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सायरा बानो ने दिया दिलीप कुमार का हेल्थ अपडेट, कहा उनके लिए दुआ करें

सायरा बानो अपने पति दिलीप कुमार का बहुत ज्यादा ख्याल रखती हैं. हर मुसीबत में उनके साथ खड़ी रहती हैं. सायरा बानो और दिलीप कुमार के उम्र में भले ही ज्यादा फर्क हो लेकिन इन दोनों का प्यार एक- दूसरे के लिए कभी कम नहीं हुआ.

सायरा बानो ने हाल ही में दिलीप कुमार के हेल्थ को लकर अपडेट दिया है. सायरा  कहा है कि अभी वह बीमार है उनका इम्यिटी सिस्टम कमजोर है. आप सभी लोग उनके लिए दुआ करें. कई बार वह हॉल तक आते हैं और वापस फिर कमरे तक चले जाते हैं.

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उनके सेहत के लिए दुआ करें हम हर दिन के लिए शुक्रगुजार हैं. मैं हर दिन के लिए भगवान की शुक्रगुजार हूं. आगे सायरा  अपनी बातों को बढ़ाते हुए कहा मैं दवाब में नहीं प्यार में दिलीप साहेब का ध्यान रखती हूं. मुझे तारीफ की जरुरत नहीं है उन्हें छुना औऱ उनका ध्यान रखना मुझे अच्छा लगता है.

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मैं उनका बहुत ज्यादा ध्यान रखती हूं और वह मेरी सांस हैं. उनक साथ हर पल बिताना मुझे बहुत ज्यादा अच्छा लगता है.

 

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बता दें कि सायरा बानो और दिलीप कुमार की शादी की सालगिरह 11 अक्टूबर को थी लेकिन किसी उन्होंन इस दि को सेलिब्रेट नहीं किया . दरअसल, दिलीप कुमार के 2 भाइयों कि मौत उसी के आस-पास हुई थी जिसवजह स इन लोगों ने इस दिन को सेलिब्रेट करना जरुरी नहीं समझा. इस बात की जानकारी सायरा बानो ने खुद दिया था.

कोविड 19 में उनकी जान गई थी जिस वजह से घर का माहौल कुछ अच्छा नहीं था इसलि हमने इस दिन को सेलिब्रेट करना सही नहीं समझा.

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वहीं सायरा बानो ने बाकी अन्य कलाकार जिनकी कोविड की वजह से जान गई है उनके लिए भी दुख जताया है.

किसान आंदोलन में मुलेठी, लेकिन क्यों?

लेखक-रोहित और शाहनवाज

अब जब बात विरोध प्रदर्शनों की हो रही हो और लोग नारे न लगाए जाए, ऐसा तो मुमकिन ही नहीं है. जब लोगों के अन्दर सरकार के फैसलों के प्रति गुस्सा होता है तो उस गुस्से को जाहिर करने के लिए लोग उतना ही तेजी से चिंघाड़ते हैं. और कोई भी इंसान भला कितनी देर तक चिंघाड़ सकता है या नारे लगाए जा सकता है. उस की भी तो एक सीमा होती है. नारे लगाने वाले भी और नारों का जवाब देने वाले भी, एक वक्त ऐसा आता है जब ये दोनों प्रकार के प्रदर्शनकारी थक जाते है. अगर नहीं थकते तो कम से कम गला खराब तो हो ही जाता है.

इसी के उपाय के लिए टिकरी बॉर्डर पर किसानों के हो रहे प्रदर्शन में गुरमीत सिंह जी ने अपना काउंटर लगाया हुआ है. इस काउंटर पर गुरमीत जी आंदोलनकारी किसानों के बीच मुलेठी का पेस्ट और काढ़ा बना कर बांटने का काम कर रहे हैं. गुरमीत जी से बातचीत के दौरान उन्होंने अपने इस काउंटर को लगाने की वजह भी बताई.

क्या और क्यों बांट रहे हैं गुरमीत जी?

गुरमीत जी से बातचीत में उन्होंने बताया की, “प्रदर्शन करने आए किसान यहां आ कर नारे लगाएंगे और एक समय के बाद उन का गला खराब हो जाएगा. गला खराब होने पर वें आपस में बात भी ढंग से नहीं कर पाएँगे. खांसी भी होने लगती है. इसीलिए मैं इन किसानों के बीच मुलेठी का पेस्ट बांट रहा हूं, ताकि अगर उन का गला नारे लगा कर खराब हो जाए, तो जल्द से जल्द ठीक हो सके और वें फिर से आन्दोलन में नारे लगाने के लिए तैयार हो सके”

“काढ़ा पीना सेहत के लिए वैसे भी उपयोगी ही होता है. काढ़ा हम इसीलिए भी लोगों के बीच बांट रहे हैं की क्योंकि घर से इतनी दूर वें अपनी जायज मांगों को ले कर प्रोटेस्ट करने के लिए आए हैं. ऐसे में उन के खाने पीने का कोई फिक्स टाइम नहीं है. पेट में कभी भी कोई भी समस्या हो सकती है. इसीलिए जरुरी है की उन के पेट का भी ध्यान रखा जाए. ताकि बिना रुके बिना थके और बिना बीमार पड़े ये आंदोलनकारी इस प्रोटेस्ट को जारी रख सके.”

दरअसल बहादुरगढ़ के इस इंडस्ट्रियल इलाके में आम जगहों की तुलना में ज्यादा पोल्यूशन है, और इस के साथ ही कनेक्शन वाला पानी भी कुछ ख़ास साफ नहीं है. जिस की वजह से लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे में गुरमीत सिंह जी उन परेशानी का उपाय पहले से लोगों के बीच ले कर मौजूद है.

किन चीजो के मिश्रण से बनाई हैं ये चीजे?

गला खराब होने पर गुरमीत जी और उन का परिवार लोगों को मुलेठी का पेस्ट दे रहे हैं. ये मुलेठी का पेस्ट गुरमीत जी ने हर घर की रसोई में उपलब्ध चीजो से मिल कर बनाया है.

“हम ने मुलेठी का ये पेस्ट, मुलेठी, अदरक, लौंग, काली मिर्च, गुड़ इत्यादि को मिला कर ये पेस्ट तैयार किया है. इस में हम ने शहद भी मिलाया है ताकि इस का स्वाद जुबान पर अच्छा लगे और शहद, मुलेठी, अदरक ये सभी चीजे इंसान के गले के लिए लाभदाई ही होता है.”

“काढ़े हम ने अदरक, गुड़, काली मिर्च, सौंफ, बड़ी इलायची, तुलसी, पुदीना, दालचीनी, सौंठ और भी कई चीजे मिला कर तैयार किया है. ये काढ़ा पीने से पेट की समस्या के साथ साथ, सर दर्द और गले को भी बेहद आराम पहुंचाता है. हमारा असली मकसद लोगों के बीच उन की इन छोटी छोटी परेशानियों का इलाज नेचुरल ट्रीटमेंट के जरिये करना है इसीलिए हम घर की ही चीजो से बनी काढ़े और मुलेठी का पेस्ट लोगों के बीच बाँट रहे हैं.”

कौन है गुरमीत सिंह जी?

पंजाब में जालंधर के रहने वाले गुरमीत जी पिछले 13-14 सालों से हरियाणा के बहादुरगढ़ के निवासी हैं. टिकरी बॉर्डर के आस पास ही उन की ऑटो पार्ट्स की फक्ट्रियां हैं. उन्होंने बताया उन के साथ 25 वर्कर काम करते हैं. गुरमीत जी ने बताया की वें और उन का पूरा परिवार जिस दिन से किसान आन्दोलन के लिए टिकरी बॉर्डर पर संगठित हुए थे उसी दिन से ही वें भी अपना काउंटर ले कर यहां उन के बीच मौजूद हैं.

गुरमीत जी ने बताया की वें किसानों के इस आन्दोलन के पुरे समर्थन में हैं. उन्होंने बताया, “कोरोना काल के जिस समय में देश की जी.डी.पी. माइनस में जा रही थी उस समय केवल किसान अपने खेतों में दिन रात खट कर देश की पूरी आबादी को अन्न मुहैय्या करवा रहा था. और उसी समय में सरकार ने इन कानूनों को ला कर किसानों की खेती को भी उन से छिनने का काम किया है.”

“सरकार को जल्द से जल्द इन कानूनों को वापिस लेना पड़ेगा वरना तब तक हम इसी तरह से ही इन किसानों के संघर्ष में साथ रहेंगे. जब तक ये काले कानून वापिस नहीं हो जाते तब तक हम भी अपना प्रदर्शन इसी तरह से जारी रखेंगे.”

ममता की तुला : अंचल और गुड़िया के बीच हो पाई शांति

‘‘मां, मैं किस के साथ खेलूं? मुझे भी आप अस्पताल से छोटा सा बच्चा ला दीजिए न. आप तो अपने काम में लगी रहती हैं और मैं अकेलेअकेले खेलता हूं. कृपया ला दीजिए न. मुझे अकेले खेलना अच्छा नहीं लगता है.’’

अपने 4 वर्षीय पुत्र अंचल की यह फरमाइश सुन कर मैं धीरे से मुसकरा दी थी और अपने हाथ की पत्रिका को एक किनारे रखते हुए उस के गाल पर एक पप्पी ले ली थी. थोड़ी देर बाद मैं ने उसे गोद में बैठा लिया और बोली, ‘‘अच्छा, मेरे राजा बेटे को बच्चा चाहिए अपने साथ खेलने के लिए. हम तुम्हें 7 महीने बाद छोटा सा बच्चा ला कर देंगे, अब तो खुश हो?’’

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अंचल ने खुश हो कर मेरे दोनों गालों के तड़ातड़ कई चुंबन ले डाले व संतुष्ट हो कर गोद से उतर कर पुन: अपनी कार से खेलने लगा था. शीघ्र ही उस ने एक नया प्रश्न मेरी ओर उछाल दिया, ‘‘मां, जो बच्चा आप अस्पताल से लाएंगी वह मेरी तरह लड़का होगा या आप की तरह लड़की?’’

मैं ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘बेटे, यह तो मैं नहीं जानती. जो डाक्टर देंगे, हम ले लेंगे. परंतु तुम से एक बात अवश्य कहनी है कि वह लड़का हो या लड़की, तुम उसे खूब प्यार करोगे. उसे मारोगे तो नहीं न?’’

‘‘नहीं, मां. मैं उसे बहुत प्यार करूंगा,’’ अंचल पूर्ण रूप से संतुष्ट हो कर खेल में जुट गया, पर मेरे मन में विचारों का बवंडर उठने लगा था. वैसे भी उन दिनों दिमाग हर वक्त कुछ न कुछ सोचता ही रहता था. ऊपर से तबीयत भी ठीक नहीं रहती थी.

अंचल आपरेशन से हुआ था, अत: डाक्टर और भी सावधानी बरतने को कह रहे थे. मां को मैं ने पत्र लिख दिया था क्योंकि इंगलैंड में भला मेरी देखभाल करने वाला कौन था? पति के सभी मित्रों की पत्नियां नौकरी और व्यापार में व्यस्त थीं. घबरा कर मैं ने मां को अपनी स्थिति से अवगत करा दिया था. मां का पत्र आया था कि वह 2 माह बाद आ जाएंगी, तब कहीं जा कर मैं संतुष्ट हुई थी.

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उस दिन शाम को जब मेरे पति ऐश्वर्य घर आए तो अंचल दौड़ कर उन की गोद में चढ़ गया और बोला, ‘‘पिताजी, पिताजी, मां मेरे लिए एक छोटा सा बच्चा लाएंगी, मजा आएगा न?’’

ऐश्वर्य ने हंसते हुए कहा, ‘‘हांहां, तुम उस से खूब खेलना. पर देखो, लड़ाई मत करना.’’

अंचल सिर हिलाते हुए नीचे उतर गया था.

मैं ने चाय मेज पर लगा दी थी. ऐश्वर्य ने पूछा, ‘‘कैसी तबीयत है, सर्वदा?’’

मैं ने कहा, ‘‘सारा दिन सुस्ती छाई रहती है. कुछ खा भी नहीं पाती हूं ठीक से. उलटी हो जाती है. ऐसा लगता है कि किसी तरह 7 माह बीत जाएं तो मुझे नया जन्म मिले.’’

ऐश्वर्य बोले, ‘‘देखो सर्वदा, तुम 7 माह की चिंता न कर के बस, डाक्टर के बताए निर्देशों का पालन करती जाओ. डाक्टर ने कहा है कि तीसरा माह खत्म होतेहोते उलटियां कम होने लगेंगी, पर कोई दवा वगैरह मत खाना.’’

2 माह के पश्चात भारत से मेरी मां आ गई थीं. उस समय मुझे 5वां माह लगा ही था. मां को देख कर लगा था जैसे मुझे सभी शारीरिक व मानसिक तकलीफों से छुटकारा मिलने जा रहा हो. अंचल ने दौड़ कर नानीजी की उंगली पकड़ ली थी व ऐश्वर्य ने उन के सामान की ट्राली. मैं खूब खुश रहती थी. मां से खूब बतियाती. मेरी उलटियां भी बंद हो चली थीं. मेरे मन की सारी उलझनें मां के  आ जाने मात्र से ही मिट गई थीं.

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मैं हर माह जांच हेतु क्लीनिक भी जाती थी. इस प्रकार देखतेदेखते समय व्यतीत होता चला गया. मैं ने इंगलैंड के कुशल डाक्टरों के निर्देशन व सहयोग से एक बच्ची को जन्म दिया और सब से खुशी की बात तो यह थी कि इस बार आपरेशन की आवश्यकता नहीं पड़ी थी. बच्ची का नाम मां ने अभिलाषा रखा. वह बहुत खुश दिखाई दे रही थीं क्योंकि उन की कोई नातिन अभी तक न थी. मेरी बहन के 2 पुत्र थे, अत: मां का उल्लास देखने योग्य था. छोटी सी गुडि़या को नर्स ने सफेद गाउन, मोजे, टोपा व दस्ताने पहना दिए थे.

तभी अंचल ने कहा, ‘‘मां, मैं बच्ची को गोद में ले लूं.’’

मैं ने अंचल को पलंग पर बैठा दिया व बच्ची को उस की गोद में लिटा दिया. अंचल के चेहरे के भाव देखने लायक थे. उसे तो मानो जमानेभर की खुशियां मिल गई थीं. खुशी उस के चेहरे से छलकी जा रही थी. यही हाल ऐश्वर्य का भी था. तभी नर्स ने आ कर बतलाया कि मिलने का समय समाप्त हो चुका है.

उसी नर्स ने अंचल से पूछा, ‘‘क्या मैं तुम्हारा बच्चा ले सकती हूं?’’

अंचल ने हड़बड़ा कर ‘न’ में सिर हिला दिया. हम सब हंसने लगे.

