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खुशियों की तलाश : भाग 4

भाइयों में ?ां?ालाहट बढ़ने लगी. भाभियां जैसे इसी मौके की तलाश में थीं. वे रमा और मुन्ने को नीचा दिखाने का कोई अवसर हाथ से जाने न देतीं.

बूढ़ी होती मां सिहर उठतीं, ‘मेरे बाद इस लाड़ली बेटी का क्या होगा? बेटेबहुओं का रवैया वे देख रही थीं. उन का चिढ़ना स्वाभाविक था क्योंकि सब की घरगृहस्थी है, बालबच्चे हैं, बढ़ते खर्चे हैं. इस  भौतिकवादी  युग में  कोई किसी का नहीं. उस पर परित्यक्ता बहन और उस का बच्चा जो जबरन उन के  गले पड़े हुए हैं.

कानूनी लड़ाई में ही महीने का  आखिरी रविवार कोर्ट ने मुन्ने को अपने पिता से मिलने का समय मुकर्रर किया था. मुन्ने को इस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता. बाकी दिनों की अवहेलना को वह विस्मृत कर देता.

अवध बिना नागा आखिरी रविवार की सुबह आते. रमा मुन्ने को उन के पास  पहुंचा देती. दोनों एकदूसरे की ओर देखते अवश्य, लेकिन बात नहीं होती. मुन्ना हाथ हिलाता पापा के स्कूटर पर हवा हो जाता.

अवध ने मुन्ने को अपने संरक्षण में लेने के लिए कोर्ट से गुहार लगाई है बच्चे के भविष्य के लिए. ठीक ही है पापा के पास रहेगा, ऊंची पढ़ाई कर पाएगा, सुखसुविधाएं पा सकेगा. वह एक प्राइवेट स्कूल की टीचर, 2 हजार रुपए कमाने वाली, उसे क्या दे सकती है.

कोर्ट के आदेश से कहीं मुन्ना उस से  छिन गया, अपने पापा के पास चला गया तब वह किस के सहारे जिएगी. किसी निर्धन से उस की पोटली गुम हो जाए, तो जो पीड़ा उस गरीब को होगी वही ऐंठन रमा के कलेजे में होने लगी. ‘न, न, मैं बेटे को अपने से किसी कीमत पर अलग नहीं होने दूंगी. वह सिसकने लगी. स्वयं से जवाबसवाल करते उसे ?ापकी आ गई.

आंखें  खुलीं, तो पाया मुन्ना आ चुका है. हर बार की तरह खिलौने, मिठाइयां उस के पसंद की चौकलेट से लदाफंदा.

घरवाले उन सामानों को हिकारत से देखते. यह नफरत का बीज उस का ही बोया हुआ है. रमा सबकुछ छोड़छाड़  भागी न होती, उस की गृहस्थी यों तहसनहस न होती. वह डाल से टूटे पत्ते के समान धूल नहीं चाट रही होती.

‘‘मम्मी, तुम्हारे लिए…’’

‘‘क्या?’’

लाल पैकेट में 2 जोड़ी कीमती चप्पलें. रमा भौचक, ‘‘यह क्या, तुम ने  पापा से कहा?’’

‘‘नहीं, नहीं, पापा ने अपने मन से खरीदा. पापा अच्छे हैं, बहुत अच्छे.  मम्मा, हम लोग पापा के साथ क्यों नहीं रहते?’’

रमा निरुत्तर थी. रमा ने चप्पलों की जोड़ी ?ाट से छिपा दी. अगर पहनती है तो घर वालों की कटूक्तियां और न पहने तब मुन्ने की जिज्ञासा.

दीवाली का त्योहार आ गया. भाईभाभी सपरिवार खरीदारी में व्यस्त. वह सूखे होंठ, गंदे कपड़ों में घर की  सफाई में लगी थी.

दरवाजे की घंटी बजी. शायद, घर वाले लौट आए. इतनी जल्दी…

रमा ने दरवाजा खोला, सामने  अवध. रमा स्तब्ध. घर में कोई नहीं था. उस की जबान पर जैसे ताला लग गया.

‘‘भीतर आने के लिए नहीं कहोगी?’’ अवध के प्रश्न पर वह संभल चुकी थी.

‘‘हां, हां, आइए परंतु इस समय घर में कोई नहीं है.’’

‘‘मुन्ना कहां है? ’’

‘‘वह अपनी नानी के साथ पार्क  गया है.’’

‘‘अच्छा, दीवाली की सफाई हो  रही है.’’

रमा सम?ा नहीं पा रही थी, वह क्या  कहे. इस विषम परिस्थिति के लिए वह कतई तैयार न थी. जिस व्यक्ति पर कभी उस ने अपना सर्वस्व न्योछावर किया था, उस के बच्चे की मां बनी थी, उस से  ऐसी ?ि?ाक. थोड़ी सी बेवफाई और  कानूनी  दांवपेंच ने दोनों के बीच गहरी खाई खोद दी थी.

‘‘रमा, तुम मु?ा से बहुत नाराज हो, होना भी चाहिए. मैं तुम्हारा अपराधी हूं. मैं ने तुम्हें बहुत दुख दिए. दिवारूपी मृगतृष्णा के पीछे भागता रहा. अपनी पत्नी के निश्चछल प्रेम के सागर को पहचान नहीं पाया. अब मैं तुम्हें और मुन्ने को लेने आया हूं. मु?ो  माफ कर दो.’’

‘‘मैं आप के साथ कैसे जाऊंगी, दिवा के साथ नहीं रह सकती. मु?ो मेरे हाल पर छोड़ दीजिए,’’ आक्रोश आंखों से बह निकला.

‘‘दिवा… दिवा से मेरा कोई लेनादेना नहीं  है, मैं ने उस से सारे रिश्ते तोड़ लिए हैं. पहले ही काफी देर हो चुकी है, अब अपनी पत्नी और बच्चे से दूर नहीं रह सकता.’’

‘‘किंतु  मेरी मां, भाई, कोर्टकचहरी…’’ उसे  अपने कानों पर विश्वास नहीं हो  रहा था.

‘‘मां, भाई को क्यों एतराज होगा. अपनी पत्नी और बेटे को लेने आया हूं. और रहा कोर्टकचहरी, लो तुम्हारे सामने ही सारे कागजात फाड़ फेंकता हूं. जब मियांबीवी राजी तो क्या करेगा काजी.’’

‘‘पर, मैं  कैसे  विश्वास करूं?’’

‘‘विश्वास तुम को करना ही पड़ेगा. भरोसा एवं प्यार पर ही दांपत्य की नींव टिकी होती है. तुम ने मु?ा पर पहले ही अपना अधिकार जता बांहों का सहारा दे अपने पास खींच लिया होता तो मैं दिवा  में अपनी खुशियां नहीं तलाशता. सच है कि मैं भटक गया था. किंतु  यह न भूलो, भटका हुआ मुसाफिर भी कभी न कभी सही राह पा लेता है,’’ अवध ने अपनी बांहें फैला दीं.

परिस्थितियों की मार से आहत रमा इस अप्रत्याशित घटनाक्रम से अचंभित  अपने पति के हृदय से जा लगी.

अवध, रमा और मुन्ने दीवाली के दिन  जब अपने घर पहुंचे, एकसाथ लाखों दीये जल उठे. दीवाली की खुशी द्विगुणित हो गई. उन का उजड़ा संसार दीवाली की रोशनी में आबाद हो चुका था.

 

खुशियों की तलाश : भाग 3

दिवा ने चुभती नजर रमा पर डाली, ‘कहां ढूंढ़ा इतनी खूबसूरत पत्नी को.’

‘अरे, तुम से कम ही,’ अवध का मजाकिया स्वभाव था.

किंतु रमा ?ोंप गई. अवध के इस बेतुके मजाक ने सीधे उस के दिल को टीस दी. दिवा जितनी देर रही, अवध से चिपकी रही. सुंदर वह थी ही, उस की दिलकश अदाएं, बात करने का अंदाज, बेवजह खिलखिलाना रमा को जरा भी नहीं सुहाया.

हंसीमजाक, शोरशराबा, भोजनपानी करतेकरते आधी रात बीत गई.

‘अब, मैं चलूंगी,’ दिवा बोली थी.

‘चलो, मैं तुम्हें छोड़ आता हूं,’ अवध  की आंखों की चमक रमा आज तक भूल नहीं पाई है. अगर वह पुरुष मनोविज्ञान की ज्ञाता होती तो कभी भी अपने पति को उस मायावी के संग न भेजती.

… पति जब तक घर लौटे, वह मुन्ने को सीने से चिपकाए सो गई थी. फिर तो अवध रमा और मुन्ने की ओर से उदासीन होता चला गया. उस की शामें दिवा के साथ बीतने लगीं.

पत्नी से उस की औपचारिक बातचीत ही होती. मुन्ने में भी खास दिलचस्पी नहीं रह गई थी उस की. भोली रमा पति के इस परिवर्तन को भांप नहीं पाई. दिनरात मुन्ने में खोई रहती. वह  मुन्ने को कलेजे से लगाए सुखस्वप्न में खोई थी.

एक दिन उस की सहेली ने फोन पर जानकारी दी, ‘आजकल तुम्हारे मियांजी बहुत उड़ रहे हैं.’

‘क्या मतलब?’

‘अब इतनी अनजान न बनो. तुम्हारे अवध का दिवा के साथ क्या चक्कर चल रहा है, तुम्हें मालूम नहीं? कैसी पत्नी हो तुम? दोनों स्कूटर पर साथसाथ घूमते हैं, सिनेमा व होटल जाते हैं और तुम पूछती हो, क्या मतलब,’ सहेली ने स्पष्ट किया.

‘देख, मु?ो ?ाठीसच्ची कहानियां न सुना, वह अवध के साथ पढ़ती थी,’ रमा चिहुंक उठी.

‘पढ़ती थी न, अब अवध के साथ क्या गुल खिला रही है? मु?ा पर विश्वास नहीं है, पूछ कर देख ले. फिर न कहना, मु?ो आगाह नहीं किया. तुम इन मर्दों को नहीं जानतीं. लगाम खींच कर रख, वरना पछताएगी,’ सहेली ने फोन रख दिया.

अब रमा का दिल किसी काम में नहीं लग रहा था. मुन्ना भी आज उसे बहला नहीं सका. वह छटपटा उठी. सहेली की बात किस से कहे- मांजी से, पिताजी से… न…न… उस की हिम्मत जवाब दे गई. वह सीधे अपने पति से ही बात करेगी, अवध ऐसा नहीं है.

अवध सदा से ही अपने रखरखाव, पहनावे का विशेष ध्यान रखते थे. इधर कुछ ज्यादा ही सजग, सचेत रहने लगे हैं. हरदम खिलेखिले, प्रसन्न अपनेआप में मग्न. घर में पांव टिकते नहीं थे. भूल कर भी रमा को कहीं साथ घुमाने नहीं ले गए. मुन्ना एक अच्छा बहाना था. रमा को कोई शिकवा भी नहीं था. वह अपनी छोटी सी दुनिया में मस्त थी. जहां उस का प्यारा पति एवं जिगर का टुकड़ा मुन्ना था, वहीं उस की खुशियों में उस की सहेली ने सेंधमारी की थी. वह बेसब्री से अवध की राह देखने लगी.

रात गए अवध लौटा, गुनगुनाता, सीटी बजाता बिलकुल आशिकाने मूड में.

‘खाना,’ रमा ने पूछा तो उसे अपने इंतजार में देख उसे आश्चर्य हुआ.

‘खा लिया है,’ वह बेफिक्री से कोट का बटन खोलने लगा.

रमा ने लपक कर कोट थाम लिया. लेडीज परफ्यूम का तेज भभका.

रमा को यों कोट थामते, अपने लिए जागते देख अवध चौंका. क्योंकि मुन्ने के जन्म के बाद से वह बच्चे में ही खोई रहती. वह रात में लौटता, उस समय वह मुन्ने के साथ गहरी नींद में खर्राटे लेती मिलती. आज ऐसे तत्पर देख आश्चर्यचकित होना स्वाभाविक है.

परफ्यूम की महक ने रमा को दीवाली की रात की याद दिला दी. यही खुशबू दिवा के कपड़ों से उस दिन आ रही थी. सहेली ठीक कह रही थी. रमा उत्तेजित हो उठी, ‘कहां खाए?’

‘पार्टी थी.’कहां?’

‘होटल में, कुछ क्लांइट आए थे.’

‘सच बोल रहे हो?’

‘तुम कहना क्या चाहती हो?’

‘यही कि तुम दिवा के साथ समय बिता कर, खा कर आ रहे हो.’

