और कितनी जानें? और कितनी प्रताड़ना? आखिरकार दहेज के कारण और कितनी लड़कियों को अपनी जान गंवानी पड़ेगी? एक बार फिर दहेज ना मिलने के कारण एक और विवाहिता की जान चली गई. मृतका की पहचान तनुजा के रूप में हुई है. वह एक बैंक में काम करती थी. पिता का आरोप है कि उन्होंने दहेज में दामाद को क्रेटा कार नहीं दी, इसी वजह से उन लोगों ने तनुजा को जहर देकर मार डाला.
दरअसल, तनुजा की शादी 24 मई 2020 को गुरूग्राम के खरखड़ी गांव के निवासी संदीप के साथ हुई थी. 3 दिन पहले यानी 7 मार्च को संदीप के परिजनों ने तनुजा के पिता को फोन किया और बताया कि तनुजा हॉस्पिटल में एडमिट है.
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बताया जा रहा है कि संदीप और उसके परिजन तनुजा को मारते-पिटते भी थे. उसका शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न करते थे. कई बार इस बात को लेकर दोनों परिवारों के बीच बातचीत हुई लेकिन बावजूद इसके संदीप और उसके परिजनों की दहेज की डिमांड बढ़ती चली गयी. इसी दौरान परेशान हाल में तनुजा की संदिग्ध मौत हो गई.
अहमदाबाद की आयशा का सुसाइड
हाल ही में कुछ दिन पहले अहमदाबाद की रहने वाली आयशा ने साबरमती नदीं में कूदकर अपनी जान दे दी थी. सुसाइड करने से पहले आयशा ने एक वीडियो शूट किया था. ये वीडियो बेहद इमोशनल है और साफ देखा जा सकता है कि आयशा एक खुशमिजाज और जिदंगी जीने वाली जिंदादिल इंसान थी. आयशा की शादी 2018 में राजस्थान में रहने वाले आरिफ खान से हुई थी, लेकिन शादी के कुछ महीनों बाद से ही पति और ससुराल वालों की तरफ से दहेज के लिए प्रताड़ना शुरू हो गई और दहेज ना मिलने पर उसे मायके छोड़ आया गया.
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और कितनी मौत?
जिस समाज में एक तरफ बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओं का नारा दिया जाता है उसी समाज में हर दिन आयशा और तनुजा जैसी ना जानें कितनी ही लड़कियां दहेज के कारण अपनी जान गंवा रही है. आयशा का वीडियो देखने के बाद हर कोई ऐसा कह रहा है कि तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था, हम शर्मिंदा है. लेकिन क्या सिर्फ शर्मिंदा होना काफी है. जब तक आयशा और तनुजा जैसी लड़कियां जिंदा होती है तब तक इसी सामज से कोई उनका सहारा नहीं बनता. वे अकेली छोड़ दी जाती है. और जाती भी तो किसके पास? क्योंकि जिन माता-पिता के पास जाती वो उन्हें ‘एडजस्ट’ करने को कहते है. बचपन से यहीं सिखाते है कि शादी के बाद ससुराल ही तुम्हारा घर है चाहें जो भी हो वहीं रहना होगा. आजकल बहुत-सी लड़कियां शादी के बाद ससुराल वालों और पति की तरफ से दहेज मांगने पर ससुराल वालों के साथ जाने से मना कर देती है. लेकिन मां-बाप की इज्जत के लिए चुप लगा देती है. परिवार, समाज, उसकी मान्यताएं, रीति-रिवाज सब लड़कियों की पीठ पर एक प्रेत की तरह लदे हैं, यहीं वजह है जिसके कारण लड़कियां प्रताड़ना झेलती रहती है.
आधुनिक समाज में दहेज मान-सम्मान का प्रतिक
आज के उत्तर-आधुनिक समाज में भी स्त्री कितना ही पढ़-लिख लें, कितनी ही काबिल बन जाएं लेकिन वो दर्जे में पुरूष से कमतर ही मानी जाती हैं, इसलिए उसकी स्वीकारोक्ति के लिए शादी में धन की कई बार खुली और कभी मूक मांग रखी जाती है. इस मांग को यह कहकर जायज़ ठहराया जाता है कि लड़की के माता-पिता जो कुछ भी दे रहे हैं, उनकी बेटी के लिए ही हैं. संपन्न परिवारों को दहेज देने या लेने में कोई बुराई नजर नहीं आती क्योंकि उन्हें यह मात्र एक निवेश लगता है. उनका मानना है कि धन और उपहारों के साथ बेटी को विदा करेंगे तो यह उनके मान-सम्मान को बढ़ाने के साथ-साथ बेटी को भी खुशहाल जीवन देगा.
