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  बिहार चुनाव अलटापलटी

बिहार की विधानसभा के लिए हो रहे चुनावों को इस बार नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का टैस्ट बनने देने से रोकने में भारतीय जनता पार्टी पूरा जोर लगा रही है. राष्ट्रीय जनता दल के लालू प्रसाद यादव के बीमार व रांची की जेल में होने के कारण जनता दल यूनाइटेड के मुखिया व प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कड़ा चैलेंज देने वाला कोई बड़ा नेता मौजूद नहीं है. इस का लाभ वे उठा ले जा सकते हैं लेकिन मतदाताओं का भरोसा नहीं.

जनता अब चुप रहना सीखने लगी है क्योंकि पैसे, पुलिस और पावर के आगे मुंह खोलने की हिम्मत कम ही में है. कोरोना वायरस की महामारी के कारण वैसे भी भीड़ जमा नहीं की जा सकती वरना सरकारी तंत्र विपक्ष पर तुरंत इलजाम थोप देगा.

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दलबदलू और पलटीमार नीतीश कुमार ऊपर से चाहे जितने सौम्य व सक्षम दिखते हों, पर वे 15 वर्षों के अपने शासन में बिहार का कायाकल्प नहीं कर पाए. कुछ पक्की सड़कें बना देनेभर से राज्य का विकास नहीं हो जाता. विकास तो तब होता है जब लोगों को नौकरियां मिल रही हों, कारखाने लग रहे हों और  अनुशासन हो मगर अफरातफरी और गंदगी न हो.

नीतीश कुमार के राज की पोल तो उन एक करोड़ मजदूरों ने खोली जो लौकडाउन के बाद बिहार में अपने घरों में वापस लौटे. नीतीश कुमार ने उन से सौतेला व्यवहार किया. रास्ते में पड़ने वाले भाजपाशासित राज्यों में बिहारी मजदूरों की हुई पिटाई पर नीतीश ने मुंह बंद रखा था. यही नहीं, उन्हें बिहार में रोकने की इच्छा तक नहीं जताई. ये लोग दूसरे शहरों और दूसरे देशों से कमा कर बिहार में अपने घर वालों को पैसा भेजते हैं और बिहार की नीतीश सरकार को उस कमाई में से टैक्सों के रूप में बैठेबिठाए हिस्सा मिल जाता है. बिहार सरकार तो इन मजदूरों को वापस भेजना चाहती है ताकि उन्हें इन की देखभाल न करनी पड़े.

नीतीश कुमार वैसे तो चुप रहे लेकिन छिप कर वे, दरअसल, भगवा एजेंडे का ढोल ही पीटते रहे. उन्होंने किसी मामले में केंद्र सरकार से भिड़ने की कोशिश नहीं की. जिन नरेंद्र मोदी को वे विभाजक बताते थे, सत्ता की चाह में आजकल उन्हीं के गुणगान में लगे पड़े हैं.

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नीति आयोग के स्वास्थ्य इंडैक्स में बिहार अपने पड़ोसी उत्तर प्रदेश के साथ सब से नीचे के 2 स्थानों में से है. जहां केरल का स्कोर 74.66 है, बिहार का 33.34 पर चलता है. यानी, बिहारियों को केरल के बाशिंदों के मुकाबले आधी स्वास्थ्य सुविधाएं ही मिल रही हैं.

जहां गोवा में प्रतिव्यक्ति आय 4,67,998 रुपए है, बिहार की सिर्फ 43,822 रुपए, यानी, 10वां हिस्सा है.

15 वर्षों में नीतीश कुमार इस में नाममात्र का बढ़ावा कर सके हैं.

स्कूल एजुकेशन इंडैक्स में बिहार 20 बड़े राज्यों में नीचे से दूसरा स्थान रखता है. स्कूली इंफ्रास्ट्रक्चर में जहां हरियाणा 79 फीसदी पा कर सब से अच्छा है वहां नीतीश कुमार का बिहार 42 फीसदी के स्तर पर है. बिहार के बच्चों को न गणित का ज्ञान है, न भाषा का.

नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के अनुसार, दहेज हत्याओं में बिहार का स्थान दूसरा है, पहला उत्तर प्रदेश का है. पूरे देश की 15 फीसदी दहेज हत्याएं बिहार में होती हैं.

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देश के राज्यों की बड़ी राजधानियों में से एक बिहार की राजधानी पटना में सब से ज्यादा हत्याओं की घटनाएं घटती हैं. वहां 4.4 हत्याएं प्रति लाख आबादी की दर से होती हैं.

मानव विकास इंडैक्स के अनुसार भी नीतीश का बिहार केरल के 77 फीसदी के मुकाबले सब से नीचे 57 फीसदी पर है. इस सब के बावजूद, नीतीश सरकार अपने को ‘सुशासन बाबू की सरकार’ कहती है.

वहीं, जातिभेद में बिहार सरकार ठीक भगवा मंडली का अंधानुकरण कर रही है. राज्य में पिछड़ी व निचली जातियों के लोग चिराग पासवान जैसों के होते हुए भी गुलाम हैं. वहां औरतें चाहे किसी भी जाति की हों, 18वीं सदी में जी रही हैं. नीतीश कुमार में एक ही योग्यता है कि वे अपनी कुरसी बचा कर रख सकते हैं. और शायद, इसी वजह से उन का पलड़ा भारी रहता है.

चीन पर ढुलमुल मोदी सरकार

भारतचीन संबंधों में किसी तरह के सुधार की संभावना अब नहीं दिख रही है. न केवल दोनों ओर की सेनाएं सीमा पर लड़ाकू सामान इकट्ठा कर रही हैं, बल्कि दोनों ओर से तीखे आधिकारिक बयान दिए जाने जारी भी हैं. चीन हमारे देश के लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के बड़े भाग को अपना मानता है क्योंकि वहां कभी तिब्बती राजाओं का राज था. चीन ब्रिटिशराज की सीमाओं को मानने को तैयार नहीं है.

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भारत के लिए तो यह स्थिति गंभीर है ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीति के लिए तो और भी ज्यादा खतरनाक है. नरेंद्र मोदी ने 2014 में अपनी छवि एक कट्टर बलशाली नेता की बनाई थी जो आमतौर पर खामोश रहने वाले मगर बुद्धिमान डा. मनमोहन सिंह से हर सूरत में दसगुना ज्यादा विश्वसनीय थी. अब, मोदी की उस छवि पर गहरी चोट लग चुकी है. भारत सीमा पर चीन के मुकाबले चाहे कमजोर न हो पर वह आर्थिक स्तर पर उस से काफी पीछे है. आज देश की अर्थव्यवस्था का जो हाल नरेंद्र मोदी सरकार ने कर दिया है, उस से युद्ध की मार को  झेलने में काफी कठिनाई होगी. लगता है, हमें भी पाकिस्तानियों की तरह ‘घास की रोटियां खाएंगे पर अणुबम बनाएंगे’ जैसे वादे करने पड़ेंगे.

चीन ने लद्दाख क्षेत्र में 1959 में अपनी मरजी से सीमा खींच ली थी, पर बाद के कई सम झौतों में वह इस सीमा पर जोर नहीं दे रहा था. लेकिन, अब उस ने 1959 का बौर्डर फिर उभारा है और इसी पर टिका है. यह भारत के लिए गंभीर है. चीन लद्दाख के पुनर्गठन पर भी आपत्ति जता रहा है. अब लगता यह है कि ये विवाद दशकों तक उल झे रहेंगे.

भारत और चीन मिल कर एशियाई सदी की कहानी लिखेंगे, यह बात अब हवा हो गई है. चीन तो खैर आर्थिकतौर पर मजबूत होता जा रहा है और वह अपनी सोच नई खोजों में लगा रहा है. जबकि, भारत सीमा पर उल झ कर रह गया. हमें अपनी आय का बड़ा हिस्सा डिफैंस पर खर्च करना पड़ेगा. चीनभारत युद्ध न हो तो भी. सेनाओं को तैयार रखने में बहुत खर्च होता है. यह हमारे नेतृत्व की कमजोरी है कि हम ने नाक से आगे न सोचा और पाकिस्तान की तरह चीन को भी हड़का कर काम निकालने की सोचते रहे.

जगदगुरु बनने का सपना पालने वाला भारत अब बीमार देश साबित होने लगा है सीमा पर भी, सामाजिकतौर पर भी और कोविड की बीमारी पर भी. हमारे मुकाबले चीन ने कोरोना वायरस का मुकाबला भी किया और देश के सामाजिक व राजनीतिक मामले भी सीमा से बाहर निकलने से पहले हल कर लिए. तानाशाही होते हुए भी वहां की सरकार अपनी जनता को ज्यादा खुश रख रही है. सैनिक दृष्टि से किसी देश के मजबूत होने की यह पहली शर्त है.

मसजिद तोड़ने का दोषी कौन

अयोध्या की अदालत ने बाबरी मसजिद ढहाने के आरोप में उन सभी को बरी कर दिया है जिन पर 1993 से मुकदमा चल रहा था. भारतीय जनता पार्टी की सरकार में तो यह होना ही था. पर अगर कोई और सरकार भी होती, तो निर्णय कुछ इसी तरह का होता. राममंदिर के मामले में बड़ी बैंच के सर्वसम्मत्ति के निर्णय के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने यह जता दिया है कि इस देश में संविधान, कानून, सरकार, मीडिया, इतिहास, शिक्षा, आचारव्यवहार सब तालिबानी तर्ज पर चलेगा. मसजिद दिनदहाड़े तोड़ी गई, अदालत कहती है दोषी कोई नहीं. दशकों चले मुकदमे में गुनहगार कोई नहीं.

अदालतों ने साबित कर दिया है कि वे खापपंचायतों से बढ़ कर ज्यादा कुछ नहीं हैं. उन का काम समाज में अंधविश्वास और पूजापाठ को कायम रखना है, जबकि तर्क, तथ्य व विश्लेषणात्मक विचारों से लेनादेना नहीं है. अदालतें अब बाकी समाज के दबंग पूजापाठी सत्ताधारियों से पूरी तरह सहमत ही नहीं,  उन के संकुचित एजेंडे को लागू करने में पूरी तरह से सक्रिय भी हैं जैसी चीन, रूस व अरब देशों की अदालतें हैं. कम्युनिस्ट और इसलामी देशों से भारत अब अलग लोकतांत्रिक व उदार देश नहीं है.

देश के विचारकों में अब ज्यादातर वे ही बचे हैं जो 2,000 साल पहले की सोचते हैं. उपन्यासकार हों या फिल्म निर्माता, उन का मुख्य ध्येय, अगर, पुरातनपंथी ढोल पीटना है तो उन की कृतियां खूब चलेंगी. मगर यदि वे भविष्य की बात करेंगे, सामाजिक दोष निकालेंगे तो उन्हें भर्त्सना मिलेगी. अपनी जाति और अपने रीतिरिवाजों को श्रेष्ठ व त्रुटिरहित सिद्ध करने के चक्कर में आज अच्छेअच्छे लोग भी सच को ताक पर रख रहे हैं.

मसजिद ही उस जगह बनी थी जहां राम का जन्म हुआ, यह विचार कई सौ सालों से ऐसा भरा गया कि भारतीय जनता पार्टी उस का भरपूर लाभ उठा ले गई. यही नहीं, इस की आड़ में उस ने अपने दूसरे एजेंडे भी लागू कर दिए. इस चक्कर में देश की आर्थिक प्रगति की बलि उसी तरह चढ़ गई जैसे ईंटपत्थर की पुरानी सी मसजिद चढ़ी थी. पर, उस मसजिद को ढहाने के मामले में आए अदालती फैसले के बाद से देश की रगों को नर्व डिजीज हो गई और एक के बाद एक या तो गलत फैसले लिए गए या अपनेआप होने वाली प्राकृतिक घटनाओं का मुकाबला ढंग से नहीं किया जा सका.

मसजिद गिराने में किसी ने कोई अपराध नहीं किया, यह फैसला अपनेआप में अजीब नहीं है क्या? दरअसल, हम इस तरह के फैसलों के आदी हैं. हजारों हत्याएं होती हैं, जिन के गुनहगारों को कभी सजा नहीं मिलती. एक मसजिद की खुलेआम हत्या हो गई लाखों की भीड़ के सामने, मगर गुनहगार कोई नहीं, तो क्या हुआ. यह तो महान भारत की निशानी है. याद है न, जलियांवाला बाग का कुख्यात अपराधी कर्नल रेजिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर भी अपराधमुक्त रहा क्योंकि तब सरकार अंगरेजों की थी. आज भी वही हाल है.

ट्रंप हारे तो…

अमेरिका के चुनावी सर्वे सही साबित होते हैं, तो 3 नवंबर को होने वाले चुनावों में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हार पक्की है. जबकि डैमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बाइडेन और उपराष्ट्रपति पद के लिए कमला हैरिस के जीतने के अवसर पक्के हैं. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले ही से अपना खालीपन दिखाना शुरू कर दिया था और कोरोना वायरस को ले कर तो वे चरमसीमा पर पहुंच गए थे.

जब वे खुद कोरोना संक्रमित हुए तो अस्पताल में ढंग से नहीं रहे और वहां से 3 दिनों में ही निकल कर चुनावी सभाओं में भाग लेने लगे. यह सच है कि उन की हार से दुनिया चैन की सांस लेगी, तो वहीं दुनियाभर के ख्ब्ती, कट्टरपंथी नेताओं को अपने गिरेहबान में झांकना पड़ेगा.

