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जौ की आधुनिक उन्नत खेती

भारत के अलावा अर्जेंटीना, फ्रासं, कनाडा, रूस, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, जर्मनी, तुर्की व यूक्रेन वगैरह देशों  में भी जौ की खेती की जाती है. यह गेहूं से ज्यादा सहनशील पौधा है. इसे कई तरह की मिट्टियों में उगाया जा सकता है. जौ का भूसा चारे के काम में लाया जाता  है. यह हरा व सूखा दोनों रूपों में जानवरों को खिलाने में इस्तेमाल किया जाता है.  सिंचित दशा में जौ की खेती गेहूं के मुकाबले ज्यादा फायदेमंद है.

बीज : जौ की बोआई के लिए जो बीज प्रयोग में लाया जाए, वह रोग मुक्त, प्रमाणित व इलाके के मुताबिक उन्नत किस्म का होना चाहिए. बीजों में किसी दूसरी किस्म के बीज नहीं मिले होने चाहिए. बोने से पहले बीज के अंकुरण फीसदी का परीक्षण जरूर कर लेना चाहिए. यदि जौ का प्रमाणित बीज न मिले तो बीजों का उपचार जरूर करना चाहिए.

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खेत की तैयारी : जौ की बोआई के लिए 2-3 बार देशी हल या तवेदार हल से जुताई करनी चाहिए. मिट्टी को भुरभुरा कर देना चाहिए, जिस से बीजों का अंकुरण अच्छी तरह से हो सके.

बोने का समय : जौ रबी मौसम की फसल है, जिसे सर्दी के मौसम में उगाया जाता है. उत्तराखंड के अलगअलग भागों में जौ का जीवनकाल अलगअलग रहता है. आमतौर पर जौ की बोआई अक्तूबर से दिसंबर तक की जाती है. असिंचित क्षेत्रों में 20 अक्तूबर से 10 नवंबर तक जौ की बोआई करनी चाहिए, जबकि सिंचित क्षेत्रों में 25 नवंबर तक बोआई कर देनी चाहिए. पछेती जौ की बोआई 15 दिसंबर तक कर देनी चाहिए.

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बीज की मात्रा : असिंचित क्षेत्रों में जौ के बीज की मात्रा 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है. सिंचित क्षेत्रों में जौ के बीज की मात्रा 75 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है. पछेती जौ की बोआई  लिए बीज की मात्रा 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है.

बोआई की विधि : जौ की बोआई छिटकवां विधि व लाइन में की जाती है. छिटकवां विधि में हाथ से पूरे खेत में बीजों को बिखेर दिया जाता है. इस विधि से पूरे खेत में एकसमान बीज नहीं गिर पाते हैं, लिहाजा बोआई लाइनों में करें. जागरूक किसान जौ की बोआई हल के पीछे लाइनों में करते हैं या खेत तैयार हो जाने पर डिबलिंग विधि द्वारा बीज बोते हैं. जौ की बोआई के लिए लाइन से लाइन की दूरी 23 सेंटीमीटर व बीज की गहराई 5 से 6 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. असिंचित दशा में अच्छे जमाव के लिए बीज की गहराई 7 से 8 सेंटीमीटर रखनी चाहिए.

खाद व उर्वरक : जौ की अच्छी पैदावार खाद व उर्वरक की मात्रा पर निर्भर करती है. जौ में हरी खाद, जैविक खाद व रासायनिक खाद का इस्तेमाल किया जाता है. खाद व उर्वरक की मात्रा जौ की किस्म, बोने की विधि, सिंचाई की सुविधा वगैरह पर निर्भर करती है.जौ की खेती के लिए असिंचित जमीन में 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस व 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के समय लाइन में बीज के नीचे डालते हैं. सिंचित जमीन में 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फोरस व 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई  समय लाइन में बीज के नीचे डालते हैं. 30 किलोग्राम नाइट्रोजन पहली सिंचाई के समय टापड्रेसिंग के रूप में डालते हैं. इस के अलावा हलकी जमीन के लिए 20 से 30 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाला जाता है. अच्छी उपज के लिए 40 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करते हैं. जौ की पछेती बोआई के लिए खेत में 30 किलोग्राम नाइट्रोजन व 30 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के समय लाइन में बीज के नीचे डालते हैं और 30 किलोग्राम नाइट्रोजन पहली सिंचाई क समय टापड्रेसिंग के रूप में डालते हैं. ऊसर जमीन में 20 से 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करते हैं.

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सिंचाई : फसल में 2 बार सिंचाई की जाती है. पहली सिंचाई कल्ले फूटते समय बोआई के 30 से 35 दिनों बाद करनी चाहिए और दूसरी सिंचाई दुग्धावस्था के समय करते हैं. यदि पानी की कमी हो तो जौ के खेत में 1 बार ही सिंचाई करनी चाहिए. यह सिंचाई कल्ले फूटते समय बोआई के 30-35 दिनों बाद करनी चाहिए. माल्ट के लिए जौ के खेत में 1 बार अतिरिक्त सिंचाई की जरूरत होती है. ऊसर जमीन में पहली बार कल्ले फूटते समय, दूसरी बार गांठ बनते समय और तीसरी बार दाना पड़ते समय सिंचाई करनी चाहिए.

खरपतवारों की रोकथाम : जौ की फसल में तमाम खरपतवार लगते हैं, जो फसल के लिए घातक हैं. लिहाजा इन की समय पर रोकथाम करने से ही ज्यादा लाभ होता है. जौ के खेत में चौड़ी पत्ती वाले और संकरी पत्ती वाले खरपतवारों का ज्यादा प्रकोप होता है. रोकथाम के लिए खरपतवारनाशी का इस्तेमाल करना चाहिए. चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की रोकथाम के लिए 2,4 डी इथाइल ईस्टर 36 फीसदी की 1.4 किलोग्राम मात्रा या 2,4 डी लवण 80 फीसदी की 0.625 किलोग्राम मात्रा को 700 से 800 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के 1 महीने बाद छिड़काव करना चाहिए. संकरी पत्ती वाले खरपतवारों का ज्यादा प्रकोप होने पर जौ की फसल नहीं उगानी चाहिए.

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रोग व उन की रोकथाम

आवृत कंडुआ रोग : आवृत कंडुआ रोग में जौ की बालियों में दानों के स्थान पर फफूंदी के काले बीजाणु बन जाते हैं, जो मजबूत झिल्ली से ढक जाते हैं.

अनावृत कंडुआ रोग : अनावृत कंडुआ रोग में जौ की बालियों में दानों के साथ में काला चूर्ण बन जाता है, जो सफेद रंग की झिल्ली के ढका रहता है. बाद में झिल्ली के फट जाने पर फफूंद के तमाम जीवाणु हवा में फैल जाते हैं.

रोकथाम

* इन रोगों की रोकथाम के लिए जौ के प्रमाणित बीजों की ही बोआई करनी चाहिए.

