उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में एक बेटे ने पिता और पुत्र के रिश्ते को कलंकित कर दिया. जायदाद के विवाद को ले कर नशे में धुत पुत्र ने पिता की पीटपीट कर हत्या कर दी. जमुनीपुर गांव के रहने वाले 60 वर्षीय रामहित चौहान के 35 वर्षीय पुत्र सूर्यनाथ अपनी पत्नी व बच्चों को ले कर पिता से अलग रहता था. रामहरि की पत्नी की कई साल पहले मौत हो गई थी.
दूसरा पुत्र शिशुपाल दुबई में नौकरी करता था. रामहरि अपनी 20 वर्षीय अविवाहित पुत्री के संग रहता था. रामहित का पुत्र सूर्यनाथ उन से अपना हिस्सा मांगते हुए अकसर विवाद करता था. पिता जब जायदाद में हिस्सा देने से मना करता था तो झगड़ा होता था. एक दिन ऐसे ही झगड़े में मारपीट हुई जिस में सूर्यनाथ ने अपने पिता रामहरि को इस बेरहमी से मारा कि उन की मौत हो गई.
उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में मिल एरिया थाना क्षेत्र के अंतर्गत कोड़रस के रहने वाले 55 वर्षीय राम दयाल खेतीकिसानी कर परिवार का पालनपोषण करते थे. बड़ा बेटा फूलचंद अपनी पत्नी व 2 बच्चों के साथ घर के सामने दूसरा घर बना कर रह रहा था. छोटा बेटा शर्मानंद पढ़ाई कर रहा था. राम दयाल अपनी 18 साल की बेटी मीरा की शादी की तैयारियां कर रहा था. वह बेटी की शादी के पहले जमीनजायदाद का बंटवारा नहीं करना चाहता था. लेकिन फूलचंद जमीन के बंटवारे के लिए दबाव डाल रहा था. एक दिन सुबह फूलचंद ने घर के बाहर सो रहे पिता पर डंडे से प्रहार करना शुरू कर दिया. जब पिता को बचाने मीरा आई तो उस ने उसे भी पीट दिया. मीरा की चीख सुन कर आसपड़ोस के लोग मौके पर पहुंचे और फूलचंद को पकड़ कर बाहर किया. घायल राम दयाल को अस्पताल ले जाया गया जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.
कमलजीत का मामला
पंजाब के संगरूर जिले के बरदवाल गांव में रहने वाले कमलजीत सिंह ने अपने 65 वर्षीय पिता हरभजन सिंह की हत्या कर दी. हरभजन का दोष यह था कि उन्होंने अपनी संपत्ति कमलजीत के बेटे यानी अपने पोते के नाम कर दी थी. इस से गुस्से में आ कर कमलजीत ने पिता की हत्या कर दी. पुलिस को बहकाने के लिए कमलजीत ने एक शिकायत दर्ज कराई कि उस के पिता पिछले 20 दिनों से लापता हैं. पुलिस की छानबीन के दौरान कमलजीत ने स्वीकर कर लिया कि उस ने पिता की हत्या कर उन के शव को घर के आंगन में ही दबा दिया था.
भगवान प्रसाद की मौत
बिहार प्रदेश के सीवान जिले में कोइरी टोला गांव में रहने वाले 70 वर्षीय भगवान प्रसाद की हत्या उन के ही छोटे बेटे व बहू द्वारा गला दबा कर कर दी गई. हत्या की वजह जमीन का विवाद था. घटना के 15 दिन पहले भगवान प्रसाद ने अपनी जायदाद में से 3 कठा 10 धूर जमीन अपने बड़े बेटे हरिहर प्रसाद के इकलौते पुत्र राहुल कुमार के नाम रजिस्ट्री कर दी थी. जिस की जानकारी, उस ने अपने छोटे बेटे कंचन प्रसाद और उस की पत्नी लालती देवी को नहीं दी. जब इस बात की जानकारी कंचन प्रसाद और लालती देवी को हुई तो परिवार में काफी क्लेश बढ़ गया. कंचन प्रसाद और उस की पत्नी लालती देवी ने ही वृद्ध पिता की गला दबा कर हत्या कर दी.