भारत में नरेंद्र मोदी, जिन्होंने मार्च में अहमदाबाद में नारा लगवाया था कि ‘ट्रंप सरकार, फिर एक बार’ अब चुप हैं. चूंकि भारतीय मूल की मां की बेटी कमला हैरिस के उपराष्ट्रपति बनने के अवसर हैं और वे कट्टरपंथ विरोधी हैं. जो बाइडेन और कमला हैरिस की जोड़ी जीतती है तो दुनियाभर के बहुत सारे लोग राहत की सांस लेंगे.

फलक से टूटा इक तारा

रोहिंग्या रिफ्यूजियों के बीच खाना परोसना, भगवा गैंग को फूटी आंख नहीं सुहाता

लेखक- शाहनवाज

“अन्न का कोई धर्म नहीं होता”“खाना दिलों को जोड़ने का काम करता है, न की तोड़ने का”
ये कुछ तरह के वाक्य आप ने भी आप ने भी जीवन में कभी न कभी सुने ही होंगे. लेकिन हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली में कुछ ऐसा हुआ जिसे यदि आप सुनेंगे तो एक पल ये सोचने के लिए मजबूर हो जाएंगे की शायद ऊपर लिखे हुए वाक्य अभी भी कुछ लोगों के दिलों दिमाग से कोसों दूर है. वें अपने दिलों में असीम नफरत और भेदभाव भरे हुए हैं. इस के साथ ही वें अपनी दिमागी बेवकूफी का परिचय भी देते हैं.

ये है मामला
अचानक थोपे गए लॉकडाउन की वजह से देश में सब से ज्यादा चोट खाए इंडस्ट्री में से एक हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री (अतिथ्य उद्योग) है. रेस्टोरेंट से जुड़ा व्यापार इसी उद्योग में शामिल होता हैं. अब जाहिर सी बात है सब कुछ जब अचानक से बंद कर दिया जाएगा तो कोई भी धंधा कैसे काम कर सकता है भला. हम सभी ने अचानक से थोपे हुए लॉकडाउन को झेला है और हम सभी जानते हैं की देश की गरीब पिछड़ी आबादी ने दुनिया के सब से कड़े लॉकडाउन को कैसे झेला है.

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इतने नुकसान के बावजूद दिल्ली के कुछ रेस्टोरेंट मानवता का हाथ बढ़ा ने के लिए रोहिंग्या रिफ्यूजीयों के बीच खाना बाटने के लिए पहुंचे. सब से पहले ये खबर न्यूज़ एजेंसी ए.एन.आई. ने अपने वेबसाइट पोर्टल पर डाली. देखते ही देखते कुछ ही घंटों में मानवता के कुछ दुश्मनों ने जिन रेस्टोरेंट ने रोहिंग्या रिफ्यूजीयों के बीच खाना वितरण किया था, ट्विटर पर उन्हें बायकाट करने की बात करने लगे.

बायकाट करने वाले लोगों का कहना है की ‘रोहिंग्या मुसलमान इस देश के लिए सांप की तरह हैं. उन्हें इस देश में रहने का कोई हक नहीं है’. कोई कहता है की ‘अगर खाना खिलाना ही था दुसरे गरीबों के बीच खाना बांट दिया होता, रोहिंग्या ही क्यों?’ कोई कहता है की ‘पाकिस्तान से आए हुए हिन्दू रिफ्यूजी भी तो थे उन्हें क्यों नहीं खाना बांटा?’ और न जाने क्या क्या बिना सर पैर वाली बाते कर के रेस्टोरेंट के मालिकों द्वारा इस काम के लिए उन्हें ट्रोल करने लगे.

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समस्या तब और अधिक तब बढ़ने लगी जब ये सिर्फ ट्रोल ही नही बल्कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर इन के खिलाफ गलत गलत रिव्यु लिखने के लिए लोगों से आग्रह करने लगे. जहां पर इस जैसे काम के लिए इन रेस्टोरेंट को 5 स्टार देने की बात होनी चाहिए थी, वहीं लोगों ने इन्हें केवल 1 स्टार दे कर इनकी रेटिंग गिराने लगे.फिर कुछ समय बाद जब यह खबर और लोगों के बीच पहुंची, तब इन के समर्थन में भी ट्वीट किये गए और इन्हें पॉजिटिव रिव्यु मिलने लगे. इन में से एक रेस्टोरेंट के मालिक शिवम सहगल ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बातचीत के दौरान बताया की “हम ने यह काम बहुत सकारात्मक तरीके से किया है. यदि कोई इसे गलत तरीके से ले रहा है, तो यह उनकी अपनी निजी समस्या है. हमारे रेस्टोरेंट की चिंता समाज के ऐसे लोगों की मदद करना है जो की इसी समाज का हिस्सा हैं. जहां 70% लोग हमारे द्वारा किये गए इस काम की सराहना कर रहे हैं वहीं 30% लोग ऐसे हैं जो इस की आलोचना कर रहे हैं. जो इस काम की आलोचना कर रहे हैं ये उन की अपनी निजी मानसिकता है, जिस का हमारे द्वारा किये काम गए काम से कोई लेना देना नहीं हैं.”

रोहिंग्या रिफ्यूजियों के लिए भगवा गैंग के दिलों में नफरत

2017 में रोहिंग्या समुदाय के लोग बड़ी संख्या में अपनी जान बचा कर अलग अलग देशों में शरण लेने के लिए पहुंचे. सभी रोहिंग्या शरणार्थी सिर्फ भारत आ कर नहीं बसें. इन देशों में इंडोनेशिया, मलेशिया, लाओस, कम्बोडिया बांग्लादेश और भारत का नाम शामिल है. रोहिंग्या समुदाय के लोग म्यांमार में 8वी सदी से रह रहे हैं. परंतु म्यांमार के 1982 के नागरिकता कानून के तहत रोहिंग्या समुदाय के लोगों को नागरिकता देने से वंचित कर दिया गया. संयुक्त राष्ट्र की माने तो रोहिंग्या समुदाय के लोगों ने लंबे समय तक दमन का सामना किया है, जिन में उन का अक्सर नरसंहार हुआ है. यही नहीं रोहिंग्या समुदाय के लोगों को दुनिया के सबसे सताए हुए जातीय अल्पसंख्यक के रूप में वर्णित किया गया है.

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इस के साथ ही रोहिंग्या समुदाय के बारे में जिस प्रकार से झूठी खबरे फैला कर ये प्रचारित किया गया है की ये सभी मुसलमान है तो ऐसा नहीं है. रोहिंग्या समुदाय में हिन्दू धर्म के लोग भी हैं जो की अल्प्संखयक हैं.ये तो था रोहिंग्या समुदाय के लोगों के बारे में संक्षेप में एक परिचय. परंतु समाज में हिंसा फैलाने वाले, समाज को धर्मों में, जातियों में, भाषा में, कल्चर में इत्यादि रूप से बांटने वाले लोगों की मानसिकता रोहिंग्या समुदाय के इन लोगों के प्रति भी उतनी ही जहरीली है. रोहिंग्या रिफ्यूजीयों के प्रति भाजपा समर्थक और उन की लीडरशिप की मानसिकता लगभग एक जैसी है. वें इन के लिए अपने दिलों में पहले से ही नफरत लिए घूमते हैं.

2017 में रोहिंग्या समुदाय के लोगों का भारत में आने पर, असम और मणिपुर में भाजपा की अगुवाई वाली राज्य सरकारों ने अपनी पुलिस से, विशेषकर सीमावर्ती जिलों में यह हिदायत दी कि कोई भी सीमा पार कर भारत में न घुस पाए. असम और मणिपुर में भाजपा सरकारों ने “सीमावर्ती क्षेत्रों में अतिरिक्त सतर्कता बरतने के लिए अलर्ट” जारी किया था.सितम्बर 2017 को असम में भाजपा के अल्पसंख्यक नेता बेनजीर अरफान को भाजपा ने पार्टी से सस्पेंड कर दिया. क्योंकि अरफान ने फेसबुक पर एक पोस्ट अपलोड कर लोगों से म्यांमार सरकार द्वारा रोहिंग्याओं के साथ किए गए व्यवहार के विरोध में उपवास करने का अनुरोध किया था. असम में भाजपा के महासचिव दिलीप सैकिया द्वारा अरफान को खत लिख कर यह कहा गया कि “आपके कार्य को पार्टी के नियमों और विचारधारा के विरुद्ध मानते हुए, भाजपा की राज्य इकाई के अध्यक्ष ने आपको सभी जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया और आपको पार्टी से निलंबित कर दिया.”

अप्रैल 2018 में दक्षिणी दिल्ली के कालिंदी कुञ्ज इलाके में, जिस बस्ती में रोहिंग्या रिफ्यूजी रह रहे थे उसे भाजपा के यूथ विंग लीडर मनीष चंदेला के द्वारा जला दिया गया. इस घटना के कारण ये कई शरणार्थी अपने सगे सम्बन्धियों से बिछड़ गए और कईयों के उस आग में उन के संयुक्त राष्ट्र द्वारा दिए गए रिफ्यूजी वीजा भी जल कर खाक हो गए. जिस के बाद चंदेला द्वारा ट्विटर पर यह स्वीकार भी किया गया की बस्ती में आग उन्होंने ही लगाई थी. ट्विटर पर चंदेला ने ट्वीट कर पोस्ट किया कि “हमारे नायकों द्वारा बेहद अच्छा काम किया गया. हां हमने रोहिंग्या आतंकवादियों के घर जला दिए.” उस ने उस के बाद एक ट्वीट और किया. “हा हम ने यह किया और फिर से करेंगे.” उस के द्वारा #रोहिंग्याक्विटइंडिया हैशटैग का चलाया गया. प्रशासन के द्वारा मनीष चंदेला पर कोई कानूनी कार्यवाही की कोई खबर नहीं है. अर्थात ये धूल भी कारपेट के नीचे सरका दिया गया.

हमारे समाज में रोहिंग्या शरणार्थियों के विरोध में जिस तरह से नफरत फैलाने वाले अभियान छेड़े गए हैं उस से दुसरे देशों के सताए हुए इन लोगों को यहां पर भी राहत की सांस नहीं मिल रही. हाल ही में नागरिकता संशोधन कानून के पास होने के बाद ये लोग हमेशा डर के साए में जीने को मजबूर है.
जब हम बात सोशल मीडिया की करते हैं तो फेसबुक, ट्विटर इत्यादि प्लेटफॉर्म्स पर रोहिंग्या रिफ्यूजियों के प्रति हेट स्पीच लगातार देखने को मिल ही जाएंगे. रोहिंग्या मुसलमानों पर नरभक्षण का झूठा आरोप लगाया जाता है. ऐसे घृणा भरे पोस्ट को वायरल किया जाता है जिन में उन के भारत न छोड़ने पर उनके घरों को जलाने की धमकियां भी दी जाती है.

कुछ हिंदू राष्ट्रवादियों ने रोहिंग्या शरणार्थियों को आतंकवादी बुलाया और सोशल नेटवर्क पर वीडियो शेयर किए जिस में भारत के शासक भारतीय जनता पार्टी के नेता ने अल्पसंख्यक समूह और अन्य मुसलामानों को “दीमक” कह कर उन्हें देश से बाहर निकालने की कसम भी खाते दिखाई दिए. 2019 में पश्चिम बंगाल में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों पर यह आरोप लगाया गया की उन्होंने भाजपा कार्यकर्त्ता कि हत्या की है. हालांकि ऐसा कुछ भी नहीं था और यह सब फेसबुक के जरिये झूठी ख़बरें फैलाने का काम किया जा रहा था.

सोशल मीडिया रोहिंग्याओं के प्रति लोगों में नफरत भरने का सब से आसान रास्ता है. जहां बिना किसी तथ्य के, कोई भी कुछ भी फेक न्यूज़ आसानी से वायरल करवा सकता है.

नफरत बाटने वालों से रहे दूर

जिन विकट परिस्थितियों से निकल कर रोहिंग्या समुदाय अपना देश छोड़ कर अन्य देशों में धक्के खाने को मजबूर हैं और भेदभाव सहने को मजबूर है उस से यही समझ में आता हैं की रोहिंग्या समुदाय म्यांमार में कितने अधिक प्रताड़ित थे.जब हिन्दू कट्टरपंथी लोगों के दिल और दिमाग में नफरत का बीज बो रहे होते हैं तो सब से अधिक नुक्सान हमारे समाज को ही झेलना पड़ता है. नफरत पैदा करने वालों से हमें बेहद सावधान रहने की जरुरत है. फिर चाहे वह पार्टी का कोई छोटा कार्यकर्त्ता हो या फिर बड़ा लीडर.
दिल्ली में रोहिंग्या शरणार्थियों के बीच खाना बांटने वालों का बायकाट करने वाले ने कभी खुद अपने इलाके में किसी जरूरतमंद की मदद नहीं की होगी. लेकिन जब देखा की मामला हिन्दू बनाम मुसलमान का है तो यही लोग ट्विटर पर इन्हें बायकाट करने की बात उठाने लगे.

भारत ने जब भी कोई विभिन्न समुदायों के बीच सौहार्द बढ़ाने की बात करता है या फिर काम करता है तो इन्ही भगवा गैंग के लोगों को सब से पहले मिर्च लग्न शुरू हो जाती है. इस का सब से ताजा उदाहरण बीते कुछ दिनों पहले तनिष्क का टीवी पर प्रचार है. तनिष्क के इस ऐड में यह दिखाया गया की दो अलग अलग धर्मों के लोगों में शादी हुई है और एक पारिवारिक समारोह में घर की बहु (जो की हिन्दू परिवार से है) अपनी सास (जो की मुस्लिम परिवार से है) से सवाल करती है की “ये रसम तो आप के घर नहीं निभाई जाती है न?” जिस के जवाब में सास कहती है की “लेकिन बेटी को खुश रखने की रसम तो हर घर में निभाई जाती है.”

