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अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव 2020,ले डूबेंगे ट्रंप के तेवर

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ढीठ और जिद्दी रवैए को जहां एक ओर अमेरिका में कोरोना संक्रमण के बुरी तरह फैलने और लाखों अमेरिकी नागरिकों की जान जाने का जिम्मेदार माना जा रहा है, वहीं दूसरी ओर ट्रंप और उन की पुलिस की रंगभेदी व नस्लभेदी, दक्षिणपंथी सोच और व्यवहार की दुनियाभर में आलोचना हो रही है.

ट्रंप प्रशासन का रंगभेदी और नस्लभेदी चेहरा उस समय खुल कर सामने आ गया, जब एक अश्वेत अमेरिकी नागरिक जौर्ज फ्लौयड को सरेआम जमीन पर गिरा कर पुलिस के एक गोरे जवान ने अपने घुटनों के नीचे उस की गरदन तब तक दबाए रखी, जब तक कि उस की सांस नहीं टूट गई.

जौर्ज फ्लौयड चीखते रहे कि वे सांस नहीं ले पा रहे हैं, लेकिन श्वेत जवान के मन में अश्वेतों के प्रति इतनी नफरत भरी थी कि उस ने फ्लौयड की गरदन तब तक नहीं छोड़ी, जब तक वो मर नहीं गया.

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खुद को विश्व का संरक्षक समझने वाले अमेरिका की सड़क पर खुलेआम इस नरसंहार की घटना ने पूरे देश और दुनियाभर में हाहाकार मचा दिया. कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच भी लोग ट्रंप प्रशासन के खिलाफ घरों से निकल कर जगहजगह बैनरपोस्टर ले कर सड़कों पर उतर आए और जम कर नारेबाजी की.

दुनिया में लोकतांत्रिक मूल्यों का डंका पीटने वाला अमेरिका अपने ही आंगन में श्वेत पुलिसकर्मी के घुटने तले दम घुटने से अफ्रीकीअमेरिकी नागरिक की मौत के बाद समता, सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों की रक्षा में नाकामी के कारण कठघरे में खड़ा हो गया.

डोनाल्ड ट्रंप की खूब लानतमलामत हुई, मगर इस अमानवीय कृत्य के लिए शर्मसार होने और देश व दुनिया से माफी मांगने की बात तो दूर, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के लिए उन पर आंसू गैस के गोले छुड़वाए, रबड़ की गोलियों का इस्तेमाल किया. यही नहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति ने प्रदर्शनकारियों को ‘ठग’ कहा और उन्हें गोली मारने व उन के खिलाफ सेना को इस्तेमाल करने तक की धमकी दे डाली.

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इस घटना के बाद डोनाल्ड ट्रंप का अमानवीय, अड़ियल, अहंकारी, दक्षिणपंथी, नस्लभेदी और रंगभेदी सोच से भरा दिलोदिमाग उन के देश और दुनिया के आगे पूरी तरह खुल गया. उन की संकीर्ण मानसिकता और दंभ तब और मुखर हुआ, जब प्रदर्शनकारियों पर सेना तैनात करने की धमकी के बीच उन्होंने कहा, ‘‘मैं आप की कानून एवं व्यवस्था का राष्ट्रपति हूं.’’

गौरतलब है कि देश को चलाने वाला पिता के समान होता है. उस की भाषा में सौम्यता, व्यवहार कुशलता और समझदारी की अपेक्षा होती है, लेकिन इस भाव के विपरीत राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भड़काऊ भाषा ने प्रदर्शनों को हिंसक रूप दिया.

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह से स्थिति को संभालने की कोशिश की, वह तीव्र प्रतिक्रिया सैन्यवादी थी, जिस ने प्रदर्शनकारियों को और ज्यादा उकसाया और अमेरिकी समाज में गोरे व काले, अमीर और गरीब के विभाजन को गहरा किया. हालात यहां तक खराब हुए कि प्रदर्शनकारी व्हाइट हाउस तक पहुंच गए और राष्ट्रपति ट्रंप को बंकर में छिपना पड़ा.

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क्षेत्रफल के हिसाब से महादेश कहलाने वाले तमाम जनसंस्कृतियों से युक्त अमेरिका के आधे से ज्यादा राज्य आज नस्लीय नफरत के विरोध की आग में जल रहे हैं. ट्रंप के शासनकाल में उभरे ये विरोध प्रदर्शन अप्रैल, 1968 में डा. मार्टिन लूथर किंग जूनियर की हत्या के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों की याद दिलाते हैं.

ये विरोध प्रदर्शन सिर्फ अश्वेत नागरिक की हत्या के कारण ही पैदा नहीं हुए, बल्कि ट्रंप प्रशासन के दौरान हुए अनेक ‘दंगों’ के कारण अमेरिका में जो विभाजनकारी हालात बन गए हैं, उन को ले कर भी ये ट्रंप के खिलाफ अमेरिकियों के गुस्से का इजहार था. फ्लौयड की मौत ने तो बस अमेरिकी जनता के गुस्से के लिए एक चिंगारी का काम किया था.

अमेरिकी मीडिया का मानना है कि देश का लीडर होने के नाते देश और उस की जनता को सुरक्षित रखने में डोनाल्ड ट्रंप बुरी तरह फेल हुए हैं. कोरोना वायरस महामारी के कारण अब तक अमेरिका में एक लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. वायरस की मार ने अमेरिका के लोगों को तोड़ कर रख दिया है. 4 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हो चुके हैं और लाखों की तादाद में लोग अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए जगहजगह खुले फूड बैंक पर निर्भर हैं.

अर्थव्यवस्था में हुए नुकसान के चलते 4 करोड़ लोगों का बेरोजगार हो जाना और अफ्रीकीअमेरिकी मूल के अश्वेत जौर्ज फ्लौयड की मौत के बाद हुई भीषण हिंसा जैसे कई ज्वलंत मुद्दे आने वाले चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को मुंह की खाने को मजबूर कर सकते हैं.

उल्लेखनीय है कि क्रूड औयल की कीमतों में आई गिरावट से अमेरिका की 1,000 से अधिक कंपनियां दिवालिया होने के कगार पर हैं. अमेरिका को जिस तेजी से आर्थिक संकट घेर रहा है, उस को रोकने में ट्रंप विफल साबित होते हुए दिखाई दे रहे हैं. वर्ष 1930 की महामंदी के बाद से अमेरिका में सब से बड़ी आर्थिक मंदी देखी जा रही है.

अमेरिका में कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे के मद्देनजर जरूरी प्रोटैक्टिव इक्विपमेंट्स की कमी भी लोगों के मन में गुस्सा बढ़ा रही है. पिछले दिनों काफी संख्या में हेल्थ वर्कर्स ने इस को ले कर अमेरिका की सड़कों पर प्रदर्शन भी किया था. आरोप लग रहे हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप ने समय रहते कोरोना वायरस से बचाव के उपाय नहीं किए. वे अपनी जिद में ही अकड़े रहे. शुरू में उन्होंने कोविड-19 को मामूली वायरस बताया था. तब वे मास्क पहनने का भी विरोध कर रहे थे. कीटनाशक दवा से इंजैक्शन बनाने जैसी बचकानी बातें कर रहे थे. इस वजह से पूरी दुनिया में उन का मजाक भी उड़ा था. खुद मास्क न पहनने की जिद पर तो वे अब भी अड़े हैं.

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इतना ही नहीं, विदेशों से जल्दी से जल्दी जांच किट मंगवाने के बजाय ट्रंप ने देश में ही इस को तैयार करने की जिद ठान ली थी, जिस की वजह से संक्रमण बढ़ता चला गया और लाखों लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे. यही नहीं, अमेरिका ने ये जाने बिना कि उस को कोरोना वायरस का संकट अपनी गिरफ्त में ले सकता है, प्रोटैक्टिव इक्विपमेंट्स की चीन को सप्लाई जारी रखी. इस का नतीजा यह हुआ कि इधर अमेरिका में कोरोना फैला और उधर उस के अपने ही हेल्थ वर्कर्स  प्रोटैक्टिव इक्विपमेंट्स की कमी का शिकार हो गए.

न्यूयार्क जैसा शहर जिसे दुनिया के सब से आधुनिक शहरों में गिना जाता है, वहां पर वैंटिलेटर तक कम पड़ गए. इसी बीच न्यूयार्क के गवर्नर और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच तीखी बहस और एकदूसरे पर आरोप लगाने का भी दौर चला.

कोरोना संक्रमण की बदतर होती स्थिति के लिए अपनी गलती मानने के बजाय डोनाल्ड ट्रंप बारबार सारा ठीकरा चीन के सिर ही फोड़ते रहे.

दरअसल, इस के पीछे उन का चुनावी प्लान छिपा हुआ है. आम अमेरिकी चीन को अपना प्रतियोगी देश मानता है और राष्ट्रपति ट्रंप की कोशिश है कि वे चीन को जिम्मेदार ठहरा कर चुनाव में ‘राष्ट्रवाद‘ का तड़का लगा सकें. इसीलिए वे चीन से हर्जाना भी मांग चुके हैं यानी राष्ट्रपति ट्रंप कोरोना वायरस के पीछे उपजे जनता के गुस्से को चीन की ओर मोड़ देना चाहते हैं और अपनी छवि कुछ ऐसी गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं कि वे अमेरिका के दुश्मनों को बख्शने के मूड में नही हैं.

दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बहुत सोचीसमझी रणनीति के तहत लंबे समय से सारी दुनिया के देशों को छोड़ कर भारत और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ज्यादा से ज्यादा नजदीकियां दिखाने की भी कोशिश कर रहे हैं. उन्हें ‘दोस्त मोदी‘ के खिताब से नवाज रहे हैं.

दरअसल, इस दिखावे के पीछे उन की नजर अमेरिका में बसे उन 40 लाख भारतीयों पर है, जिन में बड़ी संख्या एनआरआई की है. अमेरिका के विभिन्न क्षेत्रों में इन का सकारात्मक योगदान है. इन में बहुत बड़ी संख्या में सवर्ण हिंदू हैं जो मोदी से प्रभावित हैं. इस लिहाज से वे उन के ‘खास दोस्त‘ के भी हिमायती बनेंगे. करीब 2 लाख भारतीय छात्र भी अमेरिका के विभिन्न संस्थानों में पढ़ाई कर रहे हैं.

पिछले चुनाव में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सत्ता में लाने में कई भारतीयों ने महत्वूपर्ण योगदान दिया था. इस बार भी वे उन के चुनावी अंकगणित को साधने में मददगार हो सकते हैं. इन अप्रवासी भारतीयों को अपने पाले में समेटे रखने की महत्वाकांक्षा ही डोनाल्ड ट्रंप को ह्यूस्टन में हुए ‘हाउडी मोदी‘ कार्यक्रम में भी खींच ले गई थी. इस कार्यक्रम में 50,000 से ज्यादा भारतीय नरेंद्र मोदी का भाषण सुनने के लिए जमा हुए थे. जिन को देख कर मोदी से ज्यादा उत्साहित डोनाल्ड ट्रंप नजर आ रहे थे.

इस कार्यक्रम में मोदी और ट्रंप के बीच गजब की केमिस्ट्री दिखाई दी. दोनों हाथ में हाथ डाले नजर आए. ट्रंप ने मंच से भारत और नरेंद्र मोदी को अपना और अपने देश का करीबी दोस्त करार दिया. यहां मोदी भी यह कहे बगैर नहीं रह पाए कि ट्रंप मुझे टफ निगोशिएटर कहते हैं, लेकिन वह खुद ‘आर्ट औफ द डील‘ के मास्टर हैं.

दरअसल, मोदी के प्रति अप्रवासियों के आकर्षण को डोनाल्ड ट्रंप भारत के प्रधानमंत्री मोदी से दोस्ती गांठ कर आने वाले चुनाव में अपने पक्ष में भुनाना चाहते हैं. दोनों की सोचसमझ एक ही राह पर चलती है. ट्रंप को अमेरिका में जहां दक्षिणपंथियों का जोरदार समर्थन मिला हुआ है, वहीं उन का फोकस मुसलमानों को अमेरिका में आने से रोकने पर भी है. मुसलमानो के प्रति ट्रंप की घृणा किसी से छिपी नहीं है. मोदी की तरह ट्रंप भी अपनी राष्ट्रीयता को बढ़चढ़ कर दिखाने में माहिर हैं.

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ट्रंप ने ‘‘अमेरिका फर्स्ट‘‘ के जरीए इस मुहिम को आगे बढ़ाया, तो मोदी ने ‘‘मेक इन इंडिया‘‘ के जरीए इस को प्रमोट किया. दोबारा अमेरिका का राष्ट्रपति चुने जाने की मंशा के तहत ही ध्रवीकरण, इमोशनल ब्लैकमेलिंग और राष्ट्रीयता को बढ़ावा देने की ट्रंप की रणनीति काफी लंबे समय से जारी है.

इसी रणनीति के तहत उन के लिए भारत में भी ‘नमस्ते ट्रंप‘ का आयोजन किया गया था, जहां उमड़ी भीड़ को देख ट्रंप खूब गदगद हुए, हुलकहुलक कर उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ में कसीदे काढ़े और इस तरह अगले चुनाव में अमेरिका की कमान फिर अपने हाथों में आने का उन का ख्वाब कुछ और परवान चढ़ा. संदेश साफ है, ‘तू मेरी खुजा, मैं तेरी खुजाता हूं.’

अमेरिका में इस साल 3 नवंबर, 2020 को राष्ट्रपति चुनाव होना है. रिपब्लिकन पार्टी की ओर से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कड़ा मुकाबला डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार और बराक ओबामा के शासन में उपराष्ट्रपति रहे जो बिडेन से होना है. डेमोक्रेटिक पार्टी से अपनी दावेदारी का ऐलान करते हुए जो बिडेन ने कहा कि यदि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप फिर से चुनाव जीतते हैं तो यह देश की आत्मा को दांव पर लगाने जैसा होगा, इसलिए वे चुनावी मैदान में उतर रहे हैं.

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी कोरोना वायरस वैश्विक महामारी से निबटने के प्रति देश के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के तरीके को ले कर उन की कड़ी आलोचना की है. यही नहीं, उन्होंने अपने समर्थकों से राष्ट्रपति पद के चुनाव में पूर्व उपराष्ट्रपति जो बिडेन का समर्थन करने की अपील की है. उन का मानना है कि जो बिडेन राष्ट्रपति ट्रंप के मुकाबले ज्यादा काबिल, सधे हुए और एक गंभीर व्यक्ति हैं.

इस बीच जो बिडेन ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बारे में बड़ा बयान दिया है, जिस की पूरे विश्व में चर्चा हो रही है. उन्होंने आशंका जताई है कि डोनाल्ड ट्रंप एक जिद्दी और उद्दंड व्यक्ति हैं और राष्ट्रपति चुनावों में धांधली कर सकते हैं.

उन्होंने यहां तक कहा कि अगर ट्रंप हार जाते हैं, तो वे आसानी से अपना औफिस भी नहीं छोड़ेंगे. अगर ऐसा होगा तो सेना को उन्हें व्हाइट हाउस से बाहर निकलवाना पड़ेगा. चुनाव हारने पर अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लोकतंत्र के खिलाफ जा कर तानाशाही भी कर सकते हैं.

जो बिडेन के इस बयान से डोनाल्ड ट्रंप काफी तिलमिलाए हुए हैं. बिडेन पर पलटवार करते हुए उन्होंने कहा कि अमेरिका के लिए ये बहुत बुरा होगा, अगर मेरे जैसा व्यक्ति राष्ट्रपति चुनाव हार गया.‘ उन की इस बात में दंभ झलकता है.

इधर जो बिडेन ने ट्रंप के कई फैसलों के विपरीत चुनावी वादे किए हैं, जिस में सब से खास यह कि नवंबर माह में यदि वे राष्ट्रपति चुनाव जीतते हैं तो वे भारतीय आईटी पेशेवरों के बीच सब से अधिक लोकप्रिय एच-1बी वीजा पर लागू अस्थायी निलंबन को खत्म कर देंगे.

उल्लेखनीय है कि ट्रंप प्रशासन ने 23 जून को भारतीय आईटी पेशेवरों को एक बड़ा झटका देते हुए एच-1बी वीजा और अन्य विदेशी कार्य वीजा को 2020 के अंत तक निलंबित कर दिया है.

ट्रंप का कहना है कि चुनावी साल में अमेरिकी कामगारों की सुरक्षा के लिए ऐसा किया गया है. ट्रंप के इस फैसले से भारतीय युवाओं में नाराजगी है.

जो बिडेन को बराक ओबामा का काफी समर्थन मिल रहा है. बराक ओबामा की मानें तो जो बिडेन के पास लंबा राजनितिक अनुभव और चरित्र है कि वे कोरोना काल के इस कठिन दौर में अमेरिका का मार्गदर्शन कर सकते हैं और लंबे समय तक उबरने के दौरान संकटमोचक हो सकते हैं.

बराक ओबामा कहते हैं, ‘मेरा विश्वास है कि राष्ट्रपति होने के लिए जो गुण होने चाहिए, वह सब अभी जो बिडेन में मौजूद हैं.‘

उधर डोनाल्ड ट्रंप जो एक बड़े बिजनेसमैन और दिग्गज प्रोपर्टी कारोबारी के बेटे हैं, अपनी दूसरी पारी के लिए लगातार जद्दोजेहद कर रहे हैं और हर उस कोशिश पर आमादा है, जिस से उन्हें दूसरा टर्म आसानी से मिल सके. ट्रंप इस बार अपने चुनावी कैंपेन पर 7,000 करोड़ रुपए तक खर्च कर सकते हैं.

चुनाव को ले कर उन की टीम युद्धस्तर पर तैयारियों में जुटी है. ट्रंप की चुनावी कैंपेनिंग के लिए बड़ी संख्या में टीशर्ट, तौलिए, बैनर और झंडों को तैयार किया जा चुका है. उन को अपने देश में व्यापारियों और दक्षिणपंथियों का जोरदार समर्थन मिल रहा है.

ट्रंप ये बात भलीभांति जानते हैं कि बतौर अमेरिकी राष्ट्रपति उन की छवि मीडिया में अच्छी नहीं रही है. गौरतलब है कि अमेरिकी मीडिया अभी भी काफी हद तक अपनी आजादी बचाए हुए है. वो सत्ता के हाथों बिका नहीं है.

अमेरिकी मीडिया लगातार ट्रंप प्रशासन की खामियां उजागर करता रहा है और राष्ट्रपति ट्रंप के बारे में ऐसा लिखता रहा है, जिस से ट्रंप की छवि लगातार गिरती आई है. इन में वाशिंगटन पोस्ट द्वारा ट्रंप को झूठा करार दिया जाना प्रमुख है. इस के अलावा 27 अमेरिकी मनोवैज्ञानिकों द्वारा उन्हें ऊलजुलूल बयान देने के लिए पागल तक करार दिया जाना भी प्रमुख है.

ये तमाम बातें ट्रंप को बतौर लीडर पुनः स्थापित करने की राह में बड़ा रोड़ा बन सकती हैं. ध्रुवीकरण की राजनीति करने वाले डोनाल्ड ट्रंप काले और गोरों का भेद बढ़ा कर चुनाव जीत पाएंगे या कोरोना वायरस फैलाने का आरोप चीन के सिर मढ़ कर उस के प्रति बारबार अपना गुस्सा जाहिर कर के, धमकियां दे कर खुद को बहुत बड़ा राष्ट्रवादी घोषित कर के या विश्व स्वास्थ संगठन पर चढ़ाई कर के चुनावी वैतरणी पार कर लेंगे, ऐसा लगता तो नहीं है.

 

घर का न घाट का-भाग 1: सुरेश की मां क्या चाहती थी?

सुरेश क्लीवलैंड की एक एयरकंडीशनिंग फर्म में इंजीनियर था. अमेरिका में रहते उसे करीब 7 साल हो गए थे. वेतन अच्छा था. जल्दी ही उस ने जीवन की सभी सुविधाएं जुटा लीं. घर वालों को पैसे भी भेजने लगा. आनेजाने वालों के साथ घर वालों के लिए अनेक उपहार जबतब भेजता रहता.

लेकिन न वह स्वदेश आ कर घर वालों से मिलने का नाम लेता और न ही शादी के लिए हामी भरता. उस के पिता अकसर हर ईमेल में किसी न किसी कन्या के संबंध में लिखते, उस की राय मांगते, पर वह टाल जाता. बहुत पूछे जाने पर उस ने साफ लिख दिया कि मुझे अभी शादी नहीं करनी. 8वें साल जब उस के पिता ने बारबार लिखा कि उस की मां बीमार रहती है और वह कुछ दिन की छुट्टी ले कर घर आ जाए तो वह 6 माह की छुट्टी ले कर स्वदेश की ओर चल पड़ा.