पुलिस ने दोनों आरोपी कंचन प्रसाद व लालती देवी को गिरफ्तार कर लिया है. गिरफ्तार कंचन प्रसाद व उस की पत्नी लालती देवी का आरोप है कि हरिहर प्रसाद व उस के परिवार के लोगों ने पिता की हत्या की है और साजिश के तहत उन्हें फंसा दिया है. कंचन प्रसाद 5 साल से गांव में है. इस के पूर्व वह विदेश में रहता था. विदेश में रहने के दौरान उस ने काफी संपत्ति भी अपने नाम बना ली थी, जिस को ले कर भी हरिहर प्रसाद व उस का परिवार मानसिक रूप से काफी परेशान रहा करता था. इसी विवाद में हरिहर प्रसाद ने एक दुकान भी अपनी पत्नी के नाम से सीवान में जेपी चौक के पास ले रखी थी.
घटनाएं आम हैं
इस तरह की घटनाएं पूरे देश में होती हैं. इन में गांव और शहर का भेद नहीं है. यही वजह है कि अब वृद्ध लोगों के लिए अपनी संपत्ति को अपने ही बेटों से बचाने के लिए सोचना पड़ रहा है. ‘पूत सपूत तो का धन संचय, पूत कपूत तो का धन संचय’ कहावत का अर्थ है कि बेटा अगर लायक है तो उस के लिए धन एकत्र करने की जरूरत क्या. वह अपनी जरूरत के हिसाब से धन कमा लेगा. अगर बेटा नालायक है तो भी धन एकत्र करने की जरूरत नहीं है क्योंकि वह आप का एकत्र किया धन अपनी खराब आदतों से उड़ा देगा.
धार्मिक कथाओं में भी यह बताया ही गया है कि इंसान का जीवन 4 समूहों में बांटा गया है. मनुष्य के जीवन को बाल्यावस्था, युवावस्था, गृहस्थ और वानप्रस्थ हिस्सों में बांटा गया है. यहां भी धन के महत्त्व को समझाया गया है. इस में यह अपेक्षा की गई है कि बुढ़ापे के समय में धन का मोह त्याग देना चाहिए और अपना घरद्वार, राजपाट छोड़ कर वानप्रस्थ की ओर निकल जाना चाहिए. इतिहास में ऐसे तमाम मामले भरे पड़े हैं जब बूढ़े राजा ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में बेटे को राजपाट दे कर संन्यास ले लिया. कई उदाहरण ऐसे भी हैं जिन में गद्दी पर कब्जा करने के लिए अपने ही पिता को कैद करने का काम भी किया गया.
सीधेतौर पर देखें तो साफ पता चलता है कि वृद्ध लोगों की संपत्ति पर उन के अपने बेटों की निगाह गड़ी रहती है. कई बार तो बेटे जबरदस्ती जायदाद, घर और मकान पर कब्जा कर लेते हैं. कब्जा करने के साथ ही साथ वे वृद्ध लोगों की उपेक्षा भी करते हैं. उन को घर से निकाल देते हैं और वृद्ध लोगों को उन की ही कमाई से बेदखल कर देते हैं. अगर वृद्ध पैंशन पा रहे हैं तो वह भी जबरन छीन लेते हैं. हैल्पएज इंडिया की रश्मि मिश्रा बताती हैं, ‘‘हमारे पास मदद के लिए ऐसी तमाम कौल्स आती हैं जिन में वृद्ध लोग यह शिकायत करते हैं कि उन के ही बेटा या बेटी ने जायदाद से बेदखल कर दिया है. तमाम मामलों में देखा गया है कि वृद्ध लोगों से बेटा या बेटी जबरन या धोखाधड़ी से कागजात पर हस्ताक्षर करा कर जायदाद को अपने नाम करा लेते हैं.’’
