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सच्ची सीख : नीरा अपने बेटे किशोर पर क्यों नाराजगी दिखा रही थी

हमेशा की तरह आज भी जब किशोर देर से घर लौटा और दबेपांव अपने कमरे की ओर बढ़ा तो नीरा ने आवाज लगाई, ‘‘कहां गए थे?’’ ‘‘कहीं नहीं, मां. बस, दोस्तों के साथ खेलने गया था,’’ कहता हुआ किशोर अपने कमरे में चला गया. नीरा पीछेपीछे कमरे में पहुंच गई, बोली, ‘‘क्यों, यह कोई खेल कर घर आने का समय है? इतनी रात हो गई है, अब पढ़ाई कब करोगे? तुम्हें पता है न, तुम्हारी बोर्ड की परीक्षा है और तुम ने पढ़ाई बिलकुल भी नहीं की है. तुम्हारे क्लासटीचर भी बोल रहे थे कि तुम नियमित रूप से स्कूल भी नहीं जाते और पढ़ाई में बिलकुल भी मन नहीं लगाते. आखिर इरादा क्या है तुम्हारा?’’

‘‘जब देखो, आप मेरे पीछे पड़ी रहती हैं, चैन से जीने भी नहीं देतीं, जब देखो पढ़ोपढ़ो की रट लगाए रहती है. पढ़ कर आखिर करना भी क्या हैं, कौन सी नौकरी मिल जानी है. मेरे इतने दोस्तों के बड़े भाई पढ़ कर बेरोजगार ही तो बने बैठे हैं. इस से अच्छा है कि अभी तो मजे कर लो, बाद की बाद में देखेंगे,’’ कह कर उस ने अपने मोबाइल में म्यूजिक औन कर लिया और डांस करने लगा. नीरा बड़बड़ाती हुई अपने कमरे में आ गई. नीरा किशोर की बिगड़ती आदतों से काफी परेशान रहने लगी थी. वह न तो पढ़ाई करता था और न ही घर का कोई काम. बस, दिनभर शैतानियां करता रहता था. दोस्तों के साथ मटरगश्ती करना और महल्ले वालों को परेशान करना, यही उस का काम था. जब भी नीरा उस से पढ़ने को कहती, वह किताब उठाता, थोड़ी देर पढ़ने का नाटक करता, फिर खाने या पानी पीने के बहाने से उठता और दोबारा पढ़ने को नहीं बैठता.

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नीरा उस की आदतों से तंग आ चुकी थी. उसे किशोर को रास्ते पर लाने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. किशोर के पिता एक सरकारी बैंक में अधिकारी थे. वे सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक बैंक के कार्यों में व्यस्त रहते थे. आमतौर पर वे रात को देर से लौटते थे. थकेहारे होने के कारण वे बच्चों से ज्यादा बात नहीं करते थे. किशोर जानता था कि पापा तो घर में रहते नहीं, इसलिए उसे कोई खतरा नहीं. किशोर की बहन साक्षी, उस से छोटी जरूर थी परंतु काफी समझदार थी और स्कूल का होमवर्क समय पर करती थी. वह हमेशा अपनी कक्षा में अव्वल आती थी. इस के अलावा वह अपनी मम्मी के काम में हाथ भी बंटाती थी. कई बार नीरा किशोर को समझाती और साक्षी का उदाहरण भी देती परंतु उस पर कोई असर नहीं होता था. किशोर स्कूल जाने के नाम पर घर से निकलता मगर स्कूल न जा कर वह सारा समय दोस्तों के साथ घूमनेफिरने और फिल्में देखने में बिता देता था. इस बात को ले कर एक दिन नीरा के डांटने पर वह उल्टा नीरा को ही चिल्ला कर बोला, ‘‘मुझे नहीं पढ़नावढ़ना. प्लीज, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो. मुझे जो बनना होगा, बन जाऊंगा वरना बाद में अपना बिजनैस करूंगा. मेरे सारे दोस्तों के पापा बिजनैसमैन हैं और देखो, उन के पास कितना पैसा है और मेरे पापा सरकारी नौकरी में हैं पर हमारे पास कुछ भी नहीं है. क्या फायदा ऐसी नौकरी का. अब तो मैं और भी नहीं पढ़ूंगा, चाहे आप कुछ भी कर लो,’’ किशोर की इस बात से नीरा को गहरा सदमा लगा और उस ने किशोर को जोर से एक तमाचा जड़ दिया. किशोर जोरजोर से रोने लगा और रोतेरोते अपने कमरे में चला गया.

नीरा सोच में पड़ गई कि कैसे समझाए अपने लाड़ले को. यदि अभी से इस ने मेहनत करना नहीं सीखा तो इस का भविष्य बनने से पहले ही बिगड़ जाएगा. यह सोचती हुई वह किशोर के कमरे में पहुंची. किशोर का सिर गोद में रखा और बड़े प्यार से उस के बालों को सहलाती हुई बोली, ‘‘बेटा, मैं तुम्हारी दुश्मन थोड़े ही हूं जो तुम्हें हमेशा पढ़ने के लिए बोलती रहती हूं. तुम पढ़ोगे तो तुम्हारा ही फायदा होगा और कल जब तुम बड़े आदमी बनोगे तो इस से तुम्हारी ही इज्जत बढ़ेगी, लोग तुम्हारे आगेपीछे घूमेंगे. जब तक हम हैं तब तक तुम्हें हर खुशी देने का प्रयास करेंगे लेकिन कल यदि हम नहीं रहे तो तुम्हारा क्या होगा? तुम्हारे पापा तुम्हें बिजनैस कराने के लिए इतने पैसे कहां से लाएंगे और बिजनैस में सफल होने के लिए भी तो पढ़नालिखना जरूरी है.’’ परंतु किशोर पर जैसे पागलपन सवार था, वह कुछ भी सुनना नहीं चाहता था. उस ने गुस्से में अपनी किताबेंकौपियां उठा कर फेंकते हुए चिल्ला कर कहा, ‘‘मां, मुझे नहीं पढ़नालिखना, आप जाओ यहां से.’’

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किशोर के व्यवहार से नीरा की आंखों में आंसू आ गए. अपने पल्लू से आंसू पोंछते हुए वह कमरे से बाहर आ गई. वह अपनी व्यथा अपने पति समीर से भी नहीं कह सकती थी क्योंकि वे भी दिनभर की कड़ी मेहनत के बाद रात को देर से लौटते थे और खाना खा कर सो जाते थे. कई बार तो रविवार को भी उन्हें बैंक जाना पड़ता था, इसलिए उसे अपने पति से कुछ ज्यादा उम्मीद नहीं थी. इसीलिए उस के सिर में तेज दर्द होने लगा था. वह अपने कमरे में आ कर लेट गई. समीर लौटे तो उन्होंने नीरा को लेटे हुए देखा, प्यार से उस के बालों को सहलाते हुए पूछा, ‘‘क्या बात है, नीरा? आज कुछ ज्यादा ही परेशान लग रही हो? कोई बात है क्या?’’ ‘‘नहीं तो, ऐसी कोई बात नहीं. बस, ऐसे ही सिर में दर्द हो रहा था, इसलिए लेटी हुई थी,’’ नीरा ने कहा. वह किशोर के बारे में समीर को बता कर उन्हें परेशान नहीं करना चाहती थी.

समीर को लगा कि जरूर कुछ बात है वरना नीरा इतना परेशान कभी नहीं रहती. वे प्यार से बोले, ‘‘कोई बात नहीं, तुम आराम से लेटो, आज मैं तुम्हारे लिए गरमागरम चाय बना कर लाता हूं,’’ यह कह कर वे रसोई की ओर मुड़ गए. नीरा से रहा नहीं गया और वह भी पीछेपीछे रसोई में पहुंच गई. तब तक समीर चूल्हे पर चाय की पतीली चढ़ा चुके थे. नीरा बोली, ‘‘हटो जी, इतनी भी तबीयत खराब नहीं है कि आप के लिए चाय भी नहीं बना सकूं.’’ ‘‘और मैं भी इतना निष्ठुर नहीं कि बीवी की तबीयत ठीक नहीं और मैं उस के लिए एक कप चाय भी नहीं बना सकूं. कभी मुझे भी मौका दे दिया करो, श्रीमतीजी, मैं इतनी घटिया भी चाय नहीं बनाता कि तुम्हारे गले से नहीं उतर पाए,’’ समीर बोले. समीर की बातों से नीरा के होंठों पर हंसी आ गई और दोनों साथसाथ चाय बनाने लगे. थोड़ी ही देर में चाय तैयार हो गई. चाय की प्याली ले कर दोनों कमरे में आए. चाय की चुस्की लेते हुए समीर ने पूछा, ‘‘अब बताओ, क्यों इतना परेशान हो, मुझ से कुछ न छिपाओ, हो सकता है मेरे पास तुम्हारी समस्या का कोई समाधान हो, और जब तक तुम बताओगी नहीं तब तक मैं कैसे समझ पाऊंगा?’’ नीरा से रहा नहीं गया, उस की आंखों में आंसू आ गए और भरे गले से ही उस ने समीर को सारी बातें बता दीं.

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समीर ने सारी बातें सुनने के बाद एक ठंडी सांस ली और नीरा के सिर पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘कल छुट्टी है. इस पर कल सोचते हैं कि किशोर को कैसे सही रास्ते पर लाया जाए. अभी किशोर गुस्से में होगा, अभी बात करने पर बात बिगड़ भी सकती है.’’ सुबह दिनचर्या से निवृत्त हो कर समीर ने किशोर और साक्षी दोनों को अपने पास बुलाया और बोले, ‘‘आज मेरी छुट्टी है, कहीं घूमने चलना है क्या?’’

‘‘हां, पापा, कब चलना है?’’ दोनों खुशी से उछल कर बोले.

‘‘बस, जितनी जल्दी तुम लोग तैयार हो जाओ,’’ समीर ने जवाब दिया.

‘‘या, याहू,’’ कह कर दोनों तैयार होने चले गए. थोड़ी ही देर में दोनों तैयार थे. तब तक नीरा ने नाश्ता लगा दिया. सभी ने साथ में नाश्ता किया. समीर ने गाड़ी निकाली और सभी गाड़ी में बैठ कर निकल पड़े. अभी गाड़ी थोड़ी आगे बढ़ी ही थी कि रैडलाइट हो गई और गाड़ी रोकनी पड़ी. गाड़ी रुकते ही 2-3 भिखमंगे आ कर भीख मांगने के लिए हाथ जोड़जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगे. समीर ने सब को डांट कर भगा दिया. इस पर किशोर बोला, ‘‘दे दो न, 2 रुपए, पापा. क्या जाता है.’’ ‘‘मैं किसी को भीख नहीं देता और जो लोग मेहनत नहीं करते उन्हें तो भीख भी नहीं दी जाती. मैं अपनी मेहनत की कमाई भिखमंगों में नहीं बांट सकता.’’ किशोर उन भिखमंगों को देखता रहा. वे जिस गाड़ी के पास जाते, सभी उन्हें भगा देते. यहां तक कि पैसे देना तो दूर, लोग गाड़ी छूने पर ही उन्हें डांट देते. किशोर ने कड़ी धूप में कई और लोगों को वहां कुछ सामान भी बेचते देखा पर कोई भी उन से कुछ खरीद नहीं रहा था. सब हरी बत्ती होने का इंतजार कर रहे थे. थोड़ी देर में बत्ती हरी हो गई और समीर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी.

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समीर ने थोड़ी ही देर बाद सड़क के किनारे गाड़ी रोकी और एक जूता पौलिश करने वाले को अपना जूता पौलिश करने को कहा. जूता पौलिश होने के बाद उन्होंने मोची को 2 रुपए का सिक्का पकड़ाया और चल दिए. किशोर ने पूछा, ‘‘इतनी मेहनत के बस 2 रुपए?’’

‘‘हां बेटा, जो लोग बचपन में पढ़नेलिखने में मेहनत नहीं करते, बाद में उन्हें मेहनत भी ज्यादा करनी पड़ती है और पैसे भी कम मिलते हैं.’’ किशोर सोच रहा था कि एक ओर हम लोग एसी कार में चल रहे हैं, दूसरी ओर इन्हें कड़ी धूप में 1-2 रुपए के लिए कितनी मेहनत एवं संघर्ष करना पड़ रहा है. अब वे लोग शहर में लगे एक मेले में पहुंचे. मेले में वे सभी खूब घूमेफिरे, खायापीया, मस्ती की. इस तरह से शाम हो गई और वे गाड़ी में बैठ कर वापस चल दिए. वापस लौटते हुए समीर ने अपनी गाड़ी एक बड़े से गेट पर रोक दी. गेट पर लिखा था, ‘मोहित कुमार’, आईएएस जिलाधिकारी. गेट पर 4 पुलिस वाले खड़े थे. पापा ने उन्हें अपना कार्ड दिखाया और बोले, ‘‘डीएम साहब ने बुलाया है.’’ उन की गाड़ी की अच्छी तरह से तलाशी ले कर पुलिस ने गाड़ी को अंदर जाने की इजाजत दी. बंगले में प्रवेश करते ही किशोर ने देखा कि कितना बड़ा और सुंदर बंगला था. चारों ओर बड़ेबड़े परदे लगे थे, झूलने के लिए झूला और खेलने के लिए गार्डन और न जाने क्याक्या. इस बंगले के सामने उस का फ्लैट बिलकुल छोटा लगने लगा था.

गाड़ी पार्क कर डीएम साहब के बंगले के अंदर जाने से पहले समीर ने दरबान से अपना कार्ड अंदर भिजवाया तो तुरंत उसे बैठक में ले जाया गया. किशोर ने देखा कि वह घर बाहर से जितना बड़ा था, अंदर से उतना ही शानदार एवं खूबसूरत था. घर में कालीन बिछा था और बड़ेबड़े एवं खूबसूरत सोफे लगे थे. पूरा कमरा तरीके से सजा था. तभी एक नौजवान युवक ने कमरे में प्रवेश किया और सब का अभिवादन किया. उस ने टेबल पर घंटी बजाई तो तुरंत भागता हुआ एक दफ्तरी अंदर आया और सामने सिर झुका कर खड़ा हो गया. उस युवक ने कहा, ‘‘जल्दी से चायनाश्ता ले कर आओ.’’ समीर ने उस युवक का परिचय सब से कराते हुए कहा, ‘‘इन का नाम मोहित है और ये हमारे पुराने मित्र के बेटे हैं और हाल ही में ये इस शहर के नए डीएम बन कर आए हैं. रात को मैं हमेशा देर से घर लौटता हूं. आज छुट्टी थी और इन्होंने बुलाया तो सोचा कि आज ही हम इन से भी मिल लेते हैं.’’

डीएम साहब का परिचय पा कर किशोर और साक्षी भैयाभैया कह कर उन के पास जा कर बैठ गए और उन से बातें करने लगे. किशोर ने उन से कहा, ‘‘भैया, आप के तो बड़े ठाट हैं. आप तो इस शहर के सब से बड़े अधिकारी हो. कैसे बने इतने बड़े अधिकारी, मुझे भी बताओ न भैया. मैं भी आप की तरह बनना चाहता हूं. क्या मैं आप की तरह बड़ा आदमी बन सकता हूं?’’ ‘‘क्यों नहीं, बस, अभी से मन लगा कर पढ़ोगे और अपना लक्ष्य बना कर आगे बढ़ोगे तो निश्चित तौर पर तुम भी मेरी तरह किसी शहर के डीएम बन कर या उस से भी बड़े आदमी बन कर आराम की जिंदगी जी सकते हो,’’ मोहित बोले. थोड़ी देर में मोहित भैया ने सब को खाने की टेबल पर आमंत्रित किया जहां अनेक प्रकार के व्यंजन लगे थे और उन्हें सलीके से सजाया गया था. स्वादिष्ठ खाना देख कर उन के मुंह में पानी आ गया और सब को भूख भी लग गई थी. सब ने खूब खाना खाया. खाना खाने के बाद मोहित भैया सब को गाड़ी तक छोड़ने आए. गाड़ी में बैठने के बाद सब ने मोहित भैया को बाय किया और वापस अपने घर की ओर चल दिए. लौटते समय सब आपस में बातचीत कर रहे थे पर किशोर चुपचाप अपनी सीट पर बैठा कुछ सोचने में मग्न था. लौटतेलौटते काफी रात हो गई थी. घर पहुंचने के बाद सब काफी थक गए थे, इसलिए सोने चले गए. थोड़ी देर बाद ही समीर ने नीरा से कहा कि जा कर देखो, दोनों बच्चे अच्छी तरह से सो गए हैं न. नीरा ने जा कर देखा तो साक्षी अपने कमरे में सो गई थी परंतु किशोर के कमरे की लाइट जल रही थी. कमरे से तेज गाने की आवाज आने के बजाय आज उस का कमरा बिलकुल शांत था परंतु कमरे की लाइट जल रही थी. नीरा ने सोचा कि आज वह थक कर सो गया होगा, कमरे की लाइट बुझा देती हूं. भावुकतावश उस ने दरवाजा खोला तो देखा कि किशोर अपनी स्टडी टेबल पर बैठा पढ़ रहा था. नीरा को आश्चर्य हुआ और वह बोली, ‘‘बहुत रात हो चुकी है, सो जाओ, बेटा. कल पढ़ाई कर लेना.’’

‘‘नहीं मां, मैं पहले ही बहुत समय खो चुका हूं, अब मैं तो बस मोहित भैया की तरह बड़ा आदमी बनना चाहता हूं. आप जाओ, सो जाओ, मुझे अभी बहुत पढ़ना है.’’ किशोर की बातें सुन कर नीरा की आंखों में आंसू आ गए पर आज उस की आंखों में आंसू खुशी के थे. वह तेज कदमों से अपने कमरे में आ गई जहां समीर उस का इंतजार कर रहे थे. वह समीर के कंधे पर अपना सिर रख कर बोली, ‘‘जो बात मैं ने किशोर को महीनों में नहीं समझा पाई, आप ने सिर्फ एक ही दिन में उसे समझा दी.’’ समीर ने नीरा से कुछ न कहा, बस नीरा की पीठ सहलाने लगे और आज न जाने नीरा को समीर का ऐसा सहलाना कुछ अजीब सा सुकून दे रहा था. एक ऐसा सुकून जो उसे थोड़ी ही देर में एक संतोषभरी नींद के आगोश में ले गया.

Womens Day Special: अदृश्य मोहपाश -भाग 1

परीक्षा के अंतिम दिन घर आने पर पुन्नी इतनी थकी हुई थी कि लेटते ही सो गई. उठी तो शाम होने को थी, खिड़की से देखा तो पोर्टिको में मम्मी की गाड़ी खड़ी थी यानी वे आ चुकी थीं. छोटू से मम्मी के कमरे में चाय लाने को कह कर उस ने धीरे से मम्मी के कमरे का परदा हटाया, मम्मी अलमारी के सामने खड़ी, एक तसवीर को हाथ में लिए सिसक रही थीं, ‘‘आज पुन्नी की आईएएस की लिखित परीक्षा पूरी हो गई है, सफलता पर उसे और उस के पापा को पूरा विश्वास है. लगता है बेटी को आईएएस बनाने का तुम्हारा सपना पूरा करने की मेरी वर्षों की तपस्या सफल हो जाएगी.’’

पुन्नी ने चुपचाप वहां से हटना बेहतर समझा. उस का सिर चकरा गया. मम्मी रोरो कर कह क्या रही हैं, ‘उस के पापा का विश्वास…बेटी को आईएएस बनाने का तुम्हारा सपना…? कैसी असंगत बातें कर रही हैं, डिगरी कालेज की प्रिंसिपल मालिनी वर्मा? और वह तसवीर किस की है?’

चाय की ट्रौली मम्मी के कमरे में ले जाते छोटू को उस ने लपक कर रोका, ‘‘उधर नहीं, बरामदे में चल.’’

‘‘आप को हो क्या गया है, दीदी? कहती कुछ हो और फिर करती कुछ हो. दोपहर को मुझे फिल्म की सीडी लगाने को बोल कर आप तो सो गईं, मुझे मांजी से डांट खानी पड़ी…’’

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‘‘मम्मी दोपहर को ही आ गई थीं?’’ पुन्नी ने छोटू की बात काटी.

‘‘आई तो अभी हैं, मुझे डांट कर तुरंत अपने कमरे में चली गईं.’’

‘और कमरे में जा कर उस तसवीर से बातें कर रही हैं? मगर तसवीर है किस की?’ पुन्नी ने सोचा.

तभी मालिनी बाहर आ गईं. चेहरे पर से आंसुओं के निशान तो धो लिए थे लेकिन आंखों की नमी तो धुलती नहीं. इस से पहले कि वे कुछ बोलतीं, पापा चहकते हुए आ गए, ‘‘हैलो, डिप्लोमैट…’’

‘‘डिप्लोमैट? किस से बात कर रहे हो, अभय?’’

‘‘अपनी बेटी से, मालिनी, उस का आईएफएस में चयन यानी डिप्लोमैट बनना तो पक्का समझो,’’ पापा की खुशी समेटे नहीं सिमट रही थी, ‘‘आज जो प्रश्न पूछे गए हैं उन सब के उत्तर तो इसे जबानी याद हैं.’’

‘‘लेकिन आप को इस का प्रश्नपत्र किस ने दिखा दिया?’’ मालिनी ने जिरह की.

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‘‘नीलाभ ने. वह परीक्षा भवन से सीधा अपने पापा के पास आया था. उसी का कहना है कि जिस फर्राटे से पुन्नी सब सवालों के सही जवाब सब को बता रही थी, उस का नाम प्रथम 5 प्रत्याशियों में होगा. फिर मैं ने प्रश्नपत्र देखा तो वह सब तो वे प्रश्न थे जो हम ने कल रात रिवाइज कराए थे.’’

‘‘आज ही नहीं पापा, अकसर हर रोज कई सवाल वही होते थे जो आप रात को रिवाइज करवाते थे,’’ पुन्नी ने कहा.

‘‘और तू उन्हें कंठस्थ कर लेती थी, नीलाभ की बात से तो यही लगा. यह बता, दोपहर को क्या किया?’’

‘‘मुझ से फिल्म ‘ओह माई गौड’ की सीडी लगवा कर खुद सो गईं,’’ छोटू ने शिकायत की.

‘‘और तुझे फिल्म अकेले देखनी पड़ी, कैसी है?’’ अभय ने पूछा.

‘‘पूरी नहीं देखी, मांजी ने डांट कर टीवी बंद करवा दिया.’’

‘‘कोई बात नहीं, अब सब के साथ देख लेना, खाना बनाने की जरूरत नहीं है, बाहर से मंगवा लेंगे,’’ मालिनी ने सहृदयता से कहा. फिल्म देखते हुए मालिनी भी सब के साथ सहज भाव से हंस रही थीं लेकिन पुन्नी को उन की सहजता ओढ़ी हुई लगी और हंसी जैसे दबी हुई सिसकी. अगली सुबह मालिनी का व्यवहार सब के साथ सामान्य था.

‘‘पुन्नी, तुझे कहीं जाना हो तो मैं गाड़ी तेरे लिए छोड़ जाती हूं, मैं तेरे पापा के साथ चली जाऊंगी.’’

‘‘मुझे कहीं नहीं जाना, मम्मा, आज घर पर ही रहूंगी.’’

‘‘फिर भी अगर किसी के साथ कुछ प्रोग्राम बन जाए तो मुझे फोन कर देना, ड्राइवर से गाड़ी भिजवा दूंगी या अभय, तुम पुन्नी के साथ लंच करने घर आ जाओ न फिर…’’

‘‘ओह मम्मा, प्लीज, आप दोनों इतमीनान से घर आना,’’ पुन्नी ने बात काटी, ‘‘मेरा मूड या तो आज सोने का है या गानेवाने सुनने का. आप लोग मुझे फोन भी मत करना और छोटू, तू भी मेरे आगेपीछे मत घूमना. मैं जिस कमरे में चाहे बैठूंगी या सोऊंगी.’’

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‘‘अब और कुछ मत कहना मालिनी, वरना समय पर आने पर भी पाबंदी लग जाएगी,’’ पापा ने कहा.

उन दोनों के जाते ही पुन्नी मालिनी की अलमारी के सामने जा खड़ी हुई. अलमारी में तो ताला नहीं था मगर उस का सेफ लौक्ड था. चाबी जरूर मां ने अपनी साडि़यों के नीचे रखी होगी, सोच कर पुन्नी ने सब साडि़यों को बाहर निकाल कर झाड़ा, दूसरे कपड़े भी देख लिए, कुछ किताबें और पुरानी पत्रिकाएं भी थीं. उन का भी हरेक पन्ना इस आस से देख लिया कि कहीं कोई पुराना खत, तसवीर या किसी कविता की पंक्तियां ही मिल जाएं लेकिन एक सूखा फूल तक नहीं मिला. सेफ की चाबी मां अपने पर्स में ही रखती होंगी और उस में से चाबी निकालना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था क्योंकि मां के घर में रहते तो यह हो नहीं सकता था और घर के बाहर मां पर्स के बगैर निकलती नहीं थीं.

part-2

मां से पूछने का मतलब था उन्हें व्यथित के साथ ही लज्जित भी करना और पापा से पूछना एक तरह से मां की शिकायत करना. तो फिर करे क्या? किस से पूछे? मां की बचपन की सहेली चित्रा आंटी को सब पता होगा. उन से पुन्नी की खूब पटती थी, आसानी से तो नहीं लेकिन मनुहार करने पर जरूर बता देंगी. चित्रा अपने पति सेवानिवृत्त एअरमार्शल ओम प्रकाश के साथ शहर से दूर अपने फार्महाउस में रहती थीं. उस ने चित्रा आंटी को फोन किया कि वह उन के पास आना चाहती है.

‘‘आज ही आजा. तेरे अंकल कुछ सामान लाने शहर गए हुए हैं, उन्हें फोन कर देती हूं कि आते हुए तुझे ले आएं,’’ चित्रा ने चहक कर कहा, ‘‘तेरी मां को भी कह देती हूं कि मैं तुझे अगवा करवा रही हूं.’’

पुन्नी ने तुरंत पापा को फोन किया.

‘‘पापा, साक्षात्कार की तैयारी से पहले मैं पूरी तरह रिलैक्स करना चाहती हूं. नो मूवीज, नो टीवी, न्यूजपेपर या फोन कौल्ज. ये सब घर पर रहते हुए तो हो नहीं सकता, सो मैं चित्रा आंटी के फार्महाउस पर जा रही हूं. वहां योगा करूंगी, ध्यान लगाने की कोशिश भी…’’

‘‘क्याक्या करोगी यह वहां जा कर सोचना,’’ अभय ने बात काटी, ‘‘नीलाभ अपने पापा की गाड़ी लेने आया हुआ है, उस से कहता हूं कि मेरी गाड़ी ले जाए और तुम्हें ओमी के फार्महाउस पर छोड़ दे.’’

‘‘ओमी अंकल मुझे लेने आ रहे हैं, पापा, वहां से लाने के लिए आप आ जाना.’’

चित्रा से बात करने के लिए उसे कोई भूमिका नहीं बांधनी पड़ी क्योंकि अगले रोज सुबह के नाश्ते के बाद ओमी अंकल जब फार्म पर चले गए तो चित्रा ने पूछा, ‘‘तेरी मां कहती थी कि तेरे पेपर बड़े अच्छे हुए हैं और तू भी बड़े आत्मविश्वास से ओमी को बता रही थी कि यहां तरोताजा होने के बाद तू धमाकेदार साक्षात्कार की तैयारी करेगी लेकिन तेरी शक्ल से तो ऐसा नहीं लग रहा. बहुत परेशान लग रही है, जैसे किसी कशमकश में फंसी हुई हो. लगता है तू यहां रिलैक्स करने नहीं, किसी परेशानी का हल ढूंढ़ने आई है.’’

‘‘आप ने ठीक समझा, आंटी और वह परेशानी सिर्फ आप सुलझा सकती हैं क्योंकि ननिहाल वाले तो अमेरिका में हैं, सो उन से तो पूछने का सवाल ही नहीं उठता. एक आप ही हैं जो मम्मी को बचपन से जानती हैं और मेरी परेशानी उन के अतीत से जुड़ी हुई है,’’ पुन्नी ने चित्रा को सब बता दिया.

चित्रा हताशा से सिर पकड़ कर बैठ गई.

‘‘कितना समझाया था मालू को कि अतीत से जुड़ी कोई चीज अपने पास मत रखना और न ही अपने जेहन में लेकिन उस ने तो जैसे मेरी बात न सुनने की कसम खा रखी है. तू ने यह बात अपने पापा को तो नहीं बताई न?’’ पुन्नी को इनकार में सिर हिलाते देख कर चित्रा ने राहत की सांस ली.

‘‘बहुत अच्छा किया, नहीं तो बुरी तरह टूट जाता बेचारा. अच्छा सिला दे रही है मालिनी अभय के त्याग और प्यार का, एक नकारे और ठुकराए गए रिश्ते की सड़ीगली लाश को सहेज कर,’’ चित्रा के स्वर में तिरस्कार था या सहानुभूति, पुन्नी समझ नहीं सकी.

‘‘प्लीज आंटी, अब पहेलियों में बात न कर के पूरी कहानी बताओ,’’ पुन्नी ने चिरौरी करी.

‘‘कह नहीं सकती कि सुनने के बाद तुझे धक्का लगेगा या इस दुविधा की स्थिति से उबरने का सुकून मिलेगा लेकिन जब इतना समझ चुकी है कि मालिनी का अतीत है तो उस के बारे में सब जानने का तुझे पूरा हक है,’’ चित्रा ने उसांस ले कर कहा.

‘‘मैं, मालिनी, पुनीत, ओमी और अभय स्कूल से ही सहपाठी और दोस्त थे. कालेज के अंतिम वर्ष में पहुंचते ही हम सब ने भविष्य में क्या करना है, सोच लिया था. ओमी ने एअरफोर्स चुनी थी, मैं ने और मालिनी ने अध्यापन, अभय और पुनीत आईएएस प्रतियोगिता की तैयारी कर रहे थे. स्कूल की दोस्ती रोमांस में बदल गई थी. मेरा और ओमी का तो खैर ठीक था क्योंकि हमारे परिवारों में मित्रता थी, किसी को हमारी शादी पर एतराज नहीं था लेकिन पुनीत का परिवार बहुत रूढि़वादी था और उस की मां बेहद बदमिजाज व तेजतर्रार थीं, उन की मरजी के बगैर घर में पत्ता भी नहीं हिलता था.

‘‘पुनीत दब्बू किस्म का ‘माताजी का लाड़ला’ था. मगर मालिनी तो हमेशा से दबंग, अपनी मरजी की मालिक थी. मैं ने उसे समझाया कि उस के और पुनीत के प्यार का न तो कोई मेल है और न ही कोई भविष्य. पुनीत की रूढि़वादी मां उसे कदापि बहू बनाने को तैयार नहीं होंगी और वह स्वयं भी पुनीत के परिवार से तालमेल नहीं बैठा सकेगी.

‘‘‘अगर पुनीत अपनी मां का लाड़ला है तो मैं भी अपने पापा की लाड़ली हूं. वे मुझे इतना दहेज देंगे कि हिटलर माताजी मुझे झोली पसार कर ले जाएंगी और रहा सवाल परिवार से तालमेल बैठाने का, तो शादी तय होते ही बड़े भैया हम दोनों को आगे पढ़ाई के लिए अमेरिका बुला लेंगे,’ मालिनी ने दर्प से कहा था.

‘‘मेरे इस तर्क को कि आईएएस की तैयारी करने वाला पुनीत अमेरिका क्यों जाएगा, मालिनी ने यह कह कर काट दिया कि पुनीत की तो आईएएस की प्रवेश परीक्षा पास करने लायक योग्यता ही नहीं है, इसलिए अमेरिका जाने का मौका वह नहीं छोड़ेगा.

‘‘और हुआ भी वही. पुनीत दोबारा प्रवेश परीक्षा देना चाहता था लेकिन मालिनी के समझाने पर कि दूसरी बार भी सफल हो और फिर मुख्य और मौखिक परीक्षा में सफलता की क्या गारंटी है, सो बेहतर है कि अमेरिका चल कर अपने प्रिय विषय अर्थशास्त्र में महारत हासिल करे. पुनीत मालिनी की बात मान गया. अपेक्षा से अधिक दहेज और अमेरिका में बेटे की पढ़ाई के लालच में उस की मां ने भी बगैर हीलहुज्जत के शादी के लिए सहमति दे दी.

‘‘मालिनी के भाई ने भी पुनीत और मालिनी को बुलाने की कार्यवाही शुरू कर दी. मालिनी के दोनों भाई अमेरिका में थे ही, सेवानिवृत्त पापा मालिनी की पढ़ाई और शादी की वजह से यहां रुके हुए थे, उस की शादी के तुरंत बाद मम्मीपापा यहां की गृहस्थी समेट कर, मालिनी की शादी में आए बेटों के साथ ही अमेरिका चले गए. पुनीत को भी पेनसिल्वानियां विश्वविद्यालय में दाखिला मिल गया लेकिन मालिनी को अंगरेजी साहित्य में अभी कहीं भी दाखिला नहीं मिल रहा था. इस बीच, वह गर्भवती भी हो गई थी और सास उस का बहुत खयाल रखने लगी थीं. भैया ने पुनीत का वीजा और टिकट वगैरह भेज दिया था. सो, उसे तो जाना ही था. मालिनी यह सोच कर कि कुछ ही दिनों की तो बात है, भैया जल्दी ही उस के भी आने की व्यवस्था कर देंगे, मालिनी अकेले ससुराल में रहना मान गई. और कोई चारा भी नहीं था. मम्मीपापा अमेरिका जा चुके थे, मेरे पापा का ट्रांसफर हो गया था सो मैं होस्टल में रह कर पीएचडी कर रही थी. मालिनी मुझ से अकसर होस्टल में मिलने आती थी, सास की भी तारीफ करती थी. लेकिन एक रोज वह बहुत ही व्यथित अवस्था में आई.

