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मेरे स्तन बहुत छोटे हैं, इन्हें बढ़ाने का कोई घरेलू नुस्खा बताएं?

सवाल

मैं 24 वर्षीय युवती हूं. 3 महीने बाद मेरा विवाह है. समस्या यह है कि मेरी छाती बिलकुल सपाट है. स्तन बहुत छोटे हैं. मेरी सहेली जो विवाहित है उसका कहना है कि मुझे ऐसा कोई उपाय करना चाहिए जिस से स्तन उन्नत आकार में आ सकें. क्या किसी दवा, तेल, क्रीम या ऐक्सरसाइज की मदद से इन में मनवांछित सुधार लाया जा सकता है? कोई घरेलू नुस्खा हो तो बताएं?

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जवाब

कई आयुर्वेदिक दवा बेचने वाली कंपनियां बड़ बड़े दावे जरूर करती रहती हैं कि उन की दवा या तेल में स्तनों को बढ़ाने की क्षमता है, लेकिन सचाई यह है कि ये दावे लोगों को मूर्ख बनाने की चेष्टा भर होते हैं.

सच यह है कि चेहरे के रूप आकार और दैहिक बनावट की तरह हर स्त्री में स्तनों का स्वरूप भी प्राकृतिक रूप से भिन्न भिन्न होता है. उस के जींस में छिपे आनुवंशिक गुण और उस की आंतरिक हारमोनल दुनिया ही यह निर्धारित करती है कि उस की दैहिक छवि का विन्यास कैसा होगा.

स्तनों के आकार को सैक्स से सीधा जोड़ कर देखना मात्र वहम है. उन का छोटा होना न तो यौनसुख में बाधक होता है और न बड़ा होना चरमसुख में प्राप्तिकारक. शारीरिक बनावट के संबंध में यह आकुलता रखना सर्वथा अनावश्यक है. मनुष्य का यह स्वभाव है कि वह सदा दूसरों से अपनी तुलना करता है और उस की यह इच्छा होती है कि वह दुनिया के नाए मानदंडों पर श्रेष्ठ उतरे. लेकिन इस पर किसी का वश नहीं चलता.

आप खुशीखुशी वैवाहिक जीवन में प्रवेश करें और किसी प्रकार के हीन भावना को अपने भीतर न पनपने दें.

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हुंडई ग्रैंड आई 10 नियोस- वारंटी

हुंडई ग्रैंड आई 10 नियोस के क्वालिटी के बारे में अभी तक हम बहुत कुछ जान चुके है. आज हम बात करेंगे आई 10 नियोस में मिलने वाली वारंटी की।

बता दें कि हुंडई नियोस कार खरीदते समय आपको हुंडई के तरफ से वारंटी चुनने की आज़ादी दी जाती है.
आप अपने कार के कवरेज ऑप्शन खुद चुज कर सकते हैं.
आप अपनी हुंडई ग्रैंड आई १० नियोस के लिए 3 साल और 1,00,000 किलोमीटर, 4 साल और 50,000 किलोमीटर अन्यथा 5 साल और 40,000 किलोमीटर के बीच वारंटी चुन सकते है।

मन की शांति ग्रैंड आई 10 नियोस #MakesYouFeelAlive.

कसौटी जिंदगी की 2: 4 लोगों को कोरोना होने के बाद एरिका ने लिया ये बड़ा फैसला

टीवी जगत का मशहूर सीरियल कसौटी जिंदगी 2 के सेट पर करीब 4 लोग कोरोना पॉजिटीव पाएं गए हैं. इस वजह से शो के लीड एक्ट्रेस एरिका फर्नाडिस पूरी तरह से डर गई है. वह खुद को घर से बाहर निकालने से भी मना कर रही हैं.

एरिका ने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान खुलासा किया है कि वह घर से बाहर हीं जाना चाहती हैं. उनके सीरियल की शूटिंग शुरू हो चुकी है. यह बहुत फेमस सीरियल है शूटिंग को रोक नहीं सकते हैं इसलिए मैं इसे रोक नहीं सकती हूं.

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आगे उन्होंने कहा है कि मैं कुछ दिन पहले कोरोना की टेस्ट करवाई थी मेरी रिपोर्ट निगेटिव आई थी लेकिन मैं फिर से एक बार टेस्ट करवाना चाहती हूं. मैं देखना चाहती हूं कि कहीं मैं भी इस बीमारी की चपेट में तो नहीं आ गई .

एरिका ने अपने घर से ही सीरियल्स की बाकी शूटिंग करने को फैसला लिया है. उन्होंने कहा कि यह थोड़ा मुश्किल वाला होगा लेकिन मैं अपनी पूरी कोशिश करुंगी की रिजल्ट अच्छा आएं. ये थोड़ा मल्टीटास्किंग भी होगा.

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मैं अपना यूट्यूब चैनल चलाती हूं जिससे मुझे घर पर शूटिंग करने में कोई दिक्कत नहीं होगी. मैं अपना काम अच्छे से कर लूंगी.

गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले पार्थ समाथन को कोरोना हुआ था अब उनका रिपोर्ट निगेटिव आया है तो आमना शरीफ का रिपोर्ट पॉजिटीव आ गया है.

हालांकि शूटिंग सेट पर सभी के सुरक्षा का काफी ख्याल रखा जा रहा है. शो की प्रो़ड्यूसर्स एकता कपूर ने इस का खास इंतजाम करवाया है.

 

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इस समय खुद को बचाना बहुत ज्यादा जरुरी है. कोरोना का कहर देश ही नहीं विदेशों में भी फैला हुआ है. कोरना वायरस से पूरे विश्व को परेशान कर रखा है. सभी लोग कोरोना के जाने का इंतजार कर रहे हैं.

 

कोरोना ना तो ‘हनुमान चलीसा’ का पाठ पढने से ख़त्म होगा, ना ही ‘भाभीजी पापड़’ खाने से

19 मार्च प्रधानमंत्री मोदी 8 बजे टीवी चेनल पर आए, देश की जनता को संबोधन किया. एक दिन का जनता कर्फ्यू लगाया. अपने संबोधन में उन्होंने देश की जनता को जनता कर्फ्यू के दिन 5 बजे 5 मिनट के लिए तालीथाली पीटने की अपील की. सोशल मीडिया पर भाजपा आईटी सेल और बज्र मूर्खों द्वारा कुतर्क दिया जाने लगा कि थाली और ताली पीटने से एक कम्पन पैदा होगी जिससे कोरोना हवा में खत्म हो जाएगा. देश की पढ़ी लिखी जनता तालीथाली बजाने निकल पड़ी.

इसके कुछ दिन बाद जनता के भारी समर्थन से मोदीजी कोरोना से लड़ने का नया टास्क लेकर आए. इसमें 5 अप्रैल की रात 9 बजे, 9 मिनट के लिए घरों के खिड़की दरवाजों पर दियामोमबत्ती जलाने की अपील की गई. लोगों ने सोचा क्या पता इससे कोरोना को दिखना ही बंद हो जाए, जनता घरों के दरवाजों में टोर्च दिया लेके खड़े हो गए. लेकिन कोरोना ऐसे तालीथाली से ख़त्म होने वाली बला नहीं थी, यह बात लोगों को कुछ दिन गुजर जाने के बाद समझ आने लग गई जब पानी सर से ऊपर बढ़ता गया. लेकिन क्या फिर उसके बाद ऐसी अतार्किक क्रियाओं से रुक गए, या खुद प्रधानमंत्री ने इन क्रियाओं के लिए हरी झंडी दिखाई?

