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बिग बॉस 14 के घर से बाहर जाने के बाद इस हाउसमेट को मिस करेंगी पवित्रा, हुई इमोशनल

बिग बॉस 14 के सफर में एक और वीकेंड का वार इंतजार कर रहा है. हर वीकेंड के वार में सलमान खान घर के सदस्यों को घर से बाहर का रास्ता दिखाते हैं. यहीं वजह है कि वीकेंड का वार नाम सुनते ही घरवाले घबरा जाते हैं.

इस सप्ताह भी घर का एक सदस्य घर से बाहर हो जाएगा. वहीं वीकेंड का वार आते ही पवित्रा पुनिया परेशान हो गई हैं. पवित्रा पुनिया को यह डर सता रहा है कि वह इस सप्ताह घर से बेघर हो सकती हैं. तो अब उन्हें बहुत सी चीजों की याद आने लगी है.

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वहीं बात करते हुए पवित्रा पुनिया ने एजाज खान का नाम लिया है. पवित्रा पुनिया ने कह कि वह एजाज खान को बहुत ज्यादा मिस करने वाली हैं. इस बात को कहते हुए पवित्रा इमोशनल हो गई.

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पवित्रा के आंख में आंसू देखते हुए एजाज खान कहते हैं कि यह कहना बहुत ज्यादा मुश्किल होगा कि घर में तुम्हारे अलावा औऱ भी लोग नॉमिनेट हुए हैं किसका जाना तय होगा अभी वक्त बताएगा.

पवित्रा के इस बात से कयास लगाए जा रहे हैं कि कहीं न कहीं पवित्रा भी घरसे बेघर होने वाली हैं. तभी उन्होंने बिना रुके एजाज खान को अपने दिल की बात बता दी.

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हालांकि अभी आगे क्या होने वाला है यह हमें भी पता नहीं है किकौन रहेगा और कौन जाएगा.

सुख का संसार-भाग 3 : शिल्पी ने कैसे पूरा किया अपना कर्तव्य

सिर्फ एक ही बार तो रोका था. शिल्पी ने दोबारा खर्चा देने की पेशकश क्यों नहीं की? वह घर की स्थिति से अनजान तो नहीं है. रुपयों की कमी के कारण त्योहारों पर भी बच्चों के कपड़े नहीं बन पाते. वर्षों से शिखा मामूली साडि़यों में गुजारा कर रही है. क्या शिल्पी को यह सब दिखाई नहीं देता?

शिखा के जी में आ रहा था, शिल्पी को खूब खरीखोटी सुना कर मन की भड़ास निकाल ले. रूठ कर शिल्पी अलग हो जाएगी तो हो जाए. साथ में रह कर ही वह किसी का क्या भला कर रही है. कभी यह भी नहीं सोचती, जेठानी को थकान लग रही होगी. चाय बना कर पिला दे. थोड़ाबहुत घर के कामों में हाथ बंटा दे. आते ही बिस्तर पर पसर जाती है.

अभय ही कौन सा दूध का धुला है? घर के खर्चे का बोझ हलका करना चाहता तो क्या कोई उस का हाथ पकड़ लेता? सिर्फ झूठमूठ का खर्चा देने का नाटक किया था. परंतु डब्बू का?भोला चेहरा देखते ही शिखा के विचार बदल गए. मांबाप के स्वार्थ की सजा डब्बू को क्यों मिले?

अगर अभय, शिल्पी अलग रहने लगे तो यह मासूम नौकरों का मुहताज बन जाएगा. इस की परवरिश कैसे हो पाएगी? जैसे गौरव उस का बेटा है, वैसे डब्बू भी है. शिल्पी ने उसे जन्म दिया है तो क्या हुआ. ममता, स्नेह, दुलार दे कर तो वह ही पाल रही है.

शिखा ने देवरदेवरानी को इस बारे में अनभिज्ञ रखना ही उचित समझा. अकारण घर में कलह हो या वे दोनों कुछ गलत अर्थ लगा बैठें इसलिए उस ने रुपयों की कमी की या गौरव की पढ़ाई की किसी प्रकार की चर्चा घर में नहीं की.

लेकिन रुपयों की कमी की वजह से गौरव के मन को ठेस पहुंचाना भी उचित नहीं था. उत्साह भंग हो जाने से महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति न हो पाने के कारण गौरव का मानसिक संतुलन भी बिगड़ सकता था.

शिखा को अपने दोचार सोने के आभूषणों का खयाल हो आया. आभूषण बेटे से अधिक कीमती थोड़े ही थे? बेटे की खुशियों के लिए शिखा अपना जीवन तक बलिदान करने को तत्पर थी. फिर बेजान आभूषण क्या माने रखते थे?

वह घर में सब से छिपा कर आभूषण बेच रुपए ले आई. चंदे का, किराए का, इंतजाम तो हो ही चुका था. गौरव के मासिक खर्चे की इतनी फिक्र नहीं थी. जिस तरह से पेट काट कर अभय को डाक्टर बनाया था उसी प्रकार गौरव की पढ़ाई चल सकती थी.

शिखा तरहतरह की गुडि़या बनाने में पारंगत थी. घर के कामों से अवकाश पा कर व वक्त का सदुपयोग कर आसानी से वह 200-300 रुपए महावार कमा सकती थी.

दिनेश चकित रह गया. शिखा के पास इतना रुपया कहां से आ गया? हकीकत जानने, समझने का वक्त नहीं था. गौरव के जाने में सिर्फ एक दिन का वक्त ही तो बाकी बचा था.

बड़े उत्साह से शिखा गौरव के साथ रखने के लिए मठरी, पापड़ी तल रही थी. बेटे से लंबे अर्से तक अलग रहने के खयाल से उस की आंखें बारबार भर आती थीं. दोनों बेटियां भी बारबार आंखें पोंछ रही थीं.

शिल्पी आज कुछ देर से घर लौटी. बड़ी परेशान, गंभीर लग रही थी. आते ही सिर थाम कर कुरसी पर बैठ गई.

कुछ अनहोनी तो नहीं हो गई? शिखा का दिल आशंकाओं से धड़क उठा. उस ने प्रतिदिन की भांति चाय बना कर शिल्पी को दी तो वह फूट पड़ी, ‘‘भाभी, तुम मुझे कब तक पराया समझती रहोगी? क्या मैं इस घर की बहू नहीं हूं?’’

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘भाभी, घर में रुपए की कमी थी तो अभय से या मुझ से क्यों नहीं कहा? चुपचाप बाजार जा कर अपने आभूषण क्यों बेच दिए?’’

शिखा घबरा गई. आभूषण बेचने की बात कानों में पड़ने से कहीं गौरव इंजीनियरिंग पढ़ने का इरादा न बदल डाले. उस ने शीघ्रता से कमरे का दरवाजा बंद कर लिया. फिर शिल्पी से चुप हो जाने का आग्रह करने लगी.

शिल्पा कहे जा रही?थी, ‘‘यह तो अच्छा हुआ, वह सर्राफ मामाजी का परिचित था. वह आप को जानता था. उस ने मामाजी से यह बात बतला दी. मामाजी घबराए हुए अस्पताल में मेरे पास पहुंचे, मुझे खूब लताड़ा. ऊंचनीच समझाई कि मैं बहुत लापरवाह हूं, घर का ध्यान नहीं रखती, जेठजेठानी को सता रही हूं, घर में डाक्टर बहू लाने का उन्हें क्या लाभ रहा. मुझे माफ कर दो भाभी. सचमुच मुझ से बहुत भारी भूल हो चुकी है.’’

शिल्पी की आंखों से पश्चात्ताप के आंसू बहने लगे थे. ‘‘अरेअरे, यह क्या करती है? बच्चों की तरह रोने बैठ गई. थकीहारी आई है, ले चाय पी, ठंडी हुई जा रही है,’’ शिखा द्रवित हो कर शिल्पी के आंसू पोंछने लगी.

‘‘मैं आप के सभी आभूषण वापस ले आई हूं, भाभी. मेरे खाते में जितने रुपए जमा थे वे भी निकाल कर ले आई हूं. आप ने कभी कुछ नहीं मांगा, न कभी रुपए लिए. मामाजी ने भी मुझ से कोई आर्थिक सहायता स्वीकार नहीं की. उलटे डांट पिलाई. बताओ भाभी, आखिर मैं इन रुपयों का क्या करूं?’’

‘‘इतने ढेर सारे रुपए निकाल कर ले आई. यह क्या नादानी की तू ने? रास्ते में कोई गुंडा पर्स पार कर देता तो? इन रुपयों को वापस बैंक में जमा कर आना. तुम दोनों को नर्सिंग होम और अपनी कोठी भी तो बनवानी है. मेरे आभूषण ले आई, तेरा यह एहसान ही क्या कम है, मेरे ऊपर?’’

‘‘भाभी, पराएपन की बातें करोगी तो मैं फिर से रोना शुरू कर दूंगी. जिस तरह से डब्बू आप का बेटा है, क्या गौरव मेरा बेटा नहीं है? गौरव को लिखानेपढ़ाने की जिम्मेदारी मेरी है, आप की नहीं.’’

एहसानों के भार से शिखा का सिर झुका जा रहा था. वह भरे गले से बोली, ‘‘तुम्हें भी तो रुपए चाहिए. अपने गाढ़े परिश्रम की कमाई हमारे ऊपर खर्च कर डालोगी तो तुम्हारी कोठी कैसे बनेगी? यह गंदा महल्ला, पुराना मकान किसी डाक्टर के रहने के योग्य कहां है?’’

‘‘आप को छोड़ कर हम कहीं नहीं जाएंगे, भाभी. हमारा मन नहीं लगेगा. डब्बू भी आप के बिना नहीं रह पाएगा. अगर कभी कोठी बनेगी तो सभी के लिए बनेगी. सब इकट्ठे रहेंगे.’’

शिखा को लगा, इस पुराने मकान की दीवारें अब और अधिक मजबूत हो उठी हैं. उस ने शिल्पी को समझने में बहुत बड़ी भूल की थी.

अगर वह सहनशीलता से काम न ले कर शिल्पी से तकरार कर बैठती तो? वर्षों से एकसूत्र में बंधा परिवार तिनकेतिनके हो कर बिखर जाता.

पर शिखा के धैर्य, संयम व गुणवती शिल्पी की बुद्धिमता, साथ ही दोनों के आपसी प्यार ने सुख के नए संसार का सृजन कर डाला.

सुख का संसार-भाग 2 : शिल्पी ने कैसे पूरा किया अपना कर्तव्य

‘‘लेकिन भैया, मेरा इस घर के लिए भी तो कुछ फर्ज है?’’ उलझन में पड़ी शिल्पी ने पूछा.

‘‘इस घर के खर्चे की चिंता मत करो. मैं इतना तो कमा लेता हूं, जिस से सब का खानापीना चलता रहे.’’

दिनेश ने शिल्पी के नाम से बैंक में खाता खुलवा दिया और कह दिया, ‘‘जो रुपए बचें वे नर्सिंग होम बनवाने के लिए जमा करती जाओ.’’

धीरेधीरे अभय की डाक्टरी चल निकली. उस ने घर में रुपए देने चाहे तो दिनेश ने मना कर दिया. अभय को अपने लिए नर्सिंग होम कोठी बनवाने व कार खरीदने के लिए भी तो रुपए चाहिए. डाक्टर हो कर इस पुराने छोटे से घर में रहेगा तो लोग क्या कहेंगे. अभी से रुपए जोड़ना शुरू करेगा तो वर्षों में जुड़ पाएंगे.

शिल्पी की तरह फिर अभय ने भी चुप लगा ली. दोनों पतिपत्नी कभीकभार कुछ नाश्ते का सामान, फल, सब्जी वगैरा खरीद कर ले आते थे.

शिल्पी के पांव भारी हुए तो शिखा ने उसे सुबह का नाश्ता बनाने से भी रोक दिया. अस्पताल में तो सुबह से शाम तक मरीजों से सिर मारना ही पड़ता है. घर में तो आराम मिल जाए.

शिल्पी मां बनी तो शिखा ने उस के बेटे डब्बू को पालने का पूरा भार अपने कंधों पर ले लिया. वह डब्बू के पोतड़े भी हंसीखुशी धोती थी.

शिल्पी व अभय दोनों ने डब्बू की देखरेख के लिए कोई आया रखने की पेशकश की तो शिखा ने मना कर दिया. क्या यह उचित लगता है कि उस के रहते डब्बू आया की गोद में पले? नवजात शिशु के लालनपालन के लिए आया पर विश्वास भी तो नहीं किया जा सकता. जरा सी असावधानी शिशु के लिए जानलेवा बन सकती है.

शिल्पी 2 माह के डब्बू को जेठानी की गोद में सौंप कर निश्चिंत हो कर पुन: अस्पताल जाने लगी.

शिखा के तीनों बच्चे हर वक्त डब्बू के इर्दगिर्द मंडराते रहते. डब्बू सभी के हाथों का खिलौना बन गया था. दिनेश भी रात को दुकान से आ कर डब्बू को उछालउछाल कर खूब हंसाता और अपने पूरे दिन की थकावट भूल जाता था.

अब तक अभय अपनी डाक्टरी में इतना अधिक व्यस्त हो चुका था कि अपने बेटे को गोद में ले कर पुचकारनेदुलारने का वक्त भी नहीं निकाल पाता था.

शिखा का बड़ा बेटा गौरव 3 वर्ष से लगातार इंजीनियरिंग की प्रतियोगिता में बैठता आ रहा था. गौरव की योग्यता देख कर सभी को उस के प्रतियोगिता में आ जाने की उम्मीद थी. पर पता नहीं क्यों गौरव को इस बार भी असफलता ही मिली.

तीसरी बार असफल हो कर गौरव पूरी तरह से निराश हो उठा. इंजीनियर बनने की इच्छा पूरी होने के आसार नजर नहीं आए तो गौरव का मन क्षुब्ध हो उठा. पढ़ाई से जी उचटने लगा.

गौरव को दुखी देख कर शिखा व दिनेश का मन भी बेचैन रहने लगा. दोनों वर्षों से बेटे को इंजीनियर बनाने के सपने देखते आए थे.

लेकिन सपने क्या आसानी से सच हुआ करते हैं? घर में आर्थिक अभाव हो तो छोटेछोटे खर्चे भी पहाड़ मालूम पड़ने लगते हैं.

गौरव के एक मित्र ने चंदा दे कर किसी इंजीनियरिंग कालिज में दाखिला करा देने का प्रस्ताव रखा तो पहली बार दिनेश को अपनी आर्थिक अक्षमता का बोध हुआ.

कहां से लाए वह 30-35 हजार रुपए? फिर गौरव की पढ़ाई और छात्रावास का खर्चा. कैसे पूरा कर सकेगा वह?

दोनों बेटियां भी तो विवाह योग्य होती जा रही थीं और घर का दिनप्रतिदिन बढ़ता हुआ हजारों का खर्चा.

गौरव ने पहले तो चंदा दे कर दाखिला लेने से इनकार कर दिया. उस की नजरों में चंदा देना रिश्वत देने के समान था.

लेकिन जब उस ने अपने मित्रों को चंदा दे कर, दाखिला लेते देखा तो वह तैयार हो गया.

दिनेश ने जब शिखा को बतलाया कि वह गौरव की पढ़ाई का खर्चा उठाने में असमर्थ है तो चिंता के कारण शिखा की भूखप्यास मिट गई. उस ने पहली बार पति के सामने जबान खोली, ‘‘जब भाई को डाक्टरी पढ़ाई थी, तब उस का हजारों का खर्च भारी नहीं लगा था. आज मेरे बेटे की पढ़ाई बोझ लगने लगी है.’’

‘‘गौरव अकेला तुम्हारा ही नहीं, मेरा भी तो बेटा है, शिखा. मेरी बात समझने की कोशिश करो. जब अभय पढ़ रहा था तब घर में अधिक खर्चा नहीं था. मेरी दुकान में उस वक्त अधिक आमदनी हुआ करती थी,’’ दिनेश के स्वर में विवशता थी.

‘‘तो अभय से मांग लो. उस की डाक्टरी तो अब खूब चलने लगी है.’’

‘‘अभय के पास इस वक्त इतने रुपए नहीं होंगे. कुछ दिन पहले उस ने नए डाक्टरी उपकरण खरीदे हैं, दुकान का फर्नीचर बनवाया है.’’

‘‘शिल्पी से मांग लो.’’

‘‘मुझे किसी से कुछ मांगना अच्छा नहीं लगता, शिखा. शिल्पी क्या सोचेगी? जेठजेठानी दो वक्त का साधारण भोजन खिलाते हैं और बदले में हजारों रुपए मांग रहे हैं. हो सकता?है नाराज हो कर वह अलग घर में रहना शुरू कर दे.’’

‘‘तुम्हें दूसरों की चिंता अधिक है. अपने इकलौते बेटे का बिलकुल खयाल नहीं है. आखिर गौरव की पढ़ाई का क्या होगा?’’

दिनेश के पास शिखा की बात का कोई उत्तर नहीं था.

आक्रोश से भरी शिखा अंदर ही अंदर गीली लकड़ी की भांति सुलगती. उस के मन में बारबार एक ही विचार पनप रहा था. क्या अभय व शिल्पी का कोई फर्ज नहीं है? दोनों अपनेअपने पैरों पर खड़े हैं. आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं. क्या अपना खुद का खर्चा भी नहीं उठा सकते?

उसे अपने ऊपर भी बेहद क्रोध आ रहा था. उस की अक्ल पर पत्थर पड़ गए थे जब उस ने शिल्पी को घर में खर्चा देने से रोक दिया था?

गन्ने की वैज्ञानिक खेती

गन्ना भारत की पुरानी फसलों में से एक है. यह हमारे देश की प्रमुख नकदी फसलों में से एक है. चीनी उद्योग दूसरा सब से बड़ा कृषि आधारित उद्योग है, जो सिर्फ गन्ना उत्पादन पर निर्भर है. गन्ना सकल घरेलू उत्पाद के लिए 2 फीसदी योगदान कर के राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में खास भूमिका निभाता है. उत्तर प्रदेश गन्ना उत्पादक राज्यों में देश भर में सब से आगे है. पूरे भारत के कुल गन्ने रकबे 36.61 लाख हेक्टयर का 53 फीसदी से भी अधिक रकबा अकेले उत्तर प्रदेश में है. वैसे प्रदेश की औसत गन्ना पैदावार करीब 61 टन प्रति हेक्टयर है, जो देश के अन्य राज्यों तमिलनाडु 106 टन, पश्चिमी बंगाल 74 टन, आंध्र प्रदेश व गुजराज 72 टन और कर्नाटक 67 टन प्रति हेक्टयर से काफी कम है. संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के एक अनुमान के मुताबिक संसार के कुल गन्ना उत्पादन का करीब 55 फीसदी हिस्सा तमाम कीड़ोंबीमारियों व खरपतवारों द्वारा नष्ट कर दिया जाता है. गन्ने की वैज्ञानिक विधि से खेती करने से उत्पादन में इजाफा किया जा सकता है.

मिट्टी व खेत की तैयारी : गन्ने के लिए दोमट जमीन सब से अच्छी है. वैसे भारी दोमट मिट्टी में भी गन्ने की अच्छी फसल हो सकती है. गन्ने की खेती के लिए पानी निकलने का सही इंतजाम होना चाहिए.

जिस मिट्टी में पानी रुकता हो वह गन्ने के लिए ठीक नहीं है. क्षारीय या अम्लीय जमीन भी गन्ने के लायक नहीं समझी जाती है. खेत को तैयार करने के लिए 1 बार मिटटी पलटने वाले हल से जोत कर 3 बार हैरो से जुताई करनी चाहिए. देशी हल की 5 से 6 जुताइयां काफी होती हैं. बोआई के समय खेत में नमी होना जरूरी है. जमीन का शोधन : दीमक लगी जमीन में कूड़ों में बीजों के ऊपर क्लोरोपाइरीफास दवा का इस्तेमाल करें. यदि बाद में भी दीमक का असर दिखाई दे, तो खड़ी फसल में सिंचाई के पानी के साथ बूंदबूंद विधि द्वारा क्लोरोपाइरीफास कीटनाशक का ही इस्तेमाल करें. हेप्टाक्लोर 20 ईसी दवा की 6.25 लीटर मात्रा 1000 लीटर पानी में मिला कर गन्नाबीज टुकड़ों पर कूड़ों में छिड़कने से दीमक व कंसुआ कीटों की रोकथाम होती है.

बीज उपचार : जमीन व बीजों में लगे रोगों से फसल को बचाने के लिए गन्ने के टुकड़ों को नम वायु उपचार विधि से उपचारित करने के बाद बोने से पहले फफूंदनाशक दवाओं जैसे एगलाल 1.23 किलोग्राम, एरीटान 625 ग्राम या बैंगलाल 625 ग्राम दवा के 250 लीटर पानी में बनाए घोल में डुबो कर उपचारित करें.

बोआई का समय :  जल्दी व असरदार आंख जमाव के लिए गरम, मगर नमी वाली जमीन जरूरी है. 25 से 30 डिगरी सेल्सियस तापमान में अक्तूबर में शरद कालीन गन्ना बोया जाता है. फरवरी से 15 मार्च तक बसंत कालीन गन्ना बोया जाता है.उत्तर प्रदेश के बडे़ हिस्से जिस में पश्चिमी उत्तर प्रदेश खास है, गेहूं की कटाई के बाद गरमी कालीन गन्ना अप्रैल के आखिरी हफ्ते से जून के पहले हफ्ते तक बोया जाता है. ज्यादा तापमान (40 से 45 डिगरी सेल्सियस) और ज्यादा शर्करा युक्त बीज होने  से जमाव बहुत कम हो जाता है.

बिजाई के नए तरीके मेंड़ें व नाली विधि से सूखे में

बिजाई : मेंड़ें व नालियां 90 सेंटीमीटर के फासले पर ट्रैक्टर चलित रेजर द्वारा बनाई जाती हैं. गन्ने की बिजाई हाथ द्वारा की जाती है. मेंड़ों को कस्सी द्वारा मिट्टी से ढकने के बाद हलकी सिंचाई कर दी जाती है. नमी पैदल चलने लायक होने पर एट्राजीन 2 किलोग्राम मात्रा 350 से 400 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए. उस के बाद जरूरत के मुताबिक सिंचाई करते रहना चाहिए.

