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मुझे इयररिंग्स पहनने बहुत अच्छे लगते हैं, लेकिन मैं जब भी उन्हें पहनती हूं मेरे कानों के आसपास फुंसियां होने लगती हैं, मेरी इस समस्या का हल बताएं?

सवाल
मुझे इयररिंग्स पहनने बहुत अच्छे लगते हैं. वे मेरे चेहरे पर सूट भी करते हैं, लेकिन मैं जब भी उन्हें पहनती हूं मेरे कानों के आसपास फुंसियां होने लगती हैं. इन की वजह से सूजन भी हो जाती है. कृपया मेरी इस समस्या का हल बताएं?

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जवाब
इस तरह की समस्या तब आती है जब की स्किन सैंसिटिव या ऐलर्जिक हो. आप के लिए अच्छा होगा कि आप हमेशा सोने या सिल्वर के इयररिंग्स पहनें क्योंकि इन से अन्य धातुओं की अपेक्षा ऐलर्जी होने की संभावना कम होती है.

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हमारा शरीर बहुत ही संवेदनशील होता है. नाक, कान, आंख और त्वचा हमारे शरीर के ऐसे संवेदनशील अंग हैं जिनमें एलर्जी बहुत ही आसानी से हो जाती है. कुछ लोग इतने सेंसिटिव यानी संवेदनशील होते हैं कि उन्हें खाने-पीने की चीजों से भी एलर्जी हो जाती है. कुछ बूढ़े और बच्चे ऐसे होते हैं जिन्हें अनाज से भी एलर्जी की समस्या होती है. कुछ लोगों को दूध से, अंडे से, मछली से, एलर्जी होती है. कुछ लोगों को दवाइयों से तो कुछ को कीड़े -मकोड़ों के काटने से भी एलर्जी हो जाती है. कई बार कई लोगों को किसी तरह के ब्यूटी प्रोडक्ट यानी कौस्मेटिक के इस्तेमाल से भी एलर्जी हो जाती है.

सबसे पहले हमारे लिए यह जानना जरूरी है कि एलर्जी होने के क्या कारण हैं? और इसका घरेलू इलाज क्या है? एलर्जी शरीर में कई तरह से होती है. एलर्जी का मुख्य कारण आजकल की प्रदूषित हवा है. धूल, मिट्टी के कण हमारी नाक में जाने से हमें बार-बार छींक आने से और मौसम में होने वाले परिवर्तन के कारण कई बार एलर्जी की समस्या उत्पन्न हो जाती है. किसी-किसी को लकड़ी, फल, अनाज की धूल आदि से भी एलर्जी हो जाती है. जानवरों को छूने से या उनके आसपास होने के कारण खुजली होना भी एलर्जी है. कुछ दवाइयों के कारण भी एलर्जी हो सकती है, इसलिए एलर्जी का इलाज बेहद जरूरी है.

एलर्जी के लक्षण

नाक में सूजन आ जाना सर्दी जुखाम बना रहना और तेज खासी और बुखार जैसी समस्याएं लगातार बने रहना या फिर सर्दियों में नाक बहना, एलर्जी के लक्षण हैं.

आंखों में जलन या बारबार पानी आना, आंखों में ज्यादा समय तक लाली का होना. यदि आपको हवा में सांस लेने में तकलीफ होती है, बार-बार खांसी आती है तो यह दमा या एलर्जी का लक्षण हो सकता है.

कुछ लोगों को तेज धुप से और बारिश के कारण त्वचा की एलर्जी हो जाती है. इससे त्वचा लाल हो जाती है इसके अलावा अगर आपको त्वचा में फुंसियां, खुजली या फिर बार-बार छींक आती हैं तो यह भी एलर्जी के ही लक्षण है.

एलर्जी का घरेलू इलाज

यदि आप एलर्जी का इलाज आसानी से करना चाहती हैं तो अंग्रेजी दवाइयों की जगह घर पर ही इसका घरेलू इलाज करना ज्यादा बेहतर है, क्योंकि ये कुछ समय के लिए आप की एलर्जी को खत्म कर देती है. लेकिन उसे पूरी तरह से खत्म नहीं कर पाती. इसलिए आपको घरेलू उपाय अपनाना चाहिए क्योंकि इनकी मदद से आप एलर्जी को जड़ से खत्म कर सकती हैं.

अगर आपको त्वचा में किसी भी प्रकार की एलर्जी हो रही है तो आप कपूर और नारियल के तेल का इस्तेमाल कर सकती हैं. इसका इस्तेमाल करने के लिए आपको कपूर और नारियल के तेल को आपस में मिलाकर अपनी खुजली वाली जगह पर लगाएं ऐसा करने से आपको जल्दी राहत मिलेगी.

एलर्जी होने पर नमक के पानी से गरारा करने पर आप के नाक और मुंह में फसे हुए धूल के कण और बलगम बाहर निकल जाता है. जिसके कारण आपके नाक की एलर्जी की समस्या दूर हो जाती है. इसके लिए एक गिलास गर्म पानी में एक चम्मच नमक और चुटकी भर सोडा डालकर इस पानी का सेवन करें.

नाक में होने वाली एलर्जी को दूर करने के लिए आप अदरक का इस्तेमाल भी कर सकती हैं. क्योंकि अदरक में एंटीबायोटिक और एंटी वायरल तत्व मौजूद होते हैं जो हमारे रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं.

एक कप पानी में कटा हुआ अदरक, दालचीनी और थोड़ी सी लौंग मिलाकर 5 से 10 मिनट के लिए उबाल लें. जब यह काढ़ा बनकर तैयार हो जाए तो इसमें शहद मिलाकर उसे चाय की तरह पी लें. ऐसा करने से आपकी नाक और शरीर की एलर्जी दूर हो जाती है ध्यान रहे इसका सेवन आपको दिन में कम से कम तीन बार करना है.

अदरक, काली मिर्च, तुलसी के पत्ते, लौंग व मिश्री को मिलाकर बनायी गयी हर्बल चाय पीनी चाहिए. इस चाय से न सिर्फ एलर्जी से निजात मिलती है, बल्कि एनर्जी भी मिलती है. और ये आपको बीमार होने से बचाता है.

एलोवेरा भी आपके त्वचा के रोग व एलर्जी दूर करने में मदद करता है क्योंकि एलोवेरा के अंदर जीवाणुरोधी जानी एंटीबैक्टीरियल गुण होता है. एलोवेरा की कुछ पत्तियों को पीसकर त्वचा पर लगाने से आपकी स्किन एलर्जी और त्वचा पर होने वाली खुजली दूर हो जाती है. इसका इस्तेमाल आप कम से कम दिन में दो बार कर सकती हैं. यह हमारे कई रोगों को दूर करने में मददगार है.

नीम के पत्तों को रात में भिगोकर रख देते हैं. और इन पत्तों को पीसकर अपनी खुजली वाली त्वचा पर लगाए. इससे आपकी त्वचा की एलर्जी खत्म हो जाती है. और यदि आप नीम के पत्तों को पानी में उबालकर उस पानी से नहाते हैं तो भी आप की एलर्जी काफी हद तक खत्म हो जाती है.

अगर आपकी आंखों में जलन हो रही है या खुजली हो रही है. तो अपनी आंखों को ठंडे पानी से धो लें और घर से निकलने से पहले चश्मे और मास्क का इस्तेमाल करें.

यदि आपके नाक में सूजन हो रही है. तो पुदीने वाली चाय का इस्तेमाल करें और स्किन में एलर्जी होने पर चंदन का पाउडर या नींबू का रस लगाकर नहाए.

अपने आसपास साफ सफाई रखें, खुजली वाले जानवरों से दूर रहें और साफ-सुथरे कपड़े पहने क्योंकि उनमें बैक्टीरिया हो सकते हैं. जो की एलर्जी का कारण होते हैं.

भारत के उत्तरीमध्य इलाकों में केले की उन्नत खेती

यकीनन केला एक खास फसल है. भारत में करीब 4.9 लाख हेक्टेयर जमीन में केले की खेती होती है, जिस से 180 लाख टन उत्पादन प्राप्त होता?है. महाराष्ट्र में सब से ज्यादा केले का उत्पादन होता है. वहां सब से ज्यादा उत्पादन जलगांव जिले में होता है. देशभर के कुल केला उत्पादन का करीब 24 फीसदी भाग जलगांव जिले से प्राप्त होता?है. केले को गरीबों का फल कहा जाता है. केले की बढ़ती मांग की वजह से इस की खेती का महत्त्व भी बढ़ता जा रहा है. केले की खेती में यह देखा गया?है कि किसान अकसर जानकारी न होने की वजह से थोड़ीथोड़ी कमियों के कारण केले की खेती का पूरा फायदा नहीं ले पा रहे हैं.

जलवायु : केला उत्पादन के लिए गरम व नमी वाली जलवायु सही होती है. जहां तापमान 20 से 35 डिगरी सेंटीग्रेड के बीच रहता है, वहां पर केले की खेती अच्छी तरह से की जा सकती है. ठंडी व शुष्क जलवायु में भी इस का उत्पादन होता?है, लेकिन पाला व गरम हवाओं (लू) से इसे काफी नुकसान होता है.

जमीन : केले की खेती के लिए बलुई से मटियार दोमट जमीन सही होती?है, जिस का पीएच मान 6.5 से 7.5 हो. केले की खेती के लिए सही जल निकास का होना जरूरी?है. केले की खेती ज्यादा अम्लीय व क्षारीय जमीन में नहीं की जा सकती?है. जमीन में पानी 7 से 8 फुट नीचे होना चाहिए.

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केले की व्यावसायिक प्रजातियां

ड्वार्फ केवेंडिस (भुसावली, बसराई, मारिसस, काबुली, सिंदुरानी, सिंगापुरी जहाजी, मोरिस) : यह प्रजाति मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार व कर्नाटक की जलवायु के लिए मुनासिब पाई गई है. इस प्रजाति से चयन कर के गनदेवी सिलेक्शन (हनुमान) या पाडर्से नाम की जातियां विकसित की गई हैं, जिन की उत्पादन कूवत 20 से 25 किलोग्राम प्रति पौधा है. इस प्रजाति का पौधा बौने किस्म का (1.5 से 1.8 मीटर ऊंचा) होता?है. फल बड़े, मटमैले पीले या हरापन लिए हुए होते?हैं. तना मोटा हरा पीलापन लिए हुए होता है. पत्तियां चौड़ी व पीली होती हैं.

रोबस्टा (एएए) : इसे बांबेग्रीन, हरीछाल, बोजीहाजी आदि नामों से अलगअलग राज्यों में उगाया जाता?है. पौधों की ऊंचाई 3-4 मीटर होती है. तना औसत मोटाई व हरे रंग का होता है. इस के बंच का वजन औसतन 25-30 किलोग्राम होता है. फल मीठे व दिखने में सुंदर होते हैं. फल पकने पर चमकीले पीले रंग के हो जाते हैं. यह प्रजाति सिंगाटोक (लीफ स्पाट) बीमारी से काफी प्रभावित होती?है. फलों का भंडारण ज्यादा दिनों तक नहीं किया जा सकता?है.

रस्थली (सिल्क एएबी) : इस प्रजाति को मालभोग, अमृत पानी, सोनकेला रसवाले आदि नामों से अनेक राज्यों में उगाया जाता?है. इस प्रजाति के पौधे की ऊंचाई 2.5 से 3.0 मीटर होती है. फूल 12 से 14 महीने के बाद ही आने शुरू होते हैं. फल (फिंगर) 4 कोण वाले हरे, पीले रंग के व मोटे होते?हैं. छिलके पतले होते हैं, जो पकने के बाद सुनहरे पीले रंग के हो जाते हैं. केले का बंच 15 से 20 किलोग्राम का होता है. फल ज्यादा स्वादिष्ठ व पके सेब जैसी कुछ मिठास लिए हुए होता है. इस प्रजाति का भंडारण ज्यादा दिनों तक नहीं किया जा सकता.

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पूवन (एबी) : इसे चीनी चंपा, लाल वेल्ची और कदली कोडन के नामों से भी जाना जाता?है. इस का पौधा बेलनाकार व मध्यम ऊंचाई का होता है. रोपाई के 9-10 महीने बाद फूल निकलने शुरू हो जाते?हैं. फल छोटे, बेलनाकार व उभरी चोंच वाले होते?हैं. फल का गूदा हाथी के दांत के समान सफेद व ठोस होता है. इसे ज्यादा समय तक भंडारित किया जा सकता है. फल पकने के बाद भी टूट कर बंच से अलग नहीं होते.

करपूरावल्ली (एबीबी) : इसे बोंथा, बेंसा व केशकाल आदि नामों से जाना जाता है. यह किस्म किचन गार्डन में लगाने के लिए सही पाई गई है. इस का पौधा 10 से 12 फुट लंबा होता है. तना काफी मजबूत होता?है. फल गुच्छे में लगते हैं. फल मोटे, नुकीले और हरेपीले रंग के होते हैं. यह चिप्स व पाउडर बनाने के लिए सब से अच्छी प्रजाति है.

नेंद्रन (प्लांटेन एएबी) : इसे सब्जी केला या रजेली भी कहते हैं. इस का इस्तेमाल चिप्स बनाने में सब से ज्यादा होता है. इस का पौधा बेलनाकार, कम मोटा और 3 मीटर ऊंचाई वाला होता है. फल 20 सेंटीमीटर लंबा, छाल मोटी व थोड़ी मुड़ी व त्रिकोणी होती है. जब फल कच्चा होता है तो इस में पीलापन रहता?है, लेकिन पकने पर छिलका कड़क हो जाता?है. इस का इस्तेमाल चिप्स व पाउडर बनाने के लिए किया जाता है.

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केले की उन्नत संकर प्रजातियां

एच 1 (अग्निस्वार पिसांग लिलिन) : यह लीफ स्पाट फ्यूजेरियम बीमारी निरोधक कम समय वाली किस्म है. इस संकर प्रजाति का पौधा औसत ऊंचाई का होता है और इस में लगने वाले बंच का वजन अमूमन 14 से 16 किलोग्राम का होता है. फल लंबे होते हैं, जो पकने पर सुनहरे या पीले रंग के हो जाते हैं. पकने पर यह हलका खट्टा होता?है और इस में मीठीखट्टी महक आती है. 3 सालों के फसलचक्र में 4 फसलें ली जा सकती है.

जमीन की तैयारी व रोपाई : खेत की जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए, जिस से जमीन का जल निकास सही रहे और कार्बनिक खाद ज्यादा मात्रा में हो, इस के लिए हरी खाद की फसल लें.

पौध अंतराल : कतार से कतार की दूरी 1.8 मीटर व पौधे से पौधे की दूरी 1.5 मीटर रखते हैं. रोपाई के लिए 45×45×45 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे खोदें. हर गड्ढे में 12-15 किलोग्राम अच्छी पकी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद रोपाई से पहले डालें. साथ ही हर गड्ढे में 5 ग्राम थिमेट दवा डाल कर मिट्टी में मिला दें.

बीज उपचार : प्रकंदों को उपचार से पहले साफ करें और जड़ों को अलग कर दें. 1 फीसदी बोर्डो मिश्रण तैयार कर के प्रकंदों को उपचारित करें. इस के बाद 3-4 ग्राम बाविस्टीन प्रति लीटर पानी का घोल बना कर प्रकंदों को 5 मिनट तक उपचारित करें.

प्रकंदों की रोपाई का समय : केले के प्रकंदों की ज्यादा ठंड व बारिश को?छोड़ कर पूरे साल रोपाई की जा सकती है. आमतौर पर अप्रैल से जून के बीच इस फसल की रोपाई की जाती है, जिस में केले के साथ मूंग, भिंडी, टमाटर, मिर्च, बैगन वगैरह फसलें ले सकते?हैं. गरमी की फसल से ज्यादा उत्पादन मिलता?है.

खाद व उर्वरक : केले की फसल को रोपाई के 5-7 महीने के अंदर नाइट्रोजन 200 ग्राम, स्फुर 40-50 ग्राम, पोटाश 250-300 ग्राम, कंपोस्ट खाद 5 किलोग्राम व थोड़ी सी कपास या महुए की खली प्रति पौधे के हिसाब से दें. कंपोस्ट खाद व फास्फोरस की पूरी मात्रा पौधा लगाते समय दें. नाइट्रोजन व पोटाश 1 महीने के अंतराल से 7 से 8 महीने के अंदर 7 से 8 बार में दें.

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मिट्टी चढ़ाना : केले की फसल में पौधों की जड़ों पर मिट्टी चढ़ाना जरूरी है, क्योंकि केले की जड़ें ज्यादा गहरी नहीं जाती हैं. पौधों को सहारा देने के लिए भी मिट्टी चढ़ाना जरूरी?है. कभीकभी कंद बाहर आ जाते हैं, जिस से पौधे की बढ़वार रुक जाती?है, इसलिए मिट्टी चढ़ाना जरूरी है.

मल्चिंग : जमीन से जल के वाष्पीकरण और खरपतवारों की वजह से पानी की कमी हो जाती है व जमीन से पोषक तत्त्व भी खरपतवारों द्वारा लिए जाते?हैं. पानी के वाष्पीकरण व खरपतवारों के नियंत्रण के लिए प्लास्टिक की शीट पौधे की जड़ों के चारों ओर लगाने से काफी फायदा होता है. इस के अलावा गन्ने के छिलके, सूखी घास, सूखी पत्तियां डालने व गुड़ाई करने से पानी का नुकसान कम हो जाता?है. प्लास्टिक की काली पौलीथिन की मल्चिंग करने पर उत्पादकता बढ़ जाती?है.

सकर्स निकालना : जब तक केले के पौधे में फूलों के गुच्छे न निकलें तब तक सकर्स को अकसर काटते रहें. फूल जब लग जाएं तो 1 सकर को रखें व बाकी को काटते रहें. यह ध्यान रखें कि 1 साल तक 1 पौधे के साथ 1 सकर्स को ही बढ़ने दिया जाए. वह जड़ी (रेटून) की फसल के रूप में उत्पादन देगा. बंच के निचले स्थान में जो नरमादा भाग हैं, उन्हें  काट कर वहां बोर्डोपेस्ट लगा दें.

सहारा देना : जिन किस्मों में बंच का वजन काफी हो जाता है और उस के?टूटने का डर रहता?है, उसे बल्ली का सहारा देना चाहिए. केले के पत्ते से उस के डंठल को ढक देना चाहिए.

पौधों को काटना : केला बंच फूल लगने से 110 से 130 दिनों में काटने लायक हो जाते?हैं. बंच काटने के बाद पौधों को धीरेधीरे काटें, क्योंकि इस से मातृप्रकंद के पोषक तत्त्व जड़ी बाले पौधे को मिलने लगते?हैं. जिस की वजह से उत्पादन अच्छा होने की संभावना बढ़ जाती है.

पानी का इंतजाम : केले की फसल को ज्यादा पानी की जरूरत होती है. केले के पत्ते बड़े व चौड़े होते हैं, इसलिए पानी का वाष्पीकरण ज्यादा होने से केले को ज्यादा पानी की जरूरत होती है. केले के पेड़ को रोज 12-15 लीटर पानी की जरूरत होती है. ड्रिप तरीके से सिंचाई करने पर 60 फीसदी पानी की बचत होती?है.

कीट व रोग

पनामा बिल्ट या उकठा रोग : यह बीमारी फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरम नाम के फफूंद से फैलती है. पौधे की पत्तियां मुरझा कर सूखने लगती?हैं. केले का पूरा तना फट जाता?है. शुरू में पत्तियां किनारों से पीली पड़ती हैं और डंठल से मुड़ जाती?हैं. पीली पत्तियां तने के चारों ओर स्कर्ट की तरह लटकती रहती हैं. आधार पर (निचले भाग) तने का फटना बीमारी का खास लक्षण है. बैस्कूलर टिश्यू जड़ों और प्रकंद में पीले, लाल व भूरे रंग में बदल जाते?हैं. पौधा कमजोर हो जाता?है, जिस के कारण फूल व फल नहीं लगते हैं.

रोकथाम

* गन्ना व सूरजमुखी के फसलचक्र को अपनाने से बीमारी का प्रकोप कम हो जाता?है.

* सकर्स को लगाने से पहले 0.2 फीसदी बाविस्टीन के घोल में 30 मिनट तक डुबो कर रखना चाहिए.

*?ट्राइकोडर्मा विरिडी जैविक फफूंद नाशक का इस्तेमाल करना चाहिए.

* जिलेटिन कैप्सूल में 50 ग्राम बाविस्टीन भर कर कैप्सूल अप्लीकेटर के सहारे कंद में 45 डिगरी कोण पर रखने से बीमारी पर अच्छा काबू देखा गया है.

लीफ स्पाट (सिंगाटोका) : यह बीमारी स्यूडोसर्कोस्पोरा म्यूसी फफूंद के कारण होती?है. इस बीमारी के प्रकोप से पत्तियों में?क्लोरोफिल की कमी हो जाती?है, क्योंकि टिशू हरे से?भूरे रंग के हो जाते?हैं. धीरेधीरे पौधे सूखने लगते?हैं.

शुरू में पत्तियों पर छोटे धब्बे दिखाई देते?हैं. फिर ये पीली या हरी पीली धारियों में बदल जाते?हैं. ये पत्तियों की दोनों सतहों पर दिखाई देती हैं. बाद में ये धारियां भूरी व काली हो जाती?हैं. धब्बों के बीच का?भाग सूख जाता है.

रोकथाम

बीमारी लगी पत्तियों को काट कर जला देना चाहिए. फफूंद नाशक दवाएं जैसे डाइथेन एम 45, 1250 ग्राम प्रति हेक्टेयर या बाविस्टीन 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर या प्रोपीक्नोजाल 0.1 फीसदी का छिड़काव टिपौल के साथ अक्तूबर में 3-4 बार करें. 2-3 हफ्ते के अंतर पर छिड़काव करने से बीमारी पर नियंत्रण रखा जा सकता है.

एंथ्रेक्नोज : यह बीमारी कोलेट्रोट्राइकम मुसे नामक फफूंद की वजह से फैलती?है. यह बीमारी केले के पौधे में बढ़वार के समय लगती है. इस बीमारी के लक्षण पौधों की पत्तियों, फूलों व फल के छिलके पर छोटे काले गोल धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं. इस बीमारी का प्रकोप जून से सितंबर तक ज्यादा होता?है, क्योंकि इस समय तापमान ज्यादा रहता?है.

रोकथाम

* प्रोक्लोराक्स 0.15 फीसदी या कार्बेंडाजिम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल बना कर छिड़काव करें.

* केले को 3/4 परिपक्वता पर काटना चाहिए.

शीर्षगुच्छा रोग (बंचीटाप) : पत्तियों की भीतरी नसों के साथ गहरी धारियां शुरू के लक्षण के?रूप में दिखाई देती?हैं. ये लक्षण गहरे रंग की लाइनों में 1 इंच या ज्यादा लंबे किनारों के साथ होते?हैं. पौधों का ऊपरी सिरा एक गुच्छे का रूप ले लेता?है. पत्तियां छोटी व संकरी हो जाती?हैं. किनारे ऊपर की ओर मुड़ जाते?हैं. डंठल छोटे व पौधे बौने रह जाते?हैं और फल नहीं लगते?हैं. इस बीमारी के विषाणु का वाहक पेंटोलोनिया नाइग्रोनरवोसा नामक माहू है.

रोकथाम

* रोग लगे पौधों को निकाल कर फेंक देना चाहिए.

* कीट नियंत्रण के लिए मेटामिस्टाक्स 1.25 मिलीलीटर या डेमेक्रान 0.5 मिलीलीटर दवा का प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.

केले का धारी विषाणु रोग : इस बीमारी के कारण शुरू में पौधों की पत्तियों पर छोटे पीले धब्बे पड़ जाते हैं, जो बाद में सुनहरी पीली धारियों में बदल जाते?हैं. घेर का बाहर न निकलना, बहुत छोटी घेर निकलना व फलों में बीज का विकास प्रभावित पौधों के खास लक्षण हैं. इस रोग का विषाणु मिलीबग व प्लेनोकोकस सिट्री के द्वारा फैलाया जाता?है.

रोकथाम

* प्रभावित पौधों को निकाल कर फेंक देना चाहिए. मिलीबग के खात्मे के लिए कार्बोफ्यूरान की डेढ़ किलोग्राम मात्रा प्रति एकड़ के हिसाब से जमीन में डालने से इस रोग पर काबू रखा जा सकता है.

कीट व उन की रोकथाम

केला प्रकंद छेदक (राइजोम बीबिल) : यह कीट केले के प्रकंद में छेद करता?है. इस की इल्ली प्रकंद के अंदर छेद करती?है, लेकिन वह बाहर से नहीं दिखाई देती?है. कभीकभी केले के स्यूडोस्टेम में भी छेद कर देती है. इन छेदों में सड़न पैदा हो जाती?है.

रोकथाम

* प्रकंदों को लगाने से पहले 0.5 फीसदी मोनोक्रोटोफास के घोल में 30 मिनट तक डुबो कर उपचारित करें. ज्यादा प्रकोप होने पर

0.03 फीसदी फास्फोमिडान के घोल का छिड़काव करें.

तना भेदक : इस कीट की मादा पत्तियों के?डंठलों में अंडे देती?है. अंडों से इल्लियां निकल कर पत्तियों व तने को खाती हैं. शुरू में पौधे के तने से रस निकलता हुआ दिखाई देता है. फिर कीट के लार्वा द्वारा किए गए छेद से गंदा पदार्थ पत्तियों के डंठलों पर बूंदबूंद टपकता?है, जिस से तने के अंदर निकल रहा पुष्प प्रोमोडिया शुष्क हो जाता?है. इस का प्रकोप साल भर होता है.

रोकथाम

* मोनोक्रोटोफास की 150 मिलीलीटर मात्रा 350 मिलीलीटर पानी में घोल कर तने में इंजेक्ट करें.

* घेर को काटने के बाद पौधों को जमीन से काट कर कीटनाशक दवा कार्बोरिल की

2 ग्राम मात्रा का प्रति लीटर पानी का घोल बना कर छिड़काव करने से

अंडे व कीट खत्म हो जाते?हैं.

माहू : यह कीट केले की पत्तियों का रस चूस कर उन्हें नुकसान पहुंचाता है. यह बंचीटाप वायरस को फैलाने का प्रमुख वाहक है. इस माहू का रंग भूरा होता?है, जो पत्तियों के निचले भाग या पौधे के ऊपरी भाग से रस चूसता है.

रोकथाम

* फास्फोमिडान 0.03 फीसदी या मोनोक्रोटोफास 0.04 फीसदी के घोल का छिड़काव करें.

थ्रिप्स : 3 प्रकार के थ्रिप्स केला फल (फिंगर) को नुकसान पहुंचाते हैं. थ्रिप्स से प्रभावित फल भूरे बदरंग, काले और छोटेछोटे आकार के होते हैं. हालांकि फल के गूदे पर इस का असर नहीं पड़ता है, पर इन का बाजार भाव ठीक नहीं मिलता.

रोकथाम

* मोनोक्रोटोफास 0.05 फीसदी का घोल बना कर छिड़काव करें. मोटे कोरे कपड़े से बंच को ढंकने से भी कीट का प्रकोप कम होता है.

पत्ती खाने वाली इल्ली : इस कीट

की इल्ली नए छोटे पौधों की बिना खुली पत्तियों को खाती है. पत्तियों में नए छेद बना देती है.

रोकथाम

* थायोडान 35 ईसी का छिड़काव

(1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी) पत्तियों पर करने से प्रभावी असर होता है.

ऊपर बताई गई बातों पर ध्यान देने से किसानों को ज्यादा से ज्यादा मुनाफा मिल सकता है.

अल्जाइमर रोग दूर करने में आहार की भूमिका

अल्जाइमर रोग एक ऐसा अपरिवर्तनीय विकार है जिसमें दिमाग धीरे धीरे याददाश्त खोने लगता है और अंत में सामान्य कार्य करने की मूल क्षमता भी प्रभावित हो जाती है. यह समस्या 65 साल की उम्र में ज्यादा देखने को मिलती है और यह बीमारी हरेक पांच साल बाद दोगुनी हो जाती है.

यह रोग कैसे प्रभावित करता है? और इसमें आहार की क्या भूमिका है. इस बारे में बता रहीं हैं, पोषण विषेशज्ञ, आहार विषेशज्ञ एवं फिटनेस विषेशज्ञ मनीशा चोपड़ा.

• शुरू में, इससे न्यूराॅन और उनके संपर्क नष्ट हो जाते हैं जो स्मृति से जुड़े होते हैं. इसके बाद, बाद के चरण में यह समस्या भाषाई और सामाजिक व्यवहार को प्रभावित करती है.

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• आपको शुरू से ही उचित आहार लेना चाहिए जिससे कि आप इससे बचे रह सकें और जितना संभव हो इसे टाल सकें.

• यदि आप सामान्य उम्र से संबंधित याददाश्त नुकसान का पता लगाने में सफल रहते हैं या आप अपने दिमाग को स्वस्थ बनाए रखना चाहते हैं तो जितना संभव हो आपको स्वस्थ दिमाग के लिए कुछ आहार पर ध्यान देना चाहिए.

• आपको व्यायाम और माइंड गेम्स पर ध्यान देना चाहिए जिससे कि आपका दिमाग सक्रिय बना रहे और सेल्स ठीक से काम करते रहें.

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अपनी जिंदगी में शुरू से ही कौन से भोजन शामिल करने चाहिए?

  1. उच्च गुणवत्ता के प्रोटीनः इसमें फिश ओमेगा, स्किनलेस व्हाइट मीट, चिकन, एग व्हाइट और कम फैट वाले डेयरी प्रोडक्ट्स शामिल हैं.
  2. सब्जियांः पत्तेदार गोभी, बीन्स, पालक, ब्रोकोली, कोलार्ड और अन्य हरी पत्तेदार सब्जियां. आपको सप्ताह में 5 से 6 बार इनका सेवन करना चाहिए क्योंकि ये बेहद जरूरी हैं. स्ट्राबेरी और ब्लूबेरीज का भी सेवन करना चाहिए.
  3. नट्स, सीड्स, एक्स्ट्रा-वर्जिन आॅयल, पीनट्स, वोकैडोजः नट्स दिमागी स्वास्थ्य के लिए अच्छा स्नैक्स हैं क्योंकि इनमें स्वस्थ फैट फाइबर और एंटीआॅक्सीडेंट शामिल होते हैं. एक मुट्ठी अखरोट हर किसी को दैनिक आधार पर अपने आहार में शामिल करने चाहिए.
  4. आपको व्हाइट ब्रेड, सैचुरेटेड फैट, फ्रायड फूड, ड्रायड फूड्स जैसे पोटेटो चिप्स, केक्स, म्यूफिन, हाई फ्रक्टोज सीरप आदि का इस्तेमाल कम से कम करना चाहिए. चीनी हमारे दिमाग के लिए बेहद खराब फूड है. आप चीनी से दूरी बना सकते हैं क्योंकि दिमाग आपके शरीर में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण अंग है. दिमाग पर चीनी का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इससे आपकी मेमोरी, मूड प्रभावित होते हैं और अल्जाइमर रोग की चपेट में आने का खतरा बढ़ता है.
  5. आहार में सेब, केला, संतरा और अन्य फलों को भी शामिल किया जाना चाहिए.
  6. बी-12 जैसे विटामिन, ओमेगा-3, फैटी एसिड (ग्रीन टी, जिन्कगो बिलोबा जैसे हर्बल सप्लीमेंट समेत) , अधिक एंटीआॅक्सीडेंट मात्रा वाले भोजन को नियमित आधार पर सेवन करना चाहिए.
  7. यह माना गया है कि कुछ खास विटामिन, फैटी एसिड याददाश्त  नुकसान यानी भूलने की समस्या को घटा सकते हैं.इस रोग में आहार का योगदान बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि कमजोर आहार से याददाश्त  प्रभावित होती है और इससे अल्जाइमर पैदा होने की आशंका बढ़ जाती है.

    अच्छा, स्वस्थ, पोषण-युक्त भोजन और लाइफस्टाइल एक स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देने के महत्पूर्ण हिस्सा हैं. अल्जाइमर का रोग तब होता  जब दिमाग की कोशिकाओं में और उसके आसपास प्रोटीन का स्तर असामान्य हो जाए, भले ही आप याददाश्त नुकसान से जूझ रहे हों या इसकी शुरुआत होने की आशंका महसूस कर रहे हों

Crime Story: मौज मजे में पति की हत्या

मानने वाले प्रेमीप्रेमिका और पतिपत्नी का रिश्ता सब से अजीम मानते हैं. लेकिन  जबजब ये रिश्ते आंतरिक संबंधों की महीन रेखा को पार करते हैं, तबतब कोई न कोई संगीन जुर्म सामने आता है.

हरिओम तोमर मेहनतकश इंसान था. उस की शादी थाना सैंया के शाहपुरा निवासी निहाल सिंह की बेटी बबली से हुई थी. हरिओम के परिवार में उस की पत्नी बबली के अलावा 4 बच्चे थे. हरिओम अपनी पत्नी बबली और बच्चों से बेपनाह मोहब्बत करता था.

बेटी ज्योति और बेटा नमन बाबा राजवीर के पास एत्मादपुर थानांतर्गत गांव अगवार में रहते थे, जबकि 2 बेटियां राशि और गुड्डो हरिओम के पास थीं. राजवीर के 2 बेटों में बड़ा बेटा राजू बीमारी की वजह से काम नहीं कर पाता था. बस हरिओम ही घर का सहारा था, वह चांदी का कारीगर था.

हरिओम और बबली की शादी को 15 साल हो चुके थे. हंसताखेलता परिवार था, घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. दिन हंसीखुशी से बीत रहे थे. लेकिन अचानक एक ऐसी घटना घटी, जिस से पूरे परिवार में मातम छा गया.

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3 नवंबर, 2019 की रात में हरिओम अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ घर से लापता हो गया. पिछले 12 साल से वह आगरा में रह रहा था. 36 वर्षीय हरिओम आगरा स्थित चांदी के एक कारखाने में चेन का कारीगर था.

पहले वह बोदला में किराए पर रहता था. लापता होने से 20 दिन पहले ही वह पत्नी बबली व दोनों बच्चियों राशि व गुड्डो के साथ आगरा के थानांतर्गत सिकंदरा के राधानगर इलाके में किराए के मकान में रहने लगा था.

आगरा में ही रहने वाली हरिओम की साली चित्रा सिंह 5 नवंबर को अपनी बहन बबली से मिलने उस के घर गई. वहां ताला लगा देख उस ने फोन से संपर्क किया, लेकिन दोनों के फोन स्विच्ड औफ थे.

चित्रा ने पता करने के लिए जीजा हरिओम के पिता राजबीर को फोन कर पूछा, ‘‘दीदी और जीजाजी गांव में हैं क्या?’’

इस पर हरिओम के पिता ने कहा कि कई दिन से हरिओम का फोन नहीं मिल रहा है. उस की कोई खबर भी नहीं मिल पा रही. चित्रा ने बताया कि मकान पर ताला लगा है. आसपास के लोगों को भी नहीं पता कि वे लोग कहां गए हैं.

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किसी अनहोनी की आशंका की सोच कर राजबीर गांव से राधानगर आ गए. उन्होंने बेटे और बहू की तलाश की, लेकिन उन की कोई जानकारी नहीं मिली. इस पर पिता राजबीर ने 6 नवंबर, 2019 को थाना सिकंदरा में हरिओम, उस की पत्नी और बच्चों की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

जांच के दौरान हरिओम के पिता राजबीर ने थाना सिकंदरा के इंसपेक्टर अरविंद कुमार को बताया कि उस की बहू बबली का चालचलन ठीक नहीं था. उस के संबंध कमल नाम के एक व्यक्ति के साथ थे, जिस के चलते हरिओम और बबली के बीच आए दिन विवाद होता था. पुलिस ने कमल की तलाश की तो पता चला कि वह भी उसी दिन से लापता है, जब से हरिओम का परिवार लापता है.

पुलिस सरगरमी से तीनों की तलाश में लग गई. इस कवायद में पुलिस को पता चला कि बबली सिकंदरा थानांतर्गत दहतोरा निवासी कमल के साथ दिल्ली गई है. उन्हें ढूंढने के लिए पुलिस की एक टीम दिल्ली के लिए रवाना हो गई.

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शनिवार 16 नवंबर, 2019 को बबली और उस के प्रेमी कमल को पुलिस ने दिल्ली में पकड़ लिया. दोनों बच्चियां भी उन के साथ थीं, पुलिस सब को ले कर आगरा आ गई. आगरा ला कर दोनों से पूछताछ की गई तो मामला खुलता चला गया.

पता चला कि 3 नवंबर की रात हरिओम रहस्यमय ढंग से लापता हो गया था. पत्नी और दोनों बच्चे भी गायब थे. कमल उर्फ करन के साथ बबली के अवैध संबंध थे. वह प्रेमी कमल के साथ रहना चाहती थी. इस की जानकारी हरिओम को भी थी. वह उन दोनों के प्रेम संबंधों का विरोध करता था. इसी के चलते दोनों ने हरिओम का गला दबा कर हत्या कर दी थी.

बबली की बेहयाई यहीं खत्म नहीं हुई. उस ने कमल के साथ मिल कर पति की गला दबा कर हत्या दी थी. बाद में दोनों ने शव एक संदूक में बंद कर यमुना नदी में फेंक दिया था.

  पूछताछ और जांच के बाद जो कहानी सामने आई, वह इस तरह थी—

फरवरी, 2019 में बबली के संबंध दहतोरा निवासी कमल उर्फ करन से हो गए थे. कमल बोदला के एक साड़ी शोरूम में सेल्समैन का काम करता था. बबली वहां साड़ी खरीदने जाया करती थी. सेल्समैन कमल बबली को बड़े प्यार से तरहतरह के डिजाइन और रंगों की साडि़यां दिखाता था. वह उस की सुंदरता की तारीफ किया करता था.

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उसे बताता था कि उस पर कौन सा रंग अच्छा लगेगा. कमल बबली की चंचलता पर रीझ गया. बबली भी उस से इतनी प्रभावित हुई कि उस की कोई बात नहीं टालती थी. इसी के चलते दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए थे.

अब जब भी बबली उस दुकान पर जाती, तो कमल अन्य ग्राहकों को छोड़ कर बबली के पास आ जाता. वह मुसकराते हुए उस का स्वागत करता फिर इधरउधर की बातें करते हुए उसे साड़ी दिखाता. कमल आशिकमिजाज था, उस ने पहली मुलाकात में ही बबली को अपने दिल में बसा लिया था. नजदीकियां बढ़ाने के लिए उस ने बबली से फोन पर बात करनी शुरू कर दी.

जब दोनों तरफ से बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो नजदीकियां बढ़ती गईं. फोन पर दोनों हंसीमजाक भी करने लगे. फिर उन की चाहत एकदूसरे से गले मिलने लगी. बातोंबातों में बबली ने कमल को बताया कि वह बोदला में ही रहती है.

इस के बाद कमल बबली के घर आनेजाने लगा. जब एक बार दोनों के बीच मर्यादा की दीवार टूटी तो फिर यह सिलसिला सा बन गया. जब भी मौका मिलता, दोनों एकांत में मिल लेते थे.

हरिओम की अनुपस्थिति में बबली और कमल के बीच यह खेल काफी दिनों तक चलता रहा. लेकिन ऐसी बातें ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रहतीं, एक दिन हरिओम को भी भनक लग गई. उस ने बबली को कमल से दूर रहने और फोन पर बात न करने की चेतावनी दे दी.

दूसरी ओर बबली कमल के साथ रहना चाहती थी. उस के न मानने पर वह घटना से 20 दिन पहले बोदला वाला घर छोड़ कर सपरिवार सिकंदरा के राधानगर में रहने लगा. 3 नवंबर, 2019 को हरिओम शराब पी कर घर आया. उस समय बबली मोबाइल पर कमल से बातें कर रही थी. यह देख कर हरिओम के तनबदन में आग लग गई. इसी को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ तो हरिओम ने बबली की पिटाई कर दी.

बबली ने इस की जानकारी कमल को दे दी. कमल ने यह बात 100 नंबर पर पुलिस को बता दी. पुलिस आई और रात में ही पतिपत्नी को समझाबुझा कर चली गई. पुलिस के जाने के बाद भी दोनों का गुस्सा शांत नहीं हुआ, दोनों झगड़ा करते रहे.

रात साढे़ 11 बजे बबली ने कमल को दोबारा फोन कर के घर आने को कहा. जब वह उस के घर पहुंचा तो हरिओम उस से भिड़ गया. इसी दौरान कमल ने गुस्से में हरिओम का सिर दीवार पर दे मारा. नशे के चलते वह कमल का विरोध नहीं कर सका.

उस के गिरते ही बबली उस के पैरों पर बैठ गई और कमल ने उस का गला दबा दिया. कुछ देर छटपटाने के बाद हरिओम की मौत हो गई. उस समय दोनों बच्चियां सो रही थीं. कमल और बबली ने शव को ठिकाने लगाने के लिए योजना तैयार कर ली. दोनों ने शव को एक संदूक में बंद कर उसे फेंकने का फैसला कर लिया, ताकि हत्या के सारे सबूत नष्ट हो जाएं.

योजना के तहत दोनों ने हरिओम की लाश एक संदूक में बंद कर दी. रात ढाई बजे कमल टूंडला स्टेशन जाने की बात कह कर आटो ले आया.

आटो से दोनों यमुना के जवाहर पुल पर पहुंचे. लाश वाला संदूक उन के साथ था. इन लोगों ने आटो को वहीं छोड़ दिया. सड़क पर सन्नाटा था, कमल और बबली यू टर्न ले कर कानपुर से आगरा की तरफ आने वाले पुल पर पहुंचे और संदूक उठा कर यमुना में फेंक दिया. इस के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए. दूसरे दिन 4 नवंबर को सुबह कमल बबली और उस की दोनों बच्चियों को साथ ले कर दिल्ली भाग गया.

बबली की बेवफाई ने हंसतेखेलते घर को उजाड़ दिया था. उस ने पति के रहते गैरमर्द के साथ रिश्ते बनाए. यह नाजायज रिश्ता उस के लिए इतना अजीज हो गया कि उस ने अपने पति की मौत की साजिश रच डाली.

पुलिस 16 नवंबर को ही कमल व बबली को ले कर यमुना किनारे पहुंची. उन की निशानदेही पर पीएसी के गोताखोरों को बुला कर कई घंटे तक यमुना में लाश की तलाश कराई गई, लेकिन लाश नहीं मिली. अंधेरा होने के कारण लाश ढूंढने का कार्य रोकना पड़ा.

रविवार की सुबह पुलिस ने गोताखोरों और स्टीमर की मदद से लाश को तलाशने की कोशिश की. लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला.

बहरहाल, पुलिस हरिओम का शव बरामद नहीं कर सकी. शायद बह कर आगे निकल गया होगा. पुलिस ने बबली और उस के प्रेमी कमल को न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

 

संपत्ति के लिए साजिश

संपत्ति के लिए साजिश- भाग 4 : बख्शो की बहू के साथ क्या हुआ था?

उस ने मिट्टी हटाई तो उस में एक लाश थी. वह भाग कर लालटेन लाया, उस की रोशनी में देखा तो एक जवान आदमी की लाश थी, उस के सारे कपड़े खून से सने थे. उस ने जल्दी से मिट्टी डाल कर बराबर कर दी और इस डर से अपनी झुग्गी में आ गया कि कहीं वह हत्या के केस में न फंस जाए.

‘‘तुम उस जगह को दिखा सकते हो?’’

उस ने कहा, ‘‘जी, थानेदारजी मैं उस जगह को कैसे भूल सकता हूं?’’

मैं ने मलंग के साथ एक नाटक खेलने का फैसला किया. अगर मैं वहां जा कर लाश बरामद कर लेता और बाद में रांझा और उस के भाइयों से कहता तो वे मना कर देते. मैं चाहता था कि वे स्वयं वहां से लाश बरामद कराएं. मैं ने मलंग को पूरी बात समझाई और उसे इनाम का लालच भी दिया. उस ने अपना पाठ अच्छी तरह याद कर लिया.

यह जरूरी नहीं था कि कब्रिस्तान में दफन की गई लाश गुलनवाज की ही हो, वह किसी और की भी हो सकती थी. मैं ने नाटक खेलने का फैसला किया. मैं ने मलंग को शरबत पिलवाया और उसे दूसरे कमरे में बिठा कर समझाया कि उसे कब मेरे पास आना है. फिर मैं ने तीनों भाइयों को बुला कर पूछताछ शुरू कर दी. वे पहले की तरह इनकार करते रहे.

मैं ने कहा, ‘‘तुम खुद ही अपना अपराध स्वीकार कर लोगे तो फायदे में रहोगे. देखो मेरे पास मौके का गवाह मौजूद है, जिस ने तुम्हें लाश दबाते हुए देखा था.’’

यह कहते हुए मैं ने अपनी नजर उन की आंखों पर रखी. इतना सुन कर वे चौंके, लेकिन फिर सामान्य हो गए. मैं ने रांझा को गिरेबान से पकड़ कर अलग किया और उस की आंखों में आंखें डाल कर धीरे से पूछा, जिस से कि उन दोनों को कुछ पता न चले.

‘‘बोलो, गरोट के कब्रिस्तान में किस की लाश को दबा कर आए थे?’’

मेरी बात सुन कर रांझा का चेहरा पीला पड़ गया. उस की आंखें डर से फैल गईं. उसी समय मैं ने मलंग को इशारा कर के बुलवाया. वह नारा लगा कर डंडा नचाता हुआ आया और उस के चारों ओर घूम कर अंगारे जैसी आंखों से घूर कर उस ने कहा, ‘‘अच्छा पकड़े गए ना.’’

मलंग डंडा हिला कर उछलकूद करने लगा. मैं ने उसे रोका नहीं. उस के गले में पड़ी माला और हाथ में पड़े कड़े छल्ला छनछन करने लगे और वहां अजीब सा स्वांग होने लगा. रांझा और उस के भाइयों की हालत खराब होने लगी, वे सब समझ गए

कि अब बचने वाले नहीं हैं.

रांझा बोला, ‘‘आप को अल्लाह का वास्ता देता हूं थानेदारजी, इस मलंग को रोक लें.’’

रांझा अपना सिर पकड़ कर नीचे बैठ गया. मैं ने मलंग को इशारे से मना कर दिया. मलंग को मैं ने दूसरे कमरे में भेज दिया. रांझा बेहोश होने लगा. मैं ने पानी मंगा कर उसे पिलाया तो उसे होश आया. मैं ने कहा, ‘‘बोलो, अब क्या कहते हो?’’

तीनों लाश की बरामदगी के लिए तैयार हो गए. मैं ने उसी समय कब्रिस्तान जाने का फैसला किया. नंबरदार, 2 गवाह और बख्शो को ले कर मैं कब्रिस्तान पहुंचा. कब्रिस्तान पहुंचने पर मैं ने रांझा और उस के भाइयों को आगे कर के कहा, ‘‘बताओ, कहां दबाया था उसे?’’

वे आगे आए और वह जगह बताई. उस जगह को खोदा गया तो वहां से सड़ीगली लाश निकली. बख्शो को बुला कर शिनाख्त कराई. उस के पांव कांप रहे थे. उस का एकलौता बेटा था. उसी को मार दिया गया था. ऐसे में एक बाप की हालत क्या हो सकती थी, यह वही जान सकता था.

लाश के हाथ में कड़ा था, गले में कंठियों की मोटी माला थी. मैं ने यह सब निकलवा कर रखवा दिए. बूढ़ा बाप अपने बेटे की लाश देख कर चीखचीख कर रो पड़ा. मैं ने कागज तैयार कर के गवाहों के हस्ताक्षर करवाए और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. फिर अपराधियों को ले कर थाने आ गया.

मैं ने तीनों के बयान लिए, जिस में रांझे का बयान इस तरह था—

गुलनवाज और रांझा के बाप सगे भाई थे. गुलनवाज का बाप छोटा और रांझा का बाप बड़ा था. बड़े भाई के 5 बेटे और 2 बेटियां थीं. जबकि छोटे भाई बख्शो के केवल एक ही बेटा था. रांझा का बाप 2 साल पहले मर गया था. वह बहुत व्यभिचारी था, पैसा पानी की तरह खर्च करता था.

उस ने अपनी सारी जमीन अय्याशी पर खर्च कर दी थी. अब उस की नजर अपने भाई बख्शो की जमीन पर थी, तब तक उस के कोई संतान नहीं थी. फिर उस के एक बेटा हुआ, जो उस की जायदाद का वारिस बना.

रांझा के बाप ने अपने बेटों के सामने कई बार यह बात कही थी कि अगर बख्शो के बेटा न होता तो हम उस की जायदाद पर कब्जा कर लेते. यह बात रांझा और उस के भाइयों के दिमाग में बैठ गई थी. बाप के मरने के बाद उन्होंने बहाने से बख्शो की कुछ जमीन पर कब्जा कर भी लिया था.

बख्शो शांतिप्रिय था, उस ने थोड़ी जमीन जाने का बुरा नहीं माना तो उन लोगों की हिम्मत बढ़ गई. अब उन्होंने बख्शो के बेटे गुलनवाज को रास्ते से हटाने की योजना बनानी शुरू कर दी.

उसी योजना के तहत उन्होंने गुलनवाज से दोस्ती कर ली और मौके की ताक में रहने लगे. एक दिन उन्हें पता चला कि गुलनवाज ऊंट खरीदने जा रहा है. उन्होंने योजना बनाई कि अब उसे रास्ते से हटा दिया जाए. उन्होंने यह पता कर लिया कि वह किस रास्ते से जाएगा.

वह एक वीरान इलाका था, शाम के समय अंधेरा छा जाता था. उन्होंने कब्जा गरोट से पहले गुलनवाज को पकड़ लिया. उन के पास कुल्हाडि़यां थीं, उस के सिर पर कुल्हाड़ी का पहला वार रांझा ने किया. वह लड़खड़ाया तो दूसरे भाइयों ने उस की गरदन और कंधे पर कुल्हाडि़यों की बारिश कर दी.

इतने गंभीर घावों के कारण वह गिर पड़ा और मर गया. रांझा ने उस की जेब से रकम निकाल ली और फिर सब मिल कर उस की लाश को कब्रिस्तान ले गए. अंधेरे में उन्होंने कुल्हाड़ी से गड्ढा खोदा और उस में लाश डाल कर मिट्टी बराबर कर दी. तभी मलंग ने उन्हें ललकारा तो वे वहां से भाग खड़े हुए.

मैं अपराधियों को ले कर घटनास्थल पर गया. अब वहां ऐसा कोई निशान नहीं था, जिस से यह पता चलता कि वहां किसी की हत्या की गई थी. क्योंकि एक तो 2 महीने हो गए थे और फिर बारिश भी कई बार हुई थी. इसलिए खून वाली मिट्टी भी मुझे नहीं मिल सकी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई, जिस में उस की मौत किसी तेज धार हथियार से की गई बताई गई थी. वह रिपोर्ट मैं ने रख ली और लाश बख्शो के हवाले कर दी.

रांझा के बाद मैं ने रमजो और दत्तो के बयान लिए, जो रांझा के बयान की पुष्टि कर रहे थे. उन के बयान से यह भी पता चला कि इस घटना में 2 भाई मानी और ताजा भी शामिल थे, जो अमुक गांव में मिल सकते थे, वहां वे अपने मित्र के घर ठहरे थे. मैं ने एएसआई से कहा कि वह सादे कपड़ों में अपने साथ 2 कांस्टेबलों को ले कर वहां जा कर उन के मित्र के घर छापा मारे.

शाम तक एएसआई उन दोनों भाइयों को भी ले कर आ गया. उन के बयान भी उन के भाइयों से मिलतेजुलते थे. मैं ने उन्हें घटनास्थल पर ले जा कर उन से भी पहचान कराई.

मैं ने बहुत मेहनत से कागज तैयार कर के मुकदमा अदालत में पेश कर दिया. मौके का गवाह मलंग था, जिस ने अपना बयान बहुत अच्छी तरह से दिया. इस मुकदमे की चारों ओर चर्चा थी. अदालत ने पांचों भाइयों को मौत की सजा दी. उन्होंने आगे अपील की. उन के वकील ने बहुत अच्छी बहस की, जिस से उन की मौत की सजा आजीवन कारावास में बदल गई. भागभरी और उमरा चूंकि पेशेवर हत्यारिन नहीं थीं, इसलिए उन्हें 3-3 साल की सजा हुई.

कहानी तो यहां खत्म हो गई, लेकिन एक रोचक बात सुनानी रह गई. गुलनवाज का वह बच्चा जो भड़ोले में डाल दिया गया था और हत्या होने से बच गया था, उस का नाम उस के दादा बख्शो ने फतेह खान रखा था. कोई 20-25 साल बाद मैं एफआईए का चार्ज लेने मठ नवाना गया.

मैं यहां अपने थानेदारी के गुजारे दिनों को याद कर रहा था कि मुझे गुलनवाज का केस याद आ गया. मैं अपने पुराने थाने गया और वहां के थानेदार से गुलनवाज के बेटे फतेह खान के बारे में पूछा. उस ने बताया कि वह बहुत बड़ा जमींदार बन चुका है और बड़ा सुंदर गबरू जवान है.

उस ने अपने ताऊ के लड़कों से अपनी सारी जमीन छीन ली थी और उन्हें दबा कर रखता था. थानेदार ने यह भी बताया था कि वह अकसर थाने आता रहता था और आप की बात करता था. आप से मिलना भी चाहता था.

मैं ने थानेदार से अपना काम कर के 2 दिनों बाद आने को कहा और उसे फतेह खान को बताने के लिए कहा. उस दिन फतेह खान काफी लोगों को ले कर थाने आया और मेरे घुटनों पर हाथ रख कर मेरी इज्जत की. वह मेरे लिए ढेर सारे तोहफे ले कर आया था, जो मैं ने बड़े प्यार से वापस कर दिए थे.

मुझे यह देख कर बहुत खुशी हुई थी कि भड़ोले से बच जाने वाला बच्चा आज कितना सुंदर जवान, बिलकुल अपने बाप गुलनवाज की तरह लग रहा था.

संपत्ति के लिए साजिश- भाग 3: बख्शो की बहू के साथ क्या हुआ था?

मैं ने उन्हें हर तरह से चक्कर दे कर पूछा, लेकिन मैं उन से कुछ भी नहीं उगलवा सका. उन के 2 भाई ताजा और मानी अभी लापता थे. वे पुलिस के डर से कहीं छिप गए थे. मैं ने चारों ओर मुखबिरों का जाल बिछा दिया था. मैं यातना देने पर यकीन नहीं रखता था, लेकिन लातों के भूत बातों से कहां मानते हैं. मैं ने उन पर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया. वे चीखते रहे, लेकिन कोई भी बात नहीं बताई.

तीनों भाइयों में रांझा सब से बड़ा और समझदार था. वह बोला, ‘‘आप हमारे पीछे क्यों पड़े हैं? उस के गुम होने का कोई और कारण भी हो सकता है.’’

‘‘तुम लोग उस की जायदाद पर कब्जा करना चाहते हो,’’ मैं ने कहा, ‘‘इसीलिए तुम्हारी बहनों ने उस की पत्नी और बच्चे की हत्या करने की साजिश रची. सीधी सी बात है कि जब गुलनवाज का बच्चा नहीं रहता तो तुम उस की जायदाद पर कब्जा कर लेते.’’

उस ने कहा, ‘‘उस के गायब होने का दूसरा कारण है, जिस पर आप ने ध्यान नहीं दिया.’’

‘‘क्या कारण है.’’

‘‘गुलनवाज बहुत सुंदर जवान था, उस पर तमाम लड़कियां मरती थीं. उसे लड़कियों से दोस्ती करने का शौक था. हो सकता है, वह किसी लड़की के चक्कर में मारा गया हो.’’ रांझा ने कहा.

मैं ने उसे हवालात भेज दिया और इस बारे में विचार करने लगा. मुझे याद आया कि बख्शो ने कहा था कि वह ऊंट खरीदने के लिए गया था. उस के पास काफी रकम भी थी. ऐसा भी हो सकता था कि इस की भनक किसी अपराधी प्रवृत्ति के व्यक्ति को लग गई हो और उस ने मौका देख कर गुलनवाज की हत्या कर के उसे कहीं दबा दिया हो और रकम ले उड़ा हो.

मैं ने उस इलाके के अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को बुलाने का फैसला किया. मैं यह तफ्तीश थाने में नहीं, बल्कि डेरा गांजा में बख्शो के दिए हुए एक कमरे से कर रहा था. मैं ने एएसआई से कहा कि डेरा गांजा और आसपास के इलाके के सभी बदमाशों को ला कर मेरे सामने पेश करो.

2-3 घंटे बाद एएसआई 3 लोगों को ले आया. पता चला कि वे उस इलाके के बदमाश थे और छोटामोटा अपराध करते थे. मैं ने उन से कहा कि अगर उन्होंने यह काम किया है तो बक दें, नहीं तो मैं बहुत बुरा व्यवहार करूंगा. वे कान पकड़ कर कहने लगे, ‘‘हमें इस बारे में कुछ पता नहीं है. हत्या का तो प्रश्न ही नहीं उठता.’’

ऐसे लोग आसानी से नहीं माना करते. मैं ने एएसआई से कहा कि इन्हें ले जा कर रगड़ा लगाए. वह उन्हें ले गया और कुछ देर बाद ले आया तो तीनों की हालत बड़ी खराब थी. तीनों ने रोरो कर कहा, ‘‘माईबाप, आप हम से कैसी भी कसम ले लें, हम ने यह काम नहीं किया है. यह सच है कि हम अपराध करते हैं, लेकिन छोटामोटा करते हैं, मुझे लगा कि वे सच बोल रहे हैं. मैं ने उन्हें यह कह कर जाने दिया कि वे अपने स्तर पर इस बारे में पता लगाएं.

मैं ने एएसआई से कहा कि वह उस इलाके में पता करे कि गुलनवाज की दोस्ती किसकिस लड़की से थी. अगले दिन मैं टहल रहा था कि एएसआई आ गया. उस ने बताया कि इलाके के लोगों से पूछा तो सब ने यही बताया कि गुलनवाज बहुत शरीफ लड़का था. वह इलाके की सभी लड़कियों को अपनी बहन समझता था.

उस की शादी भी उस के मातापिता की मर्जी से हुई थी. मैं ने सोचा कि रांझा ने गलत रास्ते पर डाल कर मुझे धोखा देने की कोशिश की है. मैं ने कांस्टेबल से कहा कि वह रांझा को मेरे पास ले आए. मैं समझ गया कि असली अपराधी रांझा और उस के भाई हैं. अब मैं उन की हड्डियां तोड़ दूंगा.

मैं गुस्से से टहल रहा था, तभी एक खबरी अपने साथ एक आदमी को ले आया, जो बहुत गरीब लग रहा था. उस ने जो कुछ बताया, उस से मुझे लगा कि सारी समस्या ही सुलझ गई है.

उस खबरी ने बताया कि वह गरोट गांव का रहने वाला है, जो झेलम नदी के किनारे पर है. वह भांग पीने का शौकीन है. एक कब्रिस्तान में एक मलंग रहता है, वह उस के पास जा कर भांग पीता है. वहां कुछ और लोग भी भांग पीने आते हैं.

मलंग ने कब्रिस्तान में एक झुग्गी बना रखी थी, उस का काम कब्रों की हिफाजत करना और कब्रें खोदना था. वह लाल रंग का कुर्ता पहने रहता था और लोगों में लाल बाबा के नाम से मशहूर था. एक दिन भांग के नशे में मलंग ने बताया था कि कुछ दिनों पहले कुछ आदमी आए थे और एक गड्ढा खोद कर एक लाश को दबा कर चले गए थे. अंधेरा होने की वजह से वह उन्हें पहचान नहीं सका था.

वह आदमी किसी सरकारी दफ्तर में चपरासी था. उस ने गुलनवाज के गुम होने का इश्तहार पढ़ा था. एक दुकान पर कुछ आदमियों के बीच वह मलंग वाली बात कह रहा था. वहां मेरा खबरी भी खड़ा था, उस ने वहां जो सुना, आ कर मुझे बता दिया था.

मैं ने उस आदमी से 2-3 बातें और पूछीं और उसे यह कह कर जाने दिया कि वह किसी को भी न बताए कि वह यहां आया था. उस के जाने के बाद मैं ने एएसआई से कहा कि वह लाल बाबा को बड़े प्यार से मेरे पास ले आए. कुछ ही देर में वह उसे ले कर आ गया. मलंग के लंबेलंबे बाल थे, जो उस के कंधे पर पड़े थे, उस के हाथ में एक डंडा था.

वह आते ही बोला, ‘‘या अली, थानेदार बादशाह दी खैर.’’

मैं ने उस से कब्रिस्तान में दबाने वाली लाश की बात पूछी तो उस ने बताया कि 2 महीने पहले कुछ लोग कब्रिस्तान में एक लाश दबा गए थे. लेकिन वह उन्हें पहचान नहीं सका था. उस ने उन्हें ललकारा भी था, लेकिन वे भाग गए थे. उस ने वहां जा कर देखा तो ताजी मिट्टी थी. वह समझ गया कि ये डाकू होंगे और यहां लूट का माल दबा कर गए होंगे.

संपत्ति के लिए साजिश- भाग 2: बख्शो की बहू के साथ क्या हुआ था?

बच्चे के पैदा होते ही नूरां की नाक पर एक कपड़ा रख दिया गया. उस कपड़े से अजीब सी गंध आ रही थी. नूरां धीरेधीरे बेहोश होने लगी. वह पूरी तरह से बेहोश तो नहीं हुई थी, लेकिन वह कुछ बोल नहीं सकती थी. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे सपना देख रही हो. उसे ऐसी आवाजें सुनाई दे रही थीं, जैसे कोई कह रहा हो कि मां के साथ बच्चे को भी मार दो. असली झगड़े की जड़ यही बच्चा है. यह मर गया तो बख्शो लावारिस हो जाएगा.

इस के बाद उस ने सुना कि उस के बच्चे को अनाज वाले भड़ोले में डाल दिया है. नूरां पर बेहोशी छाई रही. उस के बाद हुआ यह कि जल्दबाजी में उस के कफनदफन का इंतजाम किया गया. बख्शो की भतीजियां और भतीजे इस काम में आगे रहे. वे हर काम को जल्दीजल्दी कर रहे थे.

जब नूरां को गरम पानी से नहलाया गया तो उसे कुछकुछ होश आने लगा. जब उसे चारपाई पर डाल कर कब्रिस्तान ले जाने लगे तो उसे पूरी तरह होश आ गया. उस का जीवन बचना था, इसलिए वह हाथपैर हिलाने लायक हो गई. उस के बाद कब्र में रखते समय उस ने एक आदमी का हाथ पकड़ लिया, जिस से वह डर कर भागा तो नूरां मोहल्ले के मौलवी साहब का हाथ पकड़ कर घर आई और भड़ोले से अपना बच्चा निकाला. बख्शो का एक दोस्त गांव की दूसरी दाई को ले आया. उस ने बच्चे को नहलाधुला कर साफ किया.

‘‘कुदरत ने मेरे और मेरे बच्चे पर रहम किया और हमें नई जिंदगी दी.’’ नूरां ने आसमान की ओर देख कर कहा, ‘‘अब मुझे और मेरे बच्चे को रांझे वगैरह से खतरा है. मेरे पति गुलनवाज को भी इन्हीं लोगों ने गायब किया है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘इन लोगों पर शक करने का कोई कारण?’’

उस ने कहा, ‘‘यह सब मेरे ससुर की जायदाद का चक्कर है. उन्होंने जायदाद के लिए मेरे पति को गायब कर दिया और मुझे तथा मेरे बच्चे को मारने की कोशिश की.’’

नूरां ने यह भी बताया कि डेरा गांजा के अलावा भी मठ टवाना में उस के ससुर की काफी जमीन है. उस जमीन से होने वाली फसल का हिस्सा बख्शो के भतीजे उस तक पहुंचने नहीं देते.

मैं ने उस से कुछ बातें और पूछी और मन ही मन तुरंत काररवाई करने का फैसला कर लिया. मैं ने अपने एएसआई और कुछ कांस्टेबलों को ले कर रांझा वगैरह के घरों पर छापा मारा. वहां से मैं ने रांझा, उस के भाई दत्तो और रमजो को गिरफ्तार कर लिया. उन के 2 भाई घर पर नहीं थे. उन के घर की तलाशी ली तो 2 बरछियां और कुल्हाड़ी बरामद हुई. उन हथियारों की लिस्ट बना कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

इस के बाद मैं ने दाई रोशी, भागभरी और उमरां को भी गिरफ्तार कर लिया. मैं ने महसूस किया कि वहां के लोग पुलिस के आने से खुश नहीं थे. वे पुलिस को किसी तरह का सहयोग करने को तैयार नहीं थे. मैं ने मसजिद के लाउडस्पीकर से गांव में ऐलान करा दिया कि गांव के लोग इस केस में पुलिस का सहयोग करें और कोई बात न छिपाएं.

लोग यह न समझें कि थाना यहां से दूर है, मैं झगड़ालू लोगों का जीना मुश्किल कर दूंगा. मेरे इस ऐलान से लोगों पर ऐसा डर सवार हुआ कि सब सहयोग करने पर तैयार हो गए. अब लोग आआ कर उमरां, भागभरी और दाई रोशी को बुराभला कह रहे थे. मैं ने उन के बयान लिए, सब से पहले दाई रोशी का बयान लिया.

उस ने अपने बयान में बताया कि वह काफी समय से दाई का काम करती है और उस ने नरसिंग की ट्रेनिंग खुशाब के अस्पताल से ली थी. उस ने अस्पताल से क्लोरोफार्म चुरा कर रखा था. जब कभी किसी महिला को प्रसूति के दौरान ज्यादा तकलीफ होती थी, वह क्लोरोफार्म सुंघा देती थी, जिस से उस महिला को बच्चा पैदा होने में कोई परेशानी नहीं होती थी.

‘‘सरकार, मैं लालच में आ गई थी. उमरां और भागभरी के कहने में आ कर मैं ने नूरां बीबी को थोड़ी ज्यादा क्लोरोफार्म सुंघा दी. नूरां की बेहोशी को हम ने मौत समझा. गांव के किसी भी आदमी ने उस की नाड़ी नहीं चैक की, वैसे भी हम ने अफवाह फैला दी थी कि नूरां मर गई है.’’ रोशी ने कहा.

‘‘तुम ने बच्चे को जिंदा क्यों छोड़ दिया था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘सच कहूं तो मुझे मेरे जमीर ने डरा दिया था, इसलिए मैं ने बच्चे को भड़ोले में डाल दिया था.’’ वह रोते हुए बोली.

मैं ने क्लोरोफार्म की शीशी बरामद करा कर सीलबंद कर दी और गवाहों के हस्ताक्षर करा लिए. उमरां और भागभरी को पूछताछ के लिए बुलाया तो वे कांप रही थीं. उन्होंने कुछ बोलने के बजाय रोना शुरू कर दिया, साथ ही दोनों मेरे आगे हाथ जोड़ कर खड़ी हो गईं.

दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और अपने किए पर पछताने लगीं. उस के बाद मैं ने रांझा, दत्तो और रमजो को जांच की चक्की में डालने का फैसला किया. उन से सच उगलवाना आसान नहीं था. मैं सभी अपराधियों को थाने ले आया और हवालात में बंद कर दिया.

अगले दिन सभी को पुलिस रिमांड पर लेने के लिए खुशाब के मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 8 दिनों के रिमांड पर लिया. औरतों से तो कुछ पूछने की जरूरत नहीं थी, इसलिए उन्हें जेल भेज दिया गया. क्लोरोफार्म का लेबारेट्री में भेजा गया, जहां से रिपोर्ट आई कि वह बेहोश करने वाला कैमिकल था. लेकिन अगर अधिक मात्रा में दिया जाता तो मौत भी हो सकती थी.

बख्शो के बेटे गुलनवाज को गुम हुए 2 महीने हो गए थे. मुझे लगा कि अब वह जिंदा नहीं होगा. मैं ने रांझा, रमजो और दत्तो को पूछताछ के लिए बुलाया. मैं ने बारीबारी से तीनों से सवाल किए, लेकिन तीनों बड़े ढीठ निकले. वे कुछ बोलने को तैयार नहीं थे.

संपत्ति के लिए साजिश- भाग 1: बख्शो की बहू के साथ क्या हुआ था?

यह कहानी तब की है, जब मैं थाना मठ, जिला खुशाब में थानाप्रभारी था. सुबह मैं अपने एएसआई कुरैशी से एक केस के बारे में चर्चा कर रहा था, तभी एक कांस्टेबल ने आ कर बताया कि गांव रोड़ा मको का नंबरदार कुछ लोगों के साथ आया है और मुझ से मिलना चाहता है.

मैं नंबरदार को जानता था. मैं ने कांस्टेबल से कहा कि उन के लिए ठंडे शरबत का इंतजाम करे और उन्हें आराम से बिठाए, मैं आता हूं. शरबत को इसलिए कहा था, क्योंकि वे करीब 20 कोस से ऊंटों की सवारी कर के आए थे. कुछ देर बाद मैं ने नंबरदार गुलाम मोहम्मद से आने का कारण पूछा तो उस ने कहा कि वह एक रिपोर्ट लिखवाने आया है. मैं ने उन से जबानी बताने को कहा तो उन्होंने जो बताया, वह काफी रोचक और अनोखी घटना थी. उन के साथ एक 60 साल का आदमी बख्शो था, जिस की ओर से यह रिपोर्ट लिखी जानी थी.

बख्शो डेरा गांजा का बड़ा जमींदार था. उस के पास काफी जमीनजायदाद थी. उस का एक बेटा गुलनवाज था, जो विवाहित था. उस की पत्नी गर्भवती थी. 2 महीने पहले उस का बेटा घर से ऊंट खरीदने के लिए निकला तो लौट कर नहीं आया. थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई और अपने स्तर से भी काफी तलाश की, लेकिन वह नहीं मिला.

बख्शो के छोटे भाई के 5 बेटे थे, जो उस की जमीन पर नजर रखे थे. वे तरहतरह के बहाने बना कर उस की जायदाद पर कब्जा करने की फिराक में थे. उन से बख्शो के बेटे गुलनवाज को भी जान का खतरा था. शक था कि उन्हीं लोगों ने गुलनवाज को गायब किया है. पूरी बिरादरी में उन का दबदबा था. उन के मुकाबले बख्शो और उस की पत्नी की कोई हैसियत नहीं थी.

यह 2 महीने पहले की घटना थी, जो उस ने मुझे सुनाई थी. उस समय थाने का इंचार्ज दूसरा थानेदार था. बख्शो ने मुझे जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर मैं हैरान रह गया. उस ने बताया कि 2-3 दिन पहले उस की बहू को प्रसव का दर्द हुआ तो उस की पत्नी ने गांव की दाई को बुलवाया. बख्शो के भाई की बेटियां और उस के बेटों की पत्नियां भी आईं.

उन्होंने किसी बहाने से बख्शो की पत्नी को बाहर बैठने के लिए कहा. कुछ देर बाद कमरे से रोने की आवाजें आने लगीं. पता चला कि बच्चा पैदा होने में बख्शो की बहू और बच्चा मर गया है. वे देहाती लोग थे, किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि प्रसव में बच्चे की मां कैसे मर गई.

उन के इलाके में अकसर ऐसे केस होते रहते थे. उस जमाने में शहरों जैसी सहूलियतें नहीं थीं. पूरा इलाका रेगिस्तानी था. मरने वाली के कफनदफन का इंतजाम किया गया. जनाजा कब्रिस्तान ले गए. जब मृतका को कब्र में उतारा जाने लगा तो अचानक मृतका ने कब्र में उतारने वाले आदमी की बाजू बड़ी मजबूती से पकड़ ली.

वह आदमी डर गया और चीखने लगा कि मुरदे ने उस की बाजू पकड़ ली है. यह देख कर जनाजे में आए लोग डर गए. जिस आदमी का बाजू पकड़ा था, वह डर के मारे बेहोश हो कर गिर गया. इतनी देर में मुर्दा औरत उठ कर बैठ गई. सब लोगों की चीखें निकल गईं. उन्होंने अपने जीवन में कभी मुर्दे को जिंदा होते नहीं देखा था.

बख्शो की बहू ने कहा कि वह मरी नहीं थी, बल्कि बेहोश हो गई थी. बहू ने अपने गुरु एक मौलाना को बुलाया. वह काफी दिलेर था. वह उस के पास गया तो औरत ने बताया कि उस का बच्चा गेहूं रखने वाले भड़ोले में पड़ा है. यह कह कर उस ने मौलाना का हाथ पकड़ा और कफन ओढ़े ही मौलाना के साथ चल दी. बाकी सब लोग उस के पीछेपीछे हो लिए. जो भी यह देखता, हैरान रह जाता.

घर पहुंच कर भड़ोले में देखा तो गेहूं पर लेटा बच्चा अंगूठा मुंह में लिए चूस रहा था. मां ने झपट कर बच्चे को सीने से लगाया और दूध पिलाया. इस तरह बख्शो का पोता मौत के मुंह से निकल आया और उस की बहू भी मर कर जिंदा हो गई.

बख्शो ने बताया कि उस की बहू नूरां ने उसे बताया था कि उसे उमरां और भागभरी ने जान से मारने की कोशिश की थी. बख्शो अपनी बहू और पोते को मौलाना की हिफाजत में दे कर नंबरदार के साथ रिपोर्ट लिखवाने आया था. उस ने यह भी कहा कि उस के बेटे गुलनवाज को भी बरामद कराया जाए.

मैं ने धारा 307 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया और गुलनवाज के गुम होने की सूचना सभी थानों को भेज दी, साथ ही उसी समय बख्शो के गांव डेरा गांजा स्थित घटनास्थल पर जाने का इरादा भी किया. एएसआई और कुछ कांस्टेबलों को ले कर मैं ऊंटों पर सवार हो कर डेरा गांजा रवाना हो गया.

ये ऊंट हमें सरकार की ओर से इसलिए मिले थे, क्योंकि वह एरिया रेगिस्तानी था. ऊंटों के रखवाले भी हमें मिले थे, जिन्हें सरकार से तनख्वाह मिलती थी. डेरा गांजा पहुंच कर हम ने जांच शुरू की. सब से पहले मैं ने नूरां को बुलाया और उस के बयान लिए.

नूरां के बताए अनुसार, बच्चा होने का समय आया तो उस के सासससुर ने गांव से दाई रोशी को बुलाया. वह अपने काम में बहुत होशियार थी. रोशी बीबी के साथ बख्शो की भतीजियां उमरां और भागभरी भी कमरे में आ गईं. रोशी ने अपना काम

शुरू किया, लेकिन उसे लगा कि उमरां और भागभरी उस के काम में रुकावट डालने की कोशिश के साथसाथ एकदूसरे के कान में कुछ कानाफूसी भी कर रही हैं.

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