* कार्बंडाजिम 50 फीसदी घुलनशील चूर्ण या कार्बोरिल 75 फीसदी घुलनशील चूर्ण की 25 ग्राम मात्रा से बीजों को प्रति किलोग्राम की दर से शोधित कर के बोआई करनी चाहिए.

पत्तीधारी रोग : पत्तीधारी रोग में जौ की नसों के बीच हरापन खत्म हो कर पीली धारियां बन जाती हैं, जो बाद में गहरे रंग में बदल जाती हैं. इन से फफूंदी के तमाम जीवाणु बन जाते हैं.

रोकथाम

*  पत्तीधारी रोग की रोकथाम के लिए जौ के प्रमाणित बीजों की ही बोआई करनी चाहिए. रोग के दिखते ही रोगी पौधे को उखाड़ कर जला देना चाहिए.

* यह आंतरिक बीजजनित रोग है, लिहाजा बीजों को थीरम 2.5 ग्राम से प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित कर के बोआई करनी चाहिए. धब्बेदार व जालिकावत धब्बा रोग : धब्बेदार व जालिकावत धब्बा रोग में जौ की पत्तियों में अंडाकार भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं, जो पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं. कई धब्बे आपस में मिल कर धारियां बना लेते हैं.

* इस की रोकथाम के लिए फफूंदीनाशक कार्बंडाजिम 50 फीसदी घुलनशील चूर्ण या कर्बाक्सीन 75 फीसदी घुलनशील चूर्ण की 25 ग्राम मात्रा से बीजों को प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित कर के बोआई करनी चाहिए.

कीट व उन की रोकथाम

जौ की फसल में दीमक, गुजिया व माहू वगैरह कीट लगते हैं. इन की रोकथाम के लिए कीटनाशक रसायनों या नीम के बने कीटनाशकों का इस्तेमाल करना चाहिए.

कटाई व भंडारण : जौ की फसल में कटाई  काम सुबह या शाम के समय करना चाहिए. बालियों के पक जाने पर फसल को तुरंत काट लेना चाहिए. इस के बाद मड़ाई कर के भंडारण करना चाहिए. सुरक्षित भंडारण के लिए दानों में 10 से 12 फीसदी से ज्यादा नमी नहीं होनी चाहिए. भंडारण से पहले कमरों को साफ कर के उन की दीवारों व फर्श पर मैलाथियान 50 फीसदी के घोल का 3 लीटर प्रति 100 वर्गमीटर की दर से छिड़काव करते हैं. जौ का भंडारण करने के बाद एल्युमीनियम फास्फाइड 3 ग्राम की 2 गोलियां प्रति टन की दर से रख कर कमरे को बंद कर देना चाहिए. जौ के औषधीय इस्तेमाल : गेहूं के साथ जौ और चने को बराबर मात्रा में मिला कर आटे की रोटी खाने से मोटापा कम होता है.  जौ गरमी से नजात दिलाता है और ब्लड प्रेशर को काबू करता है. यह हाइड्रोजन सल्फाइड व नाइट्रिक आक्साइड जैसे रासायनिक पदार्थों को बढ़ाता है, जिस से खून की नसें तनावमुक्त हो जाती हैं. लिहाजा इसे खाने  से रक्तचाप, मधुमेह, पथरी वगैरह में फायदा होता है. जौ में पाए जाने वाले खास गुण निम्न प्रकार हैं :

* जौ के आटे में धनिया की हरी पत्तियों का रस मिला कर लगाने से कंठमाला ठीक हो जाती है. इसी तरह जौ का दलिया दूध के साथ खाने से मूत्राशय संबंधी दिक्कतें दूर हो जाती हैं.

* छिलका निकली जौ को भून कर व पीस कर शहद व पानी के साथ सत्तू बना कर कुछ दिनों तक लगातार खाने से मधुमेह की बीमारी में फायदा होता?है. दूध व घी के साथ जौ का दलिया लगातार खाने से भी मधुमेह में फायदा होता है.

* शरीर में जलन हो रही हो तो जौ का सत्तू खाना चाहिए. यह गरमी को शांत कर के ठंडक पहुंचाता है और शरीर को शक्ति देता है. जौ व मूंग का  सूप पीने से आंतों की गरमी शांत हो जाती है.

* थोड़ा सा जौ कूट कर पानी में भिगो कर कुछ समय बाद पानी निथार कर उसे गरम कर के उस के कुल्ले करने से गले की सूजन दूर हो जाती है.

* अधपके या कच्चे जौ को कूट कर दूध में पका कर उस में जौ का सत्तू, मिश्री, घी, शहद व थोड़ा सा दूध मिला कर पीने से बुखार की गरमी शांत होती है

* जौ को पानी में भिगो कर, कूट कर, छिलका निकाल कर उसे दूध में खीर की तरह पका कर खाने से शरीर तंदुरुस्त होता?है.

* जौ का पानी पीने से पथरी निकल जाती है, लिहाजा पथरी के रोगियों को जौ से बने पदार्थों का भरपूर इस्तेमाल करना चाहिए.

* जौ का छना आटा, तिल व चीनी को बराबर मात्रा में ले कर महीन पीस कर शहद के साथ मिला कर चाटने से गर्भपात किया जा सकता है.

* जौ की राख को शहद के साथ चाटने से खांसी ठीक हो जाती है. जौ के बारीक पीसे आटे में अंजीर का रस मिला कर सूजन वाली जगह पर लगाने से फायदा होता?है.

 

Crime Story: खतरनाक मोड़

लेखक- आर.के. राजू  

सौजन्या- मनोहर कहानियां

बात 17 जून, 2020 की है. हरथला पुलिस चौकी के इंचार्ज वीरेंद्र सिंह राणा को किसी ने फोन
कर के सूचना दी कि सोनकपुर कालोनी में एक छात्रा की संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो गई है और उस के घर वाले आननफानन में उस का दाह संस्कार करने की तैयारी कर रहे हैं. फोन करने वाले ने यह भी बताया कि छात्रा का किसी से प्रेम प्रसंग चल रहा था. हरथला पुलिस चौकी महानगर मुरादाबाद के थाना सिविललाइंस के अंतर्गत आती है. सूचना महत्त्वपूर्ण थी, इसलिए यह खबर थानाप्रभारी नवल मारवाह को देने के बाद चौकी इंचार्ज वीरेंद्र सिंह राणा सोनकपुर कालोनी पहुंच गए.

वहां जाने पर पता चला कि जबर सिंह की बेटी संगीता की मौत हुई है. एसआई वीरेंद्र सिंह जबर सिंह के घर पहुंच गए. वहां घर के बाहर कालोनी के काफी लोग जमा थे और अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी.पुलिस को आया देख कर लोग आश्चर्यचकित हो कर देखने लगे. एसआई वीरेंद्र सिंह ने सब से पहले जबर सिंह से पूछताछ की. उस ने बताया कि उस की बेटी संगीता कई दिनों से  बीमार थी, जिस से बीती रात उस की मृत्यु हो गई.

