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सौरभ का चेहरा गंभीर हो गया. वे बोले, ‘‘मां ने बहुत संघर्ष किया है. मैं जब 10वीं में था, पापा गुजर गए. संकेत 5वीं में था. मम्मी नौकरी करती थीं तो हम किसी तरह पढ़ेलिखे और व्यवसाय खड़ा किया. माना कि मम्मी को इसलिए हर परिस्थिति में रहने की आदत है, रितु, पर…’’ सौरभ कुछ और कहते कि रितु ने टोक दिया.

‘‘बच्चों पर तुम उन्हें थोप रहे हो, सौरभ. जबरदस्ती मत करो.’’

ज्यादा बहस किए बिना सौरभ वहां से उठ कर ड्राइंगरूम में आ गए.

बच्चे उठे और कुछ तरोताजा हुए तो करुणा मिलने उन के कमरे में गईं. पूरा कमरा अत्याधुनिक सामानों से लैस था. पलंग के पास मूविंग टेबल पर आईमी का आधा खाया खाना पड़ा था. पूरा बिस्तर अब भी फैला हुआ था, शायद पार्टटाइम मेड सुधा, जो अब तक पूरा घर सजा कर जा चुकी थी, आईमी के कमरे को समेट नहीं पाई थी क्योंकि उसे अपने सोने में किसी का खलल मंजूर नहीं था.

दादी के कमरे में आने से और उस के पलंग पर बैठने से आईमी को खास फर्क नहीं पड़ा. वह व्यस्त थी कुछ नटखटपन में मुसकराती, फोन पर फर्राटे से उंगलियां चलाते हुए.

करुणा को यह उपेक्षा बहुत बुरी लग रही थी. मगर परिस्थितियां संभालने की उन की पुरानी आदत थी. उन्होंने कहा, ‘‘आईमी, कितनी बड़ी हो गई तू. 7 साल से नहीं देखा, पूरी 24 की होने जा रही है. आजा, दादी के गले नहीं लगेगी?’’

ग्रैनी, प्लीज 1 मिनट, जरूरी बात कर रही हूं न.’’

‘‘बेटा, मुझ से तो मिल ले, कितनी दूर से आई हूं तुम सब से मिलने.’’

‘‘अरे, आई तो दूर से हो मगर कौन सा भागी जा रही हो. अभी तो यहां रहोगी ही न.’’

करुणा आहत थीं. बड़ों को थोड़ा मान देने, अपने हाथों से अपना काम करने, दूसरों से मधुर व्यवहार करने, कुछ अनुशासित रहने में भला कौन सा पिछड़ापन झलकता है, सोचती हुई वे लौट कर हौल में दीवान पर आ कर बैठ गईं.

इसी बीच, ईशान को अपने कमरे से बाहर आया देख करुणा अवाक रह गईं. सिर के बाल खड़ेखड़े, हिप्पी सी ड्रैस, कान में इयरफोन लगा हुआ.

करुणा इस से पहले कुछ कह पातीं, ईशान ने करुणा की ओर देख कर हाथ हिलाते हुए कहा, ‘‘हाय ग्रैनी, हाउ आर यू? सीइंग आफ्टर लौंग टाइम. हैव अ ग्रेट डे.’’ फिर ईशान मां से मुखातिब हुआ, ‘‘ममा, आज फ्रैंड्स के साथ मेरी कुछ प्लानिंग है, लंच बाहर ले लूंगा. डिनर के बाद ही आऊंगा. डौंट कौल मी.’’

‘‘रात को थोड़ा जल्दी आना, बेटा,’’ रितिका ने धीरे से कहा.

‘‘ऐज यूजुअल, चाबी है मेरे पास, डौंट वरी ममा.’’

लंच के समय आईमी को बुलाते वक्त करुणा ने देखा वह फोन पर व्यस्त थी. रितिका और करुणा आईमी का इंतजार कर रही थीं कि आईमी एक स्लीवलैस डीप कट ब्लाउज और मिनी स्कर्ट में उन के सामने आ खड़ी हुई. स्कूटी की चाबी घुमाते हुए उस ने कहा, ‘‘ममा, कालेज में अर्जैंट क्लास रखे गए हैं, मैं देर से आऊंगी.’’