कोर्ट के फैसलों में राहत
कानून ने बुजुर्गों को यह अधिकार दिया है कि यदि बच्चे उन से दुर्व्यवहार करें, समय पर ठीक भोजन न दें, उन से नौकर जैसा बरताव करें तो मातापिता बेटाबेटी व दामाद या कोई और, सभी को अपने घर से निकाल सकते हैं, वसीयत से बेदखल कर सकते हैं. यदि वसीयत बच्चों के नाम कर दी है तो उसे बदलवा कर अपनी संपत्ति बच्चों से छीन सकते हैं.
दिल्ली हाईकोर्ट ने 2016 में ऐसे ही एक मामले में आदेश सुनाया था कि बेटा केवल मातापिता की मरजी से ही उन के घर में रह सकता है. मातापिता न चाहें तो उसे उन के घर में रहने का कानूनी हक नहीं है. भले ही उस की शादी हुई हो या न हुई हो.
दिल्ली हाईकोर्ट ने 2017 में एक अन्य फैसले में कहा था कि जिन बुजुर्गों के बच्चे उन से खराब व्यवहार करते हैं, वे किसी भी तरह की प्रौपर्टी से, वसीयत से बच्चों को बेदखल कर सकते हैं. सिर्फ मातापिता की कमाई से बनी संपत्ति पर ही यह बात लागू नहीं होती, बल्कि यह प्रौपर्टी उन की पैतृक और किराए की भी हो सकती है जो बुजुर्गों के कानूनी कब्जे में हो.
कानून तो बना पर मदद नहीं मिल रही
मातापिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरणपोषण एवं कल्याण कानून में वरिष्ठ नागरिकों के लिए बेहतर जीवन सुनिश्चित करने एवं उन के साथ दुर्व्यवहार करने पर 6 माह तक कारावास या 10 हजार रुपए जुर्माना या दोनों सजा का प्रावधान है. इस कानून के तहत प्रत्येक जिले में वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष पुलिस यूनिट का गठन करने, प्रत्येक थाने में वरिष्ठ नागरिकों के लिए शीर्ष अधिकारी नियुक्त करने तथा वरिष्ठ नागरिक हैल्पलाइन रखने की बात कही गई है. विधेयक में दुर्व्यवहार के रूप में शारीरिक रूप से दुर्व्यवहार, गालीगलौच करना, भावनात्मक दुर्व्यवहार, आर्थिक रूप से दुर्व्यवहार, अनदेखी करना और परित्याग, हमला करना, चोट पहुंचाना, शारीरिक एवं मानसिक रूप से कष्ट देना शामिल किया गया है.
कानून के मुताबिक, राज्य सरकार वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा एवं संरक्षा के लिए एक हैल्पलाइन स्थापित करेगी. इस के तहत पूरे देश में एकसमान नंबर होगा तथा जिसे स्वास्थ्य देखरेख, पुलिस विभाग और संबद्ध अभिकरणों से जोड़ा जाएगा. इस में कहा गया है कि सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि सभी अस्पताल चाहे वे सरकार द्वारा पूर्णतया या अंशतया वित्तपोषित हों या निजी स्वास्थ्य संबंधी देखरेख संस्थाएं हों, वरिष्ठ नागरिकों को यथासंभव सुविधा प्रदान करेंगी. विधेयक में वरिष्ठ नागरिकों के लिए प्राधिकरण स्थापित करने का प्रावधान भी किया गया है ताकि वे भरणपोषण और सहायता के दावों का निपटारा कर सकें.
