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मौनी रॉय के ‘पतली कमरिया’ म्यूजिक वीडियो का First Look हुआ वायरल

अभिनेत्री मौनी रॉय के फैंस के लिए एक खुशखबरी है. वह जल्द ही म्यूजिक वीडियो ‘पतली कमरिया’ में नजर आने वाली है. इस म्यूजिक के डांस कंपोज और लिरिक्स को तनिष्क बागीचा ने लिखा है. जो बेहद ही शानदार है.

मौनी रॉय ने कहा कि जब मैंने पहली बार इस म्यूजिक ट्रैक को सुनी तो बहुत ज्यादा आकर्षित हुई. मैंने बिना वक्त लगाए इस म्यूजिक वीडियो के लिए हां कर दिया. आगे मौनी ने कहा कि मुझे डांसिंग बहुत ज्यादा पसंद है और इसकी म्यूजिक ने मुझे नाचने पर मजबूर कर दिया.

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इस वीडियो की शूटिंग दुबई में हुई है और इसे अरविंद खैर ने निर्देशित किया है. इस गाने को कोरियोग्रॉफ शाजिया और पीयूष ने किया है. गायक तनिष्क बागीचा और सुख ई और पारंपरा टंडन हैं. बता दें कि गाना यूट्यूब पर जल्द ही लॉच होगा.

बता दें कि मौनी ने सीरियल क्योंकि सास भी कभी बहू थी, से सभी के दिलों में जगह बनाई है. इस सीरियल के बाद से मौनी लगातार फैंस के दिल के करीब आ चुकी है. मौनी का यह वीडियो लोगों को खूब पसंद आ रहा है. मौनी इसके अलावा भी कई सीरियल्स और फिल्मों में नजर आ चुकी हैं. मौनी का नाम भी टीवी जगत के कई अदारकाराओं के साथ जुड़ चुका है. मौनी ने अपने मेहनत से अपनी पहचान बनाई है.

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कुछ वक्त पहले मौनी से जब शादी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने नकारते हुए कहा कि अभी कोई शादी करने का मेरा इरादा नहीं है. हालांकि फैंस उम्मीद लगाएं बैठे है कि मौनी रॉय जल्द शादी के बंधन में बंध जाएंगी.

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फिलहाल मौनी रॉय दुबई की फोटो लगातार अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर  शेयर करती रहती हैं. जिसे देखकर फैंस मौनी को कमेंट करते रहते हैं. देखनते हैं मौनी रॉय का नया म्यूजिक वीडियो लोगों को कितना पसंद आता है.

क्या आप जानते हैं तांबे के बर्तन में पानी पीने के ये 4 फायदे?

अक्सर बड़े बूढ़ों से आपने सुना होगा कि तांबे के बर्तन में पानी पीना सेहत के लिए अच्छा होता है, इससे बहुत से विकार दूर होते हैं. पर क्या आपको इसके पीछे के कारण के बारे में जानकारी है? तांबे के बर्तन में पानी पीने के कई स्वास्थ लाभ हैं. इनमें इम्यून का मजबूत होना, डाइजेशन अच्छा होना जैसे फायदे हैं. इसके अलावा इसमें पानी पीने से कैंसर का खतरा भी कम होता है और शरीर ठंडा रहता है. जानकारों की माने तो तांबे के बर्तन में पानी रखने से पानी में मौजूद बहुत सी बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं. इस लिए कहा जाता है कि रात में तांबे के बर्तन में पानी भर दें और सुबह में उसे पी लें.आइए जानते हैं क्या हैं तांबे के बर्तन में पानी पीने के फायदे…

बेहतर होता है डाइजेशन

हेल्थ एक्सपर्ट्स की माने तो तांबे के बर्तन में पानी पीने से पेट के इंफेक्शन खत्म होते हैं. डाइजेशन बेहतर करने में भी इसका अहम योगदान होता है. साथ ही इसके नियमित सेवन से लिवर और किडनी का फंक्शन अच्छा होता है.

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दिल के लिए है अच्छा

आजकल बहुत से लोग दिल की बीमारियों से जुझ रहे हैं. ऐसे लोगों के लिए तांबे के बर्तन में पानी पीना किसी वरदान से कम नहीं है. जानकारों की माने तो तांबे के बर्तन में पानी पीने से दिल की बीमारियों का खतरा काफी कम हो जाता है. अमेरिका में एक शोधार्थी का मानना  है कि इसके सेवन से शरीर से कौलेस्ट्रौल की मात्रा भी कम हो जाती है.

कम होता है वजन

नेचुरल तरीके से वजन कम करने के लिए तांबे के बर्तन में पानी पिएं. इसके नियमित सेवन से कुछ ही दिनों में आपको असर दिखेगा.

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लंबे समय तक रहे जवां

अगर आपको समय से पहले त्वचा पर झुर्रियां आने लगी हैं तो आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है. आज से ही तांबे के बर्तन में पानी पीना शुरू कर दें. इसमें मौजूद एंटीऔक्सिडेंट्स आपकी त्वचा के लिए काफी फायदेमंद होते हैं जो आपके स्किन को जवां रखने में मदद करते हैं. इसके ये अलावा झुर्रियों के लिए जिम्मेदार फ्री रेडिकल्स को भी नष्ट कर देता है.

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तपस्या: भाग 3- रश्मि को क्या अधिकार था

पत्र पढ़ कर समीर के माता और पिता दोनों ही हतप्रभ रह गए. फिर समीर के पिता ने मंजरी की तरफ देख कर कहा, ‘‘बेटी, तुम जरा बाहर जा कर देखो, कोई अंदर न आने पाए.’’

मंजरी बाहर चली गई. फिर कुछ देर उन लोगों में बातचीत हुई. इस के बाद रश्मि के पिता ने मंजरी को अंदर बुला कर कहा, ‘‘बेटी, हम सब की इज्जत अब तेरे हाथ में है. तू इस शादी के लिए हां कर दे तो हम लोग अभी भी बात संभाल लेंगे.’’

‘‘आप जो भी आज्ञा देंगे मैं करने को तैयार हूं,’’ मंजरी ने धीरे से कहा.

‘‘शाबाश, बेटी, तुझ से यही उम्मीद थी.’’

मंजरी ने सब के पैर छुए. सब ने राहत की सांस ले कर उसे आशीर्वाद दिया और आगे की तैयारी में लग गए.

शादी धूमधाम से हुई. किसी को कुछ पता नहीं चला. खुद समीर को भी इस हेरफेर का आभास न हुआ.

मथुरा में शानदार स्वागत आयोजन हुआ. जब सब रिश्तेदार वापस चले गए तो रामसिंहजी ने अपने पुत्र को बुला कर सब बात बता दी. सुन कर समीर ने अपने को बेहद अपमानित महसूस किया. उस के मन को गहरी ठेस लगी थी और उसे सब से अधिक अफसोस इस बात का था कि उस से संबंधित इतनी बड़ी बात हो गई और मांबाप ने कोई कदम उठाने से पहले उस से सलाह तक नहीं ली. मांबाप पर जैसे दुख का पहाड़ गिर पड़ा.

बेचारी मंजरी कमरे में ही दुबकी रहती. उसे समझ में नहीं आता था कि अब वह क्या करे. रश्मि की नादानी ने सब का जीवन अस्तव्यस्त कर दिया था. वह सोचती, रश्मि को समीर सरीखे भले लड़के के जीवन में इस तरह कड़वाहट भरने का क्या अधिकार था. मंजरी का मन सब के लिए करुणा से भर गया.

एक दिन मंजरी के सासससुर ने उसे बुला कर कहा, ‘‘मंजरी, हमारे इकलौते बेटे का जीवन सुखी करना अब तुम्हारे हाथ में है. समीर बहुत अच्छा लड़का है लेकिन उस के मन पर जो गहरा घाव हुआ है उसे भरने में समय लगेगा. तुम उस के मन का दुख समझने का प्रयास करो. हमें विश्वास है कि तुम्हारी सूझबूझ से उस का घाव जल्दी ही भर जाएगा. लेकिन तब तक तुम्हें सब्र से काम लेना होगा. किसी प्रकार की जल्दबाजी घातक सिद्ध हो सकती है.’’

‘‘आप निश्चिंत रहिए. मुझे उम्मीद है कि आप के आशीर्वाद और मार्गदर्शन से मैं सब ठीक कर लूंगी,’’ मंजरी बोली.

समीर को फिर से ड्यूटी पर जाना था. समीर के मातापिता ने सोचा, कहीं समीर सरगुजा जाते समय मंजरी को साथ ले जाने से मना न कर दे. इसलिए समीर के पिता ने लंबी छुट्टी ले ली और वह भी सरगुजा जाने के लिए सपत्नीक नवदंपती के साथ हो लिए.

जिन दिनों समीर के मातापिता सरगुजा में थे, उन दिनों मंजरी सब से पहले उठ कर नहाधो कर नाश्ते की तैयारी करती. खाना समीर की मां बनाती थीं. वह इस काम में भी अपनी सास का हाथ बंटाती. सासससुर के आग्रह से उसे सब के साथ ही नाश्ता और भोजन करना पड़ता.

एक दिन उस की सास अपने पति से बोलीं, ‘‘कुछ भी हो, लड़की सुंदर होने के साथसाथ गुणी भी है. मेरी तो यही प्रार्थना है कि जल्दी ही उसे पत्नी के योग्य सम्मान मिलने लगे.’’

‘‘मुझे तो लगता है, तुम्हारी इच्छा जल्दी ही पूरी होगी. बदलती हवा का रुख मैं महसूस कर रहा हूं,’’ मंजरी के ससुर बोले. और यही आशा ले कर उस के सासससुर वापस मथुरा चले गए.

एक रात खाने पर समीर ने मंजरी से कहा, ‘‘मैं जानता हूं, तुम्हें अकारण ही इस झंझट में फंसाया गया. मुझे इस बात का बहुत अफसोस है.’’

‘‘मैं जानती हूं, आप कैसी कठिन मानसिक यंत्रणा से गुजर रहे हैं. आप मेरी चिंता न करें. लेकिन कृपया मुझे अपना हितैषी समझें.’’

शादी के बाद दोनों में यह पहली बातचीत थी. फिर दोनों अपनेअपने कमरे में चले गए.

दूसरे दिन नाश्ते के समय मंजरी को लगा कि समीर उस से नजर चुरा कर उस की तरफ देख रहा है. वह मन ही मन खुश हुई. उसी शाम को कमलनाथ और आनंद सपत्नीक मिलने आए.

‘‘मंजरीजी, दिन में आप अकेली रहती हैं, कभीकभी हमारे यहां आ जाया कीजिए न,’’ कमलनाथजी की पत्नी निशाजी बोलीं.

‘‘जरूर आऊंगी, लेकिन कुछ दिन बाद. अभी तो मैं दिन भर उलझी रहती हूं.’’

‘‘किस में?’’ निशाजी ने पूछा. समीर ने भी आश्चर्य से उस की तरफ देखा.

‘‘यों ही, यह नमक, तेल, मिर्च का मामला अभी जम नहीं पाया. कभी तेल ज्यादा, कभी नमक ज्यादा तो कभी मिर्च ज्यादा,’’ मंजरी ने कहा.

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सब लोग सुन कर हंस पड़े.

‘‘शुरूशुरू में खाना बनाते समय ऐसा ही होता है,’’ फिर आनंदजी की पत्नी रामेश्वरी ने आपबीती सुनाई.

मंजरी ने मेज पर नमकीन, मिठाई और चाय रखी. कमलनाथ कह रहे थे, ‘‘तो  समीर कल का पक्का है न? भाभीजी, कल सवेरे 7 बजे पिकनिक पर चलना है आप दोनों को. 30-40 मील की दूरी पर एक बहुत सुंदर जगह है. वहां रेस्ट हाउस भी है. सब इंतजाम हो गया है. मैं आप दोनों को लेने 7 बजे आऊंगा.’’

समीर और मंजरी ने एकदूसरे की तरफ देखा. फिर उसी क्षण समीर बोला, ‘‘ठीक है, हम लोग चलेंगे.’’

थोड़ी देर बाद जब सब चले गए तो समीर ने मंजरी से कहा, ‘‘तुम इतना अच्छा खाना बनाती हो, फिर भी सब  के सामने झूठ क्यों बोलीं?’’

‘‘आप को मेरा बनाया खाना अच्छा लगता है?’’

‘‘बहुत,’’ समीर ने कहा.

दोनों की नजरें एक क्षण के लिए एक हो गईं. फिर दोनों अपनेअपने कमरे में चले गए.

लेकिन थोड़ी ही देर बाद तेज आंधी के साथ मूसलाधार बारिश होने लगी. बिजली चली गई. समीर को खयाल आया कि मंजरी अकेली है, कहीं डर न जाए.

वह टार्च ले कर मंजरी के कमरे के सामने गया और उसे पुकारने लगा. मंजरी ने दरवाजा खोला और समीर को देख राहत की सांस ले बोली, ‘‘देखिए न, ये खिड़कियां बंद नहीं हो रही हैं. बरसात का पानी अंदर आ रहा है.’’

समीर ने टार्च उस के हाथ में दे दी और खिड़कियां बंद करने लगा. खिड़कियों के दरवाजे बाहर खुलते थे. तेज हवा के कारण वह बड़ी कठिनाई से उन्हें बंद कर सका.

‘‘तुम्हारा बिस्तर तो गीला है. सोओगी कैसे?’’

‘‘मैं गद्दा उलटा कर के सो जाऊंगी.’’

‘‘तुम्हें डर तो नहीं लगेगा?’’

मंजरी कुछ नहीं बोली. समीर ने अत्यंत मृदुल आवाज में कहा, ‘‘मंजरी.’’ और उस ने उस की तरफ बढ़ने को कदम उठाए. फिर अचानक वह मुड़ा और अपने कमरे में चला गया.

दूसरे दिन सवेरे 7 बजे दोनों नहाधो कर पिकनिक के लिए तैयार थे. इतने में कमलनाथ भी जीप ले कर आ पहुंचे. समीर उन के पास बैठा और मंजरी किनारे पर. मौसम बड़ा सुहावना था. समीर और कमलनाथ में बातें चल रही थीं. मंजरी प्रकृति का सौंदर्य देखने में मगन थी.

अब रास्ता खराब आ गया था और जीप में बैठेबैठे धक्के लगने लगे थे.

‘‘तुम इतने किनारे पर क्यों बैठी हो? इधर सरक जाओ,’’ समीर ने कहा.

लज्जा से मंजरी का चेहरा आरक्त हो उठा. उसे सरकने में संकोच करते देख समीर ने उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया और धीरे से उसे अपने पास खींच लिया. मंजरी ने भी अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश नहीं की.

शाम 7 बजे घर लौटे तो दोनों खुश थे. पिकनिक में खूब मजा आया था. दोनों ने आ कर स्नान किया और गरमगरम चाय पीने हाल में बैठ गए. समीर बातचीत करने के लिए उत्सुक लग रहा था. ‘‘रात के खाने के लिए क्या बनाऊं?’’ मंजरी ने पूछा तो उस ने कहा, ‘‘बैठो भी, जल्दी क्या है? आमलेटब्रेड खा लेंगे.’’ फिर उस ने अचानक गंभीर हो कर कहा, ‘‘मंजरी, मुझे तुम से कुछ पूछना है.’’

‘‘पूछिए.’’

‘‘मंजरी, इस शादी से तुम सचमुच खुश हो न?’’

‘‘मैं तो बहुत खुश हूं. खुश क्यों न होऊं, जब मेरे हाथ आप जैसा रत्न लगा है.’’

खुशी से समीर का चेहरा खिल उठा, ‘‘और मेरे हाथ भी तो तुम जैसी लक्ष्मी लगी है.’’

दोनों ही आनंदविभोर हो कर एकदूसरे को देखने लगे. शंका के

सब बादल छंट चुके थे. तनाव खत्म हो गया था.

इतने में कालबेल बजी. समीर उठ कर बाहर गया.

मंजरी सोच रही थी कि अगले दिन सवेरे वह सासससुर को फोन कर के यह खुशखबरी देगी.

‘‘मंजरी…मंजरी,’’ कहते हुए खुशी से उछलता समीर अंदर आया.

‘‘इधर आओ, मंजरी, देखो, तुम्हारा एम.ए. का नतीजा आया है.’’

दौड़ कर मंजरी उस के पास गई. लेकिन समीर ने आसानी से उसे तार नहीं दिया. मंजरी को छीनाझपटी करनी पड़ी. तार खोल कर पढ़ा :

‘‘हार्दिक बधाई. योग्यता सूची में द्वितीय. चाचा.’’

खुशी से मंजरी का चेहरा चमक उठा. तिरछी नजर से उस ने पास खड़े समीर की तरफ देखा.

समीर ने आवेश में उसे अपनी ओर खींच लिया और मृदुल आवाज में कहा, ‘‘मेरी ओर से भी हार्दिक बधाई. तुम जैसी होशियार, गुणी और सुंदर पत्नी पा कर मैं भी आज योग्यता सूची में आ गया हूं, मंजरी.’’

इस सुखद वाक्य को सुनते ही मंजरी ने अपना माथा समर्पित भाव से समीर के कंधे पर रख दिया. उस की तपस्या पूरी हो गई थी.

तपस्या: भाग 2- रश्मि को क्या अधिकार था

दोनों हंसने लगीं.

‘‘अरे सीमा, एक बात तो तुझे बताना भूल ही गई. रसोई में चाचीजी की मदद करतेकरते मैं भी रईसी खाना, नएनए व्यंजन बनाना सीख गई हूं. अगर किसी आई.ए.एस. अधिकारी से ब्याह करने की तेरी इच्छा पूरी हो जाए तो अपने पति के साथ मेरे घर अवश्य आना, खूब बढि़या खाना खिलाऊंगी.’’

एकदूसरे से हंसीमजाक करते उन्हें आधा घंटा बीत गया. जब वे तपती धूप से परेशान होने लगीं तो जाने के लिए उठ खड़ी हुईं. मंजरी ने एक कागज पर चाचाजी का पता और अपना रोल नंबर लिख कर सीमा को दे दिया.

‘‘सीमा, परिणाम निकलते ही मुझे खबर करना.’’

‘‘जरूर…जरूर. अब कब मुलाकात होगी?’’ कह कर सीमा मंजरी के गले लगी. फिर दोनों भारी मन से एकदूसरे से विदा हुईं.

रश्मि और मंजरी के परचे अच्छे होने पर चाचाचाची खूब खुश थे.

‘‘चाचीजी, अब मैं घर का काम संभालूंगी, आप निश्चिंत हो कर बाहर का काम करिए,’’ मंजरी ने कहा.

शादी का दिन आया, लेकिन घर में कोई होहल्ला नहीं था. दोनों तरफ के मेहमानों के लिए एक अच्छे होटल में कमरे ले लिए गए थे. शादी और खानेपीने का प्रबंध भी होटल में ही था. मेहमान भी सिर्फ एक दिन के लिए आने वाले थे.

रश्मि के मातापिता मेहमानों की अगवानी के लिए सवेरे से ही होटल में थे. बराती सुबह 10 बजे पहुंच गए थे. सब का उचित स्वागतसम्मान किया गया. दोपहर 1 बजे खाना हुआ. खाने के बाद रश्मि के मातापिता थोड़ी देर के लिए आराम करने अपने कमरे में आ गए. 4 बजे फिर तैयार हो कर रिश्तेदारों और बरातियों के पास चले गए. जातेजाते रश्मि से बोल गए कि वह जल्दी मेकअप कर के वक्त पर तैयार हो जाए.

मांबाप के जाते ही रश्मि ने मंजरी को अपने पास बुलाया और बोली, ‘‘मंजरी, मैं मेकअप के लिए जा रही हूं. लेकिन यदि मुझे देर हो गई तो पिताजी को अलग से बुला कर ठीक 6 बजे यह लिफाफा दे देना, भूलना नहीं.’’

‘‘नहीं भूलूंगी. लेकिन तुम 6 बजे तक आने की कोशिश करना.’’

रश्मि हाथ में छोटा सा सूटकेस ले कर चली गई, होटल के ग्राउंड फ्लोर पर ब्यूटी पार्लर में जाने की बात कह कर.

जब शाम को 6 बज गए और रश्मि नहीं आई तो मंजरी ने चाचाजी को कमरे में बुला कर वह लिफाफा उन के हाथ में दे दिया.

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‘‘चाचाजी, यह रश्मि ने दिया है.’’

‘‘अब बिटिया की कौन सी मांग है?’’ कहतेकहते उन्होंने लिफाफा खोला और अंदर का कागज निकाल कर जैसेजैसे पढ़ने लगे, उन का चेहरा क्रोध से लाल हो गया.

‘‘मूर्ख, नादान लड़की,’’ कहतकहते वह दोनों हाथों में सिर पकड़ कर बैठ गए.

‘‘चाचाजी, क्या हुआ?’’

‘‘अब मैं क्या करूं, मंजरी?’’ कह कर उन्होंने वह कागज मंजरी को दे दिया और आंखों में आए आंसू पोंछ कर उन्होंने मंजरी से कहा, ‘‘जा बेटी, अपनी चाची को जल्दी से बुला ला. मैं रामसिंहजी को फोन कर के बुलाता हूं.’’

चिट्ठी पढ़ कर मंजरी सकपका गई और झट से चाची को बुला लाई. रश्मि के पिता ने वह चिट्ठी अपनी पत्नी के हाथ में पकड़ा दी. पढ़ते ही रश्मि की मां रो पड़ीं. चिट्ठी में लिखा था :

‘‘पिताजी, मैं जानती हूं, मेरी यह चिट्ठी पढ़ कर आप और मां बहुत दुखी होंगे. लेकिन मैं माफी चाहती हूं.

‘‘मैं मानती हूं कि समीर लाखों में एक है. मुझे भी वह अच्छा लगता है, लेकिन मैं रोहित से प्यार करती हूं और जब आप यह पत्र पढ़ रहे होंगे तब तक आर्यसमाज मंदिर में मेरी उस से शादी हो चुकी होगी. आप को पहले बताती तो आप राजी न होते.

