तकरीबन 4 साल पहले की बात है जब शिफाली की शादी मेरठ के अवनीश के साथ हुई थी. ससुराल में ससुर के साथ जेठजेठानी और उन के 3 बच्चे भी थे. सास नहीं रही थीं. अवनीश और उन के बड़े भाई अपने पिता द्वारा स्थापित एक दवा की दुकान चलाते थे. पैसे का सारा हिसाब शिफाली के ससुरजी रखते थे. दुकान अच्छी चलती थी. परिवार में कोई आर्थिक समस्या नहीं थी.
शिफाली तब एलएलबी कर रही थी. ससुराल वालों ने उस की पढ़ाई में कोई रुकावट नहीं डाली. लेकिन, शिफाली को लगता था कि दुकान से होने वाली कमाई में से उस के जेठ के परिवार पर ज्यादा पैसा खर्च होता है, क्योंकि उन के दोनों बच्चे शहर के महंगे स्कूलों में पढ़ते हैं. शिफाली का सोचना था कि जब दुकान में दोनों भाई बराबर की मेहनत करते हैं तो पैसे का बंटवारा भी बराबर होना चाहिए.
ये भी पढ़ें- उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली हरकत कर रहा है राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण
शिफाली की ये भी मांग थी कि ससुरजी को हर महीने दुकान की आधी कमाई उस के पति अवनीश को देनी चाहिए, ताकि वे भी अपनी मरजी से कुछ खर्च कर पाएं. हर छोटीछोटी चीज के लिए ससुरजी के आगे हाथ फैलाना उस को अच्छा नहीं लग रहा था. आखिर औरतों की भी कुछ निजी जरूरतें होती हैं. अब जो फेसक्रीम पूरा परिवार लगाता हो, वो उस को भी लगानी पड़े, ये तो जबरदस्ती वाली बात हो गई. बस, शिफाली की इन्हीं कुंठाओं ने धीरेधीरे घर में झगड़े करवाने शुरू कर दिए.
आखिरकार एक दिन शिफाली लड़झगड़ कर अपने घर गाजियाबाद आ गई. उस दिन अखबार में उस ने बंगाली बाबा का विज्ञापन देखा. लिखा था – ‘ससुराल की हर समस्या का समाधान चुटकियों में. पति को वश में करना है, संपत्ति पर अधिकार चाहिए, सौतन से छुटकारा चाहिए, औलाद नहीं हो रही, ससुराल वाले परेशान कर रहे हैं, पति पराई नारी के वश में है, हर समस्या का निदान बंगाली बाबा के पास… बस तीन दिन में… ‘
ये भी पढ़ें- त्रासदी, अज्ञानता और लालच की कॉकटेल बनी साइकिल गर्ल ज्योति
वकालत की पढ़ाई करने वाली शिफाली बंगाली बाबा के इस विज्ञापन के फेर में आ गई और उस में दिए गए फोन नंबर पर उस ने फोन किया.
उधर से आवाज आई – ‘हम कहते नहीं, कर के दिखाते हैं.‘
शिफाली – ‘आप बंगाली बाबा बोल रहे हैं?‘
बाबा – ‘हां, काम बताओ, तुम्हें क्या परेशानी है?‘
शिफाली – ‘आप का नंबर पेपर से मिला है. उस में लिखा है कि घर बैठे तीन दिन में सभी परेशानी का समाधान हो जाएगा…?‘
बाबा – ‘बिलकुल सही है, तुम्हारी क्या परेशानी है?‘
शिफाली – ‘क्या आप के पास आना होगा परेशानी बताने के लिए?‘
बाबा – ‘नहीं, जरूरत पड़ेगी तभी बुलाऊंगा, फोन पर भी समस्या का समाधान हो जाएगा.‘
शिफाली – ‘कितना खर्चा आएगा बाबा? आप की फीस कैसे देनी होगी?‘
बाबा – ‘तू पहले अपनी समस्या बता. उसी से खर्चा तय होगा.‘
ये भी पढ़ें- प्रोत्साहन की मोहताज अंतर्भाषीय शादियाँ
शिफाली ने बाबा को फोन पर ही विस्तार से अपने ससुराल के लोगों के बारे में, संपत्ति, दुकान, मकान और होने वाली आय के बारे में बता दिया. और ये भी कि वो चाहती है कि ससुरजी उस के पति के हिस्से का मकान और दुकान उस के नाम कर दें, ताकि होने वाली आय पर सिर्फ उस का हक हो.