सच्चाई तो यह है की मौजूदा हालातों को देखते हुए इस ऐड को देख कर किसी भी व्यक्ति का दिल पिघल जाएगा. लेकिन यह समझ नहीं आता है की भगवा गैंग को इतने सौहार्द बढ़ाने वाले ऐड में ‘लव जिहाद’ कहां से नजर आ गया?

ठीक उसी तरह से खाना खिलाना और बांटना समाज में हमेशा सामाजिक कार्यों में सब से अच्छे कामों में से एक माना जाता है. लेकिन रोहिंग्याओं को खाना बांटना समाज में कब से गैर कानूनी हो गया.
इसीलिए जरुरी है की हम आम लोग इन जैसे लोगों से अपनी दुरी बना कर रखे जो हमेशा एक धर्म के लोगों को दुसरे धर्म के लोगों के प्रति भड़काते हैं. मामला चाहे रोहिंग्याओं का क्यों न हो, है तो वह भी इंसान ही.
भगवा गैंग से दूर रहें और अपने दिल में प्यार जिन्दा रखें.

फलक से टूटा इक तारा -भाग 3 : सान्या को क्या हो पाया वो एहसास

अगले दिन जैसे ही देव ने सान्या के मुंह से शादी की बात सुनी, वह कहने लगा, ‘‘हांहां, क्यों नहीं, शादी तो करनी ही है लेकिन इतनी जल्दी भी क्या है सान्या, थोड़ा हम दोनों और सैटल हो जाएं, फिर करते हैं शादी. तुम भी थोड़ा और नाम कमा लो और मैं भी. फिर बस शादी और बच्चे, हमारी अपनी गृहस्थी होगी.’’

देव की प्यारभरी बात सुन कर सान्या मन ही मन खुश हो गईर् और अगले ही पल वह उस की आगोश में आ गई. सान्या को पूरा भरोसा था अपनेआप पर और उस से भी ज्यादा भरोसा था देव पर. वह जानती थी कि देव पूरी तरह से उस का हो चुका है. अब उन का मिलनाजुलना पहले से ज्यादा बढ़ गया था, कभी मौल में, तो कभी कैफे में दोनों हाथ में हाथ डाले घूमते नजर आ ही जाते थे. उन का प्यार परवान चढ़ने लगा था. सान्या तो तितली की तरह अपने हर पल को जीभर जी रही थी. यही जिंदगी तो चाहती थी वह, तभी तो उस छोटे से कसबे को छोड़ कर मुंबई आ गई थी और उस का सोचना गलत भी कहां था, शायद ही कोई विरला होगा जो मुंबई की चमकदमक और फिल्मी दुनिया की शानोशौकत वाली जिंदगी पसंद न करता हो.

अभी 2-3 महीने बीते थे और देव अब सान्या के फ्लैट में ही रहने लगा था. रातदिन दोनों साथ ही नजर आते थे. लेकिन यह क्या, देव अचानक से अब उखड़ाउखड़ा सा, बदलाबदला सा क्यों रहता है? सान्या देव से पूछती, ‘‘देव कोई परेशानी है तो मुझे बताओ, तुम्हारे व्यवहार में मुझे फर्क क्यों नजर आ रहा है? हर वक्त खोएखोए रहते हो. कुछ पूछती हूं तो खुल कर बात करने के बजाय मुझ पर झल्ला पड़ते हो.’’ देव ने जवाब में कहा, ‘‘कुछ नहीं, तुम ज्यादा पूछताछ न किया करो, मुझे अच्छा नहीं लगता है.’’

सान्या सोचने लगी, ‘कल तक जो देव मेरी हर बात का दीवाना हुआ करता था उसे आज अचानक से क्या हो गया है?’ यदि सान्या उस से बात करना भी चाहती तो वह मुंह फेर कर चल देता. अब सान्या मन ही मन बहुत परेशान रहने लगी थी. बारबार सोचती, कुछ तो है जो देव मुझ से छिपा रहा है. अब वह देव पर नजर रखने लगी थी और उसे मालूम हुआ कि देव का उस से पहले भी एक लड़की से प्रेमप्रसंग था और अब वह फिर से उस से मिलने लगा है. सान्या सोचने लगी, ‘तो क्या देव, मुझे शादी के झूठे सपने दिखा रहा है.’ यदि अब वह देव से शादी के बारे में बात करती तो देव उसे किसी न किसी बहाने से टाल ही देता. और आज तो हद ही हो गई, जब सान्या ने देव से कहा, ‘‘हमारी शादी का दिन तय करो.’’ देव उस की यह बात सुन मानो तिलमिला गया हो. वह कहने लगा, ‘‘तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने है, आज हम शादी कर लें और कल बच्चे? इतना बड़ा पेट ले कर घूमोगी तो कौन से धारावाहिक वाले तुम्हें काम देंगे. तुम्हारे साथसाथ मेरा भी कैरियर चौपट जब सब को पता लगेगा कि मैं ने तुम से शादी कर ली है.’’

सान्या कानों से सब सुन रही थी लेकिन जो देव कह रहा था उस पर उसे विश्वास नहीं हो रहा था. उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया था. वह तो सोच भी नहीं सकती थी कि देव उस के साथ ऐसा व्यवहार करेगा. वह तो शादी के सपने संजोने लगी थी. उसे नहीं मालूम था कि देव उस के सपने इतनी आसानी से कुचल देगा. तो क्या देव सिर्फ उस का इस्तेमाल कर रहा था या उस के साथ टाइमपास कर रहा था. उस का प्यार क्या एक छलावा था. वह सोचने लगी कि ऐसी क्या कमी आ गई अचानक से मुझ में कि देव मुझ से कटने लगा है. ?

कई धारावाहिकों में अपनी मनमोहक छवि और मुसकान के लिए सब का चहेता देव, क्या यही है उस की असलियत? जिस देव की न जाने कितनी लड़कियां दीवानी हैं क्या उस देव की असलियत इतनी घिनौनी है? वह मन ही मन अपने फैसले को कोस रही थी और अंदर ही अंदर टूटती जा रही थी, लेकिन उस ने सोच लिया था कि देव उस से इस तरह पीछा नहीं छुड़ा सकता. अगले दिन जब देव शूटिंग खत्म कर के घर जा रहा था, सान्या भी उस के साथ कार में आ कर बैठ गई और उस ने पूछा, ‘‘देव, क्या तुम किसी और से प्यार करते हो? मुझे सचसच बताओ क्या तुम मुझ से शादी नहीं करोगे?’’ आज देव के मुंह से कड़वा सच निकल ही गया, ‘‘क्यों तुम हाथ धो कर मेरे पीछे पड़ गई हो, सान्या? मेरा पीछा छोड़ो,’’ यह कह देव अपनी कार साइड में लगा कर वहां से पैदल चल दिया. लेकिन सान्या क्या करती? वह भी दौड़ कर उस के पीछे गई और कहने लगी, ‘‘मैं ने तुम से प्यार किया है, देव, क्या तुम ने मुझे सिर्फ टाइमपास समझा? नहीं देव, नहीं, तुम मुझे इस तरह नहीं छोड़ सकते. बहुत सपने संजोए हैं मैं ने तुम्हारे साथ. क्या तुम मुझे ठुकरा दोगे?’’

देव को सान्या की बातें बरदाश्त से बाहर लग रही थीं और उसी गुस्से में उस ने सान्या के गाल पर तमाचा जड़ते हुए कहा, ‘‘तुम मेरा पीछा क्यों नहीं छोड़ती?’’ सान्या वहां से उलटे कदम घर चली आई. अब तो सान्या की रातों की नींद और दिन का चैन छिन गया था. न तो उस का शूटिंग में मन लगता था और न ही कहीं और. इतनी जानीमानी मौडल, इतने सारे नामी धारावाहिकों की हीरोइन की ऐसी दुर्दशा. यह हालत. वह तो इस सदमे से उबर ही नहीं पा रही थी. पिछले 4 दिनों से न तो वह शूटिंग पर गई और न ही किसी से फोन पर बात की. कई फोन आए पर उस ने किसी का भी जवाब नहीं दिया.

आज उस ने देव को फोन किया और कहा, ‘‘देव, क्या तुम मुझे मेरे अंतिम समय में भी नहीं मिलोगे? मैं इस दुनिया को छोड़ कर जा रही हूं, देव,’’ इतना कह फोन पर सान्या की अवाज रुंध गई. देव को तो कुछ समझ ही न आया कि वह क्या करे? वह झट से कार ले कर सान्या के घर पहुंचा. लिफ्ट न ले कर सीधे सीढि़यों से ही सान्या के फ्लैट पर पहुंचा. दरवाजा अंदर से लौक नहीं था. वह सीधे अंदर गया, सान्या पंखे से झूल रही थी. उस ने झट से पड़ोसियों को बुलाया और सब मिल कर सान्या को अस्पताल ले कर गए. लेकिन वहां सान्या को मृत घोषित कर दिया गया.

सान्या इस दुनिया से चली गई, उस दुनिया में जिस में उस ने सुनहरे ख्वाब देखे थे, वह दुनिया जिस में वह देव के साथ गृहस्थी बसाना चाहती थी, वह दुनिया जिस की चमकदमक में वह भूल गई कि फरेब भी एक शब्द होता है और देव से जीजान से मुहब्बत कर बैठी या फिर वह इस दुनिया के कड़वे एहसास से अनभिज्ञ थी. उसे लगता था कि ये बड़ीबड़ी हस्तियां, बडे़ स्टेज शो, पार्टियों में चमकीले कपड़े पहने लोग और बड़ी ही पौलिश्ड फर्राटेदार अंगरेजी बोलने वाले लोग सच में बहुत अच्छे होते हैं, लेकिन उसे यह नहीं मालूम था कि उस दुनिया और हम जैसे साधारण लोगों की दुनिया में कोई खास फर्क नहीं. हमारी दुनिया की जमीन पर खड़े हो जब हम आसमान में चमकते सितारे देखते हैं तो वे कितने सुंदर, टिमटिमाते हुए नजर आते हैं. किंतु उन्हीं सितारों को आसमान में जा कर तारों के धरातल पर खड़े हो कर जब हम देखें तो उन सितारों की चमक शून्य हो जाती है और वहां से हमारी धरती उतनी ही चमकती

हुई दिखाई देती है जितनी कि धरती से आसमान के तारे. फिर क्यों हम उस ऊपरी चमक से प्रभावित होते हैं? ये चमकदार कपड़े, सूटबूट सब ऊपरी दिखावा ही तो है दूसरों को रिझाने के लिए. तभी तो सान्या इन सब के मोहपाश में पड़ गई और देव से सच्चा प्यार कर बैठी. वह यह नहीं समझ पाई कि इंसान तो इंसान है, मुंबई के फिल्मी सितारों की दुनिया हो या छोटे से कसबे के साधारण लोगों की दुनिया, इंसानी फितरत तो एक सी ही होती है चाहे वह कितनी भी ऊंचाइयां क्यों न हासिल कर ले. लेकिन कहते हैं न, दूर के ढोल सुहावने. खैर, अब किया भी क्या जा सकता था.

लेकिन हां, हर पल मुसकराने वाली सान्या जातेजाते सब को दुखी कर गई और छोड़ गई कुछ अनबूझे सवाल. झूठे प्यार के लिए अपनी जान देने वाली सान्या अपनी जिंदगी को कोई दूसरा खूबसूरत मोड़ भी तो दे सकती थी. इतनी गुणी थी वह, अपने जीवन में बहुतकुछ कर सकती थी. सिर्फ जीवन के प्रति सकारात्मक सोच को जीवित रख लेती और देव को भूल जीवन में कुछ नया कर लेती. काश, वह समझ पाती इस दुनिया को. कितनी नायाब होती है उन सितारों की चमक जो चाहे दूर से ही, पर चमकते दिखाई तो देते हैं. सभी को तो नहीं हासिल होती वह चमक. तो फिर क्यों किसी बेवफा के पीछे उसे धूमिल कर देना. काश, समझ पाती सान्या. खैर, अब तो ऐसा महसूस हो रहा था जैसे फलक से एक चमकता तारा अचानक टूट गया हो.

फलक से टूटा इक तारा -भाग 2 : सान्या को क्या हो पाया वो एहसास

उस की मां उसे समझाती, ‘‘सान्या, हम साधारण लोग हैं, मुंबई में तो बड़बड़े लोग रहते हैं. यह जो फिल्मी दुनिया है न, वास्तविक दुनिया से बहुत अलग है.’’ जवाब में सान्या कहती, ‘‘पर मां, वहां भी तो इंसान ही बसते हैं न. बस, एक बार मैं वहां चली जाऊं, फिर देखना, पैसा, शोहरत सब है वहां. यहां इस छोटे से कसबे में क्या रखा है? आज पढ़ाई पूरी कर भी लूंगी तो कल किसी सरकारी नौकरी वाले डाक्टर, इंजीनियर से तुम मेरा ब्याह कर दोगी और फिर रोज वही चूल्हाचौका. जो जिंदगी तुम ने जी है, वही मुझे जीनी होगी. क्या फायदा मां ऐसी जिंदगी का? मां मैं बड़े शहर में जाना चाहती हूं, मुंबई जाना चाहती हूं, कुछ अलग करना चाहती हूं.’’ मां ने उसे टालते हुए कहा, ‘‘अच्छाअच्छा, अभी तो पहले पढ़ाई पूरी कर ले.’’ लेकिन सान्या का कहां पढ़नेलिखने में मन लगने वाला था. उसे तो फैशन वर्ल्ड अच्छा लगता था, वह तो जागते हुए भी डांस शो और मौडलिंग के सपने देखती थी.

