए. इसीलिए हमारे यहां कढ़ी नहीं बनती.’’

‘‘ऐसा सोचना है तुम्हारी मां का?’’ वरुण ने कटु व्यंग्य से पूछा, ‘‘और अगर मैं चाहूं कि कढ़ी बने तो क्या मां बनाएंगी?’’

‘‘पता नहीं,’’ निशा ने सरलता से सचाई सामने रख दी और कंधे हिला दिए.

‘‘मेरी पसंदीदा चीजों की सूची भी लंबी हो सकती है, जो मां को पसंद नहीं?’’ वरुण ने मुंह बनाते हुए कहा, ‘‘मैं ने तो सुना है कि ससुराल में दामाद की बड़ी खातिर होती है?’’

वरुण ने जिद में आ कर कढ़ी तो मंगाई ही, साथ ही वह कुछ और भी मंगाया जिसे खाना शायद निशा को अच्छा नहीं लगा. निशा ने साथ तो दिया पर यह भी जाना कि खाने के मामलों में भी वे दोनों उत्तरदक्षिण की तरह थे.

‘‘और कुछ नहीं खाओगी?’’ वरुण ने पूछा, ‘‘तुम ने तो कुछ खाया ही नहीं?’’

‘‘इतना ही खाती हूं,’’ निशा ने हंसने का असफल प्रयत्न किया, ‘‘शादी से पहले शरीर का ध्यान रखना है न.’’

‘‘और शादी के बाद?’’ वरुण ने कटुता से पूछा.

‘‘शादी के बाद बेफिक्री,’’ निशा मुसकराई.

‘‘यह भी तुम्हारी मां ने कहा होगा,’’ वरुण ने पूछा.

निशा की मुसकराहट गायब हो गई, ‘‘हर बात में आप मां को क्यों ले आते हैं?’’

‘‘मैं ले आता हूं?’’ वरुण ने कड़वाहट से कहा, ‘‘या तुम ले आती हो?’’

निशा ने वरुण के चेहरे को देखा और चुप हो गई.

घर के सामने निशा को छोड़ कर वरुण जैसे ही जाने लगा, निशा ने पूछा, ‘‘अंदर नहीं आएंगे? मां को बुरा लगेगा और मेरे ऊपर गुस्सा भी होंगी.’’

‘‘आज नहीं,’’ वरुण ने रूखेपन से कहा, ‘‘मेरी ओर से मां से क्षमा मांग लेना.’’

‘‘फिर कब आएंगे?’’

‘‘पता नहीं, पिताजी से पूछ कर बताऊंगा,’’ वरुण ने कहा और तेज कदम बढ़ाता हुआ आंखों से ओझल

हो गया.

‘पिताजी से पूछ कर बताऊंगा,’ निशा ने समझ लिया कि शादी के सिलसिले में मांबाप जितने महत्त्वपूर्ण होते हैं, उतने ही महत्त्वहीन भी होते हैं. क्या विडंबना है. अगले 10-12 दिनों तक कोई संपर्क न होने से निशा और परिवार वालों को चिंता होने लगी. होने वाले दामाद का शादी से पहले आनाजाना बना रहे तो सब निश्चिंत रहते हैं. बस, बेटी का जाना संदेह के दायरे में घिरा होता है. शादी होने तक मानसम्मान बना रहे, बाद में तो कोई बात नहीं. निशा के दिल में तो विशेषकर एक खटका सा लगा रहा. कहीं वरुण नाराज तो नहीं हो गया?

अंत में चिंतामुक्त होने के लिए वरुण को दावतनामा भेज दिया. वरुण ने कई बहाने बेमन से बनाए, पर फिर राजी हो गया. आखिर उसे भी तो निशा से मिलने की उतनी ही बेकरारी थी.

दोपहर के भोजन के बाद वरुण ने निशा से घूमने चलने को कहा.

‘‘मां से पूछ कर आती हूं,’’ निशा ने मुड़ते हुए कहा.

‘‘और अगर मना कर दिया?’’

‘‘हो भी सकता है.’’

मां ने मुंह तो बनाया पर जल्दी लौट आने की चेतावनी भी दे दी. बोली तो अंदर थी, पर इस तरह कि वरुण के कान में पड़ जाए. वरुण के माथे पर लकीरें पड़ गईं.

काफी देर तक दोनों सड़क पर पैदल चलते रहे. कोई बातचीत नहीं, लगभग एक शीतयुद्ध सा.

निशा ने ही मौन तोड़ा, ‘‘इतने दिनों तक आए क्यों नहीं? सब को चिंता हो रही थी.’’

मानो इसी प्रश्न की प्रतीक्षा में था. वरुण ने शीघ्रता से उत्तर दिया, ‘‘पिताजी से पूछा नहीं था.’’

उत्तर का अभिप्राय समझते हुए भी निशा ने प्रश्न किया, ‘‘क्यों नहीं पूछा? इतना डरते हैं आप?’’

‘‘हां,’’ वरुण ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए कहा, ‘‘और तुम्हें भी डरना पड़ेगा.’’

‘‘जिन से लोग डरते हैं,’’ निशा ने कहा, ‘‘उन का सम्मान भी नहीं करते.’’

‘‘ओह,’’ वरुण ने तीखेपन से कहा, ‘‘तो तुम मेरे पिताजी का सम्मान नहीं करोगी?’’

‘‘ऐसा तो मैं ने नहीं कहा.’’

‘‘बात एक ही है.’’

‘‘क्या हर बात का गलत अर्थ निकालना आप की आदत है?’’

‘‘अपनीअपनी समझ है,’’ वरुण ने आते आटोरिकशा को रोकते हुए कहा.

निशा ने पूछा, ‘‘कहां जाना है?’’

‘‘जहां चलो,’’ वरुण ने हंस कर कहा, ‘‘वैसे तो चांद पर जाने की तमन्ना है.’’

‘‘सुना है चांद की सतह में बहुत गहरे खड्डे हैं,’’ निशा ने अर्थभरी मुसकान से कहा.

‘‘हां, हैं तो,’’ वरुण ने उत्तर दिया, ‘‘पर दिल्ली की सड़कों से कम.’’ और तभी एक गढ्डा सामने आने से आटोरिकशा उछल पड़ा और निशा वरुण के ऊपर जा गिरी. जब गति सामान्य हुई तो निशा ने अपने को संभाला, और फिर हंस पड़ी, ‘‘क्या गढ्डा है.’’

‘‘हां,’’ वरुण भी मुसकराया, ‘‘गढ्डे भी कभीकभी एकदूसरे को मिला देते हैं.’’