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पिछले महीने मैं सरकारी राशन के लिए लाइन पर लगा था. दो लोग आपस में बात कर रहे थे. जिसमें से एक ने दुसरे व्यक्ति से कहा कि ‘अब घबराने की जरुरत नहीं बाबा रामदेव कोरोना की दवाई बना चुके हैं. कुछ दिनों बाद देश से कोरोना का खत्मा हो जाएगा.’ उस दौरान इसी बात को लेकर बहस भी चल रही थी कि बाबा रामदेव की कथित दवाई कितनी कारगर है. इस पर जब मैंने हस्तक्षेप करके बीच में कहा कि ‘आयुष मंत्रालय ने इसके प्रचार पर रोक लगा दी है और दवाई को लेकर सारी जानकारी मांगी है.’ तो उस व्यक्ति ने तुरंत जवाब देते हुए कहा ‘कुछ लोग नहीं चाहते कि दवाई हमारे देश से बने, इसलिए रामदेव की दवाई को बदनाम करने की कोशिश में लगे हैं.’ खैर, इसके बाद तो पुरे देश को पता ही चल गया कि बाबा रामदेव खुद ही अपने दावे से मुकर गए. हांलाकि, इससे पहले भी टीवी चेनलों पर आकर वह कभी योग से तो कभी किसी कथित ओषधि से शत प्रतिशत कोरोना के इलाज का दावा करते रहे

कोरोना को लेकर इस प्रकार के झूठे दावे और कुतर्क शुरू से ही दिए जाते रहे. ध्यान हो तो हिन्दू महासभा ने तालाबंदी से पहले पुरे देश में कोरोना के खात्मे के लिए गौमूत्र पार्टी का आयोजन किया था. जिसके बाद पार्टी में शामिल हुए उनके कुछ कार्यकर्ताओं की गौमूत्र पीने से तबियत बिगड़ने लगी थी. मार्च के महीने में भाजपा नेता साक्षी महाराज से लेकर अन्य नेता कोरोना को हराने के लिए हवन पूजा की बात करने लगे थे, इनका तर्क था कि हवन करने से घी अग्नि में जाती है जिससे हवा में कोरोना के कण ख़त्म हो जाते हैं, ठीक यही लोग घरों के बाहर घी वाले दिया जलाने की बात कर रहे थे. कुछ आला दर्जे के विशेषज्ञों का मानना था कि भारत जैसे गर्म देश में कोरोना टिक नहीं पाएगा. यह तो यूरोपीय देशों में ही फलेगा फूलेगा. लेकिन कोरोना के बढ़ते भारत में प्रभाव ने सारी बातों को धता बता दिया.

किन्तु अभी भी देश में इतने मामले बढ़ने के बावजूद भी नेता जनता को बेवकूफ बनाने से बाज नहीं आ रहे. वहीँ कुछ इस महामारी को अवसर बनाने से भी नहीं चूक रहे. अगर ऐसा नहीं होता तो केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ‘भाभी जी पापड़’ का प्रचार नहीं करते और यह नहीं कहते कि इस पापड़ से एंटीबॉडी पैदा होगी जो कोरोना से लड़ने में मदद करेगी.

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वहीँ भोपाल से भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा का मानना है कि रोजाना 7 बजे 5 बार अपने घर में हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे तो कोरोना की समाप्ति हो जाएगी. यह बात उन्होंने ट्वीट में लिखा-
“आइये हम सब मिलकर कोरोना महामारी को समाप्त करने के लिए लोगों के अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए एक अध्यात्मिक प्रयास करें. आज 25 अगस्त से 5 अगस्त तक प्रतिदिन शाम 7 बजे अपने घरों में हनुमान चालीसा का 5 बार पाठ करें.” गौर करने वाली बात यह वही साध्वी हैं जिन्होंने खुद के कैंसर से ठीक होने के लिए गौमूत्र की दवाई से बने दवाई को इलाज माना था, जबकि इनके इस बयान के बाद आरएमएल के डॉक्टर राजपूत ने बताया कि उनका इलाज अस्पताल में किया गया जिसमें उनकी 3 बार सर्जरी हुई.

फिर भी अगर सच में साध्वी प्रज्ञा और अर्जुनराम मेघवाल की बात में दम है तो प्रधानमंत्री मोदीजी कोरोना से निपटने का यह नुश्खा विश्व कल्याण के लिए सार्वजनिक क्यों नहीं कर देते? क्यों आईसीएमआर इसे नहीं आजमा लेती? मैं तो कहता हूँ कि प्रधानमंत्रीजी को तमाम राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात करनी छोड़ देनी चाहिए, बल्कि हर राज्य को ‘भाभी जी के पापड’ और ‘हनुमान चालीसा’ की प्रति भेंट दे देनी चाहिए, फिर एक बार क्या दिन में 10 बार पढने रहना. क्या यह बात उन्ही के पार्टी के दिग्गज नेता व एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को नहीं पता थी जो आज खुद कोरोना पॉजिटिव हैं?

कोरोना के इस संकट में हर कोई अपनी रोटियां सेक रहा है. पहले जब कोरोना के मामले कम थे तो प्रधानमंत्री जी खुद लोगों को तालीथाली तो कभी दियाटोर्च में टहलाते रहे आज जब मामले बढ़ गए तो उनकी कोरोना को लेकर पहले जैसी सक्रियता कम हो गई. वैसे ही इसी प्रशिक्षण से सीखे उनके समर्थक कोई दवाई के नाम पर पैसा कमाना चाहते हैं तो कोई पापड़ बेच कर फायदा उठाना चाहते है, वहीं कोई उलझुलूल बातें कर लोगों को धर्म के पाखंड से बेवकूफ बनाए रखना चाहते हैं.

लेकिन असल में कोरोना इस चिरकुटबाजी कृत्यों से कई बड़ी व जटिल चीज है. इसका उदाहरण इसी से लगाया जा सकता है कि एक मास्क तक को लेकर विज्ञानिकों ने कई अटकलें पेश कर दी हैं. पहले कहा गया कि जो व्यक्ति संक्रमित हुआ है उसे मास्क पहनने की जरुरत है, फिर कहा गया कि सबको पहनना अनिवार्य है, अब कहा जा रहा है कि कुछ तरह के मास्क में समस्याएं हैं. वहीँ, कभी डब्ल्यूएचओ कहता है कि कोरोना हवा में नहीं फैलता है, तो कभी कहता है फैलता है. जाहिर है कोरोना को लेकर पूरी दुनिया में अभी भी कंफ्यूजन की स्थिति बनी हुई है. इसके लक्षण से लेकर इसके असर तक में उलझनें हैं. पूरी दुनिया में कोरोना को लेकर परेशानी अभी भी व्याप्त है. कोरोना की वैक्सीन इजाद नहीं हो पाई है, और यह भी पता नहीं कि 2021 तक वैक्सीन बन पाएगी भी या नहीं. फिर भी इस वायरस से बचने के अभी तक जो उपाय मिल पाए वह साइंटिफिक नजरिये से ही मिल पाएं हैं.