अधिवक्ता राजेश तिवारी कहते हैं, ‘‘सरकार वृद्ध लोगों की मदद करने के लिए तमाम दिशानिर्देश और कानून बना चुकी है. परेशानी की बात यह है कि इस सब तरह से मदद के लिए वृद्ध लोग अपनी बात कहने को सरकारी औफिस या कोर्ट पहुंचें, यह व्यावहारिक नहीं है. कई बार वृद्ध लोग शरीर और पैसे से सक्षम नहीं होते. उम्र के इस दौर में वृद्ध लोगों को दूसरों पर आश्रित होना होता है. ये लोग परिवार के होते हैं. यही समस्या के कारण भी होते हैं. सरकार वृद्ध लोगों की परेशानी को सुने और उन की इस तरह मदद करे कि उन को सरकारी औफिस या कोर्ट में चक्कर न काटने पड़ें. तभी समस्या का पूरी तरह से समाधान हो पाएगा.’’
बेटे को कर सकते हैं संपत्ति से बेदखल
१. बेटा अपने पिता की संपत्ति का स्वाभाविक दावेदार होता है. संपत्ति के लिए कई बार विवाद भी होते हैं और ये अपराध की हद तक चले जाते हैं.
२. कभीकभी मातापिता नहीं चाहते कि उन की संपत्ति उन के बेटे को मिले. कानून अलगअलग तरह से इस मामले में मदद करता है.
३. यदि संपत्ति पैतृक है तो पिता अपने बेटे को उस से बेदखल नहीं कर सकता.
४. यदि संपत्ति मातापिता द्वारा अर्जित की गई है तो उन्हें पूरा अधिकार है कि वे अपनी एक संतान या सभी संतानों को चाहे वह बेटा हो या बेटी, संपत्ति से बेदखल कर दें. इस के लिए कानून के तहत कार्यवाही कर के वकील के माध्यम से एक सार्वजनिक सूचना बनवा कर स्थानीय अखबारों में प्रकाशित कराया जाता है.
५. यदि कोई पिता मरने के बाद बेटा या बेटी को अपनी निजी संपत्ति का कानूनी वारिस नहीं बनाना चाहते तो वे रजिस्टर्ड वसीयत बनवाएं जिस में स्पष्ट करें कि कुल कितने लोग प्रौपर्टी के कानूनी वारिस हैं. उन में से किसकिस को बेदखल कर रहे हैं या वारिस के अधिकार से हटा रहे हैं.
६. अगर बच्चे अपने मांबाप की देखभाल नहीं करते तो ऐसी स्थिति में मांबाप संपत्ति का हस्तांतरण कर दोबारा संपत्ति के हकदार भी हो सकते हैं. मैंटीनैंस एंड वैलफेयर औफ पेरैंट्स एंड सीनियर सिटिजन एक्ट 2007 आंध्र प्रदेश, असम, दिल्ली, गोवा, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, नगालैंड, राजस्थान और त्रिपुरा में लागू है.
वे बिंदु जिन पर गौर करना जरूरी
- पिता अपनी खुद की बनाई संपत्ति से मातापिता बच्चे को बेदखल कर सकते हैं. जब तक वे न चाहें, बच्चे हकदार नहीं होंगे. पिता की मृत्यु बाद वे दावा कर सकते हैं अगर पिता ने किसी और को संपत्ति नहीं दी है तो. पैतृक उत्तराधिकार वाली संपत्ति के मामले में वे बच्चों को बेदखल नहीं कर सकते.
- हिंदू मैरिज एक्ट के तहत पहली पत्नी के रहते दूसरा विवाह वैध नहीं माना जाता. लेकिन पहली पत्नी की मौत के बाद व्यक्ति दूसरी शादी करता है तो उसे वैध माना जाएगा. फिर उस के बच्चे भी विरासत में हकदार होंगे.
- पिता ने जीवित रहते खुद खरीदी संपत्ति किसी को दे दी तो वारिसों को उस में हिस्सा नहीं मिलता. पिता की मौत के बाद भी वे हक नहीं मांग सकते. रजिस्ट्रेशन एक्ट के अनुसार, अचल संपत्ति का गिफ्ट डीड कराना जरूरी है. यदि पिता ने इसे रजिस्टर्ड नहीं कराया है तो कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है.