?अभी एक महीना बीता था कि सान्या को मुंबई से डांस शो के फाइनल्स के लिए बुलावा आ गया. उस के पैर तो बिन घुंघरू के ही थिरकने लगे थे. वह तो एकएक दिन गिन रही थी फिर से मुंबई जाने के लिए. अब डांस फाइनल्स शो का भी दिन आ ही गया.

फिर से वही स्टेज की चमकदमक और उस के मातापिता दर्शकों की आगे की पंक्ति में बैठे थे और शो शुरू हुआ. नतीजा तो जैसे सान्या ने स्वयं ही लिख दिया था. उसे पूरा विश्वास था कि वही जीतेगी. और डांस शो की प्रथम विजेता भी सान्या ही बनेगी. फिर क्या था, सान्या का नाम व तसवीरें हर अखबार व मैग्जीन के मुखपृष्ठ पर थीं. अब उसे हिंदी धारावाहिकों के लिए प्रस्ताव आने लगे थे. सभी बड़े नामी उत्पादों की कंपनियां उसे अपने उत्पादों के विज्ञापन के लिए प्रस्ताव देने लगी थीं. अब तो सान्या आसमान में उड़ने लगी थी. उस की मां व पिताजी उस से कहते, ‘‘बेटी, इस चमकदमक के पीछे न दौड़ो, पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर लो.’’ लेकिन सान्या कहती, ‘‘पिताजी, ऐसे सुनहरे अवसर बारबार थोड़े ही मिलते हैं. मुझे मत रोकिए, पिताजी, उड़ जाने दीजिए मुझे आजाद परिंदे की तरह और कर लेने दीजिए मुझे अपने ख्वाब पूरे.’’

मांपिताजी ने उसे बहुत समझाया, पिताजी तो कई बार नाराज भी हुए, उसे डांटाडपटा भी, लेकिन सान्या को तो मुंबई जाना ही था. सो, मातापिता की मरजी के खिलाफ जिद कर एक दिन उस ने मुंबई की ट्रेन पकड़ ली, लेकिन मातापिता अपनी बेटी को कैसे अकेले छोड़ते, सो हार कर उन्होंने भी उस की जिद मान ही ली. कुछ दिन तो मां उस के साथ एक किराए के फ्लैट में रही, लेकिन फिर वापस अपने घर आ गई. सान्या की छोटी बहन व पिता को भी तो संभालना था. सान्या को तो एक के बाद एक औफर मिल रहे थे, कभी समय मिलता तो मां को उचकउचक कर फोन कर सब बात बता देती. मां भी अपनी बेटी को आगे बढ़ते देख फूली न समाती. एक बार मां 7 दिनों के लिए मुंबई आई. जगहजगह होर्डिंग्स लगे थे जिन पर सान्या की तसवीरें थीं. विभिन्न फिल्मी पत्रिकाओं में भी उस की तसवीरें आने लगी थीं. वह मां को अपने साथ शूटिंग पर भी ले कर गई. सभी डायरैक्टर्स उस का इंतजार करते और उसे मैडममैडम पुकारते.

मां बहुत खुश हुई, लेकिन मन ही मन डरती कि कहीं कुछ गलत न हो जाए, क्या करती आज की दुनिया है ही ऐसी. अपनी बेटी के बढ़ते कदमों को रोकना भी तो नहीं चाहती थी वह. पूरे 5 वर्ष बीत गए. रुपयों की तो मानो झमाझमा बारिश हो रही थी. इतनी शोहरत यानी कि सान्या की मेहनत और काबिलीयत अपना रंग दिखा रही थी. हीरा क्या कभी छिपा रहता है भला? जब सान्या को किसी नए औफर का एडवांस मिलता तो वह रुपए अपने मांपिताजी के पास भेज देती. साथ ही साथ, उस ने मुंबई में भी अपने लिए एक फर्निश्ड फ्लैट खरीद लिया था. कहते हैं न, जब इंसान की मौलिक जरूरतें पूरी हो जाती हैं तो वह रुपया, पैसा, नाम, शोहरत, सम्मान आदि के लिए भागदौड़ करता है. तो बस, अब सबकुछ सान्या को हासिल हो गया तो उसे तलाश थी प्यार की.

वैसे तो हजारों लड़के सान्या पर जान छिड़कते थे किंतु उस की नजर में जो बसा था, वह था देव जो उसे फिल्मी पार्टी में मिला था और मौडलिंग कर रहा था. दोनों की नजरें मिलीं और प्यार हो गया. कामयाबी दोनों के कदम चूम रही थी. जगहजगह उन के प्यार के चर्चे थे. आएदिन पत्रिकाओं में उन के नाम और फोटो सुर्खियों में होते. सान्या की मां कभीकभी उस से पूछती तो सान्या देव की तारीफ करती न थकती थी. मां सोचती कि अब सान्या की जिंदगी उस छोटे से कसबे के साधारण लोगों से बहुत ऊपर उठ चुकी है और वह तो कभी भी साधारण लोगों जैसी थी ही नहीं. सो, उस के मांपिताजी ने भी उसे छूट दे दी थी कि जैसे चाहे, अपनी जिंदगी वह जी सकती है. देव और सान्या एकदूसरे के बहुत करीब होते जा रहे थे.

देव जबतब सान्या के घर आतेजाते दिखाई देता था. कभीकभी तो रात को भी वहीं रहता था. धीरेधीरे दोनों साथ ही रहने लगे थे और यह खबर सान्या की मां तक भी पहुंच चुकी थी. यह सुन कर उस की मां को तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ. जब मां ने सान्या से पूछा तो वह कहने लगी, ‘‘मां, यहां मुंबई में ऐसे ही रहने का चलन है, इसे लिवइन रिलेशन कहते हैं और यहां ऐसे रहने पर कोई रोकटोक नहीं. मेरे दूसरे दोस्त भी ऐसे ही रहते हैं और मां, मैं ने और देव ने शादी करने का फैसला भी कर लिया है.’’ मां ने जवाब में कहा, ‘‘अब जब फैसला कर ही लिया है तो झट से विवाह भी कर लो और साथ में रहो, वरना समाज क्या कहेगा?’’ सान्या बोली, ‘‘हां मां, तुम ठीक ही कहती हो, मैं देव से बात करती हूं और जल्द ही तुम्हें शादी की खुशखबरी देती हूं.’’

पति, पत्नी और बंगाली बाबा

तकरीबन 4 साल पहले की बात है जब शिफाली की शादी मेरठ के अवनीश के साथ हुई थी. ससुराल में ससुर के साथ जेठजेठानी और उन के 3 बच्चे भी थे. सास नहीं रही थीं. अवनीश और उन के बड़े भाई अपने पिता द्वारा स्थापित एक दवा की दुकान चलाते थे. पैसे का सारा हिसाब शिफाली के ससुरजी रखते थे. दुकान अच्छी चलती थी. परिवार में कोई आर्थिक समस्या नहीं थी.

शिफाली तब एलएलबी कर रही थी. ससुराल वालों ने उस की पढ़ाई में कोई रुकावट नहीं डाली. लेकिन, शिफाली को लगता था कि दुकान से होने वाली कमाई में से उस के जेठ के परिवार पर ज्यादा पैसा खर्च होता है, क्योंकि उन के दोनों बच्चे शहर के महंगे स्कूलों में पढ़ते हैं. शिफाली का सोचना था कि जब दुकान में दोनों भाई बराबर की मेहनत करते हैं तो पैसे का बंटवारा भी बराबर होना चाहिए.

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शिफाली की ये भी मांग थी कि ससुरजी को हर महीने दुकान की आधी कमाई उस के पति अवनीश को देनी चाहिए, ताकि वे भी अपनी मरजी से कुछ खर्च कर पाएं. हर छोटीछोटी चीज के लिए ससुरजी के आगे हाथ फैलाना उस को अच्छा नहीं लग रहा था. आखिर औरतों की भी कुछ निजी जरूरतें होती हैं. अब जो फेसक्रीम पूरा परिवार लगाता हो, वो उस को भी लगानी पड़े, ये तो जबरदस्ती वाली बात हो गई. बस, शिफाली की इन्हीं कुंठाओं ने धीरेधीरे घर में झगड़े करवाने शुरू कर दिए.

आखिरकार एक दिन शिफाली लड़झगड़ कर अपने घर गाजियाबाद आ गई. उस दिन अखबार में उस ने बंगाली बाबा का विज्ञापन देखा. लिखा था – ‘ससुराल की हर समस्या का समाधान चुटकियों में. पति को वश में करना है, संपत्ति पर अधिकार चाहिए, सौतन से छुटकारा चाहिए, औलाद नहीं हो रही, ससुराल वाले परेशान कर रहे हैं, पति पराई नारी के वश में है, हर समस्या का निदान बंगाली बाबा के पास… बस तीन दिन में… ‘

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वकालत की पढ़ाई करने वाली शिफाली बंगाली बाबा के इस विज्ञापन के फेर में आ गई और उस में दिए गए फोन नंबर पर उस ने फोन किया.

उधर से आवाज आई – ‘हम कहते नहीं, कर के दिखाते हैं.‘

शिफाली – ‘आप बंगाली बाबा बोल रहे हैं?‘

बाबा – ‘हां, काम बताओ, तुम्हें क्या परेशानी है?‘

शिफाली – ‘आप का नंबर पेपर से मिला है. उस में लिखा है कि घर बैठे तीन दिन में सभी परेशानी का समाधान हो जाएगा…?‘

बाबा – ‘बिलकुल सही है, तुम्हारी क्या परेशानी है?‘

शिफाली – ‘क्या आप के पास आना होगा परेशानी बताने के लिए?‘

बाबा – ‘नहीं, जरूरत पड़ेगी तभी बुलाऊंगा, फोन पर भी समस्या का समाधान हो जाएगा.‘

शिफाली – ‘कितना खर्चा आएगा बाबा? आप की फीस कैसे देनी होगी?‘

बाबा – ‘तू पहले अपनी समस्या बता. उसी से खर्चा तय होगा.‘

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शिफाली ने बाबा को फोन पर ही विस्तार से अपने ससुराल के लोगों के बारे में, संपत्ति, दुकान, मकान और होने वाली आय के बारे में बता दिया. और ये भी कि वो चाहती है कि ससुरजी उस के पति के हिस्से का मकान और दुकान उस के नाम कर दें, ताकि होने वाली आय पर सिर्फ उस का हक हो.

बाबा ने समस्या सुनी और बोले – ‘एक हवन करवाना होगा. ससुर को वश में करना होगा, साथ में तुम्हारे पति को भी, क्योंकि वो तुम से ज्यादा अपने परिवार के निकट है. इतनी आसानी से बंटवारे के लिए राजी न होगा.‘

शिफाली – ‘बाबा, हवन पर कितना खर्च आएगा? हवन कहां करवाना होगा?‘

बाबा – ‘हवन हम अपने मंदिर में करेंगे. तुम को बस सामग्री भिजवानी होगी या पैसा भिजवा दो, तो सामग्री हम मंगवा लेंगे.‘

शिफाली – ‘आप ही मंगवा लीजिए. खर्चा कितना देना है? और कैसे देना है?‘

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बाबा – ‘11,000 रुपए का खर्च आएगा और हवन के बाद तीन दिन में ही तुम्हारे ससुरजी बंटवारे की बात करेंगे. तुम को ससुराल से बुलावा आ जाएगा.‘

शिफाली बाबा की बातें सुन कर खुश हो गई. उत्सुकता से वह बोली – ‘बाबा, पैसे कैसे पहुंचाने हैं?‘

बाबा – ‘गाजियाबाद पुराना बसस्टैंड जानती हो?‘

शिफाली – ‘हां बाबा.‘

बाबा – ‘वहां पहुंच कर फोन कर देना. हमारा चेला पहुंच कर पैसा ले जाएगा. बस अब इतमीनान से रहो. तुम्हारी समस्या का समाधान हम कर देंगे.‘

शिफाली खुश हो कर घर से निकल पड़ी. पुराने बसस्टैंड पहुंच कर उस ने उसी नंबर पर फोन किया. 5 मिनट भी नहीं गुजरे होंगे कि एक लड़का भगवा कपड़ों में प्रकट हुआ. उस ने शिफाली को एक काले धागे में लिपटी बाबा की फोटो और कुछ भभूत पकड़ाई. बोला, ‘तीन दिन बाद फोन करना’. और फिर शिफाली से 11,000 रुपए ले कर नौ दो ग्यारह हो गया.

तीन दिन बीतने पर शिफाली ने बाबा को फोन लगाया, तो वह स्विच औफ था. उस के बाद न तो वह नंबर कभी चालू हुआ, न बाबा से दोबारा बात हुई. 11,000 रुपए भी गए और समस्या ज्यों की त्यों रही.

आखिरकार कुछ महीने बाद शिफाली को ही ससुराल जा कर एडजस्ट करना पड़ा और समय बीतने पर वह अपने ससुराल के रिवाजों के अनुसार ढल भी गई. उस को समझ आ गया कि हर घर खुद को चलाने के लिए कुछ नियम निर्धारित करता है, जिस के अनुसार ही घर के सभी सदस्यों को चलना चाहिए.

शिफाली की वकालत की पढाई का पूरा खर्चा उस के ससुरजी ने उठाया. शिफाली ने प्रेक्टिस शुरू की. वकालत से उस की जो भी कमाई होती, उस में से एक पैसा भी कभी किसी ने घर खर्च के लिए नहीं मांगा.

शिफाली को अपने 11,000 रुपए गंवाने से ज्यादा दुख इस बात का है कि इतनी पढ़ीलिखी होने के बावजूद वह अखबार में आए एक बंगाली बाबा के विज्ञापन के झांसे में कैसे फंस गई.