घर वालों की खुशी का ठिकाना न रहा. कई रिश्तेदार हवाईअड्डे पर उसे लेने पहुंचे. मातापिता की आंखें खुशी से चमक उठीं. सुरेश लंबा तो पहले ही था, अब उस का बदन भी भर गया था और रंग निखर आया था. घर वालों व रिश्तेदारों के लिए वह बहुत से उपहार लाया था. सब ने उसे सिरआंखों पर बिठाया. सुरेश की मां की बहुत इच्छा थी कि इस अवधि में उस की शादी कर दे. सुरेश ने तरहतरह से टाला, ‘‘बीवी को तो मैं अपने साथ ले जाऊंगा. फिर तुझे क्या सुख मिलेगा? क्लीवलैंड में मकान बहुत महंगे मिलते हैं. मैं तो सुबह 8 बजे का घर से निकला रात 10 बजे काम से लौट पाता हूं. वह बैठीबैठी मक्खियां मारेगी.’’ पर मां ने उस की एक नहीं सुनी. छोटे भाईबहन भी थे. आगे का मलबा हटे तो उन के लिए रास्ता साफ हो.

सुंदर कमाऊ लड़का देख कर कुंआरी कन्याओं के पिता ने पहले ही चक्कर काटने आरंभ कर दिए थे. जगहजगह से रिश्तेदारों की सिफारिशें आने लगीं. दबाव बढ़ने लगा, खाने की मेज पर शादी के लिए आए प्रस्तावों पर विचारविमर्श होता रहता. सुरेश को न कोई लड़की पसंद आती थी, न कोई रिश्ता. हार कर उस के पिता ने समाचारपत्र में विज्ञापन और इंटरनैट में एक मैट्रीमोनियल साइट पर सुरेश का प्रोफाइल डाल दिया. चट मंगनी, पट ब्याह वाली बात थी. दूसरे ही दिन ढेर सारे फोन और ईमेल आने लगे. उन बहुत सारे ईमेल और फोन में सुरेश ने 3 ईमेल को शौर्टलिस्ट किया. इन तीनों लड़कियों के पास शिक्षा की कोई डिगरी नहीं थी. वे बहुत अधिक संपन्न घराने की भी नहीं थीं. इन के परिवार निम्नमध्यवर्ग से थे.

घर वाले हैरान थे कि इतना पढ़ालिखा, काबिल लड़का और इस ने बिना पढ़ीलिखी लड़कियां पसंद कीं. फिर कोई ख्यातिप्राप्त परिवार भी नहीं कि दहेज अच्छा मिले या वे लोग आगे कुछ काम आ सकें. पर क्या करते? मजबूरी थी, शादी तो सुरेश की होनी थी. तीनों लड़कियों को देखने का प्रोग्राम बनाया गया. एक लड़की बहुत सुंदर थी, पर छरहरे बदन की थी. दूसरी लड़की का रंग सांवला था, पर नैननक्श बहुत अच्छे थे. स्वास्थ्य सामान्य था, तीसरी लड़की का रंगरूप और स्वास्थ्य भी बहुत अच्छा था.

सुरेश ने तीसरी लड़की को ही पसंद किया. घर वालों को उस की पसंद पर बड़ा आश्चर्य हुआ. शिक्षादीक्षा के संबंध में सुरेश ने दोटूक उत्तर दे दिया, ‘‘मुझे बीवी से नौकरी तो करानी नहीं. मैं स्वयं ही बहुत कमा लेता हूं.’’ रंगरूप के संबंध में उस की दलील थी, ‘‘मुझे फैशनपरस्त, सौंदर्य प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाली गुडि़या नहीं चाहिए. मुझे तो गृहस्थी चलाने के लिए औरत चाहिए.’’ सुनने वालों की आंखें फैल गईं. कितना सुंदर, पढ़ालिखा, ऊंचा वेतन पाने वाला लड़का और कैसा सादा मिजाज. दोचार हमजोलियों ने मजाक में अवश्य कहा कि यह तो चावल में उड़द या गिलट में हीरा जड़ने वाली बात हुई. पर जिसे पिया चाहे  ही सुहागिन.

लड़की वालों की तो जैसे लौटरी खुल गई थी. घर बैठे कल्पना से परे दामाद जो मिल गया था. वरना कहां सुदेश जैसी मिडिल पास, साधारण लड़की और कहां सुरेश जैसा सुंदर व सुसंपन्न वर. शादी धूमधाम से हुई. सुरेश और सुदेश हनीमून के लिए नैनीताल गए. एक होटल में जब पहली रात आमोदप्रमोद के बाद सुरेश सो गया तो सुदेश कितनी ही देर तक खिड़की के किनारे बैठी कभी झील में उठती लहरों की ओर, कभी आसमान के तारों को निहारती रही. उस के हृदय में खुशी की लहरें उठ रही थीं और उसे लग रहा था कि जैसे आसमान के सारे सितारे किसी ने उस के आंचल में भर दिए हैं. फिर वह लिहाफ उठा कर सुरेश के पैरों की तरफ लेट गई. सुरेश के पैरों को छाती से लगा कर वह सो गई.

15दिन जैसे पलक झपकते बीत गए. सुबह नाश्ता कर के हाथ में हाथ डाले नवदंपती घूमने निकल जाते. शाम को वे अकसर नौकाविहार करने या पिक्चर देखने चले जाते. सोने के दिन थे और चांदी की रातें. सुदेश को कभीकभी लगता कि यह सब एक सुंदर सपना है. वह आंखें फाड़फाड़ कर सुरेश को घूरने लगती. उस की यह दृष्टि सुरेश के मर्मस्थल को बेध देती. वह गुदगुदी कर के या चिकोटी काट कर उसे वर्तमान में ले आता. सुदेश उस की गोद में लेट जाती. सुरेश की गरदन में दोनों बांहें डाल कर दबे स्वर में पूछती, ‘‘जिंदगीभर मुझे ऐसे ही प्यार करते रहोगे न?’’ और सुरेश अपने अधर झुका कर उस का मुंह बंद कर देता, ‘‘धत पगली,’’ कह कर उस के आंसू पोंछ देता.

खेती में काम आने वाली खास मशीनें

फसल की कटाई का ज्यादातर काम हंसिए से किया जाता है. एक हेक्टेयर फसल की एक दिन में कटाई के लिए 20-25 मजदूरों की जरूरत पड़ती है. फसल पकने के बाद के कामों में लगने वाले कुल मजदूरों का 65-75 फीसदी, फसलों की कटाई और बाकी उन्हें इकट्ठा करने, बंडल बनाने, ट्रांसपोर्ट व स्टोर वगैरह में खर्च होता है. इन सभी कामों को पूरा करने में फसल को कई तरह के नुकसान भी होते हैं.

अगर फसल की कटाई समय पर न की जाए तो नुकसान और भी बढ़ सकता है. कटाई से जुड़ी मशीनों के इस्तेमाल से मजदूरों की कमी को पूरा किया जा सकता है और इस से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है. फसल कटाई की एक खास मशीन वर्टिकल कनवेयर रीपर है.

फसल कटाई यंत्र रीपर

फसलों की कटाई करने के लिए वर्टिकल कनवेयर रीपर बहुत ही कारगर मशीन है. इस के द्वारा कम समय में ज्यादा फसल कम खर्च पर काटी जा सकती है. मजदूरों की बढ़ती परेशानी के चलते यह वर्टिकल कनवेयर रीपर और भी कारगर साबित हो रहा है.

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ट्रैक्टर से चलने वाले इस रीपर की अपनी कुछ खासीयतों के चलते यह दूसरी कटाई मशीनों से अलग है. इस मशीन से फसलों की बाली मशीन के संपर्क में नहीं आती. इस से फसल के टूटने से होने वाला नुकसान कम होता है. यह रीपर कटाई के बाद फसलों को एक दिशा में लाइन में रखता है, जिस से फसलों को इकट्ठा करना व बंडल बनाना आसान हो जाता है.

इस मशीन को ट्रैक्टर के द्वारा जरूरत के मुताबिक ऊपरनीचे किया जा सकता है. खड़ी फसल को एक सीध में पंक्ति बना कर रखा  जाता है और स्टार ह्वील फसलों को कटरबार की तरफ ढकेलता है. उस के बाद कटरबार खड़ी फसल की कटाई कर देता है.

रीपर का इस्तेमाल उन्हीं फसलों की कटाई के लिए किया जाता है, जिन के बीच में कोई दूसरी फसल न बोई गई हो. कटाई के बाद बैल्ट कनवेयर की मदद से कटी फसल को मशीन की दाहिनी दिशा में ले जाया जाता है. उसे लाइन से मशीन की दिशा में जमीन पर रखता जाता है.

आमतौर पर एक हेक्टेयर गेहूं की फसल की एक घंटे की कटाई व मढ़ाई के लिए 48 मजदूरों की जरूरत होती है, जबकि वर्टिकल कनवेयर रीपर द्वारा इस काम के लिए 3-4 मजदूरों की ही जरूरत होती है. इस के इस्तेमाल से किसान फसलों से भूसा भी हासिल कर सकते हैं, जबकि कंबाइन से कटाई के बाद भूसा नहीं मिलता है. किसान इसे अपना कर समय, पैसा और ऊर्जा की बचत कर सकते हैं.

रीपर का रखरखाव

अगर रीपर चलाने में परेशानी हो तो रीपर के कटरबार पर लंबाई के मुताबिक वजन कम होना चाहिए. छुरी पैनी न हो, तो उन्हें पैना करवाना चाहिए या बदल कर नया लगाना चाहिए. अगर रीपर से कटाई एकजैसी नहीं हो रही हो तो यह देखना चाहिए कि लेजर प्लेट कहीं से टूटी तो नहीं है. और अगर ऐसा है तो प्लेट बदल देनी चाहिए. मशीन को चलाते समय सभी नटबोल्ट अच्छी तरह से कसे होने चाहिए व दोनों कनवेयर बैल्ट और स्टार ह्वील आसानी के साथ बिना रुकावट के चलना चाहिए.

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मशीन के सभी घूमने वाले भागों में अच्छी तरह से ग्रीस या तेल डालते रहना चाहिए. छुरों के धार को समयसमय पर तेज करते रहना चाहिए. खेत में काम पूरा करने के बाद कटरबार की सफाई करना बहुत जरूरी होता है. मशीन के काम करते समय इस के नजदीक किसी भी इनसान को नहीं होना चाहिए, वरना दुर्घटना घट सकती है.

