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छितराया प्रतिबिंब : वह चाहकर भी अपनी बेटी का फोन क्यों नहीं उठा पा रहा था -भाग 2

फिर रात हो उठती भयावह. रोनाधोना, चीखनाचिल्लाना, सिर पटकना-बदस्तूर जारी रहता. तीनों भैया मुझ से बड़े थे. उन के कमरे अलग थे जहां वे तीनों साथ सोते. मैं सब से छोटा होने के कारण अब भी मां के आंचल में था. कुछ हद तक मां मुझे दुलार कर या मेरे साथ अपनी बातें बता कर अकेलापन दूर करतीं. बंद पलकों में मेरी जगी हुई रातें सुबह मेरी सारी ऊर्जा समाप्त कर देतीं.

स्कूल जा कर अलसाया सा रहता. स्कूल के टीचर पिताजी से मेरी शिकायत करते. मैं क्याकुछ सोचता और सोता रहता, स्कूल भेजे जाने का कोई फायदा नहीं, मुझ से पढ़ाई नहीं होगी आदि. मेरी 8 वर्ष की उम्र और पिताजी की बेरहम मार, मां दौड़ कर बचाने आतीं, धक्के खातीं, फिर जाने मां को कितना गुस्सा आता. विद्रोहिणी सीधे पिताजी को धक्के देने की कोशिश करतीं. उलट ऐसा करारा हाथ उन के गालों पर पड़ जाता कि उन का गाल ही सूज जाता. फिर अड़ोसपड़ोस में कानाफूसी, रिश्तों को निभाने का आडंबर सब के सामने अजीब सी नाटकीयता और अकेले में फूला हुआ सा मुंह. सबकुछ मेरे लिए कितना असहनीय था.

क्यों नहीं मेरे पिताजी थोड़ा सा समय मेरी मां के लिए निकालते? क्यों नहीं उन की छोटीबड़ी इच्छाओं का खयाल रखते? क्यों मेरी मां इन ज्यादतियों के बावजूद चुप रहतीं? अकसर ही मैं सोचता.
धीरेधीरे फैक्टरी में काम करने वाले बाबुओं की बीवियां मेरी मां की पक्की सहेलियां बनती गईं. उन के साथ बाहर या पार्टियों में वक्त गुजारना मां का प्रिय शगल बन गया.

मेरे भाइयों की अपने दोस्तों के साथ एक अलग दुनिया बन गई थी, जहां वे खुश थे. शाम को जब वे खेल कर घर वापस आते तो अपनी पढ़ाई वे खुद कर लेते, खापी कर वे सब अपने कमरे में निश्ंिचत सोने चले जाते. मगर मैं मां के सब से करीब था, जरूरत की वजह से भी और अपनी तनहाई की वजह से भी. मेरे जन्म से पहले मेरी मां कैसी थीं, इस से मुझे अब कोई सरोकार न था लेकिन मेरे जन्म के कुछ सालों बाद परिस्थितिवश मेरी मां घरपरिवार की चखल्लस जल्दी से जल्दी निबटा कर शाम होते ही सहेलियों में यों खो जातीं कि मैं तनहा इन बेअदब अट्टहासों की भीड़ में तनहाई की दीवार से सिर पटकता कहीं खामोश सा टूट रहा होता.

रात के 11 बज रहे होते, मैं मां की इन गपोरी सहेलियों के बीच कहीं अकेला पड़ा मां के इंतजार में थका सा, ऊबा सा सो गया होता. तब अचानक किसी के झ्ंिझोड़ने से मेरी नींद खुलती तो उन्हीं में से किसी एक सहेली को कहते सुनता, ‘जाओजाओ, मां दरवाजे पर है.’ मैं गिरतापड़ता मां का आंचल पकड़ता. साथ चल देता, नींद से बोझिल आंखों को मसलते. घर पहुंच कर मेरे न खाने और उन की खिलाने की जिद के बीच कब मैं नींद की गुमनामी में ढुलक जाता, मुझे पता न चलता. नींद अचानक खुलती कुछ शोरशराबे से.

भोर के 3 बज रहे होते, मेरी मां पिताजी पर चीखतीं, अपना सिर पीटतीं और पिताजी चुपचाप अपना बिस्तर ले कर बाहर वाले कमरे में चले जाते. मां बड़बड़ाती, रोती मेरे पास सोई मेरी नींद के उचट जाने की फिक्र किए बिना अपनी नींद खराब करती रहतीं.

मैं जैसेजैसे बड़ा हो रहा था, दोस्तों की एक अलग दुनिया गढ़ रहा था. विद्रोह का बीज मन के कोने में पेड़ बन रहा था. हर छोटीबड़ी बातों के बीच अहं का टकराव उन के हर पल झगड़े का मुख्य कारण था. धीरेधीरे सारी बूआओं की शादी के बाद मेरी दादी भी अपने दूसरे बेटे के पास रहने चली गईं. मां का अकेलापन हाहाकार बन कर प्रतिपल अहंतुष्टि का रूप लेता गया. पिताजी भी पुरुष अहं को इतना पस्त होते देख गुस्सैल और जिद्दी होते गए. तीनों भाइयों की दुनिया में उन का घर यथावत था, लेकिन मुझे हर पल अपना घर ग्लेशियर सा पिघलता नजर आता था.

मैं एक ऐसा प्यारभरा कोना चाहता था जहां मैं निश्ंिचत हो कर सुख की नींद ले सकूं, अपनी बातें अपनों के साथ साझा करने का समय पा सकूं. मैं खो रहा था विद्रोह के बीहड़ में.
मैं इस वक्त 10वीं की परीक्षा देने वाला था और अब जल्दी ही इस माहौल से मुक्त होना चाहता था. सभी बड़े भाई अपनीअपनी पढ़ाई के साथ दूसरे शहरों में चले गए थे. मैं ने भी होस्टल में रहने की ठानी. उन दोनों की जिद भले ही पत्थर की लकीर थी लेकिन मेरी जिद के आगे बेबस हो ही गए वे. मेरे मन की करने की यह पहली शुरुआत थी जिस ने अचानक मेरे विद्रोही मन को काफी सुकून दिया. मुझे यह एहसास हुआ कि मैं इसी तरह अपने को खुश करने की कोशिश कर सकता हूं.

बस, जिस मां को मैं इतना चाहता था, जिसे अपनी पलकों में बिठाए रखना चाहता था, जिस की गोद में हर पल दुबक कर उन की लटों से खेलना चाहता था, उन की नासमझी की वजह से दिल पर पत्थर रख कर मारे गुस्से और नफरत के मैं उन से दूर भाग आया.

 

डिजिटल प्लेटफार्म न्यूज पोर्टल और ओटीटी प्लेटफार्म पर उठे सवाल

पिछले कुछ समय से ओटीटी प्लेटफार्म पर प्रसारित हो रही फिल्मों, डाक्यूमेंट्री और वेब सीरीज को ‘सेंसर बोर्ड’के तहत लाने की मांग उठती रही है.इसी मांग के अनुरूप नवंबर 2020 माह में सरकार डिजिटल प्लेटफार्म,ओटीटी आदि को सूचना प्रसारण मंत्रालय के अधीन लाने का फैसला लिया था.उधर रचनात्मक सामग्री को सेंसर करने की मांग देश का एक तबका लगातार उठाता रहा.मगर सरकार भी समझ रही थी कि सेटेलाइट चैनल हों या ओटीटी प्लेटफार्म हो या सोशल मीडिया हो, इन्हें सेंसरशिप के दायरे में लाना व्यावहारिक नही है.

यह सारे प्लेटफार्म अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत संचालित होते हैं.तो वहीं बॉलीवुड से मनोज बाजपेयी,महेश भट्ट,हंसल मेहता, स्वरा भास्कर,रिचा चडढा सहित तमाम हस्तियां ‘सेंसरशिप’का लगातार विरोध करती रही. लेकिन ‘अमैजान’पर अली अब्बास जफर निर्मित तथा सैफ अली खान,मो.जीषन अयूब,अनूप सोनी व डिंपल कापड़िया के अभिनय से सजी वेब सीरीज ‘‘तांडव’’के प्रसारण के साथ ही कई हिंदू संगठनों व हिंदू नेताओं ने हिंदू धर्म व देवी देवताओं के साथ खिलवाड़ करने का मुददा उठाते हुए हंगामा खड़ा कर दिया.इस हंगामें में कौन लोग थे,उस पर हम नही जाना चाहते.खैर,कुछ लोग अदालत में याचिका लेकर पहुंच गए.

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सरकार को हरकत में आना ही था.सूचना प्रसारण मंत्रालय ने ‘अमेजान’ की अपर्णा पुरोहित व वेब सीरीज के निर्माताओं को तलब किया.‘तांडव’के निर्माता व कलाकारो ने ट्वीटर पर बयान जारी कर माफी माॅंगी और वेब सीरीज से कुछ दृष्यों को हटा दिया.अफसोस की बात यह है कि देष मे सर्वधर्म व सभी समान हैं की बात करने वाली सरकार या किसी भी इंसान का इसी वेब सीरीज में दलित इंसान का जो अपमान किया गया,उस तरफ नहीं गया.इस मुद्दे पर सरकार भी चुप्पी साधे रही.तो वहीं इलहाबाद हाई कोर्ट ने ‘तांडव’केखिलाफ दायर याचिका व पुलिस में दर्ज एफआरआई के ही संदर्भ में अमेजॅान की अपर्णा पुरोहित की अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज करते हुए कहा कि उन्हे जो अपराध करना था,वह तो वह कर चुके, इसलिए अब उन्हे सजा के लिए तैयार रहना चाहिए.माननीय न्यायाधीश ने इस पर अपनी लंबी चैड़ी टिप्पणी की है.

इधर ‘तांडव’के विरोध के बीच केंद्र सरकार ने ओटीटी प्लेटफार्म,डिजिटल मीडिया व सोशल मीडिया को लेकर दिशा निर्देश जारी करने की मंशा जाहिर कर दी.आनन फानन में सरकार की तरफ से दिशा निर्देश तैयार किए गए और गुरूवार,25 फरवरी को केंद्रीय आई टी व कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद तथा सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने प्रेस काॅफ्रेंस कर इन दिशा निर्देशों, आईटी एक्ट 2021’और नियम 19 बी तथा 69 ए का भी उल्लेख किया.हम आनन फानन की बात कह रहे हैं,क्योंकि इन दिशा निर्देशों में काफी विरोधाभास है.दूसरी बात एक ही मसले पर एक ही सरकार के दो नियम कैसे हो सकते हैं?

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सोशल मीडिया को लेकर सरकार ने जारी किए नए निर्देशः
सोशल मीडिया और ओटीटी के प्रयोग को लेकर सरकार की यह गाइडलाइन/दिशा निर्देश त्रिस्तरीय नियमन ( जीतमम समअमस हतपमअंदबम तमकतमेेंस उमबींदपेउ ) हैं.प्रथम स्तर पर यह नियमन रचनात्मक सामग्री प्रकाशित करने वाले प्लेटफॉर्म के स्तर पर होगा.दूसरे स्तर पर स्वनियमन( मस ितमहनसंजवतल इवकल ) का प्रावधान है,जिसे लंबे समय से लोग समाचार चैनलों व सेटेलाइट टीवी चैनलों के संदर्भ में देखते आए हैं और तीसरे स्तर पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार का नियमन होगा. नियमन के इस नए प्रावधान के चलते ओटीटी प्लेटफॉर्म,सोशल मीडिया व डिजिटल मीडिया का काम और औपचारिकताएं पहले से बहुत ज्यादा बढ़ जाएंगीइतना ही नही यह भी संभव है कि आम इंसान जिस तरह का कंटेंट देखना चाहता है,वह उसे देखने को न मिले.