‘‘विशेषकर,’’ निशा ने अर्थपूर्ण मुसकराहट से कहा, ‘‘तब जबकि ये गढ्डे मांबाप ने न खोदे हों.’’

मीठे व्यंग्य से वरुण ने पूछा, ‘‘इतनी अच्छी शिक्षा तुम्हें किस ने दी?’’

‘‘मां ने,’’ निशा ने तत्परता से कहा और पूछा, ‘‘आप को गढ्डे में गिरने के बारे किस ने बताया?’’

‘‘पिताजी ने,’’ वरुण ने उसी तत्परता से उत्तर दिया, ‘‘कहते हैं कि शादी एक गढ्डा है.’’

फिर एकदूसरे को देख कर दोनों खुल कर हंसने लगे.

सुना है कि इस के बाद दोनों ने कभी भी अपनेअपने मांबाप की चर्चा नहीं की और सारा जीवन हंसी खुशी से बिताया.

किसकी मां, किसका बाप?-भाग 3: वरुण का स्वागत ससुराल में कैसे हुआ?

पिता को अच्छा नहीं लगा, ‘‘कोई गड़बड़ हो तो बता दो. रिश्ता अभी भी टूट सकता है.’’ बात इतनी गंभीर हो जाएगी, वरुण ने सोचा न था. मुसकरा कर कहा, ‘‘कुछ नहीं. मैं तो नाटक कर रहा था.’’ जब वरुण ने 3 सप्ताह तक कोई बात नहीं की तो निशा को चिंता होने लगी और मां के दिल में भी अशांति ने जन्म लिया. निशा ने बहन को उकसाया. शिवानी ने मां से कहा और फिर मां ने पति से कहा कि वरुण को फोन करें और बाइज्जत निमंत्रण दें. फोन पर ससुर का स्वर सुनते ही वरुण की 3 सप्ताह की भड़ास काफूर हो गई और बड़े उत्साह से वहां पहुंच गया. इस का लाभ यह हुआ कि जब वरुण ने निशा को बाहर ले जाने का प्रस्ताव रखा तो कोई आपत्ति किसी ने नहीं उठाई. थोड़ाबहुत खा कर बेसब्री से बाहर निकल पड़ा. निशा साथ थी तो मन कर रहा था कि दुनियाभर उसे देखे और जले.

‘‘किस हौल में चलना है?’’ वरुण ने पूछा.

‘‘तो क्या आप ने टिकट नहीं खरीदे हैं?’’ निशा ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘कैसे खरीदता?’’ वरुण ने कटुता से कहा, ‘‘कहीं पिछली बार की तरह फिर मां मेरा टिकट काट देतीं?’’

मीठी हंसी बिखेरती हुई निशा बोली, ‘‘तो अभी तक नाराज हो? क्या इसीलिए इतने दिनों तक आप ने फोन नहीं किया? और न ही कोई संदेश?’’

‘‘हां, जी तो कर रहा था कि आज भी न आऊं,’’ वरुण मुसकराया.

‘‘तो फिर क्यों आ गए?’’ निशा ने सरलता से पूछा.

‘‘कशिश, मैडम, कशिश,’’ वरुण ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘शुद्ध, शतप्रतिशत शुद्ध कशिश.’’

‘‘ओह,’’ निशा ने आंखें मटका कर पूछा, ‘‘तो क्या कशिश का भी कोई अनुपात होता है?’’

‘‘होता है,’’ वरुण ने दिल पर हाथ रख कर कहा, ‘‘शादी के बाद पूरी तफसील के साथ बताऊंगा. अभी तो यह बताओ, कौन सी फिल्म देखनी है?’’

‘‘जिस में भी टिकट मिल जाए.’’ निशा ने उत्तर दिया.

‘‘अब दिल्ली में इतने सारे सिनेमाघर हैं, कहांकहां देखेंगे?’’ वरुण ने पूछा, ‘‘क्या अंगरेजी सिनेमा देखती हो?’’

‘‘कभीकभी,’’ निशा ने कहा, ‘‘वैसे मुझे शौक नहीं है.’’

‘‘अंगरेजी फिल्म के टिकट तो जरूर मिल जाएंगे,’’ वरुण ने उत्साह से पूछा, ‘‘तुम ने ‘बेसिक इंस्ंिटक्ट’ और ‘इन्डीसैंट प्रपोजल’ देखी है?’’

‘‘नहीं,’’ निशा ने सिहर कर कहा, ‘‘ये तो नाम से ही गंदी फिल्में लगती

हैं. क्या आप ऐसी फिल्में देखना पसंद करते हैं?’’

‘‘अरे, जैसा नाम वैसी फिल्में नहीं हैं,’’ वरुण ने निराशा से कहा, ‘‘देखोगी तो अच्छी लगेंगी.’’

‘‘ना बाबा ना,’’ निशा ने मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘मां को पता लग गया तो खा जाएंगी.’’

चिढ़ कर वरुण ने कहा, ‘‘तुम्हारी मां तो मुझे नरभक्षी लगती हैं. क्या तुम्हें थोड़ाथोड़ा रोज खाती हैं? कैसी मां हैं तुम्हारी?’’ निशा को मां की बुराई अच्छी नहीं लगी, पर इस पर लड़ाई करना भी ठीक नहीं था. आखिर मां का नाम भी तो उसी ने ले लिया था.

‘‘मां बहुत अच्छी हैं,’’ निशा ने गंभीरता से कहा, ‘‘सही मार्गदर्शन करती हैं. मेरी मां तो एक संपूर्ण स्कूल हैं.’’

व्यग्ंय से वरुण ने कहा, ‘‘वह तो सामने आ रहा है. वैसे हम फिल्म की बात कर रहे थे.’’

निशा ने सोच कर कहा, ‘‘चलो ‘बेबीज डे आउट’ देखते हैं. सुना है बहुत अच्छी है. उस डायरैक्टर की मैं ने ‘होम अलोन’ देखी थी, बहुत मजेदार थी.’’

वरुण समझ गया कि अंगरेजी फिल्मों के बारे में निशा से टक्कर नहीं ले सकेगा. वैसे अच्छा भी लगा. कुछ गर्व भी हुआ. पत्नी अच्छी अंगरेजी बोलती हो, अंगरेजी सिनेमा भी देखती हो और पाश्चात्य संगीत में रुचि रखती हो तो पति का स्तर बढ़़ जाता है.