टैं्रच तरीके से 2 लाइनों मे बिजाई : ट्रैक्टर चालित ट्रैंच ओपनर द्वारा 150 सेंटीमीटर की दूरी पर 12 से 18 चौड़े ट्रैंच बना दिए जाते है. 2 बराबर लाइनों में 30:30-120 से 30:30 सेंटीमीटर या 30:30-90-30:30 सेंटीमीटर की दूरी पर बिजाई की जाती है. बीच की जगह पर अंत:फसल ली जानी चाहिए. मेंड़ व नाली विधि से ज्यादा उपज व मुनाफा होता है.

गड्ढा विधि : 60 सेंटीमीटर व्यास और 30 सेंटीमीटर गहराई वाले करीब 2700 गोल गड्ढे किसी ट्रैक्टर चलित गड्ढा मशीन द्वारा बनाए जाते हैं, जिन में आपस की दूरी 60 सेंटीमीटर होती है. बिजाई से पहले गड्ढों को हलकी मिट्टी और गोबर की खाद से 15 सेंटीमीटर तक भर दिया जाता है. फिर 22 दो आंखों वाले बीजों के टुकडे़ उन में रख कर 5 सेंटीमीटर तक मिट्टी चढ़ा दी जाती है.

सिंचाई : गन्ने की फसल की पानी की जरूरत काफी ज्यादा है. पूर्वी उत्तर प्रदेश में करीब 4 से 5 और पश्चिमी इलाकों में 6 से 8 सिंचाइयों की जरूरत पड़ती है. सिंचाई सुविधा यदि सीमित हो तो गन्ने के जमाव, कल्लों के निकलने और पकने की अवस्थाओं में सिंचाई जरूर करें. उत्तर प्रदेश के किसान ज्यादातर जलभराव विधि अपनाते हैं, जो सिंचाई के पानी की बरबादी के साथसाथ खरपतवारों और पोशक तत्त्वों की कमी को ही बढ़ावा देती है.

एकांतर नाली विधि में 1 लाइन छोड़ कर हर दूसरी लाइन के बीच खाली जमीन पर 45 सेंटीमीटर चौड़ी और 15 सेंटीमीटर गहरी नाली बना कर पानी दिया जाता है. इस से 36 फीसदी पानी की बचत के साथसाथ उपज भी सामान्य से ज्यादा मिलती है.

पोषक तत्त्वों का इंतजाम : गन्ने की खेती में पोषक तत्त्वों की अहमियत बहुत ज्यादा है. इन की सही मात्रा की जानकारी के लिए मिट्टी की जांच कराना बहुत जरूरी होता है. आमतौर पर 120 से 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 से 80 किलोग्राम फास्फोस्स व 60 किलोग्राम पोटाश सक्रिय तत्त्वों की सिफारिश की जाती है. स्थानीय हालात व मिट्टी के आधार पर दूसरे तत्त्वों का इस्तेमाल भी बहुत जरूरी है.

फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की एकतिहाई मात्रा बोआई के समय कूड़ों में गन्ने के बीजों के नीचे या बीज कूड़ के साथ खोले गए खाली कूंड़ में डालनी चाहिए. नाइट्रोजन की बची मात्रा 2 बार में सिंचाई सुविधा के मुताबिक बारिश शुरू होने से पहले डाल दें. जीवांश की कमी को दूर करने के लिए बोआई से पहले गोबर की खाद 5 से 10 टन प्रति हेक्टेयर (मौजूदगी के मुताबिक) डालें. इस के अलावा हरी खाद फसलों को गन्ने के साथ अंत: फसली फसल के रूप में बो कर 45 से 60 दिनों की अवस्था में खेत में मिलाएं.  गन्ना पेडी में 25 से 30 फीसदी ज्यादा नाइट्रोजन व फास्फोरस और पोटाश की तय मात्रा जरूर डालें.

खरपतवारों की रोकथाम : गन्ने में मोथा, पत्थर चट्टा, वनचरी, कृष्णनील, बथुआ, जंगलगोभी, दूब घास, कांग्रेस घास व पारथेनियम घास जैसे तमाम खरपतवार उगते हैं. पिछले कुछ सालों से आइपोमिया प्रजाति की बेल का प्रकोप अधिकतर गन्ना इलाकों में फैला है. यह बेल गन्ने की मेंड़ों को पूरी तरह जकड़ कर गन्ने के फुटाब व बढ़वार पर बहुत खराब असर डालती है.

बोआई के ठीक बाद जमाव से पहले एट्राजीन या सोमाजिन दवा के 2 किलोग्राम सक्रिय तत्त्व को 700 से 800 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करने और 30 से 40 दिनों बाद 2 से 4 डी नामक रसायन के 1.5 किलोग्राम सक्रिय तत्त्व को 800 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करने से करीबकरीब सभी खरपतवार खत्म हो जाते हैं. एट्राजीन के बाद 25 से 30 दिनों पर 1 बार जुताई व गुड़ाई कर देने से भी खरपतवार खत्म होते हैं.

दूसरे जरूरी काम

गन्ने की कटाई व सिंचाई के फौरन बाद ठूठों की छंटाई जरूर करें. यदि गन्ने के 2 थानों के बीच 45 सेंटीमीटर या इस से ज्यादा जगह खाली हो तो 25 से 30 दिनों की तैयार की भराई 15 अप्रैल तक जरूर कर दें. पौधों को गिरने से बचाने के लिए मिट्टी चढ़ाएं व बंधाई करें. मिट्टी चढ़ाना व फसल की बंधाई करना : बरसात शुरू होने से पहले यदि मिट्टी चढ़ा देते हैं, तो बाद में उगे खरपतवारों की रोकथाम के साथसाथ बारिश के पानी का ज्यादा संरक्षण व फसल का गिरना कम होता है. ज्यादा बढ़वार वाली गन्ने की फसल को गिरने से बचाने के लिए जरूरत के मुताबिक 1 से 3 बंधाई भी जरूर करें. फसल गिरने से उपज में भारी कमी आती?है और गन्ने की शक्कर में कमी होती है और जलकल्लों का ज्यादा जमाव होता है.

कटाई : जैसे ही हैंड रिप्रफैक्टोमीटर दस्ती आवर्तन मापी का बिंदु 18 पर पहुंचे तो गन्ने की कटाई शुरू कर देनी चाहिए. यंत्र न होने पर गन्ने की मिठास से भी गन्ने के पकने का पता लगाया जा सकता है. नवंबर से जनवरी तक तापमान कम होने के कारण काटे गए गन्ने में फुटाव कम होता है, नतीजतन उस की पेडी अच्छी नहीं होती है. लिहाजा पेडी से ज्यादा उत्पादन लेने के लिए गन्ने की कटाई मध्य जनवरी से मार्च तक करनी चाहिए.

गन्ने की कटाई की सही विधि : मेंड़ें समतल कर के गन्ने की कटाई तेज धार वाले हथियार से जमीन की सतह से करनी चाहिए. ऐसा न करने पर अंकुर पेड़ के ऊपर निकलने के कारण पैदावार कम होगी. अगर समय से गन्ने की कटाई कर रहे हों, तो जलकल्लों को काट देना चाहिए और देर से अप्रैलमई में कटाई करने पर जलकल्लों को छोड़ना फायदेमंद रहता है.

उपज : गन्ने की वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर 60 से 75 टन प्रति हेक्टेयर उपज ली जा सकती है.

गन्ने के रोग और रोकथाम

लाल सड़न (कोलेटाट्राइकम फालकेटम) : तने को लंबाई में चीरने पर अंदर का गूदा लाल रंग का दिखाई देता है. रोगी गन्ने के गूदे से सिरके जैसी बदबू आती है. बाद में गन्ना खोखला हो कर सूख जाता है और वजन बहुत कम हो जाता है. खोखली पोरियों में फफूंदी लगने से कभीकभी भूरेलाल रंग की फफूंदी भी दिखायी देती है. गन्ना गांठ से आसानी से टूट जाता है.

रोकथाम

गन्ने के?टुकड़ों को बोने से पहले कार्बेंडाजिम फफूंदीनाशक के 0.1 फीसदी घोल में 10 मिनट के लिए डुबो लेना चाहिए. गन्ने की पोरियों को वायुरुद्व कक्ष मे 54 डिगरी सेंटीग्रेड पर 8 घंटे तक रखने पर लाल सड़न रोग का कवक बेकार हो जाता है. रोगरोधी किस्में जैसे को 100, को 1336, को 62399, कोएस 510, बीओ 91 व बीओ 70 आदि का इस्तेमाल बोआई के लिए करें.

उकठा (सिफैलोस्पोरियम सेकेराई) : पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और मुरझा जाती हैं. रोगी गन्ने को लंबाई में चीर कर देखने पर मटियाला लाल दिखाई देता है. गन्ना सूख कर हलका और पिचक कर खोखला हो जाता है. रोगी पौधों से सड़ी हुई मछली जैसी गंध आती है. गन्ने के वजन व गुणवत्ता में कमी आ जाती है.

रोकथाम

फसलचक्र में 2 या 3 साल में कम से कम 1 बार हरी खाद के रुप में ढैंचा जरूर उगाएं. गन्ने के टुकड़ों को बोने से पहले एगालाल या ऐरीटान 0.25 फीसदी के घोल में 10 मिनट तक डुबोएं.

कुडुवा (अस्टीलगो सिटैमीनिया) : रोगी पौधों के सिरे से काले रंग के चाबुक के आकार का भाग का निकलता है. इसे एक चमकीली झिल्ली ढके रहती है, जिस में काले रंग का चूर्ण भरा होता है. यह चूर्ण फफूंद के बीजाणु होते हैं.

रोकथाम

रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ कर खत्म कर दें. रोगी फसल की पेड़ी नहीं लेनी चाहिए. रोगरोधी किस्में को 449, को 6806 आदि उगानी चाहिए. मोजैक (विषाणु) : ग्रसित पौधों में पत्ती के हरे रंग के बीच में हरेपीले धब्बे पाए जाते हैं. शक्कर व गुड़ की मात्रा व गुणवत्ता पर इस का बुरा असर पड़ता है.

रोकथाम

माहूं इस रोग को फैलाता है. मेटासिस्टाक्स 30 ईसी या रोगोर 30 ईसी प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर इस्तेमाल करें.

पोक्हा बोइंग : रोग का लक्षण जूनजूलाई में दिखता है. रोगग्रस्त पौधों के गोब की ऊपरी पत्तियां आपस में उलझी हुई होती हैं, जो बाद की अवस्था में किनारे से कटती जाती हैं. गन्ने की गोब पतलीलंबी हो जाती है. छोटीछोटी 1-2 पत्तियां ही लगी होती हैं. अंत में गन्ने  की गोब की बढ़वार वाला  अगला भाग मर जाता है और सड़ने जैसी गंध आती है.

रोकथाम

इस की रोकथाम अवरोधी किस्मों की खेती द्वारा की जा सकती है. इस बीमारी के लक्षण दिखाई देने पर कार्बेंडाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी या कापर आक्सीक्लोराइड 2 ग्राम प्रति लीटर पानी या मैंकोजेब 3 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से फसल पर छिड़काव कर के इस बीमारी के फैलाव को कम किया जा सकता है.

खास कीड़े और उन की रोकथाम

दीमक (ओडोंटोटर्मिस ओबेसेस) : ये कीड़े गन्ने की बोआई के बाद गन्ने के टुकड़ों के कटे सिरों व टुकड़ों पर मौजूद आंखों पर आक्रमण कर के हानि पहुंचाते हैं. ये जमीन के पास वाली पोरियों का गूदा खा जाते हैं.