कल्टीवेटर

कल्टीवेटर खेती की बहुत ही कारगर मशीन है. नर्सरी की तैयारी के बाद या खेत में फसल बोने से ले कर कटाई के समय तक के सभी काम जल्दी और आसानी से कल्टीवेटर करता है.

कल्टीवेटर का इस्तेमाल लाइन में बोई गई फसलों के लिए ही होता है. यह निराई करने की खास मशीन है. पावर के आधार पर कल्टीवेटर हाथ से चलाने वाला, पशु चलित व ट्रैक्टर  से चलने वाले होते हैं. बनावट के आधार पर खुरपादार, तवेदार और सतही कल्टीवेटर इस्तेमाल में लाए जाते हैं.

ट्रैक्टर से चलने वाले कल्टीवेटर कमानीदार, डिस्क व खूंटीदार होते हैं. इस की लंबाई व चौड़ाई घटाईबढ़ाई जा सकती है. इस मशीन में एक लोहे के फ्रेम में छोटेछोटे नुकीले खुरपे लगे होते हैं, जो कि निराई का काम करते हैं. निराई के अलावा कल्टीवेटर जुताई व बोआई के लिए तभी किया जाता है, जब खेत अच्छी तरह जुता हुआ हो. कल्टीवेटर से निराई का काम करने के लिए फसलों को लाइन में बोना जरूरी होता है.

लाइनों की चौड़ाई के मुताबिक कल्टीवेटर के खुरपों की दूरी को कम या ज्यादा किया जा सकता है. कल्टीवेटर से काम करने के लिए 2 आदमियों की जरूरत पड़ती है, फिर भी इस के इस्तेमाल से समय, पैसा व मजदूरी की बचत होती है.

कल्टीवेटर का काम

खेत में छिटकवां विधि से बीज बोने के बाद कल्टीवेटर से हलकी जुताई कर दी जाती है, जिस से बीज कम समय में मिट्टी

में मिल जाते हैं. जो फसल लाइनों में तय दूरी पर बोई जाती है, उन की निराईगुड़ाई करने के लिए कल्टीवेटर बड़े काम का है.

गन्ना, कपास, मक्का वगैरह की निराईगुड़ाई कल्टीवेटर के खुरपों की दूरी को कम या ज्यादा कर के या 1-2 खुरपों को निकाल कर की जाती है.

जुते हुए खेतों में कल्टीवेटर का इस्तेमाल करने से खेत की घास खत्म होती है. मिट्टी भुरभुरी हो जाती है व मिट्टी में नीचे दबे हुए ढेले ऊपर आ कर टूट जाते हैं.

कल्टीवेटर पर बीज बोने का इंतजाम कर के गेहूं जैसी फसलों को लाइन में बोया जा सकता है. इस में 3 या 5 कूंड़े एकसाथ बोए जाते हैं और देशी हल के मुकाबले कई गुना ज्यादा काम होता है.

खेत में गोबर या कंपोस्ट वगैरह खाद बिखेर कर कल्टीवेटर की मदद से उसे मिट्टी में अच्छी तरह से मिलाया जा सकता है.

मेंड़ों पर मिट्टी चढ़ाने के लिए कल्टीवेटर की बाहर की 2 शावल निकाल कर उन की जगह पर हिलर्स यानी रिजर के फाल का आधा भाग लगा दिए जाते हैं.

शावल अलग कर के हिलर जोड़ने से कल्टीवेटर पीछे की ओर एक मेंड़ बनाता हुआ चलता है. मेंड़ की मोटाई कल्टीवेटर की चौड़ाई घटानेबढ़ाने से कम या ज्यादा की जा सकती है. आलू व शकरकंद जैसी फसलों की मेंड़ इस की मदद से बनाई जा सकती है.

फसल बोने के बाद ही बारिश हो जाती है तो 3 से 5 सैंटीमीटर की गहराई तक कल्टीवेटर की मदद से पपड़ी तोड़ी जा सकती है.

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इस्तेमाल का तरीका

कल्टीवेटर टाइनों के बीच की दूरी छेदों पर टाइन कैरियर की बोल्ट को कस कर हासिल की जाती है. ये छेद मुख्य फ्रेम में एक इंच के अंतर पर होते हैं. हर टाइन में एक बदलने के लिए खुरपा लगा होता है, जो टाइन में 2 बोल्ट से कसा होता है. जब खुरपा बिलकुल घिस जाए, तो खुरपे को पलट दें या नया लगाना चाहिए.

कल्टीवेटर का रखरखाव

कल्टीवेटर के सभी नटबोल्टों की जांच करते रहना चाहिए, जिस से वे हमेशा कसे रहें. रोज काम खत्म करने के बाद मशीन की सतहों पर ग्रीस लगाना चाहिए, जिस से कल्टीवेटर में जंग न लगने पाए. जो पार्ट काम के दौरान घिस  गए हैं या खराब हो गए हैं, उन को बदल देना चाहिए. पार्ट हमेशा भरोसेमंद कंपनी व दुकानदार से जांचपरख के बाद ही लेना चाहिए.

इस्तेमाल के दौरान एहतियात

बोआई करते समय फालों के बीच एक तय दूरी होनी चाहिए और फालों की गहराई भी बराबर होनी चाहिए. बीज बोने वाला इनसान होशियार होना चाहिए. खेत की तैयारी करते समय लाइनों के बीच की दूरी इतनी ज्यादा नहीं होनी चाहिए कि खेत बिना जुता हुआ रहे.

खाद डालते समय यह जरूर ध्यान रखना चाहिए कि खाद सूखी व भुरभुरी है या नहीं. अगर भुरभुरी न हो तो उसे सुखा लेना चाहिए. खाद डालने के लिए मशीन में लगने वाले भाग में प्लास्टिक का इस्तेमाल करना चाहिए. मशीन में निराईगुड़ाई करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि लाइनों में बोए हुए पौधे खराब न हों.

मानसून स्पेशल: बच्चों को बेहद पसंद आएगी बेसन से बनीं ये 3 डिश, आज ही करें ट्राय

बेसन का प्रयोग कई प्रका के मीठे और नमकीन व्यंजनों में किया जाता है. इस का स्वाद बच्चों और बड़ों सभी को खूब भाता है. पेश है बेसन से बनी कुछ ऐसी डिशेज जिन्हें आप बारबार बनाना चाहेंगी.

1 इडली ढोकला

सामग्री :

1 कप बेसन, 2 बड़े चम्मच बारीक सूजी, 3/4 छोटा चम्मच नमक, 1 बड़ा चम्मच चीनी, 1 छोटा चम्मच अदरक हरीमिर्च पेस्ट, 1/2 छोटा चम्मच साइट्रिक एसिड, 1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर, 1 बड़ा चम्मच रिफाइंड औयल, 1 कप गुनगुना पानी और 1 सैशे ईनो फ्रूट सौल्ट.

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तड़के की सामग्री :

1 छोटा चम्मच राई, चुटकीभर हींग पाउडर, 10-12 करीपत्ता, 2 बड़े चम्मच चीनी, 1 छोटा चम्मच नीबू का रस, 2 साबुत हरीमिर्च बीच से कटी हुई, और 3/4 कप पानी व 1 बड़ा चम्मच रिफाइंड औयल.

विधि :

बेसन में सूजी, नमक, हलदी पाउडर, साइट्रिक एसिड डाल कर छलनी से छान लें. इस में अदरक, हरीमिर्च पेस्ट और चीनी डालें. धीरेधीरे कर के गुनगुना पानी मिक्स करें. मिश्रण पकौड़े की तरह हो जाना चाहिए. इडली स्टैंड में पानी डाल कर गरम करें और इडली मोल्ड में चिकनाई लगा दें. अब मिश्रण में रिफाइंड औयल डालें व बाद में ईनो डाल कर हलके हाथों से मिक्स करें. इडली के सांचों में मिश्रण डालें व लगभग 10 मिनट पकाएं. कांटे से चैक कर लें. थोड़ा ठंडा हो जाने पर बेसनी इडली को निकाल लें.

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एक अलग सौसपैन में रिफाइंड औयल गरम कर के हींग, राई और करीपत्ते का तड़का लगाएं. इस में बीच से कटी हरीमिर्च डालें और पानी डाल कर उबालें. पानी में चीनी डाल दें ताकि घुल जाए. इस तड़के वाले पानी में नीबू का रस व चुटकीभर नमक डाल दें. धीरेधीरे इस पानी को इडलियों पर डालें. 1 घंटे बाद सर्व करें.

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2 बेसनी भुर्जी

सामग्री :

1-1 नग लाल, पीली, हरी शिमलामिर्च मीडियम आकार की, 1/2 कप मोटा बेसन, 1/4  कप बारीक कटा प्याज, 2 छोटे चम्मच बारीक कटी अदरक व हरीमिर्च, 1/2 छोटा चम्मच जीरा, 1/2  छोटा चम्मच हलदी पाउडर, 1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर, 1 छोटा चम्मच सौंफ पाउडर, 1 छोटा चम्मच अमचूर पाउडर, 1/2 छोटा चम्मच पिसी लालमिर्च, नमक स्वादानुसार और 1 बड़ा चम्मच सरसों का तेल.

विधि :

तीनों प्रकार की शिमला मिर्चों को धो व पोंछ कर छोटे क्यूब में काटें. बीज निकाल दें. एक नौनस्टिक पैन में तेल गरम कर के प्याज, अदरक, हरीमिर्च पारदर्शी होने तक भूनें. फिर सभी सूखे मसाले, बेसन और नमक डाल कर गैस पर हलकी आंच पर 1 मिनट भूनें.

तीनों प्रकार की शिमलामिर्च डाल कर चलाते रहें. गैस धीमी कर दें. पैन ढक्कन से ढक दें. बीचबीच में चलाती रहें. लगभग  5-7 मिनट में बेसनी भुर्जी तैयार हो जाएगी. परांठे या रोटी किसी के साथ भी खाएं.

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3 बेसनी काजू

सामग्री :

1 कप बारीक बेसन, 1/4 कप मैदा, 1 छोटा चम्मच अजवायन, 1/4 छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर, 1/2 छोटा चम्मच नमक, 1/2 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर और 1 बड़ा चम्मच मोयन के लिए घी, तलने के लिए रिफाइंड औयल.

