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आत्मसम्मान : भाग 2

नंदिनी और विमल के होने पर हमारे रहने का इंतजाम दूसरी मंजिल पर ही था, परंतु जब से विमल 6 महीने का हुआ था, रमा ने उसे अलग कमरे में सुलाना शुरू कर दिया था. इसलिए विकास ने हमारा सामान घर के तहखाने में शिफ्ट कर दिया था. शुरू में तो हमें अपना कमरा ठीक नहीं लगा, क्योंकि तहखाने के हमारे कमरे में कोई खिड़की नहीं थी, जिस से वहां काफी अंधेरा रहता था. दिन में भी ट्यूबलाइट जलानी पड़ती थी. फिर धीरेधीरे आदत पड़ गई. तहखाने में बहुत ही शांति रहती है. लगता है जैसे हम सारी दुनिया से कट गए हैं.

कनाडा में अजीब सा रिवाज है कि हर बच्चे को अपना अलग कमरा चाहिए. अगर भारत में भी ऐसा होता तो शायद हमारा गुजारा चलता ही नहीं. शक्ति नगर के उस छोटे से 2 कमरे के घर में हम ने अपनी सारी जिंदगी गुजार दी थी. विकास भी हमारे साथ शादी के बाद उस 2 कमरे के किराए के मकान में रहा था और जब नंदिनी को ले कर आया था तब तो वह हमारे साथ ही रहा था, परंतु रमा अधिकतर नंदिनी के साथ अपने पीहर में ही रही.

टीवी पर शाम के 7 बजे की खबरें आ रही थीं, जिन में शराब की दुकानों पर लगी ग्राहकों की लंबी लाइनें दिखाई जा रही थीं. कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में नए साल का स्वागत करने के लिए लोग लाखोंकरोड़ों डौलर शराब पर खर्च कर देते हैं. यानी अमेरिका में नए साल पर लोग शराब पर उतना पैसा खर्च कर देते हैं जितना कि श्रीलंका जैसे देशों का पूरा सालाना बजट भी नहीं होता. हम भारतीय विदेशियों की अच्छी आदतें तो चाहे नहीं सीखे, परंतु उन की गलत आदतें जरूर सीख लेते हैं. विकास और रमा खूब पीते हैं, यह हमें अच्छी तरह मालूम है. हमारे सामने हमारा लिहाज कर के तो नहीं पीते, परंतु हमारी पीठपीछे खूब पीते हैं. रात को जब पार्टियों से आते हैं तो हमें इस बात का एहसास तो अवश्य हो जाता है कि दोनों ही नशे में  झूम रहे होते हैं और फिर दोपहर देर तक सोते हैं. कभीकभी 2 बजे तक सो कर उठते हैं.

शुरूशुरू में तो हम दोपहर का खाना खाने के लिए उन के सो कर उठने  का इंतजार करते थे, पर अब हम उन के बिना ही खाना खा लेते हैं. इतनी देर तक कमला तो इंतजार कर भी ले, पर मु झ से भूखा नहीं रहा जाता, फिर दोपहर को देर से खाने से मेरे पेट का सारा सिस्टम खराब हो जाता है. कमला अपने बेटेबहू का इंतजार करती है कि कब वे उठें और कब वह उन्हें खाना खिलाए.

हमारे देखतेदेखते ही हालात बदल गए. जब मेरी और कमला की शादी हुई थी, कमला तब अम्मा और बाबूजी की सेवा में ही लगी रहती थी. वह अम्मा और बाबूजी को खाना खिला कर ही खाना खाती थी. पर अब बेटेबहू के लिए तरकारी अलग से रख कर ही खाना खाती है और उन की प्रतीक्षा करती है कि कब वे दोपहर को सो कर उठ कर आएंगे और कब वह उन्हें खाना खिलाएगी.

कमला और मैं अकसर सोचते हैं कि हम ने भारत छोड़ कर मौंट्रियल में आने का निर्णय सोचसम झ कर नहीं लिया. अच्छा रहता हम भारत में ही पड़े रहते. कम से कम शक्ति नगर में हमारा 2 कमरे का किराए का वह घर तो था. किराए के मकान में आने से मकान मालिक तो बेहद खुश था, क्योंकि बरसों से हम उस के उन 2 कमरों का किराया जो चुका रहे थे, पर अब हम ने इस बारे में सोचना ही छोड़ दिया था. हमारी आखिरी सांस बेटे के घर की छत के नीचे गुजरे, इस से अच्छा और क्या हो सकता है. कम से कम मरने पर हमारी चिता को अग्नि देने हमारे पास हमारा बेटा तो होगा. दिल्ली में होते तो हमारे मरने पर विकास कैसे समय पर अपना फर्ज निभाता, क्योंकि मौंट्रियल से दिल्ली पहुंचने में 2-3 दिन तो लग ही जाते.

60 साल की उम्र में वैसे तो कुछ न कुछ लगा ही रहता है, पर आज कमला की तबीयत सवेरे से ही कुछ ढीली चल रही थी. मैं ने उस से अस्पताल चलने को कहा तो वह नहीं मानी. ‘ठीक हो जाएगी कल तक,’ कह कर उस ने मेरा मुंह बंद कर दिया और घर का कामकाज करती रही. 5 बजे रमा अपने औफिस से घर आ गई थी और अपने बैडरूम में आराम कर रही थी. वह 7 बजे ऊपर से आई और खाना खा कर तैयार होने चली गई. वे लोग सपरिवार नए साल की पार्टी में जा रहे थे, पर उस में हम दोनों शामिल नहीं थे. वैसे भी पार्टियों में वे हमें कभीकभार ही ले जाते हैं. कनाडा में पार्टियां देर रात तक चलती हैं.

विकास और रमा पार्टी से शायद ही कभी 3-4 बजे से पहले आए हों. हां, जब कभी कोई भारत से आए अपने मातापिता को मित्रों से मिलाना चाहता है तब विकास और रमा अपने साथ हमें भी ले जाते हैं. हमें पार्टी में ले जाने में शायद रमा को संकोच होता है और अगर विकास को भी होता हो तो कोई बड़ी बात नहीं है, क्योंकि वक्त के साथसाथ इंसान की नसों में बहता खून भी बदल जाता है.

9 बजे विकास, रमा और बच्चे तैयार हो गए. मैं और कमला कमरे में बैठे टीवी देख रहे थे. ‘‘हम लोग जा रहे हैं, मम्मी. जहां हम जा रहे हैं वहां का फोन नंबर मैं ने फोन के पास लिख कर रख दिया है. जरूरत हो तो फोन कर लेना,’’ विकास बोला, ‘‘और मम्मी, पापा, नया साल आप को मुबारक हो,’’ कहता जाने लगा. हम दोनों ने भी विकास और बच्चों को गले से लगाया. रमा कुछ खिसिया सी गई, पर वह कुछ कह न पाई.