रोकथाम

गन्ने के टुकड़ों को बोआई से पहले इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लूएस से उपचारित कर लेना चाहिए. 1 किलोग्राम बिवेरिया व 1 किलोग्राम मेटारिजयम को प्रभावित खेत में प्रति एकड़ की दर से बोआई से पहले डालें. सिंचाई के समय इंजन से निकले हुए तेल की 2-3 लीटर मात्रा डालें. प्रकोप ज्यादा होने पर क्लेरोपाइरीफास 20 ईसी की 3-4 लीटर मात्रा को रेत में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.

व्हाइट ग्रब ( होलोट्राईकिया कोनसेनजिनिया) : इस की सूंड़ी जमीन के अंदर रहती है और गन्ने के जीवित पौधों की जड़ों को खाती है, सूंड़ी द्वारा जड़ को काट देने से पूरा पौधा पीला पड़ कर सूखने लगता है.

रोकथाम

बोआई से पहले ब्यूवेरिया ब्रोंगनियार्टी की 1.0 किलोग्राम व मेटारायजियम एनासोप्ली की 1.0 किलोग्राम मात्रा प्रभावित खेत में प्रति एकड़ की दर से बोआई से पहले डालें. कीटनाशी रसायन क्लोरपायरीफास 10 ईसी, क्विनालफास 25 ईसी व इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल द्वारा गन्ने के बीज उपचारित करें. गन्ना बोने से पहले दानेदार कीटनाशी रसायन फोरेट 10 जी की 25 किलोग्राम मात्रा से प्रति हेक्टेयर की दर से जमीनउपचारित करें. इस प्रकार गन्ने की वैज्ञानिक तरीके से खेती कर के भरपूर उपज ली जा सकती?है.

हेल्थ और ब्यूटी के लिए फायदेमंद है चावल का मांड़

चावल का प्रयोग हर घर में किया जाता है. चावल पकने के बाद जो पानी शेष रह जाता है उसे प्राय: छान कर फेंक दिया जाता है. चीन व जापान में चावल के मांड़ को जिसे राइस वाटर कहा जाता है, का प्रयोग स्वास्थ्य व सौंदर्य को निखारने में करते हैं. यह पौष्टिक तत्त्वों से भरा होता है. जानते हैं, मांड़ के क्याक्या फायदे हैं:

– 1 गिलास राइस वाटर का प्रयोग ऐनर्जी ड्रिंक की तरह किया जा सकता है. आप अपनी इच्छानुसार इस में कटी पुदीनापत्ती, भुना जीरा पाउडर और काला नमक भी मिला कर पी सकते हैं.

– राइस वाटर का प्रयोग शरीर के तापमान को संतुलित रखता है. गरमी के मौसम में इस का सेवन सेहत के लिए बहुउपयोगी है.

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– यदि आप को कब्ज की शिकायत रहती है तो राइस वाटर का प्रयोग कब्ज दूर करने में विशेष लाभदायक होगा.

– राइस वाटर उत्तम प्रकार के कार्बोहाइड्रेट का भंडार है.

– 1 गिलास राइस वाटर का सेवन अल्जाइमर जैसी समस्या को रोकने में भी कारगर है.

– राइस वाटर का सेवन डायरिया में भी किया जाता है. न केवल वयस्क को वरन बच्चों को भी डायरिया में इस का सेवन उन की उम्र के अनुसार कम या अधिक मात्रा में करने से लाभ मिलता है.

– गैस से संबंधित समस्याओं में भी राइस वाटर का सेवन उपयोगी है.

मांड़ न केवल स्वास्थ्यवर्धक है वरन सौंदर्यवर्धक भी है, क्योंकि यह विटामिन व खनिज तत्त्वों से भरपूर होता है. मसलन:

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– इस का प्रयोग फेशियल क्लीनर की तरह बखूबी किया जा सकता है. एक कौटन बौल को राइस वाटर में डुबो कर उस से चेहरे पर हलके हाथ से मसाज करें. जब सूख जाए तो चेहरा धो लें. इस का नियमित प्रयोग त्वचा को साफमुलायम बनाने के साथसाथ उस में कसाव व चमक भी लाता है.

– फेशियल टोनर की तरह भी इस का प्रयोग किया जा सकता है. कौटन बौल को इस में डुबो कर त्वचा पर लगाएं. यह खुले रोमछिद्रों को बंद कर के त्वचा को कसाव प्रदान करता है, साथ ही त्वचा को चमकदार भी बनाता है.

– ऐक्ने पीडि़त त्वचा में भी इस का प्रयोग लाभदायक है. साथ ही यह वाटर त्वचा पर ऐस्ट्रिंजैंट की तरह असर करता है.

– राइस वाटर का स्टार्च कंपोनैंट त्वचा पर ऐक्जिमा को ठीक करने में भी उपयोगी है. साफ कपड़ा राइस वाटर में भिगो कर ऐक्जिमा से प्रभावित त्वचा पर थपथपा कर लगाएं. जब कपड़ा सूख जाए, तो दोबारा ऐसा करें. नियमित प्रयोग करें. जरूर फायदा होगा.

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– सनबर्न से झुलसी त्वचा पर भी ठंडे राइस वाटर का प्रयोग लाभकारी है.

– बालों को स्वस्थ, चमकदार बनाने के लिए उन्हें राइस वाटर से रिंस करें. बालों को शैंपू करने के बाद इसे बालों में लगा कर हलके हाथों से मसाज करें. फिर पानी से बालों को धो लें. ऐसा हफ्ते में 1-2 बार किया जा सकता है.

– राइस वाटर हेयर कंडीशनर का भी काम करता है. इस में चंद बूंदें लैवेंडर या रोजमैरी की मिलाएं और बालों में लगा कर करीब 10 मिनट लगा रहने दें. फिर साफ पानी से धो लें.

– राइस वाटर चूंकि ऐंटीऔक्सिडैंट, नमी व यूवी किरणों को अब्जौर्व करने की क्षमता रखता है, अत: त्वचा की बारीक लाइनें व बढ़ती उम्र के प्रभाव को रोकने में भी यह लाभदायक है.

– त्वचा की जलन व रैशेज को दूर करने के लिए ठंडे राइस वाटर का प्रयोग उपयोगी है.

– बालों पर इस का नियमित प्रयोग उन्हें मजबूती व चमक तो देता ही है, उन्हें टूटने से भी

रोकता है तथा लंबा भी बनाता है. इस का पूरा लाभ उठाने के लिए बालों पर इसे कम से कम 20 मिनट तक लगा कर रखें. फिर साफ पानी से धो लें.

अत: अगली बार जब भी चावल बनाएं, तो मांड़ को फेंकने से पहले किसी जार में डाल कर फ्रिज में रख लें. इसे फ्रिज में 4-5 दिनों तक रखा जा सकता है. प्रयोग करते समय इसे हिला जरूर लें.

मोरिंग और नारियल की सब्जी को बनाते समय रखें इन बातों का ध्यान

मोरिंग बहुत ज्यादा गुणकारी पौधा है. इसे कई जगहों पर सहजन के नाम से भी जाना जाता है. इसे कई तरह के इलाज के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है. आयुर्वेद में इसे कई तरह से इस्तेमाल किया जाता है. जैसे इसके फूल और पत्ते को दवाओं में इस्तेमाल किया जाता है.

मोरिंग की पत्तियां छोटी होती है जैसे इमली कि पत्तियां होती है. इसमें कई तरह के प्रोटीन और तत्व पाए जाते हैं. मोरिंग की पत्तियों की महक भी अच्छी होती है. ज्यादातर घरों में मोरिंग के साथ नारियल को मिक्स करके सब्जी बनाया जाता है. जो बेहद ही ज्यादास्वादिष्ट होता है.

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आइए जानते हैं कैसे बनाएं मोरिंग और नारियल की सब्जी

समाग्री

मोरिंग के पत्ते 3-4 कप

घी

करी पत्ता

खरी लाल मिर्च

तीन, चार पत्ता

काजू के टुकड़े

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राई

घिसा नारियल

नमक

काली मिर्च

लाल मिर्च पाउडर

विधि

सबसे पहले मोरिंग की पत्तियों को पौधे से हटा लें. अब उसे छलनी से छआनकर धो लें. एक कड़ाही में घी गर्म करें और अब इसमें राई डालें. जब राई तड़क जाए तो उसमें करी पत्ता और खड़ी लाल मिर्च डालें. अब इसे कुछ सेकेंड तक भूनें. इसके बाद इसमं काजू के कुछ टुकड़े डालकर लाल होने तक भूनें.

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अब तड़के में सहजन की पत्तियां डालें और लाल होने तक भूनें. नमक डालकर इसे अच्छे से मिलाएं. अब सहजन में घिसा नारियल मिलाएं और देर तक चलाते रहें. ढ़क्कन लगाकर कुछ देर तक चलाते रहें.

सब्जी में स्वाद अनुसार लाल मिर्च पाउडर और खटाई डालकर मिलाएं, कुछ देर पकाने के बाद सब्जी को आंच से हटा दे आप चाहे तो इसे रोटी और चावल के साथ पड़ोसे

सुख का संसार-भाग 1 : शिल्पी ने कैसे पूरा किया अपना कर्तव्य

अभय डाक्टर बन गया तो घर में उस के लिए रिश्तों की बाढ़ आ गई. किसीकिसी दिन तो एकसाथ 2-2 लड़की वाले आ कर बैठ जाते. अपनीअपनी बेटियों की प्रशंसा के पुल बांधते, लड़की की योग्यता के प्रमाणपत्रों की फोटोस्टेट कापियां दिखलाते, लड़की दिखाने का प्रस्ताव रखते और विभिन्न कोणों से खींची गई लड़की की दोचार रंगीन तसवीरें थमा कर, बारबार नमस्कार कर के, उम्मीदें बांध कर चले जाते थे.

शिखा की समझ में नहीं आ रहा था, इन रंगीन तसवीरों के समूह में से किस लड़की को अपनी देवरानी बनाए. किसे पसंद करे. सभी तसवीरें एक से बढ़ कर एक फिल्म अभिनेत्रियों जैसे अंदाज व लुभावने परिधानों में थीं.

शिखा ने अपने पति दिनेश से पूछा. उस ने कह दिया, ‘‘अभय से पूछो, विवाह उसे करना?है. लड़की उस की पसंद की होनी चाहिए.’’

शिखा ने सभी तसवीरें और प्रमाणपत्रों की फोटोस्टेट कापियां अभय के सामने रख दीं. अभय ने उड़ती सी निगाह डाल कर सभी तसवीरें सामने से हटा दीं और बोला, ‘‘जो लड़की तुम्हें पसंद आए उसी को बहू बना कर ले आओ, भाभी. मुझे लडकी के रंगरूप से क्या लेनादेना. जो लड़की मेरी मां समान भाभी की सेवा व सम्मान कर सके, दोनों भाइयों में फूट न डलवाए, सुख का नया संसार बनाने में मदद करे, वही मुझे स्वीकार होगी.’’

‘लेकिन तसवीर से कैसे पता लग सकता?है कि लड़की का स्वभाव कैसा है? गुणों के साथ सुंदरता भी तो चाहिए. बहू घर की शोभा होती है,’ शिखा सोचती रह गई थी.

दिनेश व अभय ने गृहस्थी के अन्य कामों की तरह लड़की पसंद करने की जिम्मेदारी भी शिखा के कंधों पर डाल दी थी.