बाबा ने समस्या सुनी और बोले – ‘एक हवन करवाना होगा. ससुर को वश में करना होगा, साथ में तुम्हारे पति को भी, क्योंकि वो तुम से ज्यादा अपने परिवार के निकट है. इतनी आसानी से बंटवारे के लिए राजी न होगा.‘
शिफाली – ‘बाबा, हवन पर कितना खर्च आएगा? हवन कहां करवाना होगा?‘
बाबा – ‘हवन हम अपने मंदिर में करेंगे. तुम को बस सामग्री भिजवानी होगी या पैसा भिजवा दो, तो सामग्री हम मंगवा लेंगे.‘
शिफाली – ‘आप ही मंगवा लीजिए. खर्चा कितना देना है? और कैसे देना है?‘
ये भी पढ़ें- स्कूलों का चुनाव, नाम नहीं फीस और जेब देख कर
बाबा – ‘11,000 रुपए का खर्च आएगा और हवन के बाद तीन दिन में ही तुम्हारे ससुरजी बंटवारे की बात करेंगे. तुम को ससुराल से बुलावा आ जाएगा.‘
शिफाली बाबा की बातें सुन कर खुश हो गई. उत्सुकता से वह बोली – ‘बाबा, पैसे कैसे पहुंचाने हैं?‘
बाबा – ‘गाजियाबाद पुराना बसस्टैंड जानती हो?‘
शिफाली – ‘हां बाबा.‘
बाबा – ‘वहां पहुंच कर फोन कर देना. हमारा चेला पहुंच कर पैसा ले जाएगा. बस अब इतमीनान से रहो. तुम्हारी समस्या का समाधान हम कर देंगे.‘
शिफाली खुश हो कर घर से निकल पड़ी. पुराने बसस्टैंड पहुंच कर उस ने उसी नंबर पर फोन किया. 5 मिनट भी नहीं गुजरे होंगे कि एक लड़का भगवा कपड़ों में प्रकट हुआ. उस ने शिफाली को एक काले धागे में लिपटी बाबा की फोटो और कुछ भभूत पकड़ाई. बोला, ‘तीन दिन बाद फोन करना’. और फिर शिफाली से 11,000 रुपए ले कर नौ दो ग्यारह हो गया.
तीन दिन बीतने पर शिफाली ने बाबा को फोन लगाया, तो वह स्विच औफ था. उस के बाद न तो वह नंबर कभी चालू हुआ, न बाबा से दोबारा बात हुई. 11,000 रुपए भी गए और समस्या ज्यों की त्यों रही.
आखिरकार कुछ महीने बाद शिफाली को ही ससुराल जा कर एडजस्ट करना पड़ा और समय बीतने पर वह अपने ससुराल के रिवाजों के अनुसार ढल भी गई. उस को समझ आ गया कि हर घर खुद को चलाने के लिए कुछ नियम निर्धारित करता है, जिस के अनुसार ही घर के सभी सदस्यों को चलना चाहिए.
शिफाली की वकालत की पढाई का पूरा खर्चा उस के ससुरजी ने उठाया. शिफाली ने प्रेक्टिस शुरू की. वकालत से उस की जो भी कमाई होती, उस में से एक पैसा भी कभी किसी ने घर खर्च के लिए नहीं मांगा.
शिफाली को अपने 11,000 रुपए गंवाने से ज्यादा दुख इस बात का है कि इतनी पढ़ीलिखी होने के बावजूद वह अखबार में आए एक बंगाली बाबा के विज्ञापन के झांसे में कैसे फंस गई.
गाजियाबाद और टीएचए की कालोनियों में तो ऐसे तांत्रिक बाबाओं का जबरदस्त मकड़जाल फैला हुआ है. इस काम को फैलाने के लिए इन बाबाओं ने चेले बना रखे हैं, जो उन्हें क्लाइंट ला कर देते हैं और उस के बदले में 15 से 20 पर्सेंट कमीशन लेते हैं.
साहिबाबाद के अर्थला, पसौंडा, शहीदनगर, भोवापुर, खोड़ा, संजय नगर के अलावा पुराना बसस्टैंड की तरफ तांत्रिक बाबाओं ने पांव जमा रखे हैं. चूंकि इन इलाकों में आबादी काफी है. यहां रहने वालों का कोई पुलिस वेरिफिकेशन भी नहीं होता है, इसलिए यह जगह इन ढोंगियों के लिए काफी महफूज है. यहां 1,000 से ले कर 3,000 रुपए तक में किराए पर एक रूम से दो रूम तक मिल जाते हैं, जो इस तरीके से कारोबार के लिए काफी महफूज होता है और केस बिगड़ते ही ये ढोंगी बाबा बोरियाबिस्तर समेट कर फुर्र हो जाते हैं.
अब बाबा नंबर-2 का किस्सा सुनिए: –
उन के विज्ञापन में लिखा है – ‘मेरा किया जो काटे उसे मुंहमांगा इनाम.‘
वैशाली के अरुण सिंह ने बाबा बंगाली को फोन किया. समस्या बताई कि शादी के 5 साल हो गए, बच्चा नहीं हो रहा है.
बाबा ने अपने अड्डे पर पतिपत्नी को बुलाया. बोले – तेरी पत्नी की कोख तेरी बड़ी भाभी ने बंधवा दी है. उस को खुलवाना पड़ेगा. बड़ी ताकत से बंधवाई है. खर्चा लगेगा. कर पाएगा तो बेटे का सुख नसीब होगा, वरना जीवनभर बेऔलाद रहेगा.