अवध का चेहरा क्षणभर के लिए   फक पड़ गया. फिर ढिठाई से बोला, ‘तुम्हें कोई आपत्ति है, मेरी बातों का विश्वास नहीं?’

‘दिवा के साथ गुलछर्रे उड़ाते तुम्हें  शर्म नहीं आती एक बच्चे के पिता हो कर.  छि,’ रमा क्रोध से कांपने लगी.

‘दिवा पराई नहीं, मेरी पहली पसंद है. वह तो मां ने तुम्हारे नाम की माला न जपी होती, तुम्हारी जगह पर दिवा होती.’

‘उस ने मेरे चलते विवाह नहीं किया. वह आज भी मु?ो उतना ही चाहती है  जितना  कालेज के दिनों में. फिर मैं उस का साथ क्यों न दूं. एक  वह  है  जो  मेरे लिए पलकें बिछाए रहती है और एक तुम हो जिसे अपने  बच्चे से फुरसत नहीं है,’ पति बेहयाई पर उतर आया.

रमा के पांवतले जमीन खिसक गई. आरोपप्रत्यारोप का सिलसिला चलने लगा.

अवध का कहना था, ‘तुम्हें खानेपहनने की कोई दिक्कत नहीं होगी. जैसे  चाहो, रहो लेकिन मैं दिवा को नहीं छोड़ सकता. तुम पत्नी हो और वह प्रेमिका.’

‘क्या केवल खानापहनना और पति के अवैध रिश्ते को अनदेखा करना ही  ब्याहता का धर्म है?’ रमा इस कठदलीली को कैसे बरदाश्त करती. खूब रोईधोई. अपने सिंदूर, मुन्ने का वास्ता दिया. सासससुर से इंसाफ मांगा. उन्होंने उसे  धैर्य रखने की सलाह दी. बेटे को  ऊंचनीच  सम?ाया,  डांटा, दुनियादारी का हवाला दिया.

लेकिन अवध पर दिवा के रूपलावण्य का जादू चढ़ा हुआ था. रमा जैसे चाहे, रहे. वह दिवा को नहीं छोड़ेगा.

एक  म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं. रमा को प्यारविश्वास का खंडित हिस्सा स्वीकार्य नहीं.

पतिपत्नी का मनमुटाव,  विश्वासघात शयनकक्ष से बाहर आ चुका था. जब रमा पति को  सम?ाने  में  नाकामयाब रही तब एक दिन  मुन्ने को गोद में  ले मायके का रास्ता पकड़ा.

सासससुर ने सम?ाया. ‘बहू, अपना घर पति को छोड़ कर मत जाओ. अवध की आंखों से परदा जल्दी ही उठेगा. हम सब तुम्हारे साथ हैं.’

किंतु रमा का भावुक हृदय पति के इस  विश्वासघात से टूट गया था. व्यावहारिकता से  सर्वथा अपरिचित  वह इस घर में पलभर भी रुकने के लिए  तैयार न थी, जहां उस का पति पराई स्त्री  से संबंध रखता हो. उस की खुद्दारी ने अपनी मां के आंचल का सहारा लेना ही उचित सम?ा, भविष्य की भयावह स्थिति से अनजान.

‘बहू,  मुन्ने के बगैर हम कैसे  रहेंगे?’ सासुमां ने मनुहार की.

‘पहले अपने बेटे को संभालिए, मैं  अपने बेटे पर उस दुराचारी पुरुष की छाया तक नहीं पड़ने दूंगी.’

‘उसे संभालना तो तुम्हें पड़ेगा बहू. तुम उस की पत्नी हो, ब्याहता हो. इस प्रकार मैदान छोड़ने से बात बिगड़ेगी ही.’

‘मु?ो कुछ नहीं सुनना. मु?ा में इतनी  सामर्थ्य है कि अपना और अपने मुन्ने का पेट भर सकूं.’

रमा एक ?ाटके में पतिगृह छोड़ आई. मां ने जब सारी बातें सुनीं तो सिर पीट लिया. फूल सी बच्ची पर ऐसा अत्याचार. उन्होंने बेटी को सीने से लगा लिया, ‘मैं अभी जिंदा हूं, जेल की चक्की न पिसवा दी तो कहना.’

भाइयों ने दूसरे दिन ही कोर्ट में  तलाकनामा दायर करवा दिया. भाभियां भी खूब चटखारे लेले कर ननदननदोई  के ?ागड़ों का वर्णन सुनतीं. रमा अपना सारा आक्रोश, अपमान, कुंठा नमकमिर्च लगा कर बयान करते न थकती.

शुरुआती दिनों में  सभी जोशखरोश से रमा का साथ  देते. मुन्ने का भी  विशेष  खयाल रखा जाता. फिर  प्रारंभ हुई कोर्टकचहरी की लंबी प्रक्रिया. तारीख पर  तारीख. वकीलों की ऊंची फीस. ?ाठीसच्ची उबाऊ बयानबाजी. एक ही  बात उलटफेर कर. जगहंसाई. रमा और  मुन्ने का बढ़ता खर्चा. निर्णय की अनिश्चितता.

बेहाल मध्यमवर्गीय परिवार

लेखक-दीपक कुमार त्यागी

आपदा के समय रमेशचंद्र के मध्यमवर्गीय परिवार के भूखों मरने की नौबत आ गई.
सरकार की तरफ से भी किसी तरह की मदद नहीं मिल पा रही थी. ऐसे में उन्होंने देश में आपदा के हालात चल रहे थे, इस स्थिति में लोग न जाने कैसेकैसे अपने परिवार का पेट भर रहे थे. सरकार भी ऐसी स्थिति में जरूरतमंदों की यथासंभव सहायता कर रही थी. लेकिन एक परिवार ऐसा था जिसे खाने के लाले पड़े थे. सरकार से भी उसे कोई मदद नहीं मिल पा रही थी. ऐसी स्थिति में रमेशचंद्र ने आपदा राहत कंट्रोल रूम में फोन किया, ‘‘नमस्कार जी, क्या आप आपदा राहत कंट्रोल रूम से बोल रहे हैं?’’

‘‘हां जी बोलिए, मैं आपदा राहत कंट्रोल रूम से बोल रहा हूं.’’ दूसरी तरफ से आवाज आई.
तभी रमेशचंद्र ने लड़खड़ाती जुबान से कहा, ‘‘साहब, हमारे घर के पास झुग्गियों में कुछ बेहद लाचार किस्मत के मारे मजदूर रहते हैं, जोकि अपना राशन खत्म होने के कारण कई दिनों से भूख से तड़प रहे हैं. इन बेचारों की तुरंत मदद कर के उन की जान बचा लो साहब.’’औफिसर ने रमेशचंद्र को हड़काते हुए कहा, ‘‘उन लोगों ने मदद के लिए फोन क्यों नहीं किया और तुम क्यों कर रहे हो?’’‘‘साहब, गुस्सा मत होइए. वो बेचारे भूख से बहुत परेशान हैं. बात करने तक की स्थिति में नहीं हैं.’’ रमेशचंद्र ने प्यार से कहा.
‘‘ठीक है एड्रेस बताओ, कहां मदद पहुंचवानी है और कितने लोग हैं?’’

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औफिसर ने पूछा. ‘‘जी साहब, लिखो. मकान नबंर 1008, सेक्टर 27, सिटी सेंटर. यहां 2 बच्चे व 4 लोग बड़े लोग हैं.’’ रमेशचंद्र ने बताया. यह सुनते ही उस अफसर ने गुस्से में भर कर रमेशचंद्र को डांटते हुए कहा, ‘‘तेरा दिमाग खराब है क्या, अभी तो झुग्गी बता रहा था और अब मकान का पता लिखवा रहा है, इस सेक्टर में तो सब पैसे वाले लोग रहते हैं.’’रमेशचंद्र ने बड़ी लाचारी से कहा, ‘‘जी साहब, दिमाग भी खराब है और आजकल किस्मत भी खराब चल रही है. आप ठीक कह रहे हैं कि इस सेक्टर में पैसे वाले लोग रहते हैं.

लेकिन साहब झुग्गी का कोई नंबर तो होता नहीं और अगर आप की टीम झुग्गी ढूंढने में इधरउधर भटकती रही और उन को मदद देर से पहुंची तो उन मुसीबत के मारों पर भूख के चलते पहाड़ टूट सकता है. साहब, उन की जान जा सकती है. इसलिए मैं ने अपने घर का पता लिखवा दिया है.’’‘‘तुम्हारी बातों से लगता है कि उन लोगों की बहुत गंभीर स्थिति है. चलो ठीक है, हम तुरंत मदद भिजवा रहे हैं, लेकिन तुम को जरा भी इंसान व इंसानियत की फिक्र नहीं है, एक टाइम रोटी बनवा कर तुम भी उन बेचारों को खिलवा सकते थे.

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‘‘ऐसा कर के तुम्हारा कुछ बिगड़ तो नहीं जाता. खैर, मैं तुरंत मदद करने वाली जिला राहत टीम को आप के पास भेज रहा हूं. टीम आधे घंटे में तुम्हारे पास उन लोगों के लिए खाना व एक महीने का राशन ले कर पहुंच रही है.’’ ‘‘बहुतबहुत धन्यवाद साहब. मैं हमेशा आप का बहुत एहसानमंद रहूंगा, वो लाचार भूखे लोग आप को हमेशा दिल से दुआ देंगे साहब.’’ रमेशचंद्र ने कहा.‘‘ठीक है, मैं ने इस काम के लिए टीम के वरिष्ठ अधिकारी विजय की ड्यूटी लगा दी. वो खाना व राशन ले कर निकलने वाले हैं. तुम उन का इंतजार करना.’’

‘‘जी साहब, मैं उन का इंतजार करूंगा, आप चिंता न करें.’’ लगभग आधे घंटे बाद रमेशचंद्र के मोबाइल पर काल आई. फोन करने वाले ने उन से कहा, ‘‘मैं जिला राहत टीम से विजय बोल रहा हूं, घर के बाहर आ जाओ. ‘‘जी साहब, अभी आया.’’ कहते हुए रमेशचंद्र घर से बाहर निकले तो देखा कि एक जीप में 2 लोग खाना व सामान ले कर इंतजार कर रहे थे, वह पास घबराते हुए उन के पहुंचे और बोले, ‘‘साहब नमस्कार, मैं रमेशचंद्र हूं.’’ ‘‘ठीक है, बताओ कौन सी झुग्गी है जिन लोगों की खाने और राशन से मदद करनी है?’’ विजय ने कहा.

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‘‘आप क्यों परेशान होते हैं, आप खाना व सामान मुझे दे दो, मैं उन की झुग्गी पर खुद ही पहुंचा दूंगा.’’ रमेशचंद्र बोले. ‘‘नहीं, मैं खुद दे कर आऊंगा. साहब का आदेश है कि उन मुसीबत के मारे लोगों से मिल कर जरूर आना और उन की कोई और जरूरत हो तो उन से पूछ लेना. तुम मुझे उन से मिलवाओ, जिस से मैं समय से अपना काम कर के किसी दूसरे व्यक्ति की मदद करने जा सकूं.’’ यह सुन कर रमेशचंद्र पसीने से तरबतर हो घबराते हुए बोले, ‘‘जी ठीक है, जैसा आप का आदेश, चलिए.’’

वह विजय को अपने छोटे से अव्यवस्थित घर के अंदर ले जाने लगे. ‘‘तुम आपदा के समय में मेरा टाइम खराब नहीं करो, हमें और भी जरूरतमंदों की सहायता करनी है. इसलिए हमारे पास आप के यहां बैठने का समय नहीं है. हमें जल्दी से उन झुग्गियों पर ले चलो.’’ रमेशचंद्र उस से नजरें छिपा कर बोले, ‘‘साहब मैं आप का टाइम खराब नहीं कर रहा बल्कि आप को जरूरतमंद लोगों के पास ही ले जा रहा हूं.’’
‘‘मैं तुम्हारे खिलाफ कानूनी काररवाई करूंगा, तुम ने इस भयंकर आपदा काल में झूठ बोल कर हमारा टाइम खराब किया. तुम इंसानियत के दुश्मन हो, जिस घर में तुम चलने के लिए बोल रहे हो, उस घर के लोगों को मदद की आवश्यकता नहीं हो सकती. कोई भी इस बात का अंदाजा घर और गाड़ी देख कर लगा सकता है. मैं फोन कर के पुलिस को बुलाता हूं.’’