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आज स्थिति यह है कि कोई भी देश या राज्य खुद को कोरोनामुक्त कहने की स्थिति में नहीं है. इसका जीता उदाहरण हमारे देश में उन राज्यों को देख कर लिया जा सकता है जहां कोरोना की समाप्ति की मिशालें दी जा रहीं थी. केरल में मई महीने में कोरोना मामले 90 प्रतिशत रिकवरी पर थे और उस दौरान कहा जा रहा था कि कुछ दिनों में भारत का यह कोरोनामुक्त राज्य बन जाएगा, लेकिन जुलाई आते आते वहां से कम्युनिटी ट्रांसमिशन की बातें सामने आने लगी. यही हाल उडीसा का भी था. जहां मामले बहुत कम थे अब वहां 26,000 से अधिक मामले सामने आए हैं. वहीँ वैश्विक स्तर पर न्यूजीलैंड ने घोषणा की थी की वहां देश कोरोनामुक्त हो चुका है, लेकिन अब फिर से उस देश में मामले सामने आ रहे हैं.

इसमें यह समझने की जरुरत है कि जब कोरोना के कारण दुनिया के अलग अलग देशों में तालाबंदी की गई तो सबसे पहले धार्मिक संस्थाओं को बंद किया गया. यानि जो भगवान् खुद को तक सरकारी कैद से आजाद नहीं करा पाए उनके पूजापाठ करने से कैसे कोरोना से जंग जीती जा सकती है? साध्वी प्रज्ञा ने कोरोना की समाप्ति के लिए अध्यात्मिक प्रयास करने की बात कही, लेकिन क्या यह सच नहीं कि मंदिर के भीतर अध्यात्म में डूबे 14 पंडितों को भी कोरोना हो गया?

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जाहिर है कोरोना ‘भाभीजी पापड’ या ‘हनुमान चालीसा’ की लफ्फाजी से कई जटिल विषय है. हमें यह समझने की जरुरत है कि हनुमान चालीसा से न तो स्थिति काबू में आएगी, न दवाई की खोज होगी और न ही स्वास्थ्य क्षेत्र मंि बेहतर बदलाव होंगे. हां, इससे जो हो सकता है वह यह कि आम लोगों को विज्ञान से दूर रखा जा सकता है, उन्हें उनकी धार्मिक खोलों में वापस ढकेला जा सकता है, देश के बड़े हिस्से को कुतर्क का पाठ पढाया जा सकता है और देश में होने वाली मौतों को कर्म और नियति का हिस्सा बताया जा सकता है. जिससे लोगों को मुर्ख बना कर अपना उल्लू हमेशा के लिए सीधा किया जा सकता है.

बॉलीवुड गैंग को लेकर ए आर रहमान ने दिया बड़ा बयान तो शेखर कपूर ने किया सपोर्ट

सुशांत सिंह राजपूत के अचानक मौत के बाद से बॉलीवुड इंडस्ट्री में लगातार गुटवाजी बढ़ती जा रही है. लोग एक  दूसरे पर निशाना साध रहे हैं. हाल  में विश्व प्रसिद्ध म्यूजिक कम्पोजर ए आर रहमान के खिलाफ भी कुछ लोग साजिश रचने की कोशिश कर रहे थें. इस बात का खुलासा खुद ए आर रहमान ने किया है.

हाल ही में ए आर रहमान ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया है कि जब उनके पास काम लेकर मुकेश छाबड़ा आए थे तो कई लोगों ने उन्हें मना किया था कि वह काम लेकर न जाएं. देखिए मैं अच्छी फिल्मों को ना नहीं कहता हूं लेकिन एक गैंग ऐसी भी है जो अफवाह फैलाती है.

ए. आर रहमान को शेखर कपूर ने सपोर्ट किया है. उन्होंने ए. आर रहमान के साथ इंटरव्यू शेयर करते हुए अपनी बात रखी है. शेखर कपूर ने लिखा है कि ‘ ए. आर रहमान तुम्हें पता है तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है तुम ऑस्कर्स के लिए गए और तुम्हे मिल भी गया बॉलीवुड में ऑस्कर मिलना मानो मौत को गले लगाना जैसा है. इससे पता चलता है कि तुम्हारे टैलेंट को बॉलीवुड हैंडल नहीं कर सकता हैं.

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ए. आर रहमान ने शेखर कपूर के ट्वीट को देखते हुए मैसेज किया है कि खोया हुआ पैसा वापस आ सकता है, फेम वापस लाया जा सकता है लेकिन खोया हुआ समय वापस नहीं आ सकता है इसलिए कोई बात नहीं हमारे पास बहुत शानदार चीजें हैं करने के लिए हमें उसके लिए काम करना चाहिए.

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वहीं जानें माने साउंड मिक्सिंग में महारत हासिल कर चुके रेसुल पोकुट्टी ने भी अपनी दर्द भरी कहानी सोशल मीडिया पर शेयर की है कि ऑस्कर जीतने के बाद उन्हें कैसे लोग काम देने से मना कर रहे थें.

बता दें दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आखिरी फिल्म दिल बेचारे के गाने को ए आर रहमान ने ही कम्पोज किया है. इसे फैंस खूब पसंद कर रहे हैं.

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ए. आर रहमान कई फिल्मों के म्यूजिक को कम्पोज कर चुके हैं. जिसे लोगों ने खूब पसंद किया है. ए. आर रहमान का नाम देश ही नहीं विदेशों में भी मशहूर है.

ऐसे करें उड़द दाल की खेती

उड़द जायद व खरीफ की खास फसल है. वैज्ञानिक तौरतरीके अपना कर इस की अच्छी पैदावार ली जा सकती है. उड़द की खेती के लिए अच्छे पानी निकास वाले बलुई दोमट मिट्टी वाले खेत ज्यादा ठीक रहते हैं. लवणीय, क्षारीय या ज्यादा अम्लीय मिट्टी उड़द के लिए अच्छी नहीं मानी जाती है. सही नमी बनाए रखने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 2-3 जुताई देशी हल या हैरो से कर के अच्छी तरह से पाटा लगा कर खेत को समतल करना चाहिए.

उन्नत किस्में : अच्छी पैदावार लेने के लिए हमेशा उन्नत किस्मों का चुनाव करना चाहिए. कुछ उन्नत किस्में इस तरह हैं:

टाइप-9 : यह किस्म 80-85 दिन में  पक कर तैयार हो जाती है. इस की औसत पैदावार 8 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इस किस्म का पौधा सीधा, फूल पीला, दाना मध्यम व काले रंग का होता है और फलियों पर रोएं नहीं होते हैं.

पंत यू-19 : यह किस्म 80-85 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. एक हेक्टेयर खेत से 10 से 12 क्विंटल पैदावार मिलती है. इस का तना सीधा, फूल पीला, दाना मध्यम काला व भूरे रंग का होता है.

पंत यू-30 : इस किस्म के पौधे का तना सीधा व हरी पत्ती वाला होता है. फूल पीले रंग के व दाने काले रंग के मध्यम आकार के होते हैं. इस की फसल 75 से 80 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. एक हेक्टेयर से 10 से 12 क्विंटल पैदावार मिलती है. यह किस्म पीला कोढ़ यानी यैलो मोजैक बीमारी से लड़ने की कूवत रखती है. लेकिन लीफ क्राकल, सर्कोस्पोरा लीफ स्पौट, मैक्रोफोमिना ब्लाइट व जड़ सड़न वगैरह बीमारियों के लिए आंशिक प्रतिरोधी कूवत रखती है.

पंत यू-35 : यह किस्म 75 से 80 दिनों में पकती है. इस से एक हेक्टेयर से 12 से  15 क्विंटल पैदावार मिलती है. इस का पौधा मध्यम आकार का और दाने काले व मध्यम आकार के होते हैं.

टाइप-27 व टाइप-65 : ये किस्में एकल या दूसरी फसलों के साथ मिला कर बोई जाती है. इस से 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिलती है.