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लेकिन जब उन्होंने संगीत की लाश का मुआयना किया तो उस के गले पर दबाव जैसे निशान दिखाई दिए. इस से उन्हें यह मामला संदिग्ध लगा. उन्होंने पुलिस अधिकारियों के आने तक अंतिम संस्कार की काररवाई रुकवा दी. यह जानकारी उन्होंने थानाप्रभारी मारवाह को भी दे दी.थानाप्रभारी ने इस घटना से उच्चाधिकारियों को अवगत करा दिया. चूंकि मामला मुरादाबाद शहर का था, इसलिए थानाप्रभारी नवल मारवाह के अलावा एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद, सीओ (सिविल लाइंस) दीपक भूकर भी मौके पर पहुंच गए.

मृतका संगीता की लाश का मुआयना करने के बाद एसपी अमित कुमार आनंद ने जबर सिंह से बात की तो उस ने उन्हें भी बेटी के मरने की वजह बीमारी बताई. लेकिन जब एसपी साहब ने उस से पूछा कि संगीता को इलाज के लिए किस डाक्टर के पास ले गए थे तो जबर सिंह चुप रह गया.इस से पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि दाल में जरूर काला है. लिहाजा उन्होंने थानाप्रभारी को निर्देश दिए कि लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने की तैयारी करें. पोस्टमार्टम के बाद ही मौत की वजह पता चलेगी.

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एसपी (सिटी) अमित कुमार के आदेश पर थानाप्रभारी ने संगीता की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. साथ ही उन्होंने मृतका के घर वालों के बयान भी दर्ज किए. संगीता के घर वालों ने पुलिस को बताया कि कल रात घर के सभी लोग छत पर सोने चले गए थे. संगीता नीचे के कमरे में सो रही थी. सुबह जब सब छत से नीचे आए तो संगीता अपने बिस्तर पर मृत पड़ी मिली. रात में उस की मृत्यु कैसे हो गई, किसी को पता नहीं चला. बयान दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी थाने लौट गए.

17 जून की शाम को जब पुलिस को संगीता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो हकीकत सामने आ गई. रिपोर्ट में बताया गया था कि गला घोंट कर उस की हत्या की गई थी. इस से स्पष्ट हो गया कि संगीता के घर वाले पुलिस से झूठ बोल रहे थे. मृतका के शरीर पर चोटों के निशान भी पाए गए. यानी उस के साथ मारपीट भी की गई थी.

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थानाप्रभारी ने इस बारे में एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद को अवगत कराया. उन के आदेश पर हरथला पुलिस चौकी इंचार्ज वीरेंद्र कुमार राणा की तरफ से थाने में अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.
पुलिस को हत्या का शक संगीता के घर वालों पर ही था, लिहाजा पुलिस ने संगीता के पिता जबर सिंह को थाने बुला कर उस से सख्ती से पूछताछ की. उस ने बताया कि संगीता ने मोहल्ले में उस का जीना मुश्किल कर दिया था. इसलिए उसे मारने के अलावा उस के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था. जबर सिंह से पूछताछ के बाद संगीता की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

जिला मुरादाबाद के सिविल लाइंस थानाक्षेत्र में एक कालोनी है सोनकपुर. इसी कालोनी में जबर सिंह अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी जगवती के अलावा एक बेटी व 2 बेटे थे. जबर सिंह राजमिस्त्री था. इसी काम से होने वाली आमदनी से उस ने अपने सभी बच्चों को पढ़ाया. संगीता बीए की पढ़ाई कर रही थी और पढ़ाई में काफी होशियार थी.

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संगीता का एक दूर का रिश्तेदार था राजकुमार, जो उत्तर प्रदेश परिवहन निगम में संविदा पर ड्राइवर था. वह भी उसी कालोनी में रहता था. उसका जबर सिंह के यहां खूब आनाजाना था. रिश्ते में वह संगीता का भाई लगता था. संगीता और राजकुमार हमउम्र थे, इसलिए उन दोनों की आपस में खूब पटती थी.
राजकुमार जब भी आता, संगीता से ही ज्यादा बतियाता था. इसी बातचीत के दौरान दोनों के बीच प्यार हो गया. दोनों यह भी भूल गए कि उन के बीच भाईबहन का रिश्ता है. पिछले 5 सालों से उन के बीच यह सिलसिला चल रहा था. इस दौरान उन्होंने अपनी हसरतें भी पूरी कर ली थीं. संगीता के घर वालों को इस की भनक तक नहीं लगी.

यह बात उन्हें तब पता चली जब संगीता के पिता जबर सिंह उस की शादी के लिए लड़का ढूंढने लगे. तब संगीता ने हिम्मत जुटा कर अपने घर वालों को बताया कि वह राजकुमार से प्यार करती है और उसी से शादी करेगी.  बेटी की यह बात सुन कर जबर सिंह के पैरों तले से जमीन खिसक गई. क्योंकि जिस के साथ वह शादी करने की बात कह रही थी, वह उन का रिश्तेदार था. रिश्तेदार के साथ उस की शादी कैसे हो सकती थी. वैसे भी वे दोनों आपस में भाईबहन थे. संगीता के मातापिता ने उसे बहुत समझाया लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी रही.

घर वाले संगीता को लाख समझा रहे थे लेकिन वह अपनी जिद नहीं छोड़ रही थी. तब जबर सिंह ने राजकुमार के घर वालों से बात की और कहा कि वह राजकुमार को समझाएं कि वह संगीता का पीछा छोड़ दे. घर वालों ने जब राजकुमार को समझाया तो इतना हुआ कि उस ने संगीता के घर जाना बंद कर दिया. लेकिन कुछ दिनों बाद संगीता और राजकुमार ने घर के बाहर मिलना शुरू कर दिया.किसी तरह जबर सिंह को यह बात पता चली तो उस ने अपने रिश्तेदारों और कालोनी के खास लोगों को बुला कर पंचायत बैठाई. पंचायत में संगीता और राजकुमार को भी बुलवाया गया. पंचायत के सामने दोनों ने वादा किया कि वे भविष्य में नहीं मिलेंगे. इस के बाद दोनों का मिलनाजुलना बंद हो गया. संगीता भी सामान्य हो कर घर के कामों में हाथ बंटाने लगी.