विजय गुस्से से लाल हो कर मोबाइल से कोई नंबर मिलाने लगा तो रमेशचंद्र घबरा गए. उन्होंने मानमनौव्वल कर के जैसेतैसे उसे रोका तो वह बेहद गुस्से में वापस अपनी गाड़ी की तरफ जाने लगा.
रमेशचंद्र उसे रोकते हुए बोले, ‘‘साहब, अगर आप खाना और राशन दे जाएं तो आप का बहुत एहसान होगा. हम लोगों की जान बच जाएगी. मुझे और मेरे घर वालों को खाने व राशन की बहुत सख्त जरूरत है.’’

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‘‘क्यों झूठ बोल रहे हो, तुम को जरूरतमंद लोगों का अधिकार मारते हुए शर्म नहीं आती. तुम्हारे घर के लोगों को मदद की क्या जरूरत है. तुम तो स्वयं सक्षम हो. तुम क्यों लाचार, मजबूर गरीबों का हक मारना चाहते हो, भयावह आपदा के काल में इतना बड़ा अपराध मत करो और वैसे भी तुम ने मदद झूठ बोल कर किसी अन्य व्यक्ति के लिए मंगवाई है.’’ विजय ने कहा. रमेशचंद्र ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘साहब, कुछ तो रहम करो मुझ पर और मेरे परिवार पर. हम लोग सक्षम नहीं हैं. आप एक बार घर के अंदर जा कर देखो तो सही, हमें मदद की बहुत सख्त जरूरत है साहब.’’

‘‘अगर तुम्हारी बात झूठ निकली तो मैं तुम्हें जेल भिजवा कर ही दम लूंगा. ठीक है, चलो तुम्हारे घर के अंदर चल कर देखते हैं.’’ विजय ने कहा. रमेशचंद्र घबराते, लड़खड़ाते हुए विजय को अपने घर के अंदर ले गए.घर के अंदर की हालत देख कर जैसे विजय के पैरों तले की जमीन खिसक गई, उस की आंखें फटी रह गईं. वहां पर भूख से बिलखते 12 व 15 साल के 2 बच्चे और रमेशचंद्र के बुजुर्ग मातापिता और उन की 40 वर्षीय पत्नी मौजूद थी. उन सभी की स्थिति बेहद दयनीय थी.

यह देख कर विजय कुछ नहीं बोल पाया. उस ने तुरंत उन लोगों की जांच के लिए डाक्टर को बुलाने के लिए फोन किया और साथ आए आदमी से गाड़ी से खाना व राशन घर के अंदर रखने के लिए कहा.
यह सब देख कर रमेशचंद्र की आंखों से आंसू की धारा फूट पड़ी और कहा, ‘‘साहब, आज आप ने मेरे परिवार की जान बचा कर मुझ को हमेशा के लिए अपना ऋणी बना लिया. साहब, मेरा परिवार एक हफ्ते से भूखा है और मुझ को कोई मदद नहीं मिल पा रही थी. इसलिए आज मैं ने परिवार की जान बचाने की खातिर झुग्गियों के नाम पर झूठ बोल कर राहत सामग्री मंगवाई थी.’’

रमेशचंद्र जमीन पर बैठ कर फूटफूट कर रोने लगे.विजय ने उन्हें धीरज बंधाते हुए कहा, ‘‘जब तक डाक्टर साहब आते हैं, तब तक जरा मुझे अपने बारे में विस्तार से बताओ. यह घर और गाड़ी तो तुम्हारी ही है ना?’’‘‘हां साहब, यह घर भी मेरा है यह गाड़ी भी मेरी है. अभी साल भर पहले अपनी व मातापिता की ताउम्र की कमाई व बैंक से लोन ले कर दोनों खरीदे थे. लेकिन यह पता नहीं था कि लोन लेने के एक साल बाद ही आपदा के चक्कर में एकाएक मेरी नौकरी चली जाएगी और दरदर ठोकर खाने की स्थिति आ जाएगी.

‘‘साहब, हमारी कमाई तो बैंक का लोन भरने व बच्चों की पढ़ाई में ही खत्म हो जाती है. घर का खर्चा पिताजी की पेंशन से बड़ी ही मुश्किल से चल पाता है. हमारे पास किसी तरह की कोई भी बचत हो ही नहीं पाती. लेकिन अब तो खाने के भी लाले पड़ गए हैं. हम मध्यमवर्गीय तो आज के व्यावसायिक दिखावे वाले दौर में केवल कर्ज चुकाने के लिए जिंदा हैैं.’’ रमेशचंद्र ने अपनी व्यथा सुनाई. ‘‘लेकिन तुम अपने पड़ोसियों, परिचितों, रिश्तेदारों व यारदोस्तों से तो मदद मांग सकते थे.’’ विजय ने कहा.

‘‘आप ठीक कह रहे हैं साहब, मैं ने मदद के लिए बहुत प्रयास किए, लेकिन हर कोई मदद की बात को मजाक मान कर टाल देता था. यह उधार की गाड़ी व मकान आज मेरी व मेरे परिवार की जान का दुश्मन बन गया है, इस के चलते कोई भी मेरी मदद करने के लिए तैयार नहीं है. ‘‘कई बार मदद के लिए आपदा राहत कंट्रोल रूम भी फोन किया, लेकिन उन्होंने भी परिचय सुनते ही मुझे झिड़क दिया और दुत्कारते हुए कहा कि तुम गरीबों का हक मारना चाहते हो.

‘‘मैं खुद कई बार सामाजिक संगठनों द्वारा बंटने वाले भोजन व राशन भी लेने गया, पर वहां पर वो लोग मदद करते समय फोटो खींच रहे थे, इसलिए शर्म व बच्चों के भविष्य के बारे में सोच कर मैं बारबार वहां से वापस आ जाता था.’’ रमेश की दयनीय स्थिति समझने के बाद विजय की आंखों में आंसू आ गए. वह नि:शब्द हो गया. वह सोचने लगा कि एक मध्यमवर्गीय परिवार भी इतने गंभीर आर्थिक संकट में हो सकता है, आज उस की समझ में आ गया.

इतने में घर के गेट पर डाक्टर की गाड़ी आ कर रुकी, तो विजय उस गाड़ी के पास पहुंचा और डाक्टर को घर के अंदर ले गया. डाक्टर ने घर के सभी लोगों का चैकअप किया. चैकअप करने के बाद डाक्टर ने बताया, ‘‘भूख के चलते इन लोगों की हालत बहुत खराब है अगर इन को आज समय पर भोजन और चिकित्सा नहीं मिलती तो इन की जान जा सकती थी. अब मैं ने इन को एक हफ्ते की दवाई व विटामिन की गोलियां दे दी हैं. अपना मोबाइल नंबर भी दे दिया है अगर कोई दिक्कत होगी तो मुझे फोन कर के बुला लेंगे.’’ ‘‘वैसे एक हफ्ते बाद मैं खुद इन को देखने आ जाऊंगा. खाना खाने के बाद ये एकएक खुराक दवा ले लेंगे. और बाकी कैसे खानी है, वह भी समझा दिया है. सुबह तक ये लोग अपने आप को काफी ठीक महसूस करने लगेंगे.’’ डाक्टर फिर वहां से चला जाता है.

विजय ने भी रमेशचंद्र को अपना पर्सनल नंबर देते हुए कहा, ‘‘आज सच में तुम ने मेरी आंखें खोल दीं, शासन, प्रशासन व जिला राहत टीम ने यह कभी भी नहीं सोचा था कि एक मध्यमवर्गीय परिवार पर भी आपदा के कारण इतनी भयंकर मार पड़ सकती है. मैं अभी औफिस जा कर अपने सीनियरों को स्थिति से अवगत करवाऊंगा और उन से भविष्य में मध्यमवर्गीय परिवारों की मदद का भी प्रावधान करने की बात कहूंगा.’’‘‘साहब, मेरा भी आप से एक यही निवेदन है कि सरकार को अब मध्यमवर्गीय परिवारों की मदद के लिए भी ध्यान देना चाहिए. क्योंकि सामाजिक संस्थाओं द्वारा मदद करते समय फोटो खींचने की वजह से कई लोग चाहते हुए भी उन से मदद नहीं ले पाते.

यह मजबूरी व लाचारी उन के जीवन पर बहुत भारी पड़ सकती है, इसलिए सरकार को उन का ध्यान रखना चाहिए.’’ रमेशचंद्र ने कहा. ‘‘बिलकुल. तुम ने हमारी आंखें खोल दी हैं और हम मध्यमवर्गीय परिवारों के सहयोग के लिए भी हरसंभव प्रयास करेंगे.’’विजय ने अपनी जेब में रखे 5 हजार रुपए निकाल कर रमेश को दिए तो रमेश ने पैसे लेने से इनकार कर दिया. बहुत इनकार करने के बाद भी विजय ने अधिकार के साथ जबरन पैसे देते हुए कहा, ‘‘सब का ध्यान रखना, कोई दिक्कत हो तो मुझे फोन करना. अच्छा, अब मैं चलता हूं.’’ इस के बाद वह गाड़ी में बैठ कर आंखों में आंसू लिए अपने औफिस की तरफ यह सोचता हुआ चल दिया कि धनवान लोगों के पास दौलत की कोई कमी नहीं. वह आपदा में भी साधन इकट्ठा कर के जीवन जी लेंगे. गरीब की मदद सरकार व समाजसेवी और धनवान लोग करते हैं.

लेकिन एक मध्यमवर्गीय परिवार के पास न तो दौलत है न वो गरीब है, जो कोई उस की मदद करे. ऐसे में वो आपदा के वक्त कैसे अपना और अपने परिवार का गुजारा करेगा. सरकारी तंत्र को भी इस तरह के हालात बनने से पहले ही मध्यमवर्गीय परिवारों की इस समस्या का समाधान करना चाहिए.
हमारे देश के सिस्टम को ध्यान रखना चाहिए कि मजबूरी, लाचारी किसी भी वक्त किसी भी व्यक्ति के सामने आ सकती है, इसलिए हमेशा मानवीय मूल्यों व संवेदनाओं के आधार पर मदद का प्रावधान करना चाहिए.

खुशियों की तलाश : भाग 2

मुन्ना उदास हो गया. उस का  बालसुलभ मन इन विसंगतियों को सम?ा नहीं सका. रमा किसी प्रकार अपना पैर संभालसंभाल कर मंजिल तक पहुंची. सामने खड़े अवध उसे एकटक देख रहे थे. नजरें मिलते ही उन्होंने आंखें ?ाका लीं.

कितने स्मार्ट लग रहे हैं अवध. लगता है नया सूट सिलवाया है, रौयल ब्लू पर लाल टाई, कार भी नई खरीदी है. अरे वाह, क्षणभर के लिए ही सही उस की आंखें चमक उठीं.

मुन्ना पापा को देखते ही दौड़ पड़ा, ‘‘बाय मम्मी.’’ ‘‘बाय.’’ ‘‘पापा, नई गाड़ी किस की है?’’ पापा को पा कर मुन्ना सारे जग को भूल जाता है, शायद मां को भी.  ‘‘तुम्हारी है. तुम्हें कार की सवारी पसंद है न.’’

‘‘सच्ची, मेरे लिए, मेरी है,’’ उसे विश्वास नहीं हो रहा था. पिछले सप्ताह वह मामा की कार में ताक?ांक कर रहा था. उसे मामा के बेटे ने हाथ पकड़ कर धकेल दिया था. ‘मैं भी गाड़ी में बैठूंगा,’ मुन्ने का मन कार से निकलने का नहीं कर रहा था.

मामा का बेटा उसे परास्त करने का तरीका सोच ही रहा था, उसी समय बड़ी मामी सजीधजी कहीं जाने के लिए निकली. मुन्ने को कार में ढिठाई करते देख सुलग पड़ी, ‘पहले घर, अब कार. सब में इस को हिस्सा चाहिए. इन मांबेटे ने जीना दूभर कर दिया है, सांप का बेटा संपोला.’

मामी की कटुक्तियां वह सम?ा या नहीं, लेकिन इतना अवश्य सम?ा गया कि इस खूबसूरत कार पर उस का कोई अधिकार नहीं है. उसे, उस की मम्मी, उस के पापा से कोई प्यार नहीं करता. उस ने कार से उतरने में ही अपनी भलाई सम?ा. अभी जा कर मम्मी से सब की शिकायत करता हूं.

लेकिन मम्मी है कहां? वह रसोई में शाम की पार्टी की तैयारी में जुटी थी. बड़े मामा का प्रमोशन हुआ था और उन की शादी की सालगिरह भी थी. सभी व्यस्त थे, खरीदारी, घर की सजावट, रंगरोगन में. फालतू तो वह और उस की मम्मी.

