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गण की तंत्र को चुनौती

किसान आंदोलन की बात शुरू करने से पहले ज़रा इतिहास पर एक नज़र डालते हैं, ब्रिटिश राज में हिंदुस्तानियों को नमक बनाने का अधिकार नहीं था, जो स्वस्थ जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है. ब्रिटिश हुकूमत ने नमक पर कानून बना रखा था. हम इंग्लैंड से आने वाले नमक को अधिक पैसे देकर खरीदते थे, जबकि हमारे समंदर में नमक की कमी नहीं थी. महात्मा गाँधी ने 12 मार्च 1930 को ‘नमक कानून’ के खिलाफ साबरमती आश्रम से दांडी गांव (गुजरात) तक पदयात्रा निकाली. उनके पीछे पूरा हुजूम चला. गाँधी 24 दिन में 350 किलोमीटर पैदल चल कर दांडी पहुंचे और वहां उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के ‘नमक कानून’ को तोड़ा.

एक दशक पीछे हुए अन्ना आंदोलन की चर्चा करें तो भ्रष्टाचार के खिलाफ जन लोकपाल विधेयक बनाने हेतु 5 अप्रैल 2011 को अन्ना हज़ारे ने दिल्ली के जंतर मंतर से आंदोलन की शुरुआत की. जल्दी ही आंदोलन व्यापक हो गया और लाखों लोग सड़कों पर उतर आये. उस वक़्त केंद्र में डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी. गण के प्रति तंत्र का रवैया सख्त और नकारात्मक था. अन्ना के अनशन का सरकार की सेहत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था. लेकिन अन्ना के साथ जब देश जुटने लगा तो सरकार ने आनन-फानन में एक समिति बनाकर संभावित खतरे को टाला और 16 अगस्त 2011 तक संसद में लोकपाल विधेयक पास कराने की बात स्वीकार कर ली.

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अगस्त के मानसून सत्र में सरकार ने जो विधेयक प्रस्तुत किया वह कमजोर था और उस मसौदे से अलग था जो अन्ना और उनके समर्थकों ने सरकार को दिया था. अन्ना खफा हुए और 16 अगस्त से पुनः अनशन पर बैठ गए. सरकार ने अपनी ताकत का इस्तेमाल किया और अन्ना व उनके समर्थकों को गिरफ्तार कर तिहाड़ भेज दिया. वहां भी अन्ना का अनशन जारी रहा और आंदोलन पूरे देश में भड़क उठा. आखिर सरकार को उन्हें रिहा करना पड़ा. वे जेल से रामलीला मैदान  पहुंचे और उनके साथ अगले 12 दिनों तक बड़ी संख्या में लोग रामलीला मैदान में जमे रहे.

अन्ना को मनाने और अनशन तुड़वाने की भरपूर कोशिश सरकार ने की. अन्ना-समर्थकों और सरकार के बीच कई दौर की वार्ताएं हुईं, मगर नतीजा नहीं निकला. देश और दुनिया भर के मीडिया की नज़रें अन्ना आंदोलन पर थीं. दसवें और ग्यारहवें दिन भूखे प्यासे अन्ना की हालत बिगड़ने लगी. डॉक्टर्स ने ड्रिप चढाने को कहा, अन्ना ने इंकार कर दिया. सरकार के हाथ-पाँव फूल गए. अन्ना को कुछ हो गया तो क्या होगा? विपक्ष चीखने लगा. आज पत्रकारों के जिस समूह को ‘गोदी मीडिया’ के नाम से सम्बोधित किया जाता है, वह उस समय अन्ना की बिगड़ती हालत पर केंद्र की यूपीए सरकार पर पिल पड़ी. इनमें से ज़्यादातर पत्रकार रामलीला मैदान में अन्ना आंदोलन का हिस्सा बन गए थे.

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आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा. संसद द्वारा अन्ना की तीन शर्तों पर सहमती का प्रस्ताव पास करने के बाद 28 अगस्त को सुंदरनगरी की दलित समुदाय की पांच वर्षीय बच्ची सिमरन और तुर्कमान गेट की रहने वाली मुस्लिम समुदाय की बच्ची इकरा के हाथों शहद मिश्रित नारियल पानी पीकर अन्ना ने अपना अनशन समाप्त किया.

अब बात करते हैं आज के किसान आंदोलन की. 60 दिन से लाखों किसान तीन नए कृषि कानून, जिन्हें जबरन उन पर थोपा जा रहा है, को वापस लेने की मांग लेकर कड़ाके की सर्दी-बारिश में, खुले आसमान के नीचे दिल्ली को घेरे बैठे हैं. उनमें बुजुर्ग किसान हैं, बूढी औरतें और बच्चे भी हैं. अब तक 140 से ज़्यादा किसान अपनी जानें गवां चुके हैं. लेकिन बेशर्म सरकार टस से मस होने को तैयार नहीं है.

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सरकार और किसान नेताओं के बीच दस बार बातचीत हो चुकी है, लेकिन हर वार्ता बेनतीजा. किसान की बस एक मांग है कि तीनों क़ानून वापस ले लो हम चले जाएंगे, लेकिन सरकार अड़ी है.