‘‘‘कल रुटीन चैकअप के दौरान सोनोग्राफी हुई तो पता चला कि मेरे गर्भ में लड़की है, बस, तब से मेरी सास ने विकराल रूप धारण कर लिया है कि मैं गर्भपात करवाऊं. मेरी बहुत मिन्नत और ससुरजी के समझाने पर मानीं कि पुनीत से पूछ लें. मगर मेरे से पहले उन्होंने स्वयं पुनीत से बात की और माताजी के आज्ञाकारी बेटे ने तोते की तरह दोहरा दिया-जैसा मां कहती हैं, तुम वैसा ही करो. पुनीत ने कुछ रोज पहले ही फोन पर मुझ से कहा था कि अमेरिका में पैसा भले ही ज्यादा हो, मानसम्मान अपने देश में ही है, मैं तो नहीं बन सका लेकिन अपने बेटे को जरूर भारत में प्रशासनिक अधिकारी बना कर मानसम्मान दिलवाऊंगा. मैं ने चुहल की कि लड़की हुई तो? उस ने छूटते ही कहा था कि तो क्या हुआ, उसे ही आईएएस अफसर बनाएंगे और वही पुनीत अब अम्मा के सुर में सुर मिला रहा है. लेकिन मेरी भी जिद है चाहे जो भी हो मैं गर्भपात नहीं करवाऊंगी, डाक्टर और अस्पताल के स्टाफ को साफ मना कर दूंगी. यह मेरी भ्रांति थी.

‘‘‘माताजी ने कहा कि वह घर पर ही अपनी पहचान की एक मिडवाइफ को बुला कर किस्सा खत्म करवा देंगी. मैं किसी तरह जान बचा कर यहां आई हूं और अब वापस वहां नहीं जाऊंगी.’

‘‘मैं परेशान हो गई. न तो मालिनी को होस्टल में रख सकती थी न वापस जाने को कह सकती थी. तभी मुझे अभय का खयाल आया और मैं मालिनी को उस के घर ले गई.

part-3

‘‘अभय आईएएस की प्रवेश परीक्षा पास कर के मुख्य परीक्षा की तैयारी कर रहा था. वर्षों पहले एक सड़क दुर्घटना में उस की मां का निधन हो गया था और वकील पिता अपाहिज हो गए थे. उस के घर में सिवा पिता और नौकर के कोई और न था.

‘उस के पिता ने कहा कि मालिनी जब तक चाहे उन के घर में सुरक्षित रह सकती है लेकिन उसे पुलिस में ससुराल वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करानी होगी. मुझे तो समय से होस्टल पहुंचना था, सो अभय अकेला ही मालिनी को ले कर थाने गया. फिर उस की अमेरिका में उस के घर वालों से बात करवाई. उन्होंने आश्वासन दिया कि वे पुनीत से बात करेंगे. उस जमाने में मोबाइल तो थे नहीं, ईमेल की सुविधा भी बहुत कम थी, सो रोज बात नहीं हो पाती थी.

‘‘खैर, अभय और उस के पिता ने मालिनी का बहुत साथ दिया, उस की देखभाल के लिए नौकरानी भी रख दी. लेकिन मालिनी के ससुराल वालों ने उस पर चोरी कर के घर से भागने के आरोप में उसे गिरफ्तार करवा दिया. अभय के पिता ने अपने संपर्क द्वारा उस की तुरंत जमानत तो करवा दी लेकिन इस से मालिनी का विदेश जाना खटाई में पड़ गया. पहले ही उसे कहीं दाखिला न मिलने के कारण वीजा नहीं मिल रहा था. और जैसे यह काफी नहीं था, पुनीत ने बदचलनी का आरोप लगा कर उसे तलाक का नोटिस भिजवा दिया. पुनीत को यूनिवर्सिटी में दाखिला मिल चुका था और पार्टटाइम जौब भी, अब उसे मालिनी के परिवार की मदद की जरूरत नहीं थी और वैसे भी, उस ने यह पूछ कर उन का मुंह बंद कर दिया था कि मालिनी किस रिश्ते से अभय के घर में रह रही है?

‘‘मालिनी के अमेरिका जाने का कोई बनाव नहीं बन रहा था. भाई वृद्ध मातापिता को वापस भेजना नहीं मान रहे थे क्योंकि वे भारत में सब समेट कर बेटों के पास गए थे, एक गर्भवती बेटी के सहारे दोबारा यहां व्यवस्थित होना आसान नहीं था.

‘‘एक बार फिर अभय मालिनी का संबल बना, सहर्ष मालिनी को अपनाकर उस की बेटी को अपना नाम दिया और भरपूर प्यार भी, मांबाप के साथ हुए हादसे के कारण वह अब तक हार्ट फ्री था. मगर अब इन चक्करों में पड़ने के कारण अभय की पढ़ाई का बहुत हरजा हुआ और उस का चयन आईएएस के बजाय आयकर विभाग में हुआ. लेकिन उसे इस का कोई मलाल नहीं है, कर्मठता से तरक्की करते हुए बीवीबेटी के साथ बेहद खुश है…’’

‘‘लेकिन, मम्मी?’’ पुन्नी ने चित्रा की बात काटी, ‘‘मम्मी तो अभी भी उसी माताजी के दब्बू बेटे की तसवीर के आगे आंसू बहा रही हैं. शर्म आती है उन्हें मम्मी कहते हुए.’’

‘‘शर्म तो मुझे भी आती है उसे अपनी सहेली कहते हुए लेकिन पुन्नी, पहले प्यार का नशा शायद कभी नहीं उतरता. इसे विडंबना ही कहेंगे कि अभय का पहला प्यार मालिनी है और मालिनी का पहला प्यार तो पुनीत अभी तक है,’’ चित्रा ने उसांस ले कर कहा.

‘‘लेकिन मेरे लिए सब से बढ़ कर मेरे पापा हैं और आज से मैं वही करूंगी जो मेरे जन्मदाता का नहीं, मुझे अनमोल जीवन देने वाले पापा का सपना है,’’ पुन्नी ने दृढ़ता से कहा.

‘‘उस का सपना तो तेरी शादी नीलाभ से करने का है.’’

‘‘जो उन्होंने मेरी आंखों में देख कर अपनी आंखों में बसाया है, पापा और मेरे बीच में एक अदृश्य मोहपाश है जिसे मैं कभी टूटने नहीं दूंगी,’’ पुन्नी ने विह्वल मगर दृढ़ स्वर में कहा. चित्रा ने भावविभोर हो कर उसे गले से लगा लिया.

Womens Day Special : आत्मग्लानि

‘‘ऋचा…’’ लगभग चीखते हुए मैं कमरे से निकली, ‘‘अब बस भी करो… कितनी बार समझाया है कि लड़कियों को ऐसे चिल्लाचिल्ला कर बात नहीं करनी चाहिए पर तुम्हारी खोपड़ी में तो मेरी कोई बात घुसती ही नहीं. कालेज नहीं जाना है क्या? और उत्तम, आप भी, बस हद करते हैं…जवान बेटी के साथ क्या कोई इस तरह…’’ मैं चाह कर भी अपनेआप को काबू में नहीं रख पाई और भर्राई आवाज में आधीअधूरी ही सही, मन की भड़ास निकाल ही दी.

शांत प्रकृति की होने के कारण क्रोधित होते ही मुझे घबराहट सी होने लगती है, इसलिए पलभर में ही लगने लगा कि अंदर कुछ टूटनेफूटने लगा है, ऐसा महसूस हो रहा था, मानो मैं अचानक ही असहाय सी हो गई हूं. ऋचा और उत्तम की धमाचौकड़ी और घर के कोने में दुबक कर एकदूसरे के कानों में गुपचुप बतियाने की प्रक्रिया ने मुझे निढाल करना शुरू कर दिया था. अपनी संवेदनशीलता से मैं स्वयं धराशायी हो गई. मेरी आंखें अनायास छलक उठीं.

‘‘मृदुला, क्या हो गया है तुम्हें?’’ उत्तम ने मेरे दोनों कंधों को थामते हुए पूछा, ‘‘मैं और ऋचा तो हमेशा से ऐसे ही थे. ऋचा कितनी भी बड़ी हो जाए पर मेरे लिए वह हमेशा वही रहेगी, नन्हीमुन्नी गुडि़या.’’

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‘‘हां, यह तो ठीक है, पर…’’ मेरे होंठों पर अचानक जैसे किसी ने ताला लगा दिया. अंदर की बात अंदर ही अटकी रह गई. मैं सचाई नहीं बोल पाई. जिस सच के कड़वेपन को महसूस कर मैं अंदर ही अंदर तड़प रही थी उस बात को उजागर करने के खयाल मात्र से भी दिल सहम सा जाता था.

‘‘तुम बहुत चिड़चिड़ी होती जा रही हो. क्या बात है? लगता है, अंदर ही अंदर कोई सोच खाए जा रही है,’’ मेरे हाथों को अपने हाथ में लेते हुए उत्तम ने मुझे अपने साथ सोफे पर बिठा लिया, ‘‘हम दोनों एकदूसरे के सुखदुख के सहभागी हैं. मुझे बताओ, आखिर बात क्या है?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ एक झटके में उत्तम के हाथों को मुक्त करते हुए मैं उठ खड़ी हुई. उत्तम की ऐसी चिकनीचुपड़ी बातों से अब मुझे नफरत सी होने लगी थी. सोचने लगी, ‘कितना झूठ बोलता है उत्तम. क्या जरूरत है उसे यह कहने की कि मैं उस के सुखदुख की साथी हूं. यदि ऐसा होता तो वह मेरे साथ बिताए जाने वाले लमहों को ऋचा के साथ न बांटता.’ मैं विकल हो उठी तो प्रयास किया कि सोफे पर पड़े बैग को कंधे पर लटकाते हुए तत्काल घर से बाहर निकल जाऊं पर ऋचा दरवाजे पर दोनों हाथ फैलाए खड़ी हो गई, ‘‘मां, पहले नाश्ता…’’

‘‘नहीं, मुझे भूख नहीं है.’’

‘‘ऐसे कैसे भूख नहीं है,’’ ऋचा ने मुझे धकेलते हुए खाने की मेज पर बिठा दिया, ‘‘मां, मुझे तो लगता है, आप रातदिन मेरी शादी को ले कर परेशान रहती हैं. पर अभी मेरी उम्र ही क्या है और फिर मैं कोई कालीकलूटी तो हूं नहीं जो लड़का मिलना मुश्किल हो जाएगा. क्यों पिताजी?’’ ठुनकती हुई ऋचा ने मुझे खुश करने का प्रयास करते हुए उत्तम से पूछा.

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‘‘बिलकुल सही,’’ पलभर पहले मेरे चिंताग्रस्त चेहरे को ले कर बेहद गंभीर हो उठे उत्तम, ऋचा की बात सुन कर फिर से चुलबुले बन बैठे, ‘‘पर ऋचा, तुम्हारा शरीर जिस तरह से मोटा होता जा रहा है, उस से तो लगता है कि तुम्हें कोई अच्छा लड़का मिलने से रहा.’’

‘‘मां, देखो न. पिताजी हमेशा मुझे मोटी कह कर चिढ़ाते रहते हैं,’’ मेरी प्लेट में गाजर का हलवा परोसती हुई ऋचा बोली, ‘‘जानती हो मां, पिताजी ने मुझे एक भी चम्मच गाजर का हलवा खाने को नहीं दिया. इसीलिए तो मैं इन से लड़ रही थी. अब तुम्हीं बताओ, क्या मैं सचमुच इतनी मोटी हूं?’’ मैं ऋचा के सवाल का कोई जवाब न दे पाई. बस, आंखें तरेर कर उस की ओर देखते हुए जतला दिया कि मुझे उस का बातचीत करने का यह ढंग बिलकुल पसंद नहीं आया. नाश्ता गले के नीचे नहीं उतर रहा था. मैं उठ खड़ी हुई.