‘‘चलो छोड़ो फिल्मविल्म,’’ वरुण ने कहा, ‘‘थोड़ा घूमते हैं और फिर बैठेंगे किसी रेस्तरां में. क्या कहती हो?’’

‘‘जैसी आप की मरजी,’’ निशा ने मासूमियत से कहा, ‘‘मां ने कहा था कि धूप में ज्यादा मत घूमना.’’

‘‘रंग काला पड़ जाएगा,’’ वरुण ने चिढ़ कर कहा, ‘‘मां की सारी हिदायतें क्या टेप में भर ली हैं?’’

निशा हंस पड़ी, ‘‘ऐसा ही समझ लो.’’

‘‘तो अगली बार मां को साथ मत लाना. शादी तुम से कर रहा हूं, तुम्हारी मां से नहीं,’’ वरुण ने क्रोध से कहा. निशा को अच्छा नहीं लगा लेकिन अपने ऊपर नियंत्रण कर के बोली,‘‘आप को मेरी मां के लिए ऐसा नहीं कहना चाहिए. आखिर वे आप की सास हैं. मां के बराबर हैं.’’ वरुण को भी एहसास हुआ कि शायद उस के स्वर में कुछ अधिक तीखापन था. बोला, ‘‘मुझे खेद है. क्षमा कर दो.’  निशा की मुसकराहट में क्षमा छिपी थी. यही इस का उत्तर था. अपराधभावना से ग्रस्त वरुण ने सोचा कोई निदान करना चाहिए. अगर निशा को कोई भेंट दे तो वह खुश हो जाएगी. भुने चनों की पुडि़या हाथों में ले कर घूमते हुए वरुण एक दुकान के सामने रुक गया. बड़ा सुंदर सलवारसूट एक डमी मौडल, आतेजाते सब का ध्यान आकर्षित कर रही थी.

‘‘यह सूट तुम्हारे ऊपर बहुत अच्छा लगेगा,’’ वरुण ने पूछा, ‘‘क्या खयाल है?’’

‘‘खयाल तो अच्छा है,’’ निशा की आंखोें में चमक आई पर लुप्त हो गई,  ‘‘पर…’’

‘‘पर क्या?’’ वरुण ने आश्चर्य में पूछा और शौर्य प्रदर्शन करते हुए कहा, ‘‘दाम की तरफ मत देखो.’’

निशा ने अब देखा. मूल्य था 1,750 रुपए.

‘‘दाम तो ज्यादा है ही,’’ निशा ने झिझकते हुए कहा, ‘‘पर इस का गला ठीक नहीं है.’’

अब वरुण ने देखा, कुरते का गला आगे से नीचे कटा हुआ था.

‘‘तो क्या हुआ,’’ वरुण ने बहादुरी से कहा, ‘‘मेरी पसंद है, तुम मेरे लिए पहनोगी.’’

‘‘नहीं,’’ निशा ने दृढ़ता से कहा, ‘‘मां पहनने नहीं देंगी. इस मामले में बहुत सख्त हैं.’’

निराशा से भरे कटु स्वर में वरुण ने कहा, ‘‘वह तो स्पष्ट है. चलो कोई बात नहीं. कुछ और पसंद कर लो.’’

निशा को वरुण की निराशा का एहसास हुआ था, पर मां के कानून से बंधी थी. सोच कर बोली, ‘‘कोई परफ्यूम ले लेती हूं. कपड़े तो बहुत हैं और फिर रोज कुछ न कुछ बन ही रहा है.’’

‘‘कौन सा लोगी?’’ वरुण ने कहा, ‘‘कल मैं ने टीवी पर एक नए परफ्यूम का विज्ञापन देखा था. नाम जोरदार था और जिन लड़कियों ने लगाया था उन के आसपास खड़े 6 से 60 वर्ष तक के जवान हवा में सूघंते हुए उड़ रहे थे.’’

‘‘सच?’’ निशा ने व्यग्ंयभरी हंसी से कहा, ‘‘बड़ा खतरनाक था तब तो. क्या नाम था?’’

‘‘अरब की लैला,’’ वरुण मुसकराया, ‘‘चलो देखते हैं. शायद मिल जाए.’’

एक बड़ी दुकान पर यह परफ्यूम मिल भी गया. पूरे 500 रुपए की शीशी थी. वरुण ने सोचा, कोई बात नहीं, 1,750 रुपए से तो कम की है. वरुण ने नमूने के तौर पर निशा की गरदन के थोड़ा नीचे एक फुहार डाली. बड़ी मतवाली सुगंध थी.

किसकी मां, किसका बाप?-भाग 2: वरुण का स्वागत ससुराल में कैसे हुआ?

इतने में शिवानी पास आ कर फुसफुसाई, ‘‘बड़े स्मार्ट लग रहे हैं जीजाजी, बिलकुल चार्ली चैपलिन की तरह. पूछ तो सही, कपड़े जामा मसजिद की कौन सी दुकान से लाए हैं?’’

‘‘चल हट,’’ निशा ने झिड़क कर कहा, ‘‘तू ही पूछ ले.’’

फिर निशा ने भी अधिक शरमाने में भलाई नहीं समझी. उस का जी भी तो वरुण के पास बैठने को मचल रहा था. मां तो समझती ही नहीं, पर फिर भी…

जब धीरेधीरे खुली खिड़की से आती खुशबूदार हवा की तरह उस ने कमरे में प्रवेश किया तो वरुण की आंखें मानो उस पर चिपक गईं. फालसई रंग का सलवारकुरता उस पर अच्छा खिल रहा था. सांवला रंग फीका पड़ गया था और वरुण को वह आशा के विपरीत अधिक साफसुथरी नजर आ रही थी. अलग अकेले में बात करने को मन करने लगा. शिवानी ने उठते हुए वरुण के पास निशा के लिए जगह बना दी.

सास मुंह बना कर अंदर रसोई में चली गईं. ससुर 1-2 औपचारिक बातें करने के बाद अपने कमरे में चले गए. शिवानी मां की मदद करने के लिए रसोई में गई और दोनों साले बाजार से कुछ लाने को भेज दिए गए.

इस तरह मैदान खाली कर दिया गया.

निशा शरमा कर नीचे देख रही थी. वरुण उस के चेहरे पर आंखें गड़ाए था. यही तो है न वह.

वरुण ने गहरी सांस ले कर आहिस्ते से कहा, ‘‘बहुत सुंदर लग रही हो.’’

निशा ने मुसकरा कर मासूमियत से कहा, ‘‘हां, मां भी यही कहती हैं.’’

