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सुषमा-भाग 1: हर्ष ने बाबा को क्या बताया?

मेरी कोठी की तीसरी मंजिल की बरसाती आज एक फ्लैट का रूप ले चुकी है. यह वही छत है जिस पर मैं अपना बोनसाई गार्डन प्लान कर रही थी पर कभी बनाया नहीं था. मैं वहां किसी को पांव नहीं रखने देती थी, इसलिए कि यह अपनी खूबसूरती न खो बैठे. आज उसी के एक तरफ मैं ने एक छोटा सा फ्लैट, इस को मैं ने खुद पास खड़े हो कर बनवाया है. सुषमा से मैं ने कितनी बार पूछा था, ‘‘सुषमा, तू भी तो कुछ बता, इस में कोई और काम करवाना हो तो? वरना जब मिस्त्री लोग चले जाएंगे तो कुछ भी नहीं हो सकेगा.’’

‘‘बस, मैडम, बहुत हो गया. कहां हम लोग झुग्गीझोंपड़ी में खस्ताहाल जीवन जीने वाले और कहां आप ने अपने घर की छत पर मेरे लिए कमरा बनवा दिया,’’ वह हाथ जोड़ कर बोली थी.

‘‘हाथ मत जोड़ा कर, सुषमा, मैं ने कितनी बार कहा है. यह तो मेरे लिए खुशी की बात है कि मुझे तुझ जैसी नेक, रहमदिल, समझदार साथिन मिली. नरक तो मैं भुगत रही थी. अगर तू मेरे जीवन में न आती तो ये महकी हुई बहारें मेरे जीवन में कहां से आतीं?’’ मैं ने सुषमा के हाथ पकड़ लिए थे.

‘‘आप तो मुझे शर्मिंदा करती हैं, मैडम. मैं ने ऐसा क्या किया है आप के लिए? बाकी सब बात छोडि़ए, इन हाथों से आप की सेवा तक नहीं कर पाई,’’ सुषमा नतमस्तक हो गई थी.

‘‘तू कभी नहीं जान सकेगी, सुषमा कि तू ने मेरे लिए क्या किया है, और जब जान जाएगी तो उसे छोटी सी बात कह कर तू उस का महत्त्व कम कर देगी. बस, अब तो यही वादा कर कि तू मुझे छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी. मेरी बात को गलत मत समझना, सुषमा. तू अपने कर्तव्य को पूरी तरह निभाएगी, उस के लिए तू स्वतंत्र है. अब तो मैं भी तेरे साथ हूं न,’’ मैं ने हंसते हुए उस के कंधे पर हाथ रख दिया था.

‘‘मेरी दुनिया में और है ही कौन, मालकिन. न बालबच्चा, न पति. न पीहर, न ससुराल. किसी की झोंपड़ी में किराया दे कर रहती थी. सारे दिन की मेहनतमजदूरी कर के वापस आ कर वहां पड़ जाती थी. बस, इसी तरह जिंदगी की गाड़ी खिंच रही थी. न जाने कैसे आप के पांवों तक पहुंच गई. अब आप के कदमों में प्राण निकल जाएं, बस यही इच्छा है. चार बालिश्त कफन तो मिल जाएगा. झुग्गीझोंपड़ी में मरती तो पासपड़ोस वाले पुलिस की गाड़ी में मेरी लाश अस्पताल में चीरफाड़ के लिए भेज देते. जिन्हें एक जून पेट भर खाना भी नसीब नहीं होता, वे कहां से मेरे लिए लकड़ी का जुगाड़ करते?’’ सुषमा की आंखें भर आई थीं.

18 साल पहले मेरी खुद की शादी हुई थी. अच्छे खातेपीते परिवार में डोली से जब उतरी थी तो अपनेआप से स्वयं ही वह ईर्ष्या करने लग गई थी. मांबाप की खुशी का ठिकाना ही नहीं था. उन्होंने कभी सपने में भी न सोचा होगा कि उन की बेटी इस तरह राजरानी बन जाएगी.

जैसे ही मैं ने बीए किया था, पिताजी ने आगे पढ़ाने से इनकार कर दिया था. मैं ने नौकरी के लिए हाथपांव मारने शुरू कर दिए थे, ताकि घर के खर्चों में हाथ बंटा सकूं. वह किसी भी तरह का काम करने को तैयार थी. भले ही वह ट्यूशन हो या कोई और छोटामोटा काम. जैसे ही पता चलता कि अमुक जगह काम मिल सकता है, वह वहां जा कर हाथ पसार कर खड़ी हो जाती. कितने ही दिन ठोकरें खाने के बाद जब सफलता मिली तो ऐसे रूप में कि नौकरी तो मिली ही, बाद में पति भी मिल गया.

एक दिन मेरे पिता ने ही कहा था, ‘हमारे डायरैक्टर के कोई रिश्तेदार हैं. उन का अपना व्यापार है. उन्हें एक कंप्यूटर औपरेटर की जरूरत है. तू तो कंप्यूटर भी सीख रही है, बेटी. मैं ने डायरैक्टर से आग्रह तो किया है. अगर वे सिफारिश कर देंगे तो शायद यह नौकरी तुम्हें मिल जाए. तुम दफ्तर में काम कर सकोगी?’

‘हां, पापा, जरूर करूंगी,’ मैं ने बड़े विश्वास से कहा.

सेठजी ने पत्र दे दिया था. जब उस फर्म के मालिक ने उस पत्र को पढ़ा था तो मुझे सिर से ले कर पांवों तक गौर से देखा था. जैसे मुझे तौला जा रहा हो, इतनी छोटी उम्र में मैं क्या नौकरी कर सकूंगी? जाने वह कैसी दृष्टि थी जिसे मैं सहन नहीं कर पा रही थी. और मेरी आंखें जमीन की ओर झुकती ही चली गई थीं. तभी मेरे कानों में उन की गंभीर आवाज पड़ी थी, ‘बहुत जरूरत है इस नौकरी की?’

‘जी हां,’ मैं ने डरतेडरते कहा था.

‘घर में और कौन है कमाने वाला?’

‘केवल मेरे पापा. हम 3 भाईबहन हैं. सब से बड़ी मैं ही हूं. पापा के वेतन से घर का पूरा खर्चा नहीं चलता. इसी लिए मेरी पढ़ाई भी रुक गई है. आप मुझे यह नौकरी दे देंगे तो मेरे पापा की बहुत सहायता हो जाएगी,’ मेरी आवाज भय से कांप रही थी.

‘तुम जानती हो यहां देर तक काम होता है. इसीलिए ज्यादा पुरुष हैं. इतने पुरुषों में काम कर सकोगी? देर हो जाने पर डरोगी तो नहीं?’

‘जी नहीं. आदमी अपने चरित्र पर दृढ़ रहे, कर्तव्य का बोझ कंधों पर हो तो उसे किसी से डर नहीं लगता. मैं आप को वचन देती हूं, मैं आप का काम लगन और ईमानदारी से करूंगी. आप को मुझ से कभी कोई शिकायत नहीं होगी,’ मैं ने दृढ़ता से कहा था.

‘ठीक है, तुम कल से आ सकती हो,’ और उन्होंने अपने अधीनस्थ कर्मचारी को बुला कर कहा था, ‘यह अचला है. कल से इन की मेज इसी कमरे के बाहर करनी होगी. मुझे उम्मीद है यह मेरा काम संभाल लेगी.’

मुझे वह नौकरी मिल गई थी. आमतौर पर मैं सलवारसूट या साड़ी पहनती थी. एक दिन टौप व जींस पहन कर गई थी तो उन्होंने यह कह कर मुझे दफ्तर से वापस भेज दिया, ‘ऐसा लिबास पहन कर आया करो जिस में गंभीर और शालीन नजर आओ. ऐसा नहीं कि सब लोगों के लिए तुम तमाशा बन जाओ.’

‘साड़ी एक ही थी, छोटी बहन पहन कर कालेज फंक्शन में गई. सलवारकमीज के दोनों जोड़े धुलने गए थे इसीलिए,’ मैं घबरा गई थी.

Conjunctivitis: आंखों की बीमारी जो आसानी से फैलती है

कंजक्टिवाइटिस आंखों का विकार है जिस में कंजक्टाइवा में जलन या सूजन होती है. कंजक्टाइवा, वास्तव में, कोशिकाओं की एक पतली पारदर्शी परत होती है, जो पलकों के अंदर के हिस्से और आंख के सफेद हिस्से को ढकती है.

अकसर पिंक आई के नाम से बुलाया जाने वाला कंजक्टिवाइटिस आंख का सामान्य किस्म का विकार है, जो खासतौर से बच्चों को घेरता है. यह एक या दोनों आंखों को प्रभावित कर सकता है. कंजक्टिवाटिस के कुछ प्रकार बेहद संक्रामक होते हैं और आसानी से घर व स्कूल दोनों जगह फैल सकते हैं. यों तो कंजक्टिवाइटिस आमतौर पर आंख का एक मामूली संक्रमण होता है लेकिन कई बार यह गंभीर समस्या में भी बदल जाता है.

वायरल या बैक्टिरियल संक्रमण से भी कंजक्टिवाइटिस हो सकता है. यह हवा में मौजूद एलर्जी पैदा करने वाले तत्त्वों, जैसे पौलन (परागकण) और धुआं, स्विमिंग पूल में पड़ी क्लोरीन, कौस्मेटिक्स में मौजूद तत्त्वों या आंख के संपर्क में आने वाले कौंटैक्ट लैंस जैसे अन्य तत्त्वों के कारण एलर्जिक रिऐक्शन से हो सकता है. यौन संक्रमण, जैसे क्लेमाइडिया और गोनोरिया के कारण कंजक्टिवाइटिस होने की आशंका बहुत कम होती है.

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कंजक्टिवाइटिस से पीडि़त लोगों को ये लक्षण महसूस हो सकते हैं :

एक या दोनों आंखों में किरकिरी महसूस होना.

एक या दोनों आंखों में जलन या खुजली होना.

आंख से अधिक पानी बहना.

पलकों में सूजन.

एक या दोनों आंखों के सफेद हिस्से में गुलाबीपन आना.

आंखों में रोशनी चुभना.