गाजियाबाद और टीएचए की कालोनियों में तो ऐसे तांत्रिक बाबाओं का जबरदस्त मकड़जाल फैला हुआ है. इस काम को फैलाने के लिए इन बाबाओं ने चेले बना रखे हैं, जो उन्हें क्लाइंट ला कर देते हैं और उस के बदले में 15 से 20 पर्सेंट कमीशन लेते हैं.

साहिबाबाद के अर्थला, पसौंडा, शहीदनगर, भोवापुर, खोड़ा, संजय नगर के अलावा पुराना बसस्टैंड की तरफ तांत्रिक बाबाओं ने पांव जमा रखे हैं. चूंकि इन इलाकों में आबादी काफी है. यहां रहने वालों का कोई पुलिस वेरिफिकेशन भी नहीं होता है, इसलिए यह जगह इन ढोंगियों के लिए काफी महफूज है. यहां 1,000 से ले कर 3,000 रुपए तक में किराए पर एक रूम से दो रूम तक मिल जाते हैं, जो इस तरीके से कारोबार के लिए काफी महफूज होता है और केस बिगड़ते ही ये ढोंगी बाबा बोरियाबिस्तर समेट कर फुर्र हो जाते हैं.

अब बाबा नंबर-2 का किस्सा सुनिए: –
उन के विज्ञापन में लिखा है – ‘मेरा किया जो काटे उसे मुंहमांगा इनाम.‘

वैशाली के अरुण सिंह ने बाबा बंगाली को फोन किया. समस्या बताई कि शादी के 5 साल हो गए, बच्चा नहीं हो रहा है.

बाबा ने अपने अड्डे पर पतिपत्नी को बुलाया. बोले – तेरी पत्नी की कोख तेरी बड़ी भाभी ने बंधवा दी है. उस को खुलवाना पड़ेगा. बड़ी ताकत से बंधवाई है. खर्चा लगेगा. कर पाएगा तो बेटे का सुख नसीब होगा, वरना जीवनभर बेऔलाद रहेगा.

ऐसा सुन कर पतिपत्नी घबरा गए. बाबा से उपाय करने को गिड़गिड़ाने लगे. बाबा ने पेशगी मांगी 2,100 रुपए. साथ में सामान की एक लिस्ट पकड़ा दी और एक दुकान का पता दिया. बोले, इस दुकान से यह सारा सामान ला दे. आज से ही पूजा शुरू करता हूं. 15 दिन का वक्त लगेगा. तुम दोनों को हर दिन पूजा में बैठना होगा.

अरुण बाबा के चरणों में 2,100 रुपए रख कर सामान लेने दुकान की तरफ भागा. सारा सामान करीब 4,000 रुपए का आया. अगले 5 दिन की पूजा में दोनों पतिपत्नी बैठे. इस दौरान भी कोई 5,000 रुपए का चूना लगा. छठे दिन बाबा बोले – अब एक हफ्ते बाद आना.

एक हफ्ते बाद जब अरुण और उस की पत्नी पहुंचे, तो उस जगह फोटोकौपी की दुकान खुल गई थी. बाबा का अतापता न था, न ही उन का फोन मिल रहा था. अरुण ने सिर पीट लिया. 10-12 हजार रुपए गंवा दिए और हाथ कुछ न लगा.

अरुण जैसे कई और भी थे, जो बाबा के पास अपनी समस्याओं के निदान के लिए आते थे. सभी उस नए दुकानदार से बाबा का पता पूछते थे. तंग आ कर दुकानदार ने वहां एक बोर्ड लगवा दिया कि वह किसी बाबा को नहीं जानता. कृपया बाबा की जानकारी के लिए तंग न करें.

इंदिरापुरम, गाजियाबाद में रहने वाले सुप्रीम कोर्ट के वकील एसके पौल कहते हैं कि तांत्रिक हो या बंगाली बाबा, ये सब भोले लोगों को अपनी लच्छेदार बातों में फंसाने में माहिर होते हैं, जिस में महिलाएं व युवती सब से अधिक फंसती हैं. ये बातोंबातों में उन से परिवार की पूरी कहानी जान लेते हैं और फिर किसी का साया होने का डर दिखाते हैं.

कई मामलों में यह देखा गया है कि ज्यादातर महिलाएं बच्चे न होने, बीमार रहने व लापता हुए बच्चे की तलाश में इन के पास जाती हैं.

कुछ मामले में तो मातापिता बेटी के किसी युवक के साथ प्रेमजाल में फंसे होने से परेशान हो कर समाधान के लिए भी संपर्क साधते हैं. तंत्रमंत्र के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाने वाले इन बाबाओं के निशाने पर विशेषकर बच्चे और महिलाएं होती हैं. ये तांत्रिक किसी को डायन बता देते हैं, तो किसी को चुड़ैल. कभी डायन तो कभी चुड़ैल बता कर महिलाओं व बच्चों पर अत्याचार के सब से अधिक मामले राजस्थान से सामने आते हैं. बाबा की शरण में जाने का मामला दरअसल खुद के अंदर असुरक्षा की भावना से जुड़ा हुआ है. जब समस्या धीरेधीरे लंबी हो जाती है, कहीं कोई रास्ता नहीं मिलता है, तो लोग उस के समाधान के लिए धर्म की तरफ मुड़ते हैं. जहां ऐसे ढोंगी बाबा इस का फायदा उठाते हैं. ये ढोंगी बाबा हर किसी के जीवन से जुड़ी कुछ समस्याओं में से कुछ सामान्य बातें निकाल लेते हैं और उस परेशान शख्स को बता कर अपना विश्वास हासिल कर लेते हैं. इस से बचने का सब से बढ़िया तरीका है कि आप अपने निकटतम साथी या परिवार के भरोसेमंद सदस्य से अपनी परेशानी को शेयर करें, न कि इन ढोंगी बाबाओं के जाल में फंस कर अपनी मेहनत की कमाई बरबाद करें.

संसार में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जिस के जीवन में कोई समस्या न हो. समस्या निवारण के लिए कुछ लोग तो भरपूर संघर्ष करते हैं और अपनी समस्याओं पर विजय प्राप्त करते हैं. परंतु कुछ अपनी समस्याओं को हल करने का सरल व अद्भुत तरीका खोज लेते हैं, जो उन्हें सीधा पाखंड की दुनिया में ले जाता है.

मंदिरोंमसजिदों, चर्चगुरुद्वारे में समस्या का हल न मिलने पर व्यक्ति सीधा इन के दूत कहे जाने वाले और खुद को सिद्ध पुरुष बताने वाले पाखंडी इनसानों के पास पहुंच जाता है.

आजकल तो इन सिद्ध पुरुषों ने लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए बड़ीबड़ी दुकानें खोल ली हैं. टीवी चैनलों पर बाकायदा इन के शो चलने लगे हैं. ज्योतिषियों ने इन चैनलों की खूब कमाई करवाई है, तो खुद की भी तिजोरियां भर ली हैं. हर चैनल पर एक ज्योतिषी बैठा आप के आज और कल का बखान कर रहा है. ये ज्योतिषी 12 राशियों में करोड़ों इनसानों का भविष्य तय कर देते हैं. भविष्यवक्ता तो अपने और चैनल के भविष्य को सुधार कर मजे करते हैं और प्रार्थी हिसाब लगाता रहता है कि कब उस की समस्याओं का निवारण होगा. पाखंड की दुकान चलाने वाले जनता को लूट कर इतने धनवान हो चुके हैं कि उन के खिलाफ जाने की कोई हिम्मत नहीं करता है.

ज्योतिषियों और पंडितों के बाद तांत्रिकों का जाल
समस्याग्रस्त व्यक्ति का जब पंडितों और ज्योतिषियों से निदान नहीं हो पाता तो तांत्रिकों के जाल में फंस जाता है. तांत्रिकों का जाल बहुत मजबूत होता है. ये लोग किसी को भी मूर्ख बनाने की क्षमता रखते हैं.

सोचिए, यदि किसी तांत्रिक के पास कोई शक्ति होती, जिस से वह दूसरों की समस्या का निवारण कर सकता तो वह सब से पहले अपना जीवन संवारता.

आज कौन सा गलीमहल्ला छूटा है, जिस में कोई बंगाली बाबा, जुमाली बाबा न बैठा हो. कौन सा अखबार छूटा है, जिस में उन के विज्ञापन न आते हों. मार्केट में, मैट्रो स्टेशन पर, सुलभ शौचालयों में जगहजगह इन के पोस्टर चिपके दिखाई देते हैं. इन सिद्ध पुरुषों के चक्कर में शादीशुदा औरतें खूब फंसती हैं. किसी को बच्चा न होने की समस्या है, किसी को ससुराल वालों से समस्या है, कोई सौतिया डाह में जल रही है, कोई पति को वश में करना चाहती है, तो किसी को संपत्ति का लालच है. बाबा से निदान करवाने के चक्कर में मूर्ख औरतें पैसों के साथसाथ अपने घरपरिवार, धनसंपत्ति, जमीनजायदाद की तमाम जानकारियां एक अनजान व्यक्ति को सौंप देती हैं. बिना यह सोचे कि भविष्य में इस का कितना बड़ा नुकसान उन का परिवार उठाएगा.

बंगाली बाबा या सिद्ध बाबा का तमगा लगा कर पाखंड की दुकानें चलाने वाले अपने चारों ओर के वातावरण में अपने खास चेलों के साथ मिल कर इस प्रकार का जाल बुनते हैं, जिस में आने वाला इनसान फंसता चला जाता है और उस के निकलने की राह आसान नहीं होती.

आज के संतों की बात करें, तो महिलाओं और आश्रम की साध्वियों के यौन शोषण को ले कर बाबाओं, संतों और मठाधीशों की लंबी फेहरिस्त सामने है. कई बड़े बाबा तो अपने कुकर्मों के कारण जेल की कालकोठरी में बंद हैं. बावजूद इस के लोगों की आंखें नहीं खुल रही हैं.

हद तो यह है कि एक बाबा पर यौन शोषण का आरोप लगता है. जांच के बाद देश की विश्वसनीय संस्था सीबीआई उस पर फैसला सुनाती है और संत के समर्थक हिंसा करने और मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं, यह सब क्यों? क्या आप का यह दायित्व नहीं बनता है कि जिसे आप भगवान मान रहे हैं, उस की नैतिकता कितनी अनैतिक हो चली है, जरूरत है कि इसे परखें और समझें.

इस में कोई दोराय नहीं कि हमारे यहां के लोग बेहद भोले हैं और हमेशा से ही इन की शराफत व सादगी का शोषण होता आया है. कभी परंपराओं के नाम पर, तो कभी चमत्कारों की आस में भोलेभाले लोग अंधविश्वास के मकड़जाल में उलझ कर रह जाते हैं. बाबाओं को ले कर जनता का प्रेम नया नहीं है. कभी किसी बाबा की धूम रहती है, तो कभी किसी बाबा की.

गरीब, अशिक्षित व परेशान लोगों को चमत्कार के जरीए ‘आराम‘ दिलाने के दावे की ढोंग रचने वाले इन कथित बाबाओं की दुकानें धड़ल्ले से चल रही हैं. इन्हें बाबा, तांत्रिक, ओझा जो भी नाम दिया गया हो, लेकिन कमोबेश सभी का एक ही कारोबार है, वह है ठगी का.

देशभर में छोटेबड़े बाबाओं की दुकानदारी धड़ल्ले से चल रही है. इस के जरीए इन्हें मोटी आमदनी हो रही है. कोई ‘मजार‘ बनवा कर अपने झाड़फूंक की दुकानदारी चला रहा है, तो कोई झाड़फूंक के जरीए लोगों से पैसा ऐंठ रहा है.

जौनपुर, उत्तर प्रदेश में एक बाबा बड़े खतरनाक हैं. कूकहां निवासी इस बाबा का नाम है रमेश राजभर, जो झाड़फूंक के समय न केवल रोगी को पीटपीट कर घायल तक कर देता है, बल्कि साल 2007 में ये गैरइरादतन हत्या के आरोप में जेल भी जा चुका है. मगर जोड़जुगाड से कुछ समय बाद ही जमानत पर रिहा हो गया और फिर से अपने कारोबार में सक्रिय है.

इसी तरह गौरा गांव का एक कथित बाबा प्रेत बाधा के नाम पर लोगों को झाड़फूंक के नाम पर ठगने का धंधा करता है. चूंकि ये लोग अपनी दुकानदारी को चलाने के लिए धर्म की आड़ लेते हैं, इसलिए पुलिस भी हस्तक्षेप करने से कतराती है.

मऊ के मधुबन में जून, 2013 में दुबारी निवासी प्रेमशंकर सिंह को क्षेत्र के एक तांत्रिक ने बेवकूफ बना कर न सिर्फ लाखों रुपए की ठगी कर ली, बल्कि उस की जमीनें भी अपने नाम करवा लीं.

प्रेमशंकर सिंह को तांत्रिक ने अपने भ्रमजाल में फंसा कर अमीर बनाने का लालच दिया. पहले वह उस को पूजा के बहाने बुलवाने लगा और प्रसाद के तौर पर नशीला पदार्थ खिलाने लगा. धीरेधीरे उस तांत्रिक ने प्रेमशंकर की भूमि की रजिस्ट्री अपने नाम करवा ली. तत्पश्चात उस के ट्रैक्टर को भी हड़प लिया. इतना ही नहीं, तांत्रिक और उस के सहयोगी ने प्रेमशंकर को पागल करार दे कर मस्तिष्क रोग की दवाओं का इतना ओवरडोज दे दिया कि वह अर्धविक्षिप्त हो गया और उलटीसीधी हरकतें करने लगा. इस का फायदा उठा कर तांत्रिक ने उस पर प्रेत बाधा का डर फैला कर उसे गांवबदर करवा दिया.