 

वरुण शरारत से हंसा, ‘‘ओह, तो मां का प्रमाणपत्र पहले ही मिल चुका है. यह अधिकार तो मेरा था.’’

निशा भी हंसी, ‘‘आप ने तो कुछ खाया ही नहीं. लीजिए, रसमलाई खाइए.’’

‘‘तुम ने बनाई है?’’ वरुण ने पूछा.

‘‘नहीं,’’ निशा ने कहा, ‘‘बाजार से मंगाई है. बहुत मशहूर दुकान की है.’’

‘‘तुम ने क्या बनाया है?’’ वरुण ने हंस कर कहा, ‘‘वही खिलाओ.’’

‘‘कुछ नहीं,’’ निशा ने सादगी से कहा, ‘‘मां ने कुछ बनाने नहीं दिया.’’

‘‘क्यों?’’ वरुण ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मां ने कहा कि अगर अच्छा नहीं बना तो,’’ निशा ने मुसकरा कर कहा, ‘‘और आप को भी अच्छा नहीं लगा तो आप हमेशा वही याद रखेंगे.’’

‘‘मां तो बहुत समझदार हैं,’’ वरुण के स्वर में हलका सा व्यंग्य था, ‘‘पर उस दिन तो तुम ने हम लोगों का मन जीत लिया था.’’

‘‘दरअसल उस दिन अधिक व्यंजन तो मां ने ही बनाए थे. मैं ने तो उन की मदद की थी,’’ निशा की हंसी में रबड़ी की खुशबू थी.

‘‘पर कुछ तो बनाया होगा?’’ वरुण ने अपना प्रश्न दोहराया.

‘‘दहीबड़े बनाए थे,’’ निशा ने संकोच से कहा, ‘‘पर वे इतने सख्त थे कि मां ने नौकरानी को दे दिए.’’

निशा की मादक मुसकराहट और भोलेपन के कारण वरुण को उस की सचाई अच्छी लगी. हंस कर फिर से दोहराया, ‘‘मां सच ही बड़ी समझदार हैं.’’

निशा ने उठने का प्रयत्न करते हुए पूछा, ‘‘आप क्या लेंगे, चाय या कौफी?’’

वरुण ने शरारत से पूछा, ‘‘चाय या कौफी कौन बनाएगा, मां?’’

निशा मुसकराई,  ‘‘आप कहेंगे तो मैं बना दूंगी.’’

‘‘पर उस के लिए तुम्हें उठ कर जाना होगा,’’ वरुण ने कहा.

‘‘सो तो है,’’ निशा का उत्तर था.

‘‘फिर बैठी रहो,’’ वरुण ने फुसफसा कर कहा, ‘‘आज बहुत सारी बातें

करने को जी कर रहा है. चलो, कहीं चलते हैं.’’

निशा ने मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘ना बाबा ना, मां जाने नहीं देंगी.’’

‘‘मां से पूछ लेते हैं,’’ वरुण ने बहादुरी से कहा.

‘‘मां ने पहले ही कह दिया है कि अगर आप बाहर जाने को कहें तो सख्ती से मना कर देना,’’ निशा ने नाखूनों पर अंगूठा फिराते हुए कहा.

‘‘मां तो बहुत समझदार हैं,’’ इस बार वरुण के स्वर में व्यंग्य का अनुपात अधिक था.

‘‘सो तो है,’’ निशा ने स्वीकार किया.

‘‘कौफी हाजिर है,’’ शिवानी ट्रे में

2 कप कौफी ले कर खड़ी थी, ‘‘रुकावट के लिए खेद है.’’

प्यालों से ऊपर उठते सफेद झाग की ओर प्रशंसा से देखते हुए वरुण ने कहा, ‘‘कौफी तो लगता है तुम्हारी तरह स्वादिष्ठ और लाजवाब है.’’

शिवानी ने चट से कहा, ‘‘बिना चखे कैसे कह सकते हैं.’’

वरुण ने शरारत से कहा, ‘‘अगर तुम्हारी दीदी की अनुमति हुई तो वह भी कर  सकता हूं.’’

‘‘धत् जीजाजी,’’ कह कर शिवानी ने ट्रे मेज पर रखी और भाग गई.

‘‘आप बहुत गंदे हैं,’’ निशा ने मुसकरा कर कहा.

‘‘यह तो पहला प्रमाणपत्र है तुम्हारा. अभी तो आगे बहुत से मिलेंगे,’’ वरुण ने कौफी पीते हुए कहा.

 

वरुण के जाने के बाद मांबाप का बहुत झगड़ा हुआ. मां ने दुनियादारी की दुहाई दी और पिता ने ‘जमाना बदल गया’ का तर्क पेश किया. निर्णय तो कु़छ नहीं हुआ, पर कुछ समय पहले के खुशी के वातावरण में मनहूसियत फैल गई.

पति से बदला लेने के लिए मां बेटी पर बरस पड़ी, ‘‘तुझ से किस ने कहा था कि अपने घर की सारी बातें बता दे?’’

‘‘मैं ने क्या कहा?’’ निशा ने तीव्र स्वर में पूछा. मां की बेरुखी पर वह पहले से ही दुखी थी.

‘‘क्या नहीं कहा?’’

मां ने नकल करते हुए कहा, ‘‘दहीबड़े सख्त बने थे, सो नौकरानी को दे दिए. सारे व्यंजन बाजार से आए थे. ये सब किस ने कहा?’’

‘तो मां कान लगा कर सुन रही थीं,’ निशा को कोई उत्तर नहीं सूझा तो वह रोने लगी ओर रोतेरोते अपने कमरे में चली गई.

पिता ने क्रोध में कहा, ‘‘रुला दिया न गुड्डी को? कौन सा झूठ कह रही थी? और फिर तुम्हारी तरह से झूठ बोलने में माहिर भी तो नहीं है. तुम्हारी तरह मंजने में समय तो लगेगा ही.’’

वरुण ने झिझकते हुए निशा को बाहर ले जाने की आज्ञा मांगी थी पर मां ने बड़ी होशियारी से टाल दिया.

वरुण को निराशा तो हुई ही, क्रोध भी बहुत आया. सारे रोमानी सपनों पर पानी फिर गया. उस ने अब कभी भी ससुराल न जाने का निश्चय कर लिया. सास के लिए जो श्रद्धा होनी चाहिए, वह लगभग लुप्त हो गई. एक बार शादी हो जाने दो, उस के मन में जो विचार उठ रहे थे, वे बड़े खतरनाक थे.