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दहेज की मांग भारतीय समाज में सामान्य बात हो चुकी है. दहेज की प्रथा मानो शादी का एक अभिन्न अंग बन चुकी है. यह प्रथा सभी समूहों में मौजूद है चाहे वे किसी भी जाति, वर्ग, धर्म के हों. लड़की ब्याहने के लिए लड़के के परिवार की हैसियत के अनुसार दहेज देना पड़ता है. यह ब्याह होने की एक अनिवार्य शर्त भी है. आधुनिक समय में दहेज प्रथा ऐसा रूप धारण कर चुकी है जिसमें लड़केवाले के परिवार वालों का सम्मान लड़के को मिले हुए दहेज पर ही निर्भर करता है. वह खुलेआम अपने बेटे का सौदा करने के लिए राजी रहते हैं.
रूढ़िवादी भारतीय समाज शादी की संस्था और पारिवारिक संरचना में सुधार करने की बजाय इसे पारंपरिक रूप में ही चलाना चाहता है. इस समाज के लिए यह महत्वपूर्ण है ही नहीं कि शादी से पहले लड़के और लड़की में सामंजस्य और आपसी समझ विकसित हो, जिससे बेहतर समाज बन सकें. यहां रिश्ते की नींव ही लड़की के घर से मिलने वाला दहेज तय करता है. शिक्षित और संपन्न परिवार भी दहेज लेना अपनी परंपरा का एक हिस्सा मानते हैं तो ऐसे में अल्पशिक्षित या अशिक्षित लोगों की बात करना बेमानी है.
हर घंटे एक महिला की दहेज के कारण मौत
देश में औसतन हर एक घंटे में एक महिला दहेज संबंधी कारणों से मौत का शिकार होती है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB)के आंकड़े बताते हैं कि विभिन्न राज्यों से साल 2014 में दहेज हत्या के 8,455 मामले सामने आए.
केंद्र सरकार की ओर से जुलाई 2015 में जारी आंकड़ों के मुताबिक, बीते तीन सालों में देश में दहेज संबंधी कारणों से मौत का आंकड़ा 24,771 था. जिनमें से 7,048 मामले सिर्फ उत्तर प्रदेश से थे. इसके बाद बिहार और मध्य प्रदेश में क्रमश: 3,830 और 2,252 मौतों का आंकड़ा सामने आया.
शोध और अध्ययन से पता चलता है कि दहेज हत्या से संबंधित कुल घटनाएं, जो दर्ज होती हैं, उनमें से 93 फ़ीसद मामलों में चार्जशीट दाख़िल होती है और उनमें से केवल 1/3 मामले में आरोपी दोषी साबित हो पाते हैं.
क्या कहता है दहेज से जुड़ा कानून
दहेज-प्रथा को समाप्त करने के लिए कितने ही नियमों-कानून को लाया गया लेकिन अभी तक कोई कारगर सिद्ध नहीं हो पाया है. साल 1961 में सबसे पहले दहेज निरोधक कानून अस्तित्व में आया. जिसके अनुसार दहेज देना और लेना या दहेज लेन-देन में सहयोग करने पर 5 वर्ष की कैद और 15000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान है. 1985 में दहेज निषेध अधिनियम तैयार किया गया था. इन नियमों के अनुसार शादी के समय दिए गए उपहारों की एक सूची बनाकर रखी जानी चाहिए. इस सूची में प्रत्येक उपहार, उसका अनुमानित मूल्य, जिसने भी यह उपहार दिया है उसका नाम और संबंधित व्यक्ति से उसके रिश्ते का एक संक्षिप्त विवरण मौजूद होना चाहिए.
दहेज मांगने पर ये है सजा
दहेज या कीमती उपहार के लिए पति या उसके परिवार द्वारा परेशान करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत 3 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है. धारा 406 के अंतर्गत अगर ससुराल पक्ष द्वारा स्त्री को स्त्री धन देने से मना किया जाता है तो भी 3 साल की कैद व जुर्माना या दोनों हो सकता है.
दहेज हत्या पर उम्रकैद की सजा
अगर किसी लड़की की शादी के 7 साल के भीतर उसकी मौत हो जाती है. और यह साबित हो जाता है की मौत से पहले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता था तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304 बी के तहत लड़की के पति और रिश्तेदारों को कम से कम 7 साल या आजीवन कारावास की सजा हो सकती है. लेकिन व्यावहारिक रूप से इन कानूनों का कोई लाभ नहीं मिल पाया है.
आधुनिक समय में समाज में यह उपहार सौदेबाजी और लालच का रूप बन गया है. तभी लड़कियां इस कुप्रथा का मुकाबला करने के लिए अग्रसर होंगी. इस बुराई का जड़ मात्र कानून से खत्म नहीं हो सकता है. इससे सामाजिक स्तर पर सतत युद्ध करना होगा. देश की शिक्षित युवा पीढ़ी जब समर्पण भाव के साथ संकल्प करेगी की न तो दहेज लेंगे और ना ही देंगे तब यह दहेज लेने वाले लोभी स्वयं चेत जाएंगे. इस प्रथा का अंत करने के लिए सबसे पहले लड़कियों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनना होगा और अपने लिए खुद खड़ा होना होगा.