बाद में परिवार के कुछ समझदार लोगों ने पुलिस में तांत्रिक के विरुद्ध रपट लिखवाई और कार्यवाही की मांग की. वह कार्यवाही आज तक चल रही है. लेकिन तांत्रिक का कारोबार बदस्तूर जारी है और प्रेमशंकर सिंह अभी भी अपनी बिगड़ी मानसिक स्थिति से उबर नहीं पाया है.

मऊ तो तांत्रिकों और बाबाओं का गढ़ हो गया है. इन के मकड़जाल में उलझ कर भोलेभाले ग्रामीण अपनी गाढ़ी कमाई व संपत्ति गंवा रहे हैं. क्षेत्र के कई गांवों में अपना डेरा जमाए ये तांत्रिक पहले ग्रामीणों को धनवान बनाने, घर से सोना निकालने, पुत्र रत्न की प्राप्ति कराने जैसा दावा कर के अपने सांचे में ढाल लेते हैं. इस के बाद धीरेधीरे संपत्ति हड़पना शुरू कर देते हैं.

आएदिन अखबारों में ठगी के इतने केस सामने आने के बावजूद लोग इन ढोंगी तांत्रिकों के जाल में क्यों फंस रहे हैं? दरअसल, आज के व्यग्र मशीनी मानव को सबकुछ रेडीमेड चाहिए और इसी के लिए वह कोई भी कीमत चुकाने के लिए तैयार हो जाता है. चालाक लोग धर्मभीरु भारतीय जनमानस को ईश्वर का खौफ दिखा कर उन्हें अपने वश में कर लेते हैं. इन्हीं में से एक है सत्संग. सत्संग का एक विकृत रूप है बाबाओं का मकड़जाल, जिस से हमारा समाज प्रदूषित हो रहा है. सत्संग की आड़ ले कर ढोंगी साधु हमारे समाज को नर्क बना रहे हैं.

यही वजह है कि कभी आसाराम बापू टीवी चैनलों की शान होते हैं, कभी कोई और बाबा. पाखंडी गुरमीत राम रहीम रेप के आरोप में जेल में है. इस पाखंडी से कई राजनेता चुनाव जीतने के लिए आशीर्वाद लेते रहे हैं. राम रहीम खुद को ट्विटर पर ‘आध्यात्मिक संत’ और ‘हरफनमौला खिलाड़ी’ बताता रहा है. ऐसे संत पहले गरीबों के मसीहा बन जाते हैं. कुछ जनसेवा दे कर उन की मदद कर देते हैं और फिर उन्हीं का शोषण करते हैं. यह संत अपने अनुयायियों की संख्या बढ़ा कर न्याय व्यवस्था के खिलाफ कुछ भी करने की ताकत पैदा कर लेते हैं. वोट के चक्कर में राजनीतिक पार्टियां भी इन की गुलामी करने लगती हैं.

सवाल है कि धर्म के नाम पर इस तरह के बाबाओं को खुली छूट कब तक मिलती रहेगी? ये बाबा भी ऐसे लोगों को अपना लक्ष्य बनाते हैं, जो असुरक्षित हैं, क्योंकि आस्था और अंधविश्वास के बीच बहुत छोटी लकीर होती है, जिसे मिटा कर ऐसे बाबा अपना काम निकालते हैं. भला ये कैसे संत हैं, जिन्हें महंगी गाड़ियां, महंगे वस्त्रआभूषण और शानशौकत भरी जिंदगी चाहिए. कहीं न कहीं तो भक्त भी जिम्मेदार हैं, जो इन पर अंधविश्वास करता है.

दरअसल, समृद्धि अंधविश्वास भी ले कर आती है. जो जितना समृद्ध है, वो उतना ही अंधविश्वासी है. और फिर समृद्धि के पीछे भागता मध्यम वर्ग, इस मामले में क्यों पीछे रहेगा. आखिर हमारी मानसिकता ही तो ऐसे ढोंगियों को समृद्ध बना रही है.

पाखंडियों के प्रकार और कारोबार

ओझा :

ये आप की समस्याओं को झाड़फूंक के जरीए हल करने का दावा करते हैं. ये कहीं मजारों पर मिलते हैं, कहीं मंदिरों में, कहीं बरगद या पीपल के पेड़ तले तो कहीं घनी आबादी के बीच अपनी दुकान खोल कर बैठे हैं. हाथ में झाड़ूनुमा हथियार ले कर यह पीड़ित व्यक्ति पर उस का वार कर भूत या चुड़ैल उतारने का करतब दिखाते हैं और लोगों से इस के बदले में बड़ी रकम ऐंठते हैं.

गांवदेहातों में ऐसे ओझाओं की बड़ी पूछ है. वहां हर मर्ज का इलाज ओझा के पास होता है. बदले में भोलेभाले गांव वाले इन पर अपनी कमाई, अनाज, घी, तेल, दूधदही वगैरह खूब चढ़ाते हैं.

बाराबंकी में तो ओझाओं का बाकायदा एक गांव बसा हुआ है – ओझियापुर. यहां दूरदूर से लोग अपनी समस्याओं का समाधान करवाने आते हैं. सांप या बिच्छू के काटने के कारण बेहोश हुए लोगों को चारपाई पर उठा कर इस गांव में लाते आएदिन देखा जाता है.

तांत्रिक :

तांत्रिक तंत्रमंत्र के जरीए आप की समस्याओं का समाधान करने का दावा करते हैं. इन के बड़े विज्ञापन अखबारों में देखने को मिल जाएंगे. बंगाली बाबा, जुमाली बाबा, तांत्रिक बाबा, जो हवनपूजा के जरीए आप की परेशानी सौ फीसदी खत्म करने का दावा करेंगे. इन की एक कमरे की छोटीछोटी दुकानें घनी आबादी के बीच खुलती हैं. इन के कई चेलेचापड़ होते हैं.किराए की दुकाने लेते हैं, ताकि बोरियाबिस्तर समेट कर भागने में देर न लगे. बाहर छोटा सा रिसेप्शन बना कर वहां किसी कम उम्र की महिला को गेरुए वस्त्रों में बिठा देते हैं और अंदर पूरे कमरे को जादुई लुक देने के लिए लाल बल्ब जला कर झंडियों और चमकीली पन्नियों से सजाते हैं. फर्श पर लाल कालीन पर एक हवन कुंड होता है और उस के पीछे काले कपड़ों में बाबा बैठता है. लंबी दाढ़ी, कंधे तक लंबे बाल और सिर पर बंधे चमकीले साफे में वह कोई जादूगर सा लगता है.

आमतौर पर तांत्रिक पीड़ित व्यक्ति की समस्या को दूर करने के लिए तंत्रमंत्र पढ़ने के पैसे लेता है, जो 500 रुपए से कई हजार तक हो सकते हैं. फिर वह उन से हवन कराने के नाम पर हवन सामग्री मंगवाता है, जो उस की बताई दुकान से ही लानी होती है. ये सामग्री 5,000 रुपए या इस से अधिक हो सकती है.

कुछ तांत्रिक और भी ज्यादा खतरनाक होते हैं. वे आप की समस्या का समाधान करने के लिए आप से बलि चढ़ाने को कहते हैं. ये बलि भेड़ या बकरे की हो सकती है. कई ऐसे मामले भी सामने आ चुके हैं, जब मां बनने की ख्वाहिश रखने वाली महिला को किसी बच्चे की बलि देने को कहा गया. कई बदमाश तांत्रिक महिलाओं को प्रसाद के रूप में नशीले पदार्थ खिला कर उन के साथ यौनाचार करने के आरोप में जेल जा चुके हैं. बावजूद इस के लोगों की आंख नहीं खुलती.

नाड़ी शास्त्र : नाड़ी शास्त्र के जरीए आप का भूत और भविष्य बताने वाले पाखंडियों का स्तर ओझा और तांत्रिकों से कुछ उठा हुआ होता है. ये बड़े ठग हैं और इन की बड़ी दुकानें पौश एरिया में होती हैं. इन के ग्राहक भी पैसे वाले होते हैं.

देशभर में नाड़ी शास्त्र वालों का जाल बिछा है. दरअसल, ये दक्षिण भारत के ठग हैं, जो पुराने कागज जैसे पतरों की मोटीमोटी फाइलें रखते हैं, जिन पर धुंधली लिखावट में दक्षिण भाषा में कुछ लिखा होता है. ये दावा करते हैं कि उन के पास मौजूद इन फाइलों में दुनियाभर के लोगों का भूत, वर्तमान और भविष्य दर्ज है.

यहां तक कि ये आप के पूर्व जन्मों का लेखाजोखा भी होने की बात करते हैं. नाड़ी शास्त्र की दुकानों में सफेद कुरते, लुंगी, कंधे पर साफे और माथे पर चंदन का तिलक लगाए 10-12 लोग मिलेंगे. रिसेप्शन पर आप की जन्मतिथि पूछ कर आप को अगले कुछ दिनों में आने के लिए कहा जाएगा. इन की अपॉइंटमैंट फीस ही 3,000 से 5,000 रुपए तक होती है. अगली तारीख पर आप के सामने 2 ठग बैठेंगे, जिन में से एक पतरों की मोटी सी फाइल खोल कर दक्षिण भारतीय भाषा में कुछ पढ़ना शुरू करता है और दूसरा उस का हिंदी अनुवाद कर के आप से औब्जेक्टिव टाइप सवालों के जरीए आप का नाम, मातापिता का नाम, जन्मस्थान, बहनभाइयों की संख्या आदि बता कर आप का विश्वास जीतता है. यदि आप से उस ने इतना उगलवा लिया, तो ‘आप के पतरे का मिलान ठीक हो गया‘, कह कर समस्या के समाधान के लिए अगली तारीख दी जाती है. यदि सब ठीक पता नहीं लग पाया तो कहा जाता है कि आप का पतरा इस जगह नहीं है, उस को हमारे दूसरे संस्थान से मंगवाना होगा, टाइम लगेगा, अगली तारीख ले लीजिए.

इस तरह के नाटकों के जरीए ये पीड़ित व्यक्तियों का विश्वास प्राप्त करते हैं. अगली तारीखों में ये समस्याएं पूछते हैं और आप के पूर्व जन्मों के कर्मों के आधार पर मनगढंत उपाय सुझाते हैं, जिस में हवन करवाना, पूजा करवाना, माला जपवाना आदि शामिल हैं, जो वही लोग करते हैं, मगर इस के लिए आप को 50,000 रुपए तक का चूना लग सकता है. समस्या समाप्त होगी या नहीं, इस की कोई गारंटी नहीं है.

नाड़ी शास्त्र ठगों के विज्ञापन अखबारों में, यूट्यूब, इंटरनेट पर खूब दिखते हैं. इन के वहां मूर्ख और धनी लोगों की खूब भीड़ जुटती है, वहीं स्थानीय पुलिस से भी इन की अच्छी सांठगांठ रहती है. इन की धोखाधड़ी के खिलाफ तमाम मुकदमे दर्ज होने के बावजूद इन की दुकानें धड़ल्ले से चल रही हैं.

मजार :

अजमेर शरीफ, निजामुद्दीन, काले बाबा की मजार, शाहमीना शाह की मजार, कैप्टन बाबा की मजार, देवा शरीफ ये तमाम नाम लोगों के सुने हुए हैं. इन मजारों पर लोगों को मूर्ख बनाने और पैसे ऐंठने का धंधा बरसों से फलफूल रहा है.

मानसिक बीमारी से ग्रस्त लोगों को इन मजारों पर झाड़फूंक के लिए देश के कोनेकोने से लाया जाता है. कुछ मजारों पर तो मानसिक रोगियों को जंजीरों में बांध कर 14 से 21 दिन तक खुले में रखा जाता है. भूतप्रेत उतारने के नाम पर उन को छड़ी से पीटा जाता है. इस में बड़ी संख्या में औरतें होती हैं. कुछ औरतें यहां बाल खोल कर, कपड़े बिखेर कर अजीब अंदाज में झूमती दिखती हैं और खुद पर डायन या चुड़ैल आने की बात करती हुई वातावरण को डरावना बनाने की कोशिश करती हैं. इन मजारों पर रोजाना लाखों रुपयों का चढ़ावा, चादर चढ़ते हैं. इन मजारों के चारों ओर बड़ी संख्या में चढ़ावा, चादरों, अगरबत्ती, मोमबत्ती, धागेताबीज की दुकानें होती हैं. इन्हीं के बीच दलाल घूमते हैं, जो आप की समस्याएं दुआताबीज से दूर करने के लिए आप को अपनी बातों के मकड़जाल में फंसाते हैं. अंधविश्वासी जनता बड़ी आसानी से इन दल्लों का शिकार बनती हैं. ईश्वर भक्ति और धर्मविश्वास के नाम पर इन मजारों के ठगों को भारी जनसमर्थन हासिल है और सत्ता व पुलिस इन की चाकरी बजाती है.

सत्संगी :

सत्संगियों का मार्केट बहुत बड़ा, ताकतवर और धनी है. इन के हाथों मूर्ख बनने वाले भी अधिकतर धनी और रसूखदार लोग होते हैं. इन आश्रमों में साधुसाध्वियों की लंबीचैड़ी फौज होती है. एक प्रमुख बाबा होता है, जो रोज प्रवचन बांचता है. सत्संगियों के बड़ेबड़े आश्रम देशविदेश में चल रहे हैं, जिन में तमाम तरह के अपराध होते हैं. यौनाचार, दुराचार, बलात्कार, हत्या, अपहरण जैसे तमाम जघन्य कांड इन आश्रमों में होते हैं. इन आश्रमों की ताकत इतनी होती है कि सत्ता और पुलिस इन के आगे सिर नवाती है. लिहाजा, ये आश्रम धड़ल्ले से चलते हैं.