‘‘ठीक है, अब तो नए साल में ही मिलेंगे. मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है,’’ कमला बोली.‘‘क्या हुआ, मम्मी? डाक्टर को फोन किया क्या?’’ विकास ने पूछा.‘‘नहीं, ठीक हो जाएगी,’’ कमला बोली.

‘‘तबीयत ज्यादा खराब हो तो फोन कर देना, डैडी,’’ विकास बोला, पर रमा के चेहरे का रंग ही बदल गया. वह अलमारी में से सर्दी के कोट निकाल कर लाई व नंदिनी और विमल को बड़बड़ाती हुई पहनाने लगी, ‘‘विकास, मम्मी की यह आदत मु झे बहुत ही खराब लगती है. जब भी हम पार्टी में जाते हैं, मूड खराब कर देती हैं. अब आप पार्टी का आंनद कैसे लेंगे, जबकि आप को मम्मी की बीमारी का खयाल आएगा. भारत में उन्होंने खुद तो अपनी जिंदगी का आनंद नहीं लिया, अब हमें भी जिंदगी का आनंद नहीं उठाने देतीं.’’

‘‘धीरे बोलो रमा, मम्मीडैडी सुन लेंगे,’’ विकास दबी जबान से बोला.

 

‘Nach baliye’ नहीं बल्कि ‘खतरों के खिलाड़ी 11’ का हिस्सा बनेंगे राहुल वैद्य

बिग बॉस 14 से सभी  के दिलों पर राज करने वाले राहुल वैद्य इन दिनों सुर्खियों में बने हुए हैं. हर कोई चाहता है कि राहुल रियलिटी शो का हिस्सा बनकर अपना नाम बनाएं. ऐसे में राहुल वैद्य को कई शो से ऑफर आ रहे हैं.

हाल ही में राहुल वैद्य को नच बलिए के मिर्माता ने दिशा परमार के साथ शो में हिस्सा लेने के लिए ऑफर दिया था लेकिन राहुल वैद्य ने इसे ठुकराते हुए वह खतरों के खिलाड़ी 11 में हिस्सा लेने के लिए तैयार हो गए. जिसके बाद से सभी फैंस काफी ज्यादा खुश हैं.

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हालांकि शो का हिस्सा बनने से पहले राहुल वैद्या के मन में एक डर था कि कहीं उन्हें पहले से जो चोट लगी है उस वजह से उन्हें शो का हिस्सा बनने में परेशानी न आए लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ राहुल शो के हिस्सा बनने के लिए तैयर हो गए और वह बेहद ज्यादा खुश है कि वह इस शो का हिस्सा बन रहे हैं. राहुल वैद्य कि इस शो में हिस्सा लेने के बात से बाकी सभी फैंस भी काफी ज्यादा एक्साइटेड नजर आ रहे हैं.

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राहुल और दिशा इन दिनों टॉक ऑफ द टॉउन हैं. लोग उन्हें काफी ज्यादा पसंद करते हैं. फैंस को भी राहुल और दिशा की जोड़ी काफी ज्यादा अच्छी लगती है. उम्मीद है कि इन्हें पहले से ज्यादा इस शो का हिस्सा बनने के बाद से प्यार मिलेगा.

 

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वहीं कुछ फैंस तो अभी से कयास लगाएं बैठे हैं कि इस बार राहुल वैद्य ही होंगे खतरों के खिलाड़ी के विनर जबकी राहुल इन सभी से अलग अपने टॉस्क के बारे में सोच रहे हैं. वह अपने टॉस्क को अच्छे से पूरा करना चाहते हैं.

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Kavita kaushik ने बिग बॉस को बताया फेक रियलिटी शो, ट्विटर पर शेयर किया ये पोस्ट

सब टीवी से सभी के दिलों पर राज करने वाली कविता कौशिक आज हर घर में छाई रहती हैं. ज्यादातर वह अपने बिंदास अंदाज के लिए जानी जाती है. कविता कौशिक अपने बेबाक अंदाज के लिए जानी जाती है. कई बार इस वजह से वह ट्रोलिंग का शिकार भी हो जाती हैं.

वह बिग बॉस 14 में हिस्सा लेने आई थी, लेकिन कुछ वक्त में ही वह कंट्रोवर्सी का शिकार हो गई थी. जिसके बाद वह कुछ वक्त बाद ही घर से बाहर आ गई थी. अभी तक अदाकारा बिग बॉस के सवालों का जवाब देना पड़ रहा है.

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हाल ही में अदाकारा ने सोशल मीडिया पर अपने योगासन का वीडियो शेयर किया था. जिस पर लगातार लोगों के कमेंट आ रहे हैं. इस वीडियो को शेयर करते हुए अदाकारा ने लिखा है. कुछ भी हो कंट्रोल किया जा सकता है.

इस पर एक यूजर ने कमेंट करते हुए लिका है कि आपको बिग बॉस में नहीं जाना चाहिए था,इससे आपके इमेज को बहुत नुकसान हुआ है. मैं आपका फैन हूं इसलिए बहुत ज्यादा परेशान हूं. इस पर कविता कौशिक ने तुरंत रिएक्ट करते हुए कहा कि वो कहते है न एक बार आपकी इमेज खराब हो जाए तो हमेशा के लिए आपकी इमेज खराब हो जाती है लेकिन मुझे फेक रियलिटी शो से कोई फर्क नहीं पड़ता है. मैं अपने काम और खुद पर भरोसा करती हूं.

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शो में एजाज खान के साथ कविता कौशिक का बहुत ज्यादा झगड़ा हुआ था. जिस पर बहुत ज्यादा परेशानी हुई थी. जिस पर कविता ने कानूनी रास्ता तय करने कि बात की थी.

समंदर में बूंद बराबर है अंबानी पर सेबी का जुर्माना

लेखक-शाहनवाज

भारत और एशिया के सब से अमीर शख्स मुकेश अंबानी पर बीते बुधवार 7 अप्रैल को शेयर बाजार की रेगुलेटरी बौडी, सिक्यूरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड औफ इंडिया (सेबी) ने दो दशक पुराने मामले में अंबानी परिवार पर जुर्माना लगाया है. यह जुर्माना सन 2000 में रिलायंस इंडस्ट्रीज से जुड़े मामले में अधिग्रहण नियमों का अनुपालन नहीं करने को लेकर लगाया गया है.

सेबी ने मुकेश अंबानी, उन के छोटे भाई अनिल अंबानी समेत अंबानी परिवार में अन्य सदस्यों पर जिन में नीता अंबानी, टीना अंबानी, के डी अंबानी इत्यादि पर जुर्माना लगाया है. बता दें की नीता अंबानी मुकेश अंबानी की पत्नी हैं और टीना, अनिल अंबानी की पत्नी हैं.