मुंह लटका देख कर बहन ने हंसी से ताना दिया, ‘‘मुंह ऐसे लटका है जैसे किसी गोदाम के दरवाजे पर बड़ा सा ताला. लगता है खातिर नहीं हुई. इस बार मुझे साथ ले चलना. फिर देख लूंगी सब को.’’

मां ने हंस कर पूछा, ‘‘सब ठीक है न?’’

मानसून स्पेशल: छोड़े बोरिंग सब्जी, अरबी से बनाएं ये 5 डिफरेंट डिश

  1. अरबी पीनट बड़ा

सामग्री

– 250 ग्राम अरबी – 2 कप बेसन – 1/4 छोटा चम्मच अजवाइन – चुटकी भर हींग – 1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर – 1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर – 1/4 छोटा चम्मच धनिया पाउडर – 2 चम्मच मूंगफली का चूरा – 1/2 छोटा चम्मच गरममसाला – तेल जरूरतानुसार – 1 चम्मच हरीमिर्च कटी – 1/4 छोटा चम्मच साबूत लालमिर्च के टुकड़े – थोड़ी सी धनियापत्ती कटी – 1/2 छोटा चम्मच नीबू का रस – नमक स्वादानुसार.

विधि

बेसन में नमक, हलदी व मोयन डाल कर घोल तैयार करें. अब एक पैन में तेल गरम कर हींग, अजवाइन, हरीमिर्च, लालमिर्च के टुकड़े, लालमिर्च पाउडर, हलदी व धनिया पाउडर भूनें और फिर अरबी के टुकड़े कर मिला दें. कुछ देर बाद इस में गरममसाला, मूंगफली चूरा, नीबू का रस, नमक व धनियापत्ती मिलाएं. फिर कड़ाही में तेल गरम कर तैयार मिश्रण के गोले बनाएं व बेसन के घोल में डिप कर के मध्यम आंच पर तलें. मनपसंद सौस के साथ परोसें.

ये भी पढ़ें-मानसून स्पेशल: बच्चों को बेहद पसंद आएगी बेसन से बनीं ये 3 डिश, आज ही

*

2. क्रिस्पी दम अरबी करी

सामग्री

– 10-12 पीस अरबी – 2 मध्यम आकार के प्याज का पेस्ट – 1 चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट – 2 टमाटरों का पेस्ट – 1/2 छोटा चम्मच अजवाइन – 1 चम्मच धनिया पाउडर – 1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर – 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर – 1/2 छोटा चम्मच गरममसाला – 1/2 छोटा चम्मच हरीमिर्चे का पेस्ट  – 2 चम्मच धनियापत्ती कटी – अरबी तलने और छौंक के लिए तेल – 1 चम्मच दही  – नमक स्वादानुसार

विधि

अरबी को उबाल छील कर हाथों से हलका सा दबा लें. फिर इस में हलदी पाउडर व नमक मिला कर गरम तेल में तलें. अब एक कड़ाही में तेल गरम कर के अजवाइन, हींग भूनें. फिर प्याज का पेस्ट, अदरकलहसुन का पेस्ट व हरीमिर्च पेस्ट भून लें. तैयार मिश्रण में टमाटर पेस्ट, धनिया पाउडर, लालमिर्च पाउडर मिला कर तेल छोड़ने तक भूनें. अब अरबी के तले टुकड़े, गरममसाला, नमक, पानी व दही मिला कर उबाल आने तक पकाएं. धनियापत्ती से सजा कर सर्व करें.

ये भी पढ़ें-मानसून स्पेशल: बारिश में खाइए सेहत बनाने वाले ये 4 स्नैक्स

*

3. पोस्तादाना अरबी

सामग्री

– 250 ग्राम अरबी – चुटकी भर हींग – 1/4 छोटा चम्मच अजवाइन – 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर – 1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर – 1/4 छोटा चम्मच धनिया पाउडर – 1/2 छोटा चम्मच गरममसाला – तेल जरूरतानुसार – 1 चम्मच हरीमिर्चें कटी – थोड़ी सी धनियापत्ती कटी – 1 चम्मच नीबू का रस

– 1 चम्मच पोस्तादाना भुना – नमक स्वादानुसार.

विधि

अरबी धो व छील कर पतलेपतले टुकड़ों में काटें. एक पैन में तेल गरम कर के हींग, अजवाइन, हरीमिर्चें, लालमिर्च पाउडर व धनिया पाडर मिला कर भूनें. अब इस में अरबी के टुकड़े व नमक मिला कर कुरकुरा होने तक पकाएं. गरममसाला व नीबू का रस मिलाएं. बाउल में निकाल कर और भुने पोस्तादाना व धनियापत्ती से गार्निश कर सर्व करें.

4. कुरकुरी अरबी बेसनी

सामग्री

– 250 ग्राम अरबी – चुटकी भर हींग – 1/4 छोटा चम्मच अजवाइन – 1/4 छोटा चम्मच अमचूर – 2 छोटे चम्मच सफेद तिल – 1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर – 1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर – 1/2 छोटा चम्मच धनिया पाउउर

– 2 छोटे चम्मच बेसन – तेल जरूरतानुसार – नमक स्वादानुसार.

विधि

अरबी को उबाल छील कर लंबे टुकड़ों में काट लें. एक बाउल में बेसन, हलदी पाउडर, लालमिर्च पाउडर, धनिया पाउडर, अमचूर, थोडे़ से सफेद तिल व पानी मिला कर मिश्रण तैयार करें. अब एक पैन में तेल गरम कर के मध्यम आंच पर अरबी के टुकड़ों को तैयार मिश्रण में लपेट कर तलें. दूसरे पैन में थोड़ा सा तेल गरम कर के हींग, अजवाइन व सफेद तिल भून कर तले अरबी के टुकड़ों में डाल कर मिला लें. कुरकुरी अरबी तैयार है.

ये भी पढ़ें-मानसून स्पेशल: मसाला मूंगफली और बेसन का चटकारेदार स्वाद

*

5. अरबी समोसे

सामग्री

– 2 कप मैदा – मोयन और तलने के लिए पर्याप्त तेल – 1/4 छोटा चम्मच खाने वाला सोडा – 100 ग्राम अरबी – चुटकी भर हींग – 1/4 छोटा चम्मच अजवायन – 2 चम्मच बेसन भुना हुआ – 2 छोटे चम्मच हरीमिर्चें कटी – 2 छोटे चम्मच हरीमिर्चें – 2 छोटे चम्मच धनिया पाउडर – 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

– 1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर – 1/4 छोटा चम्मच गरममसाला, थोड़ी सी धनियापत्ती कटी – नमक स्वादानुसार.