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विधि :

बेसन, मैदा में बेकिंग पाउडर और नमक डाल कर छानें. इस में मोयन का घी, अजवायन और कालीमिर्च पाउडर मिला कर गुनगुने पानी से सख्त आटा गूंध लें. ढक कर 20 मिनट रख दें फिर उस की मोटीमोटी 2 लोई बना कर मोटीमोटी रोटी बेल लें. एक छोटी शीशी के ढक्कन से अर्धचंद्राकार काटें. गैस पर मध्यम आंच पर तलें. बेसन के स्वादिष्ठ काजू तैयार हैं.

घर का न घाट का-भाग 4 : सुरेश की मां क्या चाहती थी?

सतवंत ने अनुमान लगाया कि वह झील में डूब कर आत्महत्या करने जा रही है. उस ने अधिक पूछताछ न कर के टैक्सी का पीछे का द्वार खोल कर एक प्रकार से जबरन सुदेश को भीतर ढकेल दिया. अपने डेरे पर पहुंच कर सुदेश को सब तरह से तसल्ली दे कर उस की आपबीती सुनी. सुदेश ने जब कहना बंद किया तो सतवंत सिंह की आंखें नम हो चुकी थीं. 3 साल पहले उस की अपनी सगी बहन सुरेंद्र कौर को भी कोई डाक्टर इसी प्रकार ब्याह कर ले आया था. बहुत दिनों बाद बहन ने जैसेतैसे किसी प्रकार फोन किया थी. पर जब तक सतवंत यहां तक पहुंचने का जुगाड़ कर पाया, वह जीवन से तंग आ कर आत्महत्या कर चुकी थी. उस ने ऐसे कितने ही किस्से सुनाए कि किस प्रकार प्रवासी भारतीय छुट्टियों में देश जाने पर विवाहित होते हुए भी दूसरी शादी कर लेते हैं. कोईकोई तो मोटा दहेज भी समेट लेते हैं. उस लड़की को फिर रखैल की तरह रख लेते हैं. पतिव्रता भारतीय स्त्री पति को सबकुछ मानने वाली, रोधो कर जिंदगी से समझौता कर लेती है. जिस हाल में पति रखे, उसी में खुश रहने की कोशिश करती है. कुछ तो इतने नीच होते हैं कि अपनी पत्नी को बेच तक डालते हैं.

अकसर ऐसी शादियां चटपट हो जाती हैं. लड़के की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का स्वदेश में किसी को पता नहीं रहता. जैसा कह दिया वैसा मान लिया. लड़कियों को भी विदेश घूमने का चाव रहता है. इस से अभिभावक का बोझ सहज ही हलका हो जाता है. कन्या के साथ क्या बीत रही है, कौन देखने आता है, किस को खबर मिलती है? सतवंत ने सुदेश के आंसू पोंछे. वह सतवंत से भारत पहुंचा दिए जाने की जल्दी कर रही थी, पर सतवंत ने कहा कि अपराधी को भी तो कुछ दंड मिलना चाहिए. उस ने अपने जानपहचान के एक वकील से सलाह की. तदानुसार उस ने सुदेश के घर फोन कर शादी पर छपे निमंत्रणपत्र की तथा शादी में खिंचे सभी फोटोग्राफों की प्रतियां मंगाईं. वकील के माध्यम से ये सब चीजें सूजेन के पिता को दिखाई गईं. वह करोड़पति एकदम भड़क गया.

सुरेश से बात करने से पहले उस ने सुरेश और सुदेश के कुछ युगल चित्र सूजेन को दिखाए. शादी के फोटो सूजेन गंभीरता से देखती रही. शायद वह उसे कोई धार्मिक रीतिरिवाज समझ रही थी. वरवधू के वेश में सुरेश व सुदेश ठीक से पहचाने भी नहीं जा रहे थे. पर नैनीताल के फोटो देख कर तो सूजेन एकदम बिदक गई. कहीं झील में नाव पर, कहीं पहाड़ी की चोटी पर, कहीं जुल्फें संवारते हुए, कहीं शरारत से मुसकराते हुए, चित्रों से दिलों की धड़कनें साफ सुनाई पड़ रही थीं. इन चित्रों में सुदेश को सूजेन ने पहचान लिया. घर पहुंचते ही उस ने सुरेश की खबर ली, ‘‘तुम तो उसे नौकरानी बताते थे. क्या तुम ने उस से शादी नहीं की है? तुम ने ऐसा क्यों किया? आखिर मुझ में क्या कमी थी? क्या मैं सुंदर नहीं थी? क्या मुझे सलीका नहीं आता था? क्या मैं कम पढ़ीलिखी थी? क्या नहीं था मुझ में? तुम्हें नौकरी दिलाई. फ्लैट का मालिक बनवाया. गाड़ी दिलाई. क्या नहीं दिया? लेकिन तुम…तुम…’’ और उस ने गुस्से में गालियां बकनी आरंभ कर दीं.

सुरेश ने समझाने की बहुत कोशिश की, पर उस रात सूजेन ने शयनकक्ष के दरवाजे नहीं खोले. स्टोर में जहां सुदेश रात काटती थी, वहीं उसे भी करवटें बदलनी पड़ीं. वह बहुत परेशान था. सुदेश गायब हो चुकी थी. वह अब कहां है, उसे इस बारे में कोई पता नहीं. हवाईअड्डे पर उस ने हुलिया लिखा दिया. यह तो वह जान चुका था कि अभी वह वहीं अमेरिका में है. वैसे उस का जाना भी मुश्किल था. उस के पास किराए के पैसे कहां थे. न ही वह कुछ तौरतरीका जानती है. पर आखिर सूजेन को किस ने भड़का दिया? वह कुछ तालमेल नहीं बैठा पा रहा था. सुदेश के गायब हो जाने की उसे इतनी चिंता नहीं थी जितनी सूजेन के ऐंठ जाने की. सोने का अंडा देने वाली मुरगी यदि किनारा कर गई तो? सुदेश के बारे में उसे लगता था कि वह रेल या ट्रक से कहीं मरकट गई होगी या उस ने किसी प्रकार से आत्महत्या कर ली होगी. उसे तो सूजेन की चिंता थी. अगले दिन कंपनी के डायरैक्टर और सूजेन के पिता ने उसे अपने कक्ष में बुलाया और स्पष्टीकरण देने के लिए कहा. सुरेश के चिंतित चेहरे को देख कर कोई भी सचाई का सहज अनुमान लगा सकता था. उस ने अपनी सफाई देते हुए कहा कि इस सारे कांड के पीछे कोई ऐसा आदमी है जो डराधमका कर अपना काम निकालना चाहता है. व्यवहारकुशल डायरैक्टर ने सुरेश को एक सप्ताह का समय दिया.

सुदेश का मन अमेरिका में बिलकुल नहीं लग रहा था. पर प्रश्न यह था कि वह घर जाने का साधन कैसे जुटाए. किस के साथ जाए? सहमतेसहमते उस ने सतवंत से अपना मंतव्य प्रकट किया. सतवंत को कोई आपत्ति नहीं थी. यहां का काम तो उस का वकील संभाल लेगा. उस की कोई विशेष आवश्यकता भी नहीं थी. केवल ठीक से पलीता लगाने की बात थी. वह काम हो ही चुका था. अब तो विस्फोट की प्रतीक्षा थी. पर सवाल यह था कि वह स्वदेश लौटे तो कैसे. सतवंत भी कोई धन्ना सेठ नहीं था. 3 साल में टैक्सी चला कर यहां जो कमाया था उस से टैक्सी खरीद ली थी. फक्कड़ आदमी था, मस्त रहता था. सुदेश ने जब अपने जेवर उस के सामने रखे तो वह उस की समझदारी का कायल हो गया, बोला, ‘‘देशी, तू ने तो पढ़ेलिखों के भी कान काट दिए.’’ वह सुदेश को ‘देशी’ कह कर पुकारता था. उसी प्रकार जैसे सूजेन सुरेश को ‘रेशी’ कह कर पुकारती थी. वहां ऐसी ही प्रथा थी. अधिक लाड़ में किसी को संबोधित करना होता था तो अंतिम 2 शब्दों पर ‘ई’ की मात्रा लगा दी जाती थी. सतवंत ने भी वतन लौटने का प्रोग्राम बना लिया. न्यूयौर्क में उस के कुछ जानकार लोग थे. टैक्सी और जेवर का ठीकठाक सौदा हो गया.

घर का न घाट का-भाग 3 : सुरेश की मां क्या चाहती थी?

उस की मुद्रा से लग रहा था कि वह सुरेश का मुंह नोच डालेगी. सुरेश उस के पास आ कर अपनी मजबूरी बताने लगा, ‘‘सूजेन के कारण ही मुझे अच्छी नौकरी मिली है. उस का बाप इस कंपनी का मालिक है. सूजेन उस की इकलौती बेटी है. वह सुंदर है, पढ़ीलिखी है. स्वयं भी उसी कंपनी में काम करती है. उसे तो मेरे जैसे कितने ही मिल जाते. परदेश में कौन किसे पूछता है?’’

सुदेश ने अपने पास आते हाथों को एक ओर झटक दिया और फुफकारती हुई बोली, ‘‘फिर दूसरा ब्याह रचने की क्या जरूरत थी? बीवी के बिना पलभर भी नहीं रहा जाता था तो इसे साथ ही देश ले जाते. वहां यह सब नाटक रचने की क्या जरूरत थी?’’ सुरेश ने समझाने की कोशिश की, ‘‘मैं ने इस शादी की किसी को खबर नहीं दी थी. घर वाले न जाने क्या सोचते? फिर वहां छोटे भाईबहनों के रिश्ते होने में दिक्कत आती. मांबाप की, खानदान की शान में बट्टा लगता. सूजेन को वहां कौन स्वीकार करता?’’ सुदेश भभक उठी, ‘‘अपने खानदान की इज्जत के लिए दूसरे की इज्जत पर डाका डालना कहां की भलमनसाहत है? छिपाए रखना था तो वहां कह देते कि मुझे शादी नहीं करनी. कोई जबरदस्ती तो तुम्हारे गले में अपनी लड़की बांध नहीं देता? तब तो अखबार में छपवाया था, दुनियाभर के सब्जबाग दिखाए थे…’’

सुरेश बोला, ‘‘मांबाप का दिल भी तो नहीं तोड़ा जा सकता था. वे हर मेल में एक ही रट लगाए रहते थे. इसीलिए मैं ने अधिक पढ़ीलिखी या ऊंचे परिवार की लड़की नहीं देखी.’’ सुदेश रोते हुए बोली, ‘‘पढ़ीलिखी होती तो कोर्टकचहरी जा कर ऐसीतैसी कर देती. अलग रह कर कमाखा तो सकती थी. ऊंचे खानदान की होती तो घर वाले जरा सी भनक पड़ते ही नाक में नकेल डाल देते. भोलेभाले गरीब लोगों को जाल में फंसा लिया.’’ सुरेश अपनी सफलता पर मंदमंद मुसकरा रहा था.

