लेखक- रोहित और शाहनवाज

मोदी सरकार के पिछले 7 सालों के कार्यकाल में जिस चीज का सब से अधिक नुकसान आमजन और व्यापारियों को उठाना पड़ा है वह लगातार गिरती अर्थव्यवस्था है. सत्ता में आने के बाद से ही सरकार ने उन नीतियों पर जोर दिया जिस ने अर्थव्यवथा को मुट्ठी भर लोगों के हाथों में मोनोपोलाइज करने का काम किया और देश के बड़े हिस्से को दरकिनार कर दिया. लिहाजा मंझोले, लघु उद्योगी व उन से सीधे जुड़े करोड़ों मजदूर परिवारों व छोटेबड़े दुकानदारों, व्यापरियों को इन नीतियों का भारी खामियाजा लगातार भुगतना पड़ रहा है.

वैसे तो मोदी कार्यकाल में बिगड़ती अर्थव्यवस्था को ले कर कई नामी अर्थशास्त्रियों ने इस की शुरुआत 2016 में हुई नोटबंदी से बताई लेकिन सरकार इसे मानने को कभी तैयार ही नहीं हुई और इसे कालेधन व आतंकवाद पर नकेल कसने वाले हथियार के तौर पर स्वघोषित करती रही वहीँ इसे अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने वाला कदम बताया.नोटबंदी के बाद नई जीएसटी प्रक्रिया नेभी देश के छोटेबड़े सभी बाजारों को नुकसान पहुंचाने का काम ही किया. किन्तु सरकार लगातार जनता में यह भ्रम फैलाती रही कि इन कायदेकानूनोंसे दूरगामीफायदे मिलेंगे और यह नीतियां देशहित में मजबूत कदम साबित होंगे. इन्ही वायदों में समयसमय पर‘विश्व गुरु’,‘5 ट्रिलियन इकौनमी’ और ‘चाइना-अमेरिका की इकौनमी को टक्कर’ देने का सपना भी शामिल होता गया.

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किन्तुकटु सत्य रही है कि इन 7 सालों के मोदी कार्यकाल में आज देश की अर्थव्यवस्था ऐतिहासिक गिरावट झेल रही है. देश में रिकौर्ड बेरोजगारी दर्ज की गई है. लगातार बढ़ती महंगाई आमजन को त्रस्त कर रही है. ऐसे हालात में मोदी सरकार नेइन बिगड़ते हालातों का जिम्मेदार कोरोना को बताया है और अपने हाथ खड़े कर,जनता से कोई सरोकार ना रखते हुए उन्हें “आत्मनिर्भर” बनने को भी कह दिया है. लेकिन कुछमुख्य सवाल यह कि क्या देश में बिगड़ते हालातों की जिम्मेदार सिर्फ कोरोना है? क्या रोजगार की समस्या लौकडाउन के बाद ही देखने को मिली है? क्या इकौनोमी अभी से ही बर्बाद होनी शुरू हुई? और बड़ा सवाल यह कि महंगाई की जिम्मेदार कोरोना है या सरकार की पहले की वह नीतियां हैं जिस का परिणाम आज देश के लोगों को भुगतना पड़ रहा है?

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