कंजक्टिवाइटिस की वजह

कंजक्टिवाइटिस के 3 मुख्य प्रकार होते हैं- एलर्जिक, संक्रामक और रासायनिक. कंजक्टिवाइटिस की वजह उस के प्रकार पर निर्भर करती है.

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एलर्जिक कंजक्टिवाइटिस

एलर्जिक कंजक्टिवाइटिस आमतौर पर उन लोगों को होता है जिन्हें मौसम बदलने के कारण एलर्जी होती है. उन्हें आंख के किसी ऐसे तत्त्व के संपर्क में आने पर कंजक्टिवाइटिस होता है, जिस से आंख में एलर्जिक रिऐक्शन शुरू होता है.

जौइंट पैपिलरी कंजक्टिवाइटिस, एक प्रकार का एलर्जिक कंजक्टिवाइटिस होता है, जो आंख में लंबे समय तक किसी बाहरी तत्त्व के रहने के कारण होता है. सख्त कौंटैक्ट लैंस, सौफ्ट लैंस पहनने लेकिन उन्हें लंबे समय तक नहीं बदलने वाले, आंख की सतह पर एक्सपोज्ड हो या प्रौस्थेटिक आंख हो, ऐसे लोगों को कंजक्टिवाइटिस होने की आशंका अधिक होती है.

संक्रामक कंजक्टिवाइटिस

बैक्टीरियल कंजक्टिवाइटिस, यह संक्रमण आप की त्वचा या श्वास प्रणाली से आने वाले स्टेफाइलोकोकल या स्ट्रैप्टोकोकल बैक्टीरिया के कारण होता है. कीट, अन्य लोगों के साथ शारीरिक संपर्क, साफसफाई नहीं होने (गंदे हाथों से आंख छूना) या प्रदूषित आई मेकअप का इस्तेमाल करना या फिर चेहरे पर लगाने वाले लोशन से भी संक्रमण हो सकता है. मेकअप सामग्री साझा करना या किसी और के कौंटैक्ट लैंस पहनने या फिर गंदे कौंटैक्ट लैंस पहनने से भी बैक्टीरियल कंजक्टिवाइटिस हो सकता है.

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सब से आम प्रकार का संक्रमण है और यह सामान्य कोल्ड से जुड़े वायरसों के कारण होता है. यह किसी ऐसे व्यक्ति की खांसी या छींक के कारण हो सकता है, जिसे श्वास की नली के ऊपरी हिस्से में संक्रमण हो. वायरल कंजक्टिवाइटिस, फेफड़े, गले, नाक, टीअर डक्ट और कंजंक्टाइवा को जोड़ने वाले शरीर के म्यूकस मेंब्रेन में वायरस के प्रसार के कारण भी हो सकता है. चूंकि आंसू नाक की नली से बाहर आते हैं, ऐसे में जबरदस्ती नाक साफ करने से मुमकिन है कि वायरस आप की श्वास प्रणाली से आप की आंखों में पहुंच जाए.

औप्थैलमिया नियोनैटोरम, एक गंभीर प्रकार का बैक्टीरियल कंजक्टिवाइटिस है, जो नवजात शिशुओं में होता है. यह बेहद गंभीर समस्या हो सकती है और अगर इस का तुरंत इलाज नहीं किया गया तो इस से आंखों को स्थायी तौर पर नुकसान भी हो सकता है. औप्थैलमिया नियोनैटोरम की समस्या तब होती है जब गर्भाशय से निकलते समय नवजात क्लेमीडिया या गोनोरिया के संपर्क में आए.

रासायनिक कंजक्टिवाइटिस

कैमिकल कंजक्टिवाइटिस की वजह वायु प्रदूषण, स्विमिंग पूल में पड़ी क्लोरीन और हानिकारक रसायनों के संपर्क में आना हो सकती है.

जांच

कंजक्टिवाइटिस की जांच गहन आंख परीक्षण से की जा सकती है. इस में कंजंक्टाइवा और उस के आसपास की कोशिकाओं पर विशेष ध्यान से टैस्ट किए जाते हैं और इन में निम्न भी शामिल हो सकते हैं :

रोगी का इतिहास, जिस से लक्षणों को पहचानने में मदद मिले, पता चल सके कि लक्षण कब शुरू हुए और क्या इस समस्या में पर्यावरण संबंधी या सामान्य स्वास्थ्य संबंधी समस्या का भी योगदान है.

दृश्यता मापना जिस से यह पता लगाया जा सके कि दृश्यता प्रभावित हुई है या नहीं.

कंजंक्टाइवा और आंखों की बाहरी कोशिकाओं का आकलन तेज रोशनी और मैग्निफिकेशन के इस्तेमाल से.

आंख के अंदर के ढांचे का आकलन जिस से सुनिश्चित हो सके कि इस स्थिति से कोई अन्य कोशिका प्रभावित नहीं हुई है.

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पूरक टैस्टिंग, जिस में कंजंक्टाइवा से प्रभावित कोशिका का एक हिस्सा लिया जा सकता है. यह लंबे समय तक रहने वाले कंजक्टिवाइटिस या जब इलाज के बावजूद परिस्थिति नहीं सुधर रही हो, उस मामले में बेहद महत्त्वपूर्ण होता है.

इलाज

कंजक्टिवाइटिस इलाज के 3 मुख्य लक्ष्य होते हैं :

रोगी का आराम बढ़ाना.

संक्रमण या सूजन को घटाना या कम करना.

कंजक्टिवाइटिस के संक्रामक रूप में इस संक्रमण को फैलाने से रोकना भी इस का प्रभावी इलाज है.

कंजक्टिवाइटिस का उपयुक्त इलाज उस के होने की वजह पर निर्भर होता है जैसे :

एलर्जिक कंजक्टिवाइटिस, पहला कदम अगर मुमकिन हो तो आंख को इरिटेट करने वाले तत्त्वों को निकालें या उन से दूर रहें. हलके मामलों में कूल कंप्रैस और आर्टिफिशियल आंसू असहजता दूर कर देते हैं.

ज्यादा गंभीर मामलों में नौन स्टीरौयडल ऐंटी इनफ्लेमैटरी दवाएं और ऐंटीहिस्टामिंस भी दिए जा सकते हैं. लगातार एलर्जिक कंजक्टिवाइटिस होने की समस्या झेल रहे लोगों को टौपिकल स्टीरौयड आई ड्रौप की भी जरूरत होती है.

बैक्टीरियल कंजक्टिवाइटिस, इस प्रकार के कंजक्टिवाइटिस को आमतौर पर एंटीबायोटिक आई ड्रौप्स या मरहम से ठीक किया जाता है. इलाज के 3 से 4 दिनों में बैक्टीरियल कंजक्टिवाइटिस ठीक होने लगती है लेकिन यह दोबारा नहीं हो, इस के लिए रोगी को ऐंटीबायोटिक्स का कोर्स पूरा करना पड़ता है.

वायरल कंजक्टिवाइटिस, कोई भी ड्रौप या मरहम वायरल कंजक्टिवाइटिस को ठीक नहीं कर सकता है. एंटीबायोटिक्स से वायरल संक्रमण ठीक नहीं होगा. सामान्य कोल्ड की तरह वायरस का भी अपना पूरा कोर्स करना होगा, जिस में 2 से 3 सप्ताह लग सकते हैं.

इन लक्षणों को कूल कंप्रैस और आर्टिफिशियल टीअर सौल्यूशंस से दूर किया जा सकता है. सब से खराब मामलों में असहजता और जलन को कम करने के लिए टौपिकल स्टीरौयड ड्रौप्स दिए जा सकते हैं. हालांकि इन ड्रौप्स से संक्रमण कम नहीं होगा. हालांकि सैकंडरी बैक्टीरियल संक्रमण होने पर ऐंटीबायोटिक ड्रौप्स दिए जा सकते हैं.

कैमिकल कंजक्टिवाइटिस, कैमिकल कंजक्टिवाइटिस होने पर नमकीन पानी से लगातार अपनी आंखों को धोना सब से सामान्य इलाज है. कैमिकल कंजक्टिवाइटिस से पीडि़त लोगों को भी टौपिकल स्टीरौयड्स इस्तेमाल करने की जरूरत हो सकती है, जिस में स्कारिंग हो सकती है, आंखों की रोशनी को नुकसान पहुंच सकता है या फिर लोगों की आंखों की रोशनी जा भी सकती है. अगर आप की आंख में कोई कैमिकल गिर जाता है तो कई मिनटों तक अपनी आंखों को पानी से धोते रहें और फिर अपने डाक्टर के पास जाएं.

खुद देखभाल करें

कंजक्टिवाइटिस का प्रसार रोकने के लिए साफसफाई रखना सब से जरूरी है. एक बार संक्रमण का पता चल जाए तो इन बातों का पालन करें:

आंखों को हाथों से नहीं छुएं.

अच्छी तरह और बारबार अपने हाथ धोएं.

रोजाना अपना तौलिया और कपड़े बदलें, और उन्हें किसी भी अन्य के साथ साझा नहीं करें.

आंखों के कौस्मेटिक्स का प्रयोग बंद कर दें विशेषतौर पर मस्कारा का.

किसी अन्य व्यक्ति के आई कौस्मेटिक्स या निजी आईकेयर उत्पादों का इस्तेमाल नहीं करें.

कौंटैक्ट लैंस की सही देखभाल के लिए आंखों के डाक्टर की सलाह मानें.

डा. नीरज संदूजा, सीनियर कंसल्टैंट, फोर्टिस अस्पताल, गुरुग्राम

स्वास्थ्यवर्धक है चुकंदर

व्यस्तता के चलते आजकल लोग अपनी सेहत का ध्यान नहीं रख पाते, जिस से आएदिन शरीर की इम्यूनिटी कमजोर होने से वे कई बीमारियों के शिकार हो जाते हैं. लंबी आयु के लिए जरूरी है कि अपने खानपीन में फल व हरी सब्जियों के साथ चुकंदर भी शामिल किया जाए. जब खानपान पर सही ध्यान दिया जाएगा तो निश्चित रूप से शरीर की इम्यूनिटी अच्छी होगी और आएदिन होने वाली तकलीफों से बचा जा सकेगा.