पहली नजर में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने सोशलमीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए जो गाइडलाइंस जारी की है,उसमें रचनात्मकता पर अंकुश लगाने वाला मसला नजर आता है.सरकार इस गाइड लाइंस के बहाने कहीं ना कहीं अपरोक्ष रूप से आम इंसान के अंदर डर का माहौल पैदा करने की कोशिश कर रही है,तो वहीं डिजिटल न्यूज पोर्टल पर षिंकजा कसने की तैयारी भी लगती है.हम यह मान सकते हैं कि सरकार के नए दिशा निर्देशों के चलते आनेवाले वक्त में इस प्रावधान से सोशल मीडिया पर कंटेंट के साथ ही कंटेंट की भाषा का फिल्टरेशन हो सकेगा. सरेआम जो गाली देने और ट्रोल किए जाने का काम होता है,उस पर शायद विराम लग सकेगा.और सरकार कुछ लोगों को दोषी बताकर सजा भी दे दे या उन पर काररवाही कर सके.मगर हकीकत में सरकार जिसके खिलाफ काररवाही करने का मन बना ले,उसके खिलाफ वह इन दिषा निर्देषो या नए आईटी कानून के बिना भी कर सकती थी.पर सरकार ने कभी किया नही.

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एक टीवी चैनल पर इसी तरफ इषारा करते हुए वरिष्ठ पत्रकार आषुतोष ने कहा-‘‘मेरा मानना है कि वर्तमान कानून व न्यायवस्था के चलते नए दिशा निर्देश लाने की जरुरत नहीं थी.एक तरफ सरकार कम कानूनों की बात करती है,तो दूसरी तरफ नए नए कानून लाती जा रही है.यदि आज मैं आज भड़काउ बात लिखता हॅूं तो क्या सरकार मेरे खिलाफ काररवाही करने के लिए नए कानून बनने का इंतजार करती.जी नही..जब सरकार को काररवाही करनी होती है,तब वह करती है.मुझे लगता है कि इन दिशा निर्देशों के साथ सरकार डिजिटल प्लेटफार्म को अपने अंकुश में  लाने की पूरी कोशिश की जा रही है.मसलन इसमें ओवर साइट कमेटी की बात की गयी है.इसमं कौनकोन होगा?इसमें गृहमंत्रालय,रक्षा मंत्रालय,सूचना प्रसारण मंत्रालय, कानून मंत्रालय,आई टी मंत्रालय और बाल व महिला मंत्रालय से जुड़े अधिकारी होंगें,जो कि सोबो मोटो किसी भी कम्पलेन को ले सकते हैं.फिर उस कंटेंट को हटाने व उस प्लेटफार्म को बंद करने की बात कर सकते हैं.’’

दिशा निर्देश लाने के पीछे का सच?
कई लोग सोशल मीडिया,डिजिटल मीडिया आदि के संदर्भ में दिशा निर्देश लाने के समय पर भी सवाल उठा रहे हैं.ऐसे लोगों की राय में सरकार का अपने अंदर का डर भी एक वजह हो सकती है.क्योकि पिछले एक वर्ष के अंदर सोशल मीडिया दिन प्रतिदिन अति शक्तिशाली होता गया. जी हाॅ!कोरोना महामारी और लाॅकडाउन के वक्त हर आम इंसान के लिए मनोरंजन के साधन के तौर पर ओटीटी प्लेटफार्म एकमात्र साधन बन कर उभरा.तो वहीं अपना संदेश अपने परिचितों तक पहुॅचाने के लिए ‘व्हाट्सअप’,टेलीग्राम, फेषबुक, ट्वीटर,इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म और अपने स्मार्ट फोन पर ही खबरें देख लेने की प्रवृत्ति विकसित होने के साथ ही डिजिटल न्यूज पोर्टलों की संख्या तेजी से बढ़ी.इनके उपयोगकर्ताओं की संख्या में भी तेजी से बढ़ोत्तरी हुई.

प्राप्त आंकड़ों के अनुसार एक भारतीय हर दिन अपने स्मार्ट फोन पर लगभग साढ़े चार घंटे व्यस्त रहता है.जबकि 2019 में वह सिर्फ तीन घंटे ही बिताता था.2020 में 2019 के मुकाबले तीस प्रतिशत ऐप ज्यादा डाउनलोड किए गए.‘जी न्यूज’की माने तो हर मिनट पर ऐप में 275598 रूपए खर्च किए जा रहे हैं.हर मिनट 208333 लोगो की जूम पर मीटिंग,404444 घंटे की वीडियो स्ट्रीमिंग,हर मिनट 1288889 लोग वीडियो या वाॅयस काॅल कर रहे हैं.हर मिनट फेशबुक पर 147000 फोटो अपलोड की गयी.जबकि हर मिनट 41666667 मैसेज शेअर किए गए.फेशबुक पर 41 करोड़,वहाट्सअप पर 45 करोड़,ट्विटर पर एक करोड़ सात लाख भारतीय सक्रिय हैं.इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के वक्त सोषल मीडिया कितना ताकतवर हो सकता है.ऐसे मंे इस पर लगाम लगाने की सरकार को जरुरत महसूस हुई.

इन दिशा निर्देशों के दुष्परिणामः
अब तक सस्ते मोबाईल हैंडसेट, डेटापैक और नेटवर्क की सुविधा के चलते देश की एक बड़ी आबादी बिना प्रावधानों की पेंचीदगियों को जाने-समझे इसका इस्तेमाल करती आयी हैं,पर अब वह अबाध गति से इसका प्रयोग करने में हिचक महसूस करेंगे. इसका असर यह होगा कि इससे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की लोकप्रियता पर असर पड़ेगा.जिसका सीधा असर मोबाईल, नेटवर्क, सूचना एवं मनोरंजन उद्योग से जुड़े राजस्व पर भी पड़ सकता है.आखिर हर इंसान सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक पहुंचने से पहले कई स्तर पर ग्राहक और उपभोक्ता की भूमिका से गुजर रहा होता है.

सोशल मीडिया पर आम इंसान की आवाज कोदबाने का प्रयास
सोशल मीडिया के यह नए प्रावधान यदि अनर्गल, तथ्यहीन, फेक सामग्री, नफरत, हिसा और ट्रोल भाषा पर लगाम कसने के लिए लाए गए हैं,तो हमें कुछ दिन इसके परिणाम पर नजर रखनी चाहिए.पर फिलहाल सरकार की यह सारी कवायद सोशल मीडिया पर आम इंसान की आवाज को दबाने का प्रयास भी लग रहा है.आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस के तहत आम इंसान की निजिता का सोशल मीडिया पर जो हनन हो रहा है,उस पर सरकार चुप है.

आईटी अधिनियम की धारा 69 ए और 79 के तहत सरकार सोशल मीडिया प्लेटफार्मों अर्थात फेसबुक, यूट्यूब या ट्विटर को ‘‘मध्यस्थ‘‘/बिचैलिए मान कर चल रही है,जो अनिवार्य रूप से इंटरनेट सामग्री के वाहक मात्र हैं,सामग्री के मूल लेखक नहीं हैं.सरकार मान चुकी है कि सोषल मीडिया प्लेटफार्म उपयोगकर्ता पर संपादकीय नियंत्रण नहीं करते हैं.इसलिए ट्विटर जैसे सोशल मीडिया को किसी व्यक्ति द्वारा उसके मंच पर प्रकाशित अभद्र भाषा के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.ऐेस में सरकार अपनी नई गाइडलाइन्स के तहत इन ट्वीटर सहित सभी सोशल मीडिया पर प्रभावी ढंग से अंकुष लगाने के साथ ही सोषल मीडिया की सामग्री की निगरानी करना चाहती है.यानीकि सरकार अपरोक्ष रूप से सेंसरषिप लाने के साथ ही हर आम इंसान या यॅूं कहें कि सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी बात कहने वालों को डराने का प्रयास कर रही है,जो आजाद भारत के इतिहास में अब तक नही हुआ.

यह तय है कि सोशल मीडिया भी हिंदुस्तानी कानून के अंतर्गत नहीं आते.पर सोशल मीडिया के खिलाफ 69 ए के तहत ही काररवाही कर सकेंगे.जबकि अभी तक के दिशा निर्देश के अनुसार सेल्फ रेग्युलेटरी बनाने की बात कही गयी है और प्रथम रचनाकार की पहचान बताने की बात कह कर आम इंसान के अंदर डर पैदा करने की भावना निहित है.तो वहीं पर सोशल मीडिया व ओटीटी प्लेटफार्म के लिए एक भारतीय पासपोर्ट धारक की नियुक्ति की बातकर कर उसे 69 ए के तहत दंडित करने की मंषा रखती है.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन यॅॅ तो सोशल मीडिया कंपनियों के लिए नए नियमों और ओटीटी स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म और डिजिटल न्यूज मीडिया के लिए आचार संहिता की घोषणा करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने गुरुवार, 25 फरवरी को कहा कि वह ‘‘हम सोषल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्म का स्वागत करते हैं.

तथा सोशल मीडिया के सामान्य उपयोगकर्ताओं को सशक्त कर रहे हैं.मगर सोशल मीडिया या डिजिटल मीडिया पोर्टल को अफवाह फैलाने या झूठ फैलाने का अधिकार नही है.आज लोगो को निजी जिम्मेदारी को समझने की जरुरत है.’‘ इस अवसर पर सरकार द्वारा 30 पृष्ठ का ‘‘सूचना प्रौद्योगिकी (बिचैलियों और डिजिटल मीडिया आचार संहिता के लिए दिशानिर्देश) नियम, 2021’’बुकलेट जारी की गयी,जो कि सोषल मीडिया कंपनियों को परिभाषित करती हैं.इसमें सभी ऑनलाइन मीडिया के नियमन के लिए एक त्रिस्तरीय तंत्र का सुझाव दिया गया हैं, जो कि हकीकत में सोषल मीडिया और डिजिटल न्यूज चैनलों को रोकने के लिए आंतरिक मंत्रालय को कई तरह की शक्तियों को प्रदान करता है.

जबकि ‘‘सूचना प्रौद्योगिकी नियमन 2021’को ध्यान से पढ़ा जाए तो यह बात समझ में आती है कि यह ‘‘उपयोगकर्ताओं को सशक्त‘‘ करने की बजाय ऑन लाइन सामग्री प्लेटफॉर्म से उनकी स्वतंत्रता को छीना जा रहा है.अब सोषल मीडिया पर पोस्ट करने की आम इंसान की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुठाराघात है.वैसे मंत्रियो ने भी साफ कर दिया कि आम इंसान को 19 ए के तहत मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को 19 बी अंकुश लगाते हुए कहती हे कि जिम्मेदार नागरिक के रूप में ही पोस्ट करना चाहिए.प्रकाष जावड़ेकर ने कहा-‘‘सुप्रीम केार्ट ने इंटरनेट का उपयोग करने को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता माना है.मगर ‘19 बी’ के तहत भारत की सार्वभौमिकता के लिए बंदिषें है.सोषल मीडिया पर दोहरा मापदंड नही चलेगा.’’

जबकि आई टी और कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद कहते हैं-‘‘इंटरनेट गलोबल है.पर उन्हे स्थानीय कानून को मानना ही पड़ेगा.’’अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत संचालितं लेकिन हकीकत में सरकार के पास किसी भी ओटीटी प्लेटफार्म,सोशल मीडिया प्लेटफार्म आदि के खिलाफ सीधे काररवाही करने का अधिकार ही नही है.क्योंकि यह सभी प्लेटफार्म अमरीकन या अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत संचालितहो रहे हैं.ऐसे में सरकार के पास एकमात्र हथियार यह है कि आईटी कानून का उपयोग करते हुए डीओटी किसी भी प्लेटफार्म का सिग्नल ठप्प कर दे.पर ऐसा करते समय सरकार को कई बातों पर गौर करना पड़ेगा.अब तो यह प्लेटफार्म सौ प्रतिषत एफडीआई के तहत काम कर रहे हैं.