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टेकओवर नियमों का किया है उल्लंघन

दरअसल इस पूरे मामले की जड़ सन 1994 में मिलती है जब अंबानी परिवार की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) ने परिवर्तनीय वारंट के साथ डिबेंचर जारी किये थे. कोई भी कंपनी अपने बिजनस में पूंजी या धन जुटाने के लिए अक्सर डिबेंचर जारी करती है. ये केवल प्राइवेट कंपनियां नहीं करती बल्कि सरकारें भी धन या पूंजी जमा करने के लिए मार्किट में डिबेंचर जारी करती है. जिसे लोग खरीदते हैं और लोगों के पैसे कंपनी में जमा होते हैं. आम भाषा में इसे शेयर्स कहा जाता है. रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने इन वारंट के एवज में सन 2000 में इक्विटी शेयर आवंटित किये थे. यह मामला उस समय का है जब धीरुभाई अंबानी रिलायंस का नेतृत्व कर रहे थे. उस समय तक रिलायंस समूह का बंटवारा नहीं हुआ था.

सेबी ने अपने 85 पेज के आदेश में लिखा है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के प्रमोटर और पर्संस एक्टिंग इन कौन्सर्ट (पीएसी) ने कंपनी में साल 2000 में 5 परसेंट से ज्यादा हिस्सेदारी का खुलासा नहीं किया था. सेबी का कहना है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के प्रमोटरों द्वारा पीएसी के साथ मिलकर 6.83 परसेंट हिस्सेदारी ली गई, वो टेकओवर नियमों के मुताबिक 5 परसेंट होनी चाहिए थी, जबकि ये उस से ज्यादा थी.

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दरअसल सेबी के नियमों के अनुसार 31 मार्च को खत्म हुए किसी भी वित्त वर्ष में अगर कोई भी प्रमोटर ग्रुप 5 परसेंट से ज्यादा वोटिंग राइट्स का अधिग्रहण करता है तो उसे माइनॉरिटी शेयरहोल्डर्स (आम शेयरधारकों) के लिए एक ओपन औफर लेकर आना होता है. इन लोगों ने शेयर अधिग्रहण को लेकर कोई ऐलान नहीं किया इससे शेयरहोल्डर्स कंपनी से निकलने के अपने अधिकार से वंचित रह गए. सेबी ने स्पष्ट रूप से जारी किए अपने आदेश में कहा है कि, “कंपनी सार्वजनिक घोषणा करने में विफल रहीं, जिस से शेयरधारकों का उन के वैधानिक अधिकार अथवा कंपनी से बाहर निकलने के अवसर से वंचित हो गए.”

सेबी के आदेश के मुताबिक 25 करोड़ रुपये के जुर्माने को संयुक्त रूप से और अलग अलग चुकाना होगा. मामले में कुल 34 लोग और कंपनियां शामिल हैं, जिस में से कई का तो रिलायंस इंडस्ट्रीज होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड के साथ पहले ही विलय भी हो चुका है.

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एशिया के सब से अमीर आदमी हैं मुकेश अंबानी

25 करोड़ का जुर्माना किसी आम इंसान को बहुत ही बड़ी रकम लग सकती है लेकिन जब यह जुर्माना एशिया के सब से अमीर आदमी पर लगता है तो यह बेहद ही मामूली सी संख्या लगने लगती है. मुकेश अंबानी के अमिरियत के चर्चे भारत में बच्चे बच्चे को पता है. बल्कि भारत में तो अमीरी का पर्याय ही अंबानी सरनेम है.

मुंबई में मजदूर बस्तियों के नजदीक 27 मंजिला एंटिला के मालिक मुकेश अम्बानी हैं. बता दें की एंटिला केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में सब से महंगा घर है. जिसे 1 बिलियन डोलर की लागत से निर्माण किया गया है, जिस का निर्माण 4 सालों में पूरा हुआ था. 1 बिलियन डोलर को यदि भारतीय करेंसी में कन्वर्ट करेंगे तो आखें फटी की फटी रह जाएगी. ये करीब करीब 74 अरब 82 करोड़ 75 लाख रूपए बनते हैं. एंटिला में जमीन से 6 मंजिला नीचे केवल कार पार्किंग, 3 हेलिपैड, 1-1 सैलून, स्पा, बौलरूम, 50 सीटर मूवी थिएटर, कई स्विमिंग पूल, आइसक्रीम रूम इत्यादि इस की विशेषताएं हैं, जिन के रखरखाव के लिए हर समय 600 कर्मचारियों की आवश्यकता होती है.

देश के आर्थिक हालात कितने ही गर्त में क्यों न जा रहे हों लेकिन मुकेश अंबानी की संपत्ति में हर साल इजाफा ही हुआ है. एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 में जब भारत की जीडीपी पिछले साल से 2% से गिर कर 4.18% हो गई थी उस समय मुकेश अंबानी ने अपनी संपत्ति में 16.4 बिलियन डोलर जोड़ लिए थे. बीते साल कोविड की महामारी के दौरान जब भारत की अर्थव्यवस्था शून्य से नीचे माइनस में जा चुकी थी उस समय मुकेश अम्बानी ने अपनी कुल संपत्ति का 73% इजाफा कर चुके थे. 2019 तक उन की संपत्ति 51.7 बिलियन डोलर थी जो साल 2020 के अंत तक 88.7 बिलियन डोलर हो चुकी थी.

2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार मुकेश अंबानी हर मिनट 31,202 डोलर कमाते हैं, जो की भारतीय 23 लाख 33 होता है. वह हर दिन 4.5 मिलियन डोलर कमाते हैं. साल 2019 में उन की आय भारत में औसत वार्षिक वेतन का 7.2 मिलियन गुना थी. 2016 की हिन्दुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार मुकेश अंबानी की संपत्ति दुनिया में 19 देशों की जीडीपी से अधिक है.

मुकेश अंबानी पिछले 13 सालों से फोर्ब्स की भारत के 10 सब से अमीर लोगों की लिस्ट में पहले नंबर पर हैं. यही नहीं मुकेश अंबानी फोर्ब्स की दुनिया में 100 सब से अमीर लोगों की लिस्ट में दसवें पायदान पर हैं. ध्यान देने वाली बात यह है कि उन की संपत्ति में समय के साथ साथ इजाफा ही हो रहा है.

अब आप खुद सोच सकते हैं कि जो व्यक्ति देश और दुनिया में सब से अमीरों में से एक है, उस के लिए 25 करोड़ का जुर्माना चिल्लारों से कम नहीं है. 25 करोड़ अंबानी परिवार के लिए हाथों की मैल बराबर ही है.