‘‘मैं यह भी जानती हूं कि शादी के दिन मेरे इस तरह एकाएक गायब हो जाने से आप की स्थिति बड़ी विचित्र हो जाएगी. लेकिन मैं दिल से मजबूर हूं. हां, मेरा एक सुझाव है, मंजरी का कद मेरे जैसा ही है और रंगरूप में तो वह मुझ से भी बेहतर है. आप समीर से उस की शादी कर दीजिए. किसी को पता तक नहीं लगेगा. मैं फिर आप से क्षमा चाहती हूं. रश्मि.’’

इतने में रामसिंहजी भी अपनी पत्नी के साथ वहां आ गए. उन्हें देख कर रश्मि के पिता ने बड़े दुखी स्वर में कहा, ‘‘मेरे दोस्त, क्या बताऊं, इस रश्मि ने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा,’’ और यह कह कर उन्होंने वह चिट्ठी उन्हें पकड़ा दी.

Crime Story: ‘लंदन इवनिंग’ की ‘देसी मैम’

सौजन्या- सत्यकथा

यह सच है कि लौकडाउन में जब लोगों को रोजीरोटी के लाले पड़ रहे थे, तब कुछ लोग मजबूर लड़कियों का सहारा ले कर स्पा के नाम पर सैक्स के धंधे में मोटी कमाई कर रहे थे. भोपाल का ‘लंदन इवनिंग फैमिली सैलून ऐंड स्पा’ भी ऐसा ही था. लेकिन…

देह व्यापार ही इकलौता ऐसा धंधा है, जिस ने लौकडाउन की बंदिश हटते ही काफी कम समय में अपनी पुरानी ऊंचाई को छूने में सफलता हासिल की है. गलियों में चलने वाले छोटेछोटे अंधेरे कमरों वाले चकलाघरों से ले कर सैक्स के हाईप्रोफाइल मसाज सैंटरों पर ग्राहकों की भीड़ उमड़ पड़ी.

भोपाल क्राइम ब्रांच के एएसपी गोपाल धाकड़ को तेजी से बढ़ते इस कारोबार के बारे में शहर के अलगअलग इलाकों की सूचनाएं मिल रही थीं.

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सब से अधिक शिकायतें कोलार स्थित एस.के.प्लाजा बिल्डिंग में संचालित ‘लंदन इवनिंग फैमिली सैलून ऐंड स्पा’ के बारे में थीं, जहां मसाज के नाम पर देह का कारोबार कराए जाने की खबर थी. एएसपी गोपाल धाकड़ ने इस दुकान पर नजर रखने के लिए अपने कुछ खास मुखबिरों को लगा दिया था.

कुछ ही दिन में इन मुखबिरों ने उन्हें जानकारी दी कि इस स्पा के बारे में मिली शिकायत सही है. यहां बड़े पैमाने पर ग्राहकों को मसाज के नाम पर सैक्स सर्विस दी जा रही है. एएसपी धाकड़ ने टीआई क्राइम ब्रांच थाना अजय मिश्रा की एक टीम को इस के खुलासे की जिम्मेदारी सौंप दी.

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पुलिस को पहले ही जानकारी मिल चुकी थी कि इस स्पा में या तो केवल पुराने और भरोसेमंद ग्राहकों को सैक्स सर्विस दी जाती है. अथवा नए ग्राहक को किसी पुराने ग्राहक के रेफरेंस पर लड़की उपलब्ध कराई जाती है. इसलिए एएसपी धाकड़ ने क्राइम ब्रांच के सब से स्मार्ट माने जाने वाले आरक्षक को पूरी ट्रैनिंग के साथ यहां भेजा.

2 दिसंबर को अपराह्न लगभग 4 बजे जब पुलिस टीम ने एस.के. प्लाजा के पास सुरक्षित दूरी पर पोजीशन ले ली, तब नकली ग्राहक बन कर जाने वाले आरक्षक ने स्पा में प्रवेश किया. काउंटर पर बैठे मैनेजर अनिल वर्मा ने वेलकम करते हुए पूछा कि उस की क्या सेवा कर सकता है.

‘‘यार, मसाज सैंटर में आदमी मछलियां पकड़ने तो आया नहीं होगा. जाहिर सी बात है कि आप के यहां मसाज करवाने आया हूं. सुना है आप की लड़कियां कमाल का मसाज देती हैं.’’ नकली ग्राहक ने पूरे विश्वास के साथ वहां बैठे युवक से कहा.

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‘‘जी हां, ठीक सुना आप ने. हमारा सैंटर अपनी सर्विस क्वालिटी के लिए पूरे भोपाल में फेमस है. और आसपास के जिलों में भी.’’ मैनेजर ने बात काटते हुए कहा, ‘‘हमारे यहां सागर, विदिशा के लोग भी आते हैं.’’

‘‘बिलकुल सही. मैं सागर से हूं. मेरे एक दोस्त ने आप के स्पा का पता बताया था. वह कई बार आप के यहां आ चुका है. आई मीन जब भी भोपाल आता है तो वह आप की सर्विस लिए बिना नहीं जाता. और मजेदार बात तो यह है कि बंदे की अभीअभी शादी हुई है, वो भी लव मैरिज. मुझे लगा कि कुछ तो खास होगा आप के यहां जो बंदा नई बीवी छोड़ कर यहां  आता है.’’

शादी और नई बीवी वाली बात नकली ग्राहक ने इसलिए कही थी ताकि स्पा मैनेजर समझ जाए कि वो क्या चाहता है. नकली ग्राहक बन कर गए पुलिसकर्मी का यह तीर निशाने पर लगा.

मैनेजर अनिल वर्मा सब भूल गया और उसे अपने किसी पुराने ग्राहक का खास आदमी समझ कर सीधे सैक्स सर्विस की बात करते हुए बोला, ‘‘सर देखिए, इस समय हमारे पास 3 लड़कियां हैं. नेपाली, भोपाली और कानपुरी. इन में से किस की सर्विस लेना पसंद करेंगे आप?

‘‘नेपाली की सर्विस तो कौमन है यार, हर शहर में मिल जाती हैं. नेपाली लोग शोर ज्यादा करते हैं, जो मुझे पसंद नहीं. भोपाली गर्ल की सर्विस तो मैं एमपी नगर के एक स्पा में कई बार टेस्ट कर चुका हूं. ये कानपुरी नाम कुछ नया लगता है.  इस की कुछ क्वालिटी है खास. क्या मैं फोटो देख सकता हूं?’’ नकली ग्राहक ने पूछा.

‘‘फोटो क्या सर, सामने देखिए न,’’ कहते हुए मैनेजर अनिल वर्मा ने काउंटर के नीचे लगा बटन दबा कर घंटी बजाई तो कुछ मिनट में अंदर से लगभग 21-22 साल की एक निहायत खूबसूरत और सैक्सी लुक वाली युवती बाहर आ कर खड़ी हो गई.

‘‘ये लीजिए सर, ये हैं मिस रानी. कानपुर वाली और हमारे यहां आने वाले कस्टमर्स की पहली पसंद भी. आप लकी हैं जो फ्री मिल गई. वरना इन के चाहने वाले खाली ही नहीं छोड़ते.’’

‘‘लगता है इसीलिए मेरा दोस्त आप की इतनी तारीफ करता है,’’ नकली ग्राहक ने मैनेजर का भरोसा जीतने के लिए एक और पासा फेंका.

‘‘सर, पेमेंट आप को पहले करना होगा.’’

‘‘ओके, कितना?’’

‘सर, एक हजार रुपया हमारे स्पा की एंट्री फीस है. 2 हजार इन की बेस प्राइस. कुल 3 हजार.’’

‘‘बेस प्राइस मतलब?’’

‘‘मतलब, सर जो होता है, बस उतना ही. इस के अलावा आप का कुछ स्पैशल शौक है तो रानी उस का चार्ज आप को अलग से बता देंगी.’’

‘‘बहुत स्मार्ट हो दोस्त तुम. ये लो 3 हजार. बाकी हम रानी से डील कर लेंगे, ठीक है न  रानी,’’ नकली ग्राहक ने रानी की तरफ देख कर कहा.

‘‘श्योर सर, आप को सर्विस दे कर मुझे खुशी होगी.’’ रानी ने भी मुसकराते हुए जवाब दिया और उस का हाथ पकड़ कर अंदर बनी केबिन में ले गई, जहां मसाज टेबल नहीं डबल बैड पड़ा था.

‘‘इतना बड़ा बिस्तर, लगता है गु्रप सर्विस भी मिलती है यहां पर.’’

‘‘सब कुछ मिलता है यहां, आप आदेश तो करें. अभी 2 लड़कियां अपने कस्टमर के साथ व्यस्त हैं, फ्री होने वाली हैं. फिर कहेंगे तो आप को भी हम तीनों की गु्रप सर्विस मिल जाएगी.’’

‘‘अरे नहीं आज का दिन तो केवल रानी के नाम.’’ नकली ग्राहक बने पुलिसकर्मी ने रानी को मक्खन लगाया.

2 लड़कियां अपने ग्राहकों को इस समय सर्विस दे रही हैं, यह जान कर उस ने तुरंत कुछ दूरी पर खड़ी अपनी टीम को सिग्नल दे दिया.

कुछ ही देर में क्राइम ब्रांच के टीआई अजय मिश्रा अपनी टीम ले कर लंदन इवनिंग फैमिली सैलून ऐंड स्पा में दाखिल हो गए. आननफानन में बंद कमरों से 2 ग्राहकों को अलगअलग 2 युवतियों के संग आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ लिया गया. इस के अलावा बिस्तर पर पडे़ यूज और अनयूज कंडोम आदि भी जब्त कर लिए गए.

दबिश के दौरान पुलिस ने स्पा से 21 वर्षीय नेपाली लड़की कोयल, भोपाल निवासी 20 वर्षीय शबनम और कानपुर की 21 साल की रानी के अलावा बैरागढ़ निवासी हितेश लीलानी और नरेंद्र सिरवानी को गिरफ्तार कर लिया जो शबनम और कोयल के साथ यौनाचार में लिप्त थे.

पुलिस ने तलाशी के दौरान स्पा से भारी मात्रा में बीयर की खाली कैन और यूज किए हुए कंडोम बरामद कर मैनेजर अनिल वर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया. सभी आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. इस के बाद देह धंधे में आई तीनों युवतियों की कहानी इस प्रकार सामने आई.

नेपाली युवती कोयल पति की मौत के बाद काम की तलाश में भोपाल के माता मंदिर इलाके में रहने वाले अपने एक परिचित के घर आई थी. स्पा में मैनेजर का काम करने वाला अनिल वर्मा का उस इलाके में आनाजाना था. जब उस की नजर कोयल पर पड़ी और जानकारी मिली कि वह काम की तलाश में है तो अनिल ने कोयल को अपने स्पा में काम करने का औफर दिया.

कोयल तैयार हो गई तो पहले ही दिन मैनेजर ने उसे बता दिया कि हम केवल मसाज का काम करते हैं, लकिन अगर कोई ग्राहक सैक्स की मांग करे तो तुम समझ लेना. इस में काफी पैसा मिलेगा जिस में से बड़ा हिस्सा तुम्हारा होगा.

चूंकि कोयल को काम की जरूरत थी और लौकडाउन के कारण कहीं दूसरी जगह काम नहीं मिल रहा था, इसलिए वह स्पा में मसाज और सैक्स सर्विस गर्ल के रूप में काम करने लगी थी.

भोपाल की शबनम को उस के पति ने छोड़ दिया था. शबनम केवल 20 साल की थी और दूसरे एक युवक के साथ रहती थी. जानकारी के अनुसार शबनम के इस काम की जानकारी उस के साथ रहने वाले युवक को भी थी, लेकिन वह इस से होने वाली मोटी कमाई को देख कर शबनम को खुद भी ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों को सर्विस देने की सलाह देता था.

कानपुर की रानी कई सालों से कालगर्ल के तौर पर काम कर रही थी. उसे स्पा के मालिक ने स्पैशली अपने यहां ग्राहकों को सर्विस देने के लिए बुलाया था. रानी को इस व्यापार की एक्सपर्ट माना जाता था, इसलिए उस की फीस भी ज्यादा थी.

इस संबंध में एएसपी गोपाल धाकड़ ने बताया कि इस स्पा के बारे में काफी दिनों से शिकायत मिल रही थी, जिस के लिए हम ने नकली ग्राहक भेज कर यहां काररवाई कर 3 युवतियों और 2 ग्राहकों के अलावा मैनेजर को भी गिरफ्तार किया.

दूसरा अध्याय : कविता पैसे का चेक देखकर चौक क्यों गई

2 लाख रुपए का चैक देख कर कविता की आंखें फटी की फटी रह गईं. उसे लगा कि वह हर्षातिरेक से उछल पड़ेगी. आज उस की नौकरी का पहला दिन था और यह राशि उसे जौइनिंग अमाउंट के तौर पर दी गई थी. कविता किसी कवि की कल्पना की तरह खूबसूरत तो थी ही, प्रतिभाशाली भी थी, ऊपर से मेहनती. ऐसा संयोग किसी संतान में विरले ही देखने को मिलता है. श्रीहीन मातापिता के पास अपनी संतान को देने के लिए संस्कारों के सिवा और होता ही क्या है? कविता को देख कर सब उसे गुदड़ी का लाल कहते हैं. शुरू से ही कविता को पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति मिलती थी. आई आई टी और आई आई एम जैसी शिक्षा के मुश्किल पड़ावों को भी उस ने अपने बलबूते पर पार किया था. पढ़ाई पूरी होने से पहले ही कविता को 1 लाख रुपए मासिक आय पर नौकरी मिल गई. सुबह मां ने कविता को हंसीखुशी दफ्तर के लिए विदा किया था. दोपहर को मांपापा पड़ोसियों के जत्थे के साथ मिल कर यात्रा के लिए निकल पड़े थे. कविता मन ही मन योजनाएं बनाने लगी कि अगले हफ्ते मांपापा लौट आएंगे. इस सप्ताहांत में वह मांपापा की जरूरत की सारी चीजें खरीद कर घर भर देगी. जब वे लौट कर आएंगे तो उन से साफसाफ कह देगी कि अब वे आराम करेंगे और वह काम करेगी.

पलभर में ही जैसे कविता की सारी योजनाओं पर पानी फिर गया, जब उसे पता चला कि जिस बस में उस के मांपापा यात्रा कर रहे थे वह दुर्घटनाग्रस्त हो गई है. कविता को बारबार यह लग रहा था कि उस के मांपापा अवश्य सहीसलामत होंगे. पड़ोसियों के साथ कविता कैसे उस अस्पताल तक पहुंची, जहां उन घायलों को ले जाया गया था, उसे कुछ याद नहीं रहा. वहां उस ने मूर्छित पड़ी मां को पहचान लिया, लेकिन पापा का तो निर्जीव शरीर ही उसे प्राप्त हुआ था. पिता का शोक मनाने का भी वक्त नहीं था कविता के पास. मां के घायल शरीर को लोगों की मदद से किसी तरह उस ने दिल्ली के बड़े अस्पताल में और पिता के पार्थिव शरीर को वहीं के शवगृह में पहुंचाया. घर पहुंचते ही जैसे उस के सब्र का बांध टूट पड़ा और वह फूटफूट कर रोने लगी.

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थोड़ी देर बाद मां का खयाल आते ही शरीर की समस्त ऊर्जा को बटोर कर वह मां को देखने अस्पताल पहुंची. मां को होश आ गया था. उन की हालत में काफी सुधार था. पर यह तो कविता को बाद में पता चला कि यह दीपक की लौ के बुझने से पहले का संकेत था. जातेजाते मां ने उस के जीवन से जुड़ी एक सचाई से उसे अवगत करा कर एक और झटका दे दिया. मां ने बताया था कि वह उन की नहीं बल्कि उमाजी की कोखजाई है. इस डर से कि उमाजी का वैभव देख कर, कहीं वह उन्हें छोड़ कर उमाजी के पास न चली जाए, इसलिए उन्होंने अब तक यह बात उस से छिपाई थी. मां ने किसी डायरी का जिक्र किया था, जिस में उन्होंने सारी बातें लिखी थीं.

कविता का सिर घूमने लगा. मस्तिष्क में विचारों के तूफान का बवंडर सा चल रहा था. पड़ोसी उसे सहारा दे कर ले गए थे. जिंदा लाश की तरह उठ कर चल दी थी वह उन के पीछेपीछे. मातापिता का दाहसंस्कार कर के कविता ने भारी कदमों से घर में प्रवेश किया. उस के पड़ोसी उसे घर तक छोड़ने आए थे. फिर धीरेधीरे सब अपनेअपने घरों को लौटने लगे. उमाजी भी वहीं थीं. सब के घर लौटने के बाद वे धीरेधीरे चल कर कविता के बगल में आ कर बैठ गईं. कविता उमाजी से परिचित थी. पर आज उन का नया परिचय जान कर, उसे उन से बात करने की इच्छा नहीं हुई. कविता को चुप देख कर उमाजी ने कहा, ‘‘बेटी, मां ने मेरे बारे में कुछ बताया?’’

अचानक कविता चीख उठी, ‘‘मुझे बेटी कह कर मुझ पर अपना हक मत जताइए. मेरी सिर्फ एक ही मां थी, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं. अब आप कृपा कर के मुझे अकेला छोड़ दीजिए,’’ इतना कह कर वह उठ खड़ी हुई. उमाजी भी उठ कर अपनी आंखों के कोरों को पोंछती हुई दरवाजे की ओर बढ़ गईं. कविता दरवाजा बंद कर के पलटी, शरीर निष्प्राण सा हो गया था. सोफे पर निढाल हो कर गिर पड़ी. वहीं पड़ेपड़े वह विलाप करने लगी, ‘मांपापा, आप ने कैसे सोच लिया कि वैभव के लोभ में आप की बेटी आप को छोड़ कर उमा आंटी के पास चली जाएगी. आप मुझे मंझधार में छोड़ कर चले गए. अब आप की बेटी आप के बगैर कैसे रहेगी? मुझे भी साथ क्यों नहीं ले लिया? अब किस के लिए मैं कमाऊं…’

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सुबह होते ही सब से पहले उस ने मां की डायरी ढूंढ़ निकाली  उस डायरी में कविता के जन्म की हकीकत से ले कर उस की नौकरी लगने तक की हर बात का ब्योरा था. मां ने लिखा था-

‘बेटी कविता, तुम ने मुझे मां का दरजा दे कर संसार की सब से ऊंची पदवी पर बिठा दिया. जब तुम समझने लायक हो जाओगी तो हमारा तुम्हें तुम्हारे जीवन से जुड़ी सचाई के बारे में बताना जरूरी है, पर हम इतना साहस जुटा पाएंगे या नहीं, पता नहीं. तब मुझे खयाल आया कि क्यों न मैं डायरी लिखूं, जिस में विस्तार से रोजमर्रा की सारी जानकारी हो. इस तरह मैं ने लिखना शुरू किया. ‘उमा और मैं कालेज में साथ पढ़ते थे. उमा के पिता बचपन में ही गुजर गए थे. उमा का ब्याह एक संपन्न घराने में हुआ था. बेहद खूबसूरत थी उमा. वर पक्ष के लोगों ने उसे कहीं देखा और खुद चल कर उस की मां से उस का हाथ मांगा था. उमा के ससुर गांव के बड़े जमींदार थे और सपरिवार वहीं रहते थे. उस के पति अनिल का इसी शहर में कारोबार था. शहर के आलीशान घर में उमा को अपने पति के साथ रहना था.’

यहां तक पढ़ने के बाद कविता सोचने लगी, ‘जब वे लोग इतने संपन्न थे तो उमाजी ने मुझे मां को क्यों दे दिया? या फिर क्या मैं उमाजी की नाजायज संतान हूं?’ वह फिर से डायरी पढ़ने लगी- ‘ससुराल का वैभव देख कर उमा को अपनेआप पर विश्वास नहीं हुआ. वह सोचने लगी कि घर में रोकटोक करने वाला तो कोई नहीं है, वहां उस का एकछत्र साम्राज्य होगा. लेकिन जल्द ही उस का भ्रम दूर हो गया, क्योंकि उसे पता चल गया था कि अनिल तो मां के हाथ की कठपुतली थे. दूर रह कर भी पूरे घर का संचालन उस की सास किया करती थी. इस बात की खबर नौकरों को भी थी, इसलिए उस घर में उस की हैसियत एक शोपीस जितनी ही थी. ‘जब पहली बार उमा को अपनी कोख में किसी जीव के सृजन का आभास हुआ तो वह खुशी से झूम उठी कि कोई ऐसा आने वाला है जो उस का अपना होगा. जब यह खुशखबरी उस ने अपने पति अनिल को सुनाई तो वे भी खुश दिखे थे. सास तो खबर सुनते ही दौड़ी चली आई थी. उसे जांच के लिए अस्पताल ले जाया करती थी.

‘8वां महीना लग गया, तो सास ने उमा को बुला कर कह दिया कि बहू, तैयारी कर लो. तुम्हारी जचगी गांव में होगी. उमा ने कोई तर्क नहीं किया, क्योंकि उसे पता था कि उस की कोई नहीं सुनेगा. उमा को जिस दिन प्रसव पीड़ा शुरू हुई, दुर्गा दाई को बुला लिया गया. दाई अनुभवी थी, उस की मदद से प्रसव आसानी से हो गया. बच्चे के रोने की आवाज सुन कर उमा की ममता जाग उठी. लेकिन बच्चे को नहलाने के लिए ले कर गई हुई दाई, वापस नहीं लौटी. ये भी नहीं बताया कि बेटा हुआ या बेटी. उमा ने जब बच्चे के बारे में पूछा तो सास ने कह दिया कि बच्चा मर गया. कई दिनों तक उमा को मालूम ही नहीं पड़ा कि बच्चा मरा नहीं था, बल्कि मार दिया गया था, क्योंकि उस का दोष यह था कि वह लड़की थी.

‘दूसरी बार जब उमा गर्भवती हुई तो उस ने अनिल से कहा कि इस बार जचगी के लिए वह गांव नहीं जाना चाहती. यहां शहर में डाक्टरों की कमी नहीं है. पिछले बार की तरह इस बार भी वह अपने बच्चे को खोना नहीं चाहती. तब जा कर अनिल ने उमा को वास्तविकता से अवगत कराया था और कहा था-हमारे घर में बेटियां जन्म नहीं लेतीं. यह हमारी शान के खिलाफ है. वास्तविकता जान कर तड़प उठी थी उमा. उस ने अनिल से कहा था कि आप लोगों ने यह अच्छा नहीं किया. लड़कियां ही तो बेटे को जन्म देती हैं. इस तरह लड़कियों को खत्म किया जाएगा तो प्रकृति का संतुलन ही बिगड़ जाएगा. आप लोगों ने एक मासूम की जान ले कर संगीन जुर्म किया है, पाप किया है और यह कानून के खिलाफ है.

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‘अनिल ने विदू्रप सी हंसी हंसते हुए कहा था कि पापपुण्य और कानून की बातें हमें मत सिखाओ. हमारे खिलाफ जाने वाले को हम नहीं बख्शते. आगे से ऐसी बातें करने की हिमाकत न करना. उमा समझ गई कि इतने सारे अनाथालयों और अस्पतालों को धनराशि प्रदान करना सिर्फ दिखावा है. वास्तव में ये तो मनुष्य की खाल में छिपे हुए भेडि़ए हैं. अपनेआप को कोसते हुए उमा इस बार भी जचगी के लिए गांव चल पड़ी. इस बार उमा ने बेटे को जन्म दिया, इसलिए सास ने उस की बलाएं लीं. ‘उमा का बेटा 3 साल का हो गया तो उसे अपने गर्भ में फिर किसी हलचल का आभास हुआ. इस बार उमा ने निश्चय किया कि गर्भस्थ शिशु यदि बेटी हुई तो उसे हर हालत में बचाना है. उस ने सोचा कि लोहे को लोहे से ही काटना होगा. उस ने अपने पति और सास को विश्वास दिला दिया कि इस परिवार की रीतिरिवाजों का उसे भी खयाल है. कुदरत ने इस परिवार का कुलदीपक तो उसे दे ही दिया है, इसलिए अब की बार बेटी हुई तो वह, वे जैसा चाहेंगी वैसा ही करेगी. उमा जैसी सीधीसादी औरत के लिए उन दरिंदों को अपने विश्वास में लेना इतना आसान काम न था, पर एक मां के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा देना कोई मुश्किल नहीं था.

‘धीरेधीरे उस ने पति को मना लिया कि जचगी के लिए गांव जाने के बजाय क्यों न दाई को यहां बुला लिया जाए. जचगी वह अस्पताल में ही करवाना चाहती है. अगर लड़की हुई तो वह खुद बच्चे को दाई के हाथों सौंप देगी. इस बात से किसी को कोई एतराज नहीं था. ‘उमा मुझे समयसमय पर फोन कर के और कभीकभी मां के घर आने पर अपनी गृहस्थी की सारी बातें बताया करती थी और कई मामलों में मेरी राय भी लेती थी. मेरी शादी को 7 साल हो गए थे, पर अभी तक मेरी कोई संतान नहीं थी. उस दिन जब उमा मिली तो वह मेरे पास आ कर गिड़गिड़ाने लगी कि इस बार अगर बेटी पैदा हुई तो मैं उसे गोद ले लूं. अंधे को क्या चाहिए, दो आंखें. लेकिन मैं ने एक शर्त रखी-उमा, यह बच्ची सिर्फ मेरी होगी. तुम उस से मिलने या बात करने की कोशिश नहीं करोगी. उसे कभी पता नहीं चलना चाहिए कि तुम ने उसे जन्म दिया है. उमा ने मेरी सारी शर्तें मान लीं. उस दिन मैं ने उमा के चेहरे पर फैली शांति देखी थी. समय आने पर तुम्हें खबर भिजवा दूंगी, कह कर चली गई उमा. ‘दाई के आने पर उमा ने धीरेधीरे उसे अपने बस में कर लिया. उस ने दाई के पैर पकड़ लिए, कहा कि इस बार अगर बच्ची हुई तो उसे बचा लेना दाई, तुम जितना चाहो उतने पैसे मैं तुम्हें दूंगी. उमा ने दाई से आगे कहा कि अगर बच्ची पैदा हुई तो आप उसे मेरी सहेली के पास पहुंचा देना.’ मां ने आगे लिखा था, ‘योजना के मुताबिक सबकुछ हुआ. इस तरह मेरी गुडि़या मुझे मिल गई. अपने बच्चे को खुद से अलग करते समय उमा फूटफूट कर रोई थी. पर इस दुख से बढ़ कर उन आतताइयों को मात दे कर, अपनी बच्ची को जिंदा रख पा लेने का सुख उसे जीने की प्रेरणा दे रहा था. लेकिन उमा में अब और उन दरिंदों से लड़ने की शक्ति नहीं बची थी. उमा ने अपना औपरेशन करवा लिया ताकि वह अब और बच्चे को जन्म देने के काबिल ही न रहे.

‘उमा ने अपना वादा पूरा किया और दूर से ही तुम्हें फलतेफूलते देख कर खुशी से फूली नहीं समाती थी. माएं ऐसी ही होती हैं, जो अपनी संतान की खुशी में ही तृप्तता का अनुभव करती हैं.’ काफी दिनों के बाद मां ने डायरी लिखी थी. शायद कविता की परवरिश के पीछे उन्हें वक्त ही नहीं मिला होगा. डायरी का आखिरी पन्ना बचा था. मां ने लिखा था- ‘उमा के दुखों का अभी जैसे अंत नहीं हुआ था. उस का बेटा दिनबदिन बिगड़ता जा रहा था. देर रात गए घर लौटता. वह टोकती तो पिता और दादी बेटे का ही पक्ष लेते. वे कहते-उस की जीवनशैली अमीरों जैसी है. जिस ने गरीबी में अपना जीवन व्यतीत किया हो वह क्या जाने अमीरों के रंगढंग. अपने पिता और दादी से शह पा कर वह अपनी मां का ही अपमान करने लगा.’ मां की डायरी पढ़ने के बाद कविता, उमाजी के प्रति अपने व्यवहार को सोचसोच कर ग्लानि से भर गई. जिस ने मेरे अस्तित्व को बनाए रखने के लिए, क्याकुछ नहीं किया, उसे ही मैं ने खरीखोटी सुना दीं? धिक्कार है मुझ पर. अब तो पता नहीं, मैं उन से मिल भी पाऊंगी या नहीं. बाहर घंटी की आवाज से कविता के विचारों की शृंखला टूटी. बाहर उमाजी सहमी सी खड़ी थीं. उन्हें देख कर उसे सुखद आश्चर्य हुआ. उस ने कहा, ‘‘मां, अंदर आइए.’’

कविता के मुंह से अपने लिए ‘मां’ संबोधन सुन कर उमा कुछ अचंभित सी, कुछ गद्गद सी, छलक पड़ने को बेताब आंसुओं को मुश्किल से रोकती हुई अंदर आईं. कविता ने सब से पहले उन से अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी, फिर उन्हें मां की डायरी के बारे में बताया. फिर दोनों ने ढेर सारी बातें कीं. अंत में जातेजाते उन्होंने कहा, ‘‘बेटी, अब तो तुम्हारे दादादादी भी नहीं रहे. तुम्हारे पिता भी काफी बदल गए हैं. अपने किए का पछतावा है उन्हें. मैं उन से बात करूंगी. वे तुम्हें अवश्य अपना लेंगे. अब तुम हमारे साथ आ कर रहो.’’ उन की बातें सुन कर कविता भड़क गई, ‘‘किस पिता की बात कर रही हैं आप? मेरे पिता तो गुजर गए हैं. जिन की बात आप कर रहीं हैं उन्होंने मेरा नामोनिशान मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. अब पछताने पर क्या मैं वापस आ जाऊं? घिन आती है मुझे ऐसे लोगों से जो अपने चेहरे पर मुखौटा पहन कर शरीफ बनने का दावा करते हैं.’’ फिर अपने गुस्से पर काबू पाते हुए कविता ने उमा से कहा, ‘‘मां, मुझे आप पर गर्व है. आप ने सारी जिंदगी पुरुषों की गुलामी की है. छोडि़ए उन सब को. आ जाइए अपनी बेटी के पास…’’

‘‘पर बेटी…’’

‘‘आप ने तो मुझे मेरे कातिलों से बचा कर एक बहादुरी की मिसाल कायम की है. अब तो मैं भी आप के साथ हूं. जाइए, अपने पति को बता दीजिए कि जिस बच्ची को उन्होंने मारना चाहा था, वह जिंदा है और आप आगे की जिंदगी उसी के साथ गुजारना चाहती हैं.’’

‘‘आं… हं…’’ उमा बुदबुदाईं.

‘‘मां, आप की सेवा कर के अपनी जिंदगी की इस दूसरी पारी में न सिर्फ मुझे जीने का मकसद मिलेगा बल्कि कुछ हद तक उस मातापिता के कर्ज को उतारने का एहसास भी होगा जिन्होंने मुझे पालापोसा.’’

‘‘चलती हूं, बेटी, अपना खयाल रखना,’’ कह कर उमा चली गईं. सारी रात कविता सो नहीं पाई. सुबह कब आंख लग गई पता ही नहीं चला. दरवाजे पर घंटी की आवाज सुन कर नींद टूटी. देखा तो मां दरवाजे पर बैग लिए खड़ी थीं.

‘‘बेटी, मैं ने सदा के लिए वह घर छोड़ दिया है.’’

‘‘मां…’’ कह कर कविता उन से लिपट गई.

मां के आ जाने से अपनी जिंदगी के इस दूसरे अध्याय को शुरू करने में कविता को नई स्फूर्ति का एहसास हुआ. उमाजी भी अपनी बेटी के साथ हुए इस पुनर्मिलन से बेहद खुश थीं. उन के जीवन का भी तो दूसरा सुखद अध्याय शुरू होने वाला था.

गर्मियों में दही चावल है रामबाण इलाज

आज कल के भागदौड़ की जिंदगी में ज्यादातर लोग अपने स्वास्थ पर ध्यान देना भूल जाते हैं. ऐसे में आपको कई तरह कि बीमारियों पीछा करने लगती है. और आपका मोटापा भी बढ़ने लगा था.तो आइए आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि घर में मौजूद कुछ हल्की चीज खाने के बारे में बताते हैं, जिससे आप हेल्दी महसूस करेंगे.

दही चावल खाना आपके स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा होता है. ऐसे में आप दावल का माड़ निकालकर दही के साथ खाएं, जो आपके शरीर के लिए लाभ दायक होगा. अगर आपका पेट आए दिन खराब रहता है तो आप दही चावल अभी से खाना शुरू कर दें, आपके पेट को बहुत राहत मिलेगा.

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यह आपके स्किन के लिए भी फायदेमंद होता है. स्किन पर बहुत ज्याद प्रभाव पड़ता है. आप चाहे तो अपने वजन को कम करने के लिए दही चावल का इस्तेमाल कर सकते हैं.

चावल मैग्निशियम और पोटाशियम का बहुत अच्छा स्त्रोत होता है. इसे खाने से आपके शरीर को मजबूती मिलती है. ज्यादातर लोग इसका सेवन गर्मियों में करते हैं. इससे उनके स्वास्थय पर निखार आ जाता है.

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साथ ही दही चावल खाने से आपके पेट भी साफ होते हैं.

Womens Day Special: दस्तक

‘‘जरा बाहर वाला दरवाजा बंद करते जाइएगा,’’ सरोजिनी ने रसोई से चिल्ला कर कहा, ‘‘मैं मसाला भून रही हूं.’’

‘‘ठीक है, डेढ़दो घंटे में वापस आ जाऊंगा,’’ कहते हुए श्रीनाथ दरवाजा बंद करते हुए गाड़ी की तरफ बढ़े. उन्होंने 3 बार हौर्न बजाते हुए गाड़ी को बगीचे के फाटक से बाहर निकाला और पास वाले बंगले के फाटक के सामने रोक दिया.

‘पड़ोस वाली बंदरिया भी साथ जा रही है,’ दांत पीस कर सरोजिनी फुसफुसाई, ‘बुढि़या इस उम्र में भी नखरों से बाज नहीं आती.’ गैस बंद कर के वह सीढि़यां चढ़ गई थी.

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सरोजिनी ऊपर वाले शयनकक्ष की खिड़की के परदे के पीछे खड़ी थी. वहीं से सब देख रही थी. वैसे भी पति का गानेबजाने का शौक उसे अच्छा नहीं लगता था और श्रीनाथ थे कि कोई रसिया मिलते ही तनमन भूल कर या तो सितार छेड़ने लगते या उस रसिया कलाकार की दाद देने लगते पर जब से सरोजिनी के साथ इस विषय में झड़प होनी शुरू हो गई थी तब से मंडली घर में जमाने के बजाय बाहर जा कर अपनी गानेबजाने की प्यास बुझाने लगे थे. सरोजिनी कुढ़ती पर श्रीनाथ शांत रहते थे. पड़ोस के बगीचे का फाटक खोल कर मीनाक्षी बाहर आई. कलफ लगी सफेद साड़ी, जूड़े पर जूही के फूलों का छोटा सा गुच्छा और आंखों पर मोटा चश्मा, बरामदे में खड़े अपने पति राजशेखर को हाथ से विदा का इशारा करती वह गाड़ी का दरवाजा खोल कर श्रीनाथ के साथ थोड़ा फासला कर बैठ गई. फिर शीघ्र ही गाड़ी नजरों से ओझल हो गई.

पैर पटकती हुई सरोजिनी नीचे उतरी. कोफ्ते बनाने का उस का उत्साह ठंडा पड़ गया था. पिछले बरामदे में झूलती कुरसी पर बैठ कर उस ने अपना सिर कुरसी की पीठ पर टिका दिया और आंखें मूंद लीं. आंखों से 2-4 आंसू अनायास ही टपक पड़े. कालेज में सरोजिनी मेधाविनी समझी जाती थी. मांबाप को गर्व था उस के रूप और गुणों पर, कालेज की वादविवाद स्पर्धा में उस ने कई इनाम जीते थे लेकिन बड़ों के सामने कभी शालीनता की मर्यादा को लांघ कर वह एक शब्द भी नहीं बोलती थी. श्रीनाथ के साथ रिश्ते की बात चली तब सरोजिनी ने चाहा कि एक बार उन से मिल ले और पूछ ले कि विवाह के बाद अपनी प्रतिभा पर क्या पूर्णविराम लगाना होगा? आखिर गानाबजाना या चित्रकारी, रंगोली अथवा सिलाई जैसी कलाओं का महिलाएं वर्षों तक सदुपयोग कर सकती हैं, वाहवाही भी लूट सकती हैं. पर बोलने की कला? आवाज के उतारचढ़ाव का जादू? एक सरोजिनी नायडू की तरह सभी की जिंदगी में तो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने का संतोष नहीं लिखा होता.मां-बाप के सामने तो वह कुछ कह नहीं पाई, पर मीनाक्षी तो उस की अंतरंग सहेली थी. सोचा, उस से क्या छिपाना.

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मीनाक्षी हंस पड़ी थी उस की चिंता देख कर, ‘पगली, बोलने के लिए समय कहां रहेगा तेरे पास? पहले कुछ वर्ष मधुमास चलेगा, फिर घर में कौए और कोयलें वादविवाद करने लगेंगी.’

‘क्या मतलब?’

‘बच्चों की कांवकांव, तेरी लोरियां, पति की चिल्लाहट, तेरी मिन्नतें…’ मीनाक्षी हंसने लगी थी, ‘और जब 15-20 वर्षों के बाद तुझे अपना वादविवाद याद आएगा, तब तू एक संतुष्ट, थुलथुली, अपने परिवार में मगन प्रौढ़ा बन चुकी होगी. फिर कहां का भाषण और कैसा वादविवाद?’

‘तुझे पता है, संस्कृत में कहावत है कि वक्ता 10 हजार में एक ही होता है. सिलाईबुनाई, रसोई और रंगोली तो सभी जानती हैं, पर बोलने की कला? क्यों मैं अपने अमूल्य वरदान को भुला दूं?‘ठीक है, मत भुलाना. खैर, श्रीनाथ के साथ मैं तुम्हारी मुलाकात करवा दूंगी,’ कह कर वह चली गई थी.

शाम को डरा, सहमा सा उस का छोटा भाई आया था, ‘सरू दीदी, चलोगी मेरे साथ? दीदी को बुखार है. वह बारबार आप को याद कर रही हैं. शायद किसी प्रोफैसर का बताया हुआ कुछ काम कर तो रखा है…आप के हाथ से भेजना चाहती होंगी?’‘जा सरू, देख कर आ मीनाक्षी को,’ मां ने कहा था, ‘रहने दे, वह गुझिया भरने का काम…बाद में कर लेना.’मीनाक्षी के घर में श्रीनाथ से मुलाकात हुई थी. दोनों चुप थे. आखिर चाय के साथ मीनाक्षी आई तब कहीं शर्म की बर्फ पिघली.

‘पूछ लो अपने सवाल,’ मीनाक्षी ने हंस कर कहा था, ‘पूछने के लिए तो मुंह खुलता नहीं, भाषण कला को प्रोत्साहन मिलेगा कि नहीं, पूछने चली है.’

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हंसतेबतियाते घंटाभर गुजर गया था. पता चला था कि श्रीनाथ खुद मितभाषी हैं पर जरूर सुनेंगे अपनी पत्नी का भाषण. अगर वह किसी महिलामंडली या सभा में भी बोलना चाहेगी तो उन को कोई आपत्ति नहीं होगी. शर्त यह होगी कि राजनीति के सुर न छेड़े जाएं और उन्हें उन के शौक के लिए समय दिया जाए. लेकिन वह कहां कुछ कर पाई. विवाह के 5-6 महीनों के बाद ही उस की तबीयत सुस्त रहने लगी. फिर हुआ सोनाली का जन्म. जिंदगी के 30 साल यों ही गुजर गए. 2 बेटियों और 1 बेटे की परवरिश, उन के लाड़प्यार, शिक्षादीक्षा और शादीब्याह तक वह अपनेआप को उलझाती गई परिवार की गुत्थियों में. कभी उस के उलझने की जरूरत थी तो कभी वह चाह कर खुद उलझी. पीछे से पछताई भी, जैसे रूपाली के विवाह के बारे में.

रूपाली स्वतंत्र विचारों की लड़की थी. शुरू से ही उस ने अपने निर्णय खुद लेने का रवैया अपनाया था. सोनाली गृहविज्ञान में स्नातकोत्तर परीक्षा दे कर अच्छे घर में विवाह कर के सुख से रह रही थी. उस का घर सचमुच देखने लायक था. सरोजिनी बहुत प्रसन्न होती थी बेटी की सुघड़ता देख कर, उस की प्रशंसा सुन कर. पर रूपाली? उस ने खेलकूद के पीछे पड़ कर, ज्योंत्यों दूसरे वर्ग में 12वीं की देहरी पार की. फिर स्नातक उपाधि के लिए विषय चुना, संगीत. उसे कितना समझाया था कि दौड़ में स्कूल चैंपियन बनने से या संगीत में 2-4 इनाम पाने से किसी की जिंदगी नहीं संवर सकती. अपने खानदान की योग्यता के अनुरूप घरवर नहीं मिल सकता.

‘सरू, यह कोई जरूरी नहीं कि सब बच्चे एकजैसे हों, या एक ही तरीके का जीवन अपनाएं. समझाना तुम्हारा काम था, सो तुम कर चुकीं. अब रूपा को अपनी मरजी से नई राह चुनने दो. खेलकूद कोई बुरी चीज तो नहीं. कबड्डी संघ में बोलबाला है रूपा का. गाती भी अच्छा है, दमखम वाली आवाज है…’ श्रीनाथ ने कई बार सरोजिनी को अकेले में समझाया था.

लेकिन शालीनता की प्रतिमा सी सरोजिनी बच्चों के मामले में बहुत ज्यादा हठी व शक्की थी. बच्चों के लिए उस ने चौखटें बना रखी थीं, उन्हें उन्हीं में फिट होना था. पर रूपाली को कहां रास आती ऐसी रोकटोक. संगीत में स्नातक होने से पहले ही उस ने अपनी संगीत कक्षा खोल ली थी. धीरेधीरे कमाने लगी थी. फिर स्नातक होते ही गुरुमूर्ति से ब्याह कर के मां के चरण स्पर्श करने आई थी.

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गुरुमूर्ति माध्यमिक विद्यालय में एक शिक्षक था. क्या तबला या वायलिन बजाने से कोई अभिजात्य वर्ग का सदस्य बन सकता है? तिस पर वह ठहरा दक्षिण भारतीय. सरोजिनी का मुंह कड़वा हो गया था. श्रीनाथ घर पर न होते तो शायद वह उसे अपमानित कर के भगा भी देती. पर वह ठहरे संगीत रसिक. दामाद से प्यार से मिले और खिलायापिलाया. नया जीवन शुरू करने के लिए कुछ धन भी दिया और बेटी की शादी की खुशी में पार्टी भी दी.

‘सरू, जो हो गया सो हो गया,’ उन्होंने पार्टी के बाद कहा, ‘बच्चे जहां रहें, सुखी रहें. जरूरत पड़ने पर, जब तक हो सकेगा उन की सहायता करेंगे. तुम रोती क्यों हो? गुरुमूर्ति अच्छा लड़का है, सुखी रहेगी हमारी बेटी. तुम अब तक जो नहीं कर पाईं, अब करो. तुम्हारी भाषण कला का क्या होगा. इस तरह तो तुम कुम्हला जाओगी.’ बड़ा गुस्सा आया था सरोजिनी को. सोचा, उपदेश देना बहुत आसान है. शादी के बाद उस के पांवों में कई बेडि़यां पड़ी हैं…परिवार की जिम्मेदारियां, बच्चों का लालनपालन, सामाजिक संबंधों का रखरखाव और घर के अनगिनत काम. श्रीनाथ को क्या, तनख्वाह ला कर थमा दी और मस्तमौला बन कर घूमते रहे, सितार उठा कर. कभी यहां तो कभी वहां. उन की संगीत में प्रगति होती रही, पर सरोजिनी की ‘10 हजार में एक’ वाली कला दफन हो गई उस के विवाह रूपी पत्थर के नीचे.

यह तो अच्छा था कि बेटा आज्ञाकारी निकला. पढ़लिख कर अच्छीखासी नौकरी भी कर रहा था, वह भी इसी शहर में. उसी के सहारे तो अब जीना था. एक निश्वास के साथ वह कुरसी से उठी. कई काम पड़े थे. दीवाली पास आ रही थी. सोनाली पति के साथ घूमने गई थी, दिल्ली, नेपाल. परंतु दीवाली पर तो सब को आना था. तैयारियां करनी थीं. दीवाली के 2 दिन बाद बेटे के लिए कानपुर से रिश्ता ले कर लोग आ रहे थे.

‘पर श्रीनाथ को क्या,’ कौफी बनातेबनाते सरोजिनी बड़बड़ाने लगी, ‘वह तो सठिया गए हैं. अब सेवानिवृत्त होने के बाद उन के और पर निकल आए हैं. मीनाक्षी के साथ चले जाते हैं, किसी कार्यक्रम के अभ्यास के लिए.’

कौफी का प्याला ले कर वह फिर बरामदे में चली गई. पिछला बरामदा, उस का साथी, उस के जीवन की तरह हमेशा ओट में रहने वाला. यहां उसे अच्छा लगता है. बंदरिया का घर भी यहां से दिखाई नहीं पड़ता. बंदरिया? अंतरंग सहेली का ‘बंदरिया’ में रूपांतर बहुत वर्षों पहले ही हो गया था, जब सोनाली के लिए वह अपने किसी भानजेवानजे का रिश्ता लाई थी. कहती थी कि सोनाली भी उसे पसंद करती है. साधारण मध्यवर्गीय परिवार, लड़का भी कोई खास नहीं था. यह तो अच्छा हुआ कि सोनाली का दिमाग जल्दी ही ठिकाने आ गया, और उस ने मां की बात मान ली.

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मीनाक्षी सभी को अपने तराजू में तौलती थी. ‘अब खुद भी राजशेखर से विवाह कर के यहां मेरी छाती पर मूंग दलने आ बैठी है,’ सरोजिनी बड़बड़ाई, ‘क्या धरा था इस राजशेखर में? मेरी ननद की मृत्यु के बाद उस से शादी कर के मेरे पड़ोस में आ बैठी. भाई के साथ वाले बंगले में रहने का सपना था सुधा का, पर सालभर भी न रह पाई.’

उस दिन काम करतेकरते सरोजिनी की पुरानी यादों का सिलसिला साथसाथ ही चलता रहा. सरोजिनी की शादी के समय सुधा 2 छोटे बच्चों की मां बन चुकी थी. श्रीनाथ अपनी छोटी बहन को बहुत चाहते थे. हमेशा नजरों के सामने रखना चाहते थे. उस की शादी उन के मित्र से हुई थी. अच्छी जमी थी उन की मंडली. उन दिनों उस मंडली में सरोजिनी के छोटेछोटे भाषणों की भी धूम थी.

3-4 दिन के सिरदर्द ने सुधा को उठा लिया. अच्छे से अच्छे न्यूरोसर्जन भी कुछ न कर पाए. सालभर के बाद मीनाक्षी सुधा का घर संभालने आ पहुंची. ‘देखो बेटी, मीनाक्षी को सहेली और छोटी ननद, दोनों ही समझना,’ मीनाक्षी की मां ने सरोजिनी से कहा था, ‘हमें राजशेखर से अच्छा दामाद कहां मिलेगा? फिर श्रीनाथ यह रिश्ता लाए हैं. वे मीनाक्षी के बड़े भाई की जगह हैं…’

‘भाई की जगह…भाड़ में जाए,’ सरोजिनी ने गुस्से से कड़ाही पटक दी, ‘अच्छा है, भाईबहन के रिश्ते का बुरका… आएदिन साथसाथ घूमना और राजशेखर भी तो अंधा है. मीनाक्षी ने त्याग के नाम पर खरीद लिया है उस को…’ गाड़ी की आवाज आई तो उस ने चुपचाप दरवाजा खोला. सितार उठा कर गुनगुनाते हुए श्रीनाथ अंदर घुसे. ‘‘वाह, कुछ जायकेदार चीज बनी है,’’ उन्होंने सूंघते हुए कहा. फिर बोले, ‘‘क्यों खटती रहती हो चौके में? मेरे साथ हमारी रविवारीय सभा में चलो तो तुम्हें भी कुछ खुली हवा मिले. जानती हो, कमला नगर में एक ‘औरेटर्स और्चर्ड’ नाम की संस्था है, जहां भाषण देने वाले बकबक करने जाते हैं. इतवार के दिन वे भी मिलते हैं…’’‘‘भाड़ में गया तुम्हारा और्चर्ड,’’ थालियां परोसती हुई वह बड़बड़ाई.उस के बाद के सरोजिनी के कुछ दिन बड़ी धूमधाम में कटे. वह घर को सजाती रही, संवारती रही, पकवान बनाने की तैयारियां करती रही.

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धनतेरस की शाम को दीए जलाने का समय हुआ तब भी श्रीनाथ का पता न था. धनतेरस को ही सरोजिनी का जन्मदिन था. उस दिन से ही श्रीनाथ दीवाली मनाने लगते थे. अकसर कहा करते थे, ‘भई, हमारी रोशनी का जन्म जिस दिन हुआ उसी दिन से दीवाली मनाई जाएगी.’ मिठाइयां लाते, फूल लाते, पर आज अभी तक उन का पता न था. मुनीअम्मा ने आंगन में सुंदर रंगोली बनाई थी. अगरबत्ती से घर महक रहा था. तभी अचानक 3-4 गाडि़यों के रुकने की आवाज आई. डर कर सरोजिनी ने किवाड़ खोला. सामने श्रीनाथ बड़ा गुलदस्ता लिए खड़े थे और पीछे, हंसतेमुसकराते लोगों की एक टोली थी.

‘‘हम अंदर आ सकते हैं, सरकार?’’ पीछे से मीनाक्षी ने पूछा. वही पुरानी मस्तीभरी आवाज थी.

सरोजिनी ने चाहा, दौड़ कर बंदरिया के गले लग जाए, पर फिर याद आईं ढेर सारी बातें और एक रूखा ‘आओ’ कहती हुई वह कमरे के अंदर हो गई. श्रीनाथ ने बड़े उत्साह से अपनी कलाकार मंडली का परिचय करवाया. मीनाक्षी रसोई में घुस कर चाय बनाने लगी और संगीत के सुरों से वातावरण भर गया. अंत में मीनाक्षी ने एक स्वरचित गाना गाया. उस की आवाज मधुर तो नहीं थी, पर शब्दों में भाव था, गीत सुरीला था इसलिए समां बंध गया.

गीत के बोल थे, ‘सहेली, सहेली… ओ मेरी सहेली, न बन तू पहेली, आ सुना दे, मुझे जो व्यथा तू ने झेली…’

सरेजिनी को पता भी नहीं था कि उस की आंखें बरस रही हैं. सामने बड़ा सा केक रखा था जिस पर उस का नाम लिखा हुआ था.

‘‘आज मैं अपनी पत्नी को सब से प्यारा तोहफा देना चाहता हूं,’’ श्रीनाथ अचानक खड़े हो कर बोलने लगे, ‘‘इस तोहफे के पीछे की कई दौड़धूप का श्रेय मीनाक्षी और राजशेखर को है. अपने ‘औरेटर्स आर्चर्ड’ के लोगों की ओर से आसपास के स्कूलों और कालेजों में भाषणकला को प्रोत्साहन देने के लिए जो गोष्ठीसभा होने वाली है, उस का शिक्षामंत्री उद्घाटन करेंगे. उस समारोह में भाषण देने का काम करेंगी सरोजिनी.’’

तालियों की ध्वनि से कमरा भर गया.

‘‘पता नहीं, मैं कर भी पाऊंगी या नहीं,’’ सरोजिनी के मन का मैल धुलने लगा था. भर्राई आवाज में आत्मविश्वास का अभाव तो नहीं था पर कार्यक्षमता पर कुछ संदेह अवश्य था.

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‘‘अभी से अभ्यास शुरू कर दो,’’ मीनाक्षी ने कहा, ‘‘लो, अब उद्घाटन करो. केक काटो, चाय पीओ और शुरू हो जाओ.’’

उस दिन सरोजिनी को पता चला कि प्रतिभा कभी मरती नहीं. राख में दबी चिनगारी की तरह वह छिपी रहती है और समय आने पर निखरती है. आज तक उस ने खुद ईर्ष्या की, नासमझी की, अकारण ही संदेह की राख की परतों के नीचे अपनी कला को दबा कर रखा था. आज उसी के बनाए बंधनों को तोड़ कर उस के प्रियजनों ने उस खोए हुए झरने को पुनर्जीवन का मार्ग दिखाया था. छोटा सा, पर बहुत अच्छा भाषण दे कर सरोजिनी मीनाक्षी की बांहों में लिपट गई. अपना सिर ‘बंदरिया’ के कंधे पर रख कर उस ने अनुभव किया कि सारी गांठें अपनेआप खुल गई हैं. वह फूल सी हलकी हो गई है.

‘‘सभाओं में भाषण देती है पगली,’’ मीनाक्षी धीरेधीरे बोलती रही, ‘‘पर अपने खयालों को हमेशा अपनों से छिपाती रही. अब मुझ से खुल कर बात किया कर. आज जो किवाड़ खुल गया है उसे फिर बंद न होने देना. पता है, कितने वर्षों से दस्तक दे रहे थे हम लोग.’’

सरोजिनी ने आंखें पोंछीं और बचे हुए केक के टुकड़ों में से एक मीनाक्षी के मुंह में ठूंस कर मुसकरा दी. बारिश के बाद की निर्मल धूप जैसी उस हंसी का प्रतिबिंब सभी के मुखों पर थिरक गया.

मुझे एक मुस्लिम लड़की से प्यार हो गया है, मैं कैसे उसे अपने दिल की बात बताऊं?

सवाल

मैं 20 साल का अविवाहित युवक हूं. मैं जहां नौकरी करता हूं वहां मुझे एक मुस्लिम लड़की से प्यार हो गया है. चूंकि मैं हिंदू हूं, इसलिए उस से अपनी फीलिंग्स शेयर करने से डरता हूं. वह नहीं जानती कि मैं हिंदू हूं. लेकिन मैं जब भी उस की तरफ देखता हूं तो उसे भी अपनी तरफ देखता हुआ पाता हूं. मैं जिस दिन भी उसे नहीं देखूं, मुझे पूरा दिन अच्छा नहीं लगता. मैं सोचता हूं कि उस से अपनी फीलिंग्स शेयर करूं लेकिन डरता हूं कि कहीं वह चीखचिल्ला कर मेरी बेइज्जती न कर दे.

जवाब

आप जो भी सोच रहे हैं सिर्फ अपने मन में सोच रहे हैं कि कहीं वह लड़की आप के हिंदू होने की बात जान कर आप को रिजैक्ट न कर दे या वह भी आप को चाहती है. आप की समस्या का हल सिर्फ उस से खुल कर बात करने में है.

आप उस से बात करें व जानें कि वह आप के बारे में क्या सोचती है, तभी आगे बढ़ें. क्या पता उस के व उस के परिवार के लिए हिंदू मुस्लिम वाली बात कोई महत्त्व ही न रखती हो या फिर उस के मन में आप के लिए कोई फीलिंग ही न हो, जैसा आप सोच रहे हैं.

इसलिए हर बात का खुलासा सिर्फ उस से बात करने से होगा. बिना डरे उस से अपने मन की बात कहें और हर परिस्थिति के लिए तैयार रहें.

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हाई कमान ने संभाली कमान 

उत्तराखंड में भाजपा नेताओ के बीच विद्रोह का प्रभाव अगले साल होने वाले विधान चुनाव पर ना पडे इसके लिये हाई कमान ने स्थानीय नेताओं की जगह पर अपने फैसले से मुख्यमंत्री चुना. स्थानीय नेताओं के गुस्से को दबाने के लिये ऐसा फामूर्ला 80 के दशक में कांग्रेस में भी लिये जाते थे. जिसमें हाई कमान ताश के पत्तों की तरह मुख्यमंत्रियों के फेरबदल करती थी.

श्रीपति मिश्रा उत्तर प्रदेश बनायें गये थे. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता थे. इसके पहले वह विधान सभा अध्यक्ष भी थे. श्रीपति मिश्रा ने वाराणसी तथा लखनऊ विश्वविद्यालयों में पढ़ाई की थी. 1962 में वह पहली बार विधान सभा सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए. कई महत्वपूर्ण पदों पर रहने के बाद भी उत्तर प्रदेष के मुख्यमंत्री पद की दौड में कभी उनका नाम नहीं लिया गया. अचानक 19 जुलाई 1982 को उस समय की कंाग्रेस नेता इंदिरा गांधी ने श्रीपति मिश्रा को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया. 02 अगस्त 1984 तक वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. श्रीपति मिश्रा को जिस दौर में उत्तर प्रदेष का मुख्यमंत्री बनाया गया उस समय मुख्यमंत्री पद की दौड में कांग्रेस के कई कद्दावर नेता लगे थे. साल 2000 में जब मेरी श्रीपति मिश्रा ने उनके सरकार आवास लखनऊ में मुलाकात हुई थी  रिटायर मुख्यमंत्री के रूप में उनसे बात की थी. उस समय उन्होने कहा कि ‘उनके नाम पर कोई विवाद नहीं था इस कारण हाईकमान उनको पंसद करता था. हाईकमान ने ही उनको मुख्यमंत्री बनाया था.’
1980 के बाद जब इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को अपने हिसाब से चलाना शुरू किया तो  राज्यों में मुख्यमंत्री बनाने का काम विधायको की जगह हाई कमान के हाथ में आ गया था.

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राज्यों के मुख्यमंत्री को अफसर की तरह बनाया और हटाया जाता था. कहावत थी कि मुख्यमंत्री ‘ताश के पत्तों की तरह से फेंटे जाते‘ थे. केवल उत्तर प्रदेश  की नही कांग्रेस शासित हर राज्य में मुख्यमंत्री के चुनाव का काम हाई कमान करता था. कांग्रेस का हाई कमान इतना पावरफुल था कि उसे लगता था कि राज्यों  में चुनाव उसके नाम पर जीता जाता है. ऐसे में उसे मनचाहे ढंग से मुख्यमंत्री चुनने का अधिकार है. कांग्रेस की इस सोंच ने दमदार नेताओं का पतन शुरू हो गया. परिणाम स्वरूप एक दषक में ही पार्टी का राज्यों से जनाधार टूटने लगा. पार्टी सिमटने लगी.

विरोध को दबाने के लिये उत्तराखंड से निकला संदेश :
श्रीपति मिश्रा का जिक्र उत्तराखंड में बनाये गये नये मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के संदर्भ में कर रहे है. ‘ताश के पत्तों की तरह से फेंटे जाने‘ की कांग्रेसी बीमारी भारतीय जनता पार्टी के ताकतवर हाई कमान को भी लग चुकी है. साल 2000 में उत्तराखंड उत्तर प्रदेश से अलग राज्य बनाया गया. 21 सालों में 10 मुख्यमंत्री कुर्सी पर बैठ चुके है. यह हालत तब हुई जब उत्तराखंड में सत्ता कभी कांग्रेस और कभी भाजपा के साथ रही. दोनो ही दलों ने मुख्यमंत्री के नाम पर ताश के पत्तों की तरह फेंटने का काम किया.
उत्तराखंड में त्रिवेन्द्र सिंह रावत की जगह पर पौडी गढवाल से लोकसभा सांसद तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया है. वह राज्य के 10 वें मुख्यमंत्री है. भाजपा विधायक मंडल दल की मीटिंग में नये नेता के रूप में सबसे पहले तीरथ सिंह रावत का नाम चुना गया. तीरथ सिंह रावत के नाम पर हाई कमान की मोहर पहले ही लग चुकी थी इस कारण विधायक मंडल दल की मीटिंग मेें कोई हंगामा या विरोध भी नहीं हुआ. केन्द्रीय पर्यवेक्षक के रूप में रमन सिंह और प्रदेष प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम पूरे प्रकरण पर नजर रखे थे. अगले साल उत्तराखंड विधानसभा के चुनाव है. इस फेरबदल से विधायकों की नाराजगी को कम करने का प्रयास किया जा रहा है.

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त्रिवेन्द्र सिंह रावत की जगह उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने की रेस में पूर्व मुख्यमंत्री और केन्द्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल, राज्यमंत्री धन सिंह रावत, सत्यपाल महराज, अजय भटट और राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी जैसे कई नाम दावेदार के रूप में देखे जा रहे थे. सांसद तीरथ सिंह रावत का नाम चर्चा से बाहर था. इसके बाद भी जब उनको मुख्यमंत्री बनाया गया तो सभी को हैरानी हुई. ऐसे में यह चर्चा होने लगी कि तीरथ सिंह रावत इतने ताकतवर कैसे हो गये कि भाजपा ने उनको मुख्यमंत्री बनाकर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का सेनापति बना दिया. तीरथ सिंह रावत संघ यानि आरएसएस के प्रमुख सदस्य रहे है. संघ की विचारधारा का उनपर बहुत असर है.

संघ परिवार के करीबी:       
पौडी जिले के सीरों गांव के रहने वाले तीरथ सिंह रावत 1992 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के सदस्य के रूप में गढवाल विष्वविद्यालय के अध्यक्ष बने. इसके बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के संगठन में काम करना शुरू किया. 1997 में उत्तर प्रदेष में विधान परिषद के सदस्य बने. साल 2000 में जब अलग उत्तराखंड का गठन हुआ तो अंतरिम सरकार में वह पहले षिक्षा मंत्री बने. 2007 में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और 2012 के विधानसभा चुनाव में विधायक चुने गये. गुटबाजी के चक्कर में 2017 के विधानसभा चुनाव में सीटिंग विधायक होने के बाद भी इनका टिकट काट दिया गया. 2019 में लोकसभा का टिकट पाकर सांसद बने. मुख्यमंत्री के रूप में किसी भी सियासी चर्चा इनका नाम नहीं आया था.

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तीरथ सिंह रावत का नाम संघ और संगठन के मेहनती नेता के रूप में लिया जाता था. यही वह गुण था जिसकी वजह से मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया. तीरथ सिंह रावत उत्तराखंड विधानसभा के सदस्य भी नहीं है. ऐसे में वह लोकसभा की अपनी सीट से इस्तीफा देगे और फिर उत्तराखंड विधानसभा की सीट को खाली कराकर विधानसभा का चुनाव लडेगे. तीरथ सिंह रावत ने मीडिया के साथ अपनी पहली बातचीत में यह कहा ‘केन्द्रीय नेतृत्व से बात करके कैबिनेट का गठन होगा.‘ इस बयान से भी साफ है कि  हाई कमान का कितना प्रभाव है.

यही कुछ फामूर्ला उत्तराखंड के बडे भाई कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश में पहले किया जा चुका है. 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेष में भाजपा ने बहुमत से सरकार बनाई. मुख्यमंत्री का नाम चुनने में भाजपा के नेताओं को दरकिनार करके गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया. यह फैसला भी हाई कमान का फैसला था. योगी को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे की सबसे बडी वजह यह थी कि उनको भाजपा ‘धर्म का ब्रांड‘ बनाना चाहती थी. आज भाजपा हर प्रदेश के चुनाव में योगी का प्रयोग ‘धर्म के चेहरे‘ के रूप में कर रही है.

विवादों से निपटने की जुगत: चुने गये विधायको की जगह पर हाई कमान के द्वारा थोपे जाने वाले नेताओं को कुर्सी पर बैठाने के के पीछे प्रदेष के नेताओं में होने वाले विवाद है. कांग्रेस में भी 1980 के बाद ऐसे विवाद शुरू हो गये थे. 2014 में लोकसभा चुनाव जीत कर भाजपा ने जब केन्द्र में सरकार बनाई तो कई प्रदेषों में ऐसे नेता चुने जिनकी कोई खास पहचान नहीं थे. नये चेहरों को आगे लाने का काम भाजपा ने हर स्तर पर षुरू किया. ज्यादातर मामलों में ऐसे चेहरे सफल नहीं हुये. इससे पार्टी के अंदर बगावत तेज होने लगी. उत्तर प्रदेष में 100 से अधिक विधायको ने विधानसभा में ही धरना दिया था. ऐसे में अब भाजपा हाई कमान ने अब अपने मन से फैसलें करने षुरू कर दिये है. भाजपा ने भी कांग्रेस की तरह से हाई कमान स्तर पर फैसले करने षुरू कर दिये है.

छत्तीसगढ में रमन सिंह जब मुख्यमंत्री थे तब उनके खिलाफ भाजपा में विद्रोह था. भाजपा ने चुनाव के पहले अपने 3 बार के मुख्यमंत्री रमन सिंह का हटाना उचित नहीं समझा जिसके परिणामस्वरूप रमन सिंह चुनाव हार गये. अब भाजपा अपने विद्रोह करने वाले नेताओं की नाराजगी को खत्म करने के लिये हाई कमान स्तर पर फैसले लेने लगी है. भाजपा ने अप्रत्याषित रूप ऐसे नेताओं के नामों का चयन करने लगी है जो विवादों से निपटने सफल होते है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को हटाकर भाजपा ने अपने नेताओं को संदेष देने का काम किया है कि विद्रोह को दबाया जायेगा. भाजपा में भी अब विद्रोह के स्वर पनपने लगे है. जिनको दबाने के लिये अब पार्टी पर हाईकमान के फैसले थोपे जाने लगे है.

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