दिल्ली नगर निगम की 5 सीटों के लिए हुए उपचुनाव में से भाजपा एक पर भी जीत ही नहीं सकी. उस का वोट शेयर 35-36 से ले कर 20-21  तक रह गया. अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पाटी ने 4 सीटें जीतीं और 1 सीट कांग्रेस ने. 2019 के चुनावों में इन जगह पर हुए संसदीय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ही बड़े जोरशोर से जीती थी.

अरविंद केजरीवाल बड़े जुझारू लगते हैं और उन के थोड़े से ही युवा समर्थक नई तरह की राजनीति कर रहे हैं जिस में न देश की विदेश नीति है, न शिक्षा नीति है, न धार्मिक नीति है, न जातीय नीति. वे सिर्फ राज्यों के प्रबंध की बात करते हैं. दिल्ली में उन के पास बहुत थोड़ी सी ताकत है क्योंकि कानून ही ऐसा है, असली बागडोर तो केंद्र सरकार के पास है.

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फिर भी लोगों को उन पर भरोसा है और तभी लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद अरविंद केजरीवाल को विधानसभा चुनाव में भरपूर सफलता मिली, जो भाजपा को अखरती है. उस से पहले हुए नगर निगमों में मिली जीत से भाजपा को उम्मीद थी कि मंजे हुए, तिलकधारी, भगवा कपड़ों वालों को लोग भरभर कर वोट देंगे. पर ऐसा नहीं हुआ और विपक्ष की राजनीति को कुछ सांसें और मिल गईं.

असल में आज का युवा राजनीति से परेशान है.  आज उस के पास भविष्य में सिर्फ अंधेरा दिख रहा है. नौकरियां हैं नहीं. पढ़ाईलिखाई चौपट है. जहां दुनियाभर में नएनए गैजट आ रहे हैं,  भारतीय युवा पुरानों से काम चला रहे हैं. जो पैसे वाले हैं वे मौज करते नजर आ रहे हैं क्योंकि उन के मातापिता पिछली कमाई के बल पर युवाओं को चुप करा पा रहे हैं. पर जिन के मातापिता के पास पैसा नहीं है, किराए के मकानों में आधीअधूरी नौकरियों में काम करते हैं, वे घुट रहे हैं.

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उन्हें धर्म के सपने दिखाए जा रहे हैं. बहुतों को उम्मीद है कि उस में बड़ी सफलता ही उन की सफलता होगी पर बहुतों को साफ दिख रहा है कि यह धर्म की केतली तो अफीम का नशा उबाल रही है. इस में उन के लिए कुछ नहीं है. जबकि, उन की तमन्नाएं बहुत ऊंची हैं. अरविंद केजरीवाल जैसों की पार्टी थोड़ी सी उम्मीद बनाती है कि वह कुछ अलग करेगी.

राजनीति वैसे तो दलदल है पर यह दलदल जरूरी है क्योंकि यही तो सुरक्षाकवच  है कि सरकारी तंत्र हम पर हावी न हो जाएं. चुनावों में हार का, चाहे बहुत छोटे चुनाव हों, बहुत फर्क पड़ता है. इस से लगता है कि अभी चौयस बाकी है. अगर राजनीतिक में चौयस न होगी तो जीवनसाथी चुनने की चौयस न होगी, मनमरजी के कपड़े पहनने की चौयस न होगी, मनचाहा चुनने की चौयस नहीं होगी,  मनमाफिक खाने की चौयस नहीं होगी आदि.

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विपक्ष की छोटीछोटी जीतें सत्तारूढ़ पार्टी को मजबूर करती हैं कि वह चार कदम पीछे हटे. ऐसे में वह अंधसमर्थकों का मुंह बंद करती है. चाहे मामला नगर निगमों के उपचुनावों का ही क्यों न हो,  अगर सत्तारूढ़ पार्टी जीत जाती तो तूफान मच जाता. एक ही देश, एक ही संस्कृति, एक ही पार्टी, एक ही नेता और एक ही राज –गुजरात – का शोर और मच जाता.

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