बीजोपचार : फसल को बीमारी से बचाने के लिए बोआई से पहले बीजों को उपचारित कर के बोना चाहिए. इस के लिए बीजों को 2 ग्राम थिरम व 1 ग्राम कार्बंडाजिम प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित करने के बाद उड़द के राइजोबियम कल्चर व फास्फेटिक यानी पीएसबी कल्चर 200 ग्राम से प्रति 10 किलोग्राम बीज का उपचार करना चाहिए.

खरीफ की फसल के लिए एक हेक्टेयर खेत की बोआई के लिए  12 से 15 किलोग्राम व जायद में  25-30 किलोग्राम बीज इस्तेमाल करें.

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बोआई का सही समय : जल्दी पकने वाली किस्मों की बोआई खरीफ में जुलाई के तीसरे हफ्ते से अगस्त के दूसरे हफ्ते तक कर लें. जायद में फरवरी के आखिरी हफ्ते से 10 मार्च तक बोआई करनी चाहिए. लंबी अवधि की किस्मों की बोआई 15 जुलाई तक करनी चाहिए.

उड़द की बोआई कूंड़ में हल के पीछे या सीड ड्रिल से करनी चाहिए. खरीफ में कूंड़ से कूंड़ की दूरी 40 से 50 सैंटीमीटर और जायद में 25-30 सैंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए. बोआई के 20-25 दिन बाद निराई कर के पौधे से पौधे की दूरी 10 सैंटीमीटर कर दें.

खाद : अच्छी फसल लेने के लिए नाइट्रोजन 40 से 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, 20 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम पोटाश, 20-25 किलोग्राम गंधक और 5 किलोग्राम जिंक की जरूरत होती है.

उर्वरकों की पूरी मात्रा बोआई करते समय कूंड़ में बीज से 2 से 3 सैंटीमीटर नीचे देनी चाहिए. जिप्सम का इस्तेमाल खेत की तैयारी के समय करें. जिंक सल्फेट को फास्फोरस वाले उर्वरकों में मिला कर न रखें.

सिंचाई : खरीफ में फली बनते समय बारिश की कमी के दौरान एक सिंचाई फायदेमंद रहती है. ज्यादा बारिश होने पर खेत से पानी का निकास करना जरूरी होता है. जायद में पहली सिंचाई 30 से 35 दिन पर और बाद में जरूरत के मुताबिक 10 से 15 दिन के अंतराल पर हलकी सिंचाई करें. स्प्रिंकलर सिंचाई ज्यादा फायदेमद है. उठी मेंड़ों या क्यारियों में बोआई करने से ज्यादा बारिश व पानी भराव से नुकसान नहीं होता है.

खरपतवार की रोकथाम : पहली सिंचाई के बाद या बोआई के 25 से 30 दिन की अवस्था पर निराई करने से खरपतवार की रोकथाम और जमीन में हवा का संचार अच्छा होता है, जिस से जड़ों में मौजूद बैक्टीरिया की सक्रियता बढ़ कर आबोहवा की नाइट्रोजन इकट्ठा करने का काम तेज होता है. खरपतवारों की कैमिकल दवा द्वारा रोकथाम के लिए पेंडीमिथेलीन 30 ईसी या एलाक्लोर 50 ईसी  3 से 4 लिटर 800 लिटर पानी में घोल कर बोआई के बाद और जमाव से पहले छिड़कें या फ्लूक्लोरैलिन 45 ईसी की 2.2 लिटर मात्रा 800 लिटर पानी में घोल कर बोआई से पहले छिड़काव कर खेत में मिलाएं. लाइनों में बोई गई फसल में खरपतवारों की रोकथाम के लिए वीडर मशीन का इस्तेमाल फायदेमंद है.

कीट नियंत्रण

झींगुर : ये अंकुरण के समय निकले हुए अंकुर को खा कर नुकसान पहुंचाते हैं. पौधे की बढ़वार पर बुरा असर पड़ता है. इस कीट के नियंत्रण के लिए खेत में बोआई से पहले  25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से हैप्टाक्लोर धूल (5 फीसदी) का बुरकाव करना चाहिए.

बिहार की रोमिल सूंड़ी?: इस कीट का हमला तीव्र गति से होता?है और इन की तादाद भी तेजी से बढ़ती है. यह फसल पर शुरू से ले कर फली बनने तक हमला कर सकती है. इस की रोकथाम के लिए निम्न उपाय करने चाहिए:

* खेत में खरपतवारों को पनपने नहीं देना चाहिए, क्योंकि खरपतवार इस को आश्रय देते हैं.

* 1 लिटर मैटासिस्टौक्स 25 ईसी को 1,000 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए.

चैंपा : इसे एफिड कीट भी कहते?हैं. यह एक?छोटा कीट होता?है, जो पौधों के कोमल अंगों का रस चूस कर नुकसान पहुंचाता है. इस की वजह से पौधे के भोजन बनाने के काम पर बुरा असर होता है.

इस कीट की रोकथाम करने के लिए अजादीरैक्टिन 0.03 फीसदी ईसी प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.

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रोग नियंत्रण

पीला मोजैक : यह रोग विषाणु द्वारा होता?है. नई उगती हुई पत्तियों में शुरू से ही कुर्बुरता यानी पीली ऊतक वाले लक्षण दिखाई देते हैं.

जिन पत्तियों में पीली कुर्बुरता के मिलेजुले लक्षण दिखाई देते?हैं, उन के आकार छोटे रह जाते हैं. ऐसे पौधों पर बहुत कम और छोटी फलियां लगती हैं.

ऐसी फलियों में बीज सिकुड़ा हुआ, मोटा व छोटा होता?है. यह रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता?है. इस रोग की रोकथाम के लिए निम्न उपाय करने चाहिए:

* रोगरोधक किस्में (पंत यू 19, 26 व 30) उगानी चाहिए.

* सही फसल चक्र अपनाना चाहिए.

* सफेद मक्खी को खत्म करने के लिए मैटासिस्टौक्स के 0.5 फीसदी घोल को 10-15 दिन के अंतराल पर 2-3 छिड़काव करने चाहिए.

आर्द्र विगलन : यह एक फफूंदी से होने वाला रोग है. इस रोग में अंकुरण के समय ही अंकुर गलने लगते हैं. पौध विगलन जो  फफूंद द्वारा लगता है, बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाता?है. इस रोग के नियंत्रण के लिए बताए गए उपाय अपनाने चाहिए:

* रोगरोधी किस्में जैसे?टाइप 9 उगाएं.

* पैंटाक्लोरोनाइट्रोबैंजीन (पीसीएनबी के 0.8 फीसदी) घोल से बीजोपचार करें.

पर्ण धब्बा : यह भी फफूंदी से होने वाला रोग है. इस के लक्षण पत्तियों पर?छोटेछोटे धब्बों के?रूप में देखने को मिलते हैं. पत्तियां

मुड़ कर गिर जाती हैं. इस के उपचार के लिए डाइथेन एम 45 के 0.25 फीसदी घोल का छिड़काव करना चाहिए.

फसल की कटाई?: फरवरीमार्च महीने में बोई गई उड़द की फसल अप्रैलमई महीने में पक कर तैयार हो जाती है. फसल पकने पर फलियों का रंग काला पड़ जाता?है. कुछ किस्मों में फलियां एकसाथ नहीं पकती हैं. ऐसी किस्मों की फलियों की 3-4 बार तुड़ाई की जाती है.