उस ने सभी तसवीरों में से एक तसवीर छांट कर, अभय को जबरदस्ती लड़की देखने भेज दिया. अभय ने लौट कर बतलाया कि लड़की के सामने के दांत काफी उभरे, चौड़ेचौड़े लग रहे थे. हंसने पर पूरी बत्तीसी बाहर आ जाती थी.

2 जगह दिनेश को भेजा. वह दोनों लड़कियां भी पसंद नहीं आईं. फिर दोचार जगह शिखा भी अभय व दिनेश को साथ ले कर लड़की देख आई. पर जो बात तसवीरों में थी, वह लड़कियों में नहीं थी.

तसवीरों व प्रमाणपत्रों के आधार पर कोई लड़की कैसे पसंद की जा सकती थी? झुंझला कर शिखा ने तसवीरें वापस भेज दीं. अकारण जगहजगह लड़की देखने जा कर लड़की वालों को परेशान करना उचित नहीं था. अपना वक्त भी बरबाद होता?था. घर में अकेले बच्चे भी दुखी हो जाते?थे.

शिखा को लड़की पसंद करने का काम पहाड़ पर चढ़ने जैसा लग रहा था. फिर भी लड़की तो पसंद करनी ही थी. इकलौते देवर के गले में कोई ऐसीवैसी थोड़े ही बांधी जा सकती थी?

एक दिन एक सज्जन अपनी भांजी का रिश्ता ले कर आए. एक सीधीसादी तसवीर, बस. न प्रमाणपत्रों की गठरी न प्रशंसा के पुल और न दहेज का लालच.

लड़की इसी शहर में डाक्टरी पढ़ रही थी. लड़की डाक्टरी पढ़ती है, सुन कर दिनेश भी दिलचस्पी लेने लगा. अभय से पूछा तो उस ने वही वाक्य दोहरा दिया, ‘‘लड़की?भाभी की पसंद की होनी चाहिए.’’

दिनेश व शिखा लड़की देखने चले गए. शिल्पी ने अपने व्यवहार, सुघड़ता व भोलेपन से दोनों का मन मोह लिया. दिनेश के इशारे पर शिखा शिल्पी को अंगूठी भेंट कर रिश्ता पक्का कर आई.

सूचना पा कर अन्य शहर में रहने वाले शिल्पी के पिता, सौतेली मां, सौतेले भाईबहन आ गए. सादे समारोह में विवाह संपन्न हो गया.

शिल्पी का मधुर स्वभाव व अच्छा व्यवहार देख कर अभय शिखा की प्रशंसा करता रहता, ‘‘मैं जानता था, भाभी मेरे लिए लाखों में एक छांट कर लाएंगी. शिल्पी मेरी उम्मीदों से बढ़ कर है.’’

शिखा खुश थी. देवर ने उस का मान तो रखा ही, सराहना भी की.

अभय जब से चिकित्सा के क्षेत्र में आया था तभी से निजी नर्सिंग होम खोलने का सपना देखता रहता था. अब शिल्पी के आ जाने से उस की यह इच्छा और बलवती हो उठी थी. घर में 2 डाक्टर हो गए. अपना नर्सिंग होम होता तो प्रतिभा दिखलाने के अधिक अवसर मिलते. अधिक लाभ उठाया जा सकता था.

लेकिन नर्सिंग होम दूर की चीज थी. दिनेश के पास इतने भी रुपए नहीं थे कि इकलौते भाई के लिए कोई अच्छा सा दवाखाना खुलवा दे. न उस की पहुंच कहीं ऊपर तक थी कि अभय को नौकरी दिलवा पाता.

किसी अच्छी सिफारिश के अभाव में काफी भागदौड़ कर के भी अभय किसी अस्पताल में नौकरी नहीं पा सका तो उस ने एक किराए की दुकान ले कर प्रैक्टिस शुरू कर दी.

अनुभव व आवश्यक डाक्टरी उपकरण पास में न होने के कारण अभय का चिकित्सालय कम चलता था. जो आमदनी होती वह दुकान का किराया, कंपाउंडर की तनख्वाह व स्कूटर के पेट्रोल में खर्च हो जाती थी. इतनी बचत नहीं थी कि वह कुछ रुपए घर में दे पाता.

शिल्पी ने पढ़ाई पूरी की. नौकरी पाने का प्रयास किया तो उस की नौकरी एक स्थानीय अस्पताल में लग गई.

शिल्पी ने अपना पहला वेतन ला कर शिखा के हाथ में रखा तो शिखा ने नम्रता से इनकार कर दिया, ‘‘क्या यह अच्छा लगता है कि घर की बहू से खानेरहने के पैसे लिए जाएं? तुम इस घर की बहू हो. तुम्हें घर में रहनेखाने का पूरा अधिकार है.’’

अभय ने भी शिल्पी के वेतन को हाथ नहीं लगाया. भारी स्वर में बोला, ‘‘पत्नी की कमाई खा कर क्या मैं मर्दों की जमात में सिर नीचा कर लूं? कायदे से तो मुझे तुम्हारा खर्च उठाना चाहिए था.’’

दिनेश ने शिल्पी को समझाया, ‘‘देखो बहू, तुम बचपन से अपने मामा के घर में पली हो. उन्होंने तुम्हारे पालनपोषण, शिक्षा आदि का भार उठाया है. तुम्हारे मामा की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है. अपने वेतन से तुम्हें उन की सहायता करनी चाहिए.’’

Crime Story: इंतेहा से आगे

कई मामले ऐसे होते हैं, जिन में कत्ल के बाद भी कातिल का गुस्सा लाश पर उतरता है, ऐसा ही इस मामले में भी हुआ था. उस दिन तारीख थी 15 मार्च, 2019. जगह बठिंडा के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीशकंवलजीत सिंह बाजवा की अदालत. बाजवा साहब की अदालत में उस दिन एक ऐसे अपराध का फैसला सुनाया जाना था, जिस में अपराधियों ने क्रूरता की सारी सीमाएं पार कर दी थीं. यह एक ऐसा अपराध था, जिसे सुन कर लोगों की रूह तक कांप उठी थी. अपराधियों को कानून के कटघरे तक पहुंचाने में पुलिस ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी.

आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए तत्कालीन एसएसपी स्वप्न शर्मा के आदेश पर एसपी (औपरेशन) गुरमीत सिंह और डीएसपी (देहात) कुलदीप सिंह के नेतृत्व में एक सर्च टीम तैयार की गई थी, जिस में एयरफोर्स के कई अधिकारियों सहित 40 जवानों, छोटेबड़े 90 पुलिसकर्मियों और 30 मजदूरों सहित एयरफोर्स के स्निफर डौग एक्सपर्ट की टीम को भी शामिल किया गया था.

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अभियोजन पक्ष ने इस मामले में कुल मिला कर 39 गवाह बनाए थे, जिन में से 3 गवाह प्रमुख थे. अभियुक्तों की ओर से इस मुकदमे की पैरवी एडवोकेट सुनील त्रिपाठी कर रहे थे, जबकि अभियोजन पक्ष की ओर से सरकारी वकील हरविंदर सिंह गिल थे.

पेश मामले में गवाहों की गवाहियों के बाद दोनों पक्षों की बहस पूरी हो चुकी थी और अब जज साहब को अंतिम फैसला सुनाना था. फैसले के लिए 15 मार्च की तारीख मुकरर्र की गई थी. फैसले तक पहुंचने से पहले इस खौफनाक अपराध के बारे में जान लिया जाए तो बेहतर होगा.

8 फरवरी, 2017 की बात है. रात का खाना खाने के बाद विपिन अपनी पत्नी कुमकुम से यह कह कर घर से निकला था कि वह टहल कर आता है. रात का खाना खा कर टहलना विपिन की पुरानी आदत थी. घर का काम निपटाने के बाद कुमकुम बिस्तर पर लेट कर पति का इंतजार करने लगी.

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विपिन मूलरूप से गांव बेनीनगर, जिला गोंडा, उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. उस के पिता का नाम त्रिवेणी शुक्ला था. 27 साल का विपिन कई साल पहले पंजाब के जिला बठिंडा में आ कर बस गया था. वहां उसे बठिंडा एयरबेस के एयरफोर्स स्टेशन में एयरफोर्स कर्मचारियों द्वारा बनाई गई कैंटीन एयरफोर्स वाइव्ज एसोसिएशन में नौकरी मिल गई थी. इस कैंटीन में ज्यादातर एयरफोर्स के अधिकारियों की पत्नियां ही घरेलू सामान खरीदने के लिए आया करती थीं.

विपिन सुबह 9 बजे से शाम के 7 बजे तक कैंटीन में रहता था. उस के बाद घर आ क कुछ देर आराम करता था. फिर रात का खाना खा कर टहलने निकल जाता था. टहलते हुए एयरफोर्स कालोनी का एक चक्कर लगाना उस की दिनचर्या में शामिल था.

एयरफोर्स की कैंटीन में काम करने की वजह से उसे रहने के लिए एयरफोर्स कालोनी का स्टाफ क्वार्टर मिला हुआ था, जिस में वह अपनी पत्नी के साथ रहता था. उन दिनों उस के यहां गांव से उस के पिता और चाचा संतोष शुक्ला आए हुए थे. बहरहाल, बिस्तर पर लेटेलेटे कुमकुम की आंख लग गई. जब उस की नींद टूटी तब तक विपिन लौट कर नहीं आया था. घबरा कर उस ने घड़ी की ओर देखा तो उस समय रात के 12 बजने वाले थे.

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ऐसा कभी नहीं हुआ था कि विपिन ने लौटने में इतनी देर लगाई हो. वह आधे घंटे में लौट कर आ जाता था. चिंतित कुमकुम उठी और बगल वाले उस कमरे में गई, जहां विपिन के पिता और चाचा सो रहे थे. उस ने दोनों को जगा कर विपिन के घर न लौटने की बात बताई.

चिंतित हो कर वे लोग तुरंत विपिन की तलाश में निकल पड़े. उन के साथ पड़ोस के 5-7 लोग भी थे. लेकिन पूरी रात ढूंढने पर भी विपिन का कहीं पता नहीं चला. अगले दिन यानी 9 फरवरी, 2017 की सुबह कुमकुम अपने ससुर और चचिया ससुर के साथ कैंटीन पर गई, विपिन वहां भी नहीं था.

इस के बाद कुमकुम ने एयरफोर्स के अधिकारियों को विपिन के लापता होने की सूचना दी. उसी दिन उस ने बठिंडा के थाना सदर की पुलिस चौकी बल्लुआना जा कर विपिन की गुमशुदगी दर्ज करा दी. इस के बाद पुलिस और घर वाले सभी अपने स्तर पर विपिन की तलाश करते रहे. पर उस का कहीं कोई सुराग नहीं मिला.

धीरेधीरे विपिन को लापता हुए एक सप्ताह बीत गया. इस मामले में एयरफोर्स के अधिकारियों ने भी कोई विशेष काररवाई नहीं की. पुलिस ने भी इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया था.

हर ओर से निराश हो कर 14 फरवरी, 2017 को कुमकुम बठिंडा के तत्कालीन एसएसपी स्वप्न शर्मा के औफिस जा कर उन से मिली और पति के लापता होने की जानकारी दे कर निवेदन किया कि उस के पति की तलाश करवाई जाए.