कुछ सत्संगी बाबा आजकल अपने कुकर्मों के चलते जेल में भी हैं, जिन में मुख्य नाम हैं – आसाराम, बाबा परमानंद, भीमानंद, रामपाल, नित्यानंद, फलाहारी बाबा, राम रहीम आदि. जेल में होते हुए भी इन के आश्रम बेरोकटोक चल रहे हैं. छोटेछोटे सत्संगी बाबाओं की जमात भी देशभर में आस्था के नाम पर जनता को लूटने और ठगने के ठीए खोल कर बैठी है. इन की शिकार ज्यादातर महिलाएं होती हैं.

ज्योतिषी :

ज्योतिषियों की पूछ आजकल टीवी चैनलों पर खूब है. हर टीवी चैनल पर दोचार ज्योतिषी विराजमान रहते हैं, जो आप की जन्मतिथि मात्र से आप का भूत, भविष्य बांच देते हैं.

सोचिए जरा कि एक तारीख, माह और साल में दुनिया में लाखों लोग पैदा होते हैं और इन ज्योतिषियों की मानें तो उन लाखों लोगों का दिन एकजैसा होगा, उन के साथ एकजैसी घटनाएं होंगी आदि. इन की बेवकूफी भरी बातों के बावजूद ये टीवी चैनलों की टीआरपी बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाते हैं. करोड़ों अंधविश्वासी लोग इन की ऊलजलूल बातों में फंस कर रोजाना टीवी के आगे अपना समय व्यर्थ गंवाते हैं.

ज्योतिषियों की दुकानें भी खूब चलती हैं, जहां कुंडली देख कर समस्याओं का निदान बताया जाता है. ग्रहनक्षत्रों का डर दिखा कर खूब पैसा ऐंठा जाता है. पूजा, हवन, यंत्र द्वारा उपाय किया जाता है. इन के यूट्यूब चैनल भी हैं, सोशल मीडिया पर भी ये छाए हुए हैं, अखबारोंपत्रिकाओं में इन के द्वारा भविष्यफल और अन्य अंधविश्वासी बातें लोगों को मूर्ख बनाने के लिए रोजाना छपती हैं. दरअसल, सारा खेल पैसे का है. मीडिया अपना टीआरपी देखती है और ज्योतिषी बाबा अपना बाजार देखते हैं.

टैरो रीडर

टैरो कार्ड रीडर्स का बाजार भी आजकल खूब परवान चढ़ रहा है. ताश के पत्तों से आप के जीवन की घटनाओ को बताने वाले ठगों के चक्कर में लोग लाखों रुपए गंवा रहे हैं. धनी वर्ग की महिलाएं इन का आसान शिकार होती हैं. यह धंधा ज्यादातर औरतों द्वारा ही संचालित होता है, जहां बड़ेबड़े जड़ाऊ गहनों और भड़काऊ मेकअप से लदी टैरो कार्ड रीडर्स अन्य मूर्ख महिलाओं को ताश के पत्तों से उन का भविष्य बता कर धनउगाही में लिप्त रहती हैं.

वास्तु :

वास्तु शास्त्र के धंधे ने बीते 2 दशकों में भारत में अच्छी जड़ें जमा ली हैं. मध्यम और उच्च वर्ग इन का शिकार है. इन को दफ्तर बनाना है, फैक्टरी डालनी है, घरमकान बनाना है, जमीन खरीदनी है तो पहले ये हजारों रुपए खर्च कर के वास्तुशास्त्री से परामर्श करेंगे. यही नहीं, बिजनेस में नुकसान हुआ, नौकरी चली गई, बीवी से झगड़ा हो गया, बच्चे हाथ से निकल गए, तो ये वास्तुशास्त्री इस का कारण बताएंगे कि आप के घर का वास्तु बिगड़ा हुआ है, और ऐसा कह कर ये बनेबनाए घर को तुड़वा भी देंगे या उस में तमाम परिवर्तन करवा डालेंगे, जिस में आप के लाखों रुपए खर्च हो जाएंगे.

वास्तु के साथ एक अन्य धंधा भी जोरों पर है. क्रिस्टल, तांबे, पीतल आदि के जानवर, फूल या यंत्र, जिन से बाजार पटे पड़े हैं. आप की तरक्की नहीं हो रही है, तो आप अपने औफिस में क्रिस्टल का घोड़ा रख लें. घर में पैसा नहीं आ रहा है, तो क्रिस्टल का मेंढक या कछुआ रखें.
ऐसी तमाम बेवकूफियों से सोशल मीडिया भी भरा हुआ है. इन के पीछे भी लोगों का लाखोंकरोड़ों रुपया बरबाद हो रहा है.

एक्टिंग छोड़ निर्माता बनीं दिपानिता शर्मा, जंगल में की फिल्म ‘‘पीपर चिकन’’ की शूटिंग

बॉलीवुड में हमेशा  पूर्वोत्तर भारत की उपेक्षा की जाती रही है.पूर्वोत्तर भारत से आने वाले कलाकारों को बॉलीवुड में कभी भी अहमियत नहीं मिली.जबकि पूर्वोत्तर भारत खासकर असम ने दिपानिता शर्मा, परिणीता बोरठाकुर,प्लाबिता बोरठाकुर, आदिल हुसेन सहित कई बेहतरीन कलाकार दिए है.पूर्वोत्तर भारत के प्रति बॉलीवुड उदासीन रवैए के ही चलते अभिनेत्री दिपानिता शर्मा को बहुत ज्यादा काम नही मिला.जबकि दिपानिता शर्मा ने ‘16 दिसंबर’, ‘दिल विल प्यार व्यार’ ,‘असंभव’,‘जोड़ी बे्रकर’,‘टेक इट इजी’,‘काफी विथ डी’ और ‘वार’सहित कई फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा दिखाया है.

बहरहाल,अब दिपानिता शर्मा ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए बतौर निर्माता एक मनोवैज्ञानिक रोमांचक फिल्म‘‘पीपर चिकन’’का निर्माण किया ैहै,जिसके निर्देशक रतन सील शर्मा हैं.इस फिल्म में दिपानिता शर्मा ने स्वयं बोलोराम दास, बहारुल इस्लाम, रवि सरमा और मोनूज बोरकोतोकी के साथ अभिनय भी किया है.इस फिल्म का प्रदर्शन छह नवंबर से ‘‘शेमारूमी बाक्स ऑफिस’’ पर होगा.

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असम के प्राचीन जंगलो में फिल्मायी गयी इस फिल्म की कहानी के केंद्र में कार सवारी है.जिसमें कैब ड्राइवर और सवारी के बीच मनोवैज्ञानिक स्तर पर चूहे बिल्ली का खेल शुरू हो जाता है और कई रोमांचक घटनाएं घटित होती हैं.

इस फिल्म के किरदार को लेकर अभिनेत्री व निर्माता दीपानिता शर्मा कहती हैं-“मेरा किरदार पूरी फिल्म में भावनाओं से भरा है. उसकी यात्रा काफी सशक्त है और यह एक ऐसी भूमिका थी जिसे मैंने पूरी तरह से सराहा था. यह न केवल अभिनय करने के लिए बल्कि निर्माण के दृष्टिकोण से भी बहुत जिम्मेदारी है, लेकिन यह तथ्य कि पीपर चिकन अब शेमारू बॉक्स मी बाक्स ऑफिस पर रिलीज हो रही है.यह वास्तव में मेरे दिल के करीब हैं.भारत के उत्तर पूर्वी हिस्से में बेहतरीन प्रतिभाओं द्वारा बनाई गई एक जुनूनी फिल्म है”

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मशहूर रंगकर्मी और फिल्म ‘कारवां’ में नजर आ चुके अभिनेता बोलोराम दास इस फिल्म के अपने किरदार की चर्चा करते हुए कहते हैं-‘‘अभिनेता हमेशा अच्छी भूमिकाओं की तलाश में रहता हैं,जो उन्हें कलाकार के रूप में चुनौती देते हैं.इस दृष्टिकोण से ‘पीपर चिकन’ एक ऐसी फिल्म थी,जिसका मुझे हिस्सा बनना था. यह एक दुष्ट और कुटिल कथा है।मैं सतह पर बस एक ड्राइवर की तरह लग सकता हूं, लेकिन जैसा कि कहानी सामने आती है, अप्रत्याशित की उम्मीद करते हैं’’

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असम के भयावह जंगलों में फिल्म की शूटिंग करना कलाकारों के लिए सहज नही था.खुद अभिनेता बोलाराम कहते हैं-‘‘हमारी फिल्म की अस्सी प्रतिषत षूटिंग रात में हुई है.हमारी शूटिंग का अंतिम दिन था.हम वाइल्ड लाइफ सेंचुरी,असम में शूटिंग कर रहे थे.जंगल के बीचो बीच मेरे व दिपानिता के बीच एक्षन दृष्य फिल्माया जा रहा था.पूरी टीम ने सुरक्षा के लिए बिस्तर बिछाकर पत्ते डाल दिए थे.शूटिंग शुरू होने से पहले जैसे ही लाइट जलायी गयी,हमने देखा कि उस बिस्तर पर एक बड़ा सा सांप बैठा हुआ है,जिस पर एक्षन दृष्य की शूटिंग करते हुए हमें गिरना था.यदि किसी की नजर सांप पर न पड़ी होती,तो बहुत बुरा हो सकता था.क्योंकि नजदीक में कोई अस्पताल भी नही है.’’

आदित्य नारायण और श्वेता अग्रवाल का हुआ रोका, घरवालों ने खुद को बताया लकी

कुछ दिनों पहले सिंगर आदित्या नारायण ने ऐलान किया था कि वह जल्द ह अपने प्यार के साथ शादी के बंधन में बंधने वाले हैं. करवाचौथ के शुभ दिन इन दोनों की ‘रोका’ सेरेमनी हुई. इस फंक्शन की तस्वीर सोशल मीडिया पर लगातार वायरल हो रही है.

तस्वीर में आदित्या और श्वेता अपने परिवार के साथ दिख रहे हैं. आदित्या और श्वेता की जोड़ी बहुत ज्यादा प्यारी लग रही है. आदित्या ने हाथ में नारियल रखा है तो वहीं श्वेता ने अपने हाथ में गहना और बाकी अन्य समान पकड़ रखा है.

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श्वेता बला की खूबसूरत लग रही हैं. दोनों के चेहरे के स्माइल को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है दोनों इस रिश्ते से बहुत ज्यादा खुश हैं. आदित्या ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर किया है जिसमें उसने लिखा है कि हम दोनों आखिरकर शादी के बंधन में बंधने जा रहे हैं. 11 साल पहले श्वेता मेरी सोलमेट मिली.

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बता दें कि आदित्या के पिता उनके शादी को लेकर काफी ज्यादा एक्साइटेड हैं. वो इस बारे में खुलकर बता भी चुके हैं. इस बार उन्होंने बताया कि वह अपने बेटे की शादी बहुत ज्यादा धूमधाम से करना चाहते हैं लेकिन कोरोना के कारण लगता नहीं है कि ऐसा हो सकता है. आगे उन्होंने बताया कि कम लोगों के बीच यह शादी मुंबई के एक मंदिर में होगी.

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आदित्या के साथ –साथ उनके परिवार वाले भी इस शादी को लेकर काफी ज्यादा एक्साइटेड हैं. सभी घर वाले अपने आप को लकी बता रहे हैं क्योंकि श्वेता उनके घर पर बहू बनकर आने वाली है.

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काफी वक्त पहले से श्वेता और आदित्या एक-दूसरे के साथ रिलेशन में थें. अब दोनों जल्द हमेशा के लिए एक- दूसरे के होने वाले हैं.

लम्हों ने खता की थी- भाग 1: रिया के भारी डिप्रैशन के क्या कारण थे?

गुरमीत पाटनकर के 30 साल के लंबे सेवाकाल में ऐसा पेचीदा मामला शायद पहली दफा सामने आया था. इस बहुराष्ट्रीय कंपनी में पिछले वर्ष पीआरओ पद पर जौइन करने वाली रिया ने अपनी 6 वर्ष की बच्ची के लिए कंपनी द्वारा शिक्षण संबंधित व्यय के पुनर्भरण के लिए प्रस्तुत आवेदन में बच्ची के पिता के नाम का कौलम खाली छोड़ा था. अभिभावक के नाम की जगह उसी का नाम और हस्ताक्षर थे. उन्होंने जब रिया को अपने कमरे में बुला कर बच्ची के पिता के नाम के बारे में पूछा तो वह भड़क कर बोली थी, ‘‘इफ क्वोटिंग औफ फादर्स नेम इज मैंडेटरी, प्लीज गिव मी बैक माइ एप्लीकेशन. आई डोंट नीड एनी मर्सी.’’ और बिफरती हुई चली गई थी. पाटनकर सोच रहे थे, अगर इस अधूरी जानकारी वाले आवेदनपत्र को स्वीकृत करते हैं तो वह (रिया) भविष्य में विधिक कठिनाइयां पैदा कर सकती है और अस्वीकृत कर देते हैं तो आजकल चलन हो गया है कि कामकाजी महिलाएं किसी भी दशा में उन के प्रतिकूल हुए किसी भी फैसले को उन के प्रति अधिकारी के पूर्वाग्रह का आरोप लगा देती हैं.

अकसर वे किसी पीत पत्रकार से संपर्क कर के ऐसे प्रकरणों का अधिकारी द्वारा महिला के शारीरिक शोषण के प्रयास का चटपटा मसालेदार समाचार बना कर प्रकाशितप्रसारित कर के अधिकारी की पद प्रतिष्ठा, सामाजिक सम्मान का कचूमर निकाल देती हैं. रिया भी ऐसा कर सकती है. आखिर 2 हजार रुपए महीने की अनुग्रह राशि का मामला है. टैलीफोन की घंटी बजने से उन की तंद्रा भंग हुई. उन्होंने फोन उठाया, मगर फोन सुनते ही वे और भी उद्विग्न हो उठे. फोन उन की पत्नी का था. वह बेहद घबराई हुई लग रही थी और उन से फौरन घर पहुंचने के लिए कह रही थी.