जब सब लोग घर चले गए तो मैं बिस्तर में सोई नन्ही, प्यारी सी अभिलाषा को देखने लगी, जो मेरे व मेरे  परिवार वालों की अभिलाषा को पूर्ण करती हुई इस दुनिया में आ गई थी. परंतु अब देखना यह था कि मेरे साढ़े 4 वर्षीय पुत्र व इस बच्ची में कैसा तालमेल होता है.

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5 दिन बाद जब मैं घर आई तो अंचल बड़ा खुश हुआ कि उस की छोटी सी बहन अब सदा के लिए उस के पास आ गई है.

बच्ची 2 माह की हुई तो मां भारत वापस चली गईं. उन के जाने से घर बिलकुल सूना हो गया. इन देशों में बिना नौकरों के इतने काम करने पड़ते हैं कि मैं बच्ची व घर के कार्यों में मशीन की भांति जुटी रहती थी.

देखतेदेखते अभिलाषा 8 माह की हो गई. अब तक तो अंचल उस पर अपना प्यार लुटाता रहा था, पर असली समस्या तब उत्पन्न हुई जब अभिलाषा ने घुटनों के बल रेंगना आरंभ किया. अब वह अंचल के खिलौनों तक आराम से पहुंच जाती थी. अपने रंगीन व आकर्षक खिलौनों व झुनझुनों को छोड़ कर उस ने भैया की एक कार को हाथ से पकड़ा ही था कि अंचल ने झपट कर उस से कार छीन ली, जिस से अभिलाषा के हाथ में खरोंचें आ गईं.

उस समय मैं वहीं बैठी बुनाई कर रही थी. मुझे क्रोध तो बहुत आया पर स्वयं पर किसी तरह नियंत्रण किया. बालमनोविज्ञान को ध्यान में रखते हुए मैं ने अंचल को प्यार से समझाने की चेष्टा की, ‘‘बेटे, अपनी छोटी बहन से इस तरह कोई चीज नहीं छीना करते. देखो, इस के हाथ में चोट लग गई. तुम इस के बड़े भाई हो. यह तुम्हारी चीजों से क्यों नहीं खेल सकती? तुम इसे प्यार करोगे तो यह भी तुम्हें प्यार करेगी.’’

मेरे समझाने का प्रत्यक्ष असर थोड़ा ही दिखाई दिया और ऐसा प्रतीत हुआ, जैसे सवा 5 वर्षीय यह बालक स्वयं के अधिकार क्षेत्र में किसी और के प्रवेश की बात को हृदय से स्वीकार नहीं कर पा रहा है. मैं चुपचाप रसोई में चली गई. थोड़ी देर बाद जब मैं रसोई से बाहर आई तो देखा कि अंचल अभिलाषा को खा जाने वाली नजरों से घूर रहा था.

शाम को ऐश्वर्य घर आए तो अंचल उन की ओर रोज की भांति दौड़ा. वह उसे उठाना ही चाहते थे कि तभी घुटनों के बल रेंगती अभिलाषा ने अपने हाथ आगे बढ़ा दिए. ऐश्वर्य चाहते हुए भी स्वयं को रोक न सके और अंचल के सिर पर हाथ फेरते हुए अभिलाषा को उन्होंने गोद में उठा लिया.

मैं यह सब देख रही थी, अत: झट अंचल को गोद में उठा कर पप्पी लेते हुए बोली, ‘‘राजा बेटा, मेरी गोद में आ जाएगा, है न बेटे?’’ तब मैं ने अंचल की नजरों में निरीहता की भावना को मिटते हुए अनुभव किया.

तभी भारत से मां व भैया का पत्र आया, जिस में हम दोनों पतिपत्नी को यह विशेष हिदायत दी गई थी कि छोटी बच्ची को प्यार करते समय अंचल की उपेक्षा न होने पाए, वरना बचपन से ही उस के मन में अभिलाषा के प्रति द्वेषभाव पनप सकता है. इस बात को तो मैं पहले ही ध्यान में रखती थी और इस पत्र के पश्चात और भी चौकन्नी हो गई थी.

मेरे सामने तो अंचल का व्यवहार सामान्य रहता था, पर जब मैं किसी काम में लगी होती थी और छिप कर उस के व्यवहार का अवलोकन करती थी. ऐसा करते हुए मैं ने पाया कि हमारे समक्ष तो वह स्वयं को नियंत्रित रखता था, परंतु हमारी अनुपस्थिति में वह अभिलाषा को छेड़ता रहता था और कभीकभी उसे धक्का भी दे देता था.

मैं समयसमय पर अंचल का मार्ग- दर्शन करती रहती थी, परंतु उस का प्रभाव उस के नन्हे से मस्तिष्क पर थोड़ी ही देर के लिए पड़ता था.

बाल मनोविज्ञान की यह धारणा कि विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण न केवल युवावस्था में अपितु बचपन में भी होता है. अर्थात पुत्री पिता को अधिक प्यार करती है व पुत्र माता से अधिक जुड़ा होता है, मेरे घर में वास्तव में सही सिद्ध हो रही थी.

एक दिन कार्यालय से लौटते समय ऐश्वर्य एक सुंदर सी गुडि़या लेते आए. अभिलाषा 10 माह की हो चुकी थी. गुडि़या देख कर वह ऐश्वर्य की ओर लपकी.

मैं ने फुसफुसाते हुए ऐश्वर्य से पूछा, ‘‘अंचल के लिए कुछ नहीं लाए?’’

उन के ‘न’ कहने पर मैं तो चुप हो गई, पर मैं ने अंचल की आंखों में उपजे द्वेषभाव व पिता के प्रति क्रोध की चिनगारी स्पष्ट अनुभव कर ली थी. मैं ने धीरे से उस का हाथ पकड़ा, रसोई की ओर ले जाते हुए उसे बताया, ‘‘बेटे, मैं ने आज तुम्हारे मनपसंद बेसन के लड्डू बनाए हैं, खाओगे न?’’

अंचल बोला, ‘‘नहीं मां, मेरा जरा भी मन नहीं है. पहले एक बात बताइए, आप जब भी हमें बाजार ले जाती हैं तो मेरे व अभिलाषा दोनों के लिए खिलौने खरीदती हैं, पर पिताजी तो आज मेरे लिए कुछ भी नहीं लाए? ऐसा क्यों किया उन्होंने? क्या वह मुझे प्यार नहीं करते?’’

जिस प्रश्न का मुझे डर था, वही मेरे सामने था, मैं ने उसे पुचकारते हुए कहा, ‘‘नहीं बेटे, पिताजी तो तुम्हें बहुत प्यार करते हैं. उन के कार्यालय से आते समय बीच रास्ते में एक ऐसी दुकान पड़ती है जहां केवल गुडि़या ही बिकती हैं. इसीलिए उन्होंने एक गुडि़या खरीद ली. अब तुम्हारे लिए तो गुडि़या खरीदना बेकार था क्योंकि तुम तो कारों से खेलना पसंद करते हो. पिछले सप्ताह उन्होंने तुम्हें एक ‘रोबोट’ भी तो ला कर दिया था. तब अभिलाषा तो नहीं रोई थी. जाओ, पिताजी के पास जा कर उन्हें एक पप्पी दे दो. वह खुश हो जाएंगे.’’

अंचल दौड़ कर अपने पिताजी के पास चला गया. मैं ने उस के मन में उठते हुए ईर्ष्या के अंकुर को कुछ हद तक दबा दिया था. वह अपनी ड्राइंग की कापी में कोई चित्र बनाने में व्यस्त हो गया था.

कुछ दिन पहले ही उस ने नर्सरी स्कूल जाना आरंभ किया था और यह उस के लिए अच्छा ही था. ऐश्वर्य को बाद में मैं ने यह बात बतलाई तो उन्होंने भी अपनी गलती स्वीकार कर ली. इन 2 छोटेछोटे बच्चों की छोटीछोटी लड़ाइयों को सुलझातेसुलझाते कभीकभी मैं स्वयं बड़ी अशांत हो जाती थी क्योंकि हम उन दोनों को प्यार करते समय सदा ही एक संतुलन बनाए रखने की चेष्टा करते थे.

अब तो एक वर्षीय अभिलाषा भी द्वेष भावना से अप्रभावित न रह सकी थी. अंचल को जरा भी प्यार करो कि वह चीखचीख कर रोने लगती थी. अपनी गुडि़या को तो वह अंचल को हाथ भी न लगाने देती थी और इसी प्रकार वह अपने सभी खिलौने पहचानती थी. उसे समझाना अभी संभव भी न था. अत: मैं अंचल को ही प्यार से समझा दिया करती थी.

मैं मारने का अस्त्र प्रयोग में नहीं लाना चाहती थी क्योंकि मेरे विचार से इस अस्त्र का प्रयोग अधिक समय तक के लिए प्रभावी नहीं होता, जबकि प्यार से समझाने का प्रभाव अधिक समय तक रहता है. हम दोनों ही अपने प्यार व ममता की इस तुला को संतुलन की स्थिति में रखते थे.

एक दिन अंचल की आंख में कुछ चुभ गया. वह उसे मसल रहा था और आंख लाल हो चुकी थी. तभी वह मेरे पास आया. उस की दोनों आंखों से आंसू बह रहे थे.

मैं ने एक साफ रूमाल से अंचल की आंख को साफ करते हुए कहा, ‘‘बेटे, तुम्हारी एक आंख में कुछ चुभ रहा था, पर तुम्हारी दूसरी आंख से आंसू क्यों बह रहे हैं?’’

वह मासूमियत से बोला, ‘‘मां, है न अजीब बात. पता नहीं ऐसा क्यों हो रहा है?’’

मैं ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा, ‘‘देखो बेटे, जिस तरह तुम्हारी एक आंख को कोई तकलीफ होती है तो दूसरी आंख भी रोने लगती है, ठीक उसी प्रकार तुम और अभिलाषा मेरी व पिताजी की दोनों आंखों की तरह हो. यदि तुम दोनों में से एक को तकलीफ होती हो तो दूसरे को तकलीफ होनी चाहिए. इस का मतलब यह हुआ कि यदि तुम्हारी बहन को कोई तकलीफ हो तो तुम्हें भी उसे अनुभव करना चाहिए. उस की तकलीफ को समझना चाहिए और यदि तुम दोनों को कोई तकलीफ या परेशानी होगी तो मुझे और तुम्हारे पिताजी को भी तकलीफ होगी. इसलिए तुम दोनों मिलजुल कर खेलो, आपस में लड़ो नहीं और अच्छे भाईबहन बनो. जब तुम्हारी बहन बड़ी होगी तो हम उसे भी यही बात समझा देंगे.’’

अंचल ने बात के मर्म व गहराई को समझते हुए ‘हां’ में सिर हिलाया.

तभी से मैं ने अंचल के व्यवहार में कुछ परिवर्तन अनुभव किया. पिता का प्यार अब दोनों को बराबर मात्रा में मिल रहा था और मैं तो पहले से ही संतुलन की स्थिति बनाए रखती थी.

तभी रक्षाबंधन का त्योहार आ गया. मैं एक भारतीय दुकान से राखी खरीद लाई. अभिलाषा ने अंचल को पहली बार राखी बांधनी थी. राखी से एक दिन पूर्व अंचल ने मुझ से पूछा, ‘‘मां, अभिलाषा मुझे राखी क्यों बांधेगी?’’

मैं ने उसे समझाया, ‘‘बेटे, वह तुम्हारी कलाई पर राखी बांध कर यह कहना चाहती है कि तुम उस के अत्यंत प्यारे बड़े भाई हो व सदा उस का ध्यान रखोगे, उस की रक्षा करोगे. यदि उसे कोई तकलीफ या परेशानी होगी तो तुम उसे उस तकलीफ से बचाओगे और हमेशा उस की सहायता करोगे.’’

अंचल आश्चर्य से मेरी बातें सुन रहा था. बोला, ‘‘मां, यदि राखी का यह मतलब है तो मैं आज से वादा करता हूं कि मैं अभिलाषा को कभी नहीं मारूंगा, न ही उसे कभी धक्का दूंगा, अपने खिलौनों से उसे खेलने भी दूंगा. जब वह बड़ी हो कर स्कूल जाएगी और वहां पर उसे कोई बच्चा मारेगा तो मैं उसे बचाऊंगा,’’ यह कह कर वह अपनी एक वर्षीय छोटी बहन को गोद में उठाने की चेष्टा करने लगा.

अंचल की बातें सुन कर मैं कुछ हलका अनुभव कर रही थी. साथ ही यह भी सोच रही थी कि छोटे बच्चों के पालनपोषण में मातापिता को कितने धैर्य व समझदारी से काम लेना पड़ता है.

आज इन बातों को 20 वर्ष हो चुके हैं. अंचल ब्रिटिश रेलवे में वैज्ञानिक है व अभिलाषा डाक्टरी के अंतिम वर्ष में पढ़ रही है. ऐसा नहीं है कि अन्य भाईबहनों की भांति उन में नोकझोंक या बहस नहीं होती, परंतु इस के साथ ही दोनों आपस में समझदार मित्रों की भांति व्यवहार करते हैं. दोनों के मध्य सामंजस्य, सद्भाव, स्नेह व सहयोग की भावनाओं को देख कर उन के बचपन की छोटीछोटी लड़ाइयां याद आती हैं तो मेरे होंठों पर स्वत: मुसकान आ जाती है.

इस के साथ ही याद आती है अपने प्यार व ममता की वह तुला, जिस के दोनों पलड़ों में संतुलन रखने का प्रयास हम पतिपत्नी अपने आपसी मतभेद व वैचारिक विभिन्नताओं को एक ओर रख कर किया करते थे. दरवाजे की घंटी बजती है. मैं दरवाजा खोलती हूं. सामने अंचल हाथ में एक खूबसूरत राखी लिए खड़ा है. मुसकराते हुए वह कहता है, ‘‘मां, कल रक्षाबंधन है, अभिलाषा आज शाम तक आ जाएगी न?’’

‘‘हां बेटा, भला आज तक अभिलाषा कभी रक्षाबंधन का दिन भूली है,’’ मैं हंसते हुए कहती हूं.

‘‘मैं ने सोचा, पता नहीं बेचारी को लंदन में राखी के लिए कहांकहां भटकना पड़ेगा. इसलिए मैं राखी लेता आया हूं. आप ने मिठाई वगैरा बना ली है न?’’ अंचल ने कहा.

मैं ने ‘हां’ में सिर हिलाया और मुसकराते हुए पति की ओर देखा, जो स्वयं भी मुसकरा रहे थे.

गरम हवा के ठंडे झोंके -भाग 1: किस मुहाने पर थी अशरफ की जिंदगी

ऐसा कभी नहीं हुआ कि अशरफ ने साल के 365 दिनों में एक दिन भी माणिकचंद के घर आने में नागा किया हो. लेकिन एक महीने से अशरफ का न तो औफिस में पता चला, न ही खेल के मैदान में.