चुकंदर खाने से शरीर कई बीमारियों से लड़ने में सक्षम हो जाता है. यह महिलाओं में होने वाली एनीमिया की बीमारी को दूर करने का सब से सही साधन है. इस के गुणों को देखते हुए भारत में इस की व्यापक खेती की जा रही है. यह कैंसर, हाईब्लड प्रेशर के साथ ही अल्जाइमर  की बीमारी को भी दूर करने में कारगर है. चुकंदर स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी खास है. इस में मौजूद तत्त्व जहां शरीर को ऊर्जावान बनाते हैं, वहीं विभिन्न रोगों से लड़ने की कूवत भी विकसित करते हैं. चुकंदर का नियमित सेवन स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद है. खासतौर से बढ़ती उम्र के बच्चों और महिलाओं के लिए यह सब से उत्तम आहार है.

चुकंदर सलाद के रूप में नियमित खाने से शरीर कई बीमारियों से लड़ने में सक्ष्म हो जाता है. गर्भवती महिलाओं को तो इस का सेवन जरूर करना चाहिए. गर्भावस्था के दौरान आमतौर पर खून की कमी हो जाती है, जिसे एनीमिया कहा जाता है. जो महिलाएं नियमित रूप से चुकंदर का सेवन करती हैं. उन्हें खून की कमी नहीं होती. कई बार बच्चे भी खून की कमी की वजह से बीमार रहने लगते हैं. ऐसे बच्चों को चुकंदर का जूस पिलाना लाभकारी रहता है. चुकंदर एक तरह की जड़ है. आमतौर पर यह लाल रंग का होता है. कुछ जगहों पर सफेद रंग का चुकंदर भी पाया जाता है. इस के पत्तों को शाक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

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किसानों को चुकंदर का अच्छा दाम मिलता है. इस में मौजूद गुणों के कारण इसे अब मौसमी सब्जी के रूप में भी इस्तेमाल किया जाने लगा है. चुकंदर में सही मात्रा में लौह, विटामिन और खनिज होते हैं जो रक्तवर्धन और रक्तशोधन के काम में सहायक होते हैं. इस में मौजूद एंटीऔक्सीडेंट तत्त्व शरीर को रोगों से लड़ने की कूवत देते हैं. इस में सोडियम, पोटेशियम, फास्फोरस, क्लोरीन, आयोडीन और अन्य खास विटामिन पाए जाते हैं.

चुकंदर में गुर्दे और पित्ताशय को साफ करने के प्राकृतिक गुण पाए जाते हैं. इस में मौजूद पोटेशियम जहां शरीर को प्रतिदिन पोषण प्रदान करने में मदद करता है तो वहीं क्लोरीन गुर्दों के शोधन में सहायता करता है. यह पाचन संबंधी समस्याओं में भी लाभकारी है. चुकंदर का रस हाइपरटेंशन और हृदय संबंधी समस्याओं को दूर रखता है. महिलाओं के लिए तो यह काफी गुणकारी है. चुकंदर में बेटेन नामक तत्त्व पाया जाता है, जिस की आंत व पेट को साफ रखने के लिए हमारे शरीर को जरूरत रहती है, चुकंदर में मौजूद यह तत्त्व उस की आपूर्ति करता है.

काफी पहले यूरोप में कैंसर के इलाज के लिए चुकंदर का काफी इस्तेमाल किया जाता था. चुकंदर और इस के पत्ते फोलेट का अच्छा जरीया हैं, जो उच्च रक्तचाप और अल्जाइमर की परेशानी को दूर करने में मदद करते हैं.

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  1. कैसे खाएं : चुकंदर कई तरीके से खाया जाता है. आमतौर पर इसे कच्चे सलाद के रूप में खाया जाता है. मूली, गाजर, प्याज, टमाटर आदि की तरह ही चुकंदर को भी सलाद में शामिल करें.

इस के अलावा इसे दक्षिण भारत में उबाल कर खाने का भी प्रचलन है. हालांकि उबालने से इस के कुछ तत्त्व खत्म हो जाते हैं. इसलिए इसे कच्चा खाना ही सब से लाभप्रद है. बुजुर्गों और बच्चों को चुकंदर का जूस देना चाहिए. इस के अलावा देश में चुकंदर की सब्जी बना कर खाने का भी चलन है.

चुकंदर के औषधीय गुण

2.एनीमिया दूर करे चुकंदर : एनीमिया रोग के लिए चुकंदर रामबाण माना जाता है. चुकंदर में उचित मात्रा में आयरन, विटामिंन और मिनिरल्स होते हैं, जो रक्त बढ़ाने और उस के शोधन का काम करते हैं. यही कारण है कि महिलाओं को इस के नियमित सेवन की सलाह दी जाती है.

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3.गुर्दों के लिए लाभकारी : चुकंदर में गुर्दे को स्वस्थ और साफ रखने के गुण मौजूद हैं. किडनी रोगियों को चुकंदर का रस देना लाभकारी है. इस में मौजूद क्लोरीन लीवर और किडनी को साफ रखने में मदद करता है.

4.पित्ताशय के लिए गुणकारी : शोध में पाया गया है कि यह किडनी के साथ ही पित्ताशय के लिए भी कारगर है. इस में मौजूद पोटेशियम शरीर को रोजाना पोषण देने में मदद करता है, वहीं क्लोरीन लीवर और किडनी को साफ करने में मदद करता है.

5.पाचन में सहायक : बच्चों और युवाओं को चुकंदर चबाचबा कर खाना चाहिए. इस से दांत और मसूढे़ मजबूत होते हैं. यह पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करने में भी लाभकारी है. इस का नियमित सेवन करने से अपाच्य की समस्या खत्म हो जाती है. बढ़ती उम्र के बच्चों को चुकंदर जरूर खिलाना चाहिए, इस से उन का शारीरिक सौष्ठव बेहतर होता है और बच्चों के चेहरे पर चमक दिखती है.

6.उल्टीदस्त : यदि उल्टीदस्त की शिकायत हो तो चुकंदर के रस में चुटकीभर नमक मिलाना फायदेमंद रहता है. इस से पेट में बनने वाली गैस खत्म हो जाती है. उल्टी बंद होने के साथ ही दस्त भी बंद हो जाते हैं.

7.पीलिया में लाभकारी : चुकंदर पीलिया के रोगियों के लिए भी फायदेमंद है. पीलिया के रोगियों को चुकंदर का रस दिन में 4 बार देना चाहिए. ध्यान रखें कि एक बार 1 कप से ज्यादा जूस न दें.

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8.हाइपरटेंशन : चुकंदर का जूस हाइपरटेंशन और हृदय संबंधी समस्याओं को दूर करता है. इस के नियमित सेवन से चिड़चिड़ापन दूर हो जाता है. खास कर यह महिलाओं के लिए काफी लाभकारी है.

9.मासिक धर्म में लाभकारी : मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को कमर व पेडू दर्द और अन्य शारीरिक दुर्बलताओं जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. चुकंदर के नियमित इस्तेमाल से मासिक धर्म के दौरान होने ली तकलीफ नहीं होती है.

माहवारी, फोड़े, जलन और मुहासों के लिए भी यह काफी उपयोगी है. खसरा और बुखार में भी त्वचा साफ करने में इस का इस्तेमाल किया जा सकता है.

बालों की रूसी भगाए : चुकंदर के काढ़े में थोड़ा सा सिरका मिला कर सिर में लगाएं या सिर पर चुकंदर के पानी में अदरक के टुकउ़ों को भिगो कर रात में मसाज करें. सुबह बालों को धो लें.

10.चुकंदर खाएं ब्लडप्रेशर भगाएं : ब्लडप्रेशर के रोगियों को चुकंदर जरूर खिलाएं. चुकंदर और इस के पत्ते फोलेट का एक अच्छा जरीया है, जो उच्च रक्तचाप और अल्जाइमर की समस्या को दूर करने में मदद करते हैं. रोज चुकंदर में गाजर और सेब मिला कर उस का जूस पीने से हाईब्लड प्रेशर में कमी आती है. एक अध्ययन के मुताबिक रोजाना 2 कप चुकंदर का जूस पीने से ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है.

हालांकि इस का ज्यादा सेवन नहीं करना चाहिए. इस के ज्यादा सेवन करने से चक्कर आना या वोकल कार्ड पैरालिसिस का खतरा बढ़ जाता है.

11. चुकंदर की सब्जी भी लाभदायक : चुकंदर स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद सब्जी है. इस में कार्बोहाइड्रेट और कम मात्रा में प्रोटीन और वसा पाई जाती है. यह प्राकृतिक शुगर का सब से अच्छा स्रोत है. इस में सोडियम, पोटेशियम, फास्फोरस, कैल्शियम, सल्फर, क्लोरीन, आयोडीन, आयरन, विटामिन ‘बी1’, ‘बी2’ और ‘सी’ पाया जाता है. इस में कैलोरी काफी कम होती हैं.

12. पशुओं के स्वास्थ्य में भी कारगर : चुकंदर इतना गुणकारी है कि यह इंसान के साथसाथ पशुओं के लिए भी कारगर है. यही कारण है कि हरियाणा, पंजाब, गुजरात और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में इसे सीजनल पशु आहार के रूप में खिलाया जाता है. विशेष रूप से दुधारू पशुओं को खिलाने से उन का स्वास्थ्य ठीक रहता है और दूध में भी इजाफा होता है.

इस में मौजूद तत्त्व पशुओं में होने वाले विभिन्न रोगों से उन का बचाव करते हैं. इसे खिलाने से पशुओं में आमतौर पर होने वाली बांझपन की समस्या खत्म हो जाती है.

दुधारू पशु 3 से 4 बार ब्याने के बाद कमजोर हो जाते हैं और कुछ में बांझपन के लक्षण भी आ जाते हैं, लेकिन जिन पशुपालकों ने नियमित रूप से उन के चारे में चुकंदर को शामिल किया है, उन्हें इस समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है.

सुषमा-भाग 3: हर्ष ने बाबा को क्या बताया?

मेरा चिड़चिड़ापन बढ़ता गया था. बच्चों पर गुस्सा निकालती थी. नौकर की जरा सी लापरवाही पर उसे फटकार देती. हर्ष देर से आते तो तकरार करने लग जाती. एक दिन मैं ने कितने अविश्वास से उन से बात की थी. आज सोचती हूं तो लज्जित हो उठती हूं. कितनी नीचता थी मेरे शब्दों में. शायद उस दिन हर्षजी को कुछ ज्यादा देर हो गई थी. मैं ने उन से कहा था, ‘आज नई कंप्यूटर औपरेटर के साथ कोई प्रोग्राम था?’

