खजूर जिस का वानस्पतिक नाम फीनिक्स डेक्रोलीफेरा है की सब से पहले व्यावसायिक खेती इराक में शुरू हुई. आज खजूर की खेती इराक, सऊदी अरब, ईरान, मिस्र, लीबिया, पाकिस्तान, मोरक्को, ट्यूनीशिया, सूडान, संयुक्त अमेरिका व स्पेन में भी की जाती है. भारत खजूर का सब से बड़ा आयातक देश है. खजूर का इस्तेमाल छुहारा, सिरका, अचार, तरल शुगर, जूस,  चीनी, स्टार्च, टौफियां और शराब बनाने में किया जाता?है. इस की गुठली से पोल्ट्री आहार बनाया जाता है और पत्तियों से?टोकरियां, कागज,?झाड़ू व रस्सी बनाई जाती है. खजूर खून की कमी व अंधेपन जैसी बीमारियों से बचाता है. राजस्थान के बाड़मेर जिले के चोइटन तहसील के आलमसर गांव के किसान सादुलाराम सियोल ने खजूर के गुणों को देख कर इस को अपने खेत में लगाने की सोची. सब से पहले 2010 में खजूर की बरही किस्म लगाने का मन बनाया. बागबानी विभाग से संपर्क कर के अतुल कंपनी के बरही किस्म के 312 पौधे 2 हेक्टेयर रकबे में लगाए. बागबानी विभाग से 3000 रुपए के पौधे पर 2700 रुपए का लाभ लेते हुए प्रति पौधा 300 रुपए में ले कर बरही किस्म के पौधे लगाए.

ये भी पढ़ें- कीटनाशकों के इस्तेमाल में बरतें सावधानी

बरही किस्म का वृक्षारोपण मार्च 2010 में किया. पौधे से पौधे की दूरी 8 मीटर और कतार से कतार की दूरी 8 मीटर रखते हुए 1 हेक्टेयर में 156 पौधे लगाए. इस तरह कुल 2 हेक्टेयर में 312 पौधे लगाए. बरही खजूर में प्रथम फलावन थोड़े पेड़ों पर आया. बाजार में बाड़मेर और सियोल कृषि फार्म के बाहर ही अधपकी अवस्था में सुनहरे पीले रंग के सभी फल मीठे होने की वजह से वहीं पर बिक गए. पहले साल करीब साढ़े 3 लाख की कमाई हुई. 2011 में खजूर की दूसरी किस्म मैडजूल के 1 हेक्टेयर क्षेत्र में 8×8 मीटर की दूरी पर 156 पौधे लगाए. इस के फलों का रंग अधपकी अवस्था में पीला नारंगीपन लिए होता है. इस के फल काफी बड़े होते हैं. इस के फल का वजन करीब 22.8 ग्राम होता है और बरही किस्म के फल का वजन करीब 13.6 ग्राम होता है. मैडजूल के फल पहली बार 2015 में आए. करीब 57 क्विंटल मैडजूल का उत्पादन मिला. मैडजूल नस्ल के खजूर महंगे बिकते हैं. इन्हें किंग औफ डेट्स कहते हैं. काले रंग के खजूरों को लोग बहुत पसंद करते हैं. प्रति किलोग्राम 500 रुपए तक लोगों ने खरीदा, इन्हें आसपास के बाजारों में बिका. उस के अलावा मुंबई और हैदराबाद के व्यापारियों से संपर्क कर के माल बेचा. ऐसे व्यापारी भी हैं, जो कहते हैं कि हम इस को 1500 रुपए प्रति किलोग्राम भी खरीद लेंगे. सादुलाराम बताते हैं कि अब प्रति पौधा गोबर की खाद अक्तूबर में 50 किलोग्राम और जनवरी में 50 किलोग्राम देते हैं. फरवरी में एनपीके 18:18:18 एक फीसदी घोल का पौधों पर पर्णीय छिड़काव करते हैं. फरवरीमार्च में फूल आने लगते?हैं और जून से जुलाई के बीच फल पकते हैं. फलों को तोड़ कर बाजार में बेच देते हैं. इस की पत्तियां झाड़ू बनाने वाले ले जाते हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...