लेखिका-निधि अमित पांडेय

सुबह से ही घर का माहौल थोड़ा गरम था. महेश की अपने पिता से रात को किसी बात पर अनबन हो गई थी। यह पहली बार नहीं हुआ था.

ऐसा अकसर ही होता था। महेश के विचार अपने पिता के विचारों से बिलकुल अलग थे पर महेश अपने पिता को ही अपना आदर्श मानता था और उन से बहुत प्रेम भी करता था.

महेश बहुत ही साफदिल इंसान था. किसी भी तरह के दिखावे या बनावटीपन की उस की जिंदगी में कोई जगह नहीं थी.

महेश के पिता मनमोहन राव लखनऊ के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. बड़ेबड़े लोगों के साथ उन का उठनाबैठना था. उन्होंने अपनी मेहनत से कपड़ों का बहुत बड़ा कारोबार खड़ा किया था. इस बात का उन्हें बहुत गुमान भी था और होता भी क्यों नहीं, तिनके से ताज तक का सफर उन्होंने अकेले ही तय किया था.

ये भी पढ़ें- नाराजगी-भाग 2 : संध्या दूसरी शादी के बारे सोचकर क्यों डर रही थी

महेश को इस बात का बिलकुल घमंड नहीं था. अपने मातापिता की इकलौती संतान होने का फायदा उस ने कभी नहीं उठाया था. महेश की मां रमा ने उस की बहुत अच्छी परवरिश की थी. उस में संस्कारों की कोई कमी नहीं थी. हर किसी का आदरसम्मान करना और जरूरतमंदों के लिए दिल में दया रखना उस का स्वभाव था. वह घर के नौकरों से भी बहुत तमीज और सलीके से बात करता था. उस के स्वभाव के कारण वह अपने दोस्तों में भी बहुत प्रिय था.

आधी रात को भी अगर कोई परेशानी में होता था तो एक फोन आने पर महेश तुरंत उस की मदद के लिए पहुंच जाता था. किसी के काम आ कर उस की सहायता कर के महेश को बहुत सुकून मिलता था.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...