नये शहर में मनपसन्द घर जितना ढूँढना कठिन हैं, उतना ही कठिन हैं, मकानमालिक के लिये किरायेदार का चयन करना . सरकारी सर्वे के मुताबिक ,शहरी इलाकों में 1.1 करोड़ लगभग प्रापर्टीस खाली पड़ी हैं क्योंकि उनके मालिको को , प्रापर्टी किराये पर देने से डर लगता हैं.वे डरते हैं कि कही किरायेदार ने कब्जा कर लिया तो उन्हें अपनी प्रापर्टी से हाथ ही न धोना पड़ जाये ..केंद्र सरकार “आदर्श किराया कानून” जल्द लाने वाली हैं, जिसमें मकान, दूकान मालिक और किरायेदार के बीच संतुलन कायम किया गया हैं ,कोई मतभेद न हो और नियमानुसार काम हो .राज्य सरकारे इस मसौदे में अपने स्तर से बदलाव कर सकती हैं .
मकान मालिक के पास यदि एक से अधिक मकान ,दुकान होती हैं तो वे उसे किराए से,यह सोच कर देते हैं कि उन्हें अतिरिक्त आमदनी प्राप्त हो सकें . मालिकों की आमदनी में इजाफा करने की जगह, कुछ किरायेदार किराया देना बंद कर देते हैं और प्रापर्टी में कब्जा कर लेते हैं . मकान मालिक ,कोर्ट कचहरी के चक्कर में फंस कर रह जाता हैं . किरायेदार लम्बे समय तक किसी प्रापर्टी का उपभोग करता हैं तो वो उस पर अपना मालिकाना हक समझने लगता हैं .पुराने प्रापर्टी में जिसमे किरायेदार बीस से लेकर पचास साल तक रह रहा हो, वे किराया तो पुराने न्यूनतम कीमत की अदा करते है मगर मालिक प्रापर्टी बेचने या अपने उपभोग के लिए खाली कराना चाहते हैं तो किरायेदार लाखो का मुआवजा माँगने लगते हैं .कुछ किरायेदार कोर्ट केस दाखिल कर देते हैं .
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