वह मम्मी के पास जा पहुंचा. आग की लपटों में मम्मी का गोरा रंग ताम्बई हो रहा था. वह एक के बाद एक स्वादिष्ठ व्यंजन बनाने में हलकान हो रही थी. इस स्थिति में उन्हें परेशान करना सही नहीं.

‘मम्मी, एक ले लूं.’ लाल सुर्ख कचौड़ी की खुशबू उसे सदैव आकर्षित करती है. मम्मी ने उंगली के इशारे से मना किया. उस के बढ़ते हाथ रुक गए. ‘पूजा के बाद मिलेगा न, मम्मी?’

‘हां मेरे लाल,’ मम्मी ने लाड़ले को सीने से लगा लिया. मां का शरीर कितना गरम है. सीने में उबलते हुए जज्बात चक्षु से भाप बन निकलने लगे.

‘मेरा राजा बेटा, अपना होमवर्क करो. मैं थोड़ी देर में आती हूं.’ वह जानता है मम्मी रात्रि के 12 बजे से पहले नहीं आने वाली. तब तक वह दुबक कर सो जाएगा.

मम्मी पार्टी समाप्त होने पर बचाखुचा काम समेटेंगी. 2 निवाले खाएंगी या ‘भूख नहीं है,’ कह कर छुट्टी पा लेंगी. उसे एक बार मम्मी ने इसी तरह किसी पार्टी में एक मिठाई खाने के लिए दे दी थी. उस दिन कितना शोर मचा था. यों अपने बेटे को कुछ खाने के लिए देना दोनों मामियों को कितना नागवार गुजरा था. उस दिन से मम्मी ने जैसे कसम खा ली थी. न कुछ उठा कर बेटे को देती थीं न खुद लेती थीं. अपने ही मांबाप के घर में, अपने लोगों के बीच दोनों मांबेटे किरकिरी बने हुए हैं.

सिर्फ मांग में सिंदूर पड़ जाने से, एक बच्चे की मां बन जाने से कोई इतना पराया हो जाता है. यही भाभियां रमा की एकएक अदा पर न्योछावर होती थीं. उस को खिलानेपिलाने में आगे रहती थीं. उन्हीं की नजरों में वह ऐसा गिर चुकी है.

‘‘मम्मी, देखो, नई गाड़ी मेरे लिए. तुम भी चलो, खूब घूमेंगे, पिकनिक पर जाएंगे. अपने दोस्तों को भी ले जाऊंगा,’’ मुन्ना खुशी से बावला हो रहा था.

अवध अपने बेटे का चमकता मुखड़ा निहार रहे थे और रमा, बापबेटे के इस मिलन को किस प्रकार ले- हंसे या रोए. हंसना वह भूल चुकी है और रोना… इस आदमी के सामने जो उस के बेटे का बाप है.

न, वह रोएगी नहीं. कमजोर नहीं पड़ेगी. वहां से भागना चाहती है. टूटी हुई चप्पल… हाय रे, समय का फेर. पति कार स्टार्ट कर जा चुके थे.  मुन्ने का हिलता हाथ नजरों से ओ?ाल हो गया. वह टूटी चप्पल वहीं फेंक नंगे पांव घर लौट आई.

मां किताब पढ़ रही थीं. भाभियां अपनेआप में मस्त. किसी का ध्यान उस की ओर नहीं. वह बिस्तर पर कटे पेड़ के समान गिर पड़ी. हृदय की पीड़ा आंखों में आंसू बन बह चली. बचपन से ले कर आज तक की घटनाएं क्रमवार याद आने लगीं…

रमा के पिता व्यापारी थे. अच्छा खातापीता परिवार. दोनों भाइयों से छोटी रमा सब की लाड़ली, सुंदर, संस्कारी.

पिता के बाद भाइयों ने कारोबार संभाल लिया. भाभियां उस पर दिलों जान छिड़कतीं. भाईबहन का प्यार देख मां फूली नहीं समातीं. रमा रूपवती, मिलनसार लड़की थी. लेकिन मां के अत्यधिक लाड़प्यार, भाइयों के संरक्षण, भाभियों के दोस्ताना व्यवहार ने उसे कुछ ज्यादा ही भावुक बना दिया था. निर्णय लेने की क्षमता का उस में विकास नहीं हो पाया था. आगापीछा नहीं जानती थी. शायद यही सब उस के सर्वनाश का कारण बना और इसी सब ने उसे आज इस विकट स्थिति में खड़ा कर दिया.

‘रमा बड़ी हो गई है, उस के लिए वर ढूंढ़ने की जिम्मेदारी तुम दोनों भाइयों की और विवाह की तैयारी दोनों भाभियों की,’ मां बेटी रमा के ब्याह के लिए चिंतित थी.

भाइयों ने इसे गंभीरता से लिया और उसी दिन से शुरू हुआ उचित वर, घर की तलाश. घरवर दोनों मनोनुकूल मिलना आसान नहीं.

कहीं लड़का योग्य तो घर कमजोर. कहीं घर समृद्ध लेकिन वर रमा के योग्य नहीं. इसी बीच गांवघर की बूआ अवध का रिश्ता ले कर आईं. वे कभी अवध के रूपगुण का बखान करतीं, कभी उस के ऊंचे खानदान व धनदौलत का. रमा छिपछिप कर सुनती, अपने भावी जीवन की कल्पना में डूबतीउतराती रहती.

रिश्ता पक्का हो गया. विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ. लेनदेन में कोई कमी नहीं. वरपक्ष से कोई दबाव भी नहीं था. अवध के परिवार वालों को रमा भा गई थी. परिवार पसंद आ गया था. शुरू में सबकुछ ठीकठाक रहा. अवध रमा पर जान छिड़कता था. मायके की तरह रमा ससुराल में भी सब की लाड़ली बनी हुई थी.

गर्भ में मुन्ने के आते ही अवध खुशी से ?ाम उठा. सासससुर, देवरननद ने रमा की बलैया लीं. देखने वाले दंग. इतने वर्षों पश्चात घर में पहला बच्चा. रमा को सभी हथेली पर रखते. ‘बहू यह न करो, वह न करो,’ सासुमां लाड़ लगातीं.

‘लो बहू तुम्हारे लिए,’ ससुर का हाथ फल, मेवों अन्य पौष्टिक पदार्थों से भरा रहता. और अवध… वह बावला रमा को पलभर के लिए भी आंखों से ओ?ाल नहीं होने देना चाहता था.

दफ्तर से बारबार फोन करता. रोज बालों के लिए गजरा, उपहार लाता. गोलमटोल शिशुओं की तसवीरों से कमरा जगमगा उठा. मां व भाई रमा को लाने गए. सासससुर ने हाथ जोड़ लिए. बेटी का सुख, मानसम्मान देख मां व भाई गद्गद हो उठे.

मां व भाई चाहते थे कि जच्चगी मायके में हो. वहीं सास, ससुर, पति पलभर के लिए बहू को आंखों से ओ?ाल नहीं होने देना चाहते थे.

रमा दोनों पक्षों के दांवपेंच पर मुसकरा उठती. रमा ने स्वस्थ सुंदर बेटे को जन्म दिया. बड़ी धूमधाम से जन्मोत्सव मनाया गया. मां बन कर रमा निहाल हो उठी. जब देखो मुन्ने को छाती से चिपकाए रहती.

घरभर का खिलौना मुन्ना अपनी बालसुलभ अदाओं से सब का मन मोह लेता. ‘रमा, बड़ा हो कर मुन्ना मेरी तरह इंजीनियर बनेगा,’ अवध की आंखें चमकने लगतीं. ‘नहीं, मैं इसे डाक्टरी पढ़ाऊंगी. लोगों की सेवा करेगा,’ रमा हंस पड़ती.

‘न डाक्टर न? इंजीनियर, यह मेरी तरह बैरिस्टर बनेगा,’ दादाजी कब पीछे रहने वाले थे. ‘कहीं नाना जैसा व्यापारी बना तो…’ नानी बीच में टपक पड़तीं. सभी होहो कर हंसने लगते. हर्षोल्लास से लबालब थे मायके और ससुराल. किस की नजर लग गई.

आज उसी मुन्ने की जननी की सुध किसी को नहीं. आखिर इस के पीछे कारण क्या है. मुन्ने के जन्म के बाद तीसरे महीने ही दीवाली का त्योहार और उस मनहूस दीवाली ने रमा व उस के मुन्ने की जीवनधारा पलट कर रख दी.

उस दिन घरबाहर खूब रंगरोगन  हुआ था. नाना प्रकार के पकवान, मिठाइयां, मेवों, उपहारों का ढेर लग गया था. रेशमी साड़ी और कीमती आभूषणों से लदीफंदी रमा पति का बेसब्री से इंतजार कर रही थी.

अवध देर से लौटे, साथ में एक सुंदर युवती थी. ‘रमा, यह मेरी कालेज की सहपाठी दिवा है.’ रमा ने हाथ जोड़ दिए, ‘नमस्ते.’

मेरी बीवी पेट से है, मेरा हमबिस्तरी करने का मन करता है, पर बीवी मना करती है

सवाल

मेरी बीवी पेट से है और 7वां महीना चल रहा है. मेरा हमबिस्तरी करने का मन करता है, पर बीवी मना करती है. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

आप को खुद पर काबू रखना चाहिए. ऐसी हालत में बिना बीवी की इच्छा के हमबिस्तरी करना बच्चे के भी लिए नुकसानदेह हो सकता है.

सवाल
मैं 18 साल की लड़की हूं और एक 21 साल के लड़के से प्यार करती हूं. वह शादी से पहले मेरे साथ हमबिस्तरी करना चाहता है. लेकिन मैं मना करती हूं, क्योंकि कल को मेरी शादी उस से न हो कर किसी और से हो गई तो मुश्किल हो जाएगी. मैं क्या करूं?

जवाब
जब खुद आप को समझ आ रहा है कि किसी और से शादी करने पर कोई दिक्कत खड़ी हो सकती है तो जहां तक हो सके हमबिस्तरी से परहेज ही करें. प्यार में हमबिस्तरी कभीकभी महंगी पड़ जाती है.  बेहतर होगा कि आप दोनों पहले अपने पैरों पर खड़े हो जाएं और अपने प्यार को शादी के अंजाम तक ले जाएं.  प्रेमी अगर हमबिस्तरी के बाबत ज्यादा जिद कर रहा है तो चौकन्नी रहें. सच्चे प्यार में आशिक और माशूका दोनों एकदूसरे के जज्बातों का खयाल रखते हैं. अगर वह आप को प्यार करता है तो मना करने का बुरा नहीं मानेगा.

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शादी से पहले शारीरिक संबंध

आजकल लगभग सभी समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में पाठकों की समस्याओं वाले स्तंभ में युवकयुवतियों के पत्र छपते हैं, जिस में वे विवाहपूर्व शारीरिक संबंध बना लेने के बाद उत्पन्न हुई समस्याओं का समाधान पूछते हैं.

विवाहपूर्व प्रेम करना या स्वेच्छा से शारीरिक संबंध बनाना कोई अपराध नहीं है, मगर इस से उत्पन्न होने वाली समस्याओं पर विचार अवश्य करना चाहिए. इन बातों पर युवकों से ज्यादा युवतियों को ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में उन्हें दिक्कतों का सामना न करना पड़े :

विवाहपूर्व शारीरिक संबंध भले ही कानूनन अपराध न हो, मगर आज भी ऐसे संबंधों को सामाजिक मान्यता नहीं है. विशेष कर यदि किसी लड़की के बारे में समाज को यह पता चल जाए कि उस के विवाहपूर्व शारीरिक संबंध हैं तो समाज उस के माथे पर बदचलन का टीका लगा देता है, साथ ही गलीमहल्ले के आवारा लड़के लड़की का न सिर्फ जीना दूभर कर देते हैं, बल्कि खुद भी उस से अवैध संबंध बनाने की कोशिश करते हैं.

युवती के मांबाप और भाइयों को इन संबंधों का पता चलने पर घोर मानसिक आघात लगता है. वृद्ध मातापिता कई बार इस की वजह से बीमार पड़ जाते हैं और उन्हें दिल का दौरा तक पड़ जाता है. लड़की के भाइयों द्वारा प्रेमी के साथ मारपीट और यहां तक कि प्रेमी की जान लेने के समाचार लगभग रोज ही सुर्खियों में रहते हैं. युवकों को तो अकसर मांबाप समझा कर सुधरने की हिदायत देते हैं, मगर लड़की के प्रति घर वालों का व्यवहार कई बार बड़ा क्रूर हो जाता है. प्रेमी के साथ मारपीट के कारण लड़की के परिवार को पुलिस और कानूनी कार्यवाही तक का सामना करना पड़ता है.