सेबी के जुर्माने के खिलाफ अपील दर्ज

सेबी द्वारा रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड पर शेयर अनियमितता और टेकओवर नियमों का उल्लंघन करने के इस मामले में अब हालिया खबर यह है की अंबानी परिवार इस के खिलाफ कोर्ट में अपील दर्ज करेंगे. अब यह तो देखने वाली बात होगी कि कोर्ट में यह मामला किस के पक्ष में जाता है. वैसे भी पैसे वाले और अमीरों को “न्याय” मिलना इस देश में बेहद आसान है.

दूर ही रहो: किसकी यादों में खोया था गौरव?-भाग 1

दिल की भावनाओं को रिश्ते में परिभाषित करना जरूरी है क्या? क्यों उन्हें कोई नाम दिया जाए. दो दिल एकदूसरे को समझ रहे हैं, क्या यह काफी नहीं है?

‘फूल तुम्हें भेजा है खत में, फूल नहीं मेरा दिल है…’ गौरवी ने सुबह से ही ‘कारवां’ चला रखा था. 5,000 गाने हैं उस में. लौकडाउन के कारण आजकल इन्हीं गानों के सहारे तो उस का दिन कटता है, नहीं तो समझ नहीं आता कि करे तो क्या करे.

इतना पुराना यह गाना सुन कर गौरवी को फिर से करण की याद आ गई. खत कौन लिखता है भला अब. व्हाट्सऐप से झट से अपने दिल का हाल पहुंचा देते हैं अपनों को. यही तो जरिया है अपना दिल बहलाने का.

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लेकिन करण मैसेज भी कहां करता है. कहता है कि उस की आदत नहीं ज्यादा लिखनेपढ़ने की. वीडियो भेजा करूं उसे. अब भला अपने मन की बात कहने के लिए मैं वीडियो भेजूंगी.

अच्छा लौकडाउन हुआ है. पता नहीं अब कब मिलना होगा. 15 दिन में एक बार मिल लेते थे, तो दिल को चैन पड़ जाता था. अब लगता है 4-5 महीने तक मिलना नहीं हो पाएगा.

ओफ, करण कितना मिस कर रही हूं तुम्हें. एक साल ही तो हुआ है करण को उस की जिंदगी में आए. विकास के बाद कोई और उस की जिंदगी में आएगा, कल्पना भी नहीं की थी उस ने. विकास को कितना प्यार करती थी वह. वह भी दिलोजान से चाहता था उसे. बेशक अरेंज्ड मैरिज थी उन की लेकिन दोनों की चुहलबाजी, प्यार करने का अंदाज बौयफ्रैंडगर्लफैं्रड जैसा था. विकास अकसर कहता था उस से, ‘गौरवी, मैं ने अच्छा किया कि जल्दी शादी नहीं की वरना तुम मुझे कैसे मिलती.’

दोनों की पसंद भी एकजैसी थी. विकास शौकीनमिजाज था. पढ़ाई में अव्वल तो नहीं कहेंगे लेकिन स्कूलकालेज की बाकी सब ऐक्टिविटीज में सब से आगे रहता. पर्सनैलिटी ऐसी थी कि लड़कियां मरती थीं. लेकिन विकास अपनी ही धुन में रहता था. ऐसा नहीं था कि लड़कियों में उसे इंट्रैस्ट नहीं था, लेकिन पता नहीं क्यों तेजतर्रार, ज्यादा बोलने वाली लड़कियां उसे भाती नहीं थीं.

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गौरवी एक ही नजर में दिल में उतर गई थी. उस की बड़ीबड़ी आंखें, सलोना मुखड़ा, धीरेधीरे बोलना उसे इतना भाया कि झट शादी के लिए हां बोल दी. कहां तो शादी की बात भी करना नहीं चाहता था और अब हालत यह थी कि चाहता था महीने के अंदर ही शादी हो जाए. अपने लिए विकास का यह उतावलापन गौरवी को भी भा गया था. एक तरह से गुमान हुआ था अपनेआप पर कि जिस पर इतनी लड़कियां मरती हैं उस ने उसे पसंद किया है. फिर वही हुआ, जैसा विकास चाहता था. महीने के भीतर ही सगाई हुई और फिर शादी. हनीमून के लिए मनाली गए थे वे दोनों.

आज भी सोचती हूं तो वे दिन एक सपने से लगते हैं. कितने रंगीन दिन थे. घूमनाफिरना, खानापीना, एकदूसरे को रिझाना, लुभाना और प्यारभरी बातें, मदभरी रातें. अब भी कभी वे दिन याद आते हैं तो आंखें गीली हो जाती हैं. काश, पुराने दिन वापस आ पाते.

ओफ, क्यों याद आती है पुराने दिनों की. खुशियों से भरे दिन थे, तब ही तो मन में याद कर कसक सी उठती है. शादी के बाद बहुत जल्द ही वह 2 बच्चों की मां बन गई थी. खुद को डूबो दिया था उस ने उन की देखभाल में. वह तो नौकरी भी नहीं करना चाहती थी. उस की सोच हमेशा से यही रही थी कि बच्चों की जिम्मेदारी ली है तो उन्हें अच्छी परवरिश दो. लेकिन विकास को उस का घर में सिर्फ बच्चों के लिए नौकरी छोड़ कर बैठ जाना गवारा न था. वे बोलते, ‘गौरवी, मम्मी हैं न बच्चों की देखरेख के लिए. फिर फुलटाइम मेड भी रख ली है, क्या जरूरत है नौकरी छोड़ने की. घर में रहने से औरत की सारी स्मार्टनैस खत्म हो जाती है. मुझे घरेलू टाइप औरतें बिलकुल पसंद नहीं हैं.’

दूर ही रहो: किसकी यादों में खोया था गौरव?-भाग 3

पता नहीं एक दिन मुझे क्या सूझी, मैट्रिमोनियल साइट पर अपना प्रोफाइल बना डाला. बस, फिर क्या था, दिन में ढेरों रिप्लाई आ जाते. उन में से एक करण का भी रिप्लाई आया था. न जाने क्यों करण का प्रोफाइल स्ट्राइक कर गया था. डिर्वोस हो चुका था उस का. कहते हैं न कि जब जिस से मिलना होता है तो रास्ते अपनेआप बनते जाते हैं. पहली ही मुलाकात में करण की बातें, उस की सचाई, उस की पर्सनैलिटी पसंद आ गई थी. वह अंदर से कितना टूटा हुआ है, कितना गुस्सा अपनी टूटी हुई शादी को ले कर उस के भीतर भरा हुआ है, यह भी मुझ से छिपा नहीं था.

प्यार से शायद विश्वास उठ चुका था उस का. लेकिन मैं वाकई दिल से चाहने लगी थी उसे. और जब मैं ने उस से कहा, ‘आई लव यू’ और जवाब में जब वह बोला, ‘नहीं यार, हम दोनों के रिश्ते के बीच में प्यारव्यार मत लाओ. जब दिल टूटता है तो बहुत दर्द होता है.’

