प्रधानाचार्या ने पठनपाठन को ले कर सभी शिक्षिकाओं से मीटिंग की थी. इसी कारण रेणु को स्कूल से निकलने में देर हो गई, घर पहुंचतेपहुंचते 5 बज गए. जैसे ही वह घर में घुसी तो देखा कि उस के महल्ले की औरतों के साथ उस की सास और ननदों की पंचायत चालू थी. उस ने मन ही मन सोचा कि सिवा इन के पास पंचायतबाजी और गपशप करने के, कोई काम भी तो नहीं है. सारा दिन दूसरों के घरों की बुराई, एकदूसरे की चुगली और महल्ले की खबरों का नमकमिर्च लगा कर बखान करना, बस यही काम था उन का. कपड़े बदल कर, हाथमुंह धो कर वह वापस कमरे में आई तो उस की नजर घड़ी पर पड़ी. शाम के 6 बज चुके थे. ‘मुकेश अब आते ही होंगे’ यह सोच कर वह रसोई में जा कर चाय बनाने लगी. साथसाथ चिप्स भी तलने लगी.

रेणु का विवाह उस परिवार के इकलौते लड़के मुकेश के साथ हुआ था. घर के खर्चों को सुचारु रूप से चलाने के लिए उसे नौकरी भी करनी पड़ी थी और घर का भी सारा काम करना पड़ता था, जबकि ससुराल में 1 अविवाहित ननद थी और 2 विवाहित, जिन में से एक न एक घूमफिर कर मायके आती ही रहती थी. इन सब ने मिल कर रेणु का जीना हराम कर रखा था. सारा दिन बैठ कर गपें मारना, टीवी देखना और रेणु के खिलाफ मां के कान भरना, बस यही उन का काम होता था.

अभी वह चाय कपों में डाल ही रही थी कि मुकेश आ गए. मेज पर चाय के कपों को देख कर बोले, ‘‘वाह, क्या बात है. ठीक समय पर आ गया मैं.’’

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