ऐसा सुन कर पतिपत्नी घबरा गए. बाबा से उपाय करने को गिड़गिड़ाने लगे. बाबा ने पेशगी मांगी 2,100 रुपए. साथ में सामान की एक लिस्ट पकड़ा दी और एक दुकान का पता दिया. बोले, इस दुकान से यह सारा सामान ला दे. आज से ही पूजा शुरू करता हूं. 15 दिन का वक्त लगेगा. तुम दोनों को हर दिन पूजा में बैठना होगा.
अरुण बाबा के चरणों में 2,100 रुपए रख कर सामान लेने दुकान की तरफ भागा. सारा सामान करीब 4,000 रुपए का आया. अगले 5 दिन की पूजा में दोनों पतिपत्नी बैठे. इस दौरान भी कोई 5,000 रुपए का चूना लगा. छठे दिन बाबा बोले – अब एक हफ्ते बाद आना.
एक हफ्ते बाद जब अरुण और उस की पत्नी पहुंचे, तो उस जगह फोटोकौपी की दुकान खुल गई थी. बाबा का अतापता न था, न ही उन का फोन मिल रहा था. अरुण ने सिर पीट लिया. 10-12 हजार रुपए गंवा दिए और हाथ कुछ न लगा.
अरुण जैसे कई और भी थे, जो बाबा के पास अपनी समस्याओं के निदान के लिए आते थे. सभी उस नए दुकानदार से बाबा का पता पूछते थे. तंग आ कर दुकानदार ने वहां एक बोर्ड लगवा दिया कि वह किसी बाबा को नहीं जानता. कृपया बाबा की जानकारी के लिए तंग न करें.
इंदिरापुरम, गाजियाबाद में रहने वाले सुप्रीम कोर्ट के वकील एसके पौल कहते हैं कि तांत्रिक हो या बंगाली बाबा, ये सब भोले लोगों को अपनी लच्छेदार बातों में फंसाने में माहिर होते हैं, जिस में महिलाएं व युवती सब से अधिक फंसती हैं. ये बातोंबातों में उन से परिवार की पूरी कहानी जान लेते हैं और फिर किसी का साया होने का डर दिखाते हैं.
कई मामलों में यह देखा गया है कि ज्यादातर महिलाएं बच्चे न होने, बीमार रहने व लापता हुए बच्चे की तलाश में इन के पास जाती हैं.
कुछ मामले में तो मातापिता बेटी के किसी युवक के साथ प्रेमजाल में फंसे होने से परेशान हो कर समाधान के लिए भी संपर्क साधते हैं. तंत्रमंत्र के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाने वाले इन बाबाओं के निशाने पर विशेषकर बच्चे और महिलाएं होती हैं. ये तांत्रिक किसी को डायन बता देते हैं, तो किसी को चुड़ैल. कभी डायन तो कभी चुड़ैल बता कर महिलाओं व बच्चों पर अत्याचार के सब से अधिक मामले राजस्थान से सामने आते हैं. बाबा की शरण में जाने का मामला दरअसल खुद के अंदर असुरक्षा की भावना से जुड़ा हुआ है. जब समस्या धीरेधीरे लंबी हो जाती है, कहीं कोई रास्ता नहीं मिलता है, तो लोग उस के समाधान के लिए धर्म की तरफ मुड़ते हैं. जहां ऐसे ढोंगी बाबा इस का फायदा उठाते हैं. ये ढोंगी बाबा हर किसी के जीवन से जुड़ी कुछ समस्याओं में से कुछ सामान्य बातें निकाल लेते हैं और उस परेशान शख्स को बता कर अपना विश्वास हासिल कर लेते हैं. इस से बचने का सब से बढ़िया तरीका है कि आप अपने निकटतम साथी या परिवार के भरोसेमंद सदस्य से अपनी परेशानी को शेयर करें, न कि इन ढोंगी बाबाओं के जाल में फंस कर अपनी मेहनत की कमाई बरबाद करें.
संसार में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जिस के जीवन में कोई समस्या न हो. समस्या निवारण के लिए कुछ लोग तो भरपूर संघर्ष करते हैं और अपनी समस्याओं पर विजय प्राप्त करते हैं. परंतु कुछ अपनी समस्याओं को हल करने का सरल व अद्भुत तरीका खोज लेते हैं, जो उन्हें सीधा पाखंड की दुनिया में ले जाता है.
मंदिरोंमसजिदों, चर्चगुरुद्वारे में समस्या का हल न मिलने पर व्यक्ति सीधा इन के दूत कहे जाने वाले और खुद को सिद्ध पुरुष बताने वाले पाखंडी इनसानों के पास पहुंच जाता है.
आजकल तो इन सिद्ध पुरुषों ने लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए बड़ीबड़ी दुकानें खोल ली हैं. टीवी चैनलों पर बाकायदा इन के शो चलने लगे हैं. ज्योतिषियों ने इन चैनलों की खूब कमाई करवाई है, तो खुद की भी तिजोरियां भर ली हैं. हर चैनल पर एक ज्योतिषी बैठा आप के आज और कल का बखान कर रहा है. ये ज्योतिषी 12 राशियों में करोड़ों इनसानों का भविष्य तय कर देते हैं. भविष्यवक्ता तो अपने और चैनल के भविष्य को सुधार कर मजे करते हैं और प्रार्थी हिसाब लगाता रहता है कि कब उस की समस्याओं का निवारण होगा. पाखंड की दुकान चलाने वाले जनता को लूट कर इतने धनवान हो चुके हैं कि उन के खिलाफ जाने की कोई हिम्मत नहीं करता है.