देश को गणतंत्र बने 72वां साल है. गण तंत्र से मिन्नतें कर रहा है. लेकिन ढीठ सरकार पर गरीब की कराह, खौफ, दर्द, अपनों की मौतों पर गूंजती सिसकियों का कोई असर नहीं है. 12 मार्च 1930 को गाँधी ब्रिटिश हुकूमत का नमक कानून तोड़ने निकलते हैं और 24 दिन बाद तोड़ने में कामयाब हो जाते हैं. अन्ना के अनशन के आगे 12 दिन में यूपीए की सरकार झुक जाती है, लेकिन भाजपा सरकार, ब्रिटिश हुकूमत से भी कहीं ज़्यादा क्रूर है. बोरिस जॉनसन अगर 26 जनवरी 2021 की परेड के मुख्य अतिथि होते तो मोदी सरकार की क्रूरता से काफी सीखकर जाते.

देश में पहली बार गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में दो परेड निकलीं. एक जवानों की, दूसरी किसानों की. दिल्ली की सड़कों पर टैंकों के साथ ट्रैक्टरों का मार्च हुआ. लाखों किसान तय समय और तय रास्तों पर अपने ट्रैक्टर ले कर किसान नेताओं के पीछे शांतिपूर्ण तरीके से निकले. मगर साजिश देखिये कि गोदी मीडिया ने यह तस्वीरें नहीं दिखाईं. हाँ, एक जत्था जो एक साजिश के तहत तय मार्ग को छोड़ कर लाल किले पहुंच गया, सारे चैनल उन्हीं की तस्वीरें दिखाते रहे और किसान आंदोलन पर हंगामा बरपाते रहे.

सरकार और उसकी पुलिस की नाकामी देखिये कि जब आईटीओ पर ही ये साफ़ हो गया था कि ये जत्था लालकिले जाने वाला है, फिर भी उसको रोकने का कोई प्रयास नहीं किया गया? क्या ये पुलिस सुरक्षा पर सवाल नहीं है? क्या ये इंटेलिजेंस फेलियर की बात नहीं है? आखिर भाजपा सरकारें सुरक्षा के मामले में इतनी ढीली क्यों है? उरी, पठानकोट और पुलवामा हमला ढीलेपन की तस्दीक करती है. गलवां में चीन घुस आया, अरुणाचल प्रदेश में चीन ने पूरा गांव ही बसा लिया. सरकार कुछ नहीं कर पायी. थोड़ा और पीछे जाएं तो 1999 में वाजपेयी सरकार में आतंकवादी हवाई जहाज़ का अपहरण करके कंधार ले गए. बदले में सरकार को तीन खूंखार आतंकवादी छोड़ने पड़े. देश की संसद पर हमला भी वाजपई सरकार के दौर में हुआ तो कारगिल युद्ध भी हमने देखा. आखिर भाजपा सरकार हर बार कमजोर क्यों हो जाती है? क्या ऐसी कमजोर सरकार को सत्ता में बने रहने का हक़ है जो चंद किसानों से अपने ऐतिहासिक धरोहरों की हिफाज़त ना कर पाए?

26 जनवरी को लालकिले पर पहुंच कर इस किसान जत्थे ने तिरंगे के नीचे अपना भी झंडा तान दिया. आखिर वो लालकिले में घुसने में कामयाब कैसे हुए? अगर गणतंत्र दिवस वाले दिन भी लालकिले की पुलिस सुरक्षा इतनी लचर थी तो आम दिनों में क्या हाल होता होगा?

दरअसल ये सब उस साजिश के तहत हो रहा था जिसके बाद सारा ठीकरा किसान आंदोलन के सिर मढ़ कर आंदोलन को कमजोर करना था. ये साफ़ हो चुका है कि ट्रेक्टर रैली का तय रास्ता छोड़ कर जो किसान लाल किले पहुंचे थे, उनको लीड करने वाले नेता भाजपा से जुड़े हुए लोग थे, और इसीलिए पुलिस ने उनको नहीं रोका. उनको लालकिले पहुंचने का पूरा मौक़ा दिया गया. मौक़ा आखिर दिया भी क्यों नहीं जाता, जब झंडा उनके ही आदमियों को फहराना था?

झंडा लहराते ही गोदी मीडिया वाले चैनल चीखने लगे कि लालकिले पर खालिस्तान का झंडा फहराया गया. चारों तरफ शोर हो गया. जबकि जो झंडा फहराया गया, वह खालसा पंथ का केसरिया झंडा था, जिसे सिख समाज आदरपूर्वक ‘निशान साहेब’ कहता है. वही केसरिया बाना जिससे भगत सिंह और तिरंगे का केसरिया निकला है. भारतीय सेना की सिख रेजिमेंट सीमा पर जिन चौकियों की रक्षा करती है, उन सब पर ‘निशान साहेब’ अहर्निश फहरता रहता है. इतना ही नहीं, जब सिख रेजिमेंट दुश्मन की किसी चौकी को फतह करती है तो उस पर भी ‘निशान साहेब’ को शान से फहराती है. लालक़िले पर निशान साहेब को लहराने वाले हाथों में तिरंगा भी था. तिरंगा ऊपर था और निशान साहेब उससे कुछ नीचे, इसलिए यह विवाद ही व्यर्थ है. साजिशकर्ता यहाँ थोड़ा चूक गए. वरना ‘निशान साहेब’ की जगह खालिस्तान का झंडा ही होता.

हकीकत तो यह है कि धर्म का बोलबाला तो उस दिन राजपथ पर निकलने वाली झांकियों में दिखा. गणतंत्र दिवस की परेड में तो सरकार ने विशेष धर्म की रैली ही निकाल दी. धर्म कोई भी हो, लेकिन गणतंत्र दिवस की परेड में उसका क्या स्थान है? धर्म को रैलियों, राजनीति में लाने की परंपरा तो सरकार की कमान सँभालने वालों ने खुद डाली है, फिर जनता से धर्म निरपेक्षता की उम्मीद क्यों? आपने कोरोना वैक्सीन, राफेल, संसद के भूमि पूजन से लेकर राम मंदिर के निर्माण में एक धर्म विशेष के प्रतीकों का उपयोग किया और बाकी धर्मों को इतना दबाया कि आज उन्हें सरकार में अपना नेतृत्व ही नजर नहीं आता. आप सरकार में रहकर धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सके, आप संविधान की शपथ लेकर धर्मनिरिपेक्ष नहीं हो सके, आप जनता से उम्मीद कर रहे हैं कि वह जब रैलियां निकाले तो धार्मिक पताकाओं का उपयोग न करे. ये कैसे संभव है?

गणतंत्र दिवस के दिन आपने पूरा संविधान ही मरोड़कर रख दिया, मगर किसानों के साथ सिख धर्म के प्रतीकों से आपको दिक्कत होने लगी? आपने नए संसद भवन के भूमि पूजन से लेकर, गणतंत्र दिवस की परेड तक में धार्मिक प्रतीक घुसा दिए. आपने न्यायालय पर चढ़कर एक धर्म विशेष का झंडा लहराने वालों को सम्मानित किया. आपने जय श्री राम के नारे लगाकर हत्या करने वालों को मालाएं पहनाई. आपने तो खुद तिरंगे और संविधान की आत्मा को तार-तार किया. आपने तिरंगे कि जगह हर जगह भगवा लहरा दिया. अब उसी तिरंगे के नीचे कुछ लोगों ने अपने धर्म की पताकाएं लहरा दीं तो आपको दिक्कत होने लगी? इसके जिम्मेदार तो आप खुद हैं. परंपरा तो आपने डाली है, उसके दुष्परिणाम तो नीचे तक पहुँचने ही हैं. आपने आईआईटी जैसे संस्थानों की वेबसाइटों में गीता-रामायण डलवा दिए. प्रधानमंत्री स्वयं मन्दिर पूजन में जाते हैं. आरतियां करते हैं. भूमि पूजन करते हैं, जबकि उसी अयोध्या में मस्जिद का शिलान्यास भी किया जा रहा है, मगर प्रधानमंत्री की तरफ से एक ट्वीट तक नहीं आया. सरकार सांप्रदायिक रहे, उसके मंत्री दंगाई रहें, संविधान के पालन की जगह कर्मकांड हों और फिर आपकी इच्छा कि प्रदर्शनकारी ‘धर्म निरिपेक्ष’ हों. ऐसा नहीं होता.

किसानों ने तो फिर भी संविधान का सम्मान रखा. तिरंगे का सम्मान रखा. उन्होंने एक हाथ से अपने संगठनों की पताकाएं फहराईं, तो दूसरे हाथ से तिरंगा फहराया. कुछ किसानों ने तो बदन से भी तिरंगा लपेट कर रखा था.

लालकिले पर प्रदर्शन मामले में पुलिस ने किसान नेताओं और किसानों के खिलाफ तमाम एफआईआर की हैं. कुछ किसान इससे डरे भी हैं. आंदोलन को इस उत्पात से थोड़ा धक्का भी पहुंचा है, लेकिन अगर मोदी सरकार ये सोचती है कि इस तरह की साजिशों से आंदोलन ख़त्म हो जाएगा तो ये उसकी खामखयाली ही है. यह आंदोलन किसानों के लिए जीवन मरण का प्रश्न है. सब कुछ सहते हुए, जान देते हुए भी बिल्कुल अहिंसात्मक तरीके से किसान महीनों से डटें हैं. यह आंदोलन साजिशों से, लॉलीपॉप देने से या दमन से खत्म होने वाला नहीं है, भले थोड़ा लंबा हो जाये. जनता की सहानुभूति किसानों के साथ है. 26 जनवरी को दिल्ली की सड़कों पर उनकी ट्रैक्टर रैली पर लोगों ने घर से निकल कर पुष्प वर्षा की. उनका उत्साहवर्धन किया. उनके साथ नाचे-गाये. सरकार को नहीं भूलना चाहिए कि किसान एक संगठित राजनीतिक शक्ति भी है, वरना अकाली दल आज सरकार से बाहर न होता. सौ की सीधी बात यह है कि नए कृषि कानूनों का विरोध किसान इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वह यह अच्छी तरह समझ रहे हैं कि मोदी सरकार अपने चंद ख़ास कॉर्पोरेट दोस्तों को फायदा पहुंचाने के लिए यह बिल लाकर उनकी जमीनें और पैदावार छीनने की साजिश रच कर बैठी है.

बिग बॉस 14: पारस छाबड़ा ने पवित्रा पुनिया को कहा धोखाबाज,जानें पूरा मामला

बिग बॉस 14 के घर से बाहर आ चुकी पवित्रा पुनिया को लेकर इनदिनों नई-नई खबरे सोशल मीडिया पर आ रही हैं. पवित्रा पुनिया और एजाज खान के रिश्ते को लेकर इन दिनोम माहौल गर्म होता नजर आ रहा है.

एजाज खान ने पवित्रा पुनिया को लेकर खुलकर बात करते हुए कहा है कि उन्हें पवित्रा के साथ वक्त बिताना अच्छा लगता है. वहीं एजाज खान ने यह भी कहा कि वह अपने निजी कारण के वजह से बिग बॉस के घर से बाहर आएं हैं.

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दरअसल, पवित्रा पुनिया बिग बॉस 14 में जानें से पहले पारस छाबड़ा पर कई तरह के गंभीर आरोप लगाएं थें उन्होंने पारस को धोखेबाज तक बताया था. पारस ने उन्हें धोखा दिया था जिस वजह से दोनों अलग हुए थे पवित्रा ने अपने बयान में कहा था.

 

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जबकी पारस छाबड़ा ने बताया था कि पवित्रा पुनिया ने शादीशुदा होने के बावजूद भी उन्हें डेट कर रही थी. जिस वजह से उन्होंने एक-दूसरे दूरी बनाई थी. पारस का कहना था कि पवित्रा उन्हें डबल डेटिंग कर रही थी.

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पारस ने कहा मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती थी कि मैं शादीशुदा होने के बावजूद भी उसके साथ दोस्ती रखा. मेरे जिंदगी में वह आई क्यों.

बिग बॉस 14 के घर में पवित्रा पुनिया ने कहा था कि मेरा पति ऐसा होना चाहिए कि जब वो घर की घंटी बजाए तो सिर्फ मेरा होना चाहिए, उससे पहले वो कुछ भी हो.

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वहीं पारस के भड़काउ बयान के बाद फैंस लगातार पवित्रा के जवाब का इंतजार कर रहे हैं. अब देखना ये है कि पवित्रा का क्या होगा जवाब.

दुल्हन बनी बॉलीवुड सिंगर शिल्पा राव , फोटो वायरल

इन दिनों एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में शादियों का दौर शुरू हो चुका है. वरुण धवन ,नताशा दलाल के बाद करणवीर मेहरा और अब सिंगर शिल्पा राव ने अपने बेस्ट फ्रेंड रितेश कृष्णन के साथ शादी रचा ली है. शिल्पा ने शादी के बाद की तस्वीर शेयर कर खुशखबरी दी है.

शिल्पा ने अपने पार्टनर के साथ तस्वीर में बेहद खुश नजर आ रही हैं. दोनों ने साथ में बेहद प्यारे लग रहे हैं. बता दें कि रितेश पेशे से फोटोग्राफर और डॉयरेक्टर हैं. शिल्पा ने तस्वीर शेयर करते हुए लिखा मिस्टर और मिसेज के तौर पर हमारी पहली सेल्फी.

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इससे पहले शिल्पा ने अपनी बचपन की तस्वीर शेयर करते हुए लिखा है कि बचपन मे हम दोनों में एक समानता थी की हमदोनों एक जैसे दिखते थें, दोनों के चेहरे पर स्माइल नहीं है.

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शिल्पा राव ने कई सुपरहिट फिल्मों के लिए गाना गाया है. जैसे घुंघरू, देसी बॉयज का अल्लाह माफ करें, फिल्म ए दिल है मुश्किल का जिद ना करो. इन दोनों कपल को अभी सोशल मीडिया पर शुभकामनाएं आ रही हैं.

 

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बता दें कि ये कपल लंबे वक्त से एक दूसरे को जानते थें, दोनों पहले अच्छे दोस्त थें लेकिन इनकी दोस्ती प्यार में बदल गई फिर इन दोनों ने अपने रिश्ते को एक नया नाम दे दिया.

तुम आज भी पवित्र हो

मंगौड़ी की तहरी ऐसे बनाएं

मौसमी सब्जियों में मूंगदाल की मंगौड़ी का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. यह डिश उत्तर भारत में बहुत ज्यादा लोकप्रिय है. लेकिन इसके बनाने का हर किसी का अपना अलग- अलग तरीका होता है.  कुछ लोग इसे चावल के साथ मिक्स करके बनाते हैं तो  आइए जानते हैं कैसे बनती है मंगौड़ी डालकर चावल .

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समाग्री

बासमती चावल

हरा मटर

आलू

तेजपत्ता

नमक

लाल मिर्च

हल्दी पाउडर

गरम मसाला

धनिया

घी

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विधि

सबसे पहले चावल को अच्छे से बीनकर धो ले और 15 मिनट के लिए पानी में डालकर रख दें. अब एक कड़ाही में घी को गर्म करें और उसमें मगौड़ी को सुनहरा होने तक भूने. जब मंगौड़ी भून जाए तो उसे एक कटोरे में निकालकर रख दें.

अब आलू को छिलकर काट लें और मटर के दाने के साथ इसे फ्राई करके रख लें. अब प्रेशक कुकर में घी को डालें और जब घी गर्म हो जाए तो उसमें तेजपत्ता डाले और बाकी सभी मसाले को डालकर चलाएं. इसके बाद इसमें आलू और मटर को डालें. कुछ देर तक चलाने के बाद इसमें आप चावल के साथ हल्दी नमक डालकर मिलाए साथ में मंगौडी भी डाल दें. इस के बाद कुकर में दो सीटी लगा दें , गैस से उतारने के बाद इसमें गर्म मसाला और धनिया की पत्ति डालकर मिलाए फिर इसे सर्व करें.

जानलेवा भी हो सकता है हेल्दी फ्रूट सेब, जानिए कैसे

जिन फलों को हमें रोज खाना चाहिए उनमें सेब प्रमुख है. सेब हमारे लिए कई तरह से लाभकारी है. इसका सेवन हमारे लिए लाभप्रद है. पर क्या आपको पता है कि सेब हमारे लिए जानलेवा भी हो सकता है? जी हां, सेब हमारे लिए जानलेवा भी हो सकता है.

क्या है खतरनाक?

दरअसल सेब का बीज काफी खतरनाक होता है. इससे इंसान की मौत भी हो सकती है. आपको बता दें कि सेब की बीज में एक ऐसा तत्व पाया जाता है जो काफी जहरीला होता है. ये तत्व पाचन एन्जाइमों के संपर्क में आता है तो मिल कर साइनाइड बनाता है, जो इंसान के लिए काफी खतरनाक हो सकता है. अमिगडलिन में सायनाइड और चीनी होता है और जब इसे हमारा शरीर निगल लेता है तो वह हाईड्रोजन सायनाइड में तब्दील हो जाता है.

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इससे ना सिर्फ आप बीमार हो सकते हैं, बल्कि ये आपकी जान के लिए भी काफी खतरनाक हो सकता है. हालांकि इसका तीव्र असर बहुत कम ही देखने को मिलता है, पर इसके खतरे को कम आंकना ठीक नहीं होगा.

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कैसे काम करता है ये जहर?

साइनाइड दुनिया के कुछ सबसे खतरनाक जहरों में से एक है. इसके शरीर में जाते ही ये सबसे पहले शरीर के औक्सिजन की सप्लाई पर असर करता है. और इंसान तुरंत मर जाता है.

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कितनी मात्रा है खतरनाक

सेब के 200 बीजों से बने चूर्ण इंसान के लिए खतरनाक हो सकता है. इसमें पाया जाने वाला साइनाइड मस्तिष्क और हृदय पर तेजी से असर करता है. इसमें पूरी संभावना होती है कि इंसान कोमा में चला जाए. अगर ज्यादा मात्रा में सायनाइड का सेवन कर लिया जाए तो तुरंत सांस लेने में तकलीफ शुरू हो जाती है, दिल की धड़कन बढ़ जाती है, ब्लड प्रेशर लो हो जाता है और इंसान बेहोश हो जाता है या उसकी जान भी जा सकती है. इसके थोड़े से भी सेवन से मनुष्य को चक्कर, उल्टी की समस्या होती है.

भारत-चीन युद्ध पर बेस्ड वेब सीरीज ‘‘1962: द वार इन द हिल्स’’ का टीजर वायरल

भारत व चीन के 1962 के युद्ध की सत्य घटनाओं पर आधारित वेब सीरीज ‘‘1962ः द वार इन द हिल्स’’का टीजर वायरल 26 फरवरी से ‘डिज्नी प्लस हाॅटस्टार’’एक देश भक्ति व एक्षन प्रधान वेब सीरीज ‘‘1962ः द वार इन द हिल्स’’का प्रसारण शुरू करने वाला है,जिसमें 1962 में हुए भारत व चीन के बीच के युद्ध के दौरान की सत्य घटनाओं को पिरोया गया है.इसमें अभिनेता अभय देओल एक सेना प्रमुख के किरदार में नजर आएंगे.

इसका पहला टीजर गणतंत्र दिवस के अवसर पर रिलीज किया गया,जो कि सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो चुका है. महेश मांजरेकर निर्देशित वेब सीरीज ‘‘1962ः द वार इन द हिल्स’’ सच्ची घटनाओं से प्रेरित ऐसी वेब सीरीज है,जो कि नवंबर 1962 में वापस ले जाती है और बहादुरी और वीरता की एक अनकही कहानी सुनाती है.

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इस वेब सीरीज के टीजर की शुरूआत जून 2020 में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच गलवान घाटी टकराव के चलते सुर्खियों हैं.फिर यह 1962 की पृष्ठभूमि में चला जाता है.टीजर वीडियो में कैप्शन में लिखा आता है,‘‘यह सब कहां से शुरू हुआ‘‘. इसके बाद दर्शकों को 1962 के भारत-चीन युद्ध के युद्ध क्षेत्र में ले जाया जाता है,जहाँ अभय देओल,एक सेना प्रमुख के रूप में 125 भारतीय सैनिकों की मदद से तीन हजार चीनी सैनिकों के खिलाफ लड़ाई लड़कर विजय हासिल करते हैं.

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अभय देओल ने कहा है-‘‘इस वेब सीरीज के टीजर को रिलीज करने के लिए गणतंत्र दिवस से बेहतर दिन नहीं हो सकता है.क्योंकि टीम देश की सशस्त्र सेना को श्रद्धांजलि देना चाहती थी.हमारे गणतंत्र दिवस से बेहतर कोई अवसर हमारे जवानों और योद्धाओं को सलाम करने के लिए नहीं है,जो चैबीसों घंटे हमारी व देश की सीमाओं की रक्षा करते हैं.श्रद्धांजलि के रूप में, मैं ‘1962ः द वार इन द हिल्स’का पहला लुक टीजर जारी करके खुश हूं.यह बहादुरी और वीरता की एक अनकही कहानी है.और आज भी हमारे लिए भरोसेमंद है.निर्देशक के रूप में महेश मांजरेकर ने इस युद्ध-महाकाव्य में एक अनूठा दृ ष्टिकोण प्रस्तुत किया है.’’

अमिताभ बच्चन के मास्क वाले वीडियो पर नातिन नव्या नवेली ने दिया ये रिएक्शन

बॉलीवुड स्टार अमिताभ बच्चन सोशल मीडिया पर काफी ज्यादा एक्टिव रहती हैं. ऐसा कोई दिन नहीं होता कि अमिताभ बच्चन सोशल मीडिया पर अपडेट्स नहीं देते हैं. अमिताभ बच्चन ने सोशल मीडिया के जरिए अपने फैंस को गणतंत्रता दिवस की बधाई दी है.

इस मजेदार वीडियो में अमिताभ बच्चन मास्क पहनकर सभी देशवासियों को गणतंत्र दिवस की शुभकामाएं दे रहे हैं. ऐसे में उनके मास्क वाले वीडियो को देखकर फैंस काफी ज्यादा खुश नजर आ रहे हैं. अब वीडियो पर फैंस काफी ज्यादा कमेंट कर रहे हैं.

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इस कमेंट पर कुछ सितारों के साथ- साथ उनकी नातिन नव्या नवेली ने कमेंट करते हुए कहा है कि आइ लव इट उसके साथ ही नाति अगस्तया ने भी हंसकर लोट पोट  हो गए हैं. उन्होंने हंसते हुए इमोजी भेजा है.

इसके साथ ही नव्या नवेली ने लिखा है हाहाहा मुझे बहुत ज्यादा पसंद आया है. जिसके बाद फैंस लगातार कमेंट कर रहे हैं. वहीं नव्या नवेली के साथ अमिताभ बच्चन बहुत ज्यादा क्लोज हैं. कुछ दिनों पहले उन्होंने नव्या के ग्रेजुएट होने पर भी बधाई दी थी.

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इसके अमिताभ बच्चन अपने परिवार के साथ सेलिब्रेशन करते हुए भी तस्वीर शेयर करते रहते हैं. वहीं अमिताभ अपनी पोति आराध्या के साथ भी अच्छा बॉन्ड शेयर करते हैं.

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कुछ दिनों पहले वह आराध्या के साथ वीडियो शेयर किया था जिसमें वह दोनों साथ में गाना गा रहे हैं. जिसमें आराध्या के साथ देखकर फैंस  ने अमिताभ बच्चन को कमेंट भी किया था.

शिल्पा शेट्टी ने गणतंत्र दिवस के दिन दी स्वतंत्रता दिवस की बधाई, यूजर्स ने ट्रोल कर पूछा ये सवाल

बॉलीवुड हस्तियां सोशल मीडिया पर काफी ज्यादा एक्टिव रहती हैं. चाहे वो कोई त्योहार हो या आम दिन हमेशा नए-नए अपडेट्स देती रहती हैं. ऐसे में बॉलीवुड अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी ने अपने इंस्टाग्राम के जरिए अपने फैंस को गणतंत्र दिवस की शुभकामाएं दी हैं.

लेकिन बधाई देने के दौरान शिल्पा शेट्टी एक गलती कर बैठी जिस वजह से वह लगातार ट्रोलिंग का शिकार हो रही हैं. दरअसल शिल्पा शेट्टी ने गणतंत्र दिवस की जगह अपने फैंस को स्वतंत्रता दिवस की बधाई दे डाली. जिसके बाद से लगातार सोशल मीडिया पर उन्हें ट्रोल किया जा रहा है.

