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दिवा ने चुभती नजर रमा पर डाली, ‘कहां ढूंढ़ा इतनी खूबसूरत पत्नी को.’

‘अरे, तुम से कम ही,’ अवध का मजाकिया स्वभाव था.

किंतु रमा ?ोंप गई. अवध के इस बेतुके मजाक ने सीधे उस के दिल को टीस दी. दिवा जितनी देर रही, अवध से चिपकी रही. सुंदर वह थी ही, उस की दिलकश अदाएं, बात करने का अंदाज, बेवजह खिलखिलाना रमा को जरा भी नहीं सुहाया.

हंसीमजाक, शोरशराबा, भोजनपानी करतेकरते आधी रात बीत गई.

‘अब, मैं चलूंगी,’ दिवा बोली थी.

‘चलो, मैं तुम्हें छोड़ आता हूं,’ अवध  की आंखों की चमक रमा आज तक भूल नहीं पाई है. अगर वह पुरुष मनोविज्ञान की ज्ञाता होती तो कभी भी अपने पति को उस मायावी के संग न भेजती.

... पति जब तक घर लौटे, वह मुन्ने को सीने से चिपकाए सो गई थी. फिर तो अवध रमा और मुन्ने की ओर से उदासीन होता चला गया. उस की शामें दिवा के साथ बीतने लगीं.

पत्नी से उस की औपचारिक बातचीत ही होती. मुन्ने में भी खास दिलचस्पी नहीं रह गई थी उस की. भोली रमा पति के इस परिवर्तन को भांप नहीं पाई. दिनरात मुन्ने में खोई रहती. वह  मुन्ने को कलेजे से लगाए सुखस्वप्न में खोई थी.

एक दिन उस की सहेली ने फोन पर जानकारी दी, ‘आजकल तुम्हारे मियांजी बहुत उड़ रहे हैं.’

‘क्या मतलब?’

‘अब इतनी अनजान न बनो. तुम्हारे अवध का दिवा के साथ क्या चक्कर चल रहा है, तुम्हें मालूम नहीं? कैसी पत्नी हो तुम? दोनों स्कूटर पर साथसाथ घूमते हैं, सिनेमा व होटल जाते हैं और तुम पूछती हो, क्या मतलब,’ सहेली ने स्पष्ट किया.

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