ज्योतिषियों और पंडितों के बाद तांत्रिकों का जाल
समस्याग्रस्त व्यक्ति का जब पंडितों और ज्योतिषियों से निदान नहीं हो पाता तो तांत्रिकों के जाल में फंस जाता है. तांत्रिकों का जाल बहुत मजबूत होता है. ये लोग किसी को भी मूर्ख बनाने की क्षमता रखते हैं.
सोचिए, यदि किसी तांत्रिक के पास कोई शक्ति होती, जिस से वह दूसरों की समस्या का निवारण कर सकता तो वह सब से पहले अपना जीवन संवारता.
आज कौन सा गलीमहल्ला छूटा है, जिस में कोई बंगाली बाबा, जुमाली बाबा न बैठा हो. कौन सा अखबार छूटा है, जिस में उन के विज्ञापन न आते हों. मार्केट में, मैट्रो स्टेशन पर, सुलभ शौचालयों में जगहजगह इन के पोस्टर चिपके दिखाई देते हैं. इन सिद्ध पुरुषों के चक्कर में शादीशुदा औरतें खूब फंसती हैं. किसी को बच्चा न होने की समस्या है, किसी को ससुराल वालों से समस्या है, कोई सौतिया डाह में जल रही है, कोई पति को वश में करना चाहती है, तो किसी को संपत्ति का लालच है. बाबा से निदान करवाने के चक्कर में मूर्ख औरतें पैसों के साथसाथ अपने घरपरिवार, धनसंपत्ति, जमीनजायदाद की तमाम जानकारियां एक अनजान व्यक्ति को सौंप देती हैं. बिना यह सोचे कि भविष्य में इस का कितना बड़ा नुकसान उन का परिवार उठाएगा.
बंगाली बाबा या सिद्ध बाबा का तमगा लगा कर पाखंड की दुकानें चलाने वाले अपने चारों ओर के वातावरण में अपने खास चेलों के साथ मिल कर इस प्रकार का जाल बुनते हैं, जिस में आने वाला इनसान फंसता चला जाता है और उस के निकलने की राह आसान नहीं होती.
आज के संतों की बात करें, तो महिलाओं और आश्रम की साध्वियों के यौन शोषण को ले कर बाबाओं, संतों और मठाधीशों की लंबी फेहरिस्त सामने है. कई बड़े बाबा तो अपने कुकर्मों के कारण जेल की कालकोठरी में बंद हैं. बावजूद इस के लोगों की आंखें नहीं खुल रही हैं.
हद तो यह है कि एक बाबा पर यौन शोषण का आरोप लगता है. जांच के बाद देश की विश्वसनीय संस्था सीबीआई उस पर फैसला सुनाती है और संत के समर्थक हिंसा करने और मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं, यह सब क्यों? क्या आप का यह दायित्व नहीं बनता है कि जिसे आप भगवान मान रहे हैं, उस की नैतिकता कितनी अनैतिक हो चली है, जरूरत है कि इसे परखें और समझें.
इस में कोई दोराय नहीं कि हमारे यहां के लोग बेहद भोले हैं और हमेशा से ही इन की शराफत व सादगी का शोषण होता आया है. कभी परंपराओं के नाम पर, तो कभी चमत्कारों की आस में भोलेभाले लोग अंधविश्वास के मकड़जाल में उलझ कर रह जाते हैं. बाबाओं को ले कर जनता का प्रेम नया नहीं है. कभी किसी बाबा की धूम रहती है, तो कभी किसी बाबा की.
गरीब, अशिक्षित व परेशान लोगों को चमत्कार के जरीए ‘आराम‘ दिलाने के दावे की ढोंग रचने वाले इन कथित बाबाओं की दुकानें धड़ल्ले से चल रही हैं. इन्हें बाबा, तांत्रिक, ओझा जो भी नाम दिया गया हो, लेकिन कमोबेश सभी का एक ही कारोबार है, वह है ठगी का.
देशभर में छोटेबड़े बाबाओं की दुकानदारी धड़ल्ले से चल रही है. इस के जरीए इन्हें मोटी आमदनी हो रही है. कोई ‘मजार‘ बनवा कर अपने झाड़फूंक की दुकानदारी चला रहा है, तो कोई झाड़फूंक के जरीए लोगों से पैसा ऐंठ रहा है.
जौनपुर, उत्तर प्रदेश में एक बाबा बड़े खतरनाक हैं. कूकहां निवासी इस बाबा का नाम है रमेश राजभर, जो झाड़फूंक के समय न केवल रोगी को पीटपीट कर घायल तक कर देता है, बल्कि साल 2007 में ये गैरइरादतन हत्या के आरोप में जेल भी जा चुका है. मगर जोड़जुगाड से कुछ समय बाद ही जमानत पर रिहा हो गया और फिर से अपने कारोबार में सक्रिय है.