जब घर का माहौल सामान्य हो गया तो जबर सिंह संगीता के लिए फिर से वर की तलाश में जुट गया. इस की जानकारी संगीता को हुई तो उस ने फिर से अपना राग अलापना शुरू कर दिया. उस ने जिद पकड़ ली कि वह राजकुमार के अलावा हरगिज किसी और से शादी नहीं करेगी. यानी उस ने अपने घर वालों की चिंता फिर से बढ़ा दी. इतना ही नहीं, उस ने घटना से 8 दिन पहले खानापीना तक छोड़ दिया.
ऐसे में रिश्तेदारों और कालोनी की महिलाओं ने संगीता को समझाया, ‘‘तू जिस राजकुमार के साथ शादी करने की जिद कर रही है वह तो रोडवेज में केवल ड्राइवर है, वह भी ठेके पर. तू तो अच्छीखासी पढ़ीलिखी है तेरे लिए तो कोई ढंग की नौकरी वाला लड़का भी मिल जाएगा. इसलिए तू राजकुमार के चक्कर में मत पड़, बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे.’’

इतना समझाने के बाद भी वह टस से मस नहीं हुई. वह बोली, ‘‘मैं ने राजकुमार को अपना सब कुछ सौंप दिया है. या तो मर जाऊंगी या फिर शादी उसी से करूंगी.’’

लाख समझाने पर भी न तो उस ने खाना खाया और न ही राजकुमार से शादी करने की जिद छोड़ी. इसी दौरान मौका मिलने पर वह अपने घर से भाग कर प्रेमी राजकुमार के घर चली गई.
घर वालों के लिए यह बहुत बड़ा धक्का था. पिता जबर सिंह ने गुस्से में कह दिया कि वह चली गई तो आज से हमारा उस से कोई संबंध नहीं है. आसपड़ोस के लोगों और कुछ रिश्तेदारों ने जबर सिंह को समझाया कि जा कर अपनी बेटी को घर ले आओ, अभी कुछ नहीं बिगड़ा है.
कुछ ने सलाह दी कि पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दो. कुछ लोगों ने कहा कि रिपोर्ट लिखवाने से कोई फायदा नहीं है. दोनों बालिग हैं. अगर संगीता ने तुम्हारे खिलाफ बयान दे दिया तो तुम लोग उलटे फंस सकते हो.

ऐसे में जबर सिंह परेशान हो गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए. उस ने अपनी पत्नी और बेटों से इस बारे में बात की. सभी ने यह निर्णय लिया कि राजकुमार के घर जा कर संगीता को घर लाया जाए, क्योंकि उस के वहां जाने के बाद बहुत बदनामी हो रही थी.

16 जून, 2020 को संगीता के घर वाले राजकुमार के घर पहुंचे. उन्होंने संगीता को समझाया कि वह अभी घर चले. पूरे रीतिरिवाज के साथ वह उस की शादी राजकुमार से कर देंगे. घर वालों पर विश्वास कर के संगीता उन के साथ घर आ गई.घर आने पर घर वालों ने उसे समझाना चाहा कि वह राजकुमार से शादी करने की जिद छोड़ दे. इस बात पर घर वालों से उस का झगड़ा व मारपीट हुई.

संगीता के घर वाले उस से बहुत परेशान हो चुके थे, लिहाजा उन्होंने इस मामले को हमेशा के लिए खत्म करने की योजना बनाई. योजना के अनुसार, 17 जून की रात में जबर सिंह और उस के बेटे सचिन ने संगीता की गला घोंट कर हत्या कर दी.हत्या करने के बाद उन्होंने उस की लाश बैड पर डाल दी और सोने के लिए छत पर चले गए.सुबह होते ही वे लोग छत से नीचे आए और घर में रोनाधोना शुरू हो गया. रोने की आवाज सुन कर मोहल्ले वाले जबर सिंह के घर पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि बीमारी की वजह से संगीता की मौत हो गई है. फिर आननफानन में संगीता के दाह संस्कार की तैयारी शुरू हो गई.
जब संगीता की मौत का पता उस के प्रेमी राजकुमार को लगा तो उस ने इस मामले की सूचना पुलिस चौकी हरथला में दी. उस के बाद पुलिस मौके पर पहुंची.

जबर सिंह से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के बेटे सचिन को भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. इस के बाद पुलिस ने दोनों आरोपियों को 19 जून को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. घटना के बाद मुरादाबाद के नए एसएसपी प्रभाकर चौधरी ने चार्ज संभाला तो उन्होंने नए पुराने केसों की फाइलें देखनी शुरू कीं.

जब उन्होंने संगीता मर्डर केस की फाइल का अवलोकन किया तो इस औनर किलिंग के मामले में उन्हें संगीता की मां जगवती की भी संलिप्तता नजर आई. एसएसपी के आदेश पर 29 जून को मृतका की मां जगवती को भी हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर उसी दिन जेल भेज दिया.

Hyundai Creta का खास है Interior

हुंडई क्रेटा की इस नई पीढ़ी के लिए नया एनालॉग रीव्यू काउंटर और फ्यूल गेज द्वारा लगाए गए इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर में एक डिजिटल डिस्प्ले लेकर आई है, जिसकी स्क्रीन बहुत ही सुविधाजनक है. हुंडई क्रेटा के इस इंटीरियर के साथ आप ड्राइवर के मूड के हिसाब से कलर में बदलाव कर सकते हैं.

यह फीचर ड्राइवर को एक बड़े, आसानी से पढ़े जाने वाले फौर्मेट में जानकारी उपलब्ध कराता है, जिससे हुंडई क्रेटा का सफर खूबसूरत हो जाता है. इसीलिए #RechargeWithCreta.

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इस दिन रिलीज होगी शरद मल्होत्रा और मधुरिमा तुली की शार्ट फिल्म “पास्ता”

“बनूं मैं तेरी दुल्हन” सहित कई लोकप्रिय टीवी सीरियलों में अभिनय कर चुके अभिनेता शरद मल्होत्रा अब  डिजिटल माध्यम में प्रवेश कर रहे हैं. जी हां! शरद मल्होत्रा और “बिग बॉस 13” की प्रतिभागी रही मधुरिमा तुली ने एक लघु फिल्म “पास्ता” में अभिनय किया है, जो कि अब 25 सितंबर को मौलिक कंटेंट के रूप में “उल्लू” ऐप पर आएगी.

वैसे शरद मल्होत्रा इन दिनों सीरियल “नागिन 5” में वीर के किरदार में नजर आ रहे हैं. अपने अब तक के कैरियर में शरद मल्होत्रा पहली बार  “नागिन 5” में  नकारात्मक किरदार  किरदार में नजर आ रहे हैं.

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“हमाया पिक्चर्स” और “हम तुम टेलीविजन” द्वारा निर्मित तथा विभूति नारायण द्वारा लिखित व निर्देशित लघु फिल्म  “पास्ता” एक रोमांटिक फिल्म है. कुछ दिन पहले यह फिल्म बॉलीवुड की हस्तियों को दिखाई गयी. जिन्होंने फिल्म की काफी तारीफ की. इस पर शरद मल्होत्रा कहते हैं-“मैं निर्माता और निर्देशक का शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मुझे इस बेहतरीन फिल्म का हिस्सा बनने का अवसर दिया. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान मैंने व मधुरिमा तुली ने काफी मजे किए.”