करुणा के अब परेशान होने की बारी थी. व्याकुल हो, पूछ बैठीं, ‘‘बेटा, क्लासैज कब तक चलेंगी?’’

‘‘ग्रैनी, ये हमारे हाथ में नहीं,’’ गुस्से से कहती हुई आईमी निकल गई.

करुणा बिस्तर पर लेटे अनायास ही विचारों में डूबने लगीं. उन्होंने जिंदगीभर साड़ी ही पहनी लेकिन अमेरिका जा कर एलिसा के कहने पर पैंटशर्ट भी पहनी. वहां की संस्कृति से बहुतकुछ सीखा. मगर अपने व्यक्तित्व को यथावत बनाए रखा. भाषा को ज्ञान के लिहाज से लिया और दिया. अपनी शालीनतासभ्यता को कभी भी उन्होंने जाने नहीं दिया. देर रात हो चुकी थी लेकिन आईमी और ईशान का कोई अतापता न था. वे चिंतित थीं, मगर बहू के कारण कुछ खुल कर कह नहीं पा रही थीं. फिर भी जब रहा न गया तो डाइनिंग टेबल पर वे सौरभ से बोल पड़ीं, ‘‘रात के 10 बज चुके हैं, दोनों का ही पता नहीं. कम से कम आईमी के लिए तो पूछपरख करो?’’

रितिका कुछ उत्तेजित सी बोलीं, ‘‘मम्मीजी, आप जब से आई हैं, बस, दोनों बच्चों के पीछे पड़ी हैं.’’

बहू मेरी अनुभवी आंखें चैन नहीं रख पा रहीं. कहीं कुछ ठीक नहीं है. तुम लोग गहराई में नहीं देख रहे.’’

‘‘आप जब नहीं थीं, तब भी हमारी जिंदगी ऐसी ही चल रही थी, सब को अपनी जिंदगी जीने दें, आईमी की ही क्यों पूछपरख हो. वह लड़की है इसलिए? वह भी बेटे की तरह जिएगी. आप लोग अपनी दकियानूसी सोच बदलिए.’’

‘‘रितु, मैं ने बेटे की भी चिंता समानरूप से की, लेकिन बेटियों का खयाल ज्यादा रखना पड़ता है क्योंकि कुछ भी दुर्घटना हो जाए, भुगतना उसे ही पड़ता है. थोड़ा वास्तविकता को समझो.’’

सौरभ बेबस सा महसूस करने लगे थे. उन्होंने देखा, रितिका अब ऐसा कुछ कह सकती है जिस से मां ज्यादा आहत हो जाएंगी. उन्होंने टोका, ‘‘मम्मी, रहने दो, उन के लिए रात के 12 बजे तक घर लौटना आमबात है.’’

रितिका और सौरभ के अपने कमरे में चले जाने के बाद करुणा निढाल हो, अपने बिस्तर पर पड़ गईं. विदेश में 5 साल की कुक्कू यानी संकेत की बेटी उन्हें दादी कहती है. संकेत ने उसे ऐसा ही कहना सिखाया है. एलिसा और कुक्कू दोनों ही खूब प्यारी हैं, और एलिसा कितनी व्यवहारकुशल. और यहां ये लोग विदेशी सभ्यता की गलतियों को आधुनिक होने के नाम पर मैडल बना कर गले में लटकाए घूम रहे हैं.

अचानक फ्लैट के दरवाजे पर चाबी घूमने की आवाज आई. करुणा ने देखा, आईमी लड़खड़ाते कदमों से अपने कमरे में चली गई. करुणा निश्चिंत भी हुईं और परेशान भी. 11 बजे चुके थे. करुणा की नजर दरवाजे पर टिकी थी. इतने में ईशान भी आ गया और अपने कमरे में घुस कर दरवाजा बंद कर लिया.

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