‘क्या कहना चाहती हो?’ वे कठोरता से बोले थे.

‘यही कि इतनी देर फिर तुम्हें कहां हो जाती है?’

‘मैं नहीं समझता था, तुम इतनी नीच भी हो सकती हो. देर क्यों होती है. सब सुनना चाहती हो? इस घर में आने की बात दूर, इस घर की याद भी जाए, अब यह भी मुझ से बरदाश्त नहीं होता. मैं ने क्या सोचा था, क्या हो गया. मेरे सपनों को तुम ने चूरचूर कर दिया है,’ वे तड़प कर बोले थे.

कभीकभी मुझे अपने व्यवहार पर बहुत पछतावा होता. मैं सोचती, ‘ये सब लोग क्या कहते होंगे? आखिर है तो छोटे घर की. स्वभाव कैसे बदलेगी,’ लेकिन यह विचार बहुत थोड़ी देर रहता.

बच्चों को हर्ष ने होस्टल में डाल दिया था. अब वे मेरी ओर से और भी लापरवाह हो गए थे. मैं अब कितना अकेलापन महसूस करने लगी थी. एक दिन मैं ने उन से कहा था, ‘तुम दिनभर औफिस में रहते हो. बच्चों को तुम ने होस्टल में डाल दिया है. दिनभर अकेली मैं बोर होती रहती हूं. इस तरह मैं पागल हो जाऊंगी.’

‘बच्चों को इस उम्र में अपने घर से दूर रहना पड़ा है, इस की वजह भी तो तुम्हीं हो. पहले अपनेआप को बदलो, बच्चे फिर घर आ जाएंगे. जिंदगी में कितने काम होते हैं, आदमी करने लगे तो यह जिंदगी छोटी पड़ जाए उन कामों के लिए, और एक तुम हो जो यह सोचे बैठी हो, कितना काम करूं,’ वे तलखी से बोले थे.

हर्ष की मां की तबीयत खराब रहने लग गई थी. मैं तो अपनी बीमारी का कंबल ओढ़े पड़ी रहती थी. किसी को क्या तकलीफ है, मुझे इस से कोई मतलब नहीं था. घर में एक औरत रखी गई, जो माताजी की दिनरात सेवा करती थी. उस का नाम था सुषमा. मैं देखती, कुढ़ती, मां के लिए हर्ष कितना चिंतित हैं, मेरी कोई परवा नहीं, लेकिन मैं यह देख कर भी हैरान होती कि यह सुषमा किस माटी की बनी है. सुबह से ले कर देर रात तक यह कितनी फुरती से काम करती है. थकती तक नहीं. मुंह पर शिकन तक नहीं आती. हमेशा  हंसती रहती.

एक दिन मैं लौन में बैठी थी तो सुषमा भी मेरे पास आ कर बैठ गई. बड़े प्यार और हमदर्दी से बोली थी, ‘आप को क्या तकलीफ है, मैडम?’

‘कुछ समझ में नहीं आता,’ मैं ने थके स्वर में कहा था.

‘डाक्टर क्या बताते हैं?’

‘किसी की समझ में कुछ आए तो कोई बताए. किसी काम में मन नहीं लगता, किसी से बात करना अच्छा नहीं लगता. हर समय घबराहट घेरे रहती है.’

‘मेरी बात का बुरा मत मानना, मैडम, एक बात कहूं?’ सुषमा ने डरतेडरते पूछा था.

‘कहो.’

‘आप अपने को व्यस्त रखा करिए. कई बार इंसान के सामने कोई काम नहीं होता तो वह इसी तरह अनमना सा बना रहता है. बच्चों को भी आप ने होस्टल में भेज दिया, वरना तो उन्हीं का कितना काम हो जाता. आप अपने घर की देखभाल खुद क्यों नहीं करतीं?’

‘एक बात बता, सुषमा, तू रोज दोपहर को 2-3 घंटे के लिए कहां जाती है?’ मैं ने उत्सुकता से पूछा था.

‘कहीं भी चली जाती हूं, मालकिन. कमला को बच्चा हुआ, उस की मालिश करनी होती है. 28 नंबर वाले जगदीशजी की मां बीमार है, उस की मदद करने चली जाती हूं. निम्मी भाभी हैं न…’

‘यह निम्मी भाभी कौन हैं?’

‘जहां मैं पहले काम करती थी. उन के पास नौकरानी है तो सही, लेकिन उन्हें मुझ से बड़ा प्रेम है. उन के छोटेछोटे बालबच्चे हैं. शाम को स्कूल से आते हैं तो निम्मी भाभी की जा कर मदद कर देती हूं. वे खुद भी पढ़ाने जाती हैं, थकीहारी आती हैं.’

‘फिर ये रुपए किस के लिए ले जाती है तू?’ मैं हैरान थी.

‘कितने ही जरूरतमंद ऐसे हैं जिन्हें सेवा और पैसे की जरूरत होती है. मेरे पीछे कौन खाने वाला है जिस के लिए इकट्ठा करूं? सोचती हूं, चार पैसे किसी जरूरतमंद के काम आ जाएं तो अच्छा ही है.’

‘तुम्हें पता रहता है किसे पैसे की या सेवा की जरूरत है?’

‘दुनिया बहुत बड़ी है, मैडम. बाहर निकल कर आप देखेंगी तो जान पाएंगी कि किस को क्या चाहिए. कौन दुख का मारा रास्ता देख रहा है कि कोई आए और उस के दुख बांट ले,’ सुषमा कितने उत्साह से बोल रही थी, ‘मैडम, बड़ा फायदा है दूसरों का दुख बांटने में. मन को कितना संतोष मिलता है, सुख मिलता है. जब हम बाहर निकल कर दूसरों की तकलीफों को देखते हैं तो सच मानिए, अपनी तकलीफ अपनेआप ठीक हो जाती है.’

‘तू थकती नहीं, सुषमा?’

‘नहीं, मैम. यह काम ही तो है जिस ने मुझे इस उम्र में भी तंदुरुस्त रखा हुआ है. फिर इस शरीर को इतना भी क्या संभाल कर रखें, यह हमारे किस काम आएगा? जानवरों का तो चाम भी काम आ जाता है. अपनी चमड़ी तो उस काम भी नहीं आती. फिर क्यों न इस से जीभर के मेहनत की जाए? संभाल कर रखने से तो इसे जंग खा जाएगा, जैसे मशीन बंद पड़ी रहे तो उस में जंग लग जाता है.’

‘सच, सुषमा?’ जैसे मैं सपने से जगी थी.

‘हां, मालकिन, दूसरों का दुख बांट लो तो अपना खुद ही कम हो जाएगा. फिर कैसी सुस्ती, कैसी उदासी और कैसी बीमारी? मैं तो अपने शरीर को हरामखोरी नहीं करने देती, मैडम,’ सुषमा कितने विश्वास से यह बात कह गई थी.

सुषमा उठ कर चली गई थी मेरे लिए प्रश्नचिह्न छोड़ कर. बिहार के उस लगभग अनपढ़ गांव की औरत ने कितने बड़े राज की बात कह दी थी. उस की बातें मुझे कहीं भीतर तक चीरती हुई निकल गई थीं. यह सुषमा, जिस के पास मुट्ठीभर पूंजी है, उसे बांट कर कितने सुखसंतोष का अनुभव करती है. दूसरों की सेवा में कितना इसे आनंद मिलता है, और मैं अपने शरीर को लिए ही चिंतित हूं. मैं क्या किसी के लिए कुछ नहीं कर सकती? अब मैं किसी निश्चय पर पहुंच चुकी थी.

हर्ष को सुबह उठते ही एक कप कौफी लेने की आदत थी. मेरी तबीयत खराब होने से यह काम नौकर करने लगा था, क्योंकि मैं तो देर तक बिस्तर पर पड़ी रहती थी. यह मेरा काम था जिसे मैं भूल गई थी. जब उस रोज सुबह में कौफी ले कर पहुंची तो हर्ष बड़ी हैरानी से मुझे देखते रह गए, ‘तुम, मनसुख कहां गया?’

‘यह मेरा काम था. मैं भूल गई थी,’ मैं ने निगाह नीची किए कहा था.

‘लेकिन तुम्हारी तबीयत?’ वे हैरान थे.

‘वह अब ठीक हो जाएगी. मुझे पता लग गया है, मुझे क्या बीमारी थी,’ मैं शरारत से मुसकरा दी थी.

‘क्या थी?’

‘मेरी बीमारी का नाम हरामखोरी था. मेरे डाक्टर ने मुझे समझा दिया है.’

‘कौन सा डाक्टर?’ वे जानने को उत्सुक थे.

‘सुषमा…सच, मैं तो यह भूल ही गई थी कि दूसरों को भी मेरी जरूरत है. मैं इतनी स्वार्थी हो गई थी कि बस यही चाहती थी सब मेरी चिंता करें. सब का दुखदर्द समझती तो न खुद मैं परेशान रहती, न ही इतनी बोरियत सताती. सुषमा ने मुझे सोते से जगा दिया है.

‘इस के बाद वह मेरी आदर्श बन गई, मेरी गुरु, जिस ने मुझे जीने की राह बताई है, मेरी झोली में खुशियां भर दी हैं, मुझे मेरा परिवार लौटा दिया है,’ मेरी आंखों में कितनी ही खुशी के आंसू आ गए थे. मेरे बच्चे मेरे पास वापस आ गए. कहने लगे होस्टल में मन नहीं लगता. हर्ष और मां खुश हैं. मैं कितनी खुश हूं सुषमा को पा कर जिस ने मेरा इतना काम बढ़ा दिया है. लगता है, दिन खत्म हो गया पर काम तो पूरा हुआ नहीं. वह भी तो जुटी रहती है सब के दुख बांटने में. मैं ने सोच लिया है कि अब सुषमा को अपने से दूर नहीं करूंगी. कहीं मैं फिर न भटक जाऊं. उसे देख कर हमेशा यही खयाल आता है कि जो सुख दूसरों के दुख मिटाने में है वह अपने को सहेज कर रखने में कहां है. हम दूसरों का दुख कम करेंगे तो हमारा दुख अपनेआप कम हो जाएगा.