अच्छी कदकाठी का 25 वर्षीय अशरफ रेलवे की फुटबौल टीम का खिलाड़ी और बिजली विभाग का कर्मचारी है. वह बेहद हंसमुख, मिलनसार, मददगार और बच्चों के साथ तुतला कर उन का दिल जीतने वाला है.

माणिकचंद 3 सालों से दिल के मरीज थे. औफिस का काम जैसेतैसे निबटा कर घर आते ही बिस्तर पर लेट जाते. लेकिन घर में किसी भी चीज की कमी महसूस नहीं होती. अशरफ औफिस या फुटबौल की प्रैक्टिस से लौटते हुए उन के घर का सारा सौदा, दवाइयां और बच्चों का सामान ले आता.

माणिकचंद की पत्नी अपर्णा अशरफ की हमदर्दी को देख कर अकसर सोचती कि क्या उन का बेटा भी बड़ा हो कर अपने परिवार से इतनी ही गहराई से जुड़ा रहेगा, सब की इतनी ही फिक्र करेगा. डर लगता है जमाने की हवा इतनी तेजी से बदल रही है कि जिन बच्चों की जरूरतों और खुशियों के लिए मातापिता रातों की नींद और दिन का चैन त्यागते हैं, वे जेब में पैसा आते ही नजरें फेर लेते हैं. शादी के बाद वे अपने परिवार में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि उन्हें न तो बुजुर्ग मातापिता की सेहत की फिक्र होती है, न ही उन के गुजरबसर की परवा.

अशरफ के पिता रिटायर्ड हो गए थे. शादीशुदा 3 बेटों की आपसी कलह से वे परेशान हो कर छोटे बेटे को ले कर बेटी के साथ रहने के लिए मजबूर हो गए. वे जानते थे कि अगर अशरफ की अम्मी जिंदा होती तो बेटे जरूर कुछ महीनों के लिए उन्हें अपने घरों में रखने का एहसान करते क्योंकि उन की बीवियों को मुफ्त में काम करने और आराम देने वाली नौकरानी मिल जाती. अब्बा को अपने पास रखने का मतलब है उन की खिदमत में वक्त और पैसा बरबाद करना और उन की बंदिशों के कठघरे में कैद रहना. आजादी भला किस को प्यारी नहीं होती.

अशरफ का पुश्तैनी मकान नासिक में था. खेल के सिलसिले में उसे नासिक जाने का जब भी मौका मिलता, वहां दोचार दिन रह कर आता. वक्त और हालत के थपेड़ों ने उसे कुंठा व पीड़ा की खोहों से बाहर निकाल कर बेहद संवेदनशील और रिश्तों के प्रति ईमानदार बना दिया था.

बाजार जाते हुए उस दिन अपर्णा का ऐक्सिडैंट हो गया, कंधे की हड्डी टूट गई. अशरफ को फोन पर खबर मिली, तो वह ड्यूटी छोड़ कर भागा. पहले उन्हें अस्पताल में भरती कराया, फिर माणिकचंद को सूचित किया और फिर स्कूल से लौटे बच्चों को खाना खिला कर अपर्णा की दवाई लेने बाजार भागा.

पूरे डेढ़ महीने अशरफ का एक पैर माणिकचंद के घर में, एक पैर अस्पताल में रहा. सिर्फ  नहाने और खाना खाने के लिए वह बहन के घर जाता था. बढ़ी हुई दाढ़ी, मटमैले कपड़े, बेतरतीब सा व्यक्तित्व उस के माणिकचंद के पूरे परिवार के प्रति अटूट प्रेम और गहरी फिक्र का सुबूत देता.

माणिकचंद भी अशरफ की तारीफ करते नहीं अघाते, बच्चे तो उस के मुरीद बन कर आगेपीछे घूमते रहते. अशरफ की बेगर्ज खिदमत देख कर अपर्णा की आंखें छलछला जातीं.

ऐसा शख्स जिस की मौजूदगी माणिकचंद के परिवार के लिए बंद कमरे में अचानक आई ताजी हवा का काम करती हो, वही अगर एक महीने से नजरों से ओझल रहे तो, क्या परिवार में घुटन और बेचैनी नहीं फैलेगी?

अपर्णा जब भी कोई नई डिश बना कर परोसती तो ‘अशरफ अंकल के साथ खाएंगे’  कह कर बच्चे प्लेट ढक कर रख देते. अपर्णा मुसकरा कर किचन में चली जाती. पूरा परिवार यह मानने के लिए तैयार नहीं था कि अशरफ उन्हें भूल जाएगा. दिल के रिश्ते खून के रिश्तों से कहीं ज्यादा मजबूत होते हैं क्योंकि इन पर मतलबपरस्ती की परत नहीं चढ़ी होती. होती है तो बस, अटूट विश्वास की मजबूत छड़ों से बनी स्नेह की छत.

आखिर अशरफ है कहां? कहीं किसी दुर्घटना का शिकार तो नहीं हो गया? फोन भी बंद है उस का. ऐसे न जाने कितने खयाल माणिकचंद के दिमाग को दीमक की तरह कुतरते. उधर, सूबे का सब से ज्यादा संवेदनशील शहर आग की लपटों से घिरा हुआ था. हिंदूमुसलिम दंगा शुरू हो गया था. कर्फ्यू लग गया.

तीसरे दिन शाम को कर्फ्यू में 2 घंटे की ढील दी गई तो दिसंबर की हाड़कंपा देने वाली ठंड के साथ धुंधभरी शाम को मोटरसाइकिल पर आए 2 सायों ने माणिकचंद के घर के दरवाजे की घंटी बजाई. दरवाजे के सैफ्टी मिरर से देख कर माणिकचंद ने दरवाजा खोल दिया, ‘‘मंजूर साहब आप? आइए, आइए. कैसे आना हुआ?’’ माणिकचंद ने सांप्रदायिक दंगे के बीच मुसलमान मेहमान का गर्मजोशी से स्वागत किया, बोले, ‘‘सब ठीक तो है न?’’

‘‘जी, खैरियत ही तो नहीं है,’’ अशरफ के बहनोई मंजूर अली ने रोबीले स्वर में इस अंदाज से कहा जैसे उन की खैरियत न होने के पीछे माणिकचंद की कोई साजिश हो.

‘‘क्या हो गया?’’ माणिकचंद ने इंसानियत के नाते पूछा.

‘‘अशरफ आप के घर में है क्या?’’

‘‘नहीं तो. पिछले एक महीने से मेरा पूरा घर उस के लिए परेशान है. क्या वह आप के घर पर नहीं है?’’

झूठी शान कहीं आप तो नहीं दिखाते

वीणा के पड़ोस में एक नया परिवार रहने आया. पति का नाम राकेश था  और पत्नी का नाम सुनीता. वीणा अपनी छोटी बेटी सुमि के साथ उन से मिलने गई. उसे फौरन ही महसूस हो गया कि राकेश और सुनीता के पास अभी गृहस्थी का सामान पूरा नहीं है पर उन दोनों का सरल स्वभाव वीणा को बहुत अच्छा लगा. दोनों के स्तर में कहीं से भी समानता नहीं थी पर वीणा ने तब सुनीता की खूब सहायता की.

वह जब भी सुनीता को अपने यहां कुछ खानेपीने को बुलाती, पता नहीं कितनी ही चीजें उस के साथ ऐसे बांध देती जैसे सुनीता ले जाएगी तो वीणा ही खुश होगी.

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वीणा कहती,”देखो सुनीता, जब दीदी कहती हो तो मेरा घर तुम्हारा ही हुआ. अब यह बताओ कि थोड़ा सामान ले जाओगी तो मेरा सामान हलका ही होगा न. मैं ढंग से साफसफाई कर पाऊंगी. यहां बेकार ही पङे हैं. तुम ले जाओ और मेरी अलमारी में जगह बनाओ.”

ऐसे बनें व्यवहारिक

वीणा ने जब देखा कि सुनीता के पास बरतन भी बहुत कम हैं तो अगली बार जब वह सुनीता से मिलने गई तो अपनी नयी क्रौकरी पैक कर के ले गई. वीणा का यही सोचना था कि अलमारियों में बंद सामान किसी के काम आए तो उस से अच्छी बात क्या हो सकती है.

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आज इस बात को लगभग 25 साल बीत गए हैं. सुमि पढ़लिख कर अच्छी पोस्ट पर है. वीणा और सुनीता आजकल अलगअलग शहरों में रहते हैं पर उन के के संबंध आज भी बहुत मधुर हैं. सुनीता आज तक नहीं भूली कि उन के घर आने वाली सब से पहली ढंग की प्लैट्स वीणा की दी हुई थीं.

सुनीता का जीवनस्तर बढ़ा तो समय के साथ वीणा का और बढ़ा पर जीवन के नीचे के दौर में वीणा ने जैसे साथ दिया था, उस से अजनबी भी अपने हो गए.

समाजिक नुकसान

सरला ने एक कालोनी में एक प्लौट ले कर छोड़ दिया था. जब सालों बाद उस प्लौट पर अपनी कोठी बना कर रहने आई तो उसे लगा उस के आसपास के लोगों का स्तर उस से कम है.

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कोठी के दोनों और मध्यवर्गीय परिवार थे. आसपास के बाकी लोग भी उस के जितने धनी नहीं थे. सरला, उस के पति अनिल और उन की एक ही युवा बेटी कोमल ही उस बड़े से घर में रहते. अनिल तो बिजनैस में व्यस्त रहते पर मांबेटी आसपड़ोस में किसी से भी बात करना गंवारा न समझतीं. ना किसी से बोलना, ना किसी के घर किसी भी मौके पर जाना, ना किसी को कभी अपने घर बुलाना. धीरेधीरे आसपास के लोगों ने भी उन से दूरी बनानी शुरू कर दी. अब न तो कोई उन्हें कभी बुलाता न उन से बात करने की कोई कोशिश करता.

2 साल ऐसे ही बीत गए. उन के यहां कोई उन्हीं की हैसियत का कोई मेहमान आता तो घर के लोग उन के साथ ही कभी कहीं आतेजाते दिख जाते.

एक दिन फल खरीदते हुए भारीभरकम शरीर वाली सरला का बैलेंस बिगड़ गया. वे रोड पर ही गिर गईं. इतने दिनों से अपमान झेल रहीं साथ खड़ी महिलाओं में से किसी ने भी उन की सहायता नहीं की. वे सब नजरें बचा कर अपनेअपने घर चली गईं. सब्जी वाला ही उन्हें घर छोड़ कर आया. इस के बाद वे जल्दी ही उस जगह से कहीं और रहने चली गईं  क्योंकि उन का मन इस जगह लगा ही नहीं.

कभी न करें

मेघा जब सोसाइटी में नईनई रहने आई तो उस ने भांप लिया कि उस की बिल्डिंग में रहने वाले कुछ लोगों का स्तर उस से कम है तो उस ने आसपास की महिलाओं के सामने रौब झाङना शुरू कर दिया.

साल में एक बार मेघा अपने पति और बच्चों के साथ विदेश घूमने जाया करती थी. जो महिलाएं कभी विदेश नहीं गई थीं उन के सामने डींगें मारने में मेघा को अलग ही खुशी मिलती.

पहले तो किसी का ध्यान नहीं गया पर जब सब ने नोट किया तो उस की पीठपीछे उस का खूब मजाक बनने लगा. हर समय अपने घमंड में चूर मेघा किसी से भी बात करती तो ऐसे जैसे उस पर एहसान कर रही हो. धीरेधीरे उस का समाजिक बहिष्कार  होने लगा. यहां तक कि उस के बच्चों के साथ महिलाएं अपने बच्चों को खेलने भी न देतीं. उस के बच्चे ही उस पर गुस्सा होने लगे कि आप की वजह से हमारे दोस्त नहीं बन पाते. पति के सहयोगियों की पत्नियां  भी एक दूरी रखतीं.

दूसरों को अपना बनाएं

मेघा के बिलकुल उलट सरिता अपने आसपास के लोगों से खूब घुलमिल कर रहती. जब पता चल जाता कि  सामने वाले इंसान का लाइफस्टाइल अपने जैसा नहीं है तो भी सरिता उस से बहुत अपनेपन के साथ व्यवहार  करती. सब को जैसे एक भरोसा सा रहता कि कोई भी जरूरत होगी तो सरिता जरूर साथ देगी. सब उसकी खुले दिल से पीठ पीछे भी तारीफ करते. कभीकभी उस का छोटामोटा नुकसान भी हो जाता जिसे आसपास के रिश्ते में कटुता न आने देने के लिए वह नजरअंदाज कर देती.

एक बार उस ने देखा कि पड़ोस की रेखा को पत्रिकाएं पढ़ने का बहुत शौक है पर वह इतनी खरीद नहीं पाती. सरिता को भी पत्रिकाएं पढ़ने का बहुत शौक था. वह हर महीने खूब पत्रिकाएं खरीदती.

उस ने रेखा से कहा,”तुम्हे पढ़ने का शौक है तो मुझ से ले कर पढ़ लिया करो.”

रेखा खुश हो गई. अब वह हर महीने सरिता से पत्रिकाएं तुरंत ले जाती. यह भी न देखती कि सरिता ने भी खुद अभी पढ़ी है या नहीं और जब वापस करती वे फटीमुचड़ीं हालत में होतीं.

अपनी एकएक पत्रिका हमेशा संभाल कर रखने वाली सरिता के लिए यह बहुत अजीब सी स्थिति होती. कुछ कहना भी ठीक न लगता पर फटी पत्रिका हाथ में ले कर पढ़ने में उसे बहुत दुख होता. कभी वह मिक्सर मांग कर ले जाती और बिना मांगे वापस न करती.

विपिन जब अविवाहित था उस ने अपनी नई नौकरी लगते ही जिस एरिया में घर लिया, वहां मकानमालिक के जीवन का स्तर उस की सुविधाओं से भरी लाइफ से कम था. मकानमालिक को जिस भी चीज की जरूरत होती, वह अपने एरिया की चाबी ही दे जाता. नए शहर में नई नौकरी में वह काफी व्यस्त रहता.

धीरेधीरे उस के नम्र स्वभाव के चलते वह उन की फैमिली मेंबर जैसा ही हो गया. यहां तक कि जब वह शादी के बाद अपनी वाइफ को ले कर आया, उन की लाइफ की हर जरूरत के समय मकानमालिक का पूरा परिवार हाजिर रहता. दोनों में से कोई भी कभी बीमार हो जाता, उन्हें कोई परेशानी नहीं होती. उन के काम आने वाले कई लोग हाजिर रहते.

जब उन का ट्रांसफर हो गया, तो वे परिवार की ही तरह अलग हुए और जब भी कभी फिर उस शहर में आए मकानमालिक से मिले बिना कभी नहीं गए.