सुदेश फिर भड़की, ‘‘मेरी मां का माथा तो बारबार ठनकता था कि  इतने पढ़ेलिखे और कमाऊ लड़के को और कोई लड़की क्यों नहीं जंची. मां ने तो पिताजी से अमेरिका में किसी अपने के जरिए से तुम्हारी जांचपड़ताल कराने को भी कहा था. पर वे मामूली आदमी कहां से पता लगाते? कोई बड़ा आदमी होता तो घर बैठे सारी असलियत मालूम कर लेता.’’ सुरेश ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘जो हो गया सो हो गया. अब गुस्सा छोड़ो. जब देश चला करेंगे तब तुम मेरे साथ पत्नी के रूप में चला करोगी. यहां सूजेन मेरी पत्नी रहेगी.’’ सुदेश ने बौखला कर कहा, ‘‘फिर मुझे यहां किस लिए लाए हो? सचाई पता नहीं चलती तो मैं वहीं तुम्हारे नाम की माला जपती रहती. यहां तो पलपल तड़पती रहूंगी और करूंगी भी क्या?’’

सुरेश आपे से बाहर होता हुआ बोला, ‘‘तुम मकान की सफाई करोगी, खाना पकाओगी, बरतन धोओगी, कपड़े साफ करोगी, प्रैस करोगी. सभी काम करोगी.’’

सुदेश बोली, ‘‘तब तो देश से एक नौकरानी ले आते. तुम ने मेरे साथ शादी का ढोंग क्यों रचा?’’

सुरेश कड़वा सा मुंह बना कर बोला, ‘‘वास्तव में नौकर की ही जरूरत थी. यहां नौकर मिलते नहीं. मिलते हैं तो बहुत महंगे. फिर भरोसे के भी नहीं होते. हम दोनों काम करते हैं, घर की देखभाल कौन करे?’’ सुदेश फफकफफक कर रोने लगी, ‘‘मुझे मेरे घर वापस पहुंचा दो. मेरा टिकट कटा दो. मैं यहां नहीं रहूंगी.’’

सुरेश मुसकराता हुआ बोला, ‘‘अब तुम कभी नहीं लौट पाओगी. टिकट कटाना इतना आसान नहीं. हजारों रुपया किराया लगता है. कम पढ़ीलिखी, साधारण पर स्वस्थ लड़की मैं ने इसीलिए तो छांटी थी. फिर तुम्हें तकलीफ क्या है? अच्छा खाओ, अच्छा पिओ. सूजेन की अनुपस्थिति में तो तुम ही मेरी बीवी रहोगी.’’ सुदेश स्वयं को बहुत मजबूर महसूस कर रही थी. झल्ला कर बोली, ‘‘तुम सूजेन को छोड़ नहीं सकते? उसे तलाक दे दो.’’

सुरेश बोला, ‘‘अपनी औकात में रहो. सूजेन को छोड़ कर यहां क्या घास खोदूंगा. उसी के बूते पर तो सब ठाटबाट हैं.’’

सुदेश सिर थाम कर बैठ गई. अगले दिन से उसे घर के कामधंधे में जुटना पड़ा. सुरेश और सूजेन सुबह 8 बजे काम पर निकल जाते. सुदेश को घर में ताले में बंद कर जाते. शाम को लौटते. सुरेश ने सूजेन को सुदेश के संबंध में बताया था कि कामकाज के लिए नौकरानी लाया हूं. वह उसी लहजे में सुदेश से बात करती. बातबात पर गाली दे कर डांटती. रात को वे दोनों शयनकक्ष में रंगरेलियां मनाते और सुदेश रसोई के बराबर वाले स्टोर में सिकुड़ी, सिमटी आंसू बहाती हुई पड़ी रहती. एक बार उस ने घर से निकल भागने की कोशिश की, पर पकड़ी गई. सुरेश ने मारतेमारते अधमरा कर दिया. मुक्ति की कोई राह नहीं दिखती थी. किसी तरह घर से निकल भी पड़े तो जाए कहां? वैसे वह हरदम तैयार रहती थी. गरम कपड़ों के नीचे अपने सारे जेवर हर समय पहने रहती थी. अंत में एक दिन अवसर हाथ आ ही गया. सुरेश और सूजेन के विवाह की वर्षगांठ थी. 10 दंपती आमंत्रित थे. काफी रात तक खानापीना, नाचगाना, शोरशराबा चलता रहा. ऐसे में सुदेश का किस को ध्यान रहता. खिलानेपिलाने का काम निबटा कर वह चुपचाप निकल पड़ी.

रात के 12 बज रहे थे. रास्ता ठीक तरह मालूम नहीं था, फिर भी वह झील की तरफ चली जा रही थी. तभी एक टैक्सी पास से निकली और आगे जा कर रुक गई. सुदेश के प्राण सूख गए. आकाश से गिरी, खजूर में अटकी. जाने अब क्या हो. कौन हो? कहीं सुरेश ही तो नहीं? सुरेश नहीं था. पर जो अजनबी था वह बहुत अपना सा लग रहा था. चेहरा दाढ़ीमूंछ में छिपा था, पर ईमानदारी, भोलापन, सच्चरित्रता आंखों से छलकी पड़ रही थी. वह सरदार सतवंत सिंह टैक्सी ड्राइवर था. सुदेश ने परदेश में पहली बार किसी सरदार को देखा था. उसे लगा जैसे वह पंजाब में कहीं अपने गांव में खड़ी है. भारतीय स्त्री को देख कर सतवंत सिंह भी चौंका. वह उसे बेहद डरी हुई दिख रही थी.

Crime Story: लव मैरिज का कर्ज

सौजन्य- मनोहर कहनियां

अमित बाहर से आने वालों को वृंदावन घुमाता था. गौवर्धन की परिक्रमा कराता था, लेकिन महाराष्ट्र से आई मधु के प्यार में ऐसा पड़ा कि उस के साथ घर बसा लिया, अमित ने मधु से खुद को पैसे वाला बताया. इस का नतीजा तब सामने आया जब.

लौैकडाउन में जहां लोगों का बाहर निकलना प्रतिबंधित है वहीं अपराधियों के हौसले और भी बुलंदी पर हैं. लौकडाउन की वजह से लोग घर से बाहर न निकलने को मजबूर हैं, लेकिन ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो बिना निकले पेट नहीं पाल सकते. ऐसे ही लोगों में हैं अपराधी. दरअसल, अपराधियों की सोच यह होती है कि पुलिस तो कोरोना के चलते व्यवस्था ठीक करने में लगी है, क्यों न इस मौके का फायदा उठाया जाए.

जनपद मथुरा के राया कस्बे की परशुराम कालोनी में रहने वाले लेखपाल राजेंद्र प्रसाद की बीवी कुसुम घर के कामों में व्यस्त थीं. सुबह 11 बजे फुर्सत मिलने पर उन्हें घर के बाहर चबूतरे पर खेल रहे अपने 3 वर्षीय बेटे युवान उर्फ गोलू ॒की याद आई.

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वे उसे बुलाने घर के बाहर आईं. चबूतरे पर उन की दोनों बेटियां खेल रहीं थीं. उन्होंने पूछा, ‘‘गोलू कहां है.’’ इस पर बेटियों ने कहा, ‘‘हमें नहीं मालूम.’’

गोलू अक्सर पड़ौसी अमित के घर उन के बच्चे के साथ खेलने चला जाता था. यह सोच कर कि गोलू वहीं होगा. कुसुम अमित के घर पहुंची.

उन्होंने अमित की बीवी मधु से गोलू के बारे में पूछा  तो मधु ने बताया, गोलू व दोनों बहनें आईं थीं सभी बच्चे खेल कर चले गए. कुसुम ने घबराते हुए कहा, ‘‘गोलू कहीं दिखाई नहीं दे रहा. पता नहीं कहां चला गया है.’’

मधु ने कहा किसी के घर खेल रहा होगा. कुसुम ने उसे मौहल्ले में तलाश किया, लेकिन कोई पता नहीं लगा.

कुसुम ने यह जानकारी पति राजेंद्र को दी. राजेंद्र और पड़ौसी गोलू को मोहल्ले के साथसाथ कालोनी के आसपास भी तलाशने लगे. तभी कुसुम को घर के पास गोलू की चप्पलें मिल गईं. चप्पलों में एक पर्ची लगी थी. पर्ची में लिखा था, आप का बेटा सही सलामत है, 20 लाख रुपए ले कर हाथिया आ जाना.

पर्ची पढ़ते ही हड़कंप मच गया. बेटे के अपहरण से राजेंद्र और कुसुम का बुरा हाल था. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. यह 8 मई, 2020 की बात है.

सूचना पर थाना राया के थानाप्रभारी सूरजप्रकाश शर्मा मौके पर पहुंच गए. उन की सूचना पर एसपी देहात श्रीश चंद्र और सीओ (महावन)  विजय सिंह चौहान भी आ गए. पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण करने के साथ ही चप्पलों में लगी पर्ची भी कब्जे में ले ली.

पुलिस ने घटनास्थल से थोड़ी दूर लगे शिवकुमार लेखपाल के यहां के सीसीटीवी कैमरे की फुटेज भी खंगाली, लेकिन उस में कोई भी आताजाता नहीं दिखा. पुलिस ने गोलू के घरवालों के साथ मौहल्ले का एकएक घर छान मारा, लेकिन गोलू के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.  इस के बाद पिता राजेंद्र प्रसाद ने थाना राया में अज्ञात के विरूद्ध अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया.

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सर्विलांस टीम से भी मदद ली गई, लेकिन समस्या यह थी कि अपहरणकर्ताओं ने अभी तक बच्चे के घरवालों को फिरौती के लिए फोन नहीं किया था. घटना के बाद से पुलिस कई स्थानों पर दबिश भी दे चुकी थी.