अधिकतर युवतियों की समस्या रहती है कि उन्हें शादीशुदा व्यक्ति से प्यार हो गया है व उन्होंने उस से शारीरिक संबंध भी कायम कर लिए हैं. शादीशुदा व्यक्ति आश्वासन देता है कि वह जल्दी ही अपनी पहली पत्नी से तलाक ले कर युवती से शादी कर लेगा, मगर वर्षों बीत जाने पर भी वह व्यक्ति युवती से या तो शादी नहीं करता या धीरेधीरे किनारा कर लेता है. ऐसे किस्से आजकल आम हो गए हैं.

इस तरह के हादसों के बाद युवतियां डिप्रेशन में आ जाती हैं व नौकरी छोड़ देती हैं. इस से उबरने में उन्हें वर्षों लग जाते हैं. कई बार युवक पहली पत्नी के होते हुए भी दूसरी शादी कर लेते हैं. मगर याद रखें, ऐसी शादी को कानूनी मान्यता नहीं है और बाद में बच्चों के अधिकार के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ सकती है जिस का फैसला युवती के पक्ष में आएगा, इस की संभावना बहुत कम रहती है.

शारीरिक संबंध होने पर गर्भधारण एक सामान्य बात है. विवाहित युवती द्वारा गर्भधारण करने पर दोनों परिवारों में खुशियां मनाई जाती हैं वहीं अविवाहित युवती द्वारा गर्भधारण उस की बदनामी के साथसाथ मौत का कारण भी बनता है.

अभी हाल ही में मेरी बेटी की एक परिचित के किराएदार के घर उन के भाई की लड़की गांव से 11वीं कक्षा में पढ़ने के लिए आई. अचानक एक शाम उस ने ट्रेन से कट कर अपनी जान दे दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि लड़की गर्भवती थी. उसे एक अन्य धर्म के लड़के से प्यार हो गया और दोनों ने शारीरिक संबंध कायम कर लिए, मगर जब लड़के को लड़की के गर्भवती होने का पता चला तो वह युवती को छोड़ कर भाग गया. अब युवती ने आत्महत्या का रास्ता चुन लिया. ऐसे मामलों में अधिकतर युवतियां गर्भपात का रास्ता अपनाती हैं, लेकिन कोई भी योग्य चिकित्सक पहली बार गर्भधारण को गर्भपात कराने की सलाह नहीं देगा.

अधिकतर अविवाहित युवतियां गर्भपात चोरीछिपे किसी घटिया अस्पताल या क्लिनिक में नौसिखिया चिकित्सकों से करवाती हैं, जिस में गर्भपात के बाद संक्रमण और कई अन्य समस्याओं की आशंका बनी रहती है. दोबारा गर्भधारण में भी कठिनाई हो सकती है. अनाड़ी चिकित्सक द्वारा गर्भपात करने से जान तक जाने का खतरा रहता है.

युवती का विवाह यदि प्रेमी से हो जाता है तब तो विवाहोपरांत जीवन ठीकठाक चलता है, मगर किसी और से शादी होने पर यदि भविष्य में पति को किसी तरह से पत्नी के विवाहपूर्व संबंधों की जानकारी हो गई तो वैवाहिक जीवन न सिर्फ तबाह हो सकता है, बल्कि तलाक तक की नौबत आ सकती है.

विवाहपूर्व शारीरिक संबंधों में मुख्य खतरा यौन रोगों का रहता है. कई बार एड्स जैसा जानलेवा रोग भी हो जाता है. खास बात यह है कि इस रोग के लक्षण काफी समय तक दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन बाद में यह रोग उन के पति और होने वाले बच्चे को हो जाता है. प्रेमी और उस के दोस्तों द्वारा ब्लैकमेल की घटनाएं भी अकसर होती रहती हैं. उन के द्वारा शारीरिक यौन शोषण व अन्य तरह के शोषण की आशंकाएं हमेशा बनी रहती हैं.

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

घर पर इस आसान रेसिपी से बनाएं पनीर चाउमीन

कई बार हमें अपने घर का खाना का मन नहीं करता हैं. ऐसे में आप चाहे तो घर पर भी चॉउमिन बनाकर खा सकते हैं. तो आइए आज आपको बताते हैं. घर पर कैसे चाउमिन बनाएं. इसे बनाना बहुत ज्यादा आसान होता है. तो चलिए आज जानते हैं पनीर चाउमिन कैसे बनाएं.

समाग्री

मैदा

पनीर

काजू

पत्ता गोभी

गाजर

शिमला मिर्च

हरा प्याज

लाल प्याज

नमक

लाल मिर्च

सोया सॉस

चीनी

विधि

सबसे पहले आप बाजार से पैकेट का नूड्स लेकर आएं अब उसे गर्म पानी में डालकर उबाल लें, जब यह नूड्ल्स उबल जाए तो उसमें निकालकर साफ पानी से पहले धो लें, और एक कटोरा में रख दें,

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अब आप हरा प्याज, गाजर , धनिया पत्ता , शिमला मिर्च , पत्ता गोभी को अच्छे से काट लें, अब सभी सब्जियों को अच्छे से धो लें, इसके बाद से एक कड़ाही में तेल गर्म करें और फिर इसमें सभी सब्जी को डालकर चलाएं. अब थोड़ी देर के लिए इसे ढ़क कर रख दें.

सब्जी में अब हल्दी और नमक डालकर चलाएं, इसके बाद से इसे थोड़ी देर में चलाए, अब चलाने के बाद इसमें पनीर डालें.

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फिर उबाले हुए, नूड्ल्स को डालकर इसमें मिक्स करें, अब उसमें लाल सॉस और हरा सॉस डालें, उसके बाद से उसमें स्वादनुसार नमक डालें.

अब ऊपर से आप चाहे तो हरा प्याज डालकर कर परोस सकते हैं.

मार्च महीने के खेती-किसानी के काम

रबी की तमाम फसलें पकने की दहलीज पर मार्च के महीने में पहुंच चुकी होती हैं. इस से किसानों का जोश ज्यादा ही बढ़ जाता है. एक ओर रबी की फसलें तैयार होने को होती हैं, तो दूसरी तरफ जायद की तमाम फसलों की बोआई का सिलसिला चालू हो जाता है.

गेहूं की फसल में दाने बनने लगते हैं. चीनी की फसल यानी गन्ना कटाई के लिए तैयार हो जाता है. त्योहारों का आलम किसानों में नई उमंग भरता है, तो दूसरी तरफ गन्ने व गेहूं की आमदनी की उम्मीद किसानों के परिवारों में खुशी भर देती है. पेश है, मार्च के दौरान होने वाले खेती के खास कामों का ब्योरा :

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* मार्च में गेहूं की बालियों में दूध बनना शुरू हो जाता है और इसी के साथ गेहूं के दाने बनने का सिलसिला शुरू हो जाता है.

* गेहूं के दाने बनने के दौरान पौधों को पानी की दरकार रहती है, इसलिए खेत में नमी बनाए रखना लाजिमी होता है. लिहाजा, गेहूं के खेत की सिंचाई का पूरा खयाल रखें.

* अकसर मार्च महीने के दौरान दिन में अंधड़ यानी तेज हवाओं का दौर चलता है. लिहाजा, रात के वक्त सिंचाई करना बेहतर रहता है.

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* अगर उड़द की बोआई का इरादा हो, तो इस काम को 15 मार्च तक निबटा लें. उड़द बोने से पहले इस बात का खयाल रखें कि बीजों को उपचारित करना जरूरी है. इस के लिए कार्बंडाजिम या राइजोबियम कल्चर का इस्तेमाल करें.

* उड़द की बोआई के लिए  30 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करें. बोआई लाइनों में करें और बीजों के बीच उचित फासला रखें.

* उड़द की तरह यदि मूंग बोने की भी मंशा हो, तो उस की शुरुआत 15 मार्च से कर सकते हैं. मगर मूंग की बोआई का काम 1 महीने के अंदर यानी 15 अप्रैल तक जरूर निबटा लेना चाहिए.

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* मूंग की बोआई के लिए भी उड़द की तरह तकरीबन 30 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लेने चाहिए.

* मूंग की बोआई से पहले बीजों को उपचारित कर लें और लाइनों में बोआई करें.  2 लाइनों के बीच 1 फुट का फासला रखें और 2 बीजों यानी पौधों (उगने वाले) के बीच भी उचित फासला छोड़ना न भूलें.

* यह महीना गन्ना किसानों के लिए बहुत खास होता है. पुरानी फसल के गन्ने मार्च तक कटाई के लिए एकदम तैयार होते हैं और नई फसल की बोआई का वक्त भी शुरू हो जाता है. इस महीने ही पुरानी फसल की कटाई का काम खत्म कर लेना चाहिए.

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* मार्च में ही गन्ने की नई फसल की बोआई कर लेना आखिरकार फायदे का सौदा साबित होता है. बोआई के लिए 3 आंखों वाले गन्ने के टुकड़े बेहतर रहते हैं. बोने से पहले इन बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए.

* गन्ने की बोआई का काम बराबरी से करने के लिए शुगरकेन प्लांटर इस्तेमाल करें.

* बोआई से पहले गन्ने के खेत में कंपोस्ट खाद या अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद उचित मात्रा में मिलानी चाहिए.

* बोआई से पहले खेत से हर किस्म के खरपतवार चुनचुन कर निकाल देने चाहिए. इस से गन्ने की फसल का बेहतर जमाव होगा.

* अगर ज्यादा आमदनी का जज्बा हो, तो गन्ने के 2 कूंड़ों के बीच मूंग, उड़द या लोबिया जैसी चीजें बोई जा सकती हैं. इन के अलावा मक्के की चारे वाली फसल भी गन्ने के 2 कूंड़ों के बीच बोई जा सकती है.

* जिन किसानों के पास कई मवेशी होते हैं, वे हमेशा चारे के लिए फिक्रमंद रहते हैं. ऐसे किसान इस महीने ज्वार, बाजरा या सूडान घास की बोआई कर सकते हैं.

* मार्च माह में सरसों की फसल पकने लगती है. लिहाजा, उस पर ध्यान देना भी जरूरी है. अगर सरसों की तकरीबन 75 फीसदी फलियां पीलेसुनहरे से रंग की हो जाएं, तो यह उन की कटाई का सब से सही वक्त होता है.

* पिछले महीने बोई गई सूरजमुखी के खेतों का जायजा लें. अगर खेत सूखते नजर आएं, तो जरूरत के हिसाब से सिंचाई करें.

* सूरजमुखी के खेत में अगर पौधे ज्यादा पासपास लगे नजर आएं, तो बीचबीच से फालतू पौधे निकाल दें. इस बात का ध्यान रखें कि

2 पौधों के बीच 2 फुट का फासला सही  रहता है.

* आलू के खेतों का मुआयना करें, क्योंकि मार्च तक ज्यादातर आलू की फसल तैयार हो जाती है. अगर आप के आलू भी तैयार हो चुके हों, तो उन की खुदाई का काम खत्म करें. आलू निकालने के बाद खेत को आगामी फसल के लिए तैयार करें.

* इस महीने प्याजलहसुन की तेजी से तैयार होती फसलों का खास खयाल रखना चाहिए. तैयार होती प्याजों व लहसुनों को नरम खेत की जरूरत होती है. लिहाजा, निराईगुड़ाई कर के खेत को नरम बनाएं. अगर जरूरी लगे तो खेत में यूरिया खाद डालें.

* सुनहरी हलदी और खुशबूदार अदरक की बोआई के लिए मार्च का महीना मुफीद होता है. बोआई के लिए हलदी व अदरक की स्वस्थ गांठों का इस्तेमाल करें. इन गांठों की बोआई उचित दूरी पर करें.

* बीते महीने के दौरान बोई गई लोबिया, भिंडी व राजमा के खेतों का जायजा लें. अगर खेत सख्त व गंदा लगे तो निराईगुड़ाई कर के उसे दुरुस्त करें. निराईगुड़ाई के बाद सिंचाई करना न भूलें. इस से फसल को काफी फायदा होता है. सिंचाई के बाद टौप डै्रसिंग के लिहाज से यूरिया का इस्तेमाल करें.

* मार्च में हरी मटर कम होने के साथसाथ दाने वाली मटर की फसल तैयार हो जाती है. अगर मटर की फलियां सूख कर पीली पड़ जाएं, तो उन की कटाई कर लेनी चाहिए. गहाई करने के बाद मटर के दानों को इतना सुखाएं कि सिर्फ 8 फीसदी नमी ही बचे.