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फिल्म “पास्ता” की कहानी एक शहरी दंपति की है, जो अपनी व्यस्त जिंदगी की वजह से तमाम समस्याओं से जूझ रहा है.  “पास्ता” कहानी है युवा उद्योगपति अनंत (शरद मल्होत्रा) और उनकी कामकाजी पत्नी निम्मी (मधुरिमा तुली) की. दोनों अपने काम में इस कदर व्यस्त रहते हैं ,कि उनके बीच बातचीत भी नहीं होती है. इस लघु फिल्म  में इस बात का चित्रण है कि पति पत्नी के बीच एक छोटी सी ना समझी उनके संबंधों को बर्बाद कर सकती हैं.

लखनऊ में होगी जॉन अब्राहम की फिल्म ‘‘सत्यमेव जयते-2’’ की शूटिंग

सरकार द्वारा लॉकडाउन प्रतिबंधों में ढील दिए जाने के बाद कई फिल्मकारों और प्रोडक्शन हाउसों ने सुरक्षा मानदंडों को बनाए रखते हुए अपनी नई फिल्मों पर काम करना  शुरू कर दिया है. ऐसे ही वक्त में निर्देशक मिलाप झवेरी अपनी नई फिल्म‘‘सत्यमेव जयते 2’’की पटकथा में कुछ बदलाव करने के साथ ही इसे निखारने में जुट गए हैं. इसे लखनऊ में फिल्माया जाएगा.‘टी सीरीज’,जौन अब्राहम और एमे एंटरटेनमेंट द्वारा निर्मित इस फिल्म को 12 मई 2021 को ईद पर सिनेमाघरो में पहुॅचाने की योजना बनायी गयी है.

2019 में प्रदर्शित फिल्म‘‘ सत्यमेव जयते’’के बाद अब इसका सीक्वअल बनाया जा रहा है.‘‘सत्यमेव जयते’’को मिली सफलता के बाद  ही जौन अब्राहम, मिलाप झवेरी और निर्माताओं ने इसका सीक्वअल बनाने का निर्णय ले लिया था. पहले भाग में भी मुख्य मुख्य भूमिका जौन अब्राहम ने निभायी थी और अब सीक्वअल में भी जाॅन अब्राहम ही मुख्य भूमिका में होंगे.मगर इस बार जौन अब्राहम की जोड़ी दिव्या खोसला कुमार के साथ होगी.

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जहां पहली फिल्म भ्रष्टाचार से निपटती थी, वहीं यह फिल्म पुलिस से लेकर राजनेताओं, उद्योगपतियों और आम आदमी तक सभी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार से निपटती है.

पहले फिल्म की कहानी की पृष्ठभूमि मुंबई थी और इसे मुंबई मे ही फिल्माया जाना था,मगर कोरोना महामारी की वजह से अब कहानी को बदलकर उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में फिल्माया जाएगा. इस संबंध में निर्देशक मिलाप कहते हैं, ‘’रचनात्मक रूप से हमने पटकथा  को बदलकर लखनऊ कर दिया. क्योंकि इससे हमें इसे बड़े पैमाने पर बनाने का मौका मिलेगा और कैनवास को भी बड़ा बनाया जा सकेगा. देखने मे भी लखनऊ पैमाने और भव्यता को जोड़ता है.

इस फिल्म का एक्शन दस गुना ज्यादा गतिशील, पावरफुल और दमदार होने वाला है. जॉन अब्राहम इस फिल्म में जिस तरह की तोड़, फोड़,चीरकर भ्रष्टाचार सफाया करते नजर आएंगे,वैसा उन्होने ऐसा सिनेमा के परदे पर पहले कभी नहीं किया है. दिव्या खोसला कुमार अपने पावरफुल दृश्यों, नाटकीय कौशल, अनुग्रह और सौंदर्य के साथ दर्शकों को चैंकाने वाली है.‘ सत्यमेव जयते 2’ आम जनता की फिल्म है.जिसमें एक्शन, संगीत, संवादबाजी, देशभक्ति और वीरता का उत्सव भी है.मनोरंजन के लिए ‘ईद‘ एक सही अवसर है.मैं भूषण कुमार सर, मोनिशा आडवाणी, मधु भोजवानी और निखिल आडवाणी के साथ पुनः काम करते हुए इसे 2021 में 12 मई को लाने का वादा कर सकता हूं कि हम सभी दर्शकों के लिए एक उत्सव का अवसर देने  की पूरी कोशिश करेंगे!‘‘

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निर्माता निखिल आडवाणी कहते हैं-‘‘जैसा कि मिलाप ने इस विषय को विकसित किया है. उत्पादकों के रूप में हम उनके अपने रचनात्मक विकल्पों का खुशी से समर्थन करते है.अब कहानी लखनऊ पर आधारित और वहीं फिल्मायी जाएगी, जो कीं भारत में मेरे निजी पसंदीदा शहरों में से एक है.यह हमारे लिए बेहद खास फिल्म है.इस मताधिकार में पहली फिल्म  के लिए प्रशंसकों द्वारा दिखाए गए प्यार ने हमें एक बड़ा, अधिक रोमांचक अनुभव बनाने के लिए प्रोत्साहित किया है.हमें उम्मीद है कि मौजूदा परिस्थितियों में सुधार होगा और हमारे लिए एक बार फिर सिनेमाघरों में अपने दर्शकों तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त होगा.’’

जबकि अन्य निर्माता भूषण कुमार कहते हैं-‘‘सत्यमेव जयते’’ में भी दर्शकों ने एक्शन और ड्रामा को काफी पसंद किया था.जॉन तब से हमारे देश के एक्शन हीरो बन गए हैं.निखिल और हमने फ्रैंचाइजी को आगे ले जाकर  मिलाप और जॉन के साथ मनोरंजक कमर्शियल सिनेमा बनाते रहने का फैसला किया है. पहले भाग की सफलता को देख निश्चित रूप से इस बार हम पर एक बड़ी और बेहतर फिल्म बनाने की जिम्मेदारी है.मिलाप ने एक अच्छी  स्क्रिप्ट लिखी है,जिसमें माइंड ब्लोइंगकहानी के साथ साथ शानदार गाने होंगे जो हर एक दर्शकों से जुड़ेंगें. और जॉन अब्राहम का पहले कभी नहीं देखा हुआ लुक इसमें होगा. हम अगले साल ईद पर सिनेमाघरों में आ रहे हैं जो इसे और भी त्योहारी बनाता है.