जो किस्में एकसाथ पकती?हैं, उन की कटाई कर के खेतखलियानों में फसल को अच्छी तरह सुखाते हैं. बाद में बैल चला कर या डंडों से पीट कर फलियों से दाने निकाल लिए जाते?हैं. बचा हुआ भूसा पशुओं को चारे के रूप में खिलाया जाता है.

उपज : उड़द की फसल कई बातों पर निर्भर करती है, जिन में जलवायु, जमीन की उर्वराशक्ति, उगाई जाने वाली किस्में, उगाने की विधि और फसल की सही देखभाल खास हैं.

अगर सही तरीके से उड़द की खेती की जाए तो प्रति हेक्टेयर 10-15 क्विंटल उपज मिल जाती?है. दाना व भूसा बराबर अनुपात में मिलता है.

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छुट्टी का दिन-भाग 3 : नागेश ने अम्मी से क्या वादा किया था?

उम्मी भावुक हो उठी थी. आखिर क्यों होता है ऐसा? उस की हर इच्छाअनिच्छा का ध्यान रखने वाला सहृदय प्रेमी, ब्याह के कुछेक महीनों में ही क्यों बदल गया? पहले तो कांटे की सी नुकीली चुभन भी उसे रक्तरंजित करती, तो उस पर स्नेह का लेप लगा कर, समूल नष्ट करने का प्रयास करता था नागेश और अब उस की हृदयभावना से भी अनभिज्ञ रहता है. तभी उम्मी के मन में एक कुविचार कौंधा कि यह भी तो हो सकता है कि नागेश उसे अब प्यार ही न करता हो. तभी तो प्रशंसा के दो शब्द भी नहीं निकलते कभी उस के मुंह से. प्रशंसा के दो शब्द कहने में शब्दों के कलेवर ही तो चढ़ाने होते हैं. उसे महसूस होने लगा कि नागेश का कहा हुआ हर वाक्य निरर्थक था, निराधार था. सबकुछ झूठ था, मिथ्या था मृगमरीचिका सा. न जाने कब तक विचारों के भंवरजाल में फंसी रही थी वह.

नागेश को गए हुए 2 घंटे हो गए थे. उम्मी के दिल का आवेश अब थम गया था. उसे चिंता सताने लगी थी कि नागेश को गए हुए काफी समय बीत चुका है. दूध की थैलियां तो नुक्कड़ वाली दुकान पर ही मिल जाती हैं. अब तक तो उसे लौट आना चाहिए था. दूसरे ही पल, विचार कौंधा कि अच्छा ही है कुछ देर और बाहर रहे, नहीं तो फिर कोई बखेड़ा खड़ा हो जाएगा. ब्याह के बाद 6 महीनों का वृत्तांत क्रम से साकार हो उठा था.

सूरज की तेज रोशनी एक बार फिर बादलों के पीछे छिप गई थी. चारों ओर गहरा अंधेरा पसरने लगा था. गली में इक्कादुक्का लोग ही दिखाई दे रहे थे. उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा कि कहां चला गया होगा नागेश? कहीं कोई अनहोनी न घट गई हो? रोज अखबार अजीबोगरीब वारदातों से रंगा रहता है. क्रोध के आवेश में इंसान कुछ भी कर सकता है. उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा. कहीं नागेश घर छोड़ कर तो नहीं चला गया? पर ऐसा भी वह क्यों करेगा. यह घर तो उस का है? वह तो घर का पोषक है.

उम्मी की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा फूट पड़ी. गलती सिर्फ नागेश की ही तो नहीं, उस की भी है. अगर नागेश किसी बात पर उलझता है तो वह भी चुप कहां रहती है. फौरन तूतड़ाक पर उतर आती है. मां कहती थी, ‘एक चुप सौ सुख.’ छोटी सी बात थी, दूध की थैली ही तो लानी थी, और महाभारत छिड़ गया. अगर नागेश मना कर रहा था तो वह खुद भी तो

ला सकती थी. घर को कुरुक्षेत्र का मैदान बनाने से तो बेहतर था समर्पण ही कर देती.

वह बेबसी से नागेश की प्रतीक्षा करने लगी. कभी खिड़की के परदे हटा कर बाहर झांकती, कभी घर के बाहर कदमों की आहट सुन कर चौकन्नी हो जाती. उसे धीरेधीरे विश्वास होने लगा कि अब नागेश नहीं लौटेगा, फिर सोचने लगी कि यह भी तो हो सकता है, उस का मन ही भर गया हो मुझ से. तो फिर मैं यहां क्यों रहूं? नहीं रहूंगी इस घर में मैं. अभी चली जाऊंगी. उस ने उठ कर अलमारी खोली और अपनी साडि़यां, सूटकेस में सहेज कर रखने लगी.

तभी दरवाजे की घंटी बजी. कौन होगा इस समय? मन ही मन सोचते हुए उस ने दरवाजा खोला तो सामने नागेश खड़ा था. उस की जान में जान आ गई. हलका सा हवा का झोंका भी उसे सुखद अनुभूति दे गया था. थकाहारा सा नागेश घर में घुसते ही कमरे में बिछे पलंग पर लेट गया. अजीब सी खामोशी छाई थी हर तरफ. दोनों ही दुविधा में थे कि हर तरफ पसरे हुए मौन को भंग कौन करे? पलंग के सिरहाने रखे हुए सूटकेस पर एक नजर डालते हुए आखिर नागेश ने ही पहल की, ‘‘कहीं जा रही हो?’’

‘‘हां, हमेशा के लिए, तुम्हारा घर छोड़ कर जा रही हूं.’’

‘‘कहां जाओगी?’’ नागेश का स्वर भीगने लगा.

‘‘तुम्हें इस से क्या? तुम्हें तो मेरी सूरत भी अच्छी नहीं लगती न?’’ उस ने उड़ती सी निगाह नागेश पर डाली.

‘‘उम्मी, अब भी नाराज हो मुझ से?’’ नागेश के स्वर में पश्चात्ताप के भाव थे.

‘‘नाराज मैं नहीं, तुम्हीं रहते हो मुझ से, हर वक्त. हर समय झगड़ते रहते हो…’’

‘‘मैं लड़ता हूं कि तुम झगड़ती हो हर समय?’’

‘‘तुम लड़ते हो. जानते हो, तुम्हारे जाने के बाद पड़ोसिनें कैसेकैसे सवाल पूछती हैं मुझ से? मुझे तो शर्म आने लगती है.’’

इसी बीच उस ने अपना सूटकेस उठा लिया था. मगर पिछले कुछ घंटों में नागेश की अनुपस्थिति ने उसे एहसास दिला दिया था कि वह उस के बिना नहीं रह सकती. एकएक पल जैसे युग सा प्रतीत हुआ था उसे तब. और बचाखुचा मैल नागेश के साथ हुई अब तक की जिरह से यों भी धुलपुंछ गया था. फिर भी झुकने के लिए वह कतई तैयार नहीं थी. ऊहापोह के चक्रवात में उलझी उम्मी ने जैसे ही दरवाजे की सिटकिनी खोलने का प्रयास किया, नागेश ने उस के हाथ से बैग छीन लिया और उस का हाथ पकड़ कर अंदर खींच लिया, ‘‘पागल मत बनो, उम्मी. तुम चली गईं तो मेरा क्या होगा? तुम्हारी अनुपस्थिति में कैसे रहूंगा इस घर में, कम से कम यह तो सोचो.’’

‘‘क्यों, घर में झगड़ा करने के लिए कोई नहीं मिलेगा, इसलिए?’’ वह मन ही मन मुसकरा दी थी. नागेश के शब्दों ने उस के अंदर श्रेष्ठता का एहसास भर दिया था.