कहने को कह दिया था करण ने लेकिन मुझे सुन कर कितना दर्द हुआ था, उस का अंदाजा न हुआ उसे.

एक बार सोचा, नहीं रखना  रिश्ता ऐसे इंसान से जिसे मेरी फीलिंग्स की कद्र ही नहीं. सालों बाद जिंदगी को नया मोड़ क्या मैं करण के साथ दे पाऊंगी? औरों से कितना अलग है. लेकिन शायद उस के सोचने का, समझने का यह तरीका ही उस की क्वालिटी है.

जितना मैं करण को समझती जा रही थी, मिल रही थी, उतना ही पसंद करती जा रही थी. मैं ने सोच लिया था कि करण के मुंह से बुलवा कर ही रहूंगी कि वह मुझ से प्यार करता है.

एक साल हो रहा था, करण और मुझे मिलते हुए. बर्थडे आने वाला था करण का. उस के बर्थडे से 4 महीने पहले मेरे बर्थडे को मुझे काफी स्पैशल फील कराया था उस ने. खुश थी बहुत मैं. उस वक्त तो और भी मजा आया जब लंच कर हम दोनों कार में बैठे और पीछे की सीट पर मैं ने 2 बड़ेबड़े पैकेट रखे देखे.

मैं पूछने ही वाली थी कि करण बोला, ‘गौरवी, मुझे पसंद नहीं बर्थडे पर चौकलेट, फूल वगैरह देना, इन पैकेट में खानेपीने का सामान है तुम्हारे लिए. मुझे जो समझ में आया, ले आया.’

‘अरेअरे, इतना सबकुछ मैं नहीं ले जाती. घर में क्या कहूंगी, किस ने दिया यह सब,’ मैं ने मना किया.

‘मुझे नहीं पता, कुछ भी बता देना. तुम्हें ले कर जाना ही पड़ेगा.’ और आखिरकार मुझे वह सब घर ले जाना ही पड़ा था. बच्चों ने पूछा तो बहाना बना दिया कि फ्रैंड से मंगवाया है, उस की वहां की शौप से. टेस्ट अच्छा होता है, खा कर देखना.

तो ऐसा तो है करण. यह था मेरा गिफ्ट. दिखावा नहीं करता. उस का ऐसा करना मुझे एक तरह से अच्छा ही लगा था. शोशेबाजी मुझे भी पसंद नहीं. हां, लेकिन उस के मुंह से अपने लिए तारीफ न करना, यह कभीकभी अखरता है मुझे. मेरी ड्रैसिंग सैंस के लिए दूसरे लोग कितने अच्छे कंप्लीमेंट देते हैं लेकिन मजाल है कि वह कभी तारीफ कर दे. शिकायत भी करती हूं तो कहता है, ‘बहुत गंदी तारीफ करता हूं मैं. सुनना पसंद करोगी?’ क्या जवाब दूं उस की इस बात का, इसलिए चुप रह जाती हूं.

साल 2020 आया. मन में आया था इस साल सब अच्छा होगा. लेकिन यह क्या, कोविड-19 की पूरे विश्व में छाए खतरे की घंटी ने सब को हिला दिया. देशभर में लौकडाउन हो गया. मिलने को तरस गए थे हम दोनों. फोन पर भी अब ज्यादा बात नहीं कर सकते थे. सब घर पर ही होते थे. करण के बर्थडे के बारे में सोची मेरी सारी प्लानिंग धरी की धरी रह गई थी.

मौका देख कर एक दिन फोन किया तो करण ने झट से कौल पिक कर ली, नहीं तो अकसर जब मैं फोन करती, रिंग जाती रहती. उठता नहीं था फोन और फिर उस के 1 घंटे बाद कौलबैक करता था.

‘कैसी हो, गौरवी,’ करण की आवाज में बेचैनी थी.‘ठीक हूं, बस, इंतजार है कब लौकडाउन खत्म हो और सब ठीक हो जाए. ऐसा लग रहा है बरसों हो गए हैं तुम से मिले.’

‘आई लव यू गौरवी,’ करण के ये शब्द कानों में गूंज गए.‘ओह करण, आखिरकार तुम ने बोल ही दिया जो मैं सुनने के लिए तरस गई थी. लौकडाउन ने तुम्हें एहसास करा दिया कि तुम मुझ से प्यार करते हो,’ मैं खुशी से बोली.

‘हां, ऐसा ही समझ लो. नहीं रह पा रहा हूं तुम्हारे बिना. आई मिस यू मैडली,’ आज लग रहा था करण के दिल में वही चाहत है जो मेरे दिल में उस के लिए.

‘चलो, लौकडाउन ने हमारे बीच के प्यार को और बढ़ा दिया. अब जब मिलेंगे, वो मिलना कुछ और ही होगा.’ फोन रख दिया था मैं ने. अपनों के लिए, अपने लिए जरूरी था कि हम दूर ही रहें. कैसी मजबूरी थी यह. अपने दिल का हाल बयां करती भी तो किस से. कुछ रिश्ते बताए नहीं जाते और न दूसरा कोई समझ सकता है. करण तुम ठीक कहते हो हमारी फीलिंग्स कोई नहीं समझ सकता क्योंकि अधूरापन, अकेलापन हम जी रहे हैं, दूसरे नहीं. हम एकदूसरे को समझ रहे हैं, यही काफी है.

एक बार फिर मन को समझाया, ‘कल की खुशी के लिए तुम दूर ही रहो.’ और बेमन से मेज पर रखे रिमोट से टैलीविजन औन किया. सभी न्यूज चैनलों पर लौकडाउन कोविड-19 की खबरें आ रही थीं और स्क्रीन पर नीचे लगातार लिखा आ रहा था, ‘घर पर रहो, सुरक्षित रहो.’

दूर ही रहो: किसकी यादों में खोया था गौरव?-भाग 2

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विकास की अच्छीखासी जौब थी. नौकरी करने की मुझे कोई जरूरत नहीं थी, फिर भी विकास की खुशी के लिए करती रही.जिंदगी मजे से गुजर रही थी. दोनों बच्चे स्कूल जाने लगे थे. बच्चों को खूब लाड़ करते थे विकास. कहते थे मेरे

3 बच्चे हैं. हंसी आ जाती है यह बात सोच कर. वाकई बच्चों की तरह लाड़ करते थे मुझ से. रात में जब मैं विकास की बांहों में होती थी तो बोलते थे, ‘गौरवी, तुम में मुझे रोज नयापन नजर आता है. बहुत प्यार करता हूं तुम से. मेरे सिवा किसी और के बारे में सोचना भी मत कभी.’

