बसपा प्रमुख मायावती अब राजनीति नहीं कर रहीं बल्कि भाजपा की खुशामद ज्यादा कर रहीं हैं जिसमें उनके व्यक्तिगत स्वार्थ और आर्थिक हित भी हैं . इस सच से परे तय है वे वह दौर नहीं भूली होंगी जब 80 - 90 के दशक में उनके राजनैतिक गुरु और अभिभावक बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम का एक थिंक टेंक हुआ करता था जिसका फुल टाइम काम धर्म ग्रन्थ पढ़ कर उनमें से ऐसे तथ्य और उदाहरण छांटना होता था जिनमे दलितों को तरह तरह से प्रताडित करने के स्पष्ट संदर्भ और निर्देश हैं .
कांशीराम ने सार निकाला और नारा दिया , तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार और भाजपाइयों के लिए एक नया शब्द दिया मनुवादी . लेकिन उन्हें सपने में भी उम्मीद नहीं रही होगी कि जिस तेजतर्रार सांवली युवती को वे दलित हितों , उत्तरप्रदेश और बसपा की कमान सौंप रहे हैं कभी वही उनकी मेहनत और मुहिम का सौदा मनुवादियों से करेगी .
अयोध्या में राम मंदिर बन रहा है और पूरे जोर शोर से 5 अगस्त की तैयारियां भी कोई 5 -6 करोड़ सवर्ण कर रहे हैं . लेकिन यह जोश उन 23 करोड़ दलितों में नहीं है जिनके पास दियों में जलाने तो दूर दाल बघारने के लिए भी तेल नहीं है और जिनका राम लक्ष्मण , सीता , हनुमान और रावण भी सिर्फ रोटी होता है . उनकी अयोध्या उनका झोपड़ा होती है . खैर इस फलसफे से परे एक दिलचस्प और हैरतअंगेज बात मायावती के राम मंदिर से पैदा होते सरोकार हैं .