ये भी पढ़ें-मानसून स्पेशल: 5 ब्रेकफास्ट जो बने जल्दी और रखे हेल्दी

विधि

अरबी को उबाल कर छिलका निकाल बारीक टुकड़ों में काट लें. अब मैदे में नमक, सोडा और मोयन डाल कर पानी से सख्त गूंध लें. हलदी पाउडर, लालमिर्च पाउडर फिर एक पैन में तेल डाल कर हींग, अजवाइन, धनिया पाउडर व हरीमिर्चें डाल कर भूनें. अब इस में अरबी के टुकड़े और गरममसाला डाल कर कुछ देर चलाएं. भुना बेसन डालें और भाप आने दें. धनियपत्ती डाल कर मिश्रण को ठंडा होने दें. अब गुंधे आटे की लोइयां बेलें. प्रत्येक लोई में भरावन भरें व समोसे का आकार दें. कड़ाही में तेल गरम कर के समोसों को सुनहरा होने तक तलें और मनपसंद चटनी के साथ गरमागरम परोसें.

व्यंजन सहयोग : ज्योति मोघे

सुशांत की आखिरी फिल्म दिल बेचारा का टाइटल सॉन्ग रिलीज, देखें VIDEO

मुकेश छाबड़ा कि आगामी फिल्म “दिल बेचारा” के सारे गाने ऑस्कर विजेता लेजेंडरी ए. आर रहमान ने कंपोज किए हैं, जिसे दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की लेगेसी को सेलिब्रेट करते हुए फिल्म का टाइटल ट्रैक 10 जुलाई को रिलीज़ किया गया है. इस फिल्म में सुशांत के ऑपोजिट संजना सांघी नज़र आएंगी, वे इस फिल्म से डेब्यूट कर रही हैं.

तोड़ा एंवेजर्स का ये रिकार्ड…

फिल्म का ट्रेलर सोमवार को रिलीज़ किया गया और  यूट्यूब पर सबसे ज़्यादा देखा जाने वाला वीडियो बन गया.इतना ही नहीं 24 घंटो में एवेंजर: एंड गेम के व्यूवरशिप और पसंद के आंकड़े को भी पार कर गया.

बतौर निर्देशक मुकेश छाबड़ा कि यह पहली फिल्म है और इस फिल्म का ट्रेलर रिलीज़ होने के बाद लोग इस पर खूब प्यार बरसा रहे हैं.सुशांत के फैंस और फिल्म जिस बुक की ऑडपटेशन हैं उसके राइटर् (जॉन ग्रीन) इस फिल्म को देखने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं.इसकी स्ट्रीमिंग के लिए अभूतपूर्व प्रत्याशा को देखते हुए, सोनी म्यूजिक इंडिया ने ए आर रहमान द्वारा रचित पूरा एल्बम रिलीज़ किया.

ये भी पढ़ें-  सुशांत सिंह राजपूत के जैसा दिखता है ये शख्स, फोटोज देखकर फैन्स हुए

‘दिल बेचारा’ के साउंड ट्रैक में आपको विविध प्रकार की संगीत का मेल देखने को मिलेगा जो आज के युवा और पुराने रोमांटिक सॉन्ग्स सुनने वालों को पसंद आएगा. रहमान द्वारा गाया हुआ फिल्म का ये स्पेशल ट्रैक जिंदगी के उतार-चढ़ाव के जश्न को पेश करता है और उस युवा पीड़ी की आत्मा को दर्शाता है जो अपनी भावनाओं को लेकर बेहद संवेदनशील है. दोस्ती पर आधारित सॉन्ग ‘मसखरी’ को सुनिधि चौहान और ह्रदय गट्टानी ने गाया है तो वहीं सॉन्ग ‘तारे गिन’ को श्रेया घोषाल और मोहित चौहान ने गाया है और ये नए प्यार की भावनाओं को व्यक्त करता है. ए आर रहमान के अप्रकाशित तमिल ट्रैक ‘कन्निल ओरु थली’ के हिंदी वर्जन ‘खुलके जीने का’ को अरिजीत सिंह और शशा तिरुपती ने गाया है और ये युवाओं के जोश को पेश करता है.जोनिता गाँधी और हृदय गट्टानी द्वारा गाया हुआ सॉन्ग ‘मैं तुम्हारा’ बेहद अहम है और ये फिल्म की कहानी से बंधा है.देखा जाए तो फिल्म की इस अधूरी कहानी में कीजि (संजना संघी) और मैनी (सुशांत सिंह राजपूत) इस गाने को पूरा करने के लक्ष्य पर आधारित हैं.

ए .आर रहमान का मानना है कि, ” म्यूज़िक हमेशा दिल से आता है इसका कोई फॉर्मूला नहीं है, मैं जब भी कोई सॉन्ग लिखता हूं उसे कुछ समय के बाद डायरेक्टर को दिखाता हूं.निर्देशक मुकेश छाबड़ा के साथ काम करने का अनुभव बहुत ही अदभुत रहा.  सुशांत को याद करते हुए यह  पूरा एल्बम बड़े ही सावधानी और प्यार के साथ बनाया गया है क्योंकी यह फिल्म दिल को छू जाती है . लिरिसिस्ट अमिताभ भट्टाचार्य के साथ इस लव सांउडट्रेक पर काम करने का अनुभव बहुत ही शानदार रहा.ये गाने बहुत ही उदार हैं और भारत के शीर्ष गायक और संगीतकार इससे जुड़े हुए  है. मुझे उम्मीद है कि आप इस एल्बम को ज़रूर पसंद करेंगे. ”

ये भी पढ़ें- ‘दिल बेचारा’ के ट्रेलर में सुशांत सिंह की टी-शर्ट में लिखा मैसेज हो रहा है वायरल

मुकेश छाबड़ा का मानना है  कि  “कहानी को ध्यान में रखते  हुए, इस फिल्म का संगीत एल्बम रोमांस और दोस्ती का एक भावनात्मक रोलरकोस्टर है जो यह दर्शाता है कि किस तरह  प्यार में पड़े दो युवाओं को बाधाओं का सामना करना पड़ा. मेरे पहली फिल्म में ए. आर रहमान का म्यूज़िक होना किसी सपने के सच होने के समान है . ए आर रहमान की सबसे खास बात यह है कि उन्होंने इस एल्बम में कहानी को बहुत ही बेहतरीन तरीके से सुशोभित करते हैं.मैं उम्मीद करता हूं कि लोग इस एल्बम को ज़रूर एंजॉय करेंगे.”