‘‘अच्छा बाबा, गलती मेरी ही है. अब तो माफ कर दो,’’ नागेश बोला.

नागेश का भोलाभाला चेहरा देख कर उम्मी जोर से हंस दी. फिर मन ही मन सोचने लगी कि कितना सुखद है नागेश का साहचर्य? उस की अनुपस्थिति में तो ऐसा लग रहा था जैसे वह भीड़भाड़ में कहीं खो गई हो.

कुछ ही पलों में नागेश ने अपनी बांहें फैला दीं तो वह सिमटती चली गई उस की आगोश में. फिर नागेश का हाथ अपने हाथ में ले कर उस ने नागेश के कंधे पर सिर टिका दिया और बोली, ‘‘अच्छा बताओ तो, इतनी देर कहां चले गए थे तुम?’’

‘‘फिल्म देखने चला गया था. मुझे मालूम था, घर वापस लौटूंगा तो

तुम बात भी नहीं करोगी. रूठी रहोगी मुझ से.’’

नागेश की मासूमियत पर उम्मी को तरस आ गया. फिर भी वह बात उसे बुरी लगी कि वह अकेला ही फिल्म क्यों देख आया? मचलते हुए उस ने शिकायत की, ‘‘कितनी अच्छी फिल्म थी और तुम अकेले ही देख आए? अब मैं किस के साथ देखूंगी?’’

नागेश ने मेज पर रखा कैलेंडर अपनी ओर घुमाया. फिर तारीखों पर नजर दौड़ाता हुआ बोला, ‘‘इस बुधवार को 26 जनवरी है, उस दिन चलेंगे. टिकट मैं एक दिन पहले ही ले आऊंगा, तुम सुबह ही तैयार हो जाना.’’

उम्मी नागेश का चेहरा देखते हुए सोचने लगी कि अगर अगली छुट्टी वाले दिन भी यही सब हुआ जो आज हुआ है तो फिर क्या होगा? कितना अच्छा होता अगर छुट्टी का दिन टल जाता?

अब तक आसमान पर चांद निकल आया था. फिर उम्मी शीघ्र रसोई में घुस गई क्योंकि सुबह के दोनों भूखे जो थे.

 

 

छुट्टी का दिन-भाग 2 : नागेश ने अम्मी से क्या वादा किया था?

उसे अपनी गलती का एहसास हुआ. बाहर का दरवाजा खोल कर वह दूध की बोतलें उठाने के लिए लपकी तो वहां से बोतलें नदारद थीं.

बदहवास सी उम्मी ने नागेश को पुकारा, ‘‘अब चाय कैसे बनेगी? चौकीदार दूध तो दे कर ही नहीं गया?’’

‘‘यह कैसे हो सकता है? सुबह घंटी बजने की आवाज तो मैं ने खुद ही सुनी थी,’’ नागेश अपनी जगह से हिला न डुला, पूर्ववत बैठे हुए बोला.

अब चिल्लाने की सी आवाज में उम्मी बोली, ‘‘एक बार उठ कर तो आइए. पड़ोस वाले दीपकजी से पूछ लेते हैं. कहीं ऐसा न हो, दूध की गाड़ी ही न आई हो?’’

‘‘तुम भी कमाल करती हो. जब मैं कह रहा हूं, बोतलों की आवाज मैं ने अपने कानों से सुनी है, तो मानती क्यों नहीं?’’

नागेश झल्लाता हुआ हाथ में अखबार लिए ही मुख्यदार तक पहुंच गया. दरवाजा खोलते ही उस का सामना, पड़ोस में रहने वाले दीपकजी से हो गया. वे सुबह की सैर से वापस लौटे थे. उम्मी और नागेश ने पूछताछ की तो उन्होंने झट से इस बात की पुष्टि कर दी कि दूध की बोतलें तो उन्होंने यहीं रखी देखी थीं और चौकीदार को घंटी बजाते हुए भी देखा था.

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं, कोई राहगीर बोतलें उठा कर ले गया हो?’’ उन्होंने प्रश्नसचूक दृष्टि से दोनों पतिपत्नी को घूरा, फिर वे अपने घर के अंदर घुस गए.

अब तो उम्मी रोंआसी हो उठी, ‘‘कैसेकैसे चोर बसते हैं इस जमाने में? छोटी सी चीज के लिए भी उन की नीयत बिगड़ते देर नहीं लगती. अब चाय कैसे बनेगी?’’

‘‘कुसूर लोगों का नहीं, तुम्हारा है. और देर से उठो. एक दिन कोई पूरा घर ही बुहार कर ले जाएगा,’’ नागेश झुंझला उठा था.

‘‘तुम भी कमाल करते हो. देर से मैं उठी या तुम ने ही नहीं उठने दिया? मैं तो सोच रही थी…पूरा हफ्ता घड़ी दो घड़ी भी तुम से बोलनेबतियाने का मौका नहीं मिलता. आज छुट्टी के दिन कुछ देर बैठ कर बातें करते हैं. मुझे क्या मालूम था?’’ उम्मी का गला अवरुद्ध हो उठा.

उधर नागेश का आवेग अभी भी कम नहीं हुआ था, ‘‘बातचीत का यह मतलब तो नहीं कि रोजमर्रा के काम न किए जाएं,’’ कहते हुए उस ने मुख्यद्वार भीतर से बंद कर लिया और अखबार पर नजर गड़ाने की असफल सी चेष्टा करने लगा.

हैरानपरेशान सी उम्मी सोचने लगी, ‘क्या यह वही नागेश है जिस ने कुछ समय पहले उसे अपनी पलकों में कैद कर के रखा हुआ था. बात का बतंगड़ बने, इस से पहले ही उस ने स्थिति को संभालने का प्रयास किया, ‘‘चलो, जो हो गया सो हो गया. अब बाजार जा कर दूध की एक थैली ले आओ. तब तक मैं चाय का पानी चढ़ा देती हूं.’’

‘‘सप्ताह में एक छुट्टी मिलती है, उस दिन भी एक न एक काम पकड़ा ही देती हो तुम. हर समय तुम्हारे आगेपीछे घूमता रहूं, बस, यही चाहती हो न तुम?’’ नागेश की आवाज में तल्खी आ गई थी.

उम्मी ने लाख बात टालनी चाही, पर नागेश तो जैसे इसी बात पर तुला था कि उम्मी को समझा कर ही दम लेगा. एक ही झटके में उस ने पत्नी द्वारा अब तक किए सभी नएपुराने नुकसानों का कच्चाचिट्ठा खोल कर रख दिया.

अकारण ही पति के बदले हुए तेवर देख कर उम्मी का पारा भी सातवें आसमान पर चढ़ गया था. कुछ देर पहले पति के प्रति उपजी सहानुभूति और प्रेम की लहर न जाने कहां विलुप्त हो गई, अपने अंदर उठती क्रोध की लहरों को उस के लिए भी रोकनाछिपाना मुश्किल हो उठा जैसे, बोली, ‘‘दूसरे के काम में मीनमेख निकालना सभी को आता है. एक दिन खुद को करना पड़े तो आटेदाल का भाव मालूम हो जाए.’’

उम्मी धीरेधीरे बड़बड़ाती रही कि गलती आखिर इंसान से ही होती है, और आज तो मेरी गलती भी नहीं थी. एक बार उस ने नागेश को फिर से चेतावनी दी, ‘‘दूध लाओगे तो चाय बना दूंगी वरना यों ही बैठे रहो.’’