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बता दें कि ‘सत्यमेव जयेत’ का निर्माण भूषण कुमार की कंपनी ‘टी सीरीज’ और निखिल अडवाणी की कंपनी ’’एमे एंटरटेनमेंट’’के साथ मिलकर जौन अब्राहम कर रहे हैं. मिला झवेरी निर्देशित यह फिल्म 2021 में ईद के अवसर पर सिनेमाघरों में पहुॅचेगी

पेरी अरबन एग्रीकल्चर शहर और गांव के बीच पनपता नया किसान

शहरीकरण का असर गांवों और शहरों दोनों पर पड़ रहा है. खेती की जमीन धीरेधीरे खत्म होती जा रही है. शहरों के करीब ऐसी कालोनियां तेजी से बढ़ रही हैं, जिन को न गांवों में गिना जा सकता है और न शहरों में. शहरों का गंदा पानी यहां जमा होता है, जिस से कई तरह की बीमारियां शहरों तक पहुंचने लगती हैं. शहरों और गांवों के बीच बनी इस तरह की कालोनियों की समस्या खेती की जमीन भी है. तमाम किसानों की जमीनों पर कालोनियां बन गईं, इस के बाद भी इन जगहों पर खेती के लिए कुछ न कुछ खाली जमीन भी पड़ी मिलती है. जरूरत इस बात की आ गई?है कि इस जमीन पर खेती को बढ़ावा दिया जाए, जिस से शहरों और गांवों के बीच बसी कालोनियों में खाली पड़ी जमीनों का सही इस्तेमाल किया जा सके.

दक्षिण भारत के बेंगलूरू और चेन्नई जैसे शहरों के आसपास इस तरह के प्रयोग हो रहे हैं. ऐसी जमीनों पर किसान अब रोजगार करने लगे हैं. इस तरह के किसान फूल, फल और सब्जी की खेती कर के शहरों में बेच रहे?हैं. इस से इन कालोनियों में जलभराव की परेशानी दूर हो गई और यहां रहने वाले किसानों को रोजगार भी मिलने लगा. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में इस तरह का प्रयोग शुरू किया गया. इस से गोरखपुर शहर के पास जलभराव की परेशानी दूर हो गई. यहां के किसानों ने अपना समूह बना कर खेती से होने वाली पैदावार मंडी में बेचनी शुरू कर दी है. इस से किसानों को मंडी से ज्यादा पैसा मिलने लगा है.

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गांवों को शहर बनाना होगा

गोरखपुर एनवायरमेंटल एक्शन ग्रुप, राष्ट्रीय नगर कार्य संस्थान, भारत सरकार और रूफा संस्थान, नीदरलैंड ने आपस में मिल कर पेरी अरबन एग्रीकल्चर एंड इकोसिस्टम विषय पर एक 2 दिन की कार्यशाला का आयोजन किया.

मुख्य मेहमान के रूप में मशहूर कृषि वैज्ञानिक प्रो. एमएस स्वामीनाथन ने कहा कि स्पेशल एग्रीकल्चर जोन की तरह ही पेरी अरबन एग्रीकल्चर को योजनाबद्ध तरीके से बढ़ाने की जरूरत है.  आने वाले समय में गांवों से शहरों की तरफ रोजगार के लिए आने वाले लोगों के लिए यह सुविधाजनक रहेगा कि पेरी अरबन एरिया को साफसुथरा बनाया जाए, जिस से उन को अच्छी सुविधाएं दी जा सकेंगी. पेरी अरबन एरिया के बनने से बाढ़ और पानी के जमाव की परेशानी से निबटा जा सकेगा. शहरों के पास पड़ी जमीन का खेती के लिए इस्तेमाल कर के रोजगार को बढ़ाया जा सकता है. केरल सहित दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में पेरी अरबन एरिया में कृषि को ले कर बहुत काम हुआ है.

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बढ़ेगा रोजगार

कृषि एवं उद्यान आयुक्त डा. एसके मल्होत्रा ने कहा कि खेती के मामले में?भारत ने बहुत तरक्की की है. पिछले साल सब से ज्यादा पैदावार की गई. इस के बाद भी दाल, तेल और सब्जी के दामों में तेजी आई, जिस का कारण जनसंख्या का बढ़ना है. गांवों से शहरों की तरफ आने वाले लोगों की तादात बढ़ती जा रही है. 2020 तक यह संख्या 60 फीसदी होने की आशा है. भारत सरकार ने इन चुनौतियों को समझते हुए कृषि पैदावार के साथसाथ खाने में फायदेमंद तत्त्वों को बढ़ाने के लिए कई योजनाएं शुरू की?हैं. पेरी अरबन एरिया का भी इस्तेमाल करने की नीति तैयार की गई है. पेरी अरबन एरिया में कृषि को बढ़ावा देने के लिए 500 वर्ग फुट से ले कर 5 हजार वर्ग फुट से अधिक के पौलीहाउस बना कर खेती की जा सकती है.

समस्या बनता शहरी प्रदूषण

अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणविद एवं गोरखपुर एनवायमेंटल एक्शन ग्रुप के अध्यक्ष डा. शीराज वजीह ने कहा कि संसार में शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है. जहां 20वीं शताब्दी के शुरू में विश्व के शहरी इलाकों में आबादी 15 फीसदी थी, वहीं 2007 में विश्व की शहरी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों से भी ज्यादा हो गई. अनुमान है कि 2050 तक विश्व की तीनचौथाई जनसंख्या शहरी इलाकों में होगी. शहरी इलाका खेती के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है और एक अनुमान के अनुसार विश्व की तकरीबन 80 करोड़ आबादी ऐसी खेती के साथ जुड़ी हुई है. ऐसी खेती में सब्जी, फल, पशुपालन, वन जैसे काम प्रमुख हैं. तेजी से बढ़ते शहर ऐसे कुदरती साधनों के सामने चुनौती बन रहे?हैं और वर्तमान में मौजूद खेती की जमीन व हरित क्षेत्र घट रहे हैं, जो शहर के श्वसन तंत्र की भूमिका के साथ ही खाद्य उत्पादन व आजीविका उपलब्ध कराने में भी सहायक होते हैं.

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डा. शीराज वजीह ने कहा कि बिना योजना वाले शहरी इलाकों में तरक्की के कारण गोरखपुर जैसे महानगरों में बाढ़ व उपनगरीय क्षेत्र में जल भराव क्षेत्र बढ़ा है. उपनगरीय क्षेत्र का तकरीबन 25 फीसदी भाग हर साल बाढ़ व पानी से भरा रहता है, जिस में एक ही फसल का उत्पादन होता है. खेती में लागत मूल्य ज्यादा और पैदावार कम होने के कारण खेती नुकसानदायक व्यवसाय हो गया?है. महानगरीय नालों के बहाव के कारण भूमि प्रदूषित हुई है और मिट्टी की उर्वरकता कम हुई?है. साथ ही साथ जमीनी पानी की गंदगी के कारण साफ पीने वाले पानी की कमी हुई है. पेरी अरबन क्षेत्रों में कृषिगत कार्यप्रणाली द्वारा खेती के प्रति किसानों का रुझान पैदा कर उन की खेती लायक जमीन को बनाए रखा जा सकता है, जिस से बढ़ते हुए शहरीकरण के दबाव के कारण उन किसानों की जमीन को शहरों में तब्दील होने से बचाया जा सके और साथसाथ शहर व उपनगरीय क्षेत्रों में पानी जमाव के जोखिम को कम किया जा सके.

