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तेंदूपत्ता- अमेरिका की ईसाई मिशनरी को किसने संभाला था?

शर्मिष्ठा ने कार को धीमा करते हुए ब्रैक लगाई. झटका लगने से सहयात्री सीट पर बैठी जेनिथ, जो ऊंघ रही थी, की आंखें खुल गईं, उस ने आंखें मिचका कर आसपास देखा.

समुद्रतट के साथ लगते गांव का कुदरती नजारा. बड़ेबड़े, ऊंचेऊंचे नारियल और पाम के पेड़, सर्वत्र नयनाभिराम हरियाली.

‘‘आप का गांव आ गया?’’

‘‘लगता तो है.’’ सड़क के किनारे लगे मील के पत्थर को पढ़ते शर्मिष्ठा ने कहा. दोढाई फुट ऊंचे, आधे सफेद आधे पीले रंग से रंगे मील के पत्थर पर अंगरेजी और मलयाली भाषा में गांव का नाम और मील की संख्या लिखी थी.

‘‘यहां भाषा की समस्या होगी?’’ जेनिथ ने पूछा.

‘‘नहीं, सारे भारत में से केरल सर्वसाक्षर प्रदेश है. यहां अंगरेजी भाषा सब बोल और समझ लेते हैं. मलयाली भाषा के साथसाथ अंगरेजी भाषा में बोलचाल सामान्य है.’’

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‘‘तुम यहां पहले कभी आई हो?’’

‘‘नहीं, यह मेरा जन्मस्थान है, ऐसा बताते हैं. मगर मैं ने होश अमेरिका की ईसाई मिशनरी में संभाला था.’’ शर्मिष्ठा ने कहा.

‘‘तुम्हारी मेरी जीवनगाथा बिलकुल एकसमान है.’’

कार से उतर कर दोनों ने इधरउधर देखा. चारों तरफ फैले लंबेचौड़े धान के खेतों में धान की मोटीभारी बालियां लिए ऊंचेऊंचे पौधे लहरा रहे थे.

समुद्र से उठती ठंडी हवा का स्पर्श मनमस्तिष्क को ताजा कर रहा था. धान के खेतों से लगते बड़ेबड़े गुच्छों से लदे केले के पेड़ भी दिख रहे थे.

एक वृद्ध लाठी टेकता उन के समीप से गुजरा.

‘‘बाबा, यहां गांव का रास्ता कौन सा है?’’ थोड़े संकोचभरे स्वर में शर्मिष्ठा ने अंगरेजी में पूछा.

लाठी टेक कर वृद्ध खड़ा हो गया, बोला, ‘‘आप यहां बाहर से आए हो?’’ साफसुथरी अंगरेजी में उस वृद्ध ने पूछा.

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‘‘जी हां.’’

‘‘यहां किस से मिलना है?’’

‘‘कौयिम्मा नाम की एक स्त्री से.’’

‘‘वह नाथर है या नादर? इस गांव में 2 कौयिम्मा हैं. एक सवर्ण जाति की है, दूसरी दलित है. पहली, आजकल सरकारी डाकबंगले में मालिन है, खाली समय में तेंदूपत्ते तोड़ कर बीडि़यां बनाती है. दूसरी, मरणासन्न अवस्था में बिस्तर पर पड़ी है.’’

फिर उस वृद्ध ने उन को एक कच्चा वृत्ताकार रास्ता दिखाया जो सरकारी डाकबंगले को जाता था. दोनों ने उस वृद्ध, जिस का नाम जौन मिथाई था और जो धर्मांतरण कर के ईसाई बना था, का धन्यवाद किया.

कार मंथर गति से चलती, डगमगाती, कच्चे रास्ते पर आगे बढ़ चली.

डाकबंगला अंगरेजों के जमाने का बना था व विशाल प्रागंण से घिरा था. चारदीवारी कहींकहीं से खस्ता थी. मगर एकमंजिली इमारत सदियों बाद भी पुख्ता थी. डाकबंगले का गेट भी पुराने जमाने की लकड़ी का बना था. गेट बंद था.

कार गेट के सामने रुकी. ‘‘यहां सुनसान है. दोपहर ढल रही है. यहां कहीं होटल होता?’’ जेनिथ ने कहा.

शर्मिष्ठा खामोश रही. उस ने कार से बाहर निकल डाकबंगले का गेट खोला और प्रागंण में झांका, सब तरफ सन्नाटा था.

एक सफेद सन के समान बालों वाली स्त्री एक क्यारी में खुरपी लिए गुड़ाई कर रही थी. उस ने सिर उठा कर शर्मिष्ठा की तरफ देखा और सधे स्वर में पूछा, ‘‘आप किस को देख रही हैं?’’

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‘‘यहां कौन रहता है?’’

‘‘कोई नहीं. सरकारी डाकबंगला है. कभीकभी कोई सरकारी अफसर यहां दौरे पर आते हैं. तब उन के रहने का इंतजाम होता है,’’ वृद्ध स्त्री ने धीमेधीमे स्वर में कहा.

‘‘आप कौन हो?’’

‘‘मैं यहां मालिन हूं. कभीकभी खाना भी पकाना पड़ता है.’’

‘‘आप का नाम क्या है?’’

‘‘मैं कौयिम्मा नाथर हूं’’

शर्मिष्ठा खामोश नजरों से क्यारी में सब्जियों की गुड़ाई करती वृद्धा को देखती रही.

उस को अपनी मां की तलाश थी. मगर उस का पूरा नाम उस को मालूम नहीं था. कौयिम्मा नाथर या कौयिम्मा नादर.

‘‘आप को यहां डाकबंगले में  ठहरना है?’’ वृद्धा ने हाथ में पकड़ी खुरपी को एक तरफ रखते हुए कहा.

‘‘यहां कोई होटल या धर्मशाला है?’’

‘‘नहीं, यहां कौन आता है?’’

‘‘खानेपीने का इंतजाम क्या है?’’

‘‘रसोईघर है, मगर खाली बरतन हैं. लकड़ी से जलने वाला चूल्हा है. गांव की हाट से सामान ला कर खाना पका देते हैं.’’

‘‘बिस्तर वगैरा?’’

‘‘उस का इंतजाम अच्छा है.’’

‘‘यहां का मैनेजर कौन है?’’

‘‘कोई नहीं, सरकारी रजिस्टर है. ठहरने वाला खुद ही रजिस्टर में अपना नाम, पता, मकसद सब दर्ज करता है,’’ वृद्धा साफसुथरी अंगरेजी बोल रही थी.

‘‘आप अच्छी अंगरेजी बोलती हैं. कितनी पढ़ीलिखी हैं?’’

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‘‘यहां मिडिल क्लास तक का सरकारी स्कूल है. ज्यादा ऊंची कक्षा तक का होता तो ज्यादा पढ़ जाती,’’ वृद्धा ने अपने मात्र मिडिल कक्षा यानी 8वीं कक्षा तक ही पढ़ेलिखे होने पर जैसे अफसोस किया.

शर्मिष्ठा और उस की अमेरिकन साथी जेनिथ को मात्र 8वीं कक्षा तक पढ़ीलिखी स्त्री को इतनी साफसुथरी अंगरेजी बोलने पर आश्चर्य हुआ.

वृद्धा ने एक बड़ा कमरा खोल दिया. साफसुथरा डबलबैड, पुराने जमाने का

2 बड़ेबड़े पंखों वाला खटरखटर करता सीलिंग फैन, आबनूस की मेज, बेत की कुरसियां.

चंद मिनटों बाद 2 कप कौफी और चावल के बने नमकीन कुरमुरे की प्लेट लिए कौयिम्मा नाथर आई.

‘‘आप पैसा दे दो, मैं गांव की हाट से सामान ले आऊं.’’

शर्मिष्ठा ने उस को 500 रुपए का एक नोट थमा दिया. एक थैला उठाए कौयिम्मा नाथर सधे कदमों से हाट की तरफ चली गई.

कौयिम्मा नाथर अच्छी कुक थी. उस ने शाकाहारी और मांसाहारी भोजन पकाया. मीठा हलवा भी बनाया. खाना खा दोनों सो गईं.

शाम को दोनों घूमने निकलीं. कौयिम्मा नाथर साथसाथ चली. बड़े खुले प्रागंण में ऊंचेऊंचे कगूंरों वाला मंदिर था.

‘‘यह प्राचीन मंदिर है. यहां दलितों प्रवेश निषेध है.’’

थोड़ा आगे खपरैलों से बनी हौलनुमा एक बड़ी झोंपड़ी थी. उस के ऊपर बांस से बनी बड़ी बूर्जि थी. उस पर एक सलीब टंगी थी.

‘‘यह चर्च है. जिन दलितों को मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता था, वे सम्मानजनक जीवन जीने के लिए हिंदू धर्म को छोड़ कर ईसाई बन गए. उन सब ने मिल कर यह चर्च बनाया. हर रविवार को ईसाइयों का एक बड़ा समूह यहां मोमबत्ती जलाने आता है,’’ कौयिम्मा नाथर के स्वर में धर्मपरिवर्तन के लिए विवश करने वालों के प्रति रोष झलक रहा था.

मंथर गति से चलती तीनों गांव घूमने लगीं. सारा गांव बेतरतीब बसा था. कहींकहीं पक्के मकान थे, कहींकहीं खपरैलों से बनी छोटीबड़ी झोंपडि़यां.

एक बड़े मकान के प्रागंण में थोड़ीथोड़ी दूरी पर छोटीछोटी झोंपडि़यां बनी थीं.

‘‘प्रागंण की ये झोंपडि़यां क्या नौकरों के लिए हैं?’’

‘‘नहीं, ये बेटी और जंवाई की झोंपड़ी कहलाती हैं.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘अधिकांश इलाके में मातृकुल का प्रचलन है. यहां बेटियों के पति घरजंवाई बन कर रहते आए हैं. अब इस परंपरा में धीरेधीरे परिवर्तन आ रहा है,’’ कौयिम्मा नाथर ने बताया.

‘‘मगर अलगअलग स्थानों पर झोंपडि़यां?’’

‘‘यहां बेटियां बहुतायत में होती हैं. आधा दर्जन या दर्जनभर बेटियां सामान्य बात है. शादी की रस्म साधारण सी है. जो पुरुष या लड़का, बेटी को पसंद आ जाता है उस से एक धोती लड़की को दिला दी जाती है. बस, वह उस की पत्नी बन जाती है.’’

‘‘और अगर संबंधविच्छेद करना हो तो?’’

‘‘वो भी एकदम सीधे ढंग से हो जाता है. पति का बिस्तर और चटाई लपेट कर झोंपड़ी के बाहर रख दी जाती है. पति संबंधविच्छेद हुआ समझा जाता है. वह चुपचाप अपना रास्ता पकड़ता है.’’

कौयिम्मा नाथर ने विद्रूपताभरे स्वर में कहा, ‘‘मानो, पति नहीं कोई खिलौना हो जिस को दिल भरते फेंक दिया जाता है.’’ वृद्धा ने आगे कहा, ‘‘मगर इस खिलौने की भी अपनी सामाजिक हैसियत है.’’

‘‘अच्छा, वह क्या?’’ जेनिथ, जो अब तक खामोश थी, ने पूछा.

‘‘मातृकुल परंपरा में भी पिता नाम के व्यक्ति का अपना स्थान है. समाज में अपना और संतान का सम्मान पाने के लिए किसी भद्र पुरुष की पत्नी होना या कहलाना जरूरी है.’’

शर्मिष्ठा और जेनिथ को कौयिम्मा नाथर का मंतव्य समझ आ रहा था.

‘‘आप का मतलब है कि स्त्री के गर्भ में पनप रहा बच्चा चाहे किसी असम्मानित व्यक्ति का हो मगर बच्चे को समाज में सम्मान पाने के लिए उस की माता का किसी सम्मानित पुरुष

की पत्नी कहलाना जरूरी है,’’ जेनिथ ने कहा.

कौयिम्मा नाथर खामोश रही. शाम का धुंधलका गहरे अंधकार में बदल रहा था. तीनों डाकबंगले में लौट आईं.

अगली सुबह कौयिम्मा नाथर उन को नाश्ता करवाने के बाद तेंदूपत्ते की पत्तियां गोल करती, उन में तंबाकू भरती बीडि़यां बनाने बैठ गई. दोनों अपनेअपने कंधे पर कैमरा लटकाए गांव की तरफ निकलीं.