इसी तरह गौरा गांव का एक कथित बाबा प्रेत बाधा के नाम पर लोगों को झाड़फूंक के नाम पर ठगने का धंधा करता है. चूंकि ये लोग अपनी दुकानदारी को चलाने के लिए धर्म की आड़ लेते हैं, इसलिए पुलिस भी हस्तक्षेप करने से कतराती है.
मऊ के मधुबन में जून, 2013 में दुबारी निवासी प्रेमशंकर सिंह को क्षेत्र के एक तांत्रिक ने बेवकूफ बना कर न सिर्फ लाखों रुपए की ठगी कर ली, बल्कि उस की जमीनें भी अपने नाम करवा लीं.
प्रेमशंकर सिंह को तांत्रिक ने अपने भ्रमजाल में फंसा कर अमीर बनाने का लालच दिया. पहले वह उस को पूजा के बहाने बुलवाने लगा और प्रसाद के तौर पर नशीला पदार्थ खिलाने लगा. धीरेधीरे उस तांत्रिक ने प्रेमशंकर की भूमि की रजिस्ट्री अपने नाम करवा ली. तत्पश्चात उस के ट्रैक्टर को भी हड़प लिया. इतना ही नहीं, तांत्रिक और उस के सहयोगी ने प्रेमशंकर को पागल करार दे कर मस्तिष्क रोग की दवाओं का इतना ओवरडोज दे दिया कि वह अर्धविक्षिप्त हो गया और उलटीसीधी हरकतें करने लगा. इस का फायदा उठा कर तांत्रिक ने उस पर प्रेत बाधा का डर फैला कर उसे गांवबदर करवा दिया.
बाद में परिवार के कुछ समझदार लोगों ने पुलिस में तांत्रिक के विरुद्ध रपट लिखवाई और कार्यवाही की मांग की. वह कार्यवाही आज तक चल रही है. लेकिन तांत्रिक का कारोबार बदस्तूर जारी है और प्रेमशंकर सिंह अभी भी अपनी बिगड़ी मानसिक स्थिति से उबर नहीं पाया है.
मऊ तो तांत्रिकों और बाबाओं का गढ़ हो गया है. इन के मकड़जाल में उलझ कर भोलेभाले ग्रामीण अपनी गाढ़ी कमाई व संपत्ति गंवा रहे हैं. क्षेत्र के कई गांवों में अपना डेरा जमाए ये तांत्रिक पहले ग्रामीणों को धनवान बनाने, घर से सोना निकालने, पुत्र रत्न की प्राप्ति कराने जैसा दावा कर के अपने सांचे में ढाल लेते हैं. इस के बाद धीरेधीरे संपत्ति हड़पना शुरू कर देते हैं.
आएदिन अखबारों में ठगी के इतने केस सामने आने के बावजूद लोग इन ढोंगी तांत्रिकों के जाल में क्यों फंस रहे हैं? दरअसल, आज के व्यग्र मशीनी मानव को सबकुछ रेडीमेड चाहिए और इसी के लिए वह कोई भी कीमत चुकाने के लिए तैयार हो जाता है. चालाक लोग धर्मभीरु भारतीय जनमानस को ईश्वर का खौफ दिखा कर उन्हें अपने वश में कर लेते हैं. इन्हीं में से एक है सत्संग. सत्संग का एक विकृत रूप है बाबाओं का मकड़जाल, जिस से हमारा समाज प्रदूषित हो रहा है. सत्संग की आड़ ले कर ढोंगी साधु हमारे समाज को नर्क बना रहे हैं.
यही वजह है कि कभी आसाराम बापू टीवी चैनलों की शान होते हैं, कभी कोई और बाबा. पाखंडी गुरमीत राम रहीम रेप के आरोप में जेल में है. इस पाखंडी से कई राजनेता चुनाव जीतने के लिए आशीर्वाद लेते रहे हैं. राम रहीम खुद को ट्विटर पर ‘आध्यात्मिक संत’ और ‘हरफनमौला खिलाड़ी’ बताता रहा है. ऐसे संत पहले गरीबों के मसीहा बन जाते हैं. कुछ जनसेवा दे कर उन की मदद कर देते हैं और फिर उन्हीं का शोषण करते हैं. यह संत अपने अनुयायियों की संख्या बढ़ा कर न्याय व्यवस्था के खिलाफ कुछ भी करने की ताकत पैदा कर लेते हैं. वोट के चक्कर में राजनीतिक पार्टियां भी इन की गुलामी करने लगती हैं.
सवाल है कि धर्म के नाम पर इस तरह के बाबाओं को खुली छूट कब तक मिलती रहेगी? ये बाबा भी ऐसे लोगों को अपना लक्ष्य बनाते हैं, जो असुरक्षित हैं, क्योंकि आस्था और अंधविश्वास के बीच बहुत छोटी लकीर होती है, जिसे मिटा कर ऐसे बाबा अपना काम निकालते हैं. भला ये कैसे संत हैं, जिन्हें महंगी गाड़ियां, महंगे वस्त्रआभूषण और शानशौकत भरी जिंदगी चाहिए. कहीं न कहीं तो भक्त भी जिम्मेदार हैं, जो इन पर अंधविश्वास करता है.