फल, फूल और सब्जी का सहारा

गोरखपुर में कृषिगत कार्यप्रणाली के जरीए पेरी अरबन के 8 गांवों में इन प्रयासों में तेजी लाई गई है. जलवायु परिवर्तन अनुकूलित कृषि को बढ़ावा देने के लिए किसानों के खेतों में कई तरह के प्रयोग किए गए हैं, जैसे ढैंचे की खेती के साथ बेल वाली फसलों को उगाना (क्लाइंबर फार्मिंग), उच्च लो टनल पाली हाउस द्वारा नर्सरी लगाना, जल जमाव वाले क्षेत्रों में मचान खेती को बढ़ावा देना, जल जमाव वाले क्षेत्रों में?थर्मोकोल बाक्स द्वारा खेती करना और जूट के बोरे द्वारा खेती के कामों को करना.

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भारत में भी शहरीकरण तेजी से हो रहा है. भारत सरकार ने स्मार्ट सिटी, अमृत सिटी जैसी कई योजनाओं द्वारा शहरों में सुधार के लिए कई जरूरी फैसले लिए हैं. इस दिशा में नगरीय इलाकों (पेरी अरबन) पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी है. नगरीय इलाकों में खेती शहर के कमजोर वर्ग की आबादी के लिए बड़ा सहारा होती है. साथ ही इलाके के कुदरती साधन नगरों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निबटने में मदद करते हैं. बाढ़, जल जमाव, तापमान की बढ़ोत्तरी, सूखा, पानी की कमी जैसे हालात से नगरों को बचाने में इन की खास भूमिका होती?है. नगरीय विकास के साथ ही इन नगरीय इलाकों में खेती को बनाए रखने के लिए जरूरी नीतियों, खाद्य उत्पादन व पोषण सुरक्षा को मजबूत करने जैसी बातों पर इस कार्यशाला में बातचीत की गई. आईसेट नेपाल संस्था के अध्यक्ष डा. अजय दीक्षित ने कहा कि पेरी अरबन एग्रीकल्चर शहर के कमजोर वर्ग की आबादी के लिए बड़ा सहारा होती है.हांगकांग के सीनियर इंजीनियर ई. अनिल कुमार ने कहा कि शहर का इलाका खेती के लिए बहुत जरूरी होता?है और एक अनुमान के अनुसार विश्व की तकरीबन 80 करोड़ आबादी ऐसी कृषि के साथ जुड़ी हुई है. ऐसी खेती के कामों में सब्जी, फल, पशुपालन व वन जैसे काम खास हैं. गोरखपुर की महिला किसान चंदा देवी ने बताया कि हम लोग शहर के किनारे बसे हुए हैं. यहां हम लोग सालों से सब्जी की खेती कर रहे?हैं. हम लोगों की सब से बड़ी समस्या यह?है कि शहर का सारा गंदा पानी हमारे खेतों में आता?है, जिस से खेती में दिक्कत आती?है. दूसरी तरफ खेतों के चारों तरफ मकान बनते जा रहे हैं, जिस से बड़ेबड़े बिल्डरों का जमीन बेचने का दबाव भी बराबर बना रहता है.

गोरखपुर के किसान रामराज यादव ने कहा कि हम लोगों की रोजीरोटी सब्जी की खेती है. सब्जी को हम लोग शहर में बेच कर अपनी जिंदगी गुजारते हैं. लेकिन खेती में हम लोगों को सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं मिल पाता, क्योंकि हम लोग न तो शहर की सुविधाएं पाते हैं, न ही हमें गांवों की योजनाओं का फायदा मिलता?है.

Hyundai Creta : इंटीरियर है खास

हुंडई क्रेटा के इंटीरियर की बात करें तो इसके turbo variant को लाल एक्सेंट के साथ पूरे ब्लैक कलर से डिजाइन किया गया है. वहीं कार के इंटीरियर का फोकल प्वाइंट ड्राइवर है, जिसे ध्यान में रखते हुए बड़ी स्क्रिन दी गई है जो कि ड्राइवर के कंट्रोल में रहती है.

कार के अंदर सारे कंट्रोल ड्राइवर को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है, जिसके जरिए ड्राइवर आसानी से यात्रा के दौरान सड़क पर बिना किसी दिक्कत के सेटिंग को बदल सकता हैं. क्रेटा के इन खास इंटीरियर से आपको एक आरामदायक सफर का अनुभव होगा. इसलिए #RechargeWithCreta.

‘अनीता भाभी’ के बाद इस एक्ट्रेस ने भी कहा ‘भाभी जी घर पर हैं’ को अलविदा

टीवी जगत का मशहूर सीरियल ‘भाभी जी घर पर है’ कि अदाकारा अनीता भाभी ने इस सीरियल को कुछ वक्त पहले अलविदा कह दिया था. इसके बाद से इस शो में कई अन्य सदस्यों ने भी बॉय बोला अब खबर आ रही है कि इस शो में गुल्फाम कली का किरदार निभाने वाली एक्ट्रेस फाल्गुनी रजनी ने भी इस शो को अलविदा कह दिया है.

खबर है कि फाल्गुनी ने यह शो मराठी शो करने के लिए छोड़ा है. लंबे समय से फाल्गुनी सीरियल में नजर नहीं आ रही थी वह ज्यदातर हप्पू सिंह के साथ नजर आती थीं.

 

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Some unforgettable moments with @varundvn on set of #BJGPH

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लेकिन जबसे हप्पू सिंह को नया शो हप्पू पलटन शुरू हुआ है तबसे कम ही दिख रही हैं. हालांकि अभी तक इस बारे में शो के मेकर्स ने अपनी तरफ से कोई स्टेटमेंट नहीं दिया है. वहीं इस सीरियल में अभई तक कोई अनीता भाभी नहीं आई हैं. सौम्या करीब 5 साल तक इस शो का हिस्सा रही हैं. सौम्या ने शो को छोड़ते वक्त कहा था कि भाभी जी घर पर है सीरियल ने मुझे पॉपुलर बनाने में बड़ा योगदान रहा है. इस सीरियल ने मुझे एक नई पहचान दिलाई है. इस सीरियल के वजह से में आज घर –घर में लोकप्रिय बन गई हूं.

falguni rajni 08.08.18-1 - HinduBulletin

 

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Thank you for your love and support.. 10k followers on @bhabhi_ji_ghar_par_hai Memories with @anushkasharma on set . @saumyas_world_ @saanandverma

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वहीं अंगुरी भाभी का किरदार निभा रही शुभांगी अत्रे  ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि वह सौम्या को बहुत ज्यादा मिस करेंगी. हम दोनों की दोस्ती काफी ज्यादा अच्छी थी. हम साथ में खूब मस्ती करते थें. वह गोरी मैम के किरदार में एकदम पर्फेक्ट थी मैं उनके शो छोड़ने के फैसले का पूरा सम्मान करती हूं. हर किसी का अपना फैसला होता है. निजी जीवन में उन्होंने जो कुछ भी फैसला लिया है सोच- समझ कर लिया है. वह आगे भी बहुत ज्यादा जाएंगी.