एक भारतीय लड़की और एक अंगरेज लड़की को गांव घूमते देखना ग्रामीणों के लिए सामान्य ही था. ऐसे पर्यटक वहां आतेजाते रहते थे.

चर्च का मुख्य पादरी अप्पा साहब बातूनी था. साथ ही, उस को गांव के सवर्ण या उच्च जाति वालों से खुंदक थी. सवर्ण जाति वालों के अनाचार और अपमान से त्रस्त हो कर उस ने धर्मपरिवर्तन कर ईसाईर् धर्म अपनाया था.

उस ने बताया कि कौयिम्मा नाथर एक सवर्ण जाति के परिवार से है जो गरीब परिवार था. गांव में सैकड़ों एकड़ उपजाऊ जमीन थी. जिस को आजादी से पहले तत्कालीन राजा के अधिकारी और कानूनगो ने जबरन गांव के अनेक परिवारों के नाम चढ़ा दी थी.

विवश हो उन परिवारों को खेती कर या मजदूरों से काम करवा कर राजा को लगान देना पड़ता था. एक बार लगान की वसूली के दौरान कानूनगो रास शंकरन की नजर नईनई जवान हुई कौयिम्मा नाथर पर पड़ी. उस ने उस को काबू कर लिया था.

जब उस को गर्भ ठहर गया तब कानूनगो ने कौयिम्मा को अपने एक कारिंदे कुरू कुनाल नाथर से धोती दिला दी थी. इस प्रकार कुरू नाथर कौयिम्मा का पति बन कर उस की झोंपड़ी में सोने लगा था.

जब कौयिम्मा नाथर को बेटी के रूप में एक संतान हो गई तब उस ने एक दोपहर कुरू कुनाल नाथर का बिस्तर और चटाई दरवाजे के बाहर रख दी. शाम को जब कुरू कुनाल नाथर लौटा तब उस को दरवाजा बंद मिला. तब वह चुपचाप अपना बिस्तर उठा किसी अन्य स्त्री को धोती देने चला गया.

बेटी का भविष्य भी मेरे ही समान न हो, इस आशय से कौयिम्मा नाथर ने एक रोज अपनी बेटी को ईसाई मिशनरी के अनाथालय में दे दिया था. वहां से वह बेटी केंद्रीय मिशनरी के अनाथालय में चली गई थी.

इतना वृतांत बताने के बाद पादरी खामोश हो गए. आगे की कहानी शर्मिष्ठा को मालूम थी. ईसाई मिशनरी के केंद्रीय अनाथालय से उस को अमेरिका में रहने वाले निसंतान दंपती ने गोद ले लिया था.

अब शर्मिष्ठा मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत थी. जब उस को पता चला था कि वह घोष दंपती की गोद ली

संतान है तो वह अपने वास्तविक मातापिता का पता लगाने के लिए भारत चली आई.

माता का पता चल गया था. पिता दो थे. एक जिस ने माता को गर्भवती किया था. दूसरा, जिस ने माता को समाज में सम्मान बनाए रखने के लिए धोती दी थी.

 

अजीब विडंबनात्मक स्थिति थी. सारे गांव को मालूम था. कौयिम्मा नाथर का असल पति कौन था. धोती देने वाला कौन था. तब भी थोथा सम्मान थोथी मानप्रतिष्ठा.

रिटायर्ड कानूनगो बीमार पड़ा था. उस के बड़े हवेलीनुमा मकान में पुरुषों की संख्या की अपेक्षा स्त्रियों की संख्या काफी ज्यादा थी. अपने सेवाकाल में पद के रोब में कानूनगो ने पता नहीं कितनी स्त्रियों को अपना शिकार बनाया था. बाद में बच्चे की वैध संतान कहलाने के लिए उस स्त्री को किसी जरूरतमंद से धोती दिला दी थी.

बाद में वही संतान अगर लड़की हुई, तो उस को बड़ी होने पर कोई प्रभावशाली भोगता और बाद में उस को धोती दिला दी जाती.

यह बहाना बना कर कि वे दोनों पुराने जमाने की हवेलियों पर पुस्तक लिख रही हैं, शर्मिष्ठा और जेनिथ हवेली और उस के कामुक मालिक को देख कर वापस लौट गईं.

धोती देने वाला पिता मंदिर के प्रागंण में बने एक कमरे में आश्रय लिए पड़ा था. उस को मंदिर से रोजाना भात और तरकारी मिल जाती थी. उस की इस स्थिति को देख कर शर्मिष्ठा दुखी हुई. मगर वह क्या कर सकती थी. दोनों चुपचाप डाकबंगले में लौट आईं.

दोनों पिताओं में किसी को भी शर्मिष्ठा अपना पिता नहीं कह सकती थी. मगर क्या माता उस को स्वीकार कर अपनी बेटी कहेगी? यह देखना था.

‘‘मुझे अपनी मां को पाना है, वे इसी गांव की निवासी हैं, क्या आप मदद कर सकती हैं?’’ अगली सुबह नाश्ता करते शर्मिष्ठा ने वृद्धा से सीधा सवाल किया.

‘‘उस का नाम क्या है?’’

‘‘कौयिम्मा.’’

‘‘नाथर या नादर?’’

‘‘मालूम नहीं. बस, इतना मालूम है कि कौयिम्मा है. उस ने मुझे यहां कि ईसाई मिशनरी के अनाथालय में डाल दिया था.’’

‘‘अब आप कहां रहती हो?’’

‘‘मैं अमेरिका में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में हूं. मुझे गोद लेने वाले मातापिता अमीर और प्रतिष्ठित हैं.’’

‘‘मां को ढूंढ़ कर क्या करोगी?’’

‘‘मां, मां होती है.’’

बेटी के इन शब्दों को सुन कर मां की आंखें भर आईं, वह मुंह फेर कर बाहर चली आई. रसोई में काम करते कौयिम्मा सोच रही थी, क्या करे, क्या उस को बताए कि वह उस की मां

थी. मगर ऐसे में उस का भविष्य नहीं बिगड़ जाएगा.

अनाथालय ने ब्लैकहोल के समान शर्मिष्ठा के बैकग्राउंड, उस के अतीत को चूस कर उस को सिर्फ एक अनाथ की संज्ञा दे दी थी. जिस का न कोई धर्म था न कोई जाति या वर्ग. वहां वह सिर्फ एक अनाथ थी.

अब वह एक सम्मानित परिवार की बेटी थी. वैल स्टैंड थी. कौयिम्मा नाथर द्वारा यह स्वीकार करने पर कि वह उस कि मां थी, उस पर एक अवैध संतान होने का धब्बा लग सकता था.

 

एक निश्चय कर कौयिम्मा नाथर

रसोई से बाहर आई. ‘‘मेम साहब,

आप को शायद गलतफहमी हो गई है. इस गांव में 2 कौयिम्मा हैं. एक मैं कौयिम्मा नाथर, दूसरी कौयिम्मा नादर. दोनों ही अविवाहित हैं. आप ने गांव कौन सा बताया है?’’

‘‘अप्पा नाडू.’’

‘‘यहां 3 गांवों के नाम अप्पा नाडू हैं. 2 यहां से अगली तहसील में पड़ते हैं. वहां पता करें.’’

शर्मिष्ठा खामोश थी. जेनिथ भी खामोश थी. मां बेटी को अपनी बेटी स्वीकार नहीं कर रही थी. कारण? कहीं उस का भविष्य न बिगड़ जाए. पिता को पिता कैसे कहे? कौन से पिता को पिता कहे.

कार में बैठने से पहले एक नोटों का बंडल बिना गिने बख्शिश के तौर पर शर्मिष्ठा ने अपनी जननी को थमाया और उस को प्रणाम कर कार में बैठ गई. कार वापस मुड़ गई.

‘‘कोई मां इतनी त्यागमयी भी होती है?’’ जेनिथ ने कहा.

‘‘मां मां होती है,’’ अश्रुपूरित नेत्रों से शर्मिष्ठा ने कहा. कार गति पकड़ती जा रही थी.

ढाई आखर प्रेम का-भाग 1: अनुज्ञा को अमित की बात क्यों याद आ रही थी?

‘‘मांजी, देखिए तो कौन आया है,’’ अनुज्ञा ने अपनी सासूमां के कमरे में प्रवेश करते हुए कहा.

‘‘कौन आया है, बहू…’’ उन्होंने उठ कर चश्मा लगाते हुए प्रतिप्रश्न किया.

‘‘पहचानिए तो,’’ अनुज्ञा ने एक युवक को उन के सामने खड़े करते हुए कहा.

‘‘दादीजी, प्रणाम,’’ वे कुछ कह पातीं इस से पूर्व ही उस युवक ने उन के चरणों में झुकते हुए कहा.

‘‘तू चंदू है?’’

‘‘हां दादीजी, मैं चंद्रशेखर.’’

‘‘अरे, वही तो, बहुत दिन बाद आया है. कैसी चल रही है तेरी पढ़ाई?’’ उसे अपने पास बिठाते हुए मांजी ने कहा.

‘‘दादीमां, पढ़ाई अच्छी चल रही है, आप के आशीर्वाद से नौकरी भी मिल गई है, पढ़ाई समाप्त होते ही मैं नौकरी जौइन कर लूंगा. सैमेस्टर समाप्त होने पर हफ्तेभर की छुट्टी मिली थी, इसलिए आप सब से मिलने चला आया.’’

‘‘यह तो बहुत खुशी की बात है. सुना बहू, इसे नौकरी मिल गई है. इस का मुंह तो मीठा करा. और हां, चाय भी बना लाना.’’

मांजी के निर्देशानुसार अनुज्ञा रसोई में गई. चाय बनाने के लिए गैस पर पानी रखा पर मस्तिष्क में अनायास ही वर्षों पूर्व की वह घटना मंडराने लगी जिस के कारण उस की जिंदगी में एक सुखद परिवर्तन आ गया था.

दिसंबर की हाड़कंपाती ठंड वाला दिन था. अमित टूर पर गए थे, शीतल और शैलजा को स्कूल भेजने के बाद वह रसोई में सुबह का काम निबटा रही थी कि गिरने की आवाज के साथ ही कराहने की आवाज सुन कर वह गैस बंद कर अंदर भागी तो देखा उस की सासूमां नीचे गिरी पड़ी हैं. अलमारी से अपने कपड़े निकालने के क्रम में शायद उन का संतुलन बिगड़ गया था और उन का सिर लोहे की अलमारी में चूड़ी रखने के लिए बने भाग से टकरा गया था, उस का नुकीला सिरा माथे से कनपटी तक चीरता चला गया जिस के कारण खून की धार बह निकली थी. वे बुरी तरह तड़प रही थीं.

उस ने तुरंत एक कपड़ा उन के माथे से बांध दिया, हाथ से कस कर दबाने के बाद भी खून रुकने का नाम नहीं ले रहा था तथा मांजी धीरेधीरे अचेत होती जा रही थीं. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

आसपास ऐसा कोई नहीं था जिस से वह सहायता ले पाती, अमित के स्थानांतरण के कारण वे 2 महीने पूर्व ही इस कसबे में आए थे, घर को व्यवस्थित करने तथा बच्चों के ऐडमिशन के कारण वह इतनी व्यस्त रही कि किसी से जानपहचान ही नहीं हो पाई. घर भी बस्ती से दूर ही मिला था, घर अच्छा लगा, इसलिए ले लिया था.

15 वर्ष बड़े शहर में नौकरी के बाद इस छोटे से कसबे कासिमपुर में पोस्टिंग से अमित बच्चों की पढ़ाई को ले कर परेशान थे. उन का कहना था कि तुम बच्चों को ले कर यहीं रहो पर अनुज्ञा का मानना था कि वहां भी तो स्कूल होंगे ही. अभी बच्चे छोटे हैं, सब मैनेज हो जाएगा. दरअसल, वह मांजी के उग्र स्वभाव के कारण छोटे बच्चों को ले कर अलग नहीं रहना चाहती थी. उन की चिंता का शीघ्र ही निवारण हो गया जब उन्हें पता चला कि यहां डीएवी स्कूल की एक ब्रांच है तथा उस का रिजल्ट भी अच्छा रहता है.

मांजी के कराहने की आवाज उसे बेचैन कर रही थी, सारी बातों से ध्यान हटा कर उस ने सोचा, टैलीफोन कर के एंबुलेंस को बुलवाए. टैलीफोन उठाया तो वह डैड था. उस समय मोबाइल तो क्या हर घर में टैलीफोन भी नहीं हुआ करते थे. अगर थे भी तो वे लाइन में गड़बड़ी के कारण अकसर बंद ही रहते थे. अगर चलते भी थे तो आवाज ठीक से सुनाई नहीं देती थी. एसटीडी करने के लिए कौल बुक करनी पड़ती थी. अर्जेंट कौल भी कभीकभी 1 से 2 घंटे का समय ले लिया करती थी.

 

मांजी की हालत देख कर उस दिन जिस तरह से वह स्वयं को लाचार व बेबस महसूस कर रही थी, वैसा उस ने कभी महसूस नहीं किया था. आत्मनिर्भरता उस में कूटकूट कर भरी थी. वह एक कंपनी में सोशल वैलफेयर औफिसर थी. विवाह के पूर्व तथा पश्चात भी उस ने कार्य जारी रखा था.

अभी सोच ही रही थी कि क्या करे, तभी डोरबैल बजी, मांजी को वहीं लिटा कर उस ने जल्दी से दरवाजा खोला तो सामने रामू को देख कर संतोष की सांस लेते हुए, उस से कहा, ‘तू जरा मांजी के पास बैठ कर उन के माथे को दबा कर रख. मैं तब तक गाड़ी निकालती हूं.’

‘क्या हुआ मांजी को?’ चिंतित स्वर में रामू ने पूछा.

‘वे गिर गई हैं, उन के माथे से खून बह रहा है जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा. प्लीज, मेरी मदद कर.’

‘लेकिन मैं?’ वह उस का प्रस्ताव सुन कर हड़बड़ा गया था.

‘मैं तेरी हिचकिचाहट समझ सकती हूं पर इस समय इस के अतिरिक्त और कोई उपाय भी तो नहीं है, प्लीज मदद कर,’ अनुज्ञा की आवाज में दयनीयता आ गई थी.

वह मांजी की छुआछूत के बारे में जानती थी पर इस समय रामू की सहायता लेने के अतिरिक्त और कोई उपाय भी तो नहीं था, यह तो गनीमत थी कि उसे कार चलानी आती थी.

अब वह अकेली नहीं थी. रामू भी साथ में था. उस ने रामू की सहायता से मांजी को गाड़ी में लिटाया तथा ताला बंद कर बच्चों के नाम एक स्लिप छोड़ कर ड्राइव करने ही वाली थी कि रामू ने स्वयं ही कहा, ‘मेमसाहब, हम भी चलें क्या?’

‘तुझे तो चलना ही होगा. यहां जो भी अच्छा अस्पताल हो, वहां ले कर चल. और हां, मांजी को पकड़ कर बैठना.’

हड़बड़ी में वह उसे बैठने के लिए कहना भूल गई थी. वैसे भी एक से भले दो, न जाने कब क्या जरूरत आ जाए. नई जगह भागदौड़ के लिए एक आदमी साथ रहेगा तो अच्छा है.

अत्यधिक खून बहने के कारण मांजी अचेत हो गई थीं, घबराहट में वह भूल ही गई थी कि यदि कहीं से खून निकल रहा हो तो उस स्थान पर बर्फ रख देने से खून के बहाव को रोका जा सकता है. मांजी अचेत थीं, ब्लडप्रैशर के साथ डायबिटीज की भी उन्हें शिकायत थी. शायद इसीलिए उस के पट्टी बांधने के बावजूद खून का बहना नहीं रुक पा रहा था.

कांग्रेस : सवाल नेतृत्व का 

कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्लूसी) की ऑनलाइन मीटिंग में मचे घमासान के बाद यह तो तय हो गया कि फिलहाल कांग्रेस अध्यक्ष पद पर सोनिया गाँधी के अलावा किसी भी कांग्रेसी नेता को सर्वसम्मति से चुना जाना मुश्किल खीर है. राहुल गाँधी को लेकर भले कुछ लोग नाक-भौं चढ़ाते हों, मगर गांधी परिवार के अलावा किसी भी अन्य कांग्रेसी नेता के नाम पर पूरी पार्टी की एकमत से ‘हाँ’ हो पाना संभव नहीं है. पार्टी में खेमेबाज़ी चरम पर है. अंदर ही अंदर कई गुट बन गए हैं. पुराने घिसे चावल अलग, नए खिले चावल अलग. गौरतलब है कि राहुल गाँधी के इस्तीफा देने के बाद सोनिया गाँधी बीते एक साल से पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनी हुई हैं. पार्टी के भीतर जड़ें जमाये बैठे बुज़ुर्ग दरख्तों के बीच काफी समय से हलचल मची हुई है कि इस पद पर गांधी परिवार से बाहर का कोई आदमी काबिज़ हो जाए, जिसको वे अपनी उँगलियों पर नचा सकें. जिसको सामने रख कर वे पार्टी में अपनी मर्ज़ी चला सकें. जो इन खाये-अघाये नेताओं की ओर आंख उठाने या सवाल उठाने की जुर्रत ना कर सके. और फिर सोनिया गांधी कब तक अंतरिम अध्यक्ष बनी रह सकती हैं, वो भी तब जब उनका स्वास्थ साथ नहीं दे रहा है. वे अब उस तरह सक्रीय भी नहीं रह पाती हैं जैसा पहले रहा करती थीं. बुज़ुर्ग दरख्तों ने नए अध्यक्ष के लिए खिचड़ी पकानी शुरू कर दी, लेकिन 24 अगस्त को हुई सीडब्लूसी की मीटिंग में पता चला कि खिचड़ी जल गयी और जले के निशान इतने गहरे कि ‘अब तो इन्हें रगड़ना पड़ेगा’. खैर कांग्रेस के पास दाग साफ़ करने के लिए फिर एक साल का समय है क्योंकि मीटिंग में काफी मान-मन्नौवल के बाद सोनिया गाँधी ने अगले एक साल तक अंतरिम अध्यक्ष पद पर बने रहना स्वीकार कर लिया है.

यह बात ठीक है कि किसी भी राजनितिक पार्टी की मजबूती और पार्टी के कामों को सुचारु रूप से चलाने के लिए स्थाई और सक्रीय अध्यक्ष का होना ज़रूरी है. स्थाई अध्यक्ष के लिए खुद सोनिया गाँधी भी चिंतित हैं और इसीलिए उन्होंने सीडब्लूसी की मीटिंग में यह बात कही कि अब पार्टी को उन्हें इस जिम्मेदारी से मुक्त करने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए, यानी नए अध्यक्ष की खोज होनी चाहिए. हालांकि यह बात उन्होंने उस चिट्ठी से आहत होकर कही जो कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं ने उनको उस वक़्त लिखी थी, जब वे बीमार थीं और अस्पताल में भर्ती थीं. नेतृत्व परिवर्तन को लेकर लिखी इसी चिट्ठी पर सीडब्लूसी की ऑनलाइन बैठक में खूब बवाल मचा. पहले ये सोचा जा रहा था कि सीडब्लूसी की बैठक नए अध्यक्ष के नाम की घोषणा के लिए होगी, कई नाम भी हवा में उछल रहे थे, लेकिन पूरी बैठक चिट्ठी के इर्द-गिर्द ही बनी रही. चिठ्ठी पर आंसू बहे, माफियां मांगी गयीं, मान-मन्नौवल हुआ, कुछ नेताओं को राहुल गाँधी ने रगड़ा, कुछ को प्रियंका ने धोया, कुछ तिलमिला कर बैठक के बीच ही ट्वीट-ट्वीट खेलने लगे तो एक सज्जन ने तो बकायदा अपने खून से पत्र लिख डाला. कुल जमा यह कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी की पूरे दिन की बैठक लेटर बम के धुएं में गुज़र गयी और अंत में यही तय हुआ कि अध्यक्ष पद पर अभी सोनिया गाँधी ही बनी रहेंगी.

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सोनिया गाँधी का स्वस्थ ठीक नहीं रहता है, बीते कुछ समय के दौरान वे कई बार अस्पताल में भी दाखिल रही हैं. वो खुद अब पार्टी की जिम्मेदारियों से मुक्त होकर आराम करना चाहती हैं, लेकिन नया अध्यक्ष क्या गाँधी परिवार से बाहर का कोई हो सकता है? क्या है इतना दम किसी में कि पूरी पार्टी  को अपने अनुसार चला ले? क्या है ऐसा कोई चेहरा कि तमाम कांग्रेसी कार्यकर्ता, समर्थक, नए-पुराने बूढ़े-जवान नेता और खुद गांधी परिवार जिसके पीछे चल सके? है कोई चेहरा जो जनता के वोट कांग्रेस की झोली में खींच सके? और सबसे ख़ास बात यह कि क्या गाँधी परिवार के अलावा कोई ऐसा है जो पार्टी में जड़ें जमाये बैठे और ब्राह्मणवादी सोच से लबरेज़ घाघ नेताओं की करतूतों पर उन्हें खुलेआम खरी खोटी सुनाने का दम रखता है? शायद नहीं.

हम भारतीय जनता पार्टी पर उंगली उठाते हैं कि वहां मनुवादी सोच और व्यवस्था को कायम करने वाले लोगों का वर्चस्व है. नरेंद्र मोदी को आगे रख कर ब्राह्मणवादी विचारधारा अमरबेल की तरह फल-फूल रही है. मगर ये बीमारी तो कांग्रेस में भी है. यहां भी सवर्ण और ब्राह्मण नेताओ की जकड़ में पार्टी छटपटा रही है, जो काम कम षड्यंत्र ज़्यादा करते हैं. सच पूछें तो इन्ही के द्वारा अनुसूचित या पिछड़ी जाति के व्यक्ति को अध्यक्ष बनाने की वकालत लम्बे समय से हो रही है. इस सिलसिले में कभी मीरा कुमार का नाम उछाला जाता है तो कभी मुकुल वासनिक का. क्योंकि निम्न जाति के व्यक्ति को अध्यक्ष पद पर बिठा कर सवर्ण जाति के नेताओं के लिए उसको उँगलियों पर नचाना आसान होगा. उसको सामने रख कर मनुवाद का विस्तार आसानी से किया जा सकता है. ब्राह्मणवादी विचारधारा को पोसने वाले इन नेताओं का ऐशो-आराम, ताकत, अधिकार और दबदबा पार्टी में कायम रहेगा. काम करेगा नीची जाति का व्यक्ति और ऐश करेंगे सवर्ण जाति के नेता. कांग्रेस में सिर्फ एक गांधी परिवार ही है जिसके आगे इन मनुवादियों की दाल नहीं गलती है. गाँधी परिवार भले चुनाव के वक़्त मंदिरों के फेरे लगा ले, जनेऊ धारण कर ले, तिलक लगा ले या आरती में शरीक हो जाए, लेकिन सही मायनों में इस परिवार की रगों में वही विविधता खून के साथ बह रही है जिस विविधता के लिए भारत दुनिया भर में जाना जाता है.

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नेहरू जहाँ खुद को कश्मीरी पंडित कहते थे, वहीँ उनकी पुत्री इंदिरा गाँधी ने फ़िरोज़ गाँधी से शादी की, जिनके बारे में कुछ लोग कहते हैं कि वे पारसी थे तो कुछ मानते हैं कि वो मुसलमान थे. इंदिरा और फ़िरोज़ की संतान राजीव ने जहाँ इटालियन ईसाई महिला एंटोनिया एडविजे अल्बिना मेनो उर्फ़ सोनिया गाँधी से विवाह किया, वहीँ संजय गाँधी ने सरदार बाला मेनका से शादी की. राजीव और सोनिया की पुत्री प्रियंका गाँधी ईसाई धर्म को मानने वाले रोबर्ट वाड्रा से शादी करके प्रियंका गांधी वाड्रा कहलाती हैं. सच पूछें तो गाँधी परिवार को विविधधर्मी या गैर धार्मिक परिवार कहा जा सकता है. मनुवादी बंदिशों को तोड़ कर और धर्म के संकीर्ण दायरों से ऊपर उठ कर देश-दुनिया को देखने का नज़रिया सिर्फ उन्हीं के पास हैं. ऐसे में ब्राह्मणवादी संकीर्ण सोच में बंधे नेताओं के लिए गाँधी परिवार पर काबू पाना या उनको अपने मन मुताबिक संचालित करना असंभव ही है. यह बात सीडब्लूसी की बैठक में भी साफ़ हो गयी जब राहुल गांधी की एक लताड़ खा कर कुछ नेता माफी मांगने लगे तो कुछ ने इस्तीफे तक की पेशकश कर दी.

सीडब्लूसी की पूरी बैठक में घमासान उस चिट्ठी को ले कर मचा रहा जो गुलाम नबी आज़ाद की अगुआई में कांग्रेस के बाइस नेताओं ने ‘नेतृत्व परिवर्तन’ के लिए सोनिया गाँधी को तब लिखी जब वे बीमार थीं और अस्पताल में भर्ती थीं. इस चिट्ठी को लेकर पूरा गाँधी परिवार तमतमाया हुआ था. बैठक में राहुल गाँधी ने चिठ्ठी भेजने के वक़्त पर आपत्ति उठाते हुए पूछा कि – ‘सोनिया गांधी के अस्पताल में भर्ती होने के समय ही पार्टी नेतृत्व को लेकर पत्र क्यों भेजा गया था?’ उन्होंने कहा –  ‘पार्टी नेतृत्व के बारे में सोनिया गांधी को पत्र उस समय लिखा गया जब वे बीमार थीं और दूसरी तरफ राजस्थान में कांग्रेस सरकार संकट का सामना कर रही थी.’ राहुल ने इन नेताओ की करनी पर नाराज़गी जताते हुए यह भी कहा कि पत्र में जो लिखा गया था उस पर चर्चा करने का सही स्थान सीडब्ल्यूसी की बैठक है, मीडिया नहीं. उन्‍होंने आरोप लगाया कि यह पत्र भाजपा के साथ मिलीभगत से लिखा गया है.

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प्रियंका गाँधी वाड्रा ने भी भाई की नाराज़गी को सही ठहराते हुए चिठ्ठी लिखने वाले वरिष्ठ कांग्रेसियों की आलोचना की और नेताओं को दोहरे चरित्र का बताया. कांग्रेस के पुराने नेता और गाँधी परिवार के करीबी एके एंटनी ने तो साफ़ कहा कि – ‘चिट्ठी से ज्यादा, चिट्ठी में लिखी गईं बातें क्रूर थीं. इन नेताओं को पार्टी के लिए सोनिया गांधी के बलिदानों को याद रखना चाहिए.’  हरियाणा कांग्रेस की नेता कुमारी शैलजा ने भी पत्र लिखने वालों पर हमला बोलते हुए यह कह दिया कि वो भाजपा के एजेंट की तरह काम कर रहे हैं.
भाजपा से मिलीभगत के आरोप पर गुलाम नबी आजाद चिढ़ गए. आजाद राज्‍यसभा में कांग्रेस के नेता हैं. उनकी अगुवाई में ही वरिष्‍ठ कांग्रेसियों ने सोनिया को चिट्ठी लिखी थी. आजाद ने कहा कि अगर भाजपा से सांठ-गांठ के आरोप सिद्ध होते हैं तो मैं त्‍यागपत्र दे दूंगा.

कपिल सिब्बल भी भाजपा से मिलीभगत के आरोप पर खूब तिलमिलाए और उन्होंने बैठक के दौरान ही ट्वीट किया –  ‘राजस्‍थान हाई कोर्ट में कांग्रेस पार्टी को सफलतापूर्वक डिफेंड किया. मणिपुर में बीजेपी सरकार गिराने में पार्टी का बचाव किया. पिछले 30 साल में किसी मुद्दे पर बीजेपी के पक्ष में कोई बयान नहीं दिया. लेकिन फिर भी हम ‘बीजेपी के साथ मिलीभगत कर रहे हैं.’ हालांकि बाद में उन्‍होंने अपना यह ट्वीट डिलीट कर दिया और कहा कि राहुल गाँधी ने उन्‍हें खुद फोन करके कहा कि उन्‍होंने मिलीभगत वाली कोई बात नहीं कही है.

सोनिया को भेजी गयी चिट्ठी पर साइन करने वाले नेताओं में से एक मुकुल वासनिक तो अपनी बात कहते हुए इतने भावुक हो गए कि उनकी आँखें नम हो गयीं. नए अध्यक्ष के तौर पर मुकुल वासनिक का नाम खूब उछल रहा था, उन्हें उम्मीद भी थी कि सीडब्लूसी की बैठक में उनके नाम पर मुहर लग जाएगी, लेकिन मामला ऐसा पलटा कि आँख में आंसू भर कर उन्हें कहना पड़ा कि अहमद पटेल से ज्यादा मैंने सोनिया गांधी से सीखा है. मैं उनका शुक्रगुजार हूँ. उन्होंने मुझे हर चीज सिखाई. उन्हीं की वजह से मैं आज यहां तक पहुंचा हूँ. अगर मुझसे कोई गलती हो गई है तो मैं उसके लिए माफी मांगता हूँ. उल्लेखनीय है कि मुकुल वासनिक को राजनीती में लाने वाले राजीव गाँधी थे. मुकुल राजीव गाँधी कैबिनेट में मंत्री रह चुके हैं.

दरअसल सोनिया गाँधी को नेतृत्व परिवर्तन और स्थाई अध्यक्ष की ज़रूरत पर चिट्ठी लिखने वालों में तीन तरह के नेता हैं –  एक वो, जिन्हें पार्टी में जो कुछ मनमाने ढंग से चल रहा है उसका दुख है. दूसरे वो नेता हैं, जिन्हें राहुल गाँधी के साथ काम करने में हिचकिचाहट है और तीसरे वो कांग्रेस नेता हैं, जो वाक़ई में पार्टी को नुक़सान पहुँचाना चाहते हैं, जिसको लगता है कि पार्टी में उनका अच्छा नहीं हो रहा है. उनका वर्चस्व कायम नहीं हो पा रहा है और वो मनमानी नहीं कर पा रहे हैं. कांग्रेस को ख़तरा तीसरे प्रकार के नेताओं से है, जिनकी मंशा अगर फलीभूत हो गयी तो ये कांग्रेस को भी मनुवादियों की पार्टी बनाने में देर नहीं करेंगे.
कुछ लोगों का मांनना यह भी है कि वैसे तो राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष नहीं है, लेकिन वास्तव में अध्यक्ष ही बने हुए हैं. उनकी 100 में से 70 बात आज भी मान ली जाती हैं. आज पार्टी में राहुल का रोल क्या हो, ये बात अधर में अटकी है, वो ना ख़ुद अध्यक्ष बन रहे हैं और ना दूसरे को बनने दे रहे है, ये बात ज़्यादा दिन तक नहीं चल सकती, इसलिए पार्टी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होना ही चाहिए. हालांकि जानकारों का मानना है कि राहुल गाँधी अगर आज भी अध्यक्ष बनने के लिए अपना मन बना लें तो वो बिना किसी मुश्किल के दोबारा अध्यक्ष बन सकते हैं, लेकिन वे अध्यक्ष ना बनने की अपनी ज़िद पर अड़े हुए हैं. खैर, उनकी ये ज़िद कब टूटेगी कह नहीं सकते, मगर सीडब्लूसी की मीटिंग के बाद सोनिया गांधी को इतनी मोहलत अवश्य मिल गई है, कि पार्टी में जो रायता फैला है उसे समेट लिया जाए.

राहुल गाँधी ने जब चुनाव बाद हार की जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था, तब उन्होंने लिखा था कि मेरा संघर्ष कभी भी राजनीतिक सत्ता के लिए साधारण लड़ाई नहीं रहा है. मुझे भाजपा के प्रति कोई नफतर या गुस्सा नहीं है लेकिन मेरे शरीर में मौजूद ख़ून का एक एक क़तरा सहज रूप से भारत के प्रति भाजपा के विचार का प्रतिरोध करता है. यह प्रतिरोध इसलिए पैदा होता है क्योंकि मेरा वजूद जिस भारत की कल्पना से बना है, उसका टकराव भाजपा के भारत की कल्पना से है. यह कोई नई लड़ाई नहीं है. हज़ारों साल से इस धरती पर जारी है. जहां वे मतभेद देखते हैं मैं समानता देखता हूँ. जहां वे नफरत देखते हैं मैं प्रेम देखता हूँ. जहां वे भय देखते हैं मैं गले लगाता हूँ. यह भारत का विचार (आइडिया ऑफ़ इंडिया ) है जिसकी हम रक्षा करेंगे. राहुल ने लिखा कि देश और संविधान पर हो रहा हमला हमारे देश के ताने-बाने को नष्ट करने के लिए हो रहा है. मैं किसी भी तरह से इस लड़ाई से पीछे नहीं हट रहा हूँ. मै कांग्रेस का निष्ठावान सिपाही हूं और भारत का एक समर्पित बेटा हूँ. अपनी अंतिम सांस तक उसकी सेवा और सुरक्षा करता रहूंगा.

एक राजनीतिक दल का नेता, कार्यकर्ता और अध्यक्ष होने के नाते राहुल गांधी ने जो विचार दिए, गाँधी परिवार के अलावा ऐसे विचार किसी भी अन्य कांग्रेसी की बातों में नहीं प्रकट होते हैं. चुनाव के वक़्त कांग्रेस में पैठ जमाये मनुवादी विचारधारा के नेता राहुल और प्रियंका पर दबाव डालते हैं खुद को हिन्दू साबित करने की, मंदिरों और घाटों पर जाकर पूजा अर्चना करने की, तिलक और जनेऊ धारण करने की. इस दबाव में आकर उन्होंने पिछले चुनावों में खुद पर नरम हिंदुत्व का ठप्पा भी लगवा लिया. इस बात का अहसास उन्हें भी बखूबी है और राहुल गांधी का इस्तीफा और इस्तीफे के बाद लिखा गया उनका पत्र यह बताने की कोशिश है कि अब वे मनुवादी विचारधारा वाले किसी भी दबाव को नहीं झेलना चाहते हैं.

राहुल के ‘आइडिया ऑफ़ इंडिया’ के विचार असल कांग्रेसी विचारधारा है, जो उसको भाजपा और अन्य राजनीतिक पार्टियों से अलग करती है. मगर इस विचारधारा को जानने-समझने और पोषित करने की इच्छाशक्ति कांग्रेस के अन्य किसी नेता में नहीं  दिखती. यदि कांग्रेस को बचाये रखना है तो यह ज़रूरी है कि गांधी परिवार से इतर अगर किसी व्यक्ति के हाथ में पार्टी की बागडोर जाती है तो वह इस काबिल हो कि इस विचारधारा को आत्मसात कर सके और इसी के मुताबिक़ पार्टी को आगे बढ़ाने की ताकत रखे. राहुल गाँधी अगर अध्यक्ष पद पर पुनः काबिज़ होते हैं तो ठीक, वरना आल इंडिया कांग्रेस कमेटी की मीटिंग में यदि नए अध्यक्ष के लिए चुनाव की घोषणा होती है तो आवश्यक और अनुकूल परिस्थितियां तैयार करने के साथ ही यह भी देखना होगा कि अध्यक्ष पद की चाहत लेकर मैदान में वही उतरे जो कांग्रेस की खांटी विचारधारा को आगे ले जा सके, ना कि भाजपा का एजेंट बन कर पार्टी को मटियामेट कर दे.

चर्चा में हुंडई वरना का इंजन, सबकुछ है परफेक्ट और नया

हुंडई वरना के स्टाइलिश लुक के अलावा इसे पसंद करने की एक खास वजह इसका इंजन भी है. नई वरना में 1.5 लीटर डीजल इंजन की वजह से 113 बीएचपी और 25.5kmpl टार्क तक का माइलेज मिलेगा. नई वरना 115 हॉर्स पावर वाले 1.5 लीटर डीजल इंजन के साथ लॉन्च हुई है, जो माइलेज के मामले में पुराने मॉडल से काफी बेहतर है.

वहीं इस कार में नेचुरली एस्पीरेटेड पेट्रोल इंजन है, जो 114 हॉर्स पावर की ताकत के साथ मिलेगा यानी जरूरत पड़े पर आप इसे अपने हिसाब से बढ़ा सकते हैं. साथ ही डीज़ल इंजन का मजबूत मिड-रेंज टॉर्कआपको इन-गियर एक्सीलेरेशन देता है, जिससे ड्राइव करते समय आपको बार-बार गियर शिफ्ट करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. जो आपकी ड्राइव को आसान बनाने के लिए काफी है. यानी ये दोनों वर्ल्ड बेस्ट इंजन हैं और इसिलए वरना #BetterThanTheRest है.

कपिल शर्मा पर भड़के सुशांत सिंह राजपूत के फैंस, शो बंद कराने की दी धमकी

सुशांत सिंह राजपूत के फैंस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच चुका है. ऐसे में सुशांत के फैंस चाहते हैं कि रियलिटी शो ‘द कपिल शर्मा’ को बैन किया जाए. कपिल शर्मा शो के प्रोड्यूसर सलमान खान हैं. जिस वजह से लोग इस शो को बायकॉट कर रहे हैं.

सुशांत के फैंस नहीं चाहते हैं कि इस शो को टेलीकास्ट किया जाए. बीते सोमवार को एक यूजर ने इस बात को फेसबुक के माध्यम से शेयर किया है. वहीं अभी तक करीब 90 हजार से ज्यादा लोगों ने इस बात को शेयर किया है और लाइक किया है.

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वहीं एक फैन ने लिखा है कि डियर एसएसआर फैमली आप लोग इस बात पर ध्यान दीजिए कि द कपिल शर्मा शो को प्रोड्यूस सलमान खान करते हैं इस वजह से सिर्फ उनकी फिल्में ही नहीं हर तरह से बैन किया जाना चाहिए.

 

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सुशांत सिंह राजपूत के मौत के बाद से फैंस कई लोगों पर अपना निशाना साधे हुए हैं. जिनमें से महेश भट्ट , आलिया भट्ट, सोनाक्षी सिन्हा, सोनम कपूर, करण जौहर , अन्नया पांडे, सारा अली खान इत्यादि.

वहीं इस केस पर सीबीआई लगातार जांच कर रही हैं. उम्मीद है जल्द ही फैसला सही आएगा. फैंस सुशांत सिंह राजपूत के लिए लगातार पहले दिन से न्याय कि मांग कर रहे थें.

 

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वहीं सुशांत के परिवार वाले भी सुशांत के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं. सुशांत सिंह राजपूत के फैमली के साथ उनकी एक्स गर्लफ्रेंड अंकिता लोखंडें भी लगातार सपोर्ट में नजर आ रही हैं. सुशांत सिंह राजपूत के जीवन की वह एकलौती लड़की है जो सुशांत के परिवार वालों से मिलने सुशांत के साथ पटना गई थीं.

सुशांत के पापा ने इस बात को सोशल मीडिया पर स्वीकार किया था.

रित्विक धनजानी ने EX-गर्लफ्रेंड के बर्थडे पर शेयर किया क्यूट पोस्ट, मिला ढेर सारा प्यार

रित्विक धानजानी और आशा नेगी टीवी के चर्चित कलाकारों में से हैं. फैंस इनकी छोटी-छोटी बातों पर नोटिस करते हैं और वह खबर बन जाती है. आशा नेगी के जन्मदिन पर रित्विक धानजानी ने बेहद ही खास अंदाज में विश किया है. इस पोस्ट में दोनों एक –दूसरे पर प्यार लुटा रहे हैं.

दरअसल हाल ही में आशा नेगी ने अपना जन्मदिन मनाया है. ऐसे में उनके एक्सबॉयफ्रेंड रित्विक धानजानी ने क्यूट पोस्ट शेयर किया है.

रित्विक ने आशा कि केरल ट्रीप की तस्वीर शेयर करते हुए लिखा है कि मैं आशा करता हूं आप जहां भी जाएं वहां का माहौल खुशियों से भर जाएं.

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इनके पोस्ट को देखकर फैंस बेहद खुश हैं. इन्हें देखकर ऐसा लग रहा है कि दोनों जल्द ही पैचअप के मूड में हैं.

बता दें आशा नेगी और रित्विक लंबे समय तक एक दूसरे के साथ रिलेशन में रह चुके हैं. कुछ समय पहले ही दोनों की शादी की खबरें आ रही थी. हालांकि अचानक दोनों एक-दूसरे से अलग हो गए.

अब इस पोस्ट को देखकर फैंस के मन में एक नई उम्मीद जगी है. जिसे देखकर लग रहा है कि जल्द दोनों एक-दूसरे के करीब आ सकते हैं.

 

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On his way..??

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आशा नेगी सीरियल पवित्र रिश्ता से मशहूर हुई हैं. इसके साथ ही वह कई सीरीयल्स में काम कर चुकी हैं. वह कुछ दिन पहले ही रित्विक के साथ अपने ब्रेकअप की खबर के बारे में खुलासा किया था. वह खुद को टाइम देना चाहती हैं.

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रित्विक भी अपने नए प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं. दोनों अपने-अपने काम में व्यस्त हैं. लेकिन दोनों ने कभी एक-दूसरे के बारे में गलत नहीं बोला है. यहीं वजह है जिससे फैंस इनके दीवाने हैं.

बिहार चुनाव 2020: विकास बनाम जातिवाद का जहर

बिहार के हाजीपुर के रहने वाले अजीत पासवान परचून की दुकान चलाते हैं. उन के घर के सामने की सङक टूटीफूटी है, घर में बिजली तो है पर सामने बिजली के तार ऐसे उलझे पङे हैं जैसे किसी बङी मकड़ी ने जाल बुन दिया हो.

बारिश के दिनों तो उन के घर के सामने की सङक की हालत और भी खराब हो जाती है. सङक के गड्ढों में पानी भर जाता है और साथ में किचङ में फंस कर कभी राह चलते लोग तो कभी मोटरसाइकिल वाले आएदिन गिरतेपङते रहते हैं.

बावजूद वे अपने इलाके में हुए कामकाज से संतुष्ट हैं और कहते हैं,”देखिए, हमारे इलाके में पासवानजी ने सब ठीक कर दिया है. घर में बिजली रहती है और पानी भी आ गया है. पासवानजी की कृपा से हम को बहुत कुछ मिला है.”

भाई वीरेंद्र सिंह, विधायक व मुख्य प्रवक्ता, राजद

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अजीत कहते हैं कि रामविलास पासवान हमारी ही जाति से हैं और दुसाध समुदाय से हैं.

बिहार में दुसाध रामविलास पासवान का भरोसेमंद वोट बैंक है जिस की भूमिका बिहार की कुछ सीटों पर निर्णायक असर डालती है.

मगर पटना से लगभग 7 किलोमीटर दूर, गया जाने वाली सङक के नजदीक खपरैलचक की रहने वाली प्रतिमा पासवान क्षेत्र के विधायक के कामकाज से संतुष्ट नहीं हैं.

यहां परसा बाजार से खपरैलचक जाने के लिए एक सङक है. सङक भी ऐसा जो सिर्फ नक्शे में दिखता है पर इस सङक पर चलना किसी चुनौती से कम नहीं है.

रमेश शर्मा, नेता व प्रवक्ता, बिहार कांग्रेस

प्रतिमा कहती हैं,”हम ने कई मौकों पर क्षेत्र के विधायक श्याम रजक से सङक बनवाने के लिए कहा पर उन्होंने कभी न कहा नहीं और हां किया नहीं. परसा बाजार से खपरैलचक जाने के लिए यह मुख्य सङक है पर लोग इस सङक पर निकलने से पहले एक बार सोचते जरूर हैं.”

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वैसे यह इलाका फुलवारी विधानसभा में आता है, जहां के विधायक श्याम रजक बिहार सरकार में मंत्री रहे हैं मगर हाल ही में उन्होंने पार्टी बदल ली और राजद में शामिल हो गए.

श्याम रजक धोबी समुदाय से आते हैं और खपरैलचक में अधिकतर पिछङी जातियों के लोग ही रहते हैं, बावजूद यहां न तो कोई विकास हुआ और न ही कभी कोई शिलान्यास.

प्रतिमा बिहार दलित महिला विकास मंच की सदस्या भी हैं. वे कहती हैं,”बिहार चुनाव में विकास मुद्दा कहां रहता है? आज भी लोग जातिगत आधार पर वोट करते हैं और यह बात बिहार के नेता अच्छी तरह समझते हैं. यहां विकास के काम भी इसी आधार पर तय किए जाते हैं.”

सीमा पुर्बे, उपाध्यक्ष, महिला मोर्चा, जदयू

थकहार कर प्रतिमा ने लोगों के साथ मिल कल इस सङक को बनवाने का बीङा उठाया और आपस में चंदा दे कर सङक के गड्ढों को भरवाया ताकि कम से कम लोग चलतेफिरते किसी दुर्घटना के शिकार न हो जाएं.

विकास, रोजगार, भ्रस्टाचार जैसे मुद्दों के अलावे बिहार में जाति एक ऐसा मुद्दा है जो हर चुनाव में यहां हावी रहता है. यहां की जातिगत समीकरण को समझना उतना ही जटिल है जितना क्रिकेट के नियमों का.

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पुर्णिया के एक स्थानीय व्यापारी कौशिक कुमार कहते हैं,”बिहार में जातिगत समीकरण विकास पर भारी पङता है और इन परतों को जितना खोदिएगा वह उतना ही जटिल होता जाएगा.

“यहां इसी साल चुनाव है मगर वोटिंग के दिन कौन कैसे मतदान करेगा यह भी बहुत अहम है.”

विकास के साथ जाति को साधना

बिहार में जातिगत आधार पर किस तरह वोट पङते हैं इस को समझने के लिए पहले यह गणित समझना भी जरूरी होगा.

बिहार में राष्ट्रीय जनता दल को यादवों की पार्टी कहा जाता है और इस का समर्थन मुसलमान भी करते हैं, वहीं सत्तारूढ़ दल जनता दल यूनाइटेड को कुर्मीकोइरी जाति की पार्टी कहा जाता है.

रेखा भारतीय, बिहार भाजपा प्रदेश कार्यकारणी सदस्य

इस की आबादी बिहार में लगभग 9% है वहीं दलितों की अधिसंख्या आबादी पर रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा की पकङ है.

कह सकते हैं कि बिहार में विकास के साथसाथ जाति को साधना भी राजनीतिक महत्त्व रखता है. राजनीतिक दल भी तकरीबन यही मानते हैं.

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शायद तभी हाल ही में राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के बेटे, पूर्व उपमुख्यमंत्री और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्‍वी यादव ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा है कि साल 2020 में आरजेडी की सरकार बनाने के लिए सब को अपने आचरण और व्यवहार में बदलाव लाना होगा.

उन का यह बयान तब आया है जब बिहार में विधानसभा चुनाव को ले कर चुनाव आयोग ने साफ कर दिया है कि चुनाव समय पर होंगे.

तेजस्वी ने कार्यकर्ताओं से यह भी कहा कि आप सभी को राम बनना होगा और न सिर्फ सबरी के बेर खाने होंगे, कृष्ण की तरह सुदामा के चरण भी धोने होंगे.

तेजस्वी के इस बयान पर जेडीयू के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने चुटकी लेते हुए कहा,”सबरी के बेर उन के पिता लालू यादव भी खाने का दावा करते थे, जिस का गरीबगुरबा की राजनीति से कोई वास्ता नहीं रहा. गरीब सवर्ण के 10% आरक्षण का विरोध करने वाली आरजेडी अकेली पार्टी थी और जनता अब भी ‘भूरा बाल साफ़ करो’ का नारा भूली नहीं है.”

प्रतिमा पासवान, सदस्य, बिहार दलित महिला विकास मंच

भूरा बाल साफ करो का नारा

कभी ‘भूरा बाल साफ़ करो’ की बात तेजस्वी के पिता लालू यादव ने ही कही थी और यह वही नारा था जिस के बलबूते लालू प्रसाद यादव ने लगातार 15 वर्षों तक बिहार की सत्ता पर एकतरफा राज किया था.

बिहार की राजनीति में जातिवाद का जहर किस कदर हावी है, यह बतलाने से पहले साल 1990 का दशक का वह दौर याद करना जरूरी होगा जब मंडल कमीशन लागू करने की मांग की जा रही थी और इसी दौरान लालू प्रसाद यादव ने अगड़ी जातियों के विरुद्ध भूरा बाल यानी भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, लाला को साफ करो का नारा दिया था.

लेकिन यह भी सही है कि बिहार जैसे राज्य में चाहे वह राजनीति का क्षेत्र हो या कोई अन्य क्षेत्र, अगङी जातियों ने कभी भी पिछङी जातियों को आगे बढ़ने देना पसंद नहीं किया.

दलितों के खिलाफ हिंसा

आज भी बिहार में मैला ढोने की कुप्रथा है और बिहार में दलितों के खिलाफ हिंसा का लंबा इतिहास रहा है.

अभी पिछले साल 24 नवंबर की रात भागलपुर जिले के बिहपुर के झंडापुर गांव में एक दलित परिवार के 3 सदस्यों की हत्या कर दी गई थी. हत्या के बाद उन की आंखें निकाल दी गई थीं और धारदार हथियार से गला रेत दिया गया था.

बिहपुर के झंडापुर गांव में मिलीजुली आबादी है. यहां कई दलित परिवार मछली के कारोबार से जुड़े हैं.

कनिक राम ने जलकर को ठेके पर लिया था. जलकर पर उस समय इलाके की ऊंची जातियों का कब्जा था. इस हत्या के पीछे जलकर विवाद और दलितों का समाज में आगे बढ़ना भी एक वजह बताया गया था.

जिस बच्ची के साथ बलात्कार हुआ, वह 7वीं कक्षा में पढ़ती थी. चौधरी टोला में स्थित सरकारी स्कूल में वह पढ़ने जाती थी, जहां उस के साथ कुछ दबंगों ने छेड़खानी की, जिस का उस ने विरोध किया था.

वैशाली के दलित आवासीय विद्यालय में एक लड़की की बलात्कार के बाद निर्मम हत्या, भागलपुर में दलित महिलाओं पर हमला और रोहतास जिले के काराकाट थाना क्षेत्र के मोहनपुर गांव में 15 साल के एक दलित लड़के को दबंगों द्वारा जिंदा जला दिए जाने समेत कई बड़े मामले बिहार में जातपात की दीवारें खड़ी करते नजर आती हैं.

बिहार में कभी एक स्कूल में दलित बच्चे अलग और अगङी जातियों के बच्चों को अलग बैठा कर खाना दिया जा रहा था. तब पूरे देश में इस पर खूब होहल्ला मचा था.

एनसीआरबी की एक रिपोर्ट के मुताबिक आबादी के हिसाब से दलित हिंसा की दर सब से ज्यादा 42.6% बिहार में है जबकि मध्य प्रदेश दूसरा और राजस्थान तीसरे स्थान पर है.

हां, यह बात भी सही है कि देशभर में दलितों पर हुई हिंसा और रोहित वेमुला या ऊना में गाय को ले कर दलितों की पिटाई जैसी घटनाओं को बिहार के दलित आज भी भूले नहीं हैं.

विकास का सब्जबाग, नहीं हुआ विकास

आरजेडी के एक समर्थक आदित्य बताते हैं,”एक समय लालू प्रसाद यादव ने दबंग जातियों से हमें राहत दिलाई थी और हम इसे कभी भूलेंगे नहीं. बिहार के कमजोर तबके के लोग आज के माहौल में बीजेपीजदयू गठबंधन को वोट देगा, यह संभव नहीं है. यह वोट तो हमें ही मिलना है.”

राजद के विधायक व मुख्य प्रवक्ता भाई वीरेंद्र सिंह कहते हैं,”देखिए, पिछले 15 सालों में नीतीश कुमार ने बिहार का भला नहीं किया. उन के राज में किसी भी जाति का भला नहीं हुआ है. उन्होंने जनता को विकास का सब्जबाग दिखाया था लेकिन खुद ही जातपात की राजनीति कर रहे हैं.

“बिहार में इस बार राष्ट्रीय जनता दल पूर्ण बहुमत से सरकार बनाएगी.”

जातिवाद नहीं विकास पर वोट

दूसरी तरफ बिहार जदयू महिला मोरचा की उपाध्यक्ष सीमा पुर्बे का मानना है कि बिहार में इस बार विकास के मुद्दे पर वोट पङेंगे.

सीमा बताती हैं,”बिहार में सड़क, बिजली और पानी को ले कर काफी काम किए गए हैं. इन सब पर बहुत ही अच्छे तरीके से काम हुआ है और थोड़ाबहुत जो भी बाकी है उसे भी पूरा किया जाएगा. बिहार में उद्योगधंधे स्थापित किए जाएंगे. कानून का राज बिहार में स्थापित हो चुका है इसलिए अब नए सिरे से कलकारखाने खोले जाने पर काम होगा.

“रही बात जातिवाद की तो जदयू ने कभी भी जातिवाद को बढ़ावा नहीं दिया, बल्कि समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के बारे में पार्टी सोचती है और हर जाति हर धर्म के लोगों को साथ ले कर चलने में विश्वास रखती है.”

बिहार प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश कार्यकारणी सदस्या, रेखा भारतीय कहती हैं,”यह सही है कि बिहार में जातिगत आधार पर वोट पङते रहे हैं मगर इधर कुछ सालों से बिहार की जनता विकास पर वोट कर रही है और भाजपाजदयू गठबंधन की सरकार ने समाज के हर तबके का खयाल रखा है.

“बिहार में एक समय महिलाएं घर से बाहर निकलने तक में डरती थीं, अब ऐसा नहीं है. सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा को हमेशा तवज्जो दी है.”

अमीरीगरीबी के बीच की खाई

मगर बिहार ऐसा प्रदेश है जहां की महिलाएं हमेशा हाशिए पर खङी रही हैं खासकर पिछङी तबके की महिलाएं. इस ने अमीरीगरीबी के बीच एक दीवार जरूर खङी कर दी है. नेताओं को यह पता है कि चोट खाई जनता वोट विकास से ज्यादा जाति के नाम पर दे सकते हैं और तभी लगभग हर पार्टी में जातिगत आधार पर नेताओं को टिकट भी दिए जाते हैं.

बिहार प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता व नेता रमेश शर्मा कहते हैं,”बिहार में जातिवाद का जहर बांटने वाली भाजपा है और नीतीश कुमार उस के पिछलग्गू. यहां  कांग्रेस ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जिस ने जातिधर्म के नाम पर कभी वोट नहीं मांगी.

“देश को हिंदुमुसलिम में बांटने वाली भाजपा रही है और यह पार्टी कभी मंदिर के नाम पर तो कभी जाति के नाम पर वोट मांगती है.

“भाजपा ने कभी गरीबों का हित नहीं किया. नोटबंदी में इस ने गरीबों के घरों के रूपए छिन लिए, जीएसटी में अफसरशाही चरम पर है और तो और कोरोनाकाल में भी भाजपा सरकार पूरी तरह फेल ही साबित हुई है. करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए और करोड़ों के सामने भुखमरी तक की नौबत आ गई.

“भाजपा केवल सत्ता पाने की लालची पार्टी है और इस बार बिहार की जनता भाजपाजदयू गठबंधन को सबक सिखाने के मूड में है.”

मगर जिस राज्य के सामाजिक संरचना में दलित आज भी हाशिए पर खङे हैं,जहां नक्सलवाद आंदोलन की जड़ें गहरी रही हैं, जहां दलितों के खेतखलिहान जलते रहे हैं, वहां जाति के नाम पर वोट नहीं डाले जाएंगे इस में संशय ही है.

दूसरी तरफ यह भी सच है कि बिहार ने कई हिंसक जातीय दंगे देखे हैं. दलितों और गरीब महिलाओं का नरसंहार किया गया है. गर्भवती महिलाओं के गर्भ पर हमला किया गया है और औरतों के स्तन तक काट डाले गए हैं.

इस तरह की हिंसा ने बिहारी समाज को कई खानों में बांट दिया है और इस का असर राजनीति और वोट डालने में भी देखा जा सकता है.

सुषमा-भाग 1: हर्ष ने बाबा को क्या बताया?

मेरी कोठी की तीसरी मंजिल की बरसाती आज एक फ्लैट का रूप ले चुकी है. यह वही छत है जिस पर मैं अपना बोनसाई गार्डन प्लान कर रही थी पर कभी बनाया नहीं था. मैं वहां किसी को पांव नहीं रखने देती थी, इसलिए कि यह अपनी खूबसूरती न खो बैठे. आज उसी के एक तरफ मैं ने एक छोटा सा फ्लैट, इस को मैं ने खुद पास खड़े हो कर बनवाया है. सुषमा से मैं ने कितनी बार पूछा था, ‘‘सुषमा, तू भी तो कुछ बता, इस में कोई और काम करवाना हो तो? वरना जब मिस्त्री लोग चले जाएंगे तो कुछ भी नहीं हो सकेगा.’’

‘‘बस, मैडम, बहुत हो गया. कहां हम लोग झुग्गीझोंपड़ी में खस्ताहाल जीवन जीने वाले और कहां आप ने अपने घर की छत पर मेरे लिए कमरा बनवा दिया,’’ वह हाथ जोड़ कर बोली थी.

‘‘हाथ मत जोड़ा कर, सुषमा, मैं ने कितनी बार कहा है. यह तो मेरे लिए खुशी की बात है कि मुझे तुझ जैसी नेक, रहमदिल, समझदार साथिन मिली. नरक तो मैं भुगत रही थी. अगर तू मेरे जीवन में न आती तो ये महकी हुई बहारें मेरे जीवन में कहां से आतीं?’’ मैं ने सुषमा के हाथ पकड़ लिए थे.

‘‘आप तो मुझे शर्मिंदा करती हैं, मैडम. मैं ने ऐसा क्या किया है आप के लिए? बाकी सब बात छोडि़ए, इन हाथों से आप की सेवा तक नहीं कर पाई,’’ सुषमा नतमस्तक हो गई थी.

‘‘तू कभी नहीं जान सकेगी, सुषमा कि तू ने मेरे लिए क्या किया है, और जब जान जाएगी तो उसे छोटी सी बात कह कर तू उस का महत्त्व कम कर देगी. बस, अब तो यही वादा कर कि तू मुझे छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी. मेरी बात को गलत मत समझना, सुषमा. तू अपने कर्तव्य को पूरी तरह निभाएगी, उस के लिए तू स्वतंत्र है. अब तो मैं भी तेरे साथ हूं न,’’ मैं ने हंसते हुए उस के कंधे पर हाथ रख दिया था.

‘‘मेरी दुनिया में और है ही कौन, मालकिन. न बालबच्चा, न पति. न पीहर, न ससुराल. किसी की झोंपड़ी में किराया दे कर रहती थी. सारे दिन की मेहनतमजदूरी कर के वापस आ कर वहां पड़ जाती थी. बस, इसी तरह जिंदगी की गाड़ी खिंच रही थी. न जाने कैसे आप के पांवों तक पहुंच गई. अब आप के कदमों में प्राण निकल जाएं, बस यही इच्छा है. चार बालिश्त कफन तो मिल जाएगा. झुग्गीझोंपड़ी में मरती तो पासपड़ोस वाले पुलिस की गाड़ी में मेरी लाश अस्पताल में चीरफाड़ के लिए भेज देते. जिन्हें एक जून पेट भर खाना भी नसीब नहीं होता, वे कहां से मेरे लिए लकड़ी का जुगाड़ करते?’’ सुषमा की आंखें भर आई थीं.

18 साल पहले मेरी खुद की शादी हुई थी. अच्छे खातेपीते परिवार में डोली से जब उतरी थी तो अपनेआप से स्वयं ही वह ईर्ष्या करने लग गई थी. मांबाप की खुशी का ठिकाना ही नहीं था. उन्होंने कभी सपने में भी न सोचा होगा कि उन की बेटी इस तरह राजरानी बन जाएगी.

जैसे ही मैं ने बीए किया था, पिताजी ने आगे पढ़ाने से इनकार कर दिया था. मैं ने नौकरी के लिए हाथपांव मारने शुरू कर दिए थे, ताकि घर के खर्चों में हाथ बंटा सकूं. वह किसी भी तरह का काम करने को तैयार थी. भले ही वह ट्यूशन हो या कोई और छोटामोटा काम. जैसे ही पता चलता कि अमुक जगह काम मिल सकता है, वह वहां जा कर हाथ पसार कर खड़ी हो जाती. कितने ही दिन ठोकरें खाने के बाद जब सफलता मिली तो ऐसे रूप में कि नौकरी तो मिली ही, बाद में पति भी मिल गया.

एक दिन मेरे पिता ने ही कहा था, ‘हमारे डायरैक्टर के कोई रिश्तेदार हैं. उन का अपना व्यापार है. उन्हें एक कंप्यूटर औपरेटर की जरूरत है. तू तो कंप्यूटर भी सीख रही है, बेटी. मैं ने डायरैक्टर से आग्रह तो किया है. अगर वे सिफारिश कर देंगे तो शायद यह नौकरी तुम्हें मिल जाए. तुम दफ्तर में काम कर सकोगी?’

‘हां, पापा, जरूर करूंगी,’ मैं ने बड़े विश्वास से कहा.

सेठजी ने पत्र दे दिया था. जब उस फर्म के मालिक ने उस पत्र को पढ़ा था तो मुझे सिर से ले कर पांवों तक गौर से देखा था. जैसे मुझे तौला जा रहा हो, इतनी छोटी उम्र में मैं क्या नौकरी कर सकूंगी? जाने वह कैसी दृष्टि थी जिसे मैं सहन नहीं कर पा रही थी. और मेरी आंखें जमीन की ओर झुकती ही चली गई थीं. तभी मेरे कानों में उन की गंभीर आवाज पड़ी थी, ‘बहुत जरूरत है इस नौकरी की?’

‘जी हां,’ मैं ने डरतेडरते कहा था.

‘घर में और कौन है कमाने वाला?’

‘केवल मेरे पापा. हम 3 भाईबहन हैं. सब से बड़ी मैं ही हूं. पापा के वेतन से घर का पूरा खर्चा नहीं चलता. इसी लिए मेरी पढ़ाई भी रुक गई है. आप मुझे यह नौकरी दे देंगे तो मेरे पापा की बहुत सहायता हो जाएगी,’ मेरी आवाज भय से कांप रही थी.

‘तुम जानती हो यहां देर तक काम होता है. इसीलिए ज्यादा पुरुष हैं. इतने पुरुषों में काम कर सकोगी? देर हो जाने पर डरोगी तो नहीं?’

‘जी नहीं. आदमी अपने चरित्र पर दृढ़ रहे, कर्तव्य का बोझ कंधों पर हो तो उसे किसी से डर नहीं लगता. मैं आप को वचन देती हूं, मैं आप का काम लगन और ईमानदारी से करूंगी. आप को मुझ से कभी कोई शिकायत नहीं होगी,’ मैं ने दृढ़ता से कहा था.

‘ठीक है, तुम कल से आ सकती हो,’ और उन्होंने अपने अधीनस्थ कर्मचारी को बुला कर कहा था, ‘यह अचला है. कल से इन की मेज इसी कमरे के बाहर करनी होगी. मुझे उम्मीद है यह मेरा काम संभाल लेगी.’

मुझे वह नौकरी मिल गई थी. आमतौर पर मैं सलवारसूट या साड़ी पहनती थी. एक दिन टौप व जींस पहन कर गई थी तो उन्होंने यह कह कर मुझे दफ्तर से वापस भेज दिया, ‘ऐसा लिबास पहन कर आया करो जिस में गंभीर और शालीन नजर आओ. ऐसा नहीं कि सब लोगों के लिए तुम तमाशा बन जाओ.’

‘साड़ी एक ही थी, छोटी बहन पहन कर कालेज फंक्शन में गई. सलवारकमीज के दोनों जोड़े धुलने गए थे इसीलिए,’ मैं घबरा गई थी.

Conjunctivitis: आंखों की बीमारी जो आसानी से फैलती है

कंजक्टिवाइटिस आंखों का विकार है जिस में कंजक्टाइवा में जलन या सूजन होती है. कंजक्टाइवा, वास्तव में, कोशिकाओं की एक पतली पारदर्शी परत होती है, जो पलकों के अंदर के हिस्से और आंख के सफेद हिस्से को ढकती है.

अकसर पिंक आई के नाम से बुलाया जाने वाला कंजक्टिवाइटिस आंख का सामान्य किस्म का विकार है, जो खासतौर से बच्चों को घेरता है. यह एक या दोनों आंखों को प्रभावित कर सकता है. कंजक्टिवाटिस के कुछ प्रकार बेहद संक्रामक होते हैं और आसानी से घर व स्कूल दोनों जगह फैल सकते हैं. यों तो कंजक्टिवाइटिस आमतौर पर आंख का एक मामूली संक्रमण होता है लेकिन कई बार यह गंभीर समस्या में भी बदल जाता है.

वायरल या बैक्टिरियल संक्रमण से भी कंजक्टिवाइटिस हो सकता है. यह हवा में मौजूद एलर्जी पैदा करने वाले तत्त्वों, जैसे पौलन (परागकण) और धुआं, स्विमिंग पूल में पड़ी क्लोरीन, कौस्मेटिक्स में मौजूद तत्त्वों या आंख के संपर्क में आने वाले कौंटैक्ट लैंस जैसे अन्य तत्त्वों के कारण एलर्जिक रिऐक्शन से हो सकता है. यौन संक्रमण, जैसे क्लेमाइडिया और गोनोरिया के कारण कंजक्टिवाइटिस होने की आशंका बहुत कम होती है.

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कंजक्टिवाइटिस से पीडि़त लोगों को ये लक्षण महसूस हो सकते हैं :

एक या दोनों आंखों में किरकिरी महसूस होना.

एक या दोनों आंखों में जलन या खुजली होना.

आंख से अधिक पानी बहना.

पलकों में सूजन.

एक या दोनों आंखों के सफेद हिस्से में गुलाबीपन आना.

आंखों में रोशनी चुभना.

कंजक्टिवाइटिस की वजह

कंजक्टिवाइटिस के 3 मुख्य प्रकार होते हैं- एलर्जिक, संक्रामक और रासायनिक. कंजक्टिवाइटिस की वजह उस के प्रकार पर निर्भर करती है.

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एलर्जिक कंजक्टिवाइटिस

एलर्जिक कंजक्टिवाइटिस आमतौर पर उन लोगों को होता है जिन्हें मौसम बदलने के कारण एलर्जी होती है. उन्हें आंख के किसी ऐसे तत्त्व के संपर्क में आने पर कंजक्टिवाइटिस होता है, जिस से आंख में एलर्जिक रिऐक्शन शुरू होता है.

जौइंट पैपिलरी कंजक्टिवाइटिस, एक प्रकार का एलर्जिक कंजक्टिवाइटिस होता है, जो आंख में लंबे समय तक किसी बाहरी तत्त्व के रहने के कारण होता है. सख्त कौंटैक्ट लैंस, सौफ्ट लैंस पहनने लेकिन उन्हें लंबे समय तक नहीं बदलने वाले, आंख की सतह पर एक्सपोज्ड हो या प्रौस्थेटिक आंख हो, ऐसे लोगों को कंजक्टिवाइटिस होने की आशंका अधिक होती है.

संक्रामक कंजक्टिवाइटिस

बैक्टीरियल कंजक्टिवाइटिस, यह संक्रमण आप की त्वचा या श्वास प्रणाली से आने वाले स्टेफाइलोकोकल या स्ट्रैप्टोकोकल बैक्टीरिया के कारण होता है. कीट, अन्य लोगों के साथ शारीरिक संपर्क, साफसफाई नहीं होने (गंदे हाथों से आंख छूना) या प्रदूषित आई मेकअप का इस्तेमाल करना या फिर चेहरे पर लगाने वाले लोशन से भी संक्रमण हो सकता है. मेकअप सामग्री साझा करना या किसी और के कौंटैक्ट लैंस पहनने या फिर गंदे कौंटैक्ट लैंस पहनने से भी बैक्टीरियल कंजक्टिवाइटिस हो सकता है.

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सब से आम प्रकार का संक्रमण है और यह सामान्य कोल्ड से जुड़े वायरसों के कारण होता है. यह किसी ऐसे व्यक्ति की खांसी या छींक के कारण हो सकता है, जिसे श्वास की नली के ऊपरी हिस्से में संक्रमण हो. वायरल कंजक्टिवाइटिस, फेफड़े, गले, नाक, टीअर डक्ट और कंजंक्टाइवा को जोड़ने वाले शरीर के म्यूकस मेंब्रेन में वायरस के प्रसार के कारण भी हो सकता है. चूंकि आंसू नाक की नली से बाहर आते हैं, ऐसे में जबरदस्ती नाक साफ करने से मुमकिन है कि वायरस आप की श्वास प्रणाली से आप की आंखों में पहुंच जाए.

औप्थैलमिया नियोनैटोरम, एक गंभीर प्रकार का बैक्टीरियल कंजक्टिवाइटिस है, जो नवजात शिशुओं में होता है. यह बेहद गंभीर समस्या हो सकती है और अगर इस का तुरंत इलाज नहीं किया गया तो इस से आंखों को स्थायी तौर पर नुकसान भी हो सकता है. औप्थैलमिया नियोनैटोरम की समस्या तब होती है जब गर्भाशय से निकलते समय नवजात क्लेमीडिया या गोनोरिया के संपर्क में आए.

रासायनिक कंजक्टिवाइटिस

कैमिकल कंजक्टिवाइटिस की वजह वायु प्रदूषण, स्विमिंग पूल में पड़ी क्लोरीन और हानिकारक रसायनों के संपर्क में आना हो सकती है.

जांच

कंजक्टिवाइटिस की जांच गहन आंख परीक्षण से की जा सकती है. इस में कंजंक्टाइवा और उस के आसपास की कोशिकाओं पर विशेष ध्यान से टैस्ट किए जाते हैं और इन में निम्न भी शामिल हो सकते हैं :

रोगी का इतिहास, जिस से लक्षणों को पहचानने में मदद मिले, पता चल सके कि लक्षण कब शुरू हुए और क्या इस समस्या में पर्यावरण संबंधी या सामान्य स्वास्थ्य संबंधी समस्या का भी योगदान है.

दृश्यता मापना जिस से यह पता लगाया जा सके कि दृश्यता प्रभावित हुई है या नहीं.

कंजंक्टाइवा और आंखों की बाहरी कोशिकाओं का आकलन तेज रोशनी और मैग्निफिकेशन के इस्तेमाल से.

आंख के अंदर के ढांचे का आकलन जिस से सुनिश्चित हो सके कि इस स्थिति से कोई अन्य कोशिका प्रभावित नहीं हुई है.

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पूरक टैस्टिंग, जिस में कंजंक्टाइवा से प्रभावित कोशिका का एक हिस्सा लिया जा सकता है. यह लंबे समय तक रहने वाले कंजक्टिवाइटिस या जब इलाज के बावजूद परिस्थिति नहीं सुधर रही हो, उस मामले में बेहद महत्त्वपूर्ण होता है.

इलाज

कंजक्टिवाइटिस इलाज के 3 मुख्य लक्ष्य होते हैं :

रोगी का आराम बढ़ाना.

संक्रमण या सूजन को घटाना या कम करना.

कंजक्टिवाइटिस के संक्रामक रूप में इस संक्रमण को फैलाने से रोकना भी इस का प्रभावी इलाज है.

कंजक्टिवाइटिस का उपयुक्त इलाज उस के होने की वजह पर निर्भर होता है जैसे :

एलर्जिक कंजक्टिवाइटिस, पहला कदम अगर मुमकिन हो तो आंख को इरिटेट करने वाले तत्त्वों को निकालें या उन से दूर रहें. हलके मामलों में कूल कंप्रैस और आर्टिफिशियल आंसू असहजता दूर कर देते हैं.

ज्यादा गंभीर मामलों में नौन स्टीरौयडल ऐंटी इनफ्लेमैटरी दवाएं और ऐंटीहिस्टामिंस भी दिए जा सकते हैं. लगातार एलर्जिक कंजक्टिवाइटिस होने की समस्या झेल रहे लोगों को टौपिकल स्टीरौयड आई ड्रौप की भी जरूरत होती है.

बैक्टीरियल कंजक्टिवाइटिस, इस प्रकार के कंजक्टिवाइटिस को आमतौर पर एंटीबायोटिक आई ड्रौप्स या मरहम से ठीक किया जाता है. इलाज के 3 से 4 दिनों में बैक्टीरियल कंजक्टिवाइटिस ठीक होने लगती है लेकिन यह दोबारा नहीं हो, इस के लिए रोगी को ऐंटीबायोटिक्स का कोर्स पूरा करना पड़ता है.

वायरल कंजक्टिवाइटिस, कोई भी ड्रौप या मरहम वायरल कंजक्टिवाइटिस को ठीक नहीं कर सकता है. एंटीबायोटिक्स से वायरल संक्रमण ठीक नहीं होगा. सामान्य कोल्ड की तरह वायरस का भी अपना पूरा कोर्स करना होगा, जिस में 2 से 3 सप्ताह लग सकते हैं.

इन लक्षणों को कूल कंप्रैस और आर्टिफिशियल टीअर सौल्यूशंस से दूर किया जा सकता है. सब से खराब मामलों में असहजता और जलन को कम करने के लिए टौपिकल स्टीरौयड ड्रौप्स दिए जा सकते हैं. हालांकि इन ड्रौप्स से संक्रमण कम नहीं होगा. हालांकि सैकंडरी बैक्टीरियल संक्रमण होने पर ऐंटीबायोटिक ड्रौप्स दिए जा सकते हैं.

कैमिकल कंजक्टिवाइटिस, कैमिकल कंजक्टिवाइटिस होने पर नमकीन पानी से लगातार अपनी आंखों को धोना सब से सामान्य इलाज है. कैमिकल कंजक्टिवाइटिस से पीडि़त लोगों को भी टौपिकल स्टीरौयड्स इस्तेमाल करने की जरूरत हो सकती है, जिस में स्कारिंग हो सकती है, आंखों की रोशनी को नुकसान पहुंच सकता है या फिर लोगों की आंखों की रोशनी जा भी सकती है. अगर आप की आंख में कोई कैमिकल गिर जाता है तो कई मिनटों तक अपनी आंखों को पानी से धोते रहें और फिर अपने डाक्टर के पास जाएं.

खुद देखभाल करें

कंजक्टिवाइटिस का प्रसार रोकने के लिए साफसफाई रखना सब से जरूरी है. एक बार संक्रमण का पता चल जाए तो इन बातों का पालन करें:

आंखों को हाथों से नहीं छुएं.

अच्छी तरह और बारबार अपने हाथ धोएं.

रोजाना अपना तौलिया और कपड़े बदलें, और उन्हें किसी भी अन्य के साथ साझा नहीं करें.

आंखों के कौस्मेटिक्स का प्रयोग बंद कर दें विशेषतौर पर मस्कारा का.

किसी अन्य व्यक्ति के आई कौस्मेटिक्स या निजी आईकेयर उत्पादों का इस्तेमाल नहीं करें.

कौंटैक्ट लैंस की सही देखभाल के लिए आंखों के डाक्टर की सलाह मानें.

डा. नीरज संदूजा, सीनियर कंसल्टैंट, फोर्टिस अस्पताल, गुरुग्राम

स्वास्थ्यवर्धक है चुकंदर

व्यस्तता के चलते आजकल लोग अपनी सेहत का ध्यान नहीं रख पाते, जिस से आएदिन शरीर की इम्यूनिटी कमजोर होने से वे कई बीमारियों के शिकार हो जाते हैं. लंबी आयु के लिए जरूरी है कि अपने खानपीन में फल व हरी सब्जियों के साथ चुकंदर भी शामिल किया जाए. जब खानपान पर सही ध्यान दिया जाएगा तो निश्चित रूप से शरीर की इम्यूनिटी अच्छी होगी और आएदिन होने वाली तकलीफों से बचा जा सकेगा.

चुकंदर खाने से शरीर कई बीमारियों से लड़ने में सक्षम हो जाता है. यह महिलाओं में होने वाली एनीमिया की बीमारी को दूर करने का सब से सही साधन है. इस के गुणों को देखते हुए भारत में इस की व्यापक खेती की जा रही है. यह कैंसर, हाईब्लड प्रेशर के साथ ही अल्जाइमर  की बीमारी को भी दूर करने में कारगर है. चुकंदर स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी खास है. इस में मौजूद तत्त्व जहां शरीर को ऊर्जावान बनाते हैं, वहीं विभिन्न रोगों से लड़ने की कूवत भी विकसित करते हैं. चुकंदर का नियमित सेवन स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद है. खासतौर से बढ़ती उम्र के बच्चों और महिलाओं के लिए यह सब से उत्तम आहार है.

चुकंदर सलाद के रूप में नियमित खाने से शरीर कई बीमारियों से लड़ने में सक्ष्म हो जाता है. गर्भवती महिलाओं को तो इस का सेवन जरूर करना चाहिए. गर्भावस्था के दौरान आमतौर पर खून की कमी हो जाती है, जिसे एनीमिया कहा जाता है. जो महिलाएं नियमित रूप से चुकंदर का सेवन करती हैं. उन्हें खून की कमी नहीं होती. कई बार बच्चे भी खून की कमी की वजह से बीमार रहने लगते हैं. ऐसे बच्चों को चुकंदर का जूस पिलाना लाभकारी रहता है. चुकंदर एक तरह की जड़ है. आमतौर पर यह लाल रंग का होता है. कुछ जगहों पर सफेद रंग का चुकंदर भी पाया जाता है. इस के पत्तों को शाक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

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किसानों को चुकंदर का अच्छा दाम मिलता है. इस में मौजूद गुणों के कारण इसे अब मौसमी सब्जी के रूप में भी इस्तेमाल किया जाने लगा है. चुकंदर में सही मात्रा में लौह, विटामिन और खनिज होते हैं जो रक्तवर्धन और रक्तशोधन के काम में सहायक होते हैं. इस में मौजूद एंटीऔक्सीडेंट तत्त्व शरीर को रोगों से लड़ने की कूवत देते हैं. इस में सोडियम, पोटेशियम, फास्फोरस, क्लोरीन, आयोडीन और अन्य खास विटामिन पाए जाते हैं.

चुकंदर में गुर्दे और पित्ताशय को साफ करने के प्राकृतिक गुण पाए जाते हैं. इस में मौजूद पोटेशियम जहां शरीर को प्रतिदिन पोषण प्रदान करने में मदद करता है तो वहीं क्लोरीन गुर्दों के शोधन में सहायता करता है. यह पाचन संबंधी समस्याओं में भी लाभकारी है. चुकंदर का रस हाइपरटेंशन और हृदय संबंधी समस्याओं को दूर रखता है. महिलाओं के लिए तो यह काफी गुणकारी है. चुकंदर में बेटेन नामक तत्त्व पाया जाता है, जिस की आंत व पेट को साफ रखने के लिए हमारे शरीर को जरूरत रहती है, चुकंदर में मौजूद यह तत्त्व उस की आपूर्ति करता है.

काफी पहले यूरोप में कैंसर के इलाज के लिए चुकंदर का काफी इस्तेमाल किया जाता था. चुकंदर और इस के पत्ते फोलेट का अच्छा जरीया हैं, जो उच्च रक्तचाप और अल्जाइमर की परेशानी को दूर करने में मदद करते हैं.

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  1. कैसे खाएं : चुकंदर कई तरीके से खाया जाता है. आमतौर पर इसे कच्चे सलाद के रूप में खाया जाता है. मूली, गाजर, प्याज, टमाटर आदि की तरह ही चुकंदर को भी सलाद में शामिल करें.

इस के अलावा इसे दक्षिण भारत में उबाल कर खाने का भी प्रचलन है. हालांकि उबालने से इस के कुछ तत्त्व खत्म हो जाते हैं. इसलिए इसे कच्चा खाना ही सब से लाभप्रद है. बुजुर्गों और बच्चों को चुकंदर का जूस देना चाहिए. इस के अलावा देश में चुकंदर की सब्जी बना कर खाने का भी चलन है.

चुकंदर के औषधीय गुण

2.एनीमिया दूर करे चुकंदर : एनीमिया रोग के लिए चुकंदर रामबाण माना जाता है. चुकंदर में उचित मात्रा में आयरन, विटामिंन और मिनिरल्स होते हैं, जो रक्त बढ़ाने और उस के शोधन का काम करते हैं. यही कारण है कि महिलाओं को इस के नियमित सेवन की सलाह दी जाती है.

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3.गुर्दों के लिए लाभकारी : चुकंदर में गुर्दे को स्वस्थ और साफ रखने के गुण मौजूद हैं. किडनी रोगियों को चुकंदर का रस देना लाभकारी है. इस में मौजूद क्लोरीन लीवर और किडनी को साफ रखने में मदद करता है.

4.पित्ताशय के लिए गुणकारी : शोध में पाया गया है कि यह किडनी के साथ ही पित्ताशय के लिए भी कारगर है. इस में मौजूद पोटेशियम शरीर को रोजाना पोषण देने में मदद करता है, वहीं क्लोरीन लीवर और किडनी को साफ करने में मदद करता है.

5.पाचन में सहायक : बच्चों और युवाओं को चुकंदर चबाचबा कर खाना चाहिए. इस से दांत और मसूढे़ मजबूत होते हैं. यह पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करने में भी लाभकारी है. इस का नियमित सेवन करने से अपाच्य की समस्या खत्म हो जाती है. बढ़ती उम्र के बच्चों को चुकंदर जरूर खिलाना चाहिए, इस से उन का शारीरिक सौष्ठव बेहतर होता है और बच्चों के चेहरे पर चमक दिखती है.

6.उल्टीदस्त : यदि उल्टीदस्त की शिकायत हो तो चुकंदर के रस में चुटकीभर नमक मिलाना फायदेमंद रहता है. इस से पेट में बनने वाली गैस खत्म हो जाती है. उल्टी बंद होने के साथ ही दस्त भी बंद हो जाते हैं.

7.पीलिया में लाभकारी : चुकंदर पीलिया के रोगियों के लिए भी फायदेमंद है. पीलिया के रोगियों को चुकंदर का रस दिन में 4 बार देना चाहिए. ध्यान रखें कि एक बार 1 कप से ज्यादा जूस न दें.

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8.हाइपरटेंशन : चुकंदर का जूस हाइपरटेंशन और हृदय संबंधी समस्याओं को दूर करता है. इस के नियमित सेवन से चिड़चिड़ापन दूर हो जाता है. खास कर यह महिलाओं के लिए काफी लाभकारी है.

9.मासिक धर्म में लाभकारी : मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को कमर व पेडू दर्द और अन्य शारीरिक दुर्बलताओं जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. चुकंदर के नियमित इस्तेमाल से मासिक धर्म के दौरान होने ली तकलीफ नहीं होती है.

माहवारी, फोड़े, जलन और मुहासों के लिए भी यह काफी उपयोगी है. खसरा और बुखार में भी त्वचा साफ करने में इस का इस्तेमाल किया जा सकता है.

बालों की रूसी भगाए : चुकंदर के काढ़े में थोड़ा सा सिरका मिला कर सिर में लगाएं या सिर पर चुकंदर के पानी में अदरक के टुकउ़ों को भिगो कर रात में मसाज करें. सुबह बालों को धो लें.

10.चुकंदर खाएं ब्लडप्रेशर भगाएं : ब्लडप्रेशर के रोगियों को चुकंदर जरूर खिलाएं. चुकंदर और इस के पत्ते फोलेट का एक अच्छा जरीया है, जो उच्च रक्तचाप और अल्जाइमर की समस्या को दूर करने में मदद करते हैं. रोज चुकंदर में गाजर और सेब मिला कर उस का जूस पीने से हाईब्लड प्रेशर में कमी आती है. एक अध्ययन के मुताबिक रोजाना 2 कप चुकंदर का जूस पीने से ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है.

हालांकि इस का ज्यादा सेवन नहीं करना चाहिए. इस के ज्यादा सेवन करने से चक्कर आना या वोकल कार्ड पैरालिसिस का खतरा बढ़ जाता है.

11. चुकंदर की सब्जी भी लाभदायक : चुकंदर स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद सब्जी है. इस में कार्बोहाइड्रेट और कम मात्रा में प्रोटीन और वसा पाई जाती है. यह प्राकृतिक शुगर का सब से अच्छा स्रोत है. इस में सोडियम, पोटेशियम, फास्फोरस, कैल्शियम, सल्फर, क्लोरीन, आयोडीन, आयरन, विटामिन ‘बी1’, ‘बी2’ और ‘सी’ पाया जाता है. इस में कैलोरी काफी कम होती हैं.

12. पशुओं के स्वास्थ्य में भी कारगर : चुकंदर इतना गुणकारी है कि यह इंसान के साथसाथ पशुओं के लिए भी कारगर है. यही कारण है कि हरियाणा, पंजाब, गुजरात और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में इसे सीजनल पशु आहार के रूप में खिलाया जाता है. विशेष रूप से दुधारू पशुओं को खिलाने से उन का स्वास्थ्य ठीक रहता है और दूध में भी इजाफा होता है.

इस में मौजूद तत्त्व पशुओं में होने वाले विभिन्न रोगों से उन का बचाव करते हैं. इसे खिलाने से पशुओं में आमतौर पर होने वाली बांझपन की समस्या खत्म हो जाती है.

दुधारू पशु 3 से 4 बार ब्याने के बाद कमजोर हो जाते हैं और कुछ में बांझपन के लक्षण भी आ जाते हैं, लेकिन जिन पशुपालकों ने नियमित रूप से उन के चारे में चुकंदर को शामिल किया है, उन्हें इस समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है.

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