दरअसल, समृद्धि अंधविश्वास भी ले कर आती है. जो जितना समृद्ध है, वो उतना ही अंधविश्वासी है. और फिर समृद्धि के पीछे भागता मध्यम वर्ग, इस मामले में क्यों पीछे रहेगा. आखिर हमारी मानसिकता ही तो ऐसे ढोंगियों को समृद्ध बना रही है.
पाखंडियों के प्रकार और कारोबार
ओझा :
ये आप की समस्याओं को झाड़फूंक के जरीए हल करने का दावा करते हैं. ये कहीं मजारों पर मिलते हैं, कहीं मंदिरों में, कहीं बरगद या पीपल के पेड़ तले तो कहीं घनी आबादी के बीच अपनी दुकान खोल कर बैठे हैं. हाथ में झाड़ूनुमा हथियार ले कर यह पीड़ित व्यक्ति पर उस का वार कर भूत या चुड़ैल उतारने का करतब दिखाते हैं और लोगों से इस के बदले में बड़ी रकम ऐंठते हैं.
गांवदेहातों में ऐसे ओझाओं की बड़ी पूछ है. वहां हर मर्ज का इलाज ओझा के पास होता है. बदले में भोलेभाले गांव वाले इन पर अपनी कमाई, अनाज, घी, तेल, दूधदही वगैरह खूब चढ़ाते हैं.
बाराबंकी में तो ओझाओं का बाकायदा एक गांव बसा हुआ है – ओझियापुर. यहां दूरदूर से लोग अपनी समस्याओं का समाधान करवाने आते हैं. सांप या बिच्छू के काटने के कारण बेहोश हुए लोगों को चारपाई पर उठा कर इस गांव में लाते आएदिन देखा जाता है.
तांत्रिक :
तांत्रिक तंत्रमंत्र के जरीए आप की समस्याओं का समाधान करने का दावा करते हैं. इन के बड़े विज्ञापन अखबारों में देखने को मिल जाएंगे. बंगाली बाबा, जुमाली बाबा, तांत्रिक बाबा, जो हवनपूजा के जरीए आप की परेशानी सौ फीसदी खत्म करने का दावा करेंगे. इन की एक कमरे की छोटीछोटी दुकानें घनी आबादी के बीच खुलती हैं. इन के कई चेलेचापड़ होते हैं.किराए की दुकाने लेते हैं, ताकि बोरियाबिस्तर समेट कर भागने में देर न लगे. बाहर छोटा सा रिसेप्शन बना कर वहां किसी कम उम्र की महिला को गेरुए वस्त्रों में बिठा देते हैं और अंदर पूरे कमरे को जादुई लुक देने के लिए लाल बल्ब जला कर झंडियों और चमकीली पन्नियों से सजाते हैं. फर्श पर लाल कालीन पर एक हवन कुंड होता है और उस के पीछे काले कपड़ों में बाबा बैठता है. लंबी दाढ़ी, कंधे तक लंबे बाल और सिर पर बंधे चमकीले साफे में वह कोई जादूगर सा लगता है.
आमतौर पर तांत्रिक पीड़ित व्यक्ति की समस्या को दूर करने के लिए तंत्रमंत्र पढ़ने के पैसे लेता है, जो 500 रुपए से कई हजार तक हो सकते हैं. फिर वह उन से हवन कराने के नाम पर हवन सामग्री मंगवाता है, जो उस की बताई दुकान से ही लानी होती है. ये सामग्री 5,000 रुपए या इस से अधिक हो सकती है.
कुछ तांत्रिक और भी ज्यादा खतरनाक होते हैं. वे आप की समस्या का समाधान करने के लिए आप से बलि चढ़ाने को कहते हैं. ये बलि भेड़ या बकरे की हो सकती है. कई ऐसे मामले भी सामने आ चुके हैं, जब मां बनने की ख्वाहिश रखने वाली महिला को किसी बच्चे की बलि देने को कहा गया. कई बदमाश तांत्रिक महिलाओं को प्रसाद के रूप में नशीले पदार्थ खिला कर उन के साथ यौनाचार करने के आरोप में जेल जा चुके हैं. बावजूद इस के लोगों की आंख नहीं खुलती.
नाड़ी शास्त्र : नाड़ी शास्त्र के जरीए आप का भूत और भविष्य बताने वाले पाखंडियों का स्तर ओझा और तांत्रिकों से कुछ उठा हुआ होता है. ये बड़े ठग हैं और इन की बड़ी दुकानें पौश एरिया में होती हैं. इन के ग्राहक भी पैसे वाले होते हैं.
देशभर में नाड़ी शास्त्र वालों का जाल बिछा है. दरअसल, ये दक्षिण भारत के ठग हैं, जो पुराने कागज जैसे पतरों की मोटीमोटी फाइलें रखते हैं, जिन पर धुंधली लिखावट में दक्षिण भाषा में कुछ लिखा होता है. ये दावा करते हैं कि उन के पास मौजूद इन फाइलों में दुनियाभर के लोगों का भूत, वर्तमान और भविष्य दर्ज है.