घर पहुंच कर उन्होंने जो दृश्य देखा तो सन्न रह गए. रिया भी उन के ही घर पर थी और भारी डिप्रैशन जैसी स्थिति में थी. कुछ अधिकारियों की पत्नियां उसे संभाल रही थीं, दिलासा दे रही थीं, मगर उसे रहरह कर दौरे पड़ रहे थे. बड़ी मुश्किल से उन की पत्नी उन्हें यह बता पाई कि उस की 6 वर्षीय बच्ची आज सुबह स्कूल गई थी. लंचटाइम में वह पता नहीं कैसे सिक्योरिटी के लोगों की नजर बचा कर स्कूल से कहीं चली गई. उस के स्कूल से चले जाने का पता लंच समाप्त होने के आधे घंटे बाद अगले पीरियड में लगा. क्लासटीचर ने उस को क्लास में न पा कर उस की कौपी वगैरह की तलाशी ली. एक कौपी में लिखा था, ‘मैं अपने पापा को ढूंढ़ने जाना चाहती हूं. मम्मी कभी पापा के बारे में नहीं बतातीं. ज्यादा पूछने पर डांट देती हैं. कल तो मम्मी ने मुझे चांटा मारा था. मैं पापा को ढूंढ़ने जा रही हूं. मेरी मम्मी को मत बताना, प्लीज.’

स्कूल प्रशासन ने फौरन बच्ची की डायरी से अभिभावकों के टैलीफोन नंबर देख कर इस की सूचना रिया को दे दी और स्कूल से बच्ची के गायब होने की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करा दी. सभी स्तब्ध थे यह सोचते हुए कि क्या किया जाए. तभी कालोनी कैंपस में एक जीप रुकी. जीप में से एक पुलिस इंस्पैक्टर और कुछ सिपाही उतरे और पाटनकर के बंगले पर भीड़भाड़ देख कर उस तरफ बढ़े. पाटनकर खुद चल कर उन के पास गए और उन के आने का कारण पूछा. इंस्पैक्टर ने बताया कि स्कूल वालों ने जिस हुलिए की बच्ची के गायब होने की रिपोर्ट लिखाई है उसी कदकाठी की एक लड़की किसी अज्ञात वाहन की टक्कर से घायल हो गई. जिसे अस्पताल में भरती करा कर वे बच्ची की मां और कंपनी के कुछ लोगों को बतौर गवाह साथ ले जाने के लिए आए हैं.

इंस्पैक्टर का बयान सुन कर रिया तो मिसेज पाटनकर की गोदी में ही लुढ़क गई तो वे इंस्पैक्टर से बोलीं, ‘‘देखिए, आप बच्ची की मां की हालत देख रहे हैं, मुझे नहीं लगता कि वह इस हालत में कोई मदद कर पाएगी. हम सभी इसी कालोनी के हैं और वह बच्ची स्कूल से आने के बाद इस की मां के औफिस से लौटने तक मेरे पास रहती है इसलिए मैं चलती हूं आप के साथ.’’ अब तक कंपनी के अस्पताल की एंबुलैंस भी मंगा ली गई थी. इसलिए कुछ महिलाएं अचेत रिया को ले कर एंबुलैंस में सवार हुईं और 2-3 महिलाएं मिसेज पाटनकर के साथ पुलिस की जीप में बैठ गईं. अस्पताल पहुंचते ही शायद मातृत्व के तीव्र आवेग से रिया की चेतना लौट आई. वह जोर से चीखी, ‘‘कहां है मेरी बच्ची, क्या हुआ है मेरी बच्ची को, मुझे जल्दी दिखाओ. अगर मेरी बच्ची को कुछ हो गया तो मैं किसी को छोड़ूंगी नहीं, और मिसेज पाटनकर, तुम तो दादी बनी थीं न पिऊ की,’’ कहतेकहते वह फिर अचेत हो गई.

बच्ची के पलंग के पास पहुंचते ही मिसेज पाटनकर और कालोनी की अन्य महिलाओं ने पट्टियों में लिपटी बच्ची को पहचान लिया. वह रिया की बेटी पिऊ ही थी. बच्ची की स्थिति संतोषजनक नहीं थी. वह डिलीरियम की स्थिति में बारबार बड़बड़ाती थी, ‘मुझे मेरे पापा को ढूंढ़ने जाना है, मुझे जाने दो, प्लीज. मम्मी मुझे पापा के बारे में क्यों नहीं बतातीं, सब बच्चे मेरे पापा के बारे में पूछते हैं, मैं क्या बताऊं. कल मम्मी ने मुझे क्यों मारा था, दादी, आप बताओ न…’ कहतेकहते अचेत हो जाती थी. बच्ची की शिनाख्त होते ही पुलिस इंस्पैक्टर ने मिसेज पाटनकर को बच्ची की दादी मान कर उस के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले वे दोपहर को महिला कल्याण समिति की बैठक में जाने के लिए निकली थीं. तभी रिया की बच्ची, जो अपनी आया से बचने के लिए अंधाधुंध दौड़ रही थी, उन से टकरा गई थी. बच्ची ने उन से टकराते ही उन की साड़ी को जोर से पकड़ कर कहा था, ‘आंटी, मुझे बचा लो, प्लीज. आया मुझे बाथरूम में बंद कर के अंदर कौकरोच छोड़ देगी.’

बच्ची की पुकार की आर्द्रता उन्हें अंदर तक भिगो गई थी. इसलिए उन्होंने आया को रुकने के लिए कहा और बच्ची से पूछा, ‘क्या बात है?’ तो जवाब आया ने दिया था कि यह स्कूल में किसी बच्चे के लंचबौक्स में से आलू का परांठा अचार से खा कर आई है और घर पर भी वही खाने की जिद कर रही है. मेमसाब ने इसे दोपहर के खाने में सिर्फ बर्गर और ब्रैड स्लाइस या नूडल्स देने को कहा है. यह बेहद जिद्दी है. उसे बहुत तंग कर रही है, इस ने खाना उठा कर फेंक दिया है, इसलिए वह इसे यों ही डरा रही थी. मगर बच्ची उन की साड़ी पकड़ कर उन से इस तरह चिपकी थी कि आया ज्यों ही उस की तरफ बढ़ी वह उन से और भी जोर से चिपक कर बोली, ‘आंटी प्लीज, बचा लो,’ और उन की साड़ी में मुंह छिपा कर सिसक उठी तो उन्होंने आया को कह दिया, ‘बच्ची को वे ले जा रही हैं, तुम लौट जाओ.’

कालोनी में उन की प्रतिष्ठा और व्यवहार से आया वाकिफ थी, इसलिए ‘मेमसाब को आप ही संभालना’, कह कर चली गई थी. उन्होंने मीटिंग में जाना रद्द कर दिया और अपने घर लौट पड़ी थीं. घर आने तक बच्ची उन की साड़ी पकड़े रही थी. पता नहीं कैसे बच्ची का हाथ थाम कर घर की तरफ चलते हुए वे हर कदम पर बच्ची के साथ कहीं अंदर से जुड़ती चली गई थीं. घर आ कर उन्होंने बच्ची के लिए आलू का परांठा बनाया और उसे अचार से खिला दिया. परांठा खाने के बाद बच्ची ने बड़े भोलेपन से उन से पूछा था, ‘आंटी, आप ने आया से तो बचा लिया, आप मम्मी से भी बचा लोगी न?’

मासूम बच्ची के मुंह से यह सुन कर उन के अंदर प्रौढ़ मातृत्व का सोता फूट निकला था कि उन्होंने बच्ची को गोद में उठा लिया और प्यार से उस के सिर पर हाथ फेर कर बोलीं, ‘हां, जरूर, मगर एक शर्त है.’

‘क्या?’ बच्ची ने थोड़ा असमंजस से पूछा. जैसे वह हर समझौता करने को तैयार थी.

‘तुम मुझे आंटी नहीं, दादी कहोगी, कहोगी न?’

बच्ची ने उन्हें एक बार संशय की नजर से देखा फिर बोली, ‘दादी, आप जैसी होती है क्या? उस के तो बाल सफेद होते हैं, मुंह पर बहुत सारी लाइंस होती हैं. वह तो हाथ में लाठी रखती है. आप तो…’

‘हां, दादी वैसी भी होती है और मेरी जैसी भी होती है, इसलिए तुम मुझे दादी कहोगी. कहोगी न?’

‘हां, अगर आप कह रही हैं तो मैं आप को दादी कहूंगी,’ कह कर बच्ची उन से चिपट गई थी.

उस दिन शाम को जब रिया औफिस से लौटी तो आया द्वारा दी गई रिपोर्ट से उद्विग्न थी, मगर एक तो मिस्टर पाटनकर औफिस में उस के अधिकारी थे, दूसरे, कालोनी में मिसेज पाटनकर की सामाजिक प्रतिष्ठा थी, इसलिए विनम्रतापूर्वक बोली, ‘मैडम, यह आया बड़ी मुश्किल से मिली है. इस शैतान ने आप को पूरे दिन कितना परेशान किया होगा, मैं जानती हूं और आप से क्षमा चाहती हूं. आप आगे से इस का फेवर न करें.’ इस पर उन्होंने बड़ी सरलता से कहा था, ‘रिया, तुम्हें पता नहीं है, हमारी इस बच्ची की उम्र की एक पोती है. हमारा बेटा यूएसए में है इसलिए मुझे इस बच्ची से कोई तकलीफ नहीं हुई. हां, अगर तुम्हें कोई असुविधा हो तो बता दो.

‘देखो, मैं तो सिर्फ समय काटने के लिए महिला वैलफेयर सोसायटी में बच्चों को पढ़ाने का काम करती हूं. मैं कोई समाजसेविका नहीं हूं. मगर पाटनकर साहब के औफिस जाने के बाद 8 घंटे करूं क्या, इसलिए अगर तुम्हें कोई परेशानी न हो तो बच्ची को स्कूल से लौट कर तुम्हारे आने तक मेरे साथ रहने की परमिशन दे दो. मुझे और पाटनकर साहब को अच्छा लगेगा.’

‘मैडम, देखिए आया का इंतजाम…’ रिया ने फिर कहना चाहा तो उन्होंने बीच में टोक कर कहा, ‘आया को तुम रखे रहो, वह तुम्हारे और काम कर दिया करेगी.’ सब तरह के तर्कों से परास्त हो कर रिया चलने लगी तो उन्होंने कहा, ‘रिया, तुम सीधे औफिस से आ रही हो. तुम थकी होगी. मिस्टर पाटनकर भी आ गए हैं. चाय हमारे साथ पी कर जाना.’

‘जी, सर के साथ,’ रिया ने थोड़ा संकोच से कहा तो वे बोलीं, ‘सर होंगे तुम्हारे औफिस में. रिया, तुम मेरी बेटी जैसी हो. जाओ, बाथरूम में हाथमुंह धो लो.’

उस दिन से रिया की बेटी और उन में दादीपोती का जो रिश्ता कायम हुआ उस से वे मानो इस बच्ची की सचमुच ही दादी बन गईं. मगर जब कभी बच्ची उन से अपने पापा के बारे में प्रश्न करती, तो वे बेहद मुश्किल में पड़ जाती थीं. इंस्पैक्टर को यह संक्षिप्त कहानी सुना कर वे निबटी ही थीं कि डाक्टर आ कर बोले, ‘‘देखिए, बच्ची शरीर से कम मानसिक रूप से ज्यादा आहत है. इसलिए उसे किसी ऐसे अटैंडैंट की जरूरत है जिस से वह अपनापन महसूस करती हो.’’ स्थिति को देखते हुए मिसेज पाटनकर ने बच्ची की परिचर्या का भार संभाल लिया.

करीब 4-5 घंटे गुजर गए. बच्ची होश में आते ही, उसी तरह, ‘‘मुझे पापा को ढूंढ़ने जाना है, मुझे जाने दो न प्लीज,’’ की गुहार लगाती थी.

बच्ची की हालत स्थिर देखते हुए डाक्टर ने फिर कहा, ‘‘देखिए, मैं कह चुका हूं कि बच्ची शरीर की जगह मैंटली हर्ट ज्यादा है. हम ने अभी इसे नींद का इंजैक्शन दे दिया है. यह 3-4 घंटे सोई रह सकती है. मगर बच्ची की उम्र और हालत देखते हुए हम इसे ज्यादा सुलाए रखने का जोखिम नहीं ले सकते. बेहतर यह होगा कि बच्ची को होश में आने पर इस के पापा से मिलवा दिया जाए और इस समय अगर यह संभव न हो तो उन के बारे में कुछ संतोषजनक उत्तर दिया जाए. आप बच्ची की दादी हैं, आप समझ रही हैं न?’’

अब मिसेज पाटनकर ने डाक्टर को पूरी बात बताई तो वह बोला, ‘‘हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं मगर बच्ची के पापा के विषय में आप को ही बताना पड़ेगा.’’ बच्ची को मिसेज सान्याल को सुपुर्द कर मिसेज पाटनकर रिया के वार्ड में आ गईं. रिया को होश आ गया था. वह उन्हें देखते ही बोली, ‘‘मेरी बेटी कहां है, उसे क्या हुआ है, आप कुछ बताती क्यों नहीं हैं? इतना कहते हुए वह फिर बेहोश होने लगी तो मिसेज पाटनकर उस के सिरहाने बैठ गईं और बड़े प्यार से उस का माथा सहलाने लगीं.

लम्हों ने खता की थी

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