महज परेशान करने की कवायद
सरकार भी इस बात को समझ रही है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत चलते हैं ना कि भारतीय कानून के तहत.इसी के चलते अब नए दिषा निर्देश में सरकार ने कहा है कि हर ओटीटी प्लेटफार्म,डिजिटल मीडिया व सोशल मीडिया को भारत में एक भारत के पासपोर्ट धारी इंसान को बैठाना होगा,जिससे सरकार जवाब तलब कर सके.मगर अहम सवाल यह है कि अमरीका से ओटीटी प्लेटफॉर्म पर स्टी्म की गई फिल्म या वेब सीरीज या डाक्यूमेंट्री के लिए आप किसी भारतीय को दोषी कैसे ठहरा सकते हैं?तभी तो गाइडलाइंस के अनुसार ओटीटी प्लेटफॉर्म दोषी पाए जाते हैं,तो उनके खिलाफ सजा का कोई प्रावधान नहीं है.इसके मायने तो सिर्फ इतना ही है कि ओटीटी प्लेटफार्म के किसी कंटेंट से सहमत न होने पर उस ओटीटी प्लेटफार्म से जुड़े भारतीय शख्स को परेशान कर एक दबाव बनाया जा सकता है.

‘एंड टू एंड एन्क्रिशन’ होगा खत्म जब व्हाट्सअप ने आठ फरवरी से नियम बदलने की बात की थी,तो आम इंसान की निजिता का सवाल उठा था.उस वक्त सरकार ने कहा था कि व्हाट्सअप को ऐसा नही करना चाहिए.तभी व्हाट्सअप बैकफुट पर आया था.मगर अब सरकार वही काम कर रही है.सरकार ने जो गाइड लाइंस जारी की हैं,उसके अनुसार ‘व्हाटसअप व टेलीग्राम जैसे सोशल मीडिया को प्रथम संदेष भेजने वाले की पहचान बतानी होगी,इसके लिए वह एक मैकेनिजम विकसित करेगा.

व्हाट्सअप या टेलीग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म आम इंसान की निजिता को बरकरार रखने के लिए ‘एंड टू एंड एन्क्रिशन’का वादा करते हैं.मगर अब सरकार की नई गाइड लाइन्स इन महत्वपूर्ण सोशल मीडिया प्लेटफार्म या बिचैलियों को ‘‘अपने कंप्यूटर संसाधन पर सूचना के प्रथम उपयोगकर्ता/ प्रवर्तक की पहचान को जानने के बाध्य करती है.सरकार की यह गाइड लाइन्स ‘एंड टू एंड एन्क्रिप्शन’की धज्जियां उड़ाते हुए निजिता को असुरक्षित करता है.यहां पर सरकार की ‘सेल्फ-सेंसरशिप’महज छलावा है.कहने का अथ यह कि अब हर इंसान को मान लेना चाहिए कि वह टेलीग्राम या व्हाट्सअप जैसे सोशल मीडिया पर किसी अपने को कोई भी संदेश भेज रहे हैं,तो हर संदेष अब लेखक की पहचान संग जुड़ा होगा.इतनाही नही अब सरकार की गाइड लाइंस के अनुसार हर सोशल मीडिया प्लेटफार्म ‘ए आई’जैसे स्वचालित/आॅटोमैटिक उपकरणों का उपयोग कर हर कंटेट की जाॅंच करेगा.वैसे इस तरह के उपकरण एकदम सटीक जानकारी नही देते.

वैसे तकनीक के जानकर दावा करते है कि व्हाट्सअप या टेलीग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म आम इंसान की निजिता को बरकरार रखने के लिए ‘एंड टू एंड एन्क्रिशन’का जो वादा करते हैं,वह भी महज छलावा ही है.क्योंकि आई टी कानून के ततह पुलिस की माॅंग पर यह पूरी स्क्रिप्ट मुहैय्या कराते रहे हैं.सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद कई हस्तियों के व्हाट्सअप चैट जिस तरह से सार्वजनिक हुए,उसी से इन सोशल मीडिया के ‘एंड टू एंड एन्क्रिप्शन’के वादे की कलई खुल गयी थी.

आधार कार्ड का दुरूपयोग
सरकार के नए दिशा निर्देश के अनुसार अब सोशल मीडिया के प्लेटफार्म को प्रथम संदेश/कंटेंट पोस्ट करने वाले की पहचान बताना अनिवार्य कर दिया है.ऐसे में ट्वीटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म उपयोग कर्ता या पोस्ट करने वाले लेखक से उसकी पुख्ता पहचान के लिए ‘आधार कार्ड’ की माॅंग कर सकता है.अतीत में भी वह ऐसा कर चुका है.ऐसे में इंसान की निजिता के हनन के साथ ही उसकी कई गोपनीय जानकारियां ट्वीटर/सोशल मीडिया के पास होंगी.यदि इन जानकारियों का दुरूपयोग हुआ तो?इस पर मंत्रियो के पास कोई ठोस जवाब नही है.मंत्रीगण यही रट लगाए हुए नजर आ रहे है कि ,‘हम सोशल मीडिया से जिम्मेदार होने का आग्रह कर रहे हैं.हम ओटीटी प्लेटफार्म और सोशल मीडिया पर विश्वास करते हैं.हम सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले हर इंसान की पहचान नही पूछने वाले हैं,हम तो सिर्फ उस प्रथम उपयोग कर्ता की पहचान पूछेंगे,जिसने सबसे पहले संदेश या कंटेंट पोस्ट किया और वह भी ऐसा कंटेंट जिसके तहत पांच वर्ष की सजा का प्रावधान है.’’

अब सरकार चाहे जो कहे, मगर इन दिशा निर्देशों के लागू होते ही ट्वीटर जैसे सोशल मीडिया तो अपने हर उपयोगकर्ता से उसकी पहचान के लिए आधार कार्ड आदि की मांग कर सकते हैं.
ऑटोमैटिक इंटेलीजेंस की जरुरत
सोशल मीडिया के अलावा डिजिटल समाचार माध्यमों के लिए जो दिशा निर्देष बनाए गए हैं,उनके अनुसार बाल यौन शोषण, देश-विरोधी समाचार आदि को अलग करने के लिए ‘‘स्वचालित उपकरणों सहित प्रौद्योगिकी आधारित उपायों की तैनाती करनी पड़ेगी.स्वचालित मशीन लर्निंग टूल्स की एक वेब साइट से चर्चा करते हुए ‘फ्रीडम इंटरनेट फाउडेषन’के कार्यकारी निदेशक अपार गुप्ता ने कहा है-‘‘वह टूट गए हैं.इनमें संदर्भ नहीं मिलता.अलग-अलग संदर्भों में शब्दों और चित्रों के बहुत अलग अर्थ हैं और यह वही है,जिनके लिए ‘एआई’सही नही रह गए.हकीकत में यह सेंसरशिप का ही एक रूप है.सरकार इस गाइडलाइन्स के माध्यम से चाहती है कि बड़ी मात्रा में सामग्री रोकते हुए पूर्व-सेंसरशिप की ओर ले जाया जाए.’’

अपार गुप्ता ने आगे कहा है-‘‘आईटी अधिनियम की धारा 79, जिसके भीतर यह नियम लाए गए हैं,वह उन बिचैलियों/मध्यस्थों पर लागू होते हैं,जो खुद लेखक नहीं हैं या जिनका सामग्री पर संपादकीय नियंत्रण नहीं रहता. समाचार मीडिया इस वर्गीकरण के अंतर्गत नहीं आता है,परिणामतः अध्निियम 79 समाचार मीडिया पर लागू नहीं होता.मगर सरकार के नए दिशा निर्देश के अनुसार अब समाचार मीडिया को एक स्व-नियामक निकाय का हिस्सा बनना होगा.अब सिर्फ संगठन ही नही बल्कि व्यक्तिगत रचनाकारों का भी सेल्फ सेंसरशिप के दायरे में आना पड़ेगा.पर सरकार अपरोक्ष रूप से ब्यूरोके्रट्स के माध्यम से निगरानी करने वाली है.यॅूं तो सोशल मीडिया वास्तव में ‘आई टी’एक्ट सोशल मीडिया पर ही लागू हो सकता है, इसे डिजिटल समाचार मीडिया पोर्टल तक नही बढ़़ाया जाना चाहिए.’’
जानकारों के अनुसार ‘आई टी 2000’को विस्तारित कर ‘आई टी 2021’की संज्ञा दी गयी है,पर इसे डिजिटल समाचार माध्यमों पर लागू नही किया जा सकता,क्योंकि इसे संसद से पारित नहीं कराया गया है.
सरकार का दोहरा मापदंड
ओटीटी प्लेटफार्म पर प्रसारित होने वाली फिल्मों या वेब सीरीज आदि को लेकर सरकार ने जो नए दिशा निर्देश जारी किए हैं,उससे सरकार का दोहरा मापदंड सामने आता है.एक फिल्म जिसे निर्माता,निर्देषक व कलाकार बड़ी मेहनत से बनाते हैं,उन्हें अपनी फिल्म को आम दर्शकों के लिए सिनेमाघरों में प्रदर्शित करने से पहले फिल्म केा सेंसर बोेर्ड/केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’’से पारित करवाना पड़ता है.जहां उनकी फिल्म को कंटेंट के अनुसार ‘यू’,‘यूए’या ‘ए’प्रमाणपत्र मिलता है.मगर सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ओटीटी प्लेटफार्म पर आने वाली फिल्मों के संदर्भ में जो दिशा निर्देश दिए है,वह सेंसर बोर्ड की गाइड लाइंस के मुकाबले काफी कमजोर हैं.जिस एडल्ट, हिंसा,अष्लीलता को फिल्म सेंसर बोर्ड की चाबुक के चलते फिल्मकार अपने दर्शकों  को नही दिखा सकता,वह सब ओटीटी पर धड़ल्ले से दिखाया जा रहा है.इस तरह सरकार जहां यानी कि सिनेमाघरो में प्रदर्शित होनेवाली फिल्मों में ज्यादा मेहनत और ज्यादा रिस्क है,वहां पर बंदिशे लगा रही है.

सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि ओटीटी प्लेटफार्म को ‘सेल्फ रेगुलेटरी’बाॅडी बनाकर अपने कंटेंट को 13 उम्र,16 उम्र और ‘ए’कैटेगरी मे विभाजित करना होगा. तथा वर्गीकृत सामग्री के लिए विश्वसनीय आयु सत्यापन तंत्र के रूप में वर्गीकृत सामग्री के लिए पैरेंटल गाइडेंस को लागू करने की आवश्यकता होगी.मान लिया कि ओटीटी प्लेटफार्म किसी फिल्म को ‘ए’प्रमाणपत्र देकर प्रसारित करता है.पर सवाल है कि 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चे कैसे नही देखेंगें? पैरेंटल लाॅक कैसे चलेगा?ओटीटी प्लेटफॉर्म ने किसी फिल्म को ए सर्टिफिकेट के साथ रिलीज किया, तो इस बात की गारंटी कैसे हो जाएगी इसे बच्चे नहीं देखेंगे?क्योकि आज की तारीख मे आठ से दस साल की उम्र के बच्चे के हाथ में भी स्मार्ट फोन है. कहने का अर्थ यह है कि सरकार खुद पूरी तरह से इस डिजिटल मीडियम को समझ नहीं रही है अथवा समझते हुए भी महज डर का माहौल पैदा करने के लिए गाइड लाइंस जारी कर रही है.

सरकार के दिशा निर्देश के खिलाफ पहलाज निहलानी
मषहूर निर्माता और फिल्म सेंसर बोर्ड के पूर्व चेअरमैन पहलाज निहलानी सरकार के इन दिशा निर्देशों पर सवाल उठाते हुए कहते हैं-‘‘ओटीटी प्लेटफार्म पर रेटिंग सिस्टम की जरूरत ही नहीं है.जब हम सेल्फ रेग्युलेशन ला रहे हैं, तब रेटिंग का मतलब ही नहीं है.अब जमाना इतना बदल रहा है कि यू सेलेकर यूए तक रेटिंग सिस्टम की कोई जरूरत ही नहीं है. .मसला तो यूए और एडल्ट के बीच का मसला है और ए के बाद का मसला है.ए यानी वयस्क रेटिंग तो 21 वर्ष के लिए आनी चाहिए,क्योंकि 21 साल के बाद शादी एलीजिबल है.यू भी ओटीटी पर जो कुछ दिखाया जा रहा है, वह 21 साल के ऊपर का कंटेंट है.अगर ओटीटी प्लेटफॉर्म को सेल्फ रेग्युलेशन में ला रहे हैं. तब इतना फालतू रेटिंग सिस्टम लाने की जरूरत ही नहीं है.दूसरी बात आप दावा कर रहे है कि स्वतंत्रता दे रहे हो.

यदि आप ओटीटी प्लेटफार्म को स्वतंत्रता दे रहे हो,तो फिर फिल्म इंडस्ट्री को क्यों नहीं.एक फिल्म निर्माता को फिल्म सेंसर बोर्ड के दरवाजे पर भेजने की जरुरत क्यों? वह भी सेल्फ रेग्युलेशन लाए.सिनेमा में सेंसर बोर्ड की जरूरत क्या है.सरकार को चाहिए कि वह तुरंत सेंसरबोर्ड को बंद कर दे.वैसे भी सेंसरबोर्ड में नकारा अफसरों की नियुक्ति हो रही है.’’

हमारे देष में फिल्म सेंसर बोर्ड से पारित फिल्मों के खिलाफ कुछ संगठन या किसी राज्य से जुड़े लोग आपत्ति उठा कर उसे बैन कराते रहे हैं.ऐसे में सरकार की नई गाइडलाइंस के बाद ओटीटी प्लेटफॉर्म के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठेगी यह कैसे मान लिया जाए?अहम मुद्दा यह हे कि जब किसी ओटीटी प्लेटफार्म के किसी कार्यक्रम के खिलाफ शिकायत आएगी और उस ओटीटी प्लेटफार्म की सेल्फ रेग्यूलेटरी बाॅडी,जिसका अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट का अवकाश प्राप्त जज ही होगा,वह कहेगा कि उसके कंटेंट में कुछ भी आपत्तिजनक नही है,तब मसला अदालत में जाएगा.

इस तरह अदालत के काम का बोझ बढ़ना तय है.
सरकार के दिषा निर्देश में तीन स्तर की बात की गयी है.इसके बावजूद इसमें काफी खामिया हैं.यदि किसी ने किसी ओटीटी प्लेटफार्म के कंटेंट के खिलाफ शिकायत की,तो उसका निपटारा होने मे 45 दिन से तीन माह का वक्त लग जाएंगा.उसके बाद संतुष्ट न होने पर सरकार दखलंदाजी करेगी.उसके बाद सरकार के निर्णय के खिलाफ ओटीटी प्लेटफार्म अदालत जा सकता है.उसका तर्क होगा कि उसने जो ‘सेल्फ रेग्यूलेशन’की कमेटी बनायी है,उसने इसमें कुछ भी गलत नही पाया.

इस बीच वह वेब सीरीज या फिल्म धड़ल्ले से ओटीटी पर मौजूद रहेगा.पर इससे अदालतों का बोझा जरुर बढ़ेगा.इतना ही नही एक सवाल यह भी है कि शिकायत की जाने के बाद क्या हो रहा है,उस पर नजर कौन बनाकर रखेगा.आम आदमी किस हद तक अपनी शिकायत को लेकर दौड़ेगा.दिषा निर्देष भी अस्पष्ट है.फिल्म सेंसर बोर्ड की गाइड लाइंस काफी हद तक स्पष्ट हैं.

सीरियल निर्माता राजेश कुमार सिंह वेब सीरीज ‘तांडव’का उदाहरण देते हुए कहते हैं-‘‘अभी तो आम इंसान ‘तांडव’के खिलाफ अपनी शिकायत लेकर अदालत पहुॅचा और इलहाबाद हाईकोर्ट ने अमेजाॅन की अपर्णा पुरोहित की जमानत याचिका खारिज करते हुए आदेष दिया कि उन्होेने हिंदू धर्म को जो नुकसान पहुंचाना था,वह पहुॅंचा दिया,इसलिए अब उन्हे सजा भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए.मगर दिशा निर्देश के बाद तो सीधे अदालत नही जा पाएंगे.यदि कोई गया,तो ओटीटी प्लटफार्म अदालत से कहेगा कि हमने सरकार के दिशा निर्देश के अनुसार सेल्फ रेग्युलेटरी बाॅडी बना रखी है,किसी को शिकायत है तो उसमें करें.ऐसे में ओटीटी पर वेब सीरीज चलती रहेगी.इधर 45 दिन से एक वर्ष तक का समय गुजर जाएगा.उसके बाद पाबंदी लगने या उस वेब सीरीज को हटाने के क्या मतलब होंगे?69 ए का उपयोग करने की बात की गयी है.पर इसका उपयोग सरकर सबसे अंत में करेगी,तब तक वेब सीरीज आकर जा चुकी होगी.हकीकत में सरकार ने ओटीटी प्लेटफार्म को बचने का रास्ता दे दिया है.सरकार ने सजा की बात की ही नही है.’’

‘माई ब्रदर निखिल’ और ‘आई एम’जैसी फिल्मों के सर्जक ओनीर ने कंटेंट क्रिएटर्स का पक्ष नहीं लेने के लिए दिशानिर्देशों की आलोचना करते हुए कहते हैं-‘‘सिनेमा की मौत और अच्छी सामग्री. कलाकार को ठोकर मार दो और सभी को खुश रखो.एक लोकतंत्र में एक कलाकार के लिए सबसे बुरा काम ओटीटी का यह विनियमन हो सकता है. ”

सरकार के लिए सेटेलाइट चैनलों को भी रेग्युलेट करना असंभव है.पहले केबल एक्ट के तहत कुछ पाबंदी ला पाती थी.पर अब केबल एक्ट लागू नही होता.केबल एक्ट जब था,तब सिर्फ फिल्मों को ही रेग्युलेट कर पा रहे थे.सैकड़ों घंटे के कार्यक्रम को कैसे रेग्युलेट करेंगें? टेलीवीजन कटेंट को रेग्युलेट करना व्यावहारिक भी नही है.इसीलिए वहां भी सेल्फ रेग्यूलेट करने की बात कही गयी है.पर क्या हो रहा है, सभी को पता है.
वहीं फिल्म इंडस्ट्री के ही अंदर कुछ लोग कह रहे हैं कि सरकार अपनी जिम्मेदारी से बचते हुए ओटीटी प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने के प्रयास के साथ ही अघोशित आपातकालकी स्थिति लाने का प्रयास कर रही है.

माना कि अनर्गल, तथ्यहीन और हिंसा व हिकारत की भाषा में कुछ भी लिखना-बोलना एक नागरिक के लिहाज से सरासर गलत है.इसलिए इस पर अंकुश होना चाहिए.मगर अहम सवाल है कि सरकार की तरफ से इन दिशा निर्देशों  को लेकर कितनी पारदर्शिता बरती जाती है.क्योकि तीन स्तरीय नियमन में तीसरे स्तर पर सरकार व ब्यूरोक्रेट्स अपना काम करने वाले हैं.यदि यह सारी कोशिशें राजनीतिक स्तर के कंटेंट के नियमन पर जाकर सिमट जाती है,तो फिर यह प्रावधान अपना महत्व खो देंगे.

कांग्रेस का विकल्प बन सकती है आम आदमी पार्टी 

दिल्ली नगर निगम के उपचुनाव में आम आदमी पार्टी यानी आप का जादू चल गया है. उपचुनाव में आप ने पांच में से चार सीटों पर अपना कब्जा जमा लिया है. एक सीट कांग्रेस के खाते में गयी है और भाजपा के हिस्से शून्य आया है. नगर निगम के पांच वार्ड के लिए 28 फरवरी को उपचुनाव हुए थे. जिसमें आप ने भाजपा की राजनीतिक जमीन हिला दी है. मज़ेदार बात यह है कि दिल्ली निकाय चुनाव का रिजल्ट आने के बाद आप कार्यकर्ता ‘हो गया काम, जय श्री राम’ का नारा लगाते दिखाई दिए, जिससे भाजपाई काफी जलभुन गये.

केजरीवाल की पार्टी के उम्मीदवारों को कल्याणपुरी, रोहिणी-सी, शालीमार बाग (नॉर्थ) और त्रिलोकपुरी में प्रशंसनीय जीत मिली है, जबकि चौहान बांगर सीट कांग्रेस के खाते में गई है. यह चुनाव परिणाम भाजपा के लिए बड़े झटके से कम नहीं है. क्योंकि, ‘आप’ ने उससे शालीमार बाग (नॉर्थ) (महिला सीट) की सीट छीन ली है. यहां पर आम आदमी पार्टी की प्रत्याशी सुनीता मिश्रा ने भाजपा की सुरभी जाजू को 2,705 वोटों से हराया है. अभी दिल्ली की तीनों निगमों पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है और ऐसे में उपचुनाव में एक सीट भी गंवाना उसके लिए गहरे धक्के की बात है.

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बीते एक हफ्ते में आम आदमी पार्टी के लिए दो राज्यों से भी अच्छी खबर आई है. एक तरफ गुजरात में उसने कांग्रेस की जमीन खिसका दी है तो दूसरी ओर सूरत में वह भाजपा के मुकाबले मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर उभरी है. दिल्ली और गुजरात के निकाय चुनावों के परिणामों ने आम आदमी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को अगले साल होने वाले दिल्ली नगर निगम और विभिन्न राज्यों की विधानसभा चुनावों के लिए भरपूर जोश से लबरेज कर दिया है. आप का बढ़ता कद जहाँ भाजपा के लिए खतरे की घंटी है तो वहीँ देश की जनता के सामने कांग्रेस का विकल्प प्रस्तुत कर रहा है.

दिल्ली निकाय में उपचुनाव की जीत से उत्साहित दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा, – ‘पांच में से चार सीटें हमें मिलना बहुत बड़ी जीत है. भाजपा के 15 साल के शासन से दिल्ली की जनता तंग आ चुकी है और चाहती है कि झाड़ू लगाकर भाजपा को नगर निगम से पूरी तरह साफ कर दिया जाए. अगले साल होने वाले नगर निगम चुनावों में भी भाजपा का सूपड़ा साफ होगा.’ वहीँ आप नेता गोपाल राय का कहना है कि – ‘दिल्ली नगर निगम में लंबे समय से भाजपा के पार्षदों द्वारा भ्रष्टाचार किया जा रहा है. भजपा के कब्ज़े वाले निगम ने दिल्ली की जनता को काफी परेशान किया है. एमसीडी में काम करने वाले लोगों को वेतन नहीं मिल रहा है.