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फैंस ने पहले शिल्पा शेट्टी को जमकर ट्रोल किया फिर पूछना शुरू कर दिया कि क्या आपको गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस में अंतर नहीं मालूम है. जिसके बाद से तुरंत से ही शिल्पा शेट्टी कुंद्रा को अपे गलती का एहसास हो गया और फिर तुरंत ट्वीट कर गणतंत्र दिवस की बधाई दी.

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हालांकि तब तक बहुत ज्यादा देर हो चुकी थी और उनका ट्वीट वायरल होना शुरू हो गया था. वहीं अगर शिल्पा शेट्टी कुंद्रा कि प्रोफेशनल लाइफ की बात करें तो वह टीवी पर जज शो करती जर आ रही हैं. इसके अलावा वह बहुत जल्द हंगामा 2 में नजर आने वाली हैं.इस फिल्म की शूटिंग हाल ही में उन्होंने पूरा किया है.

इसके साथ शिल्पा अपनी फैमली के साथ काफी ज्यादा व्यस्त रहती हैं. उन्हें फैमली टाइम बिताना अच्छा लगता हैं. आए दिन अपने बेटे और बेटी के साथ नए पोस्ट शेयर करती रहती हैं.

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कुछ वक्त पहले अपनी मां और बहन के साथ गोवा में वेकेंश एंजॉय करते हुए स्पॉट कि गई थी.

पप्पू अमेरिका से कब आएगा-भाग 1 : विभा किसकी राह देख रही थी

भारतीय सोचते हैं कि अमेरिका जाने वाला हर आदमी जैसे सपनों की सैर करने गया है, वहां वह पैसों में खेल रहा है और वैभवपूर्ण जीवन जी रहा है लेकिन वास्तव में वहां ऐसे लोग भी हैं जो पगपग पर ठोकर खाते हैं और तनावपूर्ण जीवन जीते हैं.

नरेंद्र के हाथ में फोटो देखते ही विभा ने कहा, ‘‘अरे, यह तो महिंदर भाईसाहब का दामाद है.’

‘‘सुनो, कल तुम्हें बताना भूल

गया था. आज शाम को 7 बजे मोहनजी के यहां पार्टी है. तुम तैयार रहना. हम साढे़ 6 बजे तक घर से निकल जाएंगे,’’ दफ्तर से नरेंद्र का फोन था.

‘‘क्यों, किस खुशी में पार्टी दे रहे हैं वे लोग?’’ विभा ने पूछा.

‘‘मोहनजी का बड़ा लड़का रघुवीर इस महीने के अंत तक अमेरिका चला जाएगा. तुम्हें याद होगा, हम उन की बेटी की शादी में भी गए थे. उस की शादी अमेरिका में बसे एक लड़के से हुई थी न. बस, अब उसी की मदद से रघु भी अमेरिका जा रहा है.’’

‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है. भाईबहन दोनों एक ही जगह रहें तो एकदूसरे का सहारा रहेगा.’’

‘‘हां और उन दोनों के अमेरिका जाने की खुशी में आज की पार्टी दी जा रही है. तुम देर न करना. और सुनो, मां और पप्पू का खाना बना लेना,’’ कहते ही नरेंद्र ने फोन रख दिया.

विभा सोच में पड़ गई, कहते हैं कि अभी भी अमेरिका में भारतीयों की भरमार है. केवल कंप्यूटर क्षेत्र में दोतिहाई लोग भारतीय हैं. डाक्टर, इंजीनियर, नर्स, व्यापारी पता नहीं कुल कितने होंगे. पता नहीं पप्पू के बडे़ होतेहोते अमेरिका की क्या हालत होगी. भारतीयों की तादाद अधिक हो जाने से कहीं आगे चल कर और भारतीयों को वहां आने से रोक न दिया जाए. जाने पप्पू कब बड़ा होगा? काश, अमेरिका वाले यहां के लोगों को और कम उम्र में यानी स्कूल में पढ़ते वक्त ही वहां आने दें. फिर तो उन का भविष्य ही सुधर जाएगा. वरना यहां रखा ही क्या है.

उसे याद आया कि उस की ममेरी बहन की लड़की 11वीं पास कर के ही अमेरिका चली गई थी. कल्चरल एक्सचैंज या जाने क्या? 11वीं के बाद उस का 1 साल बिगड़ा तो क्या हुआ? पढ़ाई तो बाद में होती रहेगी, सारी जिंदगी पड़ी है. अमेरिका जाने का मौका कहां बारबार आता है. जाने यह पप्पू भी कब बड़ा होगा?