जॉन ग्रीन के उपन्यास ‘द फॉल्ट इन ऑर स्टार्स’ पर आधारित है दिल बेचारा दो आम लोग किज़ी और मैनी की कहानी है, जो उन पर घटी घटनाओं के बावजूद प्यार में पड़ जाते हैं.

ये भी पढ़ें- सुशांत की मौत के बाद सदमे में हैं अंकिता, बॉयफ्रेंड विकी जैन ने उठाया यह

फॉक्स स्टार स्टूडियो द्वारा निर्मित मुकेश छाबड़ा द्वारा निर्देशित फिल्म दिल बेचारा में सुशांत सिंह राजपूत और संजना सांघी नजर आएंगे, जिसकी स्ट्रीमिंग  24 जुलाई को डिजनी हॉटस्टार पर की जाएगी. सोनी म्यूजिक इंडिया द्वारा निर्मित और ए.आर.रहमान द्वारा कंपोज्ड, इस फिल्म का म्यूज़िक एल्बम अब श्रोताओं के लिए उपलब्ध है.

विकास दुबे एनकाउंटर: कानून और न्याय से नहीं, बंदूक की नोक पर होगा शासन!

कानपुर का हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे जघन्य वारदात को अंजाम देकर उज्जैन के महाकाल मंदिर में शायद इस उम्मीद में पहुंचा था कि भगवान् महाकाल उत्तर प्रदेश पुलिस के काल से उसको बचा लेंगें, मगर उसकी वह इच्छा पूरी नहीं हुई. काल के आगे महाकाल की भी ना चली और अंततः विकास दुबे पुलिस के हाथों मारा ही गया.

विकास दुबे का अपराध क्षमा योग्य हरगिज़ नहीं था. आठ पुलिस कर्मियों की जघन्य ह्त्या और उनके शवों को क्षत-विक्षप्त कर जलाने की साजिश रचना उसके अपराधी मानसिकता के चरम को दर्शाता है. मगर जिस तरीके से एनकाउंटर का ताना बाना बन कर उसका खात्मा किया गया है, उस पर उंगलियां उठनी शुरू हो गयी हैं.

ये भी पढ़ें- विकास दुबे और कोई नहीं बल्कि यूपी राज्य की छुपाई गई हकीकत है

जिस विकास दुबे के दोनों पैरों में रॉड पड़ी हुई थी, वह कानपुर से भागता हुआ उज्जैन पहुंच गया, महाकाल मंदिर में उसने सुबह खुद गार्ड को अपना परिचय देकर खुद को पुलिस के हाथों में सौंपा, यानी सरेंडर किया, मध्य प्रदेश पुलिस ने उसको अरेस्ट करके उत्तर प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स के हवाले किया. एसटीएफ के 15 जवानो का जत्था उसको लेकर कानपुर आ रहा था, जहां आज यानी 10 जुलाई को उसको कोर्ट में पेश किया जाना था, मगर शहर में दाखिल होने में अभी 17 किलोमीटर का रास्ता बचा था, कि उसको एनकाउंटर में ढेर कर दिया गया.

पुलिस ने एनकाउंटर की जो कहानी सुनाई, उसके मुताबिक़ एसटीएफ की तीन गाड़ियां एक के पीछे एक चल रही थीं. तेज़ रफ़्तार और बारिश के कारण जिस गाड़ी में विकास दुबे बैठा था वो गाड़ी सड़क पर उलट गयी. जिसमें से विकास दुबे निकल कर भागा. भागते वक़्त उसने घायल जवान का हथियार छीन लिया. पुलिस ने उसको रोकने की कोशिश की मगर वो खेतों की ओर दौड़ गया. फिर पुलिस ने उसको गोली मार दी.

कमोबेश हर एनकाउंटर की कहानी ऐसी ही होती है. इसमें कुछ भी नया नहीं है. जिस तरह हर एनकाउंटर सवालों के घेरे में होता है, उसी तरह ये एनकाउंटर भी है. सवाल सैकड़ों हैं. पहला तो यही कि जिस विकास दुबे ने उज्जैन के महाकाल मंदिर में एक निहत्थे गार्ड के सामने खुद की पहचान करवा कर सरेंडर किया, वो भला हथियारबंद पुलिस की गिरफ्त से भागने की कोशिश क्यों करेगा?

ये भी पढ़ें- कानपुर का विकास दुबे 8 पुलिसकर्मियो का हत्यारा

15 हथियारबंद पुलिसकर्मियों से घिरे होने के बाद वह भाग कैसे सकता था ?

दोनों टांगों में रॉड पड़े होने के कारण जो आदमी ठीक से चल ना पाता हो, वो दूर तक फैले और पानी से भरे खेतों के बीच आखिर दौड़ कर जाता भी कहाँ ?

सबसे मुख्य बात ये कि मध्य प्रदेश की सीमा से लगातार मीडिया की कुछ गाड़ियां एसटीएफ की गाड़ियों के पीछे थीं, जिन्हे एनकाउंटर स्थल से कुछ दूर पहले ये कह कर रोक दिया गया कि हमारी गाड़ियों का पीछा ना करें, कोई हादसा हो सकता है.

और फिर हादसा हो गया. गाड़ी पलट गयी और दुर्दांत अपराधी पुलिस के हाथों मारा गया. दरअसल विकास दुबे का मरना पहले से तय हो चुका था. उसके अंत की कहानी लिखी जा चुकी थी. क्योंकि अगर वो कोर्ट तक पहुँचता तो कई साल लग जाते उसको उसके अंजाम तक पहुंचाने में. और ये भी हो सकता था कि वो अपने राजनितिक आकाओं की मेहरबानी से उस अंजाम तक पहुंचने से बच भी निकलता. ये भी बहुत संभव था कि पुलिस छानबीन और कानूनी कार्रवाई के दौरान उसके आकाओं का चेहरा भी सामने आ जाता. इस सबसे बचने का एक ही तरीका था विकास दुबे का एनकाउंटर में खात्मा. विकास दुबे के मौत के साथ बहुतेरे गहरे राज़ अब आगे भी राज़ ही रह जायेंगे.