* वैसे तो ज्यादातर किसान बैगन की रोपाई का काम फरवरी तक निबटा लेते हैं, लेकिन मरजी हो तो यह काम मार्च में भी कर सकते हैं. बैगन की रोपाई के बाद सिंचाई करें, इस से पौधे सही तरीके से लग जाते हैं.

* फरवरी में लगाए बैगन के पौधे महीने भर में काफी बढ़ जाते हैं. लिहाजा, उन की निराईगुड़ाई कर के खरपतवार निकालना जरूरी होता है.

* इस महीने याद से आम के बागों की खोजखबर ले लेनी चाहिए. इस दौरान हौपर कीट व फफूंद से होने वाले रोगों का डर बढ़ जाता है. इन रोगों का अंदेशा लगे, तो कृषि वैज्ञानिकों से पूछ कर इलाज करना चाहिए.

* आम के अलावा मार्च में अमरूद के बागों की देखभाल भी जरूरी होती है. इस दौरान अमरूद के पेड़ों में तनाबेधक कीट का प्रकोप हो सकता है. ऐसा होने पर कृषि वैज्ञानिकों से पूछ कर इलाज करना चाहिए.

* इस महीने पपीते के बीज नर्सरी में बोएं, ताकि पौध तैयार हो सकें. अगर पहले बीज बो चुके हैं, तो इन के पौध अब तक तैयार हो गए होंगे. जगह के मुताबिक पपीते के पौधों की रोपाई कर सकते हैं या उन्हें दूसरे बागबानों को बेच सकते हैं.

* अपने बाग के अंगूर के गुच्छों को  फूल खिलने के दौरान जिब्रेलिक अम्ल के  50 पीपीएम वाले घोल में बेल में लगे हुए ही डुबोएं. ऐसा करने से अंगूर स्वस्थ रहते हैं.

* अगर अंगूर की फसल में रोगों व कीटों का हमला नजर आए, तो कृषि वैज्ञानिक की सलाह से जरूरी इलाज करें.

* अपने आम, अमरूद और पपीता वगैरह के बगीचों की ठीक से सफाई करें. उन में जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें व खाद डालें. इस बारे में कृषि वैज्ञानिकों से भी राय लें.

* फूलों की खेती में दिलचस्पी रखने वाले किसान इस महीने रजनीगंधा व गुलदाऊदी की रोपाई करें. रोपाई करने के बाद बाग की हलकी सिंचाई करना न भूलें.

* जाती सर्दी व आती गरमी के मार्च महीने में गायभैंसों को अकसर अफरा की शिकायत हो जाती है, लिहाजा, इन्हें फूली हुई बरसीम न खाने दें. जरूरत के मुताबिक पशुओं का इलाज कराएं.

* मार्च माह में मवेशियों को सर्दी से तो नजात मिल जाती है, पर उन के मामले में लापरवाह न बनें. उन के रहने की जगह पर उम्दा कीटनाशक दवा छिड़कें.

* सर्दी से नजात पाए मवेशियों की सफाई का पूरा खयाल रखें, खासकर भैंसों के शरीर के फालतू बाल काट दें.

* अगर भेड़बकरियां पाल रखी हों, तो उन्हें पेट के कीड़े मारने की दवा खिलाएं.

* अपनी गायभैंसों को भी शैड्यूल के मुताबिक पेट के कीड़ों की दवा खिलाएं. गरमी में दूध की किल्लत बढ़ जाती है, ऐसे में अपनी गायभैंसों को हीट में आते ही डाक्टर के जरीए गाभिन कराना न भूलें, ताकि दूध की कमी न होने पाए.

* मार्च के महीने से अंडों की खपत में कुछ गिरावट आती है, पर अपनी मुरगियों का खयाल कायदे से रखें.

अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘चेहरे’ का ट्रेलर हुआ वायरल

मशहूर फिल्म निर्माता आनंद पंडित अपनी नई फिल्म‘‘चेहरे’’को दर्शकों तक पहुंचाने के लिए हर तरह के प्रयास में लगे हुए हैं.पहले फिल्म का टीजर जारी किया.फिर अमिताभ बच्चन और इमरान हाशमी के एकल पोस्टर जारी किया. उसके बाद सुपर-क्रिएटिवमोशन पोस्टर के साथ सोशल मीडिया पर भारी शोर मचाया.अब 18 मार्च को आनंद पंडित की बहु प्रतीक्षित फिल्म ‘‘चेहरे’’ का ट्रेलर जारी किया गया.

महानायक अमिताभ बच्चन और इमरान हाशमी अभिनीत रहस्य रोामांच पूर्ण फिल्म‘‘चेहरे’’ में एक अपराध के खिलाफ न्याय के लिए लड़ रहे ध्रुवीकृत व्यक्तियों की कहानी है. रहस्य, झूठ, सच्चाई, पहेलियों, भय, आरोपों, रक्षा और संघर्ष से भरा हुए ट्विस्ट और टर्न के साथ इसकी कहानी अतिसषक्त है.निर्माता का दावा है कि यह फिल्म दर्शकों को उनकी  खड़े रखतेु हुए रोमांचित करेगी.

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फिल्म ‘‘चेहरे’’के संदर्भ में खुद निर्माता आनंद पंडित कहते हैं-‘‘हमारी फिल्म ‘चेहरे’ की कहानी का आधार अद्वितीय है.भारतीय सिनेमा में इस तरह के विषय पर अब तक ज्यादा काम भी नही किया गया है.मुझे यह बात खुशी देती है कि हमारी फिल्म हमेशा अमिताभ बच्चन और इमरान हाशमी की पहली जोड़ी वाली फिल्म के रूप में याद की जाएगी.फिल्म में उनकी दृढ़ता और दुश्मनी दर्शकों को निश्चित रूप से रोमांचित करेगी. ”

फिल्म ‘‘चेहरे’’ के निर्देशक रूमी जाफरी कहते हैं, “दर्शक स्क्रीन पर हर चरित्र की उपस्थिति से खुदको जुड़ा हुआ महसूस करेंगे.फिल्म में हमने जिन कलाकारों को भी जोड़ा है,वह सभी बौलीवुड के सर्वश्रेष्ठ कलाकार हैंऔर मुझे यकीन है कि यह फिल्म हमेशा अपने प्रदर्शन और विशेष रूप से संवादों के लिए पहचानी जाएगी.हमने उन सभी पात्रों के बीच संतुलन बनाए रखा है, जिन्होंने बहुत अंत तक रहस्य को बनाए रखने में मदद की  है.”

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आनंद पंडित मोशन पिक्चर्स और सरस्वती एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड निर्मित व निर्देषक रूमी जाफरी की फिल्म ‘‘चेहरे‘‘ में अन्नूकपूर, क्रिस्टेलडिसूजा, धृतिमानचटर्जी, रघुबीर यादव, सिद्धनाथ कपूर और रिया चक्रवर्ती भी हैं.यह फिल्म अब 9 अप्रैल 2021 को सिनेमा घरों में रिलीज होने के लिए पूरी तरह से तैयार है.

बिगड़ती अर्थव्यवस्था का जिम्मेदार कौन कोरोना या पहले की सरकारी नीतियां?

लेखक- रोहित और शाहनवाज

मोदी सरकार के पिछले 7 सालों के कार्यकाल में जिस चीज का सब से अधिक नुकसान आमजन और व्यापारियों को उठाना पड़ा है वह लगातार गिरती अर्थव्यवस्था है. सत्ता में आने के बाद से ही सरकार ने उन नीतियों पर जोर दिया जिस ने अर्थव्यवथा को मुट्ठी भर लोगों के हाथों में मोनोपोलाइज करने का काम किया और देश के बड़े हिस्से को दरकिनार कर दिया. लिहाजा मंझोले, लघु उद्योगी व उन से सीधे जुड़े करोड़ों मजदूर परिवारों व छोटेबड़े दुकानदारों, व्यापरियों को इन नीतियों का भारी खामियाजा लगातार भुगतना पड़ रहा है.

वैसे तो मोदी कार्यकाल में बिगड़ती अर्थव्यवस्था को ले कर कई नामी अर्थशास्त्रियों ने इस की शुरुआत 2016 में हुई नोटबंदी से बताई लेकिन सरकार इसे मानने को कभी तैयार ही नहीं हुई और इसे कालेधन व आतंकवाद पर नकेल कसने वाले हथियार के तौर पर स्वघोषित करती रही वहीँ इसे अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने वाला कदम बताया.नोटबंदी के बाद नई जीएसटी प्रक्रिया नेभी देश के छोटेबड़े सभी बाजारों को नुकसान पहुंचाने का काम ही किया. किन्तु सरकार लगातार जनता में यह भ्रम फैलाती रही कि इन कायदेकानूनोंसे दूरगामीफायदे मिलेंगे और यह नीतियां देशहित में मजबूत कदम साबित होंगे. इन्ही वायदों में समयसमय पर‘विश्व गुरु’,‘5 ट्रिलियन इकौनमी’ और ‘चाइना-अमेरिका की इकौनमी को टक्कर’ देने का सपना भी शामिल होता गया.

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किन्तुकटु सत्य रही है कि इन 7 सालों के मोदी कार्यकाल में आज देश की अर्थव्यवस्था ऐतिहासिक गिरावट झेल रही है. देश में रिकौर्ड बेरोजगारी दर्ज की गई है. लगातार बढ़ती महंगाई आमजन को त्रस्त कर रही है. ऐसे हालात में मोदी सरकार नेइन बिगड़ते हालातों का जिम्मेदार कोरोना को बताया है और अपने हाथ खड़े कर,जनता से कोई सरोकार ना रखते हुए उन्हें “आत्मनिर्भर” बनने को भी कह दिया है. लेकिन कुछमुख्य सवाल यह कि क्या देश में बिगड़ते हालातों की जिम्मेदार सिर्फ कोरोना है? क्या रोजगार की समस्या लौकडाउन के बाद ही देखने को मिली है? क्या इकौनोमी अभी से ही बर्बाद होनी शुरू हुई? और बड़ा सवाल यह कि महंगाई की जिम्मेदार कोरोना है या सरकार की पहले की वह नीतियां हैं जिस का परिणाम आज देश के लोगों को भुगतना पड़ रहा है?

 एमएसएमई अर्थव्यवस्था की रीढ़

दिल्ली अपनेआप में सारा देश समेटे हुए है. यहां अमीर शिक्षित ही नहीं, गरीब वसताए हुए, लड़कियां, दलित, मुस्लिम विभिन्न राज्यों से आ कर बसे हुए हैं. देश को जानने के लिए दिल्ली का दिल परखना काफी कारगर है. दिल्ली के व्यापारी, मजदूर किन हालातों में हैं, यह पता करते ही देश की हालत पता चल जाती है.इन्हीउक्त सवालों को ले कर ‘सरिता पत्रिका’ की टीम ने दिल्ली के स्माल स्केल इंडस्ट्रियल इलाकों का दौरा किया. जो माइक्रो स्माल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (एमएसएमई) सेक्टर के अंतर्गत आते हैं और अभी इस समय यह सेक्टरबिगड़ती अर्थव्यवस्था की भारी मार झेल रहा है.

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एमएसएमई का मतलब सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम है. दुनिया में एमएसएमई सेक्टर का सब से बड़ा जाल चीन में है, लेकिन इस लिस्ट में भारत दूसरे स्थान पर है. सूक्ष्म उद्यम का अर्थ, वे उद्यम जहां 10 से कम कर्मचारी काम करते हों. देश में ऐसे उद्यमों की संख्या करीब 6 करोड़ 3 लाख के आसपास है. ऐसे ही लघु उद्योग में 10 से ले कर 50 कर्मचारी काम करते हैं. इन की देश में कुल संख्या मौजूदा समय में 3 लाख 30 हजार के आसपास है. वहीँ मध्यम उद्योग में यह संख्या बढ़ कर 50 से 250 कर्मचारियों तक हो जाती है जिन की संख्या 5 हजार के आसपास है. यह सभी उद्यम मिल कर देश में पारंपरिक से ले कर हाई टेक आइटम की 6 हजार से ज्यादा उत्पादों के निर्माण में लगा हुआ है. जिस में कुल मिला कर 11 करोड़ भारतीय कार्यरत हैं.

7 दिसंबर 2020 को 3 दिवसीय टीआईई ग्लोबल समिट के उदघाटन सत्र में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा, “एमएसएमई सेक्टर वर्तमान में भारत के कुल निर्यात का 48 फीसदी निर्यात करता है. एमएसएमई भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है.” लेकिन यह रीढ़ आज किस हालत में है और इस की गिरती हालत की जिम्मेदार कौन है? इस की सुद सरकार को नहीं है.