यहां तक कि ये आप के पूर्व जन्मों का लेखाजोखा भी होने की बात करते हैं. नाड़ी शास्त्र की दुकानों में सफेद कुरते, लुंगी, कंधे पर साफे और माथे पर चंदन का तिलक लगाए 10-12 लोग मिलेंगे. रिसेप्शन पर आप की जन्मतिथि पूछ कर आप को अगले कुछ दिनों में आने के लिए कहा जाएगा. इन की अपॉइंटमैंट फीस ही 3,000 से 5,000 रुपए तक होती है. अगली तारीख पर आप के सामने 2 ठग बैठेंगे, जिन में से एक पतरों की मोटी सी फाइल खोल कर दक्षिण भारतीय भाषा में कुछ पढ़ना शुरू करता है और दूसरा उस का हिंदी अनुवाद कर के आप से औब्जेक्टिव टाइप सवालों के जरीए आप का नाम, मातापिता का नाम, जन्मस्थान, बहनभाइयों की संख्या आदि बता कर आप का विश्वास जीतता है. यदि आप से उस ने इतना उगलवा लिया, तो ‘आप के पतरे का मिलान ठीक हो गया‘, कह कर समस्या के समाधान के लिए अगली तारीख दी जाती है. यदि सब ठीक पता नहीं लग पाया तो कहा जाता है कि आप का पतरा इस जगह नहीं है, उस को हमारे दूसरे संस्थान से मंगवाना होगा, टाइम लगेगा, अगली तारीख ले लीजिए.
इस तरह के नाटकों के जरीए ये पीड़ित व्यक्तियों का विश्वास प्राप्त करते हैं. अगली तारीखों में ये समस्याएं पूछते हैं और आप के पूर्व जन्मों के कर्मों के आधार पर मनगढंत उपाय सुझाते हैं, जिस में हवन करवाना, पूजा करवाना, माला जपवाना आदि शामिल हैं, जो वही लोग करते हैं, मगर इस के लिए आप को 50,000 रुपए तक का चूना लग सकता है. समस्या समाप्त होगी या नहीं, इस की कोई गारंटी नहीं है.
नाड़ी शास्त्र ठगों के विज्ञापन अखबारों में, यूट्यूब, इंटरनेट पर खूब दिखते हैं. इन के वहां मूर्ख और धनी लोगों की खूब भीड़ जुटती है, वहीं स्थानीय पुलिस से भी इन की अच्छी सांठगांठ रहती है. इन की धोखाधड़ी के खिलाफ तमाम मुकदमे दर्ज होने के बावजूद इन की दुकानें धड़ल्ले से चल रही हैं.
मजार :
अजमेर शरीफ, निजामुद्दीन, काले बाबा की मजार, शाहमीना शाह की मजार, कैप्टन बाबा की मजार, देवा शरीफ ये तमाम नाम लोगों के सुने हुए हैं. इन मजारों पर लोगों को मूर्ख बनाने और पैसे ऐंठने का धंधा बरसों से फलफूल रहा है.
मानसिक बीमारी से ग्रस्त लोगों को इन मजारों पर झाड़फूंक के लिए देश के कोनेकोने से लाया जाता है. कुछ मजारों पर तो मानसिक रोगियों को जंजीरों में बांध कर 14 से 21 दिन तक खुले में रखा जाता है. भूतप्रेत उतारने के नाम पर उन को छड़ी से पीटा जाता है. इस में बड़ी संख्या में औरतें होती हैं. कुछ औरतें यहां बाल खोल कर, कपड़े बिखेर कर अजीब अंदाज में झूमती दिखती हैं और खुद पर डायन या चुड़ैल आने की बात करती हुई वातावरण को डरावना बनाने की कोशिश करती हैं. इन मजारों पर रोजाना लाखों रुपयों का चढ़ावा, चादर चढ़ते हैं. इन मजारों के चारों ओर बड़ी संख्या में चढ़ावा, चादरों, अगरबत्ती, मोमबत्ती, धागेताबीज की दुकानें होती हैं. इन्हीं के बीच दलाल घूमते हैं, जो आप की समस्याएं दुआताबीज से दूर करने के लिए आप को अपनी बातों के मकड़जाल में फंसाते हैं. अंधविश्वासी जनता बड़ी आसानी से इन दल्लों का शिकार बनती हैं. ईश्वर भक्ति और धर्मविश्वास के नाम पर इन मजारों के ठगों को भारी जनसमर्थन हासिल है और सत्ता व पुलिस इन की चाकरी बजाती है.
सत्संगी :
सत्संगियों का मार्केट बहुत बड़ा, ताकतवर और धनी है. इन के हाथों मूर्ख बनने वाले भी अधिकतर धनी और रसूखदार लोग होते हैं. इन आश्रमों में साधुसाध्वियों की लंबीचैड़ी फौज होती है. एक प्रमुख बाबा होता है, जो रोज प्रवचन बांचता है. सत्संगियों के बड़ेबड़े आश्रम देशविदेश में चल रहे हैं, जिन में तमाम तरह के अपराध होते हैं. यौनाचार, दुराचार, बलात्कार, हत्या, अपहरण जैसे तमाम जघन्य कांड इन आश्रमों में होते हैं. इन आश्रमों की ताकत इतनी होती है कि सत्ता और पुलिस इन के आगे सिर नवाती है. लिहाजा, ये आश्रम धड़ल्ले से चलते हैं.