‘‘तुम्हारे जैसी फूहड़ और बदजबान बीवी होगी तो यही होगा. कोई काम तुम्हारी मां ने सही तरीके से करना सिखाया भी है तुम्हें?’’

औरत कुछ भी बरदाश्त कर सकती है लेकिन मायके की तौहीन बरदाश्त नहीं कर सकती. उस के मुंह से मानो ज्वालामुखी फट पड़ा, ‘‘मां के घर थाली हाथ में मिलती थी, काम करने वाले नौकर थे. यहां की तरह नहीं, सुबह 6 बजे से ही खड़खडि़या बंध जाती है पैरों में.’’

‘‘तो ले आतीं न 2-4 को अपने साथ. अकेली ही क्यों चली आईं?’’ पत्नी के ताने पर नागेश भी तिलमिला उठा था.

‘‘नौकर मुफ्त में काम नहीं करते, पगार भी देनी पड़ती है उन्हें.’’

‘‘तुम्हारी फरमाइशें कम हों तो 4 पैसे बचें न.’’

नागेश ने अपनी तरफ से तो बात धीरे से कही थी, पर उम्मी ने सुन लिया था. उस का आवेश अब और बढ़ गया, ‘‘क्या मांग लिया तुम से मैं ने? कितने दिनों से गैस का चूल्हा ले कर देने को कह रही हूं. रोज आजकलआजकल कहते रहते हो. मेरी बहनों को देखो, क्या नहीं है उन के पास? टीवी, फ्रिज, वीसीआर, यहां तक कि गाड़ी भी है. मेरी तरह घुटघुट कर नहीं जीतीं, मजे से सैरसपाटा करती हैं.’’

‘‘तो कमाओ न, कमाती क्यों नहीं? पूरा दिन सहेलियों से गपें मारती रहती हो,’’ नागेश ने अपना तर्क दिया.

इस पर उम्मी बिफर उठी, ‘‘कौन सी सहेलियां हैं मेरी? जो थीं, वे भी कभी अच्छी नहीं लगीं तुम्हें.’’

पत्नी की जवाबदेही पर नागेश बौखला उठा. जैसे सारे शब्द ही चुक गए थे उस के. फिर भी पीछे हटना उस की शान के खिलाफ था. बोला, ‘‘ढंग से खर्च करो. तुम्हारी बहनें तुम्हारी तरह खर्चीली नहीं हैं,’’ कह कर वह बड़बड़ाता हुआ घर से बाहर निकल गया.

दरवाजा बंद होने और स्कूटर स्टार्ट होने की आवाज से उम्मी जान चुकी थी कि नागेश जा चुका था. गुस्से में आ कर उस ने भी पास ही पड़े स्टूल को दीवार पर दे मारा. फिर आरामकुरसी पर धम्म से बैठ गई. बिलकुल उस योद्धा की तरह जो कुछ ही समय पहले युद्धस्थली से हार कर लौटा हो. आंखों से छलक आए आसुंओं को उस ने साड़ी के पल्लू से पोंछा और लगी भुनभुनाने कि न जाने क्या समझता है खुद को नागेश. 3 हजार रुपल्ली कमा कर, जैसे कहीं का बादशाह बन बैठा हो. कितने पैसे होते हैं मेरे पर्स में, जो कह रहा है कि मैं उड़ा देती हूं? मानअपमान की तो जैसे कोई भाषा ही नहीं, जो मुंह में आया, बस कह दिया.

उस की आंखें छलछला आईं. क्या यही सब पाने के लिए नागेश से विवाह किया था उस ने. मातापिता, भाईबहनों तक से विरोध किया था उस ने. बस, यही सोचती रही थी कि नागेश के सान्निध्य में उसे दुनिया की हर खुशी मिल जाएगी, पर कहां हुआ ऐसा? वैसे, तब नागेश ऐसा नहीं था. उस की बंद आंखों में नागेश के साथ गुजारी वे सुनहरी शामें उतरने लगी थीं जब दोनों प्रेमी घंटों नदी के किनारे बैठ कर सुनहरे सपनों के महल सजाते थे. एक बार उस ने नागेश से पूछा था कि नागेश, प्रेम की परिभाषा क्या होती है?

इस पर उस ने बताया था कि प्रेम की सही परिभाषा है, खुश रहना, हृदय से हृदय तक एकदूसरे की बात को बिना कहे ही समझ लेना. भावनाओं में आत्मसात हो जाना. स्वयं से अधिक अपने प्रिय को चाहना, यही प्रेम की परिभाषा है.

उम्मी आत्मविभोर हो उठती थी तब, जब नागेश कहता था कि सही रूप में प्रेम तभी पैदा होता है जब 2 युवामन एक छत के नीचे रहते हों.

पर ऐसा कब हुआ? जिंदगी तो गृहस्थी के चक्कर में फंस कर रह गई. पूरा हफ्ता वह इसी प्रतीक्षा में रह जाती है कि कब नागेश की छुट्टी हो और वह कुछ पल उस के साथ बिताए, पर कुछ समय बाद झगड़ा हो ही जाता है. विशेषरूप से छुट्टी के दिन तो ऐसा अवश्य होता है. कभी सब्जी में नमक ज्यादा पड़ गया तो किचकिच, कभी कमीज के बटन लगाना भूल गई तो चिड़चिड़ाहट, और क्या कहे? कहीं घर से बाहर घूमने जा रहे हों और उम्मी को तैयार होने में जरा सा विलंब हो जाए तो भी नागेश झल्लाने लगता. ऐसे में हीलहुज्जत, हारमनुहार सभी बातें बेकार हो जातीं.

छुट्टी का दिन-भाग 1 : नागेश ने अम्मी से क्या वादा किया था?

खिड़की से आती हुई धूप बिन बुलाए मेहमान की तरह कमरे में उतरने लगी तो उम्मी को भोर होने का एहसास हुआ. उस ने एक नजर पास ही पलंग पर सोते हुए नागेश पर डाली. कैसी मीठी नींद सो रहा था. थकावट से भरी सिलवटें उस के चेहरे पर स्पष्ट थीं. इस महानगर में कितनी व्यस्त दिनचर्या है उस की. वह सोचने लगी कि पूरे दिन की भागदौड़ और आपाधापी में सुबह कब होती है और शाम कब ढलती है, पता ही नहीं चलता. नागेश के प्रति उस के मन में प्रेम का दरिया हिलोरे लेने लगा था.

सर्दी की ठिठुरती सुबह में नागेश कुछ देर और सो ले, यह सोच कर उस ने धीरे से रजाई उठाई और उठने को हुई तो नागेश गहरी नींद से जाग गया, ‘‘कहां जा रही हो, उम्मी? कुछ देर और सो लो न,’’ उस ने उम्मी को कस कर अपनी बांहों में जकड़ लिया.

‘‘उठने दो मुझे. देखो, कितनी देर हो गई है,’’ उस ने खुद को पति के बंधन से मुक्त करने का प्रयास किया, जबकि भीतर से उस की इच्छा हो रही थी कि बांहों का घेरा कुछ और सख्त हो जाए. सुबह देर तक सोना उसे शुरू से ही पसंद है. इस ठिठुरती सुबह में पति के गर्माहटभरे स्पर्श ने उसे वैसे भी सिहरा दिया था. उस ने घड़ी की ओर इशारा किया, ‘‘देखो, सुबह के 7 बज चुके हैं.’’

‘‘क्यों परेशान होती हो, उम्मी. आज तो इतवार है, छुट्टी है,’’ उनींदे से नागेश ने पत्नी को याद दिलाने की कोशिश की.