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 व्यापारियों में सरकारी नीतियों से निराशा

इसे ले कर ‘सरिता’ टीम सब से पहले नजफगढ़ रोड पर स्थित रामा रोड इंडस्ट्रियल इलाके में गई. इस इलाके में पहले बड़ेबड़े सरकारी और निजी प्लांट हुआ करते थे, जहां सैकड़ों कर्मचारी काम किया करते थे लेकिन आज यहां सरकारी प्लांट बंद कर दिए गए हैं और बड़े निजीप्लांट कहीं दूर शिफ्ट हो चुके हैं. यहां अब स्माल इंडस्ट्री ही बची हैं. समय के इस पड़ाव मेंदेखने में यह आया कि यहां मालिकों से ले कर मजदूरों की स्थिति काफी हलकान हो चुकी है.वे एक प्रकार की भारी असुरक्षा में जी रहे हैं. कब क्या सरकार द्वारा नया घटित हो जाए उसे ले कर आतंकित हैं.औफ रिकौर्डमालिक तबका अपनी परेशानियां खुल कर बताते लेकिनओन रिकौर्ड बात करने से कतरा रहे थे कि ना जाने उन पर कब क्या कार्यवाही हो जाए.इस इलाके में कई पुरानी छोटी फैक्ट्रीयां बंद पड़ीं हैं जो चालू हैं भी उन में चरमराए बाजार के चलतेअसर साफ़ देखा जा सकता है. कहीं मजदूरों की छटनी की गई है तो कहीं ओवर टाइम काफी कम होने लगा है.

पिछले 18 सालों से दिल्ली के रामा रोड इंडस्ट्रियल इलाके (कर्मपुरा)में ग्राफिक डिजाइनिंग और बोर्ड साइनेज बनाने वाले मंझोले व्यापारी राजकुमार ने ‘सरिता’ पत्रिका की टीम से बात की. उन का औफिस रामा रोड पर ‘सावन बैंक्वेट’ और ‘ला अमौर बैंक्वेट’ के बीच से निकलने वाली गली नंबर 54 में हैं. उन का यह औफिस पहली मंजिल पर 400 गज के स्पेस में किराए पर है. नोटबंदी और जीएसटी की मार झेलतेझेलते उन का काम दोबारा से पटरी पर आने ही लगा था कि लौकडाउन ने उन का पूरा बिसनेस खा लिया. पहले जहां 40 वर्कर से औफिस में खुशनुमा माहौल था अब वहां मुश्किल से 3 लोग काम कर रहे हैं.

हमारी जब उन से बात हुई तो उन के मुंह से उदास मुस्कान में पहला वाक्यनिकला,“आप को इस “बर्बाद नगर” का पता किस ने दिया?” फिर अपने लैपटौप में डिजाइनिंग के काम में 5 मिनट के लिए व्यस्त हुए. काम निपटाने के बाद वे हम से मुखातिब हुए.

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राजकुमार दिल्ली के रमेश नगर इलाके में रहते हैं. उन का टर्नओवर लगभग 4-5 करोड़ का है. वह सरकार की बनाई पौलिसियों को सिर्फ बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने वाला बताते हैं. वे कहते हैं कि, “नोटबंदी के बाद से ही सभी छोटे व्यापारियों के पास काम गिरना शुरू हो चुका था. लेकिन जैसेतैसे लोग मैनेज कर रहे थे. इस सेक्टर का अधिकतर काम कैश में चलता था जिस कारण काफी परेशानी हुई, पार्टियां बिखरीं और बाजार पर इस का असर पड़ा. मार्किट हमारा टूटा, लेकिन आप को कहीं सुनाई दिया कि बड़े बिसनेसमेन ने दिक्कत झेली?” वे हंसते हैं और सवाल करते हैं, “जिस काम के लिए नोटबंदी हुई उस का कोई फायदा आप को कहीं दिखाई दे रहा है?”

राजकुमार नई जीएसटी प्रक्रिया से भी नाराज दिखाई दिए और इसे काफी बौझिल प्रकिया का हिस्सा मानते हैं. “जीएसटी उन लोगों के लिए अच्छा है जो इमानदारी से काम करना चाहते हैं लेकिन इस में दिक्कतें होने की वजह से हमें बहुत नुकसान झेलना पड़ा है. गवर्नमेंट ये सोच कर चल रही है की सब हवा में है जबकि ऐसा होता नहीं है. अब सरकार को जीएसटी का पैसा 11वे दिन चाहिए और 20वें दिन टैक्स चाहिए.

“मार्किट में तो उधार चल जाता है लेकिन जीएसटी में किसी तरह का कोई उधार नहीं चलता. पैसे टाइम से नहीं देने पर इमीडिएटली कई पैनल्टी लग जाती है. इसी की वजह से लोग वापस कैश में लेनदेन करना शुरू कर रहे हैं. सरकार की पौलिसीज ने ही बिजनस करने वालों को चोर बना के रख दिया दिया है. सरकार खुद तो 5-6 महीने या कई बार सालसाल भर व्यापारी का पैसा नहीं देती और हम जैसे व्यापारी अगर 11वें दिन जीएसटी का पैसा नहीं जमा करवा पाए तो हम डिफाल्टर बन जाते हैं. हमें बिजनस नहीं करने दिया जाता और इन सब का इफैक्ट सब से ज्यादा एमएसएमई सेक्टर में हम जैसे व्यापारियों को झेलना पड़ रहा है.”

कुछ लोगों की मौनोपौली करने की मोदीनीति

राजकुमार थोड़ी देर सोचते हुए कहते हैं, “पूरे हिन्दुस्तान में आज कल सिर्फ कुछ लोगों की मोनोपोली बनाए जाने का काम किया जा रहा है. सरकार ऐसे कानून बना रही है जिस से कुछ ही लोगों को फायदा हो सके. पूरा एमएसएमई सेक्टर बर्बाद हो रहा है, लोगों की नौकरियां जा रही हैं और सरकार 2-3 “अच्छे कदम” (हाथ का इशारा कर दिखाते हुए) को पब्लीसाइज कर 97 कदम ऐसे उठा रही है जिस से हम लोग मर रहे हैं.

“लौकडाउन लगा तो सरकार ने बड़े बिजनसमैन को जीएसटी की छूट दे दी.6 महीने तक उन से कोई इंटरेस्ट नहीं लिया.उन्हें पूरी तरह से सब्सिडी दे दी लेकिन एक मंझोले और छोटे व्यापारी को सरकार ने क्या दिया जो उन्हें हर महीने 4-5 लाख रूपए का टैक्स जमा करवा रहा था?”

राजकुमार द्वारा उठाए सवाल आज अधिकतर लोगों के जहन में हैं कि भाजपा सरकार अदानी-अंबानी के इशारों पर काम करती है. यहां तक कि विपक्ष इसी बात पर हमलावर भी रहा है कि भाजपा की अधिकतर नीतियां इन्ही चंद पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने की रही है. विपक्ष के नेता राहुल गांधी तो सीधे नरेंद्र मोदी पर “हम दो, हमारे दो” कहते हुए कटाक्ष कर रहे हैं. यह बात हकीकत भी है कि जिस समय देश भारी आर्थिक मंदी से जूझ रहा है उस समय कुछ गिनेचुने पूंजीपतियों की संपत्ति में लगातार इजाफा हो रहा है.

जनवरी 2021 की ओक्सफेम की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 महीनों में भारतीय अरबपतियों की संपत्ति में 35 प्रतिशत की उछाल वृद्धि हुई है. ध्यान देने वाली बात यह है कि यह वही पैंडेमिक का समय था जब देश की अर्थव्यवस्था माइनस 23 प्रतिशत गर्त में जा चुकी थी. ब्लूमबर्ग के डाटा के अनुसार कोरोना महामारी के समय गौतम अदानी की संपत्ति में 174.8 प्रतिशत की उछाल वृद्धि देखने को मिली. ब्लूमबर्ग के इसी डाटा के अनुसार 2021 में अदानी ने विश्व के सब से अमीर व्यक्ति का खिताब हांसिल करने वाले जेफ बेजोस और एलोन मस्क को भी पछाड़ते हुए अपनी संपत्ति में रिकौर्ड वृद्धि दर्ज कराई. वहीं रिलायंस इंडस्ट्री के चेयरमैन मुकेश अंबानी भारत के सब से अमीर व्यक्ति बन कर उभरे जिन की कुल संपत्ति 83 बिलियन डॉलर आंकी गई और 2021 ग्लोबल रिचलिस्ट के 8वें पायदान पर हैं.

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इसी प्रकार नोटबंदी के बाद 2017 की ‘फोर्ब्स मैगजीन एनुअल इंडियन रिचलिस्ट’ में मुकेश अंबानी की संपत्ति में 26 फीसदी का इजाफा देखा गया. इस के साथ ही यह भी कहा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “आर्थिक प्रयोगों” ने भारत के अरबपतियों को मुश्किल से ही प्रभावित किया है. 2017 की ओक्सफेम इनइक्वलिटी रिपोर्ट के अनुसार भारत के शीर्ष 1 प्रतिशत भारतीयों का देश के 58 प्रतिशत संपत्ति पर कब्जा है. वहीँ57 अरबपतियों के पास 70 फीसदी भारत की संपत्ति पर कब्जा है. यह सत्य है कि इस आकड़े के बाद भी लगातार भारत में चंदबिजनेसमैनकी संपत्ति में लगातार इजाफा होता गया है. मौजूदा किसान आन्दोलन में भी यह बात खुल कर लोगों के सामने आने लगी है कि भाजपा कार्यकाल में मोदीनीति किसानों को दरकिनार कर कुछ गिनेचुने पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने का काम कर रही है.

राजकुमार का मानना है कि आज का छोटा व्यापारी सरकार और उस की पौलिसी से खुश नहीं है, “सरकार ने ऐसी पौलिसीज बनाई है जिस से 2 डिफाल्टर को पकड़ने के चक्कर में 98 वे लोग पिस जाते हैं जिन्होंने कोई गलत काम किया ही नहीं और ये जो 2 डिफाल्टर होते हैं ये भी सरकार के अपने लोग ही होते हैं जिस का सरकार को सब कुछ पता रहता है. यह चीज नोटबंदी में भी हुई और जीएसटी में भी. फायदा क्या हुआ किसी को कुछ नहीं पता.सरकार की गलत पौलिसीज का हमारे बिजनेस पर 90% बुरा प्रभाव पड़ा है.”

फैक्ट्रियां ठप, काम मंदा

18 सालों से अपना बिजनस संभालने वाले राजकुमार की स्थिति ऐसी है कि आज वह फिर से जीरों पर आ चुके हैं. राज कुमार कहते हैं, “जिस तरह से सरकार काम कर रही है अगर इसी तरह से आगे भी करती रही तो आने वाले समय में हमें और बर्बादी देखनी पड़ सकती है. आजकल सेंसेक्स को देख कर हालात, अच्छे हैं या खराब, इस का अंदाजा लगाया जाता है लेकिन असलियत में हम एमएसएमई सेक्टर के लोग ही इकौनमी की रीढ़ हैं जिस की स्थिति आज के समय में बेहद खराब है.”

कहींना कहीं राजकुमार की बातों में वजन है. भारत में कुल उत्पादन का 45% हिस्सा एमएसएमई पर निर्भर करता है,वहीँ देश में कुल 6 करोड़लोगों को रोजगार भी देता है जिससे उनके परिवार चलते हैं. यही असंगठित क्षेत्र है जो देश की जीडीपी में कुल 45% का हिस्सेदार है. उस के बावजूद अगर केंद्र की सरकारी नीतियों का सीधा कुप्रभाव पड़ा है तो इसी क्षेत्र पर सब से अधिक पड़ा है. साथ ही यह भी हकीकत है कि अकेले नोटबंदी के समय ही स्माल स्केल मेनूफैक्चरिंग इंडस्ट्री में 30 प्रतिशत लोगों ने अपनी नौकरी गंवाई थी. एआईएमओ के इसी सर्वे में पता चला कि स्माल स्केल इंडस्ट्री ने उस दौरान 55 प्रतिशत रेवेन्यु का नुकसान उठाया था.

इसी को ले कर सरिता टीम ने दिल्ली की काली घाटी रोड की उंचाई पर बसे आनंद पर्बत इंडस्ट्रियल इलाके में मजदूरों से बात की. यहां की स्थिति इस समय भयानक दिखती नजर आ रही है. कई फैक्ट्रियों के बंद पड़े शटर इस बात की गवाही देने के लिए काफी थे कि इन सात सालों में देश ने विकास के नाम पर लोगों ने क्या पाया है?