सुषमा-भाग 2: हर्ष ने बाबा को क्या बताया?

‘जाओ, कैशियर से एडवांस ले लो और एक और साड़ी खरीद लो. मुझे उम्मीद है भविष्य में तुम हर बात का ध्यान रखोगी. मुझे सस्तापन बिलकुल पसंद नहीं,’ और मुझे एडवांस देने के लिए उन्होंने कैशियर को टैलीफोन कर दिया था.

फिर मैं ने उन्हें शिकायत का कभी मौका नहीं दिया था. मैं बड़ी लगन और मेहनत से काम करती थी. वे मेरा काम देखते और मुसकरा देते. इस से मेरा उत्साह बढ़ जाता.

उन का नाम हर्ष था. वे मेरे काम से इतने खुश थे कि अब वे कई कामों में मेरी सलाह भी ले लेते थे. उन के मोबाइल का नंबर सेव रहता था मेरे दिल में. घर में एक ही मोबाइल था जिसे सब इस्तेल करते थे. हमारे बीच चुप्पी की वह दीवार न जाने कब गिर गई थी जो नौकर और मालिक के बीच होती है. कई बार वे हंस कर कहते, ‘अचला, तुम तो अब मेरी सलाहकार हो गई हो, और सलाहकार अच्छे दोस्त भी होते हैं.’

मेरे सुखदुख और जरूरत का वे हमेशा ध्यान रखते थे. एकदो बार मुझे वे अपने घर भी ले गए थे. वहां उन की मम्मी का मुझे भरपूर स्नेह मिला था. वे ब्लडप्रैशर की मरीज थीं, लेकिन बहुत हंसमुख थीं और यह महसूस ही नहीं होने देती थीं कि वे बीमार हैं.

हर्ष ने कभी ऐसी कोई हरकत नहीं की थी जिस से मेरे मन को ठेस लगे, कोई मर्यादा भंग हो या हम किसी के उपहास का पात्र बनें.

एक दिन मेरी तबीयत बहुत खराब थी. दफ्तर का काम निबटाना जरूरी था, इसीलिए मैं चली गई थी. मैं कुछ पत्र टाइप कर रही थी और मुझे महसूस हो रहा था कि हर्ष की निगाहें बराबर मेरा पीछा कर रही हैं. मैं घबराहट से सुन्न होती जा रही थी. तभी उन्होंने पुकारा था, ‘अचला, लगता है आज तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं. तुम्हें नहीं आना चाहिए था. जाओ, घर जाओ. यह काम इतना जरूरी नहीं है, कल भी हो सकता है.’

‘बस, सर, थोड़ा काम और रह गया है, फिर चली जाऊंगी.’

‘जरा इधर आओ. यहां बैठो,’ उन्होंने सामने वाली कुरसी की ओर इशारा किया.

मेरे बैठने पर पहले तो वे कुछ देर चुप रहे, लेकिन थोड़ी देर बाद सधे स्वर में बोले थे, ‘बहुत दिनों से मैं तुम्हें एक बात कहने की सोच रहा था. मैं जो कुछ भी कहूंगा, भावुकता में नहीं कहूंगा और इस का गलत अर्थ भी मत लगाना. मैं ने तुम से शादी करने का निश्चय किया है. तुम से ‘हां’ या ‘न’ में उत्तर नहीं चाहता, बात तुम्हारे पापा से होगी. केवल अपना परिचय देना चाहता था, ताकि तुम उस पर गौर से सोच सको और जब तुम्हारे पापा तुम से शादी के विषय में बात करें तो अपना निर्णय दे सको.

‘यह तो तुम ने देख ही लिया है, मेरा बिजनैस है और परिवार के नाम पर सिर्फ मेरी मां हैं. मां को भी तुम ने देखा है, बीमार रहती हैं. तुम सोच रही होगी कि मैं ने अभी तक शादी क्यों नहीं की. मैं चाहता था, मुझे ऐसी लड़की मिले, जो विनम्र हो, कर्तव्यनिष्ठ हो, जिस में हर काम कर गुजरने की लगन हो, जो विवेकशील हो, तब शादी करूंगा. कभी यह इच्छा नहीं हुई कि संपन्न घराने की लड़की मिले. इतना तो हमारे पास है ही कि सारी उम्र किसी के आगे हाथ पसारने की जरूरत नहीं. इतने दिनों में मैं ने तुम्हें बहुत परखा है. मैं जान गया हूं, तुम्हीं वह लड़की हो, जिस की मुझे तलाश थी. तुम्हारे साथ शादी मैं दयावश नहीं कर रहा हूं. मुझे तुम्हारी जरूरत है. मैं तुम्हारे पापा से जल्दी ही बात करूंगा. ‘हां’ या ‘न’ का फैसला तुम्हें करना है और उस के लिए तुम स्वतंत्र हो.’

पापा से उन्होंने बाद में बात की थी. मैं ने पहले ही सबकुछ बता दिया था, क्योंकि मैं पापा से कभी कोई बात नहीं छिपाती थी.

पापा ने उन की आयु का सवाल उठाया था. लेकिन मां ने यही कहा था, ‘आयु तो गौण बात है. जीनामरना किसी के हाथ में थोड़े ही है.’

जब हर्ष ने बाबा से बात की तो बाबा ने बस यही कहा था, ‘मेरी परिस्थिति से आप परिचित हैं. इस के बाद भी आप अचला का हाथ मांग रहे हैं तो मुझे इनकार नहीं है. कौन मांबाप अपनी संतान को सुखी नहीं देखना चाहता?’

हमारी शादी हो गई थी. एक साल कैसे निकल गया, पता ही नहीं लगा. मैं ने घर की सारी जिम्मेदारियां संभाल लीं. हर्ष और मां मेरे व्यवहार से बहुत खुश थे. मेरे पापा हमेशा कहते, ‘बेटी, तू बड़े घर ब्याही गई है, लेकिन बाप की हालत को मत भूलना. पुराने दिन याद रहें तो आदमी भटकन से बचा रहता है. अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक रहोगी तो सब से प्यार और सम्मान मिलता रहेगा.’

मेरा पहला बेटा जब हुआ था तब तक तो सब ठीक था. लेकिन दूसरे बेटे के पैदा होने पर न जाने मुझे क्या हो गया था कि मैं बीमार रहने लग गई थी. तबीयत की वजह से मेरा किसी काम में मन नहीं लगता था. हर्ष के और मां के जिस काम को करने से मुझे हार्दिक संतोष मिलता था, अब मैं उस से भी कतराने लग गई थी.

कभी हर्ष कहते, ‘यह तुम्हें क्या होता जा रहा है? तुम पहले तो ऐसी नहीं थीं?’ तो बजाय सीधी बात करने के, मैं गुस्सा करने लगती.

कितने ही डाक्टरों को दिखाया गया. सब का एक ही उत्तर होता, ‘शरीर तो बिलकुल स्वस्थ है, कोई बीमारी नजर ही नहीं आती, क्या इलाज किया जाए? हां, इन्हें अपनेआप को व्यस्त रखना चाहिए.’

जब यही बात हर्ष मुझ से कहते तो मैं बिगड़ उठती, ‘मैं और कैसे व्यस्त रहूं? जितना काम हो सकता है, करती हूं. तुम सोचते हो, मैं झूठ बोलती हूं. तुम्हारे पास तो इतना भी वक्त नहीं, जो आराम से पलभर मेरे पास बैठ कर मेरा सुखदुख जान सको.’

‘तुम क्या चाहती हो, दफ्तर का काम छोड़ कर तुम्हारे दुख में आंसू बहाया करूं? पहले क्या मैं सारा दिन तुम्हारे पास बैठा करता था, जो अब तुम्हें शिकायत है कि मैं बैठता नहीं? मेरे लिए मेरा काम पहला फर्ज है, बाकी सबकुछ बात में, इसे तुम अच्छी तरह जानती हो,’ वे सख्त आवाज में बोले थे, ‘और फिर तुम्हें बीमारी क्या है?’

‘बस, अमीर लोगों के यही तो चोंचले होते है. गरीब की लड़की ले आना ताकि ईमानदार नौकरानी बनी रहे. गरीब की सांस भी उखड़ने लगे तो अमीर समझता है, तमाशा कर रहा है,’ मैं सुबक पड़ी थी.

‘अचला, इस से पहले कि मैं कोई सख्त बात कहूं, तुम यह याद रखना आज के बाद तुम्हारे मुंह से कोई गलत बात न निकले. तुम जानती हो बदतमीजी मुझे बिलकुल पसंद नहीं है,’ और वे गुस्से में चले गए थे.

हर्ष ने मुझ से बोलना कम कर दिया था. मैं और कुढ़ने लग गई थी. बदतमीजी भी मैं ही करती थी और उन से शिकायत भी मुझे ही रहती थी. यह तो मैं आज सोचती हूं न. तब किसे जानने की फुरसत थी? पापा के समझाने पर उन से भी तो मैं ने अनापशनाप कह दिया था.

Crime Story: खिलाड़ियों का शिकार

सौजन्य- सत्यकथा

इंदौर की एसएसपी रुचिवर्धन मिश्र ने जिले के समस्त थाना स्तर के अधिकारियों की बैठक बुलाई थी. इंदौर (सिटी) थाने के टीआई विनोद दीक्षित उस मीटिंग में जाने की तैयारी कर रहे थे, तभी उन के पास 32-33 साल का एक युवक शिकायत ले कर आया. उस ने टीआई साहब को शिकायती पत्र दिया. उसे पढ़ कर टीआई विनोद दीक्षित चौंके. क्योंकि मामला हनीट्रैप का था. हनीट्रैप का एक मामला वैसे भी पूरे प्रदेश में हलचल मचाए हुए था. यह मामला भी कहीं चर्चित न हो जाए, इसलिए टीआई ने उस युवक की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए यह सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी.

एसएसपी के आदेश पर टीआई ने शिकायतकर्ता राजेश गहलोत की तहरीर पर आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा कर इस की जांच एसआई दिलीप देवड़ा को सौंप दी.एसआई दिलीप देवड़ा ने जब राजेश सोलंकी ने बताया कि इंदौर की द्वारिकापुरी सोसाइटी निवासी दुर्गेश सेन और उस की लिवइन पार्टनर गायत्री सिसोदिया ने पहले उसे धोखे से अपने देहजाल में फंसाया और फिर चोरीछिपे उस की अश्लील वीडियो बना ली.