विभा और नरेंद्र जब मोहनजी के यहां पहुंचे तब उन लोगों ने बड़ी गर्मजोशी से उन का स्वागत किया. वे प्रवेशद्वार पर ही बेटे रघुवीर के साथ खड़े गुलाब के फूलों से सब का स्वागत कर रहे थे. खुशी से उन के चेहरे दमक रहे थे. पार्टी एक शानदार होटल में रखी गई थी. लौन मेहमानों से भरा था. फौआरों और रंगबिरंगे बल्बों से सजा लौन बड़ा खुशनुमा वातावरण पैदा कर रहा था. विभा और नरेंद्र भी भीड़ में शामिल हो गए. मोहनजी ने अपने दफ्तर वालों, दोस्तों, पत्नी के मायके के लोगों, बेटे के दोस्तों को यानी कि बहुत सारे लोगों को इस पार्टी में आमंत्रित किया था.

‘‘हाय नरेंद्र, लुकिंग वैरी स्मार्ट. लगता है तुम्हारा सूट विदेशी है,’’ सामने भूपेंद्र और उन की पत्नी खड़े थे.

‘‘नहीं यार, भूपू. यह तो सौ प्रतिशत देशी है. हमारे सारे रिश्तेदार बड़े देशभक्त हैं जो यहीं पड़े हैं,’’ नरेंद्र ने हंस कर कहा.

भूपेंद्र ने तुरंत पैंतरा बदला, ‘‘सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा, है कि नहीं भाभी? मुझे तो यहीं भाता है. अच्छा छोडि़ए, बहुत दिनों से आप हमारे यहां नहीं आए. भई क्या बात है, हम से कोई गलती हो गई है क्या?’’

‘‘आप ने मेरे मुंह की बात छीन ली. क्यों विभाजी, आप को वक्त नहीं मिल रहा है या भाईसाहब टीवी से चिपक जाते हैं?’’ भूपू की पत्नी अपनी ही बात पर ठहाका मार कर हंसते हुए बोली.

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. आएंगे हम लोग. आप लोग भी कभी समय निकाल कर आइए,’’ विभा ने कहा.

‘‘ओह, श्योरश्योर. अच्छा, फिर मिलते हैं. सब लोगों को एक बार हाय, हैलो कर लें,’’ कह कर पतिपत्नी दूसरी ओर बढ़ गए.

‘‘जरूरी था उन लोगों से कहना कि हम ही यहां ऐसे बेवकूफ  हैं जिन का कोई भी रिश्तेदार विदेश में नहीं है,’’ विभा ने होंठ भींचे ही पति को झिड़का.

‘‘हाय विभा, अभी आई है क्या?’’ किसी की बड़ी जोशीली चीख जैसी आवाज सुनाई दी. साथ ही किसी महिला ने उसे अपनी बांहों में भर कर गालों पर चूम लिया. वह घुटनों के ऊपर तक की चुस्त स्कर्ट और बिना बांहों की व लो नैक वाली टौप पहने हुए थी. विभा अचकचा गई. यह पहले तो कभी इतनी गर्मजोशी से नहीं मिली थी. मूड न होने पर तो एकदम सामने पड़ जाने के बावजूद ऐसे आंख फेर कर निकल जाती थी जैसे देखा ही न हो. विभा के मुंह से केवल ‘हाय सिट्टी’ निकला. वैसे तो मांबाप का दिया नाम सीता था मगर उसे सिट्टी कहलाना ही पसंद था. 2 मिनट बाद विभा ने देखा कि वह उसी गर्मजोशी से किसी दूसरी स्त्री से मिल रही थी. ऐसे लोग अपने हंगामे के जरिए भीड़ को आकर्षित करते हैं. कुछ देर बाद सब लोग वहां करीने से रखी हुई कुरसियों पर बैठ गए. पुरुष झुंड में खड़े हो कर बातें कर रहे थे. सभी के हाथों में अपनीअपनी पसंद के ड्रिंक थे. वरदीधारी लड़केलड़कियां सजधज कर महिलाओं को ठंडे पेय के गिलास सर्व कर रहे थे.

विभा सरला और मेनका के बीच में बैठी थी. थोड़ी देर रोजमर्रा की बातें हुईं, फिर सरला ने पूछा, ‘‘मेनका, सुना है आप की बेटी ने इंजीनियरिंग पूरी कर ली है. आगे का क्या सोचा है? शादीवादी या नौकरी?’’

‘‘अरे काहे की शादी और काहे की नौकरी? मेरी मन्नू ने टोफेल (टैस्ट औफ इंगलिश ऐज फौरेन लैंग्वेज) क्लियर कर लिया है. जीआईई की तैयारी कर रही है. फिलहाल उस का एक ही सपना है अमेरिका जाना,’’ मेनका ने बड़े गर्व से कहा.

‘‘आज के बच्चे बहुत स्मार्ट हैं. हमारे जैसे भोंदू नहीं हैं. वे जानते हैं कि उन के जीवन का मकसद क्या है और कैसे उसे हासिल किया जाए. मेरी बेटी टीना को ही ले लीजिए. उस ने कालेज में दाखिला लेते ही हमें बता दिया था कि उस के लिए अमेरिका का लड़का ही चुना जाए क्योंकि उस के सपनों की दुनिया अमेरिका है जहां वह पति के जरिए पहुंचना चाहती है,’’ सरला ने बीच में ही कहना शुरू कर दिया.

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