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एसएसपी स्वप्न शर्मा ने उसी समय फोन पर थाना सदर के थानाप्रभारी वेदप्रकाश को आदेश दिया कि मुकदमा दर्ज कर के इस मामले में तुरंत काररवाई करें. उन के निर्देश पर पुलिस चौकी बल्लुआना में नए सिरे से कुमकुम के बयान दर्ज किए गए. अपने बयान में कुमकुम ने आशंका व्यक्त की कि या तो उस के पति विपिन शुक्ला का अपहरण हुआ है या हत्या कर के लाश कहीं छिपा दी गई है.

कुमकुम के इस बयान के आधार पर पुलिस ने विपिन के अपहरण का मुकदमा दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी. पुलिस की काररवाई शुरू होने के बाद भी विपिन की गुमशुदगी को एक सप्ताह और बीत गया.

इन 15 दिनों में पुलिस और एयरफोर्स के अधिकारियों द्वारा ढंग से कोई काररवाई नहीं की गई. फलस्वरूप विपिन शुक्ला का कोई सुराग नहीं मिला. इस बीच कुमकुम एसएसपी स्वप्न शर्मा से 2-3 बार मिल कर गुहार लगा चुकी थी.

पुलिस हर तरह से विपिन शुक्ला की तलाश कर के थक चुकी थी. मुखबिरों का भी सहारा लिया गया था. लेकिन उन से भी कोई लाभ नहीं हुआ. शहर के बदनाम लोगों से भी पूछताछ की गई, पर नतीजा शून्य ही रहा.

इंसपेक्टर वेदप्रकाश पर एसएसपी स्वप्न शर्मा की ओर से काफी दबाव डाला जा रहा था. इसलिए उन्होंने नए सिरे से जांच शुरू करते हुए एयरफोर्स कालोनी के निवासियों और कैंटीन कर्मचारियों से पूछताछ की. इस पूछताछ में उन्हें लगा कि विपिन की गुमशुदगी में कालोनी के ही किसी आदमी का हाथ है. उन्होंने अपने मुखबिरों को कालोनी वालों पर नजर रखने को कहा. पुलिस और मुखबिर कालोनी में सुराग ढूंढने में लग गए.

अगले दिन यानी 21 फरवरी को वेदप्रकाश ने शैलेश को पूछताछ करने के लिए थाने बुलाना चाहा तो पता चला कि बिना एयरफोर्स अधिकारियों से इजाजत लिए पूछताछ करना संभव नहीं है. इस पर अगले दिन इंसपेक्टर वेदप्रकाश ने एयरफोर्स के अधिकारियों से इजाजत ले कर सार्जेंट शैलेश से अधिकारियों के सामने पूछताछ शुरू की.

दूसरी ओर एसएसपी स्वप्न शर्मा के आदेश पर एसपी (औपरेशन) गुरमीत सिंह व डीएसपी (देहात) कुलदीप सिंह के नेतृत्व में एक सर्च टीम तैयार की गई, जिस में करीब 150 थे. इस टीम में पुलिस के अवाला एयरफोर्स के अधिकारियों और जवानों को शामिल किया गया था.

इस भारीभरकम टीम ने एयरफोर्स कालोनी में सुबह 9 बजे से सर्च अभियान शुरू किया. इस अभियान के तहत कालोनी के एकएक क्वार्टर की तलाशी लेनी शुरू की गई. दूसरी ओर सार्जेंट शैलेश से पूछताछ चल रही थी.

पूछताछ में शैलेश ने बताया कि अन्य लोगों की तरह उस की भी विपिन से जानपहचान थी, पर वह उस की गुमशुदगी के बारे में कुछ नहीं जानता. लेकिन थानाप्रभारी के पास कुछ ऐसी जानकारियां थीं, जिन्हें शैलेश छिपाने की कोशिश कर रहा था.

शैलेश से अभी पूछताछ चल ही रही थी कि कालोनी में सर्च अभियान चलाने वाली टीम में शामिल स्निफर डौग भौंकते हुए सार्जेंट शैलेश शर्मा के क्वार्टर में घुस गया.

स्निफर डौग के पीछेपीछे पुलिस अफसर भी घुस गए. सार्जेंट शैलेश शर्मा को भी वहीं बुला लिया गया. पूरे क्वार्टर में अजीब सी दुर्गंध फैली थी. जब विश्वास हो गया कि इस क्वार्टर में लाश जैसी कोई चीज है तो पुख्ता सबूत के लिए इलाका मजिस्ट्रैट और तहसीलदार भसीयाना (बठिंडा) को भी मौके पर बुला लिया गया.

जब सब की मौजूदगी में सार्जेंट शैलेश के क्वार्टर की तलाशी ली गई तो वहां से जो बरामद हुआ, उस की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. वहां का लोमहर्षक दृश्य देख कर पत्थर दिल एयरफोर्स और पुलिस के जवानों के भी दिल कांप उठे.

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लापता विपिन शुक्ला की लाश के 16 टुकड़ों को काले रंग की 16 अलगअलग पौलीथिन की थैलियों में पैक कर के फ्रिज में रखा गया था. लाश के टुकड़े बरामद होते ही सार्जेंट शैलेश ने इलाका मजिस्ट्रैट, तहसीलदार, एयरफोर्स के अधिकारियों और पुलिस के वरिष्ठ अफसरों के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

शैलेश ने बताया कि उस ने अपनी पत्नी अनुराधा और अपने साले शशिभूषण के साथ मिल कर विपिन शुक्ला की हत्या की थी. हत्या के बाद उस के टुकड़े कर के फ्रिज में रख दिए थे. पुलिस ने लाश के टुकड़े और फ्रिज कब्जे में ले लिया. लाश के टुकड़ों का पंचनामा कर के उन्हें पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भेज दिया गया.

अपहरण की धारा 365 के तहत दर्ज इस मुकदमे में योजनाबद्ध तरीके से की गई हत्या की धारा 302, 120बी और लाश को खुर्दबुर्द करने के लिए धारा 201 और जोड़ दी गईं. सार्जेंट शैलेश और उस की पत्नी अनुराधा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इस हत्या का तीसरा आरोपी शशिभूषण फरार था.

उस की तलाश में पुलिस टीम उत्तराखंड भेजी गई. उसी दिन शाम को यानी 21 फरवरी, 2017 को एसपी (औपरेशन) गुरमीत सिंह ने प्रैसवार्ता कर के इस हत्याकांड के संबंध में विस्तार से जानकारी दी, साथ ही दोनों गिरफ्तार अभियुक्तों शैलेश और अनुराधा को मीडिया के सामने पेश किया.

पुलिस अधिकारियों द्वारा पूछताछ करने पर सार्जेंट शैलेश और अनुराधा ने विपिन शुक्ला की गुमशुदगी से ले कर हत्या करने तक की जो कहानी बताई, वह बदनामी से बचने के लिए की गई खूनी वारदात थी.

सार्जेंट शैलेश मूलरूप से उत्तराखंड का रहने वाला था. करीब 7 साल पहले उस की शादी अनुराधा से हुई थी. उस का 5 साल का एक बेटा है. उन दिनों उस की पत्नी गर्भवती थी.

इस कहानी की शुरुआत 5 साल पहले सन 2014-15 में हुई थी. 27 साल का विपिन शुक्ला खूबसूरत युवक था. हंसीमजाक उस की आदत में शामिल था. वह एयरफोर्स वाइव्ज एसोसिएशन की कैंटीन में काम करता था.

सार्जेंट शैलेश की खूबसूरत पत्नी अनुराधा भी यहां से सामान खरीदा करती थी. एक बच्चे की मां अनुराधा काफी खूबसूरत थी. उसे देखते ही शादीशुदा विपिन अपना दिल हार बैठा था. उस ने बात को आगे बढ़ाने के लिए पहल करते हुए अनुराधा से हंसीमजाक और छेड़छाड़ शुरू कर दी.

अनुराधा ने इस का विरोध करते हुए विपिन को काफी खरीखोटी भी सुनाई. पर उस ने उस का पीछा नहीं छोड़ा. धीरेधीरे अनुराधा को विपिन की छेड़छाड़ और हंसीमजाक में आनंद आने लगा. इस से विपिन की हिम्मत बढ़ गई. पहले दोनों में प्यार का इजहार हुआ, फिर मुलाकातें शुरू हुईं.

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वक्त के साथ दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए. इसी बीच अनुराधा गर्भवती हो गई और शादीशुदा होते हुए भी विपिन पर शादी के लिए दबाव डालने लगी. उस का कहना था कि वह अपने पति को छोड़ देगी. वह भी अपनी पत्नी को तलाक दे दे. फिर दोनों शादी कर के साथ रहेंगे. लेकिन विपिन ने अनुराधा की यह बात मानने से इनकार कर दिया.

इस बीच शैलेश को भी अपनी पत्नी के विपिन शुक्ला के साथ अवैध संबंधों और उस के गर्भवती होने की जानकारी मिल गई थी. उस ने अनुराधा को आड़े हाथों लेते हुए खूब फटकार लगाई. इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच क्लेश शुरू हो गया.

रोजरोज के क्लेश से तंग आ कर शैलेश अनुराधा को अपनी ससुराल उत्तराखंड ले गया और वहां उस ने यह बात अनुराधा के मातापिता और भाई को बता दी. उन्होंने भी अनुराधा को डांटफटकार कर फौरन विपिन से संबंध खत्म करने को कहा.

शैलेश और अनुराधा कुछ दिन वहां रह कर बठिंडा लौट आए. वापस आने के बाद अनुराधा ने विपिन से बातचीत बंद कर दी. बारबार बुलाने पर भी जब अनुराधा ने विपिन से बात नहीं की तो वह उसे बदनाम करने लगा.

वह कालोनी के लोगों और कैंटीन में काम करने वाले अन्य कर्मचारियों को अपने और अनुराधा के संबंधों की कहानियां चटखारे लेले कर सुनाता. इस से सार्जेंट शैलेश और उस की पत्नी अनुराधा की बदनामी होने लगी. नतीजा यह हुआ कि शैलेश अपने अधिकारियों और कालोनी वालों से नजर मिलाने में कतराने लगा.

एक दिन शैलेश ने विपिन से मिल कर उसे समझाया, ‘‘देखो शैलेश, गलती चाहे किसी की भी रही हो, अब यह बात यहीं दफन कर दो. पिछली बातों को भूल कर हमें बदनाम करना बंद कर दो.’’

विपिन ने उस समय तो शैलेश की बात मान कर वादा कर लिया लेकिन वह अपनी बात पर कायम नहीं रह सका. उस की छिछोरी हरकतें जारी रहीं. विपिन जब अपनी हरकतों से बाज नहीं आया और पानी सिर से गुजरने लगा तो शैलेश ने अपने साले शशिभूषण को बठिंडा बुला लिया. शशिभूषण नेवी में था. जब शशिभूषण बठिंडा आ गया तो शैलेश, अनुराधा और शशिभूषण ने रोजरोज की इस बदनामी से पीछा छुड़ाने के लिए विपिन का गला घोंट कर दफन करने की योजना बना डाली.

इस योजना पर अच्छी तरह सोचविचार कर उसे अमली जामा पहनाने के लिए सब से पहले शैलेश ने अपने अधिकारियों को अपना क्वार्टर बदलने की अरजी दी. उसे एयरफोर्स कालोनी में क्वार्टर नंबर 214/10 अलाट था. उस ने अधिकारियों को मौजूदा क्वार्टर में कुछ कमियां बता कर नया क्वार्टर अलाट करा लिया.