अलग प्रभाव

पुणे की दीपा, जो एक पौश सोसाइटी में रहती हैं, कहती हैं,”अगर मेरे आसपास कोई मुझ से कम स्तर वाले के साथ मेरा मिलना होता है तो मैं बहुत आराम, सहज महसूस करती हूं क्योंकि फिर मुझ पर कपड़ों, गहनों की नुमाइश का प्रैशर नहीं रहता. मैं स्वभाव से बहुत सिंपल हूं. मुझ से बड़ीबड़ी बातें नहीं होतीं, न मुझे कोई पार्टीज या कभी किट्टी पार्टीज का शौक  रहा. मैं अपने पति की औफिस की पार्टियों में भी ज्यादा मिक्स नहीं होती क्योंकि उन लेडीज का सोचना मुझ से बहुत अलग होता है. मैं पढ़नालिखना पसंद करती हूं.”

अपने आसपास के स्तर का बच्चों पर कुछ अलग ही प्रभाव पड़ता है.

मुंबई की रीता का कहना है,”जिन लोगों का स्तर आप से कम हो, उन बच्चों के साथ खेलते हुए आप से बच्चों पर कुछ अलग असर होता है.कम स्तर वाले घरों के बच्चे ऐसे माहौल में पलबढ़ रहे होते हैं जिन का सोचना हमारे से बिलकुल अलग होता है. हमारे बच्चों के ऊपर बड़ीबड़ी कोचिंग क्लास, उन के हाईफाई कैरियर का प्रैशर होता है. हमारे बच्चों की बातें अलग होती हैं, उन की अलग. ऐसे में हमारे बच्चों का सोचना हमारे लाइफस्टाइल से अलग न हो, इसकी टैंशन तो रहती है.”

कई बार ऐसा भी होता है कि बेहतर लाइफस्टाइल वाली फैमिली को साधारण स्तर वाले लोग उतनी खुशदिली से नहीं अपनाते जबकि बेहतर स्तर की फैमिली में न कोई घमंड होता है न दिखावा.

मेरठ में थापर नगर में जब संजना का अति समृद्ध परिवार रहने आया तो वह जितना आसपास वालों से मिलनेजुलने की कोशिश करती, हर बार कोई न कोई उसे चुभता हुआ कुछ कह देता. उन की बेटी एक मल्टी नैशनल कंपनी में काम करती थी. बड़ी पोस्ट पर थी. वह अकसर लेट होती, तो कोई कलीग उसे छोड़ने आ जाता. आसपास की खिड़कियों से कई जोड़ी नजरें उन्हें ऐसे घूरतीं कि बहुत अजीब लगता.

आसपास का आर्थिक स्तर तो मेलमिलाप में दीवार बनता ही, मानसिक स्तर भी एक दूरी बनाए रखता. मानसिक स्तर पर जो आपस में अंतर होता है, वह भी उतनी ही समस्याएं खड़ी कर देता है जितना आर्थिक स्तर पर अंतर करता है.

साथ निभाना ही अच्छा

आसपास के लोगों का स्तर अगर आप से कम है तो सब से पहले इस बात का ध्यान जरूर रखें कि कभी भी भूल कर भी डींगें न मारें. यह बहुत छोटी बात होगी, इस से भले ही आप के पास पैसा हो, आप नीचे ही दिखेंगी. डींगें मारना, घमंड करना, सामने वाले का अपमान करना आप की सारी खूबियों को खत्म कर सकता है.

आजकल वैसे भी समाज में नफरत का माहौल बढ़ता जा रहा है, धर्म और जाति को ले कर दिलों में दीवारें खड़ी की जा रही हैं, ऐसे में कम से कम इतना तो कर ही सकती हैं कि प्यार और सद्भावना का माहौल बनाने में मदद करें. आसपास के लोगों को आप की किसी भी तरह की जरूरत हो, उन के काम आएं.

Crime Story: प्यार की राह में

बिहार के खूबसूरत शहर वैशाली के सदर थाने के हाजीपुर-पटना सर्किट हाउस के ठीक सामने राष्ट्रीय राजमार्ग-18 पर भारी मजमा जुटा हुआ था. सड़क के किनारे एक युवक की लाश पड़ी थी. युवक की हत्या गोली मार की गई थी. लाश के पास ही एक मोटरसाइकिल खड़ी थी, जिस में चाबी लगी हुई थी और हेलमेट हैंडल पर टंगा था.

अनुमान था कि मोटरसाइकिल मृतक की ही होगी. भीड़ में किसी आदमी ने इस की सूचना सदर थाने के थानेदार अभय कुमार को दे दी. सूचना मिलने के बाद थानेदार अभय कुमार पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए और जांच में जुट गए.

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जांच शुरू करने के पहले उन्होंने एसपी मानवजीत सिंह ढिल्लों और एसडीपीओ महेंद्र कुमार बसंत्री को सूचना दे दी थी. सूचना मिलने के कुछ देर बाद दोनों पुलिस अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए थे. यह बात 25 दिसंबर, 2019 की है.

लाश की जांचपड़ताल करने पर पता चला कि हत्यारों ने युवक को सिर और गरदन में 2 गोलियां मारी थीं. मौके का निरीक्षण करने पर यह भी पता चला कि युवक की हत्या कहीं और कर के उस की लाश यहां ला कर फेंक दी गई. अगर उस की हत्या मौके पर की गई होती तो वहां बड़ी मात्रा में खून फैला होता. लेकिन मौके पर मामूली खून था.

पुलिस ने लाश की जामातलाशी ली तो उस के पास से कोई ऐसा सामान बरामद नहीं हुआ, जिस से लाश की शिनाख्त हो सके. वहां खड़ी मोटरसाइकिल की डिक्की खोल कर कागज देखे तो उस की पहचान दीनानाथ राय, निवासी सोंधो रत्ती, थाना गोरौल, जिला वैशाली के रूप में की हुई. इस आधार पर एसओ अभय कुमार ने गोरौल थाने फोन कर के मृतक दीनानाथ राय की शिनाख्त कराने के लिए मदद मांगी.

गोरौल के थानाप्रभारी विनय कुमार ने दीनानाथ की हत्या की सूचना उस के घर वलों तक पहुंचवा दी. मृतक दीनानाथ राय कोई मामूली हैसियत वाला नहीं था, वह गोरौल प्रखंड के प्रमुख मुन्ना राय का बहनोई और रामजी ट्रांसपोर्ट कंपनी का करोड़ों का मालिक था. थानाप्रभारी ने उस की हैसियत के बारे में सदर थाने के एसओ अभय कुमार को भी बता दिया.

सूचना मिलने के बाद मुन्ना राय अपने समर्थकों के साथ हाजीपुर रवाना हो गए. वह सीधे थाना सदर पहुंचे. उधर पुलिस लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा चुकी थी. एसओ अभय कुमार ने मोबाइल से खींचे गए दीनानाथ राय की लाश के फोटो उन्हें दिखाए. फोटो देख कर मुन्ना राय ने उस की शिनाख्त अपने बहनोई दीनानाथ के रूप में कर दी.

लाश की शिनाख्त के बाद पुलिस ने मुन्ना राय की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. मुकदमा दर्ज कराने के बाद मुन्ना राय एसपी मानवजीत सिंह ढिल्लों से उन के सरकारी आवास पर जा कर मिले.

उन्होंने मामले का जल्द खुलासा कर बहनोई के हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने का आग्रह किया. साथ ही उन्होंने एसपी ढिल्लों को चेतावनी दी कि अगर हत्यारे जल्द से जल्द पकड़े नहीं गए तो वह जनांदोलन छेड़ने के लिए मजबूर हो जाएंगे. इस पर एसपी ने उन्हें भरोसा दिया कि इस की नौबत नहीं आएगी. पुलिस जल्द ही हत्या का खुलासा कर देगी.

इस के बाद समर्थकों के साथ मुन्ना राय वैशाली लौट आए और सीधे बहन किरन की ससुराल सोंधों रत्ती पहुंचे. किरन ने बताया कि दीनानाथ बीती शाम 6 बजे घर से निकलते समय मुझ से पटना औफिस जाने की बात कह कर अपनी बाइक से निकले थे. पटना जाने के बजाए हाजीपुर कैसे पहुंच गए, मुझे इस बारे में कुछ भी पता नहीं है.

घर लौटने के बाद मुन्ना राय चैन से नहीं बैठे. वह अपने स्तर से बहनोई की हत्या की गुत्थी सुलझाने में लगे हुए थे. वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि बहनोई की हत्या आखिर किस ने और किस वजह से की होगी. क्योंकि वह नेक दिल इंसान थे. उन की न तो किसी से अदावत थी और न किसी से संपत्ति का कोई झगड़ा था और न ही उन का किसी महिला से चक्कर था. दूरदूर तक सोचने पर मुन्ना राय को हत्या का कोई कारण नजर नहीं आ रहा था.

इधर पुलिस दीनानाथ राय हाईप्रोफाइल मर्डर मिस्ट्री की गुत्थी सुलझाने में जुटी हुई थी. एसपी मानवजीत सिंह ढिल्लों ने एसडीपीओ महेंद्र कुमार बसंत्री के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित कर दी.

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26 दिसंबर, 2018 को एसडीपीओ बसंत्री ने एसओ अभय कुमार को अपने कार्यालय बुलाया. इस केस के सिलसिले में उन्होंने बसंत्री के साथ एक बैठक की. एसडीपीओ महेंद्र कुमार बसंत्री को एक बात काफी समय से खटक रही थी. वह यह थी कि दीनानाथ की हत्या अगर किसी पेशेवर हत्यारे ने की होती तो वह राह चलते या बीच चौराहे पर कहीं भी गोली मार सकता था. उसे इस तरह किसी सुनसान जगह का चुनाव करने की जरूरत नहीं पड़ती.

हत्या का यह तरीका पेशेवर कातिल का नहीं बल्कि किसी और का था. उन्हें यह मामला आशनाई से जुड़ा दिखा रहा था.

पुलिस टीम ने अपनी जांच की दिशा इसी ओर मोड़ दी. पुलिस ने सब से पहले दीनानाथ के मोबाइल की घटना से 15 दिनों पहले की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स की जांचपड़ताल करने पर पता चला कि एक फोन नंबर से कई दिनों से दीनानाथ के फोन पर काल आ रही थी. उस नंबर पर दोनों के बीच काफी देर तक बातचीत होती थी. दीनानाथ भी उस नंबर पर काफी देर तक बातचीत करता था.

उस नंबर को पुलिस ने टारगेट पर ले लिया और उस की काल डिटेल्स निकलवाई. वह नंबर किसी शोबिंदा देवी के नाम से था जो बड़ेवा, थाना गोरौल, जिला वैशाली की रहने वाली थी. इस से पुलिस को लगने लगा कि दीनानाथ की हत्या आशनाई के चलते ही की गई होगी. शोबिंदा के पकड़े जाने के बाद ही इस हत्या के रहस्य से परदा उठ सकता था.

बात 30 दिसंबर की सुबह की है. शोबिंदा को गिरफ्तार करने के लिए हाजीपुर पुलिस वैशाली पहुंच गई. गोरौल पुलिस की मदद से हाजीपुर पुलिस ने शोबिंदा के मकान को चारों ओर से घेर लिया. इस के बाद उस मकान में पहुंची तो वहां उस समय शोबिंदा के अलावा कोई और नहीं था.

पुलिस ने शोबिंदा को गिरफ्तार कर लिया और पूछताछ के लिए उसे गोरौल थाने ले आई. सख्ती से की गई पूछताछ से शोबिंदा ने पुलिस के सामने घुटने टेक दिए.

पूछताछ के दौरान उस ने पुलिस को सब सचसच बता दिया. उस ने बताया कि दीनानाथ की हत्या उस का भाई संजीव और पति रामसूरत ने की थी.

शोबिंदा के बयान के आधार पर पुलिस ने अगले दिन रामसूरत के घर दबिश दी. वह घर पर सोता हुआ मिला. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. इत्तफाक से संजीव भी वहीं मिल गया. उसे भी पुलिस ने हिरासत में ले लिया. दरअसल बात यह थी कि एक दिन पहले शोबिंदा को गिरफ्तार करने की जानकारी रामसूरत ने अपने साले संजीव को दी थी. बहनोई रामसूरत से मिलने संजीव बड़ेवा आया हुआ था. दोनों वहां से कहीं भागने की फिराक में थे.

तीनों आरोपियों के गिरफ्तार होने के बाद एसडीपीओ महेंद्र कुमार बसंत्री ने पुलिस सभागार में प्रैसवार्ता आयोजित की. पत्रकारों के सामने दीनानाथ राय के तीनों हत्यारों को पेश किया और पूरी घटना विस्तार से बताई. तीनों आरोपियों ने ट्रांसपोर्टर दीनानाथ राय की हत्या किए जाने का अपराध स्वीकार कर लिया. दीनानाथ की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

35 वर्षीय दीनानाथ राय मूलरूप से बिहार के जिला वैशाली के गोरौल के सोंधों रत्ती का रहने वाला था. वह अपने मांबाप की एकलौती संतान था. ग्रैजुएशन के बाद वह अपने पिता रामजी राय के ट्रांसपोर्ट के व्यवसाय को देखने लगा. कुछ ही दिनों बाद पिता ने पूरा व्यवसाय बेटे को सौंप दिया. बेटे के व्यवसाय संभाल लेने के बाद रामजी राय का अधिकांश समय घर पर ही बीतता था. हफ्ते-10 दिन में जब उन का मन होता, औफिस चले जाते.

ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय रामजी राय ने पटना के जीरो माईल से शुरू किया था. बाद में काम काफी बढ़ गया. उन के घर में हर महीने लाखों रुपए आने लगे. जब दीनानाथ ने पूरी तरह व्यवसाय संभाल लिया तो रामजी राय ने उस का विवाह किरन से कर दिया.

दीनानाथ की गृहस्थी बड़े मजे से चल रही थी. दीनानाथ अकसर मोटरसाइकिल से वैशाली से पटना जाताआता था और देर रात घर लौट आता था. कभीकभी वह पटना में ही रुक जाता था. जब भी वह पटना में रुकता था तो फोन कर के घर बता देता था.

दीनानाथ जब भी घर वालों को पटना में रुकने की बात कहता था, उस दिन वह पटना में होता ही नहीं था. दरअसल, दीनानाथ ने अपने चेहरे के पीछे एक और चेहरा छिपा रखा था. इस बात की जानकारी तो किसी को नहीं थी, यहां तक कि उस की पत्नी किरन भी पति के इस दोहरे चरित्र से अनभिज्ञ थी.