ये भी पढ़ें- पुलिस की लगातार बढ़ती बर्बरता

vikas-dubey-encounter

कितने हैरत की बात है कि ऐसे दुर्दांत अपराधी, जिस पर 60 से ज़्यादा आपराधिक मामले दर्ज थे, उसको उत्तर प्रदेश की राजनीति और पुलिस प्रशासन बीते लम्बे समय से ना सिर्फ पाल रहा था, बल्कि उसके इशारे पर नाच भी रहा था. अगर ऐसा ना होता तो 3 जुलाई की रात गुपचुप तरीके से उसके घर पर छापेमारी के लिए जाने वाली पुलिस टीम की जानकारी, उनके पहुंचने से पहले ही विकास दुबे को ना मिली होती. अगर स्थानीय थाना उसके इशारे पर काम ना कर रहा होता तो रात में पुलिस टीम पर हमले के लिए ना तो वो अपने साथियों को इकट्ठा कर पाता और ना ही पुलिस टीम पर हमला करने का दुस्साहस करता. लेकिन अफ़सोस कि पूरा सिस्टम विकास दुबे जैसे अपराधी के हाथों में खेल रहा था.

उत्तर प्रदेश की पुलिस फोर्स में मौजूद पुलिस कर्मी ही उसके गुप्तचर थे. जो छापेमारी करने वाली पुलिस टीम के एक-एक मूवमेंट की जानकारी उस तक पहुंचा रहे थे. उससे भी बड़ी हैरत की बात ये है कि आठ पुलिसकर्मियों, जिसमे एक डिप्टी एसपी रैंक के अधिकारी और तीन सब इंस्पेक्टर शामिल थे, की ह्त्या करके विकास दुबे आराम से ना सिर्फ कानपुर से निकल भागा, बल्कि नोएडा, फरीदाबाद घूमते हुए मध्य प्रदेश के उज्जैन तक जा पहुंचा. कहीं किसी राज्य की सीमा पर पुलिस उसकी गाड़ी को नहीं रोका. विकास दुबे की कानपुर से भाग निकलने में ना सिर्फ स्थानीय थाने की पुलिस ने मदद की, बल्कि सरकार में बैठे उसके आकाओं से भी उसको भरपूर मदद मिलती रही. उज्जैन के महाकाल मंदिर में जिस नाटकीय ढंग से उसको पुलिस हिरासत में लिया गया था, वह पूरा घटनाक्रम राजनेताओं से उसकी मिलीभगत का खुलासा करता है.

महाकाल मंदिर में एक रात पहले उज्जैन के एसपी और डीएम का जाना, रातोरात महाकाल मंदिर थाने के स्टाफ को बदल देना, नए थानाइंचार्ज की तैनाती, सुबह मंदिर में नंगे पैर विकास दुबे का दिखाई देना, मुँह से मास्क हटा कर मंदिर के गार्ड को अपनी पहचान करवाना, ये तमाम बातें उसके सरेंडर की कहानी कह रही हैं.

ये भी पढ़ें- रोजगार चाहिए, मंदिर-मस्जिद नहीं

vikas-dubey-encounter-2

विकास दुबे को अच्छी तरह पता था कि जिस तरह के जुर्म को उसने अंजाम दिया है उससे पुलिस फोर्स में भयानक गुस्सा है और उत्तर प्रदेश की पुलिस उसको ज़िंदा नहीं छोड़ेगी, यही वजह रही कि वह अपने राजनितिक आकाओं की मदद से उज्जैन तक भाग कर आया और यहाँ उसने सरेंडर किया. लेकिन अंततः जाना तो उसको उत्तर प्रदेश की पुलिस के पास ही था, जो अपने 8 साथियों की मौत का बदला लेने के लिए बेचैन थी. उत्तर प्रदेश पुलिस के हाथों विकास दुबे मारा गया. बदला पूरा हुआ. मगर क्या ये तरीका ठीक था? अगर अपराधियों को पुलिस ही सज़ा देने लग जाएगी तो कोर्ट और जज क्या करेंगे ?

उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह ने इस एनकाउंटर को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. प्रकाश सिंह कहते हैं, ‘मैं इसे बहुत दुर्भाग्यपूर्ण मानता हूं कि विकास दुबे का एनकाउंटर हो गया. मुझे ये आशा थी कि उससे पूछताछ होगी और इस दौरान वो उन सारे आदमियों का पर्दाफाश करेगा, जो उसको मदद कर रहे थे, सपोर्ट कर रहे थे.’

Ex-DGP-UP-Prakash-Singh

कई विपक्षी नेताओं का कहना है कि इस एनकाउंटर की आड़ में उन सभी लोगों को बचा लिया गया है, जो विकास दुबे की मदद कर रहे थे. विकास दुबे को जिन राजनीतिक शक्तियों से शह मिल रही थी वो अब कभी सामने निकलकर नहीं आएंगी.

कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने भी ऐसे ही सवाल किए हैं. उन्होंने एक ट्वीट कर लिखा है कि अपराधी को संरक्षण देने वालों का अब क्या होगा? कानपुर में जघन्य हत्याकांड को अंजाम देने वाले अपराधी की धरपकड़ में उत्तर प्रदेश सरकार और पुलिस को जिस मुस्तैदी से काम करना चाहिए था, वह पूरी तरह फेल साबित हुई. हाई अलर्ट के बावजूद आरोपी का उज्जैन तक पहुंचना, न सिर्फ सुरक्षा के दावों की पोल खोलता है बल्कि मिलीभगत की ओर साफ़ इशारा करता है.

ये भी पढ़ें- बाबा रामदेव की कोरोना दवा में झोल ही झोल

priyanka-gandhi

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी इस एनकाउंटर के पीछे बड़े राज को छिपाने का आरोप लगाया है. उन्होंने इसे लेकर योगी सरकार पर हमला बोला है. उन्होंने एक ट्वीट कर कहा कि ‘हादसे में कार पलटी नहीं है, राज़ खुलने से सरकार पलटने से बचाई गई है.’

akhilesh-yadav

यह अफसोस की बात है कि देश में कानून व्यवस्था अब बंदूक के हाथ में है. 8 पुलिस कर्मियों की हत्या क्या विकास दूबे ने की थी. वह अन्यों के साथ अपराधी है, अकेले नहीं. पुलिस ने अपराध साबित करने की जहमत नहीं उठाई और अराजकता का सहारा लिया. यह स्वीकार नहीं होना चाहिए. लाखों को जर्मनी की ओर से मरवाने वालों पर न्यूरेमबर्ग में बाकायदा मुकदमा चलाया गया था और बहुत कम को फांसी की सजा दी गई थी. अब जो हो रहा है वह सरकारी जंगली कानून से भी बदतर है जिसमें बिना अपराध साबित किए शक पर किसी को मार दिया जाता है और सफाई दी ही नहीं जाती.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें