Download App

शायद कुछ नया मिलेगा: विजय घर आएं मेहमान की तारीफ क्यों कर रहा था- भाग 1

विजय अपने किसी जानपहचान वाले की तारीफ करते हुए कह रहा था, ‘‘बड़े दिलदार इंसान हैं हमारे ये भाईसाहब. राजा हैं राजा. बहुत बड़े दिल के मालिक हैं. जेब में चाहे 50 रुपए ही हों, खर्चा 500 का कर देते हैं. मेहमाननवाजी में कभी कोई कमी नहीं करते. बड़े शाही स्वभाव के हैं.’’

मैं समझ नहीं पा रहा था. वह उन के जिस गुण की तारीफ कर रहा था क्या वह वास्तव में तारीफ के लायक था. कहीं वही पुराना अंदाज ही तो नहीं दिखा रहा विजय?

‘‘अभी कुछ दिन पहले ही इन के बेटे की शादी हुई है. इन्होंने दिल खोल कर खर्चा किया. औफिस में सब को खूब शराब पिलाई. खाने पर खूब खर्चा किया. सभी वाहवाह करते हैं.’’

‘‘जी,’’ बढ़ कर हाथ मिला लिया मैं ने, ‘‘आप किस जगह काम करते हैं, क्या करते हैं, मतलब आप अपना ही कारोबार करते हैं या किसी नौकरी में हैं?’’

‘‘इन का अकाउंट्स का काम है, साहब. डी पी मेहता का नाम सुना होगा आप ने. वह इन्हीं की फर्म है.’’

एक लौ फर्म का नाम बताया मुझे विजय ने. उस व्यक्ति को देख कर ऐसा नहीं लगा मुझे कि वह इतनी बड़ी लौ फर्म का मालिक होगा. एक मुसकान का आदानप्रदान हुआ और वे साहब विदा ले कर चले गए. विजय के साथ अंदर आ गया मैं. विजय मेरा साढ़ू भाई है.

‘‘आइए, जीजाजी,’’ सौम्या मेरी आवाज सुनते ही चली आई थी. दीवाली का तोहफा ले कर गया था मैं.

‘‘दीदी ने क्या भेजा है, इस बार मठरी और बेसन की बर्फी तो नहीं बनाई होगी. दीदी के हाथ में दर्द था न.’’

‘‘बनाई है बाबा, और आधे से ज्यादा काम मुझ से कराया है तुम्हारी दीदी ने. अब यह मत कहना सब दीदी ने बनाया है. सारी मेहनत मेरी है इस बार. बेसन में कलछी भी मैं ने घुमाई है और मैदे में मोयन डाल उसे भी मैं ने ही मला है.’’

मैं ने जरा सा बल डाला माथे पर, सच बताया तो बड़ीबड़ी आंखें और भी बड़ी कर लीं सौम्या ने. मेरे हाथ से डब्बा झपट लिया, ‘‘क्या सच में?’’

सौम्या का सिर थपक दिया मैं ने, ‘‘जीती रहो. और सुनाओ, कैसी हो?’’

‘अच्छी हूं’ जैसी अभिव्यक्ति उभर आई सौम्या के गले लगने में. सौम्या का माथा चूमा मैं ने. मेरी छोटी बहन जैसी है सौम्या, मेरी बेटी जैसी.

‘‘और सुनाइए, आप कैसे हैं? इस बार बहुत देर बाद मुलाकात हुई है. फोन पर बात होती है तब भी कभी बाथरूम में होते हैं, कभी पता नहीं कहां होते हैं आप?’’ विजय से पूछा. मैं ने कोई उत्तर नहीं दिया. बस, मुसकराभर दिया. अभी जो बाहर किसी की तारीफ में इतने पुल बांध रहा था. मेरे सामने, अब चुप था.

सौम्या झट से चाय बना लाई और प्लेट में इडलीसांभर.

‘‘भई वाह, तुम्हारे हाथ के इडलीसांभर का जवाब नहीं.’’

‘‘तुम्हारे मायके वाले पहले हलवाई का काम करते थे क्या? तुम दोनों बहनों को हर पल इन्हीं कामों की ही लगी रहती है. बाजार में क्या नहीं मिलता. सोहन हलवाई के पास अच्छी से अच्छी मिठाई मिलती है. 200 रुपए किलो से शुरू होती है 1000 रुपए किलो तक जो चाहो ले लो. पैसा खर्च करो, क्या नहीं मिलता.’’

सदा की तरह का रवैया था विजय का इस बार भी. उस ने इस बार भी जता दिया था, हमारा परिवार कंजूस है. हम रुपयापैसा खर्च करने में पीछे हटते हैं.

‘‘सोहन हलवाई की मिठाई में मेरी बहन के हाथ का प्यार नहीं है न, जिस की कीमत उस की 1000 रुपए किलो मिठाई से कहीं ज्यादा है.’’

‘‘अपनीअपनी सोच है, विजयजी. मैं आप की सोच को गलत नहीं कहता. आप मेरी सोच का सम्मान कीजिए. अगर इन बहनों को 1000 रुपए किलो वाली चीज 400 रुपए खर्च कर के घर में मिल जाती है तो 600 रुपए भी तो हमारा ही बचता है न. मेरी पत्नी अपने कपडे़ खुद डिजाइन करती है. जो सूट बाजार में 2000 का आता है उसे वह 700 रुपए में बना लेती है, 1300 रुपए किस के बचते हैं, मेरे ही घर के न. मुझे इतनी सुरक्षा अवश्य रहती है कि समय पर मुझे जो चाहिए, इस की दीदी अवश्य हाजिर कर देगी.

‘‘तभी झट से निकाल देगी न जब उस के पास होगा, होगा तभी जब वह अपनी मेहनत से बचाएगी. हमें इतनी मेहनती जीवनसाथी मिली है, आप को इस बात का सम्मान करना चाहिए. जेब में 100 रुपया हो और इंसान 50 का खर्चा करे, इस में समझदारी है या जेब में 50 रुपया हो और इंसान 500 का खर्च करे, इस में समझदारी है? क्या ऐसा इंसान हर पल कर्ज में नहीं डूबा रहेगा? ये जो साहब अभी गए जिन की आप तारीफ कर रहे थे, क्या सच में डी पी मेहता लौ फर्म वाले ही हैं?’’

‘‘कौन, जीजाजी?’’ सौम्या का प्रश्न था.

किसान आंदोलन : दिल्ली बॉर्डर पर सौ दिन

छह मार्च को दिल्ली बॉर्डर पर तीन नए कृषि कानूनों की वापसी और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनाने की मांग को लेकर धरने पर किसानों के बैठने के सौ दिन पूरे हो जाएंगे. कड़कड़ाती सर्दी, बारिश और अब तेज़ धूप व गर्मी की मार, लेकिन अपने घरबार छोड़ के परिवार सहित सीमा पर डटें किसानों का मनोबल अब भी ऊंचा है. उम्मीद है कि लड़ाई जीत कर ही घर वापसी करेंगे. मोदी सरकार के ढीठपन से आखिरी दम तक लड़ेंगे और अपनी मांगे मनवा कर ही मानेंगे.

सिंधु बॉर्डर पर बीते कुछ दिनों से काफी गहमागहमी है. किसान यूनियनों के बीच सरकार को घेरने की नयी रणनीतियों पर विचार विमर्श जारी है. दिल्ली की सीमा पर बैठने के सौ दिन पूरे होने पर किसान नेताओं द्वारा छह मार्च से सरकार पर दबाव बनाने के लिए कई नए कार्यक्रमों की घोषणा हो गयी है. संयुक्त किसान मोर्चा ने ऐलान किया है कि 6 मार्च को दिल्ली व दिल्ली बोर्डर्स के विभिन्न विरोध स्थलों को जोड़ने वाले केएमपी एक्सप्रेसवे पर 5 घंटे की नाकाबंदी की जाएगी. सुबह 11 से शाम 4 बजे के बीच जाम किया जाएगा और ट्रैफिक की आवाजाही पूरी तरह ठप्प कर दी जाएगी. यहां टोल प्लाजा को टोल फीस जमा करने से भी मुक्त कर दिया जाएगा.

ये भी पढ़ें- दुविधा मकान मालिक की

इसी के साथ पूरे भारत में, आंदोलन को समर्थन के लिए, और सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के लिए, घरों और कार्यालयों पर काले झंडे लहराए जाएंगे. संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रदर्शनकारियों को उस दिन काली पट्टी बांधने का आह्वान भी किया है.

8 मार्च को महिला दिवस के अवसर पर संयुक्त किसान मोर्चा महिला किसान दिवस मनाएगा. इस दिन हरियाणा-पंजाब-उत्तर प्रदेश के गाँव से महिला किसानों का जमावड़ा दिल्ली की सीमा पर लगेगा. सभी सयुंक्त किसान मोर्चे के धरना स्थल 8 मार्च को महिलाओ द्वारा संचालित होंगे. इस दिन महिलाएं ही मंच प्रबंधन करेंगी और वही वक्ता होंगी. संयुक्त किसान मोर्चा के प्रमुख योगेंद्र यादव का कहना है कि 8 मार्च को महिला संगठनों और अन्य लोगों को भी हम बॉर्डर पर आमंत्रित करेंगे. यही नहीं हम चाहेंगे कि वे किसान आंदोलन के समर्थन में इस तरह के कार्यक्रम करें और देश में महिला किसानों के योगदान को उजागर करें.

ये भी पढ़ें- लालची बच्चों से अपनी संपत्ति बचाएं बुजुर्ग माता-पिता

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर 15 मार्च 2021 को ‘निजीकरण विरोधी दिवस’ का समर्थन करते हुए सयुंक्त किसान मोर्चा द्वारा विरोध प्रदर्शन किए जाएंगे. संयुक्त किसान मोर्चा इस दिन को ‘कॉरपोरेट विरोधी’ दिवस के रूप में देखते हुए ट्रेड यूनियनों के इस आह्वान का समर्थन करेगा, और एकजुट होकर निजीकरण के खिलाफ प्रदर्शन होगा.

किसान नेताओं ने अब पूरे देश में भाजपा के खिलाफ प्रचार की मुहिम छेड़ने का मन बना लिया है. आने वाले चंद महीनो में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. किसानों का मुद्दा आज पूरे देश में गर्म है. मोदीनीत भाजपा सरकार का किसानों के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैय्या पूरी दुनिया देख रही है. किसान आंदोलन को विदेशों से समर्थन मिल रहा है. विदेशी अखबार किसानो के मुद्दे पर भारत सरकार की भर्त्सना कर रहे हैं. ऐसे में अब आंदोलन को और मुखर रूप देते हुए किसान नेताओं ने पूरे देश में घूम घूम कर भाजपा के खिलाफ प्रचार करने का मन बना लिया है. संयुक्त किसान मोर्चा ने ऐलान किया है कि जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हाल ही में होने हैं, उन राज्यों में किसान नेता भारतीय जनता पार्टी की किसान-विरोधी, गरीब-विरोधी नीतियों को दंडित करने के लिए जनता से अपील करेंगे. भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधि भी उन सभी राज्यों का दौरा करेंगे और विभिन्न कार्यक्रमों के जरिये जनता से भाजपा को वोट ना देने का आह्वान करेंगे. बंगाल में 12 मार्च को किसानों की विशाल रैली होगी. बंगाल समेत उन सभी राज्यों में संयुक्त किसान मोर्चा भाजपा का विरोध करेगा जहां कुछ की समय बाद चुनाव होने हैं.

ये भी पढ़ें- माता-पिता की मानें लेकिन आंखें और दिमाग खोलकर

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसानों ने भाजपा नेताओ का बॉयकॉट किया. किसान नेताओं ने कहा – हम सरकार को चेतावनी देते है कि अगर सरकार इन कानूनों को वापस नहीं लेती है और एमएसपी पर कानून नहीं बनाती है तो भाजपा नेताओ का देशभर में बॉयकॉट किया जाएगा.
इसके अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर भी किसानों की रणनीति बन चुकी है. संयुक्त किसान मोर्चा के डॉ. दर्शन पाल के मुताबिक किसान पूरे भारत में ‘एमएससपी दिलाओ’ अभियान शुरू करेंगे.  इस अभियान के तहत विभिन्न बाजारों में किसानों की फसलों की कीमत की वास्तविकता को दिखाया जाएगा, जो मोदी सरकार व एमएसपी के झूठे दावों और वादों को उजागर करेगा. बाज़ार में उपलब्ध उत्पादों के रेट और किसान से प्राप्त उत्पादों के रेट का तुलनात्मक वीडियो बनाये जाएंगे. बड़े व्यवसायी अनाज, सब्ज़ी, फल, मसाले, दालें, तिलहन आदि कितनी कम कीमतों पर किसान से खरीदते हैं और कितने ऊंचे दामों पर जनता की रसोई तक पहुंचाते हैं इसका कच्चाचिट्ठा खोलने के लिए हज़ारों वीडियो तैयार होंगे और सोशल मीडिया पर वायरल किये जायेगे. यह अभियान दक्षिण भारतीय राज्यों कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से शुरू किया जाएगा और फिर पूरे देश में किसानों को इस अभियान में शामिल किया जाएगा.

गौरतलब है कि संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्र सेवा दल संगठन ने तीन कृषि कानून रद्द करने की मांग को लेकर पूरे महाराष्ट्र में हस्ताक्षर अभियान चलाया था. इसमें अब तक 6 लाख 75 हजार लोगो ने इन कानूनों को रद्द करने के लिए अपने हस्ताक्षर दिए हैं. इस पत्र को महाराष्ट्र के राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी को सौंपा जा चुका है. अब आगामी 15 मार्च को हसन खान मेवाती की शहादत दिवस पर संयुक्त किसान मोर्चा के तत्वाधान में झिरका में बड़ी किसान पंचायत के आयोजन की तैयारी है जिसमें संयुक्त किसान मोर्चा के नेता शामिल होंगे ओर मेवात की कई बड़ी शख्सियतें शिरकत करेंगी.

गौरतलब है कि किसान संगठन अब केंद्र सराकर के खिलाफ एक बार फिर अपना आंदोलन तेज कर रहे हैं. संयुक्त किसान मोर्चा किसानों को संगठित करने की कोशिश कर रहा है. हाल ही में मोर्चा ने गुरु रविदास जयंती और शहीद चंद्रशेखर आजाद के शहीदी दिवस पर ‘मजदूर किसान एकता’ दिवस भी मनाया था. इस दौरान नगर कीर्तन भी निकाला गया था. संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर दिल्ली की सभी सीमाओं पर मजदूर व मजदूर संगठनों ने इस आयोजन में भागीदारी की थी. देशभर के अनेक मजदूर संगठनों ने किसानों के संघर्ष को जरूरी ठहराते हुए इसे अपना समर्थन दिया था. मजदूर संगठनों ने एक सयुंक्त बयान जारी कर किसानों के संघर्ष की हिमायत की है और मजदूर किसान एकता दिवस को समर्थन दिया है.

निकाह के 4 महीने बाद मुंबई में दिखी सना खान, फैंस ने किया ये कमेंट

निकाह के बाद सना खान को पहली बार पब्लिकली स्पॉट किया गया है. वह मुंबई के अंधेरी इलाके में नजर आई . वह कार से उतरी और फोटोग्राफर को हाथ हिलाते हुए आगे बढ़ गई. सना खान ने इस दौरान ब्लैक रंग का हिजाब पहना हुआ था, साथ में उन्होंने हाई हिल्स भी कैरी किया था.

आपको बता दें कि सना खान ने अक्टूबर 2020 में बॉलीवुड छोड़ने का एलान किया हुआ था. कहा था कि वह अल्लाह के बताए रास्ते पर चलना चाहती हैं. इसके तुरंत बाद सना खान ने 8 नवंबर को शादी करके फैंस को दूसरा झटका दिया था.

ये भी पढ़ें- टीवी अदाकारा क्रिस्टल डिसूजा और भारती सिंह का ‘नानईसुनना’’

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Viral Bhayani (@viralbhayani)


उन्होंने अपनी पहली वेडिंग पोस्ट केक काटते हुए शेयर किया था. जिसमें उनके साथ उनके पति भी नजर आ रहे थें. इसके बाद उन्होंने खुलासा किया था कि वह अनस  सैयद से निकाह कर चुकी हैं.  जो की सूरत में मुफ्ती हैं. जिसके बाद उन्होंने अपने शादी का वीडियो शेयर किया था.

ये भी पढ़ें- पार्थ समथान शॉकिंग खुलासा, एकता कपूर की वजह से छोड़ा था ‘कसौटी

इन दोनों ने हनीमून मनाते हुए अपना वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया था. जिसमें दोनों साथ में खूब एजॉय करते हुए नजर आ रहे थें. सना खान ने कई बॉलीवुड की फिल्मों में काम किया हुआ है, जैसे कि टॉयलेट एक प्रेम कथा और वजह तुम हो इसके अलावा भी इन्होंने कई फिल्मों में काम किया है.

ये भी पढ़ें- बिग बॉस के एक्स कंटेस्टेंट को हुआ कोरोना, लोगों से की ये अपील

बता दे कि सना खान का अफेयर इससे पहले कोरियोग्राफर मेल्विन लुईस के साथ था. जहां दोनों एक-दूसरे को खूब पसंद करते थें, लेकिन दोनों ने मार्च 2020 में ब्रेकअप कर लिया था.

श्रद्धा कपूर ने अपने जन्मदिन पर पापा शक्ति कपूर से मांगा ऐसा गिफ्ट, हर कोई होगा इंस्पायर

बॉलीवुड एक्ट्रेस श्रद्धा कपूर इन दिनों मालदीव में अपने चचेरे भाई प्रियांक शर्मा की डेस्टिनेशन वेडिंग एजॉय कर रही हैं.  श्रद्धा कपूर अपना जन्मदिन भी वहीं मनाएंगी इस बात का खुलासा उन्होंने खुद ही किया है.

वहीं श्रद्धा कपूर के पिता ने इस बात का खुलासा किया है कि उनकी बेटी उनसे जन्मदिन पर क्या तोहफा चाहती हैं. जिसे जानने के बाद सभी फैंस श्रद्धा कपूर की तारीफ करते नहीं थक रहे हैं.

ये भी पढ़ें- टीवी अदाकारा क्रिस्टल डिसूजा और भारती सिंह का ‘नानईसुनना’’

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Shraddha ✶ (@shraddhakapoor)

दरअसल, श्रद्धा कपूर अपने पिता से जन्मदिन पर बाकी लोगों की तरह कार और बंग्ला नहीं चाहती हैं, वह चाहती हैं  कि उनके पिता स्मोकिंग करना छोड़ दें. जिसे जानने के बाद उनके पिता शक्ति कपूर ने खुशी जताई हैं. वहीं आपको बता दें कि श्रद्धा कपूर इस साल 34 साल की हो जाएंगी और बात कि जाए उनकी शादी की तो फिलहाल कोई इरादा नहीं है शादी का.

ये भी पढ़ें- पार्थ समथान शॉकिंग खुलासा, एकता कपूर की वजह से छोड़ा था ‘कसौटी

जब शक्ति कपूर से उनके लाडली के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि वह चाहते हैं कि उनकी बेटी अपने जीवन में खूब तरक्की करें , आगे बढ़ें और अपने जीवन को खूबसूरती के साथ जिए आगे जब श्रद्धा से उसकी शादी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि पहले के जमाने में लोग 20 साल की उम्र में शादी करके सेट हो जाते थे, लेकिन अब समय बदल गया है पहले लोग अपने लाइफ को अच्छे से सेट करते हैं फिर  शादी के बारे में सोचते हैं.

ये भी पढ़ें- बिग बॉस के एक्स कंटेस्टेंट को हुआ कोरोना, लोगों से की ये अपील

खैर कुछ समय पहले श्रद्धा कपूर कि फिल्म साहो रिलीज हुई है, जिसमें उनकी एक्टिंग की खूब तारीफ की जा रही हैं. श्रद्धा कपूर के साथ इस फिल्म में एक्टर प्रभास नजर आ रहे थें. दोनों को साथ में लोगों ने खूब सारा प्यार दिया है.

दिशा विहीन रिश्ते-भाग 3 : रमाकांतजी की पत्नी की क्या इच्छा थी

‘‘तुम्हें जो सहूलियत हो वह करो. खाना तैयार है, अपनेआप ले कर खा लो. मुझे आने में आधा घंटा लगेगा,’’ कह कर पूर्णिमा एक दुकान की तरफ चली गई.

मांबाप के प्रेम को महसूस न कर, पत्नी के स्वार्थीपन के आगे झुक कर, उन की अवहेलना की. अब प्रेम के लिए तड़पने वाले भरत को आरामकुरसी में लेटे हुए पिताजी को आंख उठा कर देखने में भी शर्म आ रही थी. इंदू भी शर्मसार सी खड़ी थी. दोनों भारी मन के साथ घर से बाहर निकलने लगे. रमाकांतजी एक बारी भरत से कुछ कहने की चाह से उठने लगे थे लेकिन उन की आंखों के आगे चलचित्र की तरह पुरानी सारी बातें तैरने लगीं. पैर वहीं थम गए. भरत ने पीछे मुड़ कर देखा, शायद बाबूजी अपना फैसला बदल कर उस से कुछ कहेंगे लेकिन आज उन की आंखें कुछ और ही कह रही थीं. इस सब के लिए कुसूरवार वह खुद था. भरत का गला रुंध गया. बाबूजी के पैर पकड़ कर उन से माफी मांगने के भी काबिल नहीं रहा था.

होते ही हम तुम्हारे लिए बेगाने हो गए,’’ रमाकांतजी ने कहा, ‘‘खून के रिश्ते से दुखी हुए हम तो क्या हुआ? हालात ने नए रिश्ते बना दिए. अब इस रिश्ते को हम नहीं छोड़ सकते. पर तुम जब चाहो तब आ सकते हो. हम से जो बन पड़ेगा, तुम्हारे लिए करेंगे.’’

दिशा विहीन रिश्ते-भाग 1: रमाकांतजी की पत्नी की क्या इच्छा थी

देशी घी की खुशबू धीरेधीरे पूरे घर में फैल गई. पूर्णिमा पसीने को पोंछते हुए बैठक में आ कर बैठ गई.

‘‘क्या बात है पूर्णि, बहुत बढि़याबढि़या पकवान बना रही हो. काम खत्म हो गया है या कुछ और बनाने वाली हो?’’

‘‘सब खत्म हुआ समझो, थोड़ी सी कचौड़ी और बनानी हैं, बस. उन्हें भी बना लूं.’’

‘‘मुझे एक कप चाय मिलेगी? बेटा व बहू के आने की खुशी में मुझे भूल गईं?’’ प्रोफैसर रमाकांतजी ने पत्नी को व्यंग्यात्मक लहजे में छेड़ा.

‘‘मेरा मजाक उड़ाए बिना तुम्हें चैन कहां मिलेगा,’’ हंसते हुए पूर्णिमा अंदर चाय बनाने चली गई.

65 साल के रमाकांतजी जयपुर के एक प्राइवेट कालेज में हिंदी के प्रोफैसर थे. पत्नी पूर्णिमा उन से 6 साल छोटी थी. उन का इकलौता बेटा भरत, कंप्यूटर इंजीनियरिंग के बाद न्यूयार्क में नौकरी कर लाखों कमा रहा था.

भरत छुटपन से ही महत्त्वाकांक्षी व होशियार था. परिवार की सामान्य स्थिति को देख उसे एहसास हो गया था कि उस के अच्छा कमाने से ही परिवार की हालत सुधर सकती है. यह सोच कर हमेशा पढ़ाई में जुटा रहता था. उस की मेहनत का ही नतीजा था कि 12वीं में अपने स्कूल में प्रथम और प्रदेश में तीसरा स्थान प्राप्त किया.

रमाकांतजी की माली हालत कोई खास अच्छी न थी. भरत को कालेज में भरती करवाने के लिए बैंक से लोन लिया था, पर किताबें, खानापीना दूसरे खर्चे इतने थे कि उन्हें और भी कई जगह से कर्जा लेना पड़ा. एक छोटा सा मकान था, उसे आखिरकार बेच कर किसी तरह कर्जे के भार से मुक्त हुए.

भरत ने अच्छे अंकों से इंजीनियरिंग पास कर ली. फिर जयपुर में ही 2 वर्ष की टे्रनिंग के बाद उसे कंपनी वालों ने न्यूयार्क भेज दिया.

विदेश में बेटे को खानेपीने की तकलीफ न हो, सोच कर जल्दी से गरीब घर की लड़की देख बिना दानदहेज के साधारण ढंग से उस की शादी कर दी.

तुरंत शादी करने के कारण अब तक जो थोड़ी सी जमा पूंजी थी, शादी में खर्च हो गई.

ये भी पढ़ें- हमारी बुद्धिमान साहित्यिक सासूमां

बहू इंदू, गरीब घर की थी. उस के पिता एक होटल में रसोइए का काम करते थे. इंदू सिर्फ 12वीं तक पढ़ी थी और एक छोटी सी संस्था में नौकरी करती थी. उस की 3 बहनें और थीं जो पढ़ रही थीं.

रमाकांतजी व उन की पत्नी की सिर्फ यही इच्छा थी कि एक गरीब लड़की का ही हमें उद्धार करना है. उन्हें दानदहेज की कोई इच्छा न थी. उन्होंने साधारण शादी कर दी.

शादी होते ही अगले हफ्ते दोनों न्यूयार्क चले गए. शुरूशुरू में फोन से बेटाबहू बात करते थे फिर महीने में, फिर 6 महीने में एक बार बात हो जाती. बेटे की आवाज सुन, उस की खैरियत जान उन्हें तसल्ली हो जाती.

न्यूयार्क जाने के बाद भरत ने एक बार भी घर रुपए नहीं भेजे. पहले महीने पगार मिलते ही फोन पर बोला, ‘‘बाबूजी, यहां घर के फर्नीचर लेने आदि में बहुत खर्चा हो गया है. यहां बिना कार के रह नहीं सकते. 1-2 महीने बाद आप को पैसे भेजूंगा.’’

इस पर रमाकांतजी बोले, ‘‘बेटा, तुम्हें वहां जो चाहिए उसे ले लो. यहां हमें पैसों की जरूरत ही क्या है. हम 2 जनों का थोड़े में अच्छा गुजारा हो जाता है. हमारी फिक्र मत कर.’’

उस के बाद भरत से पैसे की कोई बात हुई ही नहीं.

रमाकांत व पूर्णिमा दोनों को ही इस बात का कोई गिलाशिकवा नहीं था कि बेटे ने पैसे नहीं भेजे. बेटा खुश रहे, यही उन्हें चाहिए था. थोड़े में ही वे गुजारा कर लेते थे.

2 साल बाद बेटे ने ‘मैं जयपुर आऊंगा’ फोन पर बताया तो पूर्णिमा की खुशी का ठिकाना न रहा.

पूर्णिमा से फोन पर भरत अकसर यह बात कहता था, ‘अम्मा, यह जगह बहुत अच्छी है. बड़ा घर है. बगीचा है. बरतन मांजने व कपड़े धोने की मशीन है. आप और बाबूजी दोनों आ कर हमारे साथ ही रहो. वहां क्या है?’

‘तुम्हारे बाबूजी ने यहां सेवानिवृत्त होने के बाद जयपुर में एक अपना हिंदी सिखाने का केंद्र खोल रखा है. जिस में विदेशी और गैरहिंदीभाषी लोग हिंदी सीखते हैं. उसे छोड़ कर बाबूजी आएंगे, मुझे नहीं लगता. तुम जयपुर आओ तो इस बारे में सोचेंगे,’ अकसर पूर्णिमा का यही जवाब होता था.

दिशा विहीन रिश्ते-भाग 2 : रमाकांतजी की पत्नी की क्या इच्छा थी

बेटे के बारबार कहने पर पूर्णिमा के मन में बेटे के पास जाने की इच्छा जाग्रत हुई. अब वे हमेशा पति से इस बारे में कहने लगीं कि 1 महीना तो कम से कम हमें भी बेटे के पास जाना चाहिए.

अब जब बेटे के आने का समाचार मिला, खुशी के चलते उन के हाथपैर ही नहीं चलते थे. हमेशा एक ही बात मन में रहती, ‘बेटा आ कर कब ले जाएगा.’

भरत जिस दिन आने वाला था उस दिन उसे हवाई अड्डे जा कर ले कर आने की पूर्णिमा की बहुत इच्छा थी. परंतु भरत ने कहा, ‘मां, आप परेशान मत हों. क्लियरैंस के होने में बहुत समय लगेगा, इसलिए हम खुद ही आ जाएंगे,’ उस के ऐसे कहने के कारण पूर्णिमा उस का इंतजार करते घर में अंदरबाहर चक्कर लगा रही थीं.

सुबह से ही बिना खाएपिए दोनों को इंतजार करतेकरते शाम हो गई. शाम 4 बजे करीब भरत व बहू आए. आरती कर बच्चों को अंदर ले आए. पूर्णिमा की खुशी का ठिकाना नहीं था. बेटाबहू अब और भी गोरे, सुंदर दिख रहे थे. रमाकांतजी बोले, ‘‘सुबह से अम्मा बिना खाए तुम्हारा इंतजार कर रही हैं. आओ बेटा, पहले थोड़ा सा खाना खा लें.’’

‘‘नहीं, बाबूजी, हम इंदू के घर से खा कर आ रहे हैं. अम्मा, आप अपने हाथ से मुझे अदरक की चाय बना दो. वही बहुत है.’’

तब दोनों का ध्यान गया कि उन के साथ में सामान वगैरह कुछ नहीं है.

इंदू ने अपने हाथ में पकड़े कपड़े के थैले को सास को दिए. उस में कुछ चौकलेट, एक साड़ी, ब्लाउज, कपड़े के टुकड़े थे.

पूर्णिमा का दिल बुझ गया. बड़े चाव से बनाया गया खाना यों ही ढका पड़ा था.

चाय पी कर थोड़ी देर बाद भरत बोला, ‘‘ठीक है बाबूजी, हम कल फिर आते हैं. हम इंदू के घर ही ठहरे हैं. एक महीने की छुट्टी है,’’ कहते हुए चलने के लिए खड़ा हुआ भरत तो इंदू शब्दों में शहद घोलते हुए बोली, ‘‘मांजी आप ने हमारे लिए इतने प्यार से खाना बनाया, फिर भला कैसे न खाएं. फिलहाल भूख नहीं है. पैक कर साथ ले जाती हूं.’’ और सास के बनाए हुए पकवानों को समेट कर बड़े अधिकार के साथ पैक कर दोनों मेहमानों की तरह चले गए.

रमाकांतजी और पूर्णिमा एकदूसरे का मुंह ताकते रह गए. रमाकांतजी पत्नी के सामने अपना दुख जाहिर नहीं करना चाहते थे. पर पूर्णिमा तो उन के जाते ही मन के टूटने से बड़बड़ाती रहीं, ‘कितने लाड़प्यार से पाला था बेटे को, क्या इसी दिन के लिए. ऐसा आया जैसे कोई बाहर का आदमी आ कर आधा घंटा बैठ कर चला जाता है,’ कहते हुए पूर्णिमा के आंसू बह निकले. रमाकांतजी पूर्णिमा के सिर पर हाथ फेरते हुए उसे तसल्ली देने की कोशिश करने लगे. दिल में भरे दर्द से उन की आंखें गीली हो गई थीं लेकिन अपना दर्द जबान से व्यक्त कर पूर्णिमा को और दुखी नहीं करना चाहते थे.

ये भी पढ़ें- चार्वाक के वंशज

रमाकांतजी ने पत्नी को कई तरह से  आश्वासन दे कर मुश्किल से खाना खिलाया. 2 दिन बाद भरत फिर आया. उस दिन पूर्णिमा जब उस के लिए चाय बनाने रसोई में गई तब अकेले में बाबूजी से बोला, ‘‘बाबूजी, इंदू को अपनी मां को न्यूयार्क ले जा कर साथ रखने की इच्छा है. उस की मां ने छोटी उम्र से परिवारबच्चों में ही रह कर बड़े कष्ट पाए हैं. इसलिए अब हम उन्हें अपने साथ न्यूयार्क ले कर जा रहे हैं. आप सब बातें अच्छी तरह समझते हैं, इसलिए मैं आप को बता रहा हूं. अम्मा को समझाना अब आप की जिम्मेदारी है.

‘‘फिर, इंदू को न्यूयार्क में अकेले रहने की आदत हो गई है. आप व मां वहां हमेशा रह नहीं सकते. इंदू को अपनी प्राइवेसी चाहिए. अम्मा व इंदू साथ नहीं रह सकते, बाबूजी. आप वहां आए तो कहीं इंदू के साथ आप दोनों की नहीं बने, इस का मुझे डर है. इसीलिए आप दोनों को मैं अपने साथ रखने में हिचक रहा हूं. बाबूजी, आप मेरी स्थिति अच्छी तरह समझ गए होंगे,’’ वह बोला.

‘‘बेटा, मैं हर बात समझ रहा हूं, देख रहा हूं. तुम्हें मुझे कुछ समझाने की जरूरत नहीं है. रही बात तुम्हारी मां की, तो उसे कैसे समझाना है, अच्छी तरह जानता हूं,’’ बोलते हुए आज रमाकांतजी को सारे रिश्ते बेमानी से लग रहे थे.

इस के बाद जिस दिन भरत और इंदू न्यूयार्क को रवाना होने वाले थे उस दिन 5 मिनट के लिए विदा लेने आए.

उस रात पूर्णिमा रमाकांतजी के कंधे से लग खूब रोई थी, ‘‘क्योंजी, क्या हमें कोई हक नहीं है अपने बेटे के साथ सुख के कुछ दिन बताएं. बेटे से कुछ आशा रखना  क्या मातापिता का अधिकार नहीं.

‘‘क्या मैं ने आप से शादी करने के बाद किसी भी बात की इच्छा जाहिर की, परंतु अपने बेटे के विदेश जाने के बाद, सिर्फ 1 महीना वहां जा कर रहूं, यही इच्छा थी, वह भी पूरी न हुई…’’ पूर्णिमा रोतेरोते बोलती जा रही थी और रमाकांतजी यही सोच अपने मन को तसल्ली दे रहे थे कि शायद उन के ही प्यार में, परवरिश में कोई कमी रह गई होगी, वरना भरत थोड़ा तो उन के बारे में सोचता. मां के प्यार का कुछ तो प्रतिकार देता.

इस बात को 2 महीने बीत चुके थे. इस बीच इंदू ने भरत को बताया, आज मैं डाक्टर के पास गई थी. डाक्टर ने कहा तुम गर्भवती हो.’’

अभी भरत कुछ बोलने की कोशिश ही कर रहा था कि इंदू फिर बोली कि शायद इसीलिए कुछ दिनों से मुझे तरहतरह का खाना खाने की बहुत इच्छा हो रही है. इधर, मेरी अम्मा कहती हैं, ‘मैं 1 महीना तुम्हारे पास रही, अब बहनों व पिता को छोड़ कर और नहीं रह सकती. मुझे तो तरहतरह के व्यंजन बनाने नहीं आते. अब क्या करें?’’

‘‘तो हम एक खाना बनाने वाली रख लेते हैं.’’

‘‘यहां राजस्थानी खाना बनाने वाली तो मिलेगी नहीं. तुम्हारी मां को बुला लेते हैं. प्रसव होने तक यहीं रह कर वे मेरी पसंद का खाना बना कर खिला देंगी.’’

‘‘पिताजी 1 महीने के लिए तो आ सकते हैं. उन्होंने जो छोटा सा हिंदी सिखाने का केंद्र खोल रखा है वहां किसी दूसरे आदमी को रख कर परंतु…’’ उसे बात पूरी नहीं करने दी इंदू ने, ‘‘उन्हें यहां आने की क्या जरूरत है? आप की मां ही आएं तो ठीक है.’’

‘‘तुम्हीं ने तो कहा था, हमें प्राइवेसी चाहिए, वे यहां आए तो…ठीक नहीं रहेगा. अब वैसे भी उन से किस मुंह से आने के लिए कहूंगा.’’

‘‘वह सब ठीक है. लेकिन तुम्हारी मां को यहां आने की बहुत इच्छा है. आप फोन करो, मैं बात करती हूं.’’

इंदू की बातें भरत को बिलकुल भी पसंद नहीं आईं, बोला, ‘‘ठीक है, डाक्टर ने एक अच्छी खबर दी है. चलो, हम बाहर खाना खाने चलते हैं, फिर इस समस्या का हल सोचेंगे.’’

ये भी पढ़ें- रिटायर्ड आदमी

वे लोग एक रैस्टोरैंट में गए. वहां थोड़ी भीड़ थी, तो वे सामने के बगीचे में जा कर घूमने लगे. उन्होंने देखा कि बैंच पर एक बुजुर्ग बैठे हैं. दूर से भरत को वे अपने बाबूजी जैसे लगे. अच्छी तरह देखा. देख कर दंग रह गया भरत, ‘ये तो वे ही हैं.’

‘‘बाबूजी,’’ उस के मुंह से आवाज निकली.

‘‘रमाकांतजी ने पीछे मुड़ कर देखा तो एक बारी तो वे भी हैरान रह गए.

‘‘अरे भरत, बेटा तुम.’’

‘‘बाबूजी, आप यहां. कुछ समझ नहीं आ रहा.’’

बाबूजी बोले, ‘‘देखो, वहां अपना क्वार्टर है. आओ, चलें,’’ रमाकांतजी आगे चले, पीछे वे दोनों बिना बोले चल दिए.

घर का दरवाजा पूर्णिमा ने खोला. रमाकांतजी के पीछे खड़े भरत और इंदू को देख वह हैरान रह गई. फिर खुशी से भरत को गले से लगा लिया. दोनों का खुशी से स्वागत किया पूर्णिमा ने.

‘‘जयपुर में तुम्हारे पिताजी ने जो केंद्र हिंदी सिखाने के लिए खोल रखा है वहां इन के एक विदेशी शिष्य ने न्यूयार्क में ही हिंदी सिखाने के लिए कह कर हम लोगों को यहां ले आया. यह संस्था उसी शिष्य ने खोली है. सब सुविधाएं भी दीं. तुम्हारे बाबूजी ने वहां के केंद्र को अपने जयपुर के एक शिष्य को सौंप दिया.

‘‘तुम्हारे बाबूजी ने भी कहा कि हमारा जयपुर में कौन है, यह काम कहीं से भी करो, ऐसा सोच कर हम यहां आ गए. यहां तुम्हारे बाबूजी को 1 लाख रुपए महीना मिलेगा,’’ जल्दीजल्दी सबकुछ कह दिया पूर्णिमा ने.

‘‘अम्मा, तुम्हारी बहू गर्भवती है. उस की नईनई चीजें खाने की इच्छा होती है. अब उस की मां यहां नहीं आएगी. आप दोनों प्रसव तक हमारे साथ रहो तो अच्छा है.’’

‘‘वह तो नहीं हो सकता बेटा. बाबूजी का यह केंद्र सुबह व शाम खुलेगा. उस के लिए यहां रहना ही सुविधाजनक होगा.’’

‘‘अम्मा, बाबूजी नहीं आएं तो कोई बात नहीं, आप तो आइएगा.’’

‘‘नहीं बेटा, उन की उम्र हो चली है. इन को देखना ही मेरा पहला कर्तव्य है. यही नहीं, मैं भी भारतीय व्यंजन बना कर केंद्र के बच्चों को देती हूं. इस का मुझे लाभ तो मिलता ही है. साथ में, बच्चों के बीच में रहने से आत्मसंतुष्टि भी मिलती है. चाहो तो तुम दोनों यहां आ कर रहो. तुम्हें जो चाहिए, मैं बना दूंगी.’’

‘‘नहीं मां, यहां का क्वार्टर छोटा है,’’ भरत खीजने लगा.

‘‘हां, ठीक है. यहां तुम्हें प्राइवेसी नहीं मिलेगी. वहीं… उसे मैं भूल गई. ठीक है बेटा, मैं रोज इस की पसंद का खाना बना दूंगी. तुम आ कर ले जाना.’’

‘‘नहीं अम्मा, मेरा औफिस एक तरफ, मेरा घर दूसरी तरफ, तीसरी तरफ यह केंद्र है. रोज नहीं आ सकते. अम्मा, बहुत मुश्किल है.’’

‘‘भरत, अब तक हम दोनों तुम्हारे लिए ही जिए, पेट काट कर रह कर तुम्हें बड़ा किया, अच्छी स्थिति में लाए. पर शादी

Womens Day Special: अवैध संतान- विमला हर बात के लिए मना क्यों कर रही थी

मीरा कन्या महाविद्यालय के गेट से बाहर आते ही विमला मैडम ने अपनी चाल तेज कर दी. वे लगभग दौड़ रही थीं, इसलिए उन की बिटिया सीमा को भी दौड़ लगानी पड़ रही थी. विमला मैडम सीमा के उस सवाल से बचना चाहती थीं जो उस ने गेट से बाहर आते ही दाग दिया था, ‘‘मम्मी, मैं आप की और विमल सर की अवैध संतान हूं?’’

वे बिना कोई उत्तर दिए चली जा रही थीं. इसलिए जब उन के बगल से एक आटो गुजरा तो उसे रोक कर अपनी बेटी सीमा को लगभग खींचते हुए आटो में बैठ गईं. उन्हें पता था, उन की बेटी आटोचालक के सामने कुछ नहीं बोलेगी.

ये भी पढ़ें-Womens Day Special: पहचान-वसुंधरा ननद की शादी से इतनी ज्यादा

आज जो कुछ घटा उस की उम्मीद उन को सपने में भी नहीं थी. आज उन के स्कूल की छुट्टी जल्दी हो गई थी तब उन्होंने अपनी बेटी को भी छुट्टी दिला कर बाजार जाने की सोची थी. इसलिए, वे उस की बड़ी मैडम से अपनी बेटी की छुट्टी स्वीकृत करा कर, स्टाफरूम में बैठी थीं. तभी विमल सर स्टाफरूम में आए. विमला मैडम विमल सर से बात कर रही थीं. उसी समय सीमा स्टाफरूम में घुसी. उसे देख कर विमल सर बोले, ‘‘यह तुम्हारी बेटी है, तभी…’’ उन के बात आगे बढ़ाने से पूर्व ही विमला मैडम ने इशारे से उन्हें रोक दिया. परंतु सर के ये शब्द सीमा के कान में पड़ गए. उस समय तो सीमा कुछ नहीं बोली परंतु गेट से बाहर आते ही मम्मी से पूछे बिना नहीं रही.

आटो में चुप बैठी रही सीमा घर पहुंचते ही बोल पड़ी, ‘‘मम्मी, आप जवाब नहीं दे रही हो जबकि मेरी सहेलियां मुझे चिढ़ाती हैं. कहती हैं, ‘तू भी कानपुर की और सर भी कानपुर के, और तेरे में सर का अक्स दिखाई देता है. कहीं तेरी मम्मी और सर के बीच अफेयर तो नहीं था?’ और आज उन के शब्द ‘यह तुम्हारी बेटी है, तभी’. तब क्या, मैं आप की और सर की अवैध संतान हूं?’’

ये भी पढ़ें- फर्ज की किताब: सुधीर किसके बारे में सोचकर परेशान रहता था

विमला उस की बात को टालते हुए बोलीं, ‘‘जब तू पेट में थी तब तेरे सर के परिवार का घर में बहुत आनाजाना था, इसीलिए.’’

‘‘मम्मी, आप ने मुझे बच्चा समझा है. मैं सर से ही पूछ लूंगी,’’ कह कर सीमा वहां से उठ गई.

विमला ने उसे रोका नहीं क्योंकि उन को पता था, वह जो सोच लेती है, करती है. सीमा चायनाश्ता कर अपने कमरे में आ कर लेट गई. टीवी चला लिया परंतु उस का प्रिय प्रोग्राम भी उस को शांति नहीं दे रहा था. ‘यह तुम्हारी बेटी है, तभी…’, ये ही शब्द उस के कानों में बारबार गूंज रहे थे. तभी फोन की घंटी बजी. उस ने फोन उठाया, उधर उस की सहेली मधु थी, ‘‘तू भी घर आ गई पागल, घड़ी देख, 4 से ज्यादा बज गए हैं.’’

ये भी पढ़ें-देरसबेर पर खुशी घनेर: हरदीप भाभी के लिए परेशान क्यों था

इधरउधर की बातें करने के बजाय सीमा ने सीधे ही पूछ लिया, ‘‘तू विमल सर का घर जानती है?’’

‘‘क्यों? क्या तू भी सर से ट्यूशन पढ़ना चाहती है? हां, वह बहुत अच्छा पढ़ाते हैं. अरे हां, तेरा विषय तो सर पढ़ाते नहीं हैं. फिर तू…?’’

‘‘तुझ से जितना पूछा है उतना बता. मैं खुद चली जाऊंगी, तू केवल पता बता.’’

‘‘ऐसा कर, गांधी चौक की ओर से मेरे घर की ओर आएगी, तो पहले ही मोड़ पर अंतिम मकान है. उन के नाम की प्लेट लगी है.’’

उस ने फोन रख दिया और मम्मी से बोल दिया, ‘‘मैं मधु के घर जा रही हूं, जल्दी घर आ जाऊंगी.’’

कुछ ही देर में सीमा सर के घर पहुंच गई. वह पहले झिझकी, फिर घंटी बजा दी. दरवाजा सर ने ही खोला. एक पल को वह सर को देखती ही रही क्योंकि आज उसे सर दूसरे ही रूप में दिख रहे थे और फिर उसे अपना मकसद ध्यान आया और सर के कुछ बोलने से पहले ही वह बोल पड़ी, ‘‘सर, क्या मैं आप की और मम्मी की अवैध संतान हूं?’’

ये भी पढ़ें- Women’s Day Special -भाग 2 : यात्रान्त

सर को शायद ऐसे प्रश्न की उम्मीद नहीं थी.

इसलिए सर ने कहा, ‘‘देखो बेटे, ऐसे प्रश्न दरवाजे पर नहीं किए जाते. अंदर आओ. मैं तुम्हारे हर प्रश्न का उत्तर दूंगा.’’

वह अंदर आ गई. अंदर सर ने अपनी मम्मी से उस का परिचय कराया, ‘‘मम्मी, यह विमला की बेटी है.’’

सर की मम्मी पुलकित हो उठीं, ‘‘मम्मी को भी ले आती.’’

उन के और कुछ बोलने से पूर्व ही सर ने मम्मी को कहा, ‘‘मम्मी, बाकी बातें बाद में हो जाएंगी. इसे चायनाश्ता कराओ. पहली बार घर आई है,’’ उन के चले जाने के बाद सर बोले, ‘‘हां, अब बोलो.’’

‘‘सर, मैं आप की और मम्मी की अवैध संतान हूं?’’

‘‘देखो बेटे, संतान अवैध नहीं होती, बल्कि संबंध अवैध होते हैं. और फिर मेरे और तुम्हारी मम्मी के संबंधों को तो तुम्हारे पापा की स्वीकृति थी.’’

यह सुनते ही सीमा का मुंह खुला का खुला रह गया. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई इतना नीचे भी गिर सकता है. उसे यह समझ नहीं आया कि पापा की क्या मजबूरी थी.

उस की परेशानी भांप कर सर बोले, ‘‘शांत हो कर बैठो, मैं सब बताता हूं. तुम्हारी मम्मी की शादी आम हिंदुस्तानी शादी थी. पहले 2 साल शादी की खुमारी में  निकल गए और फिर कानाफूसी शुरू हो गई कि घर में किलकारी क्यों नहीं गूंजी. पहले घर से और फिर आसपास. तुम्हारे पापा के दोस्त ताना मारने से नहीं चूकते. उधर, उन की मर्दानगी पर चुटकुले बनने लगे. साथ ही, डाक्टरी रिपोर्ट ने आग में घी का कार्य किया. कमी तुम्हारे पापा में मिली. ‘‘तुम्हारे पापा औफिस का गुस्सा घर में निकालने लगे. उन्हीं दिनों हमारा परिवार तुम्हारे पड़ोस में आ गया. तुम्हारी मम्मी हमारे घर आ जातीं. मैं तुम्हारी मम्मी के बाजार के काम कर देता. तुम्हारी मम्मी कोई बच्चा गोद लेने को कहतीं तो तुम्हारे पापा नाराज हो जाते. उन को अपनी मर्दानगी दिखानी थी. मेरे और तुम्हारी मम्मी के बीच निकटता बढ़ने लगी. तुम्हारे पापा ने हमारी निकटता को इग्नोर किया. फलस्वरूप, हमारी निकटता और बढ़ती गई और उस मुकाम तक पहुंच गई जिस के फलस्वरूप तुम अपनी मम्मी के पेट में आ गईं.

‘‘वह दिन मुझे आज भी याद है, मैं जब तुम्हारे घर पहुंचा तब तुम्हारी मम्मी के शब्द कान में पड़े, उन शब्दों को सुनते ही अंदर जा रहे मेरे कदम रुक गए. तुम्हारी मम्मी कह रही थीं, ‘लो, अब तुम भी मर्द बन गए. मैं गर्भवती हो गई. अब दोस्तों के सामने तुम्हारी गरदन नहीं झुकेगी.’ मुझे लगा कि मैं सिर्फ एक टूल था, जो तुम्हारे पापा को मर्द साबित करने के लिए इस्तेमाल किया गया था. मुझे तुम्हारी मम्मी पर गुस्सा आया. सोचा कि वहां जा कर अपनी नाराजगी जाहिर करूं लेकिन फिर मुझे तुम्हारी मम्मी पर तरस आ गया. मैं वापस घर आ गया. उस के बाद मैं कभी तुम्हारे घर नहीं गया.

‘‘उसी दौरान मेरे पापा का तबादला हो गया. जिस दिन हम जा रहे थे उस दिन तुम्हारी मम्मी हमें छोड़ने आई थीं. वे कुछ नहीं बोलीं लेकिन उन की चुप्पी भी बहुतकुछ कह गई. मैं ने उन को माफ कर दिया.’’

सर की मम्मी, जो वहां आ गई थीं, ने सब सुन लिया था, बोल पड़ीं, ‘‘बेटा, इस ने खुद को माफ नहीं किया और अब तक शादी नहीं की.’’

‘‘तुम्हारी मम्मी की खबरें शोभा आंटी से मिलती रहीं. तुम्हारा जन्म हुआ. तुम्हारे पिता ने पार्टी दी. लेकिन बताते हैं कि उन के चेहरे पर वह खुशी नहीं दिखाई दी जो एक बाप के चेहरे पर दिखाई देनी चाहिए थी. तुम्हारी मम्मी और पापा में झगड़ा और बढ़ गया. तुम्हारा चेहरा देख कर उन को पता नहीं क्या हो जाता, शायद उन को अपनी नामर्दी ध्यान आ जाती या वे हीनभावना से ग्रस्त हो गए थे. तुम्हारी ओर ध्यान नहीं देते. तुम्हारी मम्मी के लिए तुम सबकुछ थीं. शायद वे तुम्हारे कारण अपने को भूल जातीं.

‘‘एक दिन तुम्हारी मम्मी बाथरूम में नहा रही थीं. तुम जोरजोर से रो रही थीं. तुम्हारे पापा वहीं खड़े थे परंतु उन्होंने तुम्हें चुप नहीं कराया. उसी समय शोभा आंटी आ गईं. तुम्हें जोरजोर से रोते देख कर वे तुम्हारे पापा से बोलीं, ‘कैसा बाप है? लड़की रोए जा रही है और तू अपनी टाई बांधने में लगा है, जैसे यह तेरी बेटी नहीं है.’ आंटी के बोलते ही वे आगबबूला हो उठे. वे चीखे, ‘हांहां, यह मेरी बेटी नहीं है. मैं तो नपुंसक हूं.’

‘‘इतना कह कर वे घर से निकल गए और फिर केवल उन की मौत की सूचना आई कि उन्होंने रेलगाड़ी के आगे कूद कर आत्महत्या कर ली थी. बस, एक ही बात उन्होंने अच्छी की, अपनी मौत के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया.

‘‘कुछ दिन के बाद तुम्हारे मामा, तुम्हारी मम्मी और तुम को ले कर चले गए.’’

बात गंभीर हो गई थी. एक तरह से वहां चुप्पी छा गई. चुप्पी सीमा ने ही तोड़ी, ‘‘सर, मेरी शादी के बाद मेरी मम्मी अकेली रह जाएंगी. आप भी कभी अकेले हो जाओगे. इसलिए आप और  मम्मी अपने उन अवैध संबंधों को वैध नहीं बना सकते?’’

‘‘पगली, अब हमारी शादी की उम्र थोड़े ही है, अब तो तेरी शादी करनी है.’’

‘‘लेकिन सर, आप से मिलने के बाद मैं ने मम्मी के चेहरे पर अलग चमक देखी थी. और अब जब आप ने घर के दरवाजे पर मुझे देखा तो आप के चेहरे पर भी वही चमक मैं ने महसूस की.’’

‘‘बहुत बड़ी हो गई है तू और लोगों को पढ़ना भी जानती है.’’

‘‘प्लीज, सर.’’

‘‘तू एक तरफ तो मुझे पापा बनाना चाहती है और दूसरी ओर सरसर भी करे जा रही है. पापा नहीं कह सकती.’’

‘‘सौरी, पापा,’’ कहती हुई वह सर से लिपट गई. दादी ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘चल बेटा, अपनी बहू के पास चलते हैं.’’

सीमा ने उन को रोक दिया, ‘‘पहले मैं मम्मी से बात कर लूं.’’

‘‘मैं तेरी मम्मी को जानती हूं. वह भी राजी हो ही जाएगी.’’

‘‘हां, दादी, मम्मी मेरी खुशी के लिए कुछ भी कर सकती हैं.’’

सीमा वापस घर जाने के लिए उठ खड़ी हुई तब विमल सर उसे छोड़ने आ गए. उधर, विमला सीमा के लिए चिंतित हो रही थीं. दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोलने पर सामने सीमा ही थी. विमला चीखीं, ‘‘कहां गई थी?’’

‘‘पापा के पास.’’

‘‘तेरे पापा तो मर चुके हैं.’’

‘‘वे मेरे पापा नहीं थे. वे आप के पति थे. और फिर वे तो पति कहलाने लायक भी नहीं क्योंकि वे तन से ही नहीं मन से भी नपुंसक थे, जो अपनी पत्नी को पराए मर्द के साथ सोने को प्रेरित करता है मात्र इसलिए कि दुनिया के सामने अपने को मर्द दिखा सके. अपने को मर्द दिखाने के लिए पत्नी द्वारा बच्चा गोद ले लेने के विचार को भी न सुने.’’

‘‘तो इतना जहर भर दिया उस ने. मुझे उस से यह उम्मीद नहीं थी. मैं इसीलिए चुप थी कि यह सुन कर तू मुझ से भी घृणा करने लगती.’’

‘‘मम्मी, मैं आप से घृणा करूंगी? आप ने जिस तरह मेरी परवरिश की है उस पर मुझे गर्व है कि तुम मेरी मां हो. पापा भी ऐसे नहीं हैं. दरवाजे पर मुझे देख कर उन की नजर इधरउधर घूम रही थी. वे शायद आप को खोज रहे थे.’’

फिर कुछ समय तक चुप्पी छाई रही. दोनों एकदूसरे को देखती रहीं. फिर सीमा ही बोली, ‘‘मम्मी, आप और सर अपने अवैध संबंधों को वैध नहीं बना सकते?’’

‘‘नहीं बेटा, अब मुझे तेरी शादी करनी है, अपनी नहीं.’’

‘‘मम्मी, पापा को पता है मैं उन की बेटी हूं परंतु मुझे बेटी नहीं कह सकते. मैं जानते हुए भी उन को पापा नहीं कह सकती. और आप मेरे सामने खोखली हंसी हंसोगी और अकेले में रोओगी.’’

‘‘लेकिन बेटा, लोग क्या कहेंगे?’’

‘‘उन की चिंता नहीं है. मुझे आप की चिंता है. मेरी शादी के बाद आप अकेली रह जाओगी और उधर, दादी कितने दिन की मेहमान हैं. बाद में पापा भी अकेले हो जाएंगे.’’

विमला विचारमग्न हो गईं. फिर अचानक बोल पड़ीं, ‘‘तू अकेली आई, कैसा पिता है? जवान लड़की को रात में अकेला भेज दिया.’’

‘‘नहीं, मम्मी, पापा आए थे.’’

‘‘फिर अंदर क्यों नहीं आए?’’

‘‘मम्मी, मैं ने मना कर दिया था. मैं चाहती थी कि पहले मैं आप से बात कर लूं.’’

‘‘ओह, क्या बात है. बड़ी समझदार हो गई है मेरी लाड़ली.’’

तभी फोन की घंटी बजी. सीमा ने फोन उठाया, उधर दादी थीं. उस ने फोन मम्मी को दे दिया. मम्मी बोलीं, ‘‘नमस्ते, आंटी.’’

‘‘अरे, मैं अब तेरी आंटी नहीं, बल्कि अब तेरी सास हूं.’’ इस के बाद की कहानी भी छोटी सी रह गई है. सीमा के मम्मीपापा के अवैध संबंध वैध बन गए. सब बहुत खुश थे. सब से ज्यादा कौन खुश था, बताने की जरूरत नहीं.

आज जब मैं यह कहानी लिख रहा हूं तब सीमा मेरे पास बैठी है, पूछ रही है, ‘पापा, मैं ने सही किया या गलत?’

अब आप लोग ही बताएं सीमा ने सही किया या गलत?

दिशा विहीन रिश्ते

आमदनी का साधन बनी काली मिर्च की खेती

वह भी बस्तर जैसे पिछड़े इलाके में, वह भी आदिवासी किसानों द्वारा. सुनने में यह बात शायद हजम न हो, लेकिन यह हकीकत है. बस्तर में पिछले 25 सालों से जैविक व औषधीय कृषि कामों में लगी संस्था ‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह’ ने इसे अमलीजामा पहनाया है. बस्तर के बेहद पिछड़े आदिवासी वन गांव में पैदा हुए प्रगतिशील किसान डा. राजाराम त्रिपाठी ने बैंक अधिकारी की उच्च पद वाली नौकरी से इस्तीफा दे कर पिछले 20 सालों में काली मिर्च की इस नई प्रजाति की खोज में कामयाबी हासिल की.

नई प्रजाति एमडीबी-16 के विकास के बाद यह बात साबित हो गई है कि केरल ही नहीं, बल्कि भारत के शेष भागों में भी उचित देखभाल से काली मिर्च की इस विशेष प्रजाति की सफल और उच्च लाभदायक खेती की जा सकती है. गांव जड़कोंगा, कांटा गांव, विकासखंड माकड़ी, जिला कोंडागांव, बस्तर के किसान संतुराम मरकाम, राजकुमारी मरकाम, रमेश साहू व उन के पूरे समूह सहित कई आदिवासी किसान सदस्य ‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह’ से सालों पहले से जुड़े हैं.

ये भी पढ़ें- चूहा प्रबंधन: घर से खेत तक कैसे करें

उन्हें जोड़ने में तत्कालीन जनपद अध्यक्ष, समाजसेवी जानोबाई मरकाम की प्रमुख भूमिका रही. जैविक खेती और हर्बल खेती की ओर अग्रसर इन किसानों ने काली मिर्च के पौधे भी अपने घर की बाड़ी में लगाए थे. संतुराम मरकाम बताते हैं कि उन्होंने तकरीबन 27 पौधे काली मिर्च के लगाए, किंतु गरमियों में साल (सरई) के सूखे पत्तों के नीचे आग लग जाने के कारण कई पौधे मर गए. फिर भी वर्तमान में 16 पौधे बचे हैं, जिन में पिछले 3 सालों से काली मिर्च के फल आ रहे हैं. इन 16 काली मिर्च के पौधों से उन्हें कुल 16 किलोग्राम काली मिर्च प्राप्त हुई.

समूह के निदेशक अनुराग कुमार ने बताया कि स्पाइसेज बोर्ड औफ इंडिया के द्वारा तय की गई आज की तारीख पर काली मिर्च का थोक मूल्य 330-350 किलोग्राम दर्शाया गया है, जबकि समूह की ओर से नवाचारी किसानों को प्रोत्साहन के लिए 500 प्रति किलोग्राम की दर से तत्काल भुगतान कर दिया गया. इतना ही नहीं, आगे यदि इस काली मिर्च का निर्यात संभव हुआ और यदि उस में और अधिक मूल्य प्राप्त होता है, तो वह लाभ भी इन साथी किसानों को वितरित किया जाएगा. 6 जनवरी को मां दंतेश्वरी हर्बल एस्टेट में आयोजित एक सादा गरिमामय समारोह में सफल नवाचारी किसानों का नागरिक सम्मान शाल श्रीफल से किया गया. इस अवसर पर समाजसेवी जानो मरकाम, पत्रकार संघ के प्रांतीय सचिव जमील खान, ‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह’ के निदेशक अनुराग त्रिपाठी, श्रीशंकर नाग, कृष्णा नेताम, ‘संपदा समाजसेवी समूह’ के अध्यक्ष जयमति नेताम आदि सम्मिलित रहे.

ये भी पढ़ें- सुरक्षित बीज भंडारण कब और कैसे

बड़ी बात यह है कि इस काली मिर्च (एमडीबी-16) की बेलें किसान की घर की बाड़ी में पहले से ही उगे साल के पेड़ों पर चढ़ाई गईं और बस्तर में साल की पेड़ों की बहुतायत है. यहां तक कि बस्तर को साल वनों का द्वीप भी कहा जाता है.

ये भी पढ़ें- मवेशियों में आईवीएफ तकनीक अपनाने वाली पहली भारतीय कंपनी

आगे की संभावनाओं के बारे में पूछे जाने पर डा. अनुराग त्रिपाठी ने कहा कि यह योजना बस्तर की ही नहीं, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ के किसानों की तसवीर और जिंदगी बदल सकती है, पर इस के लिए समुचित कार्ययोजना और उस के क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार पर रोक लगाना जरूरी है. हाल में परंपरागत बायोफोर्टीफाइड राइस यानी पोषक तत्त्वों से भरपूर काले चावल की खेती में ‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह’ ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. इस कार्यक्रम में आदिवासी किसानों को ‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म’ व रिसर्च सैंटर की ओर से अश्वगंधा के जैविक बीज भी खेती के लिए बांटे गए.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें