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दोहरा मापदंड : निधि का मूड क्यों उखड़ा था- भाग 2

विहान के कहने पर प्राची ने हंस कर कहा, ‘‘अपनी पत्नी को लिए बगैर…जा पाएंगे आप…’’

‘‘भाभी, वह तो गुस्से में अकेले ही चल पड़ी थी, मम्मी के कहने पर मैं साथ आया हूं. सोचा तो यही था कि बाहर ही छोड़ चला जाऊंगा पर मन नहीं माना…’’ ‘‘मन इसलिए नहीं माना क्योंकि निधि दीदी से आप बहुत प्यार करते हैं.’’

‘‘यह बात निधि को समझनी चाहिए.’’ प्राची के साथ प्रभादेवी ने भी विहान को मनाने की कोशिश की, ‘‘दामादजी, अगर निधि की इस हरकत के लिए हम लोगों को जिम्मेदार नहीं मानते हैं तो  2 दिन रुक जाइए.’’

‘‘मम्मी, आप की बात मैं टालना नहीं चाहता हूं, लेकिन अभी मु झे मत रोकिए.’’ विहान ने घर जा कर अपनी मां से प्रभादेवी की बात कराई, वे भी आजकल की पीढ़ी के असंयम से आहत थीं. इतना जरूर साफ हुआ कि ससुराल में निधि का स्थान सुरक्षित है. लेकिन निधि कहीं न कहीं सामंजस्य बिठाने में नाकाम हो रही थी. निधि की सास ने यह भी माना कि उन्हें निधि को अपने परिवेश में ढालने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. निर्णय हुआ कि उसे कुछ दिन मायके में रहने दिया जाए, शायद एकदूसरे से दूर हो कर सभी अपनीअपनी चूक का आकलन कर पाएं.

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एक हफ्ता निकल गया लेकिन निधि ने वापस जाने की कोई बात नहीं की, न ही विहान का फोन आया. इधर, प्रभादेवी अपने घर में निधि के बढ़ते हस्तक्षेप से परेशान थीं. कारण था घर की बहू प्राची का घर में बढ़ता कद. इतवार के दिन प्रभादेवी को चाय बनाते देख निधि पूछ बैठी, ‘‘मम्मी, भाभी क्या अभी तक सो रही हैं?’’

‘‘हां, क्यों?’’

‘‘मम्मी, आप में इतना धैर्य कैसे है? मेरी सास होतीं तो 8 बजे के बाद से ही उन की चिकचिक शुरू हो जाती.’’

‘‘तुम क्या चाहती हो, मैं भी तुम्हारी सास की तरह संकीर्ण हो जाऊं? जिस वजह से तुम अपनी ससुराल में परेशान हुई हो, वह वजह मैं अपनी बहू के लिए पैदा करूं? वैसे भी आज इतवार है. एक ही दिन मिलता है जब वे दोनों अपनी नींद पूरी कर पाते हैं. वरना एक हफ्ते से तो तुम अपनी भाभी के हाथ की बनी सुबह की चाय पी ही रही हो. तुम कितने बजे उठती हो?’’ मां के सवाल पर वह सकपका गई थी. कुछ बोलते नहीं बना था. क्या कहती. वह तो रोज ही 8 बजे के बाद उठती है. निधि महसूस कर रही थी कि मां अकसर अपनी बहू का पक्ष ले कर उस की कार्यशैली से तुलना कर देती थीं. और प्राची थी भी तो घर की धुरी. उसे देख कर निधि को विश्वास नहीं होता था कि ये वही प्राची भाभी हैं जो घर के कामों में अनगढ़ थीं.

लेकिन, एकएक काम प्रभादेवी से पूछ कर करने की कला ने, आज उन्हें कामकाज में इतना माहिर कर दिया कि अब प्रभादेवी उन से सलाह ले लेती थीं. निधि को यह भी लग रहा था कि मां बहू के आगे बेटी को वह स्नेहदुलार नहीं दे रही हैं जो पहले देती थीं. एक दिन तो हद ही हो गई. कमरे में फैले सामान को देख कर उन्होंने प्राची की सुघड़ता का उदाहरण दे डाला. निधि को यह बात इतनी चुभी कि वह अब बातबात पर प्रभादेवी को सुना देती कि प्राची जब इस घर आई थी तो उसे कुछ भी नहीं आता था. आज भी वह उस डिनर की याद कर हंस रही थी जब प्राची ने कटी भिंडी धो डाली थी. निधि के उस किस्से को याद दिलाने पर कोई मुसकरा नहीं सका. लेकिन प्राची हंस दी थी, ‘‘दीदी, आप बिलकुल ठीक कह रही हैं. आज सोचती हूं, अगर मां की हिदायतें और सीख न होती तो मेरा क्या होता? होस्टल में रहने के कारण काम तो सीखा ही नहीं था.’’

‘‘इस सिखाईपढ़ाई का फायदा तब है जब किसी में सीखने की लगन हो. तुम मेरे प्रयास को टोकाटाकी मान कर चिढ़ती तो क्या होता?’’ प्रभादेवी ने अपनी बहू प्राची की बात का जवाब दिया तो निधि सम झ गई कि ये सारे वार्त्तालाप किसे सुनाए जा रहे हैं. निधि का प्राची पर किया वार अकसर उलट कर उसी को घायल कर जाता. प्राची और साकेत के अच्छे व्यवहार के बावजूद, निधि को मायके में एक घुटन सी होने लगी थी. खुद को उपेक्षित महसूस करते हुए निधि ने खुद को अपने कमरे में सीमित कर दिया पर प्राची उसे अकेले नहीं रहने देती थी. आज भी वह उसे जबरदस्ती कैरम खेलने के लिए बुलाने आ गई थी.

‘‘दीदी, आप यहां अकेले कमरे में क्या कर रही हैं, बाहर आइए न,’’ कैरम की गोटियां पकड़े प्राची को देख कर निधि अपने मन में होने वाले आत्ममंथन को रोक नहीं पाई. वह सोचती कि कैसे प्राची सब के साथ समय बिता लेती है. वह तो अपनी ससुराल में अपने कमरे तक ही सीमित रहती है. जब रागिनी घर आती है तो औपचारिक बातचीत के बाद वह अकसर अपने कमरे में चली जाती है. उस का मानना है कि हर लड़की अपने मायके में अपनी मां से मिलने आती है. अगर प्राची भाभी भी ऐसा सोचतीं, तो क्या इस घर में 2 दिन भी रहना मुमकिन हो पाता? बैठक में रखी उस की सालों पुरानी जीती शील्ड उसे, ससुराल की अलमारी का वह कोना याद दिला देती, जिस में रागिनी के गायन प्रतियोगिता में मिले प्रशस्तिपत्र को हटा कर उस ने अपनी सहेली का दिया फोटोफ्रेम रख दिया था. उस वक्त सास की दर्ज आपत्ति से निधि ने आहत हो कह दिया कि यह घर बस कहने को अपना है. भावनात्मक जुड़ाव के नाम पर कबाड़ इकट्ठा करना बेवकूफी है. उस वक्त सास को दिए जवाब से उसे आत्मसंतुष्टि मिली थी. जाने क्यों आज आत्मग्लानि से आंखें भर आईं.

करवट बदलती निधि की आंखों में नींद नहीं थी तो उठ कर वह प्राची के कमरे की ओर गई. प्राची और साकेत निधि को देख कर अचकचा गए तो वह संकोच में घिर गई कि नाहक ही वह यहां चली आई.

‘‘मैं बाद में आऊंगी,’’ कह कर वह चली आई.

‘‘अरे, बाद में क्यों, अच्छे मौके पर आई हो. मैं और साकेत डिसाइड नहीं कर पा रहे थे कि महाबलेश्वर जाएं या खंडाला?’’

‘‘आप लोग घूमने जा रहे हैं?’’

‘‘हां, निधि, बहुत दिन हो गए, कहीं निकले नहीं, सोचा वीकेंड का फायदा उठा लें.’’ कमरे में वापस आई निधि का मन खराब हो चुका था. 2 दिन बाद ही तो उस का जन्मदिन आने वाला है लेकिन यहां किसी को याद तक नहीं है. सब अपनीअपनी दुनिया में मस्त हैं और विहान… इतने दिनों से उस ने फोन तक नहीं किया, कहीं कल भी फोन न आया तो? निधि की आंखें भर आई थीं. आधी रात तक करवटें बदलती बेचैन निधि कब सोई, पता ही नहीं चला. अलसुबह दरवाजे पर दस्तक होने पर बाहर आई तो वहां कोई नहीं दिखा. अलबत्ता चाय की ट्रे नीचे रखी दिखी. शायद प्राची भाभी जल्दी में थीं. सोचते हुए उस ने ट्रे उठाई. 2 कपों में रखी चाय पर उस का ध्यान गया. 2 कप चाय? वह सोच ही रही थी कि नजर सामने आ खड़े हुए मुसकराते विहान पर पड़ी. हाथों में लाल गुलाब के फूलों का गुलदस्ता और चेहरे पर सहज मुसकान थी.

‘‘हैप्पी बर्थडे, निधि,’’ विहान के बोलते ही, ‘जन्मदिन मुबारक हो’ के हंगामे के साथ प्राची और साकेत आ गए थे. प्राची बोल रही थी, ‘‘दीदी, विहानजी ने हमें सख्त ताकीद कर दी थी कि आप को पहली बर्थडे विश वही करेंगे.’’

निधि की आंखें आवेग से भर आई थीं जिसे देख कर प्रभादेवी सम झ गईं कि सख्त बर्फ के पिघलने का समय आ गया है. उन के इशारे पर सभी उन्हें अकेला छोड़ कर चले गए थे.

‘‘निधि क्या अब भी नाराज हो?’’ विहान ने निधि के हाथ को पकड़ते हुए कहा, तो वह रो पड़ी. इतने दिनों का गुबार आंसुओं के रूप में बहता गया.

 

नींबू पानी पीने से होते हैं कई तरह के फायदें

अगर नींबू पानी को देसी कोल्ड्रिंक कहा जाए तो गलत नहीं है.  गर्मियों में ज्यादातर लोग नींबू पानी पीना पसंद करते हैं. इस पानी में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और मिनरल भरपूर मात्रा में पाया जाता है. यह पेय जल सेहत और सौदर्य के लिए फायदेमंद होता है.

बता दें कि नींबू पानी पीने के कई फायदे होते हैं जो आपके सेहत के लिए फायदेमंद होते हैंं. नींबू विटामिन सी का सबसे अच्छा स्त्रोत होता है. यह हमारे खराब मसूड़ों को मजबूत बनाता है. गले के लिए भी फायदेमंद है.

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इसके साथ ही यह हमारे पाचन क्रिया को भी मजबूत बनाता है. कैंसर जैसे खतरनाक बीमारी से भी नींबू पानी हमें बचाता है. तनाव कम करता है तथा हाई ब्लड प्रेशर की समस्या से छुटकारा देता है.

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नींबू पानी पीने से हमे किडनी में होने वाली स्टोन से छुटकारा मिलता है. यह हमारे शरीर को रीहाइड्रेट करता है. इसके साथ ही यह हमारे पाचन क्रिया को भी मजबूत बनाता है. इससे हमें कई तरह कि बीमारियों से राहत मिलता है. नींबू पानी की आदत हमें अपने रोजमर्रा के जीवन में डाल लेनी चाहिए. इससे हमें कई तरह से लाभ मिल जाता है.

दोहरा मापदंड : निधि का मूड क्यों उखड़ा था- भाग 1

प्राची उफान लाते दूध को संयम से उबाल रही थी. तभी कौलबेल की आवाज आई. जल्दी से गैस बंद कर के वह बाहर की ओर भागी, तब तक दरवाजा सास प्रभादेवी ने खोल दिया था. सब की आश्चर्य का केंद्र बनी निधि दनदनाती अंदर आई. वह इतने आवेग में थी कि पीछे चले आ रहे विहान की मौजूदगी की तरफ किसी का ध्यान ही नहीं गया. यों सुबहसुबह बिना किसी सूचना के बेटीदामाद का अचानक आना किसी के गले नहीं उतरा. कारण था, निधि का उखड़ा मूड और विहान की बेचारगी भरे हावभाव. ऐसे में प्रभादेवी का अनायास अचानक आने का कारण पूछना, निधि को आहत कर गया.

‘‘मम्मी, अपने घर आई हूं, किसी और के नहीं.’’ उस वक्त घर के दामाद विहान ने बात संभाली, ‘‘निधि आप लोगों से मिलना चाहती थी. कार्यक्रम इतनी जल्दी में बना कि खयाल ही नहीं रहा कि बता पाते.’’

विहान की बात का समर्थन घर की बहू प्राची ने किया, ‘‘अरे, सरप्राइज देने में जो मजा है, वह बता कर आने में कहां है.’’

निधि के तेवर और उखड़े मूड से प्रभादेवी बेटीदामाद के घर आने से होने वाली रौनक को दिल से महसूस नहीं कर पा रही थीं. प्रभादेवी का संदेह जल्दी सही साबित भी हो गया, जब चाय पीने के बाद ही विहान ने अपने घर वापस जाने की पेशकश की तो निधि ने उन्हें नहीं रोका. निधि का विहान के प्रति रूखा व्यवहार प्रभादेवी की बरदाश्त से बाहर था, ‘‘क्या बात है निधि, कुछ हुआ है क्या तुम लोगों के बीच में.’’ प्रभादेवी की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि विहान और निधि के बीच आरोपप्रत्यारोप की ऐसी बरसात हुई कि प्रभादेवी ने अपना सिर पकड़ लिया.

मनमुटाव की वजहें छोटीछोटी थीं. मसलन, विहान की मां द्वारा हर बात पर निधि को टोका जाना. निधि के कथनानुसार, विहान का उसे सम झने की कोशिश न करना और घर की हर छोटीबड़ी जिम्मेदारियों के लिए उसे तलब करना… ‘‘मम्मी, कोई बातबात पर मु झे टोके, मैं बरदाश्त नहीं कर सकती हूं. मेरी अपनी जिंदगी, अपना वजूद है. मैं किसी के लिए खुद को नहीं बदल सकती हूं.’’

निधि शिकायत कर रही थी तो वहीं विहान भी पीछे नहीं था, ‘‘मम्मी, आप ही बताएं, मैं क्या करूं. मेरी मम्मी का अपना तरीका है काम करने का, वे निधि को कुछ सिखाने की कोशिश करती हैं तो यह चिढ़ जाती है. निधि को वहम है कि मम्मी इसे पसंद नहीं करती हैं जबकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है. इतने सालों से मम्मी घर चला रही हैं तो उन के अनुभवों की थोड़ी तो कद्र हो. मेरी बहनें ये सोच कर मायके आती हैं कि भाभी से बोलबतिया कर कुछ हंसीमजाक करेंगी. पर निधि उन से घुलमिल नहीं पाती है. पहले लगता था कि दूसरे घर से आने के कारण यह हमारी फैमिली के साथ एडजस्ट नहीं हो पा रही है लेकिन अब ऐसा लगता है कि निधि जानबू झ कर हम सब के साथ एडजस्ट नहीं होना चाहती है. मम्मी का कुछ भी बतानासिखाना इसे टोकाटाकी लगता है, क्या यह सही है?’’

जब दोनों जीभर कर बोल लिए तब प्रभादेवी और प्राची ने आपसी वार्त्तालाप के जरिए निधि को सम झाने की कोशिश की, ‘‘निधि, क्या मैं ने टोकाटाकी नहीं की थी प्राची के साथ…’’ प्रभादेवी की टिप्पणी पर प्राची ने तुरंत कहा, ‘‘मम्मी, आप की टोकाटाकी ने ही मुझे काम का सलीका सिखाया है. मेरा मानना है कि बड़ों के पास तजरबों का खजाना होता है, जिसे वे अपनों पर ही लुटाते हैं. ऐसे में हमें उन के तजरबों का फायदा उठाना चाहिए. मैं आप की टोकाटाकी को सकारात्मक नहीं लेती तो नुकसान अपना ही करती.’’ प्राची का बोलना था कि निधि उसी वक्त पांव पटकते हुए वहां से चली गई. विहान अपने घर के उल झे मसलों को यों खुलेआम चर्चा का विषय बनते देख कर शर्मिंदा हो रहे थे. ऐसे वातावरण से विहान जल्दी निकलना चाहते थे. उन्होंने प्राची से कहा, ‘‘भाभी, आज मैं 10 बजे तक निकल जाऊंगा.’’

व्यापार : कर्नल साहब का समय कैसे कटता था

चीन से लड़ाई के बाद भारतीय फौज में बहुत जोरों से भरती हो रही थी क्योंकि चीन ने 1962 में हमें हमारी औकात बता दी थी. गांवगांव से चंदा इकट्ठा किया जा रहा था. औरतें अपने जेवर उतार कर दे रही थीं. हम भी 12वीं में फेल हो गए थे. जोश आया, फौज में भरती हो गए. ट्रेनिंग बहुत मुश्किल थी. दिनरात भागना, दौड़ना, पीटी, हथियारों की टे्रनिंग, ऊपर से कविता की तरह गालियां. हम ने जैसेतैसे कामयाबी के साथ ट्रेनिंग पूरी कर ली और भागदौड़ की मुसीबत खत्म हो गई. उस जमाने में हमारा वेतन 80 रुपए था जो ट्रेनिंग पास कर के सिपाही बनने के बाद 150 रुपए हो गया. खाना, रहना फ्री. इस बीच, बहुत लोगों को चोटें लगीं, कुछ लोग नौकरी छोड़ कर भाग गए.हमारे गांव से थोड़ी दूर का एक जवान था जिस का नाम था ताहिर हुसैन. वह रोज मेरे पास आ कर एक ही बात दोहराता, ‘जैन साहब, मुझे फौज की नौकरी नहीं करनी है, मेरा एक निवेदन बना दो.’ मैं उसे टाल देता. एक दिन जब उस ने बहुत जिद की तो मैं ने उस का निवेदन टाइप कर दिया.

वह उसे ले कर कर्नल साहब के पास चला गया. कर्नल साहब ने उसे बहुत समझाया, ‘फौज में ट्रेनिंग के दौरान तो बहुत तकलीफ होती है लेकिन ट्रेनिंग के बाद आराम ही आराम. नौकरी खत्म होने के बाद पैंशन, बच्चों की पढ़ाई की सुविधा, रहने के लिए आवास फ्री. और क्या चाहिए.’ ताहिर हुसैन उन की बात बहुत गौर से सुनता रहा. फिर बोला, ‘‘सर, इस नौकरी से तो अच्छा है आदमी सड़क पर मूंगफली बेच ले.’’ उस की इस हीनता के भाव पर कर्नल साहब को इतना गुस्सा आया कि उस के डिस्चार्ज आवेदन को मंजूर कर लिया और उसे 24 घंटे के भीतर कैंटोन्मैंट क्षेत्र से बाहर कर दिया गया. कई साल तक मेरी उस से मुलाकात नहीं हुई. एक बार जब मैं अपने गांव गया तो देखा वह फटी हुई लुंगी पहन कर अपनी बकरी बेच रहा था. बातचीत में उस ने फौज की सरकारी नौकरी छोड़ने पर अफसोस जाहिर किया.

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समय गुजरता गया, मैं हवलदार के बाद नायब सूबेदार बन गया. जब अपने गांव गया तो क्या देखता हूं कि गांव के सारे घरों में लंबेलंबे बांस पर एक जाफरानी झंडा लहरा रहा है. उस झंडे पर एक पीर साहब का नाम लिखा था. गांव को दूर से देखने पर लगता था कि झंडों का गांव है. गांव में पीर साहब की बड़ी धूम थी. जब मैं ने झंडों का राज जानना चाहा तो मुझे बताया गया कि जब संसार का अंत होगा अर्थात जब प्रलय आएगी तो संसार के सारे लोग एक मैदान में इकट्ठा होंगे. वहां सब का हिसाबकिताब किया जाएगा. जिस के कर्म अच्छे होंगे उसे खुशी मिलेगी और जिस के कर्म बुरे होंगे उसे दुख होगा और हमसब जो पीर साहब के मुरीद हैं अर्थात दीक्षा ले चुके हैं, इसी झंडे के नीचे एक जगह प्रलय के मैदान में खड़े होंगे. हमारे पीर साहब उस परमपिता परमेश्वर, जिसे कोई मानता है, कोई नहीं, के दरबार में गिड़गिड़ा कर हमसब के बुरे कर्मों की माफी मांगेंगे और हमें मुक्ति मिल जाएगी. ये सब मुझे बहुत बुरा लगा क्योंकि धर्म के नाम पर अंधविश्वास इतना हावी था कि कोई कुछ सुनने को तैयार नहीं. लेकिन मैं क्या कर सकता था. आस्था का मामला था. मेरी छुट्टियां खत्म हो गईं और मैं गांव से अपनी ड्यूटी पर चला गया.

फौज में हर साल 2 महीने की छुट्टी मिलती है. हर फौजी अपने मांबाप के पास गांव जाता है. इस बार छुट्टी मिली तो मैं फिर गांव आया. अब एक नया माहौल था. गांव के चारों तरफ पहले ही से शहीदों के मजार थे. उन के नाम किसी को मालूम नहीं थे. बस शहीद बाबा की मजार कह देना काफी है. ये कौन सी लड़ाई में मारे गए और शहीद हो गए, गांव में किसी को भी मालूम नहीं, लेकिन हैं शहीद बाबा. मैं अपने गांव का इतिहास जानता हूं, यहां कोई लड़ाई नहीं हुई है. फिर शहीद बाबा कहां से आ गए, ऐसा आप बोल नहीं सकते. पीर साहब ने सब शहीदों को स्वप्न में देखा और उन के शहीद होने की तारीख भी बता दी, अब मेरे गांव में उर्स होना लाजिमी था. पूरे गांव के हिंदूमुसलमानों ने चंदा इकट्ठा किया. बनारस से कव्वाल बुलाए गए. हर मजार पर उर्स हुआ. औरतों ने अपनी मुरादों के धागे बांधे. मैं ने भी चंदा दिया और उर्स में शामिल हुआ. रात में कव्वाली सुनी. पीर बाबा को झूमते देखा. उन के साथ उन के शिष्य तो पूरी तरह नाच रहे थे. अब पीर साहब के चमत्कार का दौर शुरू हुआ. हिंदू समाज और मुसलिम समाज की औरतों के बीच यह चमत्कार हुआ –

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‘‘अमुक औरत को बाबा की कृपा से लड़का हुआ.’’

‘‘अमुक औरत का दूध नहीं उतरता था, बाबा के हाथ लगाते ही दूध उतर आया.’’

‘‘अमुक आदमी की भैंस गायब थी, बाबा के आशीर्वाद से भैंस मिल गई.’’

पीर साहब पैदल नहीं चलते थे. जहां जाते पालकी में बैठ कर जाते. उन के मुरीद यानी शिष्य उस पालकी को कंधा देते. और जो शिष्य कंधा दे देता, उस की मुक्ति की गारंटी थी. अब मैं रिटायर हो चुका था और गांव आ गया. वह समय चुनाव का था. गांव में चुनाव एक आंधी की तरह आता है, लोगों में दुश्मनी हो जाती है, लाठियां चलती हैं. किसीकिसी के लिए यह त्योहार होता है, घूमने के लिए जीप, मोटरसाइकिल, नई धोती, नया कुरता और हाथ में पार्टी का झंडा. राजनीतिक पार्टियों की सोच अलग होती है. उन्होंने सोचा, क्यों न पीर साहब को साध लिया जाए. जहांजहां उन के झंडे लगे हैं वहां वोट उन का. पीर साहब भी कोई कम होशियार नहीं थे. उन्होंने एक मसजिद और मदरसे के लिए पैसा मांग लिया. थोड़ाबहुत पैसा नेताओं को मिल गया, बाकी पैसे से उन का घर बन गया. मसजिद या मदरसा नहीं बना.

गांव में मैं खाली बैठा था, कुछ काम नहीं. बस, चाय, भोजन का चक्कर और चुनाव के बारे में बहस. कभीकभी मारपीट की नौबत भी आ जाती. मैं ने सोचा, क्यों न कोई पार्टी जौइन कर ली जाए या फिर पीर साहब का शिष्य बन जाया जाए. पार्टी में जाना अपने बस की बात नहीं लगी क्योंकि सारी पार्टियां एक ही जैसी थीं. उन में जो लोग थे वे अच्छे नहीं थे. यह कहा जाए तो अच्छा होगा कि सारे दबंग थे. कोई भी गलत काम करना उन के लिए आसान था, पैसा कैसे भी कमाओ. काफी लोग दलबदलू थे. आज इस पार्टी में, कल उस पार्टी में. उन्हें देश से कोई प्रेम नहीं. बस, प्रेम है तो अपनी पार्टी से. पार्टी अगर कहती है कि अमुक गांव में आग लगा दो, तो आग लगाना कुल 10 मिनट का काम. जब मैं ने देखा कि किसी भी पार्टी में देशप्रेम नहीं है तो मैं ने पीर साहब का शिष्य बनने का फैसला किया. शुगर की बीमारी से मेरी आंख की रोशनी खत्म हो गई है. दिन में थोड़ाथोड़ा नजर आता है, रात में बहुत कम. मैं रात के समय पीर साहब के पास गया. पीर साहब पीले रंग का एक ही वस्त्र पहने हुए थे, आधा लुंगी की तरह और आधा चादर की तरह. सिर पर बड़ेबड़े बाल कंधों तक लटके हुए. लंबी दाढ़ी, पांव में लकड़ी की साधुओं वाली खड़ाऊं. मैं उन के सामने झुक गया. उन्होंने कहा, ‘‘सुबह नमाज के बाद मैं लोगों को मुरीद यानी शिष्य बनाता हूं. आप सुबह नहाधो कर और साफसुथरे कपड़े पहन कर आ जाना.’’

सुबह को मैं ने जैसा पीर साहब ने कहा था, वैसा ही किया और उन के सामने जा कर बैठ गया. मेरा नंबर आया और उन्होंने मुझे अंदर बुलाया. वे (पीर साहब) कुरान की आयतें पढ़ने लगे. मैं उन्हें गौर से देखता रहा और फिर मेरे दिल ने उन्हें पहचान लिया. हठात मैं ने उस के गाल पर एक जोर का तमाचा जड़ दिया. यह वही फौज से नाम कटा कर भागा हुआ ताहिर हुसैन था. मैं ने जब उसे तमाचा मारा तो उस ने भी मुझे पहचान लिया और फिर सारे शिष्यों को बाहर भगा कर कमरे का दरवाजा बंद कर लिया. ‘‘जैन साहब,’’ वह बोला, ‘‘यह मेरा व्यापार है, व्यापार. हमारे देश में धर्म का बाजार सजता है और उस बाजार में बहुत सारे व्यापारी होते हैं, जिस में हर धर्म के लोग शामिल हैं. आप ने मुझे तमाचा मार कर मेरे व्यापार को नुकसान पहुंचाया है. अब मैं दरवाजा खोलूंगा, आप मेरे पांव पकड़ कर माफी मांगेंगे, वरना मैं इसी गांव में आप का कत्ल करवा दूंगा. आज पूरा प्रशासन मेरे हाथ में है, हर पार्टी का नेता मेरे साथ है.’’ मैं उसे ऐसे ही देख रहा था जैसे वह आद%A

मेरे बैंक अकाउंट में जितने भी पैसे आते हैं उन्हें भैया से बिना पूछे या उन्हें बिना बताए खर्च करने की छूट नहीं है, मैं क्या करूं ?