लौकडाउन के कारण पुलिस ने राया से ले कर मथुरा एनएच-2 और एक्सप्रेस-वे तक को सील कर रखा था. ऐसे में बच्चे का अपहरण और फिरौती पुलिस के लिए चुनौती बन गई थी. क्योंकि गाड़ी में बच्चे को ले जाने के लिए पुलिस के हर बैरियर पर चैकिंग से गुजरना पड़ता था. इस के साथ ही एक्सप्रेस वे से ले कर एनएच-2 पर भी वाहन चैकिंग हो रही थी, वहां जा कर भी खोजबीन की गई. पुलिस ने लौकडाउन में ड्यूटी पर लगे पुलिसकर्मियों से भी पूछताछ की, लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात ही रहा.

गोलू के अचानक अपहरण हो जाने की खबर पूरी कालौनी में फैल चुकी थी. लौकडाउन होने के बावजूद तमाम पुरूष, महिलाएं व बच्चे राजेंद्र के घर पर जुटने लगे. सब की जुबान पर एक ही बात थी कि आखिर 3 साल के गोलू का अपहरण कौन कर ले गया? गोलू के अपहरण से मां कुसुम और दोनों बहनों का रोरो कर बुरा हाल था.

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थानाप्रभारी सूरजप्रकाश शर्मा ने राजेंद्र से पूछा, ‘‘तुम्हारी किसी से रंजिश वगैरह तो नहीं हैं? या तुम्हें किसी पर कोई शक है तो बताओ. राजेंद्र के इनकार करने पर थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘आप के पास अपहरणकर्ताओं का कोई फोन आए तो बताना.’’

कालोनी में बच्चे के अपहरण के बाद तरहतरह की चर्चाएं शुरू हो गई थी. पुलिस ही नहीं लोगों को डर सता रहा था कि लौकडाउन के चलते बदमाश फिरौती की रकम न मिलने पर कहीं बच्चे की हत्या न कर दें. गोलू के घरवालों की पूरी रात आंखों में कटी. घर में चूल्हा भी नहीं जला.

दूसरे दिन शनिवार की सुबह अपहर्त्ता लेखपाल राजेंद्र के बच्चे गोलू को कालोनी से 15 किमी दूर राया सादाबाद रोड पर गांव तंबका के पास छोड़ गए. ग्रामीणों को बालक रोता हुआ मिला. इस पर उन्होंने पुलिस को सूचना दी. सूचना पर पीआरवी 112 मौके पर पहुंची और गोलू को कब्जे में ले लिया. बालक की बरामदगी की सूचना जैसे ही घर वालों को मिली उन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

पुलिस ने गाड़ी भेज कर बच्चे के मातापिता को पुलिस चौकी बिचपुरी पर बुला लिया.

गोलू को देखते ही मां की आंखों से खुशी के आंसू छलक आए. मां की गोद में आते ही गोलू मां से लिपट गया.

उन्होंने उसे सीने से लगा लिया. बदमाशों ने 20 लाख की फिरौती मांगी थी, जो नहीं दी गई. जल्द ही बदमाशों को गिरफ्तार कर पूरे मामले कर खुलासा कर दिया जाएगा.

परशुराम कालोनी से राया सादाबाद रोड पर जाने के 3 रास्ते हैं. मुख्य मार्ग मांट रोड, फिर हाथरस रोड और फिर यहां से सीधा राया सादाबाद रोड है. इस दौरान रेलवे फाटक, नेहरू पार्क आदि स्थानों पर भी लौकडाउन के चलते पुलिस मौजूद रहती है.  यहां से राया सादाबाद रोड पर जाने के लिए 2 रास्ते और भी हैं. बच्चे के अपहरण के बाद पुलिस ने इन सभी रास्तों पर नाकेबंदी कर दी थी. इस के बावजूद बदमाशों ने सुबह 5 बजे तंबका गांव के मंदिर पर बालक को छोड़ दिया.

पुलिस इस क्षेत्र के आगे तथा पीछे मौजूद थी परंतु उसे बदमाशों की गतिविधि की भनक तक नहीं लग सकी थी. अपहर्त्ताओं ने बालक के अपहरण में चौपहिया वाहन का इस्तेमाल किया था. इस की पुष्टि बच्चे गोलू ने भी की. साथ ही बताया कि बदमाशों ने उस के सिर पर कपड़ा डाला और गाड़ी में ले गए.

सवाल यह था कि चौपहिया वाहन लौकडाउन के चलते इतनी दूर कैसे चला गया? बालक तो बरामद हो गया लेकिन सघन चैकिंग का दावा कर रही पुलिस बदमाशों को नहीं पकड़ सकी थी.

इस से पुलिस की किरकिरी हो रही थी. अपहरणकर्ताओं की चुनौती को पुलिस ने अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया. पुलिस अधिकारियों ने वारदात के तरीके से यह निष्कर्ष निकाला कि यह किसी संगठित गिरोह की गतिविधि नहीं थी. इसलिए पुलिस ने अब लेखपाल राजेंद्र के नजदीकी लोगों की छानबीन शुरू करने का निर्णय लिया.

पुलिस मान रही थी कि फिरौती के लिए जिन्होंने पर्ची लिखी, वे बहुत कम पढ़ेलिखे थे. क्योंकि पर्ची में पहले 10 और बाद में 20 लाख की फिरौती लिखी गई थी. एसपी देहात श्रीश चंद्र ने बताया कि इस संबंध में जहां लेखपाल के नजदीक रहे लोगों की जानकारी ले रहे हैं, वहीं मामले की जांच गहनता से फिर से की जाए. ताकि बच्चे के अपहर्त्ताओं तक पहुंचा जा सके.

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पुलिस ने गोलू की मां से पर्ची मिलने के बारे में पूछताछ की. उस से जानकारी मिली कि गोलू की चप्पलों को उठाते वक्त नीचे दबी फिरौती की पर्ची उड़ गई थी, उस समय उस ने गौर नहीं किया था. बाद में पर्ची पड़ौस में रहने वाले अमित की पत्नी मधु ने ला कर दी थी. इस पर पुलिस ने मधु से पूछताछ की, मधु इनकार करने लगी. मधु की हरकत से पुलिस को उस पर शक हो गया. पुलिस ने

12 मई को मधु को हिरासत में लेने के बाद उस से सख्ती से पूछताछ की.

इस पर मधु ने फिरौती की पर्ची कुसुम को देने की बात स्वीकार करते हुए गोलू के अपहरण में अपने पति अमित, सगे देवर विनय उर्फ वीनू तथा ममेरे देवर विशाल के शामिल होने की बात बताई.

पुलिस ने इस संबंध में अमित, मधु, विशाल निवासी तिरवाया, थाना राया को गिरफ्तार कर लिया. अमित का भाई  विनय  निवासी टोंटा, हाथरस फरार था. गिरफ्तार तीनों आरोपियों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. पूछताछ करने पर गोलू के अपहरण की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.—

अमित मैजिक चालक था. महाराष्ट्र की मधु नाइक मथुरा में गोवर्धन की परिक्रमा के लिए आई थी. अमित ने मधु को अपनी मैजिक में बैठा कर गोवर्धन की परिक्रमा कराई.

इस मुलाकात के बाद दोनों का झुकाव एकदूसरे के प्रति हो गया. बाद में उस ने 2015 में मधु से प्रेम विवाह कर लिया. उस ने मधु से खुद को बहुत पैसे वाला बताया था. जबकि वह टेंट की सिलाई का काम करने के साथ ही मैजिक भी चलाता था. शादी के बाद शानोशौकत में धीरेधीरे उस पर 5 लाख रुपए का कर्जा हो गया.

इस वारदात से 2 माह पहले ही अमित ने परशुराम कालोनी में रामबाबू का मकान किराए पर लिया था. इस से पहले वह भोलेश्वर कालोनी में किराए पर रहता था. वह मूल रूप से टोंटा, हाथरस का रहने वाला था. पड़ोसी होने के नाते गोलू व उस की बहनें उस के यहां खेलने आती थीं.

कर्जा चुकाने के लिए दंपति ने गोलू के अपहरण की साजिश रची थी. इस योजना में अमित ने पत्नी मधु के साथ ही अपने छोटे भाई विनय उर्फ वीनू व मामा के लड़के विशाल को भी शामिल कर लिया था. गोलू रोजाना की तरह 8 मई को भी अपनी 2 बहनों के साथ पड़ोसी अमित के घर खेलने आया था.

उस दिन दोनों बहनें घर के अंदर लूडो खेलती रहीं और योजना के मुताबिक मधु ने गोलू को अपने पति अमित के साथ मैजिक में बैठा दिया और कहा, ‘‘अंकल तुम्हें घुमाने ले जा रहे हैं. बच्चे को बहलाफुसला कर अमित गोलू को कच्चे रास्ते से होता हुआ छोटे भाई

वीनू के पास नगला टोंटा, हाथरस ले गया.  वहां वीनू को बच्चा देने के बाद कहा, ‘‘जब विशाल फोन करे बच्चे को तभी छोड़ना.’’

बच्चे के अपहरण के बाद पुलिस का दवाब बढ़ा तो अपहरणकर्ता डर गए. पकड़े जाने के भय से उन्होंने बालक को दूसरे दिन बिना फिरौती वसूले ही छोड़ दिया. यह बालक गांव तंबका के पास ग्रामीणों को रोता हुआ मिला था. एसएसपी डा. गौरव ग्रोवर ने प्रैस वार्ता में बताया, शादी के बाद अमित पर 5 लाख का कर्जा हो गया था उसे उतारने के लिए दंपति ने गोलू के अपहरण की साजिश रची थी.

पुलिस का दवाब बढ़ा तो इन लोगों ने बच्चे को अगले दिन ही सड़क पर छुड़वा दिया था. प्रोत्साहन के लिए वरिष्ठ अधिकारियों ने टीम में शामिल एसपी देहात श्रीश चंद्र, सीओ विनय चौहान, थानाप्रभारी सूरजप्रकाश शर्मा, स्वाट व सर्विलांस टीम को 50 हजार रुपए के इनाम की घोषणा की है. गिरफ्तार तीनों आरोपियों को पुलिस ने अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया.

दंपति का एक साल का बेटा भी उन के साथ जेल में है क्योंकि उस की सुपुर्दगी लेने वाला कोई नहीं था. जबकि चौथे आरोपी विनय उर्फ वीनू की पुलिस सरगर्मी से तलाश कर रही है. अपने को अमीर दिखाने के चक्कर में यदि अमित ने अपने सिर पर कर्ज का बोझ न चढ़ाया होता तो आज उस की हंसती खेलती जिंदगी होती लेकिन पैसे की झूठी शान दिखाने में उसे जुर्म का सहारा लेना पड़ा, जिस के चलते परिवार सहित जेल की हवा खानी पड़ी.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

घर का न घाट का-भाग 2 : सुरेश की मां क्या चाहती थी?