‘‘यह क्या मां, पूरा तो खा लो.’’

‘‘नहीं, बस…’’

‘‘रहने दे ऋचा, लगता है, तेरी मां डाइटिंग कर रही हैं. इन्हें शायद इस बात का डर है कि कहीं तुम खूबसूरती में इन से बाजी न मार लो,’’ और दोनों की खनकती हंसी अंगारों की तरह मेरे कानों से टकराई. मैं रोंआसी हो उठी. सोचा, दौड़ कर दमघोंटू माहौल से बाहर निकल जाऊं, पर अचानक बढ़ते कदम रुक गए, ‘‘ऋचा, तुम भी चलो न, तुम्हारे कालेज का तो समय हो गया है.’’

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‘‘ऋचा को मैं छोड़ दूंगा, तुम जाओ,’’ ऋचा को अपने अंक में समेटते हुए उत्तम ने कहा तो उस का साहस और ऋचा की उन्मुक्तता ने मेरे तनबदन में आग लगा दी. लाचार सी अपनी ही पीड़ा से झुलसती मैं तेजी से घर से बाहर निकल गई. उस रोज दफ्तर में किसी काम में मन नहीं लगा. थोड़ाबहुत काम जैसेतैसे निबटा कर मैं निढाल सी कुरसी पर बैठी रही. चिंता में डूबे मेरे दिल और दिमाग में बारबार वही दृश्य आताजाता रहा, जब उत्तम ने ऋचा को अपने पास खींच लिया था. मन में कुलबुलाहट होने लगी कि पितापुत्री में ऐसे प्रेम प्रदर्शन का बुरा लगना अस्वाभाविक है. पर उत्तम तो ऋचा के सौतेले पिता हैं, यानी मेरे दूसरे पति. इस बात को मैं कभी भूल ही नहीं पाती थी. सालों पहले का दृश्य आंखों के आगे साकार हो उठा, जब उत्तम सागर की मौत की सूचना देने मेरे घर आया था. विधवा होने की सूचना मिलते ही मैं ने दीवारों से बांहें टकराते हुए चूडि़यां तोड़ डाली थीं. मुझे लगा था, मेरे साथ मेरी तरह चीत्कार कर रोने वाला उत्तम मेरी पीड़ा का सच्चा सहभागी है.

वह बोला, ‘भाभी, अब हम कैसे जीएंगे, सागर के बगैर तो मैं दो कदम भी नहीं चल सकता.’ उत्तम के असहनीय वार्त्तालाप ने मुझे मजबूर कर दिया था कि मैं तत्काल आंसू पोंछ डालूं और उस को संभालने का प्रयास करूं. बिना कुछ सोचेसमझे मेरे सीने से लग कर उस रोज वह इतना मासूम लगा था कि मैं देर तक उसे अपनी बांहों में समेटे रही. उस के आंसुओं ने मेरे आंचल से चुपके से दोस्ती कर ली थी.

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उस के बाद उत्तम जब भी आता, कभी मेरे सिर पर हाथ फेर कर संरक्षक बन जाता तो कभी मेरे आगोश में छिप कर एक नन्हा बालक. तब ऋचा 2 साल की थी. ऋचा के पिता, यानी सागर ने मुझे कभी अकेले चलना नहीं सिखाया था. हर वक्त मेरे हाथों को अपने हाथों में लिए चलता था. मैं कभी अगलबगल देख कर यह जानने का प्रयास न करती कि जिस राह पर वह मुझे लिए जा रहा है, वह कहां जा कर खत्म होती है. मेरी आंखें तो सागर के तेजस्वी चेहरे पर टिकी रहती थीं. पर वह अचानक मुझे नन्ही ऋचा के सहारे ऐसी जगह छोड़ कर चला गया, जहां से न तो मुझे आगे का मार्ग पता था, न पीछे का. अचकचाई सी जब भी मैं इस अनजान शहर में इधरउधर नजर दौड़ाती तो सिवा उत्तम के कोई और मुझे नजर न आता जिसे मेरी आंखें पहचानती हों. मैं उत्तम के सहारे की मुहताज थी और वह मेरे सामीप्य का. इसीलिए तो एक दिन उस ने ‘भाभी’ और ‘आप’ की सारी सीमाओं को लांघ कर मेरे हाथों को थाम लिया और पूछा, ‘मुझ से शादी करोगी?’

मैं अचंभित, अवाक् सी उसे ताकती रह गई. मासूमियत से मेरे सीने से लग जाने वाला उत्तम कभी मेरे सामने यह प्रस्ताव रखेगा, इस की तो मैं ने कल्पना ही नहीं की थी. यदि कभी ऐसी कल्पना की होती तो उस के द्वारा पूछे जाने वाले इस संभावित प्रश्न का एक उचित उत्तर भी तैयार रखती. पर मैं ने तो इस बारे में कभी सोचा ही नहीं था. समझ में नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दूं. मेरे जीवन से सागर की कमी की परिपूर्ति करने की इच्छा रखने वाला उत्तम उस समय मेरे लिए पूजनीय था या एक ओछी प्रवृत्ति वाला स्वार्थी इंसान, मैं समझ नहीं पा रही थी. मुझे सशंकित देख कर उस ने कहा था, ‘मृदुला, तुम्हारे साथ मेरा नाम जुड़ गया है. लोग तरहतरह की बातें बनाने लगे हैं. मेरी मां ने मेरा रिश्ता कहीं और करना चाहा था पर मैं उस के लिए तैयार नहीं था. तुम कभी यह न समझना कि मेरे मन में तुम्हारे प्रति जो स्नेह है उस में वासना छिपी है. पर किसी और से शादी कर के मैं तुम्हारी और ऋचा की देखभाल में असमर्थ हो जाऊंगा. मैं तुम दोनों को असहाय नहीं छोड़ सकता, इसीलिए यह प्रस्ताव रख रहा हूं.’’

मैं विस्मित सी उसे देखती रह गई. कितना अनोखा और निराला सा था, उस का प्रस्ताव. मेरी भावनाओं में, मेरे हृदय में और मेरी आंखों की गहराइयों में उस ने कब और कैसे कब्जा कर लिया, मैं जान ही न पाई. जब उस ने मेरे रोमरोम को जीत लिया था तो इनकार भला मैं किस मुंह से करती. उत्तम के सामने मेरा झुका हुआ सिर मेरी मौन स्वीकृति का सूचक बन गया था और समाज के रीतिरिवाजों और दकियानूसी परंपराओं से लड़ते हुए उत्तम ने मेरी मांग में तारे सजा दिए. उत्तम ने मेरी और ऋचा की जिंदगी में बहार ला दी थी. ऋचा के साथ कभी अनजाने कोई अन्याय न हो जाए, इस विश्वास को अंजाम देने के लिए उस ने कभी एक और बच्चे की इच्छा नहीं की. लेकिन मेरी खुशियों को रोशन रखने के लिए अपनी आकांक्षाओं से दीप जलाने वाला उत्तम अचानक बदलने लगा था. उस के जीवन से मेरा अस्तित्व धीरेधीरे खत्म होता जा रहा था. अब ऋचा ही उस की सबकुछ थी. यौवन की दहलीज पर खड़ी ऋचा को अच्छेबुरे की शिक्षा देतेदेते मैं हार गई थी. पर वह पिता के साथ करने वाली अपनी शरारतों में जरा सी भी कमी नहीं करती थी.

एक पुरुष और एक स्त्री के रिश्ते में थोड़ी सी दूरी कितनी जरूरी है, इस बात को ऋचा और उत्तम ने नजरअंदाज कर दिया था. उन दोनों के बीच का यह गहन रिश्ता मेरी नजरों में तब संदेहास्पद हो उठा था जब उत्तम ने पुरानी फैक्टरी का काम छोड़ कर एक नई फैक्टरी में नौकरी कर ली. इस नई फैक्टरी में हमेशा उस की शिफ्ट ड्यूटी रहती थी और जब रात की ड्यूटी रहती, तब ऋचा और उत्तम दोपहर को घर पर अकेले ही रहते थे क्योंकि ऋचा के कालेज का समय दोपहर के 1 बजे तक का ही था. इस एकांत ने उन के स्नेह में जरा सा परिवर्तन कर दिया था. अब वे एकदूसरे के परममित्र बन बैठे थे. सुबहशाम उत्तम ऋचा के आगेपीछे लगा रहता था. कभी उस के गोरे गालों पर चिकोटी काट लेता तो कभी उस की कमर में हाथ डाल कर उसे अपने अंक में भर लेता. जब भी उत्तम ऐसा करता, मेरे दिल पर जोर की चोट लगती. पहली बार मेरा माथा तब ठनका जब एक दोपहर सिरदर्द के कारण मैं जल्दी घर लौट आई थी और ऋचा को उस रोज अपने शयनकक्ष में सोया पाया. उस के बाद मेरे सिर में दर्द हुआ या नहीं, मुझे याद ही नहीं, क्योंकि जब कहीं गहरी चोट लगती है तब पहले वाली चोट की पीड़ा अपेक्षाकृत कम हो जाती है और यही मेरे साथ भी हुआ.

तब से मन में यही संशय भरा हुआ था कि कहीं सौतेले पिता और पुत्री के बीच कुछ अनैतिक तो नहीं? तब से मैं ने उन दोनों के व्यवहार पर अपनी तेजतर्रार नजरों से जासूसी शुरू कर दी और यही पाया कि वे एकांतप्रिय हो चले हैं. कुल 3 सदस्यों वाले छोटे से परिवार में भी उन्हें दखलंदाजी की बू आती थी. इसीलिए वे कभी छत पर तो कभी बगीचे के किसी कोने में दुबक जाते थे. कभी उन के बीच एक रहस्यमयी खामोशी तो कभी लोकलाज के सारे बंधनों को भूल कर वे एकदूसरे से आलिंगनबद्ध हो प्रेमालाप करते. उन के बीच मैं उपेक्षित थी, यह विचार मेरी आंखों को गीला किए जा रहा था. जी तो यही चाह रहा था कि खूब रोऊं, पर कार्यालय में मेरा रोना अशोभनीय कहलाता, इसीलिए अपनी भावनाओं को संयत करने का प्रयास किया. जब से मेरे मन में उत्तम और ऋचा को ले कर संशय जागा तब से मैं लगातार यह प्रयास कर रही थी कि ऋचा के लिए जल्दी ही योग्य लड़का तलाश लूं. सभी दोस्तों और रिश्तेदारों से मैं ने इस संबंध में बात की थी और सभी से यह आग्रह भी किया था कि ऋचा के लिए लड़का तलाशने में वे मेरी सहायता करें.

घड़ी पर ध्यान गया तो शाम के 5 बज गए थे. घर जाने का समय हो गया था. पर ‘घर’ शब्द से मुझे चिढ़ सी होने लगी थी. घर तो वह जगह होती है जहां हर कोने में स्नेह, विश्वास और त्याग की भावना भरी हुई हो. वह घर, जहां पलपल एक गोपनीयता का एहसास भरा हो, वहां जाने की इच्छा भला किसे होगी? पर जाना तो होगा ही, सोचते हुए मैं उठ खड़ी हुई. घर पहुंचने से पहले मैं ने निर्णय लिया कि ऋचा को अब घर पर नहीं रहने दूंगी और जब तक उस के लिए योग्य लड़का नहीं मिल जाता तब तक के लिए उस का दाखिला किसी लड़कियों के छात्रावास में करा दूंगी. इस के अलावा मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था. लेकिन मैं इस बात को ले कर भी चिंतित थी कि उत्तम को वजह क्या बताऊंगी. ऋचा को घर से दूर करने की बात पर वह जरूर नाराज हो जाएगा. हो सकता है, मुझ से लड़ भी पड़े.

घर पहुंची तो बरामदे में ही कुरतापाजामा पहने और शाल लपेटे बड़ी बेसब्री से चहलकदमी करता उत्तम नजर आया. उस को देखते ही मन में कड़वाहट सी भर गई. किस का इंतजार कर रहा है? यह जानने की उत्सुकता थोड़ीबहुत तो थी, पर पूछने की इच्छा ही नहीं हुई. मैं तेजी से शयनकक्ष में पहुंच कर निढाल सी बिस्तर पर गिर पड़ी और पता ही नहीं चला, कब आंख लग गई.

‘‘मृदुला, उठो न, सो क्यों रही हो?’’ मुझे झकझोरते हुए उत्तम ने उठा दिया.

‘‘थोड़ी देर सोना चाहती हूं, बड़ी थकान हो रही है,’’ मैं ने बेरुखी से अपनी बात कह दी और यह जतला दिया कि उस की बात मैं मानना नहीं चाहती.

‘‘मृदुला,’’ इस बार जरा सख्ती से उस ने मुझे खींच कर उठा दिया.

मैं अचकचाई सी उठ बैठी और उत्तम के इस अजीबोगरीब व्यवहार के कारण विस्मित सी उसे ताकती रह गई.

‘‘अभी तुम सो नहीं सकतीं. जल्दी से मुंहहाथ धो कर तैयार हो जाओ. नीचे मेहमान तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’’

‘‘कौन मेहमान?’’

‘‘हमारी ऋचा का भावी पति अपने मातापिता के साथ आया हुआ है.’’

‘‘क्या?’’ मैं आंखें फाड़े उत्तम को देखती रह गई, ‘‘तुम ने पहले क्यों नहीं बताया?’’

‘‘मैं तुम्हारा ही तो इंतजार कर रहा था. मैं और ऋचा मिल कर तुम्हें सरप्राइज देना चाहते थे, इसलिए तुम्हें पहले से नहीं बताया. इस लड़के को ऋचा ने स्वयं पसंद किया है. पिछले महीने जब उस ने मुझे यह बात बताई तब मैं ने निर्णय लिया कि अकेले ही पहले उस लड़के को परखूंगा और यदि वह हमारी बेटी के योग्य सिद्ध हुआ तो फिर तुम्हें बताऊंगा. ‘‘मैं पिछले 15 दिनों से इसी काम में लगा हुआ था. लड़का डाक्टर है. कई लोगों से मिल कर मैं ने पता लगाया और जब आश्वस्त हो गया तो आज उसे घर पर बुला लिया ताकि तुम उस से मिल कर बाकी की कार्यवाही करो.’’ मैं हैरानगी से उत्तम को देखती रह गई.

‘‘आज हम दोनों का इरादा तुम को सरप्राइज देने का था पर तुम इतनी थकीथकी सी लगीं कि पलभर के लिए तो हम भी परेशान हो गए. लड़के वाले शादी के लिए जल्दी कर रहे हैं. एक बार बेटी का बोझ सिर से उतर जाए, फिर मेरी जिंदगी में सिर्फ तुम ही तो रह जाओगी. ‘‘अभी शायद मेरा प्यार बंट गया है, इसलिए तुम्हारी तकलीफ को देख कर भी कुछ कर नहीं पा रहा था. पर कुछ दिनों बाद मेरी जिंदगी में तुम अकेली रह जाओगी, तब मैं तुम्हें कभी परेशान नहीं होने दूंगा. अच्छा, अब जल्दी से तैयार हो कर आ जाओ,’’ मेरे गालों को थपथपाता हुआ उत्तम बोला और बाहर निकल गया. ऋचा के प्रति उत्तम के निश्छल स्नेह को देख कर मेरा सिर शर्म से झुक गया. मैं सोचने लगी कि कितने गंदे हो गए थे मेरे विचार कि मुझे ‘सरप्राइज’ देने की उन की गुपचुप तैयारी में मुझे उन का आपत्तिजनक प्रेमालाप नजर आया. बहुत प्रयास किया कि अपनेआप को संभाल लूं पर रो ही पड़ी. जल्दी ही आंसुओं ने मन का सारा मैल धो डाला था.

Womens Day Special: अदृश्य मोहपाश

संपादकीय

दिल्ली का जीमखाना क्लब न केवल प्रधानमंत्री के निवास के निकट है, इस क्लब के सदस्य भी प्रधानमंत्रियों के निकट वाले ही होते हैं. इस क्लब की सदस्यता को एक खास स्टेटस सिंबल माना जाता है और भारत जैसी संस्कृति में जहां पद और पैदाइश दोनों में गहरा संबंध है, इस क्लब की सदस्यता सरकारी अफसरों के बच्चों तक ही सीमित है. इस के सदस्यों ने नियमकानून ऐसे बना रखे हैं कि आम लोगों को सदस्यता भूल कर भी न मिले.

लेकिन जैसा हर दरबार में होता है. उस क्लब में भी भयंकर राजनीति है और तरहतरह के मठाधीश है. कुछ आईएएस अफसरों में से हैं, कुछ मिलिट्री को कुछ पुलिस को, कुछ पिछले राजनीतिबाजों के पुत्रों के. हर मठ दूसरे को नीचा दिखाने में लगा रहता है. चाय 12 रुपए की हो या 20 रुपए की, इस पर घंटों जनरल काउंसिल बहस करती है.

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इस क्लब पर सैंकड़ों मुकदमें चले हैं. चूंकि मोटी एंट्री फीस है, क्लब के पास पैसे की कमी नहीं है. शादीब्याहों के लिए दिए जाने वाली जगह से अच्छी आमदनी है. अब शहद है तो मक्खियां भी आएंगी ही.

इस क्लब पर अब नैशनल कंपनी….. ट्रिव्यूनल ने केंद्र सरकार का एक अफसर बैठा दिया है और चुनी हुई जनरल काउंसिल हवा हो गई है.

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यह साबित करना है कि इस देश की नौकरशाही कितनी गैर जिम्मेदार है कि वह अपने सुरक्षित क्लब को भी आंतरिक विवादों से बचा कर नहीं रख सकती. इस क्लब के सदस्य तंगदिल और ऊंचे एइम के शिकार तो हैं ही, वे एक संस्था को नष्ट करने में जरा सी देर नहीं लगाते. जब वे उस जगह को नष्ट कर सकते हैं जहां वे बुढ़ापे में कुॢसयों में घंटों पड़े रह सकते हैं, वे देश का क्या हाल कर रहे होंगे, क्या सोचने की बात है?

हमारी सेना और नौकरशाही ने पूरे देश को जीमखाना बना रखा है जो निरर्थक आंतरिक विवादों में डूबा है और जिस पर अब नियंत्रण करने बाहरी यानी विदेशी हवाई जहाजों में भरमार कर आ रहे हैं. गेंहू की बोरी में कैसे दाने हैं वे एक दाने को परखने से पता चल जाता है न? क्लब एक वैसा ही दाना है.

अजोला की खेती और दुधारू जानवरों का चारा

लेखक-मोहन लाल जाट, मंजू वर्मा और मनीषा

अब तक अजोला का इस्तेमाल खासकर धान में हरी खाद के रूप में किया जाता था, लेकिन अब इस में छोटे किसानों के पशुपालन के लिए चारे की बढ़ती मांग को पूरा करने की जबरदस्त क्षमता दिखती है. अजोला खेती की प्रक्रिया  किसी छायादार स्थान पर पशुओं की संख्या के अनुसार किसान 1.5 मीटर चौड़ी, लंबाई जरूरत के मुताबिक (3 मीटर) और 0.30 मीटर गहरी क्यारी बनाएं. क्यारी को खोद कर या ईंट लगा कर भी बनाया जा सकता है.

क्यारी में जरूरत के मुताबिक सिलपुटिन शीट को बिछा कर ऊपर के किनारों पर मिट्टी का लेप कर व्यवस्थित कर दें.  सिलपुटिन शीट को बिछाने की जगह पशुपालक पक्की क्यारी बना कर तैयार कर सकते हैं. 100-120 किलोग्राम साफ उपजाऊ मिट्टी की 3 इंच मोटी परत क्यारी में बना दें. नोट : आजकल बाजार में कृत्रिम अजोला टब भी उपलब्ध हैं. किसान चाहें तो उन्हें भी खरीद सकते हैं. अब इस में 5-10 सैंटीमीटर तक जलस्तर आ जाए, इतना पानी क्यारी में भरते हैं.

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5-7 किलोग्राम गोबर (2-3 दिन पुराना) 10-15 लिटर पानी में घोल बना कर मिट्टी पर फैला दें. यदि जानवर गोबर के घोल वाले अजोला को नहीं खाते हैं, तो इस के लिए रासायनिक खाद भी तैयार कर के डाला जाता है, जैसे : एसएसपी – 5 किलोग्राम मैग्नीशियम सल्फेट – 750 ग्राम पोटाश – 250 ग्राम इन का मिश्रण तैयार कर लें. तैयार मिश्रण का 10-12 ग्राम 1 वर्गमीटर 1 सप्ताह के अंतराल पर क्यारी में डालें. इस मिश्रण पर 2 किलोग्राम ताजा अजोला को बिछा दें. इस के बाद 10 लिटर पानी को अच्छी तरह से अजोला पर छिड़कें, जिस से अजोला अपनी सही स्थिति में आ सके.

ध्यान रहे कि मिट्टी और जल का अनुपात 5-7 और क्यारी का तापमान 25-30 डिगरी सैंटीग्रेड अजोला की अच्छी बढ़वार के लिए सही रहता है. क्यारी को नायलोन की जाली से ढक कर 20-21 दिन तक अजोला को बढ़ने दें. लागत अजोला उत्पादन इकाई स्थापना में क्यारी निर्माण, सिलपुटिन शीट, छायादार नायलोन जाली और अजोला बीज की लागत पशुपालक को प्रतिवर्ष नहीं देनी पड़ती है. इन कारकों को ध्यान में रखते हुए अजोला उत्पादन लागत लगभग 10 रुपए प्रति किलोग्राम से कम आंकी गई है. अजोला क्यारी से हटाए पानी को सब्जियों व पुष्प खेती में काम लेने से यह एक वृद्धि नियामक का काम करता है. अजोला लगाने के लिए उचित समय अक्तूबर महीने से ले कर मार्च महीने तक इस को शुरू किया जा सकता है. अप्रैल, मई, जून महीने में अजोला उत्पादन काफी कम हो जाता है.

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लेकिन छाया का इस्तेमाल किया जा सके, तो अजोला का उत्पादन उपरोक्त महीनों में भी किया जा सकता है. रखरखाव शीत ऋतु व गरमी में तापमान कभीकभी कम और अधिक होने की संभावना रहती है, इसलिए उस स्थिति में क्यारी का तापमान उचित बनाए रखने के लिए क्यारी को पुरानी बोरी के टाट अथवा चादर से ढक सकते हैं. क्यारी के जलस्तर को 10 सैंटीमीटर तक बनाए रखें. हर 3 महीने के बाद अजोला को हटा कर पानी व मिट्टी बदलें और नई क्यारी के रूप में पुन: संवर्धन करें. किस्म : अजोला पीनाटा, अजोला माइक्रो फाईला. उपज : 200 से 250 वर्गफुट. अजोला का पशुओं के लिए चारे के रूप में उपयोग क्यारी में तैयार अजोला को छलनी की सहायता से बाहर निकाल कर इस को अलग से साफ पानी से भरी बालटी में धोया जाता है, ताकि जानवर को इस की गंध न आए. बड़े जानवर (गाय, भैंस) : 1 से 1.5 किलोग्राम/प्रतिदिन. छोटे जानवर (बकरी, भेड़) : 150-200 ग्राम/प्रतिदिन. मुरगियां : 30-50 ग्राम/

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प्रतिदिन. नोट : जो जानवर 3-4 लिटर/प्रतिदिन दूध देते हैं, उन को अजोला खिलाने से प्रोटीन की पूर्ति हो जाती है. लाभ : अजोला को रोज दाने या चारे में मिला कर पशुओं को खिलाने से ऐसा पाया गया है कि इस से मिलने वाले पोषण से दूध उत्पादन में 10-15 फीसदी तक की वृद्धि होती है. इस के साथ 20-25 फीसदी चारे की बचत होती है. अजोला को मुरगियों को खिलाने से उन का वजन 10-12 फीसदी ज्यादा बढ़ता है. अजोला की पोषण क्षमता शुष्क मात्रा के आधार पर प्रोटीन (20-25 फीसदी), कैल्शियम (67 मिलीग्राम/100 ग्राम) और लोहा (73 मिलीग्राम/100 ग्राम), रेशा (12-15 फीसदी), खनिज (10-15 फीसदी) और 7-10 फीसदी एमिनो एसिड, जैव सक्रिय पदार्थ व पौलीमर्श आदि पाए जाते हैं.

Womens Day Special: अदृश्य मोहपाश -भाग 2

मां से पूछने का मतलब था उन्हें व्यथित के साथ ही लज्जित भी करना और पापा से पूछना एक तरह से मां की शिकायत करना. तो फिर करे क्या? किस से पूछे? मां की बचपन की सहेली चित्रा आंटी को सब पता होगा. उन से पुन्नी की खूब पटती थी, आसानी से तो नहीं लेकिन मनुहार करने पर जरूर बता देंगी. चित्रा अपने पति सेवानिवृत्त एअरमार्शल ओम प्रकाश के साथ शहर से दूर अपने फार्महाउस में रहती थीं. उस ने चित्रा आंटी को फोन किया कि वह उन के पास आना चाहती है.

‘‘आज ही आजा. तेरे अंकल कुछ सामान लाने शहर गए हुए हैं, उन्हें फोन कर देती हूं कि आते हुए तुझे ले आएं,’’ चित्रा ने चहक कर कहा, ‘‘तेरी मां को भी कह देती हूं कि मैं तुझे अगवा करवा रही हूं.’’

पुन्नी ने तुरंत पापा को फोन किया.

‘‘पापा, साक्षात्कार की तैयारी से पहले मैं पूरी तरह रिलैक्स करना चाहती हूं. नो मूवीज, नो टीवी, न्यूजपेपर या फोन कौल्ज. ये सब घर पर रहते हुए तो हो नहीं सकता, सो मैं चित्रा आंटी के फार्महाउस पर जा रही हूं. वहां योगा करूंगी, ध्यान लगाने की कोशिश भी…’’

‘‘क्याक्या करोगी यह वहां जा कर सोचना,’’ अभय ने बात काटी, ‘‘नीलाभ अपने पापा की गाड़ी लेने आया हुआ है, उस से कहता हूं कि मेरी गाड़ी ले जाए और तुम्हें ओमी के फार्महाउस पर छोड़ दे.’’

‘‘ओमी अंकल मुझे लेने आ रहे हैं, पापा, वहां से लाने के लिए आप आ जाना.’’

चित्रा से बात करने के लिए उसे कोई भूमिका नहीं बांधनी पड़ी क्योंकि अगले रोज सुबह के नाश्ते के बाद ओमी अंकल जब फार्म पर चले गए तो चित्रा ने पूछा, ‘‘तेरी मां कहती थी कि तेरे पेपर बड़े अच्छे हुए हैं और तू भी बड़े आत्मविश्वास से ओमी को बता रही थी कि यहां तरोताजा होने के बाद तू धमाकेदार साक्षात्कार की तैयारी करेगी लेकिन तेरी शक्ल से तो ऐसा नहीं लग रहा. बहुत परेशान लग रही है, जैसे किसी कशमकश में फंसी हुई हो. लगता है तू यहां रिलैक्स करने नहीं, किसी परेशानी का हल ढूंढ़ने आई है.’’

‘‘आप ने ठीक समझा, आंटी और वह परेशानी सिर्फ आप सुलझा सकती हैं क्योंकि ननिहाल वाले तो अमेरिका में हैं, सो उन से तो पूछने का सवाल ही नहीं उठता. एक आप ही हैं जो मम्मी को बचपन से जानती हैं और मेरी परेशानी उन के अतीत से जुड़ी हुई है,’’ पुन्नी ने चित्रा को सब बता दिया.

चित्रा हताशा से सिर पकड़ कर बैठ गई.

‘‘कितना समझाया था मालू को कि अतीत से जुड़ी कोई चीज अपने पास मत रखना और न ही अपने जेहन में लेकिन उस ने तो जैसे मेरी बात न सुनने की कसम खा रखी है. तू ने यह बात अपने पापा को तो नहीं बताई न?’’ पुन्नी को इनकार में सिर हिलाते देख कर चित्रा ने राहत की सांस ली.

‘‘बहुत अच्छा किया, नहीं तो बुरी तरह टूट जाता बेचारा. अच्छा सिला दे रही है मालिनी अभय के त्याग और प्यार का, एक नकारे और ठुकराए गए रिश्ते की सड़ीगली लाश को सहेज कर,’’ चित्रा के स्वर में तिरस्कार था या सहानुभूति, पुन्नी समझ नहीं सकी.

‘‘प्लीज आंटी, अब पहेलियों में बात न कर के पूरी कहानी बताओ,’’ पुन्नी ने चिरौरी करी.

‘‘कह नहीं सकती कि सुनने के बाद तुझे धक्का लगेगा या इस दुविधा की स्थिति से उबरने का सुकून मिलेगा लेकिन जब इतना समझ चुकी है कि मालिनी का अतीत है तो उस के बारे में सब जानने का तुझे पूरा हक है,’’ चित्रा ने उसांस ले कर कहा.

‘‘मैं, मालिनी, पुनीत, ओमी और अभय स्कूल से ही सहपाठी और दोस्त थे. कालेज के अंतिम वर्ष में पहुंचते ही हम सब ने भविष्य में क्या करना है, सोच लिया था. ओमी ने एअरफोर्स चुनी थी, मैं ने और मालिनी ने अध्यापन, अभय और पुनीत आईएएस प्रतियोगिता की तैयारी कर रहे थे. स्कूल की दोस्ती रोमांस में बदल गई थी. मेरा और ओमी का तो खैर ठीक था क्योंकि हमारे परिवारों में मित्रता थी, किसी को हमारी शादी पर एतराज नहीं था लेकिन पुनीत का परिवार बहुत रूढि़वादी था और उस की मां बेहद बदमिजाज व तेजतर्रार थीं, उन की मरजी के बगैर घर में पत्ता भी नहीं हिलता था.

‘‘पुनीत दब्बू किस्म का ‘माताजी का लाड़ला’ था. मगर मालिनी तो हमेशा से दबंग, अपनी मरजी की मालिक थी. मैं ने उसे समझाया कि उस के और पुनीत के प्यार का न तो कोई मेल है और न ही कोई भविष्य. पुनीत की रूढि़वादी मां उसे कदापि बहू बनाने को तैयार नहीं होंगी और वह स्वयं भी पुनीत के परिवार से तालमेल नहीं बैठा सकेगी.

‘‘‘अगर पुनीत अपनी मां का लाड़ला है तो मैं भी अपने पापा की लाड़ली हूं. वे मुझे इतना दहेज देंगे कि हिटलर माताजी मुझे झोली पसार कर ले जाएंगी और रहा सवाल परिवार से तालमेल बैठाने का, तो शादी तय होते ही बड़े भैया हम दोनों को आगे पढ़ाई के लिए अमेरिका बुला लेंगे,’ मालिनी ने दर्प से कहा था.

‘‘मेरे इस तर्क को कि आईएएस की तैयारी करने वाला पुनीत अमेरिका क्यों जाएगा, मालिनी ने यह कह कर काट दिया कि पुनीत की तो आईएएस की प्रवेश परीक्षा पास करने लायक योग्यता ही नहीं है, इसलिए अमेरिका जाने का मौका वह नहीं छोड़ेगा.

‘‘और हुआ भी वही. पुनीत दोबारा प्रवेश परीक्षा देना चाहता था लेकिन मालिनी के समझाने पर कि दूसरी बार भी सफल हो और फिर मुख्य और मौखिक परीक्षा में सफलता की क्या गारंटी है, सो बेहतर है कि अमेरिका चल कर अपने प्रिय विषय अर्थशास्त्र में महारत हासिल करे. पुनीत मालिनी की बात मान गया. अपेक्षा से अधिक दहेज और अमेरिका में बेटे की पढ़ाई के लालच में उस की मां ने भी बगैर हीलहुज्जत के शादी के लिए सहमति दे दी.

‘‘मालिनी के भाई ने भी पुनीत और मालिनी को बुलाने की कार्यवाही शुरू कर दी. मालिनी के दोनों भाई अमेरिका में थे ही, सेवानिवृत्त पापा मालिनी की पढ़ाई और शादी की वजह से यहां रुके हुए थे, उस की शादी के तुरंत बाद मम्मीपापा यहां की गृहस्थी समेट कर, मालिनी की शादी में आए बेटों के साथ ही अमेरिका चले गए. पुनीत को भी पेनसिल्वानियां विश्वविद्यालय में दाखिला मिल गया लेकिन मालिनी को अंगरेजी साहित्य में अभी कहीं भी दाखिला नहीं मिल रहा था. इस बीच, वह गर्भवती भी हो गई थी और सास उस का बहुत खयाल रखने लगी थीं. भैया ने पुनीत का वीजा और टिकट वगैरह भेज दिया था. सो, उसे तो जाना ही था. मालिनी यह सोच कर कि कुछ ही दिनों की तो बात है, भैया जल्दी ही उस के भी आने की व्यवस्था कर देंगे, मालिनी अकेले ससुराल में रहना मान गई. और कोई चारा भी नहीं था. मम्मीपापा अमेरिका जा चुके थे, मेरे पापा का ट्रांसफर हो गया था सो मैं होस्टल में रह कर पीएचडी कर रही थी. मालिनी मुझ से अकसर होस्टल में मिलने आती थी, सास की भी तारीफ करती थी. लेकिन एक रोज वह बहुत ही व्यथित अवस्था में आई.

‘‘‘कल रुटीन चैकअप के दौरान सोनोग्राफी हुई तो पता चला कि मेरे गर्भ में लड़की है, बस, तब से मेरी सास ने विकराल रूप धारण कर लिया है कि मैं गर्भपात करवाऊं. मेरी बहुत मिन्नत और ससुरजी के समझाने पर मानीं कि पुनीत से पूछ लें. मगर मेरे से पहले उन्होंने स्वयं पुनीत से बात की और माताजी के आज्ञाकारी बेटे ने तोते की तरह दोहरा दिया-जैसा मां कहती हैं, तुम वैसा ही करो. पुनीत ने कुछ रोज पहले ही फोन पर मुझ से कहा था कि अमेरिका में पैसा भले ही ज्यादा हो, मानसम्मान अपने देश में ही है, मैं तो नहीं बन सका लेकिन अपने बेटे को जरूर भारत में प्रशासनिक अधिकारी बना कर मानसम्मान दिलवाऊंगा. मैं ने चुहल की कि लड़की हुई तो? उस ने छूटते ही कहा था कि तो क्या हुआ, उसे ही आईएएस अफसर बनाएंगे और वही पुनीत अब अम्मा के सुर में सुर मिला रहा है. लेकिन मेरी भी जिद है चाहे जो भी हो मैं गर्भपात नहीं करवाऊंगी, डाक्टर और अस्पताल के स्टाफ को साफ मना कर दूंगी. यह मेरी भ्रांति थी.

‘‘‘माताजी ने कहा कि वह घर पर ही अपनी पहचान की एक मिडवाइफ को बुला कर किस्सा खत्म करवा देंगी. मैं किसी तरह जान बचा कर यहां आई हूं और अब वापस वहां नहीं जाऊंगी.’

‘‘मैं परेशान हो गई. न तो मालिनी को होस्टल में रख सकती थी न वापस जाने को कह सकती थी. तभी मुझे अभय का खयाल आया और मैं मालिनी को उस के घर ले गई.

Womens Day Special: अदृश्य मोहपाश -भाग 3

‘‘अभय आईएएस की प्रवेश परीक्षा पास कर के मुख्य परीक्षा की तैयारी कर रहा था. वर्षों पहले एक सड़क दुर्घटना में उस की मां का निधन हो गया था और वकील पिता अपाहिज हो गए थे. उस के घर में सिवा पिता और नौकर के कोई और न था.

‘उस के पिता ने कहा कि मालिनी जब तक चाहे उन के घर में सुरक्षित रह सकती है लेकिन उसे पुलिस में ससुराल वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करानी होगी. मुझे तो समय से होस्टल पहुंचना था, सो अभय अकेला ही मालिनी को ले कर थाने गया. फिर उस की अमेरिका में उस के घर वालों से बात करवाई. उन्होंने आश्वासन दिया कि वे पुनीत से बात करेंगे. उस जमाने में मोबाइल तो थे नहीं, ईमेल की सुविधा भी बहुत कम थी, सो रोज बात नहीं हो पाती थी.

‘‘खैर, अभय और उस के पिता ने मालिनी का बहुत साथ दिया, उस की देखभाल के लिए नौकरानी भी रख दी. लेकिन मालिनी के ससुराल वालों ने उस पर चोरी कर के घर से भागने के आरोप में उसे गिरफ्तार करवा दिया. अभय के पिता ने अपने संपर्क द्वारा उस की तुरंत जमानत तो करवा दी लेकिन इस से मालिनी का विदेश जाना खटाई में पड़ गया. पहले ही उसे कहीं दाखिला न मिलने के कारण वीजा नहीं मिल रहा था. और जैसे यह काफी नहीं था, पुनीत ने बदचलनी का आरोप लगा कर उसे तलाक का नोटिस भिजवा दिया. पुनीत को यूनिवर्सिटी में दाखिला मिल चुका था और पार्टटाइम जौब भी, अब उसे मालिनी के परिवार की मदद की जरूरत नहीं थी और वैसे भी, उस ने यह पूछ कर उन का मुंह बंद कर दिया था कि मालिनी किस रिश्ते से अभय के घर में रह रही है?

‘‘मालिनी के अमेरिका जाने का कोई बनाव नहीं बन रहा था. भाई वृद्ध मातापिता को वापस भेजना नहीं मान रहे थे क्योंकि वे भारत में सब समेट कर बेटों के पास गए थे, एक गर्भवती बेटी के सहारे दोबारा यहां व्यवस्थित होना आसान नहीं था.

‘‘एक बार फिर अभय मालिनी का संबल बना, सहर्ष मालिनी को अपनाकर उस की बेटी को अपना नाम दिया और भरपूर प्यार भी, मांबाप के साथ हुए हादसे के कारण वह अब तक हार्ट फ्री था. मगर अब इन चक्करों में पड़ने के कारण अभय की पढ़ाई का बहुत हरजा हुआ और उस का चयन आईएएस के बजाय आयकर विभाग में हुआ. लेकिन उसे इस का कोई मलाल नहीं है, कर्मठता से तरक्की करते हुए बीवीबेटी के साथ बेहद खुश है…’’

‘‘लेकिन, मम्मी?’’ पुन्नी ने चित्रा की बात काटी, ‘‘मम्मी तो अभी भी उसी माताजी के दब्बू बेटे की तसवीर के आगे आंसू बहा रही हैं. शर्म आती है उन्हें मम्मी कहते हुए.’’

‘‘शर्म तो मुझे भी आती है उसे अपनी सहेली कहते हुए लेकिन पुन्नी, पहले प्यार का नशा शायद कभी नहीं उतरता. इसे विडंबना ही कहेंगे कि अभय का पहला प्यार मालिनी है और मालिनी का पहला प्यार तो पुनीत अभी तक है,’’ चित्रा ने उसांस ले कर कहा.

‘‘लेकिन मेरे लिए सब से बढ़ कर मेरे पापा हैं और आज से मैं वही करूंगी जो मेरे जन्मदाता का नहीं, मुझे अनमोल जीवन देने वाले पापा का सपना है,’’ पुन्नी ने दृढ़ता से कहा.

‘‘उस का सपना तो तेरी शादी नीलाभ से करने का है.’’

‘‘जो उन्होंने मेरी आंखों में देख कर अपनी आंखों में बसाया है, पापा और मेरे बीच में एक अदृश्य मोहपाश है जिसे मैं कभी टूटने नहीं दूंगी,’’ पुन्नी ने विह्वल मगर दृढ़ स्वर में कहा. चित्रा ने भावविभोर हो कर उसे गले से लगा लिया.

फिल्मकार जुनैद मेमन क्यों चाहते हैं हर वर्ष पूरे देश में ग्यारह दिनों का संपूर्ण लाॅकडाउन

फिल्म निर्माता और एआरडीईए फाउंडेशन (कृषि ग्रामीण विकास और पर्यावरण जागरूकता फाउंडेशन) के संस्थापक के तौर पर पर्यावरण कार्यकर्ता जुनैद मेमन इन दिनों एक साथ तीन सुपरनेचुरल शैली की फीचर फिल्मों के निर्माण को लेकर चर्चा में हैं.लेकिनवह अपनी फिल्मों के निर्माण की व्यस्तता के साथ ही यह भी सुनिश्चित करना चाहते हैं कि एक पर्यावरण कार्यकर्ता के रूप मेंउनका काम समझौता नहीं है.इसी के चलते जुनैद मेमन एक दिलचस्प पहल लेकर आए हैं,ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पर्यावरण संरक्षित है.

जुनैद मेमन कहते हैं-“पिछले कुछ दशकों में हमारे पर्यावरण को बहुत नुकसान हुआ है.संसाधनों का उपयोग निर्दयता से किया गया हैऔर प्रदूष क तेजी से छोड़े गए हैं जो जल्दी अवशोषित नही हो सकते हैं.कोरोना वायरस महामारी को नुकसान रोकने,परिवर्तन करने और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाने के लिए एक रेड सिग्नल मानना चाहिए.’’ पर्यावरण सुरक्षा के मद्देनजर जुनैद मेेमन ने हरदेश की सरकारों ,खासकर भारत की हर राज्य सरकारो से आव्हान किया है कि हर वर्ष कम से कम ग्याह दिनों का संपूर्ण लाॅकडाउन किया जाना चाहिए.

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वह कहते हैं-‘‘हम इसे 11 दिनों का अर्थ ही लिंग मानते हैं,जो भारत और उनके वैश्विक गठजोड़ द्वारा पर्यावरण के साथ हमारे संबंधों को फिर से स्थापित करने और हम कैसे रहते हैं, इसे बदलने के लिए किया जा सकता है.मैं आग्रह करता हूं कि हर साल, 1 मई 2021 से, हम स्वेच्छा से सभी वायु, सड़क और समुद्री यातायात को रोककर, सभी वाणिज्यिक मछली पकड़ने  की गतिविधियों, कारखानों और उत्पादन इकाइयों को बंद करके माँ की प्रकृति को संरक्षित करने के लिए जीवन शैली को फिर से रोककर फिर शुरू करे .

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सभी निर्माण कार्य को रोकना चाहिए और 11 दिनों के लिए हमारे पर्यावरण पर  नकारात्मक प्रभाव पैदा करने वाले हर उपक्रम पर रोक लगनी चाहिए.‘कोविड 19’के पूर्व परिदृश्य में, यह असंभव प्रतीत होता था, लेकिन पिछले साल के लॉकडाउन ने साबित कर दिया है कि यह उचित है.तो क्यों न हम अपने पर्यावरण की बेहतरी के लिए ऐसा करें.”

पार्थ समथान ने मनाया अपना 30वां जन्मदिन, हिना खान समेत कई सेलेब्स हुए शामिल

टीवी इंडस्ट्री का जाना पहचाना नाम है पार्थ समथान, आज पार्थ समथान ने अपना 30 वां जन्मदिन अपने करीबी दोस्तों के साथ मिलकर मनाया है. अफने जन्मदिन पर पार्थ जमकर पार्टी करते दिखें.

11 मार्च को पार्थ का बर्थ डे होता है. इस दिन पार्थ अपने दोस्तों के साथ जमकर एंजॉय करते नजर आ रहे थें. बता दें कि पार्श समथान के जन्मदिन में कसौटी जिंदगी के कई सारे स्टार्स नजर आ रहे थें.

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वहीं पार्थ के बर्थडे  में सभी लोगों ने जमकर डांस किया, जिसमें पार्थ में ठुमके लगाते नजर आ रहे थें. बर्थ डे के दौरान हिना खान ने पार्थ समथान को किस किया और पार्थ ने भी हिना खान को किस किया.

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बता दें कि कम उम्र में ही पार्थ समथान इंडस्ट्री का जाना पहचाना चेहरा बन चुके हैं. पार्थ ने अपने कैरियर कि शुरुआत लाइफ ओके के सीरियल सावधान इंडिया से कि थी.

वहीं बर्थ डे के मौके पर पार्थ के लिए एक खास केक मंगवाया गया , जिसे पार्थ के खास दोस्तों ने मंगवाया था. पार्थ के दोस्तों ने इस दिन को पार्थ के लिए खास और स्पेशल बनाया. पार्थ इस दिन को हमेशा याद रखेंगे.

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पार्थ के बर्थ डे का वीडियो सोशल मीडिया पर छा गया है. जिसे देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पार्थ का बर्थ डे बेहद खास रहा. कहते हैं न जिस बर्थ डे में दोस्त आ जाए वह जन्मदिन न चाहते हुए भी खास बन जाता है. पार्थ के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.

अगर वर्कफ्रंट की बात करे तो पार्थ इन दिनों कई नए प्रोजेक्टस पर काम कर रहे हैं. पार्थ इस बारे में अभी तक किसी से खुलकर बात करते नजर नहीं आएं हैं. पार्थ के फैंन फ्लोविंग काफी ज्यादा है लोगों के बीच फैंस उन्हें काफी ज्यादा

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