लेखक- रोहित और शाहनवाज

दिल्ली की सीमाओं पर जहां एक तरफ विभिन्न राज्यों के किसान विवादित कृषि कानूनों के रिपील को लेकर पिछले 85 दिनों से लगातार आंदोलनरत है वहीं इसी बीच पंजाब में निकाय चुनाव हुए जिसका जरूरी शोर मचते मचते तमाम बड़े मीडिया संस्थानों द्वारा दबा दिया गया.

वैसे तो चर्चा हमेशा जीतने वाले पक्ष की गर्म होती है लेकिन इस बार मसला अलग है. जून 2020 में कृषि कानूनों के अध्यादेश आने के बाद से ही पंजाब में भारी उथल-पुथल चल रही है. जिसका संभावित नतीजा निकाय चुनाव में साफ तौर पर माना जा रहा है. भाजपा का सूपड़ा ऐसा साफ हुआ कि जिन इलाकों में वह जीतती भी थी इस बार वह बिल्कुल ही गायब हो चुकी है. मसलन इन निकाय चुनाव में भाजपा और अकाली दल की जो दुर्दशा हुई है वह छुपाए भी नहीं छुप रही.

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पंजाब नगर निगम चुनावों में 14 फरवरी को सात नगर निगम, 109 नगर परिषद और नगर पंचायतों के तहत 2302 वार्डों का चुनाव कराया गया था. इस चुनाव का नतीजा यह रहा कि कांग्रेस सभी 7 नगर निगमों में चुनाव जीत चुकी है, जिस में मुख्य रुप से मोगा, होशियारपुर, कपूरथला, बठिंडा, पठानकोट, बटाला और अबोहर शामिल है. 18 फरवरी को मोहाली नगर निगम के चुनाव के रिजल्ट भी कांग्रेस के पक्ष में रहे. मोहाली में 50 में से 33 सीटें कांग्रेस ने जीती और बाकी 13 सीटें निर्दलीयों के खाते में गई. बता दे कि यह सभी बड़ी-बड़ी म्युंसिपल कॉरपोरेशन है जिसको जीतने का सपना हर राजनीतिक दल करती रहती है.

गौरतलब है कि यह वही मीडिया और सत्ता के लोग हैं जो कुछ दिन पहले हैदराबाद निकाय चुनाव में भाजपा की कुछ सीटें अधिक जीत लेने के बाद खुशी से फूले नहीं समा रहे थे लेकिन अब भाजपा की इतनी बड़ी हार के बाद वहां इतनी शांति पसर चुकी है जैसे कुछ हुआ ही ना हो.

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देखा जाए तो हैदराबाद के निकाय चुनाव में भाजपा के शीर्ष नेता गन से लेकर छोटे-मोटे मंत्री संत्री ने अपना चुनाव में पूरा जोर लगा दिया था और और जय श्री राम का नारा लगाते नहीं थक रहे थे लेकिन मानो पंजाब के इस निकाय चुनाव में वही बड़े-बड़े मंत्री और छोटे-छोटे संत्री को सांप सूंघ गया हो.

जेपी नड्डा से लेकर अमित शाह और बाकी जिम्मेदार भाजपा के नेता अपने इंटरव्यू में हर चुनाव के हार जीत का विश्लेषण करते हैं. लेकिन इतनी बड़ी हार के बाद वह अभी तक जिम्मेदारी लेने के लिए आगे नहीं आ पाए हैं. यहां तक कि वह इस मिली करारी हार की वजह तक नहीं बता पाए हैं. जिस तरह के रिजल्ट सामने आए हैं वह भाजपा की राजनीतिक नीतियां और आर्थिक नीतियों पर बड़े सवालिया निशान मौजूदा समय पर खड़ा करते हैं. क्या इस हार की वजह सिर्फ नए विवादित कृषि कानून है? या फिर क्या इस हार की वजह वह जय श्री राम का नारा है जो पंजाब में नहीं लग पाया? या फिर वह तमाम आर्थिक नीतियां है जिसे झेलने और सहने के लिए पंजाब का व्यापारी, किसान, ठेलेवाला, गरीब, छात्र, मजदूर, महिलाएं, बुजुर्ग अब बिल्कुल भी तैयार नहीं है.

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वजह चाहे जो भी हो यह तभी पता चलेगा जब जमीन पर इन सवालों को लेकर जाया जाए यही कारण है कि हम ग्राउंड जीरो पर उतर कर उन सभी चीजों को खंगालने की कोशिश कर रहे हैं जो मीडिया के कैमरों से और गजजाते माइक से छुप जाते हैं. इसी कड़ी में हम दिल्ली से लगभग 385 किलोमीटर दूर पंजाब के होशियारपुर जिले की तरफ निकले हैं जहां के फिगर भाजपा की राजनीतिक चाहत को सूट तो करते हैं लेकिन इस के परिणाम भाजपा की उम्मीद से कई गुना बुरे निकले.

बता दें कि होशियारपुर वह सीट है जहां से बीजेपी के पूर्व कैबिनेट मंत्री तीक्ष्ण सूद की पत्नी हार गई है. इसके साथ ही यह वही होशियारपुर है जो बीजेपी सांसद तथा केंद्रीय मंत्री सोम प्रकाश का संसदीय क्षेत्र है. एक लिहाज से देखा जाए तो यह भाजपा का एक मजबूत किला रहा है.किंतु यहां भाजपा और उसके पूर्व सहयोगी रहे अकाली दल एक भी सीट हासिल नहीं कर पाई. दिलचस्प बात यह है कि इस नगर निगम होशियारपुर में 2015 में हुए निकाय चुनाव में भाजपा और अकाली दल ने मिलकर 50 में से कुल 27 सीटें जीती थी और कांग्रेस मात्र 17 सीटें ही हासिल कर पाई थी. इस बार कांग्रेस 41 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत में है वही भाजपा और अकाली दल का खाता तक नहीं खुला है.

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होशियारपुर पंजाब की वह जगह है जिसे समझना बहुत जरूरी भी है. देखा जाए तो सन 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की कुल आबादी 1,68,443 है. यहां हिंदुओं की आबादी बहुसंख्यक है जिसका कुल प्रतिशत 75.6% है वही दूसरे नंबर पर सिख समुदाय के लोग हैं जिनका कुल प्रतिशत 21.45% है. वही मुस्लिम 0.78% है. इस चित्र में बीजेपी की यह हार कई बड़े सवालों को खड़ा करती है. यह हार उनकी कोर हिंदूवादी राजनीति पर भी चोट करती है जिसकी राजनीति वह करा करती है.

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