दीनानाथ का दूसरा चेहरा एक प्रेमी का था, जो सालों से एक कुंवारी लड़की से प्यार करता था. कुंवारी से वह लड़की सुहागन बनी, तब भी वह उसे दिलोजान से चाहता रहा. ऐसा नहीं था यह प्यार एकतरफा रहा हो, वह लड़की भी उसे बहुत चाहती थी.

जिस लड़की पर दीनानाथ अपनी जान छिड़कता था. दरअसल, वह लड़की शोबिंदा ही थी. शोबिंदा मूलरूप से सोंधों रत्ती की रहने वाली थी. वह दीनानाथ की पड़ोसन थी. शोबिंदा और दीनानाथ एक ही जाति के थे और हमउम्र भी. उन का एकदूसरे के घर आनाजाना भी था.

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दीनानाथ को जब भी फुरसत मिलती, वह शोबिंदा से मिलने उस के घर चला जाता था. ऐसा नहीं था कि घर में शोबिंदा के अलावा कोई और नहीं रहता था. घर में उस के मांबाप के अलावा भाई संजीव और छोटी बहन शालिनी भी थी. लेकिन दीनानाथ की शोबिंदा से खूब निभती थी.

बचपन को पीछे छोड़ कब दोनों ने जवानी की दहलीज पर पांव रखे, न तो शोबिंदा जान पाई और न ही दीनानाथ. जवानी की दहलीज पर पहुंच कर दोनों के बीच कब चाहत ने अपने पांव पसार लिए, यह दोनों ही नहीं जान सके. उन्हें तो तब होश आया जब उन का एकदूसरे को देखे बिना रह पाना मुश्किल होने लगा. तब उन्हें समझ आया कि वे एकदूसरे से प्रेम करने लगे हैं. समय देख कर दोनों ने एकदूसरे से अपने प्रेम का इजहार कर दिया.

एक दिन की बात है. दोपहर का समय था. शोबिंदा घर में अकेली थी. घर के बाकी सदस्य किसी न किसी काम से घर से बाहर थे. दीनानाथ शोबिंदा से मिलने उस के घर पहुंचा. शोबिंदा को रसोई की साफसफाई से थोड़ी देर पहले ही फुरसत मिली थी.

वह आराम करने के लिए जैसे ही अपने कमरे में पहुंची, तभी उसे महसूस हुआ कि उसे किसी ने अपनी बांहों में भर लिया है. अचानक हुई इस हरकत से शोबिंदा की हलकी चीख निकल गई. लेकिन जब उस ने पलट कर देखा तब कहीं उस के जान में जान आई.

वह दीनानाथ ही था. उसे अपने बांहों में भरा हुआ था. शोबिंदा ने दीनानाथ का विरोध नहीं किया बल्कि वह उस से प्यार भरी बातें करने लगी. इस के बाद दोनों सामाजिक मर्यादाओं को ताख पर रख एकदूसरे में समाते चले गए.

जवानी के जोश में आ कर वे दोनों वह गलती कर बैठे थे, जिसे करने की समाज अनुमति कभी नहीं देता. एक बार जिस्मानी रिश्ते कायम करने के बाद उन्हें जब भी अवसर मिलता, अपनी हसरत पूरी कर लेते.

शोबिंदा और दीनानाथ ने अपने प्यार को लाख पिंजरे में कैद कर के रखा था, आखिरकार उन के प्यार का संजीव के सामने परदाफाश हो ही गया. संजीव शोबिंदा का भाई था. दोनों के रिश्तों के बारे में उसे पता चल चुका था. जब से उसे यह पता चला था, वह दीनानाथ से नफरत करने लगा था.

इस के बाद संजीव को दीनानाथ से इस बात की चिढ़ हो गई कि उस ने जिस थाली में खाया, उसी में छेद किया. सामाजिक रिश्ते में शोबिंदा और दीनानाथ भाईबहन थे. दोनों ने इस पवित्र रिश्ते को कलंकित किया था. इसीलिए संजीव ने दीनानाथ को अपने घर आने से साफ मना कर दिया था.

लेकिन उस की बातों को दरकिनार कर शोबिंदा से मिलने उस के घर पहुंच ही जाता था. संजीव जब उसे घर आया देखता तो उस के तनबदन में आग सी लग जाती थी. गुस्से से वह हाथ मलता रह जाता था.

संजीव दीनानाथ से कमजोर था. इसी वजह से दीनानाथ से छुटकारा पाने का उस के पास एक ही विकल्प बचा था कि जल्द से जल्द बहन शोबिंदा की शादी कर दे. उसे लगा कि जब वह अपनी ससुराल चली जाएगी तो दीनानाथ वहां नहीं पहुंच सकेगा.

इस के बाद संजीव ने घर वालों से रायमशविरा कर बहन के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया. थोड़ी मेहनत के बाद उसे बड़ेवा का रहने वाला रामसूरत सही लगा. बात पक्की हो गई तो सामाजिक रीतिरिवाज से शोबिंदा की शादी रामसूरत से कर दी गई.

रामसूरत एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करता था. उस का अपना भरापूरा परिवार था. उस के परिवार में भाईबहन और मांबाप थे. शोबिंदा जैसी खूबसूरत बीवी पा कर वह बेहद खुश था. लेकिन शोबिंदा खुश नहीं थी.

दीनानाथ को दिल दे चुकी शोबिंदा उसी से ब्याह करना चाहती थी. दीनानाथ के बिना वह जीने की कल्पना तक नहीं कर सकती थी. ऐसे में शोबिंदा अपने प्यार के दिल की धड़कनों से दूर चली गई तो खुश रहने का सवाल ही नहीं था. इधर दीनानाथ भी शोबिंदा का प्यार पाने के लिए विरह की अग्नि में जल रहा था.

दीनानाथ की हालत जल बिन मछली की तरह हो गई थी. वह दिनरात शोबिंदा के बारे में सोचता रहता था. इसी वजह से उस का बिजनैस में मन नहीं लगता था. घर वाले यह सोचसोच कर परेशान थे कि हमेशा मुसकराने वाले दीनानाथ को क्या हो गया है, जो मरीज बनता जा रहा है.

घर वाले उसे डाक्टर के पास ले गए. डाक्टर ने कई जांचें कराईं. सभी जांच सामान्य निकलीं. उस के अंदर कोई बीमारी होती तब तो पता चलती. लिहाजा डाक्टर भी परेशान हो गया कि किस बीमारी की दवा दे.

घर वालों ने सोचा कि बेटा जवान हो चुका है, हो सकता है उसे अकेलापन अखर रहा हो और इस वजह से उस का मन न लग रहा हो. फिर क्या था, उन्होंने दीनानाथ की गृहस्थी किरन के साथ बसा दी. दीनानाथ धीरेधीरे किरन की ओर आकर्षित होता गया. वह फिर से पहले जैसा हो गया.

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ऐसा उस ने घर वालों को भ्रमित करने के लिए किया था. असल बात तो यह थी कि वह शोबिंदा के बिना जी ही नहीं पा रहा था. शेबिंदा को देखने के लिए उस की आंखें पथरा गई थीं. आखिर एक दिन दीनानाथ ने सोच लिया, चाहे कुछ भी हो जाए वह शोबिंदा से जरूर मिलेगा.

आखिरकार एक दिन हिम्मत जुटा कर वह शोबिंदा की ससुराल बड़ेवा पहुंच गया. शोबिंदा को देख कर दीनानाथ का चेहरा खिल उठा. उसे ऐसा लगा जैसे मृतप्राय जीवन को संजीवनी मिल गई हो. जबकि शोबिंदा उसे देख कर अवाक रह गई. शोबिंदा ने ससुराल में घर वालों से दीनानाथ का परिचय दूर के रिश्ते के भाई के रूप में कराया था.

दीनानाथ ने वह रात शोबिंदा की ससुराल में बिताई और अगले दिन सुबह होते ही अपने औफिस पटना चला गया था. पता नहीं क्यों शोबिंदा के पति रामसूरत के मन में दीनानाथ को ले कर एक अजीब सा शक होने लगा. पत्नी की बातें उस के गले नहीं उतर रही थीं.

दीनानाथ उस का रिश्तेदार होता तो शादी में जरूर दिखाई देता. लेकिन शादी के बरसों बाद यह रिश्तेदार कहां से पैदा हो गया. रामसूरत ने इस बारे में साले संजीव से बात की और जानकारी ली तो उस ने बताया कि इस नाम का उस का कोई रिश्तेदार नहीं है. साले का जवाब सुन कर रामसूरत का माथा ठनक गया कि उस का शक सही निकला. मामला कुछ गड़बड़ है. यह बात रामसूरत ने पत्नी को न बता कर अपने तक ही सीमित रखी.

एक बार दीनानाथ का रास्ता खुला तो वह शोबिंदा से मिलने अकसर उस की ससुराल जाने लगा. वह ऐसे समय पर वहां पहुंचता था, जिस समय पति घर पर नहीं होता था.

घटना से करीब 6 महीने पहले की बात है. दीनानाथ शोबिंदा से मिलने उस की ससुराल गया था. उस समय रामसूरत अपनी नौकरी पर था. शोबिंदा के सासससुर भी किसी जरूरी काम से कहीं बाहर गए हुए थे. घर में वह अकेली थी.

दीनानाथ को देख कर शोबिंदा का दिल बागबाग हो उठा. उसे देखते ही दीनानाथ के बदन जलने लगा. दोनों खुद को रोक नहीं पाए और तन की तपिश ठंडी करने के लिए दो जिस्म एक जान हो गए. दुर्भाग्य की बात यह रही कि जिस समय दोनों का मिलन चल रहा था, उसी समय रामसूरत घर लौट आया. घर का दरवाजा खुला हुआ था. वह जब अपने कमरे में पहुंचा तो पत्नी को पराए मर्द के साथ आपत्तिजनक हालत में देख कर उस का खून खौल उठा.

कमरे में अचानक पति को आया देख शोबिंदा के होश उड़ गए. वह जल्दी से बिस्तर से उठ कर तन ढकने लगी. दीनानाथ मुंह छिपा कर वहां से भाग निकला. गुस्से से लाल रामसूरत पत्नी पर कहर बन कर टूट पड़ा. उस ने उसे लातघूंसों से खूब मारा. चूंकि शोबिंदा ने गलती की थी, इसलिए वह पति के पैरों में गिर कर माफी मांगने लगी और वचन दिया कि आज के बाद दीनानाथ से कोई रिश्ता नहीं रखेगी. न ही उसे यहां आने देगी. वह दोनों हाथ जोड़ कर पति के सामने गिड़गिड़ाने लगी.

रामसूरत ने समझदारी से काम लिया. पत्नी को उस ने माफ तो कर दिया था लेकिन उसे उस पर तनिक भी विश्वास नहीं था कि वह दोबारा ऐसा नहीं करेगी.

रातसूरत ने साले संजीव को शोबिंदा की करतूतों के बारे में बता दिया था. संजीव ने बहन की घिनौनी बातों को सुना तो उस के भी तनबदन में आग लग गई. संजीव बड़ेवा जा पहुंचा. जीजा से बात की और उन्हें भरोसा दिया कि अब पानी सिर से बहुत ऊपर गुजर चुका है, दीनानाथ को इस की सजा मिलनी ही चाहिए.

इस के बाद रामसूरत और संजीव दीनानाथ को मजा चखाने के लिए एक हो गए. संजीव ने बहन को डराधमका कर उसे अपने पक्ष में कर लिया. संजीव ने शोबिंदा को साफतौर पर समझा दिया कि अगर उस ने उन का साथ नहीं दिया, तो दीनानाथ के साथसाथ उसे भी जान से मार देंगे. शोबिंदा बुरी तरह डर गई और पति व भाई का साथ देने के लिए तैयार हो गई.

24 दिसंबर, 2018 की सुबह संजीव बहन की ससुराल बड़ेवा आ पहुंचा. रामसूरत भी घर पर ही था. आपस में दोनों ने सलाहमशविरा किया कि दीनानाथ का आज काम तमाम हो जाना चाहिए.

योजना के मुताबिक, संजीव ने शोबिंदा से कहा कि वह दीनानाथ को फोन कर के यहां बुलाए. ध्यान रहे किसी तरह की कोई चालाकी नहीं करनी है. अगर चालाकी करने की कोशिश की या फिर दीनानाथ को कुछ बताने की कोशिश की तो इस का अंजाम बहुत बुरा हो सकता है.

भाई और पति के धमकाने पर शोबिंदा ने प्रेमी दीनानाथ को फोन कर के रात में घर पर मिलने के लिए बुलाया. उस ने यह बता दिया था कि आज रात पति घर पर नहीं रहेगा.

जब से दीनानाथ के पास शोबिंदा का फोन आया था, वह उस से मिलने के लिए बेचैन हो रहा था. वह सोच रहा था कि कैसे घर से निकलूं. उस ने पत्नी से बहाना किया कि उसे पटना औफिस पहुंचना है. कुछ जरूरी काम आ गया है.

वह मोटरसाइकिल ले कर घर से निकल गया. उस समय शाम के 6 बज रहे थे. करीब घंटा भर बाद वह शोबिंदा की ससुराल पहुंच गया. दीनानाथ के वहां आने से पहले ही संजीव और रामसूरत घात लगा कर कमरे में छिप गए थे.

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शोबिंदा थोड़ी देर उसे अपनी बातों में उलझाए रही. तब तक संजीव और रामसूरत कमरे से निकल कर बाहर आ गए. उन्हें देख कर दीनानाथ घबरा गया और उलटे पांव बाहर भागा. जब तक वह भागता, संजीव ने उसे धर दबोचा. तब तक रामसूरत शोबिंदा को कमरे में बंद कर के साले के पास वापस लौट आया था.

दीनानाथ समझ गया था कि शोबिंदा ने धोखा दिया है. वह जान की भीख मांगता हुआ संजीव से बोला कि उसे यहां से जाने दे, शोबिंदा से कोई रिश्ता नहीं रखेगा. उस समय संजीव पर खून सवार था. उस ने उस की एक नहीं सुनी और कमर में पहले से खोंस रखी पिस्टल निकाल ली. दीनानाथ का मुंह दबा कर उस ने सिर और गरदन पर सटा कर 2 गोलियां मार दीं.

गोली लगते ही दीनानाथ की मौत हो गई. उस के बाद दोनों लाश को उसी की मोटरसाइकिल पर बीच में रख कर हाजीपुर-पटना राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित हाजीपुर सर्किट ले आए. मोटरसाइकिल संजीव चला रहा था और पीछे रामसूरत बैठा दीनानाथ की लाश को संभाले हुए था. सड़क के किनारे लाश डाल कर उन्होंने मोटरसाइकिल वहीं खड़ी कर दी. उन्होंने उस की चाबी भी लगी छोड़ दी. फिर दूसरी सवारी पकड़ कर वैशाली आ गए और चैन से सो गए.

संजीव और रामसूरत ने दीनानाथ की हत्या को बड़ी चालाकी से अंजाम दिया था. लेकिन मोटरसाइकिल की वजह से वे अपने ही रचे चक्रव्यूह में फंस गए.

शोबिंदा, संजीव और रामसूरत से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने संजीव की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त पिस्टल रामसूरत के घर से बरामद कर ली. हत्या के साथसाथ पुलिस ने संजीव और रामसूरत पर आर्म्स एक्ट की धारा भी लगाई. पुलिस ने तीनों आरोपियों शोबिंदा, संजीव और रामसूरत को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

कथा लिखने तक पुलिस ने इन के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर दिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य कहानी: मनोहर कहानी

घर पर बनाए एक नए अंदाज़ मे ब्रोकली की सब्जी

ये तो हम सभी जानते है की हरी-सब्जियाँ और फल हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद है और अक्सर हम भी रोज़मर्रा के भोजन में अलग अलग सब्जियों को नए-नए तरीके से बनाकर शामिल करने के लिए हमेशा उत्सुक रहते है.

इन्ही हरी सब्जियों में से स्वाद और सेहत से भरपूर एक सब्जी है ब्रोकली  ….. लेकिन अधिकतर लोगों को इसे बनाने का तरीका नहीं पता होता. जिसके कारण वह इसे बनाना और खाना नजरअंदाज करते हैं. या यूं कहे की ब्रोकली  कई के लिए सबसे कम पसंदीदा सब्जियों में से एक है.

सच कहूँ तो मैं भी उन सब में से एक थी जब तक मैंने ब्रोकली  की सब्ज़ी को इस नए अंदाज़ मे नहीं बनाया था.

तो अगर आपको भी ब्रोकली  की सब्जी पसंद नहीं है  तो आज हम आपको ब्रोकली की मदद से बनने वाली एक मजेदार सब्जी के बारे में बता रहे हैं. यकीन मानिए इस रेसिपी को पढ़ने के बाद आपका मन भी इसे बनाने व खाने का करेगा. तो चलिए जानते है एक नए अंदाज़ में ब्रोकली  की सब्जी कैसे बनाए-

कितने लोगों के लिए- 3 से 4

कितना समय-15 से 20 मिनट

मील टाइप -वेज

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हमे चाहिए-

ब्रोकली  -500 gm कटी हुई

आलू -2  मीडियम साइज़ कटे हुए

प्याज-2 लंबे आकार मे कटी हुई

टमाटर- 2 बारीक कटा हुआ

जीरा-1 चम्मच

अदरक लहसुन का पेस्ट -1 चम्मच

टोमॅटो सॉस-1 टेबलस्पून

हल्दी पाउडर-1 चम्मच

लाल मिर्च पाउडर-1/2 चम्मच

धनिया पाउडर-2 चम्मच

तेल- 2 छोटे चम्मच

नमक- स्वाद अनुसार

बनाने का तरीका-

1-सबसे पहले ब्रोकली  और आलू को अच्छे से धोकर काट ले . अब एक कढ़ाई मे तेल डाल कर उसे गरम करे ,फिर कटे हुए आलू और ब्रोकली को बारी-बारी से डीप फ्राई कर ले.

(आप चाहे तो आप आलू और ब्रोकली को बिना डीप फ्राई किए थोड़ा तेल डाल कर उसमे लाल होने तक भून सकती है.)

2-अब एक कढ़ाई में तेल गरम करें ,फिर उसमे जीरा डालें . जीरा चटक जाने के बाद उसमे कटा हुआ प्याज़ डाल कर उसे हल्का लाल होने तक भूने.

3-अब उसमे कटे हुए टमाटर डाल कर उसे गल जाने तक पकाए.टमाटर पक जाने के बाद उसमे हल्दी, नमक और धनिया डाल कर अच्छे से मिला दें.अब इसमे अदरक-लहसुन का पेस्ट और पिसी हुई लाल मिर्च डाल कर इसे फिर अच्छे से मिला दे.

4- अब इसमे टोमॅटो सॉस और डीप फ्राई ब्रोकली  और आलू को डाल कर इसे मीडियम आंच पर अच्छे से भून ले.

(टोमॅटो सॉस डालने से इसका टेस्ट बहुत अच्छा हो जाता है पर अगर आप चाहे तो आप इस स्टेप को स्किप कर सकते हैं. )

5-4 से 5 तक भून लेने के बाद गॅस को बंद कर दे . तैयार है स्वाद और सेहत से भरपूर ब्रोकली  की सब्जी .

6-आप इसे रोटी ,पूड़ी  या पराठा के साथ खा सकते है.

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युवाओं में बढ़ रहा हार्ट फेल्योर का रिस्क

भारत में इस समय तकरीबन 50.4 लाख हार्ट फेल्योर रोगी हैं और जिस तरह से इस के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है, उसे देख कर लगता है कि अब हार्ट फेल्योर युवाओं को भी अपनी चपेट में ले रहा है. इस ?के बढ़ते मामलों की वजह लोगों में हार्ट फेल्योर के बारे में जानकारी की कमी है और लोग इसे  हार्ट अटैक से जोड़ कर देखते हैं.

कुछ ऐसा ही मामला मेरे पास आया था. विपिन सैनी जब अस्पताल में भरती हुए थे तो उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी, पैरों और टखनों में सूजन थी, चक्कर आ रहे थे और जब भी खांस रहे थे तो बलगम हलके गुलाबी रंग का था. करीब डेढ़ साल पहले उन्हें हार्ट अटैक आया था और इस के बाद ही पता चला कि विपिन हार्ट फेल्योर की समस्या से ग्रस्त हैं.

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दरअसल, विपिन की प्रोफैशनल जिंदगी में बहुत तनाव था और लगातार काम करते रहना व अस्वस्थ खानपान के चलते उन में हार्ट फेल्योर के लक्षण दिखाई देने लगे थे.

हार्ट फेल्योर

हार्ट फेल्योर लंबी चलने वाली गंभीर बीमारी है. इस में हृदय इतना रक्तपंप नहीं कर पाता कि जिस से शरीर की जरूरतों को पूरा किया जा सके. इस से पता चलता है कि हृदय की मांसपेशियां पंपिंग करने के लिए जिम्मेदार होती हैं जो समय के साथ कमजोर हो जाती हैं या अकड़ जाती हैं. इस से दिल की पंपिंग पर प्रभाव पड़ता है और शरीर में रक्त (औक्सीजन व पोषक तत्त्वों से युक्त) की गति सीमित हो जाती है. इस वजह से रोगी को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है और उस के टखनों में सूजन आने लगती है. यह बीमारी हार्ट अटैक से बिलकुल अलग है.

लक्षण भी जानें

हार्ट फेल्योर होने के कई कारण होते हैं जिन में पहले हार्ट अटैक होना सब से महत्त्वपूर्ण कारक हो सकता है. विपिन के मामले में भी ऐसा ही हुआ था. हार्ट अटैक के बाद विपिन में हार्ट फेल्योर के लक्षण सामने आए थे. इस के अलावा दिल से जुड़ी बीमारियां, ब्लडप्रैशर, संक्रमण या शराब या ड्रग की वजह से हृदय की मांसपेशियों का क्षतिग्रस्त होना शामिल हो सकता है. दिल के क्षतिग्रस्त होने की वजह डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, मोटापा, किडनी की बीमारी और थायरायड में विकार हो सकते हैं. कई मामलों में हार्ट फेल्योर के एक या इस से ज्यादा कारण भी हो सकते हैं.

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क्या कहते हैं आंकड़े

दुनियाभर के आंकड़ों पर गौर करें तो यूरोप में 140.9 लाख लोग और अमेरिका में 50.7 लाख लोग हार्ट फेल्योर की समस्या से जूझ रहे हैं. भारत में हाल ही जर्नल औफ प्रैक्टिस औफ कार्डियोवैस्कुलर साइंसैज में प्रकाशित एम्स की स्टडी के अनुसार, हार्ट फेल्योर से अमेरिका व यूरोप में 4 -7 प्रतिशत के मुकाबले भारत में 30.8 फीसदी मृत्यु होती है. अगर संपूर्ण बीमारी का बोझ देखें तो पता चलता है कि दुनिया की आबादी में भारत आंकड़ों में 16 फीसदी है तो दुनिया के क्रोनोरी हार्ट डिसीज बोझ में यह 25 फीसदी है.

दुनियाभर के मुकाबले भारत में क्रोनोरी आर्टरी डिसीज (सीएडी) से युवा ज्यादा प्रभावित हैं. आमतौर पर सीएडी पुरुषों में अगर 55 साल से पहले और महिलाओं में 65 साल से पहले हो जाए तो उसे प्रीमैच्योर सीएडी कहा जाता है, लेकिन अगर यह बीमारी 40 साल से पहले हो तो माना जाता है कि यह युवाओं को अपनी चपेट में ले रही है.

क्या है फर्क

सब से महत्त्वपूर्ण हार्ट अटैक और हार्ट फेल्योर के अंतर को समझना है. हार्ट अटैक अचानक होता है और हृदय की मांसपेशियों को रक्त पहुंचाने वाली धमनियों में ब्लौकेज होने से आकस्मिक हार्ट अटैक हो सकता है जबकि हार्ट फेल्योर लगातार बढ़ने वाली बीमारी है जिस में हृदय की मांसपेशियां समय के साथ कमजोर होती जाती हैं.

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कैंसर, अल्जाइमर्स, सीओपीडी और ऐसी कई बीमारियों की तरह हार्ट फेल्योर भी लगातार बढ़ने वाली बीमारी है. इसलिए इस के लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और दिल की मांसपेशियों के क्षतिग्रस्त होने से पहले इसे चेक कराना बहुत महत्त्वपूर्ण है. हार्ट फेल्योर में यह जानना बेहद जरूरी है कि क्षतिग्रस्त मांसपेशियों को दोबारा रिकवर नहीं किया जा सकता, इलाज की मदद से सिर्फ दिल व शरीर के दूसरे महत्त्वपूर्ण अंगों को अधिक खराब होने से बचाया जा सकता है.

हार्ट फेल्योर को लगातार अनदेखा करना बहुत रिस्की है क्योंकि जो लोग इस बीमारी की पहचान नहीं कर पाते या इलाज नहीं कराते, उन की अचानक मृत्यु होने का रिस्क बढ़ सकता है और वे बेहतर जिंदगी भी नहीं बिता पाते. बीमारी की काफी देर बाद पहचान होने के परिणाम काफी घातक होते हैं. इस वजह से एकतिहाई रोगियों की अस्पताल में भरती होने पर मृत्यु हो जाती है और एकचौथाई की पहचान होने के 3 महीनों में मृत्यु हो जाती है.

जीवनशैली है बड़ा कारण

लगातार शराब, धूम्रपान, ड्रग्स का सेवन, तनाव, कसरत न करने जैसी अस्वस्थ जीवनशैली हार्ट फेल्योर के कारण हो सकते हैं. इस से मोटापा, ब्लडप्रैशर बढ़ना, डायबिटीज जैसे रोग हो सकते हैं. ये बीमारियां दिल की मांसपेशियों को कमजोर करती हैं और इस से हृदय की कार्यक्षमता प्रभावित होती है.

अस्वस्थ जीवनशैली का उदाहरण हाल ही में एक मामले में देखने को मिला. 20 साल का लड़का सत्यम शर्मा जब परामर्श के लिया आया तो उसे बहुत थकान, सांस लेने में तकलीफ और बहुत ज्यादा पसीना निकलने की समस्या थी. जब जांच की गई तो उस में शुरुआती हार्ट फेल्योर के लक्षण नजर आए. इस उम्र में हार्ट फेल्योर के लक्षणों का कारण लगातार बहुत ज्यादा शराब पीना था.

हार्ट फेल्योर का इलाज

हार्ट फेल्योर की पहचान करना ज्यादा मुश्किल नहीं है. इस की पहचान मैडिकल हिस्ट्री की जांच कर के, लक्षणों की पहचान, शारीरिक जांच, रिस्क फैक्टर जैसे उच्च रक्तचाप, क्रोनोरी आर्टरी बीमारी या डायबिटीज होने और लैबोरेटरी टैस्ट से की जा सकती है. इकोकार्डियोग्राम, छाती का एक्सरे, कार्डियेक स्ट्रैस टैस्ट, हार्ट कैथेटराइजेशन और एमआरआई से इस समस्या की सही पहचान की जा सकती है.

पहचान न कर पाने या स्क्रीनिंग में दिक्कत होने के बावजूद हार्ट फेल्योर का इलाज आधुनिक तकनीकों से बेहतर तरीके से किया जा सकता है. इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिए जीवनशैली में बदलाव करना बहुत जरूरी है.

इस के साथ कई थेरैपियों की मदद से हार्ट फेल्योर का उपचार किया जा सकता है. इस से लक्षणों को कम, जिंदगी की गुणवता में सुधार और मृत्युदर को कम किया जा सकता है.

इस के इलाज में बीटा ब्लौकर, एसीई इनहिबिटर जैसी दवाइयों, हाई बीपी या डायबिटीज जैसी बीमारियों का इलाज कर के, कार्डियेक उपकरण जैसे कार्डियेक रिस्नक्रोनाइजेशन थेरैपी (सीआरटी) व इंट्रा कार्डियेक डिफिबरालेटर (आईसीडी) और क्रोनोरी आर्टरी बीमारी के मामलों में सर्जरी व वौल्व के रिपेयर या रिप्लेसमैंट का सुझाव दिया जाता है.

नई उम्मीदें

हार्ट फेल्योर के इलाज के कई बेहतरीन विकल्प हैं. पिछले साल यूएस फूड व ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने नई दवाई इवाब्राडाइन को मंजूरी दी थी जो भारत में काफी समय से उपलब्ध है. इसी तरह ड्रग की नई श्रेणी एंजियोटेनसिन-रिस्पेटरब्लौकर निपरिलसिन इंहिबिटर (एआरएनआई) है.

2 संयोजकों से बनी यह दवाई मौजूदा ब्लडप्रैशर को कम करने में मदद करती है और यह काफी प्रभावी साबित हुई थी. इस से 20 फीसदी तक मृत्यु में कमी और बारबार अस्पताल में भरती होने में कमी आई थी, जोकि फिलहाल मौजूद थेरैपियों के मुकाबले काफी फायदेमंद है.

(लेखक नई दिल्ली स्थित एम्स में कार्डियोलौजिस्ट हैं)

 

किसान आंदोलन उस पार

लेखक- रोहित और शाहनवाज

इंट्रो- इस पुरे संघर्ष में किसान जरा सा भी पीछे हटने को तैयार नहीं है. जिस ने सरकार की नाक में दम कर के रख दिया है. इस आंदोलन के अंत में जो भी परिणाम निकले. यह इसलिए याद रखा जाएगा कि घमंडी सरकार को घुटने के बल बैठा दिया ?