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‘ये रिश्ते हैं प्यार के’ बंद होने की खबर से फैंस हुए निराश, तो ‘मिष्टी’ के ‘अबीर’ ने कहीं ये बात

टीवी जगत के मशहूर एक्टर शाहीर शेख की फैन फॉलोविंग काफी ज्यादा है. वह महिलाओं के बीच ज्यादा मशहूर है. शाहीर आजकल अपने फैंस को शांत करने की कोशिश में लगे हुए हैं.  उनके फैंस इस खबर से दुखी है कि सीरियल ‘ये रिश्ता है प्यार के’ जल्द बंद होने वाला है.

शाहीर ने अपने फैंस के लिए बेहद शानदार पोस्ट शेयर करते हुए लिखा है कि यह सब अफवाह है. इससे शाहीर के फैंस को थोड़ी राहत मिली है. हालांकि माना जा रहा है कि इस सीरियल के निर्माता राजन शाही ने इस शो को बंद होने के लिए संकेत दिए थें.

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लेकिन कलाकारों ने और शो में काम कर रहे कर्मचारियों ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा था. इसे लेकर शाहीर ने ट्विट कर अपने विचार साझा किया है.

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उन्होंने अपने ट्विट में लिखा है कि हमें नहीं पता है कि आने वाला भविष्य क्या है लेकिन इसके बारे में कुछ कह नहीं सकते यह आज्ञात है. और हमारी ऐसी यात्रा ही रोमांचक बनाती है. शो में काम कर रहे वत्सल सेठ ने उनकी प्रशंसा की है.

खबर यह भी है कि रेहा शर्मा के शो को देबोलीना भट्टाचार्याजी के आगामी शो साथ निभाना साथिया 2 में बदला जा सकता है.

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इस खबर के बाद से फैंस लगातार शाहीर और रेहा के लिए ट्विट कर रहे हैं. बता दें कि इस सीरियल में शाहीर और रेहा के किरदार का नाम है मिष्ठी और अबीर ट्विटर पर लगातार ट्रेंड कर रहा है. #GiveYRHPKExtension

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फैंस इस उम्मीद में बैठे है कि शो के निर्माता इस पर एक बार विचार जरूर करेंगे. अब देखना यह है कि शो के निर्माता फैंस की बातों को ध्यान में रखते हुए क्या फैसला लेते हैं.

लोबिया कीट और रोग प्रबंधन

फसल लोबिया पौष्टिक गुणों से भरपूर होती है, पर जरा सी लापरवाही बरतने से  इस में कीड़े लगने और रोग होने का डर बना रहता है. आइए, जानते हैं इसे नुकसान पहुंचाने वाले कीटों और रोगों के प्रबंधन के बारे में :

फली बेधक कीट

यह घरेलू मक्खी की तरह चमकीली काले रंग की मक्खी होती है. इस के पूर्ण विकसित मैगेट 3.5 मिलीमीटर से 4 मिलीमीटर लंबे और सफेद होते हैं. इन का अगला सिरा पतला और पिछला भाग मोटा होता है. इस के मैगेट फलियों में विकसित हो रहे बीजों को खा कर अपना मल फलियों पर ही त्यागते रहते हैं. ऐसी फलियां खाने योग्य नहीं रहती हैं.

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प्रबंधन : यदि फसल में कीट नहीं आया है तो नीम तेल 1500 पीपीएम की 3 मिलीलिटर दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर 15-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करते रहें.

यदि कीट आ गया है तो प्रोफेनोफास 25 ईसी की 1.0 मिलीलिटर दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर तुरंत छिड़काव करें.

चूर्ण आसिता (बुकनी रोग)

इस बीमारी में पत्ती, कलियों तथा अन्य भागों पर छोटेछोटे सफेद चूर्ण लिए हुए धब्बे बन जाते हैं, जो धीरेधीरे बढ़ कर पूरी पत्ती की सतह को ढक लेते हैं. रोगी पत्तियां पीली पड़ कर गिर जाती हैं.

प्रबंधन : इस रोग के नियंत्रण के लिए सल्फैक्स 2.5 किलोग्राम मात्रा को 700 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

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किट्ट रोग

इसे रतुआ रोग भी कहते हैं. प्रभावित पत्तियों की निचली सतह पर नारंगी या पीले रंग के उभरे हुए धब्बे बनते हैं. रोग की उग्र अवस्था में ये धब्बे तने एवं कलियों पर भी बनने लगते हैं. साथ ही, पत्तियां सूख कर समय से पहले ही गिर जाती हैं.

प्रबंधन : 2 से 3 साल का फसल चक्र अपनाएं.

रोग की उग्र अवस्था में थायोफिनेट मिथाइल 70 डब्ल्यूपी की 2 ग्राम दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर तुरंत छिड़काव करें.

सर्को स्पोरा पर्ण दाग

इस में पुरानी पत्तियों पर धब्बे बनते हैं. धब्बों के बीच का भाग धूसर रंग का और किनारे का भाग लाल रंग का होता है. रोग ग्रसित भाग सूख कर गिर जाता है.

प्रबंधन : 3 से 4 वर्ष का फसल चक्र अपनाएं और खेत की सफाई रखें.

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इस रोग के नियंत्रण के लिए कासुगमायसिन्न 3 फीसदी एसएल 1.5 मिलीलिटर दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर तुरंत छिड़काव करें.

मोजैक (चितकबरा रोग)

यह विषाणुजनित रोग है. इस में लक्षण नवविकसित पत्तियों पर दिखाई पड़ता है, जो धीरेधीरे पूरे पौधे पर फैल जाता है. पत्तियां चितकबरी हो जाती हैं और नीचे की ओर मुड़ने लगती हैं.

इस रोग के लगने र पौधा बौना रह जाता है और पत्तियां छोटी हो जाती हैं. यह रोग सफेद मक्खी और माहू कीट द्वारा फैलता है.

प्रबंधन : बोआई के लिए बीज रोगरहित पौधे से प्राप्त करें.

रोगी पौधों को उखाड़ कर गड्ढा खोद कर मिट्टी के अंदर दबा देना चाहिए.

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सफेद मक्खी और माहू कीट के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की

10 मिलीलिटर दवा प्रति 15 लिटर पानी में घोल बना कर तुरंत छिड़काव करें.

अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से संपर्क करें.

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