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पूरी दिल्ली में गलियों, सड़कों को गंदा कर के रखा गया है. जहां देखो वही भ्रष्टाचार हो रहा है. भाजपा शासित साउथ एमसीडी के पास कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसे नहीं, फिर भी पार्षदों को एक करोड़ और चेयरमैन, वाइस चेयरमैन को 1.5 करोड़ रुपए फण्ड दिया गया. साउथ एमसीडी ने अपने बजट में पार्षद फण्ड को 50 लाख से बढ़ाकर 1 करोड़ कर दिया है, जबकि चेयरमैन, वाइस चेयरमैन को 50 लाख का अतिरिक्त पैकेज देकर उनका फण्ड 1.5 करोड़ कर दिया है, यह दिल्ली वालों के घाव पर नमक छिड़कने जैसा है. भाजपा को समझ में आ गया है कि एमसीडी में उसके सिर्फ एक साल ही बचे हैं, इसलिए भाजपा अब लूट योजना पर काम कर के एमसीडी को लूटने में लगी है. पिछले 5 साल में जिस तरह से उनका निकम्मापन सामने आया है, जिस तरह निगम के तहत काम करने वाले लोगों की तनख्वाहें कई-कई महीनों से नहीं दी गयी हैं. जिस तरह निगम के स्कूलों में अध्यापक छह-छह महीने बिना तनख्वाह के पढ़ा रहे हैं, उसके बाद यह तो होना ही था. दिल्ली की जनता ने एक बड़ा संदेश दिया है वह भाजपा की करतूतों से उकता चुकी है और दिल्ली नगर निगम में अब बदलाव चाहती है.’

उल्लेखनीय है कि निगम चुनाव के प्रचार के दौरान आम आदमी पार्टी ने साफ-सफाई और फंड का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था. इस चुनाव को पार्टी साल 2022 में होने वाले एमसीडी चुनाव से पहले सेमीफाइनल के तौर पर देख रही है.

गुजरात निगम चुनाव में भी ‘आप’ मुख्य विपक्षी दल के तौर पर उभरी है. पिछले हफ्ते ही गुजरात में 6 नगर निगम के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने धमाकेदार एंट्री की है. पाटीदारों के दबदबे वाले सूरत नगर निगम में उसने कांग्रेस को मुख्य विपक्षी पार्टी की हैसियत से भी बेदखल कर दिया है और 27 सीटें जीत कर आयी है. यहां कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पायी है. गुजरात में जिला पंचायतों, नगरपालिकाओं और तालुकाओं के भी चुनाव परिणाम आ चुके हैं और इसमें भी आम आदमी पार्टी ने जो कुल 2,097 उम्मीदवार उतारे थे, उनमें से 42 को कामयाबी मिली है.

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आने वाले चंद महीनों में देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में निकाय चुनाव के परिणाम के उत्साहित आम आदमी पार्टी ने देश भर में भाजपा से टक्कर लेने का मन बना लिया है. भाजपा सरकार के खिलाफ गोवा में सक्रिय आम आदमी पार्टी को स्थानीय निकाय चुनाव में कुछ कामयाबी मिली है. यहां 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं. पार्टी का वहां अपना पहले से बना बनाया संगठन है और वह पिछला चुनाव लड़ भी चुकी है. उसके निगम पार्षदों ने अब वहां भी दिल्ली की तरह सत्ता में आने पर फ्री सेवाएं देने के वादे करने शुरू कर दिए हैं. उल्लेखनीय है कि दिल्ली में फ्री बिजली-पानी का फायदा हज़ारों गरीब और माध्यम वर्गीय परिवारों को लम्बे समय से मिल रहा है.

गोवा में आम आदमी पार्टी एक ‘वीज आंदोलन’ भी चला रही है. गोवा में आप ने ऐलान किया है कि अगर राज्य में उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो 48 घंटे में 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त कर देगी. वह वहां पर टैक्सी और रिक्शा ड्राइवरों को भी दिल्ली जैसी फ्री सुविधाएं देने की बात कर रही है. पार्टी दिल्ली में मुफ्त बिजली और पानी के मुद्दे को देश भर में खूब भुना रही है. साथ ही महिलाओं के लिए मुफ्त ट्रांसपोर्ट सेवा की बात कहना भी नहीं भूलती है.

दिल्ली, पंजाब, गोवा और गुजरात के बाद अब आम आदमी पार्टी की नजर उत्तर प्रदेश पर भी जा टिकी है. पार्टी 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है. यहां वह भारतीय जनता पार्टी को टक्कर देने के लिए किसान आंदोलन को अपना जरिया बनाने की कोशिशों में जुटी है. तीन दिन पहले मेरठ में हुई किसान महापंचायत में पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल खुद को किसान का ‘बेटा’ और ‘छोटा भाई’ बता आए हैं. वैसे भी किसान आंदोलन की शुरुआत से ही आम आदमी पार्टी दिल्ली की सीमाओं पर धरने पर बैठे किसानों की जरूरतों को पूरा करने का भरसक प्रयास करती आ रही है. उनके लिए पानी के टैंक भिजवाने, बिजली की व्यवस्था करने, शौचालयों की व्यवस्था करने में उसने बढ़चढ़ कर काम किया है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल हर वह मुद्दा उठाने की कोशिश कर रहे हैं जो दिल्ली से सटे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों के दिलों को छू सकता है.

गौरतलब है कि अभी तक देश में दो ही पार्टियों को बड़ी पार्टी के रूप में देखा जाता था – कांग्रेस और भाजपा. लेकिन बीते दस सालों के दौरान तमाम अड़ंगों को झेलते हुए भी आम आदमी पार्टी के कार्यों ने जिस तरह जनता का दिल जीता है, वह भाजपा के सामने कांग्रेस के विकल्प के रूप में देखी जाने लगी है. कांग्रेस अपने पुराने घाघ नेताओं के कारण अब टूट की कगार पर है. अध्यक्ष पद को लेकर जारी खींच तान ने पार्टी का तानाबाना उधेड़ दिया है. ऐसे में अरविन्द केजरीवाल का यह दावा कि भाजपा को वही हरा सकते हैं, हकीकत बन कर जमीन पर उतर आये तो कोई आश्चर्य नहीं है. हाल के कुछ स्थानीय निकाय चुनावों से ही पार्टी का मनोबल काफी ऊंचा हो गया है. आम आदमी पार्टी के विधायक और उम्मीदवार पद यात्रा और डोर टू डोर अभियान के तहत जिस तरह प्रचार में जुटे हैं, पार्टी गुजरात, गोवा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में कांग्रेस के विकल्प के तौर पर जरूर उभर सकती है.

 

‘नागिन 5’ का स्पिन ऑफ ‘कुछ तो है’ जल्द होगा बंद, जानें क्या है वजह

एकता कपूर का सुपरनैचुरल शो नागिन 5 के खत्म हुए एक महीना भी नहीं हुआ है, नागिन 5 के खत्म होने के एक महीना बाद ही मेकर्स ने नागिन 5 स्पीन ऑफ कुछ तो है को ऑन एयर किया था. 7 फरवरी से शुरू हुए इस शो में कृष्णा मुखर्जी और हर्ष राजपूत मुख्य भूमिका में नजर आ रहे हैं.

कृष्णा मुखर्जी और हर्ष राजपूत की जोड़ी को फैंस अब ज्यादा पसंद नहीं कर रहे हैं. शुरुआती दिनों में उन्हें ज्यादा प्यार मिला , लेकिन अब उन्हें ज्यादा पसंद नहीं किया जा रहा है. इसी बीच खबर आ रही हैं कि इस सीरियल को जल्द ही बंद भी किया जाएगा.

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दरअसल, टीआरपी लिस्ट में यह सीरियल सबसे पीछे नजर आ रहा है. जिसे देखते हुए शो के मेकर्स ने इस सीरियल को बंद करने का निर्णय ले लिया है. खैर अभी तक इस पर खुलकर किसी ने बात नहीं कि है कि किस डेट को इस सीरियल को बंद किया जाएगा.

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सिर्फ एक महीना में भी यह शो लोगों का मनोरंजन करने में नाकामयाब रहा है. जिस वजह से इस सीरियल को बंद करने का निर्णय लेना पड़ा शो के मेकर्स को.

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बता दें कि इस सीरियल में कृष्णा मुखर्जी आदिनागिन बनी हुई हैं तो वही हर्ष राजपूत वैम्पायर के किरदार में नजर आ रहे हैं. इस सीरियल में दिखाया जा रहा है कि किस तरह नागिन एक वैम्पायर को दिल दे बैठती है.  वहीं कुछ फैंस को कृष्णा और हर्ष की जोड़ी पसंद नहीं आ रही है. जिस वजह से वह इस सीरियल को देखना पसंद नहीं करते हैं. हालांकि नागिन 5 की बात करें तो उसने जमकर तारीफ बटोरी थी.

 

फिल्म ‘रूही’ के गाने को सुनकर भड़की सोना मोहपात्रा, मेकर्स को सुनाई खरी-खोटी

बीते कुछ सालों से बॉलीवुड में एक नया ट्रेंड देखने के मिल रहा है कि पुराने गाने को रीमेक करके नए फिल्मों में लिया जा रहा है. जिसे फैंस खूब ज्यादा पसंद भी कर रहे हैं. बहुत सी ऐसी फिल्में बन चुकी हैं, जिसमें पुराने गाने को नए अंदाज में लिया गया है.

ऐसे में जाह्नवी कपूर की फिल्म रूही का नया गाना रिलीज हुआ है नदियों पार, जिसे रिलीज होने के कुछ वक्त बाद ही उसपर सवाल खड़े होने शुरू हो गए.  बता दें कि यह गाना लेट द प्ले म्यूजिक का रीमेक है जो साल 2008 में रिलीज हुआ था.

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लोगों ने फिल्म इंडस्ट्री को ट्रोल करना शुरू कर दिया , उनका कहना है कि बॉलीवुड के मेकर्स के पास कुछ नया करने को नहीं है, उन्हें पुराने गाने को ही नया करना आता है , इसके अलावा और कुछ नहीं, जिसे बाद सिंगर सोना मोहपात्रा ने अपने सोशल मीडिया पर ट्विट कर अपनी भड़ास निकाली.

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बता दें कि सोना मोहपात्रा इससे पहले भी कई गाने को लेकर सोशल मीडिया पर सवाल खड़ी कर चुकी हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि फिल्म आर्टिस्ट सिंगर की कद्र नहीं करते हैं. जिसके बाद फैंस ने एक के बाद एक सवाल खड़े करने शुरू किए.

आप सोना मोहपात्रा का ट्विट सोशल मीडिया पर देख सकते हैं. सोना मोहपात्रा ने ट्विटर पर जमकर लताड़ लगाते नजर आ रही हैं.

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दरअसल, सोना हर बार रीमेक गाने का विरोध करती नजर आती हैं. अब गाने को छोड़िए अब तो गजलों और कव्वालियों का भी रीमेक आ गया है.

शायद कुछ नया मिलेगा

शायद कुछ नया मिलेगा: विजय घर आएं मेहमान की तारीफ क्यों कर रहा था- भाग 3

‘‘हमारे फ्लैट बहुत महंगे हो गए हैं, अब 50 लाख से कम में नहीं मिल पाएंगे. आप का बजट कितना है, बताइए. ऋषि नगर में सस्ते फ्लैट बन रहे हैं, उधर शायद, आप का काम बन जाए.’’

एमबीए कर रहा है हमारा बड़ा बेटा. इतने बडे़ बच्चे की जबान पर सब के सामने रोक लगाना आसान नहीं होता.

‘‘मौसाजी, दीवाली के दिन आप हमारे घर खाली हाथ ही चले आए? क्या मौसी ने कुछ भेजा नहीं हमारे लिए? क्या मौसी बड़ी कंजूस हो गई हैं. अभी फोन कर के पूछता हूं, क्या हमारी याद नहीं है मौसी को?’’

मोनू ने झट से सौम्या को फोन भी लगा दिया और नाराजगी भी जता दी.

‘‘मौसी कह रही हैं समय नहीं मिला कुछ बनाने का. अरे, घर में हड्डियां तोड़ने की क्या जरूरत थी. सोहन हलवाई के पास 200 रुपए से ले कर 1 हजार रुपए किलो तक सब मिलता है. वहीं से ले कर भेज देतीं. कंजूस कहीं की. क्या है मौसाजी, आप के साथ रह कर भी मौसी बदली नहीं. हम जैसी कंजूस ही रहीं. मौसाजी, आप ही कुछ मीठा ले आते न.’’

डर लग रहा था मुझे. खिसिया सा गया था विजय. मोनू ने उस के मित्रों को सारा घर घुमा कर दिखाया.

‘‘लकड़ी का काम ही कम से कम 5-6 लाख रुपए का है. पूरे घर का पेंट कराया था 1 लाख रुपया तो तभी लग गया था. 50 लाख रुपए तो फ्लैट की कीमत होगी. ऊपर का काम ही 10 लाख रुपए का है. 60 लाख रुपए तक कीमत होगी हमारी तरफ. इतना बजट है तो बताइए. मैं प्रौपर्टी डीलर का पता बता देता हूं.’’

चुप थे विजय के सारे मित्र. समझ रहा था मैं कि मनुष्य वही भाषा बोले जो सामने वाले को समझ में आए. तमीज और शालीन रास्ता बदतमीज इंसान को समझ कहां आता है.

‘‘नहीं, अब चलते हैं,’’ विजय ने बहाना बनाया.

‘‘नहीं, नहीं, रुको भैया, दीवाली के दिन खाली कैसे भेज दूं,’’ श्रीमतीजी झट से बादाम, नारियल और शगुन के रुपए ले आईं, ‘‘अपनी पसंद की शर्ट ले लेना. हमारी पसंद तो अब पुरानी हो गई है. बच्चे अपनी ही पसंद का पहनें तो उन्हें अच्छा लगता है. वैसे खाना भी तैयार है, खा कर जाते तो अच्छा लगता.’’

‘‘अरे नहीं मां, क्यों इन की दीवाली खराब कर रही हो. इन्हें आप के हाथ का खाना पसंद नहीं. कितनी बार तो इशारा कर चुके हैं. किसी फाइवस्टार होटल में आज इन का लंचडिनर होगा.’’

‘‘बस करो, मोनू, मजाक की भी एक सीमा होती है.’’

‘‘नाराज क्यों हो रही हो, मां. बड़ों से ही तो सीखते हैं न बच्चे. मजाक करना भी तो मौसाजी ने ही सिखाया है.’’

मैं किसी का मन नहीं दुखाना चाहता लेकिन यह भी सच है कि मोनू जिस भाषा का इस्तेमाल मजाक में ही कर रहा था उस से मुझे जरा सा चैन अवश्य मिल रहा था.

संयोग ऐसा बना कि जाते हुए विजय पर जलता हुआ पटाखा गिर गया जिस के चलते कमीज ने आग पकड़ ली. हमारे घर से थोड़ी दूर ही उस ने अपनी गाड़ी पार्क की थी. हम तो विदा कर के खाने में व्यस्त हो गए थे. घंटाभर बीत चुका था तब, जब सौम्या का फोन आया.

‘‘हमारे घर आए तो थे, मौसा जी. उन के 4 दोस्त साथ थे. यहां से गए तो 2 घंटे हो गए हैं. किसी मित्र मंडली में व्यस्त हो गए होंगे. तुम खापी कर सो जाओ न मौसी,’’ मोनू ने फिर मजाक ही किया.

मुझे चिंता होने लगी थी. सौम्या का पति है विजय. हम जो भी करते हैं, वह इसलिए करते हैं क्योंकि सौम्या का सुखदुख जुड़ा है विजय के साथ वरना विजय की चिंता करने का मन तो कभी नहीं होता.

रात हो गई, विजय का पता नहीं चला. परेशानी होने लगी. आजकल तो बच्चेबच्चे के हाथ में मोबाइल है. कम से कम सूचना तो दे देता, वह कहां है. विजय के मित्रों के नंबर भी सौम्या के पास नहीं थे. किस से पूछताछ करे वह. दीवाली की पूजा और रात का खाना सब तनाव में ही खो गया.

रात 10 बजे के आसपास विजय का फोन हमें आया. वह तो हमारे ही घर के पास वाले नर्सिंगहोम में था. आननफानन हम सब भागे.

मेरी पत्नी तो रो पड़ी उसे पट्टियों में बंधा देख कर, ‘‘आप के दोस्त ही हमें बता जाते, कम से कम, हम तभी आ जाते. 6-7 घंटे हो गए आप को ढूंढ़ते…’’

चुप रहा विजय. दोस्तों ने बताया, नहीं बताया, यह हम क्यों सोचें. दीवाली का दिन है. हो सकता है विजय ने ही मना किया हो. हम से मदद मांगना भी तो इसे गवारा नहीं होगा न. सदा जिन के सामने हेकड़ी दिखाता रहा उन्हीं के सामने मनुष्य बेबस, लाचार भी तो दिखना नहीं चाहता.

मोनू जा कर सौम्या और बच्चों को ले आया.

‘‘आप के दोस्त साथ थे, क्या वे मुझे बता नहीं सकते थे?’’ सौम्या की नाराजगी जायज थी.

खैर, प्रकृति ने विजय को अपनों की कद्र करना सिखा दिया था. 1 हफ्ता विजय वहां रहा और हमारा परिवार ही था जो उस की देखरेख कर रहा था. विजय का कोई मित्र हमें नजर नहीं आया, शायद फोन आता हो. विजय के मातापिता भी उस के बड़े भाई के पास थे. उन्हें बता कर परेशान नहीं करना चाहते थे, इसलिए बताया नहीं. चेहरे और गरदन का काफी हिस्सा जल गया था जिस की पीड़ा समय के साथ ही भरने वाली थी. उस की तकलीफ पर हम खुश नहीं थे मगर प्रकृति के इस प्रयास पर हम खुश थे कि शायद अब हमें पुराने विजय की जगह नया और स्नेहिल विजय मिलेगा.

शायद कुछ नया मिलेगा: विजय घर आएं मेहमान की तारीफ क्यों कर रहा था- भाग 2

‘अभी जो गए वे डीपी मेहता लौ फर्म में अकाउंट्स का काम देखते हैं. संयोग से ये भी मेहता ही हैं.’’

हंसी आने लगी मुझे विजय की बुद्धि पर. हमें कंजूस कहने के लिए बेचारे ने अकाउटैंट को मालिक बना दिया था. सिर्फ यही समझाने के लिए कि देखिए, दिलदार आदमी क्या होता है, 50 जेब में और खर्चा 500 का करता है.’’

‘‘पिछले दिनों इन के बेटे ने भाग कर चुपचाप मंदिर में शादी कर ली. तो क्या करते मेहता साहब? कैसे बताते सब को कि बेटे ने शादी कर ली है. सब को मिठाई बांट दी और औफिस में सब को खिलापिला दिया. इन की जेब में तो कभी पैसे रहते ही नहीं. सदा किसी न किसी की उधारी ही चलती है. इन की तुलना हमारे परिवार से करने की क्या तुक?’’

क्रोध आने लगा था, सौम्या को, ‘‘पीठ पीछे आप गाली भी इसी आदमी को देते हैं कि जब देखो उधार ही मांगता रहता है फिर जीजाजी के सामने उसी को बढ़ाचढ़ा कर बताने का क्या मतलब? मेहताजी खर्च ही कर पाते तो इज्जत से अपने दोनों बच्चों की शादी न कर लेते. बेटी ने भी लड़का पसंद कर रखा था और बेटे ने भी लड़की कब से समझबूझ रखी थी. मातापिता क्या अंधे थे जो कुछ नजर नहीं आता था. वे तो चाहते ही थे बच्चे अपनेआप ही कुछ कर लें. जब दोनों बच्चों ने भाग कर शादी कर ली तो बस बांट दी मिठाई. क्या इज्जत है उन के परिवार की? पीठ पीछे तो सब गाली देते हैं कि पैसे मांगमांग कर जान खा जाता है यह आदमी. उन का उदाहरण हमें क्यों दे रहे हो तुम, विजय?

‘‘मेरा मायका लुटाता नहीं है और न ही किसी को लूटता है. अगर अपनी मेहनत से कुछ बचाता है तो उस में आप को तकलीफ क्यों होती है. आप के पास तो कोई मांगने नहीं न आता. आप ले आओ न, 1000 रुपए किलो वाली मिठाई, किस ने रोका है?’’

बगलें झांकने लगा था विजय. सौम्या का क्रोध जायज था मगर वहां मेरा रुकना मुझे अब भारी लगने लगा था. सदा ऐसा ही होता है जब भी मैं यहां आता हूं. शायद साल के बाद हर दीवाली पर ही आता हूं और हर बार विजय की जबान से यही रस फूटता है. इस बीच हमारी कभी बात ही नहीं होती क्योंकि हमारे दिल कभी मिले ही नहीं. सौम्या ही कभीकभी आ कर मिल जाती है. मेरे सासससुर की एक दुर्घटना में मृत्यु के बाद सौम्या हमारे पास ही रही थी. मेरी पत्नी से 10 साल छोटी है यह बच्ची और मुझ से 16 साल. अपनी बच्ची ही लगती है मुझे, सौम्या. विजय में यही देखता हूं कि वह दामाद है. तो वह कुछ भी कह सकता है, कर सकता है. 10 साल हो चुके हैं सौम्या की शादी को लेकिन हमारे साथ विजय का रिश्ता ऐसा ही है, फीका और रसहीन.

‘‘तुम मेरे दामाद नहीं हो, विजय. मेरे सामने हर बार बेतुकी अकड़ दिखाने का भला क्या फायदा होता है तुम्हें, जरा सोचो. जो सासससुर मेरे थे वही तुम्हारे भी थे. तुम्हारामेरा रिश्ता बराबरी का है. मुझे जलीकटी सुनाना बनता ही नहीं तुम्हारा क्योंकि मैं भी दामाद हूं उन्हीं का जिन के तुम हो. हम दोनों का तो मीठी जबान का रिश्ता है. मैं ने कहा न तुम मेरे दामाद नहीं हो जो तुम्हारी बातें सहन करूं मैं. इज्जत दोगे, इज्जत मिलेगी. प्यार करोगे प्यार मिलेगा. सौम्या हमारी बेटी जैसी है इसलिए इसे तो हम छोड़ नहीं सकते. बेहतर होगा तुम भी हमारे बन जाओ.

‘‘बेकार तानों में अपना दिमाग खराब मत किया करो. दामाद होने की धौंस भी छोड़ दो क्योंकि जिन को दिखाना चाहते हो वे तो हमारे बीच हैं नहीं. मैं सहूंगा नहीं क्योंकि तुम मेरे दामाद हो ही नहीं. निशाना सही रखो, तभी फायदा होगा. सौम्या और इस की दीदी 2 ही तो बहनें हैं. कभीकभार प्यार से मिल लेने में तुम्हारा क्या जाता है, मेरी तो समझ में ही नहीं आता. 10 साल हो गए तुम आज भी उस रेत की तरह हो जिस पर चाहे कितना सावन बरस जाए, वह सूखी की सूखी रहती है. हमारी कंजूसी से तुम्हें क्या लेनादेना. अपनी चादर में रह कर जीना तो समझदारी है. हम लोगों से कट कर रहोगे तो नुकसान तुम्हारा ही होगा क्योंकि अब हमारे बच्चे भी बड़े हो रहे हैं. कल को वे वही पाएंगे जो आज परोसोगे. अपनी इज्जत अपने हाथ में होती है. आज तुम्हें हम से नाराजगी है कल हमारे बच्चों से भी होगी. अपना व्यवहार देखो विजय. उस का आकलन करो. तुम किसी के लिए क्या कर रहे हो, जरा सोचो.’’

उठ पड़ा मैं. सौम्या की आंखें भर आई थीं.

‘‘यह बच्ची मेरे लिए रो पड़ी है क्योंकि मैं ने इस रिश्ते में कुछ निवेश किया है. खून का रिश्ता नहीं है हमारा लेकिन मुझे पता है, अगर जरूरत पड़ी तो मेरे बच्चों से पहले यह मेरे काम आएगी.

‘‘क्या तुम ने भी अपने ससुराल में ऐसा कोई रिश्ता बनाया है जो कोई नंगे पैर दौड़ कर तुम्हारे लिए चला आए? छोड़ो 1 हजार रुपए किलो मिठाई का रोना. जो अमूल्य है क्या वह है तुम्हारे पास? कोई ऐसा इंसान है जिस की आंख में तुम्हारे लिए पानी आ जाए? सोचना, जरा ठंडे दिमाग से,’’ मैं ने आतेआते सौम्या का माथा चूमा.

‘‘अच्छा बेटा, मन मैला मत करना, खुश रहो.’’

चला आया मैं. हर साल इसी तरह चला जाता हूं. सौम्या से मोह है. उस का कौन है हमारे परिवार के सिवा. सोचता हूं मैं बड़ा हूं. बड़ों को कभीकभी ज्यादा सहना पड़ता है मगर अब बीमार होने लगा हूं. विजय का व्यवहार चुभता है, रातभर सोने नहीं देता. हम ने क्या बिगाड़ा है जो विजय हम से ऐसा व्यवहार करता है. हमारी बेटी उस घर ब्याही है मात्र इसी बात की धौंस. अफसोस होता है कभीकभी कि क्यों कुछ लोग प्यार और स्नेह के सागर के किनारे खड़े रह कर भी मात्र खडे़ ही रह जाते हैं, क्यों नहीं जरा सी डुबकी लगा लेते? क्यों नहीं प्यार का प्रतिकार प्यार और अपनेपन से देते? अफसोस होता है मुझे, सच में बुरा लगता जब विजय जैसे लोग रीते के रीते ही रह जाते हैं.

4 दिन बाद ही दीवाली थी. मैं और मेरा परिवार अपना छोटा सा घर सजाने में व्यस्त थे. पता नहीं कहां से मौसम बिना बरसात की तरह विजय हमारे घर चला आया. साथ में 4 मित्र भी थे. स्वागत किया हम ने और आवभगत भी की.

‘‘किसी को फ्लैट खरीदना था इसी तरह का. ज्यादा खर्चा नहीं करना चाहते. मैं ने सोचा आप का दिखा देता हूं.’’

अवाक् थे हम. विजय की जबान का रस यहां भी चला आया टपकने. क्या उत्तर दें हम. कुछ लोग बहुत ही बेशर्म होते हैं.’’

‘‘सजावट भी अपनेआप ही कर रहे हो. 2-3 हजार खर्च करते, अच्छी सजावट हो जाती. खैर, आप को तो सब अपने ही हाथ से करने की आदत है न.’’

अपने मित्रों के सामने विजय क्या प्रमाणित करना चाहता था, हम समझ नहीं पा रहे थे. मेरे दोनों बेटे भी बारीबारी से कभी उन का और कभी हमारा मुंह देख रहे थे. बड़ा वाला तो चुप भी नहीं रह पाया, ‘‘मौसी को साथ नहीं लाए?’’

‘‘नहीं, वह घर सजा रही है.’’

‘‘क्या आप ने 2-3 हजार रुपए खर्च नहीं किए? घर सजाने वालों को बुला लेते? कम से कम मौसी तो साथ आ जातीं. जहां जाते हैं आप अकेले ही जाते हैं. आप के यही दोस्त सदा साथ होते हैं. क्या खर्चा करने से डर लगता है जो मौसी को साथ नहीं ले जाते. बहुत ज्यादा पैसे खर्च कराती हैं क्या मौसी?’’

इस बार विजय जरा सा अवाक् लगा.

पत्ता गोभी की गुजराती स्टाइल में सब्जी

वैसे तो पत्ता गोभी की सब्जी को आप कई तरह से बना सकते हैं, लेकिन आज आपको एक पारंपरिक तरीके से पत्ता गोभी की सब्जी बताने जा रहे हैं. जिस विधि से बनाकर आप भी अपने मेहमानों को खुश कर पाएंगे.

समाग्री

पत्ता गोभी

अदरक

राई

हिंग

करी पत्ता

लाल मिर्च

चने की दाल

नमक

रेड चिली पाउडर

नीबू तेल

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विधि

पत्ता गोभी को अच्छे से घोकर साफ कर लें, उसके बाद उसे बारीक काट लें, अब हरी मिर्च को अच्छे से साफ करके काट लें, उसके बाद अदरक और लहसुन को बारीक काट लें,

अब एक कड़ाही में मध्यम आंच पर तेल गर् म करें , उसके बाद उसमें राई और हींग को पहले डालकर चलाएं, जब राई चटकने लगे तो उसमें हरी मिर्च और करी पत्ता को डालें, जब करी पत्ते का रंग बदलने लगे तो उसमें अदरक और लहसून को डालकर चलाएं, इसके कुछ देर बाद उसमें पत्ता गोभी को डालकर चलाएं. अब आप इसे कुछ देर के लिए ढ़ककर रख दें,

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कुछ देर बाद उसमें नमक और हल्दी को अच्छे से मिक्स करें, अब आप चाहे तो अपने स्वाद के अनुसार इसमें लाल मिर्च पाउडर भी मिक्क कर सकती हैं. अब आपकी सब्जी बनकर तैयार है. आप चाहे तो पड़ोस सकते हैं.

Womens Day Special: साहस

टैक्सी एअरपोर्ट के डिपार्चर टर्मिनल के बाहर रुकी. मीरा और आनंद उतरे. टैक्सी ड्राइवर ने डिक्की खोली और स्ट्रोली निकाल कर आनंद को पकड़ाई. आनंद ने झुक कर मीरा के पांव छुए.

‘‘अच्छा मां, मैं जा रहा हूं. अपना खयाल रखना. मेरे बारे में आप को कोई आशंका नहीं होनी चाहिए. मैं अपनी देखभाल अच्छी तरह कर सकता हूं. मैं आप को समयसमय पर फोन किया करूंगा और पढ़ाई खत्म होते ही भारत लौट आऊंगा आप की देखभाल करने के लिए,’’ यह कह कर आनंद ने मीरा से विदा ली.

‘‘जाओ बेटे, अच्छे से रहना. मेरे बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है. तुम सुखी रहो और तुम्हारी सारी मनोकामनाएं पूरी हों,’’ मीरा ने प्रसन्नता के साथ उसे विदा किया. आनंद टर्मिनल की ओर घूमा और मीरा टैक्सी में वापस बैठी. उस की आंखें सूखी थीं क्योंकि उस ने आंसू रोक रखे थे. वह टैक्सी ड्राइवर के सामने रोना नहीं चाहती थी. घर लौटते समय वह मन ही मन सोचने लगी, आनंद उस का इकलौता पुत्र था, जो अपने पिता की मौत के 6 महीने बाद पैदा हुआ था. मीरा ने उसे अकेले, अपने दम पर, पढ़ालिखा कर बड़ा किया था. और आज आनंद उसे छोड़ कर चला गया था. हमेशा के लिए तो नहीं, पर मीरा को शक था कि अब जब भी आनंद भारत लौटेगा तो वह सिर्फ चंद दिनों के लिए ही उस से मिलने के लिए आएगा. उस ने हमेशा सोचा था कि आनंद को वह अपने पति मेजर विजय की तरह फौजी बना देगी, पर यह बात उस के बेटे के दिमाग में कभी नहीं जमी. वह तो बचपन से ही अमेरिका में जा कर बस जाने के सपने देखने लगा था. फौज में जाता तो उस का सपना अधूरा रह जाता. अपने सपने पूरे करने के लिए आनंद ने दिनरात पढ़ाई की जिस के कारण वह यूनिवर्सिटी में गोल्ड मैडलिस्ट बना, यानी अव्वल नंबर पर आया. उसे अमेरिका में आगे पढ़ाई करने के लिए बहुत अच्छी स्कौलरशिप मिली. अब उसे कौन रोक सकता था.

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घर लौटने के बाद मीरा अपने पति के चित्र के आगे जा कर खड़ी हो गई, ‘‘देखिए, आज मैं ने आप के बेटे को अपने पैरों पर खड़े होने के काबिल बना दिया है. आप की तरह देशसेवक फौजी तो नहीं बना सकी पर मुझे यकीन है कि वह जीवन में बहुत सफलताएं प्राप्त करेगा ताकि हमारे सिर गर्व से ऊंचे रहेंगे.’’ मीरा अपने दिवंगत पति से और भी बातें करना चाहती थी, पर उस की भावनाओं का बांध टूट गया और वह हिचकियां ले कर रो पड़ी. उसे लगा कि उस के सारे सपने टूट गए थे. उस का आनंद को फौजी बनाने का इरादा अधूरा ही रह गया था. आनंद ने उसे यह विश्वास दिलाया था कि वह पढ़ाई पूरी कर के भारत लौट आएगा, पर मीरा जानती थी कि यह बात उस ने उस को बहलाने के लिए ही कही थी. अचानक मीरा का ध्यान बंट गया. साथ वाले घर में रेडियो पर मन्ना डे का पुराना लोकप्रिय गाना बज रहा था, ‘इधर झूम के गाए जिंदगी उधर है मौत खड़ी. कोई क्या जाने कहां है सीमा, उलझन आन पड़ी…’ गाने को सुनतेसुनते मीरा को खयाल आया, ‘हां, यह तो बिलकुल ठीक है. सच में आज तक किसी को नहीं पता चला है कि जिंदगी और मौत की सीमा कहां है.’

वह कैसे भूल सकती थी अक्तूबर के उस शनिवार की काली रात को, जिस के दौरान उस की जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई. उन के कैंटोन्मैंट के फौजी अफसरों के क्लब में हर महीने के दूसरे शनिवार को पार्टी होती थी. यह बड़ा कैंटोन्मैंट था, कई यूनिटें स्थलसेना की और 2 यूनिटें वायुसेना की थीं. क्लब की इन पार्टियों में काफी ज्यादा रौनक रहती थी. म्यूजिक सिस्टम पर नए से नए हिंदी और अंगरेजी गाने बजते थे, जिन की धुन पर जोडि़यां नाचती थीं. उस शनिवार की रात भी मीरा का पति मेजर विजय सिंह हमेशा की तरह उसे ले कर पार्टी में पहुंचा. क्लब का प्रोग्राम शुरू हुआ. गाने बजने लगे और जोडि़यों ने नाचना शुरू किया. जो नाच नहीं रहे थे वे हाथों में डिं्रक का गिलास पकड़े उन्हें देख रहे थे. विजय नाचना चाहता था. पर मीरा नाचना नहीं चाहती थी क्योंकि वह गर्भ के तीसरे महीने में थी. पर विजय माना नहीं. ‘तुम फौजी की बीवी हो. तुम्हें कुछ नहीं होगा,’ कहते हुए वह मीरा सहित नाचने वालों में शामिल हो गया. 11 बजे के करीब, वे लोग जो अपने जवान बेटेबेटियों को साथ लाए हुए थे, जाने लगे. तभी अचानक एक अनापेक्षित बदलाव कार्यक्रम में आया. एक कर्नल, जो पूरी वरदी में था, क्लब में फुरती से आया. उस ने गानों को रोकने का संकेत दिया और ‘मैं माफी चाहता हूं’ की संक्षिप्त भूमिका के साथ उस ने विस्मित क्लब अधिकारी के हाथ से माइक्रोफोन का चोंगा अपने हाथ में लिया:

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‘प्रतिष्ठित महिलाओ और सज्जनो,’ उस ने घोषणा की, ‘मैं आप की पार्टी को भंग करने के लिए क्षमा चाहता हूं. पर एक गंभीर राष्ट्रीय आपत्ति हमारे सामने उठ खड़ी हुई है. सेना व वायुसेना के सभी अधिकारी तुरंत क्लब छोड़ दें. वे अपने घर जाएं और कार्यक्षेत्र की वरदी पहनें. फिर एक अन्य जोड़ी वरदी और टौयलेट का सामान छोटे से बैग में डाल कर अपनी यूनिट के हैडक्वार्टर में सुबह 4 बजे से पहले रिपोर्ट करें. मैं फिर कहता हूं कि यह राष्ट्रीय आपदा है और हमें फौरन सक्रिय होना है.’ यह कह कर वह पलटा और बाहर जा कर, जिस जीप में आया था उसी में बैठा और चला गया. क्लब में सब लोग चौंक कर अपनीअपनी टिप्पणियां देने लगे. प्रश्न था कि क्या समस्या हो सकती है? क्योंकि कर्नल ने कुछ भी स्पष्ट नहीं किया था, इसलिए किसी को पता नहीं था कि कौन सी गंभीर घटना घटी है. तो भी फौजी हुक्म तो हुक्म ही था. सेना और वायुसेना के अफसरान फौरन जल्दीजल्दी बाहर निकले. जो परिवार के साथ आए थे वे घरों की ओर लौटे, अविवाहित अफसर अपने मैस के कमरों की तरफ पलटे.

मीरा और विजय भी अपने घर लौटे. जब तक विजय ने वरदी पहनी, मीरा ने उस के बैग में सामान डाला. ‘यह क्या हो रहा है? तुम लोग क्यों और कहां जा रहे हो? तुम कब तक लौटोगे? मुझे कुछ तो बताओ?’ पर उस के हर सवाल का जवाब विजय का ‘मैं नहीं जानता हूं. मैं कुछ नहीं कह सकता हूं’ था. बिछुड़ने का समय आ गया. उन की शादी को 2 साल हो गए थे और मीरा पहली बार विजय से अलग हो रही थी. उस की आंखों में आंसू थे और दिल में एक अंजान सा डर, पता नहीं क्या होने वाला था. ‘चिंता मत करो, मेरी जान,’ विजय ने हौसला दिया था, ‘मैं फौजी हूं. हुक्म की तामील करना मेरा फर्ज है. और तुम एक फौजी की बीवी हो, साहस रखना तुम्हारा फर्ज है. मैं जल्दी ही तुम्हारे पास लौट आऊंगा.’

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यह कहने के बाद विजय चला गया, हमेशाहमेशा के लिए चला गया. मीरा अतीत में खोई थी कि अचानक दरवाजे की घंटी से उस का ध्यान टूटा. वह आंसू पोंछ कर उठी. दरवाजे पर उस की बाई रामकली खड़ी थी. वह बोली, ‘‘मालकिन, आनंद बाबा को याद कर के रोओ मत. वे अमेरिका में खूब खुश रहेंगे. आप अपने काम में लग जाओ. आज तक आप ने आनंद बाबा को विजय साहब की यादों के सहारे ही तो पाला है. अब अपने स्कूल के काम में मन लगाओ,’’ फिर मीरा को बहलाते हुए आगे बोली, ‘‘मैं आप के लिए चाय लाती हूं. फिर आप के लिए खाना बनाऊंगी.’’ उस रात को जब मीरा अपने बिस्तर पर लेटी तो यादों का कारवां एक बार फिर उस की आंखों के आगे चल निकला. मीरा को घर पर छोड़ने के बाद विजय पर जो गुजरी वह कई दिनों बाद मीरा को विजय के दोस्त और यूनिट में उस के साथी कैप्टन शर्मा ने बताई.

विजय के यूनिट पहुंचने के कुछ देर बाद कमांडिंग अफसर (सीओ) ने पूरी बटालियन को संबोधित किया और उन्हें बताया कि देश के लिए एक गंभीर संकट की स्थिति उठ खड़ी हुई थी. एक पड़ोस के दुश्मन देश ने, बिना कोई चेतावनी दिए हमारे कई सीमावर्ती अड्डों पर भारी हमला कर दिया था. इस धोखाधड़ी वाले हमले के कारण हमारे कई सैनिक मारे गए थे और हमारी तकरीबन दर्जनभर चौकियां कुछ पूरब में, कुछ पश्चिम में दुश्मन के हाथ में आ गई थीं. दुश्मन को जल्द से जल्द रोकना अनिवार्य हो गया था. पश्चिम के सरहदी इलाके में दुश्मन को रोकने का काम उन की यूनिट को दिया गया था. अंत में सीओ साहब ने कहा, ‘‘हम वीर सैनिक, आने वाले खतरों का डट कर सामना करेंगे, भारतीय सेना की परंपरा के मुताबिक. हो सकता है कि हम में से कुछ अपना फर्ज निभातेनिभाते अपनी जान खो दें. पर इस कारण हमें डरना नहीं चाहिए. हमेशा याद रखो कि वतन की इज्जत के लिए जो भी जवान शहीद होता है वह देश की आंखों में अमर हो जाता है.’’

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सीओ के भाषण के फौरन बाद विजय, बटालियन के बाकी सदस्यों के साथ हवाई अड्डे पहुंचा. वहां से सारे सैनिक, 3 हवाई जहाजों में सवार हुए और चंद घंटों के बाद, 14 हजार फुट की ऊंचाई पर सीमा के एक हवाई अड्डे पर उतारे गए. वहां मौजूद अधिकारियों ने उन्हें सूचित किया कि वहां की स्थिति बेहद खतरनाक थी. हवाई अड्डे से कुछ ही दूरी पर, दुश्मनों की एक बड़ी टोली ने मोरचा जमाया था. वे अपने साथियों का इंतजार कर रहे थे जो हजारों की तादाद में 2-3 दिन बाद वहां पहुंचने वाले थे. हवाई अड्डे के पास वाले दुश्मनों को खदेड़ना और उन के आने वाले साथियों का रास्ता रोकना बेहद जरूरी था, वरना हवाई अड्डा दुश्मन के कब्जे में आ सकता था.

वहां के हालात देख कर, उन के सीओ ने दुश्मनों पर हमला करने की जिम्मेदारी विजय को सौंपी. बाकी सैनिक हवाई अड्डे की रक्षा में, और उस ओर आने वाले रास्ते को रोकने के काम में लगाए गए. अगले दिन सुबहसुबह विजय और उस के सैनिकों ने दुश्मनों पर अचानक धावा बोला. शुरू में तो उन को काफी सफलता मिली, पर इस दौरान विजय की टांग में 2 गोलियां लग गईं. अपने घावों की चिंता किए बिना विजय ने अपने सिपाहियों के आगे जा कर दुश्मन पर फिर धावा बोला. इस बार हमला इतना भयानक था कि बचे हुए दुश्मन सैनिक मोरचा छोड़ कर भाग गए. पर हमले के दौरान दुश्मन की 4 और गोलियों ने विजय की छाती छलनी कर डाली और उस ने वहीं जिंदगी और मौत की सीमा पार कर के वीरगति प्राप्त कर ली थी. इस महान बहादुरी के काम के लिए मेजर विजय को मरणोपरांत परमवीर चक्र मिला.

यह दास्तान मीरा के दिल और दिमाग पर गहरे निशान छोड़ गई थी. उस रात की याददाश्त ताजी होने पर मीरा की आंखें भर आईं, पर उस ने अपने आंसू रोके. तभी भोर की पहली किरणों ने आकाश में रंग भरना शुरू कर दिया. वह उठ कर बालकनी में गई. उस ने सोचा कि विजय के जाने के बाद भी तो जिंदगी उस ने अकेले ही चलाई थी तो अब आनंद के अमेरिका जाने पर भी चल ही जाएगी. समय की रफ्तार को कौन रोक सका है. आनंद ने पढ़ाई पूरी कर के अमेरिका में ही नौकरी कर ली. वह भारत समयसमय पर आताजाता रहा पर अब उस का मन वहां नहीं लगता था. उस ने मां की पसंद से भारत में शादी तो कर ली पर अपनी दुलहन समेत अमेरिका में ही जा कर बस गया. मीरा का सपना था कि आनंद अपने पिता विजय की तरह फौज में जाता पर वह सपना हकीकत न बन पाया. बाद में आनंद का आना भी कम हो गया. हां, उस की पत्नी शोभा आती रही. उन का बेटा अंकित भारत में ही पैदा हुआ. 8 साल की उम्र के बाद से तो वह मीरा के पास ही रह कर पला और बढ़ा. वह चाहता था कि वह अपने दादा की तरह फौजी अफसर बने. पर आनंद की इस में रजामंदी नहीं थी. उस ने अपनी मां की जिंदगी में दुख भरे तूफान का असर देखा था और वह नहीं चाहता था कि किसी और महिला को ऐसा दर्द मिले. तो भी अंकित ने स्कूल में एनसीसी में भाग ले लिया और कालेज की पढ़ाई पूरी कर के वह देहरादून मिलिटरी अकेडमी में चला गया.

आनंद इस सब से नाखुश था. अकेडमी से अफसर बन कर जब अंकित बाहर निकला तो उस ने अपने दादाजी की रेजीमैंट को जौइन किया. पर अब वह छुट्टियों में कम ही घर आता. उस की छुट्टियां दोस्तों के साथ घूमनेफिरने और मौजमस्ती में ही कट जातीं. मीरा उसे देखने को तरस जाती. एक दिन मीरा दीवार पर लगी विजय की फोटो देख रही थी. फिर उस की नजर साथ लगे डिसप्ले केस पर पड़ी, जिस में विजय के मैडल लगे थे. सर्वप्रथम एक बैगनी रंग के रिबन से लटका परमवीर चक्र था. 3 इंच का कपड़ा, एक तोला धातु, जिस को पाने के लिए सिपाही जान की बाजी दांव पर लगाने को तैयार रहते थे. वाह री शूरवीरता! 

तभी दरवाजे की घंटी बजी. मीरा ने दरवाजा खोला और उस के दिल पर जोर का झटका लगा. उस के सामने वरदी पहने, उस का पोता अंकित खड़ा था. हूबहू विजय. वही विजय जिस ने उस को बहुत साल पहले छोड़ा था और जिस की वरदी पहने वाली तसवीर उस के दिमाग में हमेशा के लिए छप गई थी. उस ने सोचा कि उस की आंखें उस को धोखा दे रही थीं.

तभी एकदम अंकित ने उसे सैल्यूट मारा, फिर झुक कर पैर छुए, ‘‘देखिए दादीमां, मेरा प्रमोशन हो गया है. अब मैं भी दादाजी की तरह मेजर बन गया हूं.’’ मीरा ने अपने पोते को गले लगाया, उस के रुके हुए आंसू बह निकले. मीरा सोच रही थी कि ठीक था कि विजय ने अपने देश के लिए अपनी जान की बाजी लगा कर सराहनीय साहस का परिचय दिया था. पर मीरा के साहस का कौन अंदाजा लगा सकता था. समय की आंधी के आगे वह तन कर डटी रही और आगे ही बढ़ती गई. आज उसी साहस के बल पर उस ने अपने पोते को देश को समर्पित कर दिया था.

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