योजना के अनुसार, नए क्वार्टर में जाने की तारीख 8 फरवरी, 2017 तय की गई. 8 फरवरी को रात का खाना खा कर विपिन अपनी आदत के अनुसार टहलने के लिए निकला तो शैलेश उसे अपने क्वार्टर के पास ही मिल गया. विपिन को देखते ही शैलेश ने कहा, ‘‘यार, मैं तुम्हारे घर ही जा रहा था.’’

‘‘क्यों, क्या बात हो गई?’’ विपिन ने हैरानी से पूछा तो शैलेश ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम तो जानते हो कि आज मुझे क्वार्टर बदलना है. काफी सामान पैक कर चुका हूं, फिर भी कुछ सामान बचा है. तुम चल कर पैक करवा दो. उस के बाद अनुराधा के हाथ की चाय पीएंगे.’’ शैलेश ने यह बात जानबूझ कर कही थी. विपिन इस के लिए तैयार हो गया. शैलेश विपिन को ले कर अपने पुराने क्वार्टर पर पहुंचा.

सामान पैक करते हुए जब विपिन नीचे की ओर झुका, तभी उस ने पीछे से उस के सिर पर कुल्हाड़ी का भरपूर वार कर दिया. बिना चीखे ही विपिन फर्श पर ढेर हो गया. शशिभूषण ने भी उस की गरदन पर एक वार कर के सिर धड़ से अलग कर दिया.

इस के बाद तीनों ने मिल कर विपिन की लाश को एक बड़े ट्रंक में डाल कर बाहर से ताला लगा दिया और घर के अन्य सामान के साथ लाश वाला ट्रंक भी नए क्वार्टर में ले आए.

विपिन की हत्या करने के बाद शैलेश ने चैन की सांस तो ली, लेकिन उसे यह चिंता भी सताने लगी कि लाश को ठिकाने कैसे लगाया जाए. वह कुछ सोच पाता, उस के पहले ही उसे अगले दिन अपने अधिकारियों से पता चला कि विपिन रात से घर से लापता है. यह सुन कर उस ने लाश ठिकाने लगाने का इरादा त्याग दिया.

उस ने सोचा कि कुछ दिनों में मामला ठंडा हो जाएगा तो इस बारे में सोचेगा. पर विपिन की पत्नी कुमकुम के एयरफोर्स और पुलिस अधिकारियों के पास चक्कर लगाने से मामला ठंडा होने के बजाए और गरमाता गया.लाश को ठिकाने लगाना जरूरी था. फरवरी का महीना होने के कारण मौसम बदल रहा था. ज्यादा दिनों तक लाश को घर में नहीं रखा जा सकता था, इसलिए सोचविचार कर शैलेश ने 19 फरवरी को विपिन की लाश के छोटेछोटे 16 टुकड़े किए और उन्हें पौलीथिन की अलगअलग थैलियों में भर कर फ्रिज में रख दिया ताकि बदबू न फैले.

शैलेश ने सोचा था कि वह किसी रोज मौका देख कर 2-3 थैलियों को बाहर ले जा कर वीरान जगह पर फेंक देगा, जहां कुत्ते या जंगली जानवर उन्हें खा जाएंगे. बाकी कुछ टुकड़ों को जला देगा और कुछ को नाले या गटर में फेंक देगा. लेकिन इस के पहले ही 21 फरवरी को पुलिस ने उसे और उस की पत्नी अनुराधा को गिरफ्तार कर के उस के घर से फ्रिज में रखे लाश के 16 टुकड़े बरामद कर लिए.

थानाप्रभारी वेदप्रकाश ने अभियुक्त सार्जेंट शैलेश कुमार और अनुराधा को उसी दिन अदालत में पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

रिमांड अवधि में शैलेश और अनुराधा की निशानदेही पर उन के घर से हत्या में इस्तेमाल की गई कुल्हाड़ी और मृतक विपिन शुक्ला का मोबाइल बरामद कर लिया गया.

पूछताछ और पुलिस काररवाई कर के दोनों को 23 फरवरी को अदालत में पेश किया गया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए शैलेश ने योजना तो फूलप्रूफ बनाई थी, लेकिन लाश ठिकाने लगाने में की गई देर ने उस की पोल खोल दी.

बठिंडा के सरकारी अस्पताल के डाक्टरों ने मृतक विपिन की लाश के टुकड़ों का पोस्टमार्टम करने से इनकार करते हुए कहा था कि तकनीकी कारणों और पुख्ता सबूतों के लिए पोस्टमार्टम फरीदकोट के मैडिकल कालेज में करवाना ठीक रहेगा.

इस मामले में मृतक की पत्नी कुमकुम का आरोप है कि अगर एयरफोर्स और स्थानीय पुलिस सही समय पर काररवाई करती तो उस के पति की लाश इस तरह 16 टुकड़ों में न मिलती. विपिन की लाश 12 दिनों तक सलामत थी. इस के बाद ही हत्यारों ने उस के टुकड़े किए थे.

दोनों पक्षों की बहस और दलीलें सुनने के पश्चात इस मामले में अदालत अपना निर्णय सुनाती, उस के पहले बचावपक्ष के वकील सुनील त्रिपाठी ने अदालत से अनुरोध करते हुए इस बात का हवाला दिया था कि इस मामले की आरोपी और सहअभियुक्त अनुराधा गिरफ्तारी के समय गर्भवती थी और उस के बाद अब तक का समय उस ने बड़ी पीड़ा और कष्ट से गुजारा है. उस का एक बच्चा भी है. सो अदालत उस पर रहम करते हुए कम से कम सजा सुनाने की कृपा करे.

15 मार्च, 2019 को अपना फैसला सुनाते हुए अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश बठिंडा कंवलजीत सिंह बाजवा ने कहा, ‘‘कई बार इंसान जुर्म करते हुए दरिंदा बन जाता है. कई मामले तो ऐसे हुए हैं, जिन में कत्ल के बाद भी गुस्सा लाश पर उतर गया. कई मामलों में सबूत मिटाने के मकसद से मुर्दा जिस्मों के साथ हैवानियत दिखाई गई.

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‘‘यह मामला भी घृणित अपराध की सीमाओं को पार कर देने वाला है. इसलिए तमाम सबूतों और गवाहों के बयानों की रोशनी में यह अदालत इस केस की सहअभियुक्ता अनुराधा को 5 साल की सजा सुनाती है. जबकि शैलेश को विपिन की हत्या कर उस की लाश को खुर्दबुर्द करने के इरादे से शरीर के 16 टुकड़े करने के अपराध में सजाएमौत की सजा सुनाती है. सजा सुन कर जज साहब उठ कर अपने केबिन में चले गए थे.’’

अपमान और नफरत की साजिश

मंगेश रणसिंग रुक्मिणी को बहुत चाहता था. थोड़ी कोशिश के बाद न सिर्फ उस की यह मुराद पूरी हुई बल्कि रुक्मिणी से उस की शादी भी हो गई. शादी के कुछ दिनों बाद ही ऐसा क्या हुआ कि उस ने अपनी पत्नी रुक्मिणी के ऊपर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी…

पहली मई, 2019 की बात है. दिन के करीब 12 बजे का समय था, जब महाराष्ट्र के अहमदनगर से

करीब 90 किलोमीटर दूर थाना पारनेर क्षेत्र के गांव निधोज में उस समय अफरातफरी मच गई, जब गांव के एक घर में अचानक आग के धुएं, लपटों और चीखनेचिल्लाने की आवाजें आनी शुरू हुईं. चीखनेचिल्लाने की आवाजें सुन कर गांव वाले एकत्र हो गए. लेकिन घर के मुख्यद्वार पर ताला लटका देख खुद को असहाय महसूस करने लगे.

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दरवाजा टूटते ही घर के अंदर से 3 बच्चे, एक युवक और युवती निकल कर बाहर आए. बच्चों की हालत तो ठीक थी, लेकिन युवती और युवक की स्थिति काफी नाजुक थी. गांव वालों ने आननफानन में एंबुलेंस बुला कर उन्हें स्थानीय अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उन का प्राथमिक उपचार कर के उन्हें पुणे के सेसूनडाक अस्पताल के लिए रेफर कर दिया. साथ ही इस मामले की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी.

पुलिस कंट्रोल रूम से मिली जानकारी पर थाना पारनेर के इंसपेक्टर बाजीराव पवार ने चार्जरूम में मौजूद ड्यूटी अफसर को बुला कर तुरंत इस मामले की डायरी बनवाई और बिना विलंब के एएसआई विजय कुमार बोत्रो, सिपाही भालचंद्र दिवटे, शिवाजी कावड़े और अन्ना वोरगे के साथ अस्पताल की तरफ रवाना हो गए. रास्ते में उन्होंने अपने मोबाइल फोन से मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.

जिस समय पुलिस टीम अस्पताल परिसर में पहुंची, वहां काफी लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी. इन में अधिकतर उस युवक और युवती के सगेसंबंधी थे. पूछताछ में पता चला कि युवती का नाम रुक्मिणी है और युवक का नाम मंगेश रणसिंग लोहार. रुक्मिणी लगभग 70 प्रतिशत और मंगेश 30 प्रतिशत जल चुका था. अधिक जल जाने के कारण रुक्मिणी बयान देने की स्थिति में नहीं थी. मंगेश रणसिंग भी कुछ बताने की स्थिति में नहीं था.

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इंसपेक्टर बाजीराव पवार ने मंगेश रणसिंग और अस्पताल के डाक्टरों से बात की. इस के बाद वह अस्पताल में पुलिस को छोड़ कर खुद घटनास्थल पर आ गए.

घटना रसोईघर के अंदर घटी थी, जहां उन्हें पैट्रोल की एक खाली बोतल मिली. रसोईघर में बिखरे खाना बनाने के सामान देख कर लग रहा था, जैसे घटना से पहले वहां पर हाथापाई हुई हो.

जांचपड़ताल के बाद उन्होंने आग से बच गए बच्चों से पूछताछ की. बच्चे सहमे हुए थे. उन से कोई खास बात पता नहीं चली. वह गांव वालों से पूछताछ कर थाने आ गए. मंगेश रणसिंग के भाई महेश रणसिंग को वह साथ ले आए थे. उसी के बयान के आधार पर रुक्मिणी के परिवार वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी.

इस मामले में रुक्मिणी का बयान महत्त्वपूर्ण था. लेकिन वह कोई बयान दर्ज करवा पाती, इस के पहले ही 5 मई, 2019 को उस की मृत्यु हो गई. मंगेश रणसिंग और उस के भाई महेश रणसिंग के बयानों के आधार पर यह मामला औनर किलिंग का निकला.

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रुक्मिणी की मौत के बाद इस मामले ने तूल पकड़ लिया, जिसे ले कर सामाजिक कार्यकर्ता और आम लोग सड़क पर उतर आए और संबंधित लोगों की गिरफ्तारी की मांग करने लगे. इस से जांच टीम पर वरिष्ठ अधिकारियों का दबाव बढ़ गया. उसी दबाव में पुलिस टीम ने रुक्मिणी के चाचा घनश्याम सरोज और मामा सुरेंद्र भारतीय को गिरफ्तार कर लिया. रुक्मिणी के पिता मौका देख कर फरार हो गए थे.

पुलिस रुक्मिणी के मातापिता को गिरफ्तार कर पाती, इस से पहले ही इस केस ने एक नया मोड़ ले लिया. रुक्मिणी और मंगेश रणसिंग के साथ आग में फंसे बच्चों ने जब अपना मुंह खोला तो मामला एकदम अलग निकला. बच्चों के बयान के अनुसार पुलिस ने जब गहन जांच की तो मंगेश रणसिंग स्वयं ही उन के राडार पर आ गया.