दिल्ली-गाजीपुर बोर्डर जिसे दिल्ली गेट भी कहा जाता है, इन दिनों अपना इतिहास फिर से लिख रहा है. तीन पीढ़ियों का एक साथ एक जगह बैठ कर, अपनी एक मांग के लिए लड़ना ऐतिहासिक है. आंदोलन की खासियत अब यह नहीं है कि ये अड़ियल सरकार को चुनौती दे रहे हैं बल्कि यह कि यहां अनुभव, दक्षता और जोश का जबरदस्त तालमेल बन चुका है.

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आंदोलन में युवा, जिन की उम्र कोई 18-25 है, वालिंटियर हैं. दोड़तेभागते हैं, लंगर बांटते हैं. लेकिन बिना थके खुश रहते हैं. आंदोलन के पुराने तौरतरीकों से थोड़ा अलग खुद को पाते हैं तो ट्रोली में लगे स्पीकर पर देशप्रेमी गाने सुन कर खुद में मस्त भी रहते हैं.

मंच, बातविचार, और रणनीति की जिम्मेदारी वे प्रोढ़ आंदोलनकारियों के कंधो पर है, जो अब खेतों में मुख्य रूप से किसान हैं. जिन के ऊपर घरों की जिम्मेदारी है, जो अब अपने परिवार में मुखिया के तौर पर स्थापित हो रहे हैं. ये आंदोलन में बीच की कड़ी हैं. जो युवाओं के बीच में भी हैं और बुजुर्गों में भी. नियंत्रण और समझाना बुझाना इन्ही पर है. ये अपने साथ ढोलमजीरा, आंदोलनकारी गानों की किताब ले कर आए तो हैं, लेकिन युवाओं के डीजे की घमक पर भी कभीकभी थिरक लेते हैं, उन के साथ उठबैठ जाते हैं. उन्हें आंदोलन की दशोदिशा समझते समझाते हैं.

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वहीँ, सब से मजबूत कड़ी वे बुजुर्ग हैं जो इस आंदोलनों को नीव दे रहे हैं. उन का यहां होना ही सभी का खुद पर विश्वास को बनाए रखना है. यह विश्वास शब्दों के माध्यम से पिरोना मुश्किल है, इस के लिए उन तमाम किसान धरना स्थलों की धूल को महसूस करने की जरूरत है जहां इन्होने अपना मौजूदा आशियाना बनाया हुआ है. आंदोलन में उन का आदर सत्कार किसान मौजूदा आंदोलन को ले कर कई जवाब दे देते हैं. इस के लिए जरुरी नहीं कि किसी बड़े लेखक की सिधान्त्वादी किताब को उठाया जाए. सब से पहली जरुरत यह कि उन धरना स्थलों पर जाया जाए, जहां मीलोंमील तक आज अन्नदाता बैठने पर मजबूर हुए हैं.

कोई आंदोलन कब सफल हो सकता है? यह सवाल पेचीदा है. इस के लिए वाइट कालर बुद्धिजीवी तबका अपने पास कई सैधांतिक जवाब रखता है. इस का जवाब देने वाले बहुत बार खुद सवालों के घेरे में आए, या खुद सवाल बनते चले गए. लेकिन गाजीपुर बोर्डर पर मौजूद किसान हीरा सिंह कहते हैं, “आंदोलन में सफलता तभी संभव है जब भरोसा सरकार पर नहीं अपनों पर हो, और हम इस समय सरकार पर बिलकुल भरोसा नहीं कर रहे हैं.”
यह जवाब कितना सटीक है इस पर बात हो सकती है, लेकिन आंदोलन की गरज और 2014 के बाद से बहुमत वाली घमंडी मोदी सरकार को उस की जगह इस आंदोलन ने जरूर दिखा दी है.

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कृषि कानूनों के खिलाफ बीते 9 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसानों ने अब अपना रुख और कड़ा कर लिया है. यही हाल गाजीपुर बोर्डर पर भी देखने को मिला है. पहले के मुकाबले वहां किसान अपनी मांगो पर ज्यादा अडिग और मजबूत दिखाई दिए हैं. संख्याबल में भी बढ़ोतरी देखने को मिली है. जहां पहले भारतीय किसान यूनियन ही उस आन्दोलन को संचालित कर रही थी, अब उस जगह बाकी यूनियनें भी केन्द्रित होना शुरू हो चुकी हैं. 3 तारीख से पहले उन्हें प्रशासन ने फ्लाईओवर के नीचे समेट कर रखा था, लेकिन समय के साथ उन्होंने अपनी ताकत बढ़ाई और यूपी से दिल्ली घुसने वाले फ्लाईओवर पर अपना कब्जा जमा लिया है. जिस सरकार को यह आंदोलन बिना नेतृत्व के बिखरा हुआ दिखाई दे रहा था और इसी बात पर आंदोलन का कुप्रचार कर रही थी, वही सरकार दो बार की वार्ता अब तक किसानों के बीच कर चुकी है.
गाजीपुर में मंच की भी अब अहम् भूमिका बनती जा रही है. यूनियन लीडर के प्रतिनिधि अपनी बातों को तो रख ही रहे हैं, लेकिन अब जमीन पर बैठे श्रोता किसान भी वक्ता के तौर पर उभर रहे हैं.

72 वर्षीय ओमवीर उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले से श्यामपुर गांव से 35 किलोमीटर दूर दिल्ली-गाजीपुर बोर्डर पर डटे हुए हैं. सर पर गमछा, हाथ में लाठी, धोती कुर्ता पहने, कमजोर सूखी नाड़ियों के साथ ठीक वही आभास करवा रहे हैं जैसा सरकार और एसी कमरों में बैठे शहरी लोग किसानों में ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं.

ओमवीरजी यहां सिर्फ कानूनों में खामियों के चलते नहीं आए, बल्कि उन की यूपी राज्य में किसानों से जुडी कई समस्याए हैं.

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वे कहते हैं, “किसान वह कौम है, जिस का अगर घर का छप्पर चू रहा हो फिर भी बारिश की ही कामना करेगा. श्यामपुरा में हमारी सिर्फ 2 एकड़ जमीन है. हमारे गांव में इतने छोटे किसान हैं कि किसी के पास इतनी जमीन भी होना बड़ी बात है. हम अपनी फसल सरकारी मंडी में भी बेचने जाते हैं तो हमें वहां से तरहतरह के बहाने कर के भगा दिया जाता है. कभी कहते हैं कि गोदाम भर गए हैं, तो कभी आजकल आजकल कर के 4-4 दिन तक तैयार फसल को मंडी के बाहर सड़ने छोड़ दिया जाता है. फिर हमें मजबूरी में वहीँ मौजूद बिचौलियों को अपनी फसल सस्ते दाम में बेचना पड़ता है. फिर वही बिचौलियों सरकारी अधिकारियों के साथ सांठगांठ कर उसे सरकारी दामों पर बेच देते हैं.

“यह कालाबाजारी खुले आम होती है. सभी को इस के बारे में पता होता है. यहां तक की सरकार भी इसे जानती है, लेकिन इस पर कार्यावाही करने की जगह कह रही है कि अब हम कालाबाजारी को ही कानूनी कर रहे हैं.”

वे आगे कहते हैं, “यूपी में किसी किसान के लिए बिजली की बड़ी समस्या है. सरकार कहती है कि हम ने गांवगांव तक बिजली पहुंचा दी है, लेकिन यह नहीं बताती कि किस दाम में लोगों को मुहैया करवा रहे हैं. उत्तर प्रदेश में घर के 2 बल्ब और एक पंखा चलाने का बिजली बिल 1500-2000 तक बैठ जाता है. अगर हमारे खेत में साढ़े 7 किलोवाट का ट्यूबवेल का मोटर लगा है तो उस का खर्चा 2400 तक आ जाता है. किसान इतना पैसा कैसे दे पाएंगे?”

ओमवीरजी यहां अपने 7 चौपाली दोस्तों के साथ 27 तारीख को आ गए थे. चौपाल यानी वह जगह जहां गांव के बड़े बुजुर्ग बैठा करते हैं, समय बिताते हैं, जहां वे दीनदुनिया में क्या चल रहा उस पर बातविचार करते हैं, और मजा करते हैं. लेकिन ट्रेक्टर के ऊपर बैठे बुजुर्ग ओमवीर और उन के दोस्तों की मदमस्त हंसने की आवाज यह साफ बता गई कि जगह और समय कोई भी हो, जहां हम यार बैठ जाते हैं, वहां सिक्का हमारा ही चलेगा.
कब वे वहां श्रोता से वक्ता बन गए इस का उन्हें खुद आभास नहीं. वे कहते हैं, “जो हम यहां से से कह रहे हैं वह हमारी पीड़ा है. और यह पीड़ा सब की है, जिसे यहां किसान अपनी आवाज मानते हैं, लेकिन मौजूदा सरकार सुनना नहीं चाहती. हम ने सरकार में मोदी’योगी चुनी है जिन के बाल बच्चन नहीं हैं तो वे क्या जाने कि उन की पढ़ाई कैसी होती है?”

स्वाभिमान के खातिर

3 तारीख को किसानों के नेतृत्व की केंद्र से दुसरे दौर की मीटिंग हुई थी. जाहिर है मीटिंग के दरमियान कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुई, जिस में किसान नेता सरकारी लजीज खाना ठुकरा कर अपने साथ लाए लंगर का खाना खाते दिखे. यह होना भी अपनेआप में एक ऐतिहासिक मिसाल है. इस कारण नहीं कि ऐसा कर के उन्होंने सरकार को अपने इरादों का स्पष्ट जवाब दिया हो, बल्कि इसलिए कि ऐसा कर उन्होंने अपने लोगों के साथ इमानदार होने का वचन दिया. भारत के लोगों को इस बात से यह समझना चाहिए कि एक लंबे समय के बाद ही आंदोलन का ऐसा चेहरा हमारे सामने उभर कर आया है जहां बात स्वाभिमान की हो, नैतिक-अनैतिक की हो, जहां मसला नाक का हो, और विश्वास का हो.

इस आंदोलन को समझने के लिए जरुरी नहीं कि हम शहरी लोगों के लिए यही मात्र एक उदाहरण है. इस के लिए तो दिल्ली के बोर्डरों में स्थित किसी भी चक्केजाम पर जा कर महसूस किया जा सकता है. वहां एकदुसरे के प्रति सेवाभाव और विश्वास साफ देखी जा सकती है. आन्दोलनकारियों ने धरनास्थलों पर एक व्यवस्था बना ली है. मानों अब वे इस का अभ्यस्त हो चुके हैं.

मंच, खानापीना, रजाईकंबल, स्वास्थ्य जांच के लिए डाक्टर यहां तक कि आंदोलन में शामिल होने की शिफ्ट बन चुकी है, मानो वे एकदुसरे को बहुत करीब से जानतेपहचानते हैं. यह दिखाता है कि वे सिर्फ हंगामा खड़ा करने, या हुल्लड़बाजी के लिए नहीं आए हैं बल्कि कोशिश यही कि मौजूदा हालत बदलें.

किसान समस्या गहरी

बिजनौर जिला, अफजलगढ़ के नजदीक गांव सोह्वाला से 44 वर्षीय जशपाल सिंह, अपने 2 बेटों के साथ इस आंदोलन में शुरू के दिन से ही जुड़े हुए हैं. वे लगभग 200 किलोमीटर से यहां पहुंचे हैं. उन से जब पूछा कि अब तो सरकार ने एमएसपी देने का की मांग पूरी कर दी है तो क्या समस्या है.

जशपाल कहते हैं, “हम धरती का सीना चीरना जानते हैं तो एमएसपी छीनना भी, अभी तो यह किसान विरोधी कानून वापस भी लेने होंगे. लेकिन हम छोटे किसानों के लिए एमएसपी का फायदा तभी होगा, जब यह सब जगह लागू होगा. एफसीआई की मंडी में तो हम पहले भी अपनी फसल बेच नहीं पाते थे. लेकिन अब तो लग रहा है जो बचाकूचा हक भी था वो भी छिन्न रहा है. अब किसान अपनी हकों के लिए अदालत का दरवाजा भी नहीं खटखटा सकता. अब अगर उसे कहे मुताबिक़ दाम व्यापारी से नहीं मिलेगा, तो ज्यादा से ज्यादा वह एसडीएम के पास जा सकता है. और इतना तो सब जानते हैं एसडीएम किस की जेब में रहेगा.”

वे आगे कहते हैं, “यह सरकार बेरोजगारी मुक्त, गरीबी मुक्त, अच्छे दिन वाले भारत की बात करते हुए आई थी, लेकिन इस ने तो गरीबों को ही सरकार से मुक्त कर दिया है. सरकार सत्ता में आते कहती है हम ने किसानों का इतना कर्जा माफ़ कर दिया, इतना फंड दे दिया. मेरा कहना यह कि अगर हमें फसल का उचित दाम मिल जाए तो हमें फंड की जरुरत नहीं. बल्कि उल्टा हम हीं सरकार को फंड कर दे देंगे.”

जशपाल के पास अपनी निजी 2 हेक्टयर यानी, सरल हिसाब यह कि 5 एकड़ जमीन है. पिछले वर्ष उन्होंने अपने खेत में मुंजी बोई थी. जिसे पंजाब, हरियाणा और बाकि राज्यों में धान कहा जाता है. अपनी जमीन में उगाई धान में 120 किलो गेहूं बोई. जिस में बीज का खर्चा 4-5 हजार रूपए बैठा. फिर उस के ऊपर पड़ने वाली खाद, जुताई का कुल खर्च 10,000 रूपए का पड़ा. सिंचाई के लिए 20 लीटर डीजल का खर्चा 1000 रूपए पड़ा. और यह सिंचाई 21 दिन बाद और फिर 15 दिन बाद 3 बार करनी पड़ती है. यह तो शुरूआती है, इस के फसल को बेहतर बनाने के लिए यूरिया, जिंक इत्यादि का खर्चा भी अच्छा खासा बेठ जाता है.

यह सब होने के बाद, कटाई, घाई (दाना निकालना), भूसा छंटवाना कई खर्चे हैं. इस के बाद यह पैदावार मंडी में जा कर इतनी कम कीमत पर बिकती है कि 6 महीने की कमाई में बच्चों को पालना मुश्किल हो जाता है. ऊपर से इन सब खर्चों के लिए जगहजगह से कर्जा लेना पड़ता है. अगर कमाई नहीं होगी तो उस कर्जे को चुका कैसे पाएंगे?” यशपाल यह हिसाब बताते हुए हंसते हैं, और मेरी और देख कर कहते हैं, “यह आप नहीं समझोगे. आप शहरी हो.”

अब यह हकीकत है कि किसान आन्दोलन अपना जोर पकड़ चुका है. आगे आने वाले समय में अगर सरकार यूँही किसानों को टालती रही तो यह आंदोलन और भी ज्यादा जोर पकड़ेगा, जिसे सरकार को संभालना मुश्किल होगा. शहरी तबके भी अब किसानों की समस्या को समझते हुए किसानों को समर्थन दे रहा है. छात्र अपनी जिम्मेदारी समझते हुए किसानों के साथ काँधे से कंधा मिलाते देखे जा सकते हैं. सरकार इस पुरे आन्दोलन के चलते बेकफुट पर दिखाई दे रही है.

सरकार द्वारा किसानों पर तमाम कीचड़ उछालने के बाद उलटी किरकिरी होनी शुरू हो चुकी है. दो बार की बैठकें वैसे ही फ़ैल हो चुकी हैं, और तीसरी वार्ता शनिवार को शुरू हुई. किसानों ने सरकार को आगाह कर दिया है अगर बात नहीं मानी गई तो 8 तारीख को भारत बंद कर दिया जाएगा. जाहिर है, समय बढ़ने के साथ किसानों का हुजूम भी तमाम बोर्डरों पर दिखाई दे रहा है और देगा. टीकरी में कथित तौर पर किसानों का रोड ब्लाक बोर्डर से होते हुए बहादुरगढ़ के रास्ते सांपला गांव तक लंबा हो चूका है, जिस की कुल लंबाई 40 किलोमीटर बताई जा रही है. इस पुरे संघर्ष में किसान जरा सा भी पीछे हटने को तैयार नहीं है. लेकिन इस आंदोलन के अंत में जो परिणाम निकले. अंत में सवाल इस आन्दोलन के ऊपर यही खड़ा होगा कि छोटे दर्जे के किसानों को यह आंदोलन क्या बदलाव दे पाया?

यह कैसा इंसाफ : पूनम और मोहित दोनों को मिली सजा

14 साल की पूनम ने हाईस्कूल की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर ली थी और आगे की पढ़ाई के लिए उसी स्कूल में 11वीं का फार्म भर दिया था. बोर्ड की परीक्षा पास करने के बाद दूसरे स्कूलों के स्टूडेंट भी पूनम के स्कूल में एडमिशन के लिए आए थे. पूनम की कक्षा में कई नए छात्र थे.

हमारी जिंदगी में रोजाना कई चेहरे आते हैं और बिना कोई असर छोड़े चले जाते हैं. लेकिन जिंदगी के किसी मोड़ पर कोई ऐसा भी आता है, जिस की एक झलक ही दिल की हसरत बढ़ा देती है. कुछ ऐसा ही पूनम के साथ भी हुआ था.

उस की क्लास में मोहित ने भी एडमिशन लिया था. पूनम की उस से दोस्ती हुई तो कुछ ही दिनों में वह उसे दिल दे बैठी थी. फतेहपुर की पूनम और नूरपुर के मोहित दो अलगअलग गांवों में पलेबढ़े थे. लेकिन उन का स्कूल एक ही था और यहीं दोनों ने एकदूसरे से कुछ वादे किए.

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पहले तो दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं होती थी, सिर्फ नजरें मिलने पर मुसकरा कर खुश हो जाया करते थे, लेकिन जल्द ही मोहब्बत के अल्फाजों ने इशारों की जगह ले ली जो एक नया एहसास दिलाने लगे. पहली नजर में किसी को प्यार होता है या सिर्फ चंद दिनों की चाहत होती है, इस का नतीजा निकालना थोड़ा मुश्किल होता है. लेकिन कुछ नजरें ऐसी भी होती हैं जो दिलों में हमेशा के लिए मुकाम बना लेती हैं.

पूनम ने अपने प्यार का पहले इजहार नहीं किया था, क्योंकि वह प्यारमोहब्बत के चक्कर में नहीं पड़ना चाहती थी. लेकिन कभीकभी ऐसा होता है कि जो न चाहो वही होता है. पूनम भी इसी चाहत का शिकार हो गई और मोहित से दिल के बदले दिल का सौदा कर बैठी.

पूनम और मोहित का प्यार भले ही 2 नाबालिगों का प्यार था, लेकिन उन के प्यार में पूरा भरोसा  और यकीन था. उसी प्यार की गहराई में डूब कर पूनम सब कुछ छोड़ कर मोहित का हाथ थामे प्यार में गोते लगाती चली गई.

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2 प्यार करने वाले भले ही ऊंचनीच, दौलत शोहरत न देखें, लेकिन घर और समाज के लोग यह सब जरूर देखते हैं. इसी ऊंचनीच के फेर में दोनों बुरी तरह फंस कर उलझ गए. पूनम सवर्ण थी तो मोहित दलित परिवार से ताल्लुक रखता था.

पूनम का भरापूरा परिवार जरूर था, जिस में मांबाप और बड़े भाई साथ रहते थे. लेकिन उसे कभी घर वालों का प्यार नहीं मिला. आए दिन छोटीछोटी गलतियों की वजह से उसे मारपीट और गालीगलौज के दौर से गुजरना होता था. ये सब कुछ वह चुपचाप बरदाश्त करती थी.

लेकिन उसे इस बात की खुशी थी कि स्कूल में उसे मोहित का प्यार मिल रहा था. मोहित को देखते ही उस का सारा दुखदर्द छूमंतर हो जाता था. एक दिन उस ने मोहित से अपने साथ की जाने वाली मारपीट की पूरी बात बताई. उस की कहानी सुन कर मोहित द्रवित हो गया. बाद में एक दिन पूनम और मोहित घर से भाग गए.

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जिस समय मोहित और पूनम घर से भागे, उस वक्त दोनों नाबालिग थे. पहले तो दोनों के घर वालों ने भागने की बात को छिपा लिया, लेकिन उसे कब तक छिपाए रखते. कहते हैं कि दीवारों के भी कान होते हैं. देखते ही देखते यह बात पूनम के गांव से होते हुए मोहित के गांव तक जा पहुंची.

अब हर ओर उन्हीं दोनों की चर्चा हो रही थी. कुछ लोग इसे सही ठहरा रहे थे, जबकि कुछ का यह कहना भी था कि मोहित ने ठीक किया. इस से पूनम के घर वाले अब समाज में सिर उठा कर नहीं बोल सकेंगे. बड़ी दबंगई दिखाते थे. बेटी ने नाक कटवा कर सारी दबंगई निकाल दी.

अफवाहों के भले ही पर नहीं होते, लेकिन परिंदों से भी ज्यादा तेजी से उड़ती हैं. आसपास के गांवों में पूनम और मोहित के भागने की खबर फैल गई. आखिर पूनम के घर वालों ने पुलिस थाने में जा कर मोहित के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी. इस के बाद पुलिस उन दोनों को तलाश करने लगी. लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली. पुलिस वालों ने दूसरे जिलों के थानों में भी खबर कर दी थी.

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काफी दिन बाद पूनम और मोहित दिल्ली पुलिस को मिल गए. दिल्ली पुलिस ने उन की गिरफ्तारी की सूचना संबंधित थाने को दे दी तो उस थाने की पुलिस दोनों को अपने साथ ले गई. क्योंकि पूनम के पिता मोहित के खिलाफ पहले ही पूनम को भगाने और रेप की एफआईआर दर्ज करवा चुके थे.

पुलिस के हत्थे चढ़ने पर पूनम मोहित को ले कर बहुत परेशान थी क्योंकि उसे मालूम था कि उस के घर वाले पुलिस से मिल कर मोहित के साथ क्या करवाएंगे. इस के अलावा उस की जिंदगी भी घर में नरक बन जाएगी. यही सोचसोच कर पूनम रो रही थी क्योंकि उस के बाद जो होना था, उस का उसे अंदाजा था.

मोहित को पुलिस ने हवालात में डाल दिया और पूनम को उस के घर वालों के सुपुर्द कर दिया. जबकि वह उन के साथ नहीं जाना चाहती थी. वह मोहित के साथ ही रहना चाहती थी. लेकिन मजबूर थी. क्योंकि उन लोगों ने मोहित के खिलाफ मामला दर्ज करवा दिया था.

घर पहुंच कर पिता और भाई ने पूनम को जम कर पीटा और उसे धमकाया कि अगर उस ने कोर्ट में मोहित के खिलाफ बयान नहीं दिया तो उसे और मोहित को जान से मार डालेंगे. पूनम घर वालों की धमकियों से बहुत डर गई. लेकिन अपने लिए नहीं, बल्कि मोहित के लिए वह घर वालों के कहे अनुसार बयान देने को राजी हो गई.

घर वालों ने पूनम को दबाव में ला कर कोर्ट में जबरदस्ती बयान दिलवाया कि मोहित उसे जबरदस्ती भगा कर ले गया था और उस ने उस के साथ रेप भी किया था.

पूनम के लिए यह बहुत बुरा दौर था. उसे उसी के पति के खिलाफ झूठी गवाही के लिए मजबूर किया जा रहा था. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसे प्यार करने की इतनी बड़ी सजा क्यों दी जा रही है. एक तरफ पूनम अपने घर में ही रह कर बेगानी थी तो वहीं दूसरी तरफ मोहित पर पुलिस का सितम टूट रहा था.

जब पूनम और मोहित घर से भागे थे, तभी उन्होंने शादी कर ली थी. पुलिस ने जब दोनों को दिल्ली से पकड़ा तब मोहित बालिग हो चुका था, जबकि घर से भागे थे तब दोनों नाबालिग थे. पुलिस ने मोहित को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

पूनम के घर वालों ने पुलिस से सांठगांठ कर के मोहित पर अत्याचार करवा कर अपनी बेइज्जती का बदला तो लिया ही साथ ही अपना प्रभाव भी दिखाया.

पूनम के घर वालों में से कोई भी उस के साथ हमदर्दी तक नहीं दिखा रहा था. इस दुनिया में मां ही ऐसी होती है, जिसे अपने बच्चों से सब से ज्यादा प्यार होता है. लेकिन उस की मां सरिता एकदम पत्थरदिल हो गई थी. उसे अपनी बेटी की जरा भी परवाह नहीं थी.

अगर परवाह थी तो अपने परिवार की इज्जत की, जो पूनम ने सरेबाजार नीलाम कर दी थी. बल्कि सरिता तो उसे ताने देते हुए यही कह रही थी कि अगर उसे प्यार ही करना था तो क्या दलित ही मिला था. क्या बिरादरी में सब लड़के मर गए थे. यही बात सोचसोच कर उस की आंखों में शोले भड़कने लगते थे.

करीब 5 महीने बाद मोहित के केस की सेशन कोर्ट में काररवाई शुरू हुई तो हर सुनवाई से पहले पूनम को उस के घर वाले समझाते कि उसे कोर्ट में क्या बोलना है और क्या नहीं बोलना. बाप और भाई के रूप में राक्षसों के जुल्मोसितम के आगे पूनम ने घुटने टेक दिए थे. उस से जो कहा जाता वही वह अदालत में कहती. ये पूनम की गवाही का ही नतीजा था कि मोहित को हाईकोर्ट से जमानत मिलने में 22 महीने लगे.

मोहित जब जमानत पर जेल से बाहर आया तो किसी तरह पूनम को भी उस की खबर लग गई. वह मोहित को एक नजर देखने के लिए बेकरार हो गई. लेकिन उस के लिए मिलना तो नामुमकिन सा था. पूनम को मोहित के घर वालों का नंबर अच्छी तरह से याद था. एक दिन अकेले कमरे में किसी तरह से मोबाइल ले कर उस ने नंबर डायल कर दिया. दूसरी ओर फोन की घंटी बज रही थी, लेकिन उस से तेज पूनम के दिल की धड़कनें बढ़ चुकी थीं.

वह यही चाह रही थी कि मोहित ही फोन रिसीव करे तो अच्छा रहेगा. आखिर उस की आरजू पूरी हुई और मोहित ने ‘हैलो’ बोला, जिसे सुन कर पूनम सुधबुध खो बैठी. कई बार उधर से हैलो की आवाज से उसे होश आया और रुंधे गले से सिर्फ लरजती आवाज में बोल पाई मोहित. मोहित उस की आवाज को पहचान गया और ‘पूनम पूनम’ कह कर चीख पड़ा.

खैर, उस दिन दोनों के बीच थोड़ी बातचीत हुई. इस के बाद एक बार फिर से पहले की तरह सब कुछ चलने लगा. फोन पर बातें होती रहीं और दोनों ने एक बार फिर पहले की तरह साथ रहने का फैसला कर लिया. तय वक्त पर पूनम और मोहित दोबारा घर से भाग गए और गांव से दूर आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली, जिस का उन्हें प्रमाणपत्र भी मिला. पहले जब उन्होंने शादी की थी, उस समय वे नाबालिग थे.

उन्होंने शादी तो कर ली, लेकिन पूनम के घर वालों ने उसे हमेशा के लिए छोड़ दिया. क्योंकि उस ने दोबारा से उन्हें समाज में मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा था. काफी अरसे तक पूनम ने अपने घर वालों से कोई बातचीत नहीं की, जबकि मोहित के घर वालों ने उन दोनों को अपना लिया था.

पूनम मोहित के घर पर ही रह रही थी. मोहित के पिता की मौत पहले ही हो चुकी थी. अब घर में सास और एक ननद थी. उन के बीच ही वह हंसीखुशी से रह रही थी. पूनम को अब एक खुशी मिलने वाली थी, क्योंकि वह मां बनने वाली थी. उस ने एक खूबसूरत बच्ची को जन्म दिया, जिस से पूरा घर खुश था. अब सब सामान्य था लेकिन उस का एक जख्म भरता नहीं था कि दूसरा बन जाता था.

अभी उस की मासूम बच्ची ने सही तरह से आंखें भी नहीं खोली थीं कि उस के ऊपर मुसीबतों का एक और पहाड़ टूट पड़ा. हुआ यूं कि मोहित पर पहले का जो केस चल रहा था, उस का फैसला आ गया, जिस में सेशन कोर्ट ने मोहित को 7 साल की सजा और 5 हजार रुपए जुरमाने का आदेश दिया.

इस फैसले से पूनम के पैरों तले से जैसे जमीन ही खिसक गई. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि जब मोहित से उस ने शादी कर ली और वह बालिग भी है, तब क्यों ऐसा फैसला आया. इस से तो हमारा पूरा परिवार ही बिखर जाएगा. उस ने कोर्ट में इंसानियत के नाते मोहित को छोड़ने की गुजारिश की, पर कोई लाभ नहीं मिला.

पूनम को अपनी बेटी पर बड़ा तरस आ रहा था, जिसे बिना किसी कसूर के इतनी बड़ी सजा मिल रही है, जो उसे 7 सालों तक बाप के प्यार से दूर रहना पड़ेगा. इस दुधमुंही की क्या गलती थी, जो इसे हमारे किए की सजा मिलेगी.

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