उसी वीडियो से ब्लैकमेल कर के वह उस से 45 हजार रुपए वसूल चुके हैं. लेकिन इस के बाद भी उन की पैसों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है. राजेश गहलोत ने ब्लैकमेल करने के कुछ सबूत भी जांच अधिकारी को सौंपे.एसआई दिलीप देवड़ा ने सबूतों का अध्ययन कर के राजेश गहलोत से बात करने के बाद सारी जानकारी टीआई विनोद दीक्षित व सीएसपी पुनीत गहलोत को दे दी.

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इस के बाद उन्होंने नामजद आरोपियों को गिरफ्तार करने की योजना बनानी शुरू कर दी. अगले दिन पुलिस टीम ने द्वारिकापुरी सोसाइटी से दुर्गेश को गिरफ्तार कर लिया. तलाशी में दुर्गेश के पास एक भरा हुआ पिस्तौल ओर 3 जिंदा कारतूस भी मिले.दुर्गेश से पूछताछ की गई तो उस ने खुद को निर्दोष बताया. इतना ही नहीं उस ने राजेश गहलोत को पहचानने से भी इनकार कर दिया. लेकिन जब एसआई देवड़ा ने गहलोत द्वारा उपलब्ध कराए सबूत उस के सामने रखे तो दुर्गेश की बोलती बंद हो गई. अब उस के बोलने की कोई गुंजाइश ही नहीं बची थी.

लिहाजा उसे सच्चाई बताने के लिए मजबूर होना पड़ा. एसआई देवड़ा ने उस से जानकारी ले कर तत्काल जवाहर नगर देवास में दबिश दी और गायत्री सिसोदिया को भी गिरफ्तार कर लिया. गायत्री ने भी नाटकबाजी करते हुए राजेश गहलोत को पहचानने से इनकार कर दिया.जांच अधिकारी ने गायत्री सिसोदिया का मोबाइल जब्त कर उस की जांच की तो राजेश के साथ ही नहीं बल्कि कई अन्य युवकों के साथ भी उस की अश्लील वीडियो मिलीं. इस से साफ हो गया कि गायत्री दुर्गेश के साथ मिल कर पैसे वाले युवकों को अपने जिस्म के जाल में फंसा कर उन्हें ब्लैकमेल करने का काम कर रही थी.

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चूंकि उन के खिलाफ सुबूत मिल चुके थे और उन्होंने अपना अपराध भी स्वीकार कर लिया था, इसलिए पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश कर दुर्गेश को रिमांड पर ले लिया जबकि कोर्ट के आदेश पर गायत्री को जेल भेज दिया गया. इस के बाद हनीट्रैप की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—ध्य प्रदेश के जनपद देवास के रहने वाले राजेश गहलोत का टूव्हीलर शोरूम था. जिस मोहल्ले में राजेश रहते थे, उसी मोहल्ले में दुर्गेश नाम का एक शख्स रहता था जो एक निजी कंपनी की बस में ड्राइवर था. दुर्गेश चालाक इंसान था. उस ने नरसिंहपुर में रहने वाली गायत्री नाम की युवती से अच्छी दोस्ती कर ली थी. यह दोस्ती उन्हें अवैध संबंधों तक ले गई.

दरअसल गायत्री इंदौर के एक कालेज से बीए द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रही थी. वह अकसर दुर्गेश की बस से कालेज जाती थी. उसी समय उन दोनों की दोस्ती हो गई थी. बाद में दुर्गेश उस की आर्थिक मदद भी करने लगा था. उन के संबंध इतने गहरे हो गए थे कि दुर्गेश ने द्वारिकापुरी में किराए पर एक फ्लैट ले लिया और उस के साथ लिव इन रिलेशन में रहने लगा.इस के पीछे गायत्री की यह सोच थी कि उसे पढ़ाई का खर्च तो घर से मिलता रहेगा, बाकी ऐश के लिए दुर्गेश उस का खर्च उठाएगा. लेकिन एक बस ड्राइवर अपनी प्रेमिका पर कितना खर्च कर सकता था. सो जल्द ही गायत्री को लगने लगा कि ऐश करने के लिए उसे ही कोई रास्ता निकालना पड़ेगा. इस बीच उस ने देखा कि उस के कालेज की कई लड़कियां जो बाहर के शहरों से पढ़ने के लिए इंदौर में आ कर अकेली रहती हैं, अपने ऊपरी खर्च निकालने के लिए एक साथ कई लड़कों को अपना प्रेमी बनाए हुए हैं.

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लेकिन उन में और गायत्री में अंतर था. दूसरी लड़कियों को रोकटोक करने वाला कोई नहीं था, जबकि दुर्गेश गायत्री पर नजर रखता था. इसलिए काफी सोचसमझ कर गायत्री ने एक दिन दुर्गेश को जल्द अमीर होने की योजना बताई. उस ने कहा कि क्यों न वे युवकों को हनीट्रैप में फंसा कर उन से मोटी कमाई करें.
दुर्गेश को गायत्री की यह योजना पसंद आ गई. दुर्गेश खुद भी गायत्री के साथ यही कर रहा था. वह उसे अन्य युवकों के साथ सुलाने के लिए तैयार हो गया. इस योजना में दुर्गेश ने अपने दोस्त राकेश सोलंकी को भी शामिल कर लिया.

गायत्री ने सब से पहले युवकों को फंसाने की शुरुआत अपने कालेज से की. वहां से वह युवकों को अपने जाल में फंसा कर कमरे पर लाती, जहां दुर्गेश चोरीछिपे उन की अश्लील फिल्म बनाने के बाद गायत्री और राकेश की मदद से ब्लैकमेल करता. लेकिन जल्द ही इन दोनें की समझ में आ गया कि कालेज बौय को फंसाने में 10-15 हजार से ज्यादा की रकम नहीं मिल पाती. इसलिए वह मालदार आसानी को शिकार बनाने की फिराक में रहने लगे.

इस बीच गायत्री ने कालेज में ऐसी लड़कियां तलाश कर लीं, जिन की न केवल कई युवकों से दोस्ती थी बल्कि किसी भी युवक के साथ एकदो दिन के लिए इंदौर से बाहर घूमने के लिए जाने को तैयार रहती थीं.
गायत्री ने ऐसी लड़कियों से दोस्ती कर एक वाट्सऐप ग्रुप बना कर सब को साथ जोड़ लिया. इस के बाद उस ने इन में से काम की कुछ लड़कियों का चयन कर उन्हें अपने सांचे में ढाल लिया. इस काम में दुर्गेश भी उस की मदद कर रहा था.

अब उस के ग्रुप की लड़कियां किसी मालदार युवक को अपने रूपजाल में फंसा कर गायत्री के कमरे में लातीं जहां गायत्री और दुर्गेश मिल कर युवती के साथ युवक का अश्लील वीडियो बनाने के बाद उस से बड़ी रकम झटक लेते. इस काम के लिए गायत्री के गिरोह की लड़कियों ने कई कोड वर्ड भी तैयार कर लिए थे. जैसे कि लड़की बोलती कि एक फोटो फ्रेम कर ली है तो इस का मतलब होता था कि एक युवक जाल में फंस चुका है.

जांच में सामने आया कि गायत्री राकेश और दुर्गेश ने कई युवकों को इस तरह से ब्लैकमेल कर उन से बड़ी रकम लूटी. पुलिस ने गायत्री के वाट्सऐप ग्रुप से जुड़ी कुछ लड़कियों के भी बयान दर्ज किए, जिन में उन्होंने स्वीकार किया कि गायत्री उन से लड़कों को फंसा कर अपने घर पर लाने का दबाव डालती थी लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया था.देवास निवासी राजेश गहलोत गायत्री के जाल में कैसे फंसा इस की कहानी भी काफी रोचक है. हुआ यह कि राजेश को देवास स्थित अपने टूव्हीलर शोरूम पर एकाउंट का काम संभालने के लिए किसी स्मार्ट लड़की की जरूरत थी. इस बारे में राजेश ने दुर्गेश की मौजूदगी में अपने दोस्त से बात की तो दुर्गेश का दिमाग चल गया. राजेश के पास काफी पैसा है यह बात दुर्गेश जानता था.

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उस ने सोचा कि अगर गायत्री से राजेश को मिलवा दिया जाए तो लाखों रुपए हाथ आ जाएंगे, यह सोच कर उस ने राजेश से कहा, ‘‘इंदौर में मेरी परिचित एक युवती है. स्मार्ट भी है उसे काम की जरूरत है. तुम कहो तो इंटरव्यू के लिए मैं उसे बुला देता हूं. अगर समझ में आए तो देख लेना. मुझे लगता है कि वो काफी सुलझी हुई लड़की है, जो तुम्हारा सारा शोरूम संभाल सकती है.’’‘‘ठीक है, उसे 2 दिन बाद बुला लो, क्योंकि कल मुझे एक जरूरी काम से इंदौर जाना है.’’ राजेश बोले.‘‘ठीक है न, वो इंदौर में ही रहती है. तुम कहो तो वहीं तुम्हारी मुलाकात उस से करवा दूंगा.’’ दुर्गेश ने राजेश से कहा तो राजेश इस के लिए तैयार हो गया.

दूसरे दिन दुर्गेश अपनी ड्यूटी पर नहीं गया और इंदौर में बैठ कर गायत्री के साथ राजेश को सांचे में उतारने की तैयारी में जुट गया. राजेश चूंकि दुर्गेश की नजर में काफी मोटी आसामी था, इसलिए राजेश से मिलने से पहले उस ने गायत्री को ब्यूटीपार्लर भेज कर तैयार करवाया. इस के बाद उस ने राजेश को फोन लगाया. राजेश ने कहा कि अभी वह व्यस्त है. उस ने युवती को 2 दिन बाद देवास भेजने को कह दिया. लेकिन जब दुर्गेश ने उस पर दबाव डाला तो वह काम से फ्री होने के बाद युवती का इंटरव्यू लेने को राजी हो गया. फिर शाम के समय दुर्गेश राजेश को ले कर गायत्री के पास आ गया. राजेश को गायत्री के साथ फ्लैट में छोड़ कर वह किसी काम के बहाने वहां से चला गया.