सवाल

आज तक मेरे जीवन के सभी आर्थिक फैसले उन्होंने ही लिए हैं. 3 महीने पहले ही मैं नौकरी में लगा हूं. मैं 22 वर्ष का हूं. मेरे बैंक अकाउंट में जितने भी पैसे आते हैं उन्हें भैया से बिना पूछे या उन्हें बिना बताए खर्च करने की छूट नहीं है. मैं आजादी चाहता हूं. मैं इस मुश्किल से कैसे निकलूं?

जवाब

आप अपने भैया से बात कीजिए. उन्हें बताइए कि आप अब बच्चे नहीं हैं और आप को अपने आर्थिक निर्णय लेने की पूरी छूट होनी चाहिए. हो सकता है वे थोड़े आहत हों, लेकिन यह आवश्यक है कि आप अपने फैसले खुद लें. हां, आप को शुरूशुरू में थोड़ी परेशानी हो सकती है अपने अकाउंट्स संभालने और खर्च संभालने में, पर कभी न कभी तो आप को यह सब सीखना ही होगा. यकीनन आप के भैया भी यह सब समझेंगे. मन में कुंठा लिए बैठे रहने से बेहतर है कि आप सुस्पष्ट तरीके से बातचीत करें.

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प्यार का दुश्मन छोटा घर

मुरादाबाद की रहने वाली छाया की शादी दिल्ली के रहने वाले राजन के साथ हुई थी. उसकी मौसी ने इस शादी में मध्यस्थ की भूमिका निभायी थी, जो दिल्ली में ही ब्याही हुुई थीं. निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की छाया मुरादाबाद से ढेर सारे सपने लेकर दिल्ली में आयी थी. दिल्ली देश की राजधानी है. दिल्ली दिलवालों की नगरी है. यहां बड़ी-बड़ी कोठियां, चमचमाती चौड़ी सड़कें, बड़े-बड़े पार्क, दर्शनीय स्थल, राष्ट्रपति भवन, इंडिया गेट और पता नहीं किस-किस के बारे में उसने सुन रखा था. मगर ससुराल पहुंच कर छाया के सारे सपने छन्न से टूट गये. वो एक हफ्ते में ही समझ गयी कि यहां वह रह नहीं पाएगी. दरअसल दिल्ली तो बहुत बड़ी थी, मगर उसका घर बहुत छोटा था. इतना छोटा कि उसको अपने लिए एक घंटे का एकान्त भी यहां नहीं मिलता था. मुरादाबाद में छाया के पिता का पांच कमरों वाला बड़ा पुश्तैनी मकान था. घर में पांच प्राणी थे और पांच कमरे, सब खुल कर रहते थे, किसी को प्राइवेसी की दिक्कत नहीं थी. मगर यहां दो कमरों के किराये के घर में सात प्राणी रहते थे – छाया, राजन, उनके माता पिता, दादा दादी और राजन का छोटा भाई. घर में एक बाथरूम था, जिसका इस्तेमाल सभी सातों प्राणी करते थे. सुबह पहले सारे मर्द निपट लेते थे, उसके बाद औरतों की बारी आती थी.

यहां छाया और राजन को कोई प्राइवेसी उपलब्ध नहीं थी. मां, दादा-दादी तो पूरे वक्त घर में ही बने रहते थे. पिताजी भी बस सौदा-सुल्फ लेने के लिए ही बाहर जाते थे, बाकी वक्त चबूतरे पर कुर्सी डाल कर बैठे रहते थे. रात के वक्त घर की सारी औरतें एक कमरे में सोती थीं, और मर्द दूसरे कमरे में. ऐसे में छाया को पति की नजदीकियां भला कैसे मिल सकती थीं? दोनों दूर-दूर से एक दूसरे को बस निहारते रहते थे. शादी को महीना बीत रहा था, अभी तक उनके बीच शारीरिक सम्बन्ध भी नहीं बन पाया था. सुहागरात क्या होती है, छाया जान ही नहीं पायी. एक महीने में ही छाया की सारी खुशियां काफूर हो चुकी थीं, वह टूटने लगी थी, अपने घर वापस लौट जाने का ख्याल दिल में आने लगा था. आखिर ऐसी शादी का क्या मतलब था, जहां पति की नजदीकियां ही न मिल सकें?

राजन के पिता रिटायर हो चुके थे. उनकी थोड़ी सी पेंशन आती थी. राजन एक कोरियर कम्पनी में कोरियर बॉय का काम करता था. उसकी कमाई और पिता की पेंशन से सात प्राणियों का घर चलता था. राजन सुबह नौ बजे का निकला रात आठ बजे थका-हारा घर लौटता था. छाया उसके बिस्तर पर ही खाने की थाली धर जाती थी और वह खाना खाते ही सो जाता था. पत्नी से सबके सामने बातचीत भी क्या करता? उसकी कम्पनी से उसे छुट्टी भी नहीं मिलती थी कि पत्नी को लेकर कहीं घूम आये. छुट्टी लेने का मतलब उस दिन की देहाड़ी हाथ से जाना. वहीं दस लोग उसकी जगह पाने के लिए भी खड़े थे. इसलिए वह मालिक को नाराजगी का कोई मौका नहीं देना चाहता था.

यहां घर में छाया की ददिया सास ने शादी के पंद्रह दिन बाद ही पड़पोते की फरमाइश उसके आगे रख दी थी – ‘बिटिया, पड़पोते का मुंह भी देख लूं तो चैन से मर सकूंगी. भगवान जल्दी से तेरी गोद भर दे, बस…’ उनकी बातें सुन कर छाया को बड़ी खीज लगी. मन चाहा मुंह पर बोल दे कि जब पति-पत्नी को करीब आने का मौका ही नहीं दोगे तो पड़पोता क्या आसमान से टपकेगा? पति के प्रेम को छटपटाती छाया आखिरकार महीने भर बाद ही मां की बीमारी का बहाना बना कर अपने घर मुरादाबाद लौट गयी.

राजन उसको ट्रेन में बिठाने गया तो रास्ते में उसने धीरे से पूछा था, ‘क्या मां सचमुच बीमार हैं?’

छाया उससे मन की तड़प छिपा नहीं पायी, बोली, ‘नहीं, कोई बीमार नहीं है, मगर यहां रह कर अगर तुम्हारा साथ नहीं मिल सकता तो ऐसी शादी का मतलब ही क्या है? इतने छोटे घर में मेरा गुजारा नहीं हो सकता. जब अपना घर ले लेना, तब फोन कर देना, मैं लौट आऊंगी.’

राजन ने सिर झुका लिया. उसकी हालत छाया से अलग नहीं थी, मगर वह भी मजबूर था. दूसरा घर लेकर पत्नी के साथ रहने की उसकी औकात नहीं थी. आखिर घर के बाकी लोगों की जिम्मेदारी भी तो उस पर थी, मगर छाया की बात भी ठीक थी.शादी के बाद से उसकी आंखों से भी नींद लगभग गायब ही है. कई बार सोचता कि छाया को चुपचाप बुला कर छत पर ले जाये, मगर फिर यह सोच कर मन मार लेता कि छत पर ऊपर वाली मंजिल पर रहने वाले सोते हैं. कहीं किसी ने देख लिया तो? कई बार सोेचता कि पत्नी के साथ घूमने जाये, किसी सस्ते से होटल में उसके साथ एकाध दिन बिता ले, मगर उसकी जेब में इतने पैसे ही नहीं होते थे. रोज का आने-जाने का किराया काट कर महीने की पूरी तनख्वाह वह मां के हाथों में रख देता था. आखिर सात प्राणियों का पेट जो भरना था. परिवार की आमदनी का और कोई दूसरा स्रोत भी नहीं था. छाया को ट्रेन में बिठाते वक्त उसकी आंखों में आंसू थे. दिल इस आशंका से कांप रहा था कि पता नहीं अब कभी उसे देख पाएगा या नहीं. और फिर वही हुआ… हफ्ते, महीने, साल गुजर गये, न राजन के हालात सुधरे, न छाया वापस लौटी.

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छोटा घर प्यार में बड़ा बाधक होता है. संयुक्त परिवार हो तो पति-पत्नी के बीच आपसी प्रेमालाप या शारीरिक सम्बन्ध बनाने के मौके बहुत कम होते हैं. ऐसे में दम्पत्ति लम्बे समय तक एक दूसरे की भावनाओं, इच्छाओं और प्रेम को साझा नहीं कर पाते हैं. एक छत के नीचे रहते हुए भी वे अजनबी बने रहते हैं.

घरवालों के सामने बनना पड़ता है बेशर्म

कुछ कपल घर की इस हालत में थोड़े बेशर्म हो जाते हैं और सबके बीच ही अपनी शारीरिक जरूरतें भी किसी न किसी तरह पूरी कर लेते हैं. जैसे अमृता के बड़े भाई और भाभी. अमृता का परिवार दिल्ली के मंगोलपुरी में एक कमरे के छोटे से मकान में रहता है. अमृता, उसकी मां, उसका छोटा भाई और बड़े भाई अनिल और उनकी पत्नी रिचा रात में जमीन पर ही बिस्तर फैला कर एक साथ सोते हैं. कई बार रात में आंख खुलने पर अमृता ने भइया-भाभी को कोने में एक ही कम्बल में हिलते-डुलते देखा है. वह जानती है कि उसका छोटा भाई भी सब देखता है और कभी-कभी मां भी. मगर क्या किया जाए? मजबूरी है. उसकी भाभी रिचा भी जानती है कि कोई न कोई उन्हें देख रहा है. इसीलिए वह हर वक्त शर्मिंदगी में भी डूबी रहती है. जैसे उसने कोई चोरी की है और चोरी करते रंगे हाथों पकड़ी गयी है. वह घर में किसी से भी आंख मिला कर बात नहीं कर पाती है.

सार्वजनिक स्थलों पर ढूंढते नजदीकियां

दिल्ली में कैलाश कौलोनी के पास बसा जमरुद्पुर एक मलिन बस्ती है. यहां गुर्जरों के कई दोमंजिला, तिमंजिला मकान हैं, जिनमें बिहार, यूपी से आये सैकड़ों परिवार किराये पर एक-एक कमरा लेकर रहते हैं. ऐसे मकानों में हर माले के कोने में एक शौचालय और एक स्नानागार होता है, जिन्हें ये सभी परिवार बारी-बारी से इस्तेमाल करते हैं. इन्हीं में एक कमरा सरिता का भी है, जिसमें वह अपनी बूढ़ी सास, पति और दो छोटे बच्चों के साथ रहती है. सरिता और उसके पति को जब सम्बन्ध बनाना होता है तो वह रात में पास के एक पार्क में चले जाते हैं, जहां एक कोने में झाड़ियों के पास अपना काम निपटाते हैं. सरिता के लिए यह डर और शर्मिंदा करने वाला वक्त होता है. कहीं से कोई आ न जाए. कहीं कोई देख न ले. कहीं रात में कुत्ते उनके पीछे न पड़ जाएं. कहीं कोई चौकीदार या पुलिसवाला उन्हें न धर ले. घर में बच्चे जाग कर कहीं उन्हें ढूंढने न लग जाएं. सास की आंख न खुल जाए. पति के सानिध्य में ऐसे तमाम ख्याल सरिता को परेशान किये रहते हैं. मगर पार्क में पति के साथ आना उसकी मजबूरी है, एक कमरा जहां सास और बच्चे सोये हुए हैं, वहां वह पति के साथ हमबिस्तर भी कैसे हो?

बहू पर बुरी निगाह 

कई बार छोटा घर बहू को शर्मिंदगी का ही नहीं, अपराध का शिकार भी बना देता है. ऐसे कई केस सामने आते हैं जब पति की अनुपस्थिति में जेठ, देवर या ससुर बहू के साथ नाजायज सम्बन्ध बनाने की कोशिश करते हैं और कई बार अपने इरादों में कामयाब भी हो जाते हैं. अक्सर बहुएं अपने साथ हुए बलात्कार पर चुप्पी साध जाती हैं या हालात से समझौता कर लेती हैं. घर में अगर बहू-बेटे का कमरा अलग हो, तो इस तरह के अपराध औरतों के साथ न घटें. बेटा-बहू लाख सोचें कि रात के अन्धेरे में चुपचाप सम्बन्ध बनाते वक्त उन्हें कोई देख नहीं रहा है, मगर ऐसा होता नहीं है. कब कौन उन्हें देख ले, कब किसके मन में कुत्सित भावनाएं जाग जाएं कहा नहीं जा सकता.

बच्चों पर बुरा असर

जब घर में एक या दो कमरे हों और घर के सभी प्राणी उन्हें शेयर करते हों तो पति-पत्नी के बीच बनने वाले शारीरिक सम्बन्ध अक्सर घर के बच्चों की नजर में आ ही जाते हैं. आप अगर यह सोचें कि बच्चा सो रहा है, या बच्चा छोटा है कुछ समझ नहीं पाएगा, तो यह आपकी गलतफहमी है. आजकल टीवी और इंटरनेट के जमाने के बच्चे सब कुछ समझते भी हैं और उन्हें दोहराने की कोशिश भी करते हैं. यह बातें बच्चों में उत्पन्न होने वाली आपराधिक प्रवृत्ति की जिम्मेदार हैं. ऐसे ही बच्चे जो बचपन में अपने माता-पिता को शारीरिक सम्बन्ध बनाते देखते हैं, वह अपने स्कूल में अन्य बच्चों के साथ गलत हरकतें करते हैं या लड़कियों को मोलेस्ट करने या उनसे बलात्कार करने की कोशिश करते हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

धर्म की आड़ में

धर्म का काम धर्म के दुकानदारों का पेट भरना है, न कि आम लोगों को सही तरह जीवन जीने की राह सुझाना. भक्ति को भगवान से कुछ पाने का रास्ता न बना कर हमारे प्रवचनकर्ता भक्ति को ही अंतिम लक्ष्य बनाने में बेहद सफल हैं.

एक प्रवचन में बताया जाता है कि भगवान का खुद कहना है कि उन्हें पाने के लिए सब से पहले ??………….?? यानी ब्राह्मïणों के चरणों में बिछ जाएं. वैराग्य पैदा करें यानी जो कमायाधमाया है वह किसी को बांट दें और वह पाने वाला कोई और नहीं, बाह्मïण देवता है. वैराग्य से तुम में धर्म के प्रति प्रेम पैदा होगा, भगवानों की बेसिरपैर की लीलाओं में विश्वास हो जाएगा और उन के कामुक व्यवहार को अनदेखा कर के तुम भगवान के एजेंटों को देते रहोगे.

ये लोग बराबर कहते हैं कि राजनीतिक दल समाप्त हों और वैदिक कार्यक्रम लागू हो, साथ ही, मनुस्मृति की जातिव्यवस्था को संसद, विधानमंडलों, नगर निकायों को हटा कर लागू किया जाए. अर्थात, सारा राजपाठ भगवा तिलकधारियों को सौंप दो, देश का प्रमुख कोई शंकराचार्य हो.

अङ्क्षहदुओं के प्रति विद्वेष भरने को भक्ति के साथ जोड़ कर देशभर में प्रवचनकर्ता देश व समाज की चूलें हिलाने में लगे हैं और उन्हें बहके लोगों का खास समर्थन मिल रहा है. ये भक्ति प्रवाचक अङ्क्षहदुओं को ङ्क्षहदू बस्तियों में रहने देने को गैरधाॢमक बताने लगे हैं. उन का ऐसा कहना खतरनाक है और देश का विभाजन करने वाला भी.

स्वर्गनर्क की कल्पना के जाल बुन कर आम लोगों को बेवकूफ बनाना आज ज्यादा आसान हो गया है क्योंकि अब टीवी, वैबसाइट, ऐप, यूट्यूब, फेसबुक, ट्विटर भी उपलब्ध हैं जिन का इस्तेमाल धर्म के दुकानदार भरपूर कर रहे हैं. उन के प्रवचनों में कहीं भी अनुशासन की बात नहीं होती,  नई सोच की नहीं होती, बचत की नहीं होती, पर्यावरण की नहीं होती, भ्रष्टाचार की नहीं होती, उत्पादकता की नहीं होती, औरतों के प्रति बढ़ते अत्याचारों की नहीं होती. वे सभी दानपुण्य की बात करते हैं.

नया अध्याय : निमिषा को किस बात की परेशानी थी

आज बाहर काफी तेज़ बरसात हो रही है. उमड़घुमड़ कर आते मेघों को देख कर निमिषा का मन घबरा रहा है. बारिश का मौसम उसे पसंद नहीं. सब तरफ छाई घटा, दिन में भी उजाले की जगह अंधियारा और शोर मचाती बरखा बूंदें. पता नहीं लोगों को इस मौसम में क्या पसंद आता है. उसे तो लगता है कि परिवार के सभी सदस्य घर पर सुरक्षित लौट आएं. मुदित तो आ गए हैं, चाय भी पी ली. अब विहा भी आ जाए तो उस की जान में जान आए.

विहा के घर में क़दम रखते ही निमिषा ने पुकारा, “विहा, आज का खराब मौसम देख कर मेरी चिंता बढ़ती जा रही थी. ऐसे में थोड़ी जल्दी निकल आया कर क्लास से.”

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“आप भी कमाल करती हो, मां. जिस मौसम को दुनिया बेहतरीन कहती है, उसे आप खराब कह रही हो,” विहा कंधे उचका कर बोली.

“अच्छा चल, अब चायनाश्ता कर ले. मैं ने कब से तैयारी कर रखी है,” निमिषा रसोई में चली गई. वहीं से आवाज़ दे कर बोली, “आज तेरे मामा जी का फोन आया था. फिर वही बात कि विहा किस चीज़ में इंजीनियरिंग कर रही है.”

“पता नहीं उन्हें कब समझ आएगी मेरी स्ट्रीम,” विहा हंसने लगी.

“उन्हें क्या दोष दूं, वे तो मुझ से 10 साल बड़े हैं, तेरी स्ट्रीम तो मुझे भी समझ नहीं आती,” जीभ काटते हुए निमिशा ने कहा.

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“अच्छा सुनो, जेनेटिक इंजीनियरिंग वह ब्रांच है जिस के द्वारा हम किसी भी प्राणी के शरीर में उपस्थित अरबोंखरबों कोशिकाओं के आनुवंशिक मेकअप को बदल सकते हैं. उन में मौजूद डीएनए को अलगथलग कर के क्लोनिंग भी की जा सकती है,” विहा सरोष कहती गई. उस के उत्साह से इस विषय में उस की रुचि साफ झलक रही थी, “डीएनए तो समझती हो न?” लेकिन निमिषा के चेहरे पर संशय रेखाएं देख कर वह आगे समझाने लगी, “सरल भाषा में कहूं तो डीएनए हमारे अंदर का कैमिकल डाटाबेस होता है. डीएनए का क्रम हर व्यक्ति में भिन्न होता है. जेनेटिक फिंगरप्रिंटिंग या डीएनए फिंगरप्रिंटिंग तकनीक का उपयोग आपराधिक मामलों की गुत्थियां सुलझाने के लिए किया जाता है. इस के साथ ही मातृत्व, पितृत्व या व्यक्तिगत पहचान को निर्धारित करने के लिए इस का प्रयोग होता है. इस पद्धति में किसी व्यक्ति के जैविक अंशों, जैसे रक्त, बाल, लार, वीर्य या दूसरे कोशिका-स्नोतों द्वारा उस के डीएनए की पहचान की जाती है. कुछ समझी मेरी मां,” कहते हुए विहा ने निमिषा के गले में बांहें डाल दीं.

“थोड़ाबहुत”, कहते हुए निमिषा हंस दी. “पर इस सब का फायदा? इंजीनियरिंग के बाद क्या करेगी?”

“मुझे फोरैंसिक फील्ड में जाना है. आपराधिक घटनाओं की जांच और अपराधियों की छानबीन के अलावा क्रौस डीएनए परीक्षण से मृत या लापता व्यक्ति का पता चल सकता है. इस के अलावा बड़ी प्राकृतिक विपदाओं या दुर्घटनाओं के मृतकों की सही पहचान हो सकती है. है न कितना रोचक विषय!”

“आज मांबेटी बातें ही करती रहेंगी या फिर भोजन भी मिलेगा,” पूछते हुए मुदित कमरे में प्रविष्ट हुए.

“पापा, आज मम्मी के ज्ञानचक्षु खोलने की कोशिश कर रही हूं,” विहा बोली, “ताकि अगली बार मामाजी को समझा सकें कि मैं क्या पढ़ती हूं.”

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मुदित, निमिषा और विहा का छोटा सा परिवार हर दृष्टि से सुखी था. इकलौती बेटी विहा को हर सुखसुविधा देने के साथ मातापिता ने अच्छी सीख और संस्कार भी दिए थे. अब बेटी के आत्मनिर्भर होने के दिन करीब थे. फिर उस का विवाह करने के स्वप्न दोनों अकसर देखा करते थे.

“दीदी, मेरी नजर में एक अच्छा रिश्ता है अपनी विहा के लिए. आप कहो तो बात चलाऊं,” निमिषा की छोटी बहन, मनीषा ने फोन पर कहा.

“बात तो चलानी है पर सब से पहले मैं विहा का मन टटोलना चाहूंगी. क्या उस लड़के की एक तसवीर मिल सकती है?” निमिषा ने इधर से कहा.

“हां दीदी, मैं उस की एक पिक तुम्हें व्हाट्सऐप कर दूंगी. अच्छा सा मौका देख कर विहा को दिखा देना. वैसे, मैं ने विहा की पिक उन्हें दिखाई है. उन्हें सुंदर लड़की चाहिए और विहा तो हूबहू तुम पर गई है. जब मां इतनी खूबसूरत है तो बेटी का आकर्षक होना लाजिमी है. मैं तो कई बार हंस भी देती हूं कि शुक्र है विहा तुम पर गई, जीजाजी पर नहीं. मुझे आज भी याद है जब जीजाजी का परिवार तुम्हें देखने आया था तो तुम्हारी सुंदरता पर लट्टू हो गया था. बस, ऐसे ही हमारी विहा भी जहां जाएगी वहां चारचांद लगाएगी. उस का तो रूपलावण्य है भी चांदनी की छटा जैसा. तुम हो गेहुएं रंग की और जीजाजी ठहरे सांवले, जबकि विहा इतनी गोरीचिट्टी कि दूर से चमकती है. उस पर हलकी भूरी कंचे-सी आंखें. बस चश्मा इन आंखों को छिपा देता है. मगर पढ़ने वाली बच्ची है. और फिर चश्मा आजकल आम बात हो गई है,” मनीषा रिश्ते को ले कर काफी सकारात्मक थी.

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“वह सब तो ठीक है पर तुम विहा की बीमारी से परिचित हो. लड़के वालों को इस बारे में बताना भी आवश्यक है,” निमिषा ने अपनी चिंता व्यक्त की.

“बता देंगे दीदी, पहले वे लड़की को पसंद तो कर लें, फिर बता देंगे. वैसे भी, विहा को कौन सी परेशानी होती है अपनी बीमारी से. आप उस का इतना अच्छा खयाल रखती हो, उस के पोषण पर पूरा ध्यान देती हो. इसीलिए तो उसे न एनीमिया है, न कोई और दिक्कत,” मनीषा बोली.

निमिषा को वह घड़ी याद हो आई जब उस ने विहा को जन्म दिया था. कुछ सामान्य लेकिन आवश्यक टैस्ट्स करने पर डाक्टर ने बताया था कि विहा को सिकल सेल बीमारी है. यह एक आनुवंशिक बीमारी होती है, इसलिए निमिषा और मुदित, दोनों के रक्त परीक्षण किए गए. लेकिन आश्चर्य की बात यह रही कि दोनों में से किसी को भी यह बीमारी नहीं निकली. तब डाक्टर ने बताया था कि कई बार हमारे जीन कुछ बीमारियों को पुनरावर्ती जीन के तौर पर सहेजे रहते हैं, और संतान में ये बीमारियां आ सकती हैं.

“आप को इस के पोषण का, खानपान का, दवाइयों का पूरा खयाल रखना होगा. सिकल सेल बीमारी में एनीमिया, थकान, आंखों का कमजोर पड़ना, त्वचा का पीला पड़ना या जल्दी संक्रमित होना जैसे लक्षण होते हैं.” डाक्टर की हिदायत को निमिषा ने अपने पल्ले में गांठ की तरह बांध लिया. विहा की ओर से उस ने कभी कोई लापरवाही नहीं दर्शाई. संभवतया यही कारण था कि विहा की दृष्टि अवश्य कमजोर पड़ी परंतु कोई और लक्षण उस में नहीं पनपे.

शाम को जब विहा अपनी इंजीनियरिंग क्लास खत्म कर के घर लौटी तब निमिषा ने उसे चाय का कप थमाते हुए कहा, “आज मनीषा मासी का फोन आया था. एक अच्छा रिश्ता बता रही है. फोटो भी भेजी है.”

“मां, प्लीज, अभी मेरी इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई और आप लोग मेरी शादी के बारे में सोचने लगे. इतनी जल्दी नहीं मां, पहले मैं अपना कैरियर बनाना चाहती हूं. शादी तो हो ही जाएगी. जहां आप कहोगे, वहां कर लूंगी. लेकिन अभी नहीं. मासी, मामा सब को कह दो, इतनी जल्दी नहीं,” विहा अपनी बात दृढ़ता से रखती हुई बोली.

निमिषा का मुंह उतर गया. किंतु मुदित ने वातावरण संभालते हुए कहा, “ठीक तो कह रही है हमारी बिटिया. अभी केवल 21 वर्ष की तो हुई है. इतनी जल्दी क्या है. एक न एक दिन तो अपने घर हर बेटी को जाना है.”

“तो क्या, यह मेरा घर नहीं, पापा? ऐसी बातें मेरे सामने मत करना. मैं इरिटेट हो जाती हूं,” विहा ने मुदित की बात बीच में ही काट दी.

“ओके, बेटे जी. सौरी, मैं भूल गया था कि मैं एक फेमिनिस्ट से बात कर रहा हूं. वैसे भी इस घर में मैं माइनौरिटी में हूं और महिलाएं मेजौरिटी में,” मुदित की इस बात ने लिविंगरूम में फिर हंसीखुशी का माहौल लौटा दिया.

“ये सब बेकार की बातें छोड़िए और मेरी काम की बात सुनिए. मुझे एक बेहद इंटरैस्टिंग प्रोजैक्ट मिला है. मुझे जेनेटिक फिंगरप्रिंटिंग पर काम करना है और इस के लिए मैं अपनी फैमिली की डीएनए प्रोफाइलिंग करूंगी,” अपने विषय से संबंधित बात पर आते ही विहा अपने चिरपरिचित उत्साह से भर गई.

“फिर अपनी तकनीकी भाषा बोलने लगी यह लड़की. अब क्या करोगी हमारे साथ, यह तो बता दो,” निमिषा ने अपने माथे पर हलकी सी चपत लगाते हुए पूछा.

“कितनी ड्रमेटिक हैं मेरी मां. चिंता मत कीजिए, छोटा सा टैस्ट है. वैसे तो डीएनए सैंपल अधिकतर खून टैस्ट से लिया जाता है परंतु मैं आप के सूई के डर से बखूबी वाकिफ हूं, इसलिए केवल चीक स्वैब टैस्ट करूंगी,” कह कर विहा ने अपने माता और पिता के गालों के अंदर से एक स्वैब घुमाया. “यह बन गया मेरा रैफरेंस सैंपल. अब अपनी लैब में इस के ऊपर परीक्षण करूंगी.” अपने कमरे में आ कर विहा ने अपने गाल के अंदर से भी सैंपल लिया और अपनी किट में संभाल कर रख लिया.