कुछ सत्संगी बाबा आजकल अपने कुकर्मों के चलते जेल में भी हैं, जिन में मुख्य नाम हैं – आसाराम, बाबा परमानंद, भीमानंद, रामपाल, नित्यानंद, फलाहारी बाबा, राम रहीम आदि. जेल में होते हुए भी इन के आश्रम बेरोकटोक चल रहे हैं. छोटेछोटे सत्संगी बाबाओं की जमात भी देशभर में आस्था के नाम पर जनता को लूटने और ठगने के ठीए खोल कर बैठी है. इन की शिकार ज्यादातर महिलाएं होती हैं.
ज्योतिषी :
ज्योतिषियों की पूछ आजकल टीवी चैनलों पर खूब है. हर टीवी चैनल पर दोचार ज्योतिषी विराजमान रहते हैं, जो आप की जन्मतिथि मात्र से आप का भूत, भविष्य बांच देते हैं.
सोचिए जरा कि एक तारीख, माह और साल में दुनिया में लाखों लोग पैदा होते हैं और इन ज्योतिषियों की मानें तो उन लाखों लोगों का दिन एकजैसा होगा, उन के साथ एकजैसी घटनाएं होंगी आदि. इन की बेवकूफी भरी बातों के बावजूद ये टीवी चैनलों की टीआरपी बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाते हैं. करोड़ों अंधविश्वासी लोग इन की ऊलजलूल बातों में फंस कर रोजाना टीवी के आगे अपना समय व्यर्थ गंवाते हैं.
ज्योतिषियों की दुकानें भी खूब चलती हैं, जहां कुंडली देख कर समस्याओं का निदान बताया जाता है. ग्रहनक्षत्रों का डर दिखा कर खूब पैसा ऐंठा जाता है. पूजा, हवन, यंत्र द्वारा उपाय किया जाता है. इन के यूट्यूब चैनल भी हैं, सोशल मीडिया पर भी ये छाए हुए हैं, अखबारोंपत्रिकाओं में इन के द्वारा भविष्यफल और अन्य अंधविश्वासी बातें लोगों को मूर्ख बनाने के लिए रोजाना छपती हैं. दरअसल, सारा खेल पैसे का है. मीडिया अपना टीआरपी देखती है और ज्योतिषी बाबा अपना बाजार देखते हैं.
टैरो रीडर
टैरो कार्ड रीडर्स का बाजार भी आजकल खूब परवान चढ़ रहा है. ताश के पत्तों से आप के जीवन की घटनाओ को बताने वाले ठगों के चक्कर में लोग लाखों रुपए गंवा रहे हैं. धनी वर्ग की महिलाएं इन का आसान शिकार होती हैं. यह धंधा ज्यादातर औरतों द्वारा ही संचालित होता है, जहां बड़ेबड़े जड़ाऊ गहनों और भड़काऊ मेकअप से लदी टैरो कार्ड रीडर्स अन्य मूर्ख महिलाओं को ताश के पत्तों से उन का भविष्य बता कर धनउगाही में लिप्त रहती हैं.
वास्तु :
वास्तु शास्त्र के धंधे ने बीते 2 दशकों में भारत में अच्छी जड़ें जमा ली हैं. मध्यम और उच्च वर्ग इन का शिकार है. इन को दफ्तर बनाना है, फैक्टरी डालनी है, घरमकान बनाना है, जमीन खरीदनी है तो पहले ये हजारों रुपए खर्च कर के वास्तुशास्त्री से परामर्श करेंगे. यही नहीं, बिजनेस में नुकसान हुआ, नौकरी चली गई, बीवी से झगड़ा हो गया, बच्चे हाथ से निकल गए, तो ये वास्तुशास्त्री इस का कारण बताएंगे कि आप के घर का वास्तु बिगड़ा हुआ है, और ऐसा कह कर ये बनेबनाए घर को तुड़वा भी देंगे या उस में तमाम परिवर्तन करवा डालेंगे, जिस में आप के लाखों रुपए खर्च हो जाएंगे.
वास्तु के साथ एक अन्य धंधा भी जोरों पर है. क्रिस्टल, तांबे, पीतल आदि के जानवर, फूल या यंत्र, जिन से बाजार पटे पड़े हैं. आप की तरक्की नहीं हो रही है, तो आप अपने औफिस में क्रिस्टल का घोड़ा रख लें. घर में पैसा नहीं आ रहा है, तो क्रिस्टल का मेंढक या कछुआ रखें.
ऐसी तमाम बेवकूफियों से सोशल मीडिया भी भरा हुआ है. इन के पीछे भी लोगों का लाखोंकरोड़ों रुपया बरबाद हो रहा है.