दिल्ली के आनंद पर्बत औद्योगिक इलाके के गली नंबर 8में पिछले 30साल से राम (33) की छोटी सी चाय की दुकान चल रही है. इस से पहले उन के पिता यह चाय की दुकान चलाते थे. लेकिन 7साल पहले उन के देहांत के बाद इस की जिम्मेदारी राम ने संभाल ली. उन की दुकान से वहां आसपास मौजूद फैक्ट्रियों के मजदूरों से ले कर मालिकों तक के लिए चाय जाती है. वह रोज सुबह 8बजे मजदूरों के आने के साथ ही यहां आ जाते हैं औरतब तक दुकान पर रहते हैं जब तक फैक्ट्री से मशीनों की खटपट सुनाई देती है. दिल्ली के नांगलोई इलाके के नजदीक नाग मंदिर के पास उन का 32 गज का मकान है जिस में उन के पिताजी के 5 भाइयों का भी परिवार रहता है.

वे बताते हैं, “उन के पास लगभग 10-12 के आसपास फैक्ट्रियां हैं जहां वे चाय पहुंचाते हैं, बाकी यहांवहां के लोग आ जाते हैं चाय पीने. अभी काम बहुत डाउन हुआ है. पहले हम 40 लीटर दूध लगाते थे अब मुश्किल से 20 लीटर दूध लग पाता है.

“फक्ट्रियों में जो ओवर टाइम लगता था वह कम हो गया है. अब आप यह लगा लो इस पुरे गली में 15 बड़ी फक्ट्रियां हैं और छोटी 40 के आसपास हैं. इन में से 60 फीसदी में ही काम हो रहा है. पहले ओवर टाइम लगता था तो 2-3 घंटे यहां मजदूर काम करते थे जिस से हमारी चाय भी उसी हिसाब से फक्ट्रियों में सप्लाई होती थी. मजदूरों का ओवर टाइम का मतलब हमारा ओवरटाइम. अब काम ही नहीं है तो वे जल्दी चले जाते हैं तो हम यहां रुक कर क्या करेंगे?मेरा काम पूरी तरह मजदूरों पर निर्भर करता है. मालिकों ने इन की भी तनख्वाह काट ली है. जब इन के पास पैसा नहीं होगा तो यह खर्च कैसे करेंगे. पहले 8 बजे तक चाय बनाते थे लेकिन अब 6 बजे बंद कर के घर चले जाते हैं.”

जनवरी 2021 की ओक्सफेम की रिपोर्ट कहती है कोरोना महामारी के दौरान अप्रैल 2020 में हर घंटे 1 लाख 70 हजार भारतीय अपनी जौब खो रहे थे. इसी प्रकार वर्ष 2020 मेंआई सीएमआईई की रिपोर्ट के अनुसार देश में बेरोजगारी दर 23.52 प्रतिशत के साथ भारत के इतिहास में सब से ज्यादा रहा. लेकिन क्या इस त्रासदी को सिर्फ कोरोना के सर बांधा जाना ठीक होगा?दरअसल देश में बेरोजगारी अचानक से नहीं बढ़ी है, बल्कि इसका बढ़ता असर नोटबंदी के बाद से ही देखने को मिल रहा था. स्टेटिस्टा की रिपोर्ट के अनुसारभारत में युवा बेरोजगारी दर साल 2016 में 22.34 प्रतिशत था. जो सन 2021 तक आतेआते बढ़ कर 23.75 प्रतिशत हो चुका है. प्रधानमंत्री की भाषा में कहें तो नोटबंदी और जीएसटी का दूरगामी असर तो हुआ लेकिन रोजगार पर हुआ.सीएमआईई की रिपोर्ट के अनुसार अगस्त 2017 से भारत में बेरोजगारी दर लगातार बढ़ते क्रम में रही है.श्रम मंत्रालय के 2019 में लीक हुए डाटा के अनुसार भारत में उस दौरान 6.1 प्रतिशत के साथ 45 साल की सब से अधिक बेरोजगारी दर भारत में रही जो इस समय बढ़ कर 6.9 प्रतिशत हो चली है.

राम की दुकान नोटबंदी के समय से ही डामाडोल होने लगी थी. वे कहते हैं, “दुकान का काम पहले से ही डाउन होते जा रहा है. यह सभी को पता है कि कामधंधा नोटबंदी के टाइम से ही डाउन होने लगा था. सोचा देश का भला हो रहा है लेकिन अब तो काम बुरी तरह पिट ही गया है. नोटबंदी में ही हमारा काम 19-20होने लगा था.”

राम कुछ और बताते कि तभी एक अज्ञात व्यक्ति ने राम पर कटाक्ष मारते हुए कहा कि, “चाय की दुकान से तो लोगों ने कोठियां बना लीं हैं और बंगला-गाड़ी खरीद रहे हैं.” जिस के जवाब में लोहे की फैक्ट्री में काम कर ने वाले मजदूर (विनोद मिश्रा) तपाक से कह उठते हैं, “हां, यह सही कहा लेकिन कुछ तो देश भी बेच रहे हैं.”

ऊपर से महंगाई खा रही है   

दिल्ली के बलजीत नगर इलाके में रहने वाले विनोद मिश्रा मधुवनी जिला से आते हैं. वह आनंद पर्बत औद्योगिक इलाके के 4 नंबर गली में एक फैक्ट्री में लोहे लंगर का काम पिछले 11 सालों से कर रहे हैं. विनोद के 3 बच्चे हैं, जिस में से 2 बेटियां, जयंती मिश्रा (11) और अनु मिश्रा (9) है और एक बेटा अभी छोटा है. वह अपने बच्चों को पढ़ना चाहते हैं लेकिन बताते हैं कि हालात ऐसे ही रहे तो वे भी काफी मजबूर हो जाएंगे. वह अपना छोटा सा कीपैड वाला फोन दिखाते हुए कहते हैं, कि “हम ने तो कभी एंड्राइड फोन चलाया नहीं, लेकिन आज कल बच्चों की पढ़ाई नेट पर हो रही है इसलिए बच्चों के लिए कर्जा ले कर एक फोन खरीदना पड़ा जिसे अभी तक सदाया (चुकाया) भी नहीं है. ऊपर से पहले एक फोन का रिचार्ज का खर्चा आता था अब दो का आ रहा है. 500 रूपए तो बस रिचार्ज कराने में ही लग जाते हैं. ऊपर से दिक्कत यह है कि तीनों की पढ़ाई एक साथ हो रही है तीनों बच्चे एक साथ पढ़ ही नहीं पाते. और दूसरा फोन लेने की औकात मेरी है नहीं.”

वे आगे कहते हैं, “यह सब बर्बादी का मामला नोटबंदी से ही शुरू हुआ. यहां मालिकों के पास हद से हद 15-20मजदूर ही होते हैं और मालिकों का लेनदेन कैश में ही चलता है. नोटबंदी से सरकार ने सब से पहले इन्ही मालिकों को नुकसान पहुंचाया और इस का असर तो मजदूरों पर पड़ना ही था. यह सब चीजें जुडी हैं. मेरी तनख्वाह पिछले 4 साल से बढ़ी नहीं है.”

विनोद बताते हैं कि उन्होंने चुनावों में मोदी को वोट दिया था. लेकिन फिलहाल सरकार से खीजे हुए हैं. जब हम ने उन से पूछा की मोदी उन्हें कैसे लगते हैं वे हमें हंसते हुए कहते हैं, “लगते तो अच्छे हैं बस काम गड़बड़ कर रहे हैं. महंगाई से हम लोगों का बहुत बुरा हाल कर दिए. जो सिलेंडर 500का था वो 850 रूपए मान लीजिए. वह 1 महीने में खतम हो जाता है फिर टेंशन बनी रहती है की चूल्हा कैसे चलेगा. हर एक सामान महंगा हो रहा है. आप सरसों तेल की कीमत देखो. पहले हम 130 रूपए का खुल्ला तेल लेते थे अब वह 160 हो गया है और अगर अच्छी कंपनी का लेना है तो वह तो 180 पर चला गया है. बहुत ही बुरा हाल है जी.

“सरकार का काम क्या है? यही की चीजों को ठीक करना. कोरोना तो पिछले साल ही आया. इस से पहले तो नहीं था न? हमारी तो स्थिति पहले से ही खराब है. जब पता है कि लोगों के पास काम नहीं है तो महंगाई कम क्यों नहीं करती? जिस के पास पैसा नहीं है वह सामान खरीदेगा कैसे? अच्छा दिन बोल कर हम थोड़ी आए थे.”

कोरोना का झुनझुना

जाहिर है पिछले 7 सालों में आकड़ों के हेरफेर, ‘पिक एंड चूज’ और भटकाऊ मुद्दों से भाजपा सरकार वही चीजें जनता के सामने एक्स्पोज करती रही है जिस में वह वाहवाही बटोर सके. वहीँ बाकि उन चीजों को छुपाती या दबाती रही जो आज के बिगड़ते हालातों से उस समय रुबरु करा रहे थे. लेकिन इन चीजों का प्रबंधन करने और बेहतर सुशासन की जगह मोदी सरकार राष्ट्रवाद के पीछे छुप कर अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने का काम लगातार करती रही है.

हाल ही में हर दिन पेट्रोल डीजल के बढ़ते दामों और बढ़ती महंगाई ने आम जनता कीबचीकुची जमापूंजी कोख़त्म करने का काम किया है. लोगों के पासरोजगार नहीं है. जिन्हें काम मिल भी रहा है वे बहुत कम मेहनताने में काम करने कोमजबूर हैं. मार्किट में लोग सिर्फ अपनी आवश्यकता का सामान खरीदने ही निकलते हैं, बाजार का फ्लो रुका पड़ा है. कहाजाए तो आमजन, मजदूर और कारोबारी सभी इस समयपरेशान हैं किन्तु इस त्रासदी को लौकडाउन की भेंट चढ़ा देना भारी बेवकूफी होगी.

उपरोक्त आकड़ों और ग्राउंड पर लोगों से हुई बातचीत यह दर्शाती है कि देश कीआर्थिक दुर्दशा की जिम्मेदार मोदी कार्यकाल में बनी गलत आर्थिक नीतियां रहीं और इस के चलते देश के गरीब, पिछड़े, महिलाओं, दलितों व अन्य को इस समय हर्जाना भुगतना पड़ रहा है. कहीं ना कहीं मौजूदा समय में महंगाई उसी आर्थिक नीतियोंकी भेंट हैं जिसे आमजन को कोरोना का झुनझुना दिखा कर भटकाया जा रहा है.

 

एक्टर अरुण गोविल हुए बीजेपीे में शामिल , फैंस दे रहे बधाई

गुरुवार को रामायण सीरियल में राजा राम के किरदार में नजर आने वाला अरुण गोविल बीजेपी में शामिल हो गए हैं. उन्होंने बीजेपी पार्टी की सदस्यता ली है. लेकिन अभी भी ज्यादातर लोग राम के नाम से ही जानते हैं.

बीजेपी में उन्हें क्या कार्य दिया जाएगा इसकी फिक्र हर किसी को लगी हुई है. वैसे देखा जाए तो बंगाल चुनाव को देखते हुए आप ये कह सकते हैं कि पार्टी इनका इस्तेमाल चुनाव प्रचार के लिए कर सकती है. वैसे अरुण गोविल ने इस सीरियल से अपनी एक अलग पहचान तो बना ली है लेकिन अब देखना ये है कि लोग जितना इन्हें पहले पसंद करते हैं क्या उतना पसंद कर पाएंगे.

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पिछले कुछ वक्त से इन्हें न तो सीरियल में देखा गया है न ही इन्हें किसी फिल्मों में देखा गया है. लेकिन सीरियल में जब ये काम करते थें उस वक्त इन्हें खूब पसंद किया जाता था. ऐसे में अब देखना ये है कि पॉलटिक्स में यह अपनी कितनी ज्यादा पकड़ बना पाते हैं.

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क्या बीजेपी पार्टी इन्हें उतना ही पसंद करेगी , जितना इन्हें इनके किरदार में पसंद किया जाता था. सभी फैंस उन्हें नए पार्टी का सदस्य होने के लिए बधाई दे रहे हैं. फैंस को भी इंतजार है कि अरुण गोविल जल्द एक बीजेपी पार्टी का नया चेहरा बनकर समाज में उभरे.

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सीरियल रामायण में अपने किरदार ने अरुण ने सभी का दिल जीत लिया था, इन्होंने इस सीरियल से अपनी एक अलग पहचाई बनाई है. जिसकी छवि आज भी लोगों के दिल में बनी हुई है.

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