कहां सोचा था मैं ने 8 साल तक किसी और के बारे में. सुध ही कहां रह गई थी अपनी, विकास के जाने के बाद. ब्रेन हेमरेज के बाद विकास की मौत ने जैसे सबकुछ बदल दिया था. बच्चे तो समझ ही नहीं पा रहे थे क्या हो रहा है घर में यह सब. मुझे समझ ही नहीं थी दुनियादारी की. न शादी से पहले न कभी कोई जिम्मेदारी ली थी और न शादी के बाद विकास ने मुझे कोई जिम्मेदारी दी. हमेशा यही कहते, ‘मेरे राज में तू ऐश कर, माई डियर. बस, तेरा काम है मुझे खुश रखना, समझी न.’

नौकरी जो मेरा पैशन थी, जरूरत बन गई. फिर हालात इंसान को सब सिखा देते हैं. फिर मेरे मायकेवालों और ससुरालवालों दोनों तरफ से सहारा था मुझे. आर्थिक रूप से कोई कमी न थी मुझे.

जब पिता का साया सिर पर न हो तो बच्चे भी जल्दी समझदार हो जाते हैं. मेरे दोनों बच्चे कभी जिद न करते. स्कूल में जब पेरैंट मीटिंग में जाती, हमेशा बच्चों की तारीफ ही सुन कर आती. बच्चे और घर व नौकरी बस यही जिंदगी रह गई थी.

जिंदगी किसी के जाने से रुकती नहीं है. 8 साल हो गए हैं विकास को गुजरे. तीजत्योहार, खुशी के मौके आते हैं. शादीब्याह नातेरिश्तेदारी में होते रहते हैं. सब क्रियाकलाप होते हैं लेकिन सब ऊपरी तौर पर. मन की खुशी तो सब विकास के जाने के बाद उन्हीं के साथ चली गई थी.

उस दिन को कैसे भूल सकती हूं जिस ने एक बार फिर मेरी जिंदगी का नया अध्याय शुरू किया था. औफिस से मैं ने छुट्टी ली थी. बड़ा बेटा अनुज कालेज गया हुआ था और मनु स्कूल. सासुमां अपने कमरे में आराम कर रही थीं. उन का सारा दिन अपने कमरे में ही गुजरता है. मैं नहाधो कर नाश्ता कर के आराम से अपना मोबाइल ले कर बैठी थी. व्हाट्सऐप हमारी जिंदगी का अब एक जरूरी हिस्सा बन गया है. एकदूसरे का हाल इसी से पता चल जाता है.

‘हाय,’ व्हाट्सऐप पर एक अनजान नंबर से मैसेज आया.

‘हू आर यू?’ मैं ने सवाल किया.

‘ब्यूटीफुल डीपी,’ जवाब आया.

‘मेरा नबंर कहां से आया आप के पास?’ मैं ने फिर सवाल किया. ‘पता नहीं,’ जवाब आया. और फिर ‘सौरी’ मैसेज कर वह व्यक्ति औफलाइन हो गया.

बात वहीं खत्म हो गई. दोपहर हो गई थी. अनुज कालेज से आ गया था. मैं उसे खाना परोस ही रही थी कि मनु भी स्कूल से आ गया. वह भी झटपट कपड़े बदल कर खाने के लिए बैठ गया.

सब ने साथ ही लंच किया. फिर अनुज सोने के लिए अपने कमरे में और मनु ट्यूशन क्लास के लिए चला गया. मैं भी अपने कमरे में जा कर लेट गई. तभी मोबाइल में मैसेज बीप आई.

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‘क्या आप की उम्र जान सकता हूं?’ उसी अनजान नंबर से मैसेज आया.‘आए एम 48,’ मैं ने जवाब दिया.

‘ओह, लेकिन 35 की लगती हैं. अच्छा मेंटेन कर रखा है आप ने अपने को. खैर, उम्र का क्या है. दिल जवान होना चाहिए.’ ‘आप अपने बारे में बताइए,’ मुझे उस के बारे में जानने की उत्सुकता हुई.

‘रोहित नाम है मेरा, देहरादून में रहता हूं, उम्र 32 वर्ष.’‘करते क्या हो?’ मैं ने और जानना चाहा.

‘फादर का बिल्ंिडग कंस्ट्रक्शन का बिजनैस है. मुझे उस में कोई इंट्रैस्ट नहीं. फिर भी इकलौता बेटा हूं, सो उन का कहना मान कर, अपना मन मार कर उन के साथ बिजनैस में ही हूं.’

‘हूं… अच्छा, प्रोफाइल फोटो क्यों नहीं लगाई अपनी, ज्यादा हैंडसम हो क्या?’ मैं ने उस की टांग खींचने की कोशिश की. वैसे भी उम्र में मुझ से काफी छोटा था, इसलिए बात करने में कोई हिचक नहीं हो रही थी.

‘मैडम, क्या आप मुझे देखना चाहती हैं. हां, हैंडसम तो हूं मैं. आएदिन रिश्ते आ जाते हैं. मम्मीपापा पीछे पड़े हैं शादी के लिए. अच्छा खैर छोड़ो, पहले मेरी डीपी देखो.’

‘हूं, गुड लुकिंग. तुम शादी क्यों नहीं करना चाहते?’ डीपी देख कर मैं ने पूछा.

‘शादी में मैं विश्वास नहीं रखता. अपनेआप को एक बंधन में बांधना भला कहां की समझदारी है. शादी के बिना भी जब सब हसरतें पूरी हो सकती हैं तो फिर क्यों यह फंदा गले में डालें.’

‘अपनीअपनी सोच है, ओके. गुड बाय,’ और मैं ने मोबाइल चैट बंद कर दी और मोबाइल चार्जिंग में लगा दिया.

2-3 दिन बीत गए. मैं घर और औफिस दोनों जगह काम में बिजी थी. बुरी तरह थक जाती और रात में बिस्तर पर लेटते ही नींद मुझ पर हावी हो जाती. रोहित से हुई चैट दिमाग से निकल चुकी थी कि एक हफ्ते बाद उस का एक मैसेज आया, ‘आप को बुरा लगेगा लेकिन कहे बिना नहीं रह सकता. आप से प्यार हो गया है मुझे. एक हफ्ते तक अपने दिल को बहुत समझाया मैं ने, लेकिन आप का चेहरा आंखों के सामने से हटता ही नहीं. आज रहा नहीं गया और मैं ने अपने दिल की बात कह डाली.’

‘पागल हो गए हो तुम क्या. मेरे बारे में जानते ही क्या हो. और अपनी उम्र देखी है. कुछ सोचसमझ कर तो

बात करो.’ उस की बात अच्छी नहीं लगी मुझे, ‘तुम ने पूछा नहीं, इसलिए बताया नहीं, सिंगल मदर हूं मैं. 2 बच्चे हैं मेरे और तुम्हें मुझ से प्यार हो गया है. मजाक समझते हो प्यार को,’ मैं ने अपना गुस्सा जताया.

‘उम्र से क्या होता है. लेकिन अफसोस हुआ जान कर. तलाकशुदा हैं या फिर आप के हसबैंड…’

‘हां, माई हसबैंड इज नो मोर. 8 साल हो चुके हैं.’ मैं पता नहीं क्यों अपने बारे में उसे बताती गई.

‘क्या आप को फिर से खुशी पाने का कोई हक नहीं. बहुत प्यार करती हैं अपने पति से आप. लेकिन जिंदगी सिर्फ यादों के सहारे तो नहीं चलती.’ रोहित की बातें न जाने क्यों मुझे अपने बारे में सोचने पर मजबूर करने लगी थीं.

अब अकसर हमारे बीच चैट होने लगी. उस की रोमांटिक बातें मुझे अच्छी लगने लगी थीं. दोबारा से मन में खुशी की उमंग करवटें लेने लगी थीं. खुद को सजानेसवांरने लगी थी.

एक दिन रोहित का मैसेज आया, ‘दिल्ली आ रहा हूं, तुम से मिलना चाहता हूं. जगह और टाइम रात में मैसेज कर दूंगा.’ मैसेज पढ़ कर दिमाग में एक झटका सा लगा.

‘ओफ, क्या कर रही हूं मैं. नहींनहीं, बिलकुल सही नहीं है यह सब. नहीं मिलना मुझे किसी से,’ और उसी वक्त मोबाइल ले रोहित का नंबर ब्लौक कर दिया.

मैं ने मोबाइल से तो रोहित को ब्लौक कर दिया था लेकिन उस ने मेरे मन में प्यार की जो सुगबुगाहट जगा दी थी उस का क्या. रोहित की बातों ने ही मुझे दोबारा अपने बारे में सोचने पर मजबूर किया था.

अब मन चाहने लगा कि कोई हो जिस से अपने दिल की बात कही जाए. समान मानसिक स्तर, हमउम्र हो. जो मेरे दिल की बात समझे. दोनों एकदूसरे से अपनी फीलिंग्स शेयर कर सकें.

संपादकीय

पश्चिमी बंगाल, तमिलनाडू, असमी, केरला व पौडुचेरी के चुनावों का फैसला चाहे जो भी हो, मोदीशाह सरकार ने यह जता दिया है कि 1947 के बाद जो आजादी हमें मिली थी, वह धीरेधीरे खत्म हो रही है और चुनावों के जरिए नई अपनी सरकारें बनाने की बात केवल हवाहवाई है जैसे कि भगवान ही हमें चलाता है, वही फसल पैदा करता है, वही कारखानों से सामान बनवाता है, वही सर्तशक्तिमानी. मोदीशाह और भगवान दोनों कहते हैं कि हमें पूजो, हमारी हां में हां मिलाओ वर्ना सरकार बनाना तो दूर तुम जीने लायक भी नहीं रहोगे.

देश का किसान नए कानूनों से परेशान है और देश पर धरनों पर बैठा है पर ये भगवान कहते हैं कि पुराणों में लिखा है कि तपस्या तो वर्षों करनी पड़ती है तब भगवान सुनते हैं. देश का मजदूर बेकारी से परेशान है. उसे कोरोना वायरस से डरा कर जब सैंकड़ों मील दूर चला कर घर भेजा गया तो रास्ते में डंडे पड़े, खाना नहीं मिला. पर चुनावों में मोदीशाह पैसा बरसा रहे हैं. उन का कहर तो दूसरी पाॢटयों पर टूट रहा है जैसा छोटे व्यापारियों, मजदूरों, घरवालियों (नोटबंदी और गैस के दाम बढ़ा कर) गिरता है.

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भारत जैसे विशाल देश में तरहतरह की पाॢटयां होनी चाहिए ताकि हर तरह के लोग अपनी बात कह सके और सरकारी फैसलों को अपने हिसाब करवाने की कोशिश कर सकें और भारतीय जनता पार्टी का सपना है कि देश में ऐसा राज हो जिस में केवल एक पार्टी हो, एक शासक हो, एक नेता हो, एक की सुनी जाए. एक ईश्वर है, उसी में आत्मा है का पाठ सुनने और सुनाने वाले अब एक का ही मंदिर चाहते हैं या एक ही ताकत को सारे मंदिरों का मालिक बना देना चाहते हैं.

कभी तमिलनाडू में विपक्षी पाॢटयों पर छापे पड़ते हैं तो कभी पश्चिमी बंगाल में कभी केरल में पुराने मामले खोले जा रहे हैं तो कभी चुनाव आयोग की बाहे मरोड़ कर उसे अपने मन की करने को कहा जा रहा है. अदालतों से कुछकुछ कहींकहीं न्याय मिल रहा है पर ऐसी सरकार सपना होती जा रही है जो सब की हो चाहे उसे वोट दिया न हो.

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लोकतंत्र की जान है अलग बोल, सब एक ही सुर में बोलेंगे तो वे तो कैदी माने जाएंगे. गांव तक में कई सोच चलती हैं. तभी पंच, यानि 5 की बात की जाती है. 5 जने अपनीअपनी बात अलग तरह से कह सकें, यही इस देश की मूल भावना है, यही 1947 के बाद हमें मिला.

असल में अंग्रेजों के राज में भी हमें छूट ज्यादा थी क्योंकि जितनी जेलें आज सरकार के खिलाफ बोलने वालों से भरी है. 1947 से पहले कभी नहीं भरी. गांधी, नेहरू भगत ङ्क्षसह अपनी बात कह सकते थे. आज वह कहते हुए डर लगने लगा है. आज सरकार की खुफिया पुलिस मंदिरों के पंडो की शक्ल में हर डाली में मौजूद है और मजेदार बात है उसी जनता से चंदा और चढ़ावा पाते है जिस पर वार करती है. उसी के सहारे चुनाव लड़े जा रहे हैं.

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जैसे फैसले हो रहे हैं वह दिख रहा है. सारे धंधे, खेती के धंधे भी कुछ हाथों में दिए जा रहे हैं. सारे देश को मुट्ठी में करने के लिए व्यापार कुछ के हाथों में होगा. अदालतों में चुङ्क्षनदा लोग ही बैठे होंगे. पुलिस और प्रशासन में जो सरकार की न सुन कर जनता की सुनाए उसे दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल दिया जा रहा है, उन 5 राज्यों की विपक्षी दलों या विपक्षी सरकार को जहरीला बताबता कर जहर जनता के लिए बड़ाया जा रहा है. नतीजे जो भी हों चौकाएंगे नहीं.

परफेक्ट पर्सनैलिटी, किसी डिग्री से कम नहीं

एक ऐसे समय में जब नौकरियां पहले से ही कम हो गई हैं, जहां हैं भी उनके ऊपर कोविड का लगातार साया मंडरा रहा है. ऐसे में नौकरी सिर्फ आपकी डिग्री भर से नहीं मिल जाती. निश्चित रूप से डिग्री जरूरी है. लेकिन आज की तारीख मंे पर्सनैलिटी भी नौकरी पाने में एक बड़ी भूमिका निभाती है और यह गलत भी नहीं है. आखिरकार पर्सनैलिटी में हमारा पढ़ा लिखा तो झलकता ही है, हमारे अनुभव, हमारी स्मार्टनेस और दुनिया के प्रति हमारे विचार भी हमारी पर्सनैलिटी का हिस्सा होते हैं. इसलिए वक्त आ गया है कि अब पर्सनैलिटी को गंभीरता से लें.

जरूरी नहीं है कि हर पढ़ा लिखा व्यक्ति सबसे अच्छा ही हो. कुछ लोग पढ़े-लिखे तो बहुत होते हैं पर दूसरों को अपनी बात ठीक से समझा नहीं पाते तो कुछ की बौडी लैंग्वेज सही नहीं होती. कुछ लोग सुंदर होते हैं पर उन्हें सही ड्रेस सेंस नहीं होती, कुछ सोशल गैदरिंग में खुद को सही तरीके से पेश नहीं कर पाते. अपनी छोटी-छोटी कमियों को दूर करने और दबी छिपी खूबियों को निखारने से ही बनती है एक अच्छी पर्सनैलिटी. एक अच्छी पर्सनैलिटी को निखारने के लिए आजकल हर छोटे बड़े शहर में ऐसे ग्रूमिंग संस्थान पैदा हो गए हैं जो किसी की पर्सनैलिटी में चार चांद लगाने के लिए तमाम उपाय करते हैं .

इस तरह के संस्थानों में आमतौर पर 2 तरह के पाठ्यक्रम कराये जाते हैं. पहला उन लोगों के लिए जो अपनी पर्सनैलिटी ग्रूमिंग के लिए आते हैं और दूसरा उन युवक-युवतियों के लिए जो मॉडल बनने के इच्छुक होते हैं. दोनों ही प्रकार के पाठ्यक्रमों में बाॅडी लैंग्वेज, टेबलमैनर्स, बोलने की कला, चाल ढाल और पोस्चर, हेयर एंड मैकअप, स्किन केयर और डाइट, ड्रेससेंस और वार्डरोब आदि के बारे में बताया जाता है. जो मॉडल बनना चाहते हैं उन्हें रैंप मॉडलिंग, कैमरे के आगे कैसे अच्छा दिखें आदि की तकनीक भी सिखायी जाती है.

सवाल है आखिर इन संस्थानों में क्या सिखाया जाता है जिससे किसी की सामान्य पर्सनैलिटी में भी चार-चांद लग जाते हैं? आइये इसे जानें. अभिवादन करने व स्वीकारने की कला- आप कहेंगे नमस्ते करना भी क्या सीखने की बात है ? क्योंकि हम लोग तो बचपन से नमस्ते करना जानते होते हैं. लेकिन हम कहेंगे ऐसा नहीं है. सीखने की जरुरत होती है. बहरहाल ये संस्थान नमस्ते करने का जो ढंग सिखाते हैं उसके मुताबिक दोनों हाथों को बराबर जोड़ें. अंगूठे आप के सीने से लगे होने चाहिए जबकि सिरा को थोड़ा झुकाते हुए नमस्ते करें. ध्यान रखें, इस दौरान आपकी पीठ सीधी होनी चाहिए. यदि कोई हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ बढ़ाए तो उस समय हाथ जोड़कर नमस्ते करना बदतमीजी होती है. वास्तव में हाथ मिलाने का भी अपना एक नियम होता है. सदैव सीधा हाथ मिलाना चाहिए. सिर्फ हाथ की उंगलियां नहीं वरन आगंतुक की हथेली के साथ अपनी हथेली को जोड़ते हुए हलके दबाव के साथ 2 बार ऊपर नीचे करते हुए बीच में लाकर छोड़ दें. यह क्रिया 3 सेकंड के अंदर संपन्न हो जानी चाहिए. लेकिन ये कोरोना के दहशत वाले दिन अगर कोई हाथ न बढ़ाए तो अपना हाथ न बढ़ाएं.

सही पोस्चर- आकर्षक व्यक्तित्व के लिए सही पोस्चर में कैसे रहा जाए? यह जानना बहुत जरूरी है. सही पोस्चर न अपनाने से व्यक्तित्व के आकर्षण में तो कमी आती ही है साथ ही पीठ संबंधी विकार होने की भी संभावना रहती है. व्यक्तित्व विकास संस्थानों में सिखाया जाता है कि अगर आप महिला हैं तो सीना तानकर या नितंबो को पीछे की ओर निकालकर मटकते हुए नहीं चलना चाहिए. साथ ही चालढाल या पोस्चर में दब्बूपन भी नहीं होना चाहिए बल्कि आत्मविश्वास झलकना चाहिए.

आफिस में पहनावा कैसा हो- ड्रेस सेंस में बहुत जरूरी होता है कि आफिस में आप कैसे कपड़े पहनते हैं. लड़कियों के लिए इसके और भी ज्यादा फोकस्ड मायने होते हैं. आॅफिस के लिए ब्लू शेड या ग्रीन शेड की साडियां कार्यालय के लिए अच्छी रहती हैं. अगर सलवार कुरता पहनना हो तो छोटे प्रिंट वाला पहनें. बिलकुल सूती कपड़ा न पहनें क्योंकि उस की क्रीज जल्दी खराब हो जाती है. कपड़े पारदर्शी नहीं होने चाहिए. सलवार कुरता पहने हों तो दुपट्टा भी पिनअप होना चाहिए. ऑफिस में बंद जूते पहनने चाहिए. यदि पाश्चात्य ड्रेस पहननी हो तो ट्राउजर, जैकेट और पूरी बाजू की कमीज पहनें. बिना कौलर वाली कमीज नहीं पहननी चाहिए और न ही लाल रंग की और चेक वाली.

बहुत पतली धरी की कमीज पहनी जा सकती है. कारपोरेट ऑफिस ऐसे ऑफिस के लिए नेवी ब्लू, काला और ग्रे बहुत ही पावरपुफल कलर माने गए हैं. कमीज की बाजू कोट से 1 इंच बाहर निकली हुई होनी चाहिए. इंरव्यू के लिए जाते समय कभी भी जींस और बिना कौलर की टी शर्ट न पहनें और न ही लेदर की जैकेट. खाना खाने का सही तरीका, बोलने का सलीका, सही मेकअप आदि बहुत कुछ जरूरी होता है. पर्सनैलिटी को निखारने के लिए इस में दो राय नहीं कि अच्छी पर्सनैलिटी से ही आत्मविश्वास पैदा होता है. आप का व्यक्तित्व, बातचीत का तरीका व व्यवहार अगर अच्छा हो तो आप को भीड़ से अलग पहचान मिलेगी.

 

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