मामला औनर किलिंग का न हो कर एक गहरी साजिश का था. इस साजिश के तहत मंगेश रणसिंग ने अपनी पत्नी की हत्या करने की योजना बनाई थी. पुलिस ने जब मंगेश से विस्तृत पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने अपना गुनाह स्वीकार करते हुए रुक्मिणी हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह रुक्मिणी के परिवार वालों और रुक्मिणी के प्रति नफरत से भरी हुई थी.

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23 वर्षीय मंगेश रणसिंग गांव निधोज का रहने वाला था. उस के पिता चंद्रकांत रणसिंग जाति से लोहार थे. वह एक कंस्ट्रक्शन साइट पर राजगीर का काम करते थे. घर की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी. फिर भी गांव में उन की काफी इज्जत थी. सीधेसादे सरल स्वभाव के चंद्रकांत रणसिंग के परिवार में पत्नी कमला के अलावा एक बेटी प्रिया और 3 बेटे महेश रणसिंग और ओंकार रणसिंग थे.

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मंगेश रणसिंग परिवार में सब से छोटा था. वह अपने दोस्तों के साथ सारा दिन आवारागर्दी करता था. गांव के स्कूल से वह किसी तरह 8वीं पास कर पाया था. बाद में वह पिता के काम में हाथ बंटाने लगा. धीरेधीरे उस में पिता के सारे गुण आ गए. राजगीर के काम में माहिर हो जाने के बाद उसे पुणे की एक कंस्ट्रक्शन साइट पर सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई.

वैसे तो मंगेश को पुणे से गांव आनाजाना बहुत कम हो पाता था, लेकिन जब भी वह अपने गांव आता था तो गांव में अपने आवारा दोस्तों के साथ दिन भर इधरउधर घूमता और सार्वजनिक जगहों पर बैठ कर गप्पें मारता. इसी के चलते जब उस ने रुक्मिणी को देखा तो वह उसे देखता ही रह गया.

20 वर्षीय रुक्मिणी और मंगेश का एक ही गांव था. उस का परिवार भी उसी कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करता था, जिस पर मंगेश अपने पिता के साथ काम करता था. इस से मंगेश रणसिंग का रुक्मिणी के करीब आना आसान हो गया था. रुक्मिणी का परिवार उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. उस के पिता रामा रामफल भारतीय जाति से पासी थे. सालों पहले वह रोजीरोटी की तलाश में गांव से अहमदनगर आ गए थे. बाद में वह अहमदनगर के गांव निधोज में बस गए थे. यहीं पर उन्हें एक कंस्ट्रक्शन साइट पर काम मिल गया था.

बाद में उन्होंने अपनी पत्नी सरोज और साले सुरेंद्र को भी वहीं बुला लिया था. परिवार में रामा रामफल भारतीय के अलावा पत्नी, 2 बेटियां रुक्मिणी व 5 वर्षीय करिश्मा थीं.

अक्खड़ स्वभाव की रुक्मिणी जितनी सुंदर थी, उतनी ही शोख और चंचल भी थी. मंगेश रणसिंग को वह अच्छी लगी तो वह उस से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करने लगा.

मंगेश रणसिंग पहली ही नजर में रुक्मिणी का दीवाना हो गया था. वह रुक्मिणी को अपने जीवनसाथी के रूप में देखने लगा था. उस की यह मुराद पूरी भी हुई.

कंस्ट्रक्शन साइट पर रुक्मिणी के परिवार वालों का काम करने की वजह से मंगेश रणसिंग की राह काफी आसान हो गई थी. वह पहले तो 1-2 बार रुक्मिणी के परिवार वालों के बहाने उस के घर गया. इस के बाद वह मौका देख कर अकेले ही रुक्मिणी के घर आनेजाने लगा.

मंगेश रुक्मिणी से मीठीमीठी बातें कर उसे अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश करता. साथ ही उसे पैसे भी देता और उस के लिए बाजार से उस की जरूरत का सामान भी लाता. जब भी वह रुक्मिणी से मिलने उस के घर जाता, उस के लिए कुछ न कुछ ले कर जाता. साथ ही उस के भाई और बहन के लिए भी खानेपीने की चीजें ले जाता था.

मांबाप की जानपहचान और उस का व्यवहार देख कर रुक्मिणी भी मंगेश की इज्जत करती थी. रुक्मिणी उस के लिए चायनाश्ता करा कर ही भेजती थी. मंगेश रणसिंह तो रुक्मिणी का दीवाना था ही, रुक्मिणी भी इतनी नादान नहीं थी. 20 वर्षीय रुक्मिणी सब कुछ समझती थी.

वह भी धीरेधीरे मंगेश रणसिंग की ओर खिंचने लगी थी. फिर एक समय ऐसा भी आया कि वह अपने आप को संभाल नहीं पाई और परकटे पंछी की तरह मंगेश की बांहों में आ गिरी.

अब दोनों की स्थिति ऐसी हो गई थी कि एकदूसरे के लिए बेचैन रहने लगे. उन के प्यार की ज्वाला जब तेज हुई तो उस की लपट उन के घर वालों तक ही नहीं बल्कि अन्य लोगों तक भी जा पहुंची.

मामला नाजुक था, दोनों परिवारों ने उन्हें काफी समझाने की कोशिश की, लेकिन दोनों शादी करने के अपने फैसले पर अड़े रहे.

आखिरकार मंगेश रणसिंग के परिवार वालों ने उस की जिद की वजह से अपनी सहमति दे दी. लेकिन रुक्मिणी के पिता को यह रिश्ता मंजूर नहीं था. फिर भी वह पत्नी के समझाने पर राजी हो गए. अलगअलग जाति के होने के कारण दोनों की शादी में उन का कोई नातेरिश्तेदार शामिल नहीं हुआ.

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एक सादे समारोह में दोनों की शादी हो गई. शादी के कुछ दिनों तक तो सब ठीकठाक चलता रहा, लेकिन बाद में दोनों के रिश्तों में दरार आने लगी. दोनों के प्यार का बुखार उतरने लगा था. दोनों छोटीछोटी बातों को ले कर आपस में उलझ जाते थे. अंतत: नतीजा मारपीट तक पहुंच गया.

30 अप्रैल, 2019 को मंगेश रणसिंग ने किसी बात को ले कर रुक्मिणी को बुरी तरह पीट दिया था. रुक्मिणी ने इस की शिकायत मां निर्मला से कर दी, जिस की वजह से रुक्मिणी की मां ने उसे अपने घर बुला लिया. उस समय रुक्मिणी 2 महीने के पेट से थी. इस के बाद जब मंगेश रणसिंग रुक्मिणी को लाने के लिए उस के घर गया तो रुक्मिणी के परिवार वालों ने उसे आड़ेहाथों लिया. इतना ही नहीं, उन्होंने उसे धक्के मार कर घर से निकाल दिया.

रुक्मिणी के परिवार वालों के इस व्यवहार से मंगेश रणसिंग नाराज हो गया. उस ने इस अपमान के लिए रुक्मिणी के घर वालों को अंजाम भुगतने की धमकी दे डाली.

बदमाश प्रवृत्ति के मंगेश रणसिंग की इस धमकी से रुक्मिणी के परिवार वाले डर गए, जिस की वजह से वे रुक्मिणी को न तो घर में अकेला छोड़ते थे और न ही बाहर आनेजाने देते थे.  रुक्मिणी का परिवार सुबह काम पर जाता तो रुक्मिणी को उस के छोटे भाइयों और छोटी बहन के साथ घर के अंदर कर बाहर से दरवाजे पर ताला डाल देते थे, जिस से मंगेश उन की गैरमौजूदगी में वहां आ कर रुक्मिणी को परेशान न कर सके.

इस सब से मंगेश को रुक्मिणी और उस के परिवार वालों से और ज्यादा नफरत हो गई. उस की यही नफरत एक क्रूर फैसले में बदल गई. उस ने रुक्मिणी की हत्या कर पूरे परिवार को फंसाने की साजिश रच डाली.

घटना के दिन जब रुक्मिणी के परिवार वाले अपनेअपने काम पर निकल गए तो अपनी योजना के अनुसार मंगेश पहले पैट्रोल पंप पर जा कर इस बहाने से एक बोतल पैट्रोल खरीद लाया कि रास्ते में उस के दोस्त की मोटरसाइकिल बंद हो गई है. यही बात उस ने रास्ते में मिले अपने दोस्त सलमान से भी कही.

फिर वह रुक्मिणी के घर पहुंच गया. उस समय रुक्मिणी रसोईघर में अपने भाई और बहन के लिए खाना बनाने की तैयारी कर रही थी. घर के दरवाजे पर पहुंच कर मंगेश रणसिंग जोरजोर दरवाजा पीटते हुए रुक्मिणी का नाम ले कर चिल्लाने लगा. वह ताले की चाबी मांग रहा था.

दरवाजे पर आए मंगेश से न तो रुक्मिणी ने कोई बात की और न दरवाजे की चाबी दी. वह उस की तरफ कोई ध्यान न देते हुए खाना बनाने में लगी रही.

रुक्मिणी के इस व्यवहार से मंगेश रणसिंग का पारा और चढ़ गया. वह किसी तरह घर की दीवार फांद कर रुक्मिणी के पास पहुंच गया और उस से मारपीट करने लगा. बाद में उस ने अपने साथ लाई बोतल का सारा पैट्रोल  रुक्मिणी के ऊपर डाल कर उसे आग के हवाले कर दिया.

मंगेश की इस हरकत से रुक्मिणी के भाईबहन बुरी तरह डर गए थे. वे भाग कर रसोई के एक कोने में छिप गए. जब आग की लपटें भड़कीं तो रुक्मिणी दौड़ कर मंगेश से कुछ इस तरह लिपट गई कि मंगेश को उस के चंगुल से छूटना मुश्किल हो गया. इसीलिए वह भी रुक्मिणी के साथ 30 प्रतिशत जल गया.

इस के बावजूद भी मंगेश का शातिरपन कम नहीं हुआ. अस्पताल में उस ने रुक्मिणी के परिवार वालों के विरुद्ध बयान दे दिया. उस का कहना था कि उस की इस हालत के लिए उस के ससुराल वाले जिम्मेदार हैं.

उस की शादी लवमैरिज और अंतरजातीय हुई थी. यह बात रुक्मिणी के घर वालों को पसंद नहीं थी, इसलिए उन्होंने उसे घर बुला कर पहले उसे मारापीटा और जब रुक्मिणी उसे बचाने के लिए आई तो उन्होंने दोनों पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी.

अपमान और नफरत की आग में जलते मंगेश रणसिंग की योजना रुक्मिणी के परिवार वालों के प्रति काफी हद तक कामयाब हो गई थी. लेकिन रुक्मिणी के भाई और उस के दोस्त सलमान के बयान से मामला उलटा पड़ गया.

अब यह केस औनर किलिंग का न हो कर पति और पत्नी के कलह का था, जिस की जांच पुलिस ने गहराई से कर मंगेश रणसिंग को अपनी हिरासत में ले लिया.

उस से विस्तृत पूछताछ करने के बाद उस के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 307, 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद रुक्मिणी के परिवार वालों को रिहा कर दिया गया.

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