इस पर वह हंस दी, ‘‘छुट्टी तो आप की है जनाब, मेरी नहीं. अगर अब भी नहीं उठी तो पानी चला जाएगा.’’

‘‘2 जनों के लिए कितना पानी चाहिए?’’ नागेश चौंका. वह अब पूरी तरह जागा हुआ था.

‘‘क्यों, आज क्या खाना होटल में खाने का इरादा है? रात के बरतन मांजने हैं, कपड़े धोने हैं और…’’

उम्मी कुछ और कहती इस से पहले ही नागेश  ने अपनी उंगलियों से उस के होंठ ढांप दिए, ‘‘नहीं, आज तुम कोई काम नहीं करोगी, बस, मेरे पास बैठ कर बातें करोगी.’’

‘‘सच?’’ उम्मी को जैसे विश्वास ही नहीं हुआ.

‘‘यह भी कोई पूछने की बात है. ये सर्द बहकती हवाएं, सुनहरा मौसम और

2 जवां दिल…तुम और मैं…ऐसे में किस का मन चाहेगा कि उस की बीवी घरगृहस्थी के कार्यों में उलझी रहे? बस, जल्दी से तैयार हो जाओ. हम बाहर घूमने चलेंगे. कितने दिन हो गए हमें यहां आए, तुम्हें कहीं भी नहीं घुमाया मैं ने.’’

‘‘तैयार तो हम बाद में होंगे, पहले चाय तो पी लें,’’ हंसते हुए उम्मी ने व्यावहारिक सा तर्क पति के सामने रख कर खुद को उस से समेटा और रसोई में जा कर 2 कप चाय बना कर ले आई.

अब तक नागेश भी पलंग के सिरहाने से टेक लगा कर बैठ गया था. वह एकटक उम्मी का चेहरा निहारता रहा. गृहस्थी की हजार अपेक्षाओं के बोझ तले पिसने वाली उम्मी में पहले वाली चंचलता कहां विलुप्त हो गई है, यह सोच कर उस का मन क्षुब्ध हो उठा था. दोष तो उस का ही है. वह तो दफ्तर जा कर कितने लोगों से हंसबोल लेता है. अलगाव का यह दुख तो उम्मी को ही सालता रहता होगा न?

सूरज की तेज रोशनी बादलों के पीछे छिप कर आंखमिचौली खेल रही थी. तेज हवा का झोंका, उम्मी की लंबी जुल्फों से छेड़खानी कर रहा था. मंदमंद शीतल बयार उम्मी के मन में अनचीन्हा स्फुरण भर रही थी. ये सुनहरे क्षण कहीं मुट्ठी में बंद रेत के समान सरक न जाएं, इस से पहले ही उस ने प्रश्न किया, ‘‘कहां ले चलोगे मुझे?’’

‘‘दिल्ली के ऐतिहासिक स्थल नहीं देखे न तुम ने? वहीं चलते हैं.’’

‘‘ऊं हूं, मुझे तो कनाट प्लेस जाना है,’’ उम्मी ने मनुहार की.

‘‘क्यों, वहां जा कर क्या करोगी?’’

‘‘भूल गए? पिछले महीने ही तो तुम ने मुझे गैस चूल्हा ले कर देने का वादा किया था. स्टोव पर खाना पकाने में मुझे बहुत परेशानी होती है. बरतन भी इतने काले हो जाते हैं कि उन्हें घिसतेघिसते मैं तो थक ही जाती हूं,’’ उम्मी ने रूठते हुए कहा.

उस का बस चलता तो वह अपनी सारी परेशानियों का जिक्र उसी पल कर देती, पर नागेश ने उसे बीच में ही रोक दिया था, ‘‘क्या करूं, उम्मी, मन तो करता है कि तुम्हारी हर फरमाइश पूरी कर दूं इसी वक्त, पर कर नहीं पाता. एक खर्च में कटौती करो तो दूसरा पहले ही सामने आ जाता है. इस बार वादा करता हूं कि तनख्वाह मिलने पर सब से पहला काम यही करूंगा, तुम्हें गैसचूल्हा ले दूंगा. पर इस समय पैसे नहीं हैं मेरे पास.’’

‘‘कोई बात नहीं, बाद में ही सही, पर भूलना मत. तुम्हारी आदत है, पहले वादा करते हो, फिर भूल जाते हो.’’

बच्चों की तरह मचलने का अंदाज नागेश को भा गया था. कुछ समय तक कमरे में मौन व्याप्त रहा. संवादहीनता की स्थिति छाई रही दोनों के बीच. नागेश को लगा कनाट प्लेस चल कर, कुछ भी न ले कर देने की बात पर उम्मी शायद नाराज हो गई है. उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था. बेकार में उस का दिल दुखा दिया. चाय का कप खाली हो चुका था. खाली कप उम्मी की ओर बढ़ाते हुए उस ने बात छेड़ी, ‘‘उम्मी, पिक्चर देखने चलोगी? बहुत अच्छी फिल्म लगी है?’’

‘‘कौन सी?’’

‘‘नाम तो अखबार में देख लेते हैं. योगेश बता रहा था रोमैंटिक फिल्म है.’’

‘‘फिर तो अच्छी ही होगी. नागेश, तुम्हें याद है, कालेज के दिनों में हम दोनों कितनी फिल्में देखा करते थे?’’

‘‘हां, तुम अपने मातापिता से झूठ बोल कर मेरे साथ पिक्चर देखती थीं. उस के बाद हम गरमागरम कौफी पीते थे. कितना मजा आता था उन दिनों. अब तो जिंदगी नीरस बन गई है. बिलकुल बेजान सी,’’ नागेश मायूस हो उठा.

उम्मी ने माहौल को कुछ हलका करने का प्रयास किया, ‘‘जानते हो, घर लौट कर जब बाबूजी को मेरे झूठ का पता चलता था तो ऐसी करारी डांट पड़ती थी कि क्या बताऊं.’’

नागेश ने उम्मी का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘उस पल मुझे ही कोसती होगी तुम.’’

‘‘धत, तुम्हें क्यों कोसती. मैं तो इंतजार करती थी, कब दूसरी फिल्म लगे और तुम्हारे साथ शाम बिताने का मौका मिले.’’

उम्मी ने पति के कंधे पर सिर टिका दिया. एकदूसरे के प्यार से पगे 2 युवाप्रेमी कितनी ही देर तक छत को निहारते रहे, बिलकुल ऐसे, जैसे कल ही परिणयसूत्र में बंधे हों.

खिड़की से आती मंदमंद शीतल बयार का वेग कुछ तेज हो गया था. मन में विचारों की घटाएं उमड़ने लगी थीं. अचानक उम्मी को लगा, अगर वह अब भी नहीं उठी, तो हो चुका दिल्लीभ्रमण, सुबह के 9 बजने को आए. इस बार नागेश ने रोकने का प्रयास किया तो उस ने आज का ताजा अखबार उस के समक्ष रख कर कहा, ‘‘आप अखबार पढि़ए. तब तक मैं 1-1 कप चाय और बना कर लाती हूं. फिर तो हम दोनों एकसाथ ही पूरा दिन गुजारेंगे,’’ कह कर वह रसोई की तरफ बढ़ गई. मीठी धुन गुनगुनाते हुए उस ने स्टोव जलाया. फिर चाय का पानी चढ़ाया और दूध का बरतन ढूंढ़ने लगी. रात का दूध तो वह सुबह वाली चाय में खत्म कर चुकी थी. अचानक उसे ध्यान आया, सुबह का दूध तो उस ने बाहर से उठाया ही नहीं.

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