राजेश ने सजीधजी गायत्री को देखा तो वह उसे कहीं से भी नौकरी की तलबगार नहीं लगी. उस ने गायत्री से पूछा, ‘‘आप ने इस के पहले कहीं काम किया है?’’‘‘जी नहीं, आप पहले हैं, जिन के साथ मैं काम करूंगी.’’ गायत्री ने मुसकरा कर जवाब दिया.ऐसा कहते हुए गायत्री ने ‘काम’ शब्द पर जिस तरह जोर दिया उस से राजेश को लगने लगा कि गायत्री का इरादा ठीक नहीं है. एक बार तो राजेश का मन हुआ कि वहां से उठ कर चला जाए लेकिन फिर उसे लगा कि शायद उस का ऐसा सोचना गलत है.

संभव है कि लड़की का वह मतलब न हो, जो वह समझ रहा है. जबकि गायत्री का मतलब सचमुच वही था. यह बात उस की समझ में तब आई जब कुछ देर बाद गायत्री के साथ उस के कपड़े भी कमरे के फर्श पर पड़े थे.कमरे में आया सांसों का तूफान थम चुका था. ऐसा कर के राजेश खुद को शर्मिंदा महसूस कर रहा था इसलिए अपनी शर्म छिपाने के लिए उस ने गायत्री से कहा, ‘‘ठीक है, तुम पहली तारीख से काम पर आ जाना.’’इस के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए. इस के 2 दिन बाद गायत्री राजेश के शोरूम पर आई. राजेश ने नजरें चुराते हुए उसे काम समझाया. लेकिन गायत्री बोली, ‘‘लेकिन अब मुझे काम की कोई जरूरत ही नहीं है.’’

‘‘क्यों’’ राजेश ने चौंकते हुए पूछा.‘‘क्योंकि आप मुझे जितना वेतन साल दो साल में देते वो तो अब आप मुझे ऐसे ही 2 मिनट में दे देंगे.’’ गायत्री ने गरदन टेढ़ी कर कहा.‘‘यह देखिए हमारे प्यार की फिल्म.’’ कहते हुए गायत्री ने उसे वह वीडियो दिखा दी जो उस ने राजेश के साथ हकीकत में किया था.वीडियो देख कर राजेश को पसीना आ गया. लेकिन गायत्री ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘क्या सैक्सी ऐक्ट करते हो यार. बाजार में इस वीडियो को बेच दूं तो लाख दो लाख तो यूं ही मिल जाएंगे.’’

‘‘क्या कहना चाहती हो तुम.’’ राजेश थूक गटकते हुए बोला.‘‘यही कि इस वीडियो को आप खरीदना पसंद करोगे या फिर किसी और को बेचूं?’’ वह शब्दों पर जोर देते हुए बोली.‘‘तुम मुझे ब्लैकमेल कर रही हो?’’
‘‘तुम ने भी तो यही किया. नौकरी देने के नाम पर मेरी इज्जत लूट ली.’’‘‘पहल तो तुम ने ही की थी.’’
‘‘लेकिन पुलिस इस बात को नहीं मानेगी, न कानून मानेगा. छोड़ो इसे कानून गया तेल लेने. मैं अपने बनाए कानून से चलती हूं. मेरी अदालत में गवाह भी मैं हूं और जज भी मैं. सीधी बात करो. 2 लाख दो और अपनी इज्जत बचा लो.’’ गायत्री ने सौदेबाजी की.

राजेश रोयागिड़गिड़ाया लेकिन गायत्री को दया नहीं आई. इसलिए राजेश ने अपने पर्स में रखे 25 हजार रुपए उसे दिए और उस से अपनी जान छुड़ाई. राजेश समझ गया कि राकेश और दुर्गेश भी इस पूरे खेल में शामिल हैं, लेकिन अपनी इज्जत के डर से वह चुप रहा. इधर दूसरे दिन ही गायत्री ने उस से और पैसों की मांग की तो राजेश ने उसे 15 हजार रुपए और दे दिए, जबकि गायत्री 2 लाख पर अड़ी रही.इतना ही नहीं जब राजेश ने आनाकानी की तो एक दिन राजेश के शोरूम पर आ कर वह तकरीबन 70 हजार रुपए की एक नई गाड़ी ले कर चली गई. राजेश ने सोचा कि अब शायद गायत्री उस का पीछा छोड़ देगी. लेकिन कुछ दिनों बाद गायत्री के साथ दुर्गेश भी उसे पैसा देने के लिए धमकाने लगा.

संयोग से इसी बीच राजेश की मुलाकात इंदौर निवासी अपने एक पत्रकार मित्र से हो गई. राजेश को परेशान देख कर उस ने कारण पूछा तो राजेश ने उसे सारी बात सुना दी. इस पर पत्रकार दोस्त ने उसे पुलिस की मदद लेने की सलाह दी. साथ ही उस ने पुलिस के पास जाने से पहले कुछ पुख्ता सबूत जमा कर लेने को कहा. जिस के चलते 15 नवंबर के आसपास जब गायत्री ने फोन कर और पैसों की मांग की तो राजेश ने कहा कि ठीक है कल शाम को फूटी कोठी के पास मिलो, वहां मैं तुम्हें पैसा दे दूंगा.

गायत्री आई तो राजेश उसे पहले से तैयार रखे गए एक मकान में ले गया, जहां उस ने गायत्री के साथ हुई पैसों के लेनदेन की बात रिकौर्ड कर ली. इस के बाद कुछ देर में एटीएम से पैसा निकालने की बोल कर वह वहां से वापस आ गया और वह सीधे पुलिस के पास पहुंच गया.टीआई विनोद दीक्षित के नेतृत्व में मामले की जांच कर रहे एसआई दिलीप देवड़ा ने 24 घंटे में ही दोनों आरोपियों दुर्गेश और बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा गायत्री को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. जबकि राकेश फरार था.

पुलिस जांच में पूर्व विधायक के एक नजदीकी व्यक्ति व ओम प्रकाश साखला का नाम भी सामने आया. पुलिस ने पूछताछ करने के लिए दोनों के घर में दबिश डालीं, लेकिन ये फरार मिले. कथा लिखने तक पुलिस फरार आरोपियों की तलाश में जुटी थी.

नाकाम हुई जाह्नवी कपूर की बॉयोपिक गुंजन सक्सेना

लेखिका – सोनाली 

भारत की पहली महिला पायलट और करगिल वॉर की हीरो गुंजन सक्सेना की जिंदगी पर आधारित फ़िल्म गुंजन सक्सेना: द करगिल गर्ल रिलीज हो गई है. जान्ह्वी कपूर की लीड भूमिका वाली यह फिल्म एक महिला के साहस, जज्बे और देश सेवा के लिए पायलट बनने की कहानी है.

ये कहानी पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को किस तरह अपने सपने पूरे करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है. साथ ही जिंदगी के हर मोड़ पर उन्हें समझौता करना पड़ता है उस पर आधारित है. लेकिन गुंजन सक्सेना में करगिल वॉर की हीरो गुंजन सक्सेना के जिस जज्बे को दिखाना था उससे ये फिल्म कहीं दूर नजर आती है. इस फिल्म को हर लड़की को जरूर देखना चाहिए. ताकि वो ये समझ पाएं कि ये समाज लड़कियों के बारे में किस तरह की सोच रखता है. साथ ही इसके अलावा ऐसी फ़िल्में हमारे समाज में महिलाओं को किस नजरिए से देखा जाता है. इसके साथ ही ये फ़िल्म एक महत्वपूर्ण बात और बताती है कि महिलाओं की सफलता को उस नजरिए से नहीं देखा जाता जैसा कि पुरूषों की सफलता को देखा जाता है.

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गुंजन ने कारगिल के युद्ध के दौरान जो बहादुरी का कारनामा दिखाया था. उसे इस फिल्म में कहीं दूर छिटक दिया है. फिल्म में युद्ध के शॉट बहुत की ही कम डाले गए हैं. फिल्म में युद्ध की भूमिका बनाए बगैर गुंजन की बहादुरी को दिखा दिया है. मानों एक बच्चे ने शेर के मुह में हाथ डालने जैसा बहादुरी का काम किया हो लेकिन लोगों को ये पता ही न हो कि बच्चे ने किसके मुंह में हाथ डाला- शेर या लोमड़ी? क्योंकि शेर को दिखाया ही नहीं गया. फिल्म का क्लाइमेक्स बहुत ही फीका है.  गुंजन सक्सेना फ़िल्म देखकर लगेगा कि औरतों की सबसे बड़ी सफलता इसी में है कि आदमियों से भरी इस दुनिया में उन्हें स्वीकृति मिल जाए. पुरुष ये मान लें कि कोई औरत क़ाबिल हो सकती है. और इसी में उसकी सबसे बड़ी सफलता है.

दरअसल इस फ़िल्म को देखने पर लगता है कि फिल्म जहां ख़त्म हुई दरअसल वहाँ से शुरू होनी चाहिए थी.. !!

मतलब गुंजन सक्सेना ने कारगिल में क्या किया, कितने लोगों की जान बचाई, कितने मिशन लीड किए, कितने मिशन में क्या कुछ किया.. ये सब बताया जाएगा. क्या उसके लिए फ़िल्म में दस मिनट भी नहीं हो सकते थे?  गुंजन की सफलता, गुंजन की आईडेंटिटी, उसकी क़ाबिलियत क्या इतनी ही थी कि उसकी ज़िंदगी में और दुनिया के आदमी इस बात को मान जाए कि वो क़ाबिल है.

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फ़िल्म कई स्तरों पर भयानक तौर पर मेल गेज़ और मेल सेवियर कॉम्पैक्स में धंसी हुई है. फ़िल्म जितनी प्रभावशाली ढंग से गुंजन के बारे में होनी चाहिए थी, उससे कहीं ज़्यादा ये उसके जीवन के पुरुषों के बारे में रही. जैसे अगर गुंजन के पिता न होते तो गुंजन कॉलेज ही ना जाती, गुंजन के पिता न होते तो गुंजन सब छोड़कर शादी कर लेती, गुंजन को अच्छा  कमांडिंग ऑफ़िसर न मिलता जो आख़िर में उसे मौक़ा देता है तो शायद वो पायलट ही नहीं बनती, उसका ऑफ़िसर उसे कारगिल न भेजता तो वो जा ही नहीं पाती. रेस्क्यू मिशन में भी जब गुंजन को फ़ैसला करना है तो उसके कानों में उसके पिता और कमांडिंग ऑफ़िसर की ही आवाज़ें गूंज रही हैं. मतलब गुंजन के अपने जीवन में उसकी अपनी आवाज़ कहां है? गुंजन के जीवन में गुंजन ख़ुद कहां है?

अगर इस बात को भी मान लिया जाए कि आपके आसपास प्रिवलेज्ड प्रजाति जब आदमियों की है तो वही आपका मार्गदर्शन करेंगे, मौक़ा देंगे,ढाढ़स बँधाएँगे. लेकिन क्या उस सब में एक औरत का अपना कुछ भी नहीं है? क्या एक महिला ऑफ़िसर खुद की कोई सोच-समझ नहीं रखती. ऐसा लगता है यहां गुंजन खुद कुछ सोच ही नहीं सकती है. क्या एक औरत के भीतर कुछ भी करने के लिए, या करते वक़्त सिर्फ़ दो ही प्रभावी तत्व होते हैं… उसके जीवन के अच्छे आदमी या उसके जीवन के बेहद बुरे आदमी? इससे इतर उसकी अपनी चाहतें, फ़ैसले, समझ, ताक़त कुछ नहीं होता?

फ़िल्म में कितनी मूर्खतापूर्ण तरीक़े से उस लड़की के किरदार को बदल दिया है, जिसके जीवन पर आप फ़िल्म बना रहे हैं. ऐसा लगता है जैसे फ़िल्म कह रही है… कि लड़कियों तुम आगे बढ़ तो सकती हो, लेकिन किसी पुरूष की मर्जी और मदद के बिना नहीं.

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फ़िल्म ने मुद्दा ज़रूर ऐसा उठाया जिसमें वो औरत के स्ट्रगल और सक्सेस को दिखाने की कोशिश करते. लेकिन क्या करें, हमारी सोच वहीं तक रह जाती है कि हम सफ़ल औरत पर फ़िल्म बनाना तो चाहते हैं लकिन यहीं तक पहुँच पाते हैं कि जो आदमी उसे तबाह करने पर तुले थे, वो उसके लिए तालीबजाने लगें. इस फिल्म में गुंजन सक्सेना की जिंदगी की शानदार कहानी को पर्दे पर दिखाने में फिल्म निर्माता बिल्कुल फेल होते नजर आए है. एक बेहतरीन कहानी में बॉलीवुड का तड़का डाल कर फिल्म, एयरफोर्स को विलेन बना कर फिल्म में बहुत ज्यादा ड्रामा डाल दिया गया है.

गुंजन सक्सेना के रूप में जाह्नवी कपूर

इस फिल्म में भी जाह्नवी कपूर की बाकि फिल्मों की तरह गुंजन सक्सेना के किरदार को निभाते वक्त उनके चेहरे पर कोई एक्सप्रेशन नहीं दिखता. गुंजन के किरदार ने जाह्नवी कपूर ने बिलकुल भी न्याय नहीं किया है. पूरी फिल्म में वो डरी और सहमी लड़की नजर आ रही है. पूरी फिल्म में इनका चेहरा पीला पड़ा हुआ नजर आता है.

 

करण जौहर के धर्मा प्रोडक्शंस और जी स्टूडियो के बैनर तले बनी इस फ़िल्म को शरण शर्मा ने डायरेक्ट किया है . गुंजन सक्सेना फ़िल्म 12 जुलाई को नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है. गुंजन सक्सेना फ़िल्म में जान्ह्वी कपूर के साथ उनके पिता के किरदार में पंकज त्रिपाठी नजर आएंगे. साथ ही इस फिल्म में अंगद बेदी, विनीत कुमार सिंह और मानव विज प्रमुख भूमिका में हैं. धड़क और घोस्ट स्टोरीज के बाद जान्हवी कपूर की यह तीसरी फ़िल्म है. बता दें कि जान्हवी कपूर के लिए यह फ़िल्म उनके करियर की सबसे अहम फिल्म मानी जा रही है, क्योंकि यह वास्तविक किरदार और वास्तविक घटनाओं पर आधारित है.

कौन हैं कारगिल गर्ल गुंजन सक्सेना 

गुंजन सक्सेना भारतीय वायुसेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट रह चुकी हैं. उन्हें कारगिल गर्ल के नाम से जाना जाता है. गुंजन को उनकी वीरता, साहस और देशप्रेम के लिए शौर्य पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. गुंजन वो महिला है जिन्होंने डंके की चोट पर साबित किया कि महिलाएं न सिर्फ पायलट बन सकती है बल्कि जंग के मौदान में अपना लोहा भी मनवा सकती है.

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कारगिल युद्ध के दौरान गुंजन सक्सेना ने युद्ध क्षेत्र में निडर होकर चीता हेलीकॉप्टर उड़ाया था. इस दौरान वह सैनिकों को द्रास और बटालिक की ऊंची पहाड़ियों से उठाकर वापस सुरक्षित स्थान पर लेकर आईं. पाकिस्तानी सैनिक लगातार रॉकेट लॉन्चर और गोलियों से हमला कर रहे थे. गुंजन के एयरक्राफ्ट पर मिसाइल भी दागी गई लेकिन निशाना चूक गया और गुंजन बाल-बाल बचीं. इस दौरान गुंजन ने बिना किसी हथियार के पाकिस्तानी सैनिकों का मुकाबला किया. इसके अलावा कई जवानों को वहां से सुरक्षित भी निकाला. बता दें कि जब गुंजन हंसराज कॉलेज से ग्रेजुएशन कर रही थी तब उन्होंने दिल्ली का सफदरगंज फ्लाइंग क्लब ज्वाइन कर लिया था. उस समय उनके पिता और भाई दोनों ही भारतीय सेना में कार्यरत थे.

इसी ट्रेनिंग के दौरान गुंजन को पता चला कि IAF में पहली बार महिला पायलटों की भर्ती की जा रही है. फिर उन्होंने SSB परीक्षा पास की और भारयीय वायुसेना में बतौर पायलट शामिल हो गईं. उस वक्‍त सुरक्षा बलों में पुरुष अधिकारियों का ही वर्चस्व था और भारतीय वायुसेना में महिला अधिकारियों को पुरुषों के बराबर उड़ान भरने का मौका नहीं दिया जाता था. उस समय महिला अधिकारियों को लड़ाकू जेट उड़ाने की अनुमति नहीं थी, लेकिन उनके बैच की महिलाओं ने भारतीय वायुसेना में पहली बार विमान उड़ाकर इतिहास तो रच ही दिया था. हालांकि उस वक्‍त भारतीय वायुसेना में महिला पायलटों के लिए आरक्षण था.

हुंडई की इस गाड़ी का इंजन है बेहद खास

किसी भी कार की सबसे बड़ी खासियत का पता उसके इंजन से चलता है. तो अगर आप एक बढ़िया कार की तलाश में हैं तो नई हुंडई वरना में हुड BS6-compliant इंजन के तीन ऑप्शन हैं जो कार ग्राहकों इंप्रेस करने के लिए काफी हैं.

पहला 1.5-लीटर 113-bhp पेट्रोल इंजन है. स्टार्टर बटन से यह तुरंत ही स्टार्ट हो जाता है जिससे वरना कार को आसानी से ड्राइव किया जा सकता है. साथ ही इसमें मैनुअल और ऑटोमैटिक ट्रांसमिशन भी होता है.

तो आपको अब समझ आ गया होगा कि क्यों वरना #BetterThanTheRest है.

बहन की शादी में इस अंदाज में नजर आएं थे सुशांत सिंह राजपूत ,वीडियो हो रहा वायरल

सुशांत सिंह राजपूत भले ही आज हमारे बीच नहीं है लेकिन अपनी खूबसूरत परछाई अपने फैंस के लिए हमेशा के लिए छोड़कर गए हैं. सुशांत सिंह राजपूत अपने फैंस के दिल में हमेशा जिंदा रहेंगे. सुशांत के फैंस लगातार सुशांत के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं.

इन दिनों सुशांत का एक वीडियो लगातार वायरल हो रहा है जिसमें सुशांत बेहद ही ज्यादा खुश नजर आ रहे हैं. सुशांत सिंह राजपूत के इस वीडियो को खूब पसंद किया जा रहा है.

दरअसल, यह वीडियो सुशांत कि बहन श्वेता कृति सिंह के शादी का है जिसमें सुशांत बेहद ही शानदार अंदाज में एंट्री मारे थें. सुशांत का यह वीडियो सोशल मीडिया पर इन दिनों छाया हुआ है.

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इस वीडियो में सुशांत अपने पापा और बहनों के साथ नजर आ रहे हैं. सुशांत अपने जीजा विशाल कृति और श्वेता कृति को बुके देते नजर आ रहे हैं. सुशांत बेहद ही क्यूट अंदाज में दिख रहे हैं.

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इस वीडियो में सुशांत सिंह राजपूत के खुशी का ठिकाना नहीं है. काले रंग के कुर्ते में इनकी स्माइल सभी को पसंद आ रही है.

सुशांत अपनी बहनों के लाडले थें, वह अपनी बहनों से हर बात शेयर करते थें. सुशांत की बहन भी अपने भाई से हर बात शेयर करती थीं.

 

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ONCE AGAIN❤

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सुशांत के मृत्यु से कुछ दिन पहले ही उनकी बहन उनसे मिलकर वापस लौटी थीं. सुशांत अपने भाई-बहन के साथ जब भी मिलते थें जमकर मस्ती करते थें.

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सुशांत की फैमली उनके जानें के बाद पूरी तरह से टूट चुकी है. उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि वह अपने भाई को न्याय कैसे दिलाए. हालांकि सभी लोग लगातार सुशांत के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं.

सुशांत  कि आखिरी फिल्म दिल बेचारा कुछ दिनों पहले ही रिलीज हुई है. जिसमें सुशांत सिंह राजपूत रोमांस करते देखे गए हैं. इस फिल्म की केमेस्ट्री सभी फैंस को बहुत ज्यादा पसंद आ रही है.

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