नैनीताल से लौटी तो सुदेश के चेहरे पर नूर बरस रहा था. तृप्ति का भी अपना अनोखा सुख होता है. सुरेश की छुट्टियां खत्म होने वाली थीं. सुदेश को वह अपने साथ विदेश ले जाना चाहता था. उस की मां ने दबी जबान से कहा, ‘‘बहू को साल 2 साल यहीं रहने दे. सालभर तक रस्मरिवाज चलते हैं. फिर हम को भी कुछ लगेगा कि हां, सुरेश की बहू आ गई,’’ पर सुरेश ने एक न मानी. उस का कहना था कि क्लीवलैंड में भारतीय खाना तो किसी होटल में मिलता नहीं. घर पर बनाने का उस के पास समय नहीं. पहले वह डबलरोटी, अंडे आदि से किसी प्रकार काम चला लेता था. पर जब सुदेश को अमेरिका में ही रहना है तो बाद में जाने से क्या फायदा? वहां के माहौल में वह जितनी जल्दी घुलमिल जाए उतना ही अच्छा.

वह सुदेश को साथ ले कर अमेरिका रवाना हो गया. जहाज जब बादलों में विचरने लगा तो सुदेश भी खयालों की दुनिया में खो गई. शादी के बाद वह जिस दुनिया में रह रही थी उस की उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. उस ने तो कभी जहाज में बैठने की भी कल्पना नहीं की थी. उस के परिवार में भी शायद ही कोई कभी जहाज में बैठा हो. नैनीताल का भी उस ने नाम ही सुना था. पहाड़ों को काट कर बनाए गए प्रकृति के उस नीरभरे कटोरे को उस ने आंखभर देखने के बारे में भी नहीं सोचा था. पर वहां उस ने जीवन छक कर जिया. वहां बिताए दिनों को क्या वह जीवनभर भूल पाएगी. पूरी यात्रा में वह तरहतरह की कल्पनाओं में खोई रही. वह स्वयं को धरती से ऊपर उठता हुआ महसूस कर रही थी.

सुरेश इस पूरी यात्रा में गंभीर बना रहा. सुदेश का मन करता कि वह उस का हाथ अपने हाथ में ले कर प्रेम प्रदर्शित करे, पर तमाम लोगों की उपस्थिति में उसे लाज लगती थी. यह नैनीताल के होटल का कमरा तो था नहीं. पर थोड़ी देर बाद ही उस का जी घबराने लगता था. उसे सुरेश अजनबी सा लगने लगता था. जहाज के बाद टैक्सी की यात्रा कर के अगली संध्या जब वे गंतव्य स्थान पर पहुंचे तो सुदेश का मन कर रहा था क वह सुरेश के कंधे पर सिर टेक दे और वह उसे बांहों का सहारा दे कर धीरेधीरे फ्लैट में ले चले. कड़ाके की सर्दी थी. सुदेश को कंपकंपी महसूस हो रही थी. पर सुरेश विचारों में खोया गुमसुम, सूटकेस लिए आगेआगे चला जा रहा था.

लौन पार कर के दरवाजे पर सुरेश ने घंटी दबा दी. सुदेश की समझ में नहीं आया कि जब वह यहां था नहीं, तो घर में कौन होगा. जरा देर में दरवाजा खुला. भूरे बालों और नीली आंखों वाली एक युवती दरवाजे पर खड़ी थी. सुरेश को देखते ही उस की आंखों में समुद्र हिलोरें लेने लगा. वह तपाक से बोली, ‘‘ओह, रेशी,’’ और उस ने आगे बढ़ कर सुरेश का मुंह चूम लिया. फिर बोली, ‘‘फोन क्यों नहीं किया?’’

सुदेश मन के कोर तक कांप गई.

सुरेश बोला, ‘‘तुम्हें आश्चर्य में डालने के लिए.’’

तभी उस युवती की निगाह सुदेश पर पड़ी, ‘‘यह कौन है?’’ वह विस्मित होती हुई बोली.

सुरेश एक क्षण रुक कर बोला, ‘‘एक और आश्चर्य.’’

तीनों ने भीतर प्रवेश किया. आंतरिक ताप व्यवस्था के कारण भीतर कमरा गरम था. सुरेश टाई की गांठ ढीली करने लगा. सुदेश सोफे में धंस गई. युवती कौफी बनाने रसोई में चली गई. सुरेश ने अर्थपूर्ण दृष्टि से सुदेश की ओर देखा. सुदेश के मुख पर सैकड़ों प्रश्न उभर रहे थे. सुरेश सीटी बजाता हुआ रसोई में चला गया. थोड़ी देर में वह 3 प्याले कौफी ले कर लौटा. पीछेपीछे वह युवती भी थी. कांपते हाथों से सुदेश ने प्याला पकड़ लिया. युवती और सुरेश सामने सोफे पर अगलबगल बैठ गए. वे अंगरेजी में बात कर रहे थे. सुदेश के पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा था. पर बातचीत करने में जिस बेतकल्लुफी से वह युवती सुरेश पर झुकी पड़ रही थी, उस से सुदेश के कलेजे की कोमल रग में टीस उठने लगी. वह सोफे पर ही एक ओर लुढ़क गई. सुरेश उठा. सुदेश की नब्ज देखी. पैर उठा कर सोफे पर फैला दिया. फिर उस ने एक गिलास में थोड़ी ब्रांडी डाली, पानी मिलाया, सुदेश का सिर, हाथ नीचे डाल कर ऊपर उठाया और गिलास मुंह से लगा दिया. अधखुली आंखों से सुदेश ने सुरेश को देखा. वह बोला, ‘‘थक गई हो. दवा है, फायदा करेगी.’’

दवा पी कर सुदेश निढाल हो कर लेट गई. सुरेश ने एक मोटा कंबल ला कर उसे ओढ़ा दिया. सुबह सुदेश की आंख काफी देर से खुली. उस ने इधरउधर देखा. वह रात को सोफे पर ही सोती रही थी. सुरेश का कहीं पता नहीं था. न ही कमरे में कोई अन्य बिस्तर था. वह रात की बात सोचने लगी. तभी सुरेश उस के लिए चाय ले कर आया. चाय की चुस्की ले कर सुदेश बोली, ‘‘वह लड़की कौन थी?’’

सुरेश बोला, ‘‘सूजेन.’’

सुदेश ने पूछा, ‘‘कहां गई?’’

सुरेश ने सहज ही उत्तर दे दिया, ‘‘काम पर.’’

सुदेश ने पूछा, ‘‘यहीं रहती है, तुम्हारे साथ?’’

सुरेश ने स्वीकारात्मक सिर हिला दिया.

सुदेश बोली, ‘‘कब से?’’

सुरेश कुछ सोच कर बोला, ‘‘पिछले 6 साल से.’’

सुदेश ने चौंकते हुए पूछा, ‘‘क्यों?’’

सुरेश बोला, ‘‘हम दोनों ने शादी कर ली थी.’’

सुदेश के हाथ से चाय का प्याला छूट गया. आश्चर्यचकित स्वर में मानो अपने कानों को झुठलाते हुए वह निराशा के पहाड़ को पलभर के लिए एक ओर सरका कर सारी जीवनशक्ति संचित कर के बोली, ‘‘शादी?’’ पत्थर बने सुरेश ने फिर स्वीकृति में सिर हिला दिया. सुदेश पर जैसे गाज गिर पड़ी हो. सपनों का ताजमहल टुकड़ेटुकड़े हो गया था. हंसती, गाती, नाचती हुई परी के जैसे किसी ने पंख काट दिए हों और वह पाताल की किसी कठोर चट्टान पर पड़ी छटपटा रही हो. षणभर ठगी सी रह जाने के बाद उस ने माथा पीट लिया. वह रोती जा रही थी और बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए शून्य में सवाल फेंके जा रही थी, ‘‘फिर तुम ने मुझ से शादी क्यों की? मेरे घर वालों को क्यों धोखा दिया? मेरी जिंदगी क्यों खराब की? मुझे यहां क्यों लाए? मुझे रंगीन सपने क्यों दिखाए? मैं तुम्हें क्या समझती थी पर तुम तो कुछ और ही निकले, झूठे, बेईमान.’’

मैं अपने देवर से काफी घुलमिल गई हूं जो मेरे पति को बिलकुल भी पसंद नहीं है, मैं क्या करूं ?

सवाल
मैं मौडर्न विचारों वाली 33 वर्षीया महिला हूं. मेरी शादी को 2 वर्ष हो गए हैं और मैं अपने देवर से काफी घुलमिल गई हूं जो मेरे पति को बिलकुल भी पसंद नहीं है. मैं अपने देवर के साथ ही घूमनेफिरने व शौपिंग वगैरह पर जाती हूं. इस वजह से पति के साथ मेरे संबंध अच्छे नहीं रह गए हैं. मेरी देवर के साथ इस तरह घनिष्टता बढ़ानी ठीक है या नहीं?

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जवाब
आज हम चाहे कितनी भी मौडर्न सोसायटी में रह रहे हों या फिर मौडर्न खयालों के हों, लेकिन फिर भी हमें हर रिश्ते की सीमाओं को समझ कर चलना चाहिए वरना जिंदगी मुश्किल बन जाती है.

आप ने यह नहीं बताया कि आप के पति आप के साथ रह रहे हैं या फिर बाहर वर्किंग हैं. अकसर ऐसा देखने में आता है कि ज्यादा दूरियों की वजह से ही इस तरह की दिक्कतें आती हैं. हो सकता है कि आप के साथ भी ऐसा ही हुआ हो जिस की वजह से आप ने देवर के साथ घनिष्टता बढ़ाई हो. लेकिन इस से आप का रिश्ता टूट सकता है.

समझदारी इसी में है कि अपनी समस्या पति को बताएं ताकि वे आप की समस्या को समझ कर आप को समय देना शुरू करें या फिर अपने साथ ही ले जाएं जिस से आप का रिश्ता मजबूत बन सके. लेकिन भूल कर भी आप रिश्तों की सीमाएं न लांघें वरना दोनों के बीच बढ़ती दूरियों को कम करना मुश्किल हो जाएगा.

वैसे आज के युग में पतियों को समझना चाहिए कि उन का पत्नियों पर एकाधिकार नहीं चलेगा और पत्नी के दोस्तों, जिन में देवर भी शामिल है, को सहज लेने की कोशिश करना अनिवार्य है.

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