अपने कालेज की लैब में विहा ने रासायनिक श्रंखला अभिक्रिया द्वारा विशिष्ट जैली समान माध्यम से तीनों रैफरेंस सैंपलों का अध्ययन आरंभ कर दिया. फिर एक्सरे की पद्धति से तीनों सैंपलों की जांच शुरू कर दी. वह रीडिंग लेती जा रही थी. लेकिन जैसेजैसे उस का परीक्षण बढ़ता जा रहा था वैसेवैसे ही उस की विभ्रांती भी. उस का डीएनए केवल उस की मां से मेल खा रहा था, पिता से नहीं.

“ऐसा कैसे हो सकता है,” सोचती हुई उस ने कई बार जांच की. लेकिन जब हर बार यही निष्कर्ष सामने आया तो विहा का माथा ठनका. “क्या मेरे पिता मेरे जैविक पिता नहीं हैं,” सोच कर उस का सिर घूमने लगा. यह कौन सा गड्ढे पर पड़ी मिट्टी कुरेद दी उस ने जिस में से कीड़े बाहर निकलने लगे. संभवतया यही उस के सिकल सेल बीमारी का आनुवंशिक कारण हो, वह बीमारी जो उस के माता या पिता को है ही नहीं. इस के पीछे छिपे रहस्य का परदाफाश करने के लिए विहा तड़प उठी. उस ने ठान लिया कि वह अपनी मां से सचाई उगलवा कर रहेगी.

जब विहा घर लौटी तो उस के सिर में दर्द था. उतरा हुआ चेहरा देख कर निमिषा ने पूछा, “क्या हुआ विहा, तबीयत ठीक नहीं है?”

विहा अपनी मां से साफ शब्दों में बात करना चाहती थी किंतु इतनी बड़ी बात कैसे कहे. हिचकिचाहट ने उस की जीभ पर ताला डाल दिया. “हां, सिरदर्द है,” बस, इतना ही कह पाई, फिर पूछा, “पापा कहां हैं?”

“उन्हें अचानक नागपुर जाना पड़ा तुम्हारी बूआ के पास. तुम्हारे फूफा जी को दिल का दौरा पड़ा है. उन्हीं की मदद के लिए गए हैं,” कह कर निमिषा रसोई की ओर चल दी, “एक कप गरमागरम चाय बना कर देती हूं. तेल मालिश करूंगी, अभी तेरा सिरदर्द ठीक हो जाएगा.”

पापा नागपुर गए हुए हैं, यह बात सुन कर विहा ने यह स्वर्णिम अवसर गंवाना न चाहा. पापा घर पर नहीं है, ऐसे में मान से साफ बात करने पर हो सकता है वे असली बात पर कुछ रोशनी डाल सकें, सोचते हुए विहा बोली, “याद है, मां, उस दिन मैं ने हम तीनों के चीक स्वैब से रैफरेंस सैंपल लिए थे. उन का पूरा निष्कर्ष अब सामने आ गया है और मेरा जेनेटिक प्रोफाइल तैयार हो गया है. आप का और मेरा सैंपल पौजिटिव आया. परंतु पापा के साथ मेरा सैंपल नैगेटिव आया. यह कैसे हो सकता है, कुछ बता सकती हो आप?” विहा बेसाख्ता कहती चली गई. उस की आवाज में कोई आक्रोश नहीं था किंतु उस की नजर अवश्य दोषारोपण कर रही थी.

निमिषा चाय का कप हाथ में लिए बुत सी खड़ी रह गई. उस का चेहरा राख़ हो गया. कोई उत्तर देते न बना. कुछ अस्फुट शब्द उस के मुंह से निकले परंतु उन का मर्म विहा को समझ नहीं आया.

“क्या कह रही हो, साफसाफ कहो,” विहा ने एक बार फिर भावनाहीन शब्द अपने मुंह से निकाले.

निमिषा के चेहरे पर बेचारगी का भाव उभर आया. वह विहा की ओर देखते हुए कुछ अनर्गल कहने लगी, “पता नहीं यह लड़की क्याक्या करती रहती है. अब एक नए काम में लग गई. यह नहीं कि मां की मदद करवा दे. सब काम अकेले मेरे ही सिर पर आ पड़ा है. तेरे पापा भी नागपुर चले गए हैं,” न जाने क्याक्या अतिवाद करती निमिषा चाय का कप जल्दी से मेज़ पर रख फिर रसोई में चली गई.

मगर आज जो ह्रदयग्राही जानकारी विहा को मिली थी, उस के बाद चुप रह कर उसे नजरअंदाज कर देना उस के लिए संभव न था. निमिषा से ऐसी ही प्रतिक्रिया की उम्मीद उस ने की थी, इसलिए वह भी उस के पीछेपीछे रसोई में चली गई.

“इस उपक्रम से कोई लाभ नहीं. मेरे पास पुख्ता सुबूत हैं. मुझे नहीं पता कि आप मुझे क्या बताओगी लेकिन मैं सबकुछ ब्योरेवार वर्णन के साथ सुनने को तैयार हूं.”

“विहा, गढ़े मुर्दे नहीं उखाड़ने चाहिए. जो जैसा चल रहा है उसे वैसा ही रहने दे. शांत झील में इतना बड़ा पत्थर न फेंक कि उस के पानी में सुनामी आ जाए,” कहते हुए निमिषा का गला अवरुद्ध हो गया.

शाम झुक आई थी. घर में छिटपुट अंधेरा होने लगा. निमिषा ने उठ कर बत्ती जलाई. “चल, हाथमुंह धो आ. फिर खाना खाते हैं,” निमिषा के ये कायर शब्द जो बात टालने की प्रबल चेष्टा कर रहे थे, विहा को और अधिक खिन्न करने लगे. उस के मन में फांस सी करक उठी, ‘इस का तात्पर्य यह है कि मां को जो सचाई पता है वह पापा को ज्ञात नहीं.’

“कितना कन्वीनियंट है यह सब आप के लिए, है न मां?” अपनी आंखों में निराशाजनक और घृणास्पद भावों का मेल लिए जब विहा ने निमिषा की ओर देखा तो वह घबरा कर अपनी जगह से खड़ी हो गई.

“जानती है, विहा, आज अतीत के जिस दरवाज़े पर तूने दस्तक दी है, उस पर ताला लगा कर मैं चाबी कब की फेंक चुकी थी. अगर आज तू यह बात नहीं छेड़ती तो शायद मुझे याद भी नहीं आता.” हमारे जीवन की जो बहुत कष्टदायक और दुखदायक संस्मरण होते हैं, उन्हें हमारा दिमाग होशियारी से अपने अंदर ही छिपा लेता है. मानो वह घटना कभी घटी ही नहीं.” तभी तो विहा द्वारा पूछी गई बातों का तात्पर्य समझने में निमिषा को कुछ पल लग गए. लेकिन फिर निमिषा ने विहा को सचाई से अवगत करवाने की बात मान ली.

निमिषा की नईनई शादी हुई थी और वह मुदित के साथ बहुत खुश थी. प्रेमालिप्त सुखी जीवन व्यतीत करते हुए दोनों अपनी नईनवेली गृहस्थी की गाड़ी को हौलेहौले धक्का लगाने लगे. दिनरात एकदूसरे के संगसाथ के मद में जिंदगी की अच्छी शुरुआत हुई थी.

“कई दिनों से मां बुला रही है. क्या मैं अपने मायके हो आऊं?” निमिषा ने पूछा तो मुदित ने उस की कमर में अपनी बांहें डालते हुए कहा, “र इस बेचारे का क्या होगा? मुझे अकेला छोड़ कर जा सकोगी?”

“केवल 2 हफ्तों के लिए जाना चाहती हूं. अब तक भी तो मेरे बिना रहते आए हो, तो अब क्यों नहीं रह सकते?”

“अब शेर के मुंह खून लग गया है,” हंसते हुए मुदित ने कहा तो निमिषा लजा गई.

मायके में भैयाभाभी, छोटी बहन मनीषा और मातापिता से मिल कर निमिषा खुश हुई. उसे सुखी देख कर वे सभी बेहद प्रसन्न थे. 2 हफ्तों की छुट्टी आनंद में बीतने लगी. मांबाप ने पूरा लाड किया. हालांकि भाभी की शादी को अभी केवल 2 ही वर्ष बीते थे परंतु वह भी निमिषा को वे सारी खुशियां देने के लिए आतुर रही जो एक शादीशुदा स्त्री को अपने मायके में मिलनी चाहिए.

“तेरी सहेली रागिनी कई बार तेरे बारे में पूछ चुकी है. अब आई है तो उस से मिल क्यों नहीं आती,” एक दिन मां ने कहा.

“अच्छा याद दिलाया, मां, वरना मैं मायके के स्नेह में सब भूल बैठी हूं. अब आई हूं तो मिल लेती हूं.”

“उस की भी शादी तय हो गई है. वह बताएगी तुझे,” मां ने आगे कहा तो निमिषा दोगुनी खुशी के साथ रागिनी से मिलने के लिए तैयार होने लगी.

निमिषा अपने भैया के स्कूटर के पीछे बैठ कर रागिनी के घर पहुंच गई. दोनों सहेलियां काफी दिनों बाद मिली थीं. ढेर सारी बातें थीं करने को – निमिषा की शादीशुदा जिंदगी के बारे में, और रागिनी के आने वाली जिंदगी के बारे में. दोनों घंटों बतियाती रहीं.

“अब चलती हूं. बहुत देर हो गई. हमारी बातें तो कभी खत्म ही नहीं होंगी,” हंसते हुए निमिषा बोली.

“सच कह रही है, इन बातों को कभी विराम नहीं मिलेगा. लेकिन शाम होने वाली है और लगता है कि बारिश आएगी. अब तुझे घर जाना चाहिए,” रागिनी ने कहा.

“मैं अपने भैया को बुला लेती हूं,” निमिषा बोली.

“इसकी जरूरत नहीं. आज मेरा भाई घर पर ही है. वह तुझे छोड़ आएगा,” रागिनी ने अपने भाई को आवाज लगाई, “सोनू, इधर आ. जा, निमिषा दीदी को उन के घर छोड़ आ.”

“कितना बड़ा हो गया है सोनू. पिछली बार देखा था तो मूंछ भी नहीं आई थी इस की, और अब देखो, हलकीहलकी दाढ़ी भी आने लगी है,” कह निमिषा हंसी तो सोनू झेंप गया.

सोनू ने अपना स्कूटर निकाला और निमिषा उस के पीछे बैठ गई. सोनू स्कूटर ले कर चल दिया. घर से कुछ दूर पहुंचे थे कि सोनू ने अपना स्कूटर एक गली में मोड़ दिया.

“यहां नहीं. मेरा घर आगे है,” निमिषा ने उसे टोका.

“जानता हूं. यहां मुझे जरा सा काम है 5 मिनट का,” सोनू ने कहा तो निमिषा चुप हो गई.

एक घर के सामने स्कूटर रोक कर सोनू ने दरवाजा खटखटाया. अंदर से उसी की उम्र का एक लड़का बाहर आया. दोनों ने कुछ बातचीत की.

“दीदी, अंदर आ जाओ,” सोनू ने निमिषा से कहा, “मुझे 10 मिनट लग जाएंगे.” निमिषा स्कूटर के पास से हट कर मकान के अंदर चली गई. बस, यही उस के जीवन की सब से बड़ी भूल थी. मकान के अंदर एक नहीं बल्कि 2 लड़के पहले से उपस्थित थे और अब सोनू भी उन के साथ खड़ा था. जब तक निमिषा कुछ समझती या संभल पाती, तीनों ने मिल कर उस की इज्जत को तारतार कर दिया. निमिषा ने उन्हें अपने शादीशुदा होने का वास्ता दिया, बड़ी बहन की सहेली होने का वास्ता दिया और कुछ देर पहले सोनू द्वारा उसे ‘दीदी’ संबोधित करने की याद भी दिलाई. परंतु उन पर हवस का दानव सवार था. किसी ने उस की एक न सुनी. वे तीनों निर्बाध गति से उस के आंचल की धज्जियां उड़ाते रहे.

कुछ पीड़ाएं इतनी विषम, इतनी गहरी होती हैं कि समय की परत भी उन पर मलहम लगा कर उन को भर नहीं पाती. बलात्कार भी ऐसा ही घाव है जो वृहत विषाद दे जाता है. अपनी जरा भी गलती नहीं होते हुए स्वयं विपत्तिग्रस्त शिकार ही अपराधी सा मालूम होने लगता है. इसी के साथ ऐसा क्यों हुआ? अवश्य इसी ने कोई गलती की होगी; सावधानी में कुताही बरती होगी… संकुचित सोच में डूबी सामाजिक मान्यताएं उस स्त्री को ही दोषी ठहराने लगती हैं जिस ने अपने ऊपर यह कुठाराघात सहा होता है.

निमिषा के क्रंदन का साथ निभाने उस दिन आकाश भी बरसने लगा. ज़िंदगी के साथ मौसम भी बिगड़ने लगा. जब अनर्थ हो चुका तब निमिषा ने स्वयं को समेटा. अपने भारी कदमों को घसीटती हुई वह अपने घर की ओर निकल गई. अब वह एक क्षण भी उस जगह रुकना नहीं चाहती थी. देहरी लांघते समय उस ने अनायास ही सोनू की तरफ दृष्टि घुमाई जो बेशर्मी से वहीं बैठा अपने दोस्तों के साथ सिगरेट फूंक रहा था.

कुछ ही देर में निमिषा सड़क पर तीव्र गति से अपने पगों को बढ़ाती जा रही थी. वर्षा की कठोर बूंदें उस के पैरों को जकड़ रही थीं परंतु उन में इतना साहस नहीं था कि उस के कदमों को शिथिल कर सकतीं. ऊपर से अनवरत गिरते पानी ने उस के चेहरे पर बहती अश्रुधारा को छिपा लिया. जब निमिषा उस दुर्भाग्यपूर्ण घर से चली थी तो उस के मन में केवल एक ही विचार था कि उसे सीधा पुलिस चौकी जा कर इन दरिंदों की रिपोर्ट लिखवानी है. परंतु रास्ते में चलते हुए निमिषा का मन परस्पर विरोधी विचारों में उलझने लगा. उस का एक मन कहता कि इस कुकर्म की सज़ा असली दोषियों को मिलनी चाहिए, उन तीनों को इस का दंड भुगतना होगा लेकिन वहीं दूसरा मन विवाद करता कि इस बात के बाहर आते ही उस के मातापिता, भाईबहन की इज्जत का क्या होगा? क्या उस की कुंआरी बहन का रिश्ता किसी अच्छे घर में हो पाएगा? क्या उस की कुंआरी ननद को उस के लायक परिवार मिल सकेगा? मन के द्वंद्वप्रतिद्वंद के बीच फंसी निमिषा शरीर से तो टूट ही चुकी थी, अब मानसिक रूप से भी चूरचूर हो रही थी. अपने घायल हृदय को अपमानभरे धोखे की सुलगती आंच से बचाने के लिए वह प्रतिशोध की ठंडक चाहती थी. मगर कहीं ऐसा न हो कि बदले की यह अग्नि समाज में उस के अपनों की इज्जत को जला कर भस्म कर दे. इसी संघर्ष में दोनों पक्षों को तोलते हुए उस ने प्रतिशोध की भावना को पीछे धकेल देना उचित समझा. निमिषा का साहस पराजित हुआ, समाज का हौआ जीत गया. उस ने पुलिस चौकी जाने का खयाल मन से बाहर निकाल फेंका.

मायके लौट कर उस ने किसी को इस विषय में कुछ नहीं बताया. 15 दिनों की छुट्टियां बीत गईं और निमिषा अपने घर वापस लौट आई. अपने घर लौटने के पश्चात भी निमिषा का मन नहीं बदला. वह मुदित के पास लौट तो आई थी लेकिन केवल शारीरिक रूप से. मानसिक रूप से वह अब भी घायल अवस्था में अपने मायके की गलियों में ही छूट गई थी. मुदित को भी उस ने कुछ नहीं बताया. किस मुंह से बताती, कैसे कहती कि अब वह उस के लायक नहीं रही. उस के मन में स्वार्थ पसरने लगा – यदि मुदित ने उस से मुंह मोड़ लिया, तो? अगर मुदित के घरवालों ने इस बात को ले कर बखेड़ा खड़ा कर दिया और उस का रिश्ता तुड़वा दिया तो? स्वयं को एक विवाहिता तिरस्कृत स्त्री की अवस्था में देखना – ऐसी कल्पना मात्र से ही निमिषा सहम उठती. अब वह और अधिक मानसिक संताप झेलने की स्थिति में नहीं थी.

उसे चुपचुप देख मुदित सोचता कि मायके की याद सता रही है. उस की उदास भावभंगिमा को दूसरा ही रूप दे दिया था मुदित ने. और निमिषा ने भी इस गलतफहमी से परदा नहीं उठाया. मुदित ने अपनी ओर से कोई कमी नहीं रख छोड़ी उस को प्रसन्नचित्त रखने में. लेकिन निमिषा का दिल किसी स्थिति में हरित होने को अभी तैयार न था.

कुछ समय पश्चात निमिषा के बंजर हृदय की मरुभूमि पर प्रेम का छोटा सा बीज अंकुरित होने लगा. जल्द ही इस में नन्हीनन्ही कोंपलें निकलने लगीं. बरसात की काली घटाएं छट चुकी थीं. उज्ज्वल, नीले आकाश में अरुणोदय की लालिमा फिर छिटकने लगी. टेसू के फूलों से प्रकृति सिंदूरी हो गई. निमिषा और मुदित अपने आंगन में खिलती इस नन्ही कली के आगमन से अतुलनीय उल्लसित थे. समय के साथ परिस्थिति में परिवर्तन आया. और निमिषा की मानसिक स्थिति में अपेक्षित सुधार हुआ. धीरेधीरे वह अपने स्याह अतीत को भूल कर स्वर्णिम वर्तमान में जीने लगी और उजले भविष्य के स्वप्न संजोने लगी.

“मुझे कायर कहो या स्वार्थी, यह निर्णय मैं तुम पर छोड़ती हूं,” अपनी आपबीती सुना कर निमिषा वर्तमान परिवेश में लौट आई. “मेरा विश्वास करो, मैं नहीं जानती थी कि तुम उस राक्षस का बीज हो. मुझे नहीं पता था कि तुम मेरे जीवन की उस सब से कड़वी सचाई का प्रतीक हो. मैं ने और मुदित ने तुम्हें हमारे प्रेम की परछाईं के रूप में स्वीकारा तथा अपनाया.” निमिषा के नेत्रों से अविरल बहती बूंदें उस घाव के हरा होने पर हस्ताक्षर कर रही थीं.

विहा को अपनी मां को इस अवस्था में देख कर बेहद पीड़ा पहुंचने लगी. जो कुछ उन के साथ घटा, उस में उन की क्या त्रुटि थी. ऐसे में एक स्त्री करे भी तो क्या. केवल 2 ही विकल्प हैं – या तो दोषी को सज़ा देने के लिए लड़ने की हिम्मत दिखाए या फिर मौन रह कर जीवन में आगे बढ़ जाए. जिस समय व अवस्था में उस की मां उन दिनों थीं, उन्होंने खामोशी से इस अध्याय को जीवन की किताब से फाड़ देना उचित समझा. इस के लिए न तो उन्हें दोष देना सही है और न ही इस घाव को कुरेदना.

“जो हुआ सो खत्म हुआ, मां. आप स्वयं उस बाधा को लांघ कर आगे बढ़ आई हैं. अब पीछे मुड़ कर देखने से कोई लाभ नहीं. मुझे क्षमा कर दो, मां. मेरे कारण आप को अपने जीवन के उस घिनौने प्रकरण को दोहराना पड़ा,” कहते हुए विहा ने निमिषा को आलिंगनबद्ध कर लिया. दोनों मांबेटी एकदूसरे का संबल बनने लगीं. जब तक मुदित वापस लौटे, घर में सबकुछ पहले जैसा हो चुका था.

घर के अंदर शांति आ चुकी थी. लेकिन विहा के भीतर अब वही अशांतिभरी आग प्रज्ज्वलित होने लगी जो उस शाम निमिषा के अंदर सुलगी थी. निमिषा ने सोनू को क्षमा किया हो या नहीं, परंतु उस के नीच कृत्य का दंड नहीं दिया था. निमिषा के अंदर सुलगती मशाल अब विहा ने थाम ली. मन ही मन उस ने सोनू को कुसूरवार ठहराया और सज़ा देने का निश्चय कर डाला. उस के लिए उस के मातापिता निमिषा और मुदित थे. वह जैविक आधार पर सोनू को अपना पिता नहीं, अपितु अपनी मां का गुनाहगार मान चुकी थी. उस ने जो किया वह केवल कुकर्म नहीं, पाप था, एक स्त्री का सर्वोच्च अपमान था. अपनी मां के अपराधी को सज़ा दे कर उन्हें न्याय दिलाना अब विहा ने अपना ध्येय बना लिया. मगर कैसे? कैसे ढूंढेगी वह सोनू को? कैसे दंडित करेगी उस राक्षस को? इसी ऊहापोह में सारी रात्रि गुज़र गई.

अगली सुबह विहा के लिए युक्ति-श्रंखला ले कर आई. सारी रात सोचविचार करने के पश्चात वह अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने को तैयार थी. जो कुछ हुआ, इसी शहर में हुआ. सिकल सेल बीमारी बहुत आम नहीं, इसलिए हो सकता है कि अस्पताल के डाटाबेस में उसे अपराधियों के नामपते मिल जाएं. इस आशा से विहा अपने अस्पताल पहुंची जहां वह अपनी बीमारी का इलाज करवाने जाया करती थी. आज उस ने डाक्टर से मिलने के पश्चात वापस घर लौटने की जगह अस्पताल के रिकौर्डरूम में सेंध लगाई. सब की नज़र बचा कर वह अंदर प्रवेश करने में सफल हो गई. रिसैप्शन डैस्क पर एक नवयुवक को बैठा देख विहा थोड़ी आश्वस्त हुई. उस ने अपनी अदाओं और मुसकराहट के जादू का भरपूर प्रयोग करते हुए उस युवक को अपना कालेज आईडी दिखाया और बताया कि एक प्रोजैक्ट के तहत उसे सिकल सेल बीमारी के मरीजों से एक प्रश्नावली भरवानी है. उसे स्वयं भी यही बीमारी है. इस के कागजात दिखाने पर उस की बात के वज़न में वृद्धि हुई.

अब सिकल सेल बीमारों की सूची उस के हाथ में थी. क्रमानुसार उस ने नाम खोजने आरंभ किए. जैसे ही उस ने नाम पढ़े, उसे ज्ञात हुआ कि संभवतया ‘सोनू’ उस अपराधी के घर का नाम था, पेट नेम. उस का असली नाम उस की मां भी नहीं जानती थी. विहा को अपनी रणनीति में बदलाव लाना होगा. सूची ले कर वह अपने कालेज चली गई जहां अकेले में बैठ कर उस ने एकएक मरीज़ को फोन करना शुरू कर दिया, “मैं एक इंजीनियरिंग स्टूडैंट हूं और सिकल सेल बीमारी पर एक प्रोजैक्ट कर रही हूं. इस अध्ययन के निष्कर्षों के बल पर हम इस बीमारी का जेनेटिक इलाज खोजने में प्रयासरत हैं,” कहते हुए वह प्रश्नावली में लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखने लगी.

पूरा नाम, घर का नाम (पेट नेम), घर का पता, जन्मतिथि, ब्लड ग्रुप, बीमारी के मौजूद लक्षण… लंबी प्रश्नावली भरते हुए काफी डाटा इकठ्ठा हो गया. विहा को मायूस नहीं होना पड़ा. प्रश्नावलियों में सोनू का नाम था. उस का असली नाम रोहित है और वह इसी शहर में रहता है. विहा ने अपनी अगली रणनीति तय कर ली.

मात्र 2 दिनों में वह रोहित उर्फ सोनू के घर के दरवाजे पर थी. दरवाजा उस की पत्नी ने खोला. विहा ने कहा, “नमस्कार मैडम, क्या मैं मिस्टर रोहित से मिल सकती हूं?”

रोहित का भक्क सफ़ेद रंग और बिल्ली जैसी कंजी आंखें देख कर विहा को विश्वास हो गया कि यही उस का जैविक पिता है. परंतु फिर भी वह ठोस प्रमाण चाहती थी. “सर, मैं एक संस्था से जुड़ी हूं जो आनुवंशिक बीमारियों के ऊपर कार्य करती है,” अपना परिचय देते हुए विहा ने नकली आईडी दिखाई जो उस ने कंप्यूटर से प्रिंटआउट निकाल कर बनाई थी. “हम अस्पतालों से जुड़ कर उन के डाटाबेस से मरीजों को संपर्क करते हैं और उन का डीएनए परीक्षण करते हैं ताकि उस क्षेत्र में जो काम हो रहा है उस में वृद्धि हो सके. इस में कोई खतरा नहीं है, किसी प्रकार का कोई जोखिम नहीं है. आप निश्चिंत हो कर मुझे अपना चीक स्वैब लेने दें ताकि मैं आप का डीएनए टैस्ट कर सकूं.”

“ठीक है,” विहा के आत्मविश्वास से लबरेज़ व्यक्तित्व ने रोहित को उस की बात स्वीकारने पर विवश कर दिया. जिस प्रकार विहा ने उस की आंखों में आंखें डाल कर अपनी बात उस के समक्ष रखी, रोहित को उस की प्रामाणिकता पर विश्वास हो गया. उस पर विहा के पास रोहित को दिखाने के लिए सारे कागजात भी मौजूद थे. विहा योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ रही थी, सो, उस ने सभी ज़रूरी दस्तावेज़ अपनी फाइल में जमा कर रखे थे.

बाहर से मुसकराती, विनम्रता से बातें करती विहा को रोहित की सूरत देख कर कितनी तकलीफ पहुंच रही थी और उस द्वेषभाव को छिपाने में कितना कष्ट हो रहा था, यह बात उस कमरे में केवल वही जानती थी.

अगले दिन विहा ने रोहित के डीएनए सैंपल से अपना सैंपल मिलाया. निष्कर्ष आशारूप आया – रोहित ही विहा का जैविक पिता निकला. तो यही वह दरिंदा है जिस ने निमिषा के जीवन में सर्वोच्च कटु अनुभव जोड़ा. अपनी हवस मिटाने के लिए इस ने एक स्त्री की अस्मत को लूट कर न केवल उस की इज्ज़त को तारतार किया अपितु उस के आत्मसम्मान, उस के आत्मविश्वास और भरोसे को भी चकनाचूर कर दिया. एक स्त्री को मनुष्य न समझ कर भोग की वस्तु मानना, कब अंत होगा ऐसी घिनौनी मानसिकता का. जो ज्वाला कभी निमिषा के दिल में धधकी होगी, उस की तपिश आज विहा अनुभव कर रही थी. क्या इतने घृणित कार्य की भरपाई संभव है? शायद नहीं.

घर लौट कर विहा ने निमिषा को देखा तो उस के अंदर प्रतिशोध लेने की इच्छा और भी प्रबल हो उठी. अपने अंदर की जलन को शांत करने का अब यही एकमात्र मार्ग सूझ रहा था. आज पूरी रात विहा के नयनों में नींद की जगह आनेवाले कल की योजना तैरती रही.

विहा ने घंटी बजाई, तो इस बार रोहित ने दरवाजा खोला, “आप?”

“आज आप के लिए एक खुशखबरी है, वही देने आई हूं. क्या मैं अंदर आ सकती हूं?” विहा की मासूम मुसकान देख कर रोहित ने उसे सहज अंदर बुला लिया. “सर, जैसा कि मैं ने आप को बताया था, हमारी संस्था आप जैसे मरीजों के लिए एक बेहद सकारात्मक कदम पर पहुंच रही है. उस दिन आप के द्वारा दिए डीएनए सैंपल से हम काफी अच्छी जानकारी प्राप्त कर सके. अब हमें आप का ब्लड सैंपल चाहिए होगा. यदि आप अपना एक यूनिट खून देने को तैयार हों तो…”

“खून… पर… क्या नाम बताया आप ने अपना?” रोहित रक्तदान की बात सुन कर कुछ विचलित हुआ.

“मेरा नाम मानुषी है,” विहा ने अपने नकली आईडी में वर्णित नकली नाम बता दिया.

“दरअसल, मुझे सूई से घबराहट होती है.”

“आप चिंता मत कीजिए, मेरा हाथ बहुत हलका है, आप को पता भी नहीं चलेगा. यदि मैं ने ब्लड सैंपल नहीं लिया तो अब तक की सारी मेहनत व्यर्थ हो जाएगी. मुझे विश्वास है कि आप ऐसा नहीं चाहेंगे,” विहा ने रोहित को शांत करने का प्रयास किया, “आप दूसरी तरफ मुंह घुमा लीजिए, आप को पता भी नहीं चलेगा.”

विहा की बात मान कर रोहित ने वैसा ही किया. जैसे ही रोहित ने दूसरी दिशा में मुंह घुमाया, विहा ने अपने बैग से सूई निकाली, एक दवा की शीशी निकाली, सूई में वह दवा भरी और देखते ही देखते रोहित के अंदर सूई के जरिए वह दवा डाल दी. रोहित सोचता रहा कि मानुषी उर्फ विहा उस का खून निकाल रही है. परंतु असलियत में विहा ने उस के शरीर के अंदर एक दवा डाल दी थी.

“हो गया मिस्टर रोहित. देखा, आप को पता भी नहीं चला,” विहा हंसते हुए बोली.

“सही कह रही हो तुम. मुझे वाकई पता नहीं चला,” रोहित ने भी मुसकरा कर हामी भरी.

रोहित की मुसकराहट ने जैसे विहा को डंक की तरह डसा. “इतनी जल्दी क्या है, आखिर 21 साल पुराने मर्ज का इलाज किया है. थोड़ी देर रुक जाइए, तब पता चलेगा,” यह कहने से वह स्वयं को रोक नहीं पाई, “आप के शरीर से थोड़ा खून कम नहीं हुआ है, बल्कि इस समय आप के शरीर में ऐसा जहर तेज़ी से दौड़ रहा है जो थोड़ी देर में आप को पंगु बना देगा. इस से पहले कि आप एक ज़िंदा लाश बन जाएं, मेरी बात ध्यान से सुनिए. याद है, आज से 21 साल पहले आप ने अपनी बहन की सहेली का विश्वास तोड़ा था, अपने दोस्तों के साथ मिल कर उस की इज्ज़त लूटी थी. उसी घटिया हरकत का नतीजा आप के सामने खड़ा है.”

रोहित, विहा की बात का मर्म समझने लगा. उस ने छटपटा कर खड़े होने का प्रयास किया लेकिन वह लड़खड़ा कर वहीं कुरसी पर ढेर हो गया. उस की आंखों में बेचारगी का भाव उतरने लगा. जहर का असर धीरेधीरे होने लगा. पर जहर के अलावा विहा की बात का असर रोहित पर तेज़ी से हो रहा था. शारीरिक रूप के बजाय मानसिक हालात इंसान को अतिशीघ्र प्रभावित करते हैं.

“आज मेरी मां का प्रतिशोध पूर्ण हुआ. अब मुझे अपने जीवन पर गर्व है,” कहते हुए विहा अपना सामान समेट कर दरवाजे तक पहुंच गई. रोहित उसी हालत में बैठा हुआ उसे घूरता रहा. “आज से मेरे और आप के, दोनों के जीवन का नया अध्याय आरंभ होता है. आप को अपनी नई ज़िंदगी मुबारक हो,” कह विहा उस घर और रोहित की ज़िंदगी से हेमशा के लिए गायब हो गई.

जीनत : जीनत का रो-रो कर क्यों बुरा हाल था

संदल और उबटन की भीनी भीनी खुशबू के बीच बैठी दुलहन को घेरे उस की सहेलियों की नशीली आंखों में भविष्य के खूबसूरत और रंगीन सपने लहरा रहे थे.

‘‘बाजी, मैं भी दुलहन बनने पर बिलकुल आप की ही तरह कोहनियों तक मेहंदी लगवाऊंगी,’’ जीनत ने दुलहन से कहा.

‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं…जरूर लगवाना, मगर पहले दूल्हा तो मिल जाए,’’ जैनब ने ठिठोली की.

‘‘अरे क्या कहती हो, दूल्हा और वह भी जीनत जैसी हसीन परी के लिए…क्यों नहीं मिलेगा भला? दौलतमंद बाप की पहलौठी है. एक ढूंढ़ेंगे, हजार मिलेंगे,’’ नज्जो ने नहले पे दहला मारा.

‘‘नहीं, नहीं, मुझे हजार से नहीं, एक से शादी करनी है,’’ जीनत घबरा गई. जीनत के भोलेपन पर दुलहन सहित सारी सहेलियां ठहाका मार कर हंस पड़ीं. पूरा कमरा चूडि़यों की खनक और गजरे की महक से भर गया. दुलहन की विदाई के बाद घर वापस आ कर बिस्तर तक पहुंच कर जीनत अपनी शादी के सलोने ख्वाबों को अपनी खुलीखुली आंखों में सजाती रही. दूल्हे की सजीली सोच उसे एकाएक ससुराल की बड़ी सी कोठी के आंगन में खड़ा कर देती. जीनत के पापा जिले के सब से बड़े बारूद के व्यापारी जहीर अहमद ने बेशुमार दौलत और इज्जत कमाई थी. 5 बच्चों के पिता अपनी कदकाठी से गबरू जवान लगते थे. कुरते पर सोने का बटन लगाती बीवी की सुरमेदार आंखों में झांक कर बोले, ‘‘जहरा, मैं ने कल तीनों बेटियों के नाम 5-5 लाख रुपए फिक्स्ड डिपौजिट कर दिए हैं. वह है न अपना यार अरे वह रज्जाक, फौरेस्ट औफिसर, जिसे परसों खाने पर बुलाया था, कह रहा था कि जल्दी ही तीनों बेटियों के दहेज के फर्नीचर के लिए सागौन और शीशम की लकडि़यां ट्रक से भिजवा देगा.’’

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‘‘बस, बच्चों के लिए करते रहिएगा या कभी इस खादिमा के लिए भी कुछ सोचिएगा,’’ शौहर के मुंह में शीरे का रसीला पान डालते हुए जहरा ने बनावटी शिकायत की.

‘‘जानम, आप के नाम तो पूरी बिल्ंिडग है, लाखों के जेवर हैं और हुजूर, मुझ जैसा गुलाम आप की खिदमत में चौबीसों घंटे घुटने टेक कर आदाब बजा लाता है और क्या चाहिए आप को मेरी जान’’, कहते हुए जहीर ने बीवी को कस कर अपने चौड़े सीने में भींच कर होंठों पर प्यार की मुहर लगा दी.

‘‘क्या कर रहे हो, दरवाजा खुला है और नौकर घर में काम कर रहे हैं, बच्चे यहांवहां घूम रहे हैं. शर्म करो,’’ बलिष्ठ बांहों से छिटक कर शरमाती हुई जहरा ने मुसकरा दिया. फूलों के झूलों में झूलता खुशियों का डेरा जीनत के घर के आसपास ही डेरा डाले रहता. किचन से उठती मसालेदार खाने की महक, आसपास के घरों के लोगों की भूख बढ़ा जाती. घर के कोनेकोने में रखे बेशकीमती सामान और खूबसूरत नक्काशीदार फर्नीचर हवेली की खूबसूरती में चादचांद लगा देते. रिश्तेदारों और दोस्तों का जमघट हवेली की चहलपहल को बढ़ाता. जहरा बी महल्ले वालों, रिश्तेदारों, दोस्तों व दूसरे लोगों की शादीब्याह, सालगिरह, मौतमिट्टी में दिल खोल कर तोहफे और मदद देतीं. दौलत, शोहरत और कामकाज के पीछे भागमभाग करते हुए जहीर अहमद को पता ही नहीं चला कब एक के बाद एक बच्चे ने पढ़ाई छोड़ दी. लड़के दिनभर क्रिकेट, फुटबौल, वीडियोगेम, टीवी, डीवीडी, म्यूजिक सिस्टम में खोए हुए जवानी की पहली सीढ़ी पर आ खड़े हुए. जीनत को सिलाईकढ़ाई का बेहद शौक था. अपने दहेज के लिए चादरें, मेजपोश, तकिएगिलाफ काढ़ती रहती, क्रोशिए से दरवाजे खिड़कियों के परदे और थालों के कवर बुनती रहती. दोनों छोटी बहनें दिनभर पड़ोसियों के नन्हेनन्हे बच्चों को खिलानेपिलाने, नहलानेधुलाने के साथ अच्छेअच्छे खाने की फरमाइश पूरी करते दिन गुजार देतीं.

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‘जीनत के लिए कहीं से पैगाम नहीं आया’, रिश्तेदारों को जब यह कहते सुना तो जहरा को याद आया कि जीनत शादी लायक हो गई. उस की आंखों में सुरमई लकीरों के बीच गुलाबी डोरे खिंचने लगे हैं. रोहू मछली के तले हुए टुकड़े से कांटा निकाल कर जहीर अहमद की तरफ बढ़ाते हुए जहरा ने अपनी फिक्र शौहर के कंधों पर भी डाल दी, ‘‘जीनत शादी के काबिल हो गई है. कहीं अच्छा सा लड़का देखना शुरू कीजिए.’’ ‘‘2-3 लोगों ने रिश्ते की बात कही तो थी मगर मुझे जंचा नहीं, इसलिए घर तक पैगाम आने नहीं दिया. खुदा पर भरोसा रखिए. हम ने सब का भला चाहा है, वक्त हमारी जीनत के लिए नेक लड़का और अच्छा खानदान ही तजवीज कराएगा.’’ जहरा बेफिक्र हो गई. इसी बीच, एकाएक जहीर अहमद यह कहते हुए कि बेगम सीने में हलकी सी चुभन बारबार हो रही है, सीना पकड़ कर लेट गए. भरेभरे चेहरे पर दर्द की लकीरें उभर आई थीं.

‘‘डाक्टर साहब को फोन कर दूं,’’ जहरा ने शौहर का सीना सहलाते हुए चिंता जताई.

‘‘अरे नहीं, हलका सा दर्द है. कल तक ठीक हो जाएगा.’’ रात को दर्द कुछ कम हुआ तो जहीर अहमद ऊपर वाले कमरे में सोने चले गए. छोटी बेटी को बुखार चढ़ गया था, इस वजह से जहरा नीचे उसी के साथ सो गई. दूसरे दिन का सूरज तबाही और बरबादी का पैगाम ले कर आया. जहीर अहमद पलंग के नीचे फर्श पर मृत पाए गए. जहरा बी और बच्चों की दर्दनाक चीखों ने हवेली के सन्नाटे को तोड़ कर दर्द का बवंडर उठा दिया. जहरा बी सदमे से बारबार बेहोश हो जातीं. होश आते ही चीखतीं, ‘‘हाय, मेरे बच्चों का क्या होगा? कैसे मझधार में छोड़ गए जीनत के अब्बू. मुझ से नहीं संभलेगी तुम्हारी सल्तनत. मुझे भी अपने पास बुला लीजिए. मैं आप के बिना जिंदा नहीं रह पाऊंगी,’’ जहरा की गमजदा आवाज बच्चों को बुत बना गई. दिन गुजरे, जहरा घरबार की सुध लेने के लायक होने लगीं. धीरेधीरे बच्चों को देखदेख कर अपनी जिम्मेदारी का एहसास होने लगा उन्हें.

‘‘अम्मी चलिए, खाना खा लीजिए,’’ वक्त से पहले बड़ी हो गई जीनत. मां को तसल्ली देती हुई खुद छोटे चारों भाईबहनों की मां बन गई. ‘‘क्या खाना खाऊं बेटा. कोई थोड़ा सा जहर दे दे तो दर्द से नजात मिल जाए मुझे. फूलों की तरह रखने वाले ने क्यों कांटों के रास्ते पर धकेल दिया.’’ बिजनैस में कहां कितना पैसा लगा है? किस बैंक में कितना पैसा है? किस को कितना उधार दे रखा है…? जहरा को कुछ भी पता नहीं था.

‘‘कैसे खींचूंगी यह गृहस्थी की गाड़ी 5 बच्चों के साथ? कैसे चलाऊंगी कारोबार? कैसे होगा सब का शादीब्याह? मैं तो पढ़ीलिखी भी नहीं हूं, न ही बच्चे पढ़ेलिखे हैं. इन्होंने तो कारोबार के बारे में कभी बच्चों को बताया ही नहीं, क्या करूंगी मैं,’’ जहरा बच्चों को बांहों में भर कर बुक्का फाड़ कर रो पड़तीं. 17 और 15 साल के दोनों बेटों ने पापा की फैक्टरी में पटाखे बनते तो देखे थे मगर कभी खुद कुछ नहीं किया. दीवाली और उस के बाद शादीब्याह का सीजन शुरू हो गया था. दीवाली के एक हफ्ते पहले माल को जब बाजार में भेजने की तैयारी हो रही थी तब नातजरबेकार मालिक और उस से ज्यादा अनुभवहीन कामगार. माल को जल्दी सुखाने के लिए रूमहीटर का इस्तेमाल कर बैठे. बारूद ने आग पकड़ ली और ऐसा जबरदस्त धमाका हुआ कि आसपास के 3 गांवों के लोगों का कलेजा दहल गया. आग से झुलसते 2 कामगारों को बचाते हुए दोनों भाइयों के हाथ, मुंह और छाती जल गई. वे अपना जख्म भूल कर दोनों कामगारों को शहर ले कर भागे. इलाज में पानी की तरह पैसा बहाया, मगर बुरा वक्त कभी टाले टला है भला. बुरी तरह से जले दोनों कामगारों की मौत हो गई. उन के शवों को जलाने, बिरादरी को भोज खिलाने से ले कर हरिद्वार जा कर फूल सिराने तक की प्रक्रिया में लाखों का चूना लग गया. गांव के सीधेसादे दिखने वाले लोगों को मदद करने, उन्हें कानूनी सलाह देने के लिए समाजसेवी कुकरमुत्ते की तरह पैदा हो जाते हैं.

पुलिस केस बन गया था. आएदिन दारोगा की जीप जहीर अहमद की कोठी के सामने खड़ी रहती. दारोगा कासिम अली को सारी बातें सचसच बतलाने के बावजूद हजारों रुपए के तोहफे उन की छोटी सी लपलपाती जीभ को न हिलने देने की कवायद में उन के घर भेजे जाते रहे. वे लोग जो कभी जहीर अहमद के सामने खड़े रहने और बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे, उन की नेकनामी और ईमानदारी के दबदबे का खौफ खाते थे, वे अब घर की बैठक में नरम मखमली सोफे पर अधलेटे से चायनाश्ते का लुत्फ उठाते हुए नाबालिग बच्चों में कभी दहशत पैदा करते, कभी कानून के पंजे से बचने की सलाह देते. जहरा बी सिर का पल्लू डाले परदे की ओट से अनजान लोगों के वहशी चेहरे देखतीं तो जारजार रो पड़तीं. दोनों मृतक कामगारों के रवालों ने 4-4 लाख रुपए का मुआवजा ठोंक दिया था. 8वीं फेल बड़ा बेटा 2-2 वकीलों के चंगुल में फंसा, हर पेशी पर बैंक की पैसे निकालने वाली पर्ची पर मोटीमोटी रकम भरता. ‘‘मेरी निगाह में एक लड़का है. वह करता तो प्राइवेट काम है मगर समझदार और कायदे का है. जीनत की शादी उस से हो जाएगी तो भाईजान का पूरा कारोबार संभाल लेगा,’’ जीनत की फूफी ने जहरा बी को सलाह दी. रिश्ते की बात चली. लड़का जरा दाहिने पैर से लंगड़ाता है मगर दुनियादारी में बड़ा तेज है. फूफाजान ने मुलम्मा चढ़ाया था. घर किराए का है, कोई बात नहीं. मेहनत करेगा तो अपना घर भी खरीद लेगा. डूबते को तिनके का सहारा. ननदननदोई पर भरोसा था. जहरा ज्यादा क्या छानबीन करतीं, धूमधाम से मंगनी कर दी. 6 माह बाद शादी की तारीख तय हो गई.

जीनत का रोरो कर बुरा हाल था. घर के बिखरे हालात, अनपढ़ और गमजदा मां, नासमझ भाइयों और दोनों छोटी बहनों का भविष्य संवारने के लिए जीनत को हालात से समझौता करना पड़ा. एक शख्स के न रहने से खुशहाल घर कैसे वीराने में बदल जाता है. उस के आश्रितों का भविष्य कैसे अंधकार में हिचकोले खाता है, इस का अंदाजा अब लगा पाई जीनत. मंगनी हो गई थी, इसलिए कुछ कहना भी मुश्किल था. रोज ही, होने वाले दामाद मकसूद का फोन आ जाता. जहरा बी पहले तो झिझकी, मगर जब ननद ने बदलती दुनिया के बदलते तौरतरीकों को मान लेने में ही भलाई है का मशविरा दिया तब से जीनत को फोन पकड़ाने लगीं. शादी से पहले लड़कालड़की एकदूसरे को अच्छी तरह समझ लेते हैं तो जिंदगी खुशहाली से गुजरती है. जहरा बी ठंडी सांस भर कर रह जातीं. शादी, हनीमून, बच्चे, घर, सारे सपने फोन पर एकदूसरे को सुनाए जाते. टूटा मन, भोला दिल, सपनों की गगरी छलकने लगती. ‘‘मेरी शादी के लिए 5 लाख रुपए पापा ने बैंक में जमा कर रखे हैं. मेरी अम्मा धूमधाम से शादी करेंगी. पहली जो हूं,’’ जज्बात की रौ में जाने कब जीनत ने मंगेतर को घर की बातें बता कर अपने ही घर में सेंध लगा दी. जीनत की शादी को 1 महीना बाकी रह गया था तो मकसूद ने जीनत से फोन पर कहा, ‘‘अम्मी से बात करवा दो.’’ जीनत ने अम्मी को फोन पकड़ा दिया.

‘‘अम्मी, वो…म…मैं कुछ बात कहना चाह रहा हूं अगर आप बुरा न मानें तो…’’ सधे हुए खिलाड़ी की तरह दुनियाभर की मिठास आवाज में भर कर बोला मकसूद.

‘‘हांहां, कहिए, बेझिझक कहिए.’’

‘‘जी…वो आप ने सूट के लिए 25 हजार रुपए भिजवाए हैं न, उस में तो बड़ा हलका सा कपड़ा आ रहा है. एक निकाह और एक विदाई का, 2 सूट तो बनेंगे ही न, फिर हौजरी का सामान, जूते…फिर शादी में सब लोग दूल्हे को ही देखते हैं. आप की इज्जत…आप समझ रही  हैं न, मैं क्या कहना चाह रहा हूं.’’

‘‘जी…जी, मैं समझने की कोशिश कर रही हूं,’’ दामाद का इशारा समझ कर भी बेटी की मां अपना उबाल भीतर ही भीतर पीते हुए बोलीं.

‘‘जी…, इधर कंपनी के काम से काफी बिजी रहा. आप लोगों को बताना ही भूल गया कि मेरी पोस्ंिटग आप के कसबे के पास के ही बड़े शहर में होने वाली है. तो शादी में जो सामान आप देंगी, उसे ट्रक में डाल कर ले जाना रिस्की होगा, रास्ते में टूटफूट या गिर जाए तो बेकार में नुकसान. इसलिए आप उतने सामान का कैश दे दें तो मैं सामान जरूरत का वहीं से खरीद लूंगा. आप अकेली औरत जात, क्याक्या करेंगी भला. आप भी खरीदने की परेशानी से बच जाएंगी और मुझे भी आराम रहेगा. जीनत अपनी पसंद की चीजें खुद खरीद लेगी शहर से. अगर आप ये सब मंजूर करती हैं तो बेहतर होगा वरना तो…’’

‘‘हांहां…क्या? वरना तो…’’ जहरा की जबान अनजानी आशंका से कंपकंपाई.

‘‘वरना तो 2 साल और आप को ठहरना होगा, मेरी अम्मी ने कहा है.’’ यह सुनते ही जहरा बी सीना पकड़ कर फर्श पर बिखर गईं. मोबाइल हाथ से छिटक कर दूर जा गिरा. ‘‘क्या हुआ, अम्मी,’’ तीनों लड़कियां दौड़ीं और अम्मी को फर्श से उठा कर पलंग पर डाल दिया. डाक्टर ने चैक किया. ‘‘हार्टअटैक हुआ है.’’

डाक्टर से दूसरे दिन सारे चैकअप करवा कर के ही दवा दी गई. दवा की परची हाथ में लिए खड़ी जीनत के पैर कईकई फुट जमीन में धंस गए. निशब्द, अवाक् सूनी दीवार पर टंगी पापा की मुसकराती तसवीर को खड़ीखड़ी देखती रही. इंसेटिव केयर यूनिट के वे 3 दिन, जीनत के पैरों ने घर और अस्पताल के रास्ते की धूल उड़ा दी. दूर तक…कोई सहारा नहीं… एक अदद हमदर्द 70 साल की सफेद बालों वाली नानी. खाल लटकते हाथों से रोतेबिलखते बच्चों को समेट लिया था उन्होंने. जीनत की रेगिस्तान सी आंखों में बैंक की खाली होती पासबुक थी  चौथे दिन शाम को डाक्टर सिर झुका कर इंसेंटिव केयर यूनिट से बाहर निकले. जीनत के कंधे पर हमदर्दीभरा हाथ रख का नजर झुका ली, ‘‘दूसरा अटैक आया था, हम बचा नहीं पाए.’’ ‘‘क्या…?’’ जीनत का हलक सूख गया. जबान तालू से चिपक गई और वार्ड का कौरीडोर हृदयविदारक चीख से भर गया. 19 साल की जीनत, पत्थर हुई जीनत, 4 भाईबहनों की मां बनी जीनत, मजबूरियों के जंगी मैदान में तन्हा खड़ी जीनत, मखमली महकते ख्वाबों की सेज पर उगे हालात के कांटों को किचकिचा कर मुट्ठी में भर कर लहूलुहान होती जीनत. अरमानों के छलकते सागर को बेदर्दी से दफनाती जीनत. एक महबूबा के रुपहले ख्वाब की लाश को कंधे पर लिए धीरेधीरे चलती इंसेंटिव केयर यूनिट के दरवाजे की तरफ बढ़ती जीनत ने पर्स से फोन निकाल कर नंबर मिलाया, ‘‘मकसूद साहब, अब यह शादी नहीं हो सकेगी. हमें माफ कीजिएगा.’’

निक जोनस का ‘स्पैसमैन’ वीडियो हुआ रिलीज तो प्रियंका चोपड़ा संग शेयर की खूबसूूरत तस्वीर

निक जोनस के नए एल्बम के रिलीज का इंतजार उनके हर फ्रेंड्स को होता है. ऐसे में निक जोनस ने एक बार फिर अपने फ्रेंड को खुशखबरी दी है कि इनका नया नया एल्बम स्पेसमैन रिलीज हो चुका है. सैल 2019 के बाद निक जोनस का यह पहला सोलो एलब्म है. जिसमें वह जोनस ब्रदर्स के साथ-साथ वर्चुअल में प्रियंका के साथ भी नजर आ रहे हैं.

निक ने सोशल मीडिया पर इस बात का खुलासा करते हुए कहा है कि स्पेसमैन एल्बम आ चुका है. आपके सुनने को लेकर काफी ज्यादा एक्साइटेड हूं.

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इस गाने को लिखने के लिए मैं उन तमाम चीजों से गुजरा जो इस दुनिया में हो रही है. हम लोगों के बीच जो दूरी है, और दुनिया में जो हो रहा है वह तमाम चीजे आपको इस एल्बम में देखने को मिलेगी. स्पैसमैन गाने का वीडियो भी लॉन्च हो गया है.

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बता दें कि निक इस गाने में स्पैसमैन की भूमिका में नजर आ रहे हैं. वहीं प्रियंका इस गाने में वर्चुअल तरीके से दिखाई दे रही हैं. इस गाने को शेयर करने के बाद प्रियंका ने निक के साथ कुछ तस्वीरे शेयर की है. जिसमें दोनों काफी ज्यादा एक्साइटेड नजर आ रहे हैं.

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तो वहीं निक जोनस की पत्नी प्रियंका चोपड़ा ने भी इस गाने के एल्बम को शेयर किया है और लिखा है कि मुझे गर्व है आप पर निक आप जो भी करते हैं. उसे देखकर मुझे अच्छा लगता है. उन्होंने इस गाने के टीजर को शेयर करते हुए लिखा है कि स्पेसमैन वीडियो आ चुका है. इसके साथ ही प्रियंका ने दिल वाला इमोजी भी बनाया है. प्रियंका और निक को एक-दूसरे के साथ बेहद ज्यादा खुश हैं. दोनों की जोड़ी को लोग खूब पसंद भी करते हैं.

ट्विंकल खन्ना ने फोटो शेयर कर फैंस को बताया कैसे बचे तलाक से

बॉलीवुड एक्ट्रेस ट्विंकल खन्ना इन दिनों अपने पति क साथ वेकेंशन पर है, लेकिन ये किसी को पता नहीं है कि दोनों अपनी छुट्टियां कहा मना रहे हैं. हाल ही में ट्विंकल खन्ना ने अपने वेकेशन की तस्वीर शेयर कि है. जिसमें वह अपने पति के साथ रोमांटिक पोज देते नजर आ रही हैं.

यह फोटो सोशल मीडिया पर सभी फैंस का ध्यान अपनी तरफ खींच रहा है. ऐसे में ट्विंकल खन्ना के पोस्ट पर फैंस और बॉलीवुड सेलेब्स लगातार लाइक और कमेंट करते नजर आ रहे हैं.

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ट्विंकल खव्ना ने फोटो शेयर करते हुए मैरेड कपल को तलाक से कैसे बचना चाहिए उसका फार्मूला बताया है. उन्होंने लिखा है, कपल इंस्टाग्राम और भी असलियत में अगर हम एक-दूसरे को देखकर स्माइल करते हैं , जैसे कि हम कर रहे हैं तो किसी का तलाक नहीं होगा.

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फैंस इस पोस्ट पर खूब कमेंट करते दिखाई दे रहे हैं. ट्विंकल खन्ना और अक्षय कुमार ने साल 2001 में शादी की थी, शादी के एक साल के बाद उन्होंने बेटे आरव को जन्म दिया था. आरव के जन्म के लंबे वक्त का गैप लेने के बाद ट्विंकल खन्ना ने अपनी बेटी नितारा को जन्म दिया था. ट्विंकल शादी के बाद अपने घर को संभालने लगी तो वहीं अक्षय कुमार बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहे. आज अक्षय कुमार इंडस्ट्री का जाना पहचाना नाम है.

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एगर बात करें टविंकल खन्ना की तो वह आए दिन सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती हैं. दोनों पति -पत्नी एक -दूसरे के साथ वक्त बिताते नजर आते हैं. इस कपल को देखने के बाद भी बॉलीवुड का बेस्ट कपल कह सकते हैं.

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