लेखक-संतोष सचदेव
हम सभी हैरान रह गए. रोहित के बारे में पता करने मैं कैलीफोर्निया गई. पर उस के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था. न परिचितों को न आसपड़ोस वालों को. मैं अकेली होटलों में कितने दिन रुक सकती थी. थकहार कर लौट आई.
मेरे ससुर और पिता की तमाम कोशिशों के बाद भी न वरुण का पता चला, न रोहित का. एक गहरा घाव भीतर ही भीतर रिसता रहा. कुछ दिन बीते थे कि मेरे मातापिता की एक सड़क हादसे में मौत हो गई. भाई रोहन एक अंग्रेज महिला से शादी कर के लंदन में बस गया था. मातापिता की मौत पर दोनों दिल्ली आए थे. वे लोग चांदनी चौक का पुश्तैनी मकान बेच कर वापस चले गए. मुझे सांत्वना देने के सिवाय और वे कर भी क्या सकते थे.
ग्रेटर कैलाश की उस विशाल कोठी में मेरे दिन गुजरने लगे. समय बिताने और मानसिक तनाव से बचने के लिए मैं एक स्कूल में पढ़ाने लगी थी. स्कूल से घर लौटती तो मेरे सासससुर दरवाजे पर मेरी बाट जोहते मिलते. उन्होंने मुझे मांबाप से कम प्यारदुलार नहीं दिया. मेरे ससुर की उदास आंखें सदा मेरे चेहरे पर कुछ खोजती रहतीं. वह अकसर कहते, ‘‘मैं तुम्हारे पिता और तुम्हारा अपराधी हूं. मेरे बेटे ने मेरे हाथों न जाने किस जन्म का पाप करवाया है.’’
सास भी अकसर अपनी कोख को कोसती रहतीं, ‘‘मेरे बेटे ने जघन्य पाप किया है. इतनी सुंदर पत्नी के रहते उस ने बिना बताए दूसरी शादी कर ली. मेरे पोते को भी ले गया. जिंदा भी हो तो